पंगत
पंगत
(बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 12-07-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
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अनुक्रमणिका-
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
2- एस. आर. 'सरल', टीकमगढ़
3-कल्याणदास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर(निवाड़ी)(म.प्र.)
4- परम लाल तिवारी, खजुराहो (मप्र)
5- संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
6-रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी (उ.प्र.)
7-प्रभुदयाल श्रीवास्तव, टीकमगढ़,(म.प्र.)
8-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा(म.प्र.)
09-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
10- डॉ रेणु श्रीवास्तव, (भोपाल)
11-अशोक पटसारिया 'नादान' लिधौरा (टीकमगढ़)
12-शोभाराम दांगी इंदु, नदनवारा (मप्र)
13-अरविन्द श्रीवास्तव, (भोपाल)
14- अवधेश तिवारी, छिंदवाड़ा (मप्र)
15 -हरिराम तिवारी , खरगापुर (मध्यप्रदेश)
16--डॉ सुशील शर्मा , गाडरवाड़ा (मप्र)
17-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
18- डी.पी. शुक्ला, टीकमगढ़ (मप्र)
19- रामानंद पाठक 'नंद',नैगुवा
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1-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)
*बिषय- पंगत
**बिषय-पंगत*
*1*
पंगत में तो सूटिये,
खीर,बरा अरु भात।
सन्नाटे के साथ में,
पुड़ी मींड के खात।।
***
*2*
पंगत बैठी हो रई,
बैठे सौ-पचास।
इक संगे सब जीमते,
खाते हर्सोल्लास।।
***12-7-2021***
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी"
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
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2-एस. आर. सरल, टीकमगढ़ (मप्र)
बुन्देली दोहा पंगत
जय बुन्देली पटल पै, बुन्देली पकवान।
सब कवि पंगत जै रहे,कर कविता रसपान।।
विधा सबइ व्यंजन भए, शब्द हैं नातेदार।
पंगत बैठी पटल पै, सब कवि जेवन हार।।
दोहा रसगुल्ला बनै, गजल बनी है खीर।
अन्य विधा सब रायतों,कवि पंगत की भीर।।
बर्फी लड़ुआ दइबरा,रातों तडकेदार।
पंगत खौ बैठे सजन,हो रइ है गुबनार।।
समधी पंगत जै रये, समदन गारी गात।
समदन भौतइ चुलबुली,समदी है शर्मात।।
***
मौलिक एवं स्वरचित
-एस आर सरल,टीकमगढ़
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पंगत कौ न्यौतौ मिलत , हाल-फूल हो जात ।
चार जनन में बैठ कें , जेवे में रस आत ।।
पंगत कौ हल्ला सुनत , बच्चा खुशी मनाँय ।
जनी-मान्सें होंय खुश , सज-धज कें सब जाँय ।।
कच्ची पंगत में मिलत , कढी़ बरा उर भात ।
माँडे़ शक्कर दार घी , खा-खा खूब अघात ।।
बडी़ं-बडी़ं बखरीं हतीं , बडे़ चौंतरा द्वार ।
पंगत नेंचें बैठ कें , जेइं पालथी मार ।।
चमचोलीं पूडी़ं मिलें , बूढे़ मुरा न पाँय ।
पंगत में हो रायतौ , मींड़ - मींड़ कें खाँय ।।
पंगत कौ बदलौ चलन , ठाँडे़ं - ठाँडे़ं खात ।
ढक्का खावे खों मिलत , उन्ना भी भिड़ जात ।।
***
-कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर,निवाडी़ (मप्र)
( मौलिक एवं स्वरचित )
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4- परम लाल तिवारी, खजुराहो (मप्र)
#पंगत#
पंगत पाओ मौन हो,हरि से चित्त लगाय।
ग्रास ग्रास के खात ही,क्षुधा मिटे बल छाय।।
पंगत में सकुचाय जो,ऊ को भरे न पेट।
जो भी आये थाल में,खाओ सकल समेट।।
करो निवेदित भोग सब,ठाकुर के दरवार।
फिर प्रसाद पंगत करो,होवें नष्ट विकार।।
पंगत की पंक्ती भली,जो साधु संग होय।
