Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शनिवार, 16 सितंबर 2023

anushruti vol-8 (Jul-Sep. 2023)

अनुश्रुति 
 बुंदेली त्रैमासिक ई-पत्रिका 
अंक-8- वर्ष-2 जुलाई-सितम्बर-2023
 संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
 © कापीराइट- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
 ई पत्रिका प्रकाशन दिनांक 24-8-2023 
 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड, भारत-472001 मोबाइल-9893520965
 प्रकाशक- म.प्र. लेखक संघ जिला इकाई टीकमगढ़ 😄😄😄 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 संपादकीय-
 -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
          सबई जनन खौ हात जोर कै हमाइ राम- राम पौच जाय। अपुन नै बुंदेली खों विश्व पटल पै लावे के लाने और बुंदेली खों बढावा देवे के लाने "अनुश्रुति" नाव से एक त्रैमासिक ई-पोथी निकारवो शुरु करो हतो, जी को पैलो अंक अक्टूवर-दिसम्वर-2021 में अपुन ने निकारो हतो जिये ऐन बडबाई मिली, सोमन कौ भौतइ नौनो लगो। 
           सो अपन आज ईकौ आठवों अंक आप लौ पौचा रय, हरां हरा ईमें और सुदार आत जैहे। काल 23अगस्त 2023 कौ दिना हम सबई जनन के लाने भौतई नौनो रऔ, गरब करवें वालो हतो इसरो के वैज्ञानिकन ने हाड़तोड़ मेंनत करके चंद्रयान-3 चंदा के लिंगा भेजवे में सफलता पाई है दछिनी भाग में पौचवे बारों हमाऔ भारत देश पैलौ देश बन गऔ। अब लौ उतै कौनउ देश नई पौछ पाऔ, सौ जा भौत बड़ी बात है हमाइ "अनुश्रुति" पौथी की तरफा से इसरो और उनकी पूरी वैज्ञानिक टीम को भौत-भौत बधाई। आपने इतिहास रच दऔ। आपको शत् शत् नमन करते हैं। 
            बुंदेली के जनवन से हात जोर कै बिनती है कै ई पोथी की सकारात्मक समीचछा करे, और ई में का-का सुदार हो सकत उने बताये। ई पोथी को निकारवे को एक उद्देश्य जो सोउ है कै बुंदेली में नऔ रचो भऔ साहित्य पढ़वे वारन के अगाई लाओ जाय। नये कवियन खां एक साजो मंच दव जाये जीसें उनकी प्रतिभा को बढ़ावा मिले और वे अगाउ बढ़ सके। ई पोथी में जी-जी की कविताई अपुन कों नोनी लगी होय उनकी जरुर बढवाई करें हमें व्हाट्स ऐप पर लिख के भेजे हम आपके पत्र पोथी में छापेंगे अरु उने मोबाल लगाकें उने बधाई दे तो हमें भौत नौनो लगे। हमाई जा कोशिश कैसी लगी जरूर मोबाइल पै बतावे कौ कष्ट करो जाय। 
          अपनी जा बुंदेली की ई-पत्रिका को जौ आठवों अंक आपको कैसी लगो कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करवे कौ कष्ट अवश्य करियो, ताकि हम दूने उत्साह से अपनौ नवसृजन कर सके। 
                    *** 
              दिनांक-24-8-2023
         -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
                संपादक -अनुश्रुति
      टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)       
             मोबाइल-9893520965 
 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 

 कितै को है और कितै का है- 
संपादकीय ✍ राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)

 चौकड़िया- 
✍ गोकुल प्रसाद यादव, (नन्हीं टेहरी) 
✍️प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष'(टीकमगढ़)
 कुंडलियां 
✍ रामलाल द्विवेदी प्राणेश (चित्रकूट) 
✍ रामानंद पाठक (नैगुवां) 
आल्हा छंद 
✍️प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष'(टीकमगढ़) 
लोकगीत,गीत-
 ✍ शोभाराम दांगी इंदु(नदनवारा) 
✍ सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़(मध्यप्रदेश) 
 ✍ -प्रमोद मिश्रा (बल्देवगढ़) 
 ✍ -आशा राम वर्मा, 'नादान'(पृथ्वीपुर)
 दोहा 
 ✍ एस.आर. 'सरल'(टीकमगढ़)
 ✍ राजीव नामदेव "राना लिधौरी"(टीकमगढ़) 
✍ संजय श्रीवास्तव* मवई (दिल्ली) 
✍- कल्याण दास साहू "पोषक"(पृथ्वीपुर)
 ✍ अमर सिंह राय(नौगांव) 
✍ डॉ. रेणु श्रीवास्तव,(भोपाल) 
 ग़ज़ल :-
✍ नरेन्द्र श्रीवास्तव, गाडरवारा,(म.प्र.)
 ✍ रामेश्वर प्रसाद गुप्ता'इंदु',बडागांव,झांसी(उ.प्र.) 
कविताई 
✍ सुभाष सिंघई,जतारा 
✍ डां.सरोज गुप्ता, सागर 
✍ जाग्रति कौशकिया, नैगुवां, निवाड़ी (मध्य प्रदेश) 
 ✍ भगवान सिंह लोधी अनुरागी, हटा, दमोह 
✍ -डॉ.गणेश राय, दमोह व्यंग्य 
✍ राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़) 
✍रामगोपाल रैकवार (टीकमगढ़) 
आलेख/यात्रा संस्मरण 
✍ विजय मेहरा (टीकमगढ़)
 साहित्यिक समाचार- 
✍म.प्र.लेखक संघ टीकमगढ़ की 303वीं कविगोष्ठी रपट- ✍राना लिधौरी पोथी समीक्षा/ पठनीय पोथियां- 
✍ एन.डी.सोनी, टीकमगढ़ 
💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 ️ 

 गोकुल प्रसाद यादव,नन्हीं टेहरी 
 🌹🌹बुन्देली चौकड़ियाँ🌹🌹 
 (१) गोरी तोरे टुलकन-टुलकन, जिहिर भरो है मुलकन। 
 सार-सार खा रइ तें सबरौ, हमें खबा रइ फुलकन। 
 बज्ज बेशरम ती पैलाँ अब,लगी ढका में कुलकन। 
 हलके-बड़े फँदन में हो तें,लगी मजे से खुलकन।
 जिदना हमें मरम्मत करनें,रकत डारनें हुलकन।।
                  *** 
 (२) 
सैंयाँ रस में बिष नैं घोरौ, जी जिन जारौ मोरौ। 
 लच्छ-कुलच्छ जरेंटन में तुम,मोखों नईं कड़ोरौ। 
 जब सें आइ तुमारे घर में,तको न दूजौ दोरौ। 
 साँसी कै दो कौन सौत नें,डारो तुम पै डोरौ। 
 सात जनम के बंधन कौ तुम, ठेंकें जुग ना फोरौ।। 
                     **** 
 ✍️ गोकुल प्रसाद यादव नन्हीं टेहरी 
 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 

