Rajeev Namdeo Rana lidhorI

बुधवार, 13 अप्रैल 2022

आस्तिक बनाम नास्तिक

      नास्तिक बनाम आस्तिक (हिन्दी दोहा संकलन ई-बुक) 
संपादक-राजीव नामदेव राना लिधौरी टीकमगढ़ (मप्र)

                 
  
     💐😊 नास्तिक बनाम आस्तिक 
        (हिन्दी दोहा संकलन ई-बुक) 💐
                
      संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 107वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 13-04-2022

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
         मोबाइल-9893520965
        



🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊



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              अनुक्रमणिका-

अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)

01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
03-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा,दमोह 
04-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी      
05-अमर सिंह राय,नौगांव(मप्र)
06-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा
07-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 
08-प्रदीप खरे 'मंजुल',टीकमगढ़
09-एस.आर.सरल, टीकमगढ़ (मप्र)
10-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'.,बडागांव झांसी (उप्र.)
11-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा,छतरपुर
12-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़
13-- प्रदीप गर्ग 'पराग', फरीदाबाद
14-अरविन्द श्रीवास्तव*,भोपाल
15--प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
16-जनक कुमारी सिंह बघेल, भोपाल
17-राम बिहारी सक्सेना,खरगापुर हाल छतरपुर
18-गोकुल यादव,बुढेरा, टीकमगढ़
19--भजनलाल लोधी फुटेर टीकमगढ

नास्तिकता पर विचार,मत--

20-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
21--निलांजली पांडेय,झांसी
22-जनक कुमारी सिंह बघेल, भोपाल
23--अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी
24- अमर सिंह राय, नौगांव
25-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)

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                              संपादकीय-

                           -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 

               साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
            इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे। 
          हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
  हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के द्वय एडमिन के रुप शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) है।
           हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
     आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
      एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।     
                 हमारे इस छोटे से प्रयास से आज एक नया इतिहास रचा है यह ई-बुक 'नास्तिक बनाम आस्तिक ( 107वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
     यह पटल  के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 107 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 80 देश के लगभग 60000 से अधिक पाठक अब  तक पढ़ चुके हैं।

#ज़रा_सोचिए...

जिसे श्राद्ध करना हो करो, जिसे न करना हो न करो,
पर एकदूसरे के मामले में बेकार की दारोगयी न दिखाओ,
               यह निजी श्रद्धा का मामला है!

                   और हाँ, एक बात और
पूजा के माध्यम भिन्न-भिन्न हो सकते हैं लेकिन  ईश्वर तो  एक ही है।
लेकिन कुछ लोग मनुष्य, संत, महापुरुषों व नेताओं को ही भगवान बनाने में लगे है।

जो #साईं और #बुद्ध को पूजते (#नवबौद्ध) हैं, उनको #भोग लगाते है
                  लेकिन श्राद्ध के #विरोधी हैं
   वह अपने दिमाग़ का #मनोरोगी से उपचार कराएं
                              क्योंकि
जब उक्त मृत व्यक्ति तुम्हारा भोग स्वीकार कर सकते हैं         
           तुम्हारी मुरादें पूरी कर सकते हैं तो
पितृ भी अपने वंशजों का भोग स्वीकार कर सकते हैं
             उनकी मुरादें पूरी कर सकते है...

