Rajeev Namdeo Rana lidhorI

मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

बुंदेलखंड के आधुनिक कवि (काव्य संकलन) संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़


#पुस्तक_समीक्षा-1


पुस्तक का नाम - #बुंदेलखण्ड_के_आधुनिक_कवि


सम्पादक - श्री #राजीव_नामदेव ‘#राना_लिधौरी’
प्रकाशक - सरस्वती साहित्य संस्थान प्रयागराज द्वारा
              म.प्र.लेखक संघ जिला इकाई टीकमगढ के लिए
मूल्य    -  300/रू.सजिल्द पेज-174
आइ्रएसबीएन -  978-93-83107-55-1
समीक्षक- श्री #विजय_कुमार_मेहरा
              #लाइब्रेरियन-शासकीय जिला पुस्तकालय टीकमगढ़

                      मन के आवेग,विचार और संवेदनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य की विभिन्न विधाओं द्वारा होती है। कविता उन सभी सर्जनाओं में सर्वोपरी है जो मन के भावों को संगठित करके सर्जित की जाती है। ‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’ श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ बुन्देलखण्ड अंचल के युवा कवियों की रचनाओं से सुसज्जित काव्य कृति है। ‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’ पुस्तक में विशेषकर युवाओं की रचनाओं को प्रकाश में लाने का काम भाई राजीव नामदेव का प्रयास प्रशंसनीय है।
                     श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ युवाओं को साहित्य के क्षेत्र में क्रियशील रखने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते रहते है इसी उद्देश्य से वे अपनी साहित्य संस्थाएँ म.प्र. लेखक संघ एवं वनमाली सृजन पीठ के माश्यम से युवाओं को मंच भी प्रदान करते है। बुन्देलखण्ड के ऐसे युवा कवि जो यदा-कदा ही पत्र-पत्रिकाओं में छपते है औ रजिनकी अभी तक कोई कृति प्रकाशित नहीं हुई हे ऐसे नवांकुर कवियों की रचनाओं को एकत्रित कर उन्हें प्रकाशित करने का बीड़ा सम्मानीय श्री राजीव नामदेव  जी ने उठाया है जो कि उनकी साहित्य साधना की प्रबल अभिव्यक्ति है। वैसे श्री राजीव नामदेव जी द्वारा 8 पुस्तकों का प्रकाशन और 11 का सम्पादन अब तक किया जा चुका हैं। किंतु यह पुस्तक उनके सम्पादन में युवाओं को साहित्य के क्षेत्र में प्रकाश में लाने के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
                इसके पूर्व में भी श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी के अथक प्रयास से म.प्र.लेखक संघ टीकमगढ़ द्वारा सन्- 2003 में एक काव्य संकलन ‘अभी लंबा है सफ़र’ प्रकाशित हो चुका है जिसमें टीकमगढ़ जिले से 22 कवियों के रचनाएँ 110 पेजों में प्रकाशित की गयी थी। अब 19 साल बाद फिर एक काव्य संकलन प्रकाशित किया गया है जिमें इस बार टीकमगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे बुन्देलखण्ड के कवियों की रचनाओं को शामिल किया है  बुन्देलखएड के आधनिक कवियों में बुन्देलखण्ड के 61 आधुनिक कवि एवं 10 पुराने कवियों इस प्रकार से कुल 71 कवियों की रचनओं को  174 पेजों में प्रकाशित किया है।
              यह काव्य कृति कविता के मापदंड या पिंगल शास्त्र को ध्यान में रखकर सम्पादित नही की गई है बल्कि इसमें वस्तुतः नयी कविता विद्या,गीत,मुकतक,दोहा,गज़ल आदि को शामिल किया गया है यह युवाकवियो की काव्य अभिव्यक्ति है।
174 पृष्टों की इस हार्ड कवर पुस्तक पर युवाओं कवियों की छवियों का सुंदर छायांकन है। पुस्तक में कवियों की रचनाओं को कवियों की जन्म तिथि अनुसार बढ़ते क्रम में स्थान दिया गया है इससे पुस्तक में बिल्कुल युवा कवियों की कविताओं को अग्रस्थान मिला है। कवि की रचनासे पहले कवि का संक्षिप्त परिचय भी इस काव्य संग्रह में प्राप्त होता है।
             विभिन्न रसो को समेटे यह काव्य संकलन वास्तव में पहले से स्थापित कवियों को तथा नवांकुर कवियों को एक स्थान पर एकत्र करके बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवियों की एक श्रृखंला बनाने का एक बेहतरीन प्रयास हैं ।‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’ काव्य संकलन में सभी गीत,ग़ज़ल,कविताएँ, दोहा पठनीय है अधिकांश रचनाएँ मेरे ह्नदय तल में पहुँचने में सफल हुई है।
              पुस्तक की प्रथम कविता श्री स्वप्निल तिवारी द्वारा किताबों के ऊपर अभिव्यक्ति की गई है। किताबों की तुलना समुद्र से की गई है कविता का मूल है कि जिस तरह समुद्र अपने अंदर न जाने कितने आश्चर्य छुपाये हुए है उसी तरह किताबें भी अपने अंदर अनगिनत आश्चर्य और ज्ञान छुपाए हुए है।
              युवा कवि श्री रविन्द्र यादव की कविता ‘माँ’ को समर्पित है इनकी कविता माँ को जीवनदायिनी और प्राणवाहिनी जैसे अलंकरण से अलंकृत है। वे लिखते है-
            हर सांस मेरी तुम हो, हर आसस है तुम्हीं से।
           धरती पै स्वर्ग होता, अहसास है तुम्हीं से।
डॉ. मीनाक्षी पटेरिया नौगाँव की ग़ज़ल-
          मेरे सूने जीवन में हलचल भरत देते हो तुम।
          जैसे हर अधियारे का जगमग कर देते हो तुम।।
जीवन को उत्साहित, प्रोत्साहित और ऊर्जावान बनाएँ रखने के लिए अवचेतन मन से चेतन्य भावों की सुंदर अभिव्यक्ति है।
युवा कवि कमलेश सेन की ग़ज़ल-
                     क्यों मुझे इतना तू सताती है ज़िन्दगी।
                    क्यों नहीं मंजिल का पता बताती है ज़िन्दगी।
सामाजिक ताने-बाने में उलझी जीवन राह का सजीव चित्रण करती है।
श्रीमती रजनी तिवारी की बेटियों को समर्पित कविता-
बाबुल के धर आँगन की किलकारी है बेटिया।
बेटियों के होने का शाश्वत सुंदर चित्रण अभिव्यक्त करती है।
कवि श्री अमर सिंह राय के नीतिगत दोहे वर्तमान परिपेक्ष्य में बिल्कुल सटीक बैठते है-
                  निर्णय देता है समय बिना गवाह सबूत।
                  समय वसूली खुद करे, मूल, ब्याज संग सूत।।
श्री संजय श्रीवास्तव की ग़ज़ल-‘सवाल’ ज्वलंत सवालों को खड़ा करती है। उनकी ग़ज़ल वर्तमान समय में समाज में व्याप्त राजनैतिक समाजिक उन्माद पर एक जोरदार कटाक्ष है।
कवयित्री रश्मि शुक्ला की कविता अनाथाश्रम वृद्धाश्रम की चौखट पर खड़े एक बूढ़े हताश पिता की वेदना व्यक्त करती है।
कवि श्री शीलचन्द्र जैन शास्त्री की प्रफुल्लित कविता त्यौहार खुशी के परिवार में त्यौहारों के महत्व और एहसास को प्रदर्शित करती हैं।
कवि और वरिष्ठ ग़ज़लकार उमाशंकर मिश्र जी की    
                 ग़ज़ल-तन्हाइयों की मुझको आदत सी हो गई है।
                रुसबाइयों की मुझके आदत सी हो गई है।।
व्यथित ह्नदय की रचना प्रतीत होती है। यद्यपि सर्जित ग़ज़ल के मानकों पर खरी उतरती है।
गरीब की बेटी और दहेज पर रचित श्री मोहन लाल कोरी की काव्य रचना मर्मस्पर्शी है उन्होंने लिखा है-
               वो गरीब की लली, जो दहेज में जली।
वरिष्ठ व्यंग्यकार रामगोपाल रैकवार जी ने व्यंग्य कविता नागपूजा में समाज के श्वेतपोशों पर व्यंग्य बाण चलाया है।  वे व्यंग्य कविता के माध्यम से समाज के ऐसे आदर्श पुरुषों  का चीर हरण कर रहे है। जो समाज में रहकर समाज को ही अंदर से खोखला करने पर आतुर है।
वरिष्ठ कवि श्री अशोक पटसारिया जी की रचना ‘चलो अपने घर चले’ आध्यात्मिकता से प्रेरित है और यर्थात का चित्रण प्रस्तुत करती है। वे लिखते है-
            दुनियाँ के तमाशे में, उलझे हुए है लोग।
            हैरत तो है इस बात की, सुलझे हुए है लोग।।
बुन्देलखण्ड के आधुनित कवि में सर्वश्री प्रभुदयाल की बुन्देली रचना महुआ पढ़कर मन हर्षित होता है। उन्होंने बुंदेली में महुआ के वृ़क्ष को ग्रामीणों के चैतन्य मन में रचा बसा दिया है वे लिखते है-
                आन लगो मधुमास सखि, फलन लगे मधूक।
                रैं रैं कें मन में उठैं, पिया मिलन की हूक।।
इस सभी के अतिरिक्त बहुत सारे कवियों की रचनाएँ उल्लेखनीय है समस्त काव्य रचनाओं का पूर्ण आनंद पुस्तक को पढ़कर ही उठाया जा सकता है।
            इस तकनीकी युग में बुन्देलखण्ड के कवियों द्वारा क्या लिखा और परोसा जा रहा है यह जानने के लिए यह एक ही पुस्तक पर्याप्त होगी।
           पेपर की गुणवत्ता, कुल पृष्ठ और सम्पादक की मेहनत को देखते हुए इस पुस्तक का मूल्य कम ही कहा जाएगा। एक बार फिर श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ को जी बधाई और शुभकामनाएँ उन्होंने इस पुस्तक का संपादन कर बुन्देलखण्ड के साहित्य जगत में नई पौध का पालन पोषण सरल कर दिया है।
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                                  - विजय कुमार मेहरा
                                    पुस्तकालय अध्यक्ष
                     शासकीय जिला पुस्तकालय टीकमगढ़
                             टीकमगढ़ (म.प्र.) पिन-472001 
                                   मोबाइल-9893997657

