Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

बापू को शत् शत् नमन- राजीव नामदेव राना लिधौरी, टीकमगढ़


हाइकु कविता- बापू को नमन

याद करता,
आपका बलिदान।
ऋणी भारत।।

श्रद्धा सुमन,
शहीद दिवस पे।
अर्पित करें।।

नमन करे,
अहिंसा के पुजारी।
बारम्बार है।।

जग मानता
बिना हिंसा किये ही।
आपका काम।।
****
© राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

संपादक आकांक्षा पत्रिका

अध्यक्ष मप्र लेखक संघ
टीकमगढ़ (म.प्र.)-472001

मोबाइल-9893520965

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

लघुकथा का भविष्य-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

*आलेख - लघुकथा का सुनहरा भविष्य*

 ( *आलेख- राजीव नामदेव "राना लिधौरी"टीकमगढ़* )  

                लघुकथा की प्रमुख विशेषताओं को हम देखते हैं तो उसमें कथानक, पात्र-योजना, कल्पना, शैली, उपदेशात्मक, संक्षिप्त एवं उद्देश्य जैसी विशेषताओं का होना बहुत जरूरी है। प्रमुख रूप से लघुकथाएँ दो प्रकार की होती हैं पहला ‘दृष्टांतमूलक लघुकथाएँ’ जिसमें हम पूर्व के दृष्टांत देते हैं, इसके अंतर्गत प्राचीन पौराणिक छोटी-छोटी कथाएँ एवं लोककथाएँ भी आ जाती हैं। जैसे कि हम अपने धार्मिक गंथों पुराणों में पढ़ते आ रहे हैं और दूसरी प्रकार की लघुकथाएँ ‘अनुभव मूलक लघुकथाएँ’ होती हैं। ये वे होती हैं हम जो भी अनुभव करते हैं या आसपास उसे घटित होते देखते हैं उन्हें शब्दो के मोती पिरोकर लघुकथाओं के साँचे में ढाल देते हैं। 
                कहानी और लघुकथा में कुछ अंतर भी होता है जैसे लघुकथा का आकार कहानी की तुलना में बहुत छोटा होता है। कहानी में कथानक का आदि, मध्य और अंत होता है उसमें घटनाओं की योजना की जाती है और कथानक में चरम विकास पाया जाता है लेकिन लघुकथा के लिए यह सब अनिवार्य नहीं होता है।
               तो फिर हम लघुकथाएँ किसे कहेगें ? आखिर लघुकथा क्या है? इस संबंध में हम कह सकते हैं कि कभी-कभी छोटी सी घटना या छोटा सा संकेत विस्तार से अधिक प्रभावशाली होता है। लघुकथा का सीधा संबंध कहानी के इसी लघु सांकेतिक स्वरूप से है।
              लघुकथा एक स्वतंत्र विधा है जिसका कहानी से भेद ठीक उसी प्रकार से हम कर सकते है जैसे एक कहानी का एक उपन्यास से। कहानी में सभी तत्वों की योजना की जाती है किन्तु लघुकथा में यह संभव नहीं है वह तो प्राचीन बोध कथाओं के समान है, उसकी प्रमुख विशेषता तो संकेतात्मक, वेधकता और अतिकल्पना है।
            पहली लघुकथा कौन सी है इस पर विभिन्न विद्वानों में मतभेद है सबसे अपने-अपने तर्क है। कुछ विद्वान पद्लाल पुन्नालाल बख्शी जी की *झिलमिल* कहानी को पहली लघुकथा मानते है। बख्शी की ‘झिलमिल’’ उस समय के प्रसिद्ध पत्रिका ‘सरस्वती’ में सन् 1910 में प्रकाशित हुई थी।
वहीं कुछ साहित्यकार सन् 1826 में ‘उदान्त मार्तण्ड’ समाचार पत्र में लघुकथा की रूपाकृति में चुटकुले के प्रकाशन को भी लघुकथा का प्रारम्भ मानते है। यह स्मरणीय बात है कि ‘उदान्त मार्तण्ड’ समाचार पत्र को भारत का सबसे पहला सामाचार पत्र माना जाता है। इस समाचार पत्र से पत्रकारिता की भारत में शुरूआत भी मानी जाती है।
रायपुर (छत्तीसगढ़) से लघुकथा पर शोध कर रही डाॅ. अंजलि शर्मा माधव राव सप्रे जी की कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’’ को पहली लघुकथा मानती हैं।
              सन् 1974 में मेरठ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग ने लघुकथा को स्वतंत्र मौलिक विधा घोषित करके विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम में सबसे पहले भारत में स्थान दिया था।
प्रसिद्ध लधुकथाकार श्री बलराम अग्रवाल जी ने - 
‘‘लघुकथा के दो आवश्यक अवयक ‘कथानक और शैली को माना है, तत्व नहीं। तत्व अपनी चेतना में एक पूर्ण इकाई हैं लघुकथा का मूल तत्व ‘वस्तु’ को जनहिततार्थ सरल, रोचक, रंजक और संप्रेष्य बनाकर प्रस्तुत करने के लिए कथाकार कथानक की रचना कर उसको माध्यम बनाता है। वस्तु लघुकथा की आत्मा है।’’
सुप्रसिद्ध लघुकथाकार डाॅ. सतीश दुवे जी के अनुसार- ‘‘लघुकथा क्षण-विशेष में उपजे भाव, घअना या विचार के तथ्य-बीज की संक्षिप्त फलक पर शब्द की कूची और शिल्प से तराशी गई प्रभावशाली अभिव्यक्ति है। कथा विधा के अंतर्गत सम्पूर्ण जीवन की कहानी जीन के एक खण्ड की और लघुकथा खण्ड के किसी विशेष क्षण की तात्विक अभिव्यक्ति है।’’
वर्तमान में लघुकथा को हिन्दी साहित्य में गौरवपूर्ण उचित स्थान दिलाने में तथा लघुकथा को एक स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित करने में अपना बहुमूल्य साहित्यिक योगदान देने वालो में प्रमुख रूप से डाॅ. बलराम अग्रवाल,डाॅ. सतीश दुबे, कांता राय आदि अनेक लघुकथाकार है। आज तो लधुकथाओं पर अनेक सेमीनार होने लगे हैं। अनेक पत्रिका लघुकथाओं पर केन्द्रित प्रकाशित हो रही है। जबलपुर से ‘लघुकथा अभिव्यक्ति’, रूडकी से ‘अभिराम साहित्यिकी’’ पंजाब से ‘मिन्नी’,आदि अनेक साहित्यिक पत्रिकाएँ केवल लघुकथाओं पर केन्द्रित ही प्रकाशित हो रही है। ‘कथा देश, ‘कथालोक’ आदि पत्रिकाएँ भी बहुतायत में लघुकथाएँ प्रकाशित करती है।
कुछ ‘वार्षिक विशेषांक’ भी लघुकथा पर केन्द्रित विगत अनेक वर्षो से प्राकशित हो रहे है। उनमें प्रमुख रूप से ‘लघुकथा कलश’ (अंक-जुलाई-दिसम्बर 2018) ‘द्वितीय महाविशेषांक’  एवं लधुकथा कलश’ (जुलाई-दिसम्बर 2019) में रचना प्रक्रिया विशेषांक श्री योगराज प्रभाकर जी के संपादन में प्रकाशित हुआ। ‘संरचना-9’ अंक 2016 में कमल चोपड़ा जी के संपादक में प्रकाशित हुआ।
            ‘दृष्टि’ संपादक-श्री अशोक जैन, एवं ‘‘सरस्वती सुमन’’ (देहरादून) श्री आनंद सुमन जी के संपादन में प्रकाशित लघुकथा विशेषांक बहुत महत्वपूर्ण शोधपूर्ण अंक हैं।हर साल दर्जनों लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो रहे हैं। इंटरनेट पर अनेक ब्लाग, ई-पत्रिकाएँ लघुकथा पर बहुत काम बढिया काम कर रहे हैं। जिनमें इंटरनेट पर ‘लघुकथा डाॅट काम’ बहुत वर्षो से निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। 
श्री बलराम जी एवं श्री कम्बोज जी उसे बहुत अच्छे से संचालित करते आ रहे हैं।
                  आदरणीया कांता राय जी भोपाल (म.प्र.) से लघुकथा पर वर्तमान समय में बहुत बढ़िया काम कर रही हैं उन्होंने ‘लघुकथा कोश’ बनाकर कर ढेर सारे लधुकथाकारों को एक बेहतरीन प्लेटफार्म उपलब्ध कराया है अनेक नये लघुकथाकारों का बनाया है उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया हैं। तथा ‘लघुकथा के परिंदे’ फेसबुक पर ग्रुप बनाकर निरंतर सक्रिय बनी हुई हैं लघुकथा पर केन्द्रित एक संस्था ‘लघुकथा केन्द्र’ भोपाल से संचालित कर रही हैं। जिसकी अनेक शाखाएँ देशभर में हैं जिसके माध्यम से लघुकथाओं पर केन्द्रित गोष्ठियाँ निरंतर होती रहती हैं। 
आजकल आनलाइन लघुकथाओं केन्द्रित ‘वेबिनार’,गोष्ठियाँ भी होने लगी है इस प्रकार की गोष्ठियों से एक लाभ तो यह होता है कि इसमें देश व विदेश से अनेक लघुकथाकार, ‘आन लाइन’ आसानी से एक साथ जुड़ जाते हैं चाहे वह वरिष्ठ हो या नवलेखक सभी एक-दूसरे सुनते हैं और अपने-अपने विचारों को प्रकट करते हैं, विमर्श करते हैं।
          लघुकथाओं की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि वर्तमान में लघुकथा का भविष्य बहुत उज्ज्वल और सुनहरा दिखाई दे रहा है।

