Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

दोहा लिखना सीखिए- राजीव नामदेव राना लिधौरी

दोहा की प्रमुख विशेषताएं एवं नियम-*

1- दोहा पूर्ण लयबद्ध होना चाहिए।
2- दोहा में कुल चार चरण होते हैं। दोहा के पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएं एवं दूसरे और चौथे चरण में 11-11मात्राएं होनी चाहिए। एक दोहा में कुल 24-24 मात्राएं होती हैं।  दोहे के चारों चरण परस्पर संबद्ध होना चाहिए।
3- दोहे के पहला एवं तीसरे चरण के समापन में 2-1-2 (SIS)मात्रा होनी चाहिए  SIS में गुरु S की पूर्ति दो लघु (II) मात्रा से भी हो जाती है। दूसरे और चौथे चरण के अंत में 2-1मात्रा होनी चाहिए।
4-मात्रा विधान में शुरूआत  1-2-1 से नहीं होनी चाहिए।
5- दोहे का तुकांत सही होना चाहिए।
6- दोहा का भाव, शिल्प सुंदर होना चाहिए।
7- दोहा के भाव व अर्थ स्पष्ट होना चाहिए।
8- दोहा शिक्षाप्रद एवं संदेश स्पष्ट होना चाहिए।
9- दोहा में यथा संभव हिंदी के तत्सम या तद्भव शब्दों का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए।
10- क्षेत्रीय बोली में लिखे दोहों में हिंदी एवं अन्य भाषाओं के कुछ अपभ्रंश शब्द अति आवश्यक होने पर कभी-कभी प्रयोग जा सकते हैं।
11- दोहा एक मात्रिक छंद है ।
12- अ इ उ ऋ स्वर लघु या ह्रस्व होते हैं । आ ई ऊ ए ऐ ओ औ  स्वर गुरु या दीर्घ हैं । अं अः अयोगवाह हैं मात्रा के रूप में ये भी दीर्घ हैं । 
13- यदि किसी लघु अक्षर के  बाद संयुक्त अक्षर या व्यंजन (आधा अक्षर) आता है तो पहले का लघु अक्षर गुरु या दीर्घ गिना जाता है 
जैसे पत्र कर्म सन्न रक्षा कक्षा शिक्षा भव्य अज्ञ यज्ञ आदि। दूसरा अक्षर यथावत लघु या गुरु ही रहेगा । रक्षा 2 2, कर्म  2 1
14- अनुस्वार युक्त अक्षर गुरु या दीर्घ गिना जाता है पर अनुनासिक या चन्द्र बिन्दी युक्त अक्षर लघु है । चन्द्र बिन्दी शिरोरेखा के ऊपर इ ई ए ऐ ओ औ के मात्रा चिह्नों के साथ बिन्दी के रूप में ही लगती है । पंचम वर्ण का प्रयोग भी अनुस्वार की तरह किया जाता है ।आधा पंचम वर्ण भी पूर्व अक्षर को गुरु में बदल देता है । जैसे गंगा चंचल डंडा पंत कंपन आदि। 
15- दो आधे अक्षर एक ही माने जाते हैं । वर्त्य में र् और त् दो संयुक्त व्यंजन हैं पर इनसे एक मात्रा ही बढेगी ।
16- प्रथम क्रम ग्रह में  प् क् ग्  पहले  वर्ण लघु नहीं हैं इससे ये गुरु नहीं होंगे । ऋ की मात्रा वाले अक्षर भी लघु गिने जाते हैं । जैसे गृह स्पृह नृप।

*पटल एडमिन :-*

1- *श्री राजीव नामदेव "राना लिधौरी", टीकमगढ़*
       *पटल संरक्षक-*
2- *श्री रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़*
3- *श्री सुभाष सिंघई,जतारा*
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दोहा सीखने के लिए दोहों में लिखे श्री सुभाष सिंघई जी के बहुत उपयोगी दोहा व आलेख साभार-
*
दोहा विधान-
दोहा में लय, समकल -विषमकल, दग्धाक्षर ,
 जगण पर विचार , ( दोहा छंद में ) 

