बुड़की (मगर संक्रांति)
(बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
संपादक - राजीव नामदेव 'राना
प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशन दिनांक 11-1-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
################################
अनुक्रमणिका-
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
2-अभिनन्दन गोइल, इंदौर
3- सियाराम अहिरवार ,टीकमगढ़
4-अशोक नादान लिधौरा टीकमगढ़
5-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ
6-राजगोस्वामी,दतिया(म.प्र.)
7-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)
8-गुलाब सिंह यादव भाऊ, लखौरा, टीकमगढ़
9- एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
10-डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़
11-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
12-डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवाड़ा
13-डां. रेणु श्रीवास्तव भोपाल
14-वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़ (म.प्र.)
15-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
16- समीक्षा-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
दोहा- बुडकी
*1*
बुडकी आतइ खूबई,
हो लडुवन कौ दाव।
तिल,गुड के लडुवा बने,
सपर खौर के खाव।।
*2*
बुडकी पे एनई परी,
जाड़े कौ है जोर।
सूरज बदरा में दुकौ,
हवा करत है सोर।।
****
*- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
टीकमगढ़ (म.प्र.)
मोबाइल-9893520965
(मौलिक एवं स्वरचित)
####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##
2-अभिनन्दन गोइल, इंदौर
सकराँत
----------
सुर्रख ठंडी चल रही, जिय कौ मिटो कलेस।
सूरज कौ अब हो रहौ, मकर रासि परवेस।।
कोऊ जावै नर्मदै , कोऊ गंगै जाय।
आस्था सें बुड़की करै,पातक बोझ घटाय।।
लगै उरैंयाँ कुनकुनी, बुड़की खुसियाँ लाय ।
तिल-गुर की खुसबू मधुर, भीतर लों महकाय।।
भीतर- बाहर हरस है, मन की उड़ै पतंग ।
तिल-गुर सौ संगम करौ, घर-बारन के संग।।
गुर जैसौ गुरया रहौ, अपनौ पूरौ देस ।
मिल जुर लो सकराँत में, दै दो प्रेम सँदेस ।।
मौलिक, स्वरचित। अभिनन्दन गोइल
(बैंगलुरू प्रवास से)
######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##
3- सियाराम अहिरवार ,टीकमगढ़
🚘विधा -दोहा 🚘
🎡विषय-बुड़की🎡
1****
बुड़की लैवे कढ चले ,लगा किवरिया आज ।
रक्षक वे भगवान है ,वही समारें काज ।
2****
बुड़की कौ मेला लगो ,नगर ओरछा धाम ।
दर्शन कर भगवान के ,बन जाते सब काम ।।
3****
लुचई पपइयां बाँद कै ,बुड़की लैवे जात ।
बुड़की लैकें भोर सें ,सब मिलजुल कें खात ।।
4****
लगा तिली कौ लेप जो ,बुड़की लेते लोग ।
निखर जात उनकी त्वचा ,नइं होत चर्म रोग ।।
5****
बुड़की के दिन सब जनें ,मेला देखन जात ।
लमटेरा की तान पै ,निकर जात है रात ।।
🛺🛺🛺🛺🛺🛺
-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़
#####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##
4-अशोक नादान लिधौरा टीकमगढ़
💐बुड़की/सकरांत💐
""" """ """ """ """ """ """
अशोक पटसारिया नादान
लिधौरा टीकमगढ़ मप्र।
मोब 9977828410
**
आइ बैठ कें सिंह पै,
आसुन की सकरांत।
आगें जाने का हुये,
कैसी रै भवरांत।।
**
गुड़ तिल के लडुआ बनें,
तिलकम खटकम कांय।
गंगा में बुड़की लुबै,
सूर मकर मैं जांय।।
**
जो ना सपरै ई दिना,
उठत भोर सें खाय।
ना खिचरी कौ दान दै,
लंका गदा क्वाय।।
**
बुड़की पै मेला भरे,
बनें चकाचक माल।
नदी तला पै सपर कें,
पाछें करौ धमाल।।
**
मिथुन सिंह औ तुला खों,
हुइये तनक तनाव।
कुम्भ कष्टकारी बने,
दान करो फिर खाव।।
**
-अशोक नादान लिधौरा टीकमगढ़
###जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##
5-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
बुन्देली दोहे विषय बुड़की
नदी सजीं सजनाम जां,लाल महादे धाम।
बुड़की लै ढारौ उनें,बन जैहें सब काम।।
लाल महादे धाम की, महिमा बड़ी बिसाल।
बुड़की लैबे जात ते,हलके में हर साल।।
टटिया दै कें कड़ चले, करन तीर्थ अस्नान।
तन में सें मन तानबै,लमटेरा की तान।।
बुड़की लैबे बान के,उतरारय हैं झुंड।
कूंड़ादेव हैं दरस खों, और सपरबे कुंड।।
बुड़की लै शिव ढार कें,करो कलेबा ऐंन।
फिर मेला घूमन चले,मन मिलबे बेचैंन।।
- प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
#######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##
6-राजगोस्वामी,दतिया
1-नल नीचे बुढकी लई
जाडौ पर लौखूब ।
नदी किनारे जाए को
गर बइ मे गए डूब ।।
2-तन पै मल के तेल को
ताते पानू नाउत ।
भो लगा भगवान को
बुढकी पर्व निभाउत ।।
3-खा गंगा की कसम खो
घर मे बुढकी लेत ।
ठाकुर जी घर मे धरे
राम राम कह देत ।।
-राजगोस्वामी,दतिया(म.प्र.)