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पुस्तक समीक्षा-2

पुस्तक का नाम - बुंदेलखण्ड के आधुनिक कवि

सम्पादक - श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
प्रकाशक - सरस्वती साहित्य संस्थान प्रयागराज द्वारा
    म.प्र.लेखक संघ जिला इकाई टीकमगढ के लिए
मूल्य - 300/रू.सजिन्द
आइ्रएसबीएन - 978-93-83107-55-1
समीक्षक - श्री हरिविष्णु जी अवस्थी (टीकमगढ़)

          कविता, निबंध, व्यंग्य,हाइकु,दोहा आदि विभिन्न विद्याओं में क्रियाशील अनेक पुस्तकों के रचियता, म.प्र. की प्रतिष्ठित संस्था मध्यप्रदेश लेखक संघ भोपाल की जिला इकाई टीकमगढ़ का निष्ठापूर्वक विगत 23 वर्षो से कुशलता पूर्वक संचालन कर रहे श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ द्वारा संकलित एवं सम्पादित कृति ‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’ की समीक्षा लिखते हुए, ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे हिन्दी भाषा के ज्ञान यज्ञ मे मुझे भी आहुति देने का सुयोग अकस्मात प्रात हो गया है।
                    ‘बुन्देलखण्ड की उर्वरा पावन भूमि को पाषाण रत्नों के साथ ही साथ नर रत्नों को भी जन्म देने का गौरव प्राप्त है। देश के साहित्य मनीषी स्मृति शेष श्री लाला भगवानदीन ने लिखा है कि -‘इस पवित्र भूमि जिसे अब ‘बुन्देलखण्ड कहते हैं कविता की जन्म भूमि है और आदि से यहाँ उत्तम कवि होते आये हैं, वर्तमान में हैं और आगे भी होते रहेगें।’’
              इसी ‘बुन्देलखण्ड भूमि में नर रत्न हिन्दी भाषा के प्रथमाचार्य श्री केशवदास मिश्र ओरछा एवं राजापुर बांदा में जन्में संत प्रवर गोस्वामी तुलसीदास जी सैंकड़ों वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी हिन्दी साहित्यकाश के उज्ज्व नक्षत्र के रूप में स्थापित रहकर विश्व के साहित्य जगत केा आलोकित कर रहे है। कविवर पद्माकर महाराजा छत्रसाल, कवयित्री राय प्रवीण, महारानी वृषभान कुँवरि जैसी अनेक प्रतिभाओं ने हिन्दी साहित्य संसार में बुन्देलखण्ड की कीर्ति  पताका फहराई है।
‘बुन्देलखण्ड के कवियों को प्रकाश में लाने का श्रेयस कार्य ‘बुन्देलखण्ड में सर्वप्रथम पं. गौरी शंकर जी द्विवेदी ‘शंकर’ झाँसी ने ‘बुन्देलखण्ड वैभव’ नामक कृति की तीन खण्डों में रचनाकर किया था। सन् 1930 ई. में आरंभ किये गये इस कार्य में बाद में अनेक साहित्यकारों ने विभिन्न नामों से कवियों व लेखकों के परिचय संबंधी ग्रंथों का प्रणयन किया जो कि निंरतर चलता आ रहा है। 
                इसी क्रम में श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने ‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’ कृति का संकलन,समपादन एवं प्रकाशन कर प्रसंसनीय कार्य किया है।
               इस प्रकार के कार्य को करने का मुझे भी 5-6 वर्ष पूर्व अवसर मिला था। यह कार्य कितना समय एवं श्रम साध्य तथा ऊबाऊ है। मैं यह भलीभांत जानता हूँ। मुझे ‘बुन्देलखण्ड की कवियत्रियाँ’ कृति के संकलन एवं सम्पादन संबंधी कार्य में तीन-चार वर्ष का समय लग गया था। तब  कही मेरा श्रम पुस्तक का आकार ग्रहण कर सका था। श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ के श्रम का आंकलन मैं भलीभांति कर सकता हूँ।
              कवि अपने जीवन मे आए विभिन्न अवसरों पर जो देखता,सुनता एवं अनुभव करता है उसे वह दूसरों को भी बाँटना चाहता है। यह अनुभव खट्टे,मीठे कषाय आदि विभिन्न स्वादों के होते है जिन्हें वह शब्द सुमनों का सुंदर स्वरूप प्रदान कर काव्य रूपी धागे में पिरोकर माला के आकर्षक रूप में जन सामान्य के समक्ष प्रस्तुत करता है। यह प्रक्रिया की काव्य की जननी है।
               अपनी रचनाओं को जनसामान्य तक तक पहुँचाने हेतु उसकी लालसा बढ़ना आरंभ होकर तीव्रतर होती जाती है। उपयुक्त मंच प्राप्त होने पर वह गुनगुनाते हुए अपनी पूरी शक्ति केाथ रचना के प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास करता है कहते है न कि- कविता नोनी लगत है, होय कैबे को ढंग। यहाँ से आरंभ हुई उसकी क्षुधा,प्रकाशन के पश्चात ही शांत होती है। श्री राजीव नामदेव कवियों को मंच तो पूर्व से ही प्रदान करते रहे है अब की बार उन्होंने कवियों की कविताओं के संकलन, सम्पादन के साथ प्रकाशन का भार भी अपने कंधांे पर लेकर नवोदित पीढ़ी के साथ बहुत उपकार का कार्य किया है।
                   प्रस्तुत कृति में इकसठ नये-पुराने कवियों को और दस बहुत पुराने कवियों के संक्षिप्त जीवन परिचय के साथ बानगी के रूप में उनकी रचनाओं को भी दिया है। कृति का अनुक्रम कनिष्ठतम के आधार पर किया गया है। रचनाओं में समाज के बदलते स्वरूप, उत्पन्न हो रही विकृतियाँ,धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय भावनाओं  से ओत प्रोत अनके कविताएँ हैं। इसके साथ ही लोकरंजक संबंधी रचनाओं का रसास्वादन कुछ कविताओं में किया जा सकता है।समयाभाव के कारण संकलित कवियों की काव्य गत विशेषताओं का मूल्याकंन उन पर प्रकाश डालना संभव नहीं है।
