Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शनिवार, 2 अप्रैल 2022

हप्पा (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक) संपादक-राजीव नामदेव राना लिधौरी टीकमगढ़ (मप्र)

हप्पा (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक) 
संपादक-राजीव नामदेव राना लिधौरी टीकमगढ़ (मप्र)



                 
  
  💐😊 हप्पा😊💐

                   (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)
      संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 105वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 02-04-2022

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
         मोबाइल-9893520965
        



🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊



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              अनुक्रमणिका-

अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)

01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02- शोभाराम दाँगी , इंदु, नदनवारा
03-संजय श्रीवास्तव, मवई,टीकमगढ़(म.प्र)
04-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
05-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा,दमोह 
06-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी      
07-अमर सिंह राय,नौगांव(मप्र)
08-डां. देव दत्त द्विवेदी, बड़ा मलहरा
09-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी (बुडे़रा)
10-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 
11-गीता देवी, औरैया (उ.प्र.)
12-प्रदीप खरे 'मंजुल',टीकमगढ़
13-एस.आर.सरल, टीकमगढ़ (मप्र)
14-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'.,बडागांव झांसी (उप्र.)
15-वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़
16-रामगोपाल रैकवार_ टीकमगढ़
17-डां. आर बी पटेल "अनजान ",छतरपुर
18-गुलाब सिंह यादव 'भाऊ, लखौरा
19-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिँला टीकमगढ़
20-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा,छतरपुर
21-भरत त्रिपाठी, टीकमगढ़ (मप्र)
22-गुणसागर सत्यार्थी,कुण्डेश्वर,टीकमगढ़

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                              संपादकीय-

                           -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 

               साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
            इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे। 
          हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
  हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के द्वय एडमिन के रुप शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) है।
           हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
     आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
      एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।     
                 हमारे इस छोटे से प्रयास से आज एक नया इतिहास रचा है यह ई-बुक 'हप्पा'  105वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
     यह पटल  के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 105 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 80 देश के लगभग 60000 से अधिक पाठक अब  तक पढ़ चुके हैं।
  आज हम ई-बुक की श्रृंखला में  हमारे पटल  जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह  105वीं ई-बुक 'हप्पा'  लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है। ये सभी दोहे पटल के साथियों  ने शनिवार दिनांक-02-4-2022 को बुंदेली दोहा लेखन प्रतियोगिता-55 में दिये गये बिषय 'हप्पा'  पर दिनांक-02-4-2022को पटल  पोस्ट किये है।
  अंत में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
           धन्यवाद, आभार
  ***
ई बुक-प्रकाशन- दिनांक-02-04-2022 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)

                     -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
                टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
                   मोबाइल-91+ 09893520965

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01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)




**अप्रतियोगी दोहा बिषय-हप्पा*

हप्पा हल्के हड़प के,
खाउत है हर बेर।
हड़िया में अब कछु नईं,
हमें हो गयी देर।।
***

*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com

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02-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा



हपपा खांय जगतपिता,जगननाथ कौ भात ।
निस-दिन भोग लगाऊत,जगत पसारौ हात।।

1- 
बेला भर हपपा धरैं,दूध डारकैं खांय ।
लिऐं डिगरिया गुरइ की,बबबा बउ झट पांय ।।
2-
दूध महेरी चाँउन कि,बबबा जू बनवांय।
 बबबा बउ खांवै संग,हपपा खा खुश रांय ।।
3- 
भर-भर टाठी खात हैं,हपपा झटपट खात ।
इऐ मुरानैं नइं परत,सट-सट गुटकत जात ।।
4-
 भरैं कचुलला मैयरौ,सरवत संगें खांय।
हपपा खांय जना-जनीं,अफर पेट खा जांय ।।
5- 
हपपा में जो मजा है,और कछू में नांय ।
सेहत  फुरतीली रवै,हालौ-फूलौं राय ।।
***
✍️-शोभाराम दाँगी 'इंदु' ,नंदनवारा
     ***

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03-संजय श्रीवास्तव, मवई (जिला-टीकमगढ़)

      
हप्पा पौंचो पेट में,आइ साँस में साँस।     
भूख ग़रीबी आज भी,बनी गरे की फाँस।।
  ***   
   -संजय श्रीवास्तव, मवई,दिल्ली
    
      
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4-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)


 
हप्पा हड़िया में लुको , कड़ी फिरै उफनात।
दार सौत संगे रहो , नहि आयौ सब रात।।
             ***          
   हड़िया मैं हप्पा चुरत ,उर तइया में दार।
   टारन हारो डेऊवा ,  बुन्देली संसार।।
   
   हप्पा  कड़ि में सानकें , पापर संगे खाव।
   दूद डारकेँ सूंटलो , डिड़क खेत पै जाव ।।

