व्यंग्य-‘‘उपवास में छोले भटूरेे’’
(राजीव नामदेव ‘‘राना लिधौरी’’)
भारत में उपवास रहने के सैंकडों तरीके हंै, ठीक उसी प्रकार उपवास को अनेक तरीको से रखा जाता है। कहा भी गया है कि-‘‘ जितनी भक्ति उतनी शक्ति’’ इसीलिए आधुनिक युग में पहले की तरह निरा आहार एवं बिना जल पिये निर्जला व्रत (निर्जला एकादशी) भी रहने की परम्परा है जो कि धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। समय के साथ-साथ इसमें अनेक बदलाव आये हैं। अब पहले viyangजैसे के ऋषि-मुनि एवं भक्त नहीं रहे और ना ही उनकी भक्ति अब तो दिखावा अधिक हो रहा है।
वर्तमान में जहाँ कुछ महिलायें ‘तीजा’ (हरतालिका व्रत) एवं ‘करवाचैथ’ रहती हैं उनमें से अधिकांश तो नई साड़ी की लालच में रहती है। तो कुछ अपना वजन कम करने के चक्कर में व्रत रहकर एक तीर से अनेक शिकार करती है पहला वे उपवास रहकर कुछ प्रतिशत पुण्य कमा लेती हैं। दूसरा एक मंँहगी सी साड़ी पति से जबरन खरीदवा कर ही दम लेती है। तीसरा उस नयी साड़ी को पहनकर पडौसनों का जलाने में असीम सुख की अनुभूति प्राप्त करती हैं।
नव दुर्गा में नौ दिन सुबह से नयी-नयी साड़ियाँ पहनकर देवी जी को जल चढ़ाने के बहाने दूसरी औरतों का जलाने में परम आनंद की प्राप्ति करती हैं। पाँच-दस मिनिट के इसी क्षणिक सुख से लिए वे दिनभर भूखे रहकर व्रत का पुण्य कमा लेती है हाँ रात में भी वे इस दिन अन्न ग्रहण नहीं करती और शाम होते हुए दर्जनभर केले,एक-आध किलो मौसमी फल,एक-दो पाव दूध, एक बडे कटोरा में सबूदाने की खीर, एक प्लेट साबूदाने की खिचड़़ी आदि कुल मिलाकर बस जरा सा फलाहार कर लेती हंै और अगले दिन कौन सी साड़ी पहनेगी इस पर गहन शोध करती हैं कुछ सास-ननदों एवं अपने बच्चों से ही उनकी राय पूंछ लेती है लेकिन पहनती वहीं साड़ी हैं जो स्वयं की पहले से ही पसंद कर रखी है।
भारतीय पुरूष उपवास बहुत कम रखते है। कुछ लोग नवदुर्गा, गणेश चतुर्थी, सोमवती अमावस्या, शिवरात्रि, राम नवमीं, कृष्ण जन्माष्टमी आदि विशेष अवसरों पर व्रत रखते है। उपवास लोग रख तो लेते है किन्तु कहा गया है कि-‘‘ भूखे पेट न होय भजन गोपाला’’ की तर्ज पर वे फलाहार अपने स्वादुसार ही ग्रहण करते हैं। चााहे वह आलू-गाजर का हलवा हो या साबूदाने की खिचड़ी,खोवे से बनी सभी मिठाइयाँ खा लेते है सब चलती है भले ही उसमें सबकुछ मिला हो गया। बस थोड़ा सा भगवान को भोग लगाया और फिर कम से कम पाव भर या आधा किलो तो पेट के हवाले कर ही देते है।
अब ऐसे में जिन्हें शुगर की बीमारी हो वे तो मिठाई खा ही नहीं सकते मजबूर है। इसीलिए वे मिठाई को यह कहते हुए हाथ तक नहीं लगाते कि आजकल कहाँ शुद्ध खोया मिलता है? वे नमकीन चीजों को पंसद करते है अब चूंकि नमक खाना उपवास में निषेध है लेकिन इसका तोड़ भी हमारे पूर्वज दे गये है कि उपवास में
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समुद्री नमक के स्थान पर सेंधा नमक खाया जा सकता है। कुछ लोग सिंघाड़े के आटे की पुरियाँ तक खाते और अब तो हद ही हो गयी एक प्रसिद्ध राजनेता ने हाल ही में उपवास रखा और फलाहार के रूप में छोले-भटूरे तक खा लिये। उनके प्रशंसक बहुत खुश है कि चलो अब वे जब भी उपवास रखेगे तो हम भी उनके साथ उपवास रहेगे,कम से कम छोले भटूरे खाने का आनंद तो मिल ही जायेगा।
हो सकता है आगे चलकर मुंबई की कोई हीरोइन पानी पूरी खाकर भी व्रत रखने लगे या हो सकता हैं कि मद्रास कि कोई हीरोइन इडली-दौसा खाकर उपवास रहने लगे। नया जमाना है। सब स्वतंत्र है। कोई कुछ भी कर सकता है कोई कुछ भी खा-पी सकता है। लोग तो उपवास रहकर भी झूठी कसमें खा लेते है और जब नेता कोयला, चारा तक खा कर पचा सकते है ये भी एक नेता है फिर इन्होंने तो मात्र छोले भटूरे ही खाये है। वो भी उपवास में तो क्या गजब हो गया। भई विदेशों में तो कोई उपवास रहता नहीं है फिर वे क्या जाने उपवास में क्या-क्या खाया जा सकता है और क्या नहीं।
खैर वे अभी बच्चे है शादी हो जाने तो सब समझने लगेगे। लेकिन सवाल यह है कि वे शादी कब करेंगे तो उनका है कि- जब अटल जी करेंगे तो उनके बाद करेगें वे हमारे बहुत सीनियर हैं। हम उनका बहुत सम्मान करते हैं हम उनके नक्शे कदम पर ही चल रहे है। शायद इसी बहाने हमारी कुछ इज्जत होने लगे वर्ना लोगो ने तो हमें पप्पू बना दिया है।
अब यह तो स्वभाविक है कि जब हम पप्पू है तो हम पप्पू जैसी हरकतें तो करते ही रहेगंे। वर्ना लोग कैसे फिर हमें याद करेंगे।
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व्यंग्यकार- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.) पिनः472001
मोबाइल-9893520965
E Mail- ranalidhori@gmail.com
Blog - rajeev rana lidhori.blogspot.com
प्रमाण पत्र:-
प्रमाणित किया जाता है कि मेरे उपरोक्त व्यंग्य अप्रकाशित,अप्रसारित एवं मौलिक है।
(राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’)