*आलेख- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’*
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
  अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
 जिलाध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र, टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.) 472001
मोबाइल-9893520965

मंगलवार, 26 जनवरी 2021

गणतंत्र दिवस पर केंद्रित दोहे- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

*दोहे- गणतंत्र दिवस
1
भारत का गणतंत्र है,
समस्त विश्व महान।
बाबा साहब ने दिया,
अनौखा संविधान।।
2
भारत में सबसे बड़ा,
लागू है गणतंत्र।
अपने शासन चयन में,
जनता हुई स्वतंत्र।।
** 26*-1-2021
@ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़
       संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com

सोमवार, 25 जनवरी 2021

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस (बुंदेली दोहा संग्रह) संपादक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

            नेता जी सुभाष चन्द्र बोस 
                  (बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'


नेता जी सुभाष चन्द्र बोस
(बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन दिनांक 25-1-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
################################

अनुक्रमणिका-

1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
2-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
3-अशोक नादान लिधौरा टीकमगढ़ 
4-राजगोस्वामी,दतिया(म.प्र.)
5-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)
6- एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
7-डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़
8-डां. रेणु श्रीवास्तव भोपाल
9-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
10-शील चंद्र जैन शास्त्री, ललितपुर
11- रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु, झांसी
12- रामानन्द पाठक,नैगुवा

13- समीक्षा-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा


1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

*दोहा-नेता जी सुभाष चन्द्र बोस*
*1*
इक अकेले सुभाष ने,
बना लईती फौज।
डरत हते उनसें  सभी,
देखो कितनौ ओज।।
*2*
नेता तो बस एकई,
सुभाष वीर महान।
उनकें साहस कौ सदा, 
माने सकल जहान।।
*3*
नमन करे सबई जने 
उनकौ बारम्बार।
नेता सुभाष जू इते
लेवैं फिर अवतार।।
**25-1-2021
*@ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
       संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.co
(मौलिक एवं स्वरचित)
####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##

2-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा, टीकमगढ़
#सुभाष चन्द्र बोस#
               #1#
सुभाष चन्द्र निज नाम था,
नेताजी कहलाँय।
आजादी लाने सदां,
फरकी उनकी बाँय।।
               #2#
अंग्रेजन के समय में,
बात बनाइ बुलंद।
अफरा तफरी मचा दै,
नारा दव जयहिन्द।।
               #3#
जमानौ रव सुभाष कौ,
साहस सें भरपूर।
गोरा सबरे भग गये,
भारत माँ सें दूर।।
               #4#
धूम मचाबे में सदां,
रव सुभाष कौ नाव।
भारत माँ की गुलामी,
नाश करी भर ताव।।
               #5#
रचना करी सुभाष ने,
आजादी हित फौज।
धूम धड़ाका कर गयी,
कामें आई औज।।

#मौलिक एवम् स्वरचित#
#जयहिन्द सिंह जयहिन्द#
#पलेरा, जिला टीकमगढ़#
#6260886596#
###############

3-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा ,टीकमगढ़ 

   """ """ """ """ """ """ """
💐🎂सुभाष चन्द्र बोस🎂💐
""""" """"" """"" """"" """"" """"" """"
लात मार दी नौकरी,
                     ठेंगे पर सुख चैन।
अलख जगा दी देश मैं,
                   दिन देखा ना रैन।।
              💐🎂💐
देंगे आज़ादी तुम्हें,
                  तुम दो अपना खून।
यही क्रांति उदघोष था,
                  उनमें अलग जुनून।।
               💐🎂💐
गोरन की अड़ियां कपें,
                    थर थर कपै शरीर।
जब सुभाष कौ नाम लव,
                  उठत गुरन मैं पीर।।
               💐🎂💐
फौज बनाई हिन्द की,
                     उनमें भरा जुनून।
पूरी ताकत झौंक दी,
                 खौला सबका खून।।
               💐🎂💐
प्रथम पंक्ति में भी प्रथम,
                    वीर सुभाष महान।
शीश झुकाता है तुम्हें,
                       सारा हिंदुस्तान।।
                💐🎂💐
                  -अशोक नादान लिधौरा टीकमगढ़ 
###जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##

4-राजगोस्वामी,दतिया

1-हिन्द फौज आजाद के 
बने सभाष महान ।
 दुनिया भर मे आपकी 
बनी अमिट पहचान ।।
2- मात पिता की कृपा से 
जग मेभए विख्यात। 
उनको नही बिसारिये 
समय बीत पछतात।।
3- वर्मा बीच सुभाष जी 
बीरो को समझाय । 
पाण प्यारे जिसे नहीं
वह नर आगे आय ।।
4-भले जगत मे तुम नही 
जगत रखेगा याद ।
नारा दे जयहिन्द का 
किया देश आजाद ।।
          -राजगोस्वामी,दतिया(म.प्र.)
######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़####

5-- कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)

श्रद्धा सें लओ जात  है , नेताजी  कौ  नाम ।
श्री सुभाष चंद बोस पै , गर्वित भारत धाम ।।

