Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

दोहा लिखना सीखिए- राजीव नामदेव राना लिधौरी

दोहा की प्रमुख विशेषताएं एवं नियम-*

1- दोहा पूर्ण लयबद्ध होना चाहिए।
2- दोहा में कुल चार चरण होते हैं। दोहा के पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएं एवं दूसरे और चौथे चरण में 11-11मात्राएं होनी चाहिए। एक दोहा में कुल 24-24 मात्राएं होती हैं।  दोहे के चारों चरण परस्पर संबद्ध होना चाहिए।
3- दोहे के पहला एवं तीसरे चरण के समापन में 2-1-2 (SIS)मात्रा होनी चाहिए  SIS में गुरु S की पूर्ति दो लघु (II) मात्रा से भी हो जाती है। दूसरे और चौथे चरण के अंत में 2-1मात्रा होनी चाहिए।
4-मात्रा विधान में शुरूआत  1-2-1 से नहीं होनी चाहिए।
5- दोहे का तुकांत सही होना चाहिए।
6- दोहा का भाव, शिल्प सुंदर होना चाहिए।
7- दोहा के भाव व अर्थ स्पष्ट होना चाहिए।
8- दोहा शिक्षाप्रद एवं संदेश स्पष्ट होना चाहिए।
9- दोहा में यथा संभव हिंदी के तत्सम या तद्भव शब्दों का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए।
10- क्षेत्रीय बोली में लिखे दोहों में हिंदी एवं अन्य भाषाओं के कुछ अपभ्रंश शब्द अति आवश्यक होने पर कभी-कभी प्रयोग जा सकते हैं।
11- दोहा एक मात्रिक छंद है ।
12- अ इ उ ऋ स्वर लघु या ह्रस्व होते हैं । आ ई ऊ ए ऐ ओ औ  स्वर गुरु या दीर्घ हैं । अं अः अयोगवाह हैं मात्रा के रूप में ये भी दीर्घ हैं । 
13- यदि किसी लघु अक्षर के  बाद संयुक्त अक्षर या व्यंजन (आधा अक्षर) आता है तो पहले का लघु अक्षर गुरु या दीर्घ गिना जाता है 
जैसे पत्र कर्म सन्न रक्षा कक्षा शिक्षा भव्य अज्ञ यज्ञ आदि। दूसरा अक्षर यथावत लघु या गुरु ही रहेगा । रक्षा 2 2, कर्म  2 1
14- अनुस्वार युक्त अक्षर गुरु या दीर्घ गिना जाता है पर अनुनासिक या चन्द्र बिन्दी युक्त अक्षर लघु है । चन्द्र बिन्दी शिरोरेखा के ऊपर इ ई ए ऐ ओ औ के मात्रा चिह्नों के साथ बिन्दी के रूप में ही लगती है । पंचम वर्ण का प्रयोग भी अनुस्वार की तरह किया जाता है ।आधा पंचम वर्ण भी पूर्व अक्षर को गुरु में बदल देता है । जैसे गंगा चंचल डंडा पंत कंपन आदि। 
15- दो आधे अक्षर एक ही माने जाते हैं । वर्त्य में र् और त् दो संयुक्त व्यंजन हैं पर इनसे एक मात्रा ही बढेगी ।
16- प्रथम क्रम ग्रह में  प् क् ग्  पहले  वर्ण लघु नहीं हैं इससे ये गुरु नहीं होंगे । ऋ की मात्रा वाले अक्षर भी लघु गिने जाते हैं । जैसे गृह स्पृह नृप।

*पटल एडमिन :-*

1- *श्री राजीव नामदेव "राना लिधौरी", टीकमगढ़*
       *पटल संरक्षक-*
2- *श्री रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़*
3- *श्री सुभाष सिंघई,जतारा*
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दोहा सीखने के लिए दोहों में लिखे श्री सुभाष सिंघई जी के बहुत उपयोगी दोहा व आलेख साभार-
*
दोहा विधान-
दोहा में लय, समकल -विषमकल, दग्धाक्षर ,
 जगण पर विचार , ( दोहा छंद में ) 

दोहा लिखना सीखिए , शारद माँ धर ध्यान |
तेरह ग्यारह ही नहीं , होता   पूर्ण    विधान ||

गेय‌ छंद दोहा लिखो , लय का रखिए ख्याल |
जहाँ कलन में  मेल हो , बन जाती है ताल ||

चार चरण सब जानते  , तेरह  ग्यारह  भार |
चूक कलन से चल उठे , दोहा पर  तलवार ||

अष्टम नौवीं ले  जहाँ , दो  मात्रा  का भार  |
दोहा   अटता है   वहाँ , गाकर  देखो यार ||

जगण जहाँ  पर कर रहा  , दोहे का आरंभ |
क्षति होना कुछ मानते ,  कहें   टूटता   दंभ ||

यदि देवों  के नाम हों , जैसे  नाम. गणेश |
जगण दोष सब  दूर हों, ऐसे  देव  महेश ||

पचकल का प्रारंभ भी , लय‌ को जाता लील |
खुद गाकर ही देखिए , पता   चलेगी   ढील ||

अब कलन ( समकल- विषमकल )को समझिए ~

तीन-तीन-दो  , से   करें ,    पूरा    अठकल     एक |
जोड़ रगण "दो- एक -दो"  , विषम  चरण तब  नेक ||

चार - चार का जोड़ भी   , होता  अठकल. मान |
विषम चरण में यति  नगण    , सुंदर   देता  तान ||
(रगण = 212 , नगण = 111)

सम चरणों को जानिए , तीन - तीन- दो -तीन |
चार- चार सँग तीन से   , ग्यारह  लगे  प्रवीन ||

'विषम' चरण के अंत में , रगण नगण दो लाल  |
जो चाहो   स्वीकारिए , पर 'सम'  रखता ताल || 

षटकल का चरणांत भी , सम में करता  खेद  |
दोहा लय  खोता  यहाँ , लिखे 'सुभाषा ' भेद ||

सम- सम से  चौकल बने , त्रिकल त्रिकल हो साथ |
दोहा   लय     में     नाचता   फैला    दोनों    हाथ ||

अब दग्धाक्षर प्रयोग पर ~ 

दग्धाक्षर न  कीजिए , दोहा   हो   प्रारंभ |
कहता पिंगल ग्रंथ है , सभी विखरते दंभ ||
 
