Rajeev Namdeo Rana lidhorI

सोमवार, 30 दिसंबर 2024

बुन्देली दोहा कोश समग्र-संपादक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ बुंदेलखंड,मध्यप्रदेश (भारत) प्रकाशक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ मोबाइल -9893520965

बुन्देली दोहा कोश समग्र-
संपादक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़ (मप्र)

1:- Rajeev Namdeo:
 *बुंदेली दोहा-मछौं (मधुमक्खी)*

#राना देखी है मछौ,टाँड़ी-सी  उतरात।
फूलन कौ रस लान कैं,ऊकौ शहद बनात।।

रबै  मछौं में एकता,छत्ता भी तन जात।
चिपकी राती हैं सबइ,मेंपर  रती बनात।।

मछौ लगत है जब जितै,मुसकिल लगे छुटान।
धीरें-धीरें जोर  लें,अपनौ  बड़ौ मचान।।

मेंपर दैतइ है मछौ,आत दवा के काम।
पैलवान सब खात हैं,कुश्ती लड़ें तमाम।।

जो भी पथरा मार के, देत मछों को छेड़‌।
निपरत ऊकी है उतइँ,#राना पूरी येड़‌।।
       *** दिनांक -23.6.2025
✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"
       संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
***

*2*Subhash Singhai Jatara: 
23.6.25-सोमवार बुंदेली - मछौं (मधुमक्खी)

लगत पेड़ पै जब  मछौ , छत्ता बड़ो    बनात |
भौत शहद निकरत उतै,  लोग टौर कैं आत || 

अगर छेड दो तुम मछौ , काटत ‌येसौ आन |
फुला आँग सब देत हैं , संकट में   हों प्रान ||

घर के बेड़ा सार में , कभउँ मछौ लग जायँ |
मिले धुआनी जब उयै, छोड़ मछौ तब आयँ ||

लोग मछौ भी पालतइ , शहद लेत हैं  जोर | 
बेंचें खूब बजार में , कर   लें   पइसा  ठोर ‌||

चिपके जब तन पै मछौ , भौत कुकातइ आँग |
सुइयाँ - सी लगबे बदन , मचत खूब है स्वाँग ||

सुभाष सिंघई 
***

*3* Promod Mishra Just Baldevgarh: बुन्देली दोहा ,विषय , मछोँ
**********
मछों  भीतरे राम ने , फैकटरी दइंँ डार ।
फूल चूस काड़ेँ शहद , धन्य तुम्हें करतार ।।

मछों काट लैवै अगर , बिच्छू सी भन्नात ।
घिसकेँ सौंठ लगाव जूँ , कै "प्रमोद"कानात ।।

मांछीं मछयानीँ फिरें , भौँर मछोँ की तीन ।
लुक गय किते "प्रमोद"अब , काटेँ उनखोँ चीन ।।

भौँर मछोँ में दइँ धमक , जब गुथना की लोड़ ।
सब माँछीँ ढूँढ़त फिरेँ , ने रइँ बिल्कुल छोड़ ।। 

भौंर मछों के कै छिदा , पीपर पै इतरात ।
अगर फूल होवै उतै , मैपर कड़त बिलात ।।

चूँमा लै गइँ आँख मेँ , मछोँ की माँछीँ आन ।
सूँजी फूँली आँख लयँ , धना चबा रइँ पान ।।

भौंर मछोँ उबराय तो , धुआँ दिखा दो ऐन ।
नइंँतर सुनो "प्रमोद"बा , चींथ करें बैचैन  ।।
*****
   प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश
   ***
*4*  Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय मछों 
                   1
चूरन कइयक बन्न के, अलग -अलग तासीर। 
मछौं संग चूरन मथौ, तन की हरबै पीर। 
                      2
जब होबै पूजन हबन, मछौं मँगाई जात। 
शक्कर घी दइ दूद सँग, पंचामृत कहलात। 
                       3
मेंन मछौ कौ मेंन है, मिला माँयदी संग। 
जब भी जनी रचाउतीं, अलग दिखाउत रंग। 
                         4
पेडें चढ करकें जुगत, माँछी सबइ बिडार। 
मछौं टोर कइयक जनें, मैंपर लेत निकार। 
                           5
भोंर मछौं खों टोरबे, सुल्ला जुगत लगाँय। 
थर थर काँपें सोचबें, काहो चिथ ना जाँय। 
रामानन्द पाठक नन्द
***
*5* Dr. Renu Shrivastava Bhopal
दोहे विषय मछौं
✍️✍️✍️✍️✍️
मछौं झुंड में रात है, उये न छेड़ौ मान।
नातर पछया जाय जब, चीथ चीथ लै प्रान।। 

मधुमक्खी ऊको कहत, मछौं शहद की खान।
फूलन से रस लेत है, मैपर कात सुजान।। 

मछौं जिते लग जात है, करौ धुआनी जाय। 
दुक के फिर देखौ तनक, सेना घांइ दिखाय।। 

मोड़ा बारे के लेंगा, मोड़ी बारे जात। 
परै मछौं सी भीर फिर, घर बारे इठलात।। 

मैपर को धंधो करौ, छत्ता मछौं बिलात। 
भर भर बोतल बेंच लो, व्यापारी लै जात।। 
✍️✍️
                  -डॉ. रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
****
*6*शोभाराम दाँगी नदनवारा 
बिषय-"मछौं" (मधुमक्खी,शहद,छत्ता) बुंदेली दोहा (275)    (01)
मछौं घाँइ चिपटे रहे,रस पीबै हम पैल ।
तर ऊपर मक्खी गुथीं,"दाँगी"कड़ गय गैल ।।
                   (02)
भौर मछौं मुल्कन लगीं,इक पीपर के पेड़ ।
नइ बउ निकर न पात है,"इन्दु" लगाबै ऐड़ ।।
                    (03)
"इन्दु"मछौं जो रूठबै,बिन चींथै नै छोड़ ।
बच्चों से बोलत नही, है ईमान निचोड़ ।।  
                    (04)
शहद मछौं सैं ही बनै,करत दवा का काम ।           "दाँगी"शहद बजार में,बेंचत ऊचे दाम ।। 
                      (05)
रस फूलन कौ चूसकैं,छत्ता बड़ौ बनात ।
छत्ता सैं निकरैं शहद,"दाँगी" मछौ लियात ।।
                     (06)
कोउ तनक रौराय तौ,गम्म मछौं  नै खात ।
छोड़त नई कितउँ दुकौ,"दाँगी"बो खिस आत ।।
***
-शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा 
जिला टीकमगढ़ (मप्र)

[21/06, 12:33] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहा बिषय-:- भियाने/ भ्याने  (कल सुबह)*

#राना भ्याने का धरौ,अबइँ करौ सब बात।
निपटा कैं ही घर चलो,पारौ  नईं  उलात।।

भ्याने चलौ बरात में,हो जाओ तैयार।
लरका बारौ कात है,बनौ रयै व्यवहार।।

भ्यानें #राना  जा रहे,अपनी निज ससुरार।
धना लिबा के लाउनें,अपने घर के द्वार।।

#राना भ्याने आ रयै,भारी नातेदार।
भैया के हैं  वर दिखउँ,नदिया के ऊ पार।।

#राना भ्याने अब मिलें,सबखौ सीताराम।
दोहा लिखयौ सब जनै,बड़ौ सुहानो काम।।
     *** दिनांक -21.6.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
       संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com

[21/06, 15:15] Promod Mishra Just Baldevgarh: बुन्देली दोहा ,विषय ,, भियाने 
************************************
हुँयेँ भियाने राम जूँ  , सुन लो अवध नरेश ।
चलन लगेँ वनवास खाँ , उल्टो भव संदेश ।।

आँयँ भियाने पाँवने , उन सेँ हर हकवाँयँ ।
कड़ी भात रोटी बरा  , उनेँ "प्रमोद"खुआँयंँ ।।

जारय मान्स कमाँस खाँ , सुनी भियाने भोर ।
चर्चा अबइँ अथाइँ पै , कततो राज किशोर ।।

मिलों भियाने दिन चढ़ेँ , पीपर तरेँ "प्रमोद" ।
अमियाँ चौँखेँ पाल की , मउआ इमली कोद ।।

सपर खोर भ्याँने धना , शिव मंदिर में आव ।
हुइये उतइँ"प्रमोद"सेँ , प्रेमालव बतकाव ।।

जैयँ भियाने खेत पै , लयँ उरदन को बीज ।
लासो छिरकेँ पैल हम , चारो जैहै सीज ।।

भ्याने की करियो खबर , होगइंँ मनइँ बिलात ।
खावैं परेँ "प्रमोद"खोँ , बोलो को दयँ जात ।।
***************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[21/06, 15:53] Subhash Singhai Jatara: 21.6.25- शनिवार भियाने/ भ्याने  (कल सुबह )

भ्याने कभउँ न आत है , जो रत है वह आज‌ |
जो करने सो कर चलो , रखकैं निज आबाज ||

पइसा माँगे साव से , बोले   भ्याने    आवँ |
गानौ रखकै‌ खूब तुम , रुपया सब  ले जावँ ||

टर गइ भ्याने बात है ,  उचट गई पंचाट  |
जौरो फिर से जोगना , और बिछाओ खाट ||

भ्याने   नेता आवने , सड़कें  हो रइँ साफ |
कल्लू से कइ आइयो , हौजे करजा  माफ ||

करौ आज की आज सब , भ्याने पै ना टार |
साजे काम बिगार दे , जो‌   टपकी  है  लार ||

सुभाष सिंघई 

~~~~~~~
[21/06, 16:11] Prabha Vishwakarma 'Sheel' Jabalpur: तनक- मानक सी बात पै, बैठ रही पंचयात।
 भ्यानें  मोंह न  खोलियो, दबी रहन दो बात।।

भ्यानें है दिन योग को, मिलखें करियो योग।
 योगासन व्यायाम सें, कभउँ न आवे रोग।।

भ्यानें आंहै पाहुने ,करें ब्याव की बात ।
नबैं भड़रिया तक कहो, लै खें आए बारात।।

जाओ संदेसौ भेज दो, भ्यानें लगै बारात ।
आज बराती सब थके, करें रात गुजरात।।

तन मन डुबो पाप में, सब कछु हड़पें लेत ।
भ्यानें की बिसरे खबर, जब जम डंडा देत।।
🙏
प्रभा विश्वकर्मा 'शील '
जबलपुर
[21/06, 16:49] Prabha Vishwakarma 'Sheel' Jabalpur: कुंडलियां

भ्यानें है दिन योग को, 
मिल खें करियो योग। 
योगासन व्यायाम सें,
 कभउंँ न आवे रोग ।।
कभउँ न आवे रोग, 
सुनो ऋषियों की वानी।
 करें तपस्या ध्यान,
 योग सें बढ़ै जवानी।
 योग दिवस इक रोज,
 नहीं निसदिन  हैं आने।
 कह रईं प्रभा शील, 
योग को दिन है भ्यानें। 
🙏
प्रभा विश्वकर्मा 'शील '
जबलपुर
[21/06, 17:38] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय भ्यानें 
                  1
चलौ सखी भ्यानें अपुन, अवधपुरी से धाम। 
जाँ सरयू इस्नान खों, दर्शन खों श्री राम। 
                 2
खुलें भियानें मदरसा, पडवे खों पोंचाव। 
पड लिख कें काबिल बनों, दूध मलाई खाव। 
                 3
पर गव पैलौ दोंगरौ, हो गय खुसी किसान। 
भ्यानें सें जुट हैं सबइ, फल दै हें भगवान। 
                   4
मइना साउन आ रऔ, भ्यानें है त्यौहार। 
झूला झूलें तीज कौ, बैठैगे करतार। 
                     5
आव पिया परदेश सें, सूनों है घर दोर।
भ्यानें बैठौ रेल में, कर रइ फौन लिलोर। 
रामानन्द पाठक नन्द
[21/06, 18:28] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे,विषय-भ्यानें 
**********************
को जानें भ्यानें हमें, 
         सुख मिलहै कै दुक्ख।
हँसकें जी लो आज खों,
             छोड़ौ भद्रा पुक्ख।।
********
आज करौ आराम फुल,
              भ्यानें करबूँ काम।
ऐसी रख हौ सोच तौ,  
             माया मिलै न राम।।
********
जो भ्यानें की योजना,
              बना लेत हैं आज।
हरय-गरय उनके कभउँ,
         पछलत नइँयाँ काज।।
********
पंगत में ख्वा कें लटा,
           शासन  देत  दुहाइ।
कुँवर कलेबा में मिलै,
          भ्यानें गोल मिठाइ।।
**********************
गोकुल प्रसाद यादव नन्ही टेहरी
[21/06, 20:38] Taruna khare Jabalpur N: भ्याने, शब्द पर दोहे 


भ्याने मैके जाउने, सुनियो राजा बात।
सौदा लैबै आप भी,चलियो मोरे साथ।।

मौड़ी की ससरार सैं,आय पाउने चार।
भ्याने बिटिया की बिदा,धरो करेजे भार।।

भ्याने आने आप भी,मिलखैं करबी योग।
मिटैं बिकार सरीर के,तन मन होंय निरोग।।

आज बने राजा फिरैं,भ्याने होबैं रंक।
रीत जई संसार की,नइयां कौनउ संक।।

आज भांवरें पर गईं,हो गय पीरे हांत।
भ्याने बिटिया की बिदा,जायं पिया के सांत।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[21/06, 20:55] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहे 
विषय:-भ्यानें/कल 
भ्यांने की कयॅं सोच रय,करौ आज सब काम।
जीवन की जानें कहाॅं, कब जानें हैं शाम।।१।।

भ्यांने की ठेलत फिरत, पल कौ नैंयां ठौर।
दाॅंत निपोर काय खों,उठा न पा है कौर।।२।।

आज अगर नोनो करौ, तौ भ्यानें सुक पाव।
न‌इतर स्यांने कै गय,बिकौ भटों के भाव।।३।।

भ्यांने की को जान रव, छोड़ जगत जंजाल।
जौन जियत हैं आज में,बे सब मालामाल।।४।।

भ्यांने की कै गयॅं सजन, बीती पूरी साल‌।
ल‌इॅं न‌इॅं खबर अहीर नें, परसें बैठी थाल।।५।।
               भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[21/06, 21:00] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -221*
दिनांक -21.6.2028
*विषय:-भ्यानें (कल सुबह)*

*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
जो करनें सो कर अब‌इ, भ्यानें पै नें टार।
सरकत जा रव जो जगत, लगी जीत उर हार।।
             ***
                -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा
*2*
करम गती जानी नहीं, नहीं कछू अंदाज।
भ्यानें की देखी नहीं, आजइ कर लो काज।
                  ***
              -प्रदीप खरे'मंजुल' टीकमगढ़ 
*3*
आ रय सबरे पावने, भियाने पनचयात।
इक सोने की चीज पे, मांझी बिगरी बात।।
           ***
            -विशाल कड़ा,'मांझी',बडोराघाट,टीकमगढ़
*4*
भ्यानें कौ की खों पतौ,आम होय चय खास। 
राजतिलक होंनें हतौ, हो गव तौ बनवास।।
              ***
             -रामानन्द पाठक 'नन्द', नैगुवां
*5*

भौजी भ्यानैं आवनैं,बसे पावनैं चार ।
काम क्रोध मद लोभ जे, रै गय डेरा डार ।।
                ***
      -शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा
*6*
 फोन लगा के पूछ लो,भ्याने आरय  कंत।
जी के आबे सें लगे, जो घर एक बसंत ll  
           ***
         -ब्रिंदावन राय 'सरल',सागर 
*7*
भ्याने तक नहिं आय तो,भरत तजेगो प्रान।
तबइ संदेसो राम कॉ, लै आए हनुमान।।
           ***
      -के. के. पाठक, ललितपुर 
*8*
भ्यानें है दिन योग को,मिल खें करियो योग ।
योगासन व्यायाम सें ,कभउँ न आवें रोग।।
           ***
          -प्रभा विश्वकर्मा 'शील', जबलपुर 
*9*
भ्याने की पंगत बड़ी,आहें तीन हजार।
पूड़ी सबजी तौ बनै, संग में चाबल दार।।
         ***
          - वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*10*
पाप गठरिया छोड़ दे,भ्याने जाने तोय।
पिरभू को ध्यान धरले,संग न जेहे कोय।।
          ***
            - रंजना शर्मा, भोपाल 
*11*
भ्याने पै  जो टारतइ,उनसे  आज सबाल।
देखो तुमने है किते,दिन कैसौ है काल।।
            ***
            - सुभाष सिंघई जतारा 
*12*
पल में परलय आत है, भ्याने  की  को  काय।
पलक झपकतन देह से, प्राणवायु उड़ जाय।।
                 ***
               - अमर सिंह राय,नौगांव
*13*
जौ जग कर्म प्रधान है, मनुआ रहो सचेत। 
आज करम नोने करौ,भ्याने प्रतिफल देत।।
        ***
             -आशा रिछारिया, निबाड़ी
*14*
सुनत भियाने कृष्ण खोँ,मथुरा पकर बुलाव।
उनेँ लुआवे कंश को,एक आदमी आव।।
              ***
         - प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 
*15*
होय काम जो आज को,भ्याने पै नै टाल।
तनक भरोसो है नईं,का हो जाबै काल।।
              ***

              -तरुणा खरे'तनु' जबलपुर
*16*
भ्याने का होने हतो, कोउ जान ना पाव। 
चढ के चले विमान में, कोउ न वापस आव।।
            ***
           -डॉ.रेणु श्रीवास्तव,भोपाल
*17*
भ्यानें भ्यानें कैत रत, भजन करै नैं ध्यान।
माया में प्रानी धसौ, बिसरौ हरि कौ थान।।
            ***
        -मनोज साहू 'निडर', नर्मदापुरम
*18*

अथयँ भियानें की फिकर,बीते दिन की टीस।
सब  तज कें  आँगें बढ़ौ, जगत नबाहै सीस।।
          ***
         -गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी
*19*
चलें   भिंयाने  ओरछा, एक  पंथ  दो काज।
दरसन प्रभु श्रीराम के, बुला  र‌ईं  साराज।।
               ***
                     -प्रभुदयाल श्रीवास्तव'पीयूष', टीकमगढ़
*20*
आउत  आँख  तरेर  कें, धीमें   लौटत  धूप।
भ्याने  दुपरैं  साँज  धर, न्यारौ  अपनों  रूप।।
               ***
            -विद्या चौहान,फरीदाबाद
*21*
भ्यानें जावै घूमवे, दिनछित  खाना खाय।
छिकरा सौ कूँदत फिरै,रोग लिगाँ नै आय।।
        ***
           - अंजनी चतुर्वेदी निबाड़ी 
*22*
चलो भियाने कड़ चलें, भैया अब परदेस ।
सूखा  पर गव  गांव में, कैसे  कटे कलेस ।।
            ***
           -डॉ.राजेश प्रखर कटनी(म.प्र.)
*23*

भ्याने दैहें कात हो, बो भ्यानो कब आय।
ब्याज छोड़ अब मूल दो, करजा दै पछताय।।
            ***
                 -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
*24*
भजन करो नें राम कौ, खेले मन के खेल।
आज भ्याने के करत,छूटी जीवन रेल।।
              ***
            -डॉ.देवदत्त द्विवेदी,बड़ामलहरा 
***
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
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[16/06, 08:15] Rajeev Namdeo: * *बुंदेली -रनवन (अस्त व्यस्त)*

#राना रनवन ना रओ,समरौ  भइया  आप।
करियौ  नौनें  काम सैं,जग में अपनी  छाप।।

गैल गली अरु गाँव में,नगर शहर देहात।
#राना रनवन जो रयैं,मिटा लेत औकात।।

रनवन बिगड़ी जिंदगी,जो जीते हैं लोग।
#राना उनखौं जानिए,पालें रहते रोग।।

रनवन रत हैं आलसी,सबरी चिंता छोड़।
इसथिर राखत जिंदगी,कभउँ न लेतइ मो‌ड़‌।।

रनवन जिनकौ राज है,प्रजा दुखी दिखलाय।
#राना कौसत रात दिन,कैसे  राजा पाय।।
              *** दिनांक -16.6.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[16/06, 10:04] Subhash Singhai Jatara: 16.6.25-सोमवार बुंदेली रनवन (अस्त व्यस्त)

रनवन जिनकी जिंदगी , उनखौ चिंता रात |
ठिया ठौर भी ना रयै , दिखतइ है अकुलात ||

कछु ठैकै रनबन रयै , दाड़ी मूँछ बढ़ायँ ‌|
गप्पें मारें  बैठ कैं , दिखत  तमाकू खायँ ‌||

रनमन तन मन भी दिखे , जी भी रत बैचैन  |
बोलत बौ है कुछ अलग , कउँ मटकाबै नैन ||

रनवन जिनकै घर रयैं , भिनतक रत हर चीज |
लगतइ  सबखौ  है उतै ,    खौ गइ इतै तमीज ||

अनबन से रनवन कितउँ , तन मन सोइ दिखात |
चिन्ता में जी रात है , तन की    खाज खुजात ||

सुभाष सिंघई
[16/06, 13:00] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,,बुंदेली दोहा विषय,,रनवन,,
***************************************
रनवन के भय आदमी , लगे जाति बर्रान ।
लाज शरम खोँ त्याग केँ , झूँटेँ देत ब्यान ।।

रनवन को डैरा करोँ , उपजेँ घरेँ कपूत ।
किलकिल होरइँ रात-दिन , बुरइँ फैल रइंँ छूत ।।

 ठेकादार समाज केँ , देत उबाँड़ी सीख ।
 रनवन की शिकछा करीँ , माँग वोट की भीख ।।

रनवन को सिंदूर भव , संस्कार की हान ।
पत्नी खुद लैवै दती , अब पतना के प्रान ।।

रनवन होरइँ देश की , रकम धरीँ मनयाइँ ।
नेता खा रय सूँट केँ , कैरय जेइँ भलाइँ ।।

लाशें रनवन की डरीँ , क्रोधित भय यमराज ।
देखत रहेँ "प्रमोद"सब , जलता हुआ जहाज ।।

चाटुकार रनवन करेँ , बनो-ठनो परिवार ।
इन्ने खा लव राम धइँ , खुशियन को तेवार ।।
****************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[16/06, 14:02] Sr Saral Sir: *बुंदेली दोहा विषय -रनवन* 

सोनम नै रनवन किओं,राजा को परवार।
हत्या राजा की करी, करो राज से प्यार।।

पूछताछ होबे लगी, कस रइ रोज नकेल।
रनवन के  डेरा  करे , सोनम पहुँची जेल।।

राज विचारों का करें,सबरे खुल गय राज।
सोनम नै रनवन करों,गिरी सबइ पै गाज।।

सोनम  हत्या कांड में, उजड़े कइ परवार।
रनवन होगइ जिंदगी,कठिन बला है प्यार।।

*सरल* यार रनवन करे,करों प्यार बदनाम।
हत्यारन भइ कामनी,लगा न पाइ लगाम।।

         *एस आर सरल*
              *टीकमगढ़*
[16/06, 14:58] Vishal Kara Baroraghat Tkg Kavi: *—दोहे—*
विषय:– रनबन (बुंदेली में)
16जून2025, सोमवार

१. 
धनुष राम रनबन करौ, पाए सीता मात।
अहंकार को तोड़ियों, ‘मांझी’ ऐसी कात।।
२. 
‘मांझी’ भी रनबन हुए,हुआ रनबन कश्मीर।
जो विमान रनबन हुआ, ऊकी देखो पीर।।
३. 
‘मांझी’ की चिनता सुनो, रनबन होत समाज।
जात–धरम की लेन जा, मिटा दियो महराज।।
४. 
रनबन होबे जिंदगी, ‘मांझी’ बैठे मौन।
चिपको रत हैं कान से, बचकानी को फोन।।
५. 
‘मांझी’ रनबन सो भयो, जब देखो संसार।
पइसन से सब होत हैं, रखियो कई हजार।।

*~विशाल कड़ा “मांझी”*
*बडोरा घाट, टीकमगढ़*
[16/06, 15:16] +91 76102 64326: शोभारामदाँगी बिषय-"रनवन" (अस्त्र-व्यस्त्र)बुंदेलीदोहा(274)
                   (01)
मिल न पाव रुजगार कुछ,पानें हतौ जरूर ।
रनवन हो गइ जिंदगी,"दाँगी"रखैं सबूर ।।
                     (02)
रनवन कर गय है किशन,रंग गुलाबी डाल ।
भर पिचकारी घाल दइ,"दाँगी"नंद
गुपाल ।।
                      (03)
रनवन होबैं काम तौ, घर में होबैं दंद ।
"दाँगी"कांलौ का करैं , बीदी रतइ गुचंद ।।
                    (04)
ऐसइ कड़ गइ जिंदगी,भव रनवन परिवार ।
"दाँगी"प्रभु
के आसरैं,लेव खबर सरकार ।।
                    (05)
दारू जुआ कि आदतें,जीखौं होबै ऐन ।
रनवन की रै जिंदगी,"दाँगी" पकरैं लैंन ।।
                     (06)
जीवन का पथ लैंन से,"दाँगी"तुम
लयँ राव ।
रनवन होने ना परै,साजौ देत सुझाव ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला  टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[16/06, 16:55] Dr. Renu Shrivastava Bhopal: दोहे विषय रनवन (अस्त व्यस्त)
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
रनवन भौ परवार सब, 
अवध पुरी को आज। 
कैकइ ने जा कै दई, 
भरत करेंगे राज।। 

सोनम को परवार भव, 
रनवन करौ विचार। 
मोड़ी को जा छूट दइ, 
बिगड़ गओ संसार।। 

गरमी की छुट्टी लगीं, 
शाला रनवन होत।
प्रवेशोत्सव आज है, 
नई जलत जा जोत।। 

बदली जब हो जाय कउ, 
रनवन होत समान। 
कर उसार फिरकें धरौ, 
घर बाखर की शान।। 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
              डॉक्टर रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
              स्वरचित मौलिक
[16/06, 18:18] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय रवबन
                    1
लौटा दो तुम जानकी, अंगद देत सुझाव। 
रनबन की लंका हुयै, कछू न तुम कर पाव। ।
                     2
जाव शरन लंकेश तुम, राम जगत आधार। 
सीस दसइ रनबन हुयैं, जो तुम ठानों रार।।
                       3
काम न करियौ जौंन सें, नैची होय निगाह। 
रनबन होबे सें बचौ, पकरौ सत की राह। ।
                         4
नोंक लगाई कौरबौं, खुदइँ खोद लइ खाइ। 
रनबन के होकें रये, तनिक शरम ना आइ ।।
                          5
बहुधन बरत अकाजली, लरका दारू खोर। ।
लजा रई है लाज खुद, लख रनबन घरदोर।।
रामानन्द पाठक नन्द
[14/06, 12:54] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहे - रचैया(रचनाकार)*

सबइ रचैया देख कैं #राना करत प्रणाम।
सबके अपने हैं हुनर,जय‌ बुंदेली धाम।।

बँटे दिनन के बार हैं,सुंदर लिखतइ छंद।
सबइ रचैया भाग लें,मन में भर आनंद।।

बुंदेली है जो पटल,सबइ रचैया जान।
लिखत छंद बेजोड़ है,हौत सबइ कौ  मान।।

सबइ रचैया नेह से,पढ़ो सबइ के छंद।
और करौ तारीफ भी,बिखरा मिस्री मंद।।

छपत रचैया हैं सबइ,निकरत जौन किताब।
#राना छापत रात है,जैसौ बनत हिसाब।।
           *** दिनांक -14.6.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[14/06, 17:03] Subhash Singhai Jatara: 14.6.25- शनिवार  रचैया/रचनाकार ।

बड़े रचैया गीत के , मिलतइ इतै सुजान |
बुंदेली शुभ  शान की,  राखत सब पैचान ||

एक रचैया ईसुरी ,  लिख  चौकड़िया  छंद |
अमर नाम खौ कर गये , दे सबखौ आनंद ||

एक रचैया भी सुनौ , जगनिक जिनको नाम |
लिखकें आल्हा गा गये ,   नगर महोबा धाम ||

नगर ओरछा कवि भये , केशव जू महराज |
बड़े रचैया ग्रंथ के ,   कवियन  में  सरताज ||

भौत रचैया है मिलत , जिनके सुंदर गीत |
गातइ हैं सुर ताल से , राखत सबसे प्रीत ||

बनत रचैया हैं तबइँ , जब माँ खुश हौ जात |
लिखत प्रेम सै सब जनै , तब उमदा सब कात ||

सुभाष सिंघई 
~~~~~~~~
[14/06, 17:35] Taruna khare Jabalpur N: रचैया, शब्द पर दोहे 


खूब रचैया हो गए, रचना लिख रय रोज।
कहूं करुण सिंगार रस,कहूं समानो ओज।।

सृष्टि रचैया नै रचो, कैसो जो संसार।
रकम रकम के जीव उर,बरन बरन आहार।।

सृष्टि रचैया ब्रम्ह हैं,बिसनू पालनहार।
भोले संकर जी करैं, दुनिया को संहार।।

एक रचैया रच रओ,कैंसे कैंसे खेल।
ऊके आंगू हो गए,सब बिग्यानिक फेल।।

गिरधारी मनमोहना,रास रचैया स्याम।
जसुदा तोरे लाल के,जाने कितने नाम।।


तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[14/06, 19:46] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय रचैया 
                   1
रास रचैया नें रचौ, रास गोपियन संग। 
शिब जी आकें देखबें, पुलकित होबें अंग। 
                      2
जगत रचैया नंद हैं, नटखट नंद किशोर। 
बंसी की धुन छेडते, होबें सबइ बिभोर। 
                       3
जनमें कारागार में, खेले गोकुल धाम। 
रास रचैया हैं बडे, मुरली धर घनश्याम। 
                       4
सीता नें मुदरी लखी, उठे एक छिन भाव। 
माया ढिंग माया रचन, कौन रचैया आव। 
                         5
रुच-रुच रचना रच रये, दोहा रोला छंद। 
बढ-चढ कें रचबें सबइ, संग रचैया नंद। 
रामानन्द पाठक नन्द
[14/06, 20:36] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -220*
*प्रदत्त शब्द - रचैया( रचनाकार)*
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
नाच नचैया होत है,करता फिरता नाच।
झूठ नहीं मैं बोलता, कहता बिलकुल सांच।।
     ***
               - डॉ. जगदीश रावत, छतरपुर 
*2*
जगत रचैया राम हैं, बेई पालनहार। 
ब्रह्मा हरि हर रूप धर,फेर करत संघार।।
           ***
             -रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ 
*3*
बड़े रचैया सृष्टि के, ब्रम्हा जू कैलात।
पालत बिस्नू देव हैं,शिव रक्छा हितु आत।।
                ***
           -सुभाष सिंघई, जतारा 
*4*
तुलसी सूर कबीर सो ,आज रचैया कौन।
पूछीं धरती गगन से ,रही सृष्टि लौ मौन।।
            ***
         -बिंद्रावन राय सरल सागर
*5*
नये रचैया आजकल , लिख रचनायें रोज।
बन रय रचनाकार हैं , लिख लिख रचना ओज।।
         ***
             -वीरेंद्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*6*
रूप रंग सबको अलग, भिन्न कार-व्यौहार।
ब्रह्म  रचैया  ने  रचो,जो   ऐसो   संसार।।
               ***
              -अमर सिंह राय, नौगांव 
*7*
राम रचैया विश्व के, रामइ पालनहार।
नामजाप करता हमें, भवसागर से पार।।
          ***
             -डॉ. सुनील त्रिपाठी 'निराला' भिण्ड
*8*
रास   रचैया  लेव  सुध,  संकट  में  संसार।
नाव फँसी मझधार में,  तुमइँ लगा दो पार।।
           ***
      - विद्या चौहान, फरीदाबाद 
*9*

जगत रचैया तुम बड़े, रिसा गये अब काय। 
जित देखौ तित मर रहे, निर्दोषी अब जाय।। 
             ***
          -डॉ. रेणु श्रीवास्तव (भोपाल)
*10*
रचै रचैया रोज ही,,कृती एक सैं एक।
कछू कुकर्मी होत रे, कछू होत हैं नेक।।
         ***
         -प्रदीप खरे'मंजुल' टीकमगढ़ 
*11*
लख चौरासी यौनिके,बाद मिली ये देह ।
बिम्मा जू ई खौं रचै,सुंदर है यह गेह ।।
            ***
            -शोभाराम दाँगी 'इंदु', नदनवारा 
*12*
जगत रचैया सैं बड़ौ, हो गव अब इंसान।
 माटी पथरा  के बना , बेंचत  है भगवान।।
                ***
           -आशाराम वर्मा 'नादान',पृथ्वीपुर
*13*
जगत रचैया की कहौ, लीला कही न जाय।
लिखो सबइ तगदीर में, कोउ बाँच नें पाय।।
          ***
       - डॉ. देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा 
*14*
बड़ो रचैया एक है, दुनिया में भगवान।
बन्न - बन्न  प्रानी रचे, सुघर रचो इंसान।।
             ***
       -श्यामराव धर्मपुरीकर, गंजबासौदा 
*15*
गाना जो रोजउॅं रचत, कतइ रचैया वाय।
नौनी बुन्देली लगत,समझ सबइ खौं आय।।
               ***
            - रामसेवक पाठक"हरिकिंकर", ललितपुर 
*16*
कौन रचैया विश्व कौ,को जग पालन हार।
अलग अलग मत पंथ में,उल्झों है संसार।।
              ***
         -एस.आर.सरल,टीकमगढ़
*17*
राम रचैया जगत के,जगत राम के हाथ।
जन-जन सुमिरत रात-दिन,जय-जय श्री रघुनाथ।।
             ***
          -प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 
*18*
रास रचैया नंद कौ,लल्ला माखन चोर।
चंचल चित्त चुराय कें, प्रेम प्रीत द‌इ टोर।।
            ***
            -  भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
*19*
वेद रचे हैं व्यास ने, कृष्ण रचाये रास।
रन में गीता रच दई ,मिटी मोह की त्रास।।
           ***
            -प्रभा विश्वकर्मा 'शील',जबलपुर 
*20*
रास रचैया नंद को,लाला नंदकिसोर।
घर-घर मै चोरी करी,नटखट माखन चोर।।
          ***
          -तरुणा खरे'तनु' जबलपुर
***
*21*
ग्रंथ रचैया रच गये, अदभुत ग्रन्थ महान। 
जुगन जुगन सें हो रऔ, जिन सें जन कल्यान।।
             ***
             -रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां
*22*
हृदय होय करुणा कलित, पर में निज परतीत ।
लिखै लेखनी लोक हित, रचै रचैया गीत ।।
                ***
              -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*23*
जौन रचैया रचि दियौ, सपनन कौ संसार।
बसे सभइ में प्राण है, साँचो जस औतार॥
            ***
            -सुव्रत दे,सम्बलपुर
***
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965
##############

[09/06, 09:40] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहे 
विषय:-नातर
साजे करियो सब करम,जीवन में सुख चाव।
नातर चमगादड़ बनौ,टॅंगे- टॅंगे मों बाव।।१।।

मानुष कौ चोला मिलो,जौ भारी अनमोल।
गैल झार कें निग चलौ,नातर भारी झोल।।२।।

दीन दुखी कौ कर भलौ,कै रय वेद पुरान।
नातर जुर ऐंसो चढ़े, फिर  हौ लेत उरान।।३।।

नाली के कीरा बनौ,नातर बन हौ‌ ढोर।
न‌इॅंतर"अनुरागी" हरी, ढेंड़ो दें हैं टोर।।४।।

कुत्ता कौ जीवन मिलै, नातर बन हौ ऊॅंट।
भजन करौ श्री राम कौ,अपनी भर नें सूॅंट।।५।।
                   भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[09/06, 09:46] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा* 

दिनांक 9.6.25-सोमवार बुंदेली दोहा बिषय- -273- *नातर* (नहीं तो)

#राना दद्दा कात ते,चले जावँ इस्कूल।
नातर चमड़ी टौर दें,सिटपिट्टी जै भूल।।

माटसाब भी कात ते,करकें लाओ काम।
नातर मुरगा दें बना,जितै रात है घाम।।

नातर सुन कैं है लगत,अच्छी है यह धौस।
सुनकै सबइ डरात हैं,जैसे  तुचकै कौंस।।

देख ससुर खौं पावने,माँगें  मोटर कार।
नातर चल दें रूठ कैं,बिना विदा घर द्वार।।

मौड़ी कत है बाइ से,नय उन्ना ले आवँ।
नातर हम इस्कूल में ,कैसे करें दिखावँ।।
  *** दिनांक -9.6.2025

*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
         संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[09/06, 09:54] Subhash Singhai Jatara: 9.6.25-सोमवार बुंदेली -नातर (नहीं तो)

भारत कातइ  पाक  सें , पुतरा  सुन ले  बात |
नातर खाबै खौं मिलें , हम सब  के  दो हात  ||

समझा कैं सब हार गयँ , ठेंटा खोलो कान |
नातर कड़जै अब  हवा , तोरी पाकिस्तान ||

नइँ करियौ तुम चीं पटा , चुखरयाइ दो फेंक |
नातर अब कनबूजरै , देंयँ   पाक  हम  सेंक |

कई बेर तै हार गवँ , अबकी  आखिर मान |
नातर बिद कै सामने , मर जै   पाकिस्तान  ||

भारत खौं गुस्सा भरौ , करियौ नईं   बबाल |
नातर तोरी पाक अब  , चिथ जै पूरी खाल ||

सुभाष सिंघई
[09/06, 11:44] Dr. Renu Shrivastava Bhopal: दोहे विषय नातर (नहीं तो)
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
सीता से लक्ष्मण कहें, 
जाव ना रेखा पार। 
नातर हो जैहै बुरौ, 
रामायण को सार।। 

बाप मताई कात हैं, 
मानो मोरी बात। 
नातर पूँछै कोउ ना, 
दो रोटी की बात।। 

बेरोजगारी बढ़ गइ, 
फिर रै पढ़े जवान। 
नातर अपसर बनत ते, 
आन वान रत शान।। 

सेवा जेठे बड़न की, 
कर लइओ भरपूर। 
नातर पश्चाताप है, 
जीवन भर को सूर।। 

बहु खों बेटी मानिओ, 
न सताओ तुम रोज। 
बेटी आय पराये की, 
पनी बना लो मोज।। 

बूटी लैं के आ गये, 
महावीर हनुमान ।
ननतर तो कड़ जात ते, ।
लखन भाइ के प्रान।। 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
          डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
          स्वरचित मौलिक
[09/06, 13:48] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा ,बिषय ,,नातर ,, नहीं तो
*************************************
भ्रूण हत्या बंद हो , बिटियाँ होँयँ बिलात ।
नातर सुनोँ "प्रमोद"सब , फिन्ने माँगत खात ।।

रीती बुरी दहेज की , सास बहूँ की जंग ।
रोको आज "प्रमोद"सब , नातर घटै उमंग ।।

भौत मनइँ भइँ देश मेँ , ई पै रोक लगाव ।
नातर कभउँ "प्रमोद"तुम , रोजगार नइँ पाव ।।

सोच समझ केँ ल्याइयो , ब्या ठ्या घरबाइँ ।
नातर सुनो "प्रमोद"बा , करदे कुगत तुमाइँ  ।।

छोड़ोँ चाल चपाट सब , नातर घलहै मार ।
अनपढ़ रहेँ "प्रमोद"तो , जीवन है बेकार  ।।

धरम जात में जब बटेँ , घटेँ कटेँ सब लोग ।
नातर एक "प्रमोद"रव , दूर रखोँ हर रोग ।। 

जी खाँ जी सेँ जियाँयँ भव , उतइँ मुतन दो प्यार ।
नातर लुटोँ "प्रमोद"सो  , जान जैय संसार ।।
***************************************
     ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[09/06, 15:40] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय नातर 
                  1
सइयाँ जाव बजार तुम, बनवा लाऔ हार। 
आनाकानी जिन करौ, नातर हुइयै रार। 
                    2
दै धमकी कैरय पिया, अगर न पानूँ दैव।
सुनकें बे खिसया परीं, नातर का कर लैव। 
                     3
पानूँ कर दइऔ गरम, पिया डरा कें कात। 
ठंडे पानूँ सेंइँ हम, नातर सपरें जात। 
                      4
मइना लगौ असाड कौ, कर टरावनी लेव। 
नातर बरसा के भयें, घर में नौका खेव। 
                       5
मूँगफली सोया उडद, बीज प्रमाणित बैव। 
दाम टका हाथै लगें, नातर फिर पछतैव। 
रामानन्द पाठक नन्द
[09/06, 20:15] Taruna khare Jabalpur N: नातर, शब्द पर दोहे 


हरे पेड़ नै काटियो,राखो इनै सम्हार।
नातर इनके बिन सखी,मिट जै है संसार।।

बालापन मै नै करौ, मौड़ी को तुम ब्याव।
नातर जैहो जेल में,जीवन भर पसताव।।

राम नाम सैं प्रीत रख,सुमर हरी को नाम।
जीवन हो जैहै सुफल,नातर है बेकाम।।

समौ बड़ो है कीमती,बिरथा नईं गमाव।
करौ समय पै काम सब,नातर फिर पसताव।।

करौ लराई नै कबऊं, पहलवान के सांत।
नातर देबै पटकनी,टूटैं गोड़े हांत।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[10/06, 12:11] +91 76102 64326: शोभारामदाँगी बिषय-"नातर"नहीं तो  बुंदेली दोहा (273)
                      (01)
छमियाँ गइ कै नइँ गयी,नातर हम खुद जात ।
ढील पोल कौकाम नइँ,साँसी दाँगी" कात ।।
                     (02)
करौ भजन श्री राम कौ,जीवन सफल बनाव ।
नातर जैहो तुम नरक,मुक्ति न दाँगी पाव ।।
                     (03)
पढो-लिखो हुशियार हो,खड़े "इन्दु"खुद पाव ।
कर भरोसौ न काउकौ,नातर तुम पछताव ।।
                    (04) 
बनवा दो तुम लललरी,जाव पिया तुम हाट ।
नातर रार मचाउँगी,"दाँगी"पकरै खाट ।।
                     (05)
हांत जोर विनती करूँ,कचरा नइँ फैलाव ।
"इन्दु"रोग पनपै इतै,नातर फै पछताव ।।
                     (06)
सत संगत नौनी करौ,नातर समजो काल । 
"दाँगी"जुआ न खेलिऔ,बचै न सिर के बाल ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र) 
मोबा०=7610264326

दिनांक -7.6.2025 शनिवार 
[07/06, 12:43] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा - भिनकती*

गई भिनकती मायके, तकुआ धना फुलायँ।
कातइ दद्दा आन कैं,हैंसा बाँट करायँ।।

नईं भिनकती बात है,गम्म ‌खौर हौं लोग।
करत रात उपचार हैं,नौनें करत प्रयोग।।

दाल भिनकती खूब है,जब माँछी गिर जाय।
यैसइ भिनकत बात है,उल्टौ अर्थ लगाय।।

बउअन से जब सास जू ,करें भिनकती बात।
साता उनखौं है परत, चलवा लें जब लात।।

बात भिनकती पाक से,#राना समरत नाँय।
करत उबाड़े काम बौ,नईं पकरतइ  छाँय‌।।
       *** दिनांक -7.6.2025

*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[07/06, 14:39] Asha Richhariya Niwari: बुंदेली दोहा दिवस दिनांक 7.6.2025
🌹
भिनकत मांछी अनगिनत,कोउ न आवे पास ।
ओंदे मो नरदा डरे,दारू घर कौ नाश। ।
🌹
भिनकत फिरतीं बउ धना,करदौनी बनवाव।
आज घरी नो तरस रइ,बातन न भरमाव।।
आशा रिछारिया 🌹🙏🏿🌹
[07/06, 14:57] Taruna khare Jabalpur N: भिनकत, शब्द पै दोहे 


भोजन राखो ढांक खैं,माछी भिनकत रात।
बैठत खाना पै अगर, बीमारी फैलात।।

तनक तनक सी बात पै, गोरी भिनकत रायँ।
मौ बनाय दिन भर फिरैं,नै बोलैं नै खायँ।।

फूफा ब्याव बरात मै,ऊंसई फूले रात।
भिनकत तनतन बात पै, बेजा सान बतात।।

भिनकत छिनकत से डुकर,परे रात दैलान।
लरका सेबा नै करैं,का हुइये भगवान।।

काय भिनकती हो धना,काहे गाल फुलाय।
तनक बताओ तौ हमें,करिए झट्ट उपाय।।

गैयां भिनकत सी फिरैं,कुत्ता मौज उडायँ।
गउ माता जूठन भखैं,कूकर बिसकुट खायँ।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[07/06, 16:54] Sr Saral Sir: *बुन्देली दोहा*
*विषय -भिनकत*

बिना बिचारे जो करत,
               भिनकत उनके काम।
तनकइ  में  उकतात बे,
               औऱ  होत  बदनाम।।

माँछी भिनकत आँग पै,
               जब निकरत हैं प्रान।
अर्थी  कन्धा  पै  धरें,
               चले जात शमशान।।

बचत फिरत जो काम सै,
                उर  चाहत आराम।
काम  चोर  होते  वही,
                भिनकत उनके काम।।

मों पै भिनकत माँछियाँ,
                घरवारे  डिड़यात।
मुठी  बाँदकैं  आय  ते,
                हात  पसारे जात।।

सगे सजन घर गाँव के,
               असुआ सबइ बहात।
भिनकत ठटरी पै *सरल*,
               फिकत मखाने जात।।

         *एस आर सरल*
            *टीकमगढ़*
[07/06, 16:58] Subhash Singhai Jatara: 7.6.25- शनिवार - भिनकत/भिनकती 

बात भिनकती है उतइँ ,   लबरयाट हो काम |
उल्टी सूदी  फाँक कैं , होय  सुबह कौ शाम ||

भौत भिनकती बउँ धना , मुलकन धमकी देत |
पिटिया धुतिया बाँद कैं ,    भगबें की वह केत ||

टेड़ी थुथरी कर धना , गयी  भिनकती खेत |
रोटी डुकरे चाँप कैं , पटक आँइ कछु केत ||

बात भिनकती पौंच गइ , ‌सुन रय लम्बरदार |
नईं सुदर हालात रय‌ , दिख रय सब लाचार ||

उतइँ भिनकती है मछौ , जितै गुरीरौ हौय |
दौरत सबखौं काटबै  , बचा न पाबै कौय ||

सुभाष सिंघई
[07/06, 20:39] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय भिनकत 
                    1
धना भौत भिनकत फिरत, करें न सूदें बात। 
दो टउका करनें परे, सोइ बता दइ जात। 
                     2
तुम से माँगे दाम सो, गुस्सा आ गव आज। 
घर भर में भिनकत फिरत, तनिक न आई लाज। 
                     3
दूला कुँअर कलेउ खों, बखरी भीतर जात। 
मों माँगौ नइँ नेग दव, बाहर भिनकत आत। 
                      4
गुर पै भिनकत माछियाँ, नौंन कोद नइँ जात। 
नौनों भाउत है सबै, खारौ कियै पुसात। 
                       5
चिट पै माछी भिनकती, मिलबै उतइँ सुआद।
बेर-बेर बे बैठबैं, बढत जात तादाद। 
रामानन्द पाठक नन्द
[07/06, 21:19] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -219*
दिनांक -7.6.2025
*प्रदत्त शब्द- भिनकती/ भिनकती*
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*

भिनकत फिरवैं सजन जू,नइ परवाउत पांव। 
दान दायजो नइ मिलो,छूंचौ करो बियाव।।
          ***
             -आशा रिछारिया ( निवाडी)
*2*
माँछी भिनकत आँग पै,तन में रये न तत्त।
प्रान  पखेरू उड़ गये, राम  नाम  है सत्त।।
              ***
            -एस. आर. 'सरल',  टीकमगढ़              
*3*
जिते भिनकती पाँत है,हौय अन्न अपमान।
लुड़कत सबरौ रायतौ,ढ़ौर खात  मिष्ठान।।
            ***
         _ सुभाष सिंघई, जतारा
*4*
दार भिनकती थार में,देखें उलटी होय।
तुरत फैंक दो बायरें,ननतर मारें तोय।।
            ***
            -वीरेंद्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*5*
उन लोगन के नाम पे,माछी भिनकत आज।
जिन ने अपनी बैंच दइ, खानदान की लाज।।
         ***
         -बिंद्रावन राय 'सरल', सागर 
*6*

घर दोरे उजरे रखौ,भिनकत से नै रायँ।
साप सपाई हो जहां, बीमारी नै आयँ।।
            ***
        -तरुणा खरे'तनु' ,जबलपुर
*7*
भिनकत तन तन बात पै ,तनक गंम्म नइॅं खाय।
यैसौ सनकी आदमी,मूरख  असल  कहाय।।
          ***
     -आशाराम वर्मा "नादान',पृथ्वीपुर
*8*
माॅंछी भिनकती देखकें,काय भगाउत नाॅंइ।
रोग फैलतइ इनइं सें, इन्हें बचवौ चाॅंइ।।
       ***
     - रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर", ललितपुर 
*9*
सतभर्रे कौ काम तौ, ऊसइ भिनकत रात।
सोंजयाइ के बाप खों, कभउँ लडैया खात।।
            ***
             - डॉ. देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा 
*10*
मांछी भिनकत ढोर पै,गीध रहे मड़रायँ ।
पर मानव के काम पै,गीध तलक नै खायँ ।।
              ***
          -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*11*
बिना ढँकौ ना खा लियौ,पर जैहौ बीमार ।
माछीं भिनकैं सब जँगा,ढाँकौ रोटी-दार ।।
              ***
          -अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
*12*
जो धन छीन गरीब कौ,करत ओइ पै  राज।
मौं पै माछीं भिनकतीं,होत  कोढ़  में खाज।।
             ***
        - अंजनीकुमार चतुर्वेदी निबाड़ी 
*13*
चूले सें हडिया गिरी,भिनकत कडी दिखाय। 
जो ना होबै भाग में,मौं में सें गिर जाय।।
          ***
         -रामानन्द पाठक 'नन्द', नैगुवां
*14*
नेतन की का कात हो,सरमत इनसैं लाज।
जनता रौवे नाव को,भिनकत सबरै काज।।
                  ***
              -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
***
*© संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
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दिनांक -2.6.2025
[02/06, 07:38] Subhash Singhai Jatara: 2.6.25- सोमवार-बन्ना

बन्ना बन कैं  आ गये  , चारों    भइया   राम |
दशरथ के संगें  जनक , सबखौं करौं  प्रणाम ||

महादेव बन्ना बने ,    नंदी   पै   चढ़ आय  |
ब्रम्हा पढ़ रय भावरें ,    विस्नू भी हरसाय ||

किशन जसौदा सें कहें , मौरो व्याह कराव |
बन्ना मौखौ    मान कैं ,   बन्नी  राधा  लाव ||

बन्ना नारद गय बनन , धर बँदरा  को  रूप |
हँसी  करा कैं आ गये ,   बन ना  पाए  भूप ||

बन्ना जब भी नर बनत , मन भारी हरसात |
सबइ लोग इज्जत करत , आगें सब बिठलात  ||

सुभाष सिंघई
[02/06, 10:38] Rajeev Namdeo: दि०२-०६-२०२५ मंंच को नमन।

*प्रदत्त शब्द (२७२) बन्ना*

बन्ना बन्नी आजकल,होते सभीॅ अधेड़।
होते पूत कमाउ जो,सभी लगाते एड़।।
***
मौलिक, स्वरचित 
- *रामसेवक पाठक हरिकिंकर",ललितपुर*
[02/06, 11:01] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,, बुन्देली दोहा ,,विषय , बन्ना ,,
***************************************
बन्ना बनकेंं हम चलें , जब घुरवा पै बैठ ।
भइंँ "प्रमोद"ससुरार मेँ , मोरी गैरी पैठ ।।

बन्ना कात दहेज मेँ , दो बन्नी को हाथ ।
जियत"प्रमोद"निभायँ हम , दोनो अपनो साथ ।।

बन्ना- बन्नी आर की  , कैरय लठिया घाल ।
नोनी चलेँ "प्रमोद"हम , सारेँ जीवन चाल ।।

चुटकी भर सिंदूर मेँ , बन्ना- बन्नी साथ ।
सत्य सनातन धर्म पर , करें कृपा रघुनाथ ।।

बन्ना फेँकेँ बीजना , बन्नी फैँकेँ चाँवर ।
मिला-जुरी मड़वा तरेँ , होगइँ पारौ भाँवर ।।

बन्ना बन्नी बैठ गय , मड़वा में कर जोर ।
कत"प्रमोद"भांँवर भइँ , देखो ध्रुव की ओर ।।

बन्ना- बन्नी खेल रय , जल कुपरा को खेल ।
छिदी मछरिया बान मेँ , तनकउ नै भव झेल ।।

बन्ना सेँ  नन्ना बनेँ , अब खन्ना रखवाँयँ ।
मन्ना बँधेँ "प्रमोद"सो , उने भुसा धरवाँयँ ।।
***************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[02/06, 11:08] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा बिषय- बन्ना*

गवँ रय बन्ना गीत है,बन्नी का ले नाम।
दूला भी खुश हौत है,करत न कौनउँ काम।।

बन्ना बनकर व्याय में,सजे धजे ‌सब रात।
पैरत गजरा खूब हैं,मन में  सब मुस्कात।।

बन्ना के माथे मड़त। खौहें पीरी लाल।
तिलक लगा पगड़ी कसत, हौतइ सबइ निहाल।।

बन्ना बनकर राम भी,गयै जनक के गेह।
लायै सीता व्याह कर , दैकें  सबखौं  नेह।।

#राना भी बन्ना बने,किस्सा सब है याद।
फौटू धरी सवार कर,काफी है तादाद।।
***
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[02/06, 12:57] Taruna khare Jabalpur N: बन्ना, शब्द पर दोहे 



बन्ना बनखैं आ गये,सिवसंकर ससरार।
दूला देखत मच गई,घर मै हाहाकार।।

बन्ना बन्नी संग मै,लेत भाँवरैं सात।
दोनों मै जुर जात है,सात जनम को साथ।।

बन्ना बन गय राम जू,लै खैं चले बरात।
चारों भैया सज गये,मेहमा कही नै जात।।

बन्ना बनखैं राम जू,करन लगे ज्यौनार।
हँस-हंँस गारी गा रईं, जनकपुरी की नार।।

बन्ना सज-धज खैं चलो, घोड़ी पै असवार।
आँगू आँगू नाच रय,झूम झूम सब यार।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[02/06, 16:37] Dr. Renu Shrivastava Bhopal: दोहे विषय बन्ना
✍️✍️✍️✍️✍️
बन्ना शहजादा बने, 
विष्णु रूप में मान। 
तीन दिना रत तेज है, 
सांसी सांसी जान।। 

बन्ना शिव शंकर बने, 
भूत प्रेत के संग। 
मैना देख डरा गईं, 
पियें धतूरा भंग।। 

राम लखन संग शत्रुहन, 
बन्ना भरत सुहाय। 
सीता उर्मि मांडवी, 
श्रुतकीरति हर्षाय।। 

बन्ना राजा बन गए, 
जनक राज के दोर। 
धनष न टोरो काउ ने, 
सबखों दै रै  खोर।। 

सुअटन में बन्ना बनत, 
दोरे दोरे जात।
सब कोऊ टीका करत, 
नकली ब्याब रचात।। 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
            डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
                स्वरचित मौलिक
[02/06, 20:01] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय बन्ना 
                      1
बन्ना बनतइ ब्याव में, मिलत मान सम्मान। 
गारीं गुबती प्रेम की, नीकौ लगत बिधान। 
                       2
बन्ना बन्नी बन गये, हरदी चड गइ देह। 
पावन बन्धन में बँधे, दो हिरदे दो गेह। 
                         3
ब्याव गीत मडवा तरें, मिलकें सखियाँ गात। 
बन्ना - बन्नी की परत, उतइँ भांवरें सात। 
                         4
राघव जू बन्ना बनें, बन्नी मिथला सीय। 
समधी सें समधी मिले, जोग बनों रमणीय। 
                            5
बन्ना बन्नी की कदर, सब सें जादा होत। 
बँध कर परिणय सूत्र में, बीज प्रेम के बोत। 
रामानन्द पाठक नन्द
[02/06, 21:32] Asha Richhariya Niwari: बन्ना हैं श्री राम जू, बन्नी सिय सुकमारि।
हर्षित गर्वित है सबइ,मिथला के नर नारि।।
🌹
[02/06, 21:56] Manoj Sahu Nidar Narmadapuram: बुंदेली दोहे 
विषय - बन्ना 
जे लरका कौ व्याव रत, ते बन्ना बन जात।
कहूं कहूं बनरा कहें, दूला सोई कहलात।

अंगनाई मंढ़वा सजौ, जामन पत्ता डार।
रंग दऔ हरदी तेल सें, बन्ना खों बैठार।।

राम लला बन्ना बने, बन्नी सिय सुकुमार। 
सुद बुद सबरी खो दई, कंगन छबि निहार।
मनोज साहू 
माखन नगर।
[03/06, 00:26] +91 76102 64326: शोभारामदाँगी "बन्ना" बुंदेली दोहा (272)     (01)

बन्ना खौं बन्नी मिली,दोउ जनें मुस्कात ।
"दाँगी"भी बन्ना बनै,पैल खूब सरमात ।।

                    (02)
राम संग बन्ना बनैं,बन्नी जानकि माइ ।
"दाँगी"छवि देखैं अजब,लोक रीत अपनाइ ।।

                    (03)
शंकर जू बन्ना बनें, बन्नी गौरा माइ ।
"दाँगी"रचना लिख रहे,शिवा आरती गाइ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी

****

दिनांक -31.5.2025
[31/05, 12:34] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा - भन्ना (फुटकर पैसे)*

#राना भन्ना से सबइ,करतइ हते बजार।
धेला आना चार से,थैली  थी गुलनार ।।

अब भन्ना की नइँ कदर,कछू चीज ना आत।
अब नोटन कौ है चला,#राना समझत बात।।

एक नोट भी बन गयौ,#राना अब कलदार।
भन्ना में गिनती नहीं,कातइ अब सरकार।।

अब भन्ना जीनौं धरौ,#राना सेंतत रात।
जलबे मुरदा जाय तो,ऊपर से फिकवात।।

भन्ना जौरो खूब है,गुल्लक लई बनाय।
#राना बे दिन बीत गयँ,याद भौत अब आय।।
*** दिनांक -31.5.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[31/05, 13:53] Subhash Singhai Jatara: 31.5.25- शनिवार  भन्ना (फुटकर पैसे)

चिल्लर सिक्का धात के, सब भन्ना कैलात |
मिलकै सब जै है बजत  , हम भी सब खनकात ||

भन्ना बजतइ जेब में , भारी भी हो जात |
कभउँ जेब भी फार दे, गिरकैं घूर समात ||

भन्ना के दिन बीत गय , बने सबइ इतिहास |
आज डिजीटल युग बना, लेन देन में खास ||

बूड़ी डुकरौ  जौर   कैं ,   भन्ना लाईं  पास |
गिन सुभाष कितने हुए , तौपे  है विश्वास ||

नन्ना  भन्ना बाँट रयँ , नाती पास बुलाँय |
टउका करवा चार ठौ , सबके हाथ थमाँय ||

सुभाष सिंघई
[31/05, 16:38] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय भन्ना 
                   1
फुटकर पइसा होत जो, भन्ना ऊखों कात। 
गुआ देत हैं हाट खों, बच्चा खुस हो जात। 
                    2
बिटिया की भाँवर परी, डोला दई बिठाय। 
भन्ना संग बतासनें, ऊपर हो फिकबाय। 
                    3
मंदिर में जब भक्त जन, दरशन करबे जात। 
टन्ना सबइ चडात सो, भन्ना जुरत बिलात। 
                     4
भन्ना सें पूजन हबन, करते ज्ञानी लोग। 
करें पाठ पूजन सबइ, होता है जब जोग। 
                     5
नन्ना कौ भन्ना भलौ, दाम न खरचे जाँय। 
बँदी गठरिया देखबें, सुख ओइ में पाँय। 
रामानन्द पाठक नन्द
[31/05, 20:31] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे - भन्ना 
-----------------------------
सिंदुकिया में माइ की, 
          भन्ना  नईं  बड़ात।
मेला हाट बजार खाँ,
     जब माँगें मिल जात।।
--------
भन्ना बारे दिन हते, 
          सौनें   जैसे   यार।
अब नोटन सें हो रई,
           गेरउँ   मारामार।।
--------
भन्ना तौलो साव नें,
          अरसी बटरी राइ।
कै रय इतनें में भई,
      ब्याजइ की भरपाइ।।
--------
नोटन के ई दौर में, 
     फुटकर कियै पुसात।
फिकें मखानें ऊ दिना,
          भन्ना कामें आत।।
-------------------------------
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[31/05, 20:39] Taruna khare Jabalpur N: भन्ना (फुटकर पैसे)शब्द पर दोहे 


भन्ना धर लो जोर खैं,मुतके लौकन यार।
चलहैं ब्याव बरात मै,करनै परै नेछार।

गुल्लक मै भन्ना धरे ,खूब जोर खैं यार।
चलन खतम अब हो गओ,हो गय सब बेकार।।

भन्ना बांदै छोर मै,काकी चलीं बजार।
पछियाने नाती नतर,मांगैं पैसा चार।।

आजकाल के लोग जब, मंदिर भीतर जायँ।
ढूंड़ ढूंड़ भन्ना सबै, जाखैं उतै चड़ायँ।।

आॅनलेन के दौर मै, भन्ना धरै न कोय।
काम होत मोबाइल सैं,घर बैठे सब होय।।


तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[31/05, 21:13] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,, बुंदेली दोहा,,विषय ,,भन्ना ,,
*************************************
दादी ने भन्ना धरोँ , लो"प्रमोद"गिनवाव ।
नजर बचाकेँ चट्ट सेँ , हमने एक लुकाव ।।

स्वापी मेँ भन्ना बँधोंँ , गुथना सो सन्नाय ।
इंँगड़-दिगड़ जीनेँ करी , अपनो मूँढ़ फुराय ।।

डब्बूँ मेँ भन्ना भरेँ , बब्बा रहें कुड़ेर ।
नाती की बारात मेँ , नचनारी खाँ हेर ।।

खन्ना में भन्ना गढ़ोंँ , ऊपै डारेँ खाट ।
मूँछ ऐँठ बब्बा परेँ , बउ के ऊँचेँ ठाट ।।

नन्ना भन्ना गिन रहो  , टन्ना कड़ेँ हजार ।
चन्ना मन्ना लेन गव , ढुरया भरोँ बजार ‌ ।।

लयँ भन्ना सब दिन फिरेँ , कमोँ परीँ भर खूँन ।
इनको लैवा नइँ मिलो , खावै नइयाँ चूँन  ।।

भन्ना लयँ भन्नात गइँ , मिलीँ परोसन मोय ।
मेँनेँ पूँछी काँ चली , कत का लेने तोय ।।

टन्ना भन्ना में हतेँ , चाँदी के दो चार ।
घर भर मेँ ढूँढ़त फिरेँ , बगरी डरी उसार ।।

भन्ना बिकत बजार मेँ , मंदिर में चढ़ जात ।
मँगनारेँ भी माँग केँ , इनसेँ रोटी खात ।।

माँग-मूंँग भन्ना कछूँ , खूँब दौदरा देत ।
मउआ की पुच्ची पियत , फिर मनयारी केत ।।
*************************************
      ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[31/05, 21:46] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -218*
प्रदत्त शब्द--भन्ना (फुटकर पैसे)
दिनांक -31.5.25
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*
*1*
भन्ना  में खा लेत ते, घर भर रोटी दार।
अब सौ के भी लोट  में,भूखे रेरय  यार।।
             ***
     -बिंद्रावन राय 'सरल', सागर
*2*
भन्ना भर नन्ना चले, लैबे घर खौं तेल।
फटो खलीता गैल में, देखत रै गय रेल।।
        ***
     -प्रदीप खरे'मंजुल' टीकमगढ़ 
*3*
सबजी भाजी उर धना,लैलो जितने चार।
भनना बिन बे नइं मिलें,कननें आय उधार।।
              ***
         - वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*4*
नन्ना  ने  भन्ना  भरी, गुल्लक  रखी सँभार।
दुकनदार अब लेत नइँ, भई रकम बेकार।।
        ***
अमर सिंह राय, नौगांव 
*5*
घरै भौत भन्ना धरौ,इक दो के भय बंद ।
कितउँ कितउँ तौ हैचलन,नइँयाँ कौनउ दंद ।।
        ***
      -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*6*
बब्बा बउ भन्ना धरें, गुल्लक में हर साल।
टका टका सै जोर कैं, पनी चलाबै चाल।।
       ***
          -एस. आर. 'सरल', टीकमगढ़
*7*    
भन्ना  लैकें  हाट  खों, नन्ना  गय ऊ जोर।
जेब काट लइ काउ नें, रै गय दाँत निपोर।।       
               ***
            - अंजनीकुमार चतुर्वेदी निवाड़ी 
*8*
अर्थी पै भंन्ना फिकत , कहत  सत्य है राम।
चलौ जात है आदमी, संग न जात छिदाम।।
             ***
         -आशाराम वर्मा 'नादान',पृथ्वीपुर
*9*
सौ पचास ओ पांचसौ, रूपया कौ है काम।
भन्ना आना चवन्नी, इन को काम तमाम। ।
             ***
       -आशा रिछारिया (निवाड़ी)

*10*
ए टी एम जबसैं लगो, मुसकल भव रुजगार।
भन्ना की किल्लत भई, जनता सहवै मार।।
           ***
        --श्यामराव धर्मपुरीकर,(गंजबासौदा)
*11*
आना नय पइसा गिने,दस्सू पंजू देख।
चली चबन्नी खूब है,रयँ भन्ना में लेख।।
                ***
           -सुभाष सिंघई , जतारा 
*12*
यैसे स्यानों सें चलै,कव कैसें बेभार।
बातन कौ भन्ना भरें,नगदी जायँ डकार।।
          ***
  - डॉ देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा 
*13*
अब नै सिक्का जेब में, नै बटुआ में नोट।
ऑन लैन भुगतान सें, भइ भन्ना पै चोट।।
         ***
      -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*14*
आनलेन सब होत हैं, मोबाइल सैं काम।
बिन भन्ना चुक जात हैं,इक इक पैसा दाम।।
               ***
        -तरुणा खरे'तनु' ,जबलपुर
*15*
भन्ना  सें  रैबू  करे,  रिस्ते  सबइ  अटूट।
नोटन कीं गिड्डीं बँदीं,घर-घर डारत फूट।।
           ***
         -गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी
*16*
कागज के रुपया सबइ, गिड्डी कर धर लेत। 
टन्ना भन्ना ध्यान सें, डार बगसिया देत।।
       ***
       -रामानन्द पाठक नंद, नैगुवां
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संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965
######



दिनांक -26.5.2025
[26/05, 06:27] Rajeev Namdeo: दि०२६-०५-२०२५ मंच को नमन।
*प्रदत्त शब्द,-कंठी*

तुलसी की कंठी गले, धारण करता जोय।
पाॅंव न करें कुपंथ पर,सदा सुखी रहॅं सोय।।
***
मौलिक, स्वरचित 
*-रामसेवक पाठक हरिकिंकर", ललितपुर*
[26/05, 06:31] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा-कंठी (तुलसी माला)*