अपने पुर्वजों का आभार व्यक्त करने की परंपरा है -
● #श्राद्ध (सनातनी हिन्दू)
● #शबेरात (मुस्लिम)
● #Halloween (यूरोपीय, अमेरिकी ईसाई)
***
जब अक्ल न हो तो ज्ञान नहीं बांटना चाहिए।
दुनिया का कोई धर्म खराब नहीं होता, सभी धर्म सच्चाई के रास्ते पर चलने के लिए कहते है।
लोगों ने स्वार्थ बस धर्म को अपने हिसाब से बना लिया है।

भले ही आज विज्ञान के नयी खेजे कर ली है लेकिन याद रखें हमारे पूर्वज हमसे हजार गुना बुद्धिमान थे।
धर्म और विज्ञान एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।

               ***
      श्राद्ध श्रद्धा का विषय और समर्पण का भाव है ।


  आज हम ई-बुक की श्रृंखला में  हमारे पटल  जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह  107वीं ई-बुक 'नास्तिक बनाम आस्तिक   लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है। ये सभी दोहे पटल के साथियों  ने मंगलवार दिनांक-12-4-2022 को हिंदी दोहा लेखन  में दिये गये बिषय 'नास्तिक  पर दिनांक-12-4-2022 को पटल  पोस्ट किये है।
  अंत में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
           धन्यवाद, आभार
  ***
ई बुक-प्रकाशन- दिनांक-13-04-2022 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)

                     -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
                टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
                   मोबाइल-91+ 09893520965

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01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)




*हिन्दी दोहा बिषय- नास्तिक*

*1*

खुद कौ ईश्वर मानता,
है बिल्कुल नादान।
नास्तिक क्या है जानता,
ईश्वर की पहचान।।
***

*2*

 किसी धर्म आस्था नहीं
नहीं कोइ भगवान।
नास्तिक की इस सोच से,
इंसां है हेंरान।।
****
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
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2-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)


 मंगलवार हिंदी दोहा दिवस
            विषय नास्तिक
,,,,
श्री सुमिरत शारद सिया , बदन सिंदूरी नाथ।
प्रबल नास्तिक आस्तिक , पाते साथ सनाथ।।
,,,,,,
 हिरण्यकश्यपू नास्तिक , समझ स्वयं विकराल।
 वैभवशाली जगत का , भगत राम का लाल।।
 ,,,
 नाम नास्तिक निम्न मति , नाविक बिन जल नाव।
 निर्विकार संसार में , इनका अल्प प्रभाव।।
 ,,,,
 सुरहिन शोभा सुमति की , सुंदर सरल स्वरूप।
 सुर बंदित से नास्तिक , मानव मति अनुरूप।।
 ,,,
 प्रथम प्रार्थना पूज्य प्रभु , परमेश्वर पारसनाथ।
 धर्म विमुख भय नास्तिक , करहु आस्तिक साथ।।
 ,,,,
 नाशवान संसार में , रहते अल्पज्ञ सुवज्ञ।
 कछुक नास्तिक आस्तिक , कुछ प्रमोद मर्मज्ञ ।।
 ,,,
 तन धन वैभव नार मति , मद प्रमोद उपजात।
 होत नास्तिक अहम अति , आजीवन दुख पात।।
 ***
                  
   -प्रमोद मिश्रा ,बल्देवगढ़
        स्वरचित मौलिक
                                
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3- भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा, दमोह
 
*नास्तिक पर हिन्दी दोहे*

जिसको खुद पर है नहीं,लेस मात्र बिश्वास।
उससे बड़ा ना नास्तिक, भले अवध हो‌ वास।।

बने आस्तिक आओ हम, नास्तिक रहे न कोय।
राम राम कह राम कह,जा से सद गति होय।।

राम शरण में पहुंच कर,छोड़ कपट जंजाल।
लोग नास्तिक ना कहें, तुलसी माला टाल।।

साइनस के इस युग में,हरि को नहीं बिसार।
बनके आस्तिक खोज कर, नास्तिकता बेकार।।

परम पिता परमात्मा, के दुनियां आधीन।
वन नास्तिक से आस्तिक, हो जा हरि‌ में लीन।।

🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹

✍️ भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा दमोह(मप्र)
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित

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   04-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी       