           संकलित कृति में कुछ रचनओं की काव्य की बानगी का उल्लेख करना समीनीच होगा। 23 वर्षीय युवा कवि स्वप्निल तिवारी की रचना अंधेरे से क्या डरना काव्य क्षेत्र में उनके बढ़ते क़दमों की साक्षी है। श्री रविन्द्र यादव की प्रतिभा उनकी रचना ‘मातृ बंदना’ में स्पष्ट झलकती है। सीमा श्रीवास्तव की रचना ‘सूर घनाक्षरी’ सामाजिक संबंधों में मिठास घोलने का सफल प्रयास है। श्री रामानंद पाठक की रचना ‘बिटिया’ बेटी बचाओं, बेटी पढाओ के राष्ट्रीय आवह्ान की पूर्ति में सहायक है।
                  श्री प्रदीप खरे ‘मंजुल’ वरिष्ठ पत्रकार की रचना ‘गर्भ में बेटी की पुकार’ भी बेटी बचाओं का आवह्न करती है। श्री वीरेन्द्र चंसौरिया तो ‘प्रभु स्मरण’ संबंधी रचनाओं में महारत रखते हैं। रचना को गायन द्वारा प्रभावाी बनाने में वह निपुण हैं। श्री गुलाब सिंह ‘भाऊ’ ने सटीक रूप में टीकमगढ़ नगर के गौरव को रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया है। श्री प्रभुदयाल श्रीवास्तव ‘पीयूष’ की बुन्देली रचनओं की कोई सानी नहीं है। श्री शोभाराम दांगी ‘इन्दु’ का ागीत ‘बेइ मिट्टी बेई खान’ सुंदर बन पड़ा है।
                   श्री जयहिन्द सिंह ‘जयहिंद’ की रचना गीत-‘नदिया’ बहु प्रशंसित गीत का आकार ले चुका है। श्री कोमलचंद ‘बजाज’ प्रार्थना हे माँ शारदे,माँ वीणापाणि को रिझाने-मनाने हेतु पर्याप्त शक्ति रखती है। श्री बाबू लाल जी जैन संकलन में सबसे वरिष्ठ कवि है उनकी रचना ‘बसंत का रूपक’ प्रभावी है।
                      श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, डाॅ. राज गोस्वामी,श्री अवध बिहारी श्रीवास्तव, श्री कल्याण दास साहू ‘पोषक’ श्री सीताराम तिवारी ‘दद्दा’ के दोहे अच्छे बन पड़े है। श्री दीनदयाल तिवारी तो अपनी कृति:बुन्देलजी चैकड़ियाँ’ पर म.प्र. साहित्य अकादमी का इक्यावन हजार का ‘छत्रसाल पुरस्कार’ प्राप्त कर चुके है। श्री विजय मेहरा एवं  श्री रामगोपाल रैकवार की व्यंग्य रचनाये चुटीली है। वरिष्ठ शायर जनाब जफ़रउल्ला खा ‘ज़फ़र’, श्री अभिनंदन गोइल, उमाशंकर मिश्रा जी, संजय श्रीवास्तव की ग़ज़लों में पैनापन स्पष्ट छलकता है।
                      संकलन के अंत में ‘धरोहर’ शीर्षक के अंतर्गत ध्यकालीन साहित्य के पुरोधाओं में संत प्रवर गोस्वामी तुलसीदास जी, पं.केशवदास जी,मिश्र का, राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त बुन्देली के सशक्त हस्ताक्षर ईसुरी, गंगाधर व्यास, संतोष सिंह बुंदेला क अतिरिक्त स्व. श्री बटुक चतुर्वेदी, पं. कपिलदेव तैलंग और अंत में चंदेलकाल में आल्हा महाकाव्य के रचियता जगनिक का संक्षिप्त परिचय एवं उनके सृजन की बानगी दी गई है।
                     निष्कर्ष रूप में कहा जाता सकता है कि राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने प्रस्तुत कृति के संकलन, सम्पादन एवं प्रकाशन में गुरुतर भार को निष्ठापूर्वक सम्पन्न कर आधुनिक रचनाकारों की प्रतिभा को प्रकाश में लाने का सराहनीय कार्य किया है। इस कार्य हेतु वह प्रशंसा के अधिकारी हैं।
               कृति का मुद्रण त्ऱुटि रहित है। आवरण पृष्ठ पर लगभग सभी कवियों के चित्र देकर उसको आकर्षक बनाने का यत्न सफल रहा है।
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                   समीक्षक-  हरिविष्णु अवस्थी (टीकमगढ़)
             अध्यक्ष- श्री वीरेन्द्र केशव साहित्य परिषद् टीकमगढ़
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#वनमाली_सृजन_केन्द्र_टीकमगढ़ की ‘पुस्तक समीक्षा गोष्ठी’ हुई

*(‘बुन्देलखण्ड_के_आधुनिक_कवि’’ ग्रंथ  की समीक्षा)*

*टीकमगढ़*// रविन्द्रनाथ टैगोर विष्वविद्यालय एवं रविन्द्रनाथ टैगोर विष्वकला एवं संस्कृति केन्द्र भोपाल द्वारा संचालित वनमाली सृजन केन्द्र,टीकमगढ़ द्वारा ‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’’ ग्रंथ  की  पुस्तक समीक्षा गोष्ठी, आकांक्षा पब्लिक स्कूल टीकमगढ़ में दिनांक 15-5-2022 को आयोजित की गयी।
                       गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार  वरिष्ठ साहित्यकार पं. श्री हरिविष्णु जी अवस्थी’ ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में व्यंग्यकार श्री अजीत श्रीवास्तव जी रहे एवं विषिष्ट अतिथि के रूप के साहित्यकार श्री एस.आर.‘सरल’ जी रहे।  माँ सरस्वती के पूजन के पश्चात वीरेन्द्र चंसौरिया ने सरस्वती वंदना पढ़ी। तत्पष्चात् पहले दौर में पुस्तक समीक्षा पढ़ी गयी। दूसरे दौर में काव्य पाठ किया गया।