######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़####
7-- कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)
बुड़की के त्योहार पै , गुर के पाग सुहात ।
हल्के-बड्डे जन सबइ , मनके लडुआ खात ।।
तिल लगात हैं आँग पै , पाछें बुड़की लेत ।
सूर्यदेव खों पूज कें , दान-दक्छिना देत ।।
गडि़या-घुल्ला गुर तिली , खिचरी भोग लगात ।
बाली-बच्चा भौत खुस , बुड़की परब सुहात ।।
नदियन तीरथ धाम पै , भीड़इ-भीड़ दिखात ।
दूर - दूर सें आदमी , बुड़की लैवे आत ।।
बडी़ हुलक सें लेत हैं , बुड़की कौ आनन्द ।
हालफूल में रत सबइ , ढूँढ़त परमानन्द ।।
-कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर जिला निवाड़ी (मप्र)( मौलिक एवं स्वरचित )
#######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़###
8-गुलाब सिंह यादव भाऊ, लखौरा, टीकमगढ़
दोहा-बिषय 🌹बुडकी🌹सोमवार '11/1/2021
1-बुडकी लेबे खो चलो
गंगा जू के घाट
मन की करिवो साधना
करिवो पूजा पाठ
2-बुडकी लेबे खो लिखो
महा पुन्य में नाव
चलो सकारे कड चलै
दाव चूक नई जाव
3-तिली लगाओ आग खो
करो तिली को दान
गंगा जू बुडकी लगे
ओम न पाबै भान
4-कुंडादेव बुडकी लियो
छोर कलेबा गाँठ
हुश्यारी से जैइवो
जा बंदरन की छाँठ
5-बतिया खुरमा गुलगुला
बनी पपरिया रेन
भात भात लडुवा बने
लुचई ठढुला ऐन
-गुलाब सिंह यादव भाऊ, लखौरा, टीकमगढ़
######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़####
9-एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
बुन्देली दोहा बुड़की
बारे बूढ़े गाँव के, बुड़की लैबै जात।
नदी किनारे बैठकें, रुच रुच लड़ुआ खात।।
पत्रा पंडित बाँच रय, शुभ चौदा तारीक।
बूढ़न खौ बुड़की लरम,ज्वानन बुडकी ठीक।।
गुस्सा भर बब्बा कबै, हे मराझ जू देव।
सइ सइ बुड़की देव बता, मन कौ सीदौ लेव।।
चाँव दार मैचै हरद,कत पंड़ित लँय आव।
पोथी पै पैसा धरौ,उर बुड़की सुन जाव।।
बब्बा सीदौ लेन गव, भरै पुटैया आव।
बब्बा नै बुड़की सुनी,मन को भ्रम मिटाव।।
-एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
#######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़#####
10- डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़
दै उमंग सबको गयो,।
बुड़की केइ रस रंग।।
बुड़की लैन गंगा गए।
मेला भरतै उमंग।।
बुड़की के दिन आ गये।
जुड़ात सबरेइ अंग।।
लगाय तिली तिल बाँटकें।
ठंडअई छोड़त संग।।
लडुअन संग बतियाँ चबा।
लेत उरैयाँ बैठ।।
मेला कौइ मजा लऔ।
बुड़की में कर पैठ।।
बुड़की कड़तन चलै हवा।
पिसी खेत लहरात।।
पंछी झुंडन झुंड बैठकें।
बालें टोरत खात।।
मेला देखन साजना।
गए कुन्डेश्वर धाम।।
बुड़की लै कुंड बूड़कें।
दरशन करे तमाम।।
डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़ (मप्र)
######################
11-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
#1#
बुड़की लैबै बनत हैं,
मेवा के पकवान।
भरभराँत बे मनाबें,
जी की जैसी शान।
#2#
पैले दिन की तिलैयाँ,
दूजे बचड़की आय।
तीजे दिन खों कात हैं,
भरभराँत दिन भाय।
#3#
लगें मकर के सूर जब,