हिंदी- दोहा
 विषय- नास्तिक
 दिनांक- 12 अप्रैल 2022
दिन मंगलवार

नहीं धर्म में आस्था, नहिं ईश्वर से नेह।
 हैं कुछ नास्तिक देह में,चौपाया वत गेह।।

 ना जाने भगवान को, खुद को माने संत।
 साथ लिए है घूमता, नास्तिक अपना अंत।।

 मात पिता गुरु प्रभु इन्हें, नहीं समझ में आयँ।
 अपने मानव जन्म को, नास्तिक स्वयं नशायँ।।

 कहाँ, कौन, कैसे, कहें, होते हैं भगवान।
 कदाचरण रत कुतरकी, इन्हें नास्तिक जान।।

 भला मानवी देह का, कोई दे सका दाम। 
समझे कैसे नास्तिक, सबके दाता राम।।

***

-अंजनी कुमार चतुर्वेदी ,निवाड़ी

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05-अमर सिंह राय,नौगांव, जिला छतरपुर


हिन्दी दोहे - विषय- नास्तिक
          दिनाँक - 12/04/2022

शक्ति धर्म नहिं आत्मा, ईश्वर नहिं जग माहिं।
देवि-देव नहिं मानते, नास्तिक वही कहाहिं।।

बिन प्रमाण अरु साक्ष्य के, ईश्वर पर विश्वास।
नास्तिक  इसको  बोलते, इसे  अंधविश्वास।।

पंडित  मुल्ला  मौलवी,  कछू  ढोंग   फैलायँ।
जो झाँसा में नहिं फँसे, नास्तिक वही कहायँ।

नास्तिक नहिं निज कर्म कर,रखें काम से काम।
कर्महिं  पूजा   मानते,  जायँ  न  तीरथ  धाम।।

ईश्वर  है  या  है  नहीं, 'अमर'  ज्ञान नहिं  भान।
आस्तिक - नास्तिक  कर्मफल, पाता है इंसान।

मौलिक/-        
       ***
              -अमर सिंह राय,नौगांव, जिला-छतरपुर
                             

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06-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा



बिषय- "नास्तिक"हिंदी दोहा(80)

1- 
जो  होते हैं  नास्तिक,करें न प्रभु  का ध्यान ।
कभी न मन्दिर जात वो,ऐसे हैं  इंसान  ।।
2- 
नास्तिकों से भरा पड़ा,ये अपना  संसार  ।
कथा भागवतों में रुचि,लेते कभी न यार ।।
3- 
मंदिर मस्जिद गुरुद्वार, अलग अलग हैं पंथ ।
नास्तिकों  से भरा  पड़ा, बतलाऐं सदग्रंथ ।।
4- 
जो होते  हैं  आस्तिक,लेते ईश्वर नाम ।
जीवन सफल बनात वो,उनके हैं बलराम ।।
5- 
प्रभु से नाता जोड़ना ,कर लेना उद्धार।
पाया नर तन लखयोनि ,भोग नास्तिक मार ।।

6-
जिसमें ईश्वर अंश नहि,वो हैं ढपोल शंख ।
कान रंध हैं विलसमां,रैंगत बिन पग पंख ।।
7-
नास्तिकों कि का कहिये, मन के होत कठोर ।
आस्तिकों पर हों भारी,बड़े धुरंधर चोर ।।
8- 
नर तन सूखी देहिया ,जामें  ईश्वर बास ।
नास्तिकों को समझावत,हो जाये विश्वास ।।
कथा भागवत कछू भी ,रहते हैं दिलखोल ।
अलग बनाते मंडली,बोलत बोल कुबोल ।।
***
✍️-शोभाराम दाँगी 'इंदु' ,नंदनवारा