             लाइबे्ररियन श्री विजय कुमार मेहरा जी ने ‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’’ गं्रथ समीक्षा पढ़ते हुए कहा कि-मन के आवेग,विचार और संवेदनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य की विभिन्न विधाओं द्वारा होती है। कविता उन सभी सर्जनाओं में सर्वोपरी है जो मन के भावों को संगठित करके सर्जित की जाती है। ‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’ श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ बुन्देलखण्ड अंचल के युवा कवियों की रचनाओं से सुसज्जित काव्य कृति है। ‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’ पुस्तक में विशेषकर युवाओं की रचनाओं को प्रकाश में लाने का काम भाई राजीव नामदेव का प्रयास प्रशंसनीय है। यह पुस्तक निश्चित ही बुन्देलखण्ड के साहित्य जगत में मील का पत्थर साबित होगी।

              श्री रामगोपाल जी रैकवार ने समीक्षा करते हुए कहा कि-पुस्तक के पेपर की गुणवत्ता, कुल पृष्ठ और सम्पादक की मेहनत को देखते हुए 174 पेज की इस पुस्तक का मूल्य 300रू. कम ही कहा जाएगा। श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ को जी बधाई और शुभकामनाएँ उन्होंने इस पुस्तक का संपादन कर बुन्देलखण्ड के साहित्य जगत में नई पौध का पालन-पोषण सरल कर दिया है।

              पं. श्री हरिविष्णु अवस्थी  जी ने समीक्षा करते हुए कहा कि- कविता, निबंध, व्यंग्य,हाइकु,दोहा आदि विभिन्न विद्याओं में क्रियाशील अनेक पुस्तकों के रचियता, म.प्र. की प्रतिष्ठित संस्था मध्यप्रदेश लेखक संघ भोपाल की जिला इकाई टीकमगढ़ का निष्ठापूर्वक विगत 23 वर्षो से कुशलता पूर्वक संचालन कर रहे श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ द्वारा संकलित एवं सम्पादित कृति ‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’ की समीक्षा लिखते हुए, ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे हिन्दी भाषा के ज्ञान यज्ञ मे मुझे भी आहुति देने का सुयोग अकस्मात प्रात हो गया है। निष्कर्ष रूप में कहा जाता सकता है कि राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने प्रस्तुत कृति के संकलन, सम्पादन एवं प्रकाशन में गुरुतर भार को निष्ठापूर्वक सम्पन्न कर आधुनिक रचनाकारों की प्रतिभा को प्रकाश में लाने का सराहनीय कार्य किया है। इस कार्य हेतु वह प्रशंसा के अधिकारी हैं। कृति का मुद्रण त्रुटि रहित है। आवरण पृष्ठ पर लगभग सभी कवियों के चित्र देकर उसको आकर्षक बनाने का यत्न सफल रहा है।

          डाॅ. प्रीति सिंह जी परमार ने समीक्षा करते हुए कहा कि- संपादक श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ जी ने इस पुस्तक में 61 नये कवियों को एवं 10 पुराने कवियों को स्थान दिया है इस पुस्तक में कविता ,दोहा, ग़ज़ल, हाइकु बुन्देली गीत, घनाक्षरी, मुक्तक व्यंग्य आदि पद्य की लगभग सभी विद्याएँं समाहित है। इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें ‘हमारी धरोहर’ भाग में बानगी के तौर पर बुन्देलखण्ड के 10 प्रसिद्ध बहुत पुराने कवियों की रचनाएँ सपरिचय दी गयी है। ताकि वर्तमान पीढ़ी उनके साहित्य को पढ़कर कुछ सीख सके। ‘राना लिधौरी’ ने बुन्देलखण्ड के कवियों को एक माला के पिरोने का स्तुत्य कार्य किया है।

          व्यंग्यकार श्री अजीत श्रीवास्तव जी ने समीक्षा करते हुए कहा कि-श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ द्वारा संपादित यह ग्रंथ ‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’ भविष्य के शोध के लिए बहुत काम आयेगा। वर्तमान में कैसा साहित्य लिखा जा रहा है इसकी झलक इस पुस्तक में देखने को मिल जाती है। युवा पीढ़ी को इस पुस्तक को एक वार जरूर पढ़ना चाहिए बेहतरीन ढंग से सम्पादित यह पुस्तक संग्रहणीय है।

         कवि श्री डी.पी. शुक्ला जी ने समीक्षा करते हुए कहा कि-श्री राजीव नामदेव द्वारा बेहतरीन ढंग से सम्पादित पुस्तक ‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’ के माध्यम से उन्होंने नवोदितो एवं खासकर ग्रामीण अँचलों में रहने वाले कवियों को ढूँढकर जिनकी रचनाएँ केवल वहीं तक सीमित थी, उनकी रचनाओं को एकत्रित कर उन्हें संपादित करके इस पुस्तक में स्थान दिया जो कि बहुत ही प्रशंसनीय एवं वंदनीय कार्य है।

              नवोदित कवि श्री कमलेस सेन जी ने समीक्षा करते हुए कहा कि-श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ द्वारा मुझ जैसे अनेक गुमनाम नवोदित को एक सशक्त मंच प्रदान करते हुए हमारी काव्य प्रतिभा को सबके सामने लाने एवं उन्हें प्रकाशित करने का जो बीड़ा उठाया है उसकी जितनी प्रशंसा की जाये उनती कम है। यह पुस्तक हमारे लिए एक अनमोल धरोहर है।

           गीतकार श्री वीरेन्द्र चंसौरिया जी ने करते हुए कहा कि- आज राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ साहित्य के क्षेत्र में स्वयं नित नया सृजन कर ही रहे है वहीं दूसरों को भी हमेशा प्रोत्साहित करते रहते हैं काव्य गोष्ठियाँ म.प्र.लेखक संघ, वनमाली सृजन केन्द्र एवं जय बुन्देली साहित्य समूह के माध्यम के हर माह तो करते ही रहते है इसके अलावा वे कवियों की रचनाओं का सांझा प्रकाशन भी समय-समय पर करते रहते है ‘अभी लंबा है सफर’,‘जज़्बात’, काव्य संकलन के बाद हाल ही में ‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’ का प्रकाशन करके ‘राना लिधौरी’ जी ने बुन्देलखण्ड के साहित्य जगत में धूम मचा दी है। आज कल यह पुस्तक बहुत चर्चित हो रही है।

        वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़ के जिलाध्यक्ष व पुस्तक के संपादक राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने कहा कि- हमने इस पुस्तक में बुन्देलखण्ड के अधिक से अधिक कवियों को शामिल करने का प्रयास किया था उनसे संपर्क भी किया था किन्तु अनेक लोगों ने रचनाएँ हमें प्राप्त नहीं हो पायी। अधिक बिलंब न हो जाये इसीलिए ‘बुन्देलखण्ड के आधुनिक कवि’ (भाग-1) के रूप में इसे प्रकाशित किया है भविष्य में इसके दूसरे भाग में जो कवि शेष रह गये है उन्हें शामिल किया जायेगा। 
         अंत में सभी का आभार वनमाली सृजन केन्द्र केे जिलाध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी ने माना।

#रपट- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
अध्यक्ष एवं संयोजन-वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
टीकमगढ़ मोबाइल-9893520965
E Mail-   ranalidhori@gmail.com
Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com