हिन्द फौज आजाद के , सर्वे - सर्वा  आप ।
बाँके  शूर  सुभाष  कौ , जग में अमर प्रताप ।।


भारत रत्न  सुभाष  के , दिल में हतौ जुनून ।
गोरन कौ अन्याय लख , खौल उठौ तौ खून ।।

जौ-लौं  सूरज  चन्द्रमा , गंगा - सागर धाम ।
तौ-लौं  वीर सुभाष कौ , चमकै जग में नाम ।।

भारत माँ के लाल खों , नहीं  सकेंगे  भूल ।
अर्पित सुभट सुभाष के , श्री चरनन में फूल ।।

-कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर जिला निवाड़ी (मप्र)( मौलिक एवं स्वरचित )
#######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़###

6-एस.आर.'सरल', टीकमगढ़

💐बुन्देली दोहा 💐
       सुभाष चन्द्र  बोस

अँगरेजों के काल थे,
              नेता सुभाष  बोस।
सुनके नाम सुभाष कौ,
              उनके उड गय होश।।

दै नारा जय हिन्द कौ
              भरा जोश  हुन्कार।
अँगरेजन की फौज में,
              मच गव हाहाकार।।

अँगरेजी सत्ता डिगी,
              हिल गइ उनकी चूल।
सुभाष जी बढते चले,
               मिलै फूल कऊँ सूल।।

सुभाष जू के नाम सै
               खौलै तन के खून।
आजादी की जंग मे,
             . कइ दुश्मन दय भून।।

भारत भूमि रई सदा,
              है बीरों की खान।
उनमे एक सुभाष थे
             सच्चे वीर महान।।
***
 मौलिक एवं स्वरचित
 -एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
#######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़#####

7- डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़


दै उमंग सबको गयो,। 
बुड़की केइ रस रंग।।
बुड़की लैन गंगा गए।
मेला भरतै उमंग।।

बुड़की के दिन आ गये।
जुड़ात सबरेइ अंग।।
लगाय तिली तिल बाँटकें।
ठंडअई छोड़त संग।।

लडुअन संग बतियाँ चबा।
लेत उरैयाँ बैठ।।
मेला कौइ मजा लऔ।
बुड़की में कर पैठ।।

बुड़की कड़तन चलै हवा।
पिसी खेत लहरात।।
पंछी झुंडन झुंड बैठकें।
बालें टोरत खात।।

मेला देखन साजना।
गए कुन्डेश्वर धाम।।
बुड़की लै कुंड बूड़कें।
दरशन करे तमाम।।

डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़ (मप्र)
####################

8-डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल

दोहे- विषय' सुभाष '
✍️✍️✍️✍️✍️
1 -भारतियन की शान वे, 
खूबई हतो जोश।
करत नमन उनें सबई , 
गोरन पर कर रोष।। 

2--प्रभावती के लाल वे, 
     बाप जानकी नाथ। 
     हिन्द फौज को नाम दौ, 
     सबखों लै के साथ।
              - डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
#######################
9-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़

जिन्नै जगाइ देश में ,
आजादी की आस।
जुग-जुग वे बिसरैं नईं,
नेता सिरी सुभाष।।                                                       -

-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
#######################
10-शील शास्त्री ,ललितपुर उ0प्र0
1.
हते आजादी के सूरमा 
हम सब के विश्वास ।
नेता जी कत ते जिनें, उनकौ नाव सुभाष ।।

2.
आजादी की अलख लंय पौंच गये रंगून ।
जय हिन्द उदघोष सें ,
भर दव जोश जुनून ।।

3.
आजादी मिलहे तबई 
जब दैहौ तुम खून ।
बस एइ उदघोष सें 
खौल उठे तौ खून ।।

4.
आजादी तौ मिल गयी 
रखियो इये सहेज ।
सब आपस की कलह सें 
करियो खूब परेज ।।

5.
गणतंत्र हो गव सफल
जगे आस विश्वास ।
जय हिन्द बोलौ जबै,
आबें याद सुभाष ।।

शील शास्त्री ,ललितपुर उ0प्र0
##############

11-रामेश्वर प्रसाद गुप्त इंदु.बड़ागांव, झाँसी उप्र.

नेता एक सुभाष थे,जो वीरान में वीर।
गोरन को जिनसे कपो,थर-थर सदा शरीर।।

नारा उनका एक तुम,मुझे दीजिए खून।
आजादी दूंगा तुमे,कय सुभाष कानून।।

रामेश्वर प्रसाद गुप्त इंदु.बड़ागांव झाँसी उप्र.
#############

12-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
कई रत्नों में एक है नेता जी उपनाम ।
तेइस जनवरी  में जन्म ,जन्में बंगाल धाम।।