07-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 


विषय।    नास्तिक
दिनांक  12.4.2022
,🌹
परपीड़ा में जो सुखी,बही नास्तिक होत।
परमारथ में रत रहें,यही धर्म की जोत।।
🌹
नास्तिक बन कर जी रहा,नव आधुनिक समाज।
धर्म कर्म में रुचि नहीं,आडम्बर आगाज।।
🌹
छलप्रपंच षड्यंत्र सब, नास्तिकता से आंये।
जो डर लागे धर्म का, अवगुण पास न आंये।।
🌹सद्गृन्थों के पाठ से,मन निर्मल हो जाय।
नास्तिकता का नाश हो,पावनता आ जाय।।
🌹
ईश्वर में विश्वास हो,तो नास्तिकता हो दूर।
वरद हस्त प्रभु का रहे, आस्तिकता भरपूर।।
***

-आशा रिछारिया, जिला निवाड़ी 

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08-प्रदीप खरे, 'मंजुल',टीकमगढ़


नास्तिक. दोहा
12.04.2022
1-
पूजा, जप, तप, साधना,रहो सदाँ अपनाय। 
नास्तिक रहकर जो जिये, वही अधम कहलाय। 
2-
ईश्वर को माने नहीं, करे हरी से हेत। 
जीवन सार्थक है नहीं, जैसे सूखी रेत। 
3-
नास्तिक बनकर नहिं रहो,करो हरी से प्रेम। 
सेवा भाव मनहिं रखो,दृढ़ इच्छा, दृढ़ नेम।।
4-
नास्तिक जो रहता सदाँ, कदर करै नहिं कोय। 
निरस्कार पाता यहां,पाप गठरियाँ ढोय।
5-
ईश्वर की मानत रहो,दुनिया की यह रीत।
नास्तिक बनकर नहिं रहो,रखो प्रभू से प्रीत।।
***
✍️ प्रदीप खरे'मंजुल', टीकमगढ़

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09- एस आर सरल, टीकमगढ़


हिन्दी  दोहे #नास्तिक #

विज्ञानी  बहु  पारखी, करें तिमिर का नाश।
होते नास्तिक साहसी ,करते  सत्य प्रकाश।।

होते नास्तिक कारुणिक,विपुल ज्ञान भंडार।
तथ्य  तर्क  आधार  सें, खोज निकालें  सार ।।

चिंतक ज्ञानी दार्शनिक, होते नास्तिक लोग।
धर्म  ढोंग  पाखंड  को , बे  समझें नर  रोग।।

असत्य आस्तिक अंध है, होते नास्तिक सत्य।
खोजें  नास्तिक  सत्य  को, रखें सामनें तथ्य।।

होता आस्तिक मानना, सत्य  न होता भान।
होता नास्तिक  जानना ,करता सच  पहचान।।
  
     ***
        -एस आर सरल, टीकमगढ़

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10-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'.,बडागांव झांसी (उप्र.)


जय बुंदेली साहित्य समूह.
12/4/2022.
नास्तिक.

ईश्वर की रचना मनुज, कहते वेद पुरान।
एक बना है आस्तिक, एक नास्तिक जान।।

अनुभव से निज का करें, नहीं और अनुमान ।
लोग आस्तिक, नास्तिक, बन देते पहचान।।

अपने अपने भाव हैं, अपने अपने पीर।
मनुज नास्तिक आस्तिक, जन्मा जहाँ शरीर।।

***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.
बडागांव झांसी (उप्र.)

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11-बृजभूषण दुबे 'बृज', बकस्वाहा


दोहा-1
मात पिता गुरू संत का, करता जो अपमान।
विधि विपरीत विचारता,वही नास्तिक जान।
2-
सही आस्थावान का,होता हृदय महान।
वही नास्तिकवान का,अति क्रोधी अभिमान ।।
3-
बतला सकता आचरण ,लग सकता अनुमान।
कौन नास्तिक आस्तिक, हो सकती पहचान।

***
-बृजभूषण दुबे "बृज", बकस्वाहा

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12-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़
#मंगलवार#दिनाँक 12.04.2022#
#हिन्दी दोहे लेखन#बिषय-नास्तिक#
%%%%%%%%%%%%%%%%%
                    #1#
आस्तिक एक बिचार है,मानें सुर मुनि संत।
नास्तिक निशा निशाचरी,जिनकौ जल्दी अंत।।