रविवार, 24 अप्रैल 2022

बाबा (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक) संपादक-राजीव नामदेव राना लिधौरी, टीकमगढ़ (मप्र)

      बाबा (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक) 
संपादक-राजीव नामदेव राना लिधौरी टीकमगढ़ (मप्र)

                 
  
              💐😊 महावीर💐😊
        (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक) 💐
                
      संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 110वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 24-04-2022

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
         मोबाइल-9893520965
        



🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊



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              अनुक्रमणिका-

अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)

01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
03-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा,दमोह 
04-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी      
05-अमर सिंह राय,नौगांव(मप्र)
06-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा
07-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 
08-प्रदीप खरे 'मंजुल',टीकमगढ़
09-एस.आर.सरल, टीकमगढ़ (मप्र)
10-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'.,बडागांव झांसी (उप्र.)
11-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा,छतरपुर
12- डां मोहन सिंह, वानपुर
13-गोकुल यादव,बुढेरा, टीकमगढ़
14-रामानंद पाठक ,नैगुवा
15-डॉ देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा
16-वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़
17--संजय श्रीवास्तव,  मवई,दिल्ली
18-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा जिला टीकमगढ़
19- सरस कुमार दोह, खरगापुर जिला टीकमगढ़
20- सियाराम अहिरवार टीकमगढ़          
21- गीता देवी, औरैया (उप्र.)

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                              संपादकीय-

                           -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 

               साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
            इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे। 
          हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
  हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के द्वय एडमिन के रुप शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) है।
           हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
     आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
      एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।     
                 हमारे इस छोटे से प्रयास से आज एक नया इतिहास रचा है यह ई-बुक 'बाबा ( 110वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
     यह पटल  के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 110 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 80 देश के लगभग 60000 से अधिक पाठक अब  तक पढ़ चुके हैं।
  आज हम ई-बुक की श्रृंखला में  हमारे पटल  जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह  110वीं ई-बुक 'बाबा'   लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है। ये सभी दोहे पटल के साथियों  ने शनिवार दिनांक-23-4-2022 को बुंदेली दोहा लेखन  प्रतियोगिता-58 में दिये गये बिषय 'बाबा'  पर दिनांक-23-4-2022 को पटल  पोस्ट किये है।
  अंत में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
           धन्यवाद, आभार
  ***
ई बुक-प्रकाशन- दिनांक-24-04-2022 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)

                     -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
                टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
                   मोबाइल-91+ 09893520965

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01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)



*अप्रतियोगी दोहा बिषय- बाबा*
*
ऐसे बाबा आज के,
        नेतन संगे मेल।
                 नौटंकी ऐनई करे,
                         जनता संगे खेल।।
                                      ***
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com

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2-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)


 ,शनिवार बुंदेली दोहा दिवस,
                  ,,विषय ,बाबा,
     
      बाबा बनकें राम गय ,बाबा  रावन आय
      इक बाबा मिरगा बनो ,बाबा सिया पठाय
      ,,,,,
      बाबन बाबन वीद गइ ,भय बाबा हनुमान
      कालनेम बाबा बने , खोय अखारत प्रान
      ,,,,,,
      बाबा वानर सुग्रीवहि , छूटी सम्पत नार
      इक बाबा के श्राप सें , बालि न चढ़त पहार
      ,,,,
      बाबा तुलसी दास भय ,चित्रकूट रए आन
      राघव के दरशन मिले ,तोता मुख हनुमान
      ,,,,,
      बाबा जू राजेंद्र  भय , गउअन हित चित लाय
      रविशंकर रावत पुरा , आशिर वाद सुनाय
      ,,,,,,
      बाबा देवराहा अभि, वनदन करत प्रमोद
      गंगा जिने पखारती , रखती अपनी गोद 
      ,,,,,,
      बाबा बागेश्वर रहत , श्री सन्यासी नाम 
      संत महंत मुनीष को ,करत प्रमोद प्रणाम 
      ,,,,,,
      योगी योग सिखाउतइ ,मानुष रहत निरोग
      बाबा गौंड़ घटोरिया , सब प्रमोद संयोग 
      ***
   -प्रमोद मिश्रा ,बल्देवगढ़
        स्वरचित मौलिक
                                
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3- भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा, दमोह
 

दिन में बांचें भागवत, 
रातन खोटे काम।
ढ़ोगी बाबा जेल में,
 मर हैं तोताराम।।
***

✍️ भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा दमोह(मप्र)
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित

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   04-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी       


हानि धरम की होत जब, 
मनुज देह प्रभु लेत।
 शंकर जी बाबा बनत, 
प्रभु दरशन के हेत।।
***
-अंजनी कुमार चतुर्वेदी ,निवाड़ी

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05-अमर सिंह राय,नौगांव, जिला छतरपुर


 बाबा  बने  बनावटी, बन्न - बन्न  धर  रूप।
धरम भेष की आड़ में,करम करैं अवरूप।
***
बाबा  कइयक  जेल  में, जैसे  आशाराम।
निर्मल, राम-रहीम ने, करो भेष  बदनाम।

बेशर्मी चोरी हवश, करैं  घृणित कइ काम।
व्यभिचारी बाबा बहुत, जप रय सीताराम।

बहुत  बड़े  बहरूपिया, बनवैं बाबा सन्त।
बेधरमी कुकरम करैं, नहिं डरायँ भगवंत।

बाबा  रखवें  सेविका, दाढ़ी बाल व मूँछ।
भक्ति भाव रखते नहीं, अंदर बाहर छूँछ।

सच्चे बाबा नहिं मिलैं, बे रत सबसे दूर।
आडंबर करते नहीं, करैं भजन भरपूर।।
***
मौलिक/-            
              -अमर सिंह राय,नौगांव, जिला-छतरपुर                         

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06-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा

1-
बाबा औगढदानि, चिलम लगातइ जांय ।
सूटैं गांजा भांग तौ, पार्वती घबरांय ।।
**
2- 
बाबा बैरागी कछू,जग खां ढोंग बतांय ।
लूटत रचना काढकैं, अपनौं काम सटांय ।।
3- 
बाबा आसाराम जी,ढौंगी रामरहीम ।
हते जलेबी बाबा जु, जेलै पौंची टीम ।।
4- 
ढौगी बाबा आजकल, लूट रये दिन रैन ।
जां देखो तां सुनत रत,चींथौ देसै ऐन ।।

✍️-शोभाराम दाँगी 'इंदु' ,नंदनवारा

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07-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 


जटा जूट माथे तिलक,वसन गेरुआ धार।
कपटी बाबा भेस धर,ठगत रहत संसार।।
***
बाबा बो ही जानिये, जो समाज हितकारि।
धर्म करम ज्ञाता रहे, जैसे शिव त्रिपुरारि।।
🌹
जो बाबा धर्मात्मा,बड़ो तपस्वी होत।
सदाचरण प्रवचन करें,जले धरम की जोत।।
🌹
ऊपर सीता राम हैं,मन में कपट कुचक्र।
कलयुग में घूमत फिरत, बाबा ढोंगी बक्र।।
🌹
-आशा रिछारिया, जिला निवाड़ी 

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08-प्रदीप खरे, 'मंजुल',टीकमगढ़


