Rajeev Namdeo Rana lidhorI

मंगलवार, 30 जनवरी 2018

समय से संवाद करता ‘लुक लुक की बीमारी’ व्यंग्य संग्रह--डाॅ कामिनी



viyang
पुस्तक समीक्षा-

                                  ‘लुक लुक की बीमारी’
(बुंदेली गद्य व्यंग्य संग्रह) 
व्यंग्यकार-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
समीक्षक- डाॅ.कामिनी (सेवढ़ा)
पृष्ठ-130, सहयोग राशि सजिल्द-450रु.

                                   समय से संवाद करता ‘लुक लुक की बीमारी’ व्यंग्य संग्रह--डाॅ कामिनी

संत प्रवर रविशंकर महाराज की जन्मभूमि बुंदेलखण्ड की पावन धरा पर एक गाँव लिधौरा जिला टीकमगढ़ (म.प्र.) में एक ऐसी प्रतिभा का उदय हुआ जिसने साहित्य एवं पत्रकारिता में अपनी पहचान बनाई है। वह नाम है-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’। अपने गाँव की अस्मिता को अपने नाम के साथ जोड़कर अपनी जन्मभूमि के प्रति अनुराग प्रकट किया है। बुंदेली माटी की खुश्बू उनके साहित्य में समावेशित है। 
राजीव जी का ताजा-तरीन बुंदेली गद्य व्यंग्य संग्रह ‘लुक लुक की बीमारी’ 29 रंग-बिरंगे गुलदस्ते के रूप में पाठकों के सम्मुख आया है। गद्य-पद्य की विद्याओं में बुंदेली हाइकू संग्रह, संस्मरण, क्षणिकायें, ग़ज़ल़ दोहे आदि पर लेखक का समान अधिकारी है। व्यंग्य हिन्दी गद्य की एक रोचक विद्या है। व्यंग्य लिखना आसान काम नहीं है। जैसे किसी चट्टान को काटकर रास्ता बनाया जाय। परिस्थिति और घटना को समझकर ही व्यंग्य लिखा जाता है। व्यंग्य हँसाता है, रुलाता भी है। भीतर के दर्द को उद्घाटित करता है। वह फूल की तरह कोमल है और काँटे की तरह चुभ्ंान पैदा करने वाली भी। व्यंग्य-लेखक अपने आप में एक क्रियाशक्ति है जो लेखक के द्वन्द को उजागर करती है। 
व्यंग्य का मतलब है, खुल जायें झपकियाँ। व्यंग्कार के समक्ष यह चुनौती होती है कि वह अपने शब्दों और विचारों के माध्यम से समाज की जीती जागती तस्वीर पेश करे। इस दृष्टि से राजीव जी का व्यंग्य संग्रह समय से संवाद करता हुआ दिखाई देता है। जो यथार्थ से परिचित कराता हैं और सामाजिक बदलाव के प्रति सचेत करता है। व्यंग्यों में खुरदरी धरती की सौंधी सुगंध है। जहाँ कसक भरी ज़िन्दगी भी ठसक भरी लती है। व्यंग्य आंदोलित करते हैं। स्वस्थ मनोरंजन करते हुए है। इन व्यंग्यों में मूल्यों के प्रति आस्था हैं सन्नाटे में अलाव जलाने की कोशिश। असंतोष को प्रतिफलन का फलन प्रदान करते हुए संवाद आहत और हतप्रभ करने की ताकत रखते हैं। व्यंग्य की धार तिलमिलाहट पैदा करने में समर्थ है। भाषा में प्रवाह है, अतंतः अपनी बात कह देने की छटपटाहट है। गुदगुदाते भी है व्ंयग्य। समाज की विद्रुपताओं और विसंगतियों पर चोट करते हैं। चिंटी सी काटने लगती है पढ़कर। नैतिकता का इतना हृास। अनेक विरोधाभास खवाल-जबाब करते हुए।
‘लुक लुक करना’ बुंदेली शब्द है। एक मुहावरा बन गया है। लुक-लुक से ‘लुक्का’ बन गया और यह हीनताबोधक ‘गाली’ जैसे रुप में भी प्रयुक्त होने लगा। ‘लुक-लुक’ करना याने अपने आप को प्रदर्शित करना। हल्कापन। कुठा का सूचक। कुंठित व्यक्ति इस मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो जाता है। आत्म मुग्धता, आत्म प्रशंसा व्यक्ति के चरित्र को कमजोर बनाते हैं। यही बातें व्यंग्यकार को आँसती हैं, वह बेचैंन हो उठता है, कुछ कहने के लिए और बन जाती है व्यंग्य-निबंधों की यह पोथी। लेखक इस बीमारी का इलाज शब्दों के हथौड़े से करता है। कवि मुकुट बिहारी सरोज के शब्दों में-‘यह फोड़ा नासूरी है, इसकी चीरफाड़ करना अब तो मजबूरी है। ‘मवाद’ बाहर निकालकर स्वस्थ करने की चिंता लेखक को है।