इनको‌  झ र भ ष जानिए , ह भी रहे समाय‌ |
पाँच वर्ण यह लघु सदा , निज हानी बतलाय ||

पाँच वर्ण यह दीर्घ हो , करिये खूब प्रयोग |
कहत सुभाषा आपसे , दूर तभी सब रोग ||

विशेष ~ 
दोहा में यदि कथ्य हो , तथ्य.  युक्त  संदेश |
अजर - अमर दोहा रहे , कोई  हो परिवेश ||

तुकबंदी  दोहा  बना , नहीं तथ्य पर तूल |
ऐसे   दोहे   जानिए , होते   केवल.  भूल ||

उपसंहार 

वणिक पुत्र हम जैन हैं , अधिक न जानें  ज्ञान |
पर जो कुछ भी जानता ,  साँझा  है   श्रीमान ||🙏

दोहा में   लिखकर.  यहाँ , बतलाया जो सार |
मौसी   मेरी  ‌ शारदे   , करती    कृपा   अपार ||

डिग्री भी सब फेंक कर , सीधा नाम सुभाष |
लिखता रहता हूँ सदा , मन‌‌‌‌‌ में लिए  प्रकाश ||

-सुभाष सिंघई जतारा

किसी शब्द के अंत में “ए” का प्रयोग ज़्यादातर तब किया जाना चाहिए  जब हम किसी वाक्य में अनुरोध कर रहे हों , नम्रता व सम्मान मृदुता के भाव हों  जैसे ~ दीजिए , कीजिए, आइए, बैठिए, सोचिए, देखिए 
शुभकामनाएं , भावनाएं , कामनाएं , इत्यादि | 

लेकिन जब वाक्य में आदेश भाव परिलक्षित हो तब “ये” देखने में आता है  । जैसे~  बुलायें , हँसायें , बनायें , खिलायें, सजायें , लुटायें  बजायें, दिखायें, सुनायें आदि
 
वाक्य. विन्यास की दृष्टि से हिन्दी में  कुछ शब्दों में ~ 
जैसे ~ लिये/लिए,~~~   गये/गए,~~   दिये/दिए) 
में " ये " और " ए " के प्रयोग के यदि  नियम पर विचार करें  तो..... 
मुझें  इतना पता है कि जब दो, एक जैसे शब्द एक के बाद एक आते हैं तो पहले  में ~ " ये " और दूसरे में  "ए " का उपयोग होता है।
 (जैसे~ वह चुन लिये गये  हैं ×
            वह चुन लिए गए हैं ×
             वह चुन लिये गए हैं √
             
परन्तु  जहां एक ही शब्द उपयोग में आ रहा हो 
जैसे ~ " राम ने उसके  लिये काम किया है " या " श्याम ने  उसके लिए काम किया है " दोनो सही थे ? और दोनो में  से कोई भी उपयोग करते थे और आज भी प्रयोग कर रहे है , किंतु सन् 1959 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित राज भाषा हिंदी समिति द्वारा हिंदी में बहुत कुछ सुधार व दूसरी भाषा के कई शब्द  हिंदी में अपनी शर्तो पर स्वीकार किए हैं |" य " जहाँ  अस्वीकृत किया गया है, वहाँ " ए ' का प्रयोग सही माना है 
जैसे ~ चाहिये × / चाहिए √      | नये × नए √ 

निर्णय उचित लगता है , जहां तक ‘उसके लिए’ (संप्रदान कारक हेतु)  पदबंधों में ‘लिए’ का सवाल है, यह मुझे सही लगता है ‘लिये’ की तुलना में " लिए " सही है । 
इस प्रकार ~ गये की जगह गए √ / दिये की जगह दिए √ उचित है 

"‘लेना’". क्रिया पदो के लिए "  लिये " प्रचलित  था किंतु आधिकारिक मानक हिंदी में ‘लिए’  की संस्तुति है । 

" ‘जाना’"  के क्रियापद से  "गये " ‘गया’ (या गआ ) तथा ‘गयो’ (स्थानीय बोली में प्रयुक्त गओ?) स्वीकारते थे , तो नियमों की एकरूपता व मानक हिंदी के लिए ‘गयी’, ‘गये’ की जगह "  गए " स्वीकृत किया गया है | हिंदी व्याकरण में अभिरुचि और भाषा में सम्वर्धन के पक्षधर यह परिवर्तन स्वीकार कर लिखते है , जो मुझे भी उचित लगता है | 

किंतु जिन शब्दों में मूल रूप से   'य'  श्रुतिमूलक अंग है , तब वह  बदला नहीं जा सकता। ( श्रुति मूलक = स्पस्ट वर्ण सुनाई देना  )  जैसे -
पराया - पराये √  पराए × ||    , पहिया - पहिये  √  पहिए × ||  , रुपया - रुपये √ रुपए ×  || करुणामय - करुणामयी √ (  स्थायी, अव्ययीभाव आदि) करुणामए ×

अब जो मानक हिंदी से हटकर पुराने ढर्रे से लिखते हैं, तब हम आप क्या कर सकते हैं, वह लोग तो आज भी होय, रोय, कोय, तोय, मोय का प्रयोग करके लिखते हैं ,कुछ कहते हैं कि  यह देशज शब्द हैं , मेरा कहना यहाँ यह भी है यह देशज शब्द  भी नहीं हैं  , क्योंकि -देशज शब्द का भी स्थानीय क्षेत्रानुसाार  क्रियानुसार आशय अर्थ  होता है | 
 क्रिया पदानुसार -   होय से होना , रोय से रोना , कोय से कोई  तोय से तेरा , अर्थ ही नहीं निकलता है | फिर आप यहाँ पूँछेगें कि यह रो़य तोय क्या हैं ? यहाँ हम आपसे निवेदन करना चाहेगें कि यह हिंदी में  " मुख सुख " शब्द कहलाते हैं , जिनका उच्चारण तो करते हैं , पर इनका स्थान साहित्य या आम लेखन में भी नहीं है 
जैसे - मास्टर साहव को मुख सुख से #मास्साब कह देते हैं , अब मास्साब को किसी छंद या आवेदन पत्र में उपयोग तो नहीं करते हैं ।
तहसीलदार को तासीलदार , कम्पाउन्डर को कम्पोडर , साहव को साब इत्यादि।
आप कहेंगे कि प्राचीन कवियों ने उपयोग किया है ,  लेख लम्बा करने की अपेक्षा संक्षेप में इतना कहूँगा कि पहले सब गायकी और लोक भाषा में लोगों को समझाते थे , कोई विधानावली नहीं थी |
 