दोहा लिखना सीखिए , शारद माँ धर ध्यान |
तेरह ग्यारह ही नहीं , होता   पूर्ण    विधान ||

गेय‌ छंद दोहा लिखो , लय का रखिए ख्याल |
जहाँ कलन में  मेल हो , बन जाती है ताल ||

चार चरण सब जानते  , तेरह  ग्यारह  भार |
चूक कलन से चल उठे , दोहा पर  तलवार ||

अष्टम नौवीं ले  जहाँ , दो  मात्रा  का भार  |
दोहा   अटता है   वहाँ , गाकर  देखो यार ||

जगण जहाँ  पर कर रहा  , दोहे का आरंभ |
क्षति होना कुछ मानते ,  कहें   टूटता   दंभ ||

यदि देवों  के नाम हों , जैसे  नाम. गणेश |
जगण दोष सब  दूर हों, ऐसे  देव  महेश ||

पचकल का प्रारंभ भी , लय‌ को जाता लील |
खुद गाकर ही देखिए , पता   चलेगी   ढील ||

अब कलन ( समकल- विषमकल )को समझिए ~

तीन-तीन-दो  , से   करें ,    पूरा    अठकल     एक |
जोड़ रगण "दो- एक -दो"  , विषम  चरण तब  नेक ||

चार - चार का जोड़ भी   , होता  अठकल. मान |
विषम चरण में यति  नगण    , सुंदर   देता  तान ||
(रगण = 212 , नगण = 111)

सम चरणों को जानिए , तीन - तीन- दो -तीन |
चार- चार सँग तीन से   , ग्यारह  लगे  प्रवीन ||

'विषम' चरण के अंत में , रगण नगण दो लाल  |
जो चाहो   स्वीकारिए , पर 'सम'  रखता ताल || 

षटकल का चरणांत भी , सम में करता  खेद  |
दोहा लय  खोता  यहाँ , लिखे 'सुभाषा ' भेद ||

सम- सम से  चौकल बने , त्रिकल त्रिकल हो साथ |
दोहा   लय     में     नाचता   फैला    दोनों    हाथ ||

अब दग्धाक्षर प्रयोग पर ~ 

दग्धाक्षर न  कीजिए , दोहा   हो   प्रारंभ |
कहता पिंगल ग्रंथ है , सभी विखरते दंभ ||
 
इनको‌  झ र भ ष जानिए , ह भी रहे समाय‌ |
पाँच वर्ण यह लघु सदा , निज हानी बतलाय ||

पाँच वर्ण यह दीर्घ हो , करिये खूब प्रयोग |
कहत सुभाषा आपसे , दूर तभी सब रोग ||

विशेष ~ 
दोहा में यदि कथ्य हो , तथ्य.  युक्त  संदेश |
अजर - अमर दोहा रहे , कोई  हो परिवेश ||

तुकबंदी  दोहा  बना , नहीं तथ्य पर तूल |
ऐसे   दोहे   जानिए , होते   केवल.  भूल ||

उपसंहार 

वणिक पुत्र हम जैन हैं , अधिक न जानें  ज्ञान |
पर जो कुछ भी जानता ,  साँझा  है   श्रीमान ||🙏

दोहा में   लिखकर.  यहाँ , बतलाया जो सार |
मौसी   मेरी  ‌ शारदे   , करती    कृपा   अपार ||

डिग्री भी सब फेंक कर , सीधा नाम सुभाष |
लिखता रहता हूँ सदा , मन‌‌‌‌‌ में लिए  प्रकाश ||

-सुभाष सिंघई जतारा

किसी शब्द के अंत में “ए” का प्रयोग ज़्यादातर तब किया जाना चाहिए  जब हम किसी वाक्य में अनुरोध कर रहे हों , नम्रता व सम्मान मृदुता के भाव हों  जैसे ~ दीजिए , कीजिए, आइए, बैठिए, सोचिए, देखिए 
शुभकामनाएं , भावनाएं , कामनाएं , इत्यादि | 

लेकिन जब वाक्य में आदेश भाव परिलक्षित हो तब “ये” देखने में आता है  । जैसे~  बुलायें , हँसायें , बनायें , खिलायें, सजायें , लुटायें  बजायें, दिखायें, सुनायें आदि
 