✍️प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष' 
           बुंदेली चौकड़िया 
चंचल चपल नैन फरकाबें, कां तक मन बरकाबें। 
 घूंघट पट खों दो उँगरिन सें, रै रै कें सरकाबें । 
 झूंट मूंट की भोंह तरेरत ,हँस हियरा हरकाबें। 
 मन की हरन मुन‌इँयां मोरे, जियरा खों धरकाबें।
 पैलें तौ आसा दै देतीं ,पाछें प्रभु छरकाबें । 
 उनकी बड़ी रसीली बांनी,सबकी जानीं मानीं। 
 कानन में निसरी सी घोरत ,हिय में आंन समानीं। 
 सुनबे आज तरसत‌इ रै गय , बे कड़ गईं चिमानीं। 
 ई बांनीं कां तक क‌इए ,दुनिया है दीवानीं । 
 कैबे खों रै जाने हैं प्रभु,केवल करुन कहानी। 
 *** 
 ✍️प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़ 
💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 

✍ रामलाल द्विवेदी प्राणेश, चित्रकूट 
 छंद कुंडलिया -
चंद्रयान प्रमुदित सारौ देश है, उतरौ चंदा यान। 
बड़ी सफलता दर्ज की, बढ़ौ देश कौ मान ।
 बढ़ौ देश कौ मान ,साध कैं यान उतारा । 
चौथौं भऔ स्वदेश, विश्व में नाव हमारा ।
 दक्षिन ध्रुव में फर्स्ट, जूझ जोखिम से हर्षित । 
कोटि बधाई ,टीम -प्रयासों से हम प्रमुदित । 
 *** 
 ✍ रामलाल द्विवेदी प्राणेश, चित्रकूट
 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 

 रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां
 बुन्देली चौकडिया - 
 को है राम लला सौ नौंनौं, हरसित कौंनौं कौंनौं। 
अगनइयां में चारऊ भइया,दौरत बगरत सौंनौं। ‌‌
 हँस मुस्कात छटा अनहोंनीं, किलकारी किल कौंनौं ।
 नन्द ललात दरस परस खों,राम कौ रुप सलौंनौं।। 
 2 
नगर ओरछा साज संवारे,राम रजा पग धारे। 
 घाट कंचना ठाट हो गये, गंगा भये किनारे।
 आन विराजे महलन भीतर,अन्त नहीं सिधारे। 
 नन्द ओरछा कीरत फैली, सुक के बये पनारे।।
 3
 मोखों बना देव दरवारी,राम रजा की दुआरी। 
 मीठी होजै मोइ ज़िन्दगी,जा कुइया है खारी।। 
 कैऊ पतित खों तुमने तारौ,अबकें मोरी वारी। 
 नन्द तुमाये चरनन लोटत, तर गय नर औ नारी।। 
 4 
ओरछा राम रजा सें जानों,केसव मिलौ ठिकानों। 
 राय प्रवीन सी नची नर्तकी,भऔ दरवार सुहानों।। 
 दई हरदौल कुँवर कुर्बानी , सत पथ लऔ खजानों। 
 नन्द अंत कऊँ नई जानें,ओरछा धाम ठिकानों।। 
 5 
राम रजा पांवन लतरोंदा,धूरा रौंदा खोंदा।
 लोटत रऔ ओरछा गलियन,होकें सूदा ओंदा। 
 सरन लेव कर संगी साथी,रोपौ‌ पिरेंम घरौंदा ।
 नन्द तुमई सें आस बदी है,लगै न मूँड दिरोंदा।। 
 *** 
 ✍ रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां 
💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 

 प्रभुदयाल श्रीवास्तव'पीयूष' 
चन्द्र अभियान - वीर छंद (आल्हा) 
धन्न धन्न श्री सोमनाथ जू, इसरो के तुम वीर प्रधान। 
धन्न तुमारे संगी साथी , पूरौ करो चन्द्र अभियान। 
चन्द्र यान दो बेर चूक गए, तौउ न तुमने मानी हार। 
अबकी बेर दक्षिणी ध्रुव पै, विक्रम खों है द‌औ उतार। 
समर समर कें विक्रम उतरे, बिल्कुल सांत और चुपचाप। 
मोदी जू जुड़ गय विदेश सें,द‌ई बधाई छोड़ी छाप। 
नाव करो भारत कौ ऊंचौ, चंदा पै झंडा दव गाड़। 
अमरीका जापान रूस सब,देखत रै गय आंखें फाड़। 
संत सरीसे मोदी जू ने,जब सें बाग डोर ल‌इ थाम, 
हटी तीन सौ सत्तर धारा,बनन लगे सब बिगरे काम।
 मंदिर भब्ब राम कौ बन रव,हो रय सफल सब‌इअभियान, 
जय जवान उर जय किसान सँग, जय विज्ञान जयति प्रज्ञान। ऐसी विजय मिली हम सब खों,मन में फूले न‌ईं समायँ, आज तिरंगा के नैंचें सब, मिल कें झूमें नाचें गायँ।। 
 -प्रभुदयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़ 
💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 ✍

 शोभाराम दांगी इंदु ,नदनवारा 
 बुंदेली गीत :-
कत्तौ काल भुंसराँ मोसैं ,परैं परैं का कर रय । 
मैंनें कैदइ सो रय नन्ना,अपनैं हांतन मर रय ।। 
जो देखौ जो कैरव मोसें,मोखौं नाव धर रय ।
 हम का करवैं तुमइ बतादो,उसई हमें कुचर रय।।
 पढ़ लिखकैं रुजगार कछु नईं, नइँयाँ कछू ठिकानौं । 
सरकारी दफ्तर के चक्कर ,काटत पैन हिरानौं ।।
 "दाँगी"अब का करवै भइया, उमर बीत गइ सारी ।
 हार खेत कौ काम बिगारौ,देह विगारी प्यारी ।। 
 ना मिली नौकरी ना खेती ,कैसैं होय गुजारौ ।
 नहीं पैन्सन शक्कर गल्लौ, बढौ टैन्सन न्यारौ ।।
 कां जांय का करवै नन्ना ,ई सैं "दाँगी" सो रय ।
 तुमइँ बतादो मोरे संगै ,ऐसे घर में को रय ।।
 घरवाई तानें सी दै रइ ,तुमनें का का लर लव । 
मोय लिंगा न बातें ऐंठों ,जीवन ऐसौं कल्लव ।।
 हे ईसुर तुम मोय निवारौ, कैसें कड़ै बुढ़ापौ । 
मानव नैं मानवता खोदइ,सरकारी रै गव ढ़ाचौ ।। 

 ✍ शोभाराम दांगी 'इंदु',नदनवारा 
💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 

 ✍ सियाराम अहिरवार
 बुन्देली लोकगीत- छौंकौ पढोरा डारौ धना।

 सब्जी बनालो गोरी धना। हींग लोंग कौ छोंका मारौ।
 हरदी मेंचें पीस कें डारौ। तनक डार दो जीरे धना। 
सब्जी बनालो......। 
 राई सरसुआं की पुट दै दो। दद्दा सें खाबे की कै दो।
 हरी मिर्च उर भुंजे चना। सब्जी बनालो.......! 
 चक्रफूल उर डार छबीला। डोंडा इलायची उर सहजीरा है काली मिर्च में तीखौ पना। सब्जी बनालो.........! 
जायफला जावित्री डारौ। मै़थी खों थोरौ तुम बारौ। 
 खाबे बाव नई करै मना। सब्जी बनालो......! 
 सोंठ नोंन उर खाखस दानें। पीपर पिस्ता और मखानें।
 नोंनी धरदो सब्जी बना। सब्जी बनालो.....! 
 दालचीनी खों तनक पीस लो। काली कलौंजी के डार बीज दो। भारत में हैं अपनों पना। सब्जी बनालो गोरी धना। 
 *** 
✍ सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ मध्यप्रदेश
 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐

 -प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ दादरा गीत टेक,,

 पैल पूजों में फरवा गणेश बाबा 
 आओ लैके चुखरवा गणेश बाबा।आ,, 
नन्ना शंकर गौरा बाई कार्तिकेय गणेश दो भाई टेक, 
भरो गंगा ने चरवा,, गणेश बाबा। आ, 
दोई घरैनी रिद्धि सिद्धि शुभ लभ लरका करवै वृद्धि टेक,,भरो बुद्धि सें करवा,, गणेश बाबा आ,,
भोजन खां लडुअन को दोना गंगाजल को भरो भगोना टेक,, पूजों तोरे तरवा,,,,,, आ,, 
पिट्टा बोंगा आ हा करों में कत "प्रमोद" तोरे पांव परों में टेक,अब सतावे न डरवा ,, गणेश बाबा
 ********** 
 ✍ -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 
 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 

 ✍ -आशाराम वर्मा 'नादान' बुंदेली (गीत)

 बब्बा कै गयते हमसैं ना,बात बिरानी कइयौ। 
 सौ बातन की येक बात है,गम्म खाॅंय तुम रइयौ।। 
 कुल ब्याऔ उर मार जोतियौ,कात हते काॅंनातें । 
 उनकीं हमें बिसरतीं नइयाॅं ,कोंड़े पै कीं बातें ।।
 काॅंन लगत ते सबकी सुनियौ,,सुन कैं गों में दइयौ।
 सौ बातन की येक बात है, गम्म खाॅंय तुम रइयौ।। 
 अटकौ खाॅंगो जो द्वारे पै ,बिपत परैं आ जाबै । 
 हामी भरियौ जब तुम बेटा,चार बेर फिर जाबै ।। 
 काम चला ऊकौ दइयौ पै ,धॅंन्नों पैल धरइयौ। 
 सौ बातन की येक बात है,गम्म खाॅंय तुम रइयौ।। 

 (३) 
येसौ कठिन समयइया आगव,कलजुग अब गर्रा बै ।
 करियौ नइॅं विश्वास रोम कौ ,कबै दगा कर जाबै।। 
 भेद ना जा पाबै हॅंड़िया कौ ,रूखी- सूखी खइयौ। 
 सौ बातन की येक बात है,गम्म खाॅंय तुम रइयौ।। 
 (४) 
भइया बिना , जगत में अपनों ,भेद ना औरै दइयौ । 
 पोंनइ घरी भरे की साजी , घनें-घनें नइॅं जइयौ।। 
 सुख की सार भलइॅं ससुरारी ,पै जादाॅं नइॅं रइयौ। 
 सौ बातन की येक बात है , गम्म खाॅंय तुम रइयौ।। 
 बब्बा कै गयते हमसैं ना,बात बिरानी कइयौ । 
सौ बातन की येक बात है,गम्म खाॅंय तुम रइयौ।। 
 *** 
 ✍ -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुरी 
 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 
 ✍एस.आर. 'सरल',टीकमगढ़ 
बुन्देली दोहा -
कानात नशा नसेनी नास की, साँसी कत कानात। 
जियें नशा की लत लगी,बिना मौत मर जात।। 

 अब सांँसे फाँके परे , जा सइ है कानात।
 अपनों उल्लू सादवे, कर रय मन की बात।।

 कौआ मगरें बोल बै, सजन लुआबे आत। 
देहातन में आज भी, चलत जेइ कानात।। 

 बीदे पै सीदों सबइ, देत खोल कै हात। 
फस गइ लुखरो जाल में, देहाती कानात।।

 गागर में सागर भरै, जियै कहत कानात। 
रौम रौम भिदवै *सरल*,कम शब्दन की बात।। 
             ✍एस.आर. 'सरल',टीकमगढ़ 
💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 

 ✍ राजीव नामदेव"राना लिधौरी 
बुंदेली दोहा बिषय -कानात (कहावत) 
सुन राना कानात खौं , हो गय भौत सचेत |
 कितनउँ कौलू में पिरै , तेल न देबै रेत || 

 राना कयँ कानात खौं , सुन लौ भइया मोय |
 अनजानौ फल ना चखौ , चाय मुफ्त कौ होय‌ || 

 कमरा-कमरा गाँठ कौ , राना हौत न खेल |
 साँसी यह कानात है , हौत न इनमें मेल || 

बेर- बेर कौ टौंचना , कभउँ न पालौ आँग | 
#राना यै कानात है , रखौ बचाकर जाँग || 

 टेड़ौ हौबै आदमी , जब करबै बतकाव | 
कैबें तब कनात है , राना करौ बचाव || 
धना कात कानात खौं , #राना सुन रय ग्यान |
 घर में खाबै होय तौ , सौव पिछौरा तान ||
 *** 
 ✍ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़ 
 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2023💐 

 ✍ संजय श्रीवास्तव - बुंदेली दोहे- चिलकत 

*१*
 चिलकत माथौ संत कौ, मोहक भाव स्वभाव।
 ज्ञान,ध्यान की धार सें, मन पै परत प्रभाव।। 
 *२* 
चिलकत चंदा ऊजरौ, मंद-मंद मुस्काय। 
 गिरत चाँदनी झूमकें, सबको मन हरसाय।। 
*३*
 बिजुरी चिलकत मूड़ पै, लगत गिरत अब गाज। 
 आदो कटकें जो धरो, आदो ठाँडो नाज।। 
 *४* 
चिलकत सारी पैरकेँ, भौजी गईं बजार। 
 नायँ-मायँ सें फिर चलीं, छुप-छुप नैन कटार।।
 *** 
 ✍ संजय श्रीवास्तव* मवई😊 दिल्ली 
 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2023💐 

 ✍--- कल्याण दास साहू "पोषक" दोहा - 
तुलसी सूर कबीर ने , कर-कर कें गुनगान । 
निरगुन-सगुन उपास्य की,करा दई पैचान ।।
 गुरु करवाते शिष्य खों , ईसुर की पैचान । 
रिनी रहत गुरुदेव कौ,करत शिष्य गुनगान ।।
 जीनें कर लइ स्वयं की , सई - सई पैचान । 
समझौ जीवन धन्य है , चीनें जो भगवान ।। 
अजब - गजब संसार की,है जिनखों पैचान । 
उनें मान-अपमान उर,सुख-दुख एक समान ।। 
 पावौ है भौतइ कठिन , खोवौ है आसान ।
 इज्जत आदर स्वास्थ धन,प्रेम ठौर पैचान ।।
 कछु खोरय कछु पा रये , सूझबूझ पैचान । 
मोबाइल में व्यस्त हैं , जादाँतर इंसान ।। 
 *** -✍--- कल्याण दास साहू "पोषक" पृथ्वीपुर 
                  जिला-निवाडी़ (मप्र) 
 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2023💐 

 ✍ अमर सिंह राय,नौगांव बुन्देली दोहे, 
विषय: उजड्ड 
 बदतमीज अक्खड़ कहो, धृष्ट अशिष्ट गँवार। 
कह उजड्ड या जंगली, सबको एकइ सार।। 