ज्ञान भक्ति वैराग्य दृढ़,अपने हिय में जोय।।
पंगत हो मंडप तरें,गावें गारी नार।
समधी जन भोजन करें,हँसे सबहि दें तार।।
*****
-परम लाल तिवारी,खजुराहो (मप्र)
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5- संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
विषय- *पंगत*
*१*
पंगत की बेरा भई,मड़वा नैचें आज।
न्यौत रहे हरदौल खों,आन रखियो लाज।।
*२*
कछु जने तो पंगत में,दमचौरा सौ देत।
मार पालती, हूँक कें,हफ्तन को खा लेत।।
*३*
समदी जेरय पंगत में,समदन गारी गायँ।
ठोका की जब कै धरी,समदी जू सरमायँ।।
*४*
पंगत में मड़वा तरें,फूफा रुच-रुच खायँ।
फुआ मड़ा सें हेरकेँ,विदी-विदी मुसकायँ।।
*५*
मड़वा नैचें बैठकें,खूब पंगते खाइं।
छप्पन भोजन पातर में,दोना भरी मिठाइ।।
*६*
परसों पक्की पंगत है,परसैया नइं चार।
मौका परै पतो परत,की को का व्यौहार।।
***
संजय श्रीवास्तव, मवई
५जुलाई२१😊दिल्ली
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6-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी
पंगत.
पैले पंगत कैत तै,प्रीत भोज कंय आज।
प्रीत रीत सें होत ते, सबके सारे काज।।
बिरादरी में आजकल, ऐसी परती फूट।
काऊ सें पंगत जुरी, काऊ सें गइ टूट।।
पंगत हो सब रंग की, रस सें भरी अपार।
परसत में बरसे सदा, प्यार और मनुहार।।
पंगत ऊकी हो बडी़, जी को बड़ व्यौहार।
द्वारे ऊकें जुरत हैं, नाते रिस्तेदार।।
पंगत केवल नाम की, कोरोना को दौर।
अब कोनउ के ब्याव को, मचे न नैकउ शोर।।
***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी (उप्र.)
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7-प्रभुदयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
बुंदेली दोहे - विषय पंगत
पंगत जेबे जात हौ, राखें रइयौ ध्यान।
माल मुफत कौ सूंट कें,पेट न लगै पिरान।।
पंगत बैठी परस गए,परसा सब सामान।
हांत जोर पगरैत कत, हों लछमी नारांन।।
हरे भरे मड़वा तरें,पंगत हो रइ आज।
कड़ी भात बूरौ बरा,जे रइ सकल समाज।।
पैले सी पंगत कितै,कां बे जेबे बाये।
अपने पांवन पोंच गये,धरे खाट पै आये।।
समदी मंजा सोंर कौ, है भौतइ दिल दार।
खुरसेला की दै चुको,पंगत दो दो बार।।
***
-प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
खुरसेला की पंगत बहुत पहले आदिवासी समाज में प्रचलित थी, इस में पत्तल पर भुने हुए महुआ और चने परस कर एक फुलका के चार टुकड़े कर एक एक टुकड़ा खुर्स दिया जाता था। यह उस अभावों के काल में उनकी समाज में शानदार पंगत मानी जाती थी।
-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
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8-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, टीकमगढ़
#दोहे पंगत#
#1#
पंगत पक्की जानिये,बिन्जन भये कै बन्न।
केउ जने हो जात ते,सन्नाटे में सन्न।।
#2#
बन्न बन्न बिन्जन बने,पूड़ी अरु पकवान।
पंगत में पचमेर की,अलग रात ती शान।।
#3#
कच्चे पक्के जो हते,पंगत के दो रूप।
एक संग भव आचमन,रंक होय या भूप।।
#4#
पैलाँ पंगत होत ती,खान पान सम्मान।
बफे डिनर ने चाट लय,अब पंगत के प्रान।।
#5#
कच्ची पंगत रोटियाँ, कड़ी बरा अरु दार।
कालोनी घी डार कें,खा रय रिश्तेदार।।
***
#मौलिक एवम् स्वरचित#
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, (टीकमगढ़)
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9-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
*बिषय.पंगत (दोहा बुंदेली)*
1-
पंगत की जांसें सुनी, हाल फूल भइ मोय।
काल दिना की बाठ में,आज रात नहिं सोय।।