वाक्य. विन्यास की दृष्टि से हिन्दी में  कुछ शब्दों में ~ 
जैसे ~ लिये/लिए,~~~   गये/गए,~~   दिये/दिए) 
में " ये " और " ए " के प्रयोग के यदि  नियम पर विचार करें  तो..... 
मुझें  इतना पता है कि जब दो, एक जैसे शब्द एक के बाद एक आते हैं तो पहले  में ~ " ये " और दूसरे में  "ए " का उपयोग होता है।
 (जैसे~ वह चुन लिये गये  हैं ×
            वह चुन लिए गए हैं ×
             वह चुन लिये गए हैं √
             
परन्तु  जहां एक ही शब्द उपयोग में आ रहा हो 
जैसे ~ " राम ने उसके  लिये काम किया है " या " श्याम ने  उसके लिए काम किया है " दोनो सही थे ? और दोनो में  से कोई भी उपयोग करते थे और आज भी प्रयोग कर रहे है , किंतु सन् 1959 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित राज भाषा हिंदी समिति द्वारा हिंदी में बहुत कुछ सुधार व दूसरी भाषा के कई शब्द  हिंदी में अपनी शर्तो पर स्वीकार किए हैं |" य " जहाँ  अस्वीकृत किया गया है, वहाँ " ए ' का प्रयोग सही माना है 
जैसे ~ चाहिये × / चाहिए √      | नये × नए √ 

निर्णय उचित लगता है , जहां तक ‘उसके लिए’ (संप्रदान कारक हेतु)  पदबंधों में ‘लिए’ का सवाल है, यह मुझे सही लगता है ‘लिये’ की तुलना में " लिए " सही है । 
इस प्रकार ~ गये की जगह गए √ / दिये की जगह दिए √ उचित है 

"‘लेना’". क्रिया पदो के लिए "  लिये " प्रचलित  था किंतु आधिकारिक मानक हिंदी में ‘लिए’  की संस्तुति है । 

" ‘जाना’"  के क्रियापद से  "गये " ‘गया’ (या गआ ) तथा ‘गयो’ (स्थानीय बोली में प्रयुक्त गओ?) स्वीकारते थे , तो नियमों की एकरूपता व मानक हिंदी के लिए ‘गयी’, ‘गये’ की जगह "  गए " स्वीकृत किया गया है | हिंदी व्याकरण में अभिरुचि और भाषा में सम्वर्धन के पक्षधर यह परिवर्तन स्वीकार कर लिखते है , जो मुझे भी उचित लगता है | 

किंतु जिन शब्दों में मूल रूप से   'य'  श्रुतिमूलक अंग है , तब वह  बदला नहीं जा सकता। ( श्रुति मूलक = स्पस्ट वर्ण सुनाई देना  )  जैसे -
पराया - पराये √  पराए × ||    , पहिया - पहिये  √  पहिए × ||  , रुपया - रुपये √ रुपए ×  || करुणामय - करुणामयी √ (  स्थायी, अव्ययीभाव आदि) करुणामए ×

अब जो मानक हिंदी से हटकर पुराने ढर्रे से लिखते हैं, तब हम आप क्या कर सकते हैं, वह लोग तो आज भी होय, रोय, कोय, तोय, मोय का प्रयोग करके लिखते हैं ,कुछ कहते हैं कि  यह देशज शब्द हैं , मेरा कहना यहाँ यह भी है यह देशज शब्द  भी नहीं हैं  , क्योंकि -देशज शब्द का भी स्थानीय क्षेत्रानुसाार  क्रियानुसार आशय अर्थ  होता है | 
 क्रिया पदानुसार -   होय से होना , रोय से रोना , कोय से कोई  तोय से तेरा , अर्थ ही नहीं निकलता है | फिर आप यहाँ पूँछेगें कि यह रो़य तोय क्या हैं ? यहाँ हम आपसे निवेदन करना चाहेगें कि यह हिंदी में  " मुख सुख " शब्द कहलाते हैं , जिनका उच्चारण तो करते हैं , पर इनका स्थान साहित्य या आम लेखन में भी नहीं है 
जैसे - मास्टर साहव को मुख सुख से #मास्साब कह देते हैं , अब मास्साब को किसी छंद या आवेदन पत्र में उपयोग तो नहीं करते हैं ।
तहसीलदार को तासीलदार , कम्पाउन्डर को कम्पोडर , साहव को साब इत्यादि।
आप कहेंगे कि प्राचीन कवियों ने उपयोग किया है ,  लेख लम्बा करने की अपेक्षा संक्षेप में इतना कहूँगा कि पहले सब गायकी और लोक भाषा में लोगों को समझाते थे , कोई विधानावली नहीं थी |
 