आजादी के दीवाने थे,जतन करे दिन रात।
गांधी नेहरु से अलग,मेल बिचार न खात।।

आजादी कौ हक हमें , छीनेगे हम लेय।
दूं आजादी खून दो ऊंचा  उनका धेय ।।

विश्वयुद्ध के बाद में, तज सुभाष नेंं देश।
अन्तरध्यान से हो गए ना पाये अवशेष।।

दर्जा ऊंचौ पाउते ना दै पाऔ देश।
कर्जदार हम आज हैं कबहुं न चुकपै शेष ।।

-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
-#########

समीक्षक- 
146-#सोमवारी समीक्षा#दिनाँक///##25.01.2021
#बुन्देली दोहे#5#समीक्षाकार#जयहिन्द सिंह जयहिन्द
*************************
सोमवारी समीक्षा#बिषय/सुभाष चन्द्र बोस#दिनाँक 25.01.2021#जय बुन्देली साहित्य समूह टीकमगढ़#
*************************/
सबसें पैलाँ सरस्वती मैयाकी जय,राम राजा सरकार कीजय,सबयी धरमन के सब देवी देवतन की जय।पटल के सबयी विद्वानन खों नमन।आज कौ बुन्देली दोहन कौ बिषय स्वतंत्रता संग्राम की कड़ी के साहसी नेता जी सुभाष चन्द्र बोस पै आधारित दव गव सबयी कविगणन ने अपने अपने बिचार पटल पै दोहन के रूप में उकेरे।सब जनै धन्यवाद के पात्र हैं।सबने अपने मानस मन सें जितनों अच्छौ बन सकौ रचकें पटल पै डारोऔर नेत जी के दोहन कौ अंबार खड़ौ कर दव।राष्द्रीय लेखन के जबरजस्त उत्साह सेंलिखबे की कला सबके सामने आई।दश प्रेम और आजादी के लाने जो लिख सकत ते ऊसें आँगे कड़ कें दिखा दव।सुभाष नेता जी खों लक्ष्य बनाकेंसार्थक कोशिश संपन्न करी गयी जो सार्थक भयी।लो अब आज की समीक्षा शुरू कर रय।
सबकी कलम कौआकलन अलग अलग बताबे की कोशिश कर रय जैसौ बन पाय सो आप सबके सामें पेश कर रय।
#1#मैने लिखो नेता जी कौ पूरौ निजी नाम श्री सुभाष चन्द्र बोस हतो।जिनकी बाँय आजादी पाबे खों फरकत हतीं।अंग्रेजन के समय आजाद हिन्द फौज कौ गठन करकें अफरा तफरी मचा दयीऔर जयहिन्द नारौ बुलंद करो।अंग्रेजन के भगाबे मेंउनकी तरकीब काम आई।
धूम मचाबे में सदा......भर ताव दोहा मोय खुद अच्छौ लगो।
भाषा कौ आकलन आप सब जनें जानौ।
#2#श्री अशोक कुमार पटसारिया नादान जी.......
आपने लिखोसुभाष जी ने  नौकरी और सुख चैंन छोड़ कें
 रात दिना मैनत करी।तुम हमें खून दो मैं तुमें आजादी दूंगा।अंग्रेज उनकौ नाव सुनकें कप जत ते,नेता जी सबसें महान रय।उनै सबरौ भारत सिर झुकाउत तो।अंतिम दोहा  प्रथम पंक्ति.....हिन्दुस्तान सबसें अच्छौ लगो।
#3# पंं. श्री द्वारका प्रसाद शुक्ल जी.........
आपने खून दो आजादी दूंगा नारे को अपनी भाषा में दुहराव,अंग्रेज हुंकार के माय गद्दी छोड़ गय।
आपकौ दोहा  सुभाष ने पहल करी..........छोड़ गये मैदान भौत अच्छौ लगो।
आप बुन्देली बिल्कुल हट कें लिखत।ऊमें नवीनतम शब्दन कौ उपयोग करो जात।आपखौं शत शत प्रणाम।
#4#श्री राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' जी........
आपने तीन दोहन में समुद्र गगरी में भर दव। नेताजी ने अकेलें औज लगा केंफौज बनाई ती।उनकी महानता संसार में जानी जात,और इच्छा करी कझ उनकौ फिरसें अवतार हो जाय।आपके दोहन में लोच रात।आपका सादर अभिनंदन।
#5#डा. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल.......
आपने लिखो नेता जी कौ जोश गोरन के खिलाफ हतो,उनके पिताजानकी नाथ और माताजी प्रभावती हतीं।नेताजी ने आजाद हिन्द फौज बनाकें गोरा भगाय।
आप बुन्देली की अनूठी शान हैं जिनकी तुलना ना करना ही समझदारी होगी।आपका चरणबंदन करत मोय खुशी होत।
#6#श्री शीलचंद जैंन साहब......
आपने लिखो सुभाष आजादी के सूरमा हते,बे आजादी की तरंग भरकें रंगून पौचे,और जयहिन्द कौ जुनून जगाव।हमें खून दो हम आजादी देंगे सुनकें सबकौ  खून खौल जात तो।आपने कलह सें आजादी बचाबे कौ सँदेशौ भी दव।जयहिन्द बोलतन उनकी खबर आ जात।आपकी भाषा अपने आप में अनूठी है आपकी लेखनी सरल उच्चारण करत।
आपका हार्दिक अभिनंदन।

#7#श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्त इन्दु जी..........
आपने पटल पै दो दोहा डारे।आपने लिखो नेता जी वीरन में वीर हते।जिनसें अंग्रेज कप जात ते,खून वारौ नारौ आपने भी अपने तरह सें डारो।आपकी भाषाई मिठास बुन्देली की है। आपकौ सादर वंदन।
#8#श्री कल्याण दास पोषक जी........
आपने लिखो नेता जी कौ नाम श्रद्धा सेंलव जात।देश खौं उनके शौर्य पर नाज है।आजाद हिन्द फौज के सर्वोसर्वा पर हमें गर्वहै।
बे भारत रत्न हते,गोरन के अत्याचार सें उनकौ खून खौल जात तो।जौलौ सूरज चंदा गंगा सागर रै तौलौ उनकौ नाम अमर रै।उनने नेता जी खों पुष्पाँजली अर्पित करी।
आपकी भाषा अनोखी है आपने कम समय में बुन्देली कौ झंडा गाड़ो।आपके सबयी दोहा एक पै एक हैं।आपखौं सादर नमन।
#9#श्री रामानन्द पाठक जी नंद.........
आपने लिखो नेता जी कौ जनम 
23जनवरी खों बंगाल में भव तो,आपके बिचार नेहरूजी और गाँधी जी सें अलग हते।आजादी हमाव हक हैहम खून दैकें छीनेगे।आपने लिखो आप अचानक गायब भय फिर पतौ नयीं चलो।हम उनकौ कर्ज नयीं चुका सकत।
आपने कम समय में बुन्देली की ऊंचाई खों छू लव।आप मस्त मौला कवि हैं।आपके हर दोहे में चमत्कार है।आपका चरण वंदन।
#10#श्री राज गोस्वामी जी.....
आपने लिखा सुभाष नेताजी महान थे।आपकीँ दुनियां में अमिट छाप है।बे माता पिता की कृपा से जग विख्यात भय।वर्मा में नेता जी ने कहा था जिसे प्रान प्यारे न हों वही आगे आँय।आज आप संसार में नहीं हैं पर जमाना आपको सदा याद रखेगा।आपने जयहिन्द का अमिट नारा दिया।
गोस्वामी जी कौ भाषा चमत्कार अपने आप में अलग शाख ऋखत है।आपको सादर नमन।
#11#श्री एस आर.सरल जी.....
आपने लिखा नेताजी अंग्रेजों के काल हते।उनके नाम सें अंग्रेजों के होश उड़ जात ते।जयहिन्द नारा उन पर होश उड़ाने हेतु काफी था।नेताजी के नाम  से अंग्रेजन के होश उड़ते थे।सुभाष के नाम से खून खौल उठता था। हिंद फौज ने अपर गोरे भूंथ डारेथे।भारय भूमि वीरौं की है उनमें नेता जी एक थे।
आपका भाषा कौशल निखार लिये रहता है।आपकी शुद्धता डा.दुर्गेश दीक्षित जी से मिलती है।आपने कम समय में ऊंचाइयों छूने का साहस करो है।आपका सादर आभिनंदन।

इस प्रकार समय सीमा में 11 कवियन के दोहों ने पटल पर धूम मचाई।सबने सुभाष जी पर ऊंचाइयों को छुवा है।सब की लेखनी ने कमाल किया।सभी जन निरंतर आगे बढध रय। मेरी कामना है कै सब जनें ऊंचाइयों को छूके बिख्यात होंय।
सबको प्रणाम कलम को विराम।
समीक्षक......
जयहिन्द सिंह जयहिन्द ,पलेरा जिला टीकमगढ़
###############

  
           नेता जी सुभाष चन्द्र बोस
(बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन दिनांक 25-1-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001    

        जय हिंदी, जय बुंदेली

      जय श्रीराम, जय हनुमान

################################

बुधवार, 20 जनवरी 2021

तांडव (बुंदेली कविता) राजीव नामदेव राना लिधौरी, टीकमगढ़ (मप्र)

*बुंदेली क्षणिका-दानव कर रय तांडव*
बुंदेली कविता-"दानव कर रय तांडव"
दानव ने
तांडव करौ,
तांडव देखके,
करो नई तुम
 तांडव।
न चले तुमाऔ
जो तांडव।
वे कौरव, 
हम पांडव।।
कजन की दार
जी दिना 
भोरा भंडारी जू ने
कर दव शुरू 
तांडव,
फिर तो चूल से
मिट जैहै 
ये दानव।।
कर रय है 
विकट भूल 
ये मानव।
संस्कृति कौ 
छिन्न भिन्न कर
बन रय 
काय दानव।।
       ***
*@ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com

(मेरी उपरोक्त रचना मौलिक एवं स्वरचित है।)*दिनांक-20-1-2021

शनिवार, 16 जनवरी 2021

कवि सम्मेलन और कवि गोष्ठियां

कवि सम्मेलन और कवि गोष्ठियां सन्-2021 से आगे काव्य पाठ- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र) भारत मोबाइल-9893520965

1-दिनांक-15-1-2021 पृथ्वीपुर (मप्र)
2-दिनांक-24-1-2021टीकमगढ़
अ=भा.बुन्देलखंड साहित्य एवं संस्कृति परिषद् टीकमगढ़ की गणतंत्र दिवस के पूर्व दिवस पर आयोजित कवि गोष्ठी
3-शासकीय जिला पुस्तकालय टीकमगढ़ मप्र में दिनांक 16-2-2021 को बसंत पंचमी पर केंद्रित कवि गोष्ठी हुई
20-3-2021 विश्व खुशहाली दिवस पर
उत्सव भवन, टीकमगढ़

मंगलवार, 12 जनवरी 2021

बुड़की { मकर संक्रांति}(बुंदेली दोहा संकलन)ई बुक संपादक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.)

