Rajeev Namdeo Rana lidhorI

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

लघुकथा का भविष्य-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

*आलेख - लघुकथा का सुनहरा भविष्य*

 ( *आलेख- राजीव नामदेव "राना लिधौरी"टीकमगढ़* )  

                लघुकथा की प्रमुख विशेषताओं को हम देखते हैं तो उसमें कथानक, पात्र-योजना, कल्पना, शैली, उपदेशात्मक, संक्षिप्त एवं उद्देश्य जैसी विशेषताओं का होना बहुत जरूरी है। प्रमुख रूप से लघुकथाएँ दो प्रकार की होती हैं पहला ‘दृष्टांतमूलक लघुकथाएँ’ जिसमें हम पूर्व के दृष्टांत देते हैं, इसके अंतर्गत प्राचीन पौराणिक छोटी-छोटी कथाएँ एवं लोककथाएँ भी आ जाती हैं। जैसे कि हम अपने धार्मिक गंथों पुराणों में पढ़ते आ रहे हैं और दूसरी प्रकार की लघुकथाएँ ‘अनुभव मूलक लघुकथाएँ’ होती हैं। ये वे होती हैं हम जो भी अनुभव करते हैं या आसपास उसे घटित होते देखते हैं उन्हें शब्दो के मोती पिरोकर लघुकथाओं के साँचे में ढाल देते हैं। 
                कहानी और लघुकथा में कुछ अंतर भी होता है जैसे लघुकथा का आकार कहानी की तुलना में बहुत छोटा होता है। कहानी में कथानक का आदि, मध्य और अंत होता है उसमें घटनाओं की योजना की जाती है और कथानक में चरम विकास पाया जाता है लेकिन लघुकथा के लिए यह सब अनिवार्य नहीं होता है।
               तो फिर हम लघुकथाएँ किसे कहेगें ? आखिर लघुकथा क्या है? इस संबंध में हम कह सकते हैं कि कभी-कभी छोटी सी घटना या छोटा सा संकेत विस्तार से अधिक प्रभावशाली होता है। लघुकथा का सीधा संबंध कहानी के इसी लघु सांकेतिक स्वरूप से है।
              लघुकथा एक स्वतंत्र विधा है जिसका कहानी से भेद ठीक उसी प्रकार से हम कर सकते है जैसे एक कहानी का एक उपन्यास से। कहानी में सभी तत्वों की योजना की जाती है किन्तु लघुकथा में यह संभव नहीं है वह तो प्राचीन बोध कथाओं के समान है, उसकी प्रमुख विशेषता तो संकेतात्मक, वेधकता और अतिकल्पना है।
            पहली लघुकथा कौन सी है इस पर विभिन्न विद्वानों में मतभेद है सबसे अपने-अपने तर्क है। कुछ विद्वान पद्लाल पुन्नालाल बख्शी जी की *झिलमिल* कहानी को पहली लघुकथा मानते है। बख्शी की ‘झिलमिल’’ उस समय के प्रसिद्ध पत्रिका ‘सरस्वती’ में सन् 1910 में प्रकाशित हुई थी।
वहीं कुछ साहित्यकार सन् 1826 में ‘उदान्त मार्तण्ड’ समाचार पत्र में लघुकथा की रूपाकृति में चुटकुले के प्रकाशन को भी लघुकथा का प्रारम्भ मानते है। यह स्मरणीय बात है कि ‘उदान्त मार्तण्ड’ समाचार पत्र को भारत का सबसे पहला सामाचार पत्र माना जाता है। इस समाचार पत्र से पत्रकारिता की भारत में शुरूआत भी मानी जाती है।
रायपुर (छत्तीसगढ़) से लघुकथा पर शोध कर रही डाॅ. अंजलि शर्मा माधव राव सप्रे जी की कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’’ को पहली लघुकथा मानती हैं।
              सन् 1974 में मेरठ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग ने लघुकथा को स्वतंत्र मौलिक विधा घोषित करके विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम में सबसे पहले भारत में स्थान दिया था।
प्रसिद्ध लधुकथाकार श्री बलराम अग्रवाल जी ने - 
‘‘लघुकथा के दो आवश्यक अवयक ‘कथानक और शैली को माना है, तत्व नहीं। तत्व अपनी चेतना में एक पूर्ण इकाई हैं लघुकथा का मूल तत्व ‘वस्तु’ को जनहिततार्थ सरल, रोचक, रंजक और संप्रेष्य बनाकर प्रस्तुत करने के लिए कथाकार कथानक की रचना कर उसको माध्यम बनाता है। वस्तु लघुकथा की आत्मा है।’’