इसी तरह   व्यंजन ‘य, र, ल, व’ तथा स्वर ‘इ, ऋ, ऌ, उ’ के क्रमशः समस्थानिक हैं । ऐसी स्थिति में ‘य्+ई’ के उच्चारण ‘यी’ तथा ‘ई’ में अंतर साफ-साफ मालूम नहीं पड़ता है । यही बात ‘वू’ एवं ‘उ’ के साथ भी है । ‘र्+ऋ’ के साथ भी यही है, जो कइयों को ‘रि’ सुनाई देता है।औ (दरअसल बोला ही वैसे जाता है!) लौकिक संस्कृत तथा हिंदी में ‘ऌ’ तो लुप्तप्राय है । ‘ऋ’ भी केवल संस्कृत मूल के शब्दों तक सीमित है । परंतु इस प्रकार की समानता का अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि ‘कायिक’ के स्थान पर ‘काइक’ और ‘भावुक’ के बदले ‘भाउक’ उचित मान लिया जाए |

भारत सरकार के  मानव संसाधन मंत्रालय ( शिक्षा मंत्रालय ) में  हिंदी राजभाषा ‌समिति है , जिसमें हिंदी भाषा से सम्बन्धित निर्णय‌ हिंदी विद्वान लेते हैं , एक निर्णय यह भी लिया गया है कि #उर्दू के शब्द यदि हिंदी में लिखे जाएं तो #नुक्ता लगाने की बाध्यता नहीं है |
कारण कि उर्दू में नुक्ता लगाने का आशय वर्ण को आधा करना है , जबकि हिंदी में आधा वर्ण लिखने की सुविधा है , तब नुक्ता की जरुरत ही नहीं है।।

आलेख - सुभाष सिंघई एम० ए० हिंदी  साहित्य , दर्शन शास्त्र (पूर्व हिंदी भाषानुदेशक आई टी आई )
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अनुस्वार( बिन्दु) और अनुनासिक ( चंद्रबिन्दु) का प्रयोग -

अनुस्वार या बिंदु (ं)

“अनुस्वार” जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, अनुस्वार स्वर का अनुसरण करने वाला व्यंजन है यानी कि स्वर के बाद आने वाला व्यंजन वर्ण “अनुस्वार” कहलाता है, इसके उच्चारण के समय नाक का उपयोग होता है, ऐसा आभास होगा जैसे नाक से कहा हो |

एक कहानी के माध्यम  से  मैं हिंदी वर्ण माला के  अनुस्वार या बिंदु (ं) पंचमाक्षर के प्रयोग को निवेदित कर रहा  हूँ 

एक. प्रदर्शनी  लाइन लगाकर दिखाई जा रही थी , सबसे आगे एक शरीफ युवा था , उसके पीछे एक छोटा नटखट बच्चा था  , और उस बच्चे के पीछे उसी बच्चे का दादा खड़ा था |

ठीक उसी के पीछे फिर एक युवा खड़ा था , युवा के पीछे  दूसरा नटखट  बच्चा खड़ा था पर उस बच्चे के पीछे कोई दादा या परिवार का मुखिया नहीं था  , 