2-
पंगत पैलां तीन दिना,कोउ कछु नहीं खात।
चौथे दिन न्यौतो करें,खूब सूंट कैं खात।।
3-
पंगत में तो पौनछक, पौन खात छक जात।
कड़ी बरा अरु भात सब,उतइ थरे रै जात।।
4-
आजकाल की पंगतै,मौखौं नहीं पुसात।
नाय माय ठूसा घलें,सुख सें नहिं खा पात।।
5-
पंगत बा नौनी लगै,सबइ बैठकें खात।
पातर में परसे सबै,बरा,कड़ी अरु भात।।
***
*-प्रदीप खरे मंजुल*,टीकमगढ़ मप्र💐
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10-डॉ रेणु श्रीवास्तव, (भोपाल)
दोहे विषय 'पंगत'
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
1 -
पंगत बैठी दोर में, होन लगी जवनार।
गारी गारइं गोरियां, समधी हैं रसदार।।
2-
पातर पंगत में लगै, संगे दुनिया आत।
कड़ी बरा ओ भात से, कच्ची पांत पुसात।।
3 -
बफे सबइ अब खात है, मोड़ी मोड़ा आज।
पंगत वे जानत नहीं, कैसउ औसर काज।।
4 - कोरोना के काल में, पंगत कबउं न होंय।
मास्क बांध दूरी रखो, हांथन को सब धोय।।
5 - पंगत पातर पाउने, जे पतंग सी डोर।
हांथन में जे लै रहो, कबउं न होबे शोर।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
-
✍🏽-डॉ रेणु श्रीवास्तव, (भोपाल)
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11-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा ,टीकमगढ़
😊😊 पंगत 😊😊
मार पाल्थी बैठ गय,
पंगत में जजमान।
जैकारे पैलें लगे,
फिर लक्ष्मी नारान।।
छेवले की पातर डरी,
दुनियाँ धरी संभार।
पानी कौ किंछा लगो,
फिर परसी ज्योनार।।
पांतन में दो भांत नइ,
इक्छा भोजन लेंय।
पंगत परसें घर धनी,
चीन चीन कें देंय।।
पंगत भइ मडवा तरें,
बैठी सब ज्योनार।
कड़ी भात बूरौ बरा,
घी देवलन कि दार।।
दूला बैठो रिसानों,
पंगत कै रइ खाव।
तीन बैंड कौ रेडुआ,
पैलें इतै लियाव।।
*** ***
-अशोक नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़
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12-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा (मप्र)
बिषय - "पंगत "बुंदेली दोहा
1-
शिवशंकर के ब्याव में, अद्भुत पंगत होय ।
लूले लंगड़े आँदरे, कांनें बूचे सोय ।।
2-
कच्ची पंगत सबइ जनें, भर -भर बेला खांय ।
कड़ी बरा अरू भात में, दार मिला कैंखांय ।।
3-
हौंन लगी जेवनार जब, नैंग मांगवै. नान
इक नागिन पकराय दइ ,भगी बचाई जान।।
4-
कच्ची -पक्कीं पंगतैं, मँडवा तरें सुहांय ।
नच रय हंस रय प्रेम रस, जिवनारे मुस्कांय ।।
5-
खीर पूड़ी दईबरा, सठ व्यंजन जेवनार ।
चुरूर -मुरूर पापर करें, भरौ खूब पनवार।।
***
मौलिक एवं स्वरचित रचना
-शोभाराम दाँगी नंदनवारा
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13-अरविन्द श्रीवास्तव, (भोपाल)
*पंगत*
औसर काजै जो जुरैं, जेबैं सब इक साथ,
पंक्ति बैठ भोजन करैं, सो पंगत कैलात ।
पूड़ी सब्जी रायतौ, औ देशी पकवान,
दौना पातर सें हती, पंगत की पहचान ।
बाहर पंगत होत ती, औ भीतर ज्यौनार,
गाँवन में अब लौं चलै, जौ लौकिक व्यौहार ।
***
*अरविन्द श्रीवास्तव*
भोपाल
मौलिक-स्वरचित
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14- अवधेश तिवारी, छिंदवाड़ा (मप्र)
पंगत में बेटा सदा,सबको साँत निभाव।
जल्दी भर गओ पेट तो,औसई-औंसई खाव।।
2 -
पंगत में परसे पुड़ी,तेमन और अचार।
दोना नई थो साँत में,(तो) पल्लई भग गई दार।
*****
-कल्लूके दद्दा
(अवधेश तिवारी)
छिंदवाड़ा (मप्र)
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15 -हरिराम तिवारी , खरगापुर (मध्यप्रदेश)
बुंदेली दोहे "पंगत"
१
पैर परदनी रेशमी,गरें सुआपी डार।
पंगत जेंबे जात ते,होत भोत सत्कार।।
२.