                     #2#
प्रभु की सत्ता ना करे,जब मानव स्वीकार।
नास्तिक है बस वही नर,उसको है धिक्कार।।

                    #3#
आस्तिक कदली बिटप है,फल लागें भरपूर।
नास्तिक रेगिस्तान कौ,जैसे पेड़ खजूर।।

                 .  #4#
आस्तिक जो आकाश है,नास्तिक है पाताल।
आस्तिक धर्म कहें सभी,नास्तिक अघ बिकराल।।

                    #5#
नास्तिक जो मानव रहें,है बिचार का खेल।
मानवता ना पनपती,है जीवन की जेल।।

#मौलिक ए्वम् स्वरचित#
-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़
#मो0  6260886596#

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13- प्रदीप गर्ग 'पराग', फरीदाबाद
नास्तिक... दोहे

बनकर जीना नास्तिक है अधर्म का मूल
अविश्वास हो प्रभु में करिए मत यह भूल।

सब कहते हैं नास्तिक डूबत है मझधार
ईश्वर में विश्वास रख आस्तिक हो भव पार।

मन में जिसके बढ़ रही नास्तिकता की बेल
जीवन वह जीता नहीं रहा इसे बस ठेल।

नास्तिक हो मन उपजते छल कपट दुराचार
आस्तिकही बनकर जियो पनपे सदव्यवहार

बढा़ न अपना तू कभी नास्तिक जन से मेल
जीतसके तू मनुज फिर जीवनका हर खेल।
***
              - प्रदीप गर्ग 'पराग', फरीदाबाद
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14-अरविन्द श्रीवास्तव*,भोपाल


*नास्तिक*

आस्तिक वे जो मानते, ईश रचित हैं वेद,
नास्तिक नर रचना कहें, यह परिभाषा भेद ।

छै दर्शन हैं वेद के, माने गय प्रभु वाक्,
नास्तिक दर्शन तीन हैं, जैन, बौद्ध, चर्वाक ।

ब्रह्म सत्य आस्तिक कहें, जग है मिथ्या व्यर्थ,
नास्तिक कहँ जग सत्य है, यह साधारण अर्थ ।
***

*अरविन्द श्रीवास्तव*,भोपाल
  (मौलिक-स्वरचित)
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15--प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
हिन्दी दोहे  विषय  नास्तिक

हम को अपने ईश पर ,  है पूरा विश्वास।
बनें नास्तिक क्यों भला, जब सब कुछ है पास।।

देने  वाले   ने   दिये , धर्म  धरा धन  धाम।
बने नास्तिक कौन है,कहे सुबह कोशाम।।

जिसने मानव देह दे, किया बहुत उपकार।
हम नास्तिकता से भरा, रखें न कोइ विचार।।

जैसी अपनी सोच हो,   वैसा ही संसार।
नास्तिकता से भी कहीं, हो सकता उद्धार।।

         -प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
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16-जनक कुमारी सिंह बघेल, भोपाल
विषय-नास्तिक

नास्तिक पूजा पाठ का, करते सदा विरोध।
आस्तिक पूजा जब करे, लाते हैं अवरोध।।
नास्तिक ईश्वर नहिं भजे , माने नहिं वरु धर्म। 
निर्मल आत्मा होय गर, करता है सत्कर्म।।
मंदिर मस्जिद नहिं गया , माने नहिं भगवान। 
निर्गुण खोजे ईश जो , नास्तिक उसे न मान।।
आस्तिक नास्तिक कुछ नहीं, जिनके मन भग्वान।
करता परउपकार जो, वह सच्चा इंसान।।
***
-जनक कुमारी सिंह बघेल