घटनाक्रम बढ़‌ चला , दादा जी ने अपने नटखट बच्चे को‌ प्रोत्साहन दिया कि आगे खड़े युवा के कंधे पर चढ़कर प्रदर्शनी देख लो , नटखट बच्चा प्रोत्साहन पाकर युवा के कंधे पर चढ़ गया , और युवा कुछ कह नही पाया , क्योकि उसके पीछे मूंंछे ऐठता उसका दादा खड़ा था ,| 
लेकिन दूसरे नटखट बच्चे के पीछे दादा प्रोत्साहन और रक्षा को नहीं था , सो वह बच्चा चुपचाप जमीन में नीचे ही  ख़डा रहा |,

बस यही कहानी हिंदी के पंचमाक्षर की है

पंचमाक्षर समझाने के लिए इतना अधिक लिखकर समझाया जाता है कि सामने वाला भाग खड़ा होगा या सिरदर्द से मस्तक रगड़ने लगेगा , , पर मैं सपाट सरल शैली में एक कहानी बतौर प्रयोग ही  बतला रहा हूँ ।

सरल सपाट ठेठ शैली में समझिए , बस यह खानदान समझ लीजिए 
परिवार. के  दादा  ताऊ                              नटखट बच्चे 
क वर्ग ---     क. ‌‌ ‌    ख.    ग.      घ‌‌‌‌‌‌                 ङ,
च वर्ग ~       च ‌‌        छ.  ज.      झ.               ञ,
ट वर्ग ~        ट.        ठ.    ड      ढ.                ण 
त.वर्ग.           त         थ.     द.   ध.                 न 
प वर्ग --         प.        फ.     ब.   भ.                म 

पहले आप समझिए कि  ङ, ञ, ण, न म जब यह आधे रुप में आते है तब  नटखट  बच्चे बन जाते है जिनकी  बिंदी ं बनती है व अनुस्वार का रुप ले लेते है 
बच्चे के पीछे यदि दादा बाबा उसी कुल वर्ग का‌ है तो बच्चा आगे‌ वाले के कंघे पर चढ़ जाएगा , क्योंकि पीछे उसको हौंसला देने सम्हालने देखभाल को उसका बाबा दादा है।

सन्दर्भ को संदर्भ लिख सकते हैं , क्योंकि आधा न (बच्चे के पीछे ]उसके कुल त वर्ग का द वर्ण बाबा बनकर पीछे खड़ा है ,व बच्चे को प्रोत्साहित कर रहा है, कि बेटा आगे वाले के कंधे पर चढ़ जा , मैं तो हूँ तेरी रक्षा को , 
 इसलिए स के कंधे पर आधा न चढ जाएगा और स बेचारा  कुछ कह नहीं पाएगा  | 

छन्द में छ की छाती पर आधा न चढ़ जाएगा , क्योंकि त वर्ग का द दादा गिरी करते हुए आधा न (अपने नटखट बच्चे ) को प्रोत्साहित कर रहा है , अत: 'छंद' ऐसे लिख दिया जाता है।

गङगा = गंगा 
क वर्ग का ग आगे पीछे है , अत:  बेफ्रिक ङ. ग के कंधे चढ जाएगा
 
कण्ठ = कंठ. - में  आधा ण( बच्चा ) क के ऊपर चढ़ जाएगा क्योंकि सहारे को ट वर्ग का उसका दादा ठ है। सहारे को , बेचारा क कुछ कह नहीं पाएगा।

गन्धारी = गंधारी -- आधा न के पीछे उसका दादा ध खड़ा है , अत: आधा न बच्चा ग के कंधे पर चढ़ गया , बेचारा ग चुप ही रहेगा 

लेकिन , किसी नटखट बच्चे के पीछे उसके कुल ( वर्ग) का दादा बाबा नहीं खड़ा हो तो बच्चा कुछ नहीं कर पाएगा। 
जैसे
सन्मति ~  यहाँ 'संमति' नहीं लिख सकते। 
कारण  आधा न (बच्चे के पीछे उसके कुल वर्ग का दादा बाबा नहीं है।
अत: बच्चा अपने स्वतंत्र रुप में आएगा 

य. र ल व श ष स ह क्ष  इनका कुल वर्ग नहीं है  , यह अपने  आधे  रुप में यथा स्थान आएगें,किसी के ऊपर नहीं चढ़़ेगें |, 
आधा र का जरुर रेफ बनकर पीछे के वर्ण पर जाएगा 
इसकी एक संस्कृत सूक्ति मुझे  कुछ कुछ याद है। 

जल तुम्विका न्यायेन रेफस्य‌ च ऊर्द्धगमनम् 

जिस प्रकार जलतुम्वी हवा रहित होने से जल में ऊर्द्धगमनम् हो जाती है उसी न्याय अनुसार  " र" यदि बिना स्वर का हो तब पीछे  की ओर  ऊर्द्धगमनम् ( शिरोरेखा के ऊपर ) हो जाएगा 

  त्र ज्ञ का आधा रुप होता नहीं है 

इसी तरह यह बहुत ही नया आसान तरीका है समझने का
~~~~~~~~~
अनुनासिक या चंद्रबिंदु (ँ) 

अनुनासिक, स्वर होते हैं, इनके उच्चारण करते समय मुँह से अधिक और नाक से बहुत कम साँस निकलती है। इन स्वरों के लिए चंद्रबिंदु (ँ) का प्रयोग होता है और ये शिरोरेखा यानी शब्द के ऊपर लगने वाली रेखा के ऊपर लगती है। ऐसे कुछ शब्द हैं:

उदाहरण– माँ, आँख, माँग, दाँव, डाँट, दाँत. चाँद  आदि। यह ँ चंद्रबिंदु इसलिए शोभित है कि इसके साथ कोई और मात्रा नहीं है , 
अनुस्वार बिंदी ं लगाना उचित नहीं है , जैसे - मां आंख मांग दांव डांट दांत  चांद , आप इन शब्दों में अनुस्वार का उच्चारण करके देख लीजिए , आपको अनुभव हो जाएगा कि आप क्या उच्चारण कर रहे हैं।

कई बार अनुनासिक या चंद्रबिंदु के स्थान पर बिंदु का भी प्रयोग किया जाता है, ऐसा तब होता है जब शिरोरेखा के ऊपर कोई और मात्रा भी लगी हो। जैसे- इ, ई, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राओं वाले शब्दों में चंद्रबिंदु होने के बाद भी इन मात्राओं के साथ बिंदु के रूप में ही अनुनासिक को दर्शाया जाता है। ऐसे कुछ शब्द हैं:

उदाहरण– कहीं नहीं, मैं  सिंह , सिंघई आदि  , (कहीँ  नहीँ सिँह  सिँघई लिखना सही नहीं है 

–कई बार अनुनासिक की जगह अनुस्वार का प्रयोग शब्द के अर्थ को भी बदल देता है:
जैसे– हंस (जल में रहने वाला एक जीव), 
         हँस (हँसने की क्रिया) हँसना सही है , पर हंसना × है 
स्वांग(स्व+अंग) अपना अंग, 
स्वाँग (नाटक) 
आँगन √   आंगन × है 
पूँछ √ (दुम) पूंछ × है 

अनुस्वार और अनुनासिक में अंतर

अनुस्वार व्यंजन है      और अनुनासिक स्वर है।
अनुस्वार को पंचम अक्षर में बदला जा सकता है, अनुनासिक को बदला नहीं जाता।
अनुस्वार बिंदु के रूप में लगता है और अनुनासिक चंद्रबिंदु के रूप में।
अगर शिरोरेखा के ऊपर मात्रा लगी हो तो अनुनासिक भी अनुस्वार या बिंदु के रूप में लिखा जाता है जबकि अनुस्वार कभी चंद्रबिंदु के रूप में नहीं बदलता।

अब आजकल कुछ विचित्रताओं को मान्यताएं मिल रही है 
रंग (सही रुप है -  रङ्ग ) पर की बोर्ड की अनुलब्धता व हिंदी राज भाषा समिति ने ङ को अनुस्वार रुप बिंदी ं में लिखना प्रारंभ किया , किंतु र पर अनुनासिक  चंद्र बिंदु ँ लगाकर रँग लिखना कहाँ से प्रारंभ किया गया है , मुझे संज्ञान नहीं है , इसी तरह अंग व अँग है | 
छंदों में मात्रा घटाने बढ़ाने में इनका उपयोग किया जा रहा है। 

फेस बुक पर अब प्रलाप चल पड़ा है  , बहुत से तर्क करने की जगह कुतर्क पर आ जाते  हैं , हमने जो शिक्षा पाई है वह  , आप सबसे  साझा की है। 
जिनको हमारा आलेख अच्छा लगे उनका आभारी हूँ। व जिनको त्रुटियाँ  महसूस होती हों ,उनसे  भी क्षमा प्रार्थी हूँ कि हो सकता वह सही हों, व मैं गलत।
सादर 
आलेख ~ सुभाष सिंघई एम• ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र 
( पूर्व हिंदी भाषानुदेशक आई टी आई )

यदि आप दोहा और चौपाई लिखने में अपनी कलम परिपक्व कर लेते है / या है , तब आप मात्राएं घटा बढ़ाकर अनेक मात्रिक छंद लिख सकते है  ,

मैं रोटी विषय लेकर कुछ विविध छंदो में ~रोटी लिख रहा हूँ 

दोहा छंद  में ~(13 - 11)

रोटी ऐसी चीज है , जिसकी गिनो न जात 
भूख‌ और यह पेट को ,  है   पूरी‌   सौगात ||
~~
यदि दोहे के विषम चरण में दो मात्राएं बढ़ जाए तब दोही बन जाती है 
दोही ( 15- 11) 

अब रोटी ऐसी  जानिए , जिसकी रहे  न जात 
भूख‌ और यह तन पेट को ,  है   पूरी‌   सौगात ||
~~~~~~

सोरठा छंद  में ~ (11 - 13 विषम चरण तुकांत )
यदि दोहा को उल्टा लिख दिया जाए व तुकांत विषम चरण में मिला दी जाए ,तब सोरठा छंद बन जाता है 

इसकी गिनो न जात , रोटी    ऐसी   चीज   है |
है       पूरी‌    सौगात , भूख  और यह पेट को ||
~~~~

साथी छंद  मे- (12 - 11)यदि दोहे के विषम चरण में एक मात्रा कम हो जाए व यति दो दीर्घ हो जाए तब साथी छंद बन जाता है 

रोटी कभी न माने ,  जात  पात  का  फेर |
पेट जहाँ है   भूखा   , करे अधिक  न  देर ||
~~~~~

मुक्तामणि छंद में -(13 - 12) यदि दोहे के सम चरण में ग्यारह की जगह 12 मात्रा हो जाए व पदांत दो दीर्घ हो जाए , तब मुक्तामणि छंद हो जाता है 

जात न   पूंछे रोटियाँ  ,  इसको‌   समझो ज्ञानी |
जिसके घर में पक उठे  ,चमके    दाना   पानी ||
~~~~~~

उल्लाला छंद में  -(13 - 13 ) (चारो दोहे के विषम चरण )
यदि दोहे के सम चरण में ग्यारह की जगह तेरह मात्राएं हो जाए ,व पदांत दीर्घ हो जाए तो उल्लाला छंद हो जाता है 

सब रोटी को घूमते , रखे सभी यह चाह है |
रोटी भरती   पेट है    , रोटी नहीं गुनाह  है ||
~~~~~

रोला छंद ( 11-13 ) 
मापनी- दोहा का सम चरण +3244 या 3424
यदि दोहे को उल्टा करके , सम चरण को मापनी से लिखा जाए तो रोला बन जाता है 

रोटी का हम गान , लिखें हम रोटी खाकर |
बल का  देती दान ,पेट  में   रोटी   जाकर ||
करते हम  सम्मान , नहीं   है   रोटी  ‌छोटी |
अपनी  कहें  दुकान, सभी जन रोजी रोटी ||

रोला में + उल्लाला करने पर छप्पय छंद बन जाता है

रोटी  तन  का जानिए  , अंतरमन शृंगार है |
रोटी जिस घर फूलती , रहती सदा वहार है ||
~~~~~~

बरबै छंद में 12 - 7 

रोटी तेरी महिमा , करें प्रकाश  |
भूखा पाकर ऊपर , भरे हुलाश || 
~~~~~~
अहीर छंद ( 11 +11 ) चरणांत जगण ही करना होता है 