 जो उजड्ड उद्दंड हैं, रहैं निरंकुश डीठ। 
 बुद्धि नाव की चीज नइँ, इक नंबर के ढीठ।। 

मान बड़न को नइँ रखो, दुर्योधन उद्दंड। 
एसो हतो उजड्ड वह, भारी हतो घमंड।। 
बुद्धिमान लंकेश तो, लेकिन हतो घमंड।
 बन उजड्ड सीता हरी, बुद्धिहीन उद्दंड।। 
 आजकाल लरका बड़े, हो गय खूब उजड्ड। 
 होत इकट्ठे उर करत, नशा ऐन गहगड्ड।। 
लरकन के नइँ भा रहे, काम अंड के बंड। 
ऐसे बने उजड्ड वे, नस- नस भरो घमंड।। 
 **** -
✍---अमर सिंह राय, नौगांव 
💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2023💐

 ✍ डॉ. रेणु श्रीवास्तव,भोपाल 
 दोहे विषय- पैचान
 हनुमत ने पैचान लै, राम लखन से वीर। 
 विष्णू के अवतार जे, धीर वीर गंभीर।। 

 पैचानौ भगवान खों, जेऊ पार लगात। 
 जो इनखों चीने नही,घरी घरी पछतात।।

 नेतन की पैचान से,कबउं काम ना होय। 
चीनौ सांसउ राम खों, दुखी रहै ना कोय।। 
 *** 
 ✍ डॉ. रेणु श्रीवास्तव,भोपाल 
 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2023💐 

 ✍ नरेन्द्र श्रीवास्तव, गाडरवारा,म.प्र. 
 ग़ज़ल-रहो प्रेम से...
* बात-बात पे, इत्तो गुस्सा काय करत हो।
 इत्ती लोकन, नफरत ले के काय फिरत हो।

 कैसें, कहाँ भूल आये तुम बोली मीठी? 
बात-बात पे, अंगारे घाईं काय जरत हो।। 

 समय एक सो, रहे नईं कभहूँ कोई को। 
जबरन, जा बा की बातों में काय परत हो।। 

 भय से प्रीत कभहूँ ने होय ,सीख हमारी। 
डरवावे को काम, तुम फिर काय करत हो।।
 खुद बी हँस,बोलो,बतयाओ, रहो प्रेम से। 
तन्नक-तन्नक सी, बातों पे काय लरत हो।। 
 *** 
✍ नरेन्द्र श्रीवास्तव, गाडरवारा,म.प्र. 
 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2023💐

 ✍ रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु',बडागांव(झांसी)

बुंदेली ग़ज़ल.- तमासे हो रय
बातन केर बतासे हो रय। 
उनके रोज तमासे हो रय।।
 बरसी नइयां एक बूंद लों, 
 कागज में चौमासे हो रय। 
 नेता अफसर पुलिस प्रशासन। 
गुंडे अच्छे खासे हो रय।। 
बात- बात में बात कै गये। 
उनके नैन मुतासे हो रय।। 
 धर्म-धर्म की होय लडाई, 
पग-पग झगड़े झांसे हो रय।
 वलि को बकरा जनता बन रइ। 
हर चौराहे फांसे हो रय।‌। 
गों में धर कें लूट मचाई। 
सबरें झूठे सांसे हो रय।। 
**
✍ रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु', बडागांव(झांसी) उप्र. 
 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 

 ✍ सुभाष सिंघई,जतारा 
कविता(सौलह मात्रा मुक्तक)
सजनी का अपने साजन के नाम संदेश) 
 दैत न बलमा तुमै उरानों गड़ौ न कौनऊँ इतै खजानों चुखरयाइ सब घर के कर रय- बचौ न घर में खाबै दानौं |
 देवर करतइ रोज धिगानों सबइ चपेटो गुरिया गानों देवरानी भी धमकी दैबें - तुमै घुमा दें अब हम थानों | 
 सटका पौनी घर में मानों कात नंद है पेट पिरानों कातक कुठिया में गुर फोरें - हँसत देख कै हमें जमानों | 
 सपना मौखौं आज दिखानों टिड़का सबखौं रोग पुरानौ समझाबैं खौ काँसै लाबै - कौनउँ कैबै इतै अहानों |।
 *** 
✍ सुभाष सिंघई,जतारा 
💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 
 ✍ प्रोफेसर डॉ. सरोज गुप्ता, 
कविता - 
मोय जानेंं मम्मा के पास मचल रओ है विक्रम, 
कर रओ खूबईं प्रयास,
 कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास। 
धरती मताई नें ऐंनईं समझाऔ, 
लल्ला जिन जाओ हम हैंई से दिखात। 
थरिया में पानूं भरकें खूबईं बहलाव , 
तनक भओ सांत पै,फिरकऊं मचल जात। 
 कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास। 
 उन्नईस में जाकें,तनक भटक हतौ गओ , 
तबईं सें मिलजुल कें जुगाड़े फिट कर रओ।
 दिल्ली में जाकें मिलौ , मोदी चौकीदार सें, 
उन्नें खूब दिलासा दई, मूड़ पै हाथ फेरौ। 
भारत जा दुनिया कौ है सरताज, 
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास। 
 फिर का कइये, ईनें तो सब रोरा जुटा लओ , 
 इसरो की बड्डी टीम से बतकाव कर रओ। 
दक्षिणी ध्रुव खों छूबे की कोशिश करन लगौ,
 दो हजार चार में कलाम साब नें देखौ तौ सपनों। 
सपनों सच करकें बढ़ाई भारत की शान
 कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।
 तेईस तारीख खों पौंच कें,कैसौ मटक रओ, 
अम्मा की राखी दै कें, मिठाई ख्वा रओ। 
 चंदा मम्मा ने विक्रम खों भरलव अंकवार, 
तिरंगा फहराकें दुनिया में पै ली बार। 
 इंतजार भओ खत्म बड़ी देश की शान। 
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास। 
 मचल रओ है विक्रम, कर रओ खूबईं प्रयास, 
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।। 
 *** 
 ✍ प्रोफेसर डॉ. सरोज गुप्ता,सागर 
(अध्यक्ष-हिन्दी विभाग- पं.दीनदयाल उपाध्याय शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय सागर (म.प्र.) 
💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐

 -जाग्रति कौशकिया, कविता :-
दए हैं जिन ने प्राण हमें :- 
उन्हें कभउं ना विसारियो राम,दए हैं जिन ने प्राण हमें। 
करियो करियो सदा गुणगान,दए हैं जिन ने प्राण हमें।। 
छोड़ चले सब रिश्ते नाते,छोड़ चले घर द्वार। 
लेके केवल यादें संगे, चले वे सीमा पार।। 
रखियो रखियो सदा उनको ध्यान,दए हैं उनने ज्ञान हमें। 
करियो करियो सदा गुणगान, दए हैं जिन ने प्राण हमें।। 
कछु न मांगे वे जीवन में, केवल देत वे दान। 
अपनौ सब कछु लुटा दओ उनने, फिर भी नईयां भान।। 
सबसे बड़ो है जग में जीवन दान, दए हैं जिन ने प्राण हमें। करियो करियो सदा गुणगान, दए हैं जिन ने प्राण हमें।। 
कर न सकत साधारण मानुष,कबहुं भी एेसो काम। 
परहित के लाने सब अपनो,कर देवे कुर्बान।। 
धरे रूप स्वयं भगवान, दए हैं जिन ने प्राण हमें। 
करियो करियो सदा ही गुणगान,दए हैं जिन ने प्राण हमें।। 
देश के लाने लुटा दए सब, आन बान और शान। 
भारत मां की लाज बचाबे,कूद पड़े नौजवान।। 
वही बेटा है वीर महान,दए हैं जिन ने प्राण हमें। 
करियो करियो सदा ही गुणगान, दए हैं जिन ने प्राण हमें।।
 *** 
 जाग्रति कौशकिया,नैगुवां,निवाड़ी (मध्य प्रदेश) 