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17-राम बिहारी सक्सेना,खरगापुर हाल छतरपुर
*नास्तिक*
मानव तन जिन हरि दिया, तेहि जिन दिया बिसार। 
ऐसे जन हैं नास्तिक, तिन्ह कहं सब संसार।। 1।
जग में ना ना भांति के मानव करें निवास।
नास्तिक हरि बिमुख हैं, हरिजन कहुँ हरि आस।। 2।
राम नाम में करत नहिं, जे नर वर विश्वास।
ते नर पूरे नास्तिक, अंत नरक महँ बास।। 3।
राम राम रसना रटे, राम रखें हिय माहिं।
राम न जिनके हिय बसें नास्तिक कहे बे जाहिं।। 4।।
***
-राम बिहारी सक्सेना,खरगापुर हाल छतरपुर

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18-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी
🙏हिन्दी दोहे,विषय-नास्तिक🙏
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कट्टरता  या  भीरुता,
               नहीं धर्म हित दोय।
या ते तो नास्तिक भला,
               दयावान यदि होय।
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नास्तिक होना पाप नहिं,
               करिये  कर्म  महान।
जहँ जहँ नास्तिक हैं अधिक,
                विकसित है विज्ञान।
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आस्तिक नास्तिक कौन है,
                  निज मत देते लोग।
स्वार्थ सिद्धि हित धर्म का,
                   करते पुनि उपयोग।
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जो जन जग हित कर रहा,
                  बहु वैज्ञानिक खोज।
ऐसे नास्तिक के लिये,
                    नमन करूँ मैं रोज।
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✍️गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी
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19-भजनलाल लोधी फुटेर टीकमगढ
स्वतंत्रता संग्राम में, 
लड़े देश हित जंग! 
भजन आस्तिक नास्तिक, 
रहे जेल में संग!! 

मात पिता गुरु मित्र से, 
करे जो दुर्व्यवहार! 
उन्हें नास्तिक जानिये, 
धर्म नीति अनुसार!! 
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स्वरचित एवं मौलिक
भजनलाल लोधी फुटेर टीकमगढ़

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20-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
बहुत से साथियों ने नास्तिक को निंदनीय मान लिया है और भर्त्सना की है महात्मा बुद्ध भी  आत्मा और परमात्मा को नहीं मानते थे जैन धर्म में भी परमात्मा की मान्यता नहीं है तो क्या ये सभी  भर्त्सना योग्य हैं । महात्मा बुद्ध को तो दशावतार में सम्मिलित किया जाता है। 
मैं भी नास्तिक हूँ क्योंकि मुझे नहीं पता कि ईश्वर है इसलिए मेरी तदर्थ मान्यता है कि ईश्वर नहीं है । क्या शबरी और रावण की आस्तिकता समान हो सकती है। रावण भी  महान शिव भक्त था। ब्रह्मा का तो प्रपौत्र ही था।
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-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़

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21-निलांजली पांडेय,झांसी

बुद्ध और महावीर ने ईश्वर के अस्तित्व को पूर्ण रूप से नहीं नकारा, अपने वक्तव्य में उन्होंने ये स्वीकार किया की कोई दिव्य शक्ति अवश्य है, साथ ही दोनों ने कठिन तप के मार्ग को अपनाया, कुछ नियम और मार्ग भी दिए, इनके अनेकों भक्त और शिष्य है, जो इन्हें मानते हैं, बाद में बौद्ध धर्म भी, महायान श्रेणी में आया, जहां बुद्घ की उपासना होने लगी, जैन धर्म में अनेकों मंदिर है। जब हम किसी भी मत विशेष को मानते है, वहीं आस्तिकता  है, इंसान जब तक मर ना जाए तब तक नास्तिक हो ही नहीं सकता, जो स्वयं को नास्तिक कहते हैं, वो भी भयभीत होने पर पारलौकिक  शक्ति को याद करते है, रावण महान भक्त था, किन्तु अभिमानी, जबकि शबरी सरल थी। रावण को भक्ति का बहुत घमंड था, आज भी जब कोई घमंड से चूर हो जाए,और शक्ति का दंभ भरे तो उसका विनाश निश्चय है। जहां तक ब्रह्मा के प्रपौत्र होने का सवाल है, तो अपने सुन ही रखा होगा, ऊंचे कुल का जन्मिया.......। भगवान तो जूठे बेर, और कर्माबई की खिचड़ी खाते हैं, भाव से।