रोटी मिले   सुभाष | आता  हृदय  प्रकाश ||
रोटी बिन सब  दीन | निज मुख रहे मलीन ||
~~~~~~~~~

चौपाई छंद में  ~( 16 - 16)
रोटी तन का जीवन जानो  | 
रोटी   की सब.  महिमा  मानो ||
रोटी बिन समझो सब सूखा | 
 बिन रोटी  ‌यह तन है  भूखा ‌||
~~~~~~~
सरसी छंद में ~(16- 11) 
चौपाई चरण + दोहा का सम चरण  

रोटी को जिसने पहचाना ,  उसको भी  भगवान |
कभी न भूखा सोने  देते‌,  ‌ रखते   उसका ध्यान ||
~~~~~~
ताटंक/लावणी  छंद   में ~,(मुक्तक)16- 14 
चौपाई चरण  + चौपाई चरण में दो मात्रा कम करके 14 मात्रा या (मानव छंद )

रोटी  की महिमा का हमने , इतना तो वस जाना है |
इसके बिन सब सूना सा है , पूर्ण तरह से  माना है |
रोटी की जब चाह जगे तब , इसको  देना होती है ~ 
पड़े भूख पर भारी रोटी  , इसका   ऐ‌सा    दाना है |
~~~~~~
पदावली  -आधार छंद चौकड़िया छंद 

बात न समझो छोटी |
भूख मिटाती जाती रोटी , पतली    हो   या   मोटी ||
रोटी पाकर जो  मदमाता , करे   बात   को    खोटी |
कहे  गुणीजन उसकी कटती , बीच बजरिया चोटी ||
निराकार वह परम पिता है ,  हम सब उसकी  गोटी | 
कहत सुभाषा उसकी रोटी ,   हर्षित    करती  बोटी‌  ||
~~~~~~
इस तरह आप कई छंद लिख सकते है , दोहा छंद में एक ही मात्रा घटने बढ़ने पर छंद का नाम बदल जाता है , मेरा मानना कि सभी मात्रिक  छंदो में दोहा छंद सभी छंदो का जनक व चौपाई सभी छंदो की जननी है 
पटल पर  पोस्ट की निर्धारित सीमा है , अन्यथा कई छंदो का उल्लेख करता , जो दोहा चौपाई में मात्रा घटाने बढ़ाने पर बनते है , अत:
(कुछ मनोविनोद के साथ पोस्ट का समापन है )
यदि आज यह महाकवि होते तब यह लिख सकते थे शायद 
(मनोविनोद  ) उन्हीं के दोहों में रोटी 

कबीर दास जी
चलती चक्की देखकर , कबिरा भी हरषाय |
कविरन रोटी सेंककर , मुझको शीघ्र बुलाय ||

रहीम जी 
रहिमन रोटी दीजिए , रोटी  बिन सब  सून |
पानी भी मीठा मिले , समझो  तभी सुकून ||

बिहारी कवि 
रोटी के‌ सब दोहरे ,   रोटी‌  की   है पीर. |
रोटी खाकर ही झरें ,  दोहे मुख के तीर ||

कुम्भनदास जी 
संतो को  मत सीकरी , पड़े न कोई काम |
रोटी हो गरमागरम , कुम्भक का  विश्राम ||

महाकवि केशव जी
केशव बूड़ा जानकर , बाबा मुझें बनाय ।
चंद्रवदन मृगलोचनी , रोटी एक थमाय ||

हुल्लण मुरादावादी जी 
पहले  रोटी खाइए  , पीछे  लिखना  छंद |
बैगन का भुरता तले   , समझो परमानंद ||
चकाचक रोटी खायें | 
हमे भी   वहाँ बुलायें ||

सुभाष सिंघई जतारा
    
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आलेख-सुभाष सिंघई जतारा

प्रस्तुति- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
टीकमगढ़

2 टिप्‍पणियां:

सुभाष सिंघई जतारा ने कहा…

👌👌💐

rajeev namdeo rana lidhori ने कहा…

धन्यवाद आदरणीय श्री सिंघई जी