#राना कंठी पैर लइ,या लै लइ है हाथ।
राम भजन मन से करौ,खूब झुका कैं माथ।।

सदा सनातन धर्म में,कंठी कौ  है मान।
#राना पैरत हैं सबइ,मानत ईखौ शान।।

#राना कंठी पूज्य है,है तुलसी का रूप।
पंडित ज्ञानी भक्त भी,कातइ  इयै अनूप।।

मौत अकाल न आत है,रातइ स्वस्थ शरीर।
मन खौं देती  शक्ति है,#राना कंठी  हीर।।

बड़ा पुन्य का उपकरण,मानो कंठी  नूर।
करत सबइ भी जाप हैं,#राना  सब भरपूर।।
      ***
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[26/05, 09:41] Subhash Singhai Jatara: 26.5.25-सोमवार बुंदेली कंठी (तुलसी माला)

कंठी पैरें है मिलत , साधू संत सुजान |
चंदन टीका माथ ‌पै , देतइ है पहचान ||

सूखी तुलसी  से बनी  , कंठी अच्छी हौत  |
भजन जाप सब ही करत  , धोक दैत हैं भौत ||

कंठी लेकर हाथ में , पैल झुकाऔ  माथ |
बोलो फिर मौं से वचन , दैवँ  भजन में साथ ||

कंठी की   हौ  शुद्धता , मिले हृदय में चैन |
नींद  सुहानी हौत है ,   जब भी आबै  रैन ||

विस्नू  प्रिया तुलसी रही , सौ लौ  विस्नू  नाम |
कंठी गुरिया फेरियौ , सफल हौंय सब काम ||

सुभाष सिंघई
[26/05, 11:13] Dr R B Patel Chaterpur: दिनांक 26/05/25
विषय- कंठी
छंद- दोहा
                  01
कंठी पैरत सबइ जन, बनते संत सुजान ।
नियत नीति अपनाय मय ,समझो सब अनजान 
                   02
सदा सत्य पथ जो चलें, कर कंठी को मान ।
पाप कर्म से दूर रह ,करें हरी गुणगान ।।
                 03
 बहुतक कंठी पहन कर ,भाल त्रिपुंड लगाय ।
 ढोंग धतूरे करत जे , बाबा वही कहाय ।।

 कंठी पूजित है सदा , सदा सत्य अपनाय ।
 पालत पोषत संत जन ,अंत अमर पद पाय ।

 पैरत तुलसी कंठ में , रहत सदा अनजान ।
नेक कर्म में रत रहें , पावै पद निर्वान ।
 मौलिक 
डॉ. आर. बी. पटेल "अनजान" 
 शिक्षक व साहित्यकार 
बजरंग नगर कॉलोनी छतरपुर मध्य प्रदेश
[26/05, 12:53] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा - कंठी (तुलसी का गुरिया )
(१)
सत्य सनातन धर्म कौ , करबैं  बेद बखान।
सनातनी  की  होत  है  , कंठी  सैं  पैंचान।।
(२)
कंठी  होबै  कंठ  में ,  तुलसी  माला  हाथ।
रसना हरि सुमिरन करै ,हिये बसैं रघुनाथ।।
(३)
कंठी  बैंचन  आइती  , मोनालिसा  प्रयाग।
गंगा जी की भइ कृपा,फूटे खुल गय भाग।।
(४)
ठगिया  बाबन नें करौ , कंठी  खौं बदनाम।
चोला ओड़ैं  गेरुआ , कर  रय  खोटे काम।।
(५)
गाॅंठ चुटइया  लो लगा , चंदन  टीका भाल।
कंठी  पैरौ कंठ  में , भजौ  किशन गोपाल।।

आशाराम वर्मा " नादान " पृथ्वीपुर
( स्वरचित ) 26/05/2024
[26/05, 14:13] Asha Richhariya Niwari: कंठी 
🌹
कंठी सोहे कंठ में,कुंडल नाचे मोर।
चलतन पैजनिया बजे,ठुमकत नंद किशोर। ।
🌹
तुलसी कंठी पैर लो, लगा हरी सें नेह।
जोइ मोक्ष कौ मार्ग है,हो जै देह विदेह।।
आशा रिछारिया 🙏🏿
[26/05, 14:48] Amar Singh Rai Nowgang: बुंदेली दोहा, विषय: कंठी

कंठी तुलसी की भली, जप में आवे काम।
माला ही निश्चित करे,कितने जप लै नाम।।

गुरु  वैष्णव  दीक्षांत  में,  देते  कंठी  माल।
चेला ई  सैं जप  करे, एवं  रखत  सँभाल।।

गुरिया कंठी माल के, रहत एक सौ आठ।
जाप नाम संख्या गिनत,होवे पूजा- पाठ।।

माला  पैने  होत  का, कर रै करम खराब।
कंठी का कर है भला, देओ  हमें जवाब।।

कंठी  पैने  ही  करें,  काम  अंड  के   बंड।
बोल न साजे  बोलवें, मन में भरो  घमंड।।

कंठी वाले भी कछू, भखत  पराओ मास।
गाँठ चुटैय्या  की छुपा, सूँटत हैं  बिंदास।।

पैनें  कंठी जो  अगर, रखवें  इतनों  ध्यान।
करै भजन या नै करे, घट नइँ  पावै मान।।

                           अमर सिंह राय 
                                नौगांव
[26/05, 18:22] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- कंठी
(1) कंठी पैरो कंठ में,
      माथे तिलक लगाव।
      राम सुमरनी सें जपो,
     राम नाम नित गाव।।
(2) परम पुन्य फल है मिलत,
      कंठी कंठे होय।
      बनी रहे हरि की कृपा,
      घेरे ने दुख कोय।।
(3) साँची साँची बोल बे,
      नियम धरम नें खोय।
      कंठी साजी कंठ में,
      ब्रज पैनें सब कोय।।
(4) कंठी बाँदें गरे में,
      करनी नैया ठीक।
      ब्रजभूषण मानों हँसी,
      जानैं बात अलीक।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[26/05, 20:05] Taruna khare Jabalpur N: कंठी शब्द पर दोहे 



कंठी माला हांत मै,जपैं राम को नाम।
साधू भेस बनाय खैं,धरैं प्रिभू को ध्यान।।

कंठी लैं निस दिन भजैं,जे जन हरि को नाम।
किरपा प्रभु ऐंसी करैं,पौंचत हैं सुरधाम।।

झोली कंधे पै धरैँ,पैरैं कंठी माल।
मस्त रायँ हरि भजन मै,साधु रहैँ खुसहाल।।

सोने की कंठी हती,चुरा लै गये चोर।
पकर न पाओ कोउ भी,खूब मचाओ सोर।।

कंठी लै खैं हांत मै,राम नाम नित गायँ।
बाबा जी बन खैं फिरैं,मांग मांग के खायँ।।


तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[26/05, 20:49] Rajeev Namdeo: कंठी जब माला बनी,अचरज होता मौत।
मानो सौतन बन गई ज्यों , जगदीश,जिठौत।।

कंठी गले में बिद  गई,निकरै नहीं निकाल।
लाख जतन हमने करें,ग ऐ सभी बेकार भूखेरे भजन न होत है,जा लो कंठी माल ।। 
कंठी जब हें छोड़ द ई,हाल भ ऐ , बेहाल। 
कंठी घंटी सी बंदी, बेहूदा है बात। 
कंठी गले में बांध ल ई,दिखा रहे औकात।।
***

- *डॉ जे.पी. रावत, भोपाल*

दिनांक -24-5-2025
[24/05, 13:03] Subhash Singhai Jatara: 24.5.25- शनिवार   अटर (परिश्रम)

नहीं अटर के काम हौं  ,  कात आलसी लोग |
जादाँ जिद जब कर चलौ , चढ़ जै इनपै रोग ||

जिनपे होतइ नइँ अटर , करत बहाने आन |
एक जगाँ जै बैठ कैं   , पेलत सब पै  ज्ञान ||

माते मुखिया भी अटर , सबसे करवाँ लेत |
सुस्ताबे की टैम ही    , चिलम  तमाकू देत ||

दद्दा  सबके कात  हैं  , जी खौं नईं  चुराव  |
अटर करो मन से सबइ , फल भी नौनों पाव ||

अटर मटर में हौत है ,   छीलो पहले आप |
जोरू जैसी दे बना , खा लो फिर चुपचाप ||

सुभाष सिंघई
[24/05, 13:11] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा बिषय- अटर (परिश्रम)*

#राना करतइ है अटर,नईं सिकौड़त नाक।
हौतइ पूरौ काम है, जमतइ अच्छी धाक।।

भिनकत कौनउँ काम नइँ,#राना सब हो जात।
देखत जब मोरी अटर,धना खूब मुस्कात।।

सबइ अटर के काम हैं,करौ  किसानी आप।
चुँअत पसीना  माथ पै,#राना दैकें छाप।।

ठौर बछेरू जित बदैं,उतइँ अटर के काम।
#राना गौबर सार में,फैलत सुबहौ शाम।।

व्याय काज में आ फुआ,करत अटर के काम।
जौरत.#राना चीज है,भुंसारे से शाम।।
***दिनांक -24.5.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[24/05, 15:57] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 217प्रदत्त शब्द -अटर 
(१)
गइॅंयाॅं  पालै जो  घरै , करबै  अटर  उसार।
किरपा  करबैं ओइ पै , मोहन मदन मुरार।।
(२)
घरै  प्रसूता  की अटर , नारी  ही  कर पाय।
द्वारैं  बैठो  घरधनी , मिसलैं  देत  मिलाय।।
(३)
अटर होत हर काज में,करौ लगन सैं काम।
जबइॅं सफलता है मिलत ,देत सहारौ राम।।
(४)
अटर करे  बिन काॅं धरौ , जीवन में आराम।
जब तक जे  साॅंसैं चलैं  , लगौ रनें है काम।।
(५)
अटर करी"नादान"नें ,दोहा लिख कइ साॅंच।
ज्ञान सबक उर नीति कीं,बातैं लइयौ जाॅंच।।

आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
( स्वरचित ) 24/05/2025
[24/05, 16:05] Taruna khare Jabalpur N: अटर,शब्द पर दोहे 


अटर जवानी मै करौ, खूब कमा लो दाम।
बैठ बुड़ापे मै घरै,करियो खूब अराम।।

खेती मै कितनो अटर,दिनभर करत किसान।
ओरे पानी जब परैं,सांसत मैं रत जान।।

अटर करै दिन रात जे,सफल होत इंसान।
नाम जगत मै होत है,बेई बनत महान।।

अटर करै दिन भर धना,करत रैत है काम।
काम किसानी को कठिन,मिलत नईं आराम।।

अटर करत नइयां तनक, आजकाल के लोग।
बैठे बैठे बड़ रये,तन मै छत्तिस रोग।।


तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[24/05, 18:01] Sr Saral Sir: *बुंदेली दोहा  विषय-अटर*
***************************
बूढन की करिओं अटर,
                  बड़े पुन्न कौ काम ।
सेवा  सै  मेवा  मिलें,
                  मिलें सुखद परनाम।।

अटर करों माँ बाप की,
                  लिइऔ भविष सुधार।
उनकी खुशियों सै *सरल*,
                   जीवन सफल तुमार।।

अटर न बहु लरका करें,
                   दोइ भौत खुदगर्ज।
*सरल* बताबें कौन खौ,
                   अपने दिल के दर्द।।

बूढ़न की सेवा लगत,
                   जिनें अटर कौ काम।
उनकी गत हुइयें बुरइ,
                    संग न  दें हैं  राम।।

पुरखन की करिओं अटर,
                     उनें राखिओं टन्न।
दूद करूला तुम करों,
                    हो जै जीवन धन्न।।
***************************                     
         *एस आर सरल*
           *टीकमगढ़*
[24/05, 19:16] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- अटर
(1) अटर आलसी खों लगे,
      करो चहे ने काम।
      विनइ करे मिल जाय सब,
      रतो एस आराम।।
(2) सोचत औहर को करें,
      विद गइ अटर तमाम।
      झूँके तन तन काम में,
      ऐसो नमक हराम।।
(3) अटर जिदंगी भर करी,
      जानो ने आराम।
      मोरी दारे सो लुकत,
      बड़ो कठिन है काम।।
(4) अटर होतनइयाँ करी,
      फरो फरो हर काम।
      ब्रजभूषण सुन ले तको,
      तनक दवे ने चाँम।।
(5) मोरे जी खो है अटर,
      कां लो तुमें वताय।
      करत करत हम तो थके,
      अब सो ने हो पाय।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[24/05, 19:48] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहे 
विषय:-अटर/ परिश्रम 
अटर हमेशा राम की,‌करें वीर हनुमान।
सौ योजन नाकों समुद,करें राम गुन गान।।१।।

अटर करे कौ फायदा, ऊपर बारौ देत।
सकल पदारत विश्व में,बनें जौन पै लेत।।२।।

अटर मतारी बाप की,करियो छोड़ सवाल।
दुनियां में हो गयॅं अमर,बेटा सरमन लाल।।३।।

गौ माता की जो अटर, करत रहत दिन रात।
रमा संग छोड़त नहीं, दूद जलेबी खात।।४।।

मैनत करबे में अटर, जिनखों लगै बलाय।
बेइ फिसड्डी जानियो,नीचट आय सलाय।।५।।
                  भगवान सिंह लोधी"अनुरागी"
[24/05, 20:19] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय अटर 
                   1
रमुआँ ठाडौ गैल में, बिनुआँ सें कय बात। 
धनुआँ की नौनीं फसल, अटर करै दिन रात। 
                      2
अटर करें हारै नई ,ऊँची उनकी शान। 
गाँवभरे में पुज रई,जमींदार  की आन।   
                      3                    
केबै  से का होत है,अटर अलग दिख जात। 
जो जैसी करबै अटर , बौ ऊसइ फल पात। 
                        4
अलख जगा देबै अटर, घर घर होय प्रकाश। 
अटर करौ जी जाँन सें, तजौ बिरानी आस। 
                         5
ऊँगत से दिन भर फिरत, करबे अटर डरात। 
कौनन कौनन बे लुकक, उनखों जेउ पुसात। 
रामानन्द पाठक नन्द
[24/05, 20:33] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,, बुंदेली दोहा ,,बिषय,,अटर ,,
***************************************
खटर-पटर भइँ रात केँ , शटर टोर गय चोर ।
करी अटर भर लइँ मटर , जबलो हो गइँ भोर ।।

चटर-पटर धनियाँ निगेँ , अटर करें सब दैन ।
खटर-फटर कर तइँ रहेँ , पल भर नइयाँ चैन  ।।

अटर करत ते रात-दिन , गउ की बब्बा पैल ।
जब सें वे साकेत गय , घर गिर गय खपरैल ।।

अटर करेँ जब-तक मनुष , तन रैहेँ बलवान ।
रोग-दोग उपजै नही , करेँ "प्रमोद"बखान ।। 

सटर-पटर धरलो अबै , हौवै जा रइँ जंग ।
देश प्रेम की उमड़ती ,  दिखती नवल तरंग ।।
***************************************
     ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
           ,, स्वरचित मौलिक ,,
[24/05, 21:12] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -217*
दिनांक -24.5.2025
 *प्रदत्त बिषय- अटर (परिश्रम)*
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*

*1*
मैनत कर खेती करे,वो तो कभउ न रोय।
फल मीठौ पावै वहीं,गन्ने कौ रस होय।।
               ***
      ✍️ डाॅ.खन्नाप्रसाद अमीन (गुजरात)
*2*
चटर पटर घर की अटर ,कर लें खूब किसान।
खेती  भी  नौनीं करै,रख कैं मृदु   मुस्कान।।
              ***
        -सुभाष सिंघई,जतारा 

*3*(तृतीय पुरस्कार प्राप्त दोहा)

बाप मताई की अटर,जो लरका कर लेत।
खुश होकैं  रघुनाथ जी,मौं माॅंगौ वर देत।।
          ***
       -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
*4*
लगे रहत हैं अटर में,पिया सखी तज चैंन।           
 सारे सुख संसार के,हैं ईश्वर की दैंन।।
        ***
     - मूरत सिंह यादव दतिया 

*5*(द्वितीय पुरस्कार प्राप्त दोहा)

बिना अटर बेकार सब,है गीता को सार।
धरती से आकाश तक,श्रम को है अधिकार।।
        ***
       -बिंद्रावन राय 'सरल', सागर
*6*
भैया आलस छोड़ दो,करौ निरंतर काम।
अटर करे सें ही मिलै,जीवन में आराम। ।
           ***
         -आशा रिछारिया (निवाड़ी)
*7*
बज्जुर की हौवै अटर,खेती करत किसान।
पोषत सारो जो जगत,बाको करौ निदान।।
              ***
       -श्यामराव धर्मपुरीकर, गंजबासौदा, विदिशा
*8*

अटर करी बजरँगबली,खबर सिया की ल्याय।
प्रेम पगे श्री राम जू,छाती सें चिपकाय।।
          ***
           - डॉ. देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा 
*9*
जीवन भर कर खैं अटर,जोरत पूंजी दाम।
मिटा देत हैं सब कछू,जिनके पूत निकाम।।
             ***
          -तरुणा खरे 'तनु' ,जबलपुर
*10*
ऐसी बेजा दांद में ,तन-मन जब अकुलाय।।
दोहा लिखबे की अटर,की के बस की आय।।
               ***
            -रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ 
*11*
करौ अटर उर गौसली,भैंस बकरिया गाय।
दूध लगाकें बेंचियौ,खूबइं पैसा आय।।
         ***
      - वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*12*

नीत धरम से सब जनें,अटर करौ दिन रात।
राम ओइ में देत हैं,वेद पुरान बतात।।
         ***
       भगवान सिंह लोधी "अनुरागी',हटा 

*13*(प्रथम पुरस्कार प्राप्त दोहा)

करै लगन सें जो अटर,कबहुँ न निष्फल होय। 
पा कें अपनें लक्ष्य खाँ,सुख की निंदिया सोय।।
          ***
       - रामानंद पाठक नंद' ,नैगुवां
*14*
अटर करेँ हनुमान जूँ,फिकर करें श्री राम ।
खटर-पटर लछमन करेँ , सिया करें सब काम ।।
               ***
          - प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 
*15*
अटर करे में फायदा, आलस में नुकसान।
जो समझे ई बात खौ, रखै हमेशा ध्यान।।
            ***
    -संजय श्रीवास्तव,मवई, (दिल्ली)

*16* (द्वितीय पुरस्कार प्राप्त दोहा)

अटर करों माँ बाप की,जेई चारइ धाम।
उनकी सेवा में मिलें,हमें कृष्ण उर राम।।
        ***
         एस आर सरल,टीकमगढ़
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*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी*' 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965
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दिनांक -19.5.2025
[19/05, 07:37] Jai Hind Singh Palera: सोमवार दिनांक १९.०५.२०२५
बुन्देली दोहा दिवस,बिषय-कट्टी
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                     #१#
कट्टी करियों काउसे ,बातें करो विचार।
आफत में मत जान हो ,होबै मत लाचार।।

                    #२#
कट्टी पै पट्टी धरौ,मन में धीरज धार।
अनुभव धरकें सामने, दिया लेव उजयार।।

                    #३#
कट्टी की भट्टी बना ,कभ‌ऊॅं न झोंको
यार।
कभी काम तो आयगा ,करो विचार लिलार।।

                    #४#
कट्टी की मट्टी कुटै, मन में रखो न बैर।
 गैर मान कें मत चलौ ,राखों सब की खैर।।

                    #५#
कट्टी तब खों सेंतिये,हो सर ऊपर नीर।
सदमा जो ऐसौ लगै,छाती धस गव तीर।।

जयहिन्द सिंह जयहिन्द 
पलेरा जिला टीकमगढ़ 
मध्य प्रदेश
[19/05, 09:54] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहे--उट्टी(मित्रता तोड़ना)*

#राना उट्टी है भली,नहीं लिपड़  के राव।
जो सच्ची भी बात पै,तुमै ना  दैबें भाव।।

गुइयाँ,गुइयाँ ही रहें,उट्टी हौ दस बार।
तनिक देर में फिर मिलें,#राना बाँहें डार।।

दाँतन से छूकर कहें,हाथ अँगूठा डार।
#राना उट्टी थे करत,बचपन में हम यार।।

#राना बचपन याद है,उट्टी बारे यार।
तनिक देर में फिर बँधै,उँगली माने तार।।

उट्टी में ना बैर था,ना कोई षड्यंत्र।
#राना सरल सपाट था,अपनेपन का मंत्र।।
*** दिनांक -19.5.2025

*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[19/05, 11:28] Subhash Singhai Jatara: 19.5.25-सोमवार बुंदेली --उट्टी(मित्रता तोड़ना))

उट्टी कट्टी कर लयी , अब नइँ   जाने पास |
लच्छन भी उनने  बुरय , पाल लये  हैं खास ||

उट्टी भारत राखतइ  , दुष्टन   में है   पाक |
ठान रार कटवाँ करे , वह तो अपनी  नाक ||

उट्टी  उनसे  सब करो ,   जौ  हौं  दारू खोर |
अपनो चलन सुदार कैं , तकौ न ऊकी ओर ||

खट्टी कड़वी बात से , उट्टी  भी  हो  जात |
रार बढ़ाकैं  लर परै , आपस नईं  पुसात || 

उट्टी उनसें ना करो  , जो कत साँसी बात |
चलत गैल ईमान के  , राखे भाव बिलात ||

सुभाष सिंघई
[19/05, 15:05] Dr. Renu Shrivastava Bhopal: दोहे विषय कट्टी, उट्टी (मित्रता तोड़ना) 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
 मोड़ी मोड़ा करत हैं, 
कट्टी छिन छिन जान। 
तनक देर में दोसती, 
पक्की है जा मान।। 

सुग्रीव से करवे चले, 
कट्टी लक्ष्मण राम। 
देख डरानो राम खों, 
नातर मिटतो नाम।। 

हल्के की कट्टी लगत, 
सांसउ हल्की बात।
भये सयाने तब लिखैं, 
रपट पुलिस में जात।। 

मोड़ी मोड़ा खेलियत, 
रोजीना रत संग। 
कबउं कजन कट्टी करें, 
बाप मताई तंग।। 

कान्हा से कट्टी करैं, 
श्रीदामा जा कात। 
तनक बडे तुम काय हौ, 
गइयां पलीं बिलात।। 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
                डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
                 सादर समीक्षार्थ 🙏
                  स्वरचित मौलिक 👆
[19/05, 17:55] Gokul Prasad Yadav Budera: बुन्देली दोहे, विषय-कट्टी 
********************
सोनें जैसे दिन हते,
         झट कट्टी पट मेर।
हे ईसुर है कामना, 
       फिर सें बनें लड़ेर।।
****
कट्टी करबौ रूठबौ,
        बड़े बाल-हथयार।
जीत लेत हर जंग बे,
        करकें इनसें वार।।
****
कट्टी करिऔ तीन सें,
      दुसमन दुस्ट लबार।
लेकिन तुर्त मनाइऔ,
        रूठे जिगरी यार।।
****
कट्टी  घरबारी  करै,
         मना लेय भरतार।
मनामनौअल सें बड़त,
       दूनों-तिगनों प्यार।।
*******************
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[19/05, 18:27] Vidhaya Chohan Faridabad: बुंदेली दोहे
विषय- उट्टी/कट्टी (मित्रता तोड़ना)

१)
पल छिन की उट्टी भली, फिर नेरे  आ जाव।
अति  नइँ  होबै  काउ  की, अति से बंटाढार।।

२)
उट्टी रतन लड़ेर  की, निर्मल उनकौ प्यार।
बीच बड़न  के होय तौ, बनत बौइ तकरार।।

३)
साजी बौ उट्टी हती, जीहाँ  मानौ  खेल।
तुरतइँ बैर बिसार के, झट्ट करत ते मेल।।

४)
जिनकीं नीयत दोगली, कपटी त्रिया चरित्र।
उट्टी  ऐसें  मित्र  सें, जिनकीं  छवी  विचित्र।।

५)
उट्टी करकें तुम सजन, हम सें मौ नइँ मोड़।
हम  बाती तुम दीप हौ, नाता जौ बेजोड़।।

~विद्या चौहान
[19/05, 18:29] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय उट्टी 
                1
तनिक तनिक पै रूठ कें, झट उट्टी कर लेत। 
गाल फुला भुकरे फिरें, अलग दिखाई देत। 
                   2
उट्टी में देरी नइँ, ना जुट्टी में देर। 
उतइँ तनिक पुटया लऔ, हो गव जल्दी मेर। 
                     3
गुली टोरबै संग गय, हैंसा भय ते चार। 
हलके नें हैंसा तकौ, उट्टी कर लइ यार। 
                      4
इक दूजे बिन ना रबैं, ना छोडत ते संग। 
धौकौ इक दिन खा गये, बिखरौ उट्टी रंग। 
                        5
उट्टी कबहुँ न राखबै, मन में परबै फेर।  
गडइ डोर की भाँति ही, हो आपुस में मेर। 
रामानन्द पाठक नन्द
[19/05, 19:27] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- उट्टी (कट्टी)
(1) नोंक झोक हो जाय जो,
      बात अगर लग पाय।
      सही दोस्त दुश्मन बने,
      ब्रज कट्टी हो जाय।।
(2) होन लगे खोंटी खरी,
      मन में जो ने भाय।
      हँसी सुशी सब भूल के,
      कट्टी होत दिखाय।।
(3) जकड़ो विषय विकार ने,
      कट्टी ने कर पाय।
      तास नाश जीवन रहे,
      ब्रजभूषण पश्ताय।।
(4) वोलो सोच विचार के,
      कट्टी ना हो पाय।
      ब्रजभूषण मिल के रहो,
      करके सूत सलाय।।
(5) दाँत कटी रोटी हती,
      ब्रज प्रेमी रय आय।
      कट्टी हो गइ काय से,
      तनक झनक पर जाय।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[19/05, 19:32] Taruna khare Jabalpur N: 'कट्टी ' शब्द पर दोहे 


खेलत संगै लर परत,कट्टी करैं रिसायँ।
लरका बच्चा यार खाँ,तुरतइ लेत मनायँ।।

कट्टी करियो नै कबऊं,जे हों सच्चे यार।
आपस मै मिल जात हैं,पर नै होबै प्यार।।

एक हांत कट्टी करैं, दूजे सैं हो प्रीत।
लरका बच्चा खेल मै,तुरत बनत हैं मीत।।

झूठ-मूठ कट्टी करैं,मन मै भारी चाह।
गोरी अपने यार की,खड़ी निहारत राह।।

कट्टी करखैं प्यार मै,होबै कबउँ खटास।
तुरत मना लो यार खां, दिन-दिन बड़त मिठास।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[19/05, 19:32] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,, बुन्देली दोहा ,, विषय ,,उट्टी,,कट्टी 
************************************
उट्टी- कट्टी खेल रय , हल्के बाल गुपाल ।
लड़ेँ -भिड़ेँ गिर-गिर परें , चलें उबाँड़ी चाल ।।

मौड़ी- मौड़ा न्याँव में , कट्टी कत भग जात ।
तनक देर में फिर हँसत , खेलत खात रिसात ।।

उट्टी-कट्टी केँ भगेंँ , फेँक फाँक केँ गेँद ।
अब नइँ खेँलेँ तोय सँग , टोरेँ मउआ फेँद ।।

बब्बा बउ सेंं कन लगेँ , उट्टी-कट्टी मोइँ ।
दिखा मसूँड़ें बोल रय , लार टबकवै सोइँ ।।

हट्टी-कट्टी धना सेँ , उट्टी-कट्टी क्वाव ।
नइँतर कैदो हराँ केँ , मायँ भाड़ में जाव ।।

उट्टी-कट्टी बोलकेँ , भगी मायकेँ कोद ।
रैगय आँखेँ मीढ़ केँ , ठाँड़ेँ उतइँ "प्रमोद" ।।
***************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[19/05, 20:46] Gokul Prasad Yadav Budera: सुंदर दोहे सृजित हुए हैं आदरणीय दाँगी जी 👌
पहला दोहा इस तरह भी हो सकता है -
हलके में उट्टी करी,'दाँगी' ऐनइँ यार।
सुबह करी उर शाम कें,हो गव खूबइँ प्यार।।🙏
[19/05, 20:58] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहे 
विषय:-कट्टी/मित्रता खत्म 
कट्टी हो ग‌इ पाक सें ,कड़ो ससुर कौ नींच।
सेंना नें आगास हो,दव उन्ना सौ फींच।।१।।

सगे- सगे कट्टी भये, छोड़ें ब्याव बरात।
भैया खों भैया बुरव,लासन घांईं‌ बसात।।२।।

अधरम ‌सें कट्टी करौ, धरौ धरम की गैल।
ऐंड़त फिरत ततौस में,धौ लौ मन कौ मैल।।३।।

बिटिया मारत पेट में, गंगा सपरन जांय।
इन सें कट्टी सब करौ,गिदवा चींथे खांय।।४।।

रावण सें कट्टी करी, लीन्हौ है मुख मोड़।
भ‌ओ विभीषण राम कौ, भगो लंक गढ़ छोड़।।५।।
                    भगवान सिंह लोधी अनुरागी
[19/05, 21:25] Ramlal Duvedi Karbi Chitrakut: *उट्टी/ कुट्टी : बुन्देली दोहा*

 भोरे बालक होत हैं ,कब कुट्टी कर रोंय।
तनिक देर में खुश हतें, झट मिट्ठी खुश होंय ।1

अगर खेल रोईं करें, गर ना रये खिलाय।
तनिक देर कुट्टी करय, क्षन में गाल फुलाय।2

बालापन कौ दौर था, झट कुट्टी झट प्यार।
जिगरी दोस्त मनावते, मिट्ठी कर हथियार।3

छुआ छुआई खेल रय, खेलत भागत जात।
तनिक कहीं रोईं भई, कुट्टी करत रिसात।4

स्वरचित एवं मौलिक 

        रामलाल द्विवेदी प्राणेश
[20/05, 05:18] +91 76102 64326: शोभारामदाँगी बिषय-"उट्टी/कट्टी"
(बुराई) बुंदेली  दोहा  (270)
              संशोधन
      (01)
 हलके में उट्टी करी,"दाँगी" ऐनइँ यार ।
सुबह करी उर शाम कें,हो गव खूबइँ प्यार ।।
                   (02)
तन-तन पै उट्टी करें,होबै तुरतइँ प्रेम ।
मौड़ी मौड़ा सब करत,दाँगी" खेलत गेम ।।
                    (03)
दाँत उगरियाँ दाबकैं,झट कुट्टी कर देत ।
"दाँगी"उट्टी में मजा,मेर करैं मिल लेत ।।
                      (04)
धूरा में खेलत हते,किशन और बलराम ।
एक बेर उट्टी भई,"दाँगी" करैं प्रणाम् ।।
                     (05)
रैचकुआ पै झूलकैं ,चंगा खेलत रायँ ।
"दाँगी"बिगरी बात सो,उट्टी कर भग जायँ ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326



दिनांक -17.5.2025


[17/05, 12:42] Rajeev Namdeo Rana Lidhori ❤❤: *अप्रतियोगी दोहे:-*

*बुंदेली दोहा -उजड्ड (लड़ाकू स्वभाव का)*

#राना एक उजड्ड ही,कर दे सत्यानास।
सबइ पुरा हैरान रत,कौउँ न जाबै पास।।

बात- बात में है  लरत,#राना लयँ रत लठ्ठ।
सब उजड्ड भी कात हैं,पातइ ऊसैं खट्ठ।।

जब उजड्ड खौ देखतइ,टारौ ‌‌सब दे जात।
#राना खिसकत है हराँ,कौउँ न सामै आत।।

जब उजड्ड से मेर हो,गलत समझतइ लोग।
#राना संगत कौ असर,दै जातइ है रोग।।

सत संगत #राना गली,जितै मिलत हैं राम।
हैं उजड्ड दरुआ सड़क ,हौत नाम बदनाम।।
  ***दिनांक -14.5.2025
✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[17/05, 14:09] Subhash Singhai Jatara: 17.5.25- शनिवार(उजड्ड --लड़ाकू स्वभाव का)

लबरा ढोर गँवार खौं ,  मानत   सबइ   उजड्ड |
कत यह मूसरचंद हैं , और   अकल से  खड्ड ||

हौ उजड्ड से सामनौ , बरकत हैं सब लोग |
कौन  बीद कै लाय घर ,   ठाडै  बैठें  रोग ||

जितने  हौत  उजड्ड   हैं , लरबे   ठाँड़े   रात |
तबइँ मानतइ जे सुनो , खा लें जब दो लात ||

बन उजड्ड  लरबे फिरे  , बाँड़ी    पूँछ  उठाय |
थुथरी जो भी दे   मिटा , नाक रगड़बे  आय‌ ||

जब उजड्ड बन जात है , अपने घर को पूत |
भौत उरानै आत है ,        संगै  लयै सबूत ||

सुभाष सिंघई
[17/05, 15:44] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-उजड्ड
है उजड्ड सब पाक जौ,मानत नैंयां बात।
खाबै की आदत परी,घुरवा कैसी लात।।१।।

इकड़ा सुॅंगरा की तरह, भारी पाक उजड्ड।
खल‌उ पनैयां जब घली,हो गव सब खड बड्ड।।२।

अति उजड्ड रावन कड़ो, मिटवा डारो बंश।
नीच अधम माने नहीं,मम्मा माहल कंस।।३।।

है उजड्ड पन ठीक न‌इॅं, कहते चतुर सुजान।
जरजोधन मारो ग‌ओ,करन मीत बलवान।।४।।

बम की धमकी देत है, डड़ियल पाकिस्तान।
हम उजड्ड बिल्कुल नहीं, सुनले रे शैतान।।५‌।।
                     भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[17/05, 15:59] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय उजड्ड 
                   1
नइँ उजड्ड सें उरजियौ, ऊ सें रइयौ दूर। 
जनम कडै हँस खेल कें, बनौ रहै सब नूर। 
                      2
ज्यों निबुआ की बूँद सें, सबइ दूध फट जाय। 
त्यौं उजड्ड के संग सें, सबरौ काम नसाय। 
                         3
खल उजड्ड अक्खड़ निरस, इनकी होबै नाँस। 
बनें बनाये काम में, डार देत जे फाँस। 
                         4
एकइ लट्ठ उजड्ड कौ, बुजा देत है ताव। 
खौप खात ई सें सबइ, का मुन्सी का साव। 
                         5
रा रा दइया सी मचै, मिलबै एक उजड्ड। 
गाडी पारै ना लगै, अबस गिरै बा खड्ड। 
रामानन्द पाठक नन्द
[17/05, 16:40] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा (216)
बिषय- "उजड्ड"   (01)
वानर सेना भौत है,उनमें बीर जवान ।
है उजड्ड"दाँगी"भँलां,गड्ड बड्ड करें शान ।।
                      (02)
आज काल कत कोउसैं,उज्बक और उजड्ड ।
ऐंठ बताबैं तान कैं,"दाँगी"गड्डइ बड्ड ।।
                      (03)
जिनके करम उजड्ड हौं,उनसैं रइयौ दूर ।
दाँगी"उजड्ड हौंय तौ,गड्ड-बड्ड भरपूर ।।
                  (04)
सत संगत ऐसी करौ,धरें न कोऊ नाव ।
उजड्ड पन"दाँगी"नहीं,सदां करैं सदभाव ।।
                 (05)
पड़े लिखे तौ खूब हैं,लगतइ मोय
उजड्ड ।
बात न मानें काउ की,दाँगी"सड्डइ
बड्ड ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[17/05, 16:59] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे-"उजड्ड" 
*******************
लरका तनक उजड्ड है,
        सुन कें इतनी बात।
उल्टे पाँवन वरदिखा,
      ग्योंड़े सें भग जात।।
****
कड़त किनारौ काट कें,
       सब उजड्ड खों देख।
कय कै बौ मारग चलत, 
        डरी बिदैउत मेख।।
****
लरका होय उजड्ड तौ,
        पुटया कें समजाव।
बड़है और उजड्डपन,
     जो ऊ खों थुड़याव।।
****
जी के घर में बेबजह,
     निश-दिन दाँती होत।
ऊ के घरै उजड्डपन,
     बिछा खटोली सोत।।
*******************
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[17/05, 18:26] S R Saral Tikamgarh: *बुन्देली दोहा विषय -उजड्ड*
**************************
तुम उजड्ड कर हरकतें,
                   देखौ  नईं  ख्वाब।
पाक  तुमें  धूरा  चटा ,
                   दव मुँहतोड़ जबाब।।

अब उजड्ड करिओं नईं,
                   पाक हरकतें औऱ।
हिन्दुस्तानी  शेर  दिल,
                   बनौ मिटा दें ठौर।।

घर में हूड़ गमार से,
                  लरबै भाई भाइ।
ई उजड्ड औलाद सै,
                  रोबै बाप मताइ।।

हल्की हल्की बात पै,
                  कर बैठें तकरार।
लरका भौत उजड्ड हैं,
                  कै रय लम्मरदार।।

धमकी देबै मुन्स खौ,
                  करबै रोज लराइ।
*सरल* भौत दयँ तासना,
                  जा उजड्ड घरवाइ।।
**************************
             एस आर सरल
                 टीकमगढ़
[17/05, 19:10] Taruna khare Jabalpur N: उजड्ड, शब्द पर दोहे 


सांत कबउं बैठें नईं,करत रैत उतपात।
तनक तनक मै लर परैं,बेइ उजड्ड कहात।।

कही करत नइँ बाप की,उलटे आंख दिखाय।
लरका होत उजड्ड जे, पानी खों तरसाय।।

है उजड्ड सासैं जहां,बउएं रत हैरान।
मन की कछु नै कर सकैं,धुकधुकात हैं प्रान।।

मुंह नै लगौ उजड्ड के,सूदे बनखैं राव।
पानी अपनो राखबे,दूरइ सैं कड़ जाव ।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[17/05, 21:02] Rajeev Namdeo Rana Lidhori ❤❤: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -216*

शनिवार, दिनांक - 17/05/2025

*प्रदत्त शब्द- उजड्ड (, लड़ाकू)*

*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां का क्रम :-*

*1*
है उजड्ड मानै नईं,बातैं पाकिस्तान।
हम अपनी पै आ गए,मिटहै नाम निसान।।
          ***
         -तरुणा खरे'तनु' ,जबलपुर
*2*
भौत उजड्ड ही सब कहें,पूरा पाकिस्तान।
हमने जौ सुउ देख लव,लरवे की लइ ठान।।
       ***
     -रामसेवक पाठक "हरिकिंकर",ललितपुर 
*3*
चाली मौड़ा जे पजे,सबरई गड्ड बड्ड ।
बूड़ौ डुकरा सोस में,भौतइँ भौत उजड्ड ।।
              ***
      -शोभाराम दाँगी, नदनवारा
*4*
उजड़ू गइया सी फिरें,कछू लुगाईं आज।
मौ मारें चाहें जिते, इन्हें सरम ने लाज।।
         ***
         -बिंद्रावन राय 'सरल',सागर 
*5*
हैं उजड्ड जिनके पिया, खूबइँ गारीं देत।
दारू पी  कें बेंच  दय,मोटे  के दो खेत।।
      ***
        -अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निबाड़ी 
*6*
मोड़ा खूब उजड्ड है,बाप नेक इनसान।
सवरे कैरय आज तौ,करत जेउ शैतान।।
             ***
       - वीरेंद्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*7*
बन उजड्ड भौंकत फिरत,घिटला पाकिस्तान।
चार पड़त जब पीठ में,भगत बचा कैं  प्रान।।
        ***
       -सुभाष सिंघई , जतारा 
*8*
सबसें मौंजोरी करै,चाय जितै अड़ जाय।
बात बात पै जो लरै,बौ उजड्ड कैलाय।।
          ***
           - डॉ.देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा 
*9*
बरबट उजड़ु बना दये,धर धर पानी खूब।                
 लड़े लड़ाई मिट गये,हो गय कूरा डूब ।।
            ***
          - मूरत सिंह यादव, दतिया 
*10*
पाकिस्तान उजड्ड है,जानत भयँ जा बात।
बाँटत चीन अमेरिका,बड़-चड़ कें खैरात।।
         ***
        -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी
*11*
लरका निज मन की करैं,खोदै दोरें खड्ड।
संतन खौं पैरे सुनौं,लरका बढ़ौ उजड्ड।।
             ***
-प्रदीप खरे'मंजुल' टीकमगढ़ 
*12*

आल्हा उर ऊदर सुनौ,भारी हते उजड्ड।
लड़ -लड़ बावन गढ़ो खों,करौ खड्ड कौ बड्ड।।
           ***
            -भगवान सिंह लोधी'अनुरागी', हटा
*13*
तुम उजड्ड रय जनम के, अकड़ू रहो स्वभाव। 
भलो काऊ कौ न करौ,बिरथां जनम गमाव।।
       ***
      -आशा रिछारिया, निवाड़ी 
*14*

रव उजड्ड सें दूर तुम,  नातर  परहे टूट।
तो सोऊ माने नईं, दो चिपकाओ बूट।।
           ***
     - श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
*15*

उरजत ते हर काउ सें, ऐसे हते उजड्ड।
एक बेर कर्रे बिदे, कड़ गइ सबरी अड्ड।।
         ***
             -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*16*
छोड़त नहीं उजड्ड पन, ना छोड़ें तकरार।
लेत लड़ाई मोल बे,गालीं देत उधार।।
            ***
              -नरेंद्र मित्तल सेवढ़ा(दतिया)
*17*
ना उजड्ड कर हरकतें, घटिया पाकिस्तान।
घर में घुस कैं मार दव, जौ है हिन्दुस्तान।।
     ***
          -एस आर सरल,टीकमगढ़
*18*
वाणी में मधुरस नई, बकत उभाँडे बोल। 
जानें नई उजड्ड जन, नीत प्रीत कौ मोल।।
                ***
                  -रामानन्द पाठक' नन्द',नैगुवां
*19*
उपज जाएं जा वंश में,उज्बक और उजड्ड। 
ता घर में भोरईं अथएं, होतई जड्डम जड्ड।।
           ***
         - डॉ. राजू विश्वकर्मा, सेवढ़ा( दतिया)
*20*
ग़ुस्सा जिनकें भीतरें, बनो उजड्ड सुभाव।
ऐसे निष्ठुर मान्स नें, प्रेम कबउँ नइँ पाव।।
          ***
           -विद्या चौहान फरीदाबाद 
***
*संयोजक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965
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[17/05, 22:27] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुंदेली दोहा ,, विषय,, उजड्ड ,,
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हैँ उजड्ड दो गांव में , चाय जियें टुनयाउत ।
जियेँ देखने सो चलो , अबइँ "प्रमोद"बताउत ।।

लरका गुटका खात तो , दारूँ पीकें रोज ।
कत उजड्ड बदमांँस है , घर को मिट गव खोज ।।

गड्ड -बड्ड करवै दते , मौड़ा पजें उजड्ड ।
टिँगरें टिँवनी थुल रहेँ , पीकेँ गिर रय अड्ड ।।

मुलकन देश उजड्ड हैं , उनमें पाकिस्तान ।
जो कनबूंँजे सेँक तइँ , उसको भारत जान ।।

अमरीका संसार में , है चिप्पा बदमाँस ।
अखरोँ जेउँ उजड्डपन , जैसेँ खेते कांँस ।।

जो उजड्ड ज्यादा हतेँ , उन्ने खा लव पैल ।
नेता कइयक देश मेँ , होगय उजरा बैल ।।
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    ,,,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[18/05, 14:04] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय= उजड्ड
(1) बल बलात हो ऊँट से,
      भारी वनत उजड्ड।
      अरे सुनो पर है पतो,
      जिदना जुर है मुड्ड।।
(2) नई खों आ रब फिर सुनो,
      बदरा वड़ो उजड्ड।
      जीके मसके कई तको,
       जोधा गये है गड्ड।।
(3) लरत भिड़त जी चाय से,
      हो तुम बड़े उजड्ड।
      अपने हाथन खोद रये,
      अपने जी खो खड्ड।।
(4) जो उजड्ड वन के रहे,
      काटे सबई कनाव।
       ब्रजभूषण कव मान जा,
       वदलो तनक सुभाव।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।



दिनांक -12.5.2025

[12/05, 09:22] Subhash Singhai Jatara: 12.5.25-सोमवार बुंदेली --भैंरन्टा(अतृप्त भूखा)

भैरन्टा मुलकन मिलत, अपने दाँत निपोर |
गटा गिद्ध से  हैं रखत , जैसे खा जें   टोर ||

भैरन्टा    टपयात   हैं , अपनी   जीभ निकार |
मिलतन ही वह चाँट लें , टपका- टपका लार  ||

भैरन्टा ना   तृप्त हों , चाहे   जितनो खायँ |
सबइ डकारे फिर उतै , फैला हाथ मँगायँ ||

भैरन्टा की है नहीं ,   अलग    परे    से जात |
यह सुभाव समझो नियत , सूदी सच्ची कात ||

भैरन्टा की जात में        , नेतन खौं लौ मान |
कितनउँ खा जै देश को , पर भूखे रत आन ||

भैरन्टा  मन  रोग  है , होत   नईं    संतोष |
समझाबौं बेकार रत , है यह  जग में दोष ||

सुभाष सिंघई
[12/05, 11:22] Rajeev Namdeo: *बुंदेली -भैंरन्टा(अतृप्त भूखा)*

खाबौ-खाबौ बस करत,भूख हौत ना शांत।
भैरन्टा कैलात है,#राना  रत   बे क्लांत।।

#राना माँगत हर जहाँ , खात रात दुत्कार।
भैरन्टा  सब कात हैं,ढूकैं सबके द्वार‌।।

#राना लोभी जोरतइ,झटके  द्रव्य हराम।
भैरन्टा-से बे लगत,थूकत जग ले नाम।।

भैरन्टा ;#राना मिलो, बोलो करौ जुगाड़‌।
तीन दिना से लौंक रइ,मौरी खाबे दाड़।।

भैरन्टा कौ घर तकौ,भौत घिनापन आत।
#राना बखरी आँगना,भौतइ बुरौ बसात।।
      *** दिनांक -12.5.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[12/05, 11:24] Rajeev Namdeo: दि०१२-०५-२०२५ मंंच को नमन।

भैरंटा  सबसे बड़ा,जग में पाकिस्तान।
मरता है भूखों सदा,फिर भी करें गुमान।।

मौलिक, स्वरचित 

"*-राम सेवक पाठक 'हरिकिंकर", ललितपुर*
[12/05, 12:15] +91 76102 64326: शोभारामदाँगी "भैरन्टा"(अतृप्त भूखा) बुंदेली दोहा (269)
                    (01)
भैरन्टा जो होत हैं ,उनकी टपकै लार ।
कब "दाँगी" खाबे मिलै,करबैं लाड़ पियार ।।
                (02)
भैरन्टा ई देस के,खा रय खूब मलाइ ।
कछू तरस रय नौन खों,"दाँगी" कह नै जाइ ।।
                     (03)
भैरन्टा समजाय सै,समजत नइँयाँ बात ।
"दाँगी"खाबै की परै,खाकै करबैं घात ।।
                   (04)
भैरन्टौं की लत अलग,शुक्र शनीचर घाँइँ ।
पंगत जैबैं पैलसैं,"दाँगी"उठै पछाँइँ ।।
                 (05)
भैरन्टा हर काम मैं,लप-लप करबै खूब ।
"दाँगी"देखत नइँ बनै,कर लैबै मनसूब ।।
                 (06)
भैरन्टों की आदतै,छूटत नहीं छुड़ायँ ।
जीब लफरयाबै सदां,"दाँगी" कालौं कायँ ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[12/05, 15:31] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,, बुन्देली दोहा ,बिषय ,,भैरन्टा,,
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भैरन्टा मुलकन घुसें , भारत भर में आज ।
जितै खाँयँ छेदोँ करेँ ,  इनखोँ नइया लाज ।।

रिश्वतखोर दहेज के , भैरन्टा पैचान  ।
नालस थानेँ मेँ करो , बनेँ पुलिस मैमान ।।

कुछ भैरन्टा मांँग रय , घर-घर पइसा रोज ।
जिनके कारन देश में , मिटोँ प्रेम को खोज ।।

भैरन्टा नेता कछूँ , चारोँ चद्दर खाँयंँ ।
मसकउँ काटेँ आनकेँ , बिन भौंकेँ दर्रायँ ।।

देवा नइयाँ गाँव मेँ , लैलीता हैँ लोग ।
भैरन्टन को फैल गव , भारत भर में रोग ।।

टपरयात दिन भर फिरेँ , भैरन्टा दो चार ।
पउआ तीन ढगोँसकेँ , करेँ निपौरा रार ।।
*************************************
     ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[12/05, 15:34] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहे 
विषय:-भैरंटा
तीन गड़‌इ पी गव मठा,लुच‌इॅं सेंड़ गव बीस 
भैरंटा इतनौ बड़ौ,कै रव सतुआ पीस।।१।।

सकला सांय चचोर कें,और कलीदों खांय।
भैंरंटा हैं जनम के,चिपरू सौ मों बांय।।२।।

आबर जाबर सब भकें,मेंगी डोसा चाट।
भैरंटा मानत नहीं,  मरघट में है ठाट।।३।।

निमुआं कौ सरबत हनौ,पनौ आंम कौ खास।
भैरंटा मानें नहीं,  करै दही की आस।।४।।

भैरंटा इतनें बिकट, पी गय सेरक दार।
कड़ी संग डुबरी हनें,फिर उछरे क‌इ वार।।५।।
              भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[12/05, 15:35] Dr. Renu Shrivastava Bhopal: दोहे विषय भैरन्टा

भैरन्टा भैरात जब, 
कछू चीज़ ना पात। 
मों से मांगे मिलत है, 
जब लालच ने रात।। 

भैरन्टा समधी मिले, 
दान दायजो लेत। 
धरें रुपइया टेंट में, 
गड्डी सरका देत।। 

भैरन्टा से फिरत सब, 
मोड़ी मोड़ा संग। 
बेरोजगारी बढ़ गई, 
बाप मताई तंग।। 

रिश्वत के ई दौर में, 
पैसन खों भैरात। 
कछू काम ना बनत है, 
भैरन्टा जां रात।। 

साड़ी पे भैरात हैं, 
जनी मांस सब आत।
फेरीवाले के लेंगा, 
धरी मछों सी रात।। 

भैरन्टा नेता सबई, 
वोटन के है मीत। 
पैसा दै के पा रहे, 
झूठी सांसी जीत।। 

            डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
             सादर समीक्षार्थ 
               स्वरचित मौलिक
[12/05, 15:56] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय भैरंटा 
                       1
भैरंटा दौरत फिरत, कबहुँ न नर भर पाय। 
हासिल करकें एक ठउ, दूजे खों ललचाय। 
                       2
कलुआ भुखयानों फिरै, ढूँढ रऔतौ  ठौर। 
भैरन्टा  सें भेंट भइ, करन लगौ बौ गौर। 
                         3
भैरन्टा गेरऊँ फिरै, तकत फिरै बौ दाव। 
जाँ ऊखौ पंगत मिली, उतइ बैठ कें खाव। 
                          4
घर के भोजन नींक नइँ, कितनउँ देव बगार। 
भैरन्टा मानत नई, गला लेत कउँ दार। 
                           5
भैरन्टा जन की नियत, हरदम रात खराब। 
ऊ के घर होय चय, दौलत कौ सैलाब। 
रामानन्द पाठक नन्द
[12/05, 18:17] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- भैरन्टा
(1) तुम भैरन्टा जन्म के,
      चाने जो मिल जाय।
      अपनी दारे सो लुकत,
      घर सें नें लग पाय।।
(2) हम भैरन्टा काय के,
      तुम लो मागन आय।
      ब्रजभूषण लल चाय ने,
      रूखो सूको खाय।।
(3) परेशान साजे भले,
      जौ तौ मोय पुसाय।
      ब्रजभूषण साजो नही,
      भैरन्टा बतयाय।।
(4) जौन चीज देखें तकें,
      नियत औइपै जाय।
      ब्रजभूषण समझो सही,
      भैरन्टा वो आय।।
(5) भुकयानें से जुट परे,
       फूलो नही समाय।
       जुरो होय जब तो कवऊँ,
       भैरन्टा तो आय।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[12/05, 18:52] Gokul Prasad Yadav Budera: बुन्देली दोहे, विषय - भैरंटा 
*********************
भैरंटा रव ज्ञान के,
          रखौ ज्ञान की भूँख।
ज्ञानी बन पाबन करौ, 
        जननी मांँ की कूँख।।
****
जग में करम प्रधान है,
        बात समजिऔ ठेठ।
करमन के फल सें बनत,
           भैरंटा   उर  सेठ।।
****
बंजी करबे सेठ गय,
          भैरंटन   के   गाँव।
तन पै नेकर भर बची, 
          लौटे उपनय पाँव।।
****
धन कुबेर होबें भले,
           होबें भले कुलीन।
भैरंटा जन होत हैं,
           मानवता सें हीन।।
****
भैरंटा की भूँख कौ,
           मिटबैया है कौन।
ब्रह्मा जू के प्रश्न पै,
        देव भये सब मौन।।
********************
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[12/05, 19:49] Taruna khare Jabalpur N: भैरन्टा, शब्द पर दोहे 


भैरन्टा इतनो बड़ो,दस-दस रोटी खाय।
दार भात बेला भरो,मठा सुई पी जाय।।

भैरन्टा की भूंक खों,मिटा सकै नै कोय।
कितनउ खा पी लेत है,तउ पूरो नै होय।।

खूब समैटत जात है,तौ भी नईं अघाय।
भैरन्टा धन को रहै,देख देख ललचाय।।

जे संतोसी जन रहैं, तन्नक पायँ अघात।
ललचाउत मन मै सदा,भैरन्टा कहलात।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
********

दिनांक -10.5.2025

[10/05, 12:59] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा -मड़बा*

बिटियाँ कौ मड़वा गड़ौ, आऔ देव गनेश।
मंगल कर दो काज सब,हरियौ ‌सबइ किलेश।।

हरे बाँस थुमिया बने, ऊपर पत्ता आम।
केला की झालर बँधी,गड़बें मड़वा खाम‌।।

पूजा हौबें मैर की,कुल के  देव बुलाय।
कत जिनखौ हैं मायनों,मड़वा खूब सुहाय।।

फूफा जीजा नेग लें,दें मड़वा खौ गाड़।
मामी भी आकैं उतइँ,देय चून भी ‌माड़।।

राम सिया के व्याय‌ के,गाँय‌ औरतें गीत |
नेग सबइ मड़वा तरै, हौकें राखत प्रीत।।

#राना मड़वा जानियों,व्याय काज की शान।
त्रेतायुग से आज तक,बनी रयी  ‌ पहचान।।

मड़वा मन का सूर्य है,रहे पिता उल्लास।
माँ की शीतल चाँदनी, #राना जानों खास।।

मड़वा जिस आँगन गड़ै,वह घर पावन  मान।
सबइ देव आशीष दें,#राना इतनौ जान।।

मड़वा देवन के गड़ै,शिव शंकर श्री राम।
गँबै उनइँ के गीत भी, भुन्सारे  से  शाम।।

आए थे मड़वा तरै ,मरकर  भी  हरदौल।
भानेजन कौ भात दे , रखौ बहिन कौ कौल।।
***
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[10/05, 13:59] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय मडवा 
                      1
दोइ हाँथ पीरे करे, कर दव कन्यादान। 
भई परायी लाडली, मडवा नैचें आन।  
                        2
मडवा तरें चडाय में, घले बसेता ऐंन। 
हँस- हँस गारी गा रई, रामालइँ मातेंन। 
                        3
पंगत भइ मडवा तरें, सारीं गाँय तगाँय। 
दूला रूठौ नेंग खों, जुरमिल सबइ मनाँय। 
                          4
भौजी नें मडवा तरें, बिलख पखारे पाँव। 
कात ननद सें छूट गव, आज दोर घर गाँव। 
                            5
चम्पा बिलखै काँ छुपे, ओ मम्मा हरदौल। 
दर्शन दो मडवा तरें, तुमें हमाव कौल। 
रामानन्द पाठक नन्द
[10/05, 14:33] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली विषय - मड़वा

नेग चार मड़वा तरैं , सबइ सगुन के  रात |
मम्मा दैतइ प्रेम से , भानेजन  कौ  भात ||

मड़वा मंगल हौत है ,       व्याय काज हो गेह |
लिपत पुतत पत्ता  डरत ,  बैठ करत सब नेह || 

मड़वा गाड़त पावने  , मान दान जो होय‌ |
हरदी हाते पीठ में , घालें  महिला   सो़य ||

हरे बाँस  मड़वा  लगै  ,  पत्ता  छाबैं  आम |
गीत गाउती जुर सबइ , हौतइ जौन तमाम  ||

पूजा हौबे मेर कीं  , जब मड़वा गड़‌ जात |
मंगल करबे काज सब , सबरै देव बुलात ||

मड़वा के जब नेग हों  , फुआ  बैठ जै  पैल |
काबे  हमें बताउने ,   आगें   सबखौ  गैल ||

सुभाष सिंघई
[10/05, 14:57] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा ,बिषय ,,मड़बा,, मंडप 
**************************************
सारी ने मड़बा तरेँ , जब जीजा कइँ टेर ।
कैसेँ कयँ कैसोँ लगो , लव "प्रमोद"ने हेर ।।१।।

कुँवर कलेबा होत तो , गय दूला के संग ।
मड़बा तरेँ "प्रमोद"पै , गड़न कुड़ेँरो रंग ।।२।।

जुआँ सिलौटा खाम सेँ , पर गव काम "प्रमोद" ।
मड़बा में कुपरा धरेँ , हैरेँ लुढ़िया कोद ।।३।।

मड़बा तरें दहेज को , जोर धरौ सामान ।
हरदी चांँवर दय छिटक , कर रय कन्या दान ।।४।।

मड़बा मेँ समधी लरेँ , रकम ल्याव दो लाख ।
नाक लगा क्योँ आयतेंँ , जब बिलरीती साख ।।५।।

मड़बा मेँ समधन नचेँ , समधी गावै ख्याल ।
दोरेँ हुँन बाजेँ बजेँ , मिला-मिलाकेँ ताल ।।६।।

दौना पत्तल पै बरा , रोटी कड़ी अचार ।
दार भात मड़बा तरें ,  खारय शक्कर डार ।।७।।

जब "प्रमोद"को ब्याव भव , ऐन हतीती ठंड ।
मड़बा में बैठें कपत , सारे तीन मुचंड ।।८ ।।

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       ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[10/05, 15:05] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे,व - मड़वा 
*********************
पकरी ती मड़वा तरें,
          नव-जीवन की गैल।
पाँच दशक कौ भव सफर,
           कांँटे मिले न शैल।।
****
बैठ जात मड़वा तरें,
        सज-धज कें गबनाँइ।
पंडितजी भाँवर पड़त,
           बे  उतारतीं  काँइ।।
****
चिरइ-चरेऊ ढीट रत,
             भौतइ  रोंपतयात।
मड़वा डरै दुमंजला,
       तबइ जुनइ रख पात।।
****
मड़वा हर घर में डरत,
           उतइँ होत जिबनार।
फिर बिबाह-घर जात हैं,
               लै कें बंदनवार।।
**********************
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[10/05, 15:17] Amar Singh Rai Nowgang: *अप्रतियोगी* 
बुंदेली दोहे, विषय- मड़वा 

मड़वा  बेदी  मान  कैं,  परत  भाँवरें  सात।
वर-कन्या भाँवर परें, पति-पत्नी हो जात।।

सात  बचन  मड़वा तरें,बिटिया बर से केत।
पाँच बचन लरका रना,फिर हामी भर देत।।

भइया  पक्के  आइयो, कुंजा  ने दइ  कौल।
चीकट  मड़वा  के  तरें,  लाए  थे  हरदौल।।

थुमिया गाड़त चार ठउ,और नकइँयाँ छाय।
डार  पतोरा  छ्योल के, मड़वा लेत बनाय।।

शहरन में अब देख रय,गड़त न मड़वा भूम।
गाड़  लकइया  कंसरा,  लेत  भाँवरें  घूम।।

मड़वा  के  नेचें   गवत,  नोने - नोने   गीत।
गारी  भी  प्यारी  लगें, लेतीं  हैं मन  जीत।।

                             अमर सिंह राय 
                                   नौगांव
[10/05, 17:21] Sr Saral Sir: *बुंदेली दोहा विषय- मड़वा* 
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हरे बाँस मड़वा डरे,
                लखू चंद के द्वार।
गाड़ी घोड़ा सै *सरल*,
                आ जा रय निवतार।

मड़वा भीतर बायरें,
               दिख रय रिस्तेदार।
बैठी  है पंगत *सरल*,
                हो रइ है जिवनार।।
               
कत बाबुल मड़वा तरें,
               बिटिया भई पराइ।
चइयाँ मइयाँ पार दइँ,
               हो रइ आज बिदाइ।।

आज हरे मड़वा डरे,
                होनें कल्ल बिदाइ।
पाल पोष  बड्डों  करों,
                 पैटै   नईं   समाइ।।

पार  दईं  हैं  भोरियाँ,
                 कर दय पीरे हात।
अब मड़वा सूनें लगें,
                 लली सासरै जात।।
**************************
               *एस आर सरल*
                   *टीकमगढ़*
[10/05, 19:16] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- मड़वा
(1) बुलवालइ मड़दावरी,
      मड़वा लेव बनाय।
      मान दान ब्रज टेरकें,
      नेंग चार हो जाय।।
(2) होबे मड़वा मायनो,
      चड़वे हरदी तेल।
      जबतो होवे ऊबनी,
      करत काय खों झेल।।
(3) फिर चड़ाव फिर भाँवरे,
      फिर ब्रज कन्यादान।
      सोपे बेला तब विदा,
      कारज बनें महान।।
(4) बड़ी पुरानी रीति है,
      पालत है सब कोय।
      जब तो लगत वियाव सो,
      मड़वा विन नइ होय।।
(5) गर्मी में रय छाँयरो,
      घाँमों नही सताय।
      थुनियाँ मड़वा गाड़ के,
      जामुन पत्ता छाय।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा
[10/05, 19:54] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहे 
विषय:-मड़वा 
दर करकें थुनियां गढ़त, मड़वा पत्ता छांय।
खांम गड़े हरदी लगै, फिर नतेत सब खांय।।

 दरया फुलका उर कड़ी,पापर संगे भात।
"अनुरागी" मड़वा तरें,प‌ई पाॅंवने खात।।

बिन मड़वा के आज कल, होन लगें हैं ब्याव।
क‌इयक शादीं टूट र‌इॅं, बनी रहत है न्याव।।

बिटिया की मड़वा तरें,भाॅंवर दीन्हीं पार।
आज एक दो कुल भये,विधि आखर दयॅं डार।।

होत असाढी़ भेट फिर, मड़वा द‌ओ बहोर।
समदी सें समदी मिलै,बॅंधे प्रीत की डोर।।
              भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[10/05, 20:20] Rajeev Namdeo: * *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -215** *दिनांक -10.5.2025*

*प्रदत्त शब्द-मड़वा/मड़बा (मंड़प)*

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
1-

चार-चार मड़वा सजे,छलके अति अनुराग।
चतुरानन भाँवर पढ़ें, धन्य जनक के भाग।।
                     ***
                 -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी
*2*
मड़वा तर हरदौल नें, चीकट धर दइ हाथ। 
भेंट करी कुन्जावती, खूब निभाऔ साथ।
                  ***
                  - रामानंद पाठक 'नंद', नैगुवां
*3*

भानेजन के ब्याव कौ,धरो बहिन नें कौल।।
पारस मड़वा के तरें,करें लला हरदौल।।
            ***
             -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
*4*
नैंचें मड़बा बैठ कें,खाव कड़ी उर भात।
बरा मिला कें ख़ाव तौ,मजा भौत आ जात।।
             ***
             - वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*5*
मड़वा मंगल हौत है , हरे बाँस से छाँय‌।
पत्ता डारे आम कै , कदली खम्ब बनाँय‌।।
          ***
             -सुभाष सिंघई, जतारा 

*6* *(द्वितीय स्थान प्राप्त दोहा)*

मांग सजी सिन्दूर सें, चुरियन सजी कलाइ।
मडवा तर भांवर परी,बिटिया भई पराइ।।
           ***
          - डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा
*7*
मड़वा चीकट के बिना, हरदम सूनो रात।
भाई के घर हर बहन, जाकैं माँगत भात।।
              ***
                 -अमर सिंह राय, नौगांव 
*8*
मडवा की पंगत भई, बहु भांत जेवनार। 
कड़ी- भात, बूरा-बरा, फुलका, घी उर दार।।
       ***
          -रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ 

*9* *(तृतीय स्थान प्राप्त दोहा)*

हरे बाँस मड़वा तरें, बिलखत बाप मताइ।
कात करेजौ फट रऔ,बिटिया करै बिदाइ।।
                  ***
                -एस.आर. 'सरल,',टीकमगढ़
                 


*10*
मंडप गायब हो गये, भूल हैं संस्कार। 
होटल में शादी करें, गारीं ना ज्यौनार। 
             ***
          -डॉ.अवधेश कुमार चंसौलिया,ग्वालियर 
*11*
कुदरत के मड़वा तरैं,बैठे हैं जनी मान्स ।
नैंग-चारअच्छे बुरे,ल्यो जु नौनौ चान्स ।।
               ***
          -शोभाराम दाँगी 'इंदु', नदनवारा 
12-
दो अंजाने प्रेम सें,परिणय भांवर लेत।
बँधे गांठ मड़बा तरें,सात जनम के हेत।।
            ***
       -आशा रिछारिया( निवाड़ी)
*13*
फूपा मड़वा  गाड़बैं,फुआ गाड़तीं खाम।
बिनती करैं गनेश सैं,पूरन करियौ काम।।
                 ***
           -आशाराम वर्मा 'नादान',पृथ्वीपुर
*14*
मड़वा डारे आम तर, कैरी पनो पिलाँय।
स्वागत बै मनसैं करैं, मिलत हृदे हरषाँय।।
               ***
            -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा

*15* (*प्रथम स्थान प्राप्त दोहा*)

आँगन में मड़वा डरो, हो रव मंगल काज,
मंत्र गूँज रय भीतरै, बजत बायरैं साज ।
              ***
        -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल

*16*
मड़बा तरें बरात के,भय नोने सत्कार।
हरदी सेँ हाथेँ भिड़ा,दइँ लुगान ने मार।।
         ***
            - प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 
*17*
दतिया सें जा ओरछा,दऔ कुंजा नैं कौल।            
 मड़बा के नींचे भरो,मरें भात हरदौल।।
             ***
           - मूरत सिंह यादव, दतिया 
*18*
हरसाये राजा जनक, मिथिला भई निहाल।
सियाराम  मड़बा तरैं, ठाँड़े  ले वरमाल।।
              ***
              -विद्या चौहान, फरीदाबाद 
*19*
मड़वा से वे हैं हलत,तन में नइयाँ जान।
दारू  पी  रय  हूँक  कें,  कर  घर वीरान।।
          ***
       - अंजनीकुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी 
##
*©संयोजक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
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दिनांक -5-5-2025
[05/05, 08:11] Subhash Singhai Jatara: -सोमवार- (बुंदेली) -डटकै (जमकर)

