Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शनिवार, 26 सितंबर 2015

‘अशोकनगर ‘कवि सम्मेलन’ की झलकियाँ- Date-25-9-2015

दिनांक-25.9.2015 वर्धमान आडोटोरियम
‘अशोकनगर ‘कवि सम्मेलन’ की झलकियाँ-
.चित्र 1,2- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी,टीकमगढ़,
 चित्र 3- पर श्री राकेश वर्मा ‘हेरत’,भोपाल
 चित्र 4- डाॅ.राधा वल्लभव आचार्य भोपाल,
चित्र 5-कवयत्रि महिर्षी सोनी, अशोकनगर
चित्र 6-रामचरण हयारण ‘दर्द’ झाँसी
चित्र 7-आमंत्रित कवियों की सूची






rajeev namdeo rana lidhori

बुधवार, 23 सितंबर 2015

कौशलपुरी कालोनी टीकमगढ़ में देर रात के चला ‘कवि सम्मेलन’-23-9-2015




rajeev namdeo rana lidhoriDATE-23-9-2015
कौशलपुरी कालोनी  में  देर रात के चला ‘कवि सम्मेलन’-
    टीकमगढ़/ कौशलपुरी कालोनी में कोशलपुरी गणेशउत्सव समिति द्वारा ‘राष्ट्रीय कवि संगम’ के वेनर तले लगातार चैथे वर्ष कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें कवियों ने देर रात तक रसवर्षा की। श्रोत्राओ ने भरपूर आनंद लिया कव सम्मेलन की शुरूआत करते हुए कवि रामेष्वर राय परदेशी ने कविता पढ़ी-पर्यावरण प्रदूषण फैलो मचरई हाहाकर,बडी हैरानी है न पीवे पानी है।
बुन्देली कवि राजेन्द्र विदुआ ने बुन्देली कविता सुनाकर सबको खूब हँसाया-
हम खुद खै न खान दे जिने आदत खावे की, वो कैसे मान जै। ऐसे जो देश नई सुधरने।।
युवा कवि राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने गणेश वंदन करते हुए खुद पर व्यंग्य कविता सुनाकर सबको खूब ठहाके लगवाये-पत्नी बोली गणेश जी देखने जाना है,
मैंने कहा-कहीं और जाने की क्या तुक है    
        अपनी फिगर  तो बैरी लुक है।।

पन्ना से पधारे ओज के कवि डाॅ.सुरेश सौरभ ने ओज की कविता पढ़ी-
नाग आतंक के तू चाहे जितना पटकने फन।
तेरे विष दंत को तोड़े बिना हम रह नहीं सकते।।
कवियत्रि डाॅ.अनीता गोस्वामी ने छत्तसीगढ़ी कविता पढ़ी-
गौरी के लाला शंकर के दुलारा,
 गणेश नाव के, जेखर बेटी हावे माता संतोषी नाव के।।
उमाशंकर मिश्र ने श्रृंगार की कविता पढ़ी-
था प्यार अगर मुझसे इक बार तो कह देते।
 जज़बात कभी दिल के मेरे यार तो कह देते।।
लालजी सहाय श्रीवास्तव ने पढ़ा-साँप पाले हो आस्तीनों में,दिल मिला ने की बात करते हो।।
ग्राम लखोरा के कवि गुलाब सिंह भाऊ ने बुंदेली कविता पढ़ी-
काऊ की एक फोरवें की सोचो तो
                उकी  दोई फुट जात,चुटिया तो भगवान पकरे उते नई छोटत।।
चाँद मोहम्मद आखिर ने ग़ज़ल पढ़ी- हिन्दू हुआ न पैदा मुस्लमान हुआ है। पैदा हुआ जमीं पे तो इंसान हुआ है।  अमिताभ गोस्वामी ने रचना पढ़ी-नहीं है आरजू हमको जहाँ मेंबादशाहत की। तमन्ना है वतन केवास्ते जश्ने शहादत की।। बशीर फराज ने ग़ज़ल पढ़ी-गोरी के लाल रिद्दी सिदृदी के हो  तुम पति। जय जय हो गण पति हो गणपति तुम्हारी जय हो गणपति।। संजय खरे ने बिेटिया पर मार्मिक कविता पढ़ी-जन्म मोहे न दइयो जन्म मोहे न दइयो। कोख में बैठी बोले माँ पीड़ा मत सहियो।।
इस अवसर पर कवि सम्मेलन के आयोजक सूर्यप्रकाश खरे ने सभी का आभार प्रदर्शन किया
शिव प्रताप सिंह,प.गगन विदुआ,आशीष चैरसिया,मनोज रजक,कार्तिक समारी,नातीराजा मनीष नामदेव आदि द्वारा कवियों का सम्मान किया गया।
- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
 जिला अध्यक्ष-म.प्र.लेखक संघ,टीकमगढ़












रविवार, 20 सितंबर 2015

जवाहर नवोदय विद्यालय में हुआ हिन्दी पखवाड़े में ‘कवि सम्मेलन’ 19-9-2015





rajeev namdeo rana lidhoriजवाहर नवोदय विद्यालय में हुआ हिन्दी पखवाड़े में ‘कवि सम्मेलन’
      (कवियों का हुआ शाल श्री फल से  सम्मान)

 
.कुण्डेश्वऱ// जवाहर नवोदय विद्यालय कुण्डेश्वर में ‘हिन्दी पखवाड़े’ के अंतर्गत ‘कवि सम्मेलन’ आयोजित किया गया अध्यक्षता डाॅ.दुर्गेश दीक्षित ने की तथा मुख्य अतिथि प.हरिविष्णु अवस्थी ने की इस अवसर पर जवाहर नवोदय विद्यालय द्वारा कवियों का शाल व श्री फल से सम्मान किया गया।
सर्वप्रथम राज्यपाल द्वारा सम्मानित कवि राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने हिन्दी पर कविता सुनायी-
   हमारी शान है हिन्दी, हमारी जान है,
  हमारे देश की यही, तो पहचान है हिन्दी।
    हम हिन्दू है हमारा देश, हिन्दुस्तान है हिन्दी।।
युवा कवि संजय यादव ‘शलभ’ ने कविता पढ़ी-आज के हालात पर अश्रु हम बहाते है।
देश के लिए जो मिटे वो वीर कहलाते है।।
रामगोपाल रैकवार ने गीत पढ़ा- ढूँढ़ मत छाँव कोई, ढूँढ़ मत ठाँव कोई,
अभी लम्बा है सफ़र, अभी लम्बा है सफ़र।।
डाॅ.दुर्गेश दीक्षित, ने कविता पढ़ी-सबसे नोनी है हिन्दी, विश्व के भाल की है बिन्दी।।
लाल जी सहाय श्रीवास्तव ‘लाल’ ने पढा-बदरा बरसों देश हमारे,सूखा पाँव पसारे।।
इनके अलावा डाॅ.दुर्गेश दीक्षित, पं.हरिविष्णु अवस्थी,डाॅ.रूखसाना सिद्धीकी, डाॅ.डी.पी.खरे, वीरेन्द्र बहादुर खरे, अजीत श्रीवास्तव,रामस्वरूप नायक,एन.डी.सोनी आदि ने भी कविताएँ सुनायी। गोष्ठी सफल संचालन संजय यादव ‘शलभ’’ ने किया एवं सभी का आभार प्रदर्शन नवोदय विद्यालय के प्राचार्य क.े के. कटियार ने किया।
 
