उसकी गली से फिर भी हमारा गुजर न था
उसकी गली से फिर भी हमारा गुजर न था।
चहत का उनकी दिल में मेरे कम असर न था।।
लाखों के दिल में रहता था,हरदिल अज़ीज़ था।
कहने को लेकिन उसके मगर कोई घर न था।।
यूँ तो हज़ारों दोस्त थे हमदर्द कम न थे।
आते ही मुफलिसी के ही कोई मगर न था।।
बस हौसलें को रख तू अपने बुलंद इतना।
जीवन का तेरे फिर ये लंबा सफ़र न था।।
तेरी शरण में जाये,भूले कभी न उनको।
'राना' तो इससे अच्छा कोई दर न था।।
— राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
अध्यक्ष—म.प्र. लेखक संघ
शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़ म.प्र.472001
मोबाइल—9893520965
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