चौकी आसन डारकें,बैठ पालथी मार।
पंगत में पत्तल परस,फिर परसें जेवनार।।
३.
कच्ची पक्की बनत ती, पंगत में जेवनार।
षट रस विंन्जन स्वाद के, भोजन चार प्रकार।।
४
कछु और लेव और लेव, परसें प्रेम जनांय।
पंगत में सब पांउनें,बड़े भाव से खांय ।।
५
अब तो पंगत जीमवे,कऊं नइं देत सुनात।।
बफर भोज ऐसो चलो,ठांड़े ठांड़े खात।।
***
जय जय सियाराम🙏🙏
-हरिराम तिवारी "हरि"
खरगापुर ,जिला टीकमगढ़ म(ध्य प्रदेश)
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16-डॉ सुशील शर्मा , गाडरवाड़ा (मप्र)
बुंदेली दोहा
पंगत
पंगत को न्योता मिलो ,मन में भौतइ चाव।
चार माह के बाद में ,खूब ठूँस के खाव।।
पंगत में बैठे कका ,रसगुल्ला पे दाँव।
अबर सबर खा के गिरे ,अब नै उठ रय पाँव।।
गिद्ध भोज में अब कहाँ ,पंगत को आनंद।
पूछ पूछ के बा परस ,खा के परमानन्द।।
पंगत में सब बैठ के ,हँसी खुशी से खाँय।
रिश्ते गाढ़े होत हैं ,मन के भेद मिटाँय।।
पहले जाके डट गए ,छोड़ छाड़ सब काम।
पंगत सबरी उठ गई ,पिले हैं मोटूराम।।
***
-डॉ सुशील शर्मा , गाडरवाड़ा (मप्र)
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17-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
बुन्देली दोहा
सोमवार
बिषय-पंगत
♡♡♡♡♡♡♡♡
खान पान पैला हते,ओर पंगत की सान।
कड़ी बरा पुलकिया,घी शक्कर सन्मान।।
2-
कच्ची पंगत सान की,जे शरीर को भाये।
जी भरके जा जैऊत ते,भर पेटे जा खाये।।
3-
ताकत ब पाचक हती,नई देह को हान।।
आज काल के बफा में,नईया कोनऊ जान।।
4-
हातन में थाली लये ,इते उते जे जात।
ठाडे ठाडे खा रहे,खारये जात कुजात।।
5-
महिला पेला जैऊत ती,कर पुरूषों की ओट।
बफा में सगे खा रही,हें मर्दन से चोट।।
***
-गुलाब सिंह यादव 'भाऊ', लखौरा टीकमगढ़
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18- डी.पी. शुक्ला, टीकमगढ़ (मप्र)
🌷🌷पंगत🌷🌷
पंगत जैसो नईं मजा, बैठ पालथी मार।
लुचई संग लै राएतौ,दै लडु़वन कौ ढ़ार।।
पंगत बैठी द्वार पै, परसत सवई सुजान।
रमतूला के बजतई,उठत जात बैठान।।
वैसी पंगत होत नईं, दै लडुवन की मार ।
चार गड़ा खा लेत ते, बिनईं लयें डकार।।
वे मानुष अब हैं नईं,पंसेरा की खान।
पंगत जेंई खाट पैै,घर भेजें जजमान।।
पंगत की सुनके चले,चार कोस है दूर ।
वे दिनाँ अब रये नईं,होत बफर भरपूर।।
***
-डी पी. शुक्ल'सरस', टीकमगढ़
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19- रामानंद पाठक 'नंद',नैगुवा
पंगत पर पांच दोहा
प्रेम सें पंगत होतति,बैठत्ती जिवनार।
बोली बोलें प्रेम की,गांरीं गाबैं नार।