सुप्रसिद्ध लघुकथाकार डाॅ. सतीश दुवे जी के अनुसार- ‘‘लघुकथा क्षण-विशेष में उपजे भाव, घअना या विचार के तथ्य-बीज की संक्षिप्त फलक पर शब्द की कूची और शिल्प से तराशी गई प्रभावशाली अभिव्यक्ति है। कथा विधा के अंतर्गत सम्पूर्ण जीवन की कहानी जीन के एक खण्ड की और लघुकथा खण्ड के किसी विशेष क्षण की तात्विक अभिव्यक्ति है।’’
वर्तमान में लघुकथा को हिन्दी साहित्य में गौरवपूर्ण उचित स्थान दिलाने में तथा लघुकथा को एक स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित करने में अपना बहुमूल्य साहित्यिक योगदान देने वालो में प्रमुख रूप से डाॅ. बलराम अग्रवाल,डाॅ. सतीश दुबे, कांता राय आदि अनेक लघुकथाकार है। आज तो लधुकथाओं पर अनेक सेमीनार होने लगे हैं। अनेक पत्रिका लघुकथाओं पर केन्द्रित प्रकाशित हो रही है। जबलपुर से ‘लघुकथा अभिव्यक्ति’, रूडकी से ‘अभिराम साहित्यिकी’’ पंजाब से ‘मिन्नी’,आदि अनेक साहित्यिक पत्रिकाएँ केवल लघुकथाओं पर केन्द्रित ही प्रकाशित हो रही है। ‘कथा देश, ‘कथालोक’ आदि पत्रिकाएँ भी बहुतायत में लघुकथाएँ प्रकाशित करती है।
कुछ ‘वार्षिक विशेषांक’ भी लघुकथा पर केन्द्रित विगत अनेक वर्षो से प्राकशित हो रहे है। उनमें प्रमुख रूप से ‘लघुकथा कलश’ (अंक-जुलाई-दिसम्बर 2018) ‘द्वितीय महाविशेषांक’  एवं लधुकथा कलश’ (जुलाई-दिसम्बर 2019) में रचना प्रक्रिया विशेषांक श्री योगराज प्रभाकर जी के संपादन में प्रकाशित हुआ। ‘संरचना-9’ अंक 2016 में कमल चोपड़ा जी के संपादक में प्रकाशित हुआ।
            ‘दृष्टि’ संपादक-श्री अशोक जैन, एवं ‘‘सरस्वती सुमन’’ (देहरादून) श्री आनंद सुमन जी के संपादन में प्रकाशित लघुकथा विशेषांक बहुत महत्वपूर्ण शोधपूर्ण अंक हैं।हर साल दर्जनों लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो रहे हैं। इंटरनेट पर अनेक ब्लाग, ई-पत्रिकाएँ लघुकथा पर बहुत काम बढिया काम कर रहे हैं। जिनमें इंटरनेट पर ‘लघुकथा डाॅट काम’ बहुत वर्षो से निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। 
श्री बलराम जी एवं श्री कम्बोज जी उसे बहुत अच्छे से संचालित करते आ रहे हैं।
                  आदरणीया कांता राय जी भोपाल (म.प्र.) से लघुकथा पर वर्तमान समय में बहुत बढ़िया काम कर रही हैं उन्होंने ‘लघुकथा कोश’ बनाकर कर ढेर सारे लधुकथाकारों को एक बेहतरीन प्लेटफार्म उपलब्ध कराया है अनेक नये लघुकथाकारों का बनाया है उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया हैं। तथा ‘लघुकथा के परिंदे’ फेसबुक पर ग्रुप बनाकर निरंतर सक्रिय बनी हुई हैं लघुकथा पर केन्द्रित एक संस्था ‘लघुकथा केन्द्र’ भोपाल से संचालित कर रही हैं। जिसकी अनेक शाखाएँ देशभर में हैं जिसके माध्यम से लघुकथाओं पर केन्द्रित गोष्ठियाँ निरंतर होती रहती हैं। 
आजकल आनलाइन लघुकथाओं केन्द्रित ‘वेबिनार’,गोष्ठियाँ भी होने लगी है इस प्रकार की गोष्ठियों से एक लाभ तो यह होता है कि इसमें देश व विदेश से अनेक लघुकथाकार, ‘आन लाइन’ आसानी से एक साथ जुड़ जाते हैं चाहे वह वरिष्ठ हो या नवलेखक सभी एक-दूसरे सुनते हैं और अपने-अपने विचारों को प्रकट करते हैं, विमर्श करते हैं।
          लघुकथाओं की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि वर्तमान में लघुकथा का भविष्य बहुत उज्ज्वल और सुनहरा दिखाई दे रहा है।
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*आलेख- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’*
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
  अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
 जिलाध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र, टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.) 472001
मोबाइल-9893520965

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