            -निलांजली पांडेय,झांसी।🙏🏽🙏🏽

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22-जनक कुमारी सिंह बघेल, भोपाल
आस्तिकता का अर्थ हांथ में पकड़ कर माला फेरना ही नहीं है और न ही बिना कर्म किए ईश्वरीय याचना ही है आस्तिकता का अर्थ मानवता और प्राणि मात्र की सेवा भाव भी है। पुराणों में भी कथा है कि कोई मंदिर का महंत बनने के लिए शास्त्रार्थ का अभ्यास कर रहा है तो कोई मंत्रोच्चार का ढोंग रच रहा है तो कोई उपासना कर रहा उच्च कोटि का ईश्वर भक्त अपने आपको सावित करने के लिए तो कोई दिन रात पूजा पाठ में लीन दिख रहा है। वहीं एक साधारण मनुष्य जिसे महंत के दौड़ में शामिल भी नहीं होना था पर महंत का चयन होना था अतः वह भी कौतूहल वश चला गया। जब वह मंदिर में पहुचा तो मैला कुचैला लटकाते हुए गया तब तक महंत की चयन प्रक्रिया लगभग समाप्त हो चुकी थी। मंदिर के मुख्य महंत ने कहा भाई आप तो बहुत देर कर दिए अब तक तो चयन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और आप इस दौड़ से बाहर हो गए । तब उस व्यक्ति ने कहा सरकार मुझे महंत बनने की कोई लालसा नहीं थी मैं तो बस नए बनने वाले महंत का पहले दर्शन करने की लालसा से आया था पर रास्ते में झाड़ झंखाड़ बहुत अधिक थे तो मैं वही साफ करने लगा कि दर्शनार्थियों को तकलीफ़ न हो । कोई बात नहीं बाद में ही सही नए महंत का दर्शन हो ही जाएगा। मंदिर के मुख्य महंत उसकी बातों से मुग्ध हो गए और बोले वास्तव में जो मानवता का पुजारी हो वही महंत बनने की काबिलियत रखता है और उसे तत्क्षण ही उन्होंने महंत घोषित कर दिया।
यह है सच्ची आस्तिकता

-जनक कुमारी सिंह बघेल, भोपाल

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23-अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी
आदरणीय सादर नमस्कार

 पटल पर डाली गई पोस्ट एवं आपके विचार से मेरी सहमति नहीं है,
 कारण यह है कि भगवान को हम माने अथवा ना माने यह हमारे मन का विचार है यह हमारी मर्जी है ।पर इतना जरूर है आपने अपनी पोस्ट में जैन धर्म और बौद्ध धर्म को नास्तिकता से परिपूर्ण बताया है, यह पूर्णता मिथ्या है।
 स्पष्टीकरण में यह बात उल्लेखनीय है कि जैन धर्म के मुनि जैन समाज द्वारा भगवान मानकर पूजे जाते हैं इसी प्रकार बौद्ध धर्म के अनुयाई बुद्ध को भगवान ही कहते हैं।
 अब आप कैसे स्पष्ट कर सकते हैं कि इन दोनों धर्मों में लोग नास्तिक हैं। किसी पर भी विश्वास करना, किसी की सत्ता को स्वीकारना, यहां तक कि अपने माता-पिता को माता-पिता मानना भी आस्तिकता है। अन्यथा कुछ मूर्ख अपने माता-पिता को भी नहीं मानते, तो क्या इन लोगों के ना  मानने से माता पिता अथवा परमपिता की सत्ता को नकारा जा सकता है। मेरा विचार इससे सहमति नहीं रखता है। घर से लेकर सरकार तक जमीन से लेकर आसमान तक हर जगह कोई ना कोई प्रमुख अवश्य होता है जिसके तत्वाधान में अथवा जिसके नियंत्रण में समस्त कार्य संपादित होते हैं उसी सत्ता को नियंता के रूप में स्वीकार किया जाता है। अतः नास्तिक लोगों को बहुत उच्च कोटि की श्रेणी में रखे जाने के पक्ष में मैं नहीं हूं।
 यह मेरा निजी विचार है पटल इससे सहमत हो यह आवश्यक नहीं है। सादर श्रीहरि ।

-अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी

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24-अमर सिंह राय, नौगांव
श्रद्धेय चतुर्वेदी जी, 
आस्तिकता अच्छी बात है, यह बिल्कुल सत्य है कि कोई न कोई शक्ति तो है जो संसार का संचालन करती है, कुछ उसी को परमसत्ता कहते हैं कुछ भगवान। इनमें भी छत्तीस करोड़ देवी देवताओं को मानने वाले लोग अलग अलग नाम से पुकार सकते हैं। किन्तु यह भी सत्य है कि आस्त्तिकता की सीमा लाँघना धर्मांधता होती है, और धर्मांधता में अच्छा बुरा सोचने समझने की शक्ति का ह्रास हो जाता है। अति-आस्तिकता आडम्बर को भी श्रद्धाभाव की नजर से देखने लगती है जिसमे लोग पड़ जाते हैं, और अपना नुकसान कराते हैं।
 आप वरिष्ठ हैं आप बेहतर समझते हैं, सबकी अपनी अपनी विचारधारा होती है। मेरे पिता जी कर्म पर विश्वास करते थे, वो मंदिर बहुत कम जाते थे उनका मानना था कि "कर्म ही पूजा है।"
मैं आस्तिक हूँ, पर आडम्बर पर विश्वास नहीं करता।
मन की बात आपसे शेयर की,
धन्यवाद🙏
                     -अमर सिंह राय, नौगांव
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25-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
      वास्तव में मेरी नज़र में कोई भी इंसान नास्तिक नहीं हो सकता। उसे किसी न किसी पर आस्था रखना ही पड़ेगी। मानव ने विभिन्न धर्मों रहकर अपनी अपनी अलग आस्थायें बना रखी है। 
         लेकिन जब यही आस्थाएं रूढ़िवादी और अंधविश्वास का सहारा लेती है तो एक वर्ग उसे विज्ञान की कसौटी पर परखने लगता है और वह नास्तिक होता जाता है लेकिन अंदर से आस्तिक ही रहता है।
 यही कारण है कि दुनिया में नास्तिकों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।
     ये तो धर्म और विज्ञान दोनों ही स्वीकार करते है कि कोई न कोई शक्ति तो है जो सृष्टि को संचालित कर रही है।
तब ऐसी स्थिति में हमें उस विशेष शक्ति पर आस्था रखना ही पड़ेगी।
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-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)


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                       ‌ नास्तिक बनाम आस्तिक 
                       (हिंदी दोहा संकलन ई-बुक)
      संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 107वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 13-04-2022

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
         मोबाइल-9893520965
         


4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

वाह! वाह क्या बात है आदरणीय राना जी को सादर साधुवाद! 🙏🙏

pramod mishra ने कहा…

कवियों के उदगार सहेज कर उत्थान की ओर अग्रसर करने के लिए आपको हार्दिक साधुवाद
श्री राना जी आपके इस कृत कृत्य के लिए सभी आभारी रहेंगे

rajeev namdeo rana lidhori ने कहा…

धन्यवाद श्री मिश्रा जी

rajeev namdeo rana lidhori ने कहा…

जी धन्यवाद