2
परस दइ पचबन्नी मिठाइ,परसौ गऔ अचार।
सन्नाटौ दौना भरौ,बूढ़े ना लाचार।
3
न्योतारे सब पांत में,पूरी परस दिखाय।
अज्ञा भोजन अचवन हुए,रमतूला बज जाय।
4
पोंच धनी के द्धार पै,बैठत पांव पखार।
पातर परसी जिन्स सब,सोहत्ती जिवनार।।
5
परसा जूता पैर रय,खारय जूतइ पैर।
प्रथा पुरानी टूट गइ ,ना निज न कोउ गैर।।
***
रामानन्द पाठक नन्द
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*230 -आज की समीक्षा*
*समीक्षक - राजीव नामदेव राना लिधौरी'*
*दिन- सोमवार* *दिनांक 12-7-2021
*बिषय- *"पंगत" (बुंदेली दोहा लेखन)*
आज पटल पै *पंगत* बिषय पै *दोहा लेखन* कार्यशाला हती।आज भौत नोने दोहा रचे गय सासउ पंगत जैबै जैसो स्वाद दोहन खां पढ़के लगो।जितैक जनन नें लिखौ उने हम बधाई देत है कै कम सें कम नये बिषय पै नओ लिखवे की कोसिस तो करी है,भौत नोनों लगो। गजब के नोने दोहा रचे बधाई।
आज सबसें पैला *1-श्री गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा* ने अपने दोहन में लिखों है कै पैला कौ खान पान भौत नौनो हतो अब सब गिद्ध भोज करत है। सभी दोहे नोनै है। बधाई भाऊ।
खान पान पैला हते,ओर पंगत की सान।
कड़ी बरा पुलकियाघी शक्कर सन्मान।।
हातन में थाली लये ,इते उते जे जात।
ठाडे ठाडे खा रहे,खारये जात कुजात।।
*2* *श्री प्रदीप खरे, मंजुल, पुरानी टेहरी, टीकमगढ़* से कै रय कै पैला पौनछक मिलत ती सो ओइ में अफर जातते अब कां धरी, भौत शानदार दोहे रचे है मंजुल जी बधाई।
पंगत की जांसें सुनी, हाल फूल भइ मोय।
काल दिना की बाठ में,आज रात नहिं सोय।।
पंगत में तो पौनछक, पौन खात छक जात।
कड़ी बरा अरु भात सब,उतइ थरे रै जात।।
*3*- *श्री जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा* जिला टीकमगढ़ सें लिखत हैं कै कच्ची पंगत में बन्न-बन्न कै बिंजन खाबे मिलतते। पंचमेर की का कने । भौत नोने दोहा लिखे है दाऊ ने पंचमेर के दोहा परस दय बधाई।
पंगत पक्की जानिये,बिन्जन भये कै बन्न।
केउ जने हो जात ते,सन्नाटे में सन्न।।
बन्न बन्न बिन्जन बने,पूड़ी अरु पकवान।
पंगत में पचमेर की,अलग रात ती शान।।
*4*- *श्री अवधेश तिवारी जू छिन्दवाड़ा* सें पंगत कों हाल बतारय उमदा दोहे रचे है। बधाई।
पंगत में बेटा सदा,सबको साँत निभाव।
जल्दी भर गओ पेट तो,औसई-औंसई खाव।।
पंगत में परसे पुड़ी,तेमन और अचार।
दोना नई थो साँत में,(तो) पल्लई भग गई दार।।
*5* *श्री परम लाल तिवारी,खजुराहो* ने मडवा तरे की पंगत में गारी सुनत भय खावे में भौत नोनो लगत है। बढ़िया दोहे लिखे है महाराज बधाई।