बुड़की बेरा आय।
तिल लेपन तिल दान कर,
हवन करै तिल खाय।
#4#
बुड़की लैबै जाइये,
कुवा नदी अरु ताल।
ठंड बिगारै ना कछू,
होय ना बाँकौ बाल।
#5#
बुड़की लेबें सब जनै,
नदी ताल के घाट।
तिली दान करकें हवन,
करें पाप कौ काट।
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
########################
12-डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवाड़ा
बुंदेली दोहा -बुड़की
रेवा में बुड़की लई ,मगन भओ मन आज।
माई नर्बदा देखियो ,मेरे सबरे काज।
मकर की सँकराती भई ,मेला है बरमान
माई नर्बदा में लईं ,बुड़की भर भर मान।
भर्ता भटा को बन रयो ,बनी गांकरें गोल।
बुड़की ले कक्का फिरे ,हो के डोलमडोल।
-डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवाड़ा
####################
13-डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
दोहा - विषय ' बुड़की'
1. गौरी मेला जा रहीं
बुड़की को त्योहार
लेने हैगो सब कछू
पैसा नइयां हांथ।
2 सूरज जब हो जात है
उत्तरायण तब जान
गुर ओ तिली देखात हैं
बुड़की आ गइ मान।
3 लड़ुआ बने बिलात है
लुचइ ठरूला खाव
सबरी गुइयां टेर लो
बुड़की लेवे जाव।
- डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
#######################
14- -वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़ मप्र
विषय - बुड़की
-----------------
जीनै लडुआ खाय हैं,बुड़की खों भरपूर
दूजे दिन बो खात है,अफरा दबा जरूर
बुड़की कौ मेला लगत, भौतइ नौंनौ मोय
भीड़ रतइ ख़ूबइ उतै, चलौ दिखावें तोय
लगा तिली सपरौ सुबह,बुड़की खों सब लोग
ऐसौ जो भी है करत,उयै होत नइ रोग
बुड़की लैवे जात हम,कुंडेश्वर हर साल
निगत निगत पौंचत उतै,अच्छी चलकें चाल
---------------स्वरचित---------------
-वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़ मप्र
############################
15-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
कविजन बुड़की लै रये,
काव्य गंग में डूब।
सब्दन के लड़ुआ बना,
रुच-रुच खा रय खूब।।
-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
#######################
समीक्षक-
138-#सोमवारी समीक्षा#दिनाँक///##11.01.21
बिषय/बुड़की
#बुन्देली दोहे#5#समीक्षाकार#
#जयहिन्द सिंह जयहिन्द#
*************************
#लोक बिधा आल्हा में लिखित#
सबसें पैलाँ सुमर शारदा,
फिर गनेश जू ध्यान लगाय।
राम राम दोउ हात जोर कें,
सबयी जनन खों शीष नवाय।।
आज बिषय बुड़की पै सबने,
अपने अपने लिखे बिचार।
अपने अपने अनुभव डारे,
जो बुड़की में करे बिहार।।
दोहा छंद रचे गय भारी,
सब कवियन ने दिल खों खोल।
अपने बिचार धरे जो मन के,
जो दिमाग में रय ते डोल।।
इतयी की बातें इतयी छोड़ दो,
अब आगे कौ करें बखान।
अलग अलग अब सब कवियन के
दोहनं कौ करिये गुनगान।।
कीनै कैसै दोहा रच दय,
कीनै कैसी भरी उड़ान।
सबने लिख दय दोहा अपने,
पूरी लगा लगा कें जान।।
श्री रामलाल द्विवेदी प्राणेश***
हिन्दी की बिन्दी चमकाई,
रामलाल प्राणेश बिचार।
हिन्दी की महिमा महकाई,
मानत है हिन्दी संसार।।
#1#श्रीसियाराम जू अहिरवार**