डटकै खड़े जवान हैं ,    सीमा पै दिन रात |
भारत की रक्छा करत, वंदे  मातरम् गात ||

डटकै खड़े किसान हैं , तकैं खेत खलिहान |
नाज उगा दे रय हमें ,   दाता   अन्न सुजान ||

डटकै करत पढाइ हैं , जब  लरका दिन रात |
ज्ञानवान वह हैं बनत , सबसे   इज्जत पात ||

चार  दिना  हों व्याय कै , डटकै हौतइ  काम |
गिनत नहीं  दिन रात है , तकत न छाया घाम ||

डटकै पंगत खा गयै , लडुआ दयँ फटकार |
लय लोटा अब जा रहे ,  समदी खेतन हार ||🥰🙏

सुभाष सिंघई
[05/05, 09:45] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहे 
विषय:-डटकें/खूब/ऐंन/जमकें
डटा ल‌ई गटकें कड़ी,बरा दार उर भात।
गदा भद्द भ‌इ पेट में,रो -रो काटी रात।।१।।

सेत लाल डटकें हनी, फिरबैं करत उकाइ।
कुत्ता खों ठर्रो दयें,ऐसौ मिलो जमाइ।।२।।

डटकें आय लुगाइ सें, शेरक पी गय भांग।
धौंकत मम्मा के लिगाॅं,ठोकत फिर रय जांग।३।।

पंगत मडवा के तरें, डटकें सेंड़ें भूत।
भोले की बारात कौ,कछू परै न‌इॅं कूत।।

आम तरें बारात में,डटकें भ‌ई नचाइ।
भुकयाने इतने बिकट,खा गय कदीं मिठाइ।।
               भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[05/05, 10:08] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा बिषम- डटकै*

#राना डटकै सब लिखौ ,नागा करौ  न यार।
जय बुंदेली कत  पटल,रक्खौ सबइ विचार।।

बुंदेली को  छप चले,आगे  दोहा‌ कोष।
#राना डटकैं लिख चलो,रखों कलम में  जोश।।

#राना  यह कोशिश करत,बुंदेली साहित्य।
डटकैं  फैले  विश्व में,समझें सब लालित्य।।

बुंदेली साहित्य कौ,खूब करौ उजयार।
तबइँ देश के सब जनै,#राना दें सत्कार।।

घर की खेती पैल है,फिर बाहर की देख।
#राना डटकैं है लिखत,तबइँ बनी है रेख।।
        ***
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[05/05, 10:15] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा -प्रदत्त शब्द -डटकैं/खूब/जमकैं
(१)
सैनिक अरि की चाल खौं, लेत हबा में भाॅंप।
डटकैं  करैं  मुकाबलो , दुशमन  जाबै  काॅंप।।
(२)
करैं  गर्जना  शेर  सी  , सैनिक  सीना  तान।
डटकैं  करैं  मुकाबलो , धर  गदिया  पै प्रान।।
(३)
डटकैं  अर्जुन  नें  करौ , कौरव  दल पै बार।
भीषम  के  लानें  करी , सर  सइया  तैयार।।
(४)
कलजुग  में  तुलसी कहैं , राम नाम आधार।
डटकैं  सीताराम  खौं , भजबैं  पवन कुमार।।
(५)
राम भजन  डटकैं करौ , जेउ जगत  में सार।
समझाबैं " नादान " कवि , होजै  बेड़ा  पार।।

आशाराम वर्मा " नादान " पृथ्वीपुर
( स्वरचित ) 05/05/2025
[05/05, 11:25] +91 76102 64326: शोभारामदाँगी "डटकैं"(जमकर,खूब) बुंदेली दोहा (268)
                  (01)
डटकैं करैं किसान जो,खेती वारौ काम ।
हुइयै नौंनी सौ फसल,"दाँगी"के घर दाम ।।
                  (02)
डटे रहै जो खेत पै,डटकै करबै काम ।
हान कभउँ नैंहोसकत,"दाँगी"पायँ मुकाम ।।
                  (03)
शासन
डटकैं दे रही,सुविधाऐं हर काम ।
चुगला चुगली तौइ पै,"दाँगी"करैं तमाम ।।
                   (04)
सीमा पै डटकैं डटे,लै बन्दूक जवान ।
"दाँगी"उयै पछार रय,दुश्मन पाकिस्तान ।।
                   (05)
करी तरक्की देस नैं,डटकैं करकैं काम ।
विग्यानिक हर क्षेतमें,दाँगी" भजबैं राम ।।
                   (06)
परी डुकइया खाट पै,सौ हो गइ है पार ।
डटकैं रोटी खात है,"दाँगी"दो-दो बार ।।
मौलिक रचना 
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[05/05, 13:33] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा ,विषय ,डटकैँ ,,जमकर,खूब ,
*************************************
डटकैँ करते चौकसी , अगर "प्रमोद"जवान ।
कैसेँ घुसते देश मेँ , बेइँमान शैतान ।।१।।

अब डटकैँ बाहर करो , सभी विदेशी लोग ।
नइँ "प्रमोद"फैलाइयो , मक्कारी को रोग ।।२।।

जितइँ खात डटकैंँ असुर , रोटी भाजी दार ।
उतइँ भाइंँ के पेट मेँ , घोँप रहें तलवार ।।३।।

डटकैँ होनें तोइँ सौँ , मार काट को खेल ।
खेलें देख "प्रमोद"सब , तनक और रइँ झेल ।।४।।

जब-तक डटकैं नै करों , गद्दारों की मार ।
तब- तक भारत में मचेँ , रोजउँ हाहाकार ।।५।।

दारूँ जब डटकैँ पियत , फिर भौंकत इंसान ।
खोरन में लोटत डरेँ , मुइयाँ चाटत स्वान ।।६।।

डटकैँ होरव देश में , लव जिहाद को खेल ।
बिगड़ीं मति "प्रमोद"की , रोरय बैठें जेल ।।७ ।।

बेंट लमछरोंँ डारकेँ , कुल्लू टेँ लो ऐन ।
लरवै सुनत "प्रमोद"अब , दुश्मन है बैचैन ।।८।।

**************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[05/05, 14:12] Sr Saral Sir: *बुन्देली दोहा विषय -डटकैं* 
*****************************
डटकैं है आँधी चली,
                  भऔ भौत नुकसान।
तोड़ फोड़ हनकैं भई,
                  चलौ विकट तूफान।।

घायल डटकैं लोग भय,
                   कैउ गिरी दीबार।
उड़ उड़ चद्दर यौ घले,
                   ज्यों चलते हतयार।।

अस्पताल डटकैं भरी,
                   घायल भौत मरीज।
कैउ रिफर झाँसी भये,
                   कैउ गये हैं सीज।।

अँदाधुंद भोंडोल सै,
                   मच गव हाहाकार।
डटकैं घर रुखड़ा मिटे,
                    रइ ना कछू उदार।।

डटकैं  ई  तूफ़ान  नै,
                   कर दव सत्यानाश।
धुकी हवा वर्षा *सरल*,
                   धरती  सै आकाश।।

दौड़ धूप हो रइ विकट,
                   डटकैं  हैं सारंग।
फटफट पै लादें *सरल*,
                   तीन एक के संग।।
**********************************
          *एस आर सरल*
              *टीकमगढ़*
[05/05, 15:24] Taruna khare Jabalpur N: डटकैं, शब्द पर दोहे 


डटकैं खा रय माल बे,रोज सकारें साम।
नेता जी ये देस को,करहैं काम तमाम।।

न्योता मै घर और के, पंडित जू जब जायँ।
मालटाल,बिंजन सबै,खूबइ डटकैं ये खायँ।।

डटकैं सीमा पै खड़े,सैनिक सीना तान।
हंँसत हंँसत बे देस पै,लुटा देत हैं जान।।

करत किसानी रात दिन,होत खूब हैरान ।
आंधी पानी धूप मै,डटकैं खड़ो किसान।।

मजदूरी दिन भर करैं,टोरत खूब पहार।
सांझ परे घर आन खैं,डटकैं करैं अहार।।


तरुणा खरे'तनु'
जबलपुर
[05/05, 15:46] Manoj Sahu Nidar Narmadapuram: बुंदेली दोहे 
विषय - डटकें

डटकैं खा रय देश खों, तनक शरम ना लाज।
जनता को चीथत फिरैं, बनके खुजली खाज।।

भुनसारे से लर परे, घर धनिया धनयान।
डटकैं भई झूमा झटी, लौंच खचोटे कान।।

मनोज साहू 
नर्मदापुरम
[05/05, 18:11] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय डटकें 
                     1
करौ किसानी देखकें, मौसम कौ अंदाज। 
फिर डटकें मेंनत करौ, भरें कुठीला नाज।।
                      2
जीबन में डटकें सबइ, करौ मेंहनत ऐंन। 
भग है दूर दरिद्रता, रात दिना रै चैंन।।
            .           3
डटकें करौ मुकाबला, दुश्मन सामें होय। 
मुश्किल दुश्मन खों परै, मूँड धरें बौ रोय।।
                         4
खेल खिलाडी खेलबें, डटकें दाँव लगात। 
देत पटकनी जौन है, जीत बौइ पा जात।।
                        5
कबिता कौ सिरजन करौ, लिखिऔ दोहा छंद। 
डटकें कबिता पाठ फिर, पढौ मंच पै नंद।।
रामानन्द पाठक नन्द
[05/05, 18:19] Vidhaya Chohan Faridabad: बुंदेली दोहे
विषय- डटकैं (जमकर, खूब)
१)
भौत सबूरी कर लई, भओ ठगी कौ खेल।
दग़ाबाज़  ग़द्दार पै, डटकैं  कसो  नकेल।।

२)
पंगत  में  ससुरार  की,  फूफा  ऐढ़े  रात।
डटकैं रोटी जीम रय, बींग निकारत जात।।

३)
घर बखरी दालान में, बिड़न लगो अँदयार।
बाती  नें  डट  कैं करो, ऊपै  मुलक  प्रहार।।

४)
पेड़न  मैं   भी  होत  है,  सीखें   वारी  बात।
आँदी   पानी   धूप  में,  डटकैं   ठाँड़े  रात।।

५)
जीनैं मन में  ठान लइ, नइयाँ  मुस्किल काम।
डटकैं कोसिस में लगो,सुफल होय परिणाम।।

~विद्या चौहान
[05/05, 18:57] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा 
विषय -डटकें
1-चोर चुगल डटकें हने,पौचावें नुकसान।
बृजभूषण जिदना बिदें,करवा देवी ज्ञान।
2-पढ़ो लिखो डटकें सुनो,बनकें चतुर सुजान।
घर परिवार समाज में,मिले मान सम्मान।।
3-बचपन में डटकें करो,जी भरकें शैतान।
बृजभूषण साँते बने,रत नइया हैरान।
4-हमें उरानो ने मिले,सूदो है बतकाव।
जिते चाय घूमो फिरो,डटकें खेलो खाव।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा

दिनांक -3-5-2025
[03/05, 16:01] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे,विषय -बींग
**********************
पनी बींग खों ढाँकबे,
            करें  ढोंग  पै  ढोंग।
बेइ निरखबें और की,
          पर-पर रंचक बोंग।।
****
बींग बताबै कान में,
          गुन  के  गाबै  गीत।
सुख-दुख बाँटै प्रेम सें,
         समझौ साँचौ मीत।।
****
दै कें सीख सुधारबें,
        बींग मनुज की चीन।
परम हितू सिंसार में,
      मात-पिता-गुरु तीन।।
****
बींग पराई पै हँसै,
       बौ  मूरख  है  कौन।
अपनें भीतर झाँकबौ,
      जानत नइयाँ जौन।।
*******************
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[03/05, 16:09] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा बिषम- बींग (कमी)*

#राना नजर पसार कैं,सुन रय जिनकी डींग।
उनके अंदर  एक नइँ,भरी  सैकड़ों बींग।।

#राना खौजन मैं गया,बींग भरै कछु  लोग।
अपने भीतर जब तकौ, पिडे मिले बन रोग।।

पइसा बारन के  घरै,#राना  कछु  हौ जात।
बींग औइ की  लैं बना,हल्ला  सबइ मचात।।

बे तो हल्ला द़यँ फिरत,पकरी  #राना  बींग।
मरका बेला से फिरैं,काड़ें अपने  सींग।।

तीन तिगाड़े जब जुरै,#राना  काड़ें बींग।
कात बराई गइ बसा,बसकारे में  भींग।।
    *** 3.5.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[03/05, 16:10] Subhash Singhai Jatara: शनिवार -प्रतियोगिता  विषय -बींग (कमी)

नाक चढ़ी जिनकी रयै ,    सूँगें  रख्खी  हींग |
खत गइ डिबिया में रखी , जेइ काड़ दैं बींग ||

कमल नयन-सी आँख में  , बींग ढूँढ रय मित्र |
कत फरकत  जाँदा लगत , भद्दौ  लगबै चित्र ||

बींग लगातन का लगत , तरुआ तनिक हिलाय | 
कै दइ लरका है पियत , थुतरी  सोय    बसाय ||

कनआँ अपने   टैट को , भूलौ   रयै  बखान  |
कात फुली की बींग‌ है , ऊ   लरका में  मान ||

बींग बिगारौ  है करत , बिगरे साजो काम |
लोग-बाग   पाछें परैं , कर   दैबें  बदनाम ||

सुभाष सिंघई
[03/05, 16:42] Amar Singh Rai Nowgang: अप्रतियोगी दोहे, विषय: बींग 

बींग  काड़बे  में  कई,  माहिर   रत   इंसान।
उनको इतनइँ काम है, करबो कमी बखान।।

बींग  काड़ कैं देत हैं, कइयक मुफ़त सलाह।
रास्ता भटकाउत मगर, करियो नइँ परवाह।।

करैं न अच्छे काम खुद, पर की काड़त बींग।
बड़वाई अपनी करत, हाँकत खुद की डींग।।

जो जी में जानत नहीं, बींग  काड़  कैं  जात। 
सूंघत फिरत छुछात से, बिना बुलाए आत।।

बींग कभउँ अपनी नहीं, फूटी  आँख सुहात।
सबके अंदर है कमी, लेकिन नहीं  दिखात।।

अगर बींग काड़ौ कभउँ, हल भी सही बताव।
अपनी खामी में स्वयं,खुद भी नै खिसियाव।।

                            अमर सिंह राय 
                                 नौगांव
[03/05, 16:50] Asha Richhariya Niwari: बुंदेली दोहा दिवस प्रदत्त शब्द ##बींग 
🌹
बींग तको न काउ की,अपनो करो सुधार। 
जगत सुधर जे आप ही,मानो बात हमार।।
🌹
बने फिरत नेता हितू, हित सें कोसों दूर।
बींगें काड़ें परस्पर,मन में भरें फितूर। ।
🌹
बींगें जिन काड़ो जिजी, नोने नोने राव।
रोटी खाओ प्रेम सें,श्री हरि के गुन गाव। ।
🌹
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 🌹🙏🏿🌹
[03/05, 17:11] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,, बुंदेली दोहा , विषय,,बीँग ,,
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आँखेँ नइयाँ एक सी , जेइँ बीँग लो जान ।
मेला में मिल गइँ धना , खांँयँ अगनियाँ पान ।।

बीँग ढूँढ़ रय काउ की , खुद की ढाँकेँ नाँक ।
बुरय मान्स कलिकाल के , खोरय अपनी धाँक ।।

फैली बींग समाज मेँ , द्वेष जलन भकराट ।
आगी लगत "प्रमोद"खोँ , देख काउ को ठाट ।।

बड़ी बींग आतंक की , आँखन पर रइँ झूँल ।
कैसे देश पड़ोस के , जोन कमा रय कूँल ।।

पाकिस्तानी बींग बड़ , अत्याचार बढ़ाय ।
धर्म अशिक्षा को लिए , जन मानुष दुख पाय ।।

बीँग बोँग भंँग एक है , बुंदेली के बोल ।
इनको दूर "प्रमोद"कर , अपना हृदय टटोल ।।

कजरा दयँ जारइँ धना , बाँध छोड़ मेँ हींग ।
पछयाने छैला मुलक , दतेँ ढूँढ़वै बींग ।।
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     ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[03/05, 18:18] Pradeep Khare Patrkar Tikamgarh: बिषय -बींग 
दोहा -प्रदीप खरे मंजुल 
03-05-2025
++++++++++++++++
: बींग न काढ़ौ काम में,
राखौ घर में मेल।
हिल मिल कैं नहिं रैव तौ,
घूमौं भैया जेल।।
: तेल, रेल अरु जेल में,
बींग काढ़ते लोग।
कछू करैं न काज कछू,
पालैं बैठे रोग।।
: शासन, राशन पै सभी,
खुश नहिं होते लोग।
बींग निकारैं बैठ कैं,
फैलो चहुं दिस रोग।।
: खुद खौं नहिं करने कछू,
और करन नहिं देत।
बींग काढ़बौ काज है,
करैं सबइ सैं हेत।।
: स्यानें जू ने लै लई,
अपतइ भर लौं हींग।
कड़ी बना लौटा दई,
 और काढ़ दइ बींग।
: ठूस ठूस कैं खा रहे,
नहीं देत व्यौहार।
बींग निकारत भोज में,
कैसे जे न्यौतार।
[03/05, 18:30] Sr Saral Sir: *बुंदेली दोहा  विषय- बींग*
*****************************
बींग निकारत और में,
                   खुदइ तनक से बैट।
फुली निरखबै काउ की,
                   तकै न अपनौ टैट।।

होतइ कैउ बगैलया,
                    बेइ निकारत बींग।
साँसी कयँ इठजात हैं,
                    लरबे बाँदत सींग।।

बींग काड़बौ है *सरल*,
                    कठिन नेक है काम।
स्वयं साफ सुथरा बनें,
                   करें *सरल* बदनाम।।

जिनखों लासन जीब पै,
                    नइयाँ उनें लगाम।
पनी बींग देखत नईं,
                    लरै भोर सै शाम।।
                    
पनी बींग देखत नईं,
                   कोसत पाकिस्तान।
जात पूछ मारै इतै,
                    आतंकी   इंसान।।
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      एस आर सरल
         टीकमगढ़
[03/05, 19:13] +91 76102 64326: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा बिषय-बींग (कमी)   बुंदेली दोहा
                      (०१ )
कमी न कौनउँ काड़ियौ,है नइँयाँ कछु बींग ।
"दाँगी"सब संपन्न है, मारत नइँयाँ डींग ।। 
                        (०२ )
खुदइँ बींग लखबैनहीं,देस पड़ौसी पाक ।                                      "दाँगी"पास हो पात नइँ,सदां रहे नापाक ।।
                       (०३ )
आँख फोर दइँ राम नें,घालौ तिनका एक ।
बाइँ आँख में बींगहै,"दाँगी"कौआ लेख ।।
                       (०४ )
 ब्याव भयैं नौंनौ लगै,बब्बा बऊ प्रसन्न ।
"दाँगी"साल दुसाल में,बींगें कड़ैं अनन्य ।।
                       (०५ )
सुक सैं नइँ रै पात वो,जो काड़त हैं बींग ।
"दाँगी"सब मिलकैं चलौ,नइँ कोऊ के सींग ।।
                        (०६ )
कउअन की आदत बुरी,तुरतइँ काड़त बींग ।
"दाँगी"सोच बिचारिये,फाँक न ऊसइ डींग ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[03/05, 20:05] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली प्रतियोगी दोहा
विषय ‌‌:-बींग/कमी 
खुद में औगुन सौ भरे,तकत और की बींग।
गंध कभ‌उॅं छोड़त नहीं धरौ अतर में हींग।।

खट्टें सबरी मूड़ में,तकें और की बींग।
भीतर बारी सें कुटें,फिर भी हांकत डींग।।

बींग न काड़ो और की,खुद में करौ सुधार।
पैंलां के पन्ना भरे,मांगत और उदार।।

सास बहू की काडबै, रोज‌इॅं न‌इॅं -न‌इॅं बींग।
डार ल्याइ चाय में,जा अफगानी हींग।।
              भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[03/05, 20:56] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
विषय बींग
1-बींग निकारत और की,
   खुदकी कइयक बींग।
  गत नैया करतूत में,
  भारी हांकत ढींग।।
2-जान जात बृज दूर सें,
   काँलो ढाँको बींग।
लरवे तो चाडे़ दते,
 बांदें फिरबें सींग।।।
3-चुरकट बृज जानो नही,
   रवें जाल सें दूर।
बींग तलाशें ने मिले,
  ताड़त रय भरपूर।।
4-बींग पनप पावे नही,
   रहें राम आधीन।
सही कर्मयोगी रये,
 बनो काय मनहीन।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[03/05, 20:59] Taruna khare Jabalpur N: बींग, शब्द पर दोहे 


कितनउ दान दहेज दो,कितनउ जोरो हांत।
बिटिया के ससरार के,बींगै काड़त रात।।

सासैं बींग निकारतीं,जे बउअन की रोज।
बेई समजतीं सास खों,अपने सिर को बोज।।

अपने तन्नक काम की ,मारत खूबइ डींग।
ननदी मोरे काम मै,खूब निकारत बींग।

बड़े बड़ाई हैं करत,हांकत खूबइ डींग।
छोटों के हर काम मै,काड़त रैबैं बींग।।

जर्जर काया होय जब,शांत चित्त सैं राव।
बींग निकारौ नै कबउँ,जो मिल जाबै खाव।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[04/05, 07:40] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय बींग 
                 1
बींग काड बनबें भले, मजा और कौ लेत। 
आँगन झरे झराय में, कूरा फैला देत।
                  2 
जीकी जो आदत बनीं, बैसइ चलबै चाल। 
बींग बता दैकें सला, गला लेत है दाल। 
                    3
छाती ओंटत रात दिन, करें मजूरी काम। 
बींग बता कें काटबै, मालिक आदे दाम। 
                      4
आसानी सें बींग जो, अपनी लेत समार। 
मानें जात समाज में, बे जन इज्जतदार। 
                       5
छाती पै उरदा दरें, बनन न दै रय ब्याव। 
बींग बता घर सें भगें,उपत बिदैबें न्याव। 
रामानन्द पाठक नन्द
[04/05, 08:44] Sanjay Shrivastava Mabai Pahuna: *बुन्देली दोहा*
        विषय - *बींग*
*१*
औरन की काड़ें कमी,अपनी हाँके डींग।
कोउ बताबे बींग तो, लरबे बाँदे सींग।।

*२*
बींग काड़ करबै हँसी, चुगली कर खिसियाय।
ऐसो मूसर आदमी, इते-उते लतयाय।।

*३*
अपनी अपनी बींग खौं, देखो परखो पैल।
कम करो सब ऊजरे, चलो न ऊबड़ गैल।।

*४* 
बींग बतैया हो अगर, हितकारी शुभ यार।
कभऊँ साथ न छोड़ियो, चाहो गर उद्धार।।

*५*
मीन मेख,बीँगे तकें,छिन - छिन हँसी उड़ाय।
ऐसो नर *सर नीर में, कंडी सो उतराय।।
              
           (*सर - तालाब)

     संजय श्रीवास्तव, मवई 
     दिल्ली -- ४/५/२५
[04/05, 11:20] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -214*
शनिवार, दिनांक - 03/05/2025
*बिषय - ' बींग ' (कमी)*
संयोजक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*

*1*
गैर कि बींग न देखिये,अपने भीतर झांक।
पैसों के मद में न रै, अपने औगुन ताक।।
      ***
      -परवीन बानो, टीकमगढ़ 
*2*
देख परख कें काड़वें,जो विटिया में बींग।
वे  हैं  यैसे  जानवर,  जिनके नइयाँ सींग।।
       ***
         -अंजनीकुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी

3
लगे काड़बे बींग तुम, नौनी नइं जा बात।
धुले दूध कौ को इतै, सब अपने गुण गात।।
         ***
         वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ 
4

बींग दिखावे कोउ में, केवल तबइ दो ज्ञान।
बींग दिखावे सब जगां, दो अपने पे ध्यान।।
            ***
      ✍️ श्याम मोहन नामदेव 'श्याम',पृथ्वीपर
5

मीन-मेंख,बीँगे तकें, हँसैं और बुलयाय। 
ऐसों नर सर नीर में, कंडी सो उतराय।।
              ***
              -संजय श्रीवास्तव, मवई, (दिल्ली)
6
भारत में भर्रो मचोँ , मुलक घुसेँ गद्दार ।
ऐइँ बींग सेँ देश को , होरव बंटाढार ।।
                ***
          -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 
7
 नहीं पुसाबै सास खौं, पनी बहू कौ काज।
बींग निकारत रौज तौ,नहिं आवत है बाज।।                     ***
              -प्रदीप खरे'मंजुल', टीकमगढ़ 
8

लुक लुकात ऐसै फिरै, जैसै हो सब ज्ञान।
बींग निकारत और में, बनै खुदइ विद्वान।।
                ***
          -एस.आर. सरल,टीकमगढ़
9
देबो सहज सुझाव रत, और काड़बो बींग।
बींग बुरी अपनी लगै, भाउत मनखों डींग।।
             ***
            - अमर सिंह राय, नौगांव 
10
अकल हिरानी जोंन की,बोइ निकारत बींग।
जैसें जरुआ जरन सें,धरै पेड़ में हींग।।
          ***
          -प्रताप नारायण दुवे,मगरपुर,झांसी 
*11*

बींग न पूछौं  काउँ की , सबमें हम कुछ पात |
छिपी काउँ की है रहत , कौनउँ की  उतरात ||
               ***
            -सुभाष सिंघई ,जतारा

*12* *(प्रथम स्थान प्राप्त दोहा)*

बींग काड़बो है सरल,दुस्तर स्वयं सुधार। 
खुद सुधरो सुधरे जगत,यही बड़ो उपकार। ।
             ***
             -आशा रिछारिया, निवाड़ी 

*13* *(तृतीय स्थान प्राप्त दोहा)*

गुरु चेला की बींग खौं ,छिन में लेत सुधार।
तम हरकैं भगवान सैं ,करवा  देत चिनार।।
                    ***
             -आशाराम वर्मा 'नादान',पृथ्वीपुर
14

चाय कितेकउ खोर दो, ऐन काड़ लो बींग।
हमें-तुमें निभनें इतइ,  इतइ समानें सींग ।।
             ***
            -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
15
सबकी सुध तौ लेत है, अपनी देत बिसार।
 बींग निकारत आन की, अपनी कोद निहार।।
           ***
          -~विद्या चौहान, फरीदाबाद 
16

लरका में कुछ बींग है,कैंड़ा तनक लुलात ।
पड़बै में हुशियार है,देखी परखी बात ।।
                  ***
              -शोभाराम दाँगी, नदनवारा
17

खुद में बींग निकार कें, फिर देने हैं ज्ञान।
बगला घांईं नें करौ,नदी किनारे ध्यान।।
              ***
            - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
18

बींग सबइ में होत है, साजो बस भगवान।
मरा-मरा  जपकैं  भए, डाँकू ब्रह्म समान।।
                  ***
      -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
19

जर्जर काया होय जब,शांत चित्त सैं राव।
बींग निकारौ नै कबउँ,जो मिल जाबै खाव।।
             ***
             -तरुणा खरे'तनु', जबलपुर 
20
बींग न निरखौ और की, देखौ अपनी  बींग। 
औरन की खिल्ली उड़ा, खुद ना मारौ ढींग।।
             ***
       -रामानन्द पाठक 'नन्द', नैगुवां

21. *(द्वितीय स्थान प्राप्त दोहा)*
अपने तिल भर काम की,बड़-बड़ मारें डींग।
पर-परबत से काम में,पर-पर काड़े बींग।।
            ***
        -रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
***
*संयोजक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965
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दिनांक - 28.4.2025

बुन्देली दोहे विषय:-*कचरिया*

बिना लगायें उपत कें, जमत कचरिया खेत।
रंग बिरंगी क्वांर में, कछू होत हैं सेत।।

दवा कचरिया की बनत,भर्त बना कें खात।
उदर रोग जर सें मिटत,बैद गुनी सब कात।।

देत निजोनी ढोर खों, संग कचरिया रात।
नोंन लगा कें चिप्स सम,बड़े आदमी खात।।

धरें कचरिया काट कें,ओरी घांम सुकांय।
कड़ी कचरिया की बना,चौमासे में खांय।।
                   भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[28/04, 14:10] +91 76102 64326: शोभारामदाँगी बिषय-"कचरिया"
(फल)कच्जआ,बुंदेली दोहा 267
                   (01)
बेड़ा की बिरवाइ में,हतीं कचइँयाँ ऐन ।
बसकारे में जे फरैं"दाँगी गयते लैन ।।
                     (02)                  गड़ा खेत में खूबई,हती कचरिया
ऐन ।
पटा-पटाकें फैंक दइँ,"दाँगी"परौ न चैन ।।
                    (03)
पकी कचरिया खाय सैं,मौं मीठौ हो जात ।
गुणकारी फल कात है,"दाँगी" कहैं बिलात ।।
                   (04)
घूँरन खेतन हार में,चाय जितै उग आत ।
फैलत खूब जमीन में,"दाँगी"दवा बनात ।।
                    (05)
सुका-सुका धर लेत हम,"दाँगी" घरै बिलात ।
गुणकारी हैऔषधी,पकी कचरिया खात ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[28/04, 15:05] Rajeev Namdeo: दोहा 
*शब्द -कचरिया*
******
खाने में तो कचरिया,अच्छी लगती यार।
जाने तुम क्यों कह रहे,यार इसे बेकार।।
***

*माहिर निजा़मी* (झांसी)
[28/04, 17:19] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय= कचरिया
(1) पकी कचरिया ढूड़ कें,
      धरले खूब सुकाय।
      ब्रजभूषण कामें परें,
      रोज एक दो खाय।।
(2) रोज कचरिया खाय से,
       होवे पेट सुदार।
       करत बड़ो है फायदा,
       जानो ने बेकार।।
(3) तली भुजीं कच्ची चलें,
      नोन मिला कें खाव।
      हमें बड़ी नौनी लगे,
      सुवाद अनोखो पाव।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[28/04, 17:45] Dr. Renu Shrivastava Bhopal: दोहे विषय कचरिया
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
बेड़ा की बिरबाइ में, 
खेतन मेड़ फराय। 
नाय माय फर जात है, 
बेउ कचरिया आय।। 

मठा डोब कें सुखा लइ, 
तली कचरिया खाय। 
रोजीना जो खात है, 
पेट रोग ना आय।। 

सुअटा की बिन्नू हरैं, 
ऐसी लगतीं संग। 
फरी कचरिया खेत में, 
पीत हरीरो रंग।। 

ऐसो नोनो फल लगै, 
उये कचरिया कात।
परवल जैसी होत हैं, 
भेद समझ ना आत।। 

बोलइअन में फरत हैं, 
डॅगरा ककरी जान। 
उतइं कचरिया होत हैं , 
बिरबाई में मान।। 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
          डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
              स्वरचित मौलिक 🙏
[28/04, 18:24] Rama Nand Ji Pathak Negua: बुन्देली दोहा बिषय कचरिया 
                      1
बिरबाई पै ना चढै, बिछी दिखाबै खेत। 
टोर कचरियाँ छाँट कें, गुट्टा में धर लेत। 
                       2
काट कचरिया लइँ सुका, गगरी में भर देत। 
जिदना चाय निकारकें, तलै तलै खा लेत। 
                       3
निज हाथों की बइ फसल, खेतों में मर जात। 
काँस कचरिया खेत में, बिन बोयें इठलात। 
                        4
करइ कचरिया बिन पकी, खूबइ पकी मिठात। 
टोर टोर धर लेत फिर, बैठ प्रेम सें खात। 
                        5
खेत कचरिया ढूँढ रइँ, मिलकें गुइयाँ चार। 
आपस में बतया रयीं, भुँजें मसालौ डार। 
रामानन्द पाठक नन्द
[28/04, 20:06] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,,बुंदेली दोहा, विषय , कचरिया ,,
***************************************
कच्ची टोरो कचरिया , सब्जी लेव बनाय ।
फिर "प्रमोद"भोजन करो , स्वाद मस्त हो जाय ।।

बनी कचरिया की दवा , करेँ हाजमा ठीक ।
चीखोँ लगहेँ नुनखरी , स्वास्थ्य रहेगा नीक ।।

हनी कचरिया खेत में , खरपतवार कहाय ।
छिड़की दवा "प्रमोद"ने , मूँगफली लहराय ।।

पकी कचरिया काटकेँ , पैलाँ उयै सुखाव ।
फिर अकोर लो तेल में , नोन डार केँ खाव ।।

बड़ बोला सें हम कहत , रहो कचरिया कोल ।
चार जनन में बैठ केँ , बोल समर कें बोल ।।

ल्याय कचरिया ढूँढ़केँ , लैगय आदी साव ।
बल्दे में गुर देत गय , फोर-फोर केँ खाव ।।
***************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[28/04, 21:14] +91 83492 91269: कचरिया, शब्द पर दोहे 


रैत कसैले स्वाद की,लरकन खों नै भायंँ।
बड़े सयाने सौंक सैं, खूब कचरिया खायँ।।

बिरवाई में देखियो,फरत कचरिया एन।
टोर टोर खैं खात हैं,सबरे भैया बैन।।

तलौ कचरिया तेल मै,मिरचा नौन मिलाव।
कैत सबै है औषधि,दोई बिरिया खाव।।

भूंक लगै नै जोर सैं,पाचन हो कमजोर।
खाव कचरिया भूंज खैं,रोजइ संजा भोर।।


तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर

[26/04, 09:45] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली अप्रतियोगी दोहे 
विषय:-नीरे/पास में 
हिरदय में नींरे बसौ,मन मोहन नॅंदलाल।
दूर बसे परदेश में,जीकौ भौत मलाल।।१।

प्रेम अगर हिरदय बसै,तौ सब नींरे रात।
न‌इॅंतर भाई- भाई खों,लासन घांइॅं बसात।।२।।

नींरे के कौआ बुरय,कोयल दूर सुहात।
मधुर बीन कानौ पड़ै,सांप मगन हो जात।।३।।

नींरे मन जब दूर भयॅं,बड़े कसाले खायॅं।
छाती धर द‌इ चीर कें,त‌उॅं नें भले कहायॅंं।।४।।

जतन कछू ऐसौ करौ, नींरे -नींरे रांय।
प्रेम पैल घाईं बनें,इक टाठी में खांय।।५।।
                     भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[26/04, 12:46] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहे-नीरौं- (पास में)*

नीरौं मोरो मायकौ,#राना  सुन लो बात।
खबर दबर सब रत मिलत,मोखौ दिन्ना रात।।

नीरौं घर कौ खेत है,मौड़ी दौड़त जात।
चना मटर सब टौर कैं,#राना घर में ल्यात।।

नीरौं भी इस्कूल है,और खेल मैदान।
चरपट्टौ #राना दयैं,छोरा-छोरी आन।।

नीरौं जब सारो बसे,अपनौ डेरा डाल।
#राना जानों औइ दिन,आकें बस गवँ  काल।।

नीरौं हौबे जब कुआँ,#राना मन हरसात।
ठंडौ पानू ले  घड़ा,धना जल्द भर ल्यात।।
            *** दिनांक -26.4.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[26/04, 13:25] Asha Richhariya Niwari: दोहा दिवस दिनांक 26.4.2025
🌹
नीरो है श्री राम कौ, नगर ओरछा धाम। 
उठत भोर दर्शन करौ,भक्ति करौ निष्काम। ।
🌹
मात पिता गुरु सबइ जन,नीरे मन के रांय,
इनकी आशीषें प्रबल,
अच्छे दिन लै आंय ।।
🌹
माया के संसार में,जियरा ना भरमाव।
नीरे रघुवर के रहो,मुक्ति अवश्यम् पाव।।
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी🌹🙏🏿🌹
[26/04, 13:42] Subhash Singhai Jatara: विषय - नीरौं- पास में)

प्रभु नों मन नीरौं रयै , करत भजन दिन रात |
कछु ना सूझत और है ,  कहे साधु की जात ||

नीरौं समधी रात है , रोज शाम आ  जात |
गप्पें फाँकत बैठ कैं , मूँछन ताव बतात ||

नीरौं  दुश्मन है भलौ , रात सजग सब लोग |
गलती कौनउ हौय ना , जुरबै   नहीं कुयोग || 

नीरौं कुत्ता हौय‌  तौ , ऊखौं  रवँ पुचकार |
ऐसइ ऐबी हौय नर , करियौ  उयै जुहार ||

सबसै नीरौं सुत लगै , फिर नाती भी आत |
बिटिया के संगे धना , नीरीं लगत जमात ||

सुभाष सिंघई
[26/04, 14:09] Shobharam Dagi: अप्रितयोगी बुंदेली दोहा दिनांक 26/04/025   (01)

छाती पै दयँ दौंदरा,"दाँगी" पास न राव ।
दूरइ रव या शांत रव,नीरे मौ न बताव ।।
                     (02)
कुण्ड़ेश्वर उर ओड़छा,नीरे-नीर धाम ।।
"दाँगी"शिव कुण्ड़ेश्वर ,नगर ओड़छा राम ।।
                    (03)
नीरौ सोइ जटाशंकर,सूरदेव भगवान ।
अछरूमइया हैं लिंगाँ,बागेसुर हनुमान ।।
                  (04 )
प्रभु के नीरे रव सदां,पकरो भजन कि डोर ।
तन मन से सेवा करो,"दाँगी"जेउ निचोर ।।=निचोर=निचोड़
                   (05)
अपनैं नीरौ राखकै,करियौ तनक सुधार ।                                बिगड़ रहे मोबाल सै,"दाँगी"जे हुशियार ।।
                  (06)                      पढ लिख रय सब कोउ अब,बिना पढै सब पास ।
भेद का है पढे लिखें,"इन्दु"चरा रय घांस ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[26/04, 16:11] S R Saral Tikamgarh: *बुन्देली दोहा विषय -नीरे*

द्वेष बैर करिओं नईं, रखों नईं छल पास।
नीरे परहित में रऔ,जब तक है तन श्वास ।।

नीरे रऔ गरीब के, चलों झुका कैं शीश।
परसेवा उपकार सै,खुश रत हैं जगदीश।।

सत्य न्याय छोड़ों नईं,तज दो सभी विकार।
दीनन के  नीरे रऔ, करों  *सरल* उपकार।।

नीरे  रव  सत्संग  में, रऔ  बुरन  सै दूर।
बैर करों ना काउसै,मों रव मिलयँ जरूर।।

नीरे रव विद्वान के, चोखों  मिलत ज्ञान।
उनकी *सरल* पिरेरणा,बन जाती वरदान।।

        *एस आर सरल*
            *टीकमगढ़*
[26/04, 19:24] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा 
विषय -नीरे
1-जाकें देखो आय को,
    पतो करो बलवीर। 
    अपने नीरें आ रहे,
   मन हो रओ अधीर।।
2- नीरें- नीरें हैं अपन,
    नइया जादाँ दूर।
    आवौ- जावौ रोज को,
    राखें बनो जरूर।।
3- नीरें तो है टैवनी,
     मौं में कैसें जात।
    जबरइ करवो जो चहो,
     दिक्कत बने बिलात।।
4-तुम तो नीरे नइ गसत,
   साँची कव हजूर।
   दावत नइया छाँयरी,
   बन गव कौन कसूर।।
5-अब नीरे दिन आ गये,
   संकट में है जान।
  राम नाम सुमरन लगे,
  चूर भये अरमान।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[26/04, 19:34] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे,  विषय - नीरौ / नीरे 
--------------------------------------------------
करजा चुको न पैल कौ,रोजउँ टोकट साव।
आँख लगै नैं दीन की,नीरौ आ गव ब्याव।।
--------
नीरे  देशन  सें  मची, कइ  देशन  की  रार।
काय परौसी  जूझतइ, करनें  परै  बिचार।।
--------
चिरंजीव के ब्याव में,कितनउँ करौ उलात।
पोंचत अक्सर  देर सें,  नीरे   गाँव  बरात।।
--------
रुकत ब्याव में दूर के, भले  दिना दो चार।
नीरे  के  तुरतइँ  भगत,  नाते    रिश्तेदार।।
--------------------------------------------------
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[26/04, 19:43] Ramanand Pathak Negua: बुन्देली दोहा बिसय नीरौ 
                    1
नीरौ मृग सीता तकौ, देखत जी ललचाय। 
मृगछाला लाओ प्रभु, कुटिया लेंय सजाय। 
                     2
अछरु माँ के दर्श खों, लोग हजारन आत। 
मंदिर नीरौ देखतन, सबइ जनें हरसात। 
                      3
कुअला पै पानी भरन, जा रइँ गुइयाँ चार। 
आपस में बतया रयीं, नीरौ नइयाँ यार। 
                       4
खरी दुपरिया जेठ की, मउआ बीनन जात। 
नीरौ नइयाँ हार बौ, मुश्किल सें घर घर आत। 
                        5
घर सें हाट बजार सब,नीरौ नीरौ चाँय। 
देर अधिक लगबै नई,झट्ट लौट घर आँय। 
रामानन्द पाठक नन्द
[26/04, 21:26] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-213*
प्रदत्त शब्द (नीरौ/नीरे/पास)
दिनांक -26.4.2025 
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
अपनें खों नीरौ परत,नगर ओरछा धाम।
मन मोहक निरखें छबी,बैठे राजा राम।।
                ***
          -रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां
*2*
नीरे रैकैं बैर की, खोद दई क्यों खाइ।
काम बुरय सबरे करे,याद करा दै बाइ ॥
                **
       - संजय स्वर्णकार'सिंघाल',कोंच(जालौन)
*3*
मोटर सें नीरौं लगत,निगतन में कुछ दूर।
दोइ तरा सें देख लो,जाकें शहर जरूर।।
       ***
        - वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*4*
कुआँ-बावड़िन में कितउँ, बचो न नीरे नीर।
पानी  नहीं  बहाइयो,  सइँयाँ समझो पीर।।
         ***
              -अमर सिंह राय, नौगांव 
*5*
नीरौं रखियो धर्म खौं,नीरे रखियो मित्र।
गौ माता घर में रखो,और देवता चित्र।।
               ***
            -सुभाष सिंघई, जतारा 
*6*
नीरौ उनकौ मायकौ,लै धुतिया कड़ जाॅंय।
पिया  परत हैं हार में,बासी  कूसी खाॅंय।।
                ***
      -आशाराम वर्मा'नादान',पृथ्वीपुर

*7*
नीरे हरि के बेइ नर,जिनकी निश्छल प्रीत। 
भक्ति भाव परमार्थ सें,लेत जगत खों जीत।।
                    ***
         -भगवान सिंह लोधी 'अनुरागी',हटा
*8*
निंदक जो नीरे रहें,करहें अति उपकार। 
निशि दिन दोष निकारहें,अपनो होय सुधार। ।
               ***
       -आशा रिछारिया,निवाड़ी 
*9*
नीरौ मयकौ होय तौ,बढ़ी-चढ़ी रत नार।
आधे सें जादाँ मनत,मयके में त्योहार।।
             ***
       -गोकुल प्रसाद यादव ,नन्हींटेहरी
*10*
पहलगाम में मर गयेँ, बेगुनाह छब्बीस ।
नीरेँ सेँ गोली  लगी,पूँछेँ धरम खबीस ।।
      ***
          - प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 
*11*
नीरे रय में फायदा,दूरी में नुकसान। 
जाति धरम खौं भूलकैं, मिलकैं रय इंसान।।
           ***
            -संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
*12*
मुखिया कौ घर कां परत,नीरौ हमैं बताव ।
कौन गैल सै जाँय हम,कन्नै अबइ ब्याव ।।
              ***
         -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*13*

नीरौं होबै मायको,धना दौर खैं जायँ।
अपने घर को हाल सब, जाखैं उतै बतायँ।।
           ***
    -तरुणा खरे'तनु', जबलपुर
*14*
नीरे सबखाँ राखियो, मात-पिता गुरु मित्र।
काम सबइ इनसैं बनैं,महके जस को इत्र।।
         ***
श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
*15*
बुरय काम सै दूर रव,संग देत नइँ कोय।
नीरे रव हर की शरन,बार न बाँकौ होय।।
              ***
      -एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
*16*
नीरे आबैं दुःख जब,मन सें करियो ध्यान।
कष्ट मिटाबेंगे सबइँ,राम भक्त हनुमान।।
            ***
           -विद्या चौहान, फरीदाबाद 
***
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
मोबाइल -9893520965
######@@@###
[21/04, 09:14] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-बुरव/खराब 
ईसुर बसत पियार में,करकें देख पियार।
बुरव न मानें काउ सें,बेई  नर हुश्यार।।१।।

पिया बुरव कयॅं मान गयॅं, बीच धार में छोड़।
कौन चूक हम सें भ‌ई, जो लीन्हों मुख मोड़।।२।।

बुरव लगत है ऊ दिना, हॅंसत नहीं मुस्कात।
हम टेरत हैं नाॅंय खों, तुम मसक‌इॅं कड़ जात।।३।।

एक गाॅंव एक‌इ पुरा, एक‌इ परत है खोर।
बुरव मान कें का करौ,ऑंमू सामू दोर।।४।।

कोरोना के बुरय दिन,की खों नैयां याद।
खाज पैंल सें भ‌इ हती,निकर आइ ती ब्याद।।५।।
          ‌      भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[21/04, 09:41] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली - बुरय (खराब)

बुरय न हौतइ कोउ है   , समय बुरवँ जब आय |
अच्छौ   खासौ  आदमी  , फिरबें   मूँछ  मुड़ाय‌  ||

दास कबीरा गय हतै , करन बुरय की खोज |
अपने भीतर देख लवँ , खुदइँ बुरय को ओज ||

कर्म बुरय जब हौय तो , बुरय‌ मिलत परिणाम |
अँदयारे के काम में    ,काँसे    मिलबें    घाम ||

करें  बुराई  जौन  नर ,     बेइ   बुरय  लो जान |
कभउँ  न सुदरै  लोमड़ी , और  काग लो जान ||

बुरय बोल हैं मिर्च- से,   साँमै  ठसकी  आत |
लरबें खौं सूदै  फिरै ,   मौं   पै नर  झल्लात ||

बुरय  काम में हाथ भी , नहीं   भूल कैं डार |
बदनामी तब हौत है ,  जीकौ    नहीं समार ||

सुभाष सिंघई
[21/04, 10:13] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रदत्त शब्द- बुरय (खराब)*

करम बुरय खुद ही करें,#राना दोष लगाँय‌।
चोरी की बछिया घरे,मम्मा की बतलाँय।।

साँसी कै कें बन बुरय,माते घर खौं आय।
#राना पारौ मौं धरौ,मातिन रइ समझाय।।

ठलुआ जुर गय चार ठौ,करय बुरय कयँ बोल।
#राना दाँत  निपोर कैं,सब पौले रय खोल।।

बुरय काम करकें घरे,लोग बाग जब आत।
#राना घर बारे तबइँ ,तरन-तरन समझात।।

लोग बुरय नइँ हौत है,काम बुरय हर हाल।
#राना रावन ज्ञान रख,जलत रात हर साल।।
       *** दिनांक -21-4-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
[21/04, 10:53] Dr Renu Shriwastava: दोहे विषय बुरय
✍️✍️✍️✍️✍️
बुरय न बोलो कोउ सें, 
लगत करेजे बात।
आहें ऐसी भरत है, 
सबइ भसम हो जात।। 

बुरय काम रावण करो, 
तबइ बुरौ फल पाव।
पर नारी ले कें भगो, 
देखो आव न ताव।। 

सभा द्रोपदी रो रही, 
कछू न बोलै कोउ। 
श्री कृष्ण ने दौड़ के, 
छोर बढ़ा दै दोउ।। 

मात पिता गुरु से कबउं, 
बुरय न बोलौ बोल। 
आत्मा उनकी न दुखै, 
मिलत वरद ना मोल।। 

कोरोना के काल के, 
बुरय दिना की सोस। 
जीव काँपबे लगत है, 
उड़त सबइ को होस।। 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
                    डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
                     स्वरचित मौलिक
[21/04, 11:10] Asha Richhariya Niwari: बुंदेली दोहा दिनांक 21.4.2025
प्रदत्त शब्द/बुरय बुरव 🌹
🌹
आये हो इस जगत में, कर लो नौने काम।
बुरय काम कौ होत है, बड़ौ बुरव अंजाम।।
🌹
नोनी कओ सांसी कऔ,कऔ न झूठी बात।
बुरय कबहुं न बोलिये बात सयाने कात।।
🌹
आशा रिछारिया जिला निवाङी🌹🙏🏿🌹
[21/04, 11:32] Dr Dev Datt Duvedi Bara Malhara: 💐 बुंदेली दोहा 💐 
         विषय- बुरय,बुरव 

इमरत से बतकाय अब, सुनें न कोई सुनाय।
बुरय लगत हैं आज तौ, सिक्छा और सलाय।।

तिकड़म बाजी में निपुन, जिनकें घर नें दोर।
बुरव करत हैं और कौ, भैया भैया फोर।।

रन्जस मानें भीतरी, करें ऊपरी मेर।
मोंका पै करबें बुरव,कड़ जाबें मौं फेर।।

धरे धरैया भौत हैं,धरें लगी पै धार।
बुरव करत हैं जानकें, आगी में घी डार।।

    डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस 
     बड़ामलहरा
[21/04, 15:09] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिसय बुरय 
                 1
मीठे फल नौनें लगें, बुरय नबेरे जात। 
छाँट छाँट के पर्स दय, बडे प्रेम सें खात। 
                   2
बुरय कर्म जो नर करें, भलौ कबहुँ ना होय। 
जैसी करनी कर लई, भरनी बैसी सोय। 
                  3
भले बुरय खों परखबै, रखबै इतनों ज्ञान। 
जो नर परखत हैं नई, वे नर पशु समान। 
                  4
बुरय काम कौ बुरव ही, मिलत उयै परणाम। 
बिला जात बैभव सबइ,कोइ न आबै काम। 
                    5
बुरय बरातन पोंच गय ,दारू पियें तमाम ।     
संगै बैठे पाँत में,खाबो करें हराम । 
रामानन्द पाठक नन्द
[21/04, 16:15] S R Saral Tikamgarh: *बुन्देली दोहा विषय -बुरय /बुरव*
*********************************
बुरय लोग करवै *सरल*,
                      उठाधरी बतकाव।
इनसै कोसन दूर रव,
                      कभउँ न हेत लगाव।।

सूदे सादे से *सरल*,
                     सज्जन शील स्वभाव।
बुरय काम सै रव बचत,
                     अच्छे खौ अपनाव।।

बुरय आदमन के बुरय,
                     दंद फंद बतकाय।
*सरल* दूर इनसै रहे,
                     मन नै कभउँ मिलाय।।

बातन में आ गय *सरल*,  
                    हमरे बाप मताइ।
खाडू में फसगय बुरय,
                    कर गय इतै सगाइ।।

बुरय काम कौनउ दिना,
                    कर्रे अखरे जात।
पलपल हैं जुग से कटत,
                   काल मौत मड़रात।।
**********************************
          *एस आर सरल*
            *टीकमगढ़*
[21/04, 16:31] Gokul Prasad Yadav Budera: बुन्देली दोहे विषय - बुरय/बुरव 
------------------------------------
बुरव न सोचौ  काउ कौ, बैरी  हो  या  चोर।
कउआ के कोसें कभउँ, मरत सुनें ना ढोर।।

बुरय आदमी की दिखत,खुली चौगुनी बोंग।
साजौ बनबे कौ करत,जब बौ नकली ढोंग।।

हम साजे  बाकी बुरय, हर भाई की सोच।
घटा  रही परिवार में, भ्रातृप्रेम की  लोच।।

भलौ करत जो बेइ जन,करय-बुरय हो जात।
नेकी के  संगै  बदी,  पछलग  खड़ी  दिखात।

दरुअन की फटफट उड़त,जैसें जैट विमान।
दोष मड़त घटना घटें,  बुरव करो भगवान।।
-------------------------------------
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[21/04, 18:11] Amar Singh Rai Nowgang: बुन्देली दोहे, विषय: बुरव (बुरा)

औरन  को  चाहो  बुरव, हुइऐ  अपनो  सोइ।
बात  हक़ीक़त  जान लो, ई सें बचै न कोइ।।

बुरव काम जो हैं करत, उन्है  पतो सब रात।
पहले तौ समझै नहीं, अंत समय  पछतात।।

बुरे  काम  को  होत  है, बुरव  नतीजा  यार।
आगूँ- पीछूँ  हो  भले, पर  भुगतत  संसार।।

बुरव न  सोचै  काउ को, दै दुख में  सहयोग।
ऐसे नर मिल जाँयँ तौ, मानो  शुभ  संजोग।।

आज  काल  ऐसो  बुरव, देख  रहे हम वक्त।
अपने- अपने स्वार्थ से, हम हो गए विभक्त।।
 
भूल  करै  पर  भूल  की, गलती  नहीं मनाय।
जिऐ लगत जल्दी बुरव, कभउँ सीख नै पाय।

जो कौनउँ गारी बकत,सुनत बुरव लग जात।
लेकिन ब्यावन में सबइ,खात जात मुस्क्यात।

                               अमर सिंह राय 
                                      नौगांव
[21/04, 19:52] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा  ,बिषय ,,बुरय ,,
************************************
बुरय माँन्स गल्लन इतै , बिन ढूँढ़ेँ मिल जात ।
जाति-पाति के नाम पै , खुरापात करवात ।।

अब "प्रमोद"संसार में , बुरव माँन्स बल्लात ।
चोट चामरेंं पै लगेँ , भौत बुरइँ कल्लात ।।

भौत बुरय काँटेँ ठटेँ , गय ऐड़ीँ मेँ टूट ।
जरिया के लाँचेँ हते , सरेँ पुराने डूँट ।।

बुरय माँन्स सेँ दूर हो , कैलो अपनी बात ।
बुरइँ कुसंगत त्याग दो , नइँतर सइयो घात ।।

बुरय-सुरय छोड़ो करम , चलो धरम की गैल ।
पढ़-लिख बनो "प्रमोद"तुम , ऐन कनकनेँ बैल ।।
**************************************
  ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
           ,, स्वरचित मौलिक ,,
[21/04, 20:54] Shobharam Dagi: संशोधित बुंदेली दोहा (266)
बिषय--बुरय/बुरव (खराब)
                   (01)
बानी मीठी बोलिये,सत कौ करौ कलेउ ।
बुरय बान सबखौ गड़ै,साँचौ पैर जनेउ ।।
                     (02)
बुरय लोग ढूँड़न चले,"दाँगी" देस
विदेस ।
मोय कितउँ जे नइँ मिले,खुद में भरै जु हेस ।।
                       (03)
नौनौ तुम करनइँ सकत,बुरय करैं का सार ।
"दाँगी"नाव कमावनैं,तन सैं तजौ विकार ।।
                     (04)
बुरय चाल की लोमड़ी,चलबै सदां कुचाल ।
"दाँगी"ऐसइ कागकौ,समजौ भज्जा हाल ।।
                    (05)
आदी रत्ता लौं फिरत,बुरय काम की ओर ।
"दाँगी"पकरैं शान सैं,राम भजन की डोर ।।
                     (06)
साजे खौं साजौ मिलै,बुरय करे घट काम ।
बुरय कर्म हमनइँ करैं,इन्दु"बचाये राम ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326

[20/04, 10:40] Bhagwan Singh Lodhi Hata: *बुन्देली अप्रतियोगी दोहे*
विषय:-पवारौ
अंग्रेजी हमने पढ़ी,पन्द्रा सोला साल।
मांय पवारौ भेंसियां,हो ग‌इॅं जी खों काल।।

धुतल‌इया उर पोलका, पिया पवारौ मांय।
जींस पेंट लै आव जब,तौई खाना खांय।।

बरगर पिज्जा फुलकियां,पेडिस चाऊमीन।
मांय पवारौ रांदनौ, हमें ख्वाव नमकीन।।

उरदा मक्का मूॅंग में,प्रियतम दिन गय बीत।
मांय पवारौ मोह उर, करौ हरि सें प्रीत।।

माया में काया बिदी,मन तें भजत न राम।
तिषना मांय‌ पवार दे, चलौ अयोध्या धाम।।
              भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[20/04, 13:46] Subhash Singhai Jatara: पवारौ = { किसी वस्तु को बलात देना }

भारे को सुनतइ ‌इतै , करत पवारौ‌ लोग |
खाज मानतइ काज खौं , ठाड़ो बैठौ रोग ||

ब्यादें जितनी हैं  बिदीं , माँय पवारौ आप |
बाजे बजै न  खोपड़ी , बनै  राव चुपचाप ||

माँय‌ पवारौ काम  बै , घर में मचबै दाँद ‌| 
सला सूद हौबें नँईं  , चलबै  बैसइ धाँद ||

भइया हैसा माँग रवँ , सबइ पवारौ दाम  |
और कमा खा ले इतै , भुन्सारे से  शाम ||

लगे पवारौ -सौ जितै,      उतै न डारौ हाथ |
सार स्वाद भी नँइँ  मिलै , फूटै अपनौ माथ ||

काम पवारौ -सौ  नँइँ , कौनउँ करियौ आप |
बदनामी हातै लगै,      बिगरै  अपनी छाप 

सुभाष सिंघई
[20/04, 15:21] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय पबारौ 
                     1
कामी क्रोधी लालची, हियै कुटिलता होय। 
माँय पबारौ संग जौ, ऐसौ बोझ न ढोय।
                      2
माँय पबारौ बासना, करौ हरी सें हेत। 
करनी अबइँ सुधार लो, हो गय बार सुपेत। 
                      3
बानी मधु रस बोलिए, चुबें न हिय में बोल। 
माँय पबारौ कटु बचन, निसरी दो तुम घोल। 
                        4
संगत ज्ञानी की करौ, मिलै अनौखौ ज्ञान। 
माँय पबारौ सिरफिरे, अज्ञानी शैतान। 
                         5
दुनियाँ में नेकी करी, जानत न छल छंद। 
लोभ मोह मत्सर कपट, माँय पबारौ नंद। 
रामानन्द पाठक नन्द
[20/04, 16:18] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहा विषय -पवारौ {किसी वस्तु को बलात देना }*

नँई पवारौ-सौ करौ,#राना साजौ काम।
मन से करियौ सब जनै,नँइँ लइयौ विश्राम।।

हौत पवारौ है बुरवँ, घरै लाभ नँइँ  देत।
#राना यह अहसान-भी,प्रान अलग से लेत।।

चना पवारौ-सौ मिलौ,हम घुन फटकत रात।
सरकारी खैरात यह,#राना, नँई पुसात।।

कात पवारौ  माँय सब,धना हमें  समझात।
देवर जब जिद पै अड़ौ,#राना  सबरौ चात।।

मुफ्त पवारौ जब मिलै,कछू  हौत है  खोट।
ऊपर से अहसान की,,#राना मिलबें ‌ चोट।।

नँई  नदारौ  हौय जब ,माँय पवारौ  नेह।
कर लौ हिस्सा बाँट सब,#राना अपनौ गेह।।
             *** दिनांक -20-5-2025

*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[20/04, 16:33] Shobharam Dagi: बिषय-पवारौ (किसी वस्तु को बलात देना) बुंदेली दोहा 20/04/025 (01)
टाठी संग बिलियां धरीं,कड़ी चांव उर दार ।
उतै पवारौ "इन्दु"ये,चल गइँ खानेंदार ।।
                  (02)
नय-नय चल गय आइ टम,बन्न-बन्न के थार ।
उतै पवारौ थालियां,"दाँगी"खा-
नन दार ।।
                     (03)
काम पवारौ आज ही,हो जीमें नुकसान ।
चार जनन के मध्य में,दाँगी"होबै शान ।।
                       (04)
मरे जात बड़वाइ खौ,घरै न भूँजी भाँग ।
उतै पबारौ शान जा,"दाँगी"ठूँसैं साँग ।।
                      (05)
चार जनन के बीच में,हैसा होरय
सात ।
झट पबारौ मढ़ी गढ़ा,"दाँगी"नइँ इठलात ।।
                     (06)
माँय पबारौ काम तुम,जीमें होत लराइ ।
जितैसला सैं कामनइँ,"दाँगी"उतै बुराइ ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[20/04, 16:44] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय= पवारो
(1) माय पवारों देवतो,
      टारों अरी नियाव।
      जितने जल्दी हो सके,
      कर्जा सुनो चुकाव।।
(2) सुनो पवारो जान दे,
      करत काय कुनयाव।
      कौतक को मानत नही,
      जाने कौन सुभाव।।
(3) नाय पवारो हम धरें,
      बड़ो वजन है तोय।
      भार उतारो मूड़़ को,
      हैरानी ने होय।।
(4) अरे पबारो टार दे,
     बैचो करो कनाय।
   धरे कबारो जोर के,
   हउआ काय बनाय।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[20/04, 21:40] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -212*

प्रदत्त विषय:-पवारौ  दिनांक 20.4.2025
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*

*1*
चिंता आलस बैर छल, बिरथा देत बिलात।
माँय  पवारौ ऐब  जे, सुख  आहैं  मुस्कात।।
             ***
             -विद्या चौहान, फरीदाबाद 
*2*
पियत गिरत फिर फिर उठत,कोंड़ी बची न पास।
मांय पबारौ जौ नशा, तन को सत्यानाश ।।
                ***
               -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*3*
दारूखोर  नशैलची , बिना  मौत मर जात।
माॅंय पबारौ जा चिलम,पिया मानलो बात।।
             ***
              -आशाराम वर्मा 'नादान', पृथ्वीपुर
*4*
दारू गुटका तांस सें,घर बाखर बिक जात।
मांय पवारौ बालमा, बैद गुनी सब कात।।
             ***
             -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*5*
उतै पबारौ भैसियाँ,देसी राखौ गायँ ।
नग-नग में है देवता,दूध घीव हम खायँ ।।
          ***
         -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*6*
पिया पवारौ करत हो,करलो तनिक विचार।                                    
ऐसी नौंनी बात है,करते काय बिगार।।
            ***
          - मूरत सिंह यादव ,दतिया 
*7*
मौय ‌पवारौ-सौ मिलौ,पूरौ दान दहेज।
टौकौं गुंडी  में कड़ौ,समदी  निकरौ तेज।।
              ***
                 -सुभाष सिंघई , जतारा 
*8*
कबेँ पबारौ घट करम,दारू गाँजोँ भाँग।
पढ़ोँ लिखोँ अग्गम चलो,यही समय की माँग।।
      ***
      -प्रमोद मिश्रा वल्देवगढ़ 
*9*
कही पवारौ का भओ, खाओ जिन तुम कान।
जो सुख चाहो अब धना, बनी रओ नादान।।
           ***
     - श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा,विदिशा 
*10*

बड़ौ कठन है जौ विषय, कछू न सूझो आज।
मायँ पवारौ नइँ लिखत, करत दूसरौ काज।।
      ***
              -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*11*
लाव पवारौ आज तुम,खालो मोरे प्राण।
धरलो साजौ नाज तुम,हो जैहै कल्याण।।
             ***
         -वीरेन्द चंसौरिया टीकमगढ़ 
*12*
बागेश्वर सरकार  के, पावन  मंगल भाव।
इतै पबारौ दुख पनें,सुख सम्पत लै जाव।।
               ***
         -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
*13*
गुन भावैं सब खों मनें, अबगुन सबै सताँय। 
अवगुन जीके मन बसैं, उनें पबारौ माँय।।
            ***
               -रामानन्द पाठक, नैगुवा
*14*
खटिया लौ जूता नहीं,  भइया रखौ उतार।
 इन्हें पबारो दूर खों, वास्तुशास्त्र अनुसार।।
               ***
               अमर सिंह राय, नोगांव
*15*
माँय  पवारौ अवगुनन, जोरत दोई हाथ।
शरनन में माथों धरै,सुद लिइऔ रघुनाथ।।
              ***
             -  एस आर सरल,टीकमगढ़
***
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़

[14/04, 08:38] Subhash Singhai Jatara: (बुंदेली).  -गुड़या ( सिकुड़‌ना )

जो भी खुलकें बोलतइ , शरम न तनकइ  खात |
कैलातइ    बें   सूरमा     , करत  न गुड़या बात || 

गुडया कैं जो बौलतइ , खौ    देतइ   विश्वास |
चुप्पा कत सब लोग तब, खूब  हौत परिहास ||

दाड़ी में तिनका खुजा , गुड़या के रत चोर |
चर्चा हो बदमाश की ,  देखत सबकी ओर ||

चर्चा हौबे ब्याव की , मौड़ी   गुड़या  जात |
धीरे से सबकी सुनै , अपने  कान चढ़ात ||

गुड़या के उन्ना रखत , सूटकेश  में आज |
गये पुटइयन के दिना , और पुराने काज ||

सुभाष सिंघई
[14/04, 08:39] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-गुड़याना/सिकुड़ना
गुड़या ग‌इ दु‌इ गाल की,खाल बार भयॅं सेत।
बीदे रयॅं भौंजार में,  नाम बनौ ना लेत।।

गुड़या कें ओंदे डरे, जैसें मर गयॅं होंय।
दारू में बाखर बिकी, मूड़ पकर कें रोंय।।

टूट आयॅं गुड़या गये, पनी बटोरत खोर।
मरी तिरकिया नें उड़े,कात खम्व दें टोर।।

रोटीं गुड़या के धरें, गटा गोंदली चार।
गगरी में पानू भरें, चली बुॅंदेली नार।।

गुड़या -गुड़या रोकड़ा,धरत छोकड़ा जात।
गुटका दिन उर रात भर,बड़े चाव से खात।।
             भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[14/04, 08:46] Asha Richhariya Niwari: बुंदेली दोहा दिवस दिनांक 14.4.2025
प्रदत्त शब्द =गुड़ी,गुड़िया
🌹
कैैसउ करियो तुम जतन,समय दिखात कमाल।
उमर ढले पे सबइ की,गुड़या जातइ खाल।।
🌹
गुड़ीमुड़ी से तुम डरे,हारे से बेहाल ।
मिलत सफलता सबइ खों, आज नहीं तो काल।।
🌹
गुड़या गुड़या कें धरे, दस हजार के नोट। 
दये चुखरवन ने कतर,मनुआ रहो कचोट।।
🌹
आशा रिछारिया 🌹🙏🏿🌹
[14/04, 10:39] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहे बिषय)--#गुड़या (#गुड़ी सिलवटें)*

#राना गुड़या कै धरौ, मिलो हतौ जौ शूट।
पर बियाव के फट गये,मम्मा के दय बूट।।😜
(बूट आंग्ल है 🙏)

गुड़या कैं #राना धना,धरबै साड़ी फक्क।
हम कत अब पैरौ इनै,सौ कत तुम हौ झक्क।।🤭

#राना गुड़या के परौ,बूड़ो डुकरा पौर।
है निखरारी खाट भी,नइँ  कथरी कौ ठौर।।

गुड़या कैं पुड़िया धरी,लई तमाकू चाप।
#राना माँगत और है,डुकरा दैकें थाप।।

ठंडन में गुडया  गयी,घर की  बूड़ी सास।
#राना थर-थर काँप रइ ,पल्ली नइयाँ पास।।
*** दिनांक -14.4.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[14/04, 13:07] Ramanand Pathak Negua: बुन्देली दोहा बिषय गुड़या।  
                 1
खाल सबइ गुड़या गई, सूक छुआरौ देह। 
करनी अबइ सुधार लो, करौ हरी से नेह। 
                   2
चोरी चोरी खेत में, बूट पटाये चार। 
आ धमके कक्का उतइ, गुड़या गऔ लिलार। 
                  3
नथनी बनबा दो बलम, बात सुनों दो टूक। 
माथौ गुड़या रइँ धना, हूँका में भइ चूक। 
                   4
लैंन उदारी द्वार पै, आ गय कक्का साव। 
देखत गुड़या गव रिनी, माँगत साव सबाव। 
                      5
लैंन देंन जो दै करौ, कौनउँ नातौ होय। 
देतन गुड़या जात है, सब अपनोंपन खोय। 
रामानन्द पाठक नन्द
[14/04, 16:13] Param Lal Tiwari Khajuraho N: दोहा 1-सबकी गुडया जात हैं, सारे तन की खाल!
सुनो दोस्त ढलती उमर, कह देती सब हाल!!
2-थाली भर के रख दिये, गुडया के सब पान!
भोजन करबें शौक से, खांय सभी मेहमान!!
3-उनने  गुडया डांड से, 
 छेड़ी धीरी बात!
पंचन ने भाँपी तभी, ई में चाल दिखात!!
4-गुड़याने काहे फिरत, सी सी करत बतात!
ठंडी में सब जनन की, ऐसी गति हो जात!!
5-येसे ऊसे फ़ेंक दो, कपड़ा गुडया जात!
जब तक स्त्री करो ना, पैरत लज्जा आत!!
परम लाल तिवारी 
खजुराहो
[14/04, 17:14] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार १४ अप्रैल २०२५
१-गुडयाकें रैजात हैं,
          ‌  पर सांसी नइं कात।
पाछें फैकत फिरत बे,
                लम्बी चौड़ी बात।
२-आव बुडापो बदनकी,
         गुडया गइ सब खाल।
शीष सफेदी छागई,
           पुचके होगय गाल।
३-गाडी में होबे भरो,
           जोकउं माल बिलात।
घटिया चडतन बैलवा,
             गुडया-गुडया जात।
४-गुडयाने बैठे रहे,
              बीच सभा में बीर।
दुस्सासन खेचत रहो,
               पांचाली का चीर।
५-गुडयाने बैठे हते,
              महाबीर हनुमान।
जामबन्त कइ आपमें,
            वल‌ है पवन समान।
मौलिक -रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[14/04, 17:28] Taruna khare Jabalpur: "गुड़या" शब्द पर दोहे 



गुड़या खैं पैसा धरैं, अम्मा बांदै छोर।
कछू लुका खैं धर लये,अलवारी मै जोर।।

मजदूरों के घाम मै,जरन लगत जब पांव।
गुड़या खैं सो गय उतइँ,जितै दिखानी छांव।।

धुतिया गुड़या धर लईं,पेटी मै दो चार।
आय लिबौआ चल दई, बड़ी बाइ ससरार।।

गुड़या खैं उन्ना धरौ,चीजैं धरौ समार।
बालापन सैं आदतें,लरकन मै दो डार।।

आओ बुड़ापो पक गय,दद्दा जू के बाल।
गाल तुचक गय देह की,गुड़या गई है खाल।।



तरुणा खरे'तनु'
जबलपुर
[14/04, 19:40] Gokul Prasad Yadav Budera: सम्मानित मंच को सादर नमन 🙏
काफी अंतराल के बाद समीक्षार्थ प्रेषित 
बुन्देली दोहे,विषय - गुड़या 
*********************
पल्लीं गुड़या कें धरौ,रव ना ऊ कौ काज।
आठ महीनों लौ रनें,अब कथरी कौ राज।।
****
उपराँड़े की  मूँग के, गुड़या  गय हैं  पात।
पानी दैबे खों पिया,कर लो तनक उलात।।
****
गुड़ी मिलै नैं जौन की,ऊ सें रखौ न हेत।
भलौ मसखरा जो सबै,लोट-पोट कर देत।।
***
बूढ़न सें कछु सीक लो,उनें न समजौ भार।
रत गुड़यानी चाम में,अनुभव कौ भन्डार।।
***********************
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[14/04, 22:02] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा ,विषय,,गुड़ी , गुड़याना,गुड़या,
***************************************
गुड़ी-गुड़ी धुतिया करी , नइँ निकोर लइंँ धाँद ।
धनियाँ सो गइँ नीम तर  , भौत परीती दाँद  ।।

ज्वानी मेँ चिलकत हती , अब गुड़या गइँ खाल ।
डगडगात अड्डत निगत , गइँ "प्रमोद"की चाल ।।

गुड़यानो डुकरा धरोँ , ढिलयानी अड़वान ।
टुकुर-मुकुर हेरेँ हँसेँ , खावेँ माँगत पान ।।

बगडूँरो गुड़या चलोँ , धूँरा कूँरा संग ।
जेठ मास की तपन में , बादर भरेँ उमंग ।।

गुड़ी-गुड़ी भइंँ साँतरी , धनियाँ देत दमाँर ।
रनवन बिथला केँ करोँ , सब "प्रमोद"ने प्याँर ।।

गुड़या-गुड़या खेँच रय , गाड़ी बूँढ़े बैल ।
बंँदरा दैरय दौँदरा , उगरो घर खपरैल ।।
***************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[12/04, 13:10] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा-फुकना/फूंकना (गुब्बारे)*

फुकना से ना फूलियौ,करो न येसी भूल।
#राना टुच्चे कोउ भी,बातन नौंक बबूल।।

#राना जग  मेला दिखे,फुकना साजे चार।
प्रेम-दया-परमार्थ के,भक्ती  के‌ सुखकार।।

काम क्रोध मद लोभ के,फुकना मानौ चार।
भौत  फूलतइ हैं हृदय,#राना चटकें मार।।

#राना दुनिया घूम रइ,फुकना- सी रइ फूल।
मेला सो जीवन दिखे,उड़ रइ भारी धूल।।

#राना फुक रय फूँकना,फूँक रयै है लोग।
कछु फूलत तुचकत कछू,बनबै  ऐसे योग।।
      *** दिनांक -12.4-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[12/04, 14:01] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा 
बिषय-फुकना/फूकना (गुब्बारे)
                      (०१)
फुकनाँ घाँइ न फूलियौ,ढका लगै मिटजात ।
माछी बैठे चट उड़ै,"दाँगी" देखत रात ।।
                       (०२)
फुँकना घाँई जिन्दगी,जानै कब मुरझाय ।
"दाँगी"चलियौ तुम समर,फुकना फूट न पाय ।।
                     (०३)
मंदिर में फुँकना सजे,रंग विरंगे ऐन ।
"दाँगी"जनम दिवस मना,रहे दच्छिना दैन ।।
                     (०४)
घर दोरे ऐसे सजे,फुँकना दय लट काय ।
फुकनन से फूला बना,दाँगी"महल
सजाय ।।
                     (०५)
मौड़ा मना रहे दिवस,जनम दिवस की रैन ।
फुकना चारों ओर सै,"दाँगी"बाँदैं ऐन ।।
                    (०६)
हल्के बड्डे फूँकना,खूबइ लये फुलाय ।
"दाँगी"अटाइ ऊपरै,नइ-नइ कला सजाय ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[12/04, 14:17] Subhash Singhai Jatara: 12.4.25- शनिवार --फुकना/फूँकना (गुब्बारे)
अप्रतियोगी दोहे

फुकना से फूले फिरैं , फूफा देख बिआव | 
गटा तरेरे कत फुआ , हल्ला नईं  मचाव ||

जितने फूले फूँकना , तुचक समय पर जात |
कछू  फुट्ट भी पैल से , सबखौं  खूब दिखात ||

फुकना से ना फूलियो , ज्ञानी कत   है बात |
पइसा टिके  न हात पै , खर्चा सब हो जात ||

गुस्सा में भी आदमी,     फुकना- सो  जै फूल |
नँग-नँग फरकत से दिखें ,मचत हृदय में हूल ||