 रपट- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’,
     अध्यक्ष म.प्र.लेखक संघ,टीकमगढ़,
      मोबाइल-9893520965,   

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

पुस्तक समीक्षा- ‘राना का नज़राना (ग़ज़ल संग्रह)-समीक्षक:- उमा शंकर मिश्र ‘तन्हा’,टीकमगढ़


पुस्तक समीक्षा- ‘राना का नज़राना (ग़ज़ल संग्रह)
                    ग़ज़लकार:- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
                    प्रकाशन:- म.प्र. लेखक संघ,टीकमगढ़
                    समीक्षक:- उमा शंकर मिश्र ‘तन्हा’,टीकमगढ़
                    प्रकाशन वर्षः- 2015
                    मूल्यः-100रु.                पेज-120
    ‘‘राना का नज़राना’’काबिले तारीफ़ है- उमाशंकर मिश्र ‘तन्हा’
        राना का नज़राना’ नगर के प्रख्यात कवि व साहित्यकार,कई पुरस्कारों से सम्मानित और देश कार की कई भाषाओं की  पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ की चैथी किताब है इससे पहले इनके तीन संग्रह ‘अर्चना’,रजनीगंधा,और ‘नौनी लगे बुन्देली’ प्रकाशित हो चुके है। अलग-अलग विधाओं में क़लम का जादू बिखेरने वाले ‘राना लिधौरी’ की इस 120 पेजों किताब उनकी 112 ग़ज़लों का संग्रह है।
        ‘राना’ ने अपने इस मजनुमा-ए-ग़ज़ल में जि़न्दगी एवं समाज के लगभग प्रत्येक पहलू पर अशआर नुमायाँ किये हैं। हालांकि राना जी ने खुद लिखा है कि इन्होंने अपनी ग़ज़लों में मेहबूबा,माशूका, आदि से दूर रखकर आज के हालात पर तथा तमाम विषयों पर क़लम चलाने की कोशिश की है परन्तु,उन्होंने जिस नज़ाकत से प्यार, मुहब्बत, जुदाई, वफ़ा और बेवफ़ाई पर अपने जज़बात प्रकट किये हैं वो भी कम क़ाबिले-तारीफ़ नहीं है।
कुछ बानगियाँ देखिए-    चाँदनी रात में ये हुश्न निखर जाने दो।
            आज तो जु़ल्फ़ को शानों मे बिखर जाने दो।।
    और-          भूल जाओगे अजी सारा जहाँ।
             उससे नैना तो लड़ाकर देखिए।।
ये शेर किसी उस्ताद रूमानी शायर के शेरों से कम वज़न नहीं रखते।
उनके टूटे हुए दिल के ज़ज़्बात पर भी गौर फरमाये- प्यार का अपने चाहा था हमने सिला।
                           बेबफ़ाई का तोहफा दिया आपने।।
कहीं प्यार की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए अपना बड़ा दिल प्रदर्शित करते हुए उनका क्षमा भाव भी देखिए-
                     बद्दुआयें न देंगे कभी आपको।
                    भूल जायेगे जो भी किया आपने।।
            अन्य मसलांे पर तो उनकी क़ल़म की जादूगरी देखते ही बनती है। चाहे देशभक्ति हो या कौमी एकता, मज़हब की बात हो या हौंसलों की, सभी विषयों पर रानाजी ने बेहतरीन शे’र पेश किये है।  अन्य मसलों पर लिखे गये कुछ यादगार शेर पेश हंै-
            देश की है शान,मेरी जान तिरंगा। न हिन्दु,न इसाई,मुस्लमान तिरंगा।।  
            देश रक्षा के लिए खून बहाने की जगह। हम लहू दंगे फसादों में बहा देते है।।
            राना ने खुद बड़ी सफगोई से बडप्पन दर्शाते हुए स्वीकार किया है कि उन्हें बहर का ज्ञान नहीं है और मात्राओं का दोष न देखा जाये उन्होेंने बड़ी ही कुशलता से अपनी भावनाओं को सरल व सहज ढंग से व्यक्त किया है। अतः हम इस पहलू पर बात नहीं करेगे।
        राना अपने एक रोग के बारे में खुद लिखते है कि- नहीं मैं बच सका इस संक्रमण से।
                                 मैं भी कवि हँू रोग लगा है छपास का।।
उनकी शायरी कल्पनाओं पर नहीं यथार्थ पर आधारित हैं। जैसे-किया राना ने जो महसूस अब तक।
                               क़लम उस पर चलाना चाहता हँू।।
फिर लिखते हैं- छोड़ दो ऐसी मधुर इक तान ‘राना’ तुम यहाँं।
            सब मचल जायेंगे उसको गुनगुनाने के लिए।।
जिन्हें सुनकर उनके अशआर गुनगुनाने का मन अनायास ही करने लगता है।
राना जी मजहबी दायरे से बाहर निकल कर ईश्वर को एक और सर्वव्यापी मानते हुए इंसानियत का पैग़ाम देते है-        पड़ा क्यों तू मज़हब के चक्कर में नादाँ।
        अगर तू है इंसां तो इक जात होगी।।
    और-        न गिरजा,न मस्जि़द,न मंदिर मिलेगा।
            न ढँूडों उसे दिल के अंदर मिलेगा।।
इसी तरह-     वो तो हर शै में मौजू़द है। कहते है कि पता चाहिए।।
एक मंझे हुए व्यंग्यकार होने के नाते राना भला राजनीति और नेताओं को कहाँ बख्सने वाले थे-
        इनका कोई ईमान हे,न कोई धरम है।
        जनता को कैसे ये तो उल्लू बनाये है।।
और ज़्यादा तीखापन लाते हुए कहते  है-     हिन्दू औ मुसलमां का लड़ाते है ये नेता।
                         वोटों के लिए दंगे कराते है ये नेता।।
        इस संग्रह में जो चमकते हुए शेर कहे जा सकते है वो लगते है जैसे दुष्यंत कुमार से प्रेरित होकर लिखे गये हो-     जि़न्दगी भी मोम सेी गलने लगी हैै।
                 जब से ज़हरीली हवा चलने लगी है।।
और -    भूख से बेहाल बच्चा,रो रहा था सड़क पर।
    माँ उसे कैसे खिलाती,रोटियाँ सच्चई की।।
उनकी दो ग़ज़लें ‘चर्चित हो गये और ‘मन देखा है’ हिन्दी ग़ज़ल की ओर बढ़ते उनके क़दमों की परिचायक है।
    राना ने अपनी ग़ज़लों में कुछ अटपटे और अंग्रेजी शब्दों से भी परहेज नहीं किया है जैसे-हड्डी,लात,ठूँठ,सड़ा गधा,चैक,एडवांस, फ्यूज़ बल्व आदि। ये लफ़्ज़ उनके शेरों के और भी रोचक बनाते है।
बनगी देखिए- हराम की कमाई का फल मिलता सड़ा है।
    और         ‘राह में तेरी खड़ा इक ठँूठ सा,
            अब बहारों का नज़ारा ढूँडता हँॅू।।
अंग्रेजी शब्दों का भी बेहतरीन उपयोग देखिए- आदर्श विवाह सिफ़्र दिखावा है दोस्तों।
                        चैक भी एडवांस में मगाने लगे  है लोग।।
इनकी क़लम में हास्य भी भला कहाँ अछूता रहता- इस उम्र में ये जवानी की मत उमंगे रख।
                           फ्यूज़ बल्व में मौजूद बिजलियाँ नहीं होती ।।
क्रिकेट खिलाड़ी व खेल पे्रमी होने के नाते एक शेर में उनकी ये पीड़ा भी देखिए-
                    हम विदेशी कोच रखकर भी यहाँ।
                    मैंच फिर भी जीत क्यों पाते नहीं।।
        कुल मिलाकर मुख़्तलिफ़ किस्म के मोतियों को पिरोये ‘राना का नज़राना’ एक बेहतरीन माला बन पड़ी है। हाॅलाकि ग़ज़ल शायर का लहू माँगती है जिसके लिए बेहद गहरा अध्ययन और इस्लाह की आवश्यकता होती है फिर भी जानिब राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ का ये प्रथम प्रयास काबिले तारीफ़ है। उनके निरंतर सीखने की लगन उन्हें अदबी बुलन्दियों पर ले जायेगी। उन्हीं के शब्दों में हम सबकी दुआये है-
                        राना तू खूब लिखता चल,अपने कलाम को।
                        शायरी में लोग भी तुमको शुमार देखेंगें।।
              
            888        समीक्षक-     - उमाशंकर मिश्र ‘तन्हा’
                            सेकेटरी-तंज़ीम बज़्म-ए-अदब’
                            टीकमगढ़ (म.प्र.)

व्यग्ंय-‘‘सेल्फी सनकी जी और छपास का रोग’’ -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’

'अट्टहास' लखनऊ से प्रकाशित  व्यंग्य की मासिेक पत्रिका में अगस्त 2015 में प्रकाशित मेरा एक नया व्यंग्य 'सेल्फी सनकी जी'
व्यग्ंय-‘‘सेल्फी सनकी जी और छपास का रोग’’
            -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
       

            व्यंग्य का शीर्षक पढ़कर चांैक गए! कवि ऐसे ही उटपटांग नाम रखते किसी का ‘सनकी’ नाम नही सुना है क्या आपने? पागल तो सुना होगा, सूंड, ऊँट,उजबक, चिरकुट, भोंपू, आदि कवियों के साथ तो मैंने एक ही मंच पर कवि सम्मेलनों में कविताएँ सुनायी हैं। आज युवा पीढ़ी इन्टनेट के जाल में पूरी तरह से फंस चुकी है। पहले कम्प्यूटर फिर लेपटाॅप और अब आई पेड, स्मार्ट मोबाइल में वे सभी सुविधाएँ मौजूद है जो पहले लेपटाप और कम्प्यूटर में हुआ करती थीं। इनके मोह जाल में युवा पीढ़ी तेजी से फँसती जा रही हैं आज भारत में युवाओं के साथ-साथ कुछ बुड़ढ़ों में भी फिर से जवानी चढ़ने लगी हैं। वे भी अपनी जेब में मंँहगा मोबाइल लेकर घूमने लगे है। भले ही उनको ढंग से चलाना आता न हो। मोबाइल इस युग का सबसे उपयोगी साधन और सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला सबसे सस्ता,सरल और सुगम साधन है। इसका उपयोग सही दिशा में किया जाये तो बेहतर है वर्ना इसके गलत उपयोग से पैसें और समय की बर्बादी के सिवा और कुछ नहीं मिलता है।
            आज युवाओं में तेजी से ‘सेल्फी’ अर्थात स्वयं की फोटो अपने द्वारा खींचना फिर उसे फेसबुक,टिबटर,आरकुट,हाइक व वाट्सएप आदि पर सेल्फी डालने की सनक सवार हो गयी है। सनक इतनी तेजी से उस गति से फैल रही है जिस गति से भारत में जनसंख्या और महँगाई बढ़ रही है। यह एक नशा की भाँति लोगों के दिमाग में चढ़ रहा हैं अनेक लोगों की जाने भी जा चुकी है।
            युवाओं को ‘सेल्फी’ लेने का शौक करना तो कुछ उचित लगता हैं, किन्तु कुछ बुढ्डों को भी अपनी सेल्फी लेने और उसे फेसबुक आदि में डालने का शौक उम्र के साठ साल बाद जब सरकार भी उन्हें रिटायर कर देती है, तब चर्राया है।  वो भी अपनी उम्र के अंतिम पडाव में मोबाइल पर अपने इश्क का इज़हार कर रहे है। ऐसा लगता है कि इनकी हरकतों को देखते हुए इनके दिमाग ने भी रिटायमेन्ट ले ली है उन्हें भी अब ‘चढ़़ी जवानी बुढ़ढे नू’ की तर्ज पर अपनी सेल्फी लेकर मोबाइल पर अपलोड करने की सनक इस कदर सवार है, कि वे ये नहीं देखते कि क्या लिख रहे है और क्या पोस्ट कर रहे है। बस अपना थोबडा फेसबुक पर देखने और दिखाने की सनक सवार है। यदि आप गौर से देखेगें तो जिससे दूसरों के प्रति घोर ईष्र्या जलन स्पष्ट दिखाई देती है तथा स्वयं को स्यमंभू सर्वश्रेष्ठ कहने की गलतफहमी ठीक उसी तरह जिस प्रकार  होती है जैसे एक‘ कुएँ के मेंढक’ को होती हैं।
            दिन भर में कम से कम आठ-दस सेल्फी तो ये सेल्फी सनकी जी महाराज डाल ही देते है। इसी कारण लोग उन्हें ‘सेल्फी सनकी जी’ तो कुछ लोग इन्हें सनकी महाराज भी कहते है, ये इतने बडे वाले है कि अपनी सेल्फी खंींचकर उस पर स्वयं ही कमेंटस डाल देते और कमेंटस भी रोमन लिपि क्योंकि, हिन्दी तो इनको आती नहीं है,इसलिए हिन्दी के कमेंटस को अंगे्रजी रोमन लिख देते है और ये भी नहीं देखते है कि क्या लिख गया है, लिखना कुछ चाहते है और लिख कुछ जाता हैं, लोग कुछ और ही समझ जाते है। ये कभी-कभी ऐसी स्पेलिंग लिख देते है ठीक पढ़नेवाला शर्म से पानी-पानी हो जाता है और कुछ उसे पढकर इनके फे्रंड इतने हँसते है कि इतना तो ‘लाफिंग क्लब’ के सदस्य भी न हँसते होगे। आज जहाँ 16 मेगापिक्सल के कैमरे वाले मोबाइल आने लगे है, वहीं ये सेल्फी सनकी जी बहुत पुराना बाबा आदम के जमाने का मोबाइल जिसका कैमरा मात्र 1.44 मेगा पिक्सल का है। उससे अपनी सेल्फी लेकर उलटी सीधी जैसे भी हो फेसबुक पर डाल देते है और अपनी आत्म प्रंशसा रूपी झूट के सागर में गोते लगाते रहते है और स्वयं को ठीक उस गधे के समान बु़िद्धमान समझने लगते है जो गर्मियों में घास खाते हुए पीछे देखता है तो समझता है कि मेेैंने तो आज पूरा मैदान ही खाकर साफ कर दिया है,लेकिन कहते है कि मूर्खो की कभी भी,कहीं भी कमी नहीं है एक ढूँढ़ों तो हजार मिलते है।
    एकबार तो इन्होंने गजब ही कर दिया। इसी दुलभर््ा मोबाइल से एक धुधंली सी सेल्फी फोटो खींची और उस फोटो को उल्टी ही पोस्ट कर दी, जिसमें उनका सिर नीचे और टाँगें ऊपर थी अब ये इतने तो ज्ञानी थे नहीं कि तुरंत वह पोस्ट हटा देते और फोटो सीधी करके पोस्ट कर देते। वह फोटो अभी भी इनके फेसबुक की दुर्लभ सेल्फी में शुमार है जिसे देख कर लोग अपने-अपने अर्थ निकलाते है और एक दूसरे से विचार विमर्श भी करते है, कुछ तर्क वितर्क भी करते हैं ,कुछ लोग तुंरत ही अपने कमंेट कर देते और कुछ लोग बाद में अपने मित्रों क साथ बैठकर इस फोटो पर एक विचार गोष्ठी ही कर लेते हैं। अरे! भाई, साहित्यकार की फोटो है कोई मामूली आदमी की नहीं, वह भी उसकी जो अपने आप को अतंर्राष्ट्रीय कवि मानने की बहुत कड़ी गलतफहमी में जी रहा है। एक कवि का मानना है कि- क्यों न  इस पर शोध कार्य किया जाए और किसी अभागे मेट्रिक पास कवि को डाॅक्टर लिखने का स्वयंभू अधिकार मिल जाए।    
            अक्सर असली कवि अपनी लिखी कविताएँ ही अपने पोस्ट पर डालता है, लेकिन ये सेल्फी सनकी जी स्वयं को बहुत बड़ा कवि मानते है, लेकिन इनके दिमाग में कविताएँ ठीक नेताओं की तरह ही पाँच साल में आती है, हाँ कभी-कभी अपवाद स्वरूप मध्यावर्ती चुनाव की तरह एकाध वार एक नई कविता का जन्म हो जाता है, वर्ना कविताएँ चार-पाँच साल में एकाध नई कविता ही लिख पाते है। इनकी गिनी चुनी घिसी पिटी वे ही चार-पाँच कविताएँ जो कवि गोष्ठियों व कवि सम्मेलनों में गोल्डनजुबली मना चुकी है तथा कुछ डायमण्ड जुबली की ओर अग्रसर है, इनकी ये कविताएँ सुन-सुनकर लोगो के कान तक पक गए है, लेकिन इन्हंे सुनाने में शर्म नहीं आती,क्योंकि इनके दिमाग में नई कविता नहीं आती है। एक वार एक कवि गोष्ठी में संचालक महोदय ने जैसे ही इनका नाम काव्यपाठ हेतु पुकारा तो शताब्दी ट्रेन की गति से बगल में बैठे एक कवि ने तुरंत कहा कि भइया वो वाली कविता मत सुनाना, बेचारे इतने झेंप गए कि फिर दौवारा जिस कवि गोष्ठी में वे महोदय उपस्थित रहते है वे उस कविता को भूलकर भी नहीं सुनाते है, लेकिन है तो वहीं कुल चार छः जमा पूंजी कि । जब भी कोई नया मेहमान कवि शहर में आता है तो वे पुनः उसी कविता को यह कह कर सुनाते देते है कि ये कविता उन्हें समर्पित कर रहे है।
             ऐसे में इन्होंने ने एक उपाय सोचा और सेल्फी डालने के साथ-साथ किसी भी फिल्म के गाने की दो लाइने लिख देते है, इतना ही नहीं, ये सेल्फी सनकी जी अपनी फोटो के साथ-साथ अपनी पत्नी की भी फोटो डालते है और उस पर ऐसे-ऐसे कमेंन्टस व पुराने फिल्मों के गीतों की लाइन स्वयं लिख देते है कि पढ़ने वाले को शर्म आ जाती है यहाँ यह शोध का विषय हो सकता है कि उनकी पत्नी को इनकी हरकतों की सनक कि भनक है अथवा नहीं।
            उस पर भी इनकी सेल्फी डालने की सनक पूरी नही होती, तो ये अपनी पुराने जमाने की लगभग पचास साल पुरानी फोटो भी आज 2015 सन् में रिलीज हुई फिल्म के गानों की लाइन लिखकर डाल देते है और मजे की बात तो यह है कि इन्हें ये होश ही नहीं रहता है कि यह फोटो वे कितनी वार पहले पोस्ट कर चुके है और ये गाना कितनी वार लिख चुके है लिख तो ऐसे देते है जैसे इन्होने की वह गाना स्वयं रचा हो या उस गीतकार की आत्मा इनमें आ गयी हो।
            सनकी सेल्फी जी को अपनी फोटो खिंचवाने का इस कदर शौक है कि एक बार ये एक कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे जिसमें साहित्यकारों को मंच पर बुलाकर सम्मानित किया जा रहा था मंच थोड़ी ऊँचाई पर था और ये महाशय नीचे से संचालन कर रहे थे फिर भी इनकी आत्मा फोटो खिंचवाने के लिए बार बार मंच पर चढ़कर फोटो खिंचवाने के लिए तडफ उठती थी। जब इन्होंने कम से कम दस वार यही ऊपर नीचे जाने की प्रक्रिया अपनाई तथा इसी भागने की जल्दी में इनके धक्के से माइक नीचे गिर गया तोे सामने दर्शकदीर्घा में बैठे एक सज्जन ने कहा भाई साहब माइक दूसरे को दे दो, तुम वहीं खडे रहो फोटो खिंचवाते रहना।
                                                    शर्म तो इनको कभी आती नहीं शर्म तो सुनने, देखने और कहने वाले को  आती  है अब हम इनके वारे में क्या कहे,यदि आप इनसे एक बार मिल लेगे, तो इन्हें कभी नहीं भूल सकते, कसम से ऐसे चिपकू आपने दूसरे न देखे होगे। मैं तो इन पर एक उपन्यास तक लिख सकता हूँ,लेकिन यहाँ तो एक व्यंग्य लिखने की कोशिश कर रहा था। कहाँ तक सफल रहा यह आपके हँसने और मुस्कुराने पर निर्भर करता है।                    वैसे तो प्रत्येक कवि व साहित्यकार को छपास का रोग होता है, किन्तु कुछ टुच्चे कवियों में इसके कीटाणु अत्याधिक मात्रा में पाये जाते हैं। ऐसे छपास रोगी कवि प्रायः हर शहर हर गाँव में आपको दो-चार की संख्या में तो देखने को मिल ही जाऐंगे। ऐसे ही हमारे शहर के एक कवि महोदय को इस ‘छपास रोग’ इस कदर लग गया कि पूछों मत।
            वे हर कवि गोष्ठी में आ ही जाते थे बस किसी प्रकार से पता भर चल जाये और कवि सम्मेलन में तो जुगाड़ कर धंस ही जाते थे और फ्री सेवा में अपने स्थानीय शहर तो शहर ,बाहर तक के शहरों तक में अपने वाहन सहित निःशुल्क उपलब्ध हो जाते थे। उसके बाद उन्हें छपास कीडा़ काटने लगता था और दूसरे दिन उन्हें अपना नाम समाचार पत्रों में पढ़ने का बेहद जनून पागलपन की हद तक सवार था। कभी-कभी तो कवि सम्मेलन चल ही रहा होता है और ये अपनी कविता सुनाकर उसे तुरंत ही अपने मोबाइल से केवल सामने वाले के हाथ पाँव जोड़ के अपनी फोटो खिंचवाकर उसे फेसबुक पर उधर बैठे बैठे केवल अपनी महिमा पंिडत करते हुए फोटो डाल देते है मानों पूरे कवि सम्मेलन में केवल इन्होंने ही कविता पढ़ी हों, और तो और कार्यक्रम में कौन मुख्य अतिथि है किसने,अध्यक्षता की है इससे इनको कोई मतबल नहीं, उनका नाम तक नहीं देते है और बेचारे आयोजक-संयोजक महोदय का भी आभार प्रकट करना तो दूर उसका नाम तक नहीं देते है केवल आत्म प्रशंसा अपनी कविता की चार लाइने लिख देते है और पूरे समाचार की .......कर देते है।
            कुल जमा पंूजी की अपनी वे ही दो-चार घिसीपपिटी कविता घुमाफिरा कर सुनाते और उन्हीं में से दो लाइने समाचार पत्रों में छपने को दे देते। ये वही लाइनें होती थीं जो गोल्डन जुबली,डायमंड जुबली मना चुकी होती है। अन्य साथी कवि तो ठीक है,समाचार लिखनेवाले पत्रकारों तक को वे लाइने कंठस्थ याद हो गयी थी, इसीलिए वे इनकी लाइने यदि उस दिन पेपर में जगह खाली रही तो छाप देते थे, वर्ना उनकी लाइनों को केवल पढ़कर की उन्हें प्रणाम करके मुक्ति दे देते थे और उनके स्थान पर दूसरे कवि की कविता की लाइनें छाप देते है।
            जिस दिन समाचार में उनकी लाइने आ गयी तब तो ठीक है वर्ना उस आयोजक व संयोजक की शामत आ जाती थी ये महोदय सुबह पेपर पढ़ते ही जब अपनी लाइनें नहीं देखते तो आगबबूला हो जाते और तुरंत मोबाइल से कवि गोष्ठी के संयोजक महोदय को ऐसे फटकारते जैसे इन्होंने उस कार्यक्रम के लिए मानों बहुत कुछ चंदा दिया हो वो भी सपने में क्योकि हकीकत में तो ये ‘चमड़ी जाये पर दमडी न जाये’ उक्ति के परम भक्त हैं मजाल है कि कोई इनसे कार्यक्रम के नाम से एक रूपए भी प्राप्त कर सकें। हाँ,कुछ संस्थाओं की वार्षिक सदस्यता शुल्क देने पर इन्हें बहुत अधिक अंदरूनी कष्ट पहँुचता था ,लेकिन ये देना उनकी मजबूरी थी वर्ना वार्षिक कार्यक्रम व कवि सम्मेलन इनकी दाल न गलती और फिर मंच पर आना असंभव हो जाता है।
            हाँ, तो हम बात रहे थे जिस दिन इनकी कवि महोदय की कविताओं की लाइने नहीं छपती, ये तुरंत संयोजक को मोबाइल पर हिला देते, मानों कोई भूकंप आ गया हो। संयोजक महोदय बेचारे समझाते-समझाते थक जाते कि हमने तो आपकी लाइनें दी थीं, अब पेपरवालों ने नहीं छापा तो हम क्या करे,हो सकता है उस दिन कोई विज्ञापन मिल गया होगा और उसे छाप दिया होगा या पेपर में ज्यादा जगह नहीं होगी तो उन्होंने समाचार काटकर अपने हिसाब से कर दिया, लेकिन ‘अनपढ़ तो समझाया जा सकता है, लेकिन एक पढे लिखे मूर्ख को नहीं’ वे इतने बडे वाले मूर्ख है कि वे किसी बात को मानने को तैयार नहीं होते।
            एक बार ऐसे ही एक दिन एक कवि सम्मेलन का समाचार छपा जिसमें इनकी लाइनें अदृश्य थीं, फिर क्या था इन्होंने तुरंत मुझे मोबाइल किया, क्योंकि कार्यक्रम मेरे संयोजन में हुआ था। न हेलो न हाय, सीधे धंाय-धांय और सीधे वाकयुद्ध शुरू, तुम पक्षपात करते हो,अपने को बहुत बड़ा समझते हो तुमने मेरा नाम क्यों नहीं दिया?,ऐसे ही एक अन्य छापस रोगी ने तो मुझे धमकी तक दे दी कि इस बार कुछ भी हो जाये तुम्हें संस्था का अध्यक्ष नहीं बनने देंगें। हमने भी कह दिया कि तुम भगवान नहीं आम सहमति से चुनाव होगा, अब ये बात अलग है कि इनके अलावा विरोध करने वाला दूसरा कोई नहीं है,सभी संतुष्ट है, लेकिन कहते है कि ‘खिसयाई बिल्ली खंभा ही नोंचे’ और अब यह बिल्ली बूढ़ी हो गयी है और इसकेे नाखून ही बूढ़े हो गये है लेकिन फिर भी ऐंठ नहीं गयी है। कहते है ‘रस्सी जल गयी पर ऐंठ नहीं गई’ उक्ति को चरितार्थ कर रहे है।
                आज का पेपर पढ़ा हम समझ गए कि आज फिर पागलपन का छापास दौरा पड़ा हैं फिर भी हमने अनजान होते हुए कहा-नहीं, क्यों क्या बात है। वे बोले आज फिर केवल हमारी लाइने नहीं छपी है सबकी छपी है और नाम तक गोल है। (हमनेे मन ही मन में कहा कि -तुम खुद गोल हो अर्थात शून्य हो,जीरो हो, लेकिन समझते अपने को हीरो है।) मैंने उन्हें अपनी सफाई देते हुए कहा कि भई मैंने तो सभी कि लाइने दी थी, विस्वास नहीं हो तो मेरी रिपोर्ट की फोटो कापी देख लो,बात तो उनकी समझ में आ गयी कि पेपरवाले ने ही नहीं छापा है, लेकिन फिर वहीं जुमला दोहराया कि इस प्रमुख पेपर में मेरा नाम नहीं आता है। मैंने कहा भई दूसरे पेपरों में तो तुम्हारा नाम है दस पेपरों में से किसी एकाद में नहीं आया तो क्या गजब हो गया।
                वे फिर तैश मे आकर बोले- अरे वाह ! कैसे नहीं हो गया। यह पेपर शहर में सबसे ज्यादा पढ़ा जाता हैं (हमने मन ही मन फिर बुदबुदाते हुए कहा कि इसीलिए तो आपका नाम उसने नहीं दिया वह समझदार पत्रकार है।) मैंने कहा कि- हमने तो दिया था अब अगर उसने नहीं छापा तो इसमें मेरा क्या कसूर हैं। हो सकता उसकी तुम्हारी पिछले जनम् की दुश्मनी होगी इसलिए वह इस जनम् में तुम्हें नहीं छाप कर चुका रहा है। इतना सुनना था कि उन्होंने फौरन अपना मोबाइल काट दिया हमने भी राहत ही सांस ली, सोचा चलो,पीछा छूटा।
        राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
        संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
       अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
      शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
       पिनः472001 मोबाइल-9893520965

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व्यग्ंय - ‘‘छपास को भयंकर रोग’’ (व्यंग्यकार-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’)

व्यग्ंय - ‘‘छपास को भयंकर रोग’’
            (व्यंग्यकार-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’) 
              
        वैसे तो प्रत्येक कवि व साहित्यकार को छपास का रोग होता है, किन्तु कुछ टुच्चे कवियों में इसके कीटाणु अत्याधिक मात्रा में पाये जाते हैं। ऐसे छपास रोगी कवि प्रायः हर शहर हर गाँव में आपको दो-चार की संख्या में तो देखने को मिल ही जाऐंगे। ऐसे ही हमारे शहर के एक कवि महोदय को इस ‘छपास रोग’ इस कदर लग गया कि पूछों मत।
        वे हर कवि गोष्ठी में आ ही जाते थे बस किसी प्रकार से पता भर चल जाये और कवि सम्मेलन में तो जुगाड़ कर धंस ही जाते थे और फ्री सेवा में अपने स्थानीय शहर तो शहर ,बाहर तक के शहरों तक में अपने वाहन सहित निःशुल्क उपलब्ध हो जाते थे। उसके बाद उन्हें छपास कीडा़ काटने लगता था और दूसरे दिन उन्हें अपना नाम समाचार पत्रों में पढ़ने का बेहद जनून पागलपन की हद तक सवार था।
        कभी-कभी तो कवि सम्मेलन चल ही रहा होता है और ये अपनी कविता सुनाकर उसे तुरंत ही अपने मोबाइल से केवल सामने वाले के हाथ पाँव जोड़ के अपनी फोटो खिंचवाकर उसे फेसबुक पर उधर बैठे बैठे केवल अपनी महिमा पंिडत करते हुए फोटो डाल देते है मानों पूरे कवि सम्मेलन में केवल इन्होंने ही कविता पढ़ी हों, और तो और कार्यक्रम में कौन मुख्य अतिथि है किसने,अध्यक्षता की है इससे इनको कोई मतबल नहीं, उनका नाम तक नहीं देते है और बेचारे आयोजक-संयोजक महोदय का भी आभार प्रकट करना तो दूर उसका नाम तक नहीं देते है केवल आत्म प्रशंसा अपनी कविता की चार लाइने लिख देते है और पूरे समाचार की .......कर देते है।
        कुल जमा पंूजी की अपनी वे ही दो-चार घिसीपपिटी कविता घुमाफिरा कर सुनाते और उन्हीं में से दो लाइने समाचार पत्रों में छपने को दे देते। ये वही लाइनें होती थीं जो गोल्डन जुबली,डायमंड जुबली मना चुकी होती है।
        अन्य साथी कवि तो ठीक है,समाचार लिखनेवाले पत्रकारों तक को वे लाइने कंठस्थ याद हो गयी थी, इसीलिए वे इनकी लाइने यदि उस दिन पेपर में जगह खाली रही तो छाप देते थे,
वर्ना उनकी लाइनों को केवल पढ़कर की उन्हें प्रणाम करके मुक्ति दे देते थे और उनके स्थान पर दूसरे कवि की कविता की लाइनें छाप देते है। 
            जिस दिन समाचार में उनकी लाइने आ गयी तब तो ठीक है वर्ना उस आयोजक व संयोजक की शामत आ जाती थी ये महोदय सुबह पेपर पढ़ते ही जब अपनी लाइनें नहीं देखते तो आगबबूला हो जाते और तुरंत मोबाइल से कवि गोष्ठी के संयोजक महोदय को ऐसे फटकारते जैसे इन्होंने उस कार्यक्रम के लिए मानों बहुत कुछ चंदा दिया हो वो भी सपने में क्योकि हकीकत में तो ये ‘चमड़ी जाये पर दमडी न जाये’ उक्ति के परम भक्त हैं मजाल है कि कोई इनसे कार्यक्रम के नाम से एक रूपए भी प्राप्त कर सकें। हाँ,कुछ संस्थाओं की वार्षिक सदस्यता शुल्क देने पर इन्हें बहुत अधिक अंदरूनी कष्ट पहँुचता था ,लेकिन ये देना उनकी मजबूरी थी वर्ना वार्षिक कार्यक्रम व कवि सम्मेलन इनकी दाल न गलती और फिर मंच पर आना असंभव हो जाता है।
        हाँ, तो हम बात रहे थे जिस दिन इनकी कवि महोदय की कविताओं की लाइने नहीं छपती, ये तुरंत संयोजक को मोबाइल पर हिला देते, मानों कोई भूकंप आ गया हो।
संयोजक महोदय बेचारे समझाते-समझाते थक जाते कि हमने तो आपकी लाइनें दी थीं, अब पेपरवालों ने नहीं छापा तो हम क्या करे,हो सकता है उस दिन कोई विज्ञापन मिल गया होगा और उसे छाप दिया होगा या पेपर में ज्यादा जगह नहीं होगी तो उन्होंने समाचार काटकर अपने हिसाब से कर दिया, लेकिन ‘अनपढ़ तो समझाया जा सकता है, लेकिन एक पढे लिखे मूर्ख को नहीं’ वे इतने बडे वाले मूर्ख है कि वे किसी बात को मानने को तैयार नहीं होते।
    एक बार ऐसे ही एक दिन एक कवि सम्मेलन का समाचार छपा जिसमें इनकी लाइनें अदृश्य थीं, फिर क्या था इन्होंने तुरंत मुझे मोबाइल किया, क्योंकि कार्यक्रम मेरे संयोजन में हुआ था। न हेलो न हाय,
सीधे धंाय-धांय और सीधे वाकयुद्ध शुरू, तुम पक्षपात करते हो,अपने को बहुत बड़ा समझते हो तुमने मेरा नाम क्यों नहीं दिया?,
    ऐसे ही एक अन्य छापस रोगी ने तो मुझे धमकी तक दे दी कि इस बार कुछ भी हो जाये तुम्हें संस्था का अध्यक्ष नहीं बनने देंगें। हमने भी कह दिया कि तुम भगवान नहीं आम सहमति से चुनाव होगा, अब ये बात अलग है कि इनके अलावा विरोध करने वाला दूसरा कोई नहीं है,सभी संतुष्ट है, लेकिन कहते है कि ‘खिसयाई बिल्ली खंभा ही नोंचे’ और अब यह बिल्ली बूढ़ी हो गयी है और इसकेे नाखून ही बूढ़े हो गये है लेकिन फिर भी ऐंठ नहीं गयी है। कहते है ‘रस्सी जल गयी पर ऐंठ नहीं गई’ उक्ति को चरितार्थ कर रहे है।
        आज का पेपर पढ़ा हम समझ गए कि आज फिर पागलपन का छापास दौरा पड़ा हैं फिर भी हमने अनजान होते हुए कहा-नहीं, क्यों क्या बात है। वे बोले आज फिर केवल हमारी लाइने नहीं छपी है सबकी छपी है और नाम तक गोल है। (हमनेे मन ही मन में कहा कि -तुम खुद गोल हो अर्थात शून्य हो,जीरो हो, लेकिन समझते अपने को हीरो है।) मैंने उन्हें अपनी सफाई देते हुए कहा कि भई मैंने तो सभी कि लाइने दी थी, विस्वास नहीं हो तो मेरी रिपोर्ट की फोटो कापी देख लो,बात तो उनकी समझ में आ गयी कि पेपरवाले ने ही नहीं छापा है, लेकिन फिर वहीं जुमला दोहराया कि इस प्रमुख पेपर में मेरा नाम नहीं आता है। मैंने कहा भई दूसरे पेपरों में तो तुम्हारा नाम है दस पेपरों में से किसी एकाद में नहीं आया तो क्या गजब हो गया।
        वे फिर तैश मे आकर बोले- अरे वाह ! कैसे नहीं हो गया। यह पेपर शहर में सबसे ज्यादा पढ़ा जाता हैं (हमने मन ही मन फिर बुदबुदाते हुए कहा कि इसीलिए तो आपका नाम उसने नहीं दिया वह समझदार पत्रकार है।) मैंने कहा कि- हमने तो दिया था अब अगर उसने नहीं छापा तो इसमें मेरा क्या कसूर हैं। हो सकता उसकी तुम्हारी पिछले जनम् की दुश्मनी होगी इसलिए वह इस जनम् में तुम्हें नहीं छाप कर चुका रहा है। इतना सुनना था कि उन्होंने फौरन अपना मोबाइल काट दिया हमने भी राहत ही सांस ली, सोचा चलो,पीछा छूटा।
            -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
                (संपादक-‘आकांक्षा’ पत्रिका)
                 अध्यक्ष-म.प्र. लेखक संघ,टीकमगढ़
                  नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालोनी,
                     टीकमगढ़ (म.प्र.).472001                                
                    मोबाइल-9893520965