चले किवरियाँ लगा लगा कें,
बुड़की लयी ओरछा धाम।
तिली लेप बुड़की लैबै सें,
रँय नीरोग निखारै चाम।।
मेला देखन जाबें गलियन,
लमटेरा की तान सुनाँय।
चौथे दोहा चरण आखरी,
में दोहा की ढड़क बनांय।।
भाषा बड़ी अनौखी आई,
जैसें बुड़की लैकें आय।
लिखबे कोर कसर ना छोड़ी,
सबरे कर दय नीक उपाय।।
#2#श्री अशोक कुमार पटसारिया नादान जू***
सिंह सवारी करकें निकरी,
साल नयी की जा संक्राँत।
लड़ुवा बन गये बन्न के,
मेलन ठेलन लगी जमात।।
मिथुन तुला खों नौनी नैंयां,
सिंह राशि पै रहै तनाव।
कुंभ कष्टकारी बुड़की है,
दान करे सें बनें बनाव।।
भाषा चमत्कार है ऐसौ,
जैसें दयी तिली गुर पाग।
पड़बे में रँगदार लगत है,
जैसैं खिलै रंग की फाग।।
#3#श्री राज गोस्वामी जी***
दोहा डारे तीन पटल पै,
तीनौ भौंरा से भन्नाँय।
नल के नेंचें बुड़की लै रय,
नदी जांय खों खूब डराँय।।
ताते पानी सपर निकारें,
कछू जनें बुड़की त्योहार।
गंगा कसम ख़ाय कें घर में,
बुड़की लैकैं करौ बिचार।।
भाषा लगै बांसुरी जैसी,
कै रमतूला देत बजाय।
गड़ियांघुल्ला सी मीठी है,
मौ में पानी भर भर आय।।
#4#जयहिन्द सिंह जयहिन्द***
मेवा के पकवान बनाकें,
भरभराँत फिर खूब मनांय।
पैले दिना तिलैंयाँ दूजे ,
दिन खों बुड़की लैबै जांय।।
लगे मकर के सूर तौ,
बेरा बुड़की की आ जाय।
तिल लेपन तिल दान हवन कर,
अपनौ कछू बिगर ना पाय।।
पाप काटबे बुड़की लेबें,
कुवा तला नदिया के पार।
भाषा करौ समीक्षा मोरी,
सबयी जनन पै धर दव भार।।
#5#श्रीगुलाब सिंह यादव भाऊ***
गंगाघाट चलौ बुड़की खों,
करौ सकारूं पूजा पाठ।
तिली लगाकें दान करौ फिर,
बिन दिन निकरें बन जै ठाट।।
कुण्डेशुर बुड़की लैबै खौं,
बांद कलेवा भय तैयार।
रव हुशयार ध्यान जौ दैयौ,
बँदरन सें रैयौ हुशयार।।
भाँत भाँत की लुचयी पपैंयाँ,
खुरमा लड़ुवा भय तैयार।
अपने भाऊ की भाषा देखी,
भाषत में भारी हुशयार।।
#6#डा.सुशील शर्मा जी***
लयी नर्मदा की बुड़की सो,
तन में आई जान में जान।
मेला है बरमान प्यारौ,
मोरीं भैया लैयौ मान।।
भटा गकैंयाँ ठुकी उतैं सो,
कक्का जू की बन गयी शान।
तीनयी दोहा बनें प्यारे,
जैसें होंय भोर के भान।।
भाषा प्यारी लगै आपकी,
जिसमें भारी बनी मिठास।
भैया शर्मा जी सें हमखों,
ऐसयी सदा लिखे की आश।।
#7#श्री डी.पी.शुक्ला सरस जी***
पैलै दोहा चरन आखरी,
एक मात्रा दयी बड़ाय।
भरतै की जांगां लिख दैयौ,
भरत जेऊ है सरस उपाय।।
दूजे दोहा चरण दूसरे,
एक मात्रा दयी बड़ाय।
सबै जुड़ाबें अंग कर दियौ,
लगा मिटा केंतुरत लगाय।।
चौथे दोहा पैली लाइन,
चौदा मात्रा गिनियो ज्ञान।
तीजे चरण ऐई दोहा में,
झुण्ड हटाकें डारौ जान।
पंचम दोहा लैन तीसरी,
मात्रा दोष करो तैयार।
बुड़की लैकेंकुण्ड की करिये,
तौ हट जैहै सबरौ भार।।
#8#श्री राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' जी***
लड़ुवन कौ जब दाव बनें,
तिली और गुर लड़ुवा खाव।
जाड़े कौ है दौर सपर कें,
खूब बने खाबे कौ दाव।।
दो दोहा जो रचे आपने,
इनकी रंगत सबखों भाय।
भाषा मीठी और सुहानी,
बुन्देली नयी रंगत लाय।।
सूरज बदरा में छुप जाबै,
हवा चलै सें ठंड जो होय।
