Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

व्यंग्य- सास बहू और सास- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

*व्यंग्य- ‘‘सास-बहू और साॅस’’*
           व्यंग्य- ‘‘सास-बहू और साॅस’’
                       -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’

            ‘सास’ पहले माँ होती है, फिर बेटे की शादी होते ही घर में बहू के आने पर ‘सास’ बन जाती है और जब सास बनती है अर्थात उसका प्रमोशन हो जाता है, क्योंकि सास अब ‘खास’ होते हुए बाॅस बन जाती है और फिर भारतीय बाॅस अपने खास होने का हमेशा अहसास दिलाता रहता है उसे अपने आधीन कार्य करने वालों पर हुक्म चलाने की बीमारी हो जाती है और जब अति हो जाती है तो बहू सास का ‘लहू’ पीने के लिए या निकालने के लिए कमर कसके तैयार हो जाती है।
              जिस प्रकार आधुनिक तैयार चटनी जो बाज़ार में बनी बनायी बोतलों में मिलती है तथा प्रायः टमाटर एवं मिर्ची से बनती है उसे ‘साॅस’ कहा जाता है। सास और साॅस इन दोनो में बहुत समानतायें हैं। जैसे साॅस खाने में तीखा,चटपटा, मजेदार और स्वादिष्ट लगता है, ठीक वैसे ही  सास भी अपनी बहू को तीखी और तेज लाल मिर्च की तरह लगती है। दोनों का कम से कम उपयोग यदि चटनी की तरह किया जाये तो बहुत अच्छा रहता है ,लेकिन कहीं खासकर बहू ने ज्यादा खा लिया तो मतलब साॅस को चटनी नहीं, सब्जी समझ कर एवं सास को ‘बाॅस’ न मानकर उसे ‘आम’ की तरह चूसने लगी तो बहू का तो हाजमा एवं स्वास्थ्य और कहीं-कहीं पर तो फिगर भी खराब होने की पूरी संभावना रहती है।
             साॅस को अधिक समय तक खुला रखने पर वह खराब होने लगता है ठीक उसी तरह से ‘सास’ को अधिक समय तक खास बनाने पर भी वह पत्नी (बहू) को ‘रास’ नहीं आता है और वह सास उनके गले की फाँस के समान लगती है।
           बहुत ही आश्चर्य की बात यह है कि पति को ये तीनों बहू,सास और साॅस बहुत प्रिय होती है, वह इन तीनों में से किसी एक को भी नहीं छोड़ सकता।
            कुछ बुद्धिमान तीनों से अपना काम बखूबी निकाल लेते है। तो कुछ लोग सास और साॅस को खास जगह पर रखते हैं और बहू को पास रखते है। पति को बहू ‘रानी’ और माँ को बहू ‘नौकरानी’ लगती है,लेकिन वक़्त पड़ने पर यहीं नौकरानी भवानी (दुर्गा) बन जाती है। 
            हाॅलाकि सास-बहू के मामले में बेचारे ‘पति’ नामक प्राणी की ऐसी ‘गति’ हो जाती है कि उसकी फिर ‘मति’ ही काम नहीं करती। समझदार ऐसी स्थिति में दोनों कि बातों को सुनकर भी मौन व्रत धारण कर लेते हंै या वहाँ से खिसक कर अपनी जान बचा लेते हैं और जो खामोश रहना नहीं जानते और सास-बहू में से किसी भी एक का पक्ष लेते तो उनकी हालत ‘धोबी के गधे’ जैसे हो जाती है जो न घर (माँ) का रह जाता है, न घाट (पत्नी) का’ फिर उसका दिल यह गाना गाकर रह जाता है कि-‘एक को मनाओ तो दूजा रूठ जाता है’,पत्नी का पति या माँ का हो बेटा टूट जाता है’ टूट जाता है’।
           सास, बहू और बेटा तीनों एक आॅटो रिक्शा के समान होते है जिसमें तीनों टायरों की आवश्यकता रहती है। यदि एक भी पंचर हो जाए, तो वह आगे नहीं चल पाता हैं। ठीक इसी प्रकार सास, बहू और बेटा तीनों की जिन्दगी में ‘सास’ बहुत ‘खास’ होता है, उसे नज़र अंदाज़ नहीं करना चाहिए। उसके महत्व को समझते हुए उसका प्रयोग सावधानी एवं सही मात्रा में ही करना चाहिए अन्यथा वह आपको बार-बार किसी खासघर (पाखाने) भी पहुँचा सकता है। जिससे आपके हाथ पाँव तक ढ़ीले पड़ सकते है‌।
             खैर हमें सास-बहू और साॅस तीनों का लुत्फ जब तक उठाना चाहिए जब तक ये हमें आसानी से पचनीय एवं उपलब्ध हो सके।
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©-व्यंग्यकार- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
(संपादक-‘आकांक्षा’ पत्रिका)
अध्यक्ष-म.प्र. लेखक संघ,टीकमगढ़
     नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (म.प्र.).472001
  मोबाइल-9893520965

1 टिप्पणी:

रामगोपाल रैकवार ने कहा…

बेहतरीन।मजेदार व्यंग्य। बधाई।