                           बुड़की (मगर संक्रांति)
                  (बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'


बुड़की (मगर संक्रांति)
(बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
संपादक - राजीव नामदेव 'राना 

प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन दिनांक 11-1-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
################################
अनुक्रमणिका-

1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
2-अभिनन्दन गोइल, इंदौर
3- सियाराम अहिरवार ,टीकमगढ़ 
4-अशोक नादान लिधौरा टीकमगढ़ 
5-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ
6-राजगोस्वामी,दतिया(म.प्र.)
7-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)
8-गुलाब सिंह यादव भाऊ, लखौरा, टीकमगढ़
9- एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
10-डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़
11-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
12-डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवाड़ा
13-डां. रेणु श्रीवास्तव भोपाल
14-वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़ (म.प्र.)
15-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
16- समीक्षा-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा

1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

दोहा- बुडकी
*1*

बुडकी आतइ खूबई,
हो लडुवन कौ दाव।
तिल,गुड के लडुवा बने,
सपर खौर के खाव।।

*2*

बुडकी पे एनई परी,
जाड़े कौ है जोर।
सूरज बदरा में दुकौ,
हवा करत है सोर।।
****
*- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
      टीकमगढ़ (म.प्र.)
मोबाइल-9893520965
(मौलिक एवं स्वरचित)

####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##

2-अभिनन्दन गोइल, इंदौर
सकराँत
----------
सुर्रख ठंडी चल रही, जिय कौ मिटो कलेस।
सूरज  कौ अब हो रहौ, मकर रासि परवेस।।

कोऊ  जावै  नर्मदै  ,   कोऊ   गंगै   जाय।
आस्था सें बुड़की करै,पातक बोझ घटाय।।

लगै उरैंयाँ  कुनकुनी, बुड़की  खुसियाँ लाय ।
तिल-गुर की खुसबू मधुर, भीतर लों महकाय।।

भीतर- बाहर  हरस है, मन  की  उड़ै  पतंग  ।
तिल-गुर सौ संगम करौ, घर-बारन के संग।।

गुर  जैसौ   गुरया  रहौ, अपनौ  पूरौ  देस ।
मिल जुर लो सकराँत में, दै दो प्रेम सँदेस ।।

मौलिक, स्वरचित।       अभिनन्दन गोइल
                                  (बैंगलुरू प्रवास से)
######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##

3- सियाराम अहिरवार ,टीकमगढ़ 

🚘विधा -दोहा 🚘
🎡विषय-बुड़की🎡
          1****
बुड़की लैवे कढ चले ,लगा किवरिया आज ।
रक्षक वे भगवान है ,वही समारें काज ।
           2****
बुड़की कौ मेला लगो ,नगर ओरछा धाम ।
दर्शन कर भगवान के ,बन जाते सब काम ।।
          3****
लुचई पपइयां बाँद कै ,बुड़की लैवे जात ।
बुड़की लैकें भोर सें ,सब मिलजुल कें खात ।।
         4****
लगा तिली कौ लेप जो ,बुड़की लेते लोग ।
निखर जात उनकी त्वचा ,नइं होत चर्म रोग ।।
          5****
बुड़की के दिन सब जनें ,मेला देखन जात ।
लमटेरा की तान पै ,निकर जात है रात ।।
🛺🛺🛺🛺🛺🛺
-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़
#####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##

4-अशोक नादान लिधौरा टीकमगढ़ 

💐बुड़की/सकरांत💐
   """ """ """ """ """ """ """
अशोक पटसारिया नादान
               लिधौरा टीकमगढ़ मप्र।
मोब 9977828410
                      **
आइ बैठ कें सिंह पै,
                  आसुन की सकरांत।
आगें जाने का हुये,
                      कैसी रै भवरांत।।
                      **
गुड़ तिल के लडुआ बनें,
             तिलकम खटकम कांय।
गंगा में बुड़की लुबै,
                   सूर मकर मैं जांय।।
                      **
जो ना सपरै ई दिना,
                   उठत भोर सें खाय।
ना खिचरी कौ दान दै,
                    लंका गदा क्वाय।।
                      **
बुड़की पै मेला भरे,
                  बनें चकाचक माल।
नदी तला पै सपर कें,
                   पाछें करौ धमाल।।
                      **
मिथुन सिंह औ तुला खों,
                   हुइये तनक तनाव।
कुम्भ कष्टकारी बने,
               दान करो फिर खाव।।
                     **
                  -अशोक नादान लिधौरा टीकमगढ़ 
###जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##

5-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़

बुन्देली दोहे  विषय बुड़की

नदी सजीं सजनाम जां,लाल महादे धाम।
बुड़की लै ढारौ उनें,बन जैहें सब काम।।

लाल महादे धाम की, महिमा बड़ी बिसाल।
बुड़की लैबे जात ते,हलके में हर साल।।

टटिया दै कें कड़ चले, करन तीर्थ अस्नान।
तन में सें मन तानबै,लमटेरा की तान।।

बुड़की लैबे बान के,उतरारय हैं झुंड।
कूंड़ादेव हैं दरस खों, और सपरबे कुंड।।

बुड़की लै शिव ढार कें,करो कलेबा ऐंन।
फिर मेला घूमन चले,मन मिलबे बेचैंन।।

    - प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़

    #######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##

6-राजगोस्वामी,दतिया

1-नल नीचे बुढकी लई 
जाडौ पर लौखूब । 
नदी किनारे जाए को
 गर बइ मे गए डूब ।।
2-तन पै मल के तेल को 
ताते पानू नाउत । 
भो लगा भगवान को 
बुढकी पर्व निभाउत ।।
3-खा गंगा की कसम खो 
घर मे बुढकी लेत । 
ठाकुर जी घर मे धरे 
राम राम कह देत ।।
          -राजगोस्वामी,दतिया(म.प्र.)
######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़####
7-- कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)

बुड़की के त्योहार पै , गुर के पाग सुहात ।
हल्के-बड्डे जन सबइ , मनके लडुआ खात ।।

तिल लगात हैं आँग पै , पाछें  बुड़की लेत ।
सूर्यदेव  खों  पूज कें , दान-दक्छिना देत ।।

गडि़या-घुल्ला गुर तिली , खिचरी भोग लगात ।
बाली-बच्चा भौत खुस , बुड़की परब सुहात ।।

नदियन तीरथ धाम पै , भीड़इ-भीड़ दिखात ।
दूर - दूर  सें  आदमी ,  बुड़की  लैवे  आत ।।