 ✍ भगवान सिंह लोधी 'अनुरागी',हटा, दमोह
 *चेतावनी* 
कायर समझत तें कये मोंखों, 
सुनरे पाकिस्तान। 
चेतजा लरबे की नै ठान।। 
 आतेंने लर लयो है कई दैंया, 
जीतो कभऊं आज लौ नैया, 
घल गईं कईयक बेर पनैयाँ, 
बऊ कौ दूध जो पियो होय तो, 
 सांमू सीना तान।। 
चेतजा हम हैं शांत सो समझत कायर, 
जबकि हम हैं पूरे फायर, 
ठिलया जैहैं तोरे बायर,दुनियाँ के नक्शा सें तोरो, 
मिट जेय नाम निशान। 
चेतजा ऐसे है भारत के बीरा,
 लोहा जिनको बनो शरीरा, 
देखत नैंया अपनी पीरा, "अनुरागी" सौ-सौ खों मारत, मोरो एक जवान।। चेतजा बोलो हिन्दुस्तान।। 
 *** ✍ भगवान सिंह लोधी अनुरागी, हटा, दमोह 
💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 

 ✍ -डॉ.गणेश राय, दमोह 
मेंगाई नें जीभ की इच्छाओं खौं मार दओ 
आम-आदमी के मों पै तारो सौ डार दओ
 घर की पोद्दासों में चार वीघा बिक गई है 
जुम्मन ऊर अलगू कौ करिया मों पार दओ। 
 हल्कीं-कनकीं खा कें बब्बा सो गओ 
है सन्ना कें बिना दूध की चाय पी कें रै गओ 
है टन्ना कें आटे -नमक- दाल के भाव नें,
प्रभु कौ गुन गावो बिसार दओ। 
आग -धुंआं नफ़रत खौं चिपका लओ
करेजे सें प्रेम -भलाई -एकता खौं 
कक्का दुत्कार दओ देखबे ऊर सुनबे खौं बचो इतै का है, संवेदनाओं खौं स्वारत के तेल में बघार दओ।।
 संस्कार मिटा डारे सबरे से फौंन नें ऐब-अत्त मूत-मूत कलजुग खौं तार दओ कंदा पै बिठाओ और जांघ पै हगाओ 
जिनें उनई सबनें बुढ़ापे में घर सें निकार दओ।।
 *** 
 ✍ -डॉ.गणेश राय,दमोह 
💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 
 व्यंग्य व्यंग्य :-
        #फेसबुक_श्री_सम्मान* 
                *-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
             ई टैम तेज़ी से मेंगाई बढ़ रइ है, तो स्वाभाविक है कै हमाय रहन सहन में सोउ बिलात बदलाव आ गओ। साहित्य के क्षेत्र में भी भौतइ बदलाव आओ है और जब से ससुरा फेसबुक, व्हाट्स ऐप चलौ है तबसे तो कवियों की सुनामी आ गइ है अब तो पतौ इ नइं चलत कै कौन असली कवि है और कौन नकली, बस फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया से कौनउ की भी दो-चार लेने उठाई और दूसरी जगां पेल दइ अपने एकाउंट से अब पढ़वे वारन खां का पतौ कै जा कवता की की रची आय, वो तो जेइ सोसकर लाइक कर देत है कै जब इनने पोस्ट करी है तो इनई कि हुइए। मजे कि बात जा है कै असल कवि तक जब वा पोस्ट पौचत है तब तक लोग उये भूलइ जात हैं। ऐसे ही हज़ारन की संख्या में जै नाजायज़ नकली नामुराद,नालायक,नापसंद कवि आज महिमा मंडित हो रय हैं।                एक दार हमने भी होली पै ठिठौली करवे की सोची और एक पोस्ट फेसबुक पै चेंप दयी कै *फेसबुक श्री* सम्मान के लाने प्रविष्टियां आमंत्रित है और नैंचे एक नोट लगा दऔ कै 100 से कम सम्मान पावै वारे कृपया प्रविष्ठियां नइं भेजे। पुरस्कार की राशि लिख दी 10000/ आगे जानबूझ रुपैया नइं लिखे। ये भीतर की बात है हम विजेता को 10000/ पइसा देंहे। अंतिम तिथि से पूर्व ही सैंकरन फेसबुकियों ने अपने सम्मान पत्रों की संख्या सहित पूरी सूची सोउ भेज दई । हद तो तब हो गयी जब एक फेसबुकिया/ टुचपुंजिया कवि ने कछू इ तरां लिखौं इ सप्ताह कौ 237वां, इ मइना कौ 560वां, इ साले कौ 2308वां और कल11254वां सम्मान मिलौ है। मैं जौ पढ़कै हेरान रय गओ मैंने पूछौ भज्जा आपके सम्मानों की संख्या को देखकर तो जौ सम्मान भी आपको मिलने चइए, आप शीघ्र ही जितेक सम्मान मिले है उतैकइ आपके द्वारा लिखी भयी रचनाएं भेज दीजिए हम जा मान लेंवी कै आपको हर एक रचना पै एक सम्मान मिलौ है। उन महाशय कौ जबाव आज लौ नइ आऔ, हम बांटई हेरत रै गए। 
                ऐसइ एक दूसरे स्वयंभू कवि ने अपनी प्रविष्टि में 300 सम्मान मिलवे की बात लिखी। मैंने मोबाल लगाकै पूछौ आदरणीय फेसबुक कवि सम्राट आपने अपने परिचय में तो एक भी प्रकाशित पौथियन के नाव नइ लिखे फिर आपको थोक के भाव में जे सम्मान कितै से मिल गय।
              वे बोले - पोथी छपवावे से का होत है जब बिना छपे ही व्हाट्स ऐप ग्रुप पै रोजउ दस-बारां सम्मान मिल जात है। मोय कौनउ पागल कुत्ते ने थोड़इ काटौ है। कै मै बीस-पच्चीस हजार जेब से लगाकर पुस्तक छपवात फिरुं, कछू फेसबुकिये कवि दो-चार रचनाएं लिखकै या कौनउ से जुगाड़ करके-कराकैं, लिखवाकै महाकवि बने बैठे है,कछू जने तो खुदइ खौं महाकवि लिखन लगे। उनकी वेइ रचनाएं डायमंड जुबली मना चुकी है अर्थात इतेक बेर सुनायी जा चुकी है कै सुनने वारन खौं भी पूरी याद हो गई है लेकिन फिर भी बेइ रचनाएं सुनात भए इने शरम नइं आउत है। मैंने उने और उनके मिलें सम्मान कौ विशेष प्रणाम करो और उन देवेवाले महामूर्खों को दूर से स्मरण करो कै ये कितैक बड़े वारे है। 
               कछु लोग तो भुंसरा से उठतनइ फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया पे 50-60 ग्रुपों में गुड मॉर्निंग न लिख दे, स्टिकर न पोस्ट कर दे तब तक उनका पेट और मन कौ मैल,कचरा, गंदगी बायरैं नइ कडतइ और रात में भी बारह बजे लौ या उसे पैला जबतक बे मोबाइल की बैटरी की पूरी तरां हत्या न कर दे तब लो नइ परत है। 
                  कछु लोग फेसबुक पै इतैक ज्ञान पेल देत है कै इनै लगत है कै इनसें बड़ौ ज्ञानी तो दूसरा कोउ नइंयां। कछु लोग दूसरन कै गोडे़ खींचवै में माहिर होत हैं। भलेइ ऊकी खुद की टांग गिलारै में धंसी हो लेकिन वे टांग खींचने कौ कोई भी मौका चूकत नइयां। तो भइया फेसबुक श्री सम्मान भी उनइ खां मिलौ जीकी एकउ पुस्तक नइं छपी हती, लेकिन सम्मान 1200 मिले हतै औ रचनाएं उनकी गिनी-चुनी एक दर्जन भी नइ हती। दूसरे दिना 1201वां सम्मान मिलौ के संगे एक समाचार हर स्थानीय समाचार पत्रों में छपौ हतो जिये पढ़कर कवि शकुनि सी हंसी में हंस रयते, उधर कविता निवस्त्र हो रइती और इ पोस्ट को लाइक करवै वारे सैंकड़ों भीम, अर्जुन आदि मूक समर्थन दे रयतै। 
**** 
- राजीव_नामदेव "राना लिधौरी" 
 संपादक "आकांक्षा" हिंदी पत्रिका 
संपादक-'अनुश्रुति' बुंदेली त्रैमासिक ई पत्रिका 
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़ 
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़ 
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी, टीकमगढ़ (मप्र)-472001भारत मोबाइल- 9893520965 
Email - ranalidhori@gmail.com Email - ranalidhori15@gmail.com 

💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐

 लघु व्यंग्य 'चड़ाय की ना...न' 
                  ✍रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ 

            नातिन ने पनी दादी खौं एल्बम की एक फोटो दिखात भए पूछीं- दादी इ फोटो में दिखा रइ जे महिला कौ आय ? सबइ फोटो में दिखाइ दे रइं हैंगी । 
           दादी ने कइ- बिटिया, जा हमाय चढ़ाय की फोटो आय। ई में में दिख रइ महिला ना...न आय, चढ़ाय में ना....न की फोटो न दिखै ऐसौ कैसें हो सकत? 
(चढ़ाव= विवाह में दुल्हन को वर पक्ष की ओर से आभूषण भेंट करने की एक रीति। 
 *** 
 ✍रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ 
💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐 

 यात्रा संस्मरण :- 
                      श्री विजय मेहरा 
 *ब्रह्मदेव स्थान- चाँदपुर का सहस्त्रलिंग मंदिर, बराह का मंदिर व बेलमणी मंदिर* 

             देवभूमि देवगढ़ (ललितपुर उत्तर प्रदेश) से दच्छिन- पूरव में 11 किलोमीटर दूर स्थित चांदपुर कस्बे में सदियों पुराने मठ, मंदिर आज भी अपने मूल स्वरूप में विद्यमान है.
         अनेक मंदिरों में से एक सहस्त्रलिंग मंदिर, अपनी भव्यता, दिव्यता और स्थापत्य कला के लाने विश्व प्रसिद्ध है. इ मुख्य मंदिर मंडप के समीप भग्नावस्था में अनेक नागवंश कालीन नंदियों की मूर्तियाँ अवस्थित है. मंदिर के मंडप में विशालकाय नंदी शिव साधना रत है, सनातन धर्म को चरितार्थ करत एकइ जलहरि में कैउ शिवलिंग स्थापित हैं. 
         शिवलिंग कौ आकार अपेक्षाकृत हल्को और गोलाकार है। ग्रेनाइट पथरन खौं एक दूसरे से पजल के रूप में जोड़कर इन मंदिरों कौ निर्माण करौ गऔ है. मंदिर के प्रवेश द्वार पै भक्ति भाव से अलंकृत कैउ देवी-देवतन की प्रतिमाएं अंकित है. मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू, अद्भुत, अलौकिक, अद्वितीय सहस्त्र लिंग सैकड़ों वर्षों से आज भी अपने मूल रूप में विद्यमान है. भूतल से लगभग पॉच फीट ऊंचौ जे विशाल शिवलिंग चौकोर जलहरि मे अवस्थित है. 
           सहस्त्रलिंग कला की दृष्टि से दो भागन मे बंटौ है. ऊपरी भाग मे अनेक देवी देवताओं को मूर्तित करौ गऔ है. लिंग के नैंचे वाले भाग को चौकोर आकार देकर संभवः ब्रहमा विष्णु महेश तथा गणेश का अंकन करो गऔ है. इ विशाल सहस्त्रलिंग को देखकर मन भक्तिभाव मे रम जात है और हृदय से पवित्र मंत्रों में उच्चारित उद्गार उत्पन्न होत है यही कै शिव शाश्वत है, शिव अनंत है, शिव सर्वव्यापी है, शिव अविनाशी है, शिव अखंड है, शिव सर्वज्ञ है. मंदिर परिसर में कैउ टूटे भग्न मंदिरों की श्रृंखला के साक्ष्य दिखाई पड़त हैं. सहस्त्रलिंग मंदिर परिसर मे दाहिनी ओर प्राचीर विहीन एक अन्य मंदिर विशाल चौड़े स्तंभों पर खड़ौ है. इ मंदिर के पिछाइ स्तंभ में अप्रतिम, मनभावन भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी की मूर्तियां उकेरी गई है. अपेक्षाकृत कम चौड़ाई वाले इ मंदिर के प्रवेशद्वार पर दोनों तरफी तथा ऊपर ध्यान मग्न विभिन्न देवी-देवताओं का अंकन करो गऔ है. इ मंदिरों की वैभवता अपने काल में चरम पर हती. बिखरे पड़े मंदिरों के अवशेष प्राचीन भारतीय सनातन परंपरा तथा स्थापत्य कला का ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत करत हैं. कैउ प्रस्तरों को सलीके से काटकर, जमाकर देवस्थान कौ निर्माण करो गऔ है. इन अनेक मंदिरों में से एक मंदिर सृष्टि के पुनर्रचिता भगवान वराह का छत व प्राचीर विहीन मंदिर प्रमुखता से आकर्षित करत है. 33 कोटि देवी देवताओं को वराह की प्रतिमा में अंकित कर इये दिव्य और भव्य स्वरूप प्रदान करो गऔ है. रखरखाव कौ भौत अभाव और श्रद्धा भाव में कमी इन मूर्तियों की वर्तमान स्थिति के लाने जिम्मेदार है. विदेशी आक्रांताओ के विध्वंस चिन्ह खंडित मूर्तियों में देखे जा सकत हैं. शताब्दियों पूर्व निर्मित जे बराह प्रतिमा नश्वर है. प्राचीन भारतीय कलाकारों की निपुणता, कौशलता और विविधता इ बराह की मूर्ति में देखी जा सकती है. मुख विहीन जा प्रतिमा सदियों से आसमां को ओढ़े यूं ही ठांड़ी है और सदियों तक यूं ही ठाड़ी रहेगी. जा अजर है यह अमर है.
                   प्राचीन भारतीय शासकों द्वारा प्रचुर मात्रा में भगवान बराह की प्रतिमा को विंध्यांचल में स्थापित कराऔ गऔ हतो. बराह मंदिर परिसर भी विशाल है. इतै कैउ मठों के बिखरे पड़े अवशेष स्वत: अपनी ओर आकर्षित करत हैं. मंदिर परिसर में ही शताब्दियों पूर्व उकेरा गया भारतीय संस्कृति व सभ्यता का प्रतीक चिन्ह शिलालेख स्तंभ खड़ौ है. 
                शोधकर्ता मंदिर परिसर को घूमकर इ निष्कर्ष पै आसानी से पौच सकत हैं कै जौ विध्वंश कौनउ प्राकृतिक आपदा से नइं बल्कि, कौनउ मूर्ति भंजक ने बड़ी निर्लज्जता से सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करने कौ असफल प्रयास करो हैं. शिव स्तुति करते पति -पत्नी तथा रण में जात योद्धा के अंकन सैकड़ों की संख्या में इतै पड़े मिलत हैं जिमे काल तिथि और नामों कौ उल्लेख है. चांदपुर कौ बेलमढ़ी मंदिर अनोखा और विस्मयकारी है. 
               धरातल से लगभग, 4 फीट ऊंचा मंदिर प्रस्तर 3 फीट ऊंचे परकोटे से युक्त है. लाल पत्थरों से निर्मित जो मंदिर आधार स्तंभों पै टिकौ है. छत भार संभाले यक्षों की मूर्तियां ध्यान मग्न है. आधार स्तंभों के ऊपर मेहराबों में की गई बारीक नक्काशी आश्चर्यचकित कर देत है. प्राचीन काल में चांदपुर, कई साम्राज्यों के लाने ब्रह्म देव स्थान रहा हुइए,. पग-पग पर मंदिरों और मठों की बहुलता, इतैइढ के लोगों की धार्मिकता अध्यात्मिकता तथा सामाजिकता के निरपेक्ष प्रमाण हैं.     
             बेलमढी मंदिर के निकट ही एक अन्य मंदिर कला की अनुपम छटा बिखेरता भऔ वीराने मे खड़ौ भऔ है मूर्ति विहिन इ मंदिर की बाहरी भीटें पर सुन्दर देव कुलिकाओं का निर्माण कर मनमोहक देव प्रतिमाओं को स्थापित करो गऔ है. मंदिर की पिछली बाहरी दीवार पर भगवान गणेश की चार भुजाधारी ध्यान मग्न मूर्ति अलंकृत है. मूर्ति की आभा अभूतपूर्व है और मन को शांत चित्त कर देत है.
               मंदिर की बायरी दाहिनी भींट की देवकुलिका में भगवान बराह का अंकन है. मूर्तियों की रमणीयता चरम पर है. इने बनाने वाले कुशल कलाकार न केवल वेद पुराण के ज्ञाता थे बल्कि उनकी बुद्धिमत्ता उ कालखंड में शीर्ष पर थी. ज्ञान की देवी मां वीणा वादिनी मां सरस्वती की प्रतिमा भी देवकुलिका में उपलब्ध है. इन सबकें अतिरिक्त चांदपुर में जैन मंदिर भी प्रचुरता से मिलत हैं. इन हिंदू व जैन मूर्तियों कौ उत्कीर्णन देखकर ऐसा प्रतीक होत है इन मूर्तियों को बनाने वाले एक ही रय होंगे. कछु भी हो जे ब्रह्म देवस्थान क्षेत्र सनातन संस्कृति के उन सबइ तत्वों को अपने जैवमंडल में समाहित करत है जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता को महान बनात हैं. जो क्षेत्र शताब्दियों से विश्व के कला प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करत रऔ है।
 *** 
 ✍ विजय मेहरा, लाइब्रेरियन, 
शासकीय जिला पुस्तकालय टीकमगढ़ 
💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐

 पुस्तक समीक्षा -
 समीक्षक -एन.डी. सोनी, टीकमगढ़ 
 ग्रंथ-राना लिधौरी : गौरव ग्रंथ 
संपादक -रामगोपाल रैकवार’ 
प्रकाशक- म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़ 
समीक्षक -एन.डी. सोनी, टीकमगढ़ 
मूल्य-1200/सजिल्द, 
पेज-426 सन्-2023 

               गौरव ग्रंथ या अभिनंदन ग्रंथ लेखन की परम्परा साहित्य जगत में भौत टैम सें प्रचलित है,लेकिन हाल के कछु सालन में इ परम्परा में भौतइ तेजी से विकास भऔ है। पैलां बजे भए साहित्यकारन की संख्या कम होतती और बर्षों में कोनउ सम्पादक अभिनंदन ग्रंथ लेखन की हिम्मत जुटा पाउततौ। आज साहित्य लेखन कौ विकास भौत तेजी से हो रऔ है और साहित्यकार कम टैम में बिलात लेखन कर पौथियन कौ प्रकाशन कर रय हैं और साधनों की सुलभता से उनकौ काम और नाव सबके सामे आ रऔ है। मीडिया के माध्यम से उनकी ख्याति में चार चाँद लग रय हैं। हर जिले में ऐसे साहित्यकार उभर कर साने आ रय हैं। 
             इ कड़ी में टीकमगढ़ जिले के मध्यप्रदेश लेखक संघ के जिलाध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ जू ने भौत कम टैम में जादां लेखन कर ख्याति अर्जित करी हैं वे गद्य अरु पद्य दोनों विधाओं में बन्न-बन्न तरां से लेखन कर रय हैं । वे ‘आंकाक्षा’ पत्रिका कौ विगत 18 सालन से सफल संपादन करत आ रय है और ई-बुक्स लेखन में तो उनने अंतरराष्ट्रीय स्तर पै नए-नए रिकार्ड बना लय है। उनने मात्र दो सालन की तनक सी अबधि में इ 133 ई बुक्स कौ ई प्रकाशन करकैं एक कीर्तिमान स्थापित कर दऔ है। राना लिधौरी के इक्यावनवें जन्मदिन पै उनके निकटतम सहयोगी और पक्के मित्र रामगोपाल रैकवार ने उनै गौरव ग्रंथ समर्पित कर एक बहुमूल्य तोहफा भेंट करो है। 
               जौ ग्रंथ राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ के जीवन की ऐसी निधि है जो उनै आत्म संतोष के संगे-संगे प्रेरणा स्रोत कौ काम सोउ करहे और वे जादां लेखक कौ प्रयास करहे। जौ गौरव ग्रंथ चार सौ छब्बीस पृषठन कौ है जिये सम्पादक ने आठ भागन में बांटों है।
              म.प्र.लेखक के प्रदेशाध्यक्ष डाॅ. राम बल्लभ आचार्य जू ने ग्रंथ की भूमिका लिखकैं ‘राना लिधौरी’ और ग्रंथ कौ गौरव बढ़ाऔ हैं पैलां भाग में राना लिधौरी पै केन्द्रित आलेख है जो उनकी प्रतिभा को उजागर करत हैं। इ भाग में उनके जीवन से जुरे मित्रों और साथी साहित्यकारों ने उनके लेखन के विविध आयामों पै प्रकाश डारौ है। 
             डाॅ.बहादुर सिंह परमार जू,छत्रसाल विश्व विद्यालय (छतरपुर) और संतोष सिंह परिहार (बुरहानपुर)जैसे प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने सोउ राना लिधौरी की लेखन के प्रति निष्ठा की खूबइ बढबाइ करी है। 
              खं-दो में राना लिधौरी की छपी भइ पोथियन की समीक्षाएँ उनके मित्रों सहित डाॅ. कामिनी (सेंवढा), डाॅ. कैलाश बिहारी द्विवेदी (टीकमगढ़), डाॅ. लखनलाल खरे (शिवपुरी), पं.गुणसागर ‘सत्यार्थी’ (कुण्डेश्वर), आदि जैसे प्रतिष्ठित साहित्यकारों द्वारा लिखी जावौ राना लिधौरी के लाने भौत गौरव की है। सम्मान की बात है। 
         भाग-तीन में काव्य रचनाओं के माध्यम से राना लिधौरी को प्रोत्साहित करो है तो भाग-चार में उने मिले कछू प्रमुख प्रशंसा पत्रों कौ संग्रह है। भाग-6 पाँच राना लिधौरी के लेखन को विस्तार से उजागर करत हैं जिये अ,ब,स,द चार भागन में सम्पादक ने बाँटो हैं। उकी हिन्दी और बुन्देली भाषा की सबइ विधाओं में रचनाओं को संग्रहीत करो ग औ है। जिन्हें पढ़कर पाठक उनकी साहित्यिक छबि से वाकिफ होंगे। इसी खण्ड में उनका साहित्यिक परिचय व उन्हें 
           सम्पादक ने गौरव गं्रथ को अधिक महत्पूर्ण बनाने मिले सम्मानों तथा पुरस्कारों की वृहद सूची है जो उन्हें बशदत कम समय में अर्जित की हैं। के लिए इसमें बुन्देलखण्ड की धरोहरों और पुरा-इतिहास तथा बुन्देली बोली, लोक साहित्य एवं लोक संस्कृति से संबंधित आलेखों को सौ से अधिक पृष्ठों में छापा है सभी आलेख बुन्देलखण्ड की गरिमा के परिचायक हैं ये आलेख बुन्देलखण्ड के प्रतिष्ठित साहित्यकारों द्वारा लिखे गए हैं जो कै भविष्य में शोधार्थियों का मार्गदर्शन करेगें।                           निश्चित ही जौ गौरव ग्रंथ राना लिधौरी पर एक पूरा शोध कार्य है। आठवें और अंतिम अध्याय में राना लिधौरी’ की कछू अन्य विशेषताओं को रेखांकित करत‌ हैं जिसे ज्ञात होत है कैश्रवे बहुमुखी प्रतिभा के धनी हंै। राना लिधौरी पर इतनी कम उम्र में गौरव ग्रंथ लिखा जाना ही उनकी प्रतिभा को तो उजागर करत ही है संगे ही सम्पादक रामगोपाल रैकवार का प्रशंसा के पात्र है ऊ कि उन्होंने गग्र के पात्र का चुनाव भोत सोच समझ कर करो है अल्प समय में अपने प्रथम गौरव गंथ का सम्पादन पूर्ण कुशलता के संगे करके अपनी प्रतिभा उजागर करी है। 
मेरी ओर से दोनों को शुभाशीष और शुभकामनाएँ।
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 समीक्षक एन.डी. सोनी 
पूर्व प्राचार्य राजमहल, टीकमगढ़ (म.प्र.) 
 💐अनुश्रुति(अंक-8) जुलाई-सितम्बर-2022💐