पंगत की पंक्ती भली,जो साधु संग होय।
ज्ञान भक्ति वैराग्य दृढ़,अपने हिय में जोय।।
पंगत हो मंडप तरें,गावें गारी नार।
समधी जन भोजन करें,हँसे सबहि दें तार।।
*6* *श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी* उप्र.कय है कै अबै कोरोनावायरस के कारण पंगत नाव की रैय गयी है अब तो भीर नइ जोर सकत जादां जने कौ नइ बुला सकत है। अच्छे दोहे है बधाई।
पंगत ऊकी हो बडी़, जी को बड़ व्यौहार।
द्वारे ऊकें जुरत हैं, नाते रिस्तेदार।।
पंगत केवल नाम की, कोरोना को दौर।
अब कोनउ के ब्याव को, मचे न नैकउ शोर।।
*7* *श्री शोभारामदाँगी नंदनवारा* से भगवान शंकर जू के ब्याव की पंगत को नौनो वरनन करत है बधाई।
शिवशंकर के ब्याव में, अद्भुत पंगत होय ।
लूले लंगड़े आँदरे, कांनें बूचे सोय ।।
कच्ची -पक्कीं पंगतैं, मँडवा तरें सुहांय ।
नच रय हंस रय प्रेम रस, जिवनारे मुस्कांय ।।
*8* *डॉ सुशील शर्मा जू गाडरवाड़ा* से लिखत है कै पैला पंगत में इतैख खा लेयते है उठतइ नइ बनत तो। सांसी लिखों है बधाई डॉ साहब।
पंगत को न्योता मिलो ,मन में भौतइ चाव।
चार माह के बाद में ,खूब ठूँस के खाव।।
पंगत में बैठे कका ,रसगुल्ला पे दाँव।
अबर सबर खा के गिरे ,अब नै उठ रय पाँव।।
*9* *डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल* ने अनुप्रास अलंकार कौ नोनो प्रयोग करत भय दोहा रचे बधाई।
पंगत बैठी दोर में, होन लगी जवनार।
गारी गारइं गोरियां, समधी हैं रसदार।।
पातर पंगत में लगै,संगे दुनिया आत।
कड़ी बरा ओ भात से, कच्ची पांत पुसात।।
*10* *श्री संजय श्रीवास्तव, मवई, दिल्ली* ने सबइ दोहा नोनै रचे है। पंगत में सबसें पैला हरदौल जू खौ न्योतौ दऔ जात है। पंगत में फूफा ,समधन,समधी कौ नोनो चित्र खैंचो है। बधाई।
पंगत की बेरा भई,मड़वा नैचें आज।
न्यौत रहे हरदौल खों,आन रखियो लाज।।
समदी जेरय पंगत में,समदन गारी गायँ।
ठोका की जब कै धरी, समदी जू सरमायँ।।
पंगत में मड़वा तरें,फूफा रुच-रुच खायँ।
फुआ मड़ा सें हेरकेँ,विदी-विदी मुसकायँ।।
*11* *श्री एस आर सरल टीकमगढ़* बुंदेली पकवान को मज़ा पटल से ले रय है भौत मजेदार पंगत बैठा दई बधाई सरल जू।
जय बुन्देली पटल पै, बुन्देली पकवान।
सब कवि पंगत जै रहे,कर कविता रसपान।।
विधा सबइ व्यंजन भए, शब्द हैं नातेदार।
पंगत बैठी पटल पै, सब कवि जेवन हार।।
दोहा रसगुल्ला बनै, गजल बनी है खीर।
अन्य विधा सब रायतों,कवि पंगत की भीर।।
*12* *श्री डी पी. शुक्ल,, सरस,, टीकमगढ़* ने पंगत को बेहतरीन वरनन करो है बधाई।
पंगत जैसो नईं मजा,बैठ पालथी मार !!