बडी़ हुलक सें लेत हैं , बुड़की  कौ  आनन्द ।
हालफूल में रत सबइ ,  ढूँढ़त  परमानन्द ।।

-कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर जिला निवाड़ी (मप्र)( मौलिक एवं स्वरचित )
#######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़###

8-गुलाब सिंह यादव भाऊ, लखौरा, टीकमगढ़


दोहा-बिषय 🌹बुडकी🌹सोमवार '11/1/2021 

1-बुडकी लेबे खो चलो
गंगा जू के घाट
मन की करिवो साधना
करिवो पूजा पाठ

2-बुडकी लेबे खो लिखो
महा पुन्य में नाव
चलो सकारे कड चलै
दाव चूक नई जाव 

3-तिली लगाओ आग खो
करो तिली को दान
गंगा जू बुडकी लगे
ओम न पाबै भान

4-कुंडादेव बुडकी लियो
छोर कलेबा गाँठ
हुश्यारी से जैइवो
जा बंदरन की छाँठ

5-बतिया खुरमा गुलगुला
बनी पपरिया रेन
भात भात लडुवा बने
लुचई ठढुला ऐन
             -गुलाब सिंह यादव भाऊ, लखौरा, टीकमगढ़
######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़####

9-एस.आर.'सरल', टीकमगढ़

बुन्देली   दोहा  बुड़की

बारे  बूढ़े  गाँव  के,  बुड़की  लैबै  जात।
नदी किनारे बैठकें, रुच रुच लड़ुआ खात।।

पत्रा पंडित  बाँच  रय, शुभ  चौदा तारीक।
बूढ़न खौ बुड़की लरम,ज्वानन बुडकी ठीक।।

गुस्सा भर बब्बा कबै, हे मराझ  जू  देव।
सइ सइ बुड़की देव बता, मन कौ सीदौ लेव।।

चाँव दार मैचै हरद,कत पंड़ित लँय आव।
पोथी पै पैसा धरौ,उर बुड़की सुन जाव।।

बब्बा सीदौ लेन गव, भरै  पुटैया आव।
बब्बा नै बुड़की सुनी,मन को भ्रम मिटाव।।
 -एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
#######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़#####

10- डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़


दै उमंग सबको गयो,। 
बुड़की केइ रस रंग।।
बुड़की लैन गंगा गए।
मेला भरतै उमंग।।

बुड़की के दिन आ गये।
जुड़ात सबरेइ अंग।।
लगाय तिली तिल बाँटकें।
ठंडअई छोड़त संग।।

लडुअन संग बतियाँ चबा।
लेत उरैयाँ बैठ।।
मेला कौइ मजा लऔ।
बुड़की में कर पैठ।।

बुड़की कड़तन चलै हवा।
पिसी खेत लहरात।।
पंछी झुंडन झुंड बैठकें।
बालें टोरत खात।।

मेला देखन साजना।
गए कुन्डेश्वर धाम।।
बुड़की लै कुंड बूड़कें।
दरशन करे तमाम।।

डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़ (मप्र)
######################
11-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
#1#
बुड़की लैबै बनत हैं,
मेवा के पकवान।
भरभराँत बे मनाबें,
जी की जैसी शान।
               #2#
पैले दिन की तिलैयाँ,
दूजे बचड़की आय।
तीजे दिन खों कात हैं,
भरभराँत दिन भाय।
               #3#
लगें मकर के सूर जब,
बुड़की बेरा आय।
तिल लेपन तिल दान कर,
हवन करै तिल खाय।
               #4#
बुड़की लैबै जाइये,
कुवा नदी अरु ताल।
ठंड बिगारै ना कछू,
होय ना बाँकौ बाल।
               #5#
बुड़की लेबें सब जनै,
नदी ताल के घाट।
तिली दान करकें हवन,
करें पाप कौ काट।
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
########################
12-डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवाड़ा
बुंदेली दोहा -बुड़की 

रेवा में बुड़की लई ,मगन भओ मन आज। 
माई नर्बदा देखियो ,मेरे सबरे काज। 

मकर की सँकराती भई ,मेला है बरमान 
माई नर्बदा में लईं ,बुड़की भर भर मान। 

भर्ता भटा को बन रयो ,बनी गांकरें गोल। 
बुड़की ले कक्का फिरे ,हो के डोलमडोल।

    -डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवाड़ा
####################
13-डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
दोहा - विषय ' बुड़की' 
     
1. गौरी मेला जा रहीं
   बुड़की को त्योहार 
   लेने हैगो सब कछू
     पैसा नइयां हांथ।
  
2 सूरज जब हो जात है 
   उत्तरायण तब जान
   गुर ओ तिली देखात हैं 
   बुड़की आ गइ मान।

3 लड़ुआ बने बिलात है 
  लुचइ ठरूला खाव
  सबरी गुइयां टेर लो
   बुड़की लेवे जाव।
              - डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
#######################
14-   -वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़ मप्र
विषय - बुड़की
-----------------
जीनै लडुआ खाय हैं,बुड़की खों भरपूर
दूजे दिन बो खात है,अफरा दबा जरूर
बुड़की कौ मेला लगत, भौतइ नौंनौ मोय
भीड़ रतइ ख़ूबइ उतै, चलौ दिखावें तोय
लगा तिली सपरौ सुबह,बुड़की खों सब लोग
ऐसौ जो भी है करत,उयै होत नइ रोग
बुड़की लैवे जात हम,कुंडेश्वर हर साल
निगत निगत पौंचत उतै,अच्छी चलकें चाल
---------------स्वरचित---------------
            -वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़ मप्र
############################
15-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
कविजन बुड़की लै रये,
काव्य गंग में डूब।
सब्दन के लड़ुआ बना,
रुच-रुच खा रय खूब।।

-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
#######################
समीक्षक- 
138-#सोमवारी समीक्षा#दिनाँक///##11.01.21
बिषय/बुड़की

#बुन्देली दोहे#5#समीक्षाकार#
#जयहिन्द सिंह जयहिन्द#
*************************
#लोक बिधा आल्हा में लिखित#

सबसें पैलाँ सुमर शारदा,
फिर गनेश जू ध्यान लगाय।
राम राम दोउ हात जोर कें,
सबयी जनन खों शीष नवाय।।
आज बिषय बुड़की पै सबने,
अपने अपने लिखे बिचार।
अपने अपने अनुभव डारे,
जो बुड़की में करे बिहार।।
दोहा छंद रचे गय भारी,
सब कवियन ने दिल खों खोल।
अपने बिचार धरे जो मन के,
जो दिमाग में रय ते डोल।।
इतयी की बातें इतयी छोड़ दो,
अब आगे कौ करें बखान।
अलग अलग अब सब कवियन के
दोहनं कौ करिये गुनगान।।
कीनै कैसै दोहा रच दय,
कीनै कैसी भरी उड़ान।
सबने लिख दय दोहा अपने,
पूरी लगा लगा कें जान।।
श्री रामलाल द्विवेदी प्राणेश***
हिन्दी की बिन्दी चमकाई,
रामलाल प्राणेश बिचार।
हिन्दी की महिमा महकाई,
मानत है हिन्दी संसार।।