इसी तरह   व्यंजन ‘य, र, ल, व’ तथा स्वर ‘इ, ऋ, ऌ, उ’ के क्रमशः समस्थानिक हैं । ऐसी स्थिति में ‘य्+ई’ के उच्चारण ‘यी’ तथा ‘ई’ में अंतर साफ-साफ मालूम नहीं पड़ता है । यही बात ‘वू’ एवं ‘उ’ के साथ भी है । ‘र्+ऋ’ के साथ भी यही है, जो कइयों को ‘रि’ सुनाई देता है।औ (दरअसल बोला ही वैसे जाता है!) लौकिक संस्कृत तथा हिंदी में ‘ऌ’ तो लुप्तप्राय है । ‘ऋ’ भी केवल संस्कृत मूल के शब्दों तक सीमित है । परंतु इस प्रकार की समानता का अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि ‘कायिक’ के स्थान पर ‘काइक’ और ‘भावुक’ के बदले ‘भाउक’ उचित मान लिया जाए |

भारत सरकार के  मानव संसाधन मंत्रालय ( शिक्षा मंत्रालय ) में  हिंदी राजभाषा ‌समिति है , जिसमें हिंदी भाषा से सम्बन्धित निर्णय‌ हिंदी विद्वान लेते हैं , एक निर्णय यह भी लिया गया है कि #उर्दू के शब्द यदि हिंदी में लिखे जाएं तो #नुक्ता लगाने की बाध्यता नहीं है |
कारण कि उर्दू में नुक्ता लगाने का आशय वर्ण को आधा करना है , जबकि हिंदी में आधा वर्ण लिखने की सुविधा है , तब नुक्ता की जरुरत ही नहीं है।।

आलेख - सुभाष सिंघई एम० ए० हिंदी  साहित्य , दर्शन शास्त्र (पूर्व हिंदी भाषानुदेशक आई टी आई )
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अनुस्वार( बिन्दु) और अनुनासिक ( चंद्रबिन्दु) का प्रयोग -

अनुस्वार या बिंदु (ं)

“अनुस्वार” जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, अनुस्वार स्वर का अनुसरण करने वाला व्यंजन है यानी कि स्वर के बाद आने वाला व्यंजन वर्ण “अनुस्वार” कहलाता है, इसके उच्चारण के समय नाक का उपयोग होता है, ऐसा आभास होगा जैसे नाक से कहा हो |

एक कहानी के माध्यम  से  मैं हिंदी वर्ण माला के  अनुस्वार या बिंदु (ं) पंचमाक्षर के प्रयोग को निवेदित कर रहा  हूँ 

एक. प्रदर्शनी  लाइन लगाकर दिखाई जा रही थी , सबसे आगे एक शरीफ युवा था , उसके पीछे एक छोटा नटखट बच्चा था  , और उस बच्चे के पीछे उसी बच्चे का दादा खड़ा था |

ठीक उसी के पीछे फिर एक युवा खड़ा था , युवा के पीछे  दूसरा नटखट  बच्चा खड़ा था पर उस बच्चे के पीछे कोई दादा या परिवार का मुखिया नहीं था  , 

घटनाक्रम बढ़‌ चला , दादा जी ने अपने नटखट बच्चे को‌ प्रोत्साहन दिया कि आगे खड़े युवा के कंधे पर चढ़कर प्रदर्शनी देख लो , नटखट बच्चा प्रोत्साहन पाकर युवा के कंधे पर चढ़ गया , और युवा कुछ कह नही पाया , क्योकि उसके पीछे मूंंछे ऐठता उसका दादा खड़ा था ,| 
लेकिन दूसरे नटखट बच्चे के पीछे दादा प्रोत्साहन और रक्षा को नहीं था , सो वह बच्चा चुपचाप जमीन में नीचे ही  ख़डा रहा |,

बस यही कहानी हिंदी के पंचमाक्षर की है

पंचमाक्षर समझाने के लिए इतना अधिक लिखकर समझाया जाता है कि सामने वाला भाग खड़ा होगा या सिरदर्द से मस्तक रगड़ने लगेगा , , पर मैं सपाट सरल शैली में एक कहानी बतौर प्रयोग ही  बतला रहा हूँ ।

सरल सपाट ठेठ शैली में समझिए , बस यह खानदान समझ लीजिए 
परिवार. के  दादा  ताऊ                              नटखट बच्चे 
क वर्ग ---     क. ‌‌ ‌    ख.    ग.      घ‌‌‌‌‌‌                 ङ,
च वर्ग ~       च ‌‌        छ.  ज.      झ.               ञ,
ट वर्ग ~        ट.        ठ.    ड      ढ.                ण 
त.वर्ग.           त         थ.     द.   ध.                 न 
प वर्ग --         प.        फ.     ब.   भ.                म 

पहले आप समझिए कि  ङ, ञ, ण, न म जब यह आधे रुप में आते है तब  नटखट  बच्चे बन जाते है जिनकी  बिंदी ं बनती है व अनुस्वार का रुप ले लेते है 
बच्चे के पीछे यदि दादा बाबा उसी कुल वर्ग का‌ है तो बच्चा आगे‌ वाले के कंघे पर चढ़ जाएगा , क्योंकि पीछे उसको हौंसला देने सम्हालने देखभाल को उसका बाबा दादा है।

सन्दर्भ को संदर्भ लिख सकते हैं , क्योंकि आधा न (बच्चे के पीछे ]उसके कुल त वर्ग का द वर्ण बाबा बनकर पीछे खड़ा है ,व बच्चे को प्रोत्साहित कर रहा है, कि बेटा आगे वाले के कंधे पर चढ़ जा , मैं तो हूँ तेरी रक्षा को , 
 इसलिए स के कंधे पर आधा न चढ जाएगा और स बेचारा  कुछ कह नहीं पाएगा  | 

छन्द में छ की छाती पर आधा न चढ़ जाएगा , क्योंकि त वर्ग का द दादा गिरी करते हुए आधा न (अपने नटखट बच्चे ) को प्रोत्साहित कर रहा है , अत: 'छंद' ऐसे लिख दिया जाता है।