योगा कर कर, कर दिये,सब चौपट रुजगार।
बाबा की चतुराइ सैं,बाबा बनें हजार।।
***
1-
बाबा नागा देख लो, करें तपस्या रोज।
ओघड़ बाबा से भले, देखौ उनकौ ओज।।
2-
गांवन गांवन चौतरा,पूजत है सब लोग।
बाबा लाला सब कहें,भाग जात हैं रोग।
3-
बाबा आगी बीच में,तप रयै बैठे आज।
जप करें बिन कछू पियें,हमखौं जिन पै नाज। 
4-
धारकुंडी नाम सुनौ, बाबा कौ है धाम।
जहाँ विराजे हैं गुरू,साक्षात जो राम।।
5-
बाबा मोरे राम है,बाबा ही घन श्याम। 
दरश करें पापी तरें,खाटू जिनकौ धाम।

***
✍️ प्रदीप खरे'मंजुल', टीकमगढ़

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09- एस आर सरल, टीकमगढ़


बाबा हो  गय  मौशमी, बदलत अपनें  रंग।
कउँ बाबा बिच्छू बनें, कउँ कउँ बनें भुजंग।।
***
     अप्रतियोगी बुन्देली दोहा #बाबा#
***†***************************** 
बाबा धाबा बोल रय, खूब  मूत  रय अत्त।
सबइ दंद  बाबा नदें , छोड़ धरम उर सत्त।।

बाबा  हैं  बहुरूपिया, है  छलियन की  टीम।
कछुअक आशाराम हैं,कछुअक राम रहीम।।

ममता माया मोह तज, निर्विकार मन चित्त।
त्यागी बाबा कर भजन, बनें हरी के  मित्त।।

भोले  बाबा  रट  रये,  शाँतिर  बाबा  आज।
ओछ काम करतन उनें,तनक न आबें लाज।।

राजनीति  की  ओट  में, बाबा  मालामाल।
लुटिया डूबी न्याय की, जनता भइ कंगाल।।

बाबा   चोला  पैर  के , हो  रय  धंधेबाज।
बचों न कौनउँ काम जो,बाबा करें न आज।।
**********************************
        -एस आर सरल, टीकमगढ़

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10-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'.,बडागांव झांसी (उप्र.)


बाबा मठ में बैठ कें, साध राग बैराग।
भजते हरि के मंत्र कों, बिषयों का कर त्याग।।
***
अप्रतियोगी तीन दोहे.

बाबा बैठे द्वार पे, मांग- मांग कें खांय।
सबको चायें वे भलो, ईसुर के गुण गांय।।

बाबा व्यापारी बने, बाबा नेता होंय।
बाबा अपने भक्त खों, तरा-तरा सें दोंय।।

बाबा हर इक बात में, दाबा धरें दबाब।
कुछ केवल ढाबा भये, भरकें पेट जनाब।।
***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु',बडागांव, झांसी (उप्र.)

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11-बृजभूषण दुबे 'बृज', बकस्वाहा


बाग बगीचा बना लय,बाबा बन मारीच।
कपटी कपट बनावटी,माया रूपी नीच।।
-***
-बृजभूषण दुबे "बृज", बकस्वाहा

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12- डां मोहन सिंह, वानपुर
अमर हते सो मर गए, धनपति मांगे भीक. ।
लछ्मी कंडा बीनती, तासै बाबा ठीक।।
***
-डां मोहन सिंह, वानपुर

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13-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी

नकली परखत नोट उर,परखत गगन जमीन।
नकली  बाबा  परखबे, काय न  बनी  मशीन।।
****

✍️गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी

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14-रामानंद पाठक ,नैगुवा
तजवें माया मोह सब,जपें निरंतर राम।
संत दरस ब्याधि हरै,चरन हैं चारों धाम।।
***          
-रामानंद पाठक ,नैगुवां

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*15-डॉ देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा
बाबा कौ दाबा मिलै,सुख, सम्पति औ पूत।
इंक्याँअन कौ दान कर,खालो तनक भबूत।।
***
डॉ देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा

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*16-वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़
तन सें बाबा बन रये, झूंट माट के आज।
कर रय जे बदनाम हैं,साधु सन्त समाज।।
               ****
वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़
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17-संजय श्रीवास्तव,  मवई,दिल्ली

बाबा तोरे राज में, बुलडोजर की धाक।      
अपराधी सब जेल में,संपत्ति भई खाक।।
***     
*१*
मन में भोले नाथ हैं,तन पे चढ़ी भभूत।     
भाँग-धतूरा में रमे,नच रय भोला दूत।।
     
*२* 
जी के निर्मल मन,करम,जी की निर्मल बात।         
प्रेम सदा झर-झर झरे,बाबा वही कहात।।
       
*३*
काया-माया में फँसे,महिमा बड़ी महान।    
लोभ मोह मद में गसे,बाबा बाँटें ज्ञान।।
       
*४*
बाबा की बातें बड़ी,बड़े-बड़े व्यापार।    
कथनी करनी अलग है,अलग-थलग संसार।।
     
***
-संजय श्रीवास्तव,  मवई,दिल्ली


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18-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा जिला टीकमगढ़

बाबा तीनई भेष के,पेट चपेट लपेट।
बे बाबा मन मोज है,ईशर को रये भेट ।।
***
-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा जिला टीकमगढ़

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*19-सरस कुमार दोह, खरगापुरजिला टीकमगढ़

बाबा बैठों गेल में, जला रहौ छल जोत।
विघन करे हनुमत गली, जो बाबा न‌इ होत।।
***
-सरस कुमार दोह, खरगापुरजिला टीकमगढ़

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20-  सियाराम अहिरवार टीकमगढ़          


बहुरुपिया घूम रये ,भारत में चहुँ ओर ।                          
कइयक बाबा संत हैं, कइ घूम रये चोर ।      
***
              -  सियाराम अहिरवार टीकमगढ़          

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21-गीता देवी, औरैया


तामस कबहुँ न जो करैं, रहैं लोभ सों दूर। 
बाबा हो सच्चे वही, ज्यों कबीर, रस, सूर।।
***
-गीता देवी, औरैया (उप्र.)

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                            संपादन-
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)

      
         



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                       ‌     बाबा
                  (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)
      संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 110वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 24-04-2022

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
         मोबाइल-9893520965
         


सोमवार, 18 अप्रैल 2022

निबुआ (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक) संपादक-राजीव नामदेव राना लिधौरी, टीकमगढ़ (मप्र)

      निंबुआ (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक) 
संपादक-राजीव नामदेव राना लिधौरी टीकमगढ़ (मप्र)

                 
  
              💐😊 निंबुआ💐😊
        (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक) 💐
                
      संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 109वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 18-04-2022

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
         मोबाइल-9893520965
        
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              अनुक्रमणिका-

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01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
03-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा,दमोह 
04-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी      
05- डॉ रेणु श्रीवास्तव ,भोपाल 
06-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा
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10-गीता देवी, औरैया (उत्तरप्रदेश)
11-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा,छतरपुर
12-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़
13-गोकुल यादव,बुढेरा, टीकमगढ़
14-रामानंद पाठक ,नैगुवा
15-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
16-अमर सिंह राय,नौगांव
17- संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
18-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र

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                              संपादकीय-

                           -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 

               साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
            इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे। 
          हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
  हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के द्वय एडमिन के रुप शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) है।
           हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
     आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
      एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।     
                 हमारे इस छोटे से प्रयास से आज एक नया इतिहास रचा है यह ई-बुक 'निंबुआ ( 109वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
     यह पटल  के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 109 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 80 देश के लगभग 60000 से अधिक पाठक अब  तक पढ़ चुके हैं।
  आज हम ई-बुक की श्रृंखला में  हमारे पटल  जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह  109वीं ई-बुक 'निंबुआ'   लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है।
 ये सभी दोहे पटल के साथियों  ने सोमवार दिनांक-18-4-2022 को बुंदेली दोहा लेखन  में दिये गये बिषय 'निंबुआ'  पर दिनांक-18-4-2022 को पटल  पोस्ट किये है।
  अंत में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
           धन्यवाद, आभार
  ***
ई बुक-प्रकाशन- दिनांक-18-04-2022 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)