आपकी मैनत रंग ल्या रयी,
बीज बुँदेली के नय बोय।।
#9#डा.रेणु श्रीवास्तव जी***
पैलै दोहा में देखौ तौ,
नहीं काफिया करो ध्यान।
बहिन सुदारौ ई दोहा खों,
गल्ती दोहा के दरम्यान।।
बिन पैसा के गोरीकैसैं,
देखें मेला लगो लगाव।
भये उत्तरायण सूरज जब,
बुड़की कौ तब जमौ जमाव।।
गुइयन संगै मेला देखौ,
बन्न बन्न के लड़ुवा खाय।
दोहा तीन तिरंगा बनकें,
देखौ लहर लहर लहराय।।
#10#श्री कल्याण दास पोषक जी***
गुर के पाग बनें बुड़की में,
सबके मन में खूब सुहांय।
दान दक्षिणा मन के लड़ुवा,
जन जन ई बुड़की में खांय।।
गड़ियांघुल्ला खिचरी संगै,
और तिली गुर भोग लगाव।
नदियाँ तीरथ दूर दूर सें,
अब बुड़की कौ जुरो जुराव।।
लेंबें सब आनंद हुलक सें,
हालफूल बरनी ना जाय।
भाषा मीठी और सुहानी,
सबके मन में खूब समाय।।
#11#श्री अभिनंदन कुमार गोईल जू***
सुर्रक चल रयी ठंडी ठंडी,
सूरज मकर राशि खों जाय।
कोऊ जाय नर्मदा गंगा,
लै पातक कौ दोष नसाय।।
उरैंयाँ लगै गुनगुनी नौनी,
तिल गुर मनखों करबै चंग।
इतनी खुशी हुलस रयी मन में,
जैसें उड़ रयी नयी पतंग।।
प्रेम सँदेशौ दै रय भैया,
गुरयारव अब अपनौ देश।
बुन्देली बोली में डारे,
बदल बदल नौनें परिबेश।।
#12#श्री प्रभू दयाल श्रीवास्तव पीयूष जू ***
लाल महादे हैं सजनम के,
बुड़की खों जा रय हर साल।
अगर कृपा हो महादेव की,
जिनकी नैंयाँ कोऊ मिशाल।।
टटिया दैकैं कड़े छेड़ दयी,
बुड़की लमटेरा की तान।
कुण्डेसुर कौ कुण्ड सबयी कौ,
उतयी करौ बुड़की स्नान।।
बुड़की लैलो ढार महादेव,
ठस कें करौ कलेवा ऐन।
भाषा मीठी सरल आपकी,
जैसें मिली बेतवा कैंन।।
#13#श्री एस.आर.सरल जू***
बूड़े बारे बुड़की लैकैं,
नदी किनारें लड़ुवा खाय।
पत्रा बाँच बताबें पंडित,
ज्वानन बुड़की भौत सुहाय।।
सयी सयी बुड़कघ हमें बतादो,
मन कौ सीदौ हमसें लेव।
चांव दर मिरचें हरदी सब,
बोले पंडित हमखों देव।।
बब्बा ने सीदौ दैकें,
पंडित सें सबरे भ्रम मिटवाय।
भाषा सरल सरल की नौनी,
जल्दी सबै समझ में आय।।
#14#श्री वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया जी***
लड़ुवा खाये हैं बुड़की के,
उनखों अफरा चड़ो जरूर।
तुम्हें दिखादें मेला बुड़की,
मेला पै है हमें गरछर।।
बुड़की लेंय रोग ना होबें,
सपर भुन्सराँ तिली लगाय।
कुण्डेशुर जाबें बुड़की खों,
नौनी चाल चलें जो भाय।।
भाषा है दोहन की सुन्दर,
लिखते भैया भौत समार।
मधुर सरल भाषा देखी है,
दोहा लिखे आज जो चार।।
उपसंहार***
समझ समझ में फरक होतसो,
कौनौ गलती जो हो जाय।
अपनौ जान छमा कर दैयौ,
पंचो दैयौ सबयी भुलाय।।
जितनी बनी सबयी लिख डारी,
रचना कोई छूट जो जाय।
भूल चूक सब अपुन समारौ,
आल्हा लिखी मनयी मन गाय।।
#####
#मौलिक एवम् स्वरचित#
समीक्षक-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा,
####################
बुड़की
(बुंदेली दोहा संकलन)
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशन दिनांक 11-1-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
जय श्रीराम, जय हनुमान
################################
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें