#मंगलवार#दिनाँक 12.04.2022#
#हिन्दी दोहे लेखन#बिषय-नास्तिक#
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#1#
आस्तिक एक बिचार है,मानें सुर मुनि संत।
नास्तिक निशा निशाचरी,जिनकौ जल्दी अंत।।
#2#
प्रभु की सत्ता ना करे,जब मानव स्वीकार।
नास्तिक है बस वही नर,उसको है धिक्कार।।
#3#
आस्तिक कदली बिटप है,फल लागें भरपूर।
नास्तिक रेगिस्तान कौ,जैसे पेड़ खजूर।।
. #4#
आस्तिक जो आकाश है,नास्तिक है पाताल।
आस्तिक धर्म कहें सभी,नास्तिक अघ बिकराल।।
#5#
नास्तिक जो मानव रहें,है बिचार का खेल।
मानवता ना पनपती,है जीवन की जेल।।
#मौलिक ए्वम् स्वरचित#
-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़
#मो0 6260886596#
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13- प्रदीप गर्ग 'पराग', फरीदाबाद
नास्तिक... दोहे
बनकर जीना नास्तिक है अधर्म का मूल
अविश्वास हो प्रभु में करिए मत यह भूल।
सब कहते हैं नास्तिक डूबत है मझधार
ईश्वर में विश्वास रख आस्तिक हो भव पार।
मन में जिसके बढ़ रही नास्तिकता की बेल
जीवन वह जीता नहीं रहा इसे बस ठेल।
नास्तिक हो मन उपजते छल कपट दुराचार
आस्तिकही बनकर जियो पनपे सदव्यवहार
बढा़ न अपना तू कभी नास्तिक जन से मेल
जीतसके तू मनुज फिर जीवनका हर खेल।
***
- प्रदीप गर्ग 'पराग', फरीदाबाद
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14-अरविन्द श्रीवास्तव*,भोपाल
*नास्तिक*
आस्तिक वे जो मानते, ईश रचित हैं वेद,
नास्तिक नर रचना कहें, यह परिभाषा भेद ।
छै दर्शन हैं वेद के, माने गय प्रभु वाक्,
नास्तिक दर्शन तीन हैं, जैन, बौद्ध, चर्वाक ।
ब्रह्म सत्य आस्तिक कहें, जग है मिथ्या व्यर्थ,
नास्तिक कहँ जग सत्य है, यह साधारण अर्थ ।
***
*अरविन्द श्रीवास्तव*,भोपाल
(मौलिक-स्वरचित)
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15--प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
हिन्दी दोहे विषय नास्तिक
हम को अपने ईश पर , है पूरा विश्वास।
बनें नास्तिक क्यों भला, जब सब कुछ है पास।।
देने वाले ने दिये , धर्म धरा धन धाम।
बने नास्तिक कौन है,कहे सुबह कोशाम।।
जिसने मानव देह दे, किया बहुत उपकार।
हम नास्तिकता से भरा, रखें न कोइ विचार।।
जैसी अपनी सोच हो, वैसा ही संसार।
नास्तिकता से भी कहीं, हो सकता उद्धार।।
-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
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16-जनक कुमारी सिंह बघेल, भोपाल
विषय-नास्तिक
नास्तिक पूजा पाठ का, करते सदा विरोध।
आस्तिक पूजा जब करे, लाते हैं अवरोध।।
नास्तिक ईश्वर नहिं भजे , माने नहिं वरु धर्म।
निर्मल आत्मा होय गर, करता है सत्कर्म।।
मंदिर मस्जिद नहिं गया , माने नहिं भगवान।
निर्गुण खोजे ईश जो , नास्तिक उसे न मान।।
आस्तिक नास्तिक कुछ नहीं, जिनके मन भग्वान।
करता परउपकार जो, वह सच्चा इंसान।।
***
-जनक कुमारी सिंह बघेल
*नास्तिक*
मानव तन जिन हरि दिया, तेहि जिन दिया बिसार।
ऐसे जन हैं नास्तिक, तिन्ह कहं सब संसार।। 1।
जग में ना ना भांति के मानव करें निवास।
नास्तिक हरि बिमुख हैं, हरिजन कहुँ हरि आस।। 2।
राम नाम में करत नहिं, जे नर वर विश्वास।
ते नर पूरे नास्तिक, अंत नरक महँ बास।। 3।
राम राम रसना रटे, राम रखें हिय माहिं।
राम न जिनके हिय बसें नास्तिक कहे बे जाहिं।। 4।।
***
-राम बिहारी सक्सेना,खरगापुर हाल छतरपुर
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18-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी
🙏हिन्दी दोहे,विषय-नास्तिक🙏
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कट्टरता या भीरुता,
नहीं धर्म हित दोय।
या ते तो नास्तिक भला,
दयावान यदि होय।
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नास्तिक होना पाप नहिं,
करिये कर्म महान।
जहँ जहँ नास्तिक हैं अधिक,
विकसित है विज्ञान।
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आस्तिक नास्तिक कौन है,
निज मत देते लोग।
स्वार्थ सिद्धि हित धर्म का,
करते पुनि उपयोग।
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जो जन जग हित कर रहा,
बहु वैज्ञानिक खोज।
ऐसे नास्तिक के लिये,
नमन करूँ मैं रोज।
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✍️गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी
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19-भजनलाल लोधी फुटेर टीकमगढ
स्वतंत्रता संग्राम में,
लड़े देश हित जंग!
भजन आस्तिक नास्तिक,
रहे जेल में संग!!
मात पिता गुरु मित्र से,
करे जो दुर्व्यवहार!
उन्हें नास्तिक जानिये,
धर्म नीति अनुसार!!
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स्वरचित एवं मौलिक
भजनलाल लोधी फुटेर टीकमगढ़
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20-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
बहुत से साथियों ने नास्तिक को निंदनीय मान लिया है और भर्त्सना की है महात्मा बुद्ध भी आत्मा और परमात्मा को नहीं मानते थे जैन धर्म में भी परमात्मा की मान्यता नहीं है तो क्या ये सभी भर्त्सना योग्य हैं । महात्मा बुद्ध को तो दशावतार में सम्मिलित किया जाता है।
मैं भी नास्तिक हूँ क्योंकि मुझे नहीं पता कि ईश्वर है इसलिए मेरी तदर्थ मान्यता है कि ईश्वर नहीं है । क्या शबरी और रावण की आस्तिकता समान हो सकती है। रावण भी महान शिव भक्त था। ब्रह्मा का तो प्रपौत्र ही था।
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-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
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21-निलांजली पांडेय,झांसी
बुद्ध और महावीर ने ईश्वर के अस्तित्व को पूर्ण रूप से नहीं नकारा, अपने वक्तव्य में उन्होंने ये स्वीकार किया की कोई दिव्य शक्ति अवश्य है, साथ ही दोनों ने कठिन तप के मार्ग को अपनाया, कुछ नियम और मार्ग भी दिए, इनके अनेकों भक्त और शिष्य है, जो इन्हें मानते हैं, बाद में बौद्ध धर्म भी, महायान श्रेणी में आया, जहां बुद्घ की उपासना होने लगी, जैन धर्म में अनेकों मंदिर है। जब हम किसी भी मत विशेष को मानते है, वहीं आस्तिकता है, इंसान जब तक मर ना जाए तब तक नास्तिक हो ही नहीं सकता, जो स्वयं को नास्तिक कहते हैं, वो भी भयभीत होने पर पारलौकिक शक्ति को याद करते है, रावण महान भक्त था, किन्तु अभिमानी, जबकि शबरी सरल थी। रावण को भक्ति का बहुत घमंड था, आज भी जब कोई घमंड से चूर हो जाए,और शक्ति का दंभ भरे तो उसका विनाश निश्चय है। जहां तक ब्रह्मा के प्रपौत्र होने का सवाल है, तो अपने सुन ही रखा होगा, ऊंचे कुल का जन्मिया.......। भगवान तो जूठे बेर, और कर्माबई की खिचड़ी खाते हैं, भाव से।
-निलांजली पांडेय,झांसी।🙏🏽🙏🏽
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22-जनक कुमारी सिंह बघेल, भोपाल
आस्तिकता का अर्थ हांथ में पकड़ कर माला फेरना ही नहीं है और न ही बिना कर्म किए ईश्वरीय याचना ही है आस्तिकता का अर्थ मानवता और प्राणि मात्र की सेवा भाव भी है। पुराणों में भी कथा है कि कोई मंदिर का महंत बनने के लिए शास्त्रार्थ का अभ्यास कर रहा है तो कोई मंत्रोच्चार का ढोंग रच रहा है तो कोई उपासना कर रहा उच्च कोटि का ईश्वर भक्त अपने आपको सावित करने के लिए तो कोई दिन रात पूजा पाठ में लीन दिख रहा है। वहीं एक साधारण मनुष्य जिसे महंत के दौड़ में शामिल भी नहीं होना था पर महंत का चयन होना था अतः वह भी कौतूहल वश चला गया। जब वह मंदिर में पहुचा तो मैला कुचैला लटकाते हुए गया तब तक महंत की चयन प्रक्रिया लगभग समाप्त हो चुकी थी। मंदिर के मुख्य महंत ने कहा भाई आप तो बहुत देर कर दिए अब तक तो चयन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और आप इस दौड़ से बाहर हो गए । तब उस व्यक्ति ने कहा सरकार मुझे महंत बनने की कोई लालसा नहीं थी मैं तो बस नए बनने वाले महंत का पहले दर्शन करने की लालसा से आया था पर रास्ते में झाड़ झंखाड़ बहुत अधिक थे तो मैं वही साफ करने लगा कि दर्शनार्थियों को तकलीफ़ न हो । कोई बात नहीं बाद में ही सही नए महंत का दर्शन हो ही जाएगा। मंदिर के मुख्य महंत उसकी बातों से मुग्ध हो गए और बोले वास्तव में जो मानवता का पुजारी हो वही महंत बनने की काबिलियत रखता है और उसे तत्क्षण ही उन्होंने महंत घोषित कर दिया।