सूपनखा नकटी बनी , फुकना -सी गइ फूल |
फर्रानी ऐसी  फिरी ,    मिट गइ रावण चूल ||

सुभाष सिंघई 
~~~~~
[12/04, 15:17] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-फूॅंकना/गुब्बारे 
बालापन में फूॅंकना, लये पजी के पांच।
खुशी भ‌ई मिल गव सुरग, झूम -झूम रय नांच।। 

जीवन है इक फूॅंकना, कबै हवा कड़जाय।
अत्त करत गिर- गिर परत,समझ‌त नैयां काय।।

जी दिन कड़ जानें हवा, फूट फूॅंकना जैय।
हात लगे है कोउ नें, की खों हाल बतैय।।

हवा फूॅंकना की कढै, ऊस‌इ तन से प्रान।
जीवन क्षणभंगुर मिलौ,अनुरागी धर ध्यान।।

फुग्गा फुकना फूॅंकना, लेने ई सें  ज्ञान।
जादा जो भर द‌इ हवा,मिट जैहै पैचान।।
                   भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[12/04, 16:23] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुन्देली दोहा ,विषय,,फुकना,,फूकना,,
*************************************
जियत-जियत फूंँलेँ  फिरेँ , जग में मान्स "प्रमोद" ।
तुचक फूँकना से डरेँ , इक दिन माँ की गोद ।।

फुकना कैसी जिन्दगी , फूँलेँ फटेँ हिराय ।
जब-तक दुनियाँ मेँ रहेंँ , रंग "प्रमोद"दिखाय ।।

फुलेँ-फुलेँ केँ फूँकना , बच्चे खेलेँ खेल ।
कछूँ पुचक केँ फूँट गय , तनक लगोँ हैं झेल ।।

जन्म दिवस पै फूँकना , फुलेँ-फुलेँ चिपकाँयँ ।
केउ जनेँ "प्रमोद"सेँ , सुंदरकांँड कराँयँ ।।

फुकना सी फूँली धना , बजनउँ पायल पैर ।
हँस-हँस कांँयँ "प्रमोद"सोँ , लाला है सब खैर ।।
***************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[12/04, 19:53] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिसय फुकना 
                   1
ब्याव घरै फुकना लगे, फुकनन बनों दुआर। 
मन मोहक दोरौ लगै, देखें लोग निहार। 
                     2
दे देबै फुकना फुला, छोटी गुडिया होय। 
हँस मुस्का कें खेलबै, अँगना खूबइ सोय। 
                     3
जनम दिना गोपाल कौ, भौतइ खुसियाँ छाँइ। 
सजा दऔ फुकना फुला, घर मडवा की नाँइ। 
                       4
फुकना सें फूले फिरत, जिदना होतइ ब्याव। 
निकर जात सबरी हवा, बिदें गिरस्ती  भाव। 
                       5
बडवाई सुनबे मिली, गय फुकना से फूल। 
निंदा सें मिर्ची लगत, जग कौ जौइ उसूल। 
रामानन्द पाठक नन्द
[12/04, 21:19] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -211*
प्रदत्त विषय - फुकना/फूकना (गुब्बारे)
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
जन्म दिना हनुमान कौ, गये मनानें भोर। 
सत रंगे फुकना फुला, सजा दऔ है दोर।।
            ***
                    -रामानन्द पाठक, नैगुवां
*2*
काय गर्भ तुम करत हो,, बनते बड़े अमीर।
 फुकना जैसे फूटनें,,सबके सुनों शरीर।।
         ***
         - मूरत सिंह यादव दतिया 
*3*
हनूमान जन्मोत्सव,फुकना बाँदे द्वार ।
कलजुग में हनुमान की,हो रइ जय-जय कार ।।
             ***
              -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*4*
फूँक-फूँक कैँ फूँकना , लगेँ फुलानेँ लोग ।
जन्म -दिवस हनुमान का , है नोनो संयोग ।।
           ***
       -प्रमोद मिश्रा वल्देवगढ़ 
*5*
नरतन जैसें फूॅंकना, हवा कड़त मरजात।
जौलौ जी के जै दिना,राम आसरें रात।।
       ***
             -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*6*
जौ तन मानो फूंकना, सांसें प्रभु की दैन।
माया तज भज लो हरी, पाओगे सुख चैन।।
      ***
           -आशा रिछारिया निवाड़ी
*7*
चार दिना की जिंदगी, सबइ  जनन  की  रात।
हवा भरै अभिमान की, फुकना सी फट जात।।
         ***
       - अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी 
*8*
पैल फूॅंकना सी हती , बिटिया गोल मटोल।
सूख  छुहारौ  हो गई , सुन सासो  के बोल।।
      ***
     -आशाराम वर्मा " नादान "पृथ्वीपुर
*9*
करम करो नोने सदा, भइया जगमें आय।            
है फुकना सी जिन्दगी,कबै हवा कडजाय।
          ***
         -एम. एल. त्यागी,खरगापुर
*10*
हम सब  फुकना ना  बने, ना फुक्का रय कोय।
ना फाँकें  हम  हर गली,कहै  गपोड़ी  मोय।।
          ***
          -सुभाष सिंघई, जतारा 
*11*
फुकना सें घर-घर सजो, सज रय वंदनवार।
प्रगट भये हनुमत लला, होवै जै-जै कार।।
     ***
 -श्यामराव धर्मपुरीकर गंजबासौदा
*12*
बेंचे फुंकना चार ठउ , जाकें काल बजार।
मिले रुपैया बीस हैं , छौटौ सौ रुजगार।।
           ***
      -वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*13*
फूलौ फिरत घमंड में, फुकना सौ इंसान। 
हवा निकरतन छोड़कें, जानें सकल जहान।।
            ***
          -संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
***##@@###@@*****
[07/04, 08:36] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा -विषय‌ हरदौल (लोकदेवता)*

हर गाँवन में चौतरा,#राना श्री हरदौल।
घरै बुलाबें व्याव में,बहिना दैकें  कौल।।

भानेजन के काज में,मामा श्री हरदौल‌।
भात देन #राना रहत,मान बैन को कौल।।

 नगर ओरछा धाम है,#राना  जित हरदौल।
भाभी माँ से विष पिया,रखा भाइ का कौल।।

एक मुगल हरदौल ने,पल में दिया पछाड़।
#राना जिससे कुड़ गया,सूबेदार पहाड़।।

गीत बने हरदौल के,बुंदेली  है  शान।
#राना बहिनें गाउती,काती कुँवर महान।।
*** दिनांक -7.5.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[07/04, 09:04] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली विषय - हरदौल 

शकुनी के सँग कंस भी , मम्मा  द्वय बदनाम |
पर मम्मा हरदौल खौं , सबरे   करत  प्रणाम ||

देव बने हरदौल हैं ,  जिनके गीत अपार |
गाती राती नारियाँ , व्याउ काज घर द्वार ||

धन्य ओरछा  है नगर , धन्य राम कौ धाम  |
धन्य वीर हरदौल हैं , अमर जगत में नाम ||

गाथा श्री    हरदौल की ,     बुंदेली जन गाँय |
भावी खौं माँ मानियौ,  जग खौ यह बतलाँय ||

नमन सुभाषा है करत , दौइ  जौरतइ  हाथ |
नाम लेत हरदौल कौ ,  धरत चरन में माथ ||

सुभाष सिंघई
[07/04, 09:23] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार 7 अप्रैल 2025
दोहा शब्द - हरदौल 
कुंवर लला हरदौल की, गाथा बडी विसाल 
बिष भाभीसें दिलाकें,निजभइया भयकाल।
                      2
कुंवर लला हरदौल के,गई चेटका बैन।
भानेजन के काज को,उनै निमंत्रण दैन।
                     3
पांच गांव हरदौल नै,दय भानेजन दान।
उनै छोड हरगांव‌ में,स्वयं बिराजे आन।
                    4
संका करीना कालकी,करगय बिषको पान।
आज लला हरदौल को,करत सबइ गुणगान।
                     5
भानेजन को करगए,लला मरेमें काज।
ईसें सब हरदौल हां,देत निमंत्रण आज।
मौलिक -रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[07/04, 09:52] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-हरदौल 
अवतारी हरदौल जू, बुन्देलों की शान।
ऑंखन छित पी गयॅं जिहर,राखी कुल की आन।।

भौजी माता मान कें ,करत हतै सम्मान।
लाला श्री हरदौल नें,सहज करौ विपपान।।

नगर ओरछा में मिलत, साकछात हरदौल।
कुंजा नें जाकें उत‌इ,‌धरवाओ तौ कौल।।

बिन लाला हरदौल के, होत न एक‌इ ब्याव।
जोड़ा सें हरदौल ढिग,साले शीश झुकाव।।

कृपा कोर करियो कुॅंवर,श्री लाला हरदौल।
हम बच्चे हैं आपके,बढे़ वंश की बौल।।
             भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[07/04, 12:34] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी बिषय--"हरदौल"
(लोकदेवता) (264) बुंदेली दोहा            (01)
जुझार सिंह
हरदौलके"दाँगी"भैया आयँ ।
चुगल खोर कीबातसै,बिष भोजन
 दिलवायँ ।।
(02)
ब्याव काज के टैम पै, गारीं गातइ ऐन ।
"दाँगी"भेजैं चेटका,भात मांगबै बैन ।।
(03)
सब गांउन में चौंतरा,बनैं मिलैं हरदौल ।
लज्जाभौजी कीरखी,दाँगी"मानौ कौल ।।
(04)
बुंदेलौं की शान है,हतै बुँदेला
वीर ।
नगर ओरछा चौतरा,"दाँगी"हरबैं पीर ।।
(05)
प्रकट हुये मड़वा तरै,दैं दरसन हरदोल ।
गाड़ी भर-भर ल्यायते,"इन्दु" दानअनमोल ।।
(06)
फूलबाग हरदौल है,"इन्दु"ओरछा धाम ।
उतइँ चौतरा आज है,दरसन देबै राम ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[07/04, 13:33] Dr Renu Shriwastava: दोहे विषय हरदौल
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
कुंजावति देवे गई, 
भात पने हरदोल। 
बिन काया सब लाय ते, 
चीकट थी अनमोल।। 

बनो चौतरा ओरछा, 
फूल बाग कत आज।
हरदौलन की चेटका, 
बड़ो अलौकिक राज।। 

शंका भज्जा की सुनी, 
कर गै विष को पान। 
ऐसे ते हरदौल जू, 
बुन्देलन की शान।। 

भर कें बेला खीर को, 
हरदौलन खों टेर। 
पीलो लाला खीर जा, 
तनक न करिओ देर।। 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
                   डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
                     स्वरचित मौलिक
[07/04, 18:10] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुन्देली दोहा ,बिषय,,हरदौल,,लोक देवता ,,
************************************
राज ओरछा के हुऐ , लोक देवता वीर ।
फूल बाग हरदौल की , आज पड़ी शमशीर ।।

वीर सिंह के लाड़ले , भय हरदौल जुझार ।
चुगलन ने चुगली करी , होगव बंटाढार ।।

सत्ता सुख मेँ राज मद , कर गव नंगो नाच ।
जब लाला हरदौल को , भइया भयौ पिसाच ।।

चंपावती "प्रमोद" भर , दियौ जहर संँग कौल ।
फिर भी मर गव आन पै , वीर कुँवर हरदौल ।।

चंपावती हरदौल को , माइँ पूत सो प्यार ।
दियौ"प्रमोद"कलंक जब , दागी भयौ जुझार ।।

करो कुकर्म जुझार ने , गव हरदौल  निवंश ।
उपजो मधुकर शाह कुल , क्योँ "प्रमोद"जो कंश ।।
****************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[07/04, 19:08] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- हरदौल
(1) जनम ओरछा मे लियो,
      राज कुँअर हरदौल।
      बने चहेते जो रहे,
      प्रेम भाव माहौल।।
(2) हँस मुख मन हरदौल को,
      सबसे बड़ो लगाव।
      वीर साहसी सदगुणी,
      साचव साँचो भाव।।
(3) लेकिन चुगलो ने भरे,
      जब जुझार के कान।
      जान गई हरदौल की,
      करवा दओ बिषपान।।
(4) देव तुल्य हरदौल जू,
      पूजे होत सम्मान।
      गाँव गाँव मे चौतरा,
      करे सबई गुन गान।।
(5) आन बान ब्रज शान से,
      जिये सदा हरदौल।
      लाला सब के लाड़ले,
      रहे रतन अनमोल।।
(6) लोक देवता है बने,
      पुजन लगे हरदौल।
      बिल्कुल साँची जानियो,
      ब्रजकिशोर जय बोल।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[07/04, 19:32] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय हरदौल 
**********************
                  1
रानी पै अनुआँ लगा, भर राजा के कान।
जहर दिबा हरदौल खों, लइ चुगलन नें जान। 
                      2
रानी बिस भोजन बना, टिरबाये हरदौल। 
रो रो कें थारी परस, पति कौ मानों कौल। 
                        3
बिस भोजन लाला करे, अपनों तजौ शरीर। 
सूरबीर हरदौल बिन, रइयत भई अधीर। 
                          4
बिस दैकें हरदौल खों, बेसुध हो गइँ हाल। 
मानों रानी नें तजौ, निज ओली कौ लाल। 
                           5
गाँव-गाँव हरदौल के, चोंतरा रय दिखाय। 
मन्नत पूरी होत है, जो जन दोरें आय। 
रामानन्द पाठक नन्द
[07/04, 19:53] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- हरदौल
(1) जनम ओरछा मे लियो,
      राज कुँअर हरदौल।
      बने चहेते जो रहे,
      प्रेम भाव माहौल।।
(2) हँस मुख मन हरदौल को,
      सबसे बड़ो लगाव।
      वीर साहसी सदगुणी,
      साचव साँचो भाव।।
(3) कवतो चुगलो ने भरे,
      जब जुझार के कान।
      जान गई हरदौल की,
      करवा दओ बिषपान।।
(4) देव तुल्य हरदौल जू,
      पूजे होत सम्मान।
      गाँव गाँव मे चौतरा,
      करे सबई गुन गान।।
(5) आन बान ब्रज शान से,
      जिये सदा हरदौल।
      लाला सब के लाड़ले,
      रहे रतन अनमोल।।
(6) लोक देवता है बने,
      पुजन लगे हरदौल।
      बिल्कुल साँची जानियो,
      ब्रजकिशोर जय बोल।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[07/04, 19:56] Taruna khare Jabalpur: हरदौल, शब्द पर दोहे 


भानेजन के ब्याव मै,धरी बैन नै कौल।
लाज बचाबे आ गये,तब लाला हरदौल।।

कुंजावति के द्वार पै,लागी जब बारात।
प्रकट भए हरदौल जू,पूजो आखैं भात।।

भाई नै संका करी, लांछन दओ लगाय।
भौजी सैं हरदौल खौं,बिष जबरन दिलवाय।।

भौजाई को मात सम,बनो राय सम्मान।
ऐई सैं हरदौल ने,कर डारो विषपान।।

नगर ओरछा मै बनो,फूलबाग स्थान।
जित लाला हरदौल खों, पूजत सकल जहान।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[07/04, 20:03] Param Lal Tiwari Khajuraho N: दोहा -विषय हरदौल 
1-चुगलन ने चुगली करी, नृप जुझार लौ जाय!
रानी बिष भोजन बना, देवर देव खवाय!!
2-माँ जैसी भौजी हती, सुत जैसो तो प्यार!
काल प्रबल की चाल को, भाँप न सको जुझार!!
3-बिष खाके हरदौल जू, छोड़े अपने प्रान!
तिन वियोग में ओरछा, गईं हजारों जान!!
4-गाँव गांव में चौतरा, जँह बैठे हरदौल!
औसर पे पूजें सभी, देंय दान बेतोल!!
परम लाल तिवारी 
khajuraho
[07/04, 20:04] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- हरदौल
(1) जनम ओरछा मे लियो,
      राज कुँअर हरदौल।
      बने चहेते जो रहे,
      प्रेम भाव माहौल।।
(2) हँस मुख मन हरदौल को,
      सबसे बड़ो लगाव।
      वीर साहसी सदगुणी,
      साचव साँचो भाव।।
(3) कवतो चुगलो ने भरे,
      जब जुझार के कान।
      जान गई हरदौल की,
      करवा दव बिषपान।।
(4) देव तुल्य हरदौल जू,
      पूजे होत सम्मान।
      गाँव गाँव मे चौतरा,
      करे सबई गुन गान।।
(5) आन बान ब्रज शान से,
      जिये सदा हरदौल।
      लाला सब के लाड़ले,
      रहे रतन अनमोल।।
(6) लोक देवता है बने,
      पुजन लगे हरदौल।
      बिल्कुल साँची जानियो,
      ब्रजकिशोर जय बोल।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[07/04, 20:35] Asha Richhariya Niwari: 🌹
रो रो कुंजावति कहें,सुनो भाइ हरदौल।
ब्याव समारो आन कें, तुमें बेन कौ कौल।।
🌹
न्योतो दो हरदौल खों,पान जनेऊ चांउर।
तुम बिन काज न होय जू,कैसें परहें भांउर।।
🌹
वीर लला हरदौल ने, राखी भौजी आन।
बिष के भोजन प्रेम सें,खा कें तज दय प्रान।।
आशा रिछारिया निवाड़ी🌹🙏🏿🌹
[05/04, 12:56] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा बिषय- बटुआ(पर्स)* 

गुन बारौ जब आदमी , बात करत हो खास।
जानो #राना प्रेम को,बटुआ ऊके पास।।

#राना बटुआ में धरैं,दद्दा कइ कलदार।
बेर-बेर खनकात हैं,बउँ टपकाबैं लार।।

दद्दा बटुआ में धरै,खैर सुपाड़ी  लौंग।
बस दैबें के नाम पै,#राना करतइ ढौंग।।

दद्दा कौ बटुआ फटौ,झरत तमाकू  रात।
चूना रगड़त आदमी,#राना जुरकै खात।।

#राना बटुआ में धरौ,गोरी कौ श्रृंगार।
लाली पौतत औंठ पै,छैला करत निहार।।
     **दिनांक -5-4-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[05/04, 15:43] Taruna khare Jabalpur: 'बटुआ 'शब्द पर दोहे 



बटुआ मैं पैसा धरैं,अम्मा करतीं काम।
लरका खात मिठाई तब,बेइ चुकातीं दाम।।

बटुआ को फैसन चलो,मैम साब लै हांँत।
चलीं जात हैं घूमबे,साहब जू के सांँत।।

जरीदार गोटा लगे,रेसम लागी डोर।
बटुआ मै सुंदर कढ़े, तितली, तोता मोर।।

लौंग सुपारी पान उर,हते रुपैया चार।
बटुआ ढूंढे नै मिलै, कहां हिरा गओ यार।।

कम्मर मै बटुआ खुसो,लटकै लम्मी डोर।
धुतिया सैं ढांकैं बऊ,करखैं सामूं छोर।।


तरुणा खरे'तनु'
जबलपुर
[05/04, 15:50] Subhash Singhai Jatara: बटुआ = पर्स

बटुआ में पैंला सबइ , चीजें धरैं  ‌समार |
धागा की ‌रत ती लरीं ,करबें‌ बंद किनार ||

बूड़ै बब्बा ‌साव जू  , बटुआ रयैं     चपाय ‌ ‌ |
लौंग सुपाड़ी लायची , सबखौं रयै खवाय ||

बटुआ देखे  गुलगुले , हमने  गोरी  पास |
पइसा जीमें थी रखत , चीजें पत्री खास ||

बटुआ लयँ जो हाथ में , रत ती ऊकी शान |
बडौ आदमी कात तै    , दैत   हतै सम्मान ||

घरै आयँ जब  आदमी , बटुआ  देबें खोल |
और सुपाड़ी दे कतर ,  मीठे   बोले   बोल ||

सुभाष सिंघई
[05/04, 16:01] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी =बुंदेली दोहा (210) शोभारामदाँगी "बटुआ" (पर्स)
                   (01)
धना चली है हाट खौ,बटुआ खुरसैं पास ।
"दाँगी"दसइ हजार की,चोरी हो गइ खास ।।
                     (02)
बटुआ
घाँईं जिंदगी,जाने कब खुल जाय ।                             धरौ भीतरै जो कछू,"दाँगी"बचा
न पाय ।।

                    (03)
चूना कतथा लायची,पान सुपारी इत्र ।
बटुआ सैं है दोस्ती,"दाँगी"हमरे  मित्र ।।
                    (04)
बटुआ कौदें सब तकत,"दाँगी" का धर ल्याय।
बाट निहारैं रात सब,छुड़ा-छुड़ा सब खाय ।।
                  (05)
दारु खोर बटुआ धरें,चलैं गरे में डार ।
"दाँगी"पूँजी सब धरै,ई में रत हुशियार ।।
                    (06)
बटुआ को हतौ चलन,अब नइँ लै रव कोउ ।
"दाँगी"इक्का जो बचे,सबइ घाँइ न होउ ।। 
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[05/04, 16:04] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी =बुंदेली दोहा (210) शोभारामदाँगी "बटुआ" (पर्स)
                   (01)
धना चली है हाट खौ,बटुआ खुरसैं पास ।
"दाँगी"दसइ हजार की,चोरी हो गइ खास ।।
                     (02)
बटुआ
घाँईं जिंदगी,जाने कब खुल जाय ।                             धरौ भीतरै जो कछू,"दाँगी"बचा
न पाय ।।

                    (03)
चूना कतथा लायची,पान सुपारी इत्र ।
बटुआ सैं है दोस्ती,"दाँगी"हमरे  मित्र ।।
                    (04)
बटुआ कौदें सब तकत,"दाँगी" का धर ल्याय।
बाट निहारैं रात सब,छुड़ा-छुड़ा सब खाय ।।
                  (05)
दारु खोर बटुआ धरें,चलैं गरे में डार ।
"दाँगी"पूँजी सब धरै,ई में रत हुशियार ।।
                    (06)
बटुआ को हतौ चलन,अब नइँ लै रव कोउ ।
"दाँगी"इक्का जो बचे,सबइ घाँइ न होउ ।। 
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[05/04, 18:55] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- बटुआ
(1) चलगव झिल्ली को चलन,
      झोला किये पुसाय।
      बटुआ की चर्चा नही,
      जिते चाय मिलजाय।।
(2) बटुआ मे डब्बल धरे,
      चले बजारे आय।
      सौदा लेवे काय की,
      खबरइ नइ कर पाय।।
(3) पैसा धेला जुगतसे,
      बटुआ मे गथयाय।
      धरे फिरत खोसें खुटी,
      टका नही मिल पाय।।
(4) झोला बटुआ केरिया,
      अब तो कमइ दिखात।
      ब्रजभूषण माने अटर,
      को फिर रव लट कात।।
(5) रूबो चकमक बटइया,
      पैलउँ धरे सुटाय।
      ब्रजभूषण बटुआ कबउँ,
      खाली नइ रै पाय।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[05/04, 19:41] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी =बुंदेली दोहा (210) शोभारामदाँगी "बटुआ" (पर्स)
                   (01)
धना चली है हाट खौ,बटुआ खुरसैं पास ।
"दाँगी"दसइ हजार की,चोरी हो गइ खास ।।
                     (02)
बटुआ
घाँईं जिंदगी,जाने कब खुल जाय ।                             धरौ भीतरै जो कछू,"दाँगी"बचा
न पाय ।।

                    (03)
चूना कतथा लायची,पान सुपारी इत्र ।
बटुआ सैं है दोस्ती,"दाँगी"हमरे  मित्र ।।
                    (04)
बटुआ कौदें सब तकत,"दाँगी" का धर ल्याय।
बाट निहारैं रात सब,छुड़ा-छुड़ा सब खाय ।।
                  (05)
दारु खोर बटुआ धरें,चलैं गरे में डार ।
"दाँगी"पूँजी सब धरै,ई में रत हुशियार ।।
                    (06)
बटुआ को हतौ चलन,अब नइँ लै रव कोउ ।
"दाँगी"इक्का जो बचे,सबइ घाँइ न होउ ।। 
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[05/04, 21:45] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -210*
दिनांक 5.4.2025 
*प्रदत्त शब्द =बटुआ* 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
पान सुपारि सरोतिया,चूना कत्था पान।
धर बटुआ कक्को चलीं,करन कुम्भ अस्नान।।
              ***
               -आशा रिछारिया,निवाड़ी 
*2*
बटुआ चोली में धरें,छाती सें चिपकांय।             
कैउ पछारें रयंलगे,चुरा कोउना पांय।।
‌                ***    
              -एम.एल.त्यागी, खरगापुर
*3*
सबके बटुआ हौं भरे, सबकौ हो सम्मान। 
हर हाँतन में काम हो, कटै जाल-जंजाल।।
            ***
          -संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
*4*      
लौंग लायची धरलई,बटुआ में कलदार।
धरैं रुपइया पर्स में,नन्ना राम दुलार।। 
           ***
       -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 

*5-* खाली छूट गया (कोई नहीं)       

*6*
बटुआ-सी है जिंदगी,गुनियाँ  करत विचार।
खुलत बंद में नइँ पतौ,फट जे किते किनार।।
                 ***
              -सुभाष सिंघई, जतारा 
*7*
ख़ाली बटुआ जेब में,रकखे सें का सार।
मन ही मन में सोच रय,जीबौ है बेकार।।
           ***
                   -वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*8*

पइसा बाॅंधत गाॅंठ में, सब देहाती लोग।
बटुआ उन कौ जौइ है,बनत नईं दुर्योग।।
             ***
- रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर', ललितपुर 
*9*
ऊँची  एड़ी   पैर   कें,  धना   बजारै  जायँ।
आँचल  में बटुआ धरें, चलीं बार  छुटकायँ।।
***
    -अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 
*10*
बटुआ लै गोरी चली, मटक-मटक इतराय।
अरे कोउ तो पूछ लो, मन चाहे बतयाय।।
        ***
     -श्यामराव धर्मपुरीकर, गंजबासौदा 
*11*
पैलां ब्याव बरात मै,बनत हँड़ा भर भात।
बटुआ भर खैं दार तब,बैठ बराती खात।।
           ***
      -तरुणा खरे'तनु' जबलपुर
*12*
चार जने जब गाँव में, जुरें मिलें बतयायँ,
बटुआ काढ़ें जेब सें, मलैं तमाखू खायँ।।
         ***
             - अरविन्द श्रीवास्तव ,भोपाल 
*13*
कपडा कांसे के बने, नजर न बटुआ आंय।
रेगजीन के सब जनें, हर जांगा लयॅं रांय।।
              ***
                   -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
        ***
*संयोजक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
[31/03, 07:24] Rajeev Namdeo: दि०३१-०३-२०२५ मंच को नमन।

*प्रदत्त शब्द-तुचक (बुन्देली)*

पाॅंव सूज थूमा भये,तुचक गये हैं गाल।
बूढ़े हम ऐसे भये,सुकड़ गई  सब खाल।।
***
मौलिक, स्वरचित 
*-रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर', ललितपुर*
[31/03, 10:42] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली विषय - तुचक ( सिकुड़ना ) 

फूफा फूले गय तुचक , मिले  नेग में  दाम |
बटुआ में खुरसें ‌फिरें , करें चिपट कैं काम ||

अच्छे -अच्छे शूरमा , फूलै   फिरतइ  गैल |
वक्त परे पै जै तुचक , खूब कुकाबैं  मैल ||

पइसा  में फूले फिरत , जिनै चढ़त गर्राट |
गट्ट बिदै पै जै तुचक ,   करै  मताई‌ याद ||

फूली पल्ली गइ तुचक , पिल्ला परै दिखात |
येसइ मानव देह अब , अपनौ  हाल बतात ||

तुचक गयै सब यार अब  , कपन लगै हैं हाड़ ‌|
थौरे दिन सब कात है ,      रयै बैठ कैं  काड़ ||

तुचक गयै अब गाल है , पुपला मौं  है  आज |
गोरी जिनखौ पोत कै , कभँउँ करत ती नाज ||

सुभाष सिंघई
[31/03, 10:58] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- तुचक
(1) चेत जाव छोड़ो ठसक,
      करले अबे विचार।
      कुचक रहे तन गव तुचक,
      राम भजन में सार।।
(2) थोंद तुचक गइ सोच में,
      दिन दिन सूकत जात।
      करजा अब कैसे चुकत,
      मोरो जी उकतात।।
(3) तुचक गये पनपत नही,
      ऐसो घेरें रोग।
      का हो गव सव पूछवे,गाँव पुरा के लोग ।।
(4) लाल टमाटर से हते,
      गोरे गोरे गाल।
      ब्रजभूषण अब गय तुचक,
      देखत नइयाँ हाल।।
(5) तन तन खो झूँकन गले,
      चलें फिरें लाचार।
      खाल तुचक लटकन लगी,
      सुकड़ गये सव यार।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[31/03, 11:26] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-तुचक/सिकुड़न
जग जननी मातेश्वरी, विनय करत कर जोर।
तुचक न पाबै तन तनक, लैयो पैल बटोर।।

बेहर के निकरत तुरत,तुचक फूॅंकना जात।
भूलो फिर रव आदमी,राम -राम न‌इॅं कात।।

गाल तुचक दो‌ई गये, उर भूरा भय बार।
ऑंखन की जोती घटी,राम उतारौ पार।।

ऑंखें घुस ग‌इॅं भीतरै, तुचक गये दुइ गाल।
टेड़ी भ‌इ करयाइ उर,लटक आई है खाल।।

भटा कचरिया घाॅंइॅं तन,तुचक एक दिन जात।
फिर भैया परिवार के,सब सठयाने कात।।
        भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[31/03, 12:40] S R Saral Tikamgarh: *बुन्देली दोहा विषय -तुचक*
**************************
नइयाँ कोउ गरीब कों,
                 भौत बुरय हैं हाल।
महगाई डाइन डसै,
                 तुचक गये हैं गाल।।

ज्वानी में  गर्राट दय,
                  भौत करें रन जूज।
तुचक गये ढ़िलया चले,
                 अब ना कछू रबूज।

तुचक गये कर कर नशा,
                 खूब दये खरयाट।
अब माँछी भिन्कन लगी,
                 पकरै दद्दा खाट।।

तुचक जात सब एक दिन,
                 उल्टी चलती साँस।
सूक ठठेरों होत तन,
                चिपकत चमड़ी मास।।

अच्छे अच्छे गय तुचक,
                 जिननें दय उत्पात।
उननें अपनें ही गुनन,
                 मरबे करी उलात।।

तुचक गये जिनखों हते,
               धन के भौत घमंड।
पनें गुनन मिट गय *सरल*,
               मिले करम के दंड।।
*************************
         *एस आर सरल*
            *टीकमगढ़*
[31/03, 12:40] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी बिषय-"तुचक" खाल (सिकुड़ना) बुंदेली दोहा 
                  (01)
अस्सी नब्बै के भये,तुचक जात है खाल ।
पके बेर से गय तुचक,"इन्दु" के दोउ गाल ।।
                    (02)
बेर मकोर भटा तुरइ,पकबै पै गुड़यात ।
ऐसइ "इन्दु" उमर भई, तुचके सबै दिखात ।।
                  (03)
हांत पाव सिकुड़न भई,तुचकौ आँग दिखात ।
"दाँगी"बूँढे से लगैं ,कछू काम नै आत ।।
                   (04) 
लोग लुगाई एक से,सँग गुड़या गइ खाल ।                               दोउ जनैं बूँड़े हुये,"दाँगी"तुचके गाल ।।
                   (05)
दाड़ी मूँछैं पक गई,सिर के भूरे बाल ।
तुचक गयी"दाँगी"अबै,सारे तन की खाल ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[31/03, 16:14] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहे - तुचक (सिकुड़ना)*

बातें सुन कैं गय तुचक,जौरन ‌लागे हाथ।
बोले #राना अब अपुन, दैव हमारौ साथ।।

#राना खौ फूले  मिले,दाँत  रयै ते मीस।
पैलवान लख गय तुचक,काड़न लागे खीस।।

#राना फूलै लर‌ गयै,माते खूब चुनाव।
हार गयै सौ गय तुचक,कौउँ न दे रवँ भाव।।

फुकना से फूले हतै,#राना लम्बरदार।
देख पुलिस खौं  गयँ तुचक,घुस गयँ घर के द्वार।।

जब  घमंड  में  फूलतइ,#राना करत न बात।
मौं की खाकैं जे़ै तुचक, फिरै  दिखता गिगयात।।
           *** दिनांक -31-3-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[31/03, 18:38] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा ,,विषय ,,तुचक ,,
*************************************
धनियाँ मुइयाँ गइँ तुचक , लगत बुढ़ापो आव ।
जँजर-पँजर भइँ देहिया , अब नइँ रैगव हियाव ।।

गोरी जिन इतराइयो , तुचक जैय जा देह ।
हँस "प्रमोद"निगती चलो , लगा-लगा केँ नेह ।।

तुचके चबुआ देख केँ , असुआ आ गय मोय ।
हम-तुम ने धनियाँ पनेँ , दिन नोने दय खोय ।।

धनियाँ मनियाँ गइँ मुरक , तुचके फूँले गाल ।
वे दिन कड़ेँ "प्रमोद"के , लोरे फूँटन ताल  ।।

देह सोबरन की हती , उम्मर सोला साल ।
अब गुड़यानो चामरो , तुचक-पुचक गय गाल ।।

फूँले फूला गय तुचक , ऊँमेँ डूँबेँ भान ।
एसइँ देह "प्रमोद"की , अब जानेँ भगवान ।।

***************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,

[29/03, 1:28 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा- हुलहुलाट (हर्ष में जल्दबाजी)*

हुलहुलाट #राना मची,नहीं सुनी ‌थी बात।
घरे अटैची छोड़ गय,चले गये  बारात।।

तनिक खबर बस आइती,#राना चलियौ आप।
हुलहुलाट में निग ‌गयै,वस मोबाइल चाप।।

सारी बोली फोन पै,हुलहुलाट है काय।
जिज्जी आ रइ मायकै,रइयौ मौ खौ  बाय।।

हुलहुलाट में लोग भी,पसरा लेतइ काम।
भुंन्सारे के काम खौ,#राना करतइ शाम।।

#राना घर में व्याय हो,हुलहुलाट ही आत।
चिट्ठी पत्री  फोन से,सबखौ घरै बुलात।।

हुलहुलाट में फूल कैं,फुकना से गय फूल।
खबरी कै गवँ झूठ है,#राना गय सब भूल।।

हुलहुलाट में कै चले,नइँ चिन्ता की ‌बात।
#राना अब सब गय तुचक,दिखत सामने घात।।
      ***दिनांक -29.3.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[29/03, 1:59 PM] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा - हुलहुलाट (खुशी/जल्द बाजी)
(१)
सुनी  बाॅंसुरी  श्याम की , गोपी सुध बिसराइ।
सोउत पति खौं छोड़ कैं , हुलहुलाट  में आइ।।
(२)
हुलहुलाट  में  भूल  गइ , गोपी  सब  सिंगार।
बंशी  सुन  कैं  दै  भगी , छोड़े  खुले  किबार।।
(३)
हुलहुलाट  येंनइॅं  परी  , आ  गव  नीरौ व्याव।
हाले  -  फूले  दाउ  जू ,  दयॅं  मूॅंछन  पै  ताव।।
(४)
कभउॅं न करियौ भूल कैं , हुलहुलाट में काज।
हुलहुलयानें  होत  है  , सुनों  कोढ़  में  खाज।।
(५)
हुलहुलाट   में  दै   दऔ  ,  शंकर  नें  वरदान।
शिव  पै  अजमाबे फिरौ , भस्मासुर "नादान"।।

        आशाराम वर्मा  "नादान " पृथ्वीपुर
           ( स्वरचित ) 29/03/2025
[29/03, 2:14 PM] Subhash Singhai Jatara: 29.3.25- शनिवार - हुलहुलाट (हर्ष में जल्दबाजी )

हुलहुलाट में हाँ भरी , कीनौं  नइँ  विचार |
खट्टौ खा गय‌ पौच के , रै गय गटा पसार ||

हुलहुलाट जी में मचत , खबर खुशी की होइ  |
लेंगर   जाकैं   ‌देखनें ,  सोचत   सबरे ‌‌  सो़इ  ||

हुलहुलाट में लर गये, जब चुनाव थो गाँव |
हार गये सो रो रये ,   जमा  न   पाये पाँव ||

हुलहुलाट में ‌ देखतइ , छूटत  तनिक विवेक |
सोच नहीं   तब  पात है , कौन काम है नेक ||

हुलहुलाट सबखौं मचत , पर जो  करत विचार |
पाँव   बढ़ातइ सोच कै , ल्यात  जीत  ‌उपहार ||

सुभाष सिंघई
[29/03, 2:47 PM] Taruna khare Jabalpur: 'हुलहुलाट'शब्द पर दोहे 


हुलहुलाट मै गोपियां,भूलीं सबरे काम।
गिरत परत पौंची जहांँ, मुरलीधर घनश्याम।।

हुलहुलाट मै कर लओ,उलटो सब सिंगार।
कजरा होंठन मै लगो,लाली अँखियन डार।।

हुलहुलाट खूबई मची,कृष्ण मिलन की आस।
उल्टे सूदे काम कर, चलीं श्याम के पास।।

हुलर फुलर करतीं सखी,पौंची जमना तीर।
हुलहुलाट मै श्याम खौं, पकड़ा आईं चीर।।

देख सामने श्याम खौं,हुलहुलाट भई ऐन।
छिलका प्रभु खों दै रईं,छवी निहारत नैन।।


तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[29/03, 3:00 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा विषय ,,हुलहुलाट ,,
************************************
हुलहुलाट धनियाँ फिरेँ , बजनउँ पायल पैर ।
झमझमात हारेँ चली , सकरी पर गइँ सैर ।।

हुलहुलात तेँ ब्याव खोँ , अब होगइँ लड़धेर ।
गुटुआ लेत "प्रमोद"गय , बीनन हारेँ बेर ।।

हुलहुलाट में हार गय , कक्का बड़ो चुनाव ।
अब दोरेँ में बैठकेँ , देत मूँछ पै ताव ।।

हुलहुलाट में हूँक केँ , रातेँ डुबरी खाइँ ।
अब कौरा की भूँख भी , नइयाँ राम दुहाइँ ।।

हुलहुलाट में दै भगेँ , मौँड़ी मौँड़ा ज्वाइ ।
खाक छान रय शहर मेँ , भूँकन सूँकेँ प्रान ।।

हुलहुलात धनियाँ चली , छैलन सेँ बतयात ।
मेला में चौँखीँ बरफ , फिरेँ जलेबी खात ।।
**************************************
  ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[29/03, 7:49 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-हुलहुलाट/हुलहुलात/(हर्ष में जल्दबाजी)

हुलहुलात फिरबैं सती, विनय करें कर जोर।
यज्ञ पिता जी के घरै,मन में उठत हिलोर।।

हुलहुलात कय खों फिरत,जीवन के दिन चार।
मरघट में परिवार के,उन्ना लैंय उतार।।

हुलहुलात जीजा बिकट,गाबैं फागें राइ।
भांग हने फिरबै हसत,न‌इॅं हो र‌ई उकाइ।।

हुलहुलाट नय काम की,सांता डारौ खौय।
गट्ट बिदी सो रो रय,कात बचा लौ मौय।।

रिस्ते पैलां खून के, जग में सुनें ‌तमाम।
हुलहुलाट में भर गये,नीले ड्रम में राम।।
           भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[29/03, 11:13 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -209*
प्रदत्त शब्द- हुलहुलाट दिनांक -29-3-2025
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
हुलहुलाट मेँ दैँ नचेँ , देख मोहिनी नार ।
भस्मासुर हो गय भसम , खुश होगय त्रिपुरार ।।
           ***
                  -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 
*2*

नारद बैठे सान सें, रूप हरी कौ ल्याय।
हुलहुलाट उनखों परी,कबै ब्याव हो जाय।।
           ***
            - डॉ. देवदत्त द्विवेदी,बड़ामलहरा 

*3*
हुलहुलाट ऐंसी परी,धना दौरती जायँ।
साजन आए द्वार पै,तुरतइ मिलखैं आयँ।।
        ***
           -तरुणा खरे' तनु', जबलपुर
*4*
हुलहुलाट ऐसी मची, भूले सबरी बात।
जैंसें तैंसें दिन कटो, कटत नईंयाँ रात।।
          ***
             -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
*5*
हुलहुलात नारद मुनि,बोलत अटपट बैन।
कबै डरै माला गले, हिरदय नैयां चैन।।
        ***
              - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*6*

राम जनम कानन सुनो,परो सबइ खों चैन।
हुलहुलाट में फूंक रय,आतिशबाजी ऐन।।
         ***
       -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 
*7*
हुलहुलात हर काम में, दौरत पैल अगायँ,
मौ की खा कैं लौटबैं, सबरे काम नशायँ।।
      ***
          - अरविन्द श्रीवास्तव ,भोपाल 
*8*
माया  मायापति रची , नारद  पाय न जान।
हुलहुलाट में व्याव कौ ,माॅंग लऔ वरदान।।
         ***
      -आशाराम वर्मा "नादान"पृथ्वीपुर
*9*
हुलहुलाट में करेसें ,बिगर जात है काम।
         
होत हंसाई जगत में,करत सबइ बदनाम।।
          ***
-एम एल त्यागी खरगापुर
*10*
हुल्ल फुल्ल अरु हड़बड़ी, में नइयाँ आराम।
हुलहुलाट में जो करै, बिगर जात सब काम।।
         ***
          संजय श्रीवास्तव,मबई
*11*
हुलहुलाट में भूल कर,  छोड़े खुले किबार।
तारौ साॅंकल में बिदा,बैठ गऔ मैं कार।।
            ***
         - रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर, ललितपुर 
*12*
हुलहुलाट कायै मची,तनक गम्म तौ खाव ।
जय माला डन्नैं तुमैं,नारद खौं समजाव ।।
               ***
          -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*13*
हुलहलाट  में  कै  धरी, भौजी   सीताराम।
वे निकरीं खुद की धना, परौ राम सें काम।।
            ***
              - अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 
*14*
हुलहुलाट उठतइ हृदय,रोम-रोम खिल जात।
करत फटाफट काम हैं,आलस तनक न आत।।
               ***
               -सुभाष सिंघई, जतारा 
*15*
भरबै मेला कुम्भ कौ, हुलहुलाट भइ ऐंन। 
दर्शन संत समाज के, धन्य भये जे नैन।।
            ***
         - रामानन्द पाठक 'नन्द' नैगुवां
*16*
काहे राजा करत हो,हुलहुलाट में नांश।       
बिन खोंदें कब मिटो है,,मार खेत को कांश।।
    ***
         - मूरत सिंह यादव, दतिया 
***
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल नंबर -9893520965
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[24/03, 8:50 AM] Subhash Singhai Jatara: 24.3.25- सोमवार - काय (क्यों)

अब बोलत हो आन कें , पैल न बोले काय |?
चिड़ियाँ चुग गइँ खेत हैं , डूठा रयै दिखाय‌ ‌||

नेतन के घर झारतइ ,  चमचा बन रय काय |?
कौन बिदी है गट्ट अब  ‌, नस खौ रयै छिपाय‌  ||

नाक फुला के घूम रय , थुथरी बिगरी काय |?
कौन चुभी है बात अब, मौखों देवँ  ‌सुनाय ||

साँसी बातें छौड़ कैं , लबरयाट   है   काय |?
दौदा पच्ची है मची , सबइ   रयै  चिल्लाय‌ ||

सोचत  नेता काय नइँ , दयैं   दौंदरा  आज |
मंदिर मस्जिद कर रयै ,तनिक बची ना लाज ||

सुभाष सिंघई
[24/03, 9:13 AM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय = काय ( क्यो )
(1) काय करत उलटे करम,
      नियम धरम अपनाव।
      ब्रजभूषण भव पारकौ,
      साधन अपन वनाव।।
(2) पिया काय मानत नही,
      ठानक हो तकरार।
      परी आँख में किरकिरी,
      हर लाये पर नार।।
(3) सनो इते की तुम उते,
      वातें काय सुनात।
      बेर बेर चुगली करत,
      दो की चार बनात।।
(4) तुमें काय की है कमी,
      दय है सब भगवान।
      अपने कारण तुम भले,
      होत रहो हैरान।।
(5) पढ़ो लिखो आगें बढ़ो,
      कबे वुरव रत ज्ञान।
      करत काय हो अनसुनी,
      भइया केवो मान।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[24/03, 9:19 AM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार 24 मार्च 2025
दोहा शब्द-काय (क्यों)
           १
काय बिदे भौंजार में,
               छोडो माया जाल।
भजन करो भगवान को,
        पलभर समय निकाल।
           २
बरयाकें जो तन मिलो,
             काय चलतना चेत।
ठेंकें बिद भौंजार में,
                काय बिगारें लेत।
            ३
काय फिरत बेकार में,
          ढूंडत तीरथ धाम।
सांचे मनसें देखलो,
          हैं घट भीतर राम।
            ४
कण-कण में भगवान हैं,
             काय न जानत मूंढ।
परमपिता भगवान को,
             है रहस्य अति गूढ।
           ५
काय नसांएं लेत है,
             जा हीरा सी देह।
बनकें त्यागी लगालै,
           परमपिता सें नेह।
मौलिक -रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[24/03, 9:24 AM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुन्देली दोहा , विषय,,काय ,,क्यों 
************************************
काय भौँक रय काउ पै , पनेँ भीतरेँ झाँक ।
कब"प्रमोद"नोनो करो , बरजा तोरी नाक ।।

काय परोसी के धरेँ , सुनत पाँवने आय ।
गड़याँघुल्ला खड़पुरी , लड़ुआ बर्फी ल्याय ।।

अव्वल नम्बर पास भय , लरका बिटियाँ आज ।
फैल काय सेँ तेंइँ भव , परी न तोपे गाज ।।

धरवारी धरवाय सेँ , बोल परी चिल्लाय ।
काय पियत दारू पिया , जीतब बरेँ तुमाय ।।

काय लिवादो पैजना , नंगे पाँव हमाय ।
नाव धरतती सब जनी , कैसे पिया तुमाय ।।

काय धना जारइँ कितै , खाकेंँ देशी पान ।
गोड़ मूँड़ सेँ सिँगरी , लैहो की के प्रान ।।

काय काउ को देखकेँ , जरत-बरत कुछ लोग ।
भरीँ गड़इंँ लुढ़काउतइँ , जो "प्रमोद"का रोग ।।
****************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[24/03, 1:29 PM] Rajeev Namdeo: दि०२४-०३-२०२५ मंच को नमन।

काय रुऑंसे से फिरत, हमें बताओ बात।
दुक्ख बतायें सें कटत, कीनें कर दइ घात।।
मौलिक, स्वरचित 
*रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर", ललितपुर*
[24/03, 1:35 PM] Rajeev Namdeo: *बुन्देली हास्य  दोहा--काय (क्यों)*
                  🥰🙏

काय  नसानों काम है,#राना मूड़‌ खुजात।
धना खड़ी है सामने,मोखौ गटा दिखात।।
                 🤔
फूफा फूले  काय‌ ‌हैं‌,बिगरौ लगे  मिजाज।
फुआ लगा रइ डाट है,करौ तुचक कैं  काज।।|
               🤭
सास पूछतइ फोन पै,#राना सइ बतलावँ।
मौरी मोड़ी अनमनी,काय करत  बतकावँ।।
                🤨
#राना सौचत रात है,काँव -काँव है काय।
सूजा टुच्चत सब जनै,दैकैं अपनी  राय।।
                  🤥
दोस्त उरानौ दैत हैं,#राना गय तुम भूल।
काय न उत्तर दैत हो,कब खाबै की चूल।।
                😜
    *** दिनांक -24.3.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[24/03, 1:40 PM] Taruna khare Jabalpur: 'काय' शब्द पर दोहे 


समौ रैत हरि नै भजे,अब पसतानै काय।
बिरथा अपनी जिंदगी,तुम नै दई गमाय।।

पानी काय बहात हौ,बूंद बूंद अनमोल।
जल सैं सब संसार है,समजौ ई को मोल।।

उलटे सूदे काम मै,परै रैत हो काय।
भजन करौ भगवान को,जनम सफल हो जाय।।

समौ बड़ो है कीमती,काय करत बरबाद।
चले समय के साथ जे,बेइ भये आबाद।।

नसा काय कर लेत हौ,मानत नइयां बात।
देख पुरा के लोग सब,मोरी हँसी उड़ात।।



तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[24/03, 2:52 PM] vidhya sharan khare Sarser Noganw: विधा-दोहा
काय-क्यों
1-काय भृम में तुम परे,
सपने कैसी रात।
धरो इतई रे जात सब,
कोउ नई पूँछत बात।
2-काटने तो सबखां परत,
जैसी फसल है बई।
करम लिखो जो बाँचने,
काय जू कैसी कई।
3-चिंता करो न चित धरो,
जो शरीर अनमोल।
काय इखों मिटा रये,
राम नाम मुख बोल।
4-कितने आये चले गये,
नाम धरो रे जात।
फिर भी मन मानत नहीं,
काय पाप कमात।
5-गई बहुत थोरी बची,
सबसें मिललो धाय।
जब बचो न काम के,
फिर येन कात रओ काय।
               वी एस खरे
              श्री शिवधाम सरसेड़
[24/03, 4:54 PM] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी बिषय-"काय" (क्यों) बुंदेली दोहा (262) 
                   (01)
लंका जला कैॆं आय ते,का है साजौ काम ।
काय सुंदर कांड़ कत,कव"दाँगी"  हरिनाम ।।
                     (02)
चोरी कर लइ हाट में,करै घिनौनैं काम ।
काय करत"दाँगी"कबै,करै जगत बदनाम ।।
                   (03)
चैटी चैटा आजके,खूबइँ करैं मजाक ।
"दाँगी"समै कि बात ये, काय मिटा रय घांक ।।
                    (04)
काय बिगर्रय आज के,ग्यान न सीकत कोउ ।
दारु जुआ गुटका खबै,"दाँगी"मन नइँ सोउ ।।
                     (05)
मोरे पीछे काय रत,ठुसया रय तुम ऐन ।
बिना पते उरजत फिरौ,"दाँगी" बोलैं  बैन ।।
                   (06)
काय लगाई पूँछ में,मिल कर सबनैं आग ।
घर उनइँ के जला दिये,"दाँगी" बिगरौ राग ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[24/03, 7:04 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय काय 
                    1
काय कितै भुज्जी चलीं, लै भज्जू खों संग। 
अलगइ सी हेरन हँसन, पुलकित हो रय अंग। 
                      2
भौजी सजौ उलायतीं, हो रइ भौत अबेर। 
समय कडै मिलबै नई, काय लगा रइ देर। 
                      3
घरबारी के टेरतन, मैनें कै दइ काय। 
कै नइँ पाए काय हो तुरतइँ गई रिसाय ।
                      4
पडा घाँई छाती धरें, काय मँगा रव भीक। 
माँगन मरन समान है, लै कबीर सें सीक। 
                       5
काय रिसानी पूँछ रय, सजन पकर कें बाँय। 
बिन बोलें कैसै मिलै, धना पेट की थाँह। 
रामानन्द पाठक नन्द
[24/03, 7:41 PM] Asha Richhariya Niwari: 🌹
काय बात नइ मान रय,अपनी टेक चलात।
दाऊ घर के हैं बड़े,खामोखां  बुलयात।।
🌹
काय पिया जिद ठान रय,सिया जगत की माइ।
जा सोंपो श्री राम खों,ये ही में चतुुराइ ।।
🌹
काल चका सो घूम रव,कड़ गइ उमर तमाम। 
काय परे हो मोह में,भज लो सीताराम। ।
आशा रिछारिया निवाड़ी 🙏🏿
[22/03, 1:27 PM] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहा शब्द-इतइँ /इतइ  (यहां)*

धरौ रनै  सबरौ ‌इतइँ ,#राना क्यों इठलात। ?
जौरत रत जौ रात दिन,हाय- हाय‌ भी कात।।

इतइँ  सुरग  ही जानियौ,इतइँ जानियौ नर्क।
#राना करमन में दिखें,हमें न कौनउँ फर्क।।

नगर ओरछा में सुनो,रत हैं राजाराम।
#राना जानौ हैं इतइँ,तीन‌ लोक शुभ धाम।।

नदी बेतबा ओरछा,सावन-भादौ खम्ब।
इतइँ मिलन #राना तकत,नौनों लगतइ अम्ब।।

बुंदेली को जय‌ पटल,इतइँ जुरै कवि आप।
सबके लेखन‌ भी सदा,#राना देतइ छाप।।
       *** दिनांक -22.3.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[22/03, 2:38 PM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली - -इतइँ //इतइ (यहां)

सबखौं  दुनिया में इतइँ , मिलत करम से न्याय‌ |
 मीठे खौं  मीठो  मिले ,    खट्टौ   खट्ट   सुँगाय‌‌ ||

बुंदेली  सीखे  इतइँ ,    सबइ   जनन  के  संग‌ |
कछू दिनन में सीख कैं , मैं  भी   भवँ तौ‌   दंग ||

पाप पुन्य सबरै इतइँ ,   लोग  कमा  कैं जात |
बिधना तौलत खूब है  , नक्की फल बतलात ||

सबकै  मन में भी इतइँ , लगतइ खूब हिसाब |
फल भी सबरै जानतइ , कैसी   बने  किताब ||

आओ बैठौ सब इतइँ , कर लो मन से बात |
हराँ -हराँ चर्चा करौ ,  करियौ  नहीं  उलात ||

सुभाष सिंघई
[22/03, 3:27 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुन्देली दोहा ,,विषय ,इतइ,, यही ,,
**************************************
सुरग-नरक सुख-दुख इतइँ , हैँ"प्रमोद"भगवान ।
घृणा-प्रेम सच-झूँठ खोँ , स्वयं चुनेँ इंसान ।।

शिक्षा -दीक्षा है इतइँ , मानवता छल -छंद ।
भलोँ -बुरोँ मन को करोँ , छोड़ विदेलो दंद ।।

भूँम भवन रानेँ इतइँ , तन मेँ लगने आग ।
नइँ "प्रमोद"रानेँ अमर , करोँ प्रेम की फाग ।।

सात मुलक के रय इतइँ , खउआ नीच कमीन ।
खो-खो खाव "प्रमोद"सब , भव भारत नमकीन ।।

इतइँ गाड़ दय बार दय , हिंदू मुस्लिम बुद्ध ।
सिख "प्रमोद"इसाइँ सब , कैगय प्रेम विशुद्ध ।।

इतइँ हिरा गय शूरमा , दव जिन्नेँ आतंक ।
नेता चमचा चुखरवा , साधु राजा रंक ।।

जात भाइँ परिवार कुल , काम कोइँ नइँ आत ।
परेँ समय की लात जब , सब "प्रमोद"घट जात ।।
**************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[22/03, 4:57 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-इत‌इ/यहीं
तुबक तमंचा सब इत‌इ, अनुरागी धय रैंय।
दो कुरवन पै एक दिन,चार जनें लै जैंय।।

पाप पुण्य कौ फल ‌इत‌इ,ऊपर बारौ देत।
बीदे फिर रय जाल में,राम नाम न‌इॅं लेत।।

तरवन में ताती लगत, जा बुन्देली लेत।
म‌ऊवा चरवा इत‌इ के, हमें छाॅंयरौ देत।।

गंगा जमुना हैं इत‌इ,और ओरछा धाम।
रज में रज खों ढूड रय,क‌इ बाबा बे नाम।।

महल अटारीं चौंतरा,चाल ढाल अरु माल।
कवच इत‌इ रानें धरे, अलख नयन से ताल।।
                भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[22/03, 6:50 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा 
बिषय - इतइ
(1) दोरे मे दद्दा डटे,
      तकत नाय के माय।
      इतइ किते जा रये,
      वता वैसइ सुछ्त राय।।
(2) माने ने टोके विना,
      कालो नूने वताय।
      कतइ जात आ रय,
      अवई इते भौत चिचयाय।।
(3) वैरी से भईया मिलो,
       इतइ विगड़ गई वात।
       चोट करारी है लगी,
       तऊ नइ अपन डरात।।
(4) करनी नीकी कर चलो,
      उते जेओ का कात।
      ब्रजभूषण नीकी वनी,
      ईखो इते दिखात।।
(5) इतइ सबइ सुबिदा हती,
      उते काय खो जात।
      ब्रजभूषण मानो कही,
      छोड़ो वा खैरात।।
(6) चार धाँम तीरथ इतइ,
      नदियाँ परम पुनीत।
      ब्रजभूषण देखत बने,
      इते नीति अर रीति।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[22/03, 7:19 PM] Ramanand Pathak Negua: बुन्देली दोहा बिषय इतइँ 
                    1
ई बुन्देली भूम कौ, जग जाहिर है नाम। 
सुभट वीर बीरांगना, उपजे इतइँ तमाम। 
                     2
खुली कलारी गाँव में, दोरें लगौ हजूम। 
दारूखोरा लर परे, फट गइ इतइँ फतूम। 
                       3
नन्द इतइँ सें निग परे, गये ओरछा धाम। 
उपनय पाँवन पोंच गय, लैकें हरि कौ  नाम। 
                         4
इतइँ -इतइँ की बात है, इतइँ  - इतइँ  उरजात। 
इतइँ मलाइ खात हैं, ठेंगा इतइँ दिखात। 
                         5
पावन तीरथ ओरछा, आय अवध सें राम। 
सरयू माँ सी वेतवा, बहती इतइँ ललाम। 
रामानन्द पाठक नन्द
[22/03, 8:21 PM] Taruna khare Jabalpur: भारत की पावन धरा,जित जनमे घनस्याम।
इतइंँ हमाये देस में,औतारे ते राम।।

बड़े दिनन मै हौ मिले,दूर दूर से रात।
आव तनक बैठो इतइँ,करौ प्रेम की बात।।

इतइँ हमाये गाँव मै,एक बरा को झाड़।
नदिया गैरी बै रई,ऊपर लगो पहाड़।।

आओ इतइंँ घूमन चलैं,कर आएं जलपान।
चाय संग भजिया छकैँ,चाबैं बीरा पान।।

भौत दिनन मै आय तुम,शबरी के घर राम।
खाओ मीठे बेर उर, इतइँ करौ बिश्राम।।


तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[22/03, 8:47 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -208*
बिषय-इतइ /इतइँ (यहीं) दिनांक -22-3-2025

*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*

*1*
स्वयं रामराजा इतइँ, हैं लाला हरदौल।
आकें देखौ ओरछा, तुमें  हमारौ कौल।।
        ***
             - अंजनी कुमार चतुर्वेदी , निवाड़ी 
*2*
जा बुन्देली है धरा,इतइॅं भयेते व्यास।
ग्रंथ धार्मिक जो लिखे, एक भागवत खास।।
                 ***
                   -"रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर", ललितपुर 
*3*
इतइंँ आयते राम जी , रैगय बारा साल ।
चित्रकूट की भूँम खोँ , कर गय मालामाल ।।
       ***
           - प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 
*4*
इतइँ रैत्ती जानकी,लव कुश सुत हर्षाय ।
माइ करीला धाम ये,जग में जानौं जाय ।।
           ***
              -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*5*
इतइँ आप हैं हम इतइँ,लिखत इतइँ मन खोल।
गुर  जैसी  गुरयाइ- से,सब बुंदेली  बोल।।
                 ***
                   - सुभाष सिंघई, जतारा 
*6*
नर -तन बरया कें मिलो,चलियो सूप सुभाव।
सुरग -नरग दोई इत‌इ, करनी के फल पाव।।
               ***
                 -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी", हटा
*7*
इतइँ सुरग अरु नरक है, इतइँ पुण्य अरु पाप। 
इतइँ करम वरदान हैं, इतइँ करम अभिशाप।।
                ***
                   -संजय श्रीवास्तव,मबई
*8*
धन दौलत सामान सब, इतइं धरौ रै जात।
ढंग सें जी लो जिन्दगी, काहे खों इतरात।।
            ***
        - वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*9*
माया जुरी अनीत की,इत‌इ धरी सब रैय।
हवन होंम उर दान की,पुँजी संग में जैय।।
               ***
           - प्रभु दयाल श्रीवास्तव'पीयूष', टीकमगढ़
*10*
कितनउ हुसयारी करै,कितनउ करै उपाय।
अपनी करनी को इतइ,फल सबखौं मिल जाय।।
              ***
            -तरुणा खरे'तनु',जबलपुर
*11*
इतइ रचे भगवान ने, सुरग नरक के धाम।
करनी जो जैसी करे,फल देेतइ श्री राम।।
             ***
                -आशा रिछारिया (निवाड़ी)
*12*
निस्फल कबउँ न मानियों, असगुन सगुन बिचार।
जे फलदाई हैं इतइँ, समय करम अनुसार।।
                ***
           - डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा 
*13*
इतइ चले गये बालमा, बिना बताएं बैंन।                      
  नैंनन निंदिया आत नइ, कटे न काटी रैंन।।
           ***
                 -मूरत सिंह यादव,दतिया 
*14*
करम करौ नीके सदां, नैकें चलियौ रोज।
इतइं सरग अरु नर्क है, मिटा लैव तुम खोज।।
            ***
                     -प्रदीप खरे 'मंजुल',टीकमगढ़ 
*15*
सुरग नरक हैं सब इतइँ, पावै निज निज कर्म। 
करनी करकें पाइयौ, इतइँ मुक्ति का मर्म। 
              *** 
                  -रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां

*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़* 
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
************
[17/03, 8:14 AM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-अथौली जोर /संध्या समय 
चलै सुदामा श्याम सें, मिलन अथौली जोर।
भूके प्यासे रात भर,निगें बिकट जी टोर।।

जीजा जू ससरार खों, निगे कथौली जोर।
गैल भूल गय गेंवॅंड़ें,मॅंजया डारी खोर।।

सुरू अथौली जोर सें,करौ न साजौ काम।
रूठ जात सब देवता, और होत बदनाम।।

गंगा जी की आरती, होत अथौली जोर।
कीर कोकला झूम रय,वन में नाचत मोर।।

बंद किबारे नें करौ,कभ‌उॅं अथौली जोर।
रूठ जात हैं लक्ष्मी, प्रेम देत हैं टोर।।
            भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[17/03, 10:37 AM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार 17 मार्च 2025
दोहा शब्द -अथौली जोर/संध्या समय
      ‌ ‌‌          1
किशन राधिका के घरै,गए अथौली जोर।
मिले प्रेम सें जायकें,भयो न तनकउ शोर।
                 2
पैलउं पैलां पांवने,आय अथौली जोर।
सारी सरहज संगमें,हनकें करीं किलोर।
                 3
नीर अथौली जोरको,भुनसारे की न्याव।
रात दिना मडरात है,कोउ रोकना पाव।
                 4
भोर अथौली जोरजो,लें सतगुरुको नाम।
अबढारे बनजात हैं, उनके बिगरे काम।
                 5
हिरनाकुश के डरनसें,भवना अत्याचार।
 उयै अथौली जोर में,दव बिशनू ने मार।
            मौलिक -रचना 
      एम एल त्यागी खरगापुर
[17/03, 11:20 AM] Jaihind Singh Singh Palera: सोमवार दिनांक 17.03.2025
बुन्देली दोहा दिवस,बिषय-अथौ
*************************
                  //1//
रोज अथौ बेरा  बनें,भोजन महकै थार।
ब्यारी सें बलवान हो,उनै न चडै़ बुखार।।

                       //2//
अथौ बियारी दूद में,करै न रोगी होय। 
निन्नै पानी जो पियै,हो बल बुद्धि न खोय।।

                        //3//
भोर अथौ दुपरै सदा,भज मन श्री गोपाल।
बिना मौत मर पायना,ऐंगर गसै न काल।।

                    //4//
नातेदारी में सदा,अथौ पोंच जो जाय।
तो अपने सतकार में,कमी कभ‌ऊॅं न पाय।।

                       //5//
घर सें  जो क‌उॅं जाव तौ,लौट अथौ तक आव।
रात सफर खों त्याग दो,जीवन भर सुख पाव।।

जयहिन्द सिंह जयहिन्द 
पलेरा जिला टीकमगढ़ 
मध्य प्रदेश
[17/03, 12:37 PM] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहा -अथौ/ अथौरी(संध्या,शाम)*

हो गइ अथौ अथाइ पै,जुरै हतै सब पंच।
बातें भी नोंनी ‌भईं,#राना सब सौ टंच।।

#राना हो गइ है अथौ,लौटे घर‌ खौ ढ़ोर।
मिले शराबी गैल में,जात‌ कलारी ओर।।

पंछी लोटे लख अथौ,#राना अपने नीड़‌।
मानव फुरसत नइँ दिखत,खूब जौर रय‌ भीड़।।

का लेने का चाउनें ,नहीं अथौ का काम।
बिरियाँ कौनउँ हौ़‌य‌ जू ,#राना जप लो राम।।

जीवन की हौबे अथौ,#राना  पैला चेत।
पछताबे को काम नइँ,चिड़ियाँ चुग गइँ खेत।।
         *** दिनांक -17.3.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[17/03, 2:37 PM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली विषय - अथौ , ( शाम )

बैरा हो गइ है अथौ  , ढिलया रय‌ है काम |
थकै दिखै मजदूर‌ सब , चाहत है आराम ||

जैनी जन देखत अथौ  , अंथउँ करबे जात |
दाना कौनउँ अन्न कौ ,  नहीं रात खौ खात ||

सब दिन करतइ काम है , खेतन डटे किसान |
देख अथौ घर  लौटतइ ,  बारे    बूड़े   ज्वान ||

हो गइ बेरा ‌है अथौ , जुर    गइ भीड़ अथाइ |
चर्चा को है अब विषय  , कीकी भगी  लुगाइ ||🥰🙏

देख अथौ हम ले कलम , लिखतइ ‌रातइ छंद |
पर पंचायत छोड़कैं ,      मन से लें आनंद ||

सुभाष सिंघई
[17/03, 6:05 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय अथों 
                   1
खेतन में ठाणी फसल, दिन भर करी  कटाइ।
अथों भयी सो मेंड पै, पर रय बिछा चटाइ। 
                      2
करबैं दिन भर चाकरी, लौट अथों घर आय। 
घरबारी ब्यारी बना, रुच सें रई जिबाय। 
                       3
गइया छोरी थान सें, हाँक दई वा हार। 
लौट अथों घर खों भगी, बछडै रई पुकार। 
                         4
भोर दुपारी कड गयी, कडी अथों की जोर। 
लौट पिया घर आय नइँ, देखत ठाँडी दोर। 
                          5
तीरथ करबे नन्द गय, छोड छाड सब  काम। 
भोर अथौली जोर नित, भजबें सीताराम। 
रामानन्द पाठक नन्द
[17/03, 6:37 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- अथोली (बेला)
(1) रहो गरीबी हाल जब,
      हालत ती कमजोर।
      भुन सारे खा लव अगर,
      नही अथोली जोर।।
(2) तको अथोली जोर लो,
      अदपेटा रय आय।
      दिन दिन भर भूंकन मरे,
      करी मजूरी जाय।।
(3) हैरानी मुड़या रये,
      लगी अथोली जोर।
      ब्रजभूषण जइयो चले,
      मानो होतइ भोर।।
(4) रेगय किल किल ठाँन कें,
      काय अथोली जोर।
      करत हाल में चाल हो,
      देहो की खो खोर।।
(5) लगी अथोली जोर है,
      तुम तो रय सुसवाय।
      ब्रजभूषण देखो उठो,
      अबे सोव नइ जाय।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[17/03, 10:22 PM] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी "अथौ"अथौरी" "अथौली जोर "(संध्या/शाम ) बुंदेली दोहा   (261)
                     (01)
खिचउँ पनइँयाँ पैर कें,भर बसकारैं जात ।
"इन्दु"अथौली जोर गय,ससुरार में दिखात  ।।
                  (02)
अथौ जोर मइँया भुअन,दरसन करबै जायँ ।
मची भीर "दाँगी"उतै,मइया सैं फल ल्याय ।।
                    (03)
हर सुमवारै जाय जो,अथौ भोर की पार ।
खुशी राखियौ चैनुआँ,"इन्दु" शरन तुम्हार  ।।
                     (04)
अथौ आ गये पावनै,कालौं तुमें बतायँ ।
"दाँगी"हैं सबरे घरन,हाले फूले रायँ ।।
                     (05)
ठांड़ी फसलें खेत में,अथौ काटबैं
जायँ ।
"दाँगी"बिन नैं होत जो,सबखौं गैल बतायँ ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
***
[15/03, 10:58 AM] Shyam Rao Dharampurikar Gunjbasoda: बुंदेली दोहा लेखन प्रतियोगिता - 207
शनिवार, दिनांक - 15/03/2025
बिषय -' अतर ' (इत्र )

अतर-कान फुहिया खुसी, सबइ जगा महकात।
बातन से ऊकी सबइ, जानत हैं औकात।।

-
श्यामराव धर्मपुरीकर
गंजबासौदा, विदिशा म.प्र.
[15/03, 1:01 PM] Subhash Singhai Jatara: विषय‌- अतर 

अतर महकतइ जब जितै ,खुश हो जातइ लोग |
आतइ कछु   मुस्कान है   ,जैसें  पा  लवँ  भोग |

समधी पै छिड़कौ अतर , मल दइ लाल गुलाल |
समदन   घूँघट डार  कै ,      तान गयी है गाल ||

जीजा होरी खेल रय , अतर  लयै  है  साथ |
सारी  खौ  पुटया   रयै ,  सूँगौ    मौरे  हाथ ||

अतर लगा कै घूम रइ , जीजा की  साराज |
रंग नहीं डलबा रयी ,  कै  रइ  हम  नाराज ||

अतर डली हम ल्याय है   , भैया   लाल गुलाल |
हँस गा कै अब  सब  मिलो , नौनें राखौ ख्याल ||

सुभाष सिंघई
[15/03, 1:27 PM] Asha Richhariya Niwari: दोहा दिवस प्रदत्त विषय #अतर
🌹
नौ नौ सिसियां अतर कीं, ध्वजा नारियल हाथ।
जाय मनइये माइ खों,चरनन धर दो माथ।।
🌹
अतर धरो है ऊपरै,भले न पोंचे हात।
तौऊ महके रात दिन,अपने गुन फैलात। ।
🌹
बड़ीं बड़ीं जुलफें धरें,झटकें बारम्बार। 
अतर फोआ कानन लगे,छैला फिरें बजार।।
🌹
अतर लगो कुरता डटें, तेल फुलेल लगांय। 
भांग पियें मस्ती करें,अलन गलन इठलांय। ।
🌹
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 🌹🙏🏿🌹
[15/03, 2:21 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: शनिवार 15 मार्च 2025
दोहा शब्द-अतर
   ‌            1
अतर लगाकें जा डटे,भइया हम ससरार।
हांतन पैं झेलन लगे,जुरकें नातेदार।
               2
सास कात कै पावने,आज भौत माकात।
जीजा अतर लगांयहैं,सारो समझा कात।
                   3 
अतर बैंचने हो तुमै,थैला खोल दिखाव।
पैलां गदिया पै धरो,कैसो लगत चिखाव।
                 4
लैलो साजो अतर है, नोने सें मुलयाव।
रोज मजेसे बैठकें,चुपर फुलकिया खाव।
                 5
कंउ दावतमें जांवतो,अतर लगाकें जात।
जो देखो सो आनकें,मोसें चिपको रात।
मौलिक रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[15/03, 3:01 PM] Manoj Sahu Nidar Narmadapuram: 15 मार्च 2025
विषय:-अतर
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
बास अतर की प्रेम सी, होले होले आय।
जित्ते रगड़ो मन मिले, उत्ती बास बढ़ाय।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
फुआ अतर कौ कान में, तन मन गजब गंधाय।
चंदन खस चय केवड़ा, सबकी बास सुहाय।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
खुशबू अतर फुलेल की, मन खों मगन बनाय।
जै पै सांचे प्रेम की, गंध अनूठी आय॥
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अतर बिना सब फूल यूं, मानौ रस बिन गन्न।
मन मुरझा जइहै उतै, नेह ना होवै मन्न।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अतर टिपारी में धरौ, गांव गली महकात।
सत करमों की बास सुइ, सबके मन खों भात॥
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मनोज साहू 
माखन नगर, नर्मदापुरम
[15/03, 4:50 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुन्देली दोहा ,, विषय,,अंतर ,,
*************************************
बतर अतर को काँ धरोँ , दिन डूँबो भइँ रात ।
अब "प्रमोद"होनेँ नही , कब्भउँ सुनो प्रभात ।।

अतर प्रेम को छीँन केँ , हंँस रय मान्स बिलात ।
हे ईश्वर जिन छीँनियो , रोटी सब्जी भात ।।

तेल चमेली मूँढ़ में , धनियाँ अतर लगाँयँ ।
लाली काजर पोतकेँ , जारइँ गुटका खाँयँ ।।

मेला खोँ धनियाँ सजी , डारेँ अतर फुलेल ।
बजनउंँ पायल पैर केँ , पारेँ भौत चमेल ।।

फुवा अतर को कान मेँ , खोँस लेत कइँ लोग ।
फिर"प्रमोद"माकात रत , जीको जैसो जोग ।।
*************************************
      ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[15/03, 6:07 PM] Taruna khare Jabalpur: अतर, शब्द पर दोहे 


पैलां ब्याव बरात को, स्वागत होत बिलात।
सिसिया मैं भर खैं अतर,सबरन पै छिटकात।।

सूट-बूट पैरैं पिया,टाइ गरे मै डार।
अतर लगा खैं हांत मै,सैंया चले बजार।।

दो सिसियां लै खैं अतर,मां के मंदिर जायँ।
एक सकारैँ दूसरी,संजा दई चड़ायँ।।


सिसिया होबै अतर की,खुली कहूं रै पाय।
बाहर बैठे मान्स खां,तुरत बास आ जाय।।

कपड़न मै तन्नक अतर,छिटक चलै जो यार।
गमकत आबै दूर सैं,घर हो या बाजार।।

तरुणा खरे'तनु'
जबलपुर
[15/03, 6:35 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा-अतर (इत्र)*

अतर लगा कैं कान में,गऔ धुरइँ ससुरार।
#राना सारी कात है,जीजा खुश्बूदार।।

अतर जितै भी हो रखौ,दैतइ भौत सुगंध।
हवा मस्त भी रात है,#राना ज्यौ मकरंद।।

अतर भौत इतरात है,#राना दे पैचान।
उन्नन पै जब दो लगा,खुश हौतइ मैमान।।

अतर तुमारी रीत पै,#राना है बलिहार।
गोरी का भी तू सदा,करता है शृंगार।।
       *** दिनांक -15-3-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[15/03, 7:08 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- अतर
(1) फूइया खोंसे कान में,
      मोंमे चापे पान।
      अतर डार कंगी करें
      घूमे फिरे जुवान।।
(2) झक झकात उन्ना डटे,
      ऊँची मानत शान।
      मेला मे घूमत फिरे,
      ढूडत अतर दुकान।।
(3) अतर लगावे के हते,
      पैल बड़े शौकीन।
      अब तो भोतइ कम दिखे,
      ब्रज सौ मे दो तीन।।
(4) असर कसर फिर काय की,
      अतर छिड़क दव जाय।
      ब्रजभूषण स्वागत करें,
      सवको मन भर जाय।।
(5) अतर चड़े भगवान पे,
      ऐसो सुने विधान।
      जल्दी खुश हो जात है,
      भोले नाथ महान।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[15/03, 8:46 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 207*
दिनांक -15-3-2025-बिषय- अतर (इत्र)
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

प्रविष्ठियां 
*1*
बोली रखियो जू अपुन,कहें अतर -सी लोग।
बैठें लेंगर सब जनै,समझें अच्छो योग।।
                 ***
               -सुभाष सिंघई, जतारा 
*2*
दुश्मन सौ लगबै अतर, रंग करेंचा घाॅंइॅं।
जिनके पिया विदेश में,‌हृदय दुखे ज्यों चाइॅं।।
               ***
          -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*3*
बुन्देली छैला डटें,कुरता और सराइ।
फुआ अतर कौ कान में,देबै लगो दिखाइ।।
       ***
             - डॉ. देवदत्त द्विवेदी,बड़ामलहरा 
*4*
जीनेँ शिव जी ढारकेँ,फूला अतर चढ़ाव।
पढ़- लिख बो आँगेँ बढ़ोँ,जीवन को सुख पाव।।
          ***
      - प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 

*5*
लगा अतर बौ बैठ गव,जा पनचन के बीच।
सब बोले बेकार जौ,अब मच जाने कीच।।
           ***
             - वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*6*
खुशबू अतर अबीर की,भांत भांत के रंग।    
 राधा होली खेलतीं, सांवरिया के संग।।
             ***
          - मूरत सिंह यादव,दतिया 
*7*
अतर प्रेम को होय तो, महकत रत किरदार। 
बोलचाल मीठो लगत, मधुर लगत व्यौहार।।
              ***
          संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
*8*
बजी बाँसुरी श्याम की, रीझत आये ग्वाल।
प्रेम  अतर  में  भींज  कें, राधा भईं  निहाल।।
                ***
           -विद्या चौहान, फरीदाबाद 
*9*
जीजा अबकूं कौनसो,अतर लगाकें आय।
 एंगर बैठो जायना,दूरइ सें माकाय।।
              ***             
        -एम. एल.अहिरवार 'त्यागी',खरगापुर
*10*
है सोला सिंगार में,अतर एक सिंगार।
सजना होबैं ना घरै,तौ सजना बेकार।।
           ***
-आशाराम वर्मा "नादान"पृथ्वीपुर
*11*

सत संगति है अतर सम,तन मन महका देत।
गुरू मंत्र यह जानिये,सकल पाप हर लेत।।
               ***
                -आशा रिछारिया,निवाड़ी             
*12*
अतर तेल कन्नौज का,भौतइँ खुशबू दार ।
मँहकत है ये दूरलौं,खुश होतइ नर-नार ।।
              ***
          -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*13*
लगा चमेली कौ अतर, जीजा गय ससरार।
स्वागत सारी नें  करौ, मौं  पै कीचर ड़ार।।
             ***
          - अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 
*14*
तुम हो पूरी अतर सी,मैंने ली पहचान।
आँखन में अमरत बसै,मुख है कमल समान।।
                        ***
                -परम लाल तिवारी,खजुराहो
*15*
पैलां ब्याव बरात को, स्वागत होत बिलात।
सीसिया मैं भर खैं अतर,सबरन पै छिटकात।।
                     ***
              -तरुणा खरे 'तनु', जबलपुर
*16*
रोजइ बढ़तइ जा रओ, धीरे धीरे रोग।
अतर लगा इतरारये,ओछे ओछे लोग।।
                    ***
                          -भास्कर सिंह माणिक,कोंच
*17*
छिप्रा तट उज्जैन में, महाकाल कौ वास। 
भस्मी के संगै अतर, आबै उनखों रास।।
                *** 
          -रामानन्द पाठक 'नन्द', नैगुवां
***
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
[10/03, 9:45 AM] Pramod Mishra Baldevgarh: बुंदेली कुंडलिया ,, विषय ,,अतपर,,
*************************************
रुकमन गइँ पूजा करन , सुन्न सान है गैल ।
अतपर सेँ लेगय उठा , बने कनइया छैल ।।

भूँत -प्रीत अतपर उड़ेँ , कछूँ निगेँ इतरायँ ।
दूला बैठोँ बैल पै , साँप गरेँ लटकायँ ।।

अतपर में लटकेँ रहेँ , हरिश्चंद्र के बाप ।
जिनके मुख की लार से , करती नदी विलाप ।।

अतफरिया अतपर उड़त , जबलो रावै घाम ।
फिर "प्रमोद"खाटन परेँ , कुकरयाइँ जब चाम ।।

तिरप-तिरप धनियाँ करेँ , अतपर निगत दिखायँ ।
इठलाती मेला चलीँ , लाली लाल लगायँ ।।

धनियाँ होरी खेलवे , लैकें कड़ी गुलाल ।
अतपर में आ गय पिया , सोउ बदल गइँ चाल ।।
*************************************
  ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[10/03, 10:26 AM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार 10 मार्च 2025
दोहा शब्द -अतफर(अदयामें)
                   1
जिनके पुरखा नइं तरे,अतफर लटकै रात।
करय दिनन मे लौटकें,फिर खाबे हां आत।
                    2
अकल अजीरन है जिने,कछू नहीं औकात।
बे अतफर में बडनकी,काटत हरदम बात।
                     3
गर्राकें जो काउखां,अतफर देवें छोड।
बगर मौतके मरतहैं,होत कैन्सर कोड।
                      4
अतफर छोड पडाइ जे,फिरत रहे इठलात।
फिरत गुलामी करतबे,खबर करें पछतात।
                      5
जो अतबर में जानकें,दगा काउखा दैय।
त्यागी सांसी मानियों,बो ना सुखसे रैय।
           मौलिक -रचना 
      एम एल त्यागी खरगापुर
[10/03, 10:33 AM] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहा-अतपर (बीच में)*

#राना अतपर में टँगे,आज काल के  लोग।
नयीं पुरानी रीतियाँ,नौनें बुऱ‌य‌‌‌‌ सुयोग।।

कछू जनन  के हाल हैं ,अतपर ‌की  कत  बात।
#राना बनतइ  सेर ‌ है,मार  हवा  में लात।।

#राना करत उलात‌ जब,अतपर के हों  काम।
पूरे दिन बीदे रहत,मिलत ‌नहीं आराम।।

लरका ‌बारे है‌ चतुर,अतपर  में दवँ‌ टाँग।
नइँ बिबाह की हाँ भरत‌,#राना  माँगत ‌माँग।।

अतपर के जो  काम है,#राना  रखो ख्याल।
कै पूरे-कै छोड दो,राखौ ‌ मन में ताल।।
             *** दिनांक -10-3-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[10/03, 11:44 AM] Subhash Singhai Jatara: अतपर (बीच में)

अतपर के बे काम रत , जीमें  मचत उलात |
आदे पादे भी ‌दिखत ,   ‌‌‌ ‌‌नईं सार भी रात ||।

अतपर कौ बतकाव भी , भौत तासतइ मोय |
सार  कछू निकरत नईं , समझाबे  ना  कोय ||

पंचायत निपटत  नहीं , अतपर  में रत  बात |
लरन लगे लबरा जिते  , देन. लगत‌‌  हैं घात ||

छंद न अतपर को  लिखो , लय में रखो  विधान  |
करत कोउँ  संकेत   तो  , गुनौ ‌  तनिक‌ श्रीमान ||🙏

ज्ञानी है अब सब जनै ,   सबखौं   करत  प्रनाम  |
अतपर में   ना बोलनें   , रत मौखों अब  ध्यान ||🙏

सीखा दोहा रख  लगन ,बे  लिखतइ  निरदोष |
पर अतपर  में जो रहत , उनै  न  आबे ‌  होश || 🙏

सुभाष सिंघई
[10/03, 3:20 PM] Dr Renu Shriwastava: दोहे विषय अतपर

राज तिलक हो रौ जबै, 
अतपर में भइ ठेन। 
कैकइ ने वर माँग लये, 
उये परी न चैन।। 

अतपर में बनके शिला, 
डरी अहिल्या नार।
राम चरण की धूल से, 
भव सागर भइं पार।। 

मोड़ी बारे मांग रै, 
मोटी रकम उधार। 
अतपर में शादी टंगी, 
कैसे लगहैं पार।। 

अतपर में शिक्षा रहै, 
कितउ पार ना पाव। 
नोनी मेनत कर पढ़ौ, 
जीवन सफल बनाव।। 

अतपर में तो कुम्भ जब, 
भगदड़ मची बिलात। 
कछु मरे कछु कुचल गये, 
भीड़ न उते समात।। 

              डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
                सादर समीक्षार्थ 
                 स्वरचित मौलिक
[10/03, 3:24 PM] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी बिषय-"अतपर"
अथपर,(बीच में) बुंदेली दोहा 
                    (01)
ऊपर सैं बँदरा गिरौ,अतपर पकरी डार ।
"दाँगी" लेत उचाट फै,करबै मंजिर पार ।।
                   (02)
सीता खौं ढूँड़न चले,अतपर करें उड़ान ।
"दाँगी"सागर लाँघ कैं,ढूँड़त रय हनुमान।।
                      (03)
आग लगी जब पूँच में,गय अतपर हनुमान ।
लंका सबइ जला दई,"इन्दु" गात गुनगान ।।
                    (04)
अतपर काटैं बात जो,बनते चतुर सुजान ।
उनकी न रय कितउँ बकत,दाँगी"ढीठ महान ।।
                      (05)
छाति फार हनुमान नै,दव भक्ति कौ सबूत ।
अतपर सीता राम खौं,"दाँगी" भाव अटूट ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[10/03, 6:56 PM] Ramanand Pathak Negua: बुन्देली दोहा बिषय अतपर 
                 1
गाँव गली में नट- नटी, इक दूजें रख मेल। 
अतपर रस्सी नाचबैं, सबै दिखाबें खेल। 
                  2
अदजल गगरी की छलक, ऐसउ अतपर ज्ञान। 
डींगें हाँकत चाय जाँ, खुद खों ग्यानी मान। 
                  3
अतपर टाँगें कृष्ण खों, छींकौ तक कें ग्वाल। 
दइ माखन खों काड कें, खा पी हो रय लाल। 
                   4
बिना ग्यान अतपर बकें, निज सम्मान गवाय। 
चार जनों के बीच में, मूसर बौ बन जाय। 
                    5
बिजली फाल्ट सुदारबे, मिस्त्री अतपर जात। 
जो तनकइ सी चूक हो, प्रानन पै बन आत। 
रामानन्द पाठक नन्द
[10/03, 7:57 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय - अतपर
(1) देखो राजा तिसंकू,
      सुरग पोंच नें पाय।
      अतपर में लटके रहे,
      मुनिवर के पोंचाय।।
(2) अतपर में नगरी बनी,
      अतपर राज चलाय।
      ब्रजभूषण नईया पतो,
      राजा को जो आय।।
(3) अतपर हम झेलें फिरे,
      तो ने मन खों भाय।
      भोगो अपने करम फल,
      मोरो नाम लगाय।।
(4) जादा अतपर नें निगो,
      शान नही बगराव।
      समय करोंटा लेत है,
      धरती पाँव थुवाव।।
(5) सुनत गुनत नईया सही,
     अतपर काटत वात।
     लुपर लुपर ठेंकें करत,
     जाने कय बुलयात।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।

दिनांक -8-3-2025
[08/03, 10:27 AM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: शनिवार 8 मार्च 2025
दोहा शब्द -अतपइ(आदो पउआ)
                    1
सौदा कें संग पिया सें,मीठो तेल मंगाव।
अतपइ भर होने नहीं,पउआ भर लैआव।
                    2
अतपइं रोटी छोडकें,दैन चलीगइ दान।
मडो चून मों दाबकें,लैगव कुत्ता आन।
                    3
पांच किलो चांदी हती,हते रुपइया ऐंन।
अतपइ भर सोनो हतो,सबरो मिटगव‌बैन।
                    4
पैल परी से नापके,खूब बिचतरव तेल।
अतपइ पउआ देतमें,लगत हतीना झेल।
                     5
अतपइ अतपइ लै लियो,तुम आपसमें तौल।
गांस गुडी ना राखियो,कै दइ धरकें कौल।
मौलिक रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[08/03, 1:55 PM] Hariom Shriwatava Bhopal: दिनांक - 08.03.25
बुंदेली दोहा
विषय - अतपइ/ आधापाव
---------------------------------
1-
बंद चलन सै हो गए, अधपइ पौआ सेर।
किलोग्राम कुंटल चलें, नए बाँट चौघेर।।
2-
पैलें जो अदपइ हती, अब वौ आधापाव।
कैउ अबै भी पाव में, बता देत हैं भाव।।
3-
तोला माशा सेर मन, अदपइ और छटाक।
बूढ़े-आड़े  आदमी, बतला  देत  सटाक।।
4-
आज प्रणाली दाशमिक, अपना रव संसार।
अदपइ पौवा सेर मन, को जानै अब यार।।
5-
सब चीजन में होत हैं, कभउँ-कभउँ बदलाव।
अदपइ को अब जान रव, होत किलो को भाव।।

*हरिओम श्रीवास्तव*
[08/03, 4:10 PM] Subhash Singhai Jatara: विषय - अतपइ (आधा पाव)

अतपइ भर कौ जू  नहीं , करत सेर की बात |
जैसे पलना में परौ ,    लरका   घालत  लात ||

अतपइ अद्दा आजकल , चमचन कौ धर रूप |
राजनीति में घुस‌ गये  , पा  रय   उजली  धूप || 

अतपइ भर गुर चौंट ‌लो  , जितै मनन कौ ढ़ेर ||
कौउ न रौकत आदमी , लुचत जात   है ‌  सेर ||

अतपइ  भर को  बाँट भी , रत तो गोल मटोल |
पलवाँ पै चढ़ जात तौ , रखत  हतौ निज मोल ||

चल सुभाष हौरी खिले  , अतपइ भर ले भाँग |
बाँटो‌  घोटो ‌खाव जू ,   नशा  चढै  सब  आँग ||

सुभाष सिंघई
[08/03, 4:13 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुंदेली दोहा ,,विषय ,अतपइ,, आधा पाव,,
***********************************
आधा तौला भाँग में , अतपइ दूद मिलाव ।
होरी है सो गुर मिला , पियो "प्रमोद"पिलाव ।।

अतपइँ भर दे राखियो , भुज्जी गउँ को दूद ‌।
दवा खता की खावनेँ  , अबइँ मिटानेँ गूद ।।

अतपइँ भर घोरेँ धरेँ , भौजी करिया रंग ।
किन्छा दैरइँ गाल पै , हुरयारन के संग ।।

अददा पउआ असेरा , अतपइँ पौन छटाक ।
सेर सवा पनसेर सेँ , हो गइँ तौल पटाक ।।

हरदी चूना घोर केंँ , अतपइँ तेल मिलाव ।
फिर"प्रमोद"होरी खिली , तनक-तनक चुचवाव ।।

अतपइँ भर दइँ ल्याँन केँ , बासी रोटी खाइँ ।
अब "प्रमोद"साता परींँ , उतरी ताप हमाइँ  ।।
***********************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[08/03, 4:21 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा- अतपइ (आधा पाव)*

हती तखैया सींक की,पलवाँ डाड़ी काठ।
अतपइ अद्दा सब हतै,#राना हूटा पाठ।।

पउवा दारू के मिलें,# राना औगुन हाल।
अतपइ में चढ़ जात है,बहकत मन के ख्याल।।

अतपइ जानो आजकल,सुनो सबा सौ ग्राम।
सबइ पुराने बाँट‌ नें,#राना‌ लवँ विश्राम।।

मँहगी चीजें जौन है ,#राना अतपइ लेत।
पुरा परोसी माँगवे,तब चुटकी भर देत।।

अतपइ भर जब हींग हम,घर में लेकें आयँ।
#राना डिबिया में रखी,पूरौ गेह गुगायँ।।
***दिनांक -8-3-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[08/03, 7:15 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय - अपतई (अपतइ)
(1) देखे मे अपतइ भरे,
      वने फिरत है शेर।
      ब्रजभूषण ईमान से,
      जो कैसो अन्घेर।।
(2) खाव पियो खेलो अबे,
      कर ले ठीक दिमाक।
      ब्रजभूषण फिर जूजियो,
      तुम हो अपतइ याका।।
(3) उपतइ के सामू हुरत,
      घेरे फिरत सियात।
      हो तो जू अपतइ भरे,
      वात करत पउआक।।
(4) अटको है अपतइ भरो,
       हो वे एक छटाक।
       ढेर भरो चाने नही,
       खाने अवइ खुराक।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[08/03, 7:20 PM] Ramanand Pathak Negua: बुन्देली दोहा बिषय अतपई 
                       1
लाखन के ब्यापार में, जिया बिदौ दिन रैंन। 
घर में मनन गडंत है, अतपइ भर ना चैन। 
                       2
जो जन आलस छोड कें, निसदिन करत कबार। 
अतपइ पउआ जोर कें, बे कर लेत हजार। 
                        3
जाँय मजूरी खों लला, दिन भर ना आराम। 
दूध मठा अतपइ पियें, आँसै ना बौ घाम। 
                         4
मन भर कौनउँ चीज में, अतपइ पाव  मिलाँय। 
लेबा खों है का फरक, निज परलोक नसाँय। 
                           5
गडियाँ घुल्ला लेत हैं, नंद पसेरी चार। 
अतपइ पउआ होत का, भौत बडी ससरार। 
रामानन्द पाठक नन्द
[08/03, 8:19 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -206*
  विषय - *अतपइ/ अतपई*
संयोजक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*
*1*      
पद,पइसा भरपूर है, सुख सुविधाएं ऐन।  
काम क्रोध मद लोभ वश, अतपइ भर नइं चैन।।
             ***
                  -संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
*2*
कीखों कात छटाँक हैं, अतपइ  पौआ  सेर।
पीढ़ी नइ जानैं नहीं, समय-समय को फेर।।
           ***
                   -अमर सिंह राय, नौगांव 
*3*
माई की ममता बड़ी, खुद घी कबहुँ न खाय।
अतपइ अतपइ जोर कें, लरका खों पोंचाय।।
           ***
           -आशा रिछारिया,निवाड़ी 
*4*
अतपइ भर पेरा धरें, धरें नारियल एक।
माता नाती दै दियौ, कै रइँ  माथौ  टेक।।
              ***
         -  अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी 
*5*

अतपइ भर घी मिलततौ,एक टका में रोज।
आज ओइ कौ असर  है,मौं पै है जौ ओज।।
               ***
           - रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर",ललितपुर 
*6*
अतपइ भर गुर रोजको, रोटी खाकैं खाय।
लाल परै बो सेब सो,घुरवा सो हिननाय।।
             ***
          -श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा
*7*
धना रीझ गइ है पिया,महिला दिवस मनाव।
पउआ,अतपइ लान खैं, मीठा मोय खुवाव।।
          ***
                 -तरुणा खरे'तनु',जबलपुर
*8*
सेर असेरा अतपई, तोला और छटाक। 
रत्ती भर गुमची धरें, करबें तौल खटाक।।
           ***
            -रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां
*9*
घरवारो मोरो जिजी,उरठैंकें बुलयात।
 पउआ भर मांगो कछू,अतपइ भर लैआत।।
               ***
            
              -एम. एल. 'त्यागी', खरगापुर
*10*
अतपइँ भर गौ दूद मेँ , घी गुर दही मिलाव ।
तुलसी दल डारों शहद , पंचामृत कहलाव ।।
            ***
        - प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 

*11*
अतपइ भर सें होत का , दूध देव इक सेर।
जलदी जलदी नाप दो, हो ना जाये देर।।
            ***
                  -वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*12*
अतपइ भर ही चावनैं,घीव नाप कें देव ।
हौम लगानैं होलिका,नगद दाम जे लेव ।।
         ***
            -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*13*
अतपइ पउवा  सेर भर , अद्दा  देखे  बाँट।
और पसेरी मन तके, चौरी  पैला छाँट।।
            ***
                 -सुभाष सिंघई , जतारा 
      ****
*संयोजक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965
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दिनांक -3-3-2025
[03/03, 9:39 AM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा बिषय -अकूत (बहुत अधिक)*

किले पुराने खंडहर ,सब  कत #राना भूत।
कितउँ मिलत धन है गड़ौ ,#राना भौत अकूत।।

जौरत रत है सेठ जी,पइसा जितै अकूत।
#राना भड़या टौरतइ,तारौ भी  मजबूत।।

गुन तो थौरे ना दिखें,अवगुन दिखैं अकूत।
ऐसे नर संसार  में,#राना जिन्दा भूत।।

जिनकी बोली रस भरी,मीठी  लगै अकूत।
बे  नर #राना जानियौ,है ईश्वर के दूत।।

भगत सुनो प्रहलाद की,भक्त़ी रही अकूत।
नरसिँग बन दरसन दिए,#राना जय अवधूत।।
*** दिनांक -3-3-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[03/03, 9:54 AM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-अकूत
भोले की बारात तौ, भैया साब अकूत।
खब्बीसा भारी हते,और अनेकन भूत।।

हती अकूत भारी मन‌इ, गंगा जी के तीर।
दैसत खा गव कुंभ भी,देख- देख कें भीर।।

नेता अधिकारी धरें,संपत आज अकूत।
वोट भीख सी माॅंग कें, फिर मानत हैं। छूत।।

कट रय जीव अकूत हैं, बैठे मौन नरेश।
गौ हत्या भी बंद हो, सनातनी यह देश।।

नदी  बेतवा केन कौ,है अकूत विस्तार 
चित्रकूट अरु ओरछा, बुन्देली कौ सार।।
                भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" 

[03/03, 10:26 AM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुन्देली दोहा ,,विषय,,अकूत,,
*************************************
है अकूत बल बुद्धि का , जिनके तन मेँ वास ।
चल "प्रमोद"उनकी शरन , श्री बागेश्वर खास ।।

धरी समुन्दर के हृदय  , दौलत दृव्य अकूत ।
धरती सैँतत बीज कइँ , मिलेँ "प्रमोद"सबूत ।।

अंग्रेजन ने लूट लइँ , दौलत पनी अकूत ।
अब "प्रमोद"उपजे इतइँ , भड़या कुल्ल कपूत ।।

जोरेँ धरेँ अकूत धन , फिर रय बने गरीब ।
है "प्रमोद"संसार में , सबको अलग नसीब ।।

कइँयक नेता लूट केँ , सम्पत धरेँ अकूत ।
जब "प्रमोद"मन्ने इनेँ , इतइँ रने बन भूत ।।

धनियाँ पनियाँ खोँ कड़ेँ , पैजनियाँ खनकायँ ।
लख अकूत शोभा बनक , खड़ेँ "प्रमोद"ललायँ ।।
***************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[03/03, 10:41 AM] Subhash Singhai Jatara: पइसा धरैं  अकूत हैं  , सबरे   धन्ना   सेट |
लूटत रत हैं रात दिन , बढ़ा -बढ़ा  कैं  रेट ||

बे सब  लोभी जानियो, नकदी जितै अकूत |
पाई - पाई  जौरतइ  , बनके   करिया भूत ||

है अकूत नकदी जितै ,   जौरत भर कैं हाँप |
मर कैं भी रक्छा ‌करत , बनकें करिया साँप ||

ह़ै अकूत जब ग्यान तो , कर लौ प्रभु का ध्यान |
संतन कै पकरौ चरण ,   करौ   खूब  गुणगान ||

कछू जनै दोहा लिखत , भइया भौत अकूत |
ध्यान न देतइ दोष पै , दैतइ   ऊखौ   खूत ||🙏

सुभाष सिंघई
[03/03, 10:49 AM] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी "अकूत" बुंदेली दोहा (259)      (01)
अपनैं मध्यप्रदेश
में,तला अकूत भुपाल ।
"दाँगी"नंबर दोइ पै,नंदनवारा ताल ।।

                  (02)
है अकूत मंदिर अवध,"इन्दु" विराजे राम ।
नगर ओरछा दिन रबै,अवध पौचबैं शाम ।।

                  (03)
हैं अकूत सरकार कै, काम देस में ऐन ।
"दाँगी"करजा लेत रत,लगे प्रजा को दैन ।।

                 (04)
करते हैं मोबाल सै,अपनीं बात अकूत ।
झूट बौलबौं सीक गय,"दाँगी"हो चय पूत ।।

                   (05)
कर अकूत बातें बना,आज सरम नइँ आत ।
बिगर जात जब काम जो,"दाँगी" फै पश्तात ।।

             (06)
करों अकूत न काम जो,होअकूत नुकसान ।
"दाँगी"प्रभु को जानिये,करते वही निदान ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[03/03, 12:58 PM] Taruna khare Jabalpur: 'अकूत ' शब्द पर दोहे 



है अकूत धन संपदा,धरती रई लुटाय।
जेके जितनी भाग मै,बो उतनी है पाय।।

जोर-जोर खैं बाप नै,माया धरी अकूत।
उल्टे सूदे काम मै,लुटा रये हैं पूत।।

हनूमान खों है मिली,बल,बुधि, ज्ञान अकूत।
रावण के दरबार मै,पौंचे बनखैं दूत।।

लै अकूत सेना चले,लंका खों सिरि राम।
अभिमानी लंकेस को,कर दव काम तमाम।।

है अकूत पानी गिरो,भैया अबकी साल।
खेती सड़ गइ खेत मै,बड़े बुरय हैं हाल।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[03/03, 1:10 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार 03 मार्च 2025
दोहा शब्द -अकूत(अनगिनत)
                  १
हैअकूत कीमत सुनो,अपनेमत कीयार।
लालच मे बिदकें इयै,करो नहीं बेकार।
                  २
है अकूत दौलत धरी,अम्बानी के पास।
कबजा करलव देशपै,मोदी जिनके खास।
                  ३
महाबीर हनुमानमें,बुधि वल हतो अकूत।
बने रहें प्रिय रामके, बनकें उनके दूत।
                   ४
धरो जलधिकी गोदमें,है अकूत भण्डार।
सबइ देश पाबे जिए,कोशिश करत अपार।
                  ५
दौलत धरलो जोरकें,अंत काम नइं आत।
चले जात सब छोड कें,संगै नइं लै जात।

           मौलिक -रचना 
      एम एल त्यागी खरगापुर
[03/03, 2:28 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- अकूत
(1) जामवंत पूछन लगे
      को है वीर सपूत।
      आर पार आ जा सके,
      सागर भरो अकूत।।
(2) राम भक्त हनुमान कौ,
      सेवा भाव अकूत।
      अटपट्टे हर काम है,
      मिलवे कैउ सबूत।।
(3) वने रहो मन प्रेम सें,
      वदे एकता सूत।
      ब्रजभूषण नातर सुनो,
      खतरा हनो अकूत।।
(4) ढला चला कैसे चले,
       है मैंगाइ अकूत।
       प्राँन ससेवन सूकवे,
       सुख दुख को रव कूत।।
(5) कूत काँद नैइया जिने,
      वे घवरात अकूत।
      ब्रजभूषण डर काय को,
      मन राखो मजबूत।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[03/03, 8:05 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय अकूत 
                     1
कइ कुबेर के पुत्र हैं, दौलत धरें  अकूत। 
दान पुन्य सब सुन्न है, कंजूसी मजबूत। 
                       2
था अकूत बालि बली, टिकौ न कौनउँ सूर। 
आधे बल खों खींच कें, करत हतौ मजबूर। 
                        3
धनी आदमी भौत हैं, ना काऊ की पीर। 
धन अकूत  खर्चा करें, काउ न देबैं चीर। 
                         4
धरती के भंडार में, दौलत भरी अकूत। 
जीखों पाबै मेंनती, कौनउँ धरनी पूत। 
                           5
महिमा ज्ञान अकूत है, जा बिन  नर बेकार। 
पार लगाता ज्ञान ही, यही जगत का सार। 
         -रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवां
***
दिनांक -1-3-2025

205 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -205
प्रदत्त विषय -"अकताँ" (पहले से)
दिनांक -1-3-2025
संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक-जय बुन्देली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
*प्रदत्त विषय:- अकता*
*1*
उपनयँ चलकें भक्त सब,धाम ओरछा जात।
दरसन  राजा राम के, सबसें अकता पात।।
              ***
       -अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 
*2*
अकता से आंके अजा, है नातिन को ब्याव ।  
अगर फसल उपजे न अच्छी , की खों कर हैं  साव ।।
            ***
         - हरवल सिंह लोधी, टीकमगढ़ 
*3*

अकता सें संस्कार की,पावन पोध लगाव।
सत्य निष्ठ बालक बनें,मैंनत कौ फल  पाव।।
             ***
            -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*4*
अकताँ सेँ सुसरार मेँ , जैसइँ पौँचेँ राम ।
निरखत ठाँड़ीँ नारियाँ , छोड़ छाड़ सब काम ।।
              ***
     -प्रमोद मिश्रा,वल्देवगढ़ 
*5*
अकता अच्छी होत है, खेती  उर संतान।
अकता मारै जाय टर, जीतत बो इंसान।।
               ***
             -अमर सिंह राय, नौगांव 
*6*
फूलबाग जब गइँ सिया,अकताँ बन गव काम ।
तकैं झाड़ की ओट सैं,हिये बिठा लय राम ।।
         ***
            -शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा
*7*
कीनें कइती आइयौ ,अकता सें तुम आज।
आनें तौ आराम सें , निपटा घर कौ काज।।
             ***
                - वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*8*
मैंने चन्दा दै दओ, अकतां अबकूं यार।            
तासे कौनउं आंयना, मांगन हर-हरदार।।
             ***
        -एम.एल.अहिरवार 'त्यागी', खरगापुर
*9*
अकता गुरु बंदन करौ,पाछू हरि को ध्यान।
गुरू कराउत हैं हमै, ईसुर की पैचान।।
             ***
            -तरुणा खरे'तनु', जबलपुर 
*10*
अकतां सेन कै दयी भले,सो अपनों आभार।
 ऐसे ही बनायें रखौ, सब कवियन कौन प्यार।।
            ***
              -श्रीराम नामदेव 'काका ललितपुरी' 
*11*
अकता सुमरों सारदा, संगें नमन गनेश।
रचकें दोहा मंच पे, करों सबन खाँ पेश।।
               ***
                -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
*12*
गुरुकुल विद्या सीखनें, जाते थे हनुमान। 
इक दिन अकता पोंच के,की तुलसी  पहचान।।
         ***
         -रामानन्द पाठक, नैगुवां
*13*
होंनहार मडराय जब,चलै न कौंनउँ दाव।
अकता सें कर लेत हैं,जनबा कछू उपाव।।
            ***
             - डॉ.देवदत्त द्विवेदी,बड़ामलहरा 
*14*
अकता कैं ना बोलियौ,पैलाँ सुनियौ बात।
बूड़े बुुजरक देखियौ,बे सब कैसो  कात।।
            ***
                -सुभाष सिंघई, जतारा 
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[01/03, 12:52 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा -अकता/ अकताँ (पहले से)*

नहीं बुलउवा आव तो,अकताँ कैं गयँ पौंच।
#राना उनको हाल अब,जैसें चिपकी गौंच।।

थुथरी अकताँ कैं चली,रहे हाल बेहाल।
लौटो बुदुआ हार कैं,#राना लँगड़ी चाल।।

अकताँ कैं सब काम कर,#राना सुदरें हाल।
बसकारे के पैल ही,ढबुआ अच्छौ डाल।।

गानौं  अकताँ कै गढ़ौ,पाछै सोचौ व्याह।
माते की  उमदा लगी,#राना मौय सलाह।।

जितै तमासो है मचत,#राना  पैलाँ   देख।
बे मतलब ना खेंचियौ,अकताँ से तब रेख।।
        *** दिनांक -1-3-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[01/03, 1:55 PM] Subhash Singhai Jatara: विषय - अकता‌ ( पहले )

अकता से कछु  आन कै , घेर जगाँ खौं लेत |
सबसे पाछे जात फिर ,   कछू  लेत ना देत || 

उकता भी उनसे गये , जो   अकता  से आत |
करत खुपड़‌ मंजन सबइ ,अन्न-बन्न  की  कात ||

घर में शादी ब्याह हो , खबर तनक   ही पात |
अकता से  आबें फुआ ‌, काम समारत जात ||

गये नहीं  ससुरार ‌है , अकता कैं लइ सोच |
करने जाकै  दोदरा , करने  खूब  निपोच‌ ||

हरि भजन साधू मिलन , जितै जुरौ मिल जाय |
अकता कै ही पौचियौ , आनद  मन  में   छाय  ||

सुभाष सिंघई
[01/03, 4:13 PM] Taruna khare Jabalpur: 'अकताँ'शब्द पर दोहे 

अकताँ पौंचे पाउने,खूब दौंदरा देत।
पेरत हैं दिन रात बे,तनक चैन ना लेत।।

अकताँ धर दइ राम की,कैकेई ने आन।
पाछे दसरथ भूप सैं, मांगे दो बरदान 

अकताँ टोरो राम नै,धनुष जनकपुर जाय।
बरमाला पैनाई तब ,सीता जू नै आय।।

अकताँ सुमरौं गनपती,फिर सारद को नाम।
तीन देव सुमरन करौ,पूरन होबैं काम।।

पौंचे अकताँ कुंभ मै,साधू संत महान।
तिरवेनी में कर लये, हैं पावन अस्नान।।


तरुणा खरे'तनु'
जबलपुर
[01/03, 4:34 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,बुन्देली दोहा ,विषय ,अकताँ ,,पहले ,पैल 
*************************************
अकताँ सेँ लव टोनुआँ , रिसियाने गणराज ।
करिया मौँ भव चंद्रमा , तक"प्रमोद"लो आज ।।

अकताँ सेँ मारीच ने , मृग को रूप बनाव ।
फिर"प्रमोद"सीता हरन , रावन पाछेँ आव ।।

राधा अकताँ सेँ खड़ीँ , हेरेँ जिनकी बाट ।
वै "प्रमोद"उन्ना उठा , बैठे यमुना घाट ।।

धनियाँ लयँ पनियाँ खड़ीँ , निमुआँ शक्कर धोर ।
अकताँ आन "प्रमोद"ने , पूरो पियोँ चचौर ।।

अकताँ सेँ बरिया तरैँ , साजन गय जूँ मेल ।
सखियाँ अकतीँ पूजवै , पारेँ अबइँ चमेल ।। 

अकताँ सेँ दैवेँ दतेँ , नेता लुक केँ नोट ।
फिर "प्रमोद"इनखोँ दियोँ , दार भात पै वोट ।।
**************************************
     ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
               ,, स्वरचित मौलिक ,,
[01/03, 5:26 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: शनिवार 01 मार्च 2025
दोहा शब्द -अकतां(पैलसें)
                  १
अकतां लैकें रामने,अरो बिगारो काम।
फिर सीताहां लैगयो,रावण अपनेधाम।
                  २
कलाकार‌ नेता नहीं,कभउं समय पै आत।  
जनता अकतां पौंच के, बैठीरत पछतात।
               ‌  ‌३
समधी आबे की सुनी,जब समधनने बात। 
अकतां खुश हो धरलए ,ऊनै बरा बिलात।
                 ४
जो अकतां से करधरें,अपनो बिदी बिचार।
कारज में नइं होत है,ऊके कभउं बिगार।
                5
अकतां सें करलेय जो,अपनी करनी ठीक।
उयै नहीं डर कालको,जियत सदा निर्भीक।
         मौलिक -रचना
   एम एल त्यागी खरगापुर
[01/03, 5:47 PM] Shobharam Dagi: बिषय- "अकताँ" बुंदेली दोहा 
  (205)            (01)

अकताँ सैं नइँ बोल नैं,सुन्नैं सबकी बात ।
माते मुखिया का कबैं,लेव"इन्दु"
औकात ।।

                 (02)
पुख्खन अकताँ पौंच कैं,"दाँगी"  उनके दोर ।
दरसन करबू राम के,हेरें अपनी ओर ।।
        
                   (03)
सावजु कक्का के इतै,अकताँ पौंचौ जाय ।
मददकरें हरकाम की,"दाँगी"काम
सुहाय ।।
                    (04)
ब्याव बरातन खौं कछू,अकताँ मिसल लगात ।
निवतौ आबै चाय नइँ, झट"दाँगी" उकतात ।।

                     (05)
करबैं अकताँ काम जो,होत जरूरी काम ।
ब्याव काज के ऊसमैं,"इन्दु" न जुरबैं दाम ।।

                  (06)
बसकारे के पैल सब,छप्पर लेत समार ।
अकताँ नौनैं होत जे,"दाँगी"सोच
विचार ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[01/03, 7:46 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय - अकता (पहले)
(1) शिव अकता जानत हते,
      होने का है हाल।
      सती कहो मानी नही,
      जी खो वनगव जाल।।
(2) हम अकता से जानते,
      धरती वीर विहीन।
      हो तो ने पाती हँसी,
      जाल वनो प्रन कीन।।
(3) अकता जो सोचे नही,
      नसा जात सब काम।
      फिर बैठे पछतात है,
      नाम होत बदनाम।।
(4) अकता तो सोचो नही,
      करी न पुकता बात।
      भितर घात मे जो फसे
      ब्रजभूषण उकतात।।
(5) उकता के खेती करो,
      धीरे राखो वन्ज।
      अकता सोच विचार ले,
      ब्रजभूषण का रन्ज।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[01/03, 8:19 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय अकताँ
                    1
हनुमत  द्रोंणागिर गये, मृत संजीवन लेंन। 
अकताँ रस्ता रोकबे,  कालनेमि बैचेंन। 
                    2
लै बरात दशरथ गये, जनक पुरी शुभ धाम। 
अकताँ पोंचे ते जितै, गुरु सँग लछमन राम। 
                     3
बेटा जातइ  काम पै, माइ मिलाबै तार। 
बना कलेऊ पर्सतीं, अकताँ  जग भुनसार। 
                     4
लरका अब स्यानें भए, बउऐं आनें चार। 
अकताँ तैयारी करौ, कर बखरी तैयार। 
                     5
दुनियाँ सें होनें बिदा, यार अथयँ भुनसार। 
अकताँ सुरजा दो सबइ, हैंसा कर दो चार।।
            -रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां
********
दिनांक -24-2-2025
[24/02, 9:13 AM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा ,विषय,ओट ,,
***********************************
शंकर जी के ब्याव मेँ , केउ भूँत रय लोट ।
नगर निवासी देख रय , कर-कर नोनी ओट ।।

बाली मारोँ राम ने , लइँ पेड़े की ओट ।
एक वान मेँ काड़ दइँ , जीवन भर की खोट ।।

करेँ शिखन्डी सामनो ‌ , अर्जुन ने लइँ ओट ।
धरासाई भीष्म भयेँ , भइँ "प्रमोद"जब चोट ।।

चोट मिलाकेँ ओट सेँ , दव बहेलिया बान ।
मृग "प्रमोद"जानो जियेँ , कड़ेँ कृष्ण भगवान ।।

जब घूँघट की ओट सेँ , नैन चोट कर जात ।
तब "प्रमोद"आँसत बहुत , दिन्ना रात पिरात ।।

ओट करेँ पनवेश्वरी , रंग ल्याइँ साराज ।
मौँ "प्रमोद"करिया करो , कैरइँ हो नाराज ।।

धना लुआ गइँ ओट मेँ , पोतीँ रंग गुलाल ।
नइँ "प्रमोद"भगतन बनेँ , करिया कर दय गाल ।।
***************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[24/02, 9:25 AM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा - ओट*

नईं बऊ #राना ओट लयँ,घूँघट लामौ काड़‌।
गैरी कौनउँ है खटक,गयी बात खौं ताड़।।

सास-ससुर चरचा करै,सुन रइ बउँ ल़यँ ओट।
औगुन ऊकै गिन रयै,#राना कितनी खोट।।

#राना चमचा ओट लयँ,नेतन के पर पाँव।
चुखरयाइ सबरे करत,परेशान है गाँव।।

केंड़ा भेंड़ा तिरपटा,लयँ रत आँखन ओट।
नाँय माँय देखत लगत,करत सामने चोट।।

नेता भी पुटयात है,माँगत #राना वोट।
लालच बाँटत हर गली,सेवा की लयँ ओट।।
    *** दिनांक -24-2-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[24/02, 10:09 AM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-ओट/आड़ 
बाली मारौ राम ने,ल‌ई रूख की ओट।
भूल समज में आ ग‌इ,गोड़न में गव लोट।।

काजर नैनन में लगा,कर घूॅंघट की ओट।
प्रान दरारे कर दये, हॅंस -हॅंस मारी  चोट।।

पिचकारी मोहन भरें,खड़े कदम की ओट।
हन द‌इ राधे खों निरख,चूकी नैयां चोट।।

घुॅंघटा की जब ओट में, नैन चार हो जात।
भूक भगत सो न‌इॅं सकत,कछुअइ नहि सुहात।।
                  भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[24/02, 10:09 AM] Subhash Singhai Jatara: सोमवार -24.2.25-बुंदेली दिवस *ओट*

करो ओट में चोट नइँ , खुलकैं कर लौ बात |
लबरयाट भी छोड़ दो , करौ न कौनउँ घात  ||

भड़या चोरी जब करत , लेत कितउँ है ओट |
सन्नाटे में घर घुसत     , दैत  चुरा   के  चोट || 

कभउँ बड़न की ओट में  , रक्छा भी हो जात |
तनक मनक गलती छुपे , आगे सीख सिखात ||

पानी   बरसे  गैल  में , ओट पेड़ की  लैत  |
तन बचात भीगें नहीं , मन में भी यह कैत ||

ईश्वर  ई संसार में  , हम तो खा रय चोट |
चरनन में अस्थान दो , राखो अपनी ओट ||

सुभाष सिंघई
[24/02, 10:58 AM] Taruna khare Jabalpur: ''ओट'' शब्द पर दोहे 


गोरी ठांड़ी आंँगना,कर घूंघट की ओट।
बालम घायल कर गए,तीर नजर सैं चोट।।

बाली पै श्री राम नै,करी बान सैं चोट।
सांमूं सै मारो नईं,ठांड़े तरुबर ओट।।

सीता तिनका ओट लै,रावण खौं समजायँ।
सरन गहौ रघुबीर की,बेई तुमै बचायंँ।।

कछू बात कै पायँ नै,काड़ें खूबई खोट।
ओट लयँ कोउ और की,करत करेजे चोट।।

सखियन कौ ऊदम करैं, फिर घर मै घुस जायँ।
ओट जसोदा की करैं,कान्हा नजर नै आयँ।।

कंकड़ मारै फोड़ खैं,मटकी नंदकिसोर।
रूख ओट छुप जात हैं,नटखट माखनचोर।।

तरुणा खरे 'तनु'
जबलपुर
[24/02, 11:24 AM] Amar Singh Rai Nowgang: बुन्देली दोहे (ओट)

मानें नइँ  अधिकांशतः, कोऊ  अपनी खोट।
बात सिद्ध अपनी करत, लै गैरन की ओट।।

कलमकार कर्मी करत,जब शासन पर चोट।
धीरे  से कै लेत लै, हास्य- व्यंग्य  की ओट।।

जित  देखो उत है  मची, बेजां  लूट-खसोट।
मांगत सुविधा शुल्क वे,लेत मेज की ओट।।

बेईमानी  देख  कैं,  रव   दिल  बड़ो  कचोट।
ऊपरबारे से भला, कौन  कर  सकत ओट।।

लगत बाण  श्रीराम को, गओ  धरा पर लोट।
बाली  को  भगवान  ने,  मारो  लेकर  ओट।।

सपने  बातन  से  दिखा, झटक  लेत हैं बोट।
फिर धीरे से जात कड़, लै भाषण की ओट।।

रावण ने  सीता  हरी, मन  में थी  कुछ  खोट।
सीख सिया ने दी बहुत,लै तिनका की ओट।।

                               अमर सिंह राय 
                                     नौगांव
[24/02, 12:12 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार 24 फरवरी 2025
                1
बैठी समधन भीतरे,लंय किबार की ओट।
चिकनी चुपरी बात सें,करें सजन पै चोट।
                 2
मन्दिर में पूजा करें, मन में पाले खोट।
रोजीना कुकर्म करें,लएं धरमकी ओट।
                 3
बने सनातन धरमके,जितने ठेकेदार।
रामललाकी ओटमें,कररय अत्याचार।
                  4
मर्यादा को राम ने,करदव बंटाढार।
बैठ पेडकी ओटमें,डारो बाली मार।
                  5
भरी सभा देखत रही,काउ हरीना पीर।
मदसूदन आ ओट में,बैठ बडादव चीर।

मौलिक-रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[24/02, 5:41 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय ओट 
                   1
साल बिरछ की ओट में, राम चढाये बान। 
छोड दिया पहचान कर, गय बाली के प्रान। 
                    2
दुक गय पत्तन ओट में, महाबीर हनुमान। 
मातु सिया कौ दुख मिटौ, राम दूत पहचान। 
                      3
जग जननी सिय जानकी, कर तिनका की ओट। 
खल से कहतीं कटु बचन, लगी दसानन चोट। 
                      4
आँधी में भी ओट दयँ, जलत दिया बच जात। 
जन जीवन अनमोल है, खाव सिरा के भात। 
                        5
ठाणीं ओट किबार की, भर पिचकारी ऐंन। 
रुप देखबे खों लगी, हुरयारन की लेंन।
रामानन्द पाठक नन्द
[24/02, 6:07 PM] Rajeev Namdeo: दि०२४-०२-२०२५ मंच को नमन।

दुककें तरु की ओट में, प्रभु ने मारा तीर।
बाली कह अन रीति यह,कर्म बहुत गम्भीर।।

मौलिक,स्वरचित 

*रामसेवक पाठक* 'हरिकिंकर", ललितपुर "
[24/02, 7:31 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा- ओट
(1) सब के सब बैठा रहे,
      अपनी अपनी गोट।
      चोट करारी मार वें,
      लय पक्की रत ओट।।
(2) ओट करें सामू डरें,
      जिनके मन में खोट,
      ब्रजभूषण हिम्मत करे,
      सममुख झेलें चोट।।
(3) कोऊ काऊ अब काँ करत,
      कोऊ काऊ की ओट।
      ब्रजभूषण देखें दशा,
      गहरी पोंचत चोट।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[24/02, 10:00 PM] Shobharam Dagi: संशोधित बुंदेली दोहा (258)
बिषय--"ओट"    (01)

नइ बउ घूँघट डारकैं,लयँ किवार की ओट ।
खेल तमासौं देख रइ,है"दाँगी" पै चोट ।।

                    (02)
पुरा परौसी देखबैं ,नइ बउ आई दोर ।
ठांड़ी ओट किवार की,हेरै "दाँगी" ओर ।।

                  (03)
बाली खौं मरवाय कै,चैन लेत सुग्रीव ।
ओट पकर कैं राम नैं ,बान चलाये तीव्र ।।

                   (04)
योधा देखत हैं सभी,कोउ न सामैं आव ।
नटवर आये ओट सैं,"इन्दु" चीर
बढाव ।।
                   
                      (05)
पंचवटी सैं हर गईं ,"इन्दु"जानकी माइ ।
बैठी अशोक वाटिका,तिनका ओटअँगांइ ।।

                    (06)
गसी देह गोरी सजी,औठन लाली पोत ।
"दाँगी"घूँघट ओट में,नैनन जलबै जोत ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[22/02, 1:48 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिसय तला 
                    1
तला तलइयाँ नय बँदे, बँदे सैकरन बाँद। 
भई तरक्की देश की, लगे चार ठउ चाँद। 
                      2
तला तलइयाँ  हैं जितै, उतइँ  नहर खुदबात। 
कल कल कल नहरें  बहत, धानी धरा सुहात। 
                       3
जो जन गहरे होत हैं, रहें तला की भाँत। 
कोइ थाँह पावै नई, मन मसोस रै जात। 
                         4
उमड घुमड बदरा उठे, वर्षा भइ घनघोर। 
तला कुआँ पोखर भरे, दादुर करें किलोर। 
                        5
तला गाँव की सान है, ऊ बिन गाँव न सोय। 
पानी जाँ रोटी उतइँ, दुख सुख साथी होय। 
रामानन्द पाठक नन्द
[22/02, 2:40 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:- तला/तालाब 
जा दुनियाॅं है इक तला,भ‌ई मगर आधीन।
चैन भजन और आस्था,ल‌इ दुष्टों नें छीन।।

तला तलैयां जुत गये, बना लये हैं खेत।
प्यासे प्रानी हींस रये,को‌उ खबर नहि लेत।।

सब‌इ तला रीते डरे, रय पानी खों झूॅंक।
"अनुरागी" कैसें मिटत,प्यास और जा भूॅंक।।

दुर्योधन जाकें लुको, बड़े तला के बीच।
भीमसेन ने हाॅंक द‌इ,दव उन्ना सौ फींच।।

अंधा अंधी मर गये, बड़े तला की पार।
राम लखन सीता सहित,वन में करत विचार।।
                भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[22/02, 2:44 PM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली तला  {*तालाब*}

ढ़ीमर  मछली पालतइ , खोदत  उतइँ   मुरार |
भरौ रयै    पानी  तला  , गातइ  गीत   मलार ‌||

सपरे  हम खूबइ तला  , खूब लगाई  लोर |
डोड़ा पै चढ़कै उतइँ , भयँ है  खूब  विभोर ||

कमल खिलत है जब तला  , कमलगटा भी होत |
सब खातइ हैं  छील कैं    , मजा आत  है  भोत ||

माटी भी नौनीं तला  , करत खाद को काम |
कौस कात सब लोग हैं , खर्च  होत ना दाम ||

बुड़की लैबें गय‌‌ तला   , बचपन के दिन याद |
बै दिन अब गय है बिसर , लामी   है   तादाद || 

सुभाष सिंघई

~~~~~~~~~~~~~~~
[22/02, 3:35 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा बिषय- तला*

#राना देखत अब तला,नईं सपरबे जात।
भरी रात है गंदगी,ऊपर तक उतरात।।

बचपन #राना याद है,सपरो है दिन रात।
कपड़ा धोयै है तला,सबसें साँसी कात।।

साफ रात ते सब तला,मछली घूमें  तैर।
 #राना अब रत मैल है,नईं सपरबौ खैर।।

बसकारें पानी बरस,भरत तला ते खूब।
करैं सिचाई खेत की,#राना थे मनसूब।।

बुंदेली देखत तला,चंदेलन  की ‌‌ शान।
सुने इतै मशहूर सब,#राना है पहचान।।
*** दिनांक -22-2-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[22/02, 5:21 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा, बिषय ,,तला,,
**********************************
तला किनारेँ लोर रय , शिव शंकर भगवान ।
सती देख चिल्ला उठेँ , आव बचा लो प्रान ।।

तला सपरवे जब गयेँ , पवन पुत्र हनुमान ।
मगरी ने पकरेँ चरन , कालनेम दय प्रान ।।

पानी डूँबोँ नै बचो , गन्धारी को लाल ।
बीच तला सेँ काड़केँ , ल्याव मारवे काल ।।

घिस-घिस गोड़ेँ धो रहेँ , भीम तला मेँ आन ।
बर्बरीक रोकन लगो , लरेँ दोइँ बलवान ।।

कब्जा कर गेँतेँ तला , पिसिया बैदइँ जोत ।
कूरा-करकट पैल रय , जात पुरानी खोत ।।

बसकारेँ भर गय तला , गाँयँ मिदरियाँ राग ।
नचेँ मछरियाँ मोद मेँ , गय"प्रमोद"खुल भाग ।।
**************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[22/02, 8:07 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा 
बिषय- तला
(1) पैल पुराने आदनी,
      कुआ तला खुदवाये।
      ब्रजभूषण कितने भलें,
      सबके कामे आये।।
(2) कुआ तला नरवा नदी,
      अगर गाँव में होय।
      काम चले निस्तार को,
      कमी कबे ने कोय।।
(3) तला तलइयाँ अर कुआ,
      बसकारे भर जात।
      पानी के बरसे विना,
      सूके ड़रे दिखात।।
(4) तला बड़ो भोपाल को,
      दूर दूर मशहूर।
      ब्रजभूषण मौका मिले,
      देखो जाय जरूर।।
(5) रजवाड़े को तो समय,
      तला खूब वनवाये।
      चार पान सो बड़ बड़े,
      टीकमगढ़ में पाये।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[22/02, 9:29 PM] Taruna khare Jabalpur: ' तला' शब्द पर दोहे 