 गोष्ठी रपट:- 
‘म.प्र.लेखक संघ की 302वीं कवि गोष्ठी‘देश भक्ति व राष्ट्रप्रेम’पर केन्द्रित भई"- 

          टीकमगढ़// नगर सर्वाधिक सक्रिय साहित्यिक संस्था म.प्र. लेखक संघ जिला इकाई टीकमगढ़ की 302वीं ‘कवि गोष्ठी’ राष्ट्रभक्ति व देश प्रेम पै केन्द्रित ‘आकांक्षा पब्लिक स्कूल टीकमगढ़’ में आयोजित करी गयी है। 
               कवि गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ बुंदेली कवि श्री प्रभुदयाल श्रीवास्तव ‘पीयूष’ ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में व्यंग्यकार श्री रामगोपाल रैकवार जी रहे, विषिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवि श्री सियाराम अहिरवार रय। 
             कवि गोष्ठी कौ शुभारंभ वीरेन्द्र चंसौरिया ने सरस्वती बंदना के पश्चात  गीत सुनाया- 
मेरे देश की कहानी बहुत है सुहानी।
 मेरे देश की आजादी वीरों की कुर्बानी।।

 उमाकशंकर मिश्र ने रचना सुनायी- 
कतरा कतरा हमारा वतन के लिए।
 अपना जीवन ही सारा वतन के लिए।। 

राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’ ने शेर पढ़े -
 देश रक्षा के लिए खून बहाने की जगह। 
लहू हम दंगे-फंसादों में बहा देते है।।

 रामगोपाल रैकवार ने रचना पढ़ी- 
न बोलों बोल तुम कड़वे, जो बोलो प्यार से बोलो। 
 जुबाँ से फल से बरसें ये ही करतार से बोलो।। 

मड़ाबरा़ के गोविन्द्र सिंह गिदवाहा ने रचना सनुायी-
 तन-मन को अर्पन कर, मर मिटे जो वतन पर। 
हम फहराते है तिरंगा, उन शहीदो को नमन कर।। 

अंचल खरया ने कविता पढ़ी-
 सावन आई बहार छाई, हर गलियन में फूल खिले। 
नदिया आई नाले लाई, हर गलियन में कीच मिले।। 

सियाराम अहिरवार ने कविता सुनाई- 
 जिसने दी कुर्बानी अपनी हिंद धरा की माटी पर। 
उसने मरते दम तक खायी गोली अपनी दाती पर।।

 देवीनगर के भगवत नारायण ‘रामायणी’ ने सुनाया-
 साफ-सफाई करने वाली का मन व्याकुल था।
 माँ के संबंोधन वह भुला सकें यह मुश्किल था।

 प्रभुदयाल श्रीवास्तव ने कविता सुनाई-
सब देशन सै रे, अरे न्यारों लगै हो भारत है ईकौ नाव।
 माथें मुकुट बँदो अरे हिमगिरि कौ, उर सागर पखारत पाँव।।

 कमेश सेन ने रचना पढ़ी - 
 धोती कुर्ता पंचा, पैरों देशी जो परिधान है। 
बांध सुआपा मूंड से कसलो जेई अपनी शान है।। 

रविन्द्र यादव ने सुनाया- 
 वतन के वास्ते जीना जरूरी है मगर। 
वतन के वास्ते मरना इबादत है।।

 चाँद मोहम्मद अखिर’ ने ग़ज़ल पढ़ी- 
जब सदा आती है हक़ पे जाँ लुटाने के लिए। 
दिल मलचले है हमारे सर कटाने के लिए।। 

कौशल किशोर चतुर्वेदी ने कविता पढ़ी- 
 तूने सब कुछ दिया है हमें ये वतन।
 देंगे खुशियाँ सभी को करें ये जनत।। 

शकील खान’ ने ग़ज़ल पढ़ी- 
राह में अपने वतन की सर कटाना चाहिए। 
वक्त पड़ने पर हमें सरहद पे जाना चाहिए। 

स्वप्निल तिवारी ने सुनाया- 
 हम शिलालेख में दबे हुए नाम, पुकारे माँ भारती।। 

कविगोष्ठी कौ संचालन रविन्द्र यादव ने करो तथा सभइ कौ आभार प्रदर्शन लेखक संघ के अध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने करो।
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  राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
अध्यक्ष म.प्र.लेखक संघ शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़(म.प्र.)बुन्देलखण्ड, (भारत) 
मोबाइल- 9893520965 पठनीय पुस्तक :-