#1#श्रीसियाराम जू अहिरवार**

चले किवरियाँ लगा लगा कें,
बुड़की लयी ओरछा धाम।
तिली लेप बुड़की लैबै सें,
रँय नीरोग निखारै चाम।।
मेला देखन जाबें गलियन,
लमटेरा की तान सुनाँय।
चौथे दोहा चरण आखरी,
में दोहा की ढड़क बनांय।।
भाषा बड़ी अनौखी आई,
जैसें बुड़की लैकें आय।
लिखबे कोर कसर ना छोड़ी,
सबरे कर दय नीक उपाय।।

#2#श्री अशोक कुमार पटसारिया नादान जू***

सिंह सवारी करकें निकरी,
साल नयी की जा संक्राँत।
लड़ुवा बन गये बन्न के,
मेलन ठेलन लगी जमात।।
मिथुन तुला खों नौनी नैंयां,
सिंह राशि पै रहै तनाव।
कुंभ कष्टकारी बुड़की है,
दान करे सें बनें बनाव।।
भाषा चमत्कार है ऐसौ,
जैसें दयी तिली गुर पाग।
पड़बे में रँगदार लगत है,
जैसैं खिलै रंग की फाग।।

#3#श्री राज गोस्वामी जी***

दोहा डारे तीन पटल पै,
तीनौ भौंरा से भन्नाँय।
नल के नेंचें बुड़की लै रय,
नदी जांय खों खूब डराँय।।
ताते पानी सपर निकारें,
कछू जनें बुड़की त्योहार।
गंगा कसम ख़ाय कें घर में,
बुड़की लैकैं करौ बिचार।।
भाषा लगै बांसुरी जैसी,
कै रमतूला देत बजाय।
गड़ियांघुल्ला सी मीठी है,
मौ में पानी भर भर आय।।

#4#जयहिन्द सिंह जयहिन्द***

मेवा के पकवान बनाकें,
भरभराँत फिर खूब मनांय।
पैले दिना तिलैंयाँ दूजे ,
दिन खों बुड़की लैबै जांय।।
लगे मकर के सूर तौ,
बेरा बुड़की की आ जाय।
तिल लेपन तिल दान हवन कर,
अपनौ कछू बिगर ना पाय।।
पाप काटबे बुड़की लेबें,
कुवा तला नदिया के पार।
भाषा करौ समीक्षा मोरी,
सबयी जनन पै धर दव भार।।

#5#श्रीगुलाब सिंह यादव भाऊ***

गंगाघाट चलौ बुड़की खों,
करौ सकारूं पूजा पाठ।
तिली लगाकें दान करौ फिर,
बिन दिन निकरें बन जै ठाट।।
कुण्डेशुर बुड़की लैबै खौं,
बांद कलेवा भय तैयार।
रव हुशयार ध्यान जौ दैयौ,
बँदरन सें रैयौ हुशयार।।
भाँत भाँत की लुचयी पपैंयाँ,
खुरमा लड़ुवा भय तैयार।
अपने भाऊ की भाषा देखी,
भाषत में भारी हुशयार।।

#6#डा.सुशील शर्मा जी***

लयी नर्मदा की बुड़की सो,
तन में आई जान में जान।
मेला है बरमान प्यारौ,
मोरीं भैया लैयौ मान।।
भटा गकैंयाँ ठुकी उतैं सो,
कक्का जू की बन गयी शान।
तीनयी दोहा बनें प्यारे,
जैसें होंय भोर के भान।।
भाषा प्यारी लगै आपकी,
जिसमें भारी बनी मिठास।
भैया शर्मा जी सें हमखों,
ऐसयी सदा  लिखे की आश।।

#7#श्री डी.पी.शुक्ला सरस जी***

पैलै दोहा चरन आखरी,
एक मात्रा दयी बड़ाय।
भरतै की जांगां लिख दैयौ,
भरत जेऊ है सरस उपाय।।
दूजे दोहा चरण दूसरे,
एक मात्रा दयी बड़ाय।
सबै जुड़ाबें अंग कर दियौ,
लगा मिटा केंतुरत लगाय।।
चौथे दोहा पैली लाइन,
चौदा मात्रा गिनियो ज्ञान।
तीजे चरण ऐई दोहा में,
झुण्ड हटाकें डारौ जान।
पंचम दोहा लैन तीसरी,
मात्रा दोष करो तैयार।
बुड़की लैकेंकुण्ड की करिये,
तौ हट जैहै सबरौ भार।।

#8#श्री राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' जी***

लड़ुवन कौ जब दाव बनें,
तिली और गुर लड़ुवा खाव।
जाड़े कौ है दौर सपर कें,
खूब बने खाबे कौ दाव।।
दो दोहा जो रचे आपने,
इनकी रंगत सबखों भाय।
भाषा मीठी और सुहानी,
बुन्देली नयी रंगत लाय।।
सूरज बदरा में छुप जाबै,
हवा चलै सें ठंड जो होय।
आपकी मैनत रंग ल्या रयी,
बीज बुँदेली के नय बोय।।

#9#डा.रेणु श्रीवास्तव जी***

पैलै दोहा में देखौ तौ,
नहीं काफिया करो ध्यान।
बहिन सुदारौ ई दोहा खों,
गल्ती दोहा के दरम्यान।।
बिन पैसा के गोरीकैसैं,
देखें मेला लगो लगाव।
भये उत्तरायण सूरज जब,
बुड़की कौ तब जमौ जमाव।।
गुइयन संगै मेला देखौ,
बन्न बन्न के लड़ुवा खाय।
दोहा तीन तिरंगा बनकें,
देखौ लहर लहर लहराय।।

#10#श्री कल्याण दास पोषक जी***

गुर के पाग बनें बुड़की में,
सबके मन में खूब सुहांय।
दान दक्षिणा मन के लड़ुवा,
जन जन ई बुड़की में खांय।।
गड़ियांघुल्ला खिचरी संगै,
और तिली गुर भोग लगाव।
नदियाँ तीरथ दूर दूर सें,
अब बुड़की कौ जुरो जुराव।।
लेंबें सब आनंद हुलक सें,
हालफूल बरनी ना जाय।
भाषा मीठी और सुहानी,
सबके मन में खूब समाय।।

#11#श्री अभिनंदन कुमार गोईल जू***

सुर्रक चल रयी ठंडी ठंडी,
सूरज मकर राशि खों जाय।
कोऊ जाय नर्मदा गंगा,
लै पातक कौ दोष नसाय।।
उरैंयाँ लगै गुनगुनी नौनी,
तिल गुर मनखों करबै चंग।
इतनी खुशी हुलस रयी मन में,
जैसें उड़ रयी नयी पतंग।।
प्रेम सँदेशौ दै रय भैया,
गुरयारव अब अपनौ देश।
बुन्देली बोली में डारे,
बदल बदल नौनें परिबेश।।

#12#श्री प्रभू दयाल श्रीवास्तव पीयूष जू ***

लाल महादे हैं सजनम के,
बुड़की खों जा रय हर साल।
अगर कृपा हो महादेव की,
जिनकी नैंयाँ कोऊ मिशाल।।
टटिया दैकैं कड़े छेड़ दयी,
बुड़की लमटेरा की तान।
कुण्डेसुर कौ कुण्ड सबयी कौ,
उतयी करौ बुड़की स्नान।।
बुड़की लैलो ढार महादेव,
ठस कें करौ कलेवा ऐन।
भाषा मीठी सरल आपकी,
जैसें मिली बेतवा कैंन।।