गङगा = गंगा 
क वर्ग का ग आगे पीछे है , अत:  बेफ्रिक ङ. ग के कंधे चढ जाएगा
 
कण्ठ = कंठ. - में  आधा ण( बच्चा ) क के ऊपर चढ़ जाएगा क्योंकि सहारे को ट वर्ग का उसका दादा ठ है। सहारे को , बेचारा क कुछ कह नहीं पाएगा।

गन्धारी = गंधारी -- आधा न के पीछे उसका दादा ध खड़ा है , अत: आधा न बच्चा ग के कंधे पर चढ़ गया , बेचारा ग चुप ही रहेगा 

लेकिन , किसी नटखट बच्चे के पीछे उसके कुल ( वर्ग) का दादा बाबा नहीं खड़ा हो तो बच्चा कुछ नहीं कर पाएगा। 
जैसे
सन्मति ~  यहाँ 'संमति' नहीं लिख सकते। 
कारण  आधा न (बच्चे के पीछे उसके कुल वर्ग का दादा बाबा नहीं है।
अत: बच्चा अपने स्वतंत्र रुप में आएगा 

य. र ल व श ष स ह क्ष  इनका कुल वर्ग नहीं है  , यह अपने  आधे  रुप में यथा स्थान आएगें,किसी के ऊपर नहीं चढ़़ेगें |, 
आधा र का जरुर रेफ बनकर पीछे के वर्ण पर जाएगा 
इसकी एक संस्कृत सूक्ति मुझे  कुछ कुछ याद है। 

जल तुम्विका न्यायेन रेफस्य‌ च ऊर्द्धगमनम् 

जिस प्रकार जलतुम्वी हवा रहित होने से जल में ऊर्द्धगमनम् हो जाती है उसी न्याय अनुसार  " र" यदि बिना स्वर का हो तब पीछे  की ओर  ऊर्द्धगमनम् ( शिरोरेखा के ऊपर ) हो जाएगा 

  त्र ज्ञ का आधा रुप होता नहीं है 

इसी तरह यह बहुत ही नया आसान तरीका है समझने का
~~~~~~~~~
अनुनासिक या चंद्रबिंदु (ँ) 

अनुनासिक, स्वर होते हैं, इनके उच्चारण करते समय मुँह से अधिक और नाक से बहुत कम साँस निकलती है। इन स्वरों के लिए चंद्रबिंदु (ँ) का प्रयोग होता है और ये शिरोरेखा यानी शब्द के ऊपर लगने वाली रेखा के ऊपर लगती है। ऐसे कुछ शब्द हैं:

उदाहरण– माँ, आँख, माँग, दाँव, डाँट, दाँत. चाँद  आदि। यह ँ चंद्रबिंदु इसलिए शोभित है कि इसके साथ कोई और मात्रा नहीं है , 
अनुस्वार बिंदी ं लगाना उचित नहीं है , जैसे - मां आंख मांग दांव डांट दांत  चांद , आप इन शब्दों में अनुस्वार का उच्चारण करके देख लीजिए , आपको अनुभव हो जाएगा कि आप क्या उच्चारण कर रहे हैं।

कई बार अनुनासिक या चंद्रबिंदु के स्थान पर बिंदु का भी प्रयोग किया जाता है, ऐसा तब होता है जब शिरोरेखा के ऊपर कोई और मात्रा भी लगी हो। जैसे- इ, ई, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राओं वाले शब्दों में चंद्रबिंदु होने के बाद भी इन मात्राओं के साथ बिंदु के रूप में ही अनुनासिक को दर्शाया जाता है। ऐसे कुछ शब्द हैं:

उदाहरण– कहीं नहीं, मैं  सिंह , सिंघई आदि  , (कहीँ  नहीँ सिँह  सिँघई लिखना सही नहीं है 

–कई बार अनुनासिक की जगह अनुस्वार का प्रयोग शब्द के अर्थ को भी बदल देता है:
जैसे– हंस (जल में रहने वाला एक जीव), 
         हँस (हँसने की क्रिया) हँसना सही है , पर हंसना × है 
स्वांग(स्व+अंग) अपना अंग, 
स्वाँग (नाटक) 
आँगन √   आंगन × है 
पूँछ √ (दुम) पूंछ × है 

अनुस्वार और अनुनासिक में अंतर

अनुस्वार व्यंजन है      और अनुनासिक स्वर है।
अनुस्वार को पंचम अक्षर में बदला जा सकता है, अनुनासिक को बदला नहीं जाता।
अनुस्वार बिंदु के रूप में लगता है और अनुनासिक चंद्रबिंदु के रूप में।
अगर शिरोरेखा के ऊपर मात्रा लगी हो तो अनुनासिक भी अनुस्वार या बिंदु के रूप में लिखा जाता है जबकि अनुस्वार कभी चंद्रबिंदु के रूप में नहीं बदलता।

अब आजकल कुछ विचित्रताओं को मान्यताएं मिल रही है 
रंग (सही रुप है -  रङ्ग ) पर की बोर्ड की अनुलब्धता व हिंदी राज भाषा समिति ने ङ को अनुस्वार रुप बिंदी ं में लिखना प्रारंभ किया , किंतु र पर अनुनासिक  चंद्र बिंदु ँ लगाकर रँग लिखना कहाँ से प्रारंभ किया गया है , मुझे संज्ञान नहीं है , इसी तरह अंग व अँग है | 
छंदों में मात्रा घटाने बढ़ाने में इनका उपयोग किया जा रहा है। 

फेस बुक पर अब प्रलाप चल पड़ा है  , बहुत से तर्क करने की जगह कुतर्क पर आ जाते  हैं , हमने जो शिक्षा पाई है वह  , आप सबसे  साझा की है। 
जिनको हमारा आलेख अच्छा लगे उनका आभारी हूँ। व जिनको त्रुटियाँ  महसूस होती हों ,उनसे  भी क्षमा प्रार्थी हूँ कि हो सकता वह सही हों, व मैं गलत।
सादर 
आलेख ~ सुभाष सिंघई एम• ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र 
( पूर्व हिंदी भाषानुदेशक आई टी आई )

यदि आप दोहा और चौपाई लिखने में अपनी कलम परिपक्व कर लेते है / या है , तब आप मात्राएं घटा बढ़ाकर अनेक मात्रिक छंद लिख सकते है  ,

मैं रोटी विषय लेकर कुछ विविध छंदो में ~रोटी लिख रहा हूँ 

दोहा छंद  में ~(13 - 11)

रोटी ऐसी चीज है , जिसकी गिनो न जात 
भूख‌ और यह पेट को ,  है   पूरी‌   सौगात ||
~~
यदि दोहे के विषम चरण में दो मात्राएं बढ़ जाए तब दोही बन जाती है 
दोही ( 15- 11) 

अब रोटी ऐसी  जानिए , जिसकी रहे  न जात 
भूख‌ और यह तन पेट को ,  है   पूरी‌   सौगात ||
~~~~~~