मुहावरों और कहावतों का सुंदर संयोजन है। जैसे-‘‘दार नईं गलने हती’’, ‘‘कीरा कुलबुलान लगौ’’, ‘‘हींग कौ हंगा’’, ‘‘मुसीबत में गधा खों बाप बना लऔ जात’’, ‘‘दूद के धुबे’’, ‘‘साँपन खों कितेकऊ दूद पिबाओ बे उगले बिषई’’, ‘‘बाप-बेटा बराती सास-बहू गौरैयाँ’’, ‘‘खटिया खड़ी हो गई’’, ‘‘फूल के कुप्पा हो गये’’, ‘‘गुरु के गुरु निकरे’’ ,‘‘बुकरा की की मताई कबलौ खैर मनाहे’’, ‘‘लबरा बडा़ै कै दोंदा’’, आदि सुंदरता बढ़ाते हैं और अर्थद्योतक क्षमता को सशक्त बनाते हैं। साथ ही अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग बात को वज़नदार बनाने में सहायक हैं। साहित्यकार और नेताओं के चरित्र को उजागर किया गया है व्यंग्यों में। ‘साहित्य के वटवृक्षों’ को ‘लुक लुक की बीमारी’ है। देखा भाला यथार्थ ‘साहित्य के अजगरों’’ का जो कुंडली मार कर बैठे हुए है। वटवृक्ष छोटे पौधों को पनपने नहीं देता। उन्हें ‘छपास का भयंकर रोग’ है। ‘एक नये मंचीय कवि’ की गाथा है। ‘आंदरे कवि के हात में अध्यक्षता की बटेर’’ लग गई है। ‘मास्साब बेचारौ काम कौ मारौ’ की व्यथा-कथा है। ‘हम हैं जे.एच.डी.’ याने झोलाछाप डाॅक्टर की पोल खोली गई। ‘नोटबंदी बनाम कारे धन वालों की नसबंदी’ की वेदना है- ‘‘जमाखोरन की हवा बंदी भी हो गई उर उनके जेलबंदी की तैयारी सोउ चल रई। कछू जने पकरे सोउ गये और मुलकन की हवाबंद हैं।’’ 
लेखक हर ख़बर से बाख़बर है। ‘सेल्फी सनकी जी’ नई पीढ़ी के लिए चेतावनी है। ‘कलयुगी नेताओं के प्रति आक्रोश है। ‘भूत को मोबाइल नम्बर’ भी कमतर नहीं है। ‘कवि कौ पत्नी खों प्रेम पत्र’ गुदगुदाता है। ‘लक्ष्मी जू कौ इन्टव्यू’-भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करता है। ‘पंिड़त जू कौ कुम्भ स्नान’,हमऔ चार इंच कौ नौ’, ‘नोट पे चोट’ ,‘इंतजार कौ मजा’’, ‘आधुनिक शब्दकोश’, ‘आदमी में आदमी पैदा करो’ व्यंग्य सोचने के लिए विवश करते हैं। ‘हिन्दी के नाँव अंग्रेजी में’ तथा ‘हमाओ पैलो प्यार अद्भुत है। ‘खाट की बाट’ में मुहावरों का चमत्कार है। कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि बुदेली पातर में समूदी रोटी परोसी गई है। जिसका स्वाद ही अलग है।
‘अनपढ़ कों समझाओ जा सकत लेकिन पढ़े लिखे मूरख को नईं’, ‘न हैलो न हाय सीधे धाँय-धाँय’ और सीधे वाकयुद्ध शुरू, ‘अरे भाई साहित्यकार की फोटो है। कोउ मामूली आदमी की नइयाँ, बा भी ऊकी जौ अपने-आप खों अन्तर राष्ट्रीय कवि मानबे की भौत बड़ी गलतफहमी में जी रऔ।’ ऐसे अनेक उद्धरण व्यंग्यों को धारदार बनाने में सहायक है। ‘लुक लुक की बीमारी’ शीर्षक आकर्षित करता है। और इस संग्रह का प्रतिनिधि व्ंयग्य है- ‘‘ तनक देर में इनै फिरकै लुक लुकी उठी। सो पछांई बैठे श्रोताओं में से कोनउ ने जोर से कई- जो बब्बा को आय? दूसरे ने कई इतइ कौ नओ-नओ कवि बनो है सो आज ईखों पढ़बे नईं मिल रआ, सो फरफरात फिर रऔ और गजरा डार-डार कें अपनों मन भर रऔ। एई बहानें मंच पै जाबे की लुक लुकी शांत कर रऔ।’’
ऐसी स्थितियाँ हास्य के साथ लेखक के भीतर की पीड़ा को अभिव्यक्त करती हैं। भविष्य में सुधार का संदेश देती हैं। लेखक का प्रयास प्रशंसनीय है। आवरण पृष्ठ आकर्षक है। मुझे विश्वास है, पाठकों द्वारा पुस्तक का स्वागत किया जायेगा। मंगल कामनाएँं और बधाई।
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-डाॅ. कामिनी
 पूर्व प्राचार्य
शासकीय गोविंद महाविद्यालय सेंवढ़ा
जिला-दतिया (म.प्र.) 475682
मोबाइल-09893878713