   हप्पा चूले पै चढ़ो , आगी दइ उसकेर।
   हड़िया पारेँ सें ढकी , खलबलात हरदेर ।।
   
    हप्पा हूंको हूंककें , हरवारे हर  हाँक।
    हरी हरन की चलीती , हारे लग गइ आँख ।।
    
    हप्पा बोलो दूदसें , गुरयाई सें प्रीत।
    कड़ी भात ब दार भात ,मेरे ही मन मीत ।।
    
    हप्पा सर गव कड़ी में ,बजबूजन रव हेर।
    रोटी राखी दार ने , भओ प्रमोद अंदेर ।।

    नव संवत्सर नवदुर्गा , सुखद कामना जान।
    नये वर्ष पर खुश रहें ,धरती के इन्सान ।।
                       ***
        
   -प्रमोद मिश्रा ,बल्देवगढ़
        स्वरचित मौलिक
                                
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5- भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा, दमोह
 

चांवर पानी डारकें ,थोरो नोंन मिलाव।
पकबै सीरी आंच में, फिर हप्पा खों खाव।।

हप्पा खाबै में सरल,दूद डार पी जाव।
पेट सदा हल्कौ रहे,क‌इयक देरे खाव।।

दांत जोंन कें हैं नहीं, उनै बड़ो आराम।
तिरकारी नै पीसनों, खाव सुवेरें शाम।।

लचका लप्सी खीचड़ी,हप्पा भंगरी खीर।
डुबरि महेरो अरु थुली,आन खाइ रगवीर।।

हप्पा पानी कौ बनत,अगर दूद मिल जाय।
बब्बा बूड़ी होंस सें,दो - दो टाठी खाय।।

बिंजन क‌ई सामान अब,क्यांउ नजर न आंय।
जैसें हप्पा  डेउआ,दिखत पनैंयां नांय।।

***
✍️ भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा दमोह
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित

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   06-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी       



नोंन डार हप्पा बना, रोज नियम सें खाय।
पाचन सुदरै दिनै- दिन,देह बज्र हो जाय।।
***

मसकौ गुर के साथ में, हप्पा दूद मिलाय।
मजबूती हड्डी मिलै,चर्बी सबइ बिलाय।।

हप्पा में गुन तीन  हैं,वौ जाने जो खाय।
चर्बी पेट रहै नहीं,हाड़ जंट हो जाय।।

बेर बेर बब्बा भगे,लैकें लोटा खेत।
ओ आर एस कितै धरौ,हप्पा ठोकर देत।।

दलिया हप्पा महेरी,जो ब्याइ में खाय।
तन ऊ कौ चंगौ रहै, वैद घरै ना आय।।
***
-अंजनी कुमार चतुर्वेदी ,निवाड़ी

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07-अमर सिंह राय,नौगांव, जिला छतरपुर


हरौ होय  हरबर पचै, बिना  मुराये  खायँ।
बब्बा बउ बिन दाँत के, हप्पा दार मगायँ।।                  
       ***
              -अमर सिंह राय,नौगांव, जिला-छतरपुर
                             

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08-डां देव दत्त द्विवेदी, बड़ा मलहरा,(छतरपुर)


हिंगा,महेरी,खीर औ,हप्पा,सौंदौ,भात।
खिचरी, गुड़ला जे सुनों,बुन्देली में कात।।
***
-डॉ देवदत्त द्विवेदी 'सरस'
बड़ा मलहरा (छतरपुर)
***
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09-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी (बुडे़रा)


हप्पा मिल रव पेट खाँ,तन ढकबे खाँ चीर।
इतनइं में राजी अपन, भजत रहत रगबीर।
****
✍️ गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी (बुडे़रा)

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10-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 


हप्पा लैं माता चलीं, भरें हिये अनुराग।
राम काग मिल खा रहे,धन्य काग के भाग।।
***
-आशा रिछारिया, जिला निवाड़ी 

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11- गीता देवी, औरैया(उप्र.)