सोरठा छंद  में ~ (11 - 13 विषम चरण तुकांत )
यदि दोहा को उल्टा लिख दिया जाए व तुकांत विषम चरण में मिला दी जाए ,तब सोरठा छंद बन जाता है 

इसकी गिनो न जात , रोटी    ऐसी   चीज   है |
है       पूरी‌    सौगात , भूख  और यह पेट को ||
~~~~

साथी छंद  मे- (12 - 11)यदि दोहे के विषम चरण में एक मात्रा कम हो जाए व यति दो दीर्घ हो जाए तब साथी छंद बन जाता है 

रोटी कभी न माने ,  जात  पात  का  फेर |
पेट जहाँ है   भूखा   , करे अधिक  न  देर ||
~~~~~

मुक्तामणि छंद में -(13 - 12) यदि दोहे के सम चरण में ग्यारह की जगह 12 मात्रा हो जाए व पदांत दो दीर्घ हो जाए , तब मुक्तामणि छंद हो जाता है 

जात न   पूंछे रोटियाँ  ,  इसको‌   समझो ज्ञानी |
जिसके घर में पक उठे  ,चमके    दाना   पानी ||
~~~~~~

उल्लाला छंद में  -(13 - 13 ) (चारो दोहे के विषम चरण )
यदि दोहे के सम चरण में ग्यारह की जगह तेरह मात्राएं हो जाए ,व पदांत दीर्घ हो जाए तो उल्लाला छंद हो जाता है 

सब रोटी को घूमते , रखे सभी यह चाह है |
रोटी भरती   पेट है    , रोटी नहीं गुनाह  है ||
~~~~~

रोला छंद ( 11-13 ) 
मापनी- दोहा का सम चरण +3244 या 3424
यदि दोहे को उल्टा करके , सम चरण को मापनी से लिखा जाए तो रोला बन जाता है 

रोटी का हम गान , लिखें हम रोटी खाकर |
बल का  देती दान ,पेट  में   रोटी   जाकर ||
करते हम  सम्मान , नहीं   है   रोटी  ‌छोटी |
अपनी  कहें  दुकान, सभी जन रोजी रोटी ||

रोला में + उल्लाला करने पर छप्पय छंद बन जाता है

रोटी  तन  का जानिए  , अंतरमन शृंगार है |
रोटी जिस घर फूलती , रहती सदा वहार है ||
~~~~~~

बरबै छंद में 12 - 7 

रोटी तेरी महिमा , करें प्रकाश  |
भूखा पाकर ऊपर , भरे हुलाश || 
~~~~~~
अहीर छंद ( 11 +11 ) चरणांत जगण ही करना होता है 

रोटी मिले   सुभाष | आता  हृदय  प्रकाश ||
रोटी बिन सब  दीन | निज मुख रहे मलीन ||
~~~~~~~~~

चौपाई छंद में  ~( 16 - 16)
रोटी तन का जीवन जानो  | 
रोटी   की सब.  महिमा  मानो ||
रोटी बिन समझो सब सूखा | 
 बिन रोटी  ‌यह तन है  भूखा ‌||
~~~~~~~
सरसी छंद में ~(16- 11) 
चौपाई चरण + दोहा का सम चरण  

रोटी को जिसने पहचाना ,  उसको भी  भगवान |
कभी न भूखा सोने  देते‌,  ‌ रखते   उसका ध्यान ||
~~~~~~
ताटंक/लावणी  छंद   में ~,(मुक्तक)16- 14 
चौपाई चरण  + चौपाई चरण में दो मात्रा कम करके 14 मात्रा या (मानव छंद )

रोटी  की महिमा का हमने , इतना तो वस जाना है |
इसके बिन सब सूना सा है , पूर्ण तरह से  माना है |
रोटी की जब चाह जगे तब , इसको  देना होती है ~ 
पड़े भूख पर भारी रोटी  , इसका   ऐ‌सा    दाना है |
~~~~~~
पदावली  -आधार छंद चौकड़िया छंद 