सोमवार, 8 जनवरी 2018

हाजी जफर से फार्महाउस पर म.प्र.लेखक संघ की 231 वीं गोष्ठी एवं पिकनिक Date7-1-2018

            ‘वीर रस एवं देश भक्ति पर हुई कवि गोष्ठी   
        हाजी जफर से फार्महाउस पर म.प्र.लेखक संघ की 231 वीं गोष्ठी एवं पिकनिक  Date7-1-2018
         (जतारा, बल्देवगढ़, नदनवारा, लखौरा,पठा,सिमरा,तखामजरा से आये कवि)   

    टीकमगढ़// वरिष्ठ शायर हाजी जफरउल्ला खां ‘जफर’ बडागाँव खुर्द के पास स्थित के फार्म हाउस पर में पिकनिक एवं साहित्यिक संस्था म.प्र. लेखक संघ जिला इकाई टीकमगढ़ की 231 वीं कविगोष्ठी वीर रस एवं देश भक्ति पर केन्द्रित आयोजित की गयी। जिसकी अध्यक्षता बल्देवगढ़ से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार यदुकुल नंदन खरे ने की जबकि मुख्य अतिथि के रूप में नंदनवारा से पधारे गीतकार शोभाराम दांगी ‘इन्दु’ रहे एवं विशिष्ट अथिति के रूप में व्यंग्यकार रामगोपाल रैकवार कँवल’ एवं युवा शायर अनवर खान ‘साहिल’ रहे।
वीरेन्द्र चंसौरिया ने सरस्वती वंदना कर रचना पढ़़ी- देश ही मंदिर,देश ही मस्जिद देश ही अपना घर।
जतारा से पधारे युवाकवि महेन्द्र चैधरी ने वीर रस में सुनाया-
                शेर के मुख में हाथ डालके गिन लेते हम दांतों को।
                दिल्ली ने गर बांधा न होता सेना के हाथों को।।
बल्देवगढ़ से पधारे कवि कोमल चन्द्र बजाज ने सुनाया-ओ पाक,चीन के गद्दरों तुम भारत क सोचो मत।
म.प्र.लेखक संघ के जिलाध्यक्ष राजीव नामदेव ‘‘राना लिधौरी’ ने ग़ज़ल सुनायी-
    देश रक्षा के लिए खून बहाने की जगह,हम लहू दंगे फसादों में बहा देते है।
    हम तो सहते है जमाने के सितम हँस हँसके, हम नहीं वो जिन्हें हालात रूला देते है।।
            परमेश्वरीदास तिवारी ने कविता पढ़ी- जिन्दगी का सबसे बड़ा साथी गुलाब हैं।
ज़फ़र उल्ला खां ‘ज़फ़र’ ने ग़ज़ल पढ़ी-    तुम्हें जिंदगी भर न भूलेगे हम,मगर राजे दिल भी न खोलेगें हम।।
ग्राम नदनवारा से पधारे कवि शोभाराम दांगी ने पढ़ा-झंडा तिरंगा देश की शक्ति का निशान है।
                                जिसने गवां दी जान वो महान की तू महान है।
ग्राम लखौरा से पधारे बुंदेली कवि गुलाब सिंह भाऊ ने पढ़ा-लहर लहर लहराये तिंरगा जा भारत की शान है।
                                तन मन करो निछावर अपने जिब तक भीतर प्रान है।।
ग्राम पठा के पधारे सीताराम राय ‘सरल’ ने रचना पढ़ी-
                वीर सपूतो की टोली हरसाय के चली,देश माटी सिर लगाये के चली। सिमरा से ग्राम सिमरा से आये रविन्द्र यादव ने पढ़ा-भारत के भाग्य विधाता थे श्री स्वामी जी का क्या कहना।
बल्देवगढ़ से पधारे कवि यदुकुलनंदन खरे ने सुनाया-
                कहीं बातों मे बात न बिगड जाये,धरती पर कहीं विश्वयुद्ध न हो जाये।
उमाशंकर मिश्र ने पढ़ा-दौड़कर आ गये सबं तिरंग तले,उसने जब भी पुकारा वतन के लिए।
अनवर खान साहिल ने पढ़ा-बंटवारे के होते ही पडौसी चले गये,हम हिन्द की जमीन छोड़कर नहीं गये।
रामगोपाल रैकवार ने गीत पढ़ा- आओ गुनगुनी धूप में बैठे,
पूरनचन्द्र गुप्ता ने सुनाया-धन्य-धन्य है धरा हमारी धन्य यहाँ की आन है,
               धन्य तिरंगा झण्डा अपना जिसमें अपनी शान है।
आर.एस.शर्मा ने सुनाया- पेनकार्ड को आधार से जोडो के बजाय,हिंदू को मुसलमान से जोड़ो।
                दलित को दलित से जोड़ो,भारत को भारत से जोड़ो।।
            इस मौके पर बी.एल जैन,परमेश्वरी दास तिवारी, भारत विजय बगेरिया, रामेश्वर राय ‘परदेशी’, अशरफ खान, योगेन्द्र तिवारी, डी.पी.यादव आदि सहित अनेक कवियों ने भी रचना पढ़ी।
                    कार्यक्रम का संचालन उमाशंकर मिश्र ने किया तथा सभी का आभार हाजी जफरउल्ला खां ‘जफर’ ने किया गोष्ठी के अंत में सभी ने पिकनिक मनाते हुए भोजन का आनंद लिया।
                                    रपट-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी‘‘
                                        अध्यक्ष-म.प्र.लेखक संघ टीकमगढ़
                                        मोबाइल-9893520965
                                        E-Mail- ranalidhori@gmail.com