हप्पा नोनों हय बनौ, खाबौ हमरै लाल। 
वरना दैहों काग को, धरै आम की डाल।।
***
गीता देवी 
औरैया (उत्तर प्रदेश)

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12-प्रदीप खरे, 'मंजुल',टीकमगढ़



हप्पा बिन भोजन नहीं, सारी बिन ससुरार।।
भजन बिना जीवन नहीं, प्रेम बिना संसार।।
                  **
✍️ प्रदीप खरे'मंजुल', टीकमगढ़


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13- एस आर सरल, टीकमगढ़

हप्पा  खाकें  खेत पै , दिन भर कर रय काम।
बे किसान  देखत  नईं, लाल  दुपरिया  घाम।।

लुंज पुंज बब्बा भऔ,उचक परी सबरात।
बउ लयँ हप्पा हात में,बब्बा तन तन खात।।

बब्बा उठ अँदयाय सें, मौआ बीनन जात।
बउ हप्पा लयँ जात है, बब्बा डटकें खात।।

बब्बा खौ हप्पा रुचें, बउ खौ रुचबें भात।
बब्बा खाबें दूद सें, बउ शक्कर सें खात।।

हप्पा  में  डारें  मठा , दें  सरपोटा  खात।
बब्बा कत कें छाँछ सें,पेट डबरया जात।।

बउ केंरइ हप्पा बिना,लगत तलफ सी मोय।
मोखों गरमी  में  मठा , पियें  तसल्ली  होय।।
  
        -एस आर सरल, टीकमगढ़

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14-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'.,बडागांव झांसी (उप्र.)


मसक कलेवा कर गये, हप्पा को वे यार।
परे आमनों ले रये, भारी खूब डकार।।

खावे में नोनों लगो, छके न मन जो यार।
शक्कर चाऊंर दूद सें, भव हप्पा तैयार।।

***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.
बडागांव झांसी (उप्र.)

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*15-*वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़

हप्पा खों गय भूल सब , चावमीन अब खांयं।
घर कौ खाबौ छोडकें , हाट बजारै जांयं।।
***
-वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़

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16-रामगोपाल रैकवार_ टीकमगढ़
रोटी से अट्टी कयें,व पानी सें पप्पा। 
बुंदेली बच्चा सबइ,कयं भात से हप्पा।।
***
-रामगोपाल रैकवार_ टीकमगढ़
  ***         
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17-डां. आर बी पटेल "अनजान ",छतरपुर


माई मोरी मोय तो,भूख लगी है ऐन ।
हप्पा तुरत बनाए दो,पेट भरे से चैन ।        
***
डां. आर बी पटेल "अनजान ",छतरपुर

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*18-*गुलाब सिंह यादव 'भाऊ, लखौरा


गाड़े खो महरी कबै ,पतरो हप्पा आय 
चाऊर मठा की खीर है,फटे हाड़ जुर जाय 

***
-गुलाब सिंह यादव 'भाऊ, लखौरा

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19-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिँला टीकमगढ़


बुन्देली बिन्जन बने,हप्पा गुन की खान।
छुड़ा सुदामा पोटरी,खाँय किशन भगवान।।
***
जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिँला टीकमगढ़
*****
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20-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा

हप्पा दोहा
1-
गुड़ला हप्पा बनत जब,मन कर खातई जाय।
हप्पा भारी रुचत सच,गुड़ और दूध मिलाय।
2-
दार ,कड़ी ,घी सानकर,मुट्ठक शक्कर डार।
पापर ,बरा ,मिलाय जब,हप्पा कलौंजी यार।
3-
बब्बा हप्पा खात जब,नाती पूछत कात।
हप्पइ हप्पा खात तुम ,बब्बा पेट भर जात।
***
-बृजभूषण दुबे "बृज", बकस्वाहा

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21-भरत त्रिपाठी, टीकमगढ़

हप्पा व कडी संग में, बरा सान के खाव।
बुंदेली जौ स्वाद है, कोउ नईं टिक पाव।।
****
-भरत त्रिपाठी, टीकमगढ़
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22-गुणसागर सत्यार्थी,कुण्डेश्वर



*अप्रतियोगी दोहा-*

हप्पा पप्पा की सुरत,बिसरत नहि बिसराय,
गुनसागर बूढे भए,हप्पा अबहु  लुभाय।।
***
*-गुणसागर सत्यार्थी,कुण्डेश्वर*               
*नोट-* श्री सत्यार्थी जी ने यह दोहा मेरी फेसबुक पोस्ट पर कमेन्ट बॉक्स में पोस्ट किया था

🎊 🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊
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   हप्पा
   (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)
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        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
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5 टिप्‍पणियां:

Rajeev Namdeo Rana lidhori ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Rajeev Namdeo Rana lidhori ने कहा…

बहुत बढिया ई बुक है
बधाई

Rajeev Namdeo Rana lidhori ने कहा…

धनयवाद

Unknown ने कहा…

बुन्देली व्यंजन हप्पा पर‌ ई पत्रिका का का सराहनीय क़दम
बुन्देली दिनों दिन हिमालय जैसी ऊंचाईयों को सहज ही छूती रहे। भगवान सिंह लोधी अनुरागी हटा दमोह मप्र

Sanjay Shrivastava ने कहा…

बुंदेली शब्द हप्पा पर आधारित दोहों का सराहनीय ई संकलन । सम्पादक महोदय को बधाई