तला तलैया पूर खैं,बना लये घर बार।
गरमी मै पानी बिना,जीव फिरैं लाचार।।

तला किनारे है बनो,मंदिर बड़ो बिसाल।
शिवरात्री में भरत है,मेला हर इक साल।।

तला बीच फूले कमल,कौन टोरबे जाय।
कै दो केवट नाव सैं,जाय टोर लै आय।।

बसकारे मै जब गिरै,पानी मूसलधार।
तला लबालब भर गये,नरवा भरे अपार।।

तला बावड़ी सब भईं,सासन के आधीन।
साप सपाई हो रई,चल रईं खूब मसीन।।

तरुणा खरे 'तनु'
जबलपुर
[22/02, 9:56 PM] Rajeev Namdeo: *जय बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -204*
दिनांक -22-2-2025

*बिषय- तला (तालाब)*

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
तीन तला तैरे तिजू , तुलसी तैरे तीस।
चार हते ते ऊ थले , गैरे ते छब्बीस।।
         ***
      - वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़ 
*2*
पर नारी धन के हरैं ,जाबै कुल की नाक।
डूब तला में बे मरैं , जिनमें  नइॅंयाॅं साक।।
         ***
          -आशाराम वर्मा "नादान", पृथ्वीपुर 
*3*
तला तलइयां भर गये,नरवा नाले ऐन ।
बरसा भई चपेट कैं,लगे कुँआ सब दैन।। 
             ***
           शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*4*
पार तला की फूट गइ,भइ ऐसी बरसात।     
पानी घर घर में भरो,मुश्किल सबै दिखात।।
          ***
        - मूरत सिंह यादव,दतिया 
*5*
सला तला सी कला नइँ, रहे तला की माहि। 
डूबत ऊखर सें बचै, जो जन जानें जाहि।।
            ***
          -रामानन्द पाठक'नन्द', नैगुवां
*6*
जीवन निर्मल हो सतत,ज्यों नदिया की धार।
तला बने न द्वेष कौ,हुइये बेड़ा पार। ।
        ***
      -आशा रिछारिया ,निवाड़ी 
*7*
नहीं तला में रै सकत, कर मॅंगरा सें बैर।
जैसें घुरवा घाॅंस सें,लड़ कें चाहत खैर।।
            ***
             -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*8*
मन चंगा जग में रओ, बने रयें सब ठाट।
आप सपरलव तला में, जान कुंभ को घाट।।
        ***
           -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु बडागांव झांसी
*9*
तला बीच पानी रुको, चलै नदी कौ नीर। 
रुकबे में नइं फायदा, चल पथरन खौं चीर।।
         ***
              -संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
10- 
भरें लबालब जब तला,पानी बरसें यैन।
तब किसान खुश रात है,छाती में रत ‌चैन।।
          ***
           -सुभाष सिंघई , जतारा 
*11*
चलौ सपरवे ताल में,नल नइं आये आज।
पानू  सबरौ बढ़ा गव,हमें धौवनें नाज।।
             *** 
        -रामसेवक पाठक "हरिकिंकर", ललितपुर 
*12*
तला-तलैयन में तके, फूले कमल गदूल।
पजे गिलारे में भले, बने उबर कें फूल ।।
        ***
             -अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
*13*
डिड़यारइ बिन्नू विकट, हो रइ आज पराइ।
रो रो कें भर दव तला, बिछड़े बाप मताइ।।
          ***
        - अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 
*14*
तला बीच गुरु द्रोण खोँ , मगर गुटकवे आव ।
धनुआँ लैकेँ पार्थ ने , तुरतइँ मार गिराव ।।
          ***
        प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़ 
*15*
नेह तला गैरे भरे,बैठे रइये पास।
रूप गगरियन पी गये,बुजी न मन की प्यास।।
          ***
          - डॉ. देव दत्त द्विवेदी,बड़ामलहरा
*16*
तला बडो भोपाल को, रानाजू को काम।               
बुन्देली साहित्य को,  ऊंचो कररय नाम।।
                 ***
       -एम. एल. त्यागी,खरगापुर
*17*
तला किरतुआ पै डटो,दल बल सँग चौहान।
खोंटें कैसें कजलियां, चंद्रावलि हैरान।।
       ***
              - प्रभुदयाल श्रीवास्तव पीयूष, टीकमगढ़
*18*
तला सपरबे जात ते,बालापन मै यार।
सखन संग पैरत हते,चले जात ते पार।।
      ***
       -तरुणा खरे 'तनु',जबलपुर
*19*
छोटे खोदो अब तला, सबखाँ मिलवै नीर।
सबके प्यासे कंठ खाँ, बँधो रये मन धीर।।

-
श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
*20*
तला तलैया पुखरियां, न्हाय न उतरैं पाप। 
संगम में डुबकी लगा, मिटैं सभी संताप।।
         ***
      - डॉ. रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
***
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
[22/02, 10:26 PM] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी "ताल"(तालाब)
              बुंदेली दोहा 
नदी बेतवा जामुनी,उतै धुबेला ताल ।
है प्रसिद्ध मउसानियाँ,रखे अस्त्र बहु ढाल ।। (०१)

महुबे जाओ जो कभउँ, है जो बेला ताल ।
"दाँगी" है इक खासियत,बड़े लड़इया लाल ।। (०२)

ताल बड़ौ भोपाल कौ,और तलइँयाँ जान ।
हरी-भरी धरती करें,"दाँगी" उपजे
धान ।। (०३)

नंदनवारा ताल सैं,होत सिचाई खूब ।
चना मटर पिसिया पजै,"दाँगी" के मनसूब ।। (०४ )
                                       नरवा नाले ताल सब,भरे रबै जी गाँव ।
"दाँगी"जितै न तालहो,नईं सपरबै ठाँव ।। (०५)

ताल बँदा हर गाँव में ,हल्के बड़े मजोल ।
"दाँगी"ये सरकार
को,खाबै कोलइ कोल ।। (०६)

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
********

[17/02, 9:38 AM] Subhash Singhai Jatara: -बुंदेली दिवस - *अबा* (ईंट का भट्टा)

अबा लगे  हैं कर्म के   , जलत  पाप  अंगार |
संत समागम हरि भजन , कर सकते है पार ||

कौनन कौनन घर अबा , करते हैं  बिखराव |
आगी   परचा   मंथरा , बाँटत  खट्टे    भाव  ||

मन के चुलघुस में जलें , अबा क्रोध के तेज |
है घमंड को  होम भी ,   धरी   बुराई   सेज ||

जितै अबा लगबें उतै , धघकत  अंदर आग |
करत तपस्या ईंट  है , बनत भवन  के भाग || 

माटी जब आकार ले ,    बनती  पहले  ईंट |
पकै  अबा में  लाल हो , तबइँ बनत है भींट ||

सुभाष सिंघई
[17/02, 10:22 AM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा ,,विषय ,,अबा ,,
*************************************
अबा गुंँगा रव काल सेँ , फूटी नइयाँ आग ।
डार गिलारो तोप रय , बाँध मूँड़ी‌ पै पाग ।।

तरी डरी लग रव अबा , माँझेंँ नार बनाइँ ।
ईंटन के थय रोपकेँ , कंडी नकर लगाइँ ।।

धरै बिलू ने चेनुआँ , कच्ची हँड़िया जान ।
अबा बीच जिन्दा रहेँ , भय रक्षक भगवान ।।

छबलन फर रइँ तुरइया , अबा चढ़ी गर्रात ।
गेर फेर कुमड़ा तकैँ , लौकी खोँ मुस्क्ययात ।।

अबा गुँगानो सात दिन , लगत पको भव लाल ।
अदकच्चो ऊपर धरो , कैसी बिगरी चाल ।।

अबा घाँइंँ तपने अबइँ , घर-घर में सब लोग ।
पत्रा खोल "प्रमोद"कत , है गरमी को जोग ।।

अबा काउ ने बाँद दव , कत गय अबइंँ प्रमोद" ।
गुनियाँ खोँ  ढूँढ़त चले  , आनपुरा के कोद ।।
*************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[17/02, 12:17 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार 17फरवरी2025
दोहा लेखन शब्द -अबा (ईंट पकानेका)
                  १
माटी साजी देख कें,फुलै खेत में देत।
ईंटबना फिर सुकैकें,पकाअबामें लेत।
                  २
कन्डा लकडीं जोरकें,गोला थर डरबात।
समर समर ईंटें जमा,नोनो अबा लगात।
                  ३
थर डारो ईंटें लगा,गोलअबा बनबाव।
आग डारकें नार में,ऊपर से पुरबाव।
                  ४
लगबइया हुशयार हो,ऐसो अबा लगात।
ओंठ न कच्चो बचतहै,सब ईंटें पकजात।
                  ५
बांद अबा बैरी कछू,अपनो बदलौ लेत।
सबरो कच्चौ रतबनो,उयै पकन नइंदेत।
         मौलिक -रचना 
   एम एल त्यागी खरगापुर
[17/02, 2:35 PM] Dr Renu Shriwastava: दोहे विषय अबा (ईंट पकाने का स्थान)
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
अबा लगत है खेत में, 
कंडा लकड़ी जोर
गुम्मा माटी के पकैं, 
रहै न कच्ची कोर

बेरुजगारी बढ़ गई, 
ठलुआ ज्वान कहांय।
चिंता में वे तप रहे, 
अबा घांइ ददकांय।। 

एकइ तो बेटा हतो, 
राजा अबा बिठाव। 
बड़े गनेश जपत रओ, 
नोनो वो कड़ याव।। 

ऐसी तपत अटाइ जा, 
तलफत मछली घांइ। 
अबा तपत है हार में, 
घरे तप रही बाइ।। 

माटी जोरी ससुर ने, 
गुम्मा पाथै सास।
अबा लगा लौ जेठ ने, 
घर बनबे की आस।। 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
               डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
                  सादर समीक्षार्थ 🙏
                  स्वरचित मौलिक 👆
[17/02, 2:40 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा -अबा*

माटी राखत  मोल है,पकत अबा चुपचाप।
#राना ईंटन खौ पका, जग में  देतइ छाप।।

ईंट अबा  में जात है,पक कैं हौतइ  लाल।
नौनों बनतइ गेह है ,#राना  तकै कमाल।।

पानी बरसत में अबा,कौनउ बुझा न पाय।
जितै तपस्या हौत है,उतै  सल्ल ना  आय।।

अबा धधकतइ है जितै,उतै रात है आँच।
#राना ताकत सब तकौ,पिघल जात है काँच।। 

एक अबा तन को लगे,मरण काल लौ जान।
#राना निकरत राख है,काहे करत गुमान।।
         *** दिनांक -17-2-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[17/02, 3:30 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिसय अबा 
***********************
                     1
अबा घाँइ फोरा दगै, जीके होबै अंग। 
परें खाट पै चैन नइँ, भूल जात सब रंग 
                      2
दगी अबा सी जिन्दगी, कर कर खोटे काम। 
हेरा फेरी नित करी, भजे न सीताराम। 
                      3
प्रानन बिद गइ पेरना, छूटौ साथी संग। 
हिरदे में दग रव अबा, धरी जीतवे जंग। 
                      4
कच्चे बासन थोप कें, बना लये हैं यार। 
अबा लगा पक्के करे, ठोकें दस दस दार। 
                        5
ईटें गुम्मा पर गये, अबा लगा लव हार। 
अबा खोल कें नन्द की, बनी दुकानें चार। 
रामानन्द पाठक नन्द
[17/02, 3:51 PM] Taruna khare Jabalpur: 'अबा' शब्द पर दोहे 


जानकार जे नै रहे,अबा लगा नै पाय।
जे होबैं हुसयार बे, उम्दा देत लगाय।।

माटी की ईंटें बनै,अबा बीच धर देत ।
कंडा नकरी बार खें,पक्की सब कर लेत।।

अबा लगाओ भक्ति को,ज्ञान अगन दई बार।
मन ईंटा ऐंसी पकीं,झूठ लगै संसार।।

बरतन माटी के सबै,पका अबा मैं देत।
ठोंक बजा देखत तबै,ग्राहक उनखां लेत।।

बसकारे मै है कठिन,अबा लगाबो यार।
पानी बरसै जोर सैं,बरतन हों बेकार।।

तरुणा खरे 'तनु'
जबलपुर
[17/02, 4:23 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय= अवा
(1) लगत अवा में रय तुपें,
       कड़ के आरय होव।
       छपे भिड़ाने से धरे,
        हाँत पाँव तो धोव।।
(2) दवे अवा में गय बरक,
       जब बिल्ली के लाल।
       होय कृपा भगवान की,
        का कर लैहे काल।।
(3) माटी के ड़वला घड़ा,
      अवा में धर दय जात।
       तुपे रवें नोनें पकें,
       जब तो लाल दिखात।।
(4) ईंट वना लैवें पका,
      भट्टा देत जमाय।
      लगा देत ईदन अवा,
      अछ्छे से पक जाय।।
(5) अवा आज कल कम लगे,
       दिन दिन घटतइ जात।
       करबे को इतनी अटर,
       सबरे लुकत ड़रात।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[17/02, 6:52 PM] Amar Singh Rai Nowgang: बुंदेली दोहे, *अबा* 

निन्ने  सबके  पेट  में, जरत अबा- सी  आग।
आंतें   ऐसी   कुड्डबें,   जैसें   लौटत    नाग।।

अबा तबा करता गरम, पल रय कइ परिवार।
ईंट  बेंच  कैं चल  रहो, बहुतन  को व्यापार।।

अबा  लगाबो  भी कला, बिरलो ही कर पाय।
कुआं अनाड़ी से अगर, बँधे  जल्द ही जाय।।

बदन अबा-सो है तपत,जब भी चढ़त बुखार।
आंग। सुस्त  ढ़ीलो रहत, जैसे चढ़त खुमार।।

ईंट   बजा  कैं   देखवें,   तबहीं   कोऊ   लेत।
अबा  ईंट  यदि  स्यावरी, पूरो  मोल  न  देत।।

ताव  अबा  को  मुख्य  है, उर ई की तरकीब।
आग  डार  दूरी  रहत, फटकत  नहीं करीब।।

आग  अबा में  ठीक से, अगर नहीं लग पात।
'अमर' चलत  जैसी हवा, चौतरफा गुँगवात।। 

                               अमर सिंह राय 
                                     नौगांव
[17/02, 8:07 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-अबा
तिषना को घट भीतरै,जलै अबा दिन रात।
 कड़त धुॅं‌ऑं नहिं बायरें,‌भीतर भौत‌  गुॅंगात।।

बच्चा जिंदा सब कड़े,ताती अबा की राख।
देखो जब पैलाद ने, राम -राम रय भाख।।

पकत पोतला घैलियां,और अबा में ईट।
कारीगर हरि ‌ऑंसरें, बना देत है भींट।।

अबा निखारत रूप खों,सोंनो कंचन होय।
बासन खनके लोह सम,जानत है सब कोय।।

अबा चिता दुइ एक से,एक निखारे रूप।
तन खों इक निरमल करै,रंक होय या भूप।।
              भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
दिनांक -15-2025
बिषय- पुतरा

[15/02, 11:00 AM] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा -पुतरा/पुतला
(१)
गोबर  कौ  पुतरा बना , टाठी  में  धर लेत।
मन में   मान  गनेश जू , माथें  टींका  देत।।
(२)
पंच तत्व  खौं सान कैं , पुतरा  भय तैयार।
बरन-बरन रॅंग रूप में,रच दय कैउ हजार।।
(३)
माटी कौ पुतरा बनों ,काय करत अभिमान।
कितनउॅं  भी सिंगार लो , होंनें  धूर समान।।
(४)
रावण  कौ  पुतरा बना , बारत  हैं हर साल।
तौउ न सीखत आदमी,चलत कुठंगी चाल।।
(५)
पुतरा  लयॅं  बिंन्नूं फिरें , छाती  सें चिपकाॅंय।
देख-देख नादान कवि ,मन ही मन हरसाॅंय।।

आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
(स्वरचित) 15/02/2025
[15/02, 1:41 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा - पुतरा*

पुतरा हम श्रीराम  के,#राना  मोरो नाम।
चरनन में हम लोटकैं,करवाँ ले सब काम।।

पुतरा दद्दा बाइ के,मिलो नावँ राजीव।
पाल पोस बड्डो करो,दवँ है प्यार अतीव।।

पुतरा नानी के बने, कती मूर से ब्याज।
जादाँ प्यारो होत है,#राना  समझों आज।।

दादा के़ पुतरा रयै,कत ते  मोरो अंश।
बढ़ै अँगाई  येइ से,#राना  कुल को वंश।।

पुतरा भी बोले गुरू,#राना पढ़ लिख जावँ।
बनके फिर तुम कछु अलग,सबखों खूब बतावँ।।
          ***दिनांक -15-2-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[15/02, 2:33 PM] Subhash Singhai Jatara: शनिवार-15.2.25-बुंदेली विषय - पुतरा

मोरे पुतरा मौंग जा ,    लिपटा  कैं कत माइ |
असुआ पौछे गाल कै , हित की करत दुहाइ ||

पुतरा कात मताइ है  , लिपटा   ले निज आँग |
अपने हाथन सूट दे ,   चोट  लगी  सब जाँग ||
धरे कदाँ  पै माँ  मुड़ी , पुतरा  कयँ  पुटयाय |
चिंता काहे खौ करत , लडुआ  खाबे  लाय ||

बूड़ी डुकरौ पूछती ,   कीकौ    पुतरा  आय |
गैल चलत में छेकतइ , लठिया मोइ छुड़ाय ||

नानी के जब घर गये , खूब   गइँ    हरसाय |
मोरो पुतरा कात रइँ ,   गरे   रयी  लिपटाय || 

सुभाष सिंघई
[15/02, 4:05 PM] Taruna khare Jabalpur: 'पुतरा' शब्द पर दोहे 


पुतरा पुतरी खेलते, बालापन दव खोय।
कठिन बुड़ापो देख खैं,अब काए खों रोय।।

पुतरा से मानव सबै, रच डारे भगवान।
अलग-अलग सब रूप हैं, अलग-अलग पैचान।।

अक्ती पुतरा संग मै,रचैं पुतरिया ब्याव।
पूजैं बरगद के तरैं,सबै सखी आ जाव।।

माटी को पुतरा लयें,फिरत नाय सैं मायँ।
लरका बच्चा ओई मै, दिन भर उरजे रायँ।।


तरुणा खरे 'तनु' 
जबलपुर
[15/02, 5:09 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय पुतरा 
                1
पुतरा की चाहत सबै, लगी रहत है ऐंन। 
मडियाँ सबरी पूजबें, खटका रत दिन रैंन। 
                2
पुतरा भौतइ लाडलौ, जब चँगेर में रोय। 
राई नौंन उतारबैं, लगा डिठूला दोय। 
                   3
पुतरा पुत्तू के सबइ, छूट गये हैं खेल। 
बे दिन फिर सें काँ धरे, चले बना कें रेल। 
                   4
पुतरा प्यारौ माइ खाँ, बेर बेर रइ देख। 
ढाकें आँचर छोड सें, बनाँ डिठूला रेख। 
                   5
हे ईशुर पुतरा दियौ, ललक न ललकत राय। 
मंसा पूरी कर दियौ, हिरदें नन्द समाय। 
रामानन्द पाठक नन्द
[15/02, 6:13 PM] Kamlesh Sen Kavi: दोहा पुतरा

अकती खौं तुम जान लो पुतरा पूजे जात।
बिटियन को जो खेल सबके मन खों भात।।

 सीदे सादे मांस खों सबरे पुतरा कात।
वो कैसई साजी कवै उकी सुनी न जात।

कमलेश सेन कवि टीकमगढ़
[15/02, 7:36 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा 
बिषय- पुतरा
(1) देखो पुतरा मानजा,
      घेरें फिरत सियान।
      लगत पीठ रोरा रही,
      मानत नहया बात।।
(2) पुतरा तो नोनो लगत,
      गुन तो नोने होंय।
     वेगुन नग नग में भरी,
     किल किल रोज विदोय।।
(3) पुतरा टागें हार में,
      जियै विजूकौ कात।
      फसल बचे उजरे नहीं,
      उजरा देख डरात।।
(4) विपत परें कामें परै,
      हम जा आस लगाय।
      पुतरा होरी जोग है,
      कबऊ नें कामें आय।।
(5) लैकें पुतरा पुतरियाँ,
      अक्ती पूजन जाँय।
      सखी सहेली जुर मिलें,
      भारी खुशी मनाय।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[15/02, 10:43 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -203*
विषय - *पुतरा**
संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*
*1*
हम सब पुतरा ही रये,उचकत रत  दिन रात।
चार घरी भी बैठ कें,करत न ढँग की बात।।
               ***
              -सुभाष सिंघई, जतारा 
*2*
माटी कौ पुतरा बनो, माटी में मिल जाय। 
जौलौं साँसे चल रहीं, तौलौं चलत दिखाय।।
            ***
          -  संजय श्रीवास्तव, मवई(दिल्ली)
*3*
माटी को पुतरा बदन, माटी में मिल जात।
चार दिना की जिंदगी, काहे खों गर्रात।।
           ***
       -डॉ.राजेश श्रीवास्तव प्रखर(कटनी)
*4*
पुतरा कैऊ दौगले, चारउ लंग दिखात।
मुद्दा नये उछार कें, कोरे फिरें कुकात।।
         **
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता'इंदु',बडागांव(झांसी)
*5*
पाॅंडव अपनी नार खौं, गये जुआ में हार।
चीर हरन  देखत रये , पुतरा  से लाचार।।
           ***
         -आशाराम वर्मा "नादान पृथ्वीपुरी"
*6*
पुतरा चापोँ भीम को,कर दव चकनाचूर।
दगा साद धृतराष्ट्र ने,बल्दो लव भरपूर।।
        ***
         - प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 
*7*
पुतरा से बैठार कें, गांवन में सरपंच।               
चालू पुरजा रचत हैं, अपने उतै प्रपंच।।
                ***
              -एम. एल. 'त्यागी', खरगापुर
*8*
आंग मैल पुतरा बना,उमा प्रान दय फूंक। 
बेटा रखवारी करो,तनक न होवे चूक।।
            ***
             -आशा रिछारिया,निवाड़ी
*9*
सरयू गंगा पै बसौ,नगर अजुदया धाम ।
पुतरा भौतइ लाड़लौ,कौसिल्या खाँ राम।।
         ***
          -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*10*
माटी कौ पुतरा मनुज, जी में बैठे  राम।
पावन संगम येइ में, चारउ  तीरथ धाम।।
         ***
              - अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 
*11*
बिटियां पुतरा पुतइयां,खेल खेलतीं खूब।           
 गोबर के गणपति बना,नहा चढ़ाबैं दूब।।
            ***
         - मूरत सिंह यादव,दतिया 
*12*
घरघूला के खेल में, मौड़ीं जावें सीक,
पुतरा-पुतरी की तराँ, परै निभानै लीक ।
         ***
          -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*13*
बब्बा पकरें खाट खौ,सुमर रये भगवान।
कत पुतरा नौनै रबै, करबै  अच्छौ नाम।।
           ***
             -एस. आर. 'सरल', टीकमगढ़
*14*
माटी का पुतरा बना, उस से सीखा ज्ञान। 
काट अगूँठा दान कर, जग में ऊँचौ मान।।
            ***
           -रामानन्द पाठक नंद, नैगुवां
*15*
पुतरा से पांचों पती, बैठे सीस झुकाय।
लाज द्रोपती की लुटै,कछू बोल नै पाय।।
               ***
          -तरुणा खरे 'तनु' ,जबलपुर 
🙏🙏

*संयोजक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
[16/02, 7:54 AM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा ,,विषय ,,पुतरा ,,
************************************
महाकुंभ से ल्यायते , पुतरा एक खरीद ।
मोड़ी-मोड़ा खेल रय , मिला-मिलाकेँ सीद ।।

डब्बा में बब्बा धरोँ , पुतरा पुत्तू आइँ ।
छोटा चकरी पपीरा , हमेँ सावनी भाइँ ।।

पुतरा छापैँ भींट पै , करें खूब सिंगार ।
बिटियाँ खेलेँ नोरता , बुन्देली तेवार ।।

तन-मन के मैलेँ कछूंँ  , ढोंगी चपल लबार ।
रावण का पुतरा जला , रहेँ राम उच्चार ।।

पुतरा केउ बजार में , ठाँड़ेँ उन्ना ओढ़ ।
हर दुकान के दोर मेँ , देखो धरकेंँ सोढ़ ।।

पुतरा पुतरी जी घरेँ , कर रय सकभर चाल ।
ऊके घर खुशियाँ रहेँ  , हरदम डेरा डाल ।।
***********************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
******
दिनांक -10-2-2025 पुरा


[10/02, 8:58 AM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा ,विषय,,पुरा,, मोहल्ला 
*************************************
गंगा जल से राम के , केवट चरन पखार ।
पुरा पूरवज कुल कुटुम , पिया स्वयं परिवार ।।

पुरा भरेँ सेँ माँग केँ , भरो सुदामा पेट ।
जब"प्रमोद"कृष्णा मिलेँ , बनेँ नगर केँ मेट ।।

गलगंदा डारेँ गरेँ , पीरेंँ चाँवर ल्याय ।
घर-घर देत "प्रमोद"कैँ , गंगा माइँ बुलाय ।।

महाकुंभ सपरन चलेँ , पुरा भरेँ के लोग ।
गंगा माइँ"प्रमोद"को , राखेँ अजर निरोग ।।

पउआ पियेँ"प्रमोद"जब , करेँ पुरा खोँ तंग ।
बांध कलेवा कड़ चलेँ , सुनी सपरवे गंग ।।

पुरा परौसी प्रेम सेँ , जाँ "प्रमोद"मुस्कायँ ।
उतै आदमी सौ बरष , पनी उमरिया पायँ ।।

जौन पुरा मेँ जन-जनी , रचेँ दंद उत्पात ।
समझो मान्स "प्रमोद"माँ , सदा रहेँ भैरात ।।
**************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[10/02, 9:37 AM] Asha Richhariya Niwari: दोहा दिवस दिनांक 10.2.2025बिषय/पुरा
🌹
पुरा परोसी नेक हों, संताने अनुकूल। 
धरम निरत परिवार हो,हो विकास ज्यों फूल। ।
🌹
उठत भोर पूरो पुरा,ठलुआ गेरन जांय। 
इते उते चुगली करें,नाहक रार बड़ांय।।
🌹
पुरा भरे में शोर है,करो कुंभ अस्नान। 
पुण्य मिले सत्संग हो,न चूको चौहान। ।
🌹
चलो बैन देखन चलें,चलें पुरा के संग।
करें कुंभ अस्नान सब,होय नियम न भंग।।
🌹
आशा रिछारिया निवाड़ी🌹🙏🏿🌹
[10/02, 9:53 AM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:- पुरा/मुहल्ला 
एक गैल एक‌इ पुरा, एक कुआ की पाट।
राधा के लाने किशन, हेरें बैठे  बाट।।

पुरा परोसी सब जनें, जिमीदार सें कात 
नरदा बै रव खोर में,तोरौ दिन उर रात।।

बाॅंध कलेवा निग दये,पुरा परोसी हार।
नन्नौ परौ चॅंगेर में,धीरज मन में धार।।

पुरा परोसी आज कल,बैर बिसायें रात।
एक दूसरे के घरे, कै रय हम न‌इॅं जात।।

इक पातर में खात ते, पुरा परोसी भात।
अब तो हॅंसिया लयॅं फिरत,करें न सूदें बात।।
          भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[10/02, 10:01 AM] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहा बिषय- पुरा (मुहल्ला)*

#राना सौचत रात हैं,सावधान रयँ लोग।
पुरा हमेशा स्वच्छ हौ,नौनें रयै सुयोग।।

सबइ पुरा के लोग अब,#राना हिलमिल राँय।
कौनउँ जब तकलीफ हौ,आपस में बतलाँय।।

घर दौरै जब  साफ हौं,रयै पुरा की शान।
#राना पूरे गाँव में,बन जातइ पैचान।।

#राना ब्यारी सूँट कैं,जुरत पुरा के लोग।
करत खूब बतकाव हैं,जलै चिलम को भोग।।

चलै गयै बें ‌दिन सबइ,,पुरा भयै वीरान।
#राना घर में सब घुसै,सूनी अब दालान।।
      *** दिनांक -10-2-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[10/02, 10:09 AM] Dr. Rajesh Shrivastava Prakhar: पुरा  भरे  में  जो  हतो , सबरन  से  बदमास 
प्रखर वोइ अब बन गओ, नेता जी को खास

प्रखर फेसबुक पे बने, उनके  दोस्त   हज़ार 
चीनत    नइया   गांव के, पुरा परोसी   यार

डॉ राजेश प्रखर
[10/02, 10:12 AM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: पुरा  भरे  में  जौ  हतो , सबरन  सें  बदमास। 
प्रखर वोइ अब बन गओ, नेता जी कौ खास।।
वाह आदरणीय 👌 👌 👌 
डॉ राजेश प्रखर
[10/02, 10:53 AM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार १०फरवरी २०२५
दोहा शब्द -पुरा/मुहल्ला 
             १
पुरा भरेसें लेत हैं,उठकें रोज लराइ।
जुरी बिजत्तर मोयहै,कांसे जा घरवाइ।
               २
अलग-अलग हर जातके,पुरा बसतते पैल।
फिरभी राखतना हते, मनमें  कौनउं  मैल।
             ३
पुरा परौसी जुरमिले, गए नहाबे कुम्भ।
अनहौनी करबे उतै,आगय कुम्भ निसुम्भ।
             ४    
नोनो करकें कामजो,चलो  जात परलोक।
पुरा मुहल्ला गांवके,करत  हमेशा शोक।
            ५
गांजो मदरा पियत हैं,खात मुनक्का भंग।
बे जुर-मिलकें  करत हैं, पुराभरे हां तंग।
मौलिक रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[10/02, 11:23 AM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली विषय  *पुरा* (मोहल्ला)

पूरौ जुर गवँ है पुरा , मच रवँ हल्ला यैन |
जुड रइँ नदिया वेतबा , बाँदा  वारी कैन || 

पुरा भरै की औरतें , जुर  कैं   घर   में    आँइ |
कर रइ बिटियाँ की विदा , दे   आशीसन छाँइ ||

पुरा भरै में  फैल गवँ , पसर गऔ है  भात |
माते  लुकै  पियाँर   में , बैरी बनकें  कात ||

पुरा  सुहानौ  हौत  है , जितै   प्रेम से   रात |
चार  जनै   बैठे उठै  , सुख दुख कामें आत || 

जौन  पुरा में   हो चुगल ,  लेन न  दैबें   चैन |
तीन तिगाड़ौ   है करत , सबकी करतइ ठैन ‌||

सुभाष सिंघई
[10/02, 12:05 PM] Anjani Kumar Chaturvedi Niwari: खेती  बिगरै  काँस   सें,  सारे  सें   घरबार।
चुगला  सें  बिगरै   पुरा, दूतन  सें   दरबार।।

जितै मुलक रडुआ बसें, रडुआ पुरा कहात।
संग  बिना ऊ गाँव  में, जनी मांस नइँ जात।।

पुरा मोहल्ला में बसें, अगर  चुगल  दो चार।
घर   समेत   ऊ  गाँव   कौ,  होवै   बंटाढार।।

जौन   पुरा  में   होत  है,  दोइ   टैम  रामान।
ओइ  पुरा  में  हैं  बसत,  दीनबंधु  भगवान।।

रो  रव  है  पूरौ  पुरा,  मच  रव  हल्ला  यैन।
भड़या लै  गव खेंच कें, दो  तोला  की  चैन।।

अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत निवाड़ी
[10/02, 12:51 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- पुरा
(1) अपने पुरा परोस में,
      तुमने बैर बिसाव।
      काम परे जाने कबे,
      का कर लेव बताव।।
(2) पुरा मुहल्ला छोड़ के,
      आन मुहल्ला जाव।
      देखत केंड़ा बैर से,
      जो है हाल तुमाव।।
(3) पुरा परोसी सोच बें,
      अड़बंगो है काम।
      भुन सारे सें लर परत,
      मचा देत कुहराम।।
(4) पुरा भरे में दोंदरा,
      देत फिरत खुरदाय।
     दद्दा बऊ रोकत नहीं,
     लड़का जब हुदराय।।
(5) पुरा भरे में सीदरे,
      लरका है दो चार।
      पढ़ें लिखें कैवो सुनें,
      जानें घर परिवार।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[10/02, 2:46 PM] Taruna khare Jabalpur: 'पुरा' शब्द पर दोहे 


पुरा भरे की गोपियां, करतीं मंगलगान।
नंद जसोदा के घरै, जन्मे जब भगवान।।

पुरा परोसी आन खैं, ठांड़े नंद दुआर।
जसुदा जायो लालना, दिखला दे इक बार।।

नटखट लाला नंद को,ऊधम खूब मचायँ।
पुरा भरे की गोपियां,लै उराहनो आयँ।। 

संग सखन के जात है,पुरा भरे मै श्याम।
माखन की चोरी करै,नाम भओ बदनाम।।

आई पुरा मै पूतना,सुंदर बनखैं नार।
मिल जाबै नंदलाल तौ,झट्टई दैहों मार।।


तरुणा खरे जबलपुर 
🙏🙏
[10/02, 3:07 PM] Dr Renu Shriwastava: दोहे विषय पुरा( मोहल्ला)
✍️✍️✍️✍️✍️✍️

पुरा पड़ोसन में कबउं, 
बैर करो ना  कोइ।
सुख दुख में सब आत हैं, 
काम परे जे सोइ।। 

बन खों राम पठा दये, 
देखै पुरा पड़ोस।
कैकइ खों सब कोस रै, 
उये लगावैं दोस।। 

पुरा पड़ोस हिरा गये, 
अब कालोनी कात। 
ऊसो सांसो प्रेम ना, 
अब मांसन में रात।। 

कान्हा दही चुरा रहे, 
पुरा भरे के ग्वाल। 
पकड़ न पा रईं नारि सब, 
बड्डो चोरन जाल।। 

नवराते मज्जा धरीं
जुरैं पुरा की नार।, 
हिलमिल मंगल गा रहीं, 
नोनो है दरवार।। 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
            डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
               सादर समीक्षार्थ 
                स्वरचित मौलिक
[10/02, 5:48 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय पुरा 
*******************
                       1
पुरा परौसी संग गये, नगर ओरछा धाम। 
पुक्खन में दर्शन करे, जितै विराजे राम। 
                         2
पुरा मुहल्ला के सबइ, हर छिन आबें काम। 
इनकी भी पूँछौ कुशल, रोजउँ सुबहो शाम। 
                          3
बे नइँ मानत काउकी, काँ लौं हम समजाँय। 
पुरा भरे में बे बजह, जाती बिनइँ बुलाँय। 

                    4
रहन-सहन नौनों रखौ, रखौ पुरा सें हेम। 
आपस के सदभाव सें, उमडें चहुँदिस  प्रेम। 
                    5
पुरा भरे रमकू लरें, गारी सब खों देंय। 
नल पै कब्जा खुद करें, घर भीतर कर लेंय। 
रामानन्द पाठक नन्द
[10/02, 10:02 PM] Shobharam Dagi: बुंदेली दोहा (256)बिषय-"पुरा"
(मुहल्ला)    (संशोधित)
                 (01)
 
खेलत अँगना रामजू,ठुमक-ठुमक कै जात ।
पुरा मुहल्ला की जुरैं,"दाँगी" लख हरसात ।।
                
                    (02)
पुरा परौसी जुर गये,जुर गय लोग लुँगांइँ ।
तबियत बिगड़ी दाउकी,"दाँगी" देत दबाँइँ ।।

                     (03)
प्रयाग दरसन को गये,बुड़की ली कइ बार ।
"दाँगी"कुम्भ नहाय कैं,भोग पुरा खौं यार ।।

                    (04)
नंदबबा औ देवकी,ड़ाल दिये थे जेल ।
पुरा पड़ौसी ना तकैं,"इन्दु योजना फेल ।।
                     (05)
"दाँगी"गय ससुरार जब,आय पुरा के लोग ।
सास-ससुर छूबैं चरन,मिले सबइ सब जोग ।।

                      (06)
पड़-लिखकैंअफसर बनौं,"दाँगी" 
कन्नैं नाव ।
गांव पुरा में शान हो,जब अफसर बन जाव ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
*******
दिनांक -8-2-2025नहीं (नींव)*


[08/02, 12:57 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा विषय :-नहीं (नींव)*

#राना  नीं पथरा कयै,हम दैतइ बलिदान।
पर कंगूरन से कामना ,रखें मकाँ की शान।।

सुनी कहावत है इतै,जौ नीं पथरा हौत।
#राना उनके कर्म में,है बलिदानी  जौत।।

नीं के पथरा बोल कैं,जब मिलतइ सम्मान |
#राना हरसत है जिया,व्यर्थ नहीं बलिदान।।

खौदत नीं खौं लोग है,बनै ठोस आधार।
मजबूती #राना रयै, हौ  मकान तैयार।।

नीं खौदत मजदूर तब,गिरै  पसीना आन।
#राना बनतइ जब मकाँ,नहीं मिले पहचान।।
      *** दिनांक -8-2-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[08/02, 1:23 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा,, बिषय ,,नीं ,,नींव
***********************************
नीं मेँ जिन्दा चुन गया , घन का मिला इनाम ।
किला जोधपुर बन गया , पढ़ोँ राजिया नाम ।।

ताज महल की नींव में , डूबेँ कुआ पचास ।
तीन रानियाँ हैं दफन , तब "प्रमोद"भव खास ।।

जी की जैसी नीं भरी , उसई रैय मकान ।
संस्कार मांँ बाप के , लियेँ रात इंसान ।।

नीँ के पथरा नइँ दिखेँ , जी पै महल सुहाय ।
लिए तिरंगा हाथ में , रहा "प्रमोद"बताय ।।

बाँदोँ ताल बहेरिया , नीं में मउआ ठूँस ।
फिर"प्रमोद"देने परीं , अभियंता खोँ घूँस ।।

नाप तौल धरती खुदी , भर दय पथरा गार ।
सोम दोम नीं भर बनी , घर खइयाँ तइँयार ।।

नीं में भर दय पैल सेँ , छरिया पथरा ऐन ।
अब "प्रमोद"आवास खोँ , खड़ेँ लगाकेँ लेन ।।
**************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[08/02, 1:34 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय नीं 
                        1
सुदा महूरत नीं खुदी, टका रुपइया डार। 
मन के सपनें लो सजा, खुशियाँ  मिलें अपार। 
                        2
घर की गैरी नीं खुदै, पथरन सें भर जाय। 
तौ भींटें हुइयें अमर, कउँ दरार नइँ  आय। 
                        3
बिना कूत कछु तामसी, आडी लेतइ न्याव। 
हुमस जात नीं कौ टका, केस बिदत जब ठाव। 
                         4
संस्कारों की नीं अगर, भर जैहै मजबूत। 
हुयें सुपुत्री बेटियाँ, बन है पूत सपूत। 
                          5
कच्ची नीं ना खोदिऔ, कर ना पाहौ भोग। 
घर बारिस ना सै सकै, बुरव जुरै संजोग। 
रामानन्द पाठक नन्द
[08/02, 3:20 PM] Taruna khare Jabalpur: नीं(नीव ) शब्द पर दोहे 


नीं  पैलां पक्की करौ,तबै उठाओ भीत।
नातर घर गिर जात है,सुनौ ध्यान सैं मीत।।

संसकार की नीं डरै,पैलां घर सैं यार।
संस्कारी बालक बनै,जानत सब संसार।

बढ़िया नीं भरवाइयो, लोहा पथरा डार।
घर होबै मजबूत जब, पक्को हो आधार।।

नीं पक्की कर भेजियो,लरकन खां इसकूल।
नातर पड़ पाबैं नहीं,तुरत जात हैं भूल।।

पंचतत्व की नीं डरी,हाड़-मांस की भीत।
मन को पंछी बैठ खैं,करै जगत सैं प्रीत।।


तरुणा खरे जबलपुर 
🙏🙏🙏
[08/02, 5:01 PM] Subhash Singhai Jatara: शनिवार-8.2.25-बुंदेली - *नीं* (नींव)

पथरा नीं को चुप रहत , दिखत  कँगूरा चाह  |
हर्र    लगै ना   फिटकरी , मोरी    हौबें  वाह    ||

नीं के पथरा है कुटत , दुरमट.  सें दें खूत |
कर्री   छाती राखकैं  ,बने  रात  मजबूत ||

हर कामन की नीं बनै , लगत जितै हुश्यार |
बनबै पै   चर्चा  नईं  ,  दूर   रयै   सत्कार || 

सबसें   पैला नीं खुदे ,   जीपै बनत मकान |
जितनी गैरी ठोस हौ , रयँ  उतनी बलवान || 

आजादी की  नीं बनी , दबँ गय जितै शहीद |
लाभ कँगूरा   लै  रयै ,  रखें  बड़ी    उम्मीद || 

सुभाष सिंघई
[08/02, 5:08 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-नीं नींव 
विन नीं के न‌इॅं बन सकत,भैया कभ‌उॅं मकान।
ई सें करयन खोंदनें, सुनो लगा कें कान।।

रजनी सूनी चन्द्र विन, सूनों मुख विन पान।
पूजा सूनी शंख विन, ज्यों नी विना मकान।।

काजर विन सूनें गटा, उर सेंदुर विन मांग।
बाखर सूनी नीं बिना,नशा विना ज्यों भांग।।

नर देही ज्यों प्रान विन, पानी के विन कूप।
घर बाखर नीं के विना, सिंघासन विन भूप।।

नीं अब कोऊ न‌इॅं भरत,भयौ फिलर कौ राज।
"अनुरागी" कलकाल में, बॅंधे गदन खों ताज।।
[08/02, 7:19 PM] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा 
बिषय-"नीं" (नींव) (202)
                  (01)
बनौ अजुदया राम कौ,मन्दिर अबै विशाल ।
पथरा राजस्थान कौ,"दाँगी"नीं में ड़ाल ।।
                    (02)
बच्चौं में नीं ड़ालिये,नौनैं रखैं विचार ।
"दाँगी" जेइ बिडम्बना,नइँया ये संस्कार ।।
                      (03)
बनौ मकां मजबूत जो,जीकी नीं मजबूत ।
खड़ौ तिखंडा "इन्दु"कौ,जो है इतै सबूत ।।
                    (04)
हो मजबूती नींव सै,होबै कौनउँ काम ।
ठोस काम रै नींव सै,"दाँगी"अमर
मुकाम।।
                   (05)
नीं में पथरा डारकै,"दाँगी"भरौ गिलाव ।
कारीगर नै एक सौ,कन्नी फेर मिलाव ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[08/02, 11:51 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -202* 
दिनांक 8.2.2024 प्रदत्त *विषय-नीं (नींव)*
*1*
गैरी नीं विश्वास की, राम भगति में राय।
बाल न बांको हो सके,प्रभु जी करें सहाय। ।
     ***
                 -आशा रिछारिया (निवाड़ी)
*2*
बालापन की सीख सें, जीवन बनत महान।
पक्की जी की नीं भरै,पक्कौ बनें मकान।।
           ***
            -डॉ. देवदत्त द्विवेदी,बड़ामलहरा 
*3*
गंगा जल की नीं बहेँ , पीपा पुल पै लोग ।
महा कुंभ में हो रहा , गैल घाट उपयोग ।।
          ***
          -प्रमोद मिश्रा वल्देवगढ़ 
*4*
बचपन में यदि सीख की ,गैरी नीं भर जाय।
तौ जीवन में आदमी ,धोखौ कभउॅं न खाय।।
                ***
        -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
*5*
रामलला को अवध में,नव मन्दिर बनबाव।
पैलो पथरा नींव में, हरिजन सें डरबाव।।
          ***
       -एम एल 'त्यागी',खरगापुर
*6*
पौर अटा दालान की,नीं भर दइ है ऐन ।    
जंट-फंट यदि नींव हो, कर दस मंजिल सैन ।।
      ***
         -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*7*
जी नें नी ढँग सें भरी, ऊ कौ घर मजबूत।
कंजूसी जी नें करी, परत  ओइ  खों कूत।।
     ***
     - अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी 
*8*
संस्कार की नीं बड़ी,होती है मजबूत।                  
चाल चलन में सब दिखे,देना नहीं सबूत।।
        ***
     - मूरत सिंह यादव दतिया 
*9*
बात तनक सी जा प्रखर,जीवन में लो मान।
जितनी  गेरी  नीं  हुए,उतनइ सदे मकान।।
         ***
          -डॉ राजेश प्रखर, कटनी 
*10*
गहरी नीं पै हैं बने ,जितते इतै मकान।
सबके सब मजबूत हैं , लग रय आलीशान।।
         ***
- वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*11*
पथरा नीं के  कात सब, हमरौ  हैं अरमान।
रैबे  बारे आँय  जौ,सज्जन  हो  श्रीमान।।
          ***
     -सुभाष सिंघई , जतारा 
*12*
नीं के पथरा जो बने, कौनउ नईं दिखात।
खडे़ कगूंरे देख कें, सबरे रय मुस्कात।।
      ***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु,बडागांव,झांसी
*13*
नीचट राखो नीं तरे, बैठ न सकै मकान।
नातर भैय्या भोगिओ, बोत बड़ो नुकसान।।
     ***
        -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा(विदिशा)
*14*
सुदा महूरत नीं खुदी, मंदिर भव तैयार। 
राम लला की छबि निरख,सुख पा रव सिंसार।।
           ***
        -रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां
*15*
बूढ़न को आदर करो, नीं को पथरा मान। 
चरित सदा उम्दा रहै, जब वे दें वरदान।।
           ***
              - डॉ.रेणु श्रीवास्तव,भोपाल
*16*
नीं हो गैरी ज्ञान की,रय सदगुन की खान।
न्याय नीत करुणा रहें,सज्जन की पैचान।।
        ***
          - एस आर सरल ,टीकमगढ़
*17*
नीं होबै कमजोर तौ,,टिकबै नहीं मकान।
घर चौपट हो जात है,मूरख हो संतान।।
       ***
-प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ 
*18*
राम भजन हिरदय धरौ, चलौ न सीना तान।
तनक ढका में गिर परत,नीं के बिना मकान।।
           ***
   -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*19*
गैरी नी डरकें बने,ऊँचे भवन विशाल।
कील न खटकी आज लौं,भये हजारन साल।
      ***
       -अरविन्द श्रीवास्तव ,भोपाल
*20*
संसकार की नींव जब ,बचपन सैं डर जात।
ज्वानी मै भटकैं नईं,बे सपूत कैलात।।

                ***
        -तरुणा खरे ,जबलपुर
*संयोजक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी''*
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
****
दिनांक -3-2-2025 बिषय-दुगइ
[03/02, 8:43 AM] Rajeev Namdeo:

 *बुन्देली दोहा बिषय- दुगइ*

बड़ी दुगइ #राना बनी,अच्छो बनो मकान।
माते को रुतबा बड़ो, सबइ जुहारत आन।।

दुगइ अटारी  पौर  है,अटा  बनैं  सिरमौर।
कोठा कुठियाँ चौतरा,#राना घर के ठौर।। 

दादी बैठी है दुगइ,कर रइ कछू  उसार।
नाती पोता रय किलक,#राना करै निहार।।

दद्दा आय बजार सैं,धरौ , दुगइ  सामान।
बाई  रयी टटोल है,#राना पत्ता पान।।

बैठ दुगइ फटकारतीं,बाई घर   कौ  नाज।
कचरा उड़बै दूर रवँ,#राना दें  आबाज।।
    ***-3-2-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[03/02, 9:42 AM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,,बुन्देली दोहा ,बिषय,,दुगइँ,,
***********************************
चौक पूर केँ दुगइँ में , धरोँ खौँच भर अन्न ।
सुमरत मइया शारदा , होत "प्रमोद"प्रसन्न ।।

पौर मड़ा आँगन दुगइँ , अटा अटारी छत्त ।
है उसरा गुजरायती , कइँ"प्रमोद"ने सत्त ।।

टपरा छपरा टपरिया , बनोँ तीरकश दोर ।
आँगन में नोनी दुगइँ , बनीँ भीँट पै मोर  ।।

धना चना दरवै दतीँ , धरेंँ जतइया टन्न ।
जबइँ आय पइँ पावने , देख दुगइंँ रय सन्न ।।

धना दुगइंँ में बैठ केँ , ऊँछेँ लम्मेँ बार ।
ओँठन पै मिसिया घिसेँ , आँखन काजर डार ।।

झालो दयँ टेरेँ धना , पिया दुगइँ में आव ।
फूँक-फूँक में हार गइँ , तुम चूलो सिलगाव ।।

**************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
          ,, स्वरचित मौलिक ,,
[03/02, 10:52 AM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली दिवस- *दुगइ * (दालान)

सासउँ  दुगइ मकान में , खूब ‌ काम  में  आत  |
झिरी   लगै बरसात  की , उन्ना  उतइँ  सुखात ||

आज दुगइ वीरान हैं  ,   ऊखरी मूसर  लोप |
मैनत करबै कौन अब ,   अपनो जी  दै  रोप ||

खुली -खुली सी रात है , घर की दुगइ सुजान |
चार लोग भी बैठ कै ,  खात    तमाकू   पान  ||

खपरीली हो जब दुगइ , हो लकड़ी को ठाट |
चार चीज खुरसी रयै ,   और रखी रय खाट ||

चुरिया बारौ आ़यँ जब ,     बैठ दुगइ में जाय |
बउअन बिटियन खौं उतइँ , चुरियाँ बौ पैनाय ||

सुभाष सिंघई जतारा टीकमगढ़ म०प्र०
[03/02, 12:00 PM] Shobharam Dagi: बुंदेली दोहा बिषय-"दुगइ"(255)
                    (01)
बनौ बायरैं चौतरा,दुगइ पौर के पास ।
आँगन नीकौं है गजब,"दाँगी" नकसा खास ।।
                    (02)
पौर अटा सबकैं बने,दुगइ टोर दइँ चार ।
"दाँगी" न्यारे हो गये,कन्नैं परत उसार ।।
                    (03)
दुगइ मजोटें बैठकैं,बाँचत है रामान ।
"दाँगी" सबै सुनात हैं,बउ-बब्बा दैं
ध्यान ।।
                     (04)
आँगन बैठी बेदिका,घेरउँ बनी अटाइँ ।
"दाँगी"सामैं टोर दीं,नौनीं दुगइँ बनाइँ ।।
                     (05)
बसंत पँचमी के दिनां,दुगइ सजा दो ऐंन ।
"इन्दु"पूजनै सरसुती,ग्यान कि देवी बैन ।।
                     (06)
औठन पै लाली रचै,धना दुगइ में बैठ ।
सज-धजकै नौनीं लगैं,"दाँगी" पै रइँ ऐंठ ।।
                      (07)
पौर अटाई "इन्दु"की,दुगइ जल घरा पास ।
बखरी नौनी ढारकैं,बनी गाँव में खास ।।
                 (08)
घूम दार दालान की,शोभा कइँ नै जात ।
दुगइ बिछौना डारकै,दाँगी" ठंडक रात ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[03/02, 1:36 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार 03 फरबरी 2025
          दोहा शब्द-दुगइ
                1
कुरवा खाडी बिछाकें,ऊपर खपरा छाय।
आंगे बनी अटाइके,छपरी दुगइ कहाय।
                2
बारत गुरसी दुगइ में,बैठत मुलकन आन।
सबइ बगारत रातभर,अपनो अपनो ज्ञान।
                 3
तलफत कोरन खडनहां,डरे दुगइमें रोज।
लरका बउं नाती नता,करत मडनमें मौंज।
 
                  4
मातेजूकी दुगइमे,नोनो लगत बिलात।
बूडे बारे सबइ हो,उतइ बैठबे जात।
                  5
दुगइ बनाबे से हमें,होत भौतसो लाब।
बनी ओइसें रात है ,सबरे घरकी आब।
 
मौलिक रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[03/02, 3:07 PM] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा प्रदत्त शब्द -दुगइ/दालान
(१)
गाॅंव  पुरा   देहात  में ,   देखी  हमनें  रीत।
दुगइ अगाॅंईं है बनत , टपरा  डरत पछीत।।
(२)
जुआँ कोपरा हर बखर ,सबरी धरी उसार।
बेर  दुगइ  पै  सूख रय , ठंडी  लगै  बयार।।
(३)
खाट  दुगइ  में डार कैं , माते  जू सो जात।
बीसा  कुत्ता  रात  में  ,  परौ - परौ  दर्रात।।
(४)
लिपी पुती  होबै दुगइ , देखैं  जिउ हरसात।
पिंजरा में पड़बै सुआ ,सबके मन बहलात।।
(५)
हती दुगइ "नादान" कैं , ओई में सुख सोय।
डाट परी सो ओइ में , दुके - दुके हम रोय।।

आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुरी
(स्वरचित) 03/02/2025
[03/02, 3:43 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- दुगई (दालान)
(1) शोभा घर की है दुगइ,
      बिना दुगइ बेकार।
      पुरा परोसी बेठबे,
      नाते रिस्तेदार।।
(2) मिटे दुगई के बैठका,
      करबे लुकत उसार।
      होबे कोरी ठलमसे,
      नइ पुसात सबयार।।
(3) पैल दुगई कौ रव चलन,
      अब बिन दुगई मकान।
      नइयाँ परबें बैठबे,
      भूल गये इन्सान।।
(4) जबे हती घर घर दुगइ,
      अब कव किते दिखात।
      हैरानी मानन लगे,
      जाबे जबइ बिलात।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[03/02, 4:17 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय दुगइ 
*********************
                     1
दोरौ हतौ अटाइ कौ, टोरी दुगइ उताँय।
हाथ पाँव ढीले भये, खटिया मईं बिछाँय। 
                      2
डुकरा की खटिया बिछी, परौ रतइ दिन रैंन। 
गरमी उयै सताय नइँ, मिलत दुगइ में चैंन। 
                      3
नई नबेली बौटिया, घर के भीतर आइ। 
दुगइ बिछौना डार कें, आदर सें बैठाइ। 
                      4
बीच दुगइ चूलौ धरौ, येंगर  बिछी चटाइ। 
बैठे आगी बार कें, मइँ भयँ करी बियाइ। 
                        5
पानी झिमकाँ रव बरस, गये दुगइ में ऊब। 
छिवले की जर नीछ कें, करे बकोंडे खूब। 
रामानन्द पाठक नन्द
[03/02, 4:55 PM] Dr Renu Shriwastava: दोहे विषय दुगइ (दालान)

 मढ़ा अटारी काँ लगत, 
जो दुगई में रात। 
बाहर भीतर की सबइ, 
बातेँ उते सुनात।। 

पोर, अटा औ बाखरी, 
कोठा, छत्त पुसात। 
दद्दा दुगई में परे, 
 देखन सबरे आत।। 

सासैं जब दंडे करैं , 
दुगइ लगे पंचात। 
घूघट डारें बहु उते, 
सुन रइ सबरी बात।। 

दुगई में कोंड़ा बनो, 
तापत हैं सब लोग। 
धना अटा से देखतीं, 
नोनो है संजोग।। 

विदुर घरे कान्हा चले, 
बैठे दुगई आन। 
रूखो सूखो खा रहे, 
भक्तन की जा शान।। 

                डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
                 सादर समीक्षार्थ 
                 स्वरचित मौलिक
[03/02, 4:59 PM] Prabhudayal shri. Shrivastava, Tikamgarh: जी के रत हैं दोर दो, बेई दुग‌इ कहात।
एक मड़ा में दूसरौ, आंगन में खुल जात।।

दुग‌इ दुआरें बैठ कें, र‌इँ हैं पटियां पार।
तेल गरी कौ डार कें,र‌ईं लटें निनवार।।

देत दोंदरा दुग‌इ में, मिल न‌इँ रये मिजाज।
खटिया की पाटी लयें, परीं रिसानीं आज।।

कभ‌उँ परत ते पौर में, कभ‌उँ दुग‌इ में आन।
कभ‌उँ अटारी में परे,बदलत रत ते थान।।

आ गय हैं नय पांवने, होन लगे सत्कार।
पलका डर गव दुग‌इ में,पोंड़े  पांव पसार।।

             प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
[03/02, 9:17 PM] Taruna khare Jabalpur: 'दुगई' शब्द पर दोहे 



चार पाउने जब जुरैं,खूबई परै उलात।
दुगइ बिछौना डार खैं,सबके सब सो जात।।

दुगइ बनी भारी बड़ी,बैठक सबकी होय।
रातै खटिया डार खैं,कक्का दाऊ सोय।।

दुगइ बीच डारी दरी,पंगत दइ बैठार।
जेवन बैठे पाउने,परस दई ज्योनार।।

दुगइ बिछाई डार खैं, बैठीं गुंइयां चार।
तनक तनक सी बात पै, हँसतीं ठठ्ठा मार।।

लरका बच्चा खेलते,धरे खिलौना ऐन।
दुगइ बैठ दाऊ तकैं,आबै जी खैं चैन।।

तरुणा खरे जबलपुर 
🙏🙏

दिनांक -27-1-2025
[27/01, 9:30 AM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,,बुन्देली दोहा विषय,,ऊदम,,ऊधम,चाली,,
***********************************
मेघनाथ बनकेँ मगर , बालइँ बालाँ आव ।
लखन भरत ऊदम करेँ , ऊनेँ दाँव लगाव ।।

ऊदम कर-कर भय किशन , बृज मेँ माखन चोर ।
धरैँ टौरिया मूँढ़ पै , तरेँ पैँड़ लय ढोर ।।

ऊदम करतइँ गिर परेँ , मौंचोँ डैरो हाथ ।
रोय बाइँ दद्दा मुलक , लिपड़ चूमकेंँ माथ ।।

एक दार ऊदम करो , हनकेँ खेली फाग ।
कुटै"प्रमोद"मताइँ सेँ , लगेँ पजामा दाग ।।

बारा बारा मार केँ , रोवन लगी मताइँ ।
ऊदम करेंँ "प्रमोद"तो , कैसेँ हुये पढ़ाइँ ।।

हल्के में हँस-हँस धना , ऊदम करवै जाँयँ ।
मसकी लोड़ "प्रमोद"ने , लगी करेँज कुकाँयँ ।।

ठठरी कंडा नकरियाँ , रोज काड़ रइँ बाइँ ।
है"प्रमोद"चाली विकट , मानोँ राम धुआइँ ।।
***************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[27/01, 11:47 AM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार 27 जनवरी 2025
         दोहा शब्द-ऊदम/चाल 
                     1
हलकोसो हैलगैंठा,ऊदम करत बिलात।
हटकतहैं जा ना उतै,उर ठेंकें मइं जात।
                     2
ऊदम कर खांगल भए,नग नग धरलय टोर।
गुरा रुकतना दौंदरा,दएं फिरत उठ भोर।
                    3
जादां ऊदम ना करो,मान जावरे बात।
कितउं टोरकें दरलियो,नाकउं गोडो हांत।
                   4
हलके में ऊदम करत ,न कोउ सांतो रात।
कितनउं कोऊ हटकबै,तनक गम्मनइं खात।
                   5
ऊदम चारो करोना,चाल और शैतान।
अब तो स्याने होगय,नइं रैगय नादान।
            मौलिक रचना 
     एम एल त्यागी खरगापुर
[27/01, 12:00 PM] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहा बिषय- उदम (शैतानी)*

#राना ऊदम सब करें,जब  भी बचपन होय।
कभउँ कूट के आत है,कभउँ कुटत है सोय।।

#राना ऊदम जो करे,चरपटया सब कात।
कान तानतइ है पिता,गलती सबइ बतात।।

#राना ऊदम श्याम ने,करो ग्वाल के संग।
छेड़ी बृज की गोपियाँ,करत रयै है  तंग।।

#राना  ऊदम देख कै,मात जसौदा कात।
लल्ला तोरो खेल जौ,मौखों नईं पुसात।।

ऊदम मच रवँ देश में,#राना काँतक काँय।
नेता जिनखौं कात है,कटुता खौं फैलाँय।।
    *** दिनांक -27-1-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[27/01, 12:32 PM] Jaihind Singh Singh Palera: सोमवार दिनांक 27.01.2025
बुन्देली दोहा दिवस बिषय-ऊदम
******************************
                    //1//
बड़े बुजुर्गन की करै, ऊदम नैची शान।
 ऊदम जो बच्चा करें,निकरै चतुर सुजान।।

                    //2//
बनवारी ऊदम करै,बृजबालन खों लूट।
 माखन मटकी फोर कें,बोले मन से झूट।।

                    //3//
ऊदम देखत श्याम कौ,सुखी जशोदा मात।
जितनों ऊदम वो करै,उतनौ मन मुस्कात।।

                    //4//
हॅंस-हॅंस माखन लूटते,बृज बसिया चितचोर।
धाई बाबा नंद की,बोलें नंद किशोर।।

                      //5//
होरी की हुरदंग कौ,ऊदम मन कों भाय।
चौलें आपस में करें,गंदी गायें फाग।।

जयहिन्द सिंह जयहिन्द 
पलेरा जिला टीकमगढ़ 
मध्य प्रदेश
[27/01, 1:41 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-ऊदम 
ऊदम में सबसें प्रथम,है कान्हाॅं कौ नाॅंव।
अफरे धरे अनार सें,मुलक भरे के गाॅंव।।

ऊदम कर घर में परे,चपिया डारी भोर।
सुट्ट डरे ऊतर नहीं,नेनू बगरो खोर।।

लोड़ छता में मार कें, ऊदम करे बिलात।
पैंड़े पर गय जोन के,ओइ -ओइ कें जात।।

ऊदम की कां लौ कहें, जागे रातों- रात।
घुरवे गुच्ची जब अर‌इ, छाती मारी लात।।

ककरी केंथा भुंटियां, टोंरी बालें आम।
ऊदम कर -कर जर मरे, रो रय मर गय राम।।
       ‌        भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" 



[27/01, 1:42 PM] Ramanand Pathak Negua: बुन्देली दोहा 
बिसय ऊदम 
                           1
मइया तोरौ तौ लला, देखत लगबै नीक। 
चलत जात ऊदम करै, छोड देत है लीक। 
                             2
सासो सें भौजी कयें, लला करत है तंग। 
पूरे दिन ऊदम करत, छुअत फिरत है अंग। 
                             3
बाल सखा संग श्याम जू, खेलें यमुना तीर। 
मिलकें सब ऊदम करें, किलकै निर्मल नीर। 
                             4
गोरी गइतीं हार खों, देखन अपनों खेत। 
भगा-भगा कें हार गइँ, हरिया ऊदम देत। 
                             5
लरका बारे ऊदमी, होरी खेलन जात। 
काकी बउयें ना गिनें, फिरबें गारी खात। 
रामानन्द पाठक नन्द
[27/01, 2:12 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
विषय -ऊदमी
1-अपन तुपन रय ऊदमी,
 करत रहे शैतान।
अब सो तो हव गय सुदर,
हो गव तन तन ज्ञान।

2-कुंदकत फिरवें ऊदमी,
  रोक रोक हैरान।
हुंदरउआ घर बायरें,
 जानों ने आसान।

3-मिलत उराने रोज को,
   लरकै तो समझाव।
मानत नइया ऊदमी,
  उलटो गाँठत ताव।

4-मइया तोरो लाड़लो,
बड़ो ऊदमी हाय।
रोकत नइया काय सें,
 रोजउ मोय बताय।।

5-मुरली है मन मोहनी ,
  मोहन रोज बजाय।
ऊदम करकें ऊदमी,
इते उते लुक जाय।।


बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[27/01, 2:16 PM] Dr Renu Shriwastava: दोहे विषय ऊधम ( शैतानी)
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
ऊधम ऐसी वे करत, 
माखन सबको खात। 
मइया ग्वालन से कहें, 
कान्हा उते  न जात।। 

लंका में ऊधम करी, 
उजड़ गओ सब बाग। 
ब्रम्ह शक्ति हिय में लई, 
बारी  लंका आग।। 

नल ओ नील तंगा रहे, 
पने गुरु महाराज।
श्राप वरद जो बन गओ, 
बांध दओ पुल साज।। 

मोड़ी मोड़ा सब जुरैं, 
ऊधम जबइ पुसात।
बखरी सूनी सी डरी, 
घर में घुसो न जात।। 

होली में ऊधम बढ़ै, 
फगवारे के संग। 
भौजी लाला डार रय, 
इक दूजे पे रंग।। 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
            डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
                सादर समीक्षार्थ 🙏
                स्वरचित मौलिक 👆
[27/01, 2:25 PM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली दिवस - *ऊदम* (शैतानी )

लरका सब ऊदम करें , बिदा  लैत है गट्ट |
बाप मताई आन कै ,   सुरजा लैतइ झट्ट || 

ग्वालिन जाती गैल में , छेड़छाड़ के  काम  |
माखन माँगें नेग में ,   करबें  ऊदम श्याम  ||

ऊदम बचपन में करत , कभउँ   टोर लें टाँग |
आतइ घरै  लुलात है , तनिक खुजा के आँग  || 

ऊदम जब इस्कूल में ,   यार करत तै  चार |
बेंत घलत ते   हाथ में , परती गुड़ी  लिलार ||

भइ  छुट्टी  इस्कूल ‌से , ऊदम  से हो  चैन  ‌‌|
देख बिही  के पेड़ खौं  , हमने टोरी यैन ||

रकत चुचा घूँटै छिले , मौचे  मौरे पाँव |
पर ऊदम छोड़ो नइँ , जानत पूरो गाँव ||
[27/01, 2:44 PM] Taruna khare Jabalpur: 'ऊदम' शब्द पर दोहे 


मौड़ा मौड़ी करत हैं,ऊदम बेजा यार।
बब्बा जू हैरान हैं,देत जोर की मार।।

बंदरा चड़ खैं पेड़ पै,बेजा ऊदम देत।
कच्चे पक्के फल सबै,टोर टोर खा लेत।।

लंका मै हनुमान नै,ऊदम खूब मचाव।
सभा बीच लंकेस की, अद्भुत रूप दिखाव।।

गोपन को ऊदम करैं,कृष्ण लूट दध खायँ।
लै उलाहनो गोपियां,जसुमति के ढिंग आयँ।।

ऊदम जादा नै करौ,पड़बे मै दो ध्यान।
पड़े लिखे खौं मिलत है, सदा जगत मै मान।।

तरुणा खरे जबलपुर 
🙏🙏
[27/01, 4:30 PM] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा प्रद्त्त शब्द - ऊदम
(१)
ऊदम  करौ  बरात में , दम  सैं  भई दुचाइ।
हरदी  में  चूना  मिला , लगा  रई  घरबाइ।।
(२)
बदमासन  के  काम  जे , मजा  दूर  सैं लेत।
लत्तै  साॅंप   बताय  कैं ,  ऊदम  करवा देत।।
(३)
लरका   ऊदमया   पजौ ,  अरे  दरे  है  लेत।
सुख सैं बाप मताइ खौं,खान पियन नइॅं देत।।
(४)
बड़े - बड़े  ऊदम  करें  ,  पकरे  जाॅंय  बछेउ।
दंद   कराकैं  दूर  रयॅं  ,  करबैं   दूद  कलेउ।।
(५)
ऊदम  दंद  फसाद  तौ  ,  नेता  खूब  कराॅंय।
भलौ  चाव "नादान" सो , इनसैं बचकैं  राॅंय।।

आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुरी
( स्वरचित ) 27/01/2025
[27/01, 8:48 PM] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी बिषय-"ऊदम"/शैतानी,बुंदेली=दोहा (254)
                (01)
किशन कनइयाॅ ऊदमी,दिन भर करबै चाल ।
मूसल सैत कड़ोरबै,"इन्दु"नन्द कौ लाल ।।
                 (02)
मौड़ी-मौड़ा लाड़ले ,ऊदम करबै ऐन ।
आयॅ उरानैं गांव के,"दाँगी"करबै सैन ।।
                  (०३)
चुरा-चुरा माखन खबै,घर में घुस-
घुस खायँ ।
जान-बूज ऊदम करैं,"दाँगी"सखा
लुआयँ ।।
                     (०४ )
ऊदम कर-कर गिर परे,डरे-डरे चिल्लायँ ।
दौरी ओरी गोद लव,"दाँगी"चुप्प करायँ ।।
                    (०५ )
ठुमक-ठुमकअँगना चलैं,छुम-छुम बौलैं पांव ।
ऊदम खों उक्तात हैं,"दाँगी"राम जू नांव ।।
                   (०६ )
राजनीत की धज्जियां,नेता खूब उड़ायँ ।
कर ऊदम भर काम में,"दाँगी" बिघन मचायँ ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़(म प्र)
मोबा०=7610264326

दिनांक -25-1-2025

पौंछ पाँछ चाटन लगो , रय "प्रमोद"मुस्काय ।।

धनियाँ अब बुढ़या परीँ , सब गुड़यानी खाल ।
पुपली होगइँ थूँतरी  , खिरबिर्रे भय बाल ।।

पुपला की ठठरी बधैंँ , फिर रव कडी़ छबायँ ।
पंगत जुरै "प्रमोद"तो , फरके जेउ अँगायँ ।।
**************************************
     ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
               ,, स्वरचित मौलिक ,,
[25/01, 5:55 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
विषय -बुखला
1-नये मुहारे हो बने,
   मोमें नइयाँ दाँत।
देखो तो बुखला भये,
 तोई पे मुन्नात।।
2-,आँखन पे चश्मा चड़ो,
   ऊँचों सोई सुनात।
लगन लगे बुखला मनो,
सबरी गिर गय दाँत।।
3-बुखला में बतकाय को,
  ज्यादा नइया काम।
कहो सुनो जल्दी चलो,
  बोलो सीताराम।।
4-हो गय कितने साल के,
   खो दय पूरे दाँत।
बुखला से तो हो जबइ,
खात बने केहि भांति।।
5-देखो जू दाँतों बिना,
  पक्को बन गव जाल।
बुखला भय चबुआ घुसे,
 चिबक गये हैं गाल।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[25/01, 7:23 PM] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा बिषय- "पुपला"          (०१) 
मौ में जीकें दाँतनइँ,पुचके दिखबैं गाल ।
"दाँगी"रोटी नइँ चबै,कालौ खाबै माल ।।
                   (०२)
गिर गय झटटइँ दाँत सब,पुपला कै रय लोग ।
"इन्दु"भले है दूबरे,दाँतन खाबै जोग ।।
                   (०३)
नन्ना बाई खेत पै,लरका बउए चार ।
पुपले"दाँगी"का करैं,गला-गला कै पार ।।
                     (०४)
गुटक न पाबै टैटुआ,मुरतइँ नइँयाँ  कौर ।
पुपला मौ कारन बनौ,"दाँगी" करबै गौर ।। 
                     (०५)
कड़ी दार पतली बनै,डुबै-डुबै कै खायँ ।
पुपला का औ कर सकैं,"दाँगी" ऐसइँ पायँ ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी ""इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326


दिनांक -20-1-2025
[20/01, 7:28 AM] Rajeev Namdeo: दि०२०-०१-२०२५ मंच को नमन।।
प्रदत्त शब्द -पिल्ला।

पिल्ला कउॅं कउॅं कर रहा, काॅंप रही है देह।
दीन ठिठुरते  जग कई , जिनके ढिंगा न गेह।।
***
मौलिक, स्वरचित 
"*-डाॅ०रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर', ललितपुर*
[20/01, 7:36 AM] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहा विषय - पिल्ला* 

#राना पिल्ला आजकल,अफसर लेतइ पाल।
जिनै खिलाबै बाइ जी,सैलाती हैं बाल।।

पिल्ला  के है चौचले ,#राना देखे दूब।
बैठ खिलाती गोद में,मैम  साब  जी  खूब।।

पिल्ला छोटे हौत  है,बढकैं कुत्ता  हौत।
#राना  दैखत शाम से, कभउँ  रात भर रौत।।

कुतिया पिल्ला जब जनै,चार पाँच दिखलात।
#राना  उनखौं  पालबे,लोग छाँट ले जात।।

पिल्ला बनकै लोग भी,भय से कुछ डर जात।
सबइ कहै मौं पै उतइँ,#राना क्या है बात।।
***दिनांक -20-1-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[20/01, 9:22 AM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-पिल्ला 
पूॅंछ कपाउत दिख परें, पिल्ला ररे तमाम।
भूंके फिर रय गैल में, जिनें जिबा रय राम।।

कुत्ता पालें सब जने, कुतिया नहीं पुसात।
उल्टी जग की रीत जा,पिल्ला सब‌इ कहात।।

लरका बिटियों के बनत, पिल्ला पिल्ली खेल।
कुंइ -कुंइ करबैं रात दिन,आफत खों रय झेल।।

पिल्ला कौ जीवन कठन, पूॅंछ कान कट जात।
जाकें बैठें जी जगा, डण्डा लातें खात।।

करनी सब नीकी करौ, भजलो सीताराम।
जो कजात पिल्ला बनें,भौकत फिरौ तमाम।।

कुछ पिल्ला भूके फिरत, कुछ न‌इॅं खा रय खीर।
"अनुरागी" नोने चलौ,कर्म‌ गढे़ तकदीर।।
    ‌‌          भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[20/01, 9:40 AM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली,,दोहा विषय,,पिल्ला,,कुतिया के बच्चें,,
*************************************
कूँ कूँ कत पिल्ला फिरेंँ , कप कपात जड़यात ।
भुकाभुकेँ सेँ दोर में , जे "प्रमोद"किल्लात ।।

टपरा डरो "प्रमोद"को , भुसा धरोँ गाडो़क ।
कुतिया ने पिल्ला धरेंँ , उनै खुआवै ओक ।।

गैल घाट पिल्ला फिरेंँ , कुनकुनात जब भूँक ।
खावेंँ कउँ मिल जाय तो , भक लेतइँ हैं हूँक ।।

धनियाँ रोटी मीड़ केँ , पिल्ला खोँ धर देत ।
चपर चपर घंटन करें , सब "प्रमोद"खा लेत ।।

कुतिया के संगेँ चलत , है पिल्लन की सन्न ।
फेरी दैरय गाँव में , हैं "प्रमोद"कइँ बन्न ।।

कुचेँ पिचेंं कइंँ गैल मेंँ , पिल्ला मरेँ दिखात ।
भाग दौड़ इकदम मचीं , जनता बढ़ीं बिलात ।।

ओली मेँ पिल्ला धरेँ , धना फेरतीँ हाँथ ।
चूँमा चाम कैवै दतीँ , जनम जनम को साथ ।।
**************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
           ,, स्वरचित मौलिक ,,
[20/01, 10:58 AM] Subhash Singhai Jatara: सोमवार -20.1.25-पिल्ला* (कुतिया का बच्चा )

नेता पिल्ला बन गये , है   चुनाव  इस ओर  |
तरवा चाटै आन कै ,  कइँ- कइँ  करबें दोर ||

पिल्ला- पिल्ली आजकल , चमचन कौ धर रूप |
आगें   पाछैं   डोलतइ ,   नेतन   की   लयँ   धूप || 

पिल्ला प्यारे हौत है ,   लरका   जिनै   खिलात | 
कूर - कूर मौं   से  कहत,  रोटी   उनै   खुआत ||

जड़कारें  पिल्ला  मिलें  , जितै  उरइयाँ  हौय |
लै बिठार पिल्ला सबइ  , हाथ फैरतइ   दौय || 

बन्न - बन्न के नाम के , पिल्ला  मिले बजार |
बड़े लोग पालत उनै ,  बिठलाबैं  निज कार ||

पिल्ला पल्ली में परै ,  पररइ  बेजाँ  ठंड |
कूँ कूँ दद्दा कर रयै , गुरसी  जला अखंड ||

सुभाष सिंघई
[20/01, 12:08 PM] Dr Raj Goswami Datiya: पिल्ला पर दोहे
१-पिल्ला पालें बाइ जी, मौं बा कौ पुचकार । साहब सें ना बोलती, करतीं ऊ सें प्यार ।
२-पिल्ला हैं कइ रंग के, इनकों करिये प्यार । लगे सुहाने घरन में, प्रेम करें पुचकार ।
३-पिल्ला होंय पवेलियन, चाहे देशी घार, नाते रिश्तेदार सब, करतइ खूबइ प्यार ।।
४-पिल्ला कू कू करत हैं, पूरा पड़ोसी देख । सबइ दूर कों भगत हैं, पंडित काजी शेख ।।
५-पिल्ला पहरेदार है, रक्षा करै समूल । आहट पा कें चोर की, भोंके ऊल जलूल ।।
       -राज गोस्वामी ,  दतिया
[20/01, 1:11 PM] Ramanand Pathak Negua: बुन्देली दोहा 
बिसय पिल्ला 
                            1
पिल्ला पालौ प्रेम सें, टौफी बिस्कुट खात। 
परौ बैड पै सो रऔ, किसमत सें सुख  पात। 
                             2
पिल्ला घर में पाल लव, करी खुसामद ऐंन। 
घर रखवारी वौ करै, रात दिना सुख चैन। 
                               3
उनखों पिल्ला आँसबै, जिनके दोरे जाँय। 
मसकाँ सें घर में पिडें, करें गंदगी आँय। 
                                4
पिल्ला घुसे प्याँर में, बच्चा देखन जाँय। 
कूँ कूँ कर बाहर कडे, पाछे सें पछयाँय। 
                                 5
पिल्ला रत्ते डाँग में, हते लडइया  गाँव। 
ब्याव कराबे आय ते, तब सें जम गय पाँव 
रामानन्द पाठक नन्द
[20/01, 3:33 PM] Dr Renu Shriwastava: दोहे विषय पिल्ला 

पिल्ला पालैं पावने, 
बिस्कुट दूध खवात। 
ऐन अकड़ के वे चलत, 
पिल्ला संगे रात।। 

पिल्ला की का जिंदगी, 
कोउ रोड पे रात।
कोउ भाग नोने रहैं, 
बिस्तर में सो जात।। 

मोड़ी मोड़ा खेल में, 
दोउ कांखरी दबात। 
पिल्ला उनके रत लिगा, 
काँउ काँउ चिल्यात।। 

करम करौ नोने सबइ, 
मिलहै नोनी देह। 
ननतर पिल्ला से फिरौ, 
कोउ न करहै नेह।। 

चिंटू सो पिल्ला धरो, 
तकै बिलइया तांइ। 
मुड़ी घुमा के देखती, 
फेरै गरदन मांइ।। 

             डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
                स्वरचित मौलिक
[20/01, 4:40 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार 20 जनवरी 2025
      दोहा शब्द -पिल्ला
                  1
जडकारे में दिखत हैं, पिल्ला फिरत तमाम।
कंइ-कइं कै चिल्लातहै,झेलत जाडो घाम।
                    2
बछवा बछिया गायके,बछडा घोडी देत।
पडियां पडवा भैंसके,कुतिया पिल्ला केत।
                  3
बडिया पिल्ला देखकें,पाल लेत सबकोय।
कान काट दोइ देत हैं,लगत पालतू होय।
                   4
पिल्ला परत रजाइ में, कुत्ता पिल्ला देत।
ढीमर पिल्ला डार कें,मार मछइयां लेत।

एम एल त्यागी खरगापुर
[20/01, 5:16 PM] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी-बिषय-"पिल्ला" बुंदेली दोहा (253)  
                    (01)
पिल्ला दुके प्याँर में,कूँ-कूँ करबैं ऐन ।
हल्के मौड़ा खेलबैं,"दाँगी" लग रइ लैन ।।
                     (02)
कुतिया ब्यानीं प्याँर में,पिल्ला हो गय सात ।
कइँ-कइँ की आवाज सुन,"दाँगी" लैबे जात ।।
                   (03)
गैंत लगो तौ प्याँर कौ,ऊमें लग गइ आग ।
पिल्ला दौरत कुँइँ करें,"दाँगी"पर गइ झाग ।।
                       (04)
कूँ-कूँ पिल्ला करत रबै,"दाँगी"मन ललचाय ।
उठा गोद में लेत हैं,खूबइँ उनैं खिलाय ।।
                     (05)
हल्के-हल्के पांव के,"दाँगी"मस्त
दिखात ।
प्यार करत्ते सब जनैं,मौड़ा उनैं खिलात ।।
                   (06)
गैल चलत मिल जात है,पिल्ला पूँछ हलात ।
नेता वोटन पै फिरै,"दाँगी"दोरन जात ।।
                   (07)
दोरन-दोरन वे फिरै,पिल्ला मां के संग ।
"दाँगी"ममता माइ की, लाड़ करै बेढंग ।।
                   (08)
प्रभु के पिल्ला सब जनैं,बेइ करत उद्धार ।
पाल-पोस कैं कर बड़ौ,"दाँगी" नइया पार ।।
                   (09)
"दाँगी"पिल्ला आपके,राखैं रइयौ ध्यान ।
तुम सिवाय नइँ कोउजो,इन्दु"करैं गुन गान ।।
                  (10)
पिल्ला तोरे आसरैं,"दाँगी"चरनन पायँ ।
खुले बादरों के तरै,कूँ-कूँ किलपत रायँ ।।

मौलिक रचना 
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[20/01, 6:33 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: विषय -पिल्ला
दोहा
1-करें किलोरें खोर में,
   पिल्ला जब दो चार।
  नाम माय दौड़ें फिरें,
  लिपड़ जाय हरदार।।
2-चार पाँच पिल्ला फिरें,
  कुतिया खो पछयाय।
तनक मनक बैठें रुकें,
  लपक दूध पी पाय।।
3-पिल्ला साजे हैं लगत,
   मनकत राखें पाल।
काट खाय जानें कबे,
   बन ने जावे जाल।।
4-कइयक कइया लय फिरें,
     कइयक देत खचोर।
    परेशान पिल्ला फिरें,
     ऐसी लरक पचोर।।
5-हम तो पिल्ला से दबे,
      तोइ देत ललकार।
बृजभूषण कैसों करें,
   धना मिली बैकार।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा

दिनांक 18-2-2025
[18/01, 1:20 PM] Rajeev Namdeo: *अप्रतियोगी बुन्देली दोहा विषय - कुरा* 

बीज  कुरा कैं जब बढ़ें,करतइ आस किसान।
#राना  नौनीं हौ फसल,सुमरत है भगवान।। 

घूरे  पर भी बीज कुछ,देत कुरा फल फूल।
#राना ई संसार में,देखत जिमी उसूल।।

पानी  माटी खौं मिले,धूप हवा पा बीज।
दैत कुरा कैं खुद उतै,#राना दिखे तमीज।।

दुनिया बढ़तइ है कुरा,#राना  का ‌संग्यान।
वंश बढ़े फल फूल सैं,रक्ष करे भगवान।। 

चना कुरा कैं खात हैं,पैलवान भरपूर।
#राना ताकत आत है,बनतइ कुश्ती नूर।।
      *** दिनांक -18-1-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[18/01, 1:40 PM] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा प्रदत्त शब्द -कुरा /अंकुर
(१)
अंकुर  फूटै  बीज  में  ,  बोई   कुरा  कहात।
बौ पलपुस कैं एक दिन,पेड़ बड़ौ बन जात।।
(२)
बदल  गयौ  है  आदमी  , बदले  ऊके  बैंन।
कुरा एइ  सैं पीक रय , बिन  मौसम के ऐंन।।
(३)
घड़ा पाप कौ  एक दिन , फूटत अपनें आप।
कुरा  कुराबै  भूम में  , मन  में  उपजै  पाप।।
(४)
राते  डारौ  फूलबे  ,   कुरा  खूब  कड़ आँय।
चबा-चबा  कैं बे चना , उठत  भोर सैं खाॅंय।।
(५)
धरम बिना नादान नर ,अपनों जनम नसात।
जैसो बीज कुराय बिन , माटी में मिल जात।।

आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुरी
( स्वरचित ) 18/01/2025
[18/01, 1:57 PM] Subhash Singhai Jatara: -बुंदेली विषय कुरा (अंकुर)

कुरा जात हैं खेत में , पकी  फसल के बीज |
पानी बरसे रात दिन , जै किसान तब खीज ||

उरदा  कटबै आय  तै , हौन लगी बरसात |
कुरा  गयै सब खेत में , बिगर गयै हालात ||

मूँग चना   गीले  करो,   पटका में  दो टाँग |
कुरा जाँय तब खाइयो , गठ   जै पूरौ आँग || 

बीज भूम में जब  डरै , नमी  मिलै कछु आन |
बाहर निकरत हैं कुरा , हरषित हौत  किसान ||

सड़े   बीज नेता लगैं ,    गयै  कुरा  इस  देश |
भारत की  बिगरी  जमी , बदल  रयै परिवेश ||

सुभाष सिंघई
[18/01, 2:30 PM] Anjani Kumar Chaturvedi Niwari: एक कुण्डलिया प्रस्तुत करने की कोशिश 


आया कुंभ  प्रयाग  में, गंगा  जी  के  तीर।
साधु संत आये सभी,नागा सिद्ध  फकीर।
नागा सिद्ध फकीर,धाम तज  संगम आए।
लूट  रहे  सब  पुण्य, दरस  संतों  के  पाए।
जो भी पहुँचा कुंभ,पुण्य फल उसने पाया।
हम भी  दर्शन  करें,कुंभ  बरसों  में आया।

तरुणा खरे जबलपुर 
🙏🙏
[18/01, 2:33 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली,, दोहा विषय,,कुरा,, अंकुरित,,
**************************************
भौत बुरव उपजो कुरा , नाव धरो गव कंश ।
ऐसेँ करम "प्रमोद"भय , सबरउँ डूबो वंश ।।

कुरा कुरा कैं रय मुरा , चना पिसी उर मूँग ।
तउ"प्रमोद"सोसत डरेँ , कितै चली गइँ ऊँग ।।

होय कुरा की नाश जा , गाली में कइँ जात ।
बिनइँ कुरा की वेल तो , पेड़न पै इठलात ।।

कुरा कुरेरू उर खुरा , जावै आपइँ फूट ।
गुरा गुरा चीवेँ बुरा , लेत सुरसुरा टूट ।।

कुरा फोर लय धान के , बौनी करत किसान ।
बैठ खेत हरिया तकेँ , करेँ ख्याल को गान ।।

कुरा कुरा उरदा मरेँ , तनक झिलो बसकाव ।
पेटे टूट किसान गव , अब नी रैगव हियाव ।।

अमरत को फूटो कुरा , गंगा जमुना तीर ।
बन गव कुंभ "प्रमोद"बो , होरइँ भारी भीर ।।

**************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
           ,, स्वरचित मौलिक ,,
[18/01, 4:54 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: विषय -कुरा
दोहा 
दिनाँक-18-01-2025
1-जाने कैसो बीज है,
   बय भय दिना विलात।
 निकरोनें एकउ कुरा,
  लगत अनामत जात।।
2-ऊँग परे तन तन कुरा,
   अब तो उगत दिखात।
  बृजभूषण चिन्ता नहीं,
   बन जावे कब बात।।
3-  डारो रातें फूलवे,
    कौनउ होय अनाज।
कुरा जाय खाकें तको,
  पुख्ता सही इलाज।।
4-कुरा पाय पनपे करे,
   मन ने करो निराश।
बृजभूषण देखो सुनो,
  मानो तो विश्वास।।
5-नाहक पेरो और खों,
  पोंचावे नुकसान।
 होवे देर सकेर पै,
करें कुरा की हान।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[18/01, 7:04 PM] Ramanand Pathak Negua: बुन्देली दोहा 
बिसय कुरा 
               1
जमा गये बिस कौ कुरा, खुद पोंचे समसान। 
जो बै गय बौ काट रइ, अब उनकी संतान। 
                       2
कुरा बना कें धान के, जब उपराँ  बै देत। 
सुआ गिलइयाँ डौकियाँ, जबरइँ हैंसा लेत। 
                          3
बीज न ऐसौ बै दियौ, लगै बंस में दाग। 
कुरा पाप कौ जब जमत, सबके फूटत भाग। 
                          4
शासन ढीलौ होय तौ, अपराधी बड जात। 
जैसें मौसम देख कें, खरपतवार कुरात। 
                         5
कातक भर रइऔ पिया, दूरी तनक बनाँय। 
गाँठ कुरा गइ तौ सखी, मोरी हँसी  उडाँय। 
रामानन्द पाठक नन्द
[18/01, 9:00 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -199*
 दिनांक 18.1.2025
*प्रदत्त विषय -#कुरा (अंकुरित)*
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
लुड़िया से ओरे परे,बालें बिछीं तमाम। 
कुरा कनूकन फूट रय,कहा करइयां राम। ।
           ***
          -आशा रिछारिया, निवाड़ी 
*2*
बीज डरे चौमास मै,माटी भीतर रात।
पानी पा होबैं कुरा,बेइ पेड़ बन जात।।
         ***
          -तरुणा खरे,जबलपुर 
*3*
मीठों फल है मैंन्त को,रिश्वत समझो काँश।
जो धन खात गरीब को,होत कुरा की नाँश।।
          ***
      -  प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 
*4*
धरत गैल अन्याय की,और करत अभिमान।
मिटत कुरा परिवार कौ,नीचट लैयौ जान।।
              ***
        -भगवान सिंह लोधी 'अनुरागी',हटा 
*5*
धन दुकाय जो काउ कौ,पाय नरक वौ खास।
पर तिरिया खों जो तकै,होत कुरा सें नाश।।
          ***
 -अंजनी कुमार चतुर्वेदी 'श्रीकांत' निवाड़ी
*6*
हल बाखर से जौत ‌कैं,खेत हौत तैयार।
बीज कुरा कै बाँयरैं,देतइ खुशी अपार।।
         ***
            -सुभाष सिंघई, जतारा 
*7*
दया धरम नइॅं छोड़ियौ ,संगत करियौ नीक।
कुरा पाप कौ कूचियौ ,कभउॅं न पाबै पीक।।
              ***
          -आशाराम वर्मा 'नादान' पृथ्वीपुर
*8*
अहंकार में बड़ बड़े, हो गय हैं खल्लास।
रावन की लंका जली,भई कुरा की नास।।
         ***
             -एस आर 'सरल', टीकमगढ़
*9*
राम बिस्नु औतार हैं, करौ पिया बिस्वास। 
काय करा रय ठै पठै, बंस कुरा की नास।।
       ***
         - रामानंद पाठक,नैगुवां
       
10-
कुरा गये सब बीज हैं,पानी अब दो डाल।
ननतर बीजा सूख क़े,निश्चित मरजें काल।।
       ***
           -  वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*11*
जब  वे  आईं  सामने,  हती  जुंदइया  रात।
मस्कइं-मस्कइं प्रेम के,कुरा  गए जज्बात।।
     ***
        -डॉ.राजेश श्रीवास्तव 'प्रखर', कटनी
*12*
कुरा प्रेम के ऊँग रय, उपजै भकति प्रयाग।
बारा सालन मे मिलो, बडो हमाओ भाग।।
      ***
        - श्यामराव धर्मपुरीकर,(गंजबासौदा)
               ***
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
     मोबाइल - 9893520965
*************************

जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ द्वारा प्रत्येक सोमवार एवं शनिवार बुंदेली दोहा लेखन समग्र 
दिनांक -13-1-2025
[13/01, 8:38 AM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-बिबूचन
नींद भूक तन सें भगी,बनें कछू नें कात।
परी बिबूचन प्रेम में, मन‌इॅं -मन‌इॅं पछतात।।

मन शाही असनान कौ, सेंटो है मनयाव।
परी बिबूचन का करें,भैया तुम‌इॅं बताव।।

मुलक भरे के बिरतिया, खूब पेल रय माल।
बिड़ा बिबूचन पार बें,हो गय पाॅंचक साल।।

घट के भीतर बासना, मन कौ माॅंगे भोज।
भजन करन दैबें नहीं, करत बिबूचन रोज।।

"अनुरागी" करले भजन, त्याग बिबूचन जाल।
   होने है ओई सुनो,जोन लिखो है भाल।।
                   भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[13/01, 9:13 AM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली -   बिबूचन (अड़चन)

घरै बिबूचन हो गई ,  रुक गय सबरै काम |
अब तो अगले साल ही , जा पाने है धाम ||

जौ भी नौनें काम में , देत बिबूचन डाल |
उयै देख ऐसो लगत ,   जैसे हौबे काल ||

बेरा हौबे काम की ,     आजैं  ठलुआ  गेह |
लगत बिबूचन गइ पसर, मौय‌ जताबें  नेह ||

नईं बिबूचन आत है , कै सुनकैं  कछु बात |
पकी खीर में  मारे   दे , आके अपनी लात  ||

देख बिबूचन सामने , लोग   पैल  निपटात |
करें सयाने भी खतम ,    पारत ‌नईं उलात ||

अबै  बिबूचन देश की , मोदी  जी   निपटात |
फिर भी कछु यह कात है , मौखों नईं पुसात || 

सुभाष सिंघई
[13/01, 9:50 AM] Jaihind Singh Singh Palera: सोमवार दिनांक 13.01.2025
बुन्देली दोहा दिवस,बि. बिबूचन
****************************
                     //1//
विपदा की जा बैंन है,दे तनाव भरपूर।
सनकी संतन से रहै,सदा बिबूचन दूर।।

             //2//
ज्ञानी सोता- आदमी, बच्चा हो अंजान।
बचै बिबूचन हें सदा,कृपा करें भगवान।।

                           //3//
त्यागी होबै आदमी,ऊखों सदा डराय।
जौन गिरस्ती में फॅंसों,ऊखों रोज सताय।।

                //4//
बेर-बेर हो बिबूचन,निश  दिन संगै रात।
घेरत है सबखों सदा,कभौं न मन सें जात।।

                     //5//
रोज गिरस्ती में फॅंसे,डसै बिबूचन आन।
ई सें सदा बचाउते,ओ मोरे भगवान।।

जयहिन्द सिंह जयहिन्द 
पलेरा जिला टीकमगढ़
मध्य प्रदेश
[13/01, 10:51 AM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा ,विषय,बिबूचन,,(अड़चन)
****************************************
घरेँ बिबूचन मेँ धना , बैठीँ चना रखायँ ।
बुड़की लेन "प्रमोद"कब , कुंभ सपरवेँ जायँ ।।

गुरयाने की है पिसी , परीँ बिबूचन ऐंन ।
अनरेँ खोँ ससुरार मेँ , जाने घुल्ला देंन ।।

अस्पताल गइँती धना , मिटी बिबूचन काल ।
कैगय श्याम "प्रमोद"सेँ , भौजी केँ भव लाल ।।

भौत बिबूचन में विदेँ , बुड़की परगइँ आज ।
नदिये सपरन कड़ चलेँ , हैँ "प्रमोद"महराज ।।

आगन्नो हो रओ कितउँ , सुन रय काचोँज्यान ।
कुल्ल बिबूचन झेल रय , हैँ "प्रमोद"इँसान ।।

अबइँ बिबूचन गइँ निनुर , भैँस बियानी भोर ।
बुड़की खोंँ तेली बनेँ , पड़ा टिनक रव दोर ।। 

बड़ी बिबूचन बड़न की , पढी़ लिखीं बउ आइँ ।
पिज्जा  बर्गर ब्रेड सँग , चाउमीन भी ल्याइँ ।।
**************************************
  ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
          ,, स्वरचित मौलिक ,,
[13/01, 10:59 AM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा बिबूचन=(अड़चन /व्यवधान)*

कौन बिबूचन कब परै,नइँ #राना  अनुमान।
आ  जाबै जब सामने,तबइँ हौत पैचान।।

जौन परौसी हो निकट ,लगबै अपनो यार।
बोइ बिबूचन डाल दे,#राना आँख पसार।।

लामी हौतइ जिंदगी,खूब बिबूचन  आत।
#राना जैसें जौ बनै,सबइ उयै निपटात।।

नयी बिबूचन देख कैं,#राना नइँ घबड़ाव।
निपटारौ तुरतइ करौ,ऊखौं दूर  भगाव।।

जौ भी साजौ काम हौ,उतइँ बिबूचन आत।
पर #राना घर के सबइ,उयै तुरत निपटात।।
*** दिनांक -13-1-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
[13/01, 12:47 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: दोहा शब्द -बिबूचन
                  1
भौत बिबूचन परगई,सो कछु लिखना पांव।
बिनती मोरी सबइ सें,करियो ना बतकाव।
                   2
परें बिबूचन बनत हैं,जग में यार हजार।
काम सटें देखत नहीं,कौनउं नजर पसार।
                  3
होत बिबूचन परेपै,सबइ जनै लाचार।
ऐसे में जो काम दे,बो है सांचो यार।
                  4
परी बिबूचन राम पै,आए बैद सुनैन।
दौणागिर हनुमत गए,मोर संजीवन लैन।
                   5
कभउं बिबूचन काउहां,दियो ना दीनदयाल।
सब जीवन को राखियों,त्यागी सदा ख्याल।
मौलिक रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[13/01, 2:31 PM] Taruna khare Jabalpur: 'बिबूचन ' शब्द पर दोहे 

तरुणा नौने काम मै,देत बिबूचन डार।
कैसैं बनहे काम जो,कर दइ खूब बिगार।।

मची बिबूचन ब्याव मै,समधी गये रिसाय।
बिटिया के बाबुल खड़े,उन हों रये मनाय।।

धना मायके खों सजीं,उर आ गय मैमान।
बड़ी बिबूचन हो गई,का करिये भगवान।।

राजतिलक मै राम के,दई बिबूचन डार।
कहन मंथरा की करी, कैकेई सी नार।।

सब सम्मत सैं काम मै,नहीं बिबूचन होय।
काज सफल सब होत हैं,जानत हैं सब कोय।।


तरुणा खरे जबलपुर 
🙏🙏🙏
[13/01, 4:00 PM] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा 
बिषय--बिबूचन (अड़चन) बुंदेली दोहा =(252)     (01)
घरै बिबूचन आ गई,कड़ नइँ पा रय हार ।
नौ दो ग्यारा हो गये,"दाँगी"भइया यार ।।
                      (02) 
सीता जू खौं ढूँड़वै,आइ बिबूचन खूब । 
पत्तन पंछिन पूँछ वै,"इन्दु"राम मैबूब ।।
                  (03)
देस हुआ आजाद जब,आइ बिबूचन ऐंन ।
"दाँगी" करबै संगठन,वीरौ कि लगी लेंन ।।
                   (04)
ब्याव काज शुभ दिन रबै,खूब बिबूचन आत ।
"दाँगी"धीरन ताइ सैं ,अपनौ काज करात ।।
                   (05)
हरां-हरां निपटाउ नैं,कछू बिबूचन होय ।
"दाँगी"मौड़ी ब्याव खों,चिन्ता हो रइ मोय ।।
                   (06)
कबै कौन आ जात ये,पतौ चले नइँ मोय ।
होत बिबूचन काज पै,"दाँगी"न बस कि होय ।। 

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[13/01, 5:07 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली 
बिषय बिबूचन 
                        1
काम करत रोडा लगै, कर ना पावें काम। 
जेइ बिबूचन आ गई, कमा न पाये दाम। 
                         2
होबै सूतक सोर जाँ  उतइ बिबूचन रात। 
आबौ जाबौ बंद रत, जेठे बड्डे कात। 
                          3
हमें कुम्भ जानें हतौ, आ गय अफसर यार। 
बडी बिबूचन मोय भइ, पर नइँ पाई पार। 
                          4
प्रभू राम के काज में, चैन नईं दिन रैन। 
कई जगाँ हनुमान खों, आइ बिबूचन ऐंन। 
                           5
माँ अनुसुइया पालना, पारें ललना तीन। 
भई बिबूचन तीन खों, पती न पाबें चीन। 
रामानन्द पाठक नन्द
[13/01, 5:22 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा 
विषय -बिबूचन
1-हमें बिबूचन है बड़ी,
   देत बने नइ राम ।
राजन कत मुनिवर सुनो,
 माँग लेव धन धाम।।

2-बड़ी बिबूचन में फसे 
  बैठे साथ चिमाइ।
जनकपुरी में आ गए,
 परशुराम मुनिराइ।।

3-तुमें बिबूचन काय की,
    बोलो हे कपिदेव।
रामकाज करवे उठो,
  समुद्र पार कर लेव।।

4-सबइ बिबूचन में परे,
   कैसों करवे राम।
मंहगाई की मार है,
  घर में नैया दाम।।

5-पड़े लिखे लड़का फिरें,
   रोजगार मिल जाय।
कठिन बिबूचन में डटें,
   करवे दते उपाय।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[13/01, 8:20 PM] Vidya Chouhan Faridabad: बुंदेली दोहे
विषय - बिबूचन ( अड़चन, व्यवधान)
१)
ब्याध बिबूचन आँय जब, हिम्मत रखियो संग।
इनकीं सब कोसिस जुगत, करौ तनक में भंग।।

२)
एक  बिबूचन  जात  नइँ,  दूजी   रत   तैयार।
माया  कौ  संसार  जौ,  राम  लगाउत  पार।।

३)
लछमन  जू  मुर्छित  भये, परी  बिबूचन मार।
बोले   बैद्य   सुषेण  जू,   संजीवन   उपचार।।

४)
लाख बिबूचन आप खाँ, करें रोज हलकान।
डरनें   नैयाँ  काउ  से,  इत्तौ  रखियो  ध्यान।।

५)
नयी बिबूचन रोज की, कठिन परिच्छा लेत।
सुफल होत जो आदमी, जस कीरत सब देत।।

~विद्या चौहान


[11/01, 3:01 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा -कचुल्ला (कटोरा)*

लोग लराई जब करै,#राना  तब सब कात।
दैंयँ कचुल्ला तोय अब,बना भिखारी जात।।

एक कचुल्ला प्रेम को,#राना रस पी जावँ।
मन भी पूरौ जै अघा,दरसन प्रभु कै पावँ।।

एक कचुल्ला चाय भी,ला  दैतइ है  चाह।
#राना बढ़तइ प्रेम है,संगत मिलत अथाह।।

शकल कचुल्ला-सी धरी,भौत करत बतकाव।
#राना साँसी जब कहत,पकर जात बे ताव।।

कभउँ कचुल्ला भर मठा,भौत करत है काम।
मिटा पेट की  गुड़गुड़ी,#राना  दे आराम।।
      ***दिनांक -11-1-2025
   *✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[11/01, 3:20 PM] Taruna khare Jabalpur: 'कचुल्ला' शब्द पर दोहे 



लयें कचुल्ला फिर रये, जोगी घर-घर जायंँ ।
आंटो,चावल जे मिलै,सोई बनायँ खांयंँ।।

बैठे मंदर बाहरै,जिनै परै नै दीख।
लयें कचुल्ला हांत मै,मांग रये हैं भीख ।।

भरें कचुल्ला खीर को,बिष है दओ मिलाय।
पी गए लाला प्रेम सैं,भाभी नीर बहाय।।

धरैं कचुल्ला हांत मै,भोले लै रय दान।
दैबे बारी भगवती,याचक है भगवान।।

तरुणा खरे जबलपुर 
🙏🙏
[11/01, 4:34 PM] Subhash Singhai Jatara: विषय‌- कचुल्ला (कटोरा)

लयै कचुल्ला हाथ में , डीगें    रय है मार |
भरौ सेर भर घी इतै , ले लौ सबइ उधार ||

तनिक कचुल्ला भर लऔ , चले बाँटबें खीर |
ऐसे  चिकना आदमी ,    दूध    बनाबें ‌‌  नीर || 

एक कचुल्ला नाज को , लबरा  करे‌ बखान |
देत सबइ खौं  नैवतो , आऔ सब जजमान ||

मौड़ा मौड़ी  गेह में , पकर  कचुल्ला  कात |
भूख लगी है जोर से ,    खाबै दैवँ  बिलात ||

तोता पिंजरा में पिड़ौ , चितकोटी है कात |
रखौ कचुल्ला सामने , देख  उयै  हरसात ||

सुभाष सिंघई
[11/01, 5:22 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: बुन्देली दोहा ,विषय,,कचुल्ला,,कटोरा ,,
*************************************
सात कचुल्ला भीम ने , करलव अमरत पान ।
तब सेँ भयो "प्रमोद"वह , द्वापर को बलवान ।।

एक कचुल्ला दूद में , विष दव राणा घोर ।
जब "प्रमोद"मीरा पियो , देखेँ नंदकिशोर ।।

एक कचुल्ला दूध में , रोटी मीँडी़ँ चार ।
सान महेरी गुर मिला , खा गय आइँ डकार ।।

पियेँ कचुल्ला भर मठा , रहेँ "प्रमोद"जवान ।
दूद महेरो भोर सेँ , निन्ने पियत किसान ।।

धना मैंच आदो मिलोँ , रस बराइँ को भोर ।
तीन कचुल्ला सूँट केँ , गय "प्रमोद"लयँ ढोर ।।

हतो कचुल्ला काठ को , भोजन दे इक बार ।
खाय "प्रमोद"अघाय हैँ , मानुष केउ हजार ।।
***************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[11/01, 6:25 PM] Asha Richhariya Niwari: दोहा दिवस दिनांक 11.1.2025 कचुल्ला
🌹
माखन मिश्री सें भरौ, रजत कचुल्ला हात।
इत उत ढूंढें गोपियां,श्याम नजर नहि आत।।
🌹
दूध कचुल्ला में भरें,यशुदा रहीं पुकार। 
पी लो लल्ला लाड़ले,करतीं हैं मनुहार। ।
🌹
 गड़इ कचुल्ला गिलसिया,टाठी और परांत।
जे बासन अब कां धरे,सपनन खूब दिखात। ।
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी🌹🙏🏿🌹
[11/01, 6:38 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
विषय कचुल्ला 
1-राम नाम रस कचुल्ला,
   भरो प्रेम से जाय।
बृजभूषण जीवन चले,
  दिन दिन कामें आय।
2-मन में डर मानें नहीं,
   मरवे को है डौल।
 जहर कचुल्ला हाँत ले,
   पी गय हँस हरदौल।।
3-लयें कचुल्ला वे फिरें,
    मांगत घर घर भीक।
   बृजभूषण मानें नहीं,
    बूढ़ों की जा सीक।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[11/01, 6:38 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-कचुल्लां/ बेला 
भोजी नें हरदौल खों,‌जिहर कचुल्ला घोर।
ऑंखन छित पीबे द‌ओ, नेह लगा हरि ओर।।

दूद कचुल्ला में भरौ,रोटीं मीड़ो चार।
भोग लगा भगवान खों,लैव भीतरै‌ डार।।

एक कचुल्ला भुंसरा, दूद महेरौ खाव।
सबरी दिन डिड़कत फिरौ,ब्यारी करबे आव।।

गिरौ कचुल्ला फर्स पै, उदक परी है‌ बाइ।
लये डेउआ हांत में,खा ग‌इ बिलू मिठाइ।।

सींके पै चपिया टॅंगी,ढांक चुल्ला देत।
ओइ कचुल्ला में कभ‌उॅं,हींक महेरो लेत।।
    ‌‌          भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[11/01, 6:54 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली 
बिषय कचुल्ला 
                       1
नौंइ कचुल्ला ओरछा, जितै फूल है बाग। 
बीच बाग बेला बनों, बैठत कोयल काग। 
                        2
माखन मिसरी माँगबें, लयें कचुल्ला हात। 
माइ जसोदा दै रई,मन ही मन मुस्कात। 
                         3
जहर कचुल्ला भर नई, थोरौ होत बिलात। 
भोजन में जिमवात है, सच्ची है जा बात। 
                         4
होबै काँसा धात कौ, अगर कचुल्ला यार। 
खट्टी चीजें ना धरौ, नइँतर करें बिगार। 
                         5
गरय कचुल्ला पैल के, सब खों हते पसंद। 
आज काल दिखबें नईं,समय गुजर गव नन्द। 
रामानन्द पाठक नन्द
[11/01, 7:29 PM] Vidya Chouhan Faridabad: बुंदेली दोहे
 विषय- कचुल्ला (कटोरा)
१)
एक कचुल्ला विष भरो, मीरा कर गइँ पान।
प्रेम  भक्ति  में  बूड़  कें, जोगन  भईं  महान।।

२)
देख कचुल्ला गाँव में, बे दिन आ गय याद।
खाये  बिरचुन घोर कें, नौनों  जीकों स्वाद।।

३)
एक  कचुल्ला   दूद   में,  बासी  रोटी   डार।
बब्बा खा गय मींड़ कें, निँगत चले फिर हार।।

४)
अटा  खेत  दालान  में,  धरो  कचुल्ला  एक।
प्यास चिरइयन की बुझे, सोस भौत जा नेक।।

५)
एक  कचुल्ला  चून  खाँ, रावण ठाँड़ौ  द्वार।
सीता  कर  गइँ  भूल  सें, लछमन रेखा पार।।

~विद्या चौहान
[11/01, 7:54 PM] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा 
बिषय-"कचुल्ला"(कटोरा)
                 (01)
गड़इ कचुल्ला काँच के,नौनें दिये बनाय ।
टाठी कुपरा बौंकना,"दाँगी"घर ले आय ।। 
                   (02)
भरौ कचुल्ला दूध सै,बासौ मयरौ होय ।
जुनइ कि रोटी मींड़कैं,"इन्दु"मजा जो मोय ।।
                   (03)
हड़ा कसैंड़ी भौत हैं,धरे कचुल्ला ऐन ।
सूपा कुपरा डेकची,"दाँगी"गय ते लैंन ।।
                    (04)
मठा महेरौं दूध घी,भरें कचुल्ला खायँ ।
"दाँगी"व्यंजन गांव के,खातन नईं अघायँ ।।
                  (05)
कांसे पीतल की धरी,छोटी बड़ी पनात ।
सुंदर लाय डिजान के,"इन्दु" कचुल्ला सात ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा 
जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[11/01, 8:02 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: शनिवार 11 जनवरी 2025
दोहा शब्द -कचुल्ला/कटोरा 
                 एक
मानत नइयां बडन की,जो कउं कोनउं सीख।
फिरत कचुल्ला हांथ में,लैकें मांगत भीख।
                 दो
घरन चरन में होतते,पैल कचुल्ला भाइ।
ढूडेंसें बे कितउंना,पररय आज दिखाइ।
                 तीन
पैरके उन्ना गेरुआ,बडे रखालय बाल।
लएं कचुल्ला हांतमे,मांगत आटो दाल।
                  चार
दरसन करबे राम के,अगर ओरछा जाव।
बनो कचुल्ला बागमें,देख खबर से  आव।
                   पांच
चाल कचुल्लन की गई,चलन लगी इसटील।
सबरे उनमें खात हैं,मठा महेरो खील।
 मौलिक रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[11/01, 9:46 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -198*
शनिवार 11 जनवरी 2025
*विषय-कचुल्ला (कटोरा)*
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
मानत नइयां बडन की,जो कउं कौनउं सीख।       
फिरत कचुल्ला हांथ में, लैकैं मांगत भीख।।
                   ***
               -एम एल त्यागी खरगापुर
*2*
लाला जू हरदौल  नें,करो अनोखौ  काज।
पियो कचुल्ला भर जहर,राखी कुल की लाज।।
               ***
                     -विद्या चौहान, फरीदाबाद 
*3*
नहीं कचुल्ला अब बचे,एकऊ घर में आज।
हर घर में अब देख लो,है पिलेट कौ राज।।
              ***
                - वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*4*
एक कचुल्ला लोभ को,हरदम  खाली  रात।
कितनउँ भरबै हम उयै,रीतौ सबइ दिखात।।
                ***
          -सुभाष सिंघई , जतारा 
*5*
नालायक संतान के,मात-पिता गिगयात।
लयै कचुल्ला हात में, भूखे माँगत खात।।
            ***
          - एस.आर. 'सरल', टीकमगढ़
*6*
दूद भात खिचरी कडी़ , मठा महेरो दार ।
एक कचुल्ला घोरुआ , बिर्रा रोटी चार ।।
            ***
           - प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 
*7*
बकत कचुल्ला की बडी, घर घर राखे जात। 
दूध महेरौ उर मठा, भर भर सब घर  खात।।
             ***
          -रामानन्द पाठक 'नन्द', नैगुवां
*8*
मीरा बाई खों दिखे, जहर कचुल्ला श्याम। 
उठा गटागट पी गयीं,मन मन मोहन नाम।।
              ***
         -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*9*
पी-पी मदिरा रात दिन,मैंटो नेक शरीर।              
 लिएं कटोरा फिर रहे,घूमत बने फकीर।।
      ***
          - मूरत सिंह यादव, दतिया 
*10*
भरो कचुल्ला खीर को, नेता पी रय रोज।
मिले महेरी तक नईं, ललके जनता फोज।।
      ***
         -श्यामराव धर्मपुरीकर गंजबासौदा, विदिशा 
*11*
दूद-भात ख्वाबे फिरैं,अम्मा धरे कचुल्ला।
काय करत हैरान तैं,खाले मोरे लल्ला।।
           ***
              -तरुणा खरे,जबलपुर 
*12*
दूद-करूला सब करौ, फूलौ-फलौ अघाव,
भरें कचुल्ला भात के, भर-भर पेटाँ खाव ।
            ***
               -अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
*13*
लीलाधर लीला करें,मैया खों भरमायँ।
लयें कचुल्ला हाँत में,नेंनू रोटी खायँ।।
       ***
          - डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा 
*14*
भरें कचुल्ला गोपियाँ,माखन मिश्री रोज।
ग्वालबाल सँग बैठकें,करें कन्हैया भोज।।
     ***
   - अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी 
*15*
जिननें  बाप  मताइ  की ,मानीं नइॅंयाॅं सीख।
बेइ कचुल्ला लयॅं फिरत,माॅंगें मिलै न भीख।।
         ***
     -आशाराम वर्मा'नादान' पृथ्वीपुर
*16*
बनौ कचुल्ला ओड़छा,जितै करौ विष पान ।
सत्य कीलाज राखबै,दय लाला नें  प्रान ।। 
             ***
        -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*17*
क्यांउॅं नजर न‌इॅं आ रये,रै‌ गव‌ केवल नाम।
चलौ कचुल्ला देखबे, नगर ओरछा धाम।।
             ***
    -भगवान सिंह लोधी 'अनुरागी', हटा
*18*
भरौ‌ कचुल्ला दूध सें,कैसें वाय उठाउॅंं।
भौतइ तातौ दूध है,छीतइ ही  जरूर जाउॅं।।
    ***
 -रामसेवक पाठक हरिकिंकर", ललितपुर 
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         संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
 मोबाइल -9893820965
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[06/01, 9:14 AM] Subhash Singhai Jatara: -बुंदेली -कुकरी/कुकरे  (सिकुड़ी /सिकुड़े)

खूब उरइयाँ ले रयै  , अच्छी   पर रइ ठंड |
कुकरी  बैठी डोकरी, बक  रइ अंड  चबंड  ||

नयी  बऊँ कुकरी रयै, अधिक न बोले बोल |
जेठ ससुर के सामने ,    मौं ना पाबै खोल ||

अफसर ठाड़े दोर पै  , कुकरे  दिखें किसान |
तीन साल से नइँ दओ , कौनउँ अभी लगान ||

कुकरी   बैठी  डोकरी , लठिया गयी हिराय |
कौन जगाँ पै है  धरी ,    कौई  नईंं  बताय ||

छाती बै अब रय फुला , जिनको हो गवँ व्याय |
कुकरै क्वारे दिख रयै ,   मिल नइँ रओ हिराव || 

कुकरी कतकारी रहीं ,      भौर ‌‌ करौ  अस्नान  |
दूनर हो   गइँ  ठंड   में ,    ढूड़त   रइँ  भगवान ||

सुभाष सिंघई जतारा टीकमगढ़ म०प्र०
[06/01, 10:57 AM] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी,बिषय-कुकरी/कुकरे(सिकड़ीं/सिकुड़े) बुंदेली दोहा (251)      (01)

पिल्लां परे रजाइ में,लगवै ऐंनइँ ठंड़ ।
"दाँगी"गुड़यानें डरे ,कुकरे संड-मुसंड ।।
                  (02)
हाड-मास नइँ सै सकै,कुहरा धुँधरौ होय ।
"दाँगी"ठंड चपेट में,डरे जु कुकरे सोय ।।
                    (03)
ढोर बछेऊ कप रये,ठंड परी बेजान ।
"दाँगी" परे रजाइ में,सो रय कुकरे मान ।।
                   (04)                   ओस कि बूदैं बरस रईं,कर्रौ बनौं किसान ।
"इन्दु"पांव कुकरें नहीं,खड़े देस के ज्वान ।।
                 (05)
चिरइ चैनुआं ठंड सै,नइँ कड़ पा रय दोर ।
चिपक परे इक दूसरें,"दाँगी" कुकरें भोर ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[06/01, 11:37 AM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-कुकरी कुकरे/सिकुड़े 
जाड़े में कुकरे परे,धुॅंधरी फैली भौत।
जीव जगत के ठिठुर रय,क‌इयक की भ‌इ मौत।।

भरत कपोरी आंग में, भारी नाक चुचात।
कुकरे-कुकरे सब फिरें,तजो न कोड़ो जात।।

कुकरे -कुकरे सब फिरे,जब ठिठुरन बढ़ जात।
जूड़ो -जूड़ो सब लगे, कटे न दिन उर रात।।

सुर्रक जूड़ी चल र‌ई, जीसें कप रय हाड़।
अनुरागी कुकरे परे,गुरसी खों रय ताड़।।

पल्ली में कुकरे परे, नेता सीना तान।
होत भोर हारे चले, लेकें बैल किसान।।
               भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[06/01, 11:42 AM] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहा विषय - कुकरी / कुकरै (सिकुड़ी/ सिकुड़े )* 

#राना  कुकरे लग रयै,माते  लम्बरदार।
भड़याई में फँस गऔ,लरका अबकी वार।।

तुम अब  कुकरे काय हो,#राना करे सबाल।
का लरका को व्याय भी,टर गवँ आसौं  साल।।

कुकरी  हौके कत धना,नइँ   होना   नाराज।
#राना घुन गवँ देख लो,कुठियाँ को सब नाज।।

सब गरीब कुकरे फिरैं,रत #राना लाचार।
खाबें नइयाँ  नाज है,माँगत  फिरें  उधार।।

कुकरै आसौ ठंड में,रयै लोग सब ताप।
#राना मौं से छूट रइ,इंजन जैसी  भाप।।
 ***दिनांक -6-1-2025
   *✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
    संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[06/01, 1:47 PM] Rajeev Namdeo: दि०६-०१-२०२५ 
कुकरे बैठे ठंड में, धूप न निरी आज।
बादर गरजे जोर से, गिर ना परवै गाज।।
मौलिक, स्वरचित 
"डाॅ०हरिकिंकर"
[06/01, 1:51 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार 06 जनवरी 2025
शब्द-कुकरी/कुकरे
           1
कुकरी सी कुकरी फिरै,लगत बैठगइ ठण्ड।
सबरी सुध-बुधभूलकें,बकरइ
अण्ड  चमण्ड।
             2
शीतलहर सें बडगई,तकलो 
बैंडी ठण्ड।
कुकरे-कुकरे फिरतहैं,
जिन खां हतो घमण्ड।
               3
कुकरे डरे रजाइ में,बारें कडो न जात।
आंग निकारत बायरें,लगत ठण्ड है खात।
               4
लरका बारे मांग रय,मांग अनाप शनाप।
कुकरो कुकरो फिरतहै,सुन बिटिया को बाप।
              5
कुकरा की घरबाइ हां,सबरे कुकरी कात।
कुकरा ना मिलपाय तौ,
बदले कुकरी खात।
मौलिक रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[06/01, 3:26 PM] Dr Renu Shriwastava: दोहे विषय कुकरी कुकरे  (सिकुड़ी सिकुड़े)
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
ऐसी जा सर्दी परी, 
आसौं की जा साल। 
कुकरे कुकरे से फिरत, 
बड़ो बुरौ है हाल।। 

स्कूटर की मांग में, 
दद्दा परे उदास।
पैसा इतनो है नहीं, 
बस खेती की आस।। 

मास पूस जाड़े परे, 
कुकर फसल जा जात। 
अंगारे ऐसे गिरैं, 
पानू सो टपकात।। 

बहु कुकरी सी जा रहत, 
सास लटी है मान। 
उठतई गारी देत है, 
खा रइ बहु की जान।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
             डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
               सादर समीक्षार्थ
              स्वरचित मौलिक
[06/01, 5:01 PM] Asha Richhariya Niwari: बुंदेली दोहा #कुकरी
🌹
कुकरे फिर रय ठंड सें,हाड़ कंपें दिन रात।
आसों कौ जाड़ो विकट, उन्ना लदे बिलात।।
🌹
कुकरीं कुकरीं बउ डरीं,उन्ना इने उड़ाव।
आगी को कोंड़ो धरो,पूरौ आंग तपाव।।
🌹
आशा रिछारिया निवाड़ी🙏🏿
[06/01, 6:06 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली 
बिषय कुकरी 
                        1
फटे चींथरा रय लटक, रमुआँ सोसत जात। 
घरबारी कौ तन दिखत, कुकरी कुकरी रात। 
                         2
फटौ पुरानों पोलका, डटें डुकइया रात। 
कुकरी कुकरी फिर रई, कोउ न पूँछै बात। 
                           3
धनकू परी पिंयार में, कथरी लेबै ओड। 
मौडी लै कुकरी परी, जाडौ काडम कोड। 
                            4
ऊँची औरत होय पर, बूढी कुकरी रात। 
उमर ढरें ऐसइँ हुयै, कौनऊँ होबै जात। 
                              5
तिली काट कुकरी लगी, कक्का खों भइ आस। 
काल परों ठुक है तिली, लगै खरैना रास। 
रामानन्द पाठक नन्द
[06/01, 6:20 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
विषय कुकरी
1-लाल टमाटर से हते,
   गोरे गोरे गाल ।
अरे बुढ़ापो है लगो,
  सुकरी सबरी खाल।।
2-कुकरे कुकरे से फिरत,
   हाल भये बेहाल।
झूँकत तन तन काम खों,
  बदली बदली चाल।
3-सुकरे से कैसे खड़े,
   ठुठरे जात बताव।
कै तो कमरा ओढ़ ले,
  या फिर तपो अलाव।
4-जोन दिना ले आय ते,
   हो रइ ती जब झोल।
 अब तो देखे सें लगत,
  मुकरी भारी खोल।
5-काया कुकरी गइ सिमट,
   नवन लगी करयाइ।
बृजभूषण देखो दशा,
    हैरानी बड़याइ।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[06/01, 6:32 PM] Dr Raj Goswami Datiya: दोहा बुंदेली, विषय, कुकरी
1-फैशन जौ का काम कौ, कुकरी बैठी मैंम । जाड़े में थरथर कपें, देखें नाही टैम ।।
2-कामचोरनी है बहू, कुकरी रत है रोज। कहत पेट में दरद है, खातीं सठरस भोज ।।
3-काए कुकर रए हौ खड़े,बैठे ओढ़ रजाइ । चाय पियो संगें बुला, मौज करें भौजाइ ।।
4-कूकर जैसे केंक रए कुकरे कुकरे काए । काए करोंटा लएं तुम, काए परे मौ बाए ।।
5-लौरे कद के हैं डुकर, पूरे 
कुकर न पात । ता पै तन मौटौ धरौ, चलतन में घबरात ।।
     -डॉक्टर राज गोस्वामी, दतिया
[06/01, 6:51 PM] S R Saral Tikamgarh: *बुंदेली दोहा विषय-सिकुड़े /कुकरे* 
********************************
सब सिकुड़े -सिकुड़े  फिरें,
                 कर रइ ठंड कमाल।
*सरल* तापबे खौ कितउँ,
                 बरत मिलें  झंडाल।।

सिकुड़े-सिकुड़े से *सरल*,
                सबरौ शिथिल शरीर।
ठंड  कड़ाके  की  परी,
                तनक  बधै  नइँ धीर।।

कौन  काम  कैसै  करें,
                कुकरे कुकरे आज।
मौसम रव  बहुरूपिया,
                बदले *सरल* मिजाज।।

सिक ना पाये घाम सै,
                सिकुड़े सै रय हात।
कौड़े पै  तापै *सरल*,
                राहत मिली बिलात।।

सबइ  अंग  सिकुड़े  धरे ,
                भौत गजब की ठंड।
आँसत जड़कारों *सरल*,
                कुहरा परों मुचंड।।
*****************************
         *एस आर सरल*
              *टीकमगढ़*
[06/01, 7:01 PM] Jaihind Singh Singh Palera: सोमवार दिनांक 06.01.2025
बुन्देली दोहा दिवस बिषय--कुकरी
******************************
                    //1//
कुकरी बैठी कुकर कें,दरवाॅं अंडा देत।
कुकरी अंडा फोर कें ,कड़े चैनुवाॅं  सेत।।

                     //2//
कुकरी बकरी ठंड सें,फिरत रोज मिमयात।
पत्ती आज न खा रही,सो बीमार दिखात।।

                    //3//
चूले सें रोटी सिकी,बनवैया रय ताप।
बिटिया कुकरी सी फिरै,गैस पठा द‌इ बाप।।

                      //4//
कुकरी जब अंडा धरै,कुकर- कुकर  तब जात।
अंडा जब बाहर गिरै,हवा लगें सैलात।।

                    //5//
उखरी में मूसर चला,कूटै मुरका नार।
कुकरी जा र‌इ ठंड में,देह भ‌ई बेकार।।

जयहिन्द सिंह जयहिन्द 
पलेरा जिला टीकमगढ़ 
मध्य प्रदेश
[06/01, 10:10 PM] Ramlal Duvedi Karbi, Chitrakut: *कुकरे/सिकुड़े या सिकुरे: दोहा बुन्देली*

सिकुड़े परे लिहाफ में, तनिक न दिख रय घाम। 
गहकी एक न आवतो, धंधा भयो धड़ाम।1

सबै लोग सिकुड़े फिरे, भौतय पर रय ठंड।
कौड़ा तापें घेर रय, जल रय लकरी कण्ड।2

लगी ठंड सिकुरी परी, डुकरी परी बिमार।
लए तपाय अलाव में, ठीक भई दिन चार।3

भइया टेढ़ी हुइ कमर, सिकुरी चमड़ी गाल।
सत्तर कै अब हुइ गयो, बुरो बुढ़ापो हाल।4

रामलाल द्विवेदी प्राणेश 
कर्वी चित्रकूट
*************///***********
197 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -197
शनिवार, दिनांक - 04/01/2025
*बिषय- ' कबा ' (अर्जुन की छाल )*
संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
लगे कबा के पेड़ हैं , नदी किनारें चार।
उतइं चार ठउ घाट हैं , सपरें लोग हजार।।
***
        -वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*2*
छाल कवा की है दवा, काड़ौ लेव बनाय।
रोजइँ जो पीवै इयै, दिल जवान हो जाय।।
     ***
      -अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी 
*3*
चुरा लेव काड़ौ बना,कबा पेड़ की छाल ।
हो अजीण गर पेट में,रोग मिटे ततकाल ।।
           ***
           -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*4*
कबा काम को पेड़ है, हवा दवा सब देत। 
बदले में हमसें कभउँ, टका एक नइं लेत ।।
          ***
        -संजय श्रीवास्तव, मवई
*5*
छाल कबा की चुरैकें,पियत  राय जो रोज।
रकतचाप होबै नहीं,करै जनम भर मोंज।।
       ***
     -एम. एल. त्यागी, खरगापुर
*6*
काढ़ा या फिर चाय हो,कबा डार कैं लेव।
पेट साफ जौ तौ रबै,जैसौ चायै जेव।।
***
   -प्रदीप खरे 'मंजुल',टीकमगढ़ 
*7*
गठिया,हिरदै रोग हो,या चर्बी बड़ जाय।
कबा छाल काढ़ा पिएं,रोगी राहत पाय।।
         ***
        -तरुणा खरे जबलपुर 
*8*
कबा बृक्ष के रूप में,शापित  तनय कुबेर ।
मन ही मन विनती करें,कान्हा करो न देर।।
            ***
            -आशा रिछारिया, निवाड़ी

*9*
काट कूँट औँटोँ पियो , रोज कवा की छाल ।
रोग दोग फटकेँ नही , रैय ढाल में  चाल ।।
          ***
             -प्रमोद मिश्रा वल्देवगढ़ 

*10*
कबा सुखाकैं घोंट लो, फाँको चूरन रोज।
हिरदे खाँ ताकत मिलत, मुख पै दमकै ओज।।
      ***
   -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा, विदिशा
*11*
मंदाकिनि के तीर पै, भारी कबा तमाम।
लेत छाॅंयरौ उन तरैं,सिया सहित श्री राम।।
     ***
        -भगवान सिंह लोधी ,हटा
*12*
होवै दिल कौ रोगिया, खाय कबा की छाल,
दोइ टैम काढ़ौ पिये, नौनौ होजै हाल ।
      ***
       -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*13*
ब्याधि हृदय में होय तौ, जानौ एक उपाय।
गुणकारी है जा दवा, पियो कबा की चाय।।
           ***
            -विद्या चौहान, फरीदाबाद 
*14*
चाय कबा की लेव पी, पाचन रहत दुरुस्त।
रक्तदाब सामान्य हो, तन भी रहे न सुस्त।।
           ***
                     - अमर सिंह राय, नौगांव 
*15*

काड़ौ  अर्जुन  छाल कौ , नासै  रोग  तमाम।
धबल कबा कहुआ कुकुभ,बैद बताबैं नाम।।
        ***
          -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
*16*
गुनकारी भारी कबा,बकला धरियौ छोल।
हिरदे बारे रोगियों, खों काड़ौ अनमोल।।
       ***
       डॉ.देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा 
*17*         
वीपी हो या हो सुगर,बिगड़े जब जब हाल।          
कूंट पीस काढ़ा पियो,लो अर्जुन की छाल।।
           ***
               -मूरत सिंह यादव दतिया 
*18*
बूटी है संजीवनी,कबा  पेड़‌‌ की छाल।
ई कौ रस भी रोग खौं,तन से देय निकाल।।
             ***
            -सुभाष सिंघई, जतारा 
************
[04/01, 10:30 AM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-कबा 
नदिया नरवा के लिगां, होत कबा के रूख।
बैठत इनकी छाॅंव में,मिटत राम ध‌इ भूख।।

अर्जुन कौहा अरु कबा, सबरे इन सें कात।
बकलों सें ओखत बनत,नीचट मानौ बात।।

दिल की बीमारी जिन्हें, पियें चुरै कें छाल।
कबा कात हो न‌इॅं सकत, भैया बांकौ बाल।।

लफत नहीं हैं जो कबा, बाढ़ आय पट जात।
गुॅंदला पानी के घटत, फिर सें खड़ो दिखात।।

कबा सगोना न‌इॅं सरत, पानी में सौ साल।
जामुन कौ सबखों पतौ,कुआ निमानी हाल।।
            भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[04/01, 12:37 PM] Subhash Singhai Jatara: शनिवार-4.1.25-बुंदेली दिवस 
विषय - कबा (अर्जुन पेड़)

भौत भरै गुन जानियौ , पेड़ कबा की छाल |
ई कै  सेवन  से  मिटैं ,   रोगन  के जंजाल ||

हृदय रोग शक्कर जियै , राज रहा मैं खोल |
कबा छाल ऊ कै लियै , है  सोने  की तोल ||

टी बी-  सूजन -दर्द   हो , और   पिराबे  कान |
कबा छाल से वैद्य जी , करतइ   खूब  निदान ||

कबा प्रकृति शीतल रयै , स्वाद   कसैला   होय |
रक्त रोग इससें  मिटैं ,    वात- पित्त- कफ रोय ||

मांसपेशियाँ  ठीक   हों , अल्सर  करता   दूर |
वैद्यराज    सब   जानते ,  कबा  पेड़ है   नूर ||

सुभाष सिंघई
[04/01, 12:42 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा विषय-कबा (अर्जुन का पेड़ )-* 

#राना सबरै चीनियौं, सुनौ  कबा  की  छाल।
औषधि में गिनियौ इयै ,तन खौं करौ निहाल।ऋ

जंगल में उगबै कबा,अर्जुन भी कत नाम।
गुनकारी #राना कहत,भौत आत है  काम।।

वैदराज से  पूछ कैं ,कबा  करौ उपयोग।
#राना मुलकन है मिटत,भौत पुराने  रोग।।

शुगर रोग में देखतइ ,करबैं कबा निदान। 
#राना इतनौ कात हैं ,है  यह पेड़ प्रधान।।

उपकारी टैटिन दवा,दैत  कबा की छाल।
पानी में रस जै उतर,#राना करत कमाल।।
       *** दिनांक - 4-1-2025
   *✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[04/01, 2:58 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: बुन्देली दोहा विषय ,, कवा,,अर्जुन वृक्ष ,,
**************************************
भारत के हर पेड़ में , है दवाइँ का वास ।
उसमें है उत्तम कवा , कर "प्रमोद" विश्वास ।।

चाय घाँइँ पी लो कवा , करेँ दवा को काम ।
फल हल करेँ "प्रमोद"कइँ , फैलेँ रोग तमाम ।।

हृदय रोग मैंटे शुगर , जोरेँ टूटो हाड़ ।
कइँयक रोग "प्रमोद"हैँ , जिन खोँ झौंकेँ भाड़ ।।

अडा़पच्च फल ढूँढ़केँ , घरेँ कवा को ल्याव ।
कूँच काच दाँतन घिसोँ , रोग"प्रमोद"भगाव ।।

कवा छाल फल पात की , दवा"प्रमोद"बिसाव ।
रोग दोग मुलकन इतै , इनसेँ पिंड छुड़ाव ।।

नानेँ बकला फल कुटेँ , जब चूरन हो जाँयँ ।
निन्ने पेट "प्रमोद"खा , गल्लन रोग भगाँयँ ।। 

विनती पढो़ँ "प्रमोद"की , करो कवा के पेड़ ।
जे कलयुग के वैध हैँ , पालों इन खाँ बेड़ ।।
***************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[04/01, 3:41 PM] Taruna khare Jabalpur: 'कबा ' शब्द पर दोहे 