rajeev namdeo rana lidhori

शनिवार, 6 जनवरी 2018

साहित्यिक पत्रिकाओं के संपादकों का दो दिवसीय विमर्श

Date-2-3 Jan 2018 Bhopal    








sahitya acadmiसाहित्यिक पत्रिकाओं के संपादकों का दो दिवसीय विमर्श
         म.प्र.साहित्य अकादमी भोपाल का आयोजन
    देशभर के 74 पत्रिकाओं के संपादकों ने किया विमर्श


टीकमगढ़// म.प्र.साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा साहित्यिक पत्रिकाओं के संपादको का दो दिवसीय विमर्श राजकीय संग्रहालय भोपाल में आयोजित किया गया जिसमें देशभर से 74 साहित्यिक पत्रिकाओं के सपंादक शामिल हुए और विभिन्न विषयों पर विमर्श किया गया। टीकमगढ़ जिले से विगत 12 वर्षो से प्रकाशित होने वाली एकमात्र साहित्यिक पत्रिका ‘आकांक्षा’ से संपादक के रूप में राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने टीकमगढ़ जिले का प्रतिनिधित्व किया।
        कार्यक्रम के प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रमुख सचिव म.प्र.संस्कृति विभाग श्री मनोज श्रीवास्तव ने की एवं विशिष्टि अतिथि के रूप में ‘गंगनांचल’ पत्रिका के संपादक श्री हरीश नवल दिल्ली, अश्वनी कुमार शुक्ला बांदा, डाॅ. अनीता शुक्ला लखनऊ, राजुरकर राज भोपाल, श्रीराम परिहार खंडवा, श्रीधर पराडकर ग्वालियर, गोरखनाथ हैदराबाद, डाॅ जवाहर कार्नावत मुंबई, गिरीश पंकज रायपुर, डाॅ.सुधीर शर्मा, सत्यनारायण व्यास भीलवाड़ा, पद्कांत शर्मा लखनऊ,राकेश शर्मा इंदौर, राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ टीकमगढ़, अनिल अयान सतना, महेश सक्सेना भोपाल, डाॅ. कैलाश पंत भोपाल,अनिरूद्ध सिंह सेंगर गुना,महेश सक्सेना भोपाल, जगदीश किज्ल्क ,डाॅ सुनीता खत्री, नुश्रत मेहदी, अश्विन खरे, अरूण तिवारी, भोपाल आदि सहित 74 संपादक शामिल हुए।
        अंत में कार्यक्रम के संयोजक साहित्य अकादमी के निदेशक डाॅ. उमेश कुमार सिंह ने सभी का आभार माना।

                            रपट-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
                                संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
                                अध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ
                            टीकमगढ़ (म.प्र.)मोबाइल-9893520965