लुचई संग लै राएतौ, दै लडु़वन कौ ढ़ार!!
पंगत बैठी द्वार पै,परसत सवई सुजान!!
रमतूला के बजतई,उठत जात बैठान !!
*13* *श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़* से पंगत जैबे वारन खां सचेत कर रय कै कऊ चपेट कै नइ खा लइयो नातर पेट पिरान लगे। सभी दोहे बढ़िया है बधाई।
पंगत जेबे जात हौ, राखें रइयौ ध्यान।
माल मुफत कौ सूंट कें,पेट न लगै पिरान।।
पैले सी पंगत कितै,कां बे जेबे बाये।
अपने पांवन पोंच गये,धरे खाट पै आये।।
*14* *श्री अरविन्द श्रीवास्तव ,भोपाल* पंगत की पैचान बता रय पैला कैसी होतती पंगतें। बधाई बढ़िया दोहे है।
औसर काजै जो जुरैं, जेबैं सब इक साथ,
पंक्ति बैठ भोजन करैं, सो पंगत कैलात ।
पूड़ी सब्जी रायतौ, औ देशी पकवान,
दौना पातर सें हती, पंगत की पहचान ।
*15* *श्री कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर* लिखत है कै पंगत में का का खैबे मिलत है। सभी दोहे नोनै लगे है बधाई।
कच्ची पंगत में मिलत , कढी़ बरा उर भात ।
माँडे़ शक्कर दार घी , खा-खा खूब अघात ।।
चमचोलीं पूडी़ं मिलें , बूढे़ मुरा न पाँय ।
पंगत में हो रायतौ , मींड़ - मींड़ कें खाँय ।।
*16* *श्री अशोक पटसारिया नादान लिधौरा टीकमगढ़* सें बता रय कै पंगत काय में दइ जातती । शानदार दोहे रचे है बधाई।
मार पाल्थी बैठ गय, पंगत में जजमान।
जैकारे पैलें लगे, फिर लक्ष्मी नारान।।
छेवले की पातर डरी,दुनियाँ धरी संभार।
पानी कौ किंछा लगो,फिर परसी ज्योनार।।
*17* *राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़* लिखत है कै पंगत में सन्नाटे के संगे पूडी मींड कै खाबे को मजई कछु ओर है।
पंगत में तो सूटिये,खीर,बरा अरु भात।
सन्नाटे के साथ में,पुड़ी मींड के खात।।
पंगत बैठी हो रई,बैठे सौ-पचास।
इक संगे सब जीमते,खाते हर्सोल्लास।।
*18* *श्री रामानन्द पाठक नन्द नैगुवा* सें पैलां और अबै की पंगतन में अंतर बता रय है। नोने दोहा लिखे है बधाई।
पोंच धनी के द्धार पै,बैठत पांव पखार।
पातर परसी जिन्स सब,सोहत्ती जिवनार।।
परसा जूता पैर रय,खारय जूतइ पैर।
प्रथा पुरानी टूट गइ ,ना निज न कोउ गैर।।
*19* *श्री हरिराम तिवारी "हरि"खरगापुर* सें लिखत है कै पैला कैसे सजधज कै पंगत में जातते। उमदा दोहे है बधाई।
पैर परदनी रेशमी,गरें सुआपी डार।
पंगत जेंबे जात ते,होत भोत सत्कार।।
चौकी आसन डारकें,बैठ पालथी मार।
पंगत में पत्तल परस,फिर परसें जेवनार।।
ई तरां सें आज पटल पै 19 कवियन ने अपने अपने ढंग से प़गत कौ आनंद लऔ है। सबई ने नोनो लिखों है सभई दोहाकारों को बधाई।
👌*जय बुंदेली, जय बुन्देलखण्ड*👌
*समीक्षक- ✍️राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)*
*एडमिन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़#
👌*जय बुंदेली, जय बुन्देलखण्ड*👌
*समीक्षक-
✍️राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)
*एडमिन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
1 टिप्पणी:
Very nice old culture
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