                     -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
                टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
                   मोबाइल-91+ 09893520965

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01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)



*बुंदेली दोहा बिषय-निबुआ*

*1*
निबुआ नोंनो वो लगे,
           पतरौ पीरौ होय।
                    निन्ने जो रस पी लिया,
                                  कैउ रोग नइ होय।।
                                                 ***
*2*
निबुआ में गुन होत है,
         रोग,तंत्र मिट जात।
                 शर्वत बना- बना पियो,
                            पूजा में चढ़ जात।।
                                            ***18-4-2022

राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
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2-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)


 सोमवार बुंदेली दोहा दिवस
             ,विषय निबुआ,
       ,,,,,,,,,,,,,
 निबुआ निनने घोरकें ,ताजे जल पी जाव।
 रोग दोग व्यापे नही , चरबी सें सुख पाव।।
 ,,,,,,,,,
 नोन मेंच मैंथी कलत ,निबुआ उर अजवान।
 चिकनइ संगे कलौजी , भइ अचार की शान।।
 ,,,,,,,
 देवि देवतन खों चढ़त ,निबुआ खुपटन फार।
 भूत भुतइआ पूजवे ,निबुआ धरत अगार।।
 ,,,,,,,
 निबुआ रस लासुन मिरच ,अदरक संगे नोन।
 मजेदार चटनी बनत , खाव साद कें मोन ।।
 ,,,,,,,,,
 निबुआ रस शक्कर मिला ,काली मिरचा घोर।
 मिजमानी जल बोंड़ दो , मेंमानन की ओर।।
 ,,,,,,,,,
 गुर पानी में घोरकेँ ,रस निबुआ को डार।
 एक गड़इ पिरमोद पी , औगुन हरत हजार।।
 ,,,,,,,,
 नजर लगे नइ टोटका करते निबुआ काट।
 साढ़ू भय पिटरोल कें ,बढ़े भाव उर ठाट।।
 ,,,,,,,,,
         
   -प्रमोद मिश्रा ,बल्देवगढ़
        स्वरचित मौलिक
                                
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3- भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा, दमोह
 
*निबुआ पर बुन्देली दोहे*
निबुआ माता खों चढ़त, निबुआ नजर बचाय।
 सूट जाव सरवत बना ,गरमी अगर झॅंजाय।।

निबुआ कौ रस काड़ कें,कागद पै‌ लिख दैव।
आंच ‌दिखाओ तनक सी, फिर सबरो पढ़ लैव।।

निबुआ कौ मिरचन डरौ,थानो जो ‌मिल जाय।
तातीं लुच‌इं कलेउ में,ओरी परस न पाय।।

निबुआ सौ चोखें फिरत,ना‌‌इं करत है साव।
बिटिया स्यानी है घरै,कैसें हो‌ रव ब्याव।।

अब बे निबुआ कागदी,क्यांऊ नजर ‌न आंय।
"अनुरागी" अटका‌ परें,फिरें नाय कें मांय।।

🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹

✍️ भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा दमोह(मप्र)
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित

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   04-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी       

बुंदेली दोहे 
विषय -निबुआ
 दिनांक -18 04 2022
*********************

बिना सींग की सास है,जैसें मरका बैल।
निबुआ सौ मोय निचो दव, है पक्की चूडैल।।

जीजाजू सौ कीमती, हो गव निबुआ आज।
ज्यों जीजा ससरार में,त्यों निबुआ कौ राज।।

पौदीना औ प्याज की,चटनी लेव बनाय।
निबुआ कौ रस मिला लो,गजब स्वाद आ जाय।।

नोंन मिर्च अजवायन सें, जी कौ बनत अचार।
ऊ निबुआ कौ नाव सुन,चड़ रव सबै बुखार।।

निबुआ मिर्चें टांग कें,सबने भूत भगाय।
आज कोउ जौ कर धरै,उयै गश्त आ जाय।।

***

-अंजनी कुमार चतुर्वेदी ,निवाड़ी

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05-- डॉ रेणु श्रीवास्तव ,भोपाल 


दोहे विषय 'निबुआ' 

1 निबुआ में गुन भोत हैं, 
   गरमी बड़ो पुसात। 
   बना शिकंजी सब पियें, 
   मैया को जो भात।। 
   
 2   कोरोना के काल में, 
      सब  भै डांवाडोल। 
      निबुआ जैसे निचुर गए, 
      खुली  सबइ की पोल।। 
 
3 कंकाली मज्जा खड़ीं, 
   निबुआ की बलि देत। 
   सबके संकट टारतीं, 
   बस वे निबुआ लेत।। 
***
       - डॉ रेणु श्रीवास्तव ,भोपाल 
        
                             

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06-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा



बिषय - "निबुआ" (नींबू)बुंदेली दोहा (109)

1-
 देवी खों निबुआ चढें, जय जगदंबा  माइ ।
बोलत हौंम लगाउं में,चरनन डरौ तुमांइ ।।
2- 
निबुआ की बलि देत जो,माई होत प्रसन्न ।
मातु भवानी कालिका,जग खां देवै अन्न ।।
3-
 निबुआ में गुन भौत हैं,सुनतन मौ पनयाय ।
नौन मसालों डारकैं,बना अचारइ खाय ।।
4-
 निबुआ की ठंडायाइ, बना-बना पी जाव ।
कितनउ गरमी परी हो. तन-मन ठंडौं पाव ।।
5-
 भोजन की थाली सजी,नींबू कलियाँ होय ।
खावे के ऊ स्वाद कौ, वरनन करवै कोय ।।
मौलिक रचना
***
✍️-शोभाराम दाँगी 'इंदु' ,नंदनवारा

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07-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 


बुंदेली दोहा दिवस दिनांक18.4.2022
बिषय। निबुआ
🌹
निबुआ घांइ निचुर गये ,कोरोना की मार।
ऊ पे मंहगाई बड़ी,मच रओ हाहाकार।।
🌹
पन्दरा के दो बिक रहे,कभऊं बेई न आंये।
गरमी दै रई दोंदरा, निबुआ नहीं दिखांय।।
🌹
निबुआ की बलि मात खों, सबसे अधिक सुहाय।
कालन की कलि कालिका,जय जय जय हो माय।।
🌹
निबुआ गुनकारी बड़ो, सब तन रहे निरोग।
पानी शक्कर संग घुरे,शरबत मीठो भोग।।
🌹
        ***
-आशा रिछारिया, जिला निवाड़ी 

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08-प्रदीप खरे, 'मंजुल',टीकमगढ़

दोहा..बिषय-निबुआ
18.04.2022
*प्रदीप खरे, मंजुल
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
जब सें धनिया आ गई,
मुश्किल जीबौ होय।
निबुआ से निचुरे धरे,
लेत खबर नहिं कोय।।
2-
निबुआ सौ मसकत फिरे,
रन में हनुमत लाल।
रावन दल हाहा करै,
मचल रऔ है काल।
3-
निबुआ माइ चढ़ा दियौ,
झंडा दियौ लगाय।
पान बताशा धर दियौ,
माता लियौ मनाय।।
4-
निबुआ में गुन हैं भरे,
पियत न आबै रोग। 
गरमी सें राहत मिलै,
सुखी रहें सब लोग।।
5-
तपत दुपरिया में कजन,
घरै कोउ आ जाय।
निबुआ शक्कर फैंटकैं,
शर्बत दियौ पिलाय।।