बात न समझो छोटी |
भूख मिटाती जाती रोटी , पतली    हो   या   मोटी ||
रोटी पाकर जो  मदमाता , करे   बात   को    खोटी |
कहे  गुणीजन उसकी कटती , बीच बजरिया चोटी ||
निराकार वह परम पिता है ,  हम सब उसकी  गोटी | 
कहत सुभाषा उसकी रोटी ,   हर्षित    करती  बोटी‌  ||
~~~~~~
इस तरह आप कई छंद लिख सकते है , दोहा छंद में एक ही मात्रा घटने बढ़ने पर छंद का नाम बदल जाता है , मेरा मानना कि सभी मात्रिक  छंदो में दोहा छंद सभी छंदो का जनक व चौपाई सभी छंदो की जननी है 
पटल पर  पोस्ट की निर्धारित सीमा है , अन्यथा कई छंदो का उल्लेख करता , जो दोहा चौपाई में मात्रा घटाने बढ़ाने पर बनते है , अत:
(कुछ मनोविनोद के साथ पोस्ट का समापन है )
यदि आज यह महाकवि होते तब यह लिख सकते थे शायद 
(मनोविनोद  ) उन्हीं के दोहों में रोटी 

कबीर दास जी
चलती चक्की देखकर , कबिरा भी हरषाय |
कविरन रोटी सेंककर , मुझको शीघ्र बुलाय ||

रहीम जी 
रहिमन रोटी दीजिए , रोटी  बिन सब  सून |
पानी भी मीठा मिले , समझो  तभी सुकून ||

बिहारी कवि 
रोटी के‌ सब दोहरे ,   रोटी‌  की   है पीर. |
रोटी खाकर ही झरें ,  दोहे मुख के तीर ||

कुम्भनदास जी 
संतो को  मत सीकरी , पड़े न कोई काम |
रोटी हो गरमागरम , कुम्भक का  विश्राम ||

महाकवि केशव जी
केशव बूड़ा जानकर , बाबा मुझें बनाय ।
चंद्रवदन मृगलोचनी , रोटी एक थमाय ||

हुल्लण मुरादावादी जी 
पहले  रोटी खाइए  , पीछे  लिखना  छंद |
बैगन का भुरता तले   , समझो परमानंद ||
चकाचक रोटी खायें | 
हमे भी   वहाँ बुलायें ||

सुभाष सिंघई जतारा
    
***
आलेख-सुभाष सिंघई जतारा

प्रस्तुति- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
टीकमगढ़

बुधवार, 13 जुलाई 2022

गुरु महिमा (काव्य संकलन ई-बुक)-संपादक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)

      गुरु महिमा
संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़ (मप्र)
                 
  
                     💐😊 गुरु महिमा💐😊
             (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक) 💐
                
    संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 118वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 13-07-2022

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
              मोबाइल-9893520965
        



🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊



🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎊       
              अनुक्रमणिका-

अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)

01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
03-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा,दमोह 
04-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़
05-अमर सिंह राय,नौगांव(मप्र)
06-गोकुल प्रसाद यादव,बुढ़ेरा
07-बृजभूषण दुबे 'बृज', बकस्वाह
08-आर.के.प्रजापति "साथी"जतारा,टीकमगढ़ (म.प्र.)
09-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा
10-आशाराम वर्मा नादान,पृथ्वीपुर
11-एस आर सरल,टीकमगढ़ (म.प्र.)
12-चन्द्रप्रकाश शर्मा, पृथ्वीपुर
13-गणतंत्र जैन ओजस्वी, खरगापुर
14-सुशील शर्मा, गाडरवारा
15-भजनलाल लोधी फुटेर टीकमगढ़
 16-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
17-जनक कुमारी सिंह बघेल, भोपाल
18-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा

##############################

संपादकीय


               साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
            इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे। 
          हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
  हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के द्वय एडमिन के रुप शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) है।
           हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
     आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
      एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।     
                 हमारे इस छोटे से प्रयास से आज एक नया इतिहास रचा है यह ई-बुक 'गुरु महिमा' ( 118वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
     यह पटल  के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 118 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 81 देश के लगभग 72000 से अधिक पाठक अब  तक पढ़ चुके हैं।
  आज हम ई-बुक की श्रृंखला में  हमारे पटल  जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह  118वीं ई-बुक 'गुरु महिमा'   लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है। ये सभी दोहे पटल के साथियों  ने बुधवार दिनांक-13-7-2022 को बुंदेली दोहा लेखन  में दिये गये बिषय-'गुरु महिमा'  पर दिनांक-13-7-2022 को पटल पोस्ट किये है।
  अंत में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
           धन्यवाद, आभार
            ***
ई बुक-प्रकाशन- दिनांक-13-07-2022 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)

                     -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
                टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
                   मोबाइल-91+ 09893520965

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01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)



*गुरू पूर्णिमा पर विशेष-*

*"गुरु को समर्पित दोहे"*

आज दिवस गुरु पूर्णिमा,
मना रये हम आप ।
इष्ट मंत्र कौ रोजई,
करियों मन सै जाप ।।

                   गुरु की जो सेवा करे,
                   मिले उये सम्मान ।
                   गुरु के ही आशीष से,
                   बनतइ शिष्य महान ।।

गुरु सदैव ही बांटता,
निज सुगंध ज्यों फूल ।
उनके ही सद्ज्ञान से,
मिट जाते जग-शूल ।।
  &&&
रचनाकार-
 
© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
🥗🥙🌿☘️🍁💐🥗🥙🌿☘️🍁💐

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2-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)


,, कुंडलिया,,
                       ,,,,,
मां महिमा गरिमा पिता  , सकल सिद्धि गुरुदेव ।
इनका पद रज भाल पर , स्तुति प्रणाम कर लेव।।