#13#श्री एस.आर.सरल जू***

बूड़े बारे बुड़की लैकैं,
नदी किनारें लड़ुवा खाय।
पत्रा बाँच बताबें पंडित,
ज्वानन बुड़की भौत सुहाय।।
सयी सयी बुड़कघ हमें बतादो,
मन कौ सीदौ हमसें लेव।
चांव दर मिरचें हरदी सब,
बोले पंडित हमखों देव।।
बब्बा ने सीदौ दैकें,
पंडित सें सबरे भ्रम मिटवाय।
भाषा सरल सरल की नौनी,
जल्दी सबै समझ में आय।।

#14#श्री वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया जी***

लड़ुवा खाये हैं बुड़की के,
उनखों अफरा चड़ो जरूर।
तुम्हें दिखादें मेला बुड़की,
मेला पै है हमें गरछर।।
बुड़की लेंय रोग ना होबें,
सपर भुन्सराँ तिली लगाय।
कुण्डेशुर जाबें बुड़की खों,
नौनी चाल चलें जो भाय।।
भाषा है दोहन की सुन्दर,
लिखते भैया भौत समार।
मधुर सरल भाषा देखी है,
दोहा लिखे आज जो चार।।
उपसंहार***
समझ समझ में फरक होतसो,
कौनौ गलती जो हो जाय।
अपनौ जान छमा कर दैयौ,
पंचो दैयौ सबयी भुलाय।।
जितनी बनी सबयी लिख डारी,
रचना कोई छूट जो जाय।
भूल चूक सब अपुन समारौ,
आल्हा लिखी मनयी मन गाय।।
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#मौलिक एवम् स्वरचित#
समीक्षक-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा,
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               बुड़की
       (बुंदेली दोहा संकलन)
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन दिनांक 11-1-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965

        जय हिंदी, जय बुंदेली

      जय श्रीराम, जय हनुमान
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सोमवार, 11 जनवरी 2021

स्वामी विवेकानंद जी सादर समर्पित - राजीव नामदेव राना लिधौरी

युवा दिवस पर सादर समर्पित-
स्वामी विवेकानंद जी एवं युवा दिवस
   हाइकु कविता-

1
तुम्हें वंदन,
युवाओं के आदर्श।
विवेकानंद।।
2
युवा दिवस,
तुम्हें है समर्पित।
मनाते हम।।
3
करके योग,
ये सूर्य नमस्कार।
रहें निरोग।।
4
महा पुरुष,
शत् शत् नमन।
विवेकानंद।।
***
©राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
संपादक आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
शिवनगर कालोनी टीकमगढ़ (मप्र)
मोबाइल-9893520965

शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

व्यंग्य- सास बहू और सास- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

*व्यंग्य- ‘‘सास-बहू और साॅस’’*
           व्यंग्य- ‘‘सास-बहू और साॅस’’
                       -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’

            ‘सास’ पहले माँ होती है, फिर बेटे की शादी होते ही घर में बहू के आने पर ‘सास’ बन जाती है और जब सास बनती है अर्थात उसका प्रमोशन हो जाता है, क्योंकि सास अब ‘खास’ होते हुए बाॅस बन जाती है और फिर भारतीय बाॅस अपने खास होने का हमेशा अहसास दिलाता रहता है उसे अपने आधीन कार्य करने वालों पर हुक्म चलाने की बीमारी हो जाती है और जब अति हो जाती है तो बहू सास का ‘लहू’ पीने के लिए या निकालने के लिए कमर कसके तैयार हो जाती है।
              जिस प्रकार आधुनिक तैयार चटनी जो बाज़ार में बनी बनायी बोतलों में मिलती है तथा प्रायः टमाटर एवं मिर्ची से बनती है उसे ‘साॅस’ कहा जाता है। सास और साॅस इन दोनो में बहुत समानतायें हैं। जैसे साॅस खाने में तीखा,चटपटा, मजेदार और स्वादिष्ट लगता है, ठीक वैसे ही  सास भी अपनी बहू को तीखी और तेज लाल मिर्च की तरह लगती है। दोनों का कम से कम उपयोग यदि चटनी की तरह किया जाये तो बहुत अच्छा रहता है ,लेकिन कहीं खासकर बहू ने ज्यादा खा लिया तो मतलब साॅस को चटनी नहीं, सब्जी समझ कर एवं सास को ‘बाॅस’ न मानकर उसे ‘आम’ की तरह चूसने लगी तो बहू का तो हाजमा एवं स्वास्थ्य और कहीं-कहीं पर तो फिगर भी खराब होने की पूरी संभावना रहती है।
             साॅस को अधिक समय तक खुला रखने पर वह खराब होने लगता है ठीक उसी तरह से ‘सास’ को अधिक समय तक खास बनाने पर भी वह पत्नी (बहू) को ‘रास’ नहीं आता है और वह सास उनके गले की फाँस के समान लगती है।
           बहुत ही आश्चर्य की बात यह है कि पति को ये तीनों बहू,सास और साॅस बहुत प्रिय होती है, वह इन तीनों में से किसी एक को भी नहीं छोड़ सकता।
            कुछ बुद्धिमान तीनों से अपना काम बखूबी निकाल लेते है। तो कुछ लोग सास और साॅस को खास जगह पर रखते हैं और बहू को पास रखते है। पति को बहू ‘रानी’ और माँ को बहू ‘नौकरानी’ लगती है,लेकिन वक़्त पड़ने पर यहीं नौकरानी भवानी (दुर्गा) बन जाती है। 
            हाॅलाकि सास-बहू के मामले में बेचारे ‘पति’ नामक प्राणी की ऐसी ‘गति’ हो जाती है कि उसकी फिर ‘मति’ ही काम नहीं करती। समझदार ऐसी स्थिति में दोनों कि बातों को सुनकर भी मौन व्रत धारण कर लेते हंै या वहाँ से खिसक कर अपनी जान बचा लेते हैं और जो खामोश रहना नहीं जानते और सास-बहू में से किसी भी एक का पक्ष लेते तो उनकी हालत ‘धोबी के गधे’ जैसे हो जाती है जो न घर (माँ) का रह जाता है, न घाट (पत्नी) का’ फिर उसका दिल यह गाना गाकर रह जाता है कि-‘एक को मनाओ तो दूजा रूठ जाता है’,पत्नी का पति या माँ का हो बेटा टूट जाता है’ टूट जाता है’।
           सास, बहू और बेटा तीनों एक आॅटो रिक्शा के समान होते है जिसमें तीनों टायरों की आवश्यकता रहती है। यदि एक भी पंचर हो जाए, तो वह आगे नहीं चल पाता हैं। ठीक इसी प्रकार सास, बहू और बेटा तीनों की जिन्दगी में ‘सास’ बहुत ‘खास’ होता है, उसे नज़र अंदाज़ नहीं करना चाहिए। उसके महत्व को समझते हुए उसका प्रयोग सावधानी एवं सही मात्रा में ही करना चाहिए अन्यथा वह आपको बार-बार किसी खासघर (पाखाने) भी पहुँचा सकता है। जिससे आपके हाथ पाँव तक ढ़ीले पड़ सकते है‌।
             खैर हमें सास-बहू और साॅस तीनों का लुत्फ जब तक उठाना चाहिए जब तक ये हमें आसानी से पचनीय एवं उपलब्ध हो सके।
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©-व्यंग्यकार- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
(संपादक-‘आकांक्षा’ पत्रिका)
अध्यक्ष-म.प्र. लेखक संघ,टीकमगढ़
     नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (म.प्र.).472001
  मोबाइल-9893520965