यह है सच्ची आस्तिकता
-जनक कुमारी सिंह बघेल, भोपाल
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23-अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी
आदरणीय सादर नमस्कार
पटल पर डाली गई पोस्ट एवं आपके विचार से मेरी सहमति नहीं है,
कारण यह है कि भगवान को हम माने अथवा ना माने यह हमारे मन का विचार है यह हमारी मर्जी है ।पर इतना जरूर है आपने अपनी पोस्ट में जैन धर्म और बौद्ध धर्म को नास्तिकता से परिपूर्ण बताया है, यह पूर्णता मिथ्या है।
स्पष्टीकरण में यह बात उल्लेखनीय है कि जैन धर्म के मुनि जैन समाज द्वारा भगवान मानकर पूजे जाते हैं इसी प्रकार बौद्ध धर्म के अनुयाई बुद्ध को भगवान ही कहते हैं।
अब आप कैसे स्पष्ट कर सकते हैं कि इन दोनों धर्मों में लोग नास्तिक हैं। किसी पर भी विश्वास करना, किसी की सत्ता को स्वीकारना, यहां तक कि अपने माता-पिता को माता-पिता मानना भी आस्तिकता है। अन्यथा कुछ मूर्ख अपने माता-पिता को भी नहीं मानते, तो क्या इन लोगों के ना मानने से माता पिता अथवा परमपिता की सत्ता को नकारा जा सकता है। मेरा विचार इससे सहमति नहीं रखता है। घर से लेकर सरकार तक जमीन से लेकर आसमान तक हर जगह कोई ना कोई प्रमुख अवश्य होता है जिसके तत्वाधान में अथवा जिसके नियंत्रण में समस्त कार्य संपादित होते हैं उसी सत्ता को नियंता के रूप में स्वीकार किया जाता है। अतः नास्तिक लोगों को बहुत उच्च कोटि की श्रेणी में रखे जाने के पक्ष में मैं नहीं हूं।
यह मेरा निजी विचार है पटल इससे सहमत हो यह आवश्यक नहीं है। सादर श्रीहरि ।
-अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी
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24-अमर सिंह राय, नौगांव
श्रद्धेय चतुर्वेदी जी,
आस्तिकता अच्छी बात है, यह बिल्कुल सत्य है कि कोई न कोई शक्ति तो है जो संसार का संचालन करती है, कुछ उसी को परमसत्ता कहते हैं कुछ भगवान। इनमें भी छत्तीस करोड़ देवी देवताओं को मानने वाले लोग अलग अलग नाम से पुकार सकते हैं। किन्तु यह भी सत्य है कि आस्त्तिकता की सीमा लाँघना धर्मांधता होती है, और धर्मांधता में अच्छा बुरा सोचने समझने की शक्ति का ह्रास हो जाता है। अति-आस्तिकता आडम्बर को भी श्रद्धाभाव की नजर से देखने लगती है जिसमे लोग पड़ जाते हैं, और अपना नुकसान कराते हैं।
आप वरिष्ठ हैं आप बेहतर समझते हैं, सबकी अपनी अपनी विचारधारा होती है। मेरे पिता जी कर्म पर विश्वास करते थे, वो मंदिर बहुत कम जाते थे उनका मानना था कि "कर्म ही पूजा है।"
मैं आस्तिक हूँ, पर आडम्बर पर विश्वास नहीं करता।
मन की बात आपसे शेयर की,
धन्यवाद🙏
-अमर सिंह राय, नौगांव
वास्तव में मेरी नज़र में कोई भी इंसान नास्तिक नहीं हो सकता। उसे किसी न किसी पर आस्था रखना ही पड़ेगी। मानव ने विभिन्न धर्मों रहकर अपनी अपनी अलग आस्थायें बना रखी है।
लेकिन जब यही आस्थाएं रूढ़िवादी और अंधविश्वास का सहारा लेती है तो एक वर्ग उसे विज्ञान की कसौटी पर परखने लगता है और वह नास्तिक होता जाता है लेकिन अंदर से आस्तिक ही रहता है।
ये तो धर्म और विज्ञान दोनों ही स्वीकार करते है कि कोई न कोई शक्ति तो है जो सृष्टि को संचालित कर रही है।
4 टिप्पणियां:
वाह! वाह क्या बात है आदरणीय राना जी को सादर साधुवाद! 🙏🙏
कवियों के उदगार सहेज कर उत्थान की ओर अग्रसर करने के लिए आपको हार्दिक साधुवाद
श्री राना जी आपके इस कृत कृत्य के लिए सभी आभारी रहेंगे
धन्यवाद श्री मिश्रा जी
जी धन्यवाद
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