स्तुति प्रणाम कर लेव , वंदना श्री चरणों की।
ब्रह्मा विष्णु सदैव , कृपा हो हिय वर्णों की ।।
शीश अशीष सम्हार , पाओ खुशी प्रेम  जहाँ ।
मोद प्रमोद नहाव , मनाओ जग दाती मां।।                    
**************
          
       -प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
           स्वरचित मौलिक
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3- भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा, दमोह
 

*बुन्देली गज़ल*
गुरु के चरन पर जा भैया,गुरु नै पार लगाओ भैया।
क, ख, ग, घ,ए,वी,सी,डी,१,२,३सिखाओ भैया।।

ठोक पीट कें कच्ची माटी, उम्दा घड़ा बनाओ भैया।।
टेड़ी टाड़ी गैल चले तौ, डामल रोड धराओं भैया।।

जगके पालक सबके मालक,हरि कौ ज्ञान कराओ भैया।।
थाम ल‌ओ गुरुवर नै आकै,नाहक अगर सताओ भैया।।

गुरु विन ज्ञान मिले ना जग में, गुरु खों बड़ो बताओ भैया।
वेद पुरानन और गीता में, रामायन में गाओ भैया।।

तुलसी सूर कबीरा हनुमत, एकलव्य समझाओ भैया।
"अनुरागी" नै गुरु कृपा सें,सब कुछ तन-तन पाओ भैया।।

        🌹🌹🌹
✍️ भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा दमोह(मप्र)
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित

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   4*-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़

नमन मंच , गुरु पूर्णिमा 
तोटक छंद , 112 ×4  = 12 वर्ण 

गुरु तो जल  ज्ञान  सरोवर है |
उनके यश  के   रहते  कर है |
मग के पथ सूचक भी कहते ~
जग में वह  दिव्य‌ मनोहर  है |

गुरुवर को  नमन करते हुए ( दोहे)

दिखता  आज समाज में , गुरुवर  का पद श्रेष्ठ |
शिष्यों  को वह  बाँटते  ,  अपना  ज्ञान   यथेष्ट ||

मिलती  शिक्षा ज्ञान की , और आचरण ताज  |
इन  दोनों  की  हैं  धुरी , गुरुवर  और समाज ||

गुरुवर  बाँटे  ज्ञान जल  ,‌ दे समाज  आगाज |
कह सकते  दोनों धुरी , गुरुवर   और समाज ||

गुरुवर भी  बरसे वहाँ   ,  जहाँ  शिष्य में प्यास |
शशि रवि नभ गुरु मानिए , जीवन   में उल्लास ||

गुरुवर  विद्या  बिम्व है , शिष्यों  को  अविलम्ब |
ज्ञान चक्र की है  धुरी , अनुशासन   के   खम्ब  ||

पद  पंकज  गुरु  मानिए , पावन  है  शिव गंग |
सप्त  सुरों   के  राग  है   , पूरण  ज्ञान   तरंग ||

गुरुवर  का  सानिध्य  है  , ब्रम्हा   का   दरबार  |
मात्  शारदे वर  प्रदा  ,  शिष्यों   को   उपहार ||

गुरुवर  के  पग  से  सदा , झरता   रहे  चरित्र |
शिष्य  उन्हें स्वीकार कर   , बनें  ज्ञान के मित्र ||
              ***
        -सुभाष सिंघई,जतारा

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05-अमर सिंह राय,नौगांव, जिला छतरपुर


बुंदेली चौकड़िया - गुरू
                    -----------
        गुरुवर, नेकी राह लखावैं।
            ज्ञान सुधा बरसावैं।।
    गुरु बिन ज्ञान, ज्ञान बिन जीवन,
             है बेकार बतावैं।।
      जड़ता का तम दूर भगाकर,
            प्रभू ढिंगा पहुचावैं।।
      गुरु महिमा ईसुर से बढ़कै
             गुरू ईश बतलावै।।
                   
         //श्री गुरुवे नमः//🙏🙏🙏🙏                           
                          ***      
             -अमर सिंह राय,नौगांव, जिला-छतरपुर                         

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06-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी


🙏मुक्तक🌹जय गुरुदेव🙏
***********************
(1)
गुरु से सद्ज्ञान मिला मुझ को।
गुरु से धनधान मिला मुझ को।
गुरु   चरण   गहूँ   मैं   साष्टाँग,
गुरु से ही मान  मिला मुझ को।
***********************
(2)
गुरु   ब्रह्मा  विष्णु   महेश्वर  हैं।
गुरु    साक्षात    परमेश्वर    हैं।
गुरु  चरणों में  शत-शत  वंदन,
गुरु    ही    मेरे    सर्वेश्वर    हैं।
**********************
****
✍️गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी (बुडे़रा)

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7-बृजभूषण दुबे 'बृज', बकस्वाहा


धुन -राखें रैयो मोरी-----
टेक-मन के धीर के धरैया गुरु ज्ञान के धनी।
ज्ञान के धनी ,सद्ज्ञान के धनी। मन के--------
1-काम क्रोध मद् लोभ मोह सें देव हमें छुटकारो।
दुर्गुण दूर करो सब स्वामी , अंधकार अंधियारों।
डारो नेह की नजरिया गुरु ज्ञान के धनी।
2-आश निराश न होवे मोरी ,मन विश्वास बड़ो है।
बांँधो प्रेम लगन की डोरी,सेवक द्वार खड़ो है।
खोलो ज्ञान की पुटरिया गुरुज्ञान के धनी।
मन के-------------
3-माता पिता भाई बन्धु तुम,हो सर्वस्व हमारे।
कृपा करो प्रेमी" बृज"रोशन ,हम सब दास तुम्हारे।
भव सें पार के लगैया गुरु ज्ञान के धनी।
4-जुग जुग से जौ चलो आओ है,गुरु शिष्य को नातौ।
जो कऊँ गुरु देव न होते,को हरि द्वार बतातो।
जुड़वे जोग सें जो जरिया गुरु ज्ञान के धनी।
मन के--------
दोहा-गुरु दर्शन की लालसा,गुरु वचनों का ध्यान।
गुरु चरणों में शिर नमत,बृज सच्चा सद्ज्ञान।
गुरु पूर्णिमा महोत्सव की बहुत बहुत बधाई शुभकामनाएं।
 ***
-बृजभूषण दुबे 'बृज', बकस्वाहा

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08-आर.के.प्रजापति "साथी"जतारा,टीकमगढ़ (म.प्र.)


गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर सभी भाई बहिनों को हार्दिक शुभकामनाएं।
गुरुकृपा सदैव बनी रहे।

श्रद्धा जिनके उर बसे,
रहे अटल विश्वास।
ऐसे लायक शिष्य ही,
गुरु के होते खास।।

           ***
            - आर.के.प्रजापति "साथी"
        जतारा,टीकमगढ़ (मध्यप्रदेश)                 

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09-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा


      "गुरू पूर्णमा पर नमन"लोकगीत धुन 
आप हमारे विधाता गुरू जी ,आप हमारे विधाता हो।
जीवन तारण  गैल  धरावत ,मात- पिता  सम  आप कहावत। देते मंत्र हमारे गुरू जी ,आप हमारे विधाता हो ।

ब्रह्मा  विष्णु  शिव  शंकर  से ,बढकर ये  गंगा   जमुना  से। 
देते ग्यान हमारे  गुरू जी, आप हमारे विधाता हो ।।

सांचे  मन  से  गुरू जो   मानें ,गुरू पूर्ण  हैं  जगत  ये  जानें ।
वेद पाठ पढाते गुरू  जी,आप हमारे विधाता हो।।
गुरू की महिमा कोउ न  जानें , वेद    पुरान   ग्रंथ  ये  मानें
                  ***
  -शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा

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*10*-आशाराम वर्मा नादान,पृथ्वीपुर