***
✍️ प्रदीप खरे'मंजुल', टीकमगढ़

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09- एस आर सरल, टीकमगढ़


बुन्देली  दोहा# निबुआ #

जौन घरें निबुआ लगों, बों घर रहत निरोग।
निबुआ बड़ी दवाइ है, जा  कत बूढ़े  लोग।।

निबुआ जैसे निचुर गय,कै रइ बलम हमाय।।
सात  बन्न  कों  खात हैं, चेतत नइयाँ काय।।

निबुआ  पौदीना हरों, शक्कर लेत मिलाय।
लाल  दुपरिया में  इनें, रोजउँ  रये पिलाय।।

इंतजाम  सबरे  करें, लपट  नईं लग  जाय।
निबुआ पानी रय पिया,उर रय पनों लगाय।।
      
    ***
        -एस आर सरल, टीकमगढ़

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10-गीता देवी, औरैया (उत्तरप्रदेश)


निबुआ 

निबुआ कौ शरबत पिओ, लोगों भौत अघाय। 
देंह ताजगी सों भरै, गरमी देत भगाय।। 

सरक पैं निबुआ पड़ौ, चलिओ तनिक सँभाल। 
पाँय धरौ यदि आपने, मिलै न कोनउँ ढाल।। 

शोभत माता कै गरै, निबुआ वाली माल। 
भौत खुशी माँ कौं मिलै, निकट न आबै काल।। 

उदघाटन करिओ जबहि, सुन लैहौं इक बात। 
निबुआ मिर्ची हों बँधे, नजरैं बुरी भगात।। 

नोनों निबुआ कौ लगै, खाबौ तनिक अचार। 
एक बैर जो खात हय, दिनभर खाबै यार।। 

-गीता देवी, औरैया (उत्तरप्रदेश)
**

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11-बृजभूषण दुबे 'बृज', बकस्वाहा

1-
लपट झकर को डर नहीं,
निबुआ जब मिल जाय।
निबुआ रस तन तन पियो,
जब जब जी मचलाय।।

2-
निबुआ गुन भरपूर रत,
तन मन करे स्वस्थ्य।
निबुआ रस शरबत बना,
पीवे सब -ई अवश्य।
            ***
-बृजभूषण दुबे "बृज", बकस्वाहा

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12-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़

#सोमवार#दिनाँक18.04.2022#
#बुन्देली दोहा लेखन#निबुआ#
$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$

                     #1#
दिल्ली में दस कौ मिलै,लेव आगरा आठ।
ग्यारा कौ गुजरात में,पड़लो निबुआ। पाठ।।
                    #2#
नीबू काट निचोरिये,मों में पानी आय।
बारे के न्यारे करै,जो अचार डर जाय।।
                    #3#
पीरौ निबुआ रस भरो,करिये रोजउ पान।
मिलत विटामिन सी सदा,भोजन में रस खान।।
                   #4#
दो दो बूँदा नाक में,निबुआ रस टपकाय।
कौरौना सें ना मरै,कछू बिगर ना पाय।।
                    #5#
पीरे लड़ुआ पेड़ के,दुर्गा जू खों भाँय।
फूलै फरबै साल भर,निबुआ में फल पाँय।।
**
#मौलिक ए्वम् स्वरचित#
-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़
#मो0  6260886596#

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13-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी

🙏बुन्देली दोहे,विषय-निबुआ🙏
**************************
निबुआ में गुन भौत हैं,
                 औगुन   एकइ  रात।
'ए' चोंखै निबुआ अगर,
                 'बी' कौ मों पनयात।
**************************
नीबू   पानी   होत   है,
                   सबसें  सस्तौ  पेय।
अब निबुआ मँहगौ भयौ,
                    का गरीब पी लेय।
**************************
बरसन सरहज कान कौ,
                 काड़त  रऔ  कनेउ।
निबुआ नोंन चटा गऔ,
                   सारे    खाँ    बैंनेउ।
**************************
पनौ   कलींदौ   चीमरी,
                  बिरचुन  सत्तू   छाँच।
निबुआ रस लस्सी पिऔ,
                   रहै न  तन में  आँच।
***************************

✍️गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी

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14-रामानंद पाठक ,नैगुवा
दोहा निबुआ
                       1
निबुआ कौ पानी पियौ,खाली होवै पेट।
रय काया स्वस्थ सदा,निगै न लठिया टेक।
                           2
भौतइ बजन सरीर कौ,निबुआ पानी पीउ।
काया खों सुन्दर करै,नौनों रैबै जीउ।
                           3
निबुआ कौ रस काड कें,पानी में दो डार।
शक्कर वा में मिला लियौ,सरवत बनबै यार।
                               4
निबुआ पेड़ लगाइयौ,घर के आबै काम।
अथानों सलाद बना,करियौ ऊके दाम।
                            5
बली रुप निबुआ चढै,माता के दरबार।
विगरी सबइ बनाइयौ,मांगत हाथ पसार।
 
           ***
-रामानंद पाठक ,नैगुवा

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*15-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
बुंदेली दोहे  विषय  निबुआ

पियत सिकंजी सोंक सें,चालू पुरजा जोंन।
चोंखत रय हम तौ सदां,निसदिन निमुआं नोंन।।

गुड़गुड़ाय जब पेट जौ, खट्टी आय डकार।
निमुआं अजवाइन नमक,करबें दूर बिकार।।

देबी जू निमुआं बिना,  होबें  न‌इंँ  प्रसन्न।
भारी  मीठे  फलन  पै , धन्न  धन्न  तें धन्न।।
***
            -  प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़

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16-अमर सिंह राय,नौगांव

चाटत निबुआ नोन सो, 
हम रै गय हैं आज।
गवालियर हम आ गए, 
हतो जरूरी काज।

     🙏 अमर सिंह राय,नौगांव

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17- संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)

      *सोमबारी बुंदेली दोहे*
   विषय  -  *निबुआ*

*१*
भूत प्रेत खुश हो रहे,
       सुनकें निबुआ भाव।
मंहगाई डायन बनी,
       कैसें भोग लगाव।।
*२*
निबुआ बोलो आम सें,
     पीरी पर गइ खाल।
उमर सें पैलां पक गय,
       घाम तेज ई साल।।
*३*
निबुअन की बगिया फरी,
        निबुआ लगे हजार।
बेदरदी सें टोरकेँ,
    करन लगे व्यापार।।
*४*
निबुआ पतरी खाल को,
        होत भौत रसदार।
चाय घोर सरबत पियो,
      डारो चाय अचार।।
*५*
अदरक निबुआ आंवला,
       जीवन भर सुखदाइ।
सेहत खों चौकस रखे,
          मानो इने दवाइ।।
       ***
    संजय श्रीवास्तव, मवई
    १८-४-२२ 😊  दिल्ली
    

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18-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.



दो दोहे.
निबुआ.

निबुआ गुणकारी बहुत, बढ़ी सबई में मांग।
निबुआ में मैंगाइ की,आसों लग गइ आग।।

निबुआ के रस से बने, शर्बत कैउ प्रकार।
पीवे बारन के हरें, औगुन इतै हजार।।
***
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.

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                            संपादन-
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)

           

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                       ‌     निंबुआ
                  (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)
      संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 109वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 18-04-2022

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
         मोबाइल-9893520965