rajeev namdeo rana lidhori

रविवार, 6 सितंबर 2015

राना लिधौरी के ग़ज़ल संग्रह ‘राना का नज़राना’का हुआ विमोचन








rajeev namdeo rana lidhoriराना लिधौरी के ग़ज़ल संग्रह ‘राना का नज़राना’का हुआ विमोचन
  (आर.एस.शर्मा को मिला पं.घनश्याम दास तिवारी स्मृति सम्मान)
(म.प्र.लेखक संघ ने 201वीं राजभाषा हिन्दी पर केद्रित गोष्ठी हुई)
  टीकमगढ़//परमेश्वरीदास तिवारी के निवास पर, अद्धवर्यु मंंिदर के पास म.प्र.लेखक संघ’ टीकमगढ़ ने अपनी 201वीं गोष्ठी ‘राज भाषा हिन्दी’ पर केन्द्रित आयोजित कि जिसमें म.प्र.लेखक संघ के जिलाध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी की चैथी पुस्तक ‘राना का नज़राना’ का विमोचन किया गया। जिसकी समीक्षा पढ़ते हुए उमाशंकर मिश्र ने कहा कि राना लिधौरी साहित्य के क्षेत्र में आलरांडर है उन्होनें कविता,ग़ज़ल,दोहे,हाइकु,व्यंग्य,लघुकथाएँ आदि सभी प्रमुख विद्या पर अपनी कलम चलायी है पढ़ी इतनी कम उम्र उम्र में उन्होने से राष्टीªय स्तर पर बहुत ख्याति प्राप्त की है, राना लिधौरी कि दो ग़ज़लों की संगीतमय प्रस्तुति गीतकार वीरेन्द्र चंसौरिया द्वारा दी गयी। कार्यक्रम में, मुख्य अतिथि तंजीम बज़्में अदब के सदर जनाब इकबाल ‘फ़जा’ रहे व अध्यक्षता प.हरिविष्णु अवस्थी ने की जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में होमोपैथी के प्रसिद्ध डाॅ.नरेन्द्र कुमार जैन उपस्थित रहे। इस अवसर पर यात्रा संस्मरण व गद्य लेखन के लिए साहित्यकार आर.एस.शर्मा को ‘म.प्र. लेखक संघ’ द्वारा प.घनश्याम दास स्मृति सम्मान 2015 से सम्मानित किया गया एवं सभी संगीकारों का भी सम्मान शाल श्रीफल द्वारा किया गया।
सर्वप्रथम प.मनमोहन पाण्डेय ने सरस्वती वंदना‘ की और गीत सुनाया-
बंदर के हाथ में आ गया है बम,बच के रहना बचके रहना तुम।
परमेश्वरीदास तिवारी ने कविता पढी-    सबक सीख लो तासकंद से भूल न फिर होने पाये,
जीता हिस्सा हारे थे,कष्मीर नहीं जाने पाये।।
ग्राम नदनवारा से पधारे गीतकार शोभाराम दांगी ‘इन्दु’ ने गीत पढ़ा- देवकी माई नंद बाबा घर प्यारौ लल्ला हो गब।
                                    गाँव में हल्ला हो गब, गाँव में हल्ला हो गब,।।
ग्राम बल्देवगढ़ से पधारे कोमल चन्द्र बजाज ने पढ़ा- आदिनाथ के मुख से निकली यही हिन्दी भाषा है,
                            ऊँ नमःसिद्धेम्यः से पूजित आदि ब्राम्ह्नी ही भाषा है।।
ग्राम लखौरा से पधारे कवि गुलाब सिंह यादव ‘भाऊ’ ने पढ़ा- हिन्दी भाषा हिन्दुस्तान की जासे हिन्द महान है।
                                हिन्दी भाषा राष्ट्र बना दो हम सबकी जा जान है।।
लेखक संघ के जिलाध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने हिन्दी पर कविता सुनायी
                                हमारी शान है हिन्दी,हमारी जान है,हमारे देश की यही तो पहचान है हिन्दी।
                        हम हिन्दू है हमारा देश हिन्दुस्तान है हिन्दी।।
ग्राम बल्देवगढ़ से पधारे युवाकवि जय हिन्द ‘स्वतंत्र’ ने पढ़ा-चीखें गूंज रही क्रंदन हर ओर सुनाई देता है।
                            चलो पार्थ गाण्डीव घार,फिर कौरव दल का नाश लिखें।
मुख्य अतिथि शायर इकवाल फ़जा ने कमाल पढ़ा- शहीदों के लहु का रंग है ये,बुलंदी पर जो परचम हो गया है।।
उमाशंकर मिश्र तन्हा’ ने पढा-था प्यार अगर मुझसे इकबार तो कह देते,जज़्बात कभी दिल के मेरे यार तो कह देते।
अमिताभ गोस्वामी ने सुनाया-नेक राहों पे बस चला कीजिए,दुश्मनों से भी न जला जाए।।
दीनदयाल तिवारी ने कविता पढी-हिन्दी कर भाषा की बनी एक ही जानी मानी।
सियाराम अहिरवार ने पढ़ा-जिसकी अभिव्यक्ति में सौन्दर्यबोध का होता है,जिसके शब्द भंडार का निरंतर शोध होता है।
संगीतकार भान सिंह श्रीवास्तव ने पढ़ा-श्याम बिन मोहें न आवैं चैंन।
विजय मेहरा ने-‘भारत माता की जय’ व्यंग्य पढ़ा। सीताराम राय ने पढ़ी-हिन्दुस्तान की जीवन रेखा,हिन्दी भूल ना जईयो।
इनके आलावा प.हरिविष्णु अवस्थी,वीरेन्द्र बहादुर खरे,डाॅ.अनिता गोस्वामी,शांतिकुमार जैन,अभिनंदन गोइल,आर.एस.शर्मा, पूरनचन्द्र गुप्ता, वीरेन्द्र चंसोरिया,बी.एल.जैन, हरेन्द्रपाल सिंह,हाजी अनवर,मास्टर उम्मेद खां,सत्यम श्रीवास्तव,देशरत्न भट्ट,अवध बिहारी श्रीवास्तव,रघुवीर आनंद,अजीत श्रीवास्तव,लालजी सहाय श्रीवास्तव, आदि ने आलेख व रचनाएँ पढ़ी। गोष्ठी संचालन उमाशंकर मिश्र’ ने किया एवं सभी का आभार प्रदर्शन परमेश्वरीदास तिवारी ने किया।
  
रपट- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’,अध्यक्ष म.प्र.लेखक संघ,टीकमगढ़,मोबाइल-9893520965,