                             कुंडलिया
                          ***********
गहिये गुरु के पद कमल,
              गुरु बिन होत न ज्ञान।
 प्रथम पूज्य करतार  से ,
              जग  में  ऊंची  शान ।।
जग  में  ऊंची  शान ,
              तमस हिए का हर लेते।
देकर  के  सद  ज्ञान,
               प्रभू  से  मिलवा  देते।।
कह  गुनकर"  नादान "
           व्यथा निज गुरु से कहिये।
करते   सकल  निदान ,
             चरण  गुरुवर के गहिये ।।
***
-आशाराम वर्मा 'नादान' पृथ्वीपुर

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11-एस आर सरल,टीकमगढ़



चौकड़िया 🌷गुरु पूर्णिमा🌷
*************************
गुरु के चरण कमल सुख़दाई,
                   हिरदय लेव बसाई।
करूणानिधि सद्गुन के दाता,
                   अवगुन देत नसाई।।
जीवन पथ के  सूल हटा के,
                    सच्ची राह दिखाई।
'सरल' शांति सुख समाधान सब,
                    गुरु शरणन में पाई।।
*********************-******     
             -  एस आर 'सरल'
                   टीकमगढ़
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
         
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12-चन्द्रप्रकाश शर्मा, पृथ्वीपुर

गुरूवर ही दुनियां में, सबसे महान है 
अज्ञान हर के सदा देते ज्ञान है 
अभिनंदन वंदन है, गुरूवर तुम्हारा 
आपके चरण चारो, धाम के समान है ।।

कोई गुरु के सम होता नहीं
गुरू की शरण में गम होता नहीं है 
गुरुवर ही देते हैं अनमोल धन जो 
खर्च करने से बड़ता कम होता नहीं है ।।
***
 *चन्द्रप्रकाश शर्मा, पृथ्वीपुर

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13-गणतंत्र जैन ओजस्वी, खरगापुर

*जीवन-शिल्पी गुरू-चरणों में समर्पित दोहे*
===============

जग में तीनों पूज्य हैं, गुरू पिता अरु मात |
उपकारी तीनों कहे, निशदिन शीश नवात ||

जन्म दिया पालन किया, मात पिता का रूप |
गुरूवर तुम तो धन्य हो, दिया ज्ञान का रूप ||

कभी चुका नहिं पायेंगे, तीनों का उपकार |
तीनों ब्रह्म स्वरूप हो, तीनों विविध प्रकार ||
***
-गणतंत्र जैन ओजस्वी, खरगापुर

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-14-सुशील शर्मा, गाडरवारा

गुरु पर कुण्डलियाँ
सुशील शर्मा

सारे संशय दूर हों ,गुरु की कृपा अपार
अवगुण सारे मेटते ,शुद्ध करें व्यवहार।
शुद्ध करें व्यवहार ,ज्ञान की ज्योति जलाते
गुरु ग्रंथन का सार ,ईश से आप मिलाते।
हम अज्ञानी इंसान ,आप सर्वस्य हमारे।
मैं हूँ शिष्य सुशील ,हरो अवगुण मन सारे।
2
साधे गुरु के ही सधें ,सारे बिगड़े काम।
कर गुरुवर की वंदना ,ध्यान धरो गुरु नाम।
ध्यान धरो गुरु नाम ,ग्रहण कर गुरु से गुरुता।
सतगुरु ज्ञान अनंत ,दिलाते गुरु ही प्रभुता।
गुरु को नमन सुशील ,करा दो दर्शन राधे।
धन्य आपका नाम ,आप सब कारज साधे।

***
-सुशील शर्मा, गाडरवारा

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15-भजनलाल लोधी फुटेर टीकमगढ़
गुरुवर तुम जीवन दाता हो! 
भारत के भाग्य विधाता हो!! 
भारत............................. 
संस्कारमय  शिक्षा देते! 
लेकिन कठिन परीक्षा लेते!! 
तुम त्रिकालग्य के ज्ञाता हो!!०!! 
भारत.........      ................ 
आत्म शुद्धि सदबुद्धि देते! 
कोटि कलेश सहज हर लेते!! 
भावी युग के निर्माता हो!!०!! 
भारत........................... 
गुरु पद पंकज नित्य नमामी! 
तन मन धन आज्ञा अनुगामी!! 
मेरे तुम्हीं इष्ट पितु माता हो!!०!! 
भारत............................... 
वतन के खातिर जीना मरना! 
यैसा ज्ञान मेरे हिय में भरना!! 
कवि भजन बिश्व बिख्याता हो!!
भारत................................
स्वरचित एवं मौलिक
-भजनलाल लोधी फुटेर टीकमगढ़

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  16-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
गुरु देव के श्री चरणों में सादर नमन

गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु हैं, गुरु ही देव महेश।
हे गुरुवर कृपा करौ  ,  काटौ  कठिन कलेश।।

गुरु वर खबर न कभ‌उँ बिसरियौ, 
                    कोर   कृपा  की  करियौ।
लालच लोभ मोह मद मत्सर,
                   सबरे    औगुन   हरियौ।
जानी अनजानी भूलन पै ,
                     बिल्कुल ध्यान  न धरियौ।
उर उपवन मुरझान न द‌इयौ,
                     नेह  सुधा  बन  झरियौ।
चरन सरन पीयूष  आव  है ,
                      रीती     झोली  भरियौ।

               -प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
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17--जनक कुमारी सिंह बघेल, भोपाल
प्रेम प्रभा विखेरे

पूर्ण चांद निकसे नभ में , शिष्य सितारे घेरे।
दे दो सुचित ज्ञान हे गुरुवर , संवरे जीवन मेंरे।।
मेघों के दल घिर घिर आए, लेने ज्ञान गूरू से।
छिटक चांदनी कहती हंसकर, प्रभा प्रेम विखेरे।।

शीतलता सबको हर्षाती , खुशियां खूब बिखेरे।
तपिश दूर करती तन मन से , हर विकार हरे रे।।
प्रेम प्रीति की खुशबू फैले , मन का कलुष मिटे रे।
पल पल घटते - बढ़ते गिरते - उठते पूर्ण बने रे।।
***
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाइयां
-जनक कुमारी सिंह बघेल, भोपाल

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18-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा

कुंडलिया
गुन ज्ञान गुरु सें मिलौ,दूर होय अज्ञान।
खोटे जन की दूर हों,रै समाज में मान।
रै‌ समाज मे मान,जीवन सुखमय होवै।
हाथ माथ गुरु कौ रहै,औसर कौनउँ न खोबै।
कहें नन्द कविराय,उत्तम जीवन को चुन।
गुरु बिना जीवन खाली,गुरु महिमा गुन।
**-
-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा


🎊🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎊🎊🎇
                          संपादन-
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)

               

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                      💐😊 गुरु महिमा💐😊
             (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक) 💐
                
    संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 118वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 13-07-2022

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
              मोबाइल-9893520965