नदिया के तीरे लगे, खूब कबा के झाड़।
गिरत सरत बिलकुल नईं,आबै कितनउ बाड़।।

कबा छाल काढ़ो बना,पियत सकारें साम।
हांत पांव के दरद मै,झट्ट लगै आराम।।

छाल कबा की लैं चुरै,निन्ने मौ नित पीव।
शुगर रोग जी खां लगै,राहत पाबै जीव।।

तरुणा खरे जबलपुर 
🙏🙏
[04/01, 3:59 PM] Amar Singh Rai Nowgang: बुंदेली दोहे, विषय: कबा (अर्जुन की छाल)

कबा  दबा  के  रूप  में, करते  बैद प्रयोग।
ई के छिलका  सैं कई, ठीक  होत हैं रोग।।

खाँसी- खुर्रा  आपखों, अच्छी खासी होय। 
कबा छाल काढ़ा पियो, डारो तना गिलोय।।

चमड़ी केरे रोग सब, छिलका कबा मिटायँ।
मिटैं मुहाँसे दौड़ कैं, खता  ठीक  हो जाँयँ।। 

कब्जे में कर कब्ज को,कबा बजन घटवाय।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े, गठिया दर्द मिटाय।।

छाल कबा की कूट कैं, पी लो चाय समान।
ई सैं ताकत जाय बढ़, बूढों लगत जवान।।

नदियन  के  तीरे  कबा, होवैं  पेड़  अनेक।
छाल  पेड़  पत्ती  तना, पेड़  दवा हर एक।।

                               अमर सिंह राय 
                                    नौगांव
[04/01, 7:44 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा 
बिषय- कवा 
(१) कवा दवा के काम में,
      करो जात उपयोग।
      करवे भारी फायदा,
      ऐसो कत है लोग।।
(२) कवा कीमती है बड़ो,
      गुन कारी भरपूर।
      पीयो जाय काड़ो बना,
      रोग अनेकन दूर।।
(३) कवा खोज वो है सरल,
      चाय जिते मिय जाय।
      नरवारे में देख के,
      छाल छोल ले आय।।
(४) सुका कूट चूरन बना,
      धर लवो कवा कजन्त।
      रक्त चाव कावू करें,
      पीके तको तुरंत।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[04/01, 8:26 PM] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा (कबा) अर्जुन का पेड़ । (197)
                    (01)
नदिया ऐंगर कबा मिलैं,फल पांडव का रूप ।
छाल दवा के काम में,हैऔखद अनुरूप ।।
                    (02)
अर्जुन के ई पेड़ सै,कैतइ कबा कौ वृक्ष
पीर पिरातौ हो कितउँ,करदो मालिस वक्ष
।।
                   (03)
कबा जंट जौ होत है,लरजत नइँ लरजायँ ।
"दाँगी"तौअजमा चुके,का तुमसैं अब कायँ ।।
                   (04)
अर्जुन के ई पेड़ सैं,बनबैं औखद ऐंन ।
खाँसी जीखौं आत हो,"दाँगी" गयते देंन ।।
                (05)हास्य दोहा 
कबा टेरबे आवतौ,चलौ सलइया दोर ।
सबइ बरातै जा रहे,आव न"दाँगी"
ओर ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326

संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल नंबर -9893520965


1-Pramod Mishra Baldevgarh: ,,

जंघा सेँ ऐडी़ तलक , गोड़ों फटत पिरात ।
कैरय केउ कुलंग है , अबइँ दवा खोँ जात ।।

गोबर डारन गइँ धना , कूँलेँ निगेँ लुलात ।
सोसन परेँ "प्रमोद"अब , वार कुलंग दिखात ।।

वात पित्त कफ दोष के , कारण होत कुलंग ।
गाँठ दर्द प्रेशर शुगर , है"प्रमोद"सब संग ।।

हल्दी मैंथी सौंठ को , चूरन लासुन खाव ।
पियो गडे़लू कूच रस , वात कुलंग भगाव ।।

पकरेँ धनियाँ भाँयँनो , कत "प्रमोद"सेँ रोय ।
अस्पताल अब्बै चलोँ , भइँ कुलंग सी मोय ।।

कूँलत निगेँ लुलात सी , हरसाँसेँ सीँ लेत ।
लगेँ "प्रमोद"कुलंग सी , धना कतीँ है प्रेत ।।
***
 -  प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश          ********************************   

2-Subhash Singhai Jatara: 

लाँकत बै सब लोग हैं , जिनखौं  हौत कुलंग |
बिजली -सी  तड़कन उठै ‌, कमर पैर के‌अंग ||

करयाई सें पाँव तक ,  दै  कुलंग जब   दर्द  |
घुटना जाँघै सब दुखत , लाँकैं   औरत  मर्द ||

तनिक खटाई खा गयै , आफत -सी आ जात |
आँसत  भौत  कुलंग है ,   याद  मताई  आत ||

झारन फूँकन सब करैं  , और डमा लगवात |
पर कुलंग मिटबै नईं , रुगया  रत  डिड़़यात  ||

खान- पान  देशी दवा , धीमो   असर दिखात |
है कुलंग जिनखों सुनौ ,    बौ परेज  से  रात ||
 ***

       -सुभाष सिंघई, जतारा 
**************************
3- Aasharam Nadan (Prathvipur):- 

(१) गठुआ बाद  कुलंग  कौ , रोग होत बेकार।
अच्छे खासे  डील  खौं , बना देत लाचार।।
(२)
नस में होत कुलंग उर ,घूॅंटन  गठुआ बाद।
जितै  बताबे  में सरम , उतइॅं होत  है दाद।।
(३)
बैरी  होत  कुलंग खौं , भटा  उरद की दार।
 बैद  बताबैं   रोग  पै  , परहेजी  आहार।।
(४)
तड़कैं नसैं  कुलंग में , जब  बदरौखौ होय।
होत बिकट चीबन तबइॅं , परौ रोगिया रोय।।
(५)
दागत  हते  कुलंग खौं  , ताती  करकैं टान।
अब दगबइया ना बचे,कैरय कवि "नादान"।।
***
         -आशाराम वर्मा  " नादान " पृथ्वीपुर
*************************
4- Rajeev namdeo Rana lidhori 

#राना लखें कुलंग खौं ,जिनखों जा हो जाय।
चलतन में तकलीफ हो,रुक -रुक के चल पाय।।

वात रोग कत वैद्य यह, है  कुलंग सुन  भाइ।
#राना जनबा कन उठै ,लगै डमा  की  पाइ।।

"ना"का पत्ता हौत है ,आत डमा  के काम।
कत कुलंग #राना मिटै ,कातइ लोग तमाम।।

यह कुलंग जीखौं भयी ,#राना पीड़ा पाय।
जौन दवा जो भी कहै ,बौ सब  लाकै खाय।।

#राना की विनती इतै ,जब कुलंग भी होय।
किसी वैद्य की मानियौ,मिलै फायदा सोय।।
    ***दिनांक -30-12-2024
   *✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
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5- M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: 
                  १
जब एडी सें नश पटै,कूले तकलों जाय।
पीरा सैबो कठन हो,वात कुलंग कहाय।
                   २
बेंजा पीरा होत है, कुलग वात में बैन।
चैन परैना घरीहां,तलफतहों दिन-रैन।
                   ३
लठिया लैकें टेकबै,जीखां होय कुलंग।
ना बिलमें जी कछू में,परत रंग में भंग।
                   ४
दुखना दियो कुलंगको,दीनबन्द भगवान।
ना मानो तो खेचलो,तुम ई तन सें प्रान।
                   ५
पीरा भई कुलंग की,फिररइ धना लुलात।
हार गओ मैं मना कें,कौरा तकनइं खात।
***
     -एम. एल. 'त्यागी',खरगापुर
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6- Dr Raj Goswami (Datiya)

कुल की दैन कुलंग है, कुल में सबकों होत । पीढ़ी दर पीढ़ी चलत, पीढ़ी जइ में रोत ।।

भौतइ होत कुलंग कौ,दरद सहन नहिं होत । दवा खाएं कछु होत न, झारत जनवा प्रोत ।।

हो कुलंग कौ दर्द जब, हो देसी उपचार । तुरत दर्द राहत मिलत, उतरत तन कौ भार ।।

4- जी कों भऔ कुलंग यह,पीड़ा बौई जान । नस नस आंसत दर्द सें, खड़े होत हैं कान ।।
5-राज करत विनती सबै, जब भी होय कुलंग । सेवन कर देसी दवा, प्रभू कृपा हो संग ।।
         -डॉ राज गोस्वामी, दतिया
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7- Taruna khare Jabalpur -


परेसान जी लग लगो,है कुलंग को रोग।
आबो जाबो बंद है,बचे न चलबे जोग।।

जे प्रानी खां लग गओ,जो कुलंग को रोग।
जोड़ जोड़ मै होत है,पीरा मरबे जोग।।

तड़कन सी तन मै उठै,कड़े जात हैं प्रान।
पीरा उठी कुलंग की,का करिए भगवान।।

सीत खटाई उर भटा,भिंडी सैं बच राव।
रोगी होंय कुलंग के,उरद दार नै खाव।।

नैचे बैठत नै बनै,घूंटे खूब पिरात।
रोगी होय कुलंग को,मुसकल सैं चल पात।।
***
-तरुणा खरे ,जबलपुर 
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8-S. R. Saral (Tikamgarh)-

सूदै  चल  पावै  नई,टिड़यानें से रात।               
रत टाँकोरा सौ लगौ,जब कुलंग उबरात।।
               
चलतइ कुलची मार कै,जैसे चलत अपंग।
औज बदत नइँ काम की,जब उबरात कुलंग।।
                
जोरे गुनियाँ नावते,बैठक लई कराय।            
लगत दबा दारू नईं,रई कुलंग पिराय।।
              
खान पियन फीकौ लगत,जिएँ कुलंग पिरात।    मालस कर कर तेल कौ,कूलौ कल्ला जात।।
              
कर्रो कष्ट कुलंग कौ,सरल परत ना चैन।            नस तरकत है पैर लौ,लौकत रत दिन रैन।।
               ******
        -एस. आर. 'सरल' (टीकमगढ़)
           
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9-Ramanand Pathak Negua-
                      1
कुलकें रमू कुलंग सें, निगवे भय लाचार। 
लेत घुटनियाँ हाँत में, थोरौ लेबैं भार।
                        2
जीखौं होत कुलंग है, जिउ ना धरबै धीर। 
तडफें जल बिन मीन से, सयी जाय ना पीर। 
                         3
देशी दबा कुलंग की, करबैं वैद हकीम। 
कै बै मूर दबाइ है, रोगी बन जै भीम। 
                          4
झाड फूँक उर दागबौ, है देशी उपचार। 
चैंन मिलै बैचेंन खों, खुशी हुए घरबार।
                          5
 हो कुलंग वातांस सें, जा है बात निचाट। 
बचिऔ नीम हकीम सें, पकरा दैहै खाट।।
              ***
      -रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवा
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10- Jaihind Singh Singh Palera:

                    //1//
पीड़ादाई रोग है ,लाग लगे की बात।
 लेत दवाई भी क‌ई,तलफत है दिन -रात।।

                    //2//
कुलंग में कुलकत फिरें,बूढ़ेऔर जवान।
जी कों होवै रोग जौ, आफत में हो जान।।

                    //3//
कुलंग की पीरा बड़ी, जैसें लागौ तीर।
बिमाई जी खों न फटी,वौ का जाने पीर।।

                    //4//
जो कुलंग ज्वानी लगै,है चिन्ता की बात।
पीरा देबै पाॅंव में,करै पैर सें घात।।

                    //5//
हो कुलंग जो ज्ञान की,ले समाज के प्रान।
तलफाबै जो और खों, अत्याचार खदान।।
***
   -जयहिन्द सिंह जयहिन्द ,पलेरा 
      जिला टीकमगढ़ मध्य प्रदेश
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[11] Brijbhushan Duby, Baksewaha: 

(1) 
नग नग इतनो रव पिरा,हम तो हो गए तंग।
जान परत ऐसो लगत,बन गव रोग कुलंग।।
(2) 
चैन नही बैठे परें,चीवत है करयाइ।
जाने का कारण बनो,भव कुलंग शक जाई।।     
(3) 
ने तो कैसउ मन लगे,ने कऊ चल फिर पाय।
 ब्रजभूषण वैरी बनो,हमे कुलंग सताय।।     
(4) 
काम काज कर ने सकें,टूरी अब उम्मीद।
 कव कुलंग कैसे मिटे,लग ने पावे नीद।।
(5) 
बैठे रत मन में गुने,किते जाय दिखवाय।।
अब लो जीने है तको,बात कुलंग बताय।।
      ****
      -बृजभूषण दुबे 'बृज', बकस्वाहा
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13- Shobharam Dagi, nadanwara

                  (01)
कुचर गड़ैलू रस पियौ,देसी दवा कराव ।            "इन्दु"कुलंग मिटाइयौ,जौ कैबौ अजमाव।।
                    (02)
झारे फूँके सैं मिटै,"इन्दु"कुलंग दगात ।
जड़ सैं ये मिट जाय जो,दवा करे उतपात ।।
                    (03)
धना कुलंग कि रोगिया,सुक सैं नइँ रै पात ।
"दाँगी"सांची कात हैं,नस पै करबै घात ।।
                   (04)
बूँड़न खों झट होत है,गठिया रोग कुलंग ।
अबतक तौ"दाँगी"बचे,फिर रय भौत दबंग ।।
                  (05)
नाँयँ-माँयँ कूलत फिरै,तनक नौइँ निग पात ।
"दाँगी"पांव पिरात हैं,बैध कुलंग बतात ।।
      ****
-शोभारामदाँगी "इन्दु" नदनवारा 
जिला टीकमगढ़ (मप्र)
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समग्र प्रतियोगिता बुंदेली दोहा प्रतियोगिता समग्र संपादक

 -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
 147 *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता नंबर-147* 
बिषय-नईं नँइँ (नहीं)बुंदेली दोहा
 संयोजक- राजीव नामदेव राना लिधौरी'टीकमगढ़ 
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-* 
 *1* 
चले सुदामा माँगवे, नँइँ देने जिय होय । 
बंद करत सब गेट वो ,कृष्ण भजें रत सोय ।।
 *** -शोभाराम दाँगी 'इंदु', नदनवारा 

*2* 
बब्बा नै दव झूँड़कें , तनक सुनानो फठ्ठ । 
नँइँ नँइँ कत कुत्ता भगों , घलो पीठ पै लठ्ठ ।। 
 *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़

 *3* 
हाँ कैकैं फिर नँइँ कयी , बदली जितै जुबान | 
साँसउँ इज्जत जानियौ , ऊकी धूर ‌ समान ||
 *** -सुभाष सिंघई, जतारा 
*4* नाँईं नइँ करिऔ पिया,अँखियन झूलत राम।
 प्रान प्रतिस्ठा देखबे, चलौ अजुध्या धाम।।
 *** -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी (बुड़ेरा)

 *5*
 न्याय नीत छोड़ों नईं,करौ नईं अभमान। 
कर्मन के आधार पै, फल भोगत इंसान।। 
 *** -एस आर सरल टीकमगढ़

 *6* 
नँईं-नँईँ बे कात रय, मान गए जा बात। 
 सबरे मिलकें हम रयें, करे उजास प्रभात।।
 *** - श्यामराव धर्मपुरीकर गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. 

*7* 
नँइँ मानत जो राम खों,उने कबे आराम।
 राम नाम हिय में धरो,बन जें बिगरे काम।। 
 *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 

 *8* 
परदा में नइँ ढक सकत,भैया कौनउँ काम। 
पकरें हैं चोटी इतै ,सबकी राजाराम।। 
 *** -डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा 

*9*
 मन भीतर सें न‌इॅं करत, फिर भी करबै काम।
 बज्जुर देह किसान की,सहै सीत अरु घाम।। 
 *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा 

*10* 
बुरय काम खों नंइं करत , साजे खों तैयार।
 ऐसौ मोरौ काम है , सुन लो लममरदार।।
 *** - वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ 

*11* 
 पार उतरबे राम नें, माँगी तट पै नाव। 
केवट नइँ आनी कहत,पैलाँ चरन धुआव।। 
 *** -रामानंद पाठक, नैगुवा

 *12*
 नइँ-नइँ कै कें, सब जनें, देत ओइ खों वोट। 
घर में आकें रात में, जो दै जावै नोट।।
 *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी

 *13*
 जब लों हाॅं में हाॅं रये,बढे़ प्यार व्यौपार।
 बिगरी कौनउॅं बात पे,करत नॅंई स्वीकार।। 
 *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. ***#######@@@@ 

146वीं बुंदेली दोहा
 बिषय-गुलगुलौ(मुलायम) दिनांक-6-1-2024 
संयोजक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह. 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
 *1*
 गुलगुलात पापा हते , जब बचपन में ऐन । 
लगत गुलगुलो आज लौ , छलक जात हैं नैन ।। 
 *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 

*2* 
बिटिया की ससुरार सैं,पई-पावनें आय। गद्दा पल्ली गुलगुलो, दीनों सास बिछाय।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *3* हतो गुलगुलौ जोबदन,सियाराम सुकमार । भओ वन गमनरामको,झेलत रय सब मार ।। *** -शोभाराम दाँगी , नदनवारा *4* गद्दा भारी गुलगुलो, राखें बिछा पलंग। ओढ़ रजाई गुलगुली, लडे़ं ठंड सें जंग।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *5* होत भरोसा गुलगुलो, बगर तनक में जाय। जोरैं से फिर नइँ जुरत, कित्तउ करौ उपाय।। *** -विद्या चौहान, फरीदाबाद *6* सुनकें लग रव गुलगुलौ,भव मंदर तैयार। गीद रीछ बंदर उतै,कर रय जै जै कार।। **** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *7* बिछो गदेला गुलगुलौ,तौउ नींद न‌इँ आत। हारो थको किसान सो,डीमन में सो जात।। *** - प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़ *8* बिछा बिछौना गुलगुलो,भइया भाभी हेत। खुद पथरा पै बैठकें,पैरौ लक्ष्मन देत।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां *9* खाव गुलगुलौ गुलगुला, भौत मजा आ जाय। जीखों नइयां है पतौ, देखौ आजइ खाय।। *** - वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *10* मन तो हौबे गुलगुलो , नीचट रबै शरीर | प्रभू भजन में मन लगे , रये न कौनउँ पीर || *** -सुभाष ‌सिंघई , जतारा *11* सुरा गुलरियां गुलगुला,कै चीला मिल पाय। पुआ गुलगुलौ होय तौ,मँगा मँगा कें खाय।। *** -डां. देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा *12* राते गव अँधियार में, लगो गुलगुलो मोय। देवा ने बचाय लये, करिया मा रव सोय।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *13* चूले येंगर बैठ कैं , राते करी ब्याइ। हतौ बिछौना गुलगुलौ, सो गय ओड़ रजाइ।। *** -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर, *14* तन हैं जिनके गुलगुले, मन देखों बेकार। गोरन ने हमपे करें, खूबई अत्याचार।। *** -विशाल कड़ा, बडोराघाट *15* धरौ गुलगुलौ साँप सौ, बिल्कुल नइँयाँ ह्याव। यैसे मूसर सें भलाँ, करौ काय खों व्याव।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाडी *16* गद्दा जैसी गुलगुली,है माता की गोद। ममता का भण्डार है,रहे मुदित मन मोद।। *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *17* बिछो बिछौना गुलगुलौ,अँखियन नइँयाँ नींद। जब सें अँखियन में बसी, हरि दर्शन उम्मींद।। *** -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी *18* मिलो बिछौना गुलगुलो,लरका खा पी सोयँ। खात कमाई बाप की, समव सुहानों खोंयँ।। *** - अमर सिंह राय, नौगांव ***** 


145 वीं बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-145
 दिनांक 30.12.2023
 प्रदत्त शब्द-खटका-(चिंता, आशंका,)
 संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह. 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-* 
*1* 
परमारथ जीवन जियें,कंठ विराजें राम।
 सद्गुरु कौ सत्संग हो,खटका मिटें तमाम। । 
 *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 

*2*
 राम लखन सीता निगे , बात मातु की मान । दशरथ खों खटका लगो , पट्ट छोड़ दय प्रान ।। **** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *3* समओ भौत खराब है,जीबौ नइं आसान। जीवन बीदौ रात दिन,लॅंय खटका में प्रान।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी *4* खटका देखौं लग रओ , हमको दिन उर रात। धरौ सबइ राने इते, कछू नही ले जात।। *** *विशाल कड़ा, बडोराघाट, टीकमगढ़* *5* बुंदेली दोहा बेदरदी आये नहीं,फिर लग परौ असाड़़। खटका में घुन से परे,भीतर भीतर हाड़।। *** डां. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा *6* खटका तो श्री राम खों,लगो लखन खों वान। संकटमोचक बन गये, पवन पुत्र हनुमान।। *** -रामानन्द पाठक,नैगुवां *7* बिटिया बैठी ब्याव खौ,कछू न सूझै काम। रात दिना खटका लगौ, कैसै निपटें राम।। *** -एस आर 'सरल', टीकमगढ़ *8* नई साल जा आ रई, खटका मन मा रात। जैसी गुजरी साल जा, हुइए का बरसात।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *9* भड़या लबरा पातकी, इनखों खटका रात। ईश भगत परमारथी, जे ना कहूँ डरात ।। *** -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल *10* स्यानी बिटिया जोंन घर, रिन बैरी हों भौत। इन सबसें खटका बड़ो,जी घर हौबै सौत।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *11* टपका कौ खटका बुरवँ , रातै नींद न आत | कौन घरी का गट्ट हो , चिंता में जी रात || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *12* फक्कड़ घुरवा बैंच कैं,खोल किबारे सोय। खटका ऊखौं होत है ,जीनों संपत होय।। **** आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर *13* खटका मिट गव राम कौ, मंदिर बनौ महान। विराज थय बाईस खौं, जनम भूम पै आन।। शोभाराम दांगी, नदनवारा ####***####@@@@###@@@ 144- *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 144* विषय -अनमनें (उदास) दिनांक-23-12-2023 *संयोजक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* जनम- जनम कौ संग है ,सुनलो पिया हमाव। आज अनमनें काय हौ , मन की हमें बताव।। *** -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर *2* खाद- बीज सब खा गये,नाहीं बिजली रात। बैठे हैं सब अनमनें, मारे भूखन जात।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *3* राम लखन अति अनमने,ढूंड़त हैं वन मांह। जड़ चेतन सें पूंछते ,सीता कहुँ न दिखांय।। *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *4* दुख सें जिन हो अनमने, करत रओ तुम काज। देहें साचउँ राम जी, उमदा सुख को राज।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर,गंज बासौदा *5* लछमन खौं शक्ती लगी , भयै अनमनै राम | लाबै बूटी तब मिलौ , बजरंगी खौं काम || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *6* क‌य बैठे हौ अनमने, धरें हात पै हात। कुआ पियासे के लिगाॅं,सुनौ कभ‌उॅं न‌इॅं जात।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *7* धन डेरा दै कें करो, बेटा खों का पाप। सोसत बैठे अनमने,भूँके माई बाप।। *** डां देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा *8* राजतिलक तो भुन्सराँ,भऔ राम वनवास। नर-नारी भय अनमने, भूले भूँख पिआस।। *** -रामानन्द पाठक, नैगुवां *9* फैलो रोग दहेज कौ, चड़ रइ जूड़ी ताप। फिरत अनमने-अनमने,बिटियन के माँ-बाप।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *10* भैया कैसे अनमने,होते काय उदास। भूल चूक सबसें बनत,कीजे मन अहसास।। *** मूरत सिंह यादव, दतिया *11* ग़ुस्सा बैठो नाक पै, मूड़े चढ़ो गुमान। भाव अनमने छोर कें, मौ पै धर मुस्कान।। *** -विद्या चौहान, फरीदाबाद *12* हुये अनमने आप हैं , जब सें सबइ उदास। खुश हुइयौ तुम पांवनें , ऐसी सबखों आश।। *** - वीरेंद्र चंसौरिया टीकमगढ़ *13* भये अनमने भौत शिव, धर कें देखत ध्यान। सती गई सिय रूप में, देखन खों भगवान।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी *14* भय दसरथ जू अनमने,दो वर मेरे पास । भरत खौं देव राज उर, राम खों बँदोवास ।। *** -शोभाराम दाँगी इंदु, नदनवारा ################## 143- 143 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-143 *संयोजक- राजीव नामदेव राना लिधौरी'* आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह. *विषय -लच्छन* दिनांक-16/12-2023. प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* जी घर में बउ लच्छमी, ऊके सब गुन गात। बउ बिटिया लच्छन बिना,कंडी सी उतरात।। *** - एस आर 'सरल',टीकमगढ़ *2* लच्छन सुन कें सीय के, भरे सुनैना नैन। सीता ब्याहे राम खों, बोले नारद बैन।। *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *3* रंग रूप पुजबैं नहीं , लच्छन पूजे जात। लच्छन साजे होंय सो,जगत मानबै बात।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *4* लच्छन वारी लच्छमी,जीकै घर आ जाय । दिन दूनी सम्पत बढै,सबकौ मान बढाय ।। *** - शोभाराम दाँगी, नदनवारा *5* रावन कौरव कंश के, लच्छन हते खराब। जैसें बदबू सें भरे,लासन प्याज शराब।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *6* साजे लच्छन पूत के, पलना में दिख जात। बनकें ध्रुव प्रहलाद बे,जग खाँ गैल बतात।। *** -रामानंद पाठक, नैगुवा *7* लच्छन में है को कहां खुशियन की है रैंक। भारत एक सौ छब्बीस पे, फिनलैंड पैली रैंक।। *** - रामकुमार गुप्ता, हरपालपुर *8* अच्छन-अच्छन के दिखे, लच्छन भौत खराब। लुकैं-लुकैं ताकैं जनी, छुप-छुप पियें शराब।। *** -संजय श्रीवास्तव,मवई(दिल्ली) *9* चालाकीं बेमान की, मूरख कौ बतकाव। लच्छन इनकें देख कें, दूरइ इन सें राव।। *** ~विद्या चौहान, फरीदाबाद *10* लच्छन सीखौ चार ठौ , भलै बुरय कौ ज्ञान | जगजगात जीवन जियौ, सुमरत रवँ भगवान || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *11* नोने लच्छन कै बुरय,बचपन में दिख जात। होनहार विरवान के,होत चीकने पात।। *** -आशा रिछारिया,निबाडी *12* लच्छन सुदरें तौ बने,सबरे बिगरे काम। बिन लच्छन बन पांय ना,जग में सीता राम।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा( टीकमगढ़) *13* शरम करौ लच्छन बिना , जीवन है बेकार मानव जनम सुधार लो , जीवन कौ जौ सार *** - वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *14* पातर चमड़ी चीकनी, चमकदार हों बार। लच्छन जी गउ में दिखैं,समझौ उऐ दुधार।। *** अमर सिंह राय, नौगांव ####₹₹@@@@@###### *142 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-142* #शनिवार #दिनांक ०९.१२.२०२३# #बिषय-गुनताड़ौ/गुनतारौ (उधेड़बुन, उपाय)# *संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* तर्क करे के गणित में, प्रश्न आज हैं आत। गुंतारे से ही सहज, सबरे हल हो जात।। *** - राम कुमार गुप्ता, हरपालपुर *2* गुनताड़ौ लगवाउ तौ ,हैं कौनउ औतार । वनवासी बन आय जे,तीर न करवै मार ।। *** -शोभाराम दाँगी 'इंदु',नदनवारा *3* गुनतारो कर रइ धना , तापत आगी बार । बहिन लाड़ली के मिलें , रुपया ढाइ हजार ।। *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *4* गुनताड़ौ जो ताड़ ले,कठिन काम हो खेल। ऊंचाई खों जा छुयै,जो विरवा की बेल।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा, टीकमगढ़ *5* जो गुनताडौ हैं करत , हाथ सफलता आय। नइं मानौ तौ देख लो , बढ़िया जेउ उपाय।। *** -वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ *6* गुनताड़ौ है श्याम कौ , कर मनहारिन देह | पैराबै चुरियाँ चलौ , आज राधिका गेह || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *7* कक्का गुनतारौ करें ,है‌ं किसान हैरान। ओदें बादर टर गये,का करनें भगवान।। *** - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *8* गुनताड़ो जेको बने, वोइ जीत है रेस। अब चुनाय भी खत्म भय,आँख गड़ायें देस।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा.म.प्र. *9* ढूंडत ढूंडत पोंच गय, लंका में हनुमान। मन में गुनतारौ करें,का करिये भगवान।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा *10* राज तिलक खों राम के,सज गय‌ महल तमाम। दासी गुनतारौ लगा, वनों विगारौ काम।। *** -रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवां *11* मरगय गुनताडौ लगा, मिलै कौन खों ताज। धरौ ओइके मूँड़ पै, जी कौ नोंनों राज।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निबाड़ी *12* सोच-फिकर में दिन कड़त, गुनताड़े में रात। मोड़ी हो गइ ब्याव खों, ढेला नइयाँ हात। *** - संजय श्रीवास्तव,मवई( दिल्ली) *13* गुनताड़ौ अब ना करौ , जीवन के दिन चार। भजलो सीताराम खौं , जेउ जगत में सार।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर *14* देस-देस के भूप जुर, समझ रये खिलवाड़। टोरें कैसें शिव धनुष,गुनताडौ रय ताड़।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी *15* लगा लगा कैं हड़ गऔ,मैं गुनतारो खूब। गांस गुड़ी कैंसे मिटे,कांस खेत की दूब।। *** -मूरत सिंह यादव, दतिया ***####@@@@#### *141* बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-141 *प्रदत्त शब्द :- बैठका* दिनांक -2-12-2023 संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्रविष्टियां :-* *1*- तखत लगै कुरसीं डरीं, सौफा लगत दबंग | हुक्का रख्खौ बैठका , लोंग लायची संग || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *2* फटिक शिला को बैठका , बैठें लछमन राम । सब बन्दर करवै दते, जोरेँ हाँत प्रनाम ।। *** -प्रमोद मिश्रा ,बल्देवगढ़ *3* उठत भोर से आज तो , मुखिया के घर द्वार। भर गव पूरौ बैठका , कौ जीते कौ हार।। *** -रंजना शर्मा, भोपाल *4* लीप पोत लो बैठका , करलो मन की टाल । काम क्रोध छल द्वेष को ,कचरा देव निकाल।। *** -आशाराम वर्मा " नादान" पृथ्वीपुर *5* बनौं बैठका ओरछा,देव कुँवर हरदौल । भीम बैठका रायसिन,साँसी कयँ कर कौल ।। *** -शोभाराम दाँगी इंदु, नदनवारा *6* चंदन डारौं बैठका,माई शारद तौय। पाॅंव पखारों दै दियौ,चरनौं की रज मौय।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *7* बे पथरन के बैठका, हैं धामों के धाम। बैठत ते वनबास में,जिनपै सीता-राम।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *8* हनमत की चौकी लगी,सजौ राम दरबार। सुर मुनि बैठे बैठका, कर रय जै जै कार।। *** - एस आर सरल,टीकमगढ़ *9* सबइ जुरत तै ढोर लै, सबरै जात चरात। कात बैठका सब जनै, अब तो नईं दिखात।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *10* बनो राम मंदिर अजब, छाई खुशी अपार। राम सिया कौ बैठका, करहै जग उद्धार। । *** -आशा रिछारिया जिला निवाडी *11* फूल-बाग शुचि बैठका, बैठत ते हरदौल। रइयत की सुनकें ब्यथा,न्याय करत ते तौल।। *** -रामानंद पाठक, नैगुवा *12* रिस्ते-नातेदार सब,बैठे पैलउँ आँन। एक बैठका होत है, घर बखरी की साँन।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी ,बड़ामलहरा *13* सज गव उनको बैठका,घर भर भव तैयार। करवै आ रय कछु जनै, मौडा़ को बैहार।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *14* पैल हते जो बैठका, भये चेटका आज। राजा मरे घमंड में, भव कुत्तन कौ राज।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत निवाड़ी *15* जमीदार के बैठका,में माते की खाट। मुखिया आबें बैठबे,तौ फिर देखौ ठाट।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा( टीकमगढ़) *16* उतै हतो जो बैठका , पैलां मोरौ होय‌। रुकौ कछू दिन और तुम , फिर दै दैहें तोय।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया ,टीकमगढ ###@@####@@@#### 140+बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 140 दिनांक- 25/11/2023 *प्रदत्त शब्द - इंद्र* संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* गौतम मुनि के भेष में , करौ हतौ घट काम। छली अहिल्या इंद्र ने, भय जग में बदनाम।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर *2* चूर करौ मद इंद्र को, गिरिधारी गौ ग्वाल। गोर्वधन धारण कियौ, छिगुरी पे गोपाल।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'.,बडागांव झांसी *3* राखत परमानंद सें,सबको राखत मान । इंदर विनको नाम है,करत रहो सम्मान ।। *** -डॉ. रंजना शर्मा, भोपाल *4* इंद्रासन सौ सज रहो,जनमत कौ दरबार। ई चुनाव में इंद्र पद,किये मिलत उपहार। । *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *5* सबइ इंद्र रत मस्त हैं , जब बीदत है गट्ट | आबैं ब्रम्हा विस्नु सँग , महादेव लौ झट्ट || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *6* इंद देवता जगत में ,करें अलग पैचान । श्री किशन से युद्ध में ,हार गयेे भगवान ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *7* कर कें राजा इन्द्र नें, नारी कौ अपमान। राजन की करतूत कौ,दव तो बड़ौ प्रमान।। *** -रामानंद पाठक 'नंद', नैगुआं *8* चेला होवें इन्द्र से, गुरु जो होंय दधीच, होय धरम की थापना, मरैं असुर वृत् नीच । *** -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल *9* इंद्र रुष्ट हैंगे लगत, बरखा तो गइ रूठ। बिना पलेवा बो रये, राने खेतन ठूंठ।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *10* पानी बरसा इंद्र ने,बृज खों कर बेहाल। गोबरधन उगरी उठा,रक्षा की नदलाल।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़# *11* इंदर न‌ई धरा करो, फिर क‌उ आय बहार। फिर सबरे खुशहाल हो, सरस नदी की धार।। *** -सरस कुमार,ग्राम दोह, खरगापुर (टीकमगढ़) *12* पैल घाइँ बरसा करो, इंद्र देव महाराज। धरती प्यासी ना रबै, कुठियन भर हो नाज।। *** -संजय श्रीवास्तव* मवई *13* इंद्र परी हो र‌इॅं धना,भोंहें मनो कमान। बूॅंदा दमकैया दिपे,मुख में खायें पान।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *14* हरि चरनन सिर नाँय कें,देबी देव निहोर। इंद्रदेव रक्षा करौ,बिनय करों करजोर।। *** डां. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा *15* देवराज सब कत मगर, इंद्र न पूजे जात। काम वासना ग्रस्त नर, एइ दशा खों पात।। *** -अमर सिंह राय,नोगांव *16* बैदिक युग के देवता , पिथम इंद्र दिवराज। कश्यप इनके हैं पिता , पतौ चलौ है आज।। *** -वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ *17* बज्र लिये जे हाथ में, करें स्वर्ग पै राज। बिकट लरे, हारत रहे, पाली कैऊ खाज।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *18* देख इंद्र - सी अप्सरा, सबकौ मन ललचाय। मन की गति नैंची सदा, चाय जितै चल जाय।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *19* सतरंगी पट्टी बिछी, धरती सै आकाश। इंद्रधनुष बरसात में, दे बर्षा की आश।। *** -एस. आर. सरल,टीकमगढ़ *20* इदंर दैव महान है,जग में फूंकैं प्रान। जल की इक इक बूंद खों ,नै तरसे इंसान ।। *** -हंसा श्रीवास्तव हंसा, भोपाल 139-बुंदेली-दोहा प्रतियोगिता - 139 शनिवार, दिनांक- 18/11/2023 संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ बिषय- ' दाँद ' *1* प्रतियोगी दोहा होबै दाॅंद चुनाव में,जाड़ो ऊॅंग हिरात। नेता कूलें खाट पै,इक -इक गुरा पिरात।। *** -भगवान सिंह लोधी,हटा *2* दाँद मची भारी इतै, काँसें आव चुनाव। को जीतै, को हारबै, साँसी मोय बताव।। *** -प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ *3* जे कोऊ करजा करे, सैबू करत दाँद। परवै ओखाँ नैं कबउँ, महाजनी जा माँद।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *4* उछबड़ कुरता धाँद कें , धर लव मनको राँद । अब चुनाव के माँद में , नेतन खाँ भइ दाँद ।। *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *5* दाँद मचा रय कछु जनै , अच्छौ भयौ चुनाव | वोट न मौरे कयँ दयै , खूब पकर रय ताव || *** सुभाष सिंघई , जतारा *6* वाह कह दाँद दे रहे, जनी उड़ात मखोल । ताली जैसे ठुकत है,बजा देत हैं ढोल।। *** डॉ. रंजना शर्मा, भोपाल *7* बंद कुठरिया में लगै,दाँद सई नइँ जात । बस में हो च टिरेन में ,गरमी सैं उकतात ।। *** शोभाराम दाँगी, नदनवारा *8* जाकें जनता के घरै, दाँद नदी है झूँट। की कौ बैठै तीन खों, कौन करोंटा ऊँट।। *** अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *9* दाँद परी है हूंक कें,पीठ कुरोरू ऐन। खुजा खुजा कें हार गय,पल भर मिलो न चैन।। *** आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *10* राज योग की रेख खौं , कोउ बाॅंच नइॅं पात। दाॅंद करे में का धरौ , है किसमत की बात।। *** आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *11* दाॅंद मचा कें धर दई, ऐसो चढौ चुनाव। दल- दल अपने पैंतरा,खूब लगाये दांव।। *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *12* बुंदेली दोहा डर गय बोट चुनाव के,बैठे हिम्मत बाँद। हार जीत की तौ लगै, भीतर सबखों दाँद।। *** डां देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा *13* सत्ता की जिनखों हती,अबलौ बेजाँ दाँद। उनें हार कें ढूँड़नें, लुकबे कौनउँ माँद।। *** रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवा *14* तपी दुफैरी गैल में,निगे ततूरी फांद। जैसइ घर भीतर घुसे,खूबइ मचकी दांद।। *** -प्रभा विश्वकर्मा 'शील', जबलपुर *15* होबै बदरा घाम चय, होबै बेजाँ दाँद। लयें कुदरिया काड़तइ,कृषक खेत के काँद।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *16* भौत दिना तक आँसती,जा चुनाव की दाँद। सालन चलती रंजसै, कैउ कुकाउत चाँद।। *** -एस आर सरल ,टीकमगढ़ ############# 138 138- बुंदेली दोहा प्रतियोगी -138 विषय-लच्छमी दिनांक-11/11/2023. आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' *********************** प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* बड़े विरद कीं लच्छमी,जानत है सब कोय। जे किरपा जी पै करें, बौ कुबेर सम होय।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द' नेंगुवाँ *2* रुकत लच्छमी ओइ कें,माता जौन बनात। पत्नी जौ समझत उनै,लात मार कें जात।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *3* हमने कइती लच्छमी , बिन जीवन बीरान। मेंनत कर लो आज सें , जैसी करत किसान।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *4* कातिक कारी रात खों, जगमग दिया जलाव। लच्छमी जून कौ आगमन,धन संसत सब पाव।। *** -आशा रिछारिया,निबाडी *5* बउँ बिटियाँ सब लच्छमी , घर की हैं कैलात || इनकौ रखतइ मान जौ , घी चुपरी बौ खात || *** - सुभाष सिंघई, जतारा *6* दिया धरे घर दूआंय में,खेतन हार जगांय। लच्छमी और गणेश कों, पूजें देव मनांय।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी *7* जौन घरै हो लच्छमी ,चलादार बन जात । ऐंठत सबपै सैंत में, सबइ ऐंड़ कैं रात ।। *** -शोभारामदाँगी 'इंदु', नदनवारा *8* जा गरीब की झोपड़ी, देखे तुमरी बाट। मातु लच्छमी हो कृपा, बन जाए सब ठाट।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *9* लक्ष्मी संग गनेश के, रखियौ घर में पाँव। यश- वैभव माँ दै दियौ,रखियौ अपनी छाँव।। *** -प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ *10* घर आँगन उजरे डरे,घर घर मनें दिबाइ। उल्लू खौ वाहन बना,फिरें लच्छमी माइ।। *** - एस आर सरल, टीकमगढ़ *11* इतनों दइऔ लच्छमी,रइऔ सदाँ सहाय। द्वारें आऔ मंगता, खाली हाँत न जाय।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी (बुड़ेरा) *12* सुर सनमति होबै जितै , उतइॅं लच्छमी राय । कपटी कामी के घरै , कभउॅं न ढूॅंकन जाय।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *13* धन की देवी लच्छमी,सब पै होव कृपाल। ई दिवाइ खों सब जनें, होवें मालामाल।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी #######@@@@######## 137 *137* बुन्देली दोहा प्रतियोगिता-137 *प्रदत्त शब्द=नब्दा(रौब गाँठना)* दिनांक-4-11-2023 संयोजक-राजीव नामदेव मराना लिधौरी' आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* निज भैया बैरी भऔ,रखौ न रिश्तौ अंश। मार-मार भानेज सब, नब्दा कसबै कंश।। *** - एस आर सरल, टीकमगढ़ *2* नब्दा गाँठें सैंत कौ, नइँयाँ बसकौ काम । मिर्ची लगवैं आँख में,जोर न पाव छिदाम ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *3* रामदूत समझा रहे,रावन के दरवार। है बिगार नब्दा कसें,शरन गए में सार।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *4* नब्दा झाडें दीन पे,करें न कौनउ काम। नेतन की ई सोच सें,है निराश आवाम।। *** -आशा रिछारिया,जिला निवाड़ी *5* मालिक और मजूर में ,अलगइ फरक दिखात। नब्दा पेलत है जबर , लचर गंम्म खा जात ।। *** -आशाराम वर्मा "नादान",पृथ्वीपुरी *6* कोरो वे नब्दा धरें, बनकें फिरें दबंग। उसईं अपई तान कें, देत चुनावी रंग।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्त इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *7* नब्दा पेलौ दाउ नें, करौ भौत आतंक। माटी में वैभव मिलौ, लगौ काल कौ डंक।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *8* सास बहू के बीच में,है पैरन की जंग। रोज सास नब्दा कसै,करै बहू खों तंग।। *** -डॉ देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा *9* नब्दा की आदत बुरी , जलदी लेव सुधार। ननतर हुइयै बेज्जती ,उर बिगरै ब्यौहार।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *10* नार दलाकें नार सी, नब्दा कसबै रोज। साजी सुनें न एक बा, धरो मिटाकें खोज।। *** --प्रदीप खरे, टीकमगढ़ *11* काम करै नब्दा सहै, भूँकन मरै गरीब। ऊ समाज कौ मानिऔ,निश्चित पतन करीब।। **** -गोकुल प्रसाद यादव ,नन्हींटेहरी *12* हलकन पै नब्दा कसें, बड़े शरम नइँ खात। देख सरी विरवाइ-सी,लातन कुचरत जात।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां *13* नब्दा कस रव रावना, कात रए हनुमान। सरनागत हो राम की, बृथाँ काय हैरान।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *14* जब-जब नब्दा पैलतइ , आकै पाकिस्तान | हरदम खातइ लात है , बनतइ बेईमान || **** -सुभाष सिंघई , जतारा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 136- 136- बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-136 जय बुंदेली साहित्य समूह, टीकमगढ़ दिनांक -28/10/2023. बिषय- न्यौरे. *प्राप्त प्रविष्टियां :-* *1* न्योरे न्योरे कड गई,उरबतियन की छांय। बैठो रो में घरी भर,उनकी आश लगांय ।। *** -मुन्ना सिंह तोमर,भोपाल *2* बज्जुर सी छाती रई, ज्वानी में गर्राय। न्यौरे- न्यौरे अब चलें,जब सें गै बुढियाय।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *3* न्योरे न्योरे ऊब गय , कैसें हुइये काम। शेष बचो बौ बाद में , पहले अब आराम।। *** -वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ *4* न्योरे-न्योरे होत नइ, दाऊ चोरी ऊँट। कैंसे काटो रूख जो, बच नें पाओ ठूँट।। *** -श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *5* न्योरे चोरी ऊँट की , कभउँ कितउँ ना होत | जीकौ पेट पिरात है , बौ डिड़या कै रोत || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *6* न्योरे -न्योरे जो करें, बड़े बड़ों सें बात। जग में वे हनुमान से,सबके दिल में रात।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *7* हनुमान श्री राम खों ,न्योरें करें प्रणाम । आन विराजो ह्रिदय में , राघव सीता राम ।। *** -शोभारामदाँगी, नदनवारा *8* न्योरे- न्योरे ढूँढ़ रय,वे जीवन कौ राज। कैसें कड़ गइ जिंदगी, आव वुढ़ापौ आज। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *9* विनत लखन खों थामबे, न्योरे जइँ सें राम। वरमाला सिय डार दइ,हौन लगे शुभ काम।। *** -रामानंद पाठक, नैगुवां *10* पैलां के दोरे हते,न्योरे ही कड़ पांय। दोरे में जो जो कड़ें,न्योरें मूंड़ नबांय।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा *11* न्यौरे घुसेँ अटाइ में , भुसा भरो गय काँप । मूँतयाव जब देख लव , फूँसत करिया साँप ।। *** -प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़ *12* बड़ी बात तौ नइँ छिपत,जांन जात सब कोय। न्योरें न्योरें ऊँट की,चोरी कैसें होय।। *** - डां. देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा *13* नेता जू न्योरे फिरें, रय चरनन में लोट। कत जनता भगवान है,माँगै वोट सपोट।। *** एस आर सरल,टीकमगढ़ *14* सीमा पै ठाॅंड़े पिया ,अपनों सीना तान । न्योरे-न्योरे खेत में , धना नींद रइॅं धान।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *15* न्योरें कुबरी फिर रई,लख शत्रुघन इठलात। गिरतन टूटे दांत सब,हुमक घली जब लात।। *** -सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *16* घूंटन लों पानी भरो,खेतन तोउ किसान। न्योरें न्योरें नींद रव, घरवारी सॅंग धान।। *** -आशा रिछारिया,निवाड़ी *17* खुशी रहत ते जे झुके, न्योरे ते ना छोट। दूब नरम नीची रहै, हरी -भरी बिन खोट।। **** -रामलाल द्विवेदी, चित्रकूट @@@@@@@@@@@@@ 135- 135 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 135 प्रदत्त शब्द -दच्च दिनांक-20-10-2023 संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* बड़े बाप के पूत हों , होंय अकल के गच्च । मान पान धन की उनें, लगत हमेशा दच्च।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *2* दच्च किसानी में लगी,पर गव सूका काल। बिटिया बैठी व्याव खों,कठन परी जा साल ।। *** -सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *3* लगने दच्च चुनाव में , फिरी डारने वोट । सरपंची में लय हते ,तीन हरीरे नोट ।। **** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *4* जीवन रूपी नाव में,लगत अनेकों दच्च। राम भजन सें पार कर,सीख बोलबौ सच्च।। *** -भगवान सिंह लोधी,हटा *5* दे रये दच्च दुआंय पे, दावत को लंय दांव। राजनीति की बात कै, जीतें चात चुनाव।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव, झांसी *6* लबरा लम्पट लालची , चमचा आबै दोर | दच्च इनइँ से है लगत, चिपकै संगै चोर || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *7* बे मौसम बरसात नें, दै दइ दच्च बिलात। बिटिया बैठी ब्याव खाँ,टेरें साव चिमात।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवा *8* जिनखाँ दै-दै कें मदद,हमनें करो सपच्च। बे चैंथी में काट कें, दै गय कर्री दच्च।। **** -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी *9* लगै दच्च पै दच्च जो ,हो भौत‌ई नुकसान । अपनें मन में जान लो,खुश न‌इयां भगवान ।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा *10* मेघनाद को सुन मरन, खाकें रै गव गच्च। कर बिलाप रावन कहत, कैसें सै लउँ दच्च।। *** -श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *11* डुकरो बैठीं पौर में ,मूड़ पकर कैं रौयँ । लाखन की जा दच्च परी, कैसें सूदे हौयँ ।। *** -शोभाराम दाँगी,नदनवारा *12* दच्च कछू ऐसी लगी,उठ गओ है विश्वास। अपने अपने ना रहे,गैरन सें का आस।। *** -आशा रिछारिया (निवाड़ी) *13* हीरा सी नोंनी घरी,जब सोंनें की आइ। एक दच्च यैसी लगी,रनबन भई कमाइ।। *** - डां देवदत्त द्विवेदी ,बडामलेहरा *14* रो रय बे हैं काल सें , दूनौ भव नुकसान। ऐसी दच्च तौ कोउ खों , न लगबै भगवान।। **** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *15* पंगत खा लइ हूँक कें, भई पेट में गच्च। पइसा लगे इलाज में, कर्री लग गइ दच्च।। **** अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी ########@@@@@###### 134- 134 बुन्देली दोहा प्रतियोगी -134 संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ दिनांक-14-10.2023 प्रदत्त शब्द-टूॅंका (टुकड़ा) प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* टूंका सती शरीर के , करें सुदर्शन आन । शक्तिपीठ पुजने लगें , नवदुर्गा पैचान ।। *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *2* जिननें छप्पन भोज खों,धर दव कभ‌उॅं कनांय। बिपत परी जी दिन गरें, सो अब टूॅंका खांय।। *** - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *3* टूॅंका से बांटत फिरत,नेता जी दो काम। लरका पावे नोकरी,होय तुमारो नाम।। *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *4* जी हैं हम कैसें भला, मोखां देव बताय। दिल को टूॅंका कर चली, गोरी जो मुस्काय।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *5* सुखिया दुखिया है जगत, चका लगै दिन-रात | टूँका तिसना लोभ कै ,सबखौं देतइ घात || *** -सुभाष सिंघई, टीकमगढ़ *6* टूँका कइये स्वर्ग कौ, पावन भारत देश। जीके कण-कण में बसे,ब्रम्मा बिस्नु महेश।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *7* हूँका में चूका परै,कूका दै दै रोय। स्वारत चटकै काँच सौ,टूँका टूँका होय।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी,बडा मलेहरा *8* टूंका टूंका टूटकें,माटी रज बन जाय। गुरु चरनन सें धन्य हों,पद रज पावन पाय।। *** #जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़ *9* कछु टूँका जे फेंक दय, भरत न इनसें पेट। जंगल को जो सिंग तो, रोज करत आखेट।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *10* टूँका हो गय देश के ,मची लराई आज । ऐक जनों गल्ती करै ,भोगत सबइ समाज ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *11* मन मौरे मुइयाँ बसी, मोह लियौ गुलनार। टूँका कर दिल के दयै, छाती चली कटार।। *** -प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ *12* जिदना फसल किसान की, ओरे परें नसात। टूॅंका -टूॅंका ओइ दिन , छाती के हो जात ।। *** आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *13* साँचौ-सूदौ आदमी, फिर रव धूरा खात। टूँका-टूँका जिंदगी, खुती-खुती हालात।। *** -संजय श्रीवास्तव* मवई/दिल्ली *14* टूँका नइयाँ भूम कौ, सगया मेले द्वार। उल्टे सूदे चोटिया, ठोकत लम्मरदार।। *** -एस आर सरल, टीकमगढ़ *15* बड़े भये ज्यों-ज्यों सभी, घटत गई त्यों प्रीत । टूँका-टूँका आँगना, अलग-अलग की रीत ।। *** -सन्तोष कुमार 'माधव',कबरई, महोबा (उ.प्र.) *16* रोटी के टूंका बिना,भरे कौंन के पेट। जीबौ दुस्तर अन्न बिन,सूखो लेत समेट।। *** -मूरत सिंह यादव,लमायचा ( दतिया) *17* टूँका खा कें राम के, बसें ओरछा धाम। चरण शरण रें राम की, दुनिया से का काम।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *18* टूंका टूंका हो गये , दिल के अपने चार। बिना बिचारे जो करे , एसइ हुईये यार।। **** -वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ #######@@@@@###### 133- 133 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता नंबर =१३३ संयोजक- राजीव नामदेव राना लिधौरी आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ बिषय--ठगिया प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* ठगिया बन्ना होय तौ ,ठगौ राम कौ नाव । और ठगे में का धरौ ,जीवन मुक्ती पाव ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *2* ठगिया बनकें का करौ , हो जैहौ बदनाम। बात मान लो सेठ जी , कैरय लोग तमाम।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *3* ठगिया बातन आयकें, भूल न करियौ कोय। मन लोभी ठगहीं सुनौ, लुटत सबहिं फिर रोय।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल'टीकमगढ़ *4* ठगिया सबरो है जगत,भरमाउत रत नित्त। राम नाम सुमिरन करो,निरमल हो जै चित्त ।। *** -आशा रिछारिया,निवाड़ी *5* माया के भोंजार सैं , कोउ न पाबै पार। ठगिया भी ठग जात जब, देत मोहनीं डार।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *6* ठगिया हैं बहुरूपिया, ठगैं बदलकैं रूप। सूरज बनकैं बैंचदैं, भरी दुपरिया धूप।। *** -संजय श्रीवास्तव* मवई😊 मुंबई *7* खून पसीना डारकें, करी कमाई जोन। ठगिया करकें लै ग‌ओ,एक लाबरौ फोन।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *** *8* ठगिया ठेंकर सें ठगें, कर- कर कैउ उपाय। सोने खों पीतर कयें,पीतर स्वर्ण बताय।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *9* नींद उड़ी हय रात की, उड़ गौ दिन को चैन। धक-धक हौत करेजवा, ठगिया थे बे नैन।। *** -गीता देवी, औरैया *10* ठगिया नेता देश में , टाँड़ी से उतरात | चूहन जैसी हरकतै , बजट कुतर कै खात || *** -सुभाष सिंघई ,जतारा *11* ठगिया इस संसार में भांति भांति के लोग । बिना ठगे ही भोगिये इस पृथ्वी के भोग।। *** -शीलचंद जैन, टीकमगढ़ *12* ठगिया की बगिया बड़ी,जी के हम हैं फूल। ठगिया मन कौ मीत हो,लूं बायन में झूल।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा (टीकमगढ़) *13* सूदे सरल किसान सब,मेंनत करकें खायँ। ठगिया बेपारी तऊ,पेटै छुरी चलायँ।। *** - डां देवदत्त द्विवेदी, बडामलेहरा *14* चुपर-चुपर बातें करें,लव छोड़ों बतकाव। चौतरफा आँखें चला,ठगिया देखत दाव।। *** एस आर सरल ,टीकमगढ़ *15* ठगिया भर दुपरै ठगै,डार मोहनी जाल। बचा न पाबै वार सें,कौनउँ बख्तर ढाल।। *** गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी *16* मन बैरी ठगिया बनों,कैंसे बांधूं धीर। गांव पुरा के लखैं सब,भजो नहीं रघुवीर।। *** -मूरत सिंह यादव,ग्राम लमायचा( दतिया) *17* ठगिया जो संसार सब, ठगत रहत दिन रैन। माया में मन भूलकैं, मिलत न ओखों चैन।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *18* माया ठगनी ठग रही,दिखा रही प्रभाव। कइयक ठगिया ठग गये,कई लगा रय दाव।। *** - सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *19* मोहन हैं ठगिया बड़े,बंसी सें ठग लेत। राधा ई कौ उरानों, मोहन खों नइँ देत।। *** अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी #### 132- 132 #बुन्देली दोहा प्रतियोगिता-१३२# #शनिवार#दिनांक३०.०९.२०२३# संयोजक- राजीव नामदेव "राना लिधौरी" आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्रदत्त बिषय-कागौर* *1* पुरखन कौ तरपन करत , भोग बनत कागौर | श्रद्धा से इस लोक की , श्राद्ध जात उस ठौर || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *2* गौर करौ कागौर पै,दो पुरखन खों ठौर। पुरखा भोग लगाय लें,फिर कौवन कौ कौर।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा *3* पितरन कौ न्यौतौ करौ, छत पर धर कागौर। ध्यान धरौ पूजौ उनें, वे अपने सिरमौर।। *** - संजय श्रीवास्तव* मवई 😊दिल्ली *4* कभ‌उॅं मतारी बाप खों,मिलो न घर में ठौर। मरें सपर रये गॅंग में ,उर डारें कागौर।। -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी", हटा *5* जियत बाप खौं नहिं दियौ, जीनें एकउ कौर। करय दिनन में दै रहे, लगा लगा कागौर।। *** -प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ *6* पानी दै कागौर से,बता रये आराध । जियत जियत पूंछी नई,कर रय मरें सराध।। *** -सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *7* जियत मताई-बाप की, करौ खुशामद यैंन। बिन तेरइंँ कागौर के,मिलै सबइ सुख चैंन।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *8* कुवांर के पितृपक्ष में पितरों का करते तर्पण। खीर पूड़ी का कागरो काग को करते अर्पण।। *** -शील चंद जैन टीकमगढ़ *9* कौअन खों कागौर सें , पुरखन खुशी अपार। इनइं दिनन बे आत हैं , अपने ही घर द्वार।। *** -वीरेन्द चंसौरिया टीकमगढ़ *10* करय दिनन में प्रेम सें, काड़त हैं कागौर। जिंदा में नइँ देत हैं, खावे जूँठौ कौर।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *11* जी दिन सें पुरखा लगे, रोज कड़त कागौर। माल छानरय हूंक कें , हतो न कोंन‌उँ ठौर।। *** प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष ,टीकमगढ़ *12* पुरखा न्योत बुलाइये, श्रद्धा सें कर जोर। सोलह दिन इनके नियत,काड़त रव कागोर।। *** -आशा रिछारिया, निवाड़ी *13* पंचायत कउआ करें, देख आज को दौर। पुरखन को अपमान जां, नइं खानें कागौर।। *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *14* पितर-पूजकैं नित अबे, बिनय करौं कर-जौर। पानी दैंकें पक्ष में, रोज धरौं कागौर।। - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *15* माइ बाप खों दैय जो,जिन्दा में दो कौर। पुरखा ऊ के प्रेम सें,सब खेंहैं कागौर।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा *16* मौराई छठ खौं सिरत , नदी ताल में मौर। कौआ कूकर गाय खौं , करय दिनन कागौर।। *** आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *17* श्राद्ध करौ तर्पन करौ, काड़ देव कागौर। पितरों सें हो लो उरिन,मिलै सुरग में ठौर।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द' नेंगुवाँ ###########@@@@@###### 131- 131*बुंदेली दोहा प्रतियोगिता- 131* संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ प्रदत्त विषय - ठाॅंड़े-बैठे प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* हीरा से क्वारे हते, हतो खूब आराम। ठाड़े बैठे बिद गये, परै राम सैं काम।। *** *प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *2* बनें बिजूके जो फिरें , घर-घर मूसर चंद। ठाॅंड़े-बैठे की उनें , बीद जात है दंद ।। *** -आशाराम वर्मा 'नादान',पृथ्वीपुरी *3* ठाॅड़े-बेठे का करौ ,समय बड़ौ अनमोल । बिना काम के बे बजह,इतै-उतै नइ ड़ोल ।। *** शोभाराम दाँगी 'इंदु',नदनवारा *4* कछू काम दिखतइ नईं,चाउत होय विकास। ढांडे बैठे गाँव में,दिन-दिन खेलत तास।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *5* वारे के न्यारे करै,बहू शहर की ऐन। ठाड़ें बैठें आ ग‌ई,अपनें मूड़ें ठेंन।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा( टीकमगढ़) *6* चन्दा भादों चौथ कौ,लख कें नंदकिशोर। ठाँड़े-बैठे बन गये, मणी स्यमन्तक चोर।। *** -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी *7* ठांडे़ बैठें मंथरा,भर आई ती कान। कैकइ जा जसरथ मिलीं,मांग लये वरदान।। *** - सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *8* ठाॅंड़ें -बैठें रीछ के,पकरे दोई पाॅंव। खाई गैरी नें मिलै,और दूर है गाॅंव।। *** भगवान सिंह लोधी"अनुरागी",हटा, दमोह *9* ठाॅंड़ें बैठें विद गयी,हती पराइ लराइ। चक्कर काटें कचहरी, प्रानन पे बन आइ।। -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *10* भिनकत भइ ऐजक बिदत , ठाँड़े़ बैठे आन | जब लबरा से कै धरौ , साँसी दइयौ ब्यान || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *11* बचपन बीतो गांव में ,उर वरगद की छांव। ठांडे बैठे का करों, खोज शहर में ठाव।। *** -शीलचंद जैन, टीकमगढ़ *12* नीम अथाई गइ कितै, कितै गऔ चौपाल। गाँवन में पूछत हते, ठाँड़े - बैठे हाल।। *** -विद्या चौहान, फरीदाबाद *13* निंदा चुगली औ नसा,बातन की बकवाद। ठाँड़ें बैठें तौ बनें,इनसें बड़े बिबाद।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा *14* घरवारी नै मूंढ़ में , लठ्ठ मसक दव काल । जितै घलो सो सूज गइ , ठाँड़ें बैठें खाल ।। ** -प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़ *15* ठाँढ़े-बैठें कब भओ, भैया ओरे काम। तब मिलबै रोटी हमें, घिस जाबै जब चाम।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *16* ठाड़े-बैठे बीत गे, उम्मर के पन चार । उन्नत का सोचो नहीं, सोये पाँव पसार ।। *** -सन्तोष कुमार 'माधव',कबरई,महोबा (उ.प्र.) *17* ठाँड़े- बैठे खुद्दरव, लेबो होत न ठीक। बात बड़न की मानियो, जो हों शुद्ध सटीक।। *** -अमर सिंह राय नौगांव *18* ठाँड़े-बैठें ना बनें, जग में कौनउ काम। मैनत की दम पै सदा,मिलत सुखद परिनाम।। *** -संजय श्रीवास्तव, मवई/दिल्ली *19* ठlड़े बैठे फस गये , भइया सोहन लाल। सुधर जाव मौका अबै , हमने कइती काल।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ ***#######@@@@@@@#### 130-बुंदेली दोहा प्रतियोगिता क्रमांक- 130 विषय - टिया संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* टिया न टारौ साँवरें , आऔ जमुना तीर | राधा भुँज रइ बूँट-सी , झिरत नैन से पीर || *** -सुभाष सिंघई , टीकमगढ़ *2* कतकी कौ करकें टिया , खाद बीज लै आय। किरपा करियौ राम जू , सब करजा चुक जाय।। *** -आशाराम राम वर्मा " नादान " पृथ्वीपुरी *3* टिया करौ सो आ ग‌ओ,लिपट तिरंगा गात। लाल शेरनी के तनक,ओ फौजी कर बात।। *** - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *4* टिया धरौ नवरात्र को, समय जान अनुकूल। पिया लिवाबै आयगें,रई खुशी सें फूल।। *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *5* गुरु बच्चन खों दै टिया ,सबक करो तुम याद । तब लौ कोऊ नै सुने ,का तुम्हरी फरियाद।। *** -हंसा श्रीवास्तव हंसा, भोपाल *6* विदा ब्याव सरकार को , टिया साव को होत । कातक चैत किसान खाँ , कभउँ मिली ना ओत ।। *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *7* टिया धरौ हर काम कौ,जीवन में का होय । हानि लाभ जीवन मरन, निश्चय तिथिया तोय ।। *** -शोभाराम दाँगी ,नदनवारा *8* टिरका रय बे तौ टिया,लगी हिया में आग। मन कौ खटका खात है,नसा न जाबै राग।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा(टीकमगढ़) *9* टिया दएँ भय दिन मुलक, करवैं नें बो काम । कासौं कउँ अब को सुने, पैलँइ लै लय दाम।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *10* पछताए का होत है, गए टिया सें चूक। मोय न आने लौट कें, कात समय दो टूक।। *** ~विद्या चौहान, फरीदाबाद *11* टिया पिया दे गए सखी,आवन की दिल खोल। कब आहे द्वारे तकत, आह पल अनमोल।। *** - हीरालाल विश्वकर्मा, बिजावर *12* दैकें टिया न टारियो, चाहे जाबे जान। बिना रीढ़ को आदमी, कऊँ न पाबे मान।। *** -संजय श्रीवास्तव* मवई,दिल्ली *13* चूको करजा कौ टिया, साव करत हैरान। मौसम कर रव जादती,है बदनाम किसान।। *** -गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी *14* अर्जुन ने धर दव टिया, जयद्रथ का है अंत। सूर्यास्त न हो सके,चेतन हैं भगवंत।। *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *15* देख -देख आँखै जरीं,भूक लगत ना प्यास। टिया न लछमन दै गये, लगी उर्मिलै आस।। *** -एस आर सरल, टीकमगढ़ *16* टिया सुरत कर गोपियां, रोवत होत अधीर। राह तकत नैना थके, प्रान जात बेपीर!। *** -रामलाल द्विवेदी, चित्रकूट *17* लेतन में नौने लगे, देतन में अब रोत। टिया रोजकें धरत जे, लगत एक दिन होत।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *18* टिया टिया बहु देत वे,करजा चुका न पात। सब संपत्ति खोई कुमग,अब रोबत दिन रात।। *** -परम लाल तिवारी,खजुराहो *19* टिया न कौनऊँ मौत की,कबै कौन विध आय। कोऊ कछु नइँ कै सकै,की की कब आ जाय।। *** -अमर सिंह राय, नौगांव #####@@###### 129- बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-129 दिनांक-9-9-2023 प्रदत्त विषय- कूका प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* मौत-बड़ी सुंदर जियै, टेरै कूका देत। जीवन तक तज देत वौ, कुर्रू दै भग लेत।। *** -बाबूलाल द्विवेदी, छिल्ला, ललितपुर *2* आपुस दूरी देख कें, कूका देत बुलाँय। भनक परै जो कान में,ऐंगर तुरतइँ आंँय।। *** -रामानंद पाठक, नैगुवां *3* लुक छिप कूका दे रये,सुनो नंद के लाल । राधा तुमको ढूंढती ,बाग बगीचा ताल।। *** -हंसा श्रीवास्तव हंसा, भोपाल *4* सबरो जीवन कड़ गओ,लीनो ना हरि नाम। कूका दै रव मरगटा,अबइ सुमर लो राम।। *** -आशा रिछारिया, निवाड़ी *5* कूका सूका दे रऔ, हतौ खेत चउं ओर। जन्मोत्सव घनश्याम को,बरसौ घन घनघोर।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *6* कूका दैकें कृष्ण ने, मटकी डारी फोर। सब सखियन नें घेर कें,पकरे माखन चोर ।। *** -सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *7* दुका-दुकौ हम खेलवै ,कूका देवै ऐन । दुके रात्ते कौनियां ,मस्कउँ करवै सैंन ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *8* भड़या पिड़ गय गाँव में, चकचइया है रात । कुकयाटों घेरउँ मचौ, कूका दें कुकयात।। *** -एस आर सरल, टीकमगढ़ *9* दै कें कूका कान में, साँमें ठाँड़ी आन। शकल देख घरबाइ की, गरें अटक गइ जान।। *** - अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *10* कौन कितै कैसौ करत , कौन कितै कब जात | कक्कौ कूका दै रयीं , कक्का काँख कुकात || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *11* कूका मारा कृष्ण ने l सुदामा को बुलाय ll माखन लेकर आ गये l दोनो छककर खायll *** -अंचल खरया, टीकमगढ़ 12* नेता कूका दै रये,जब अटको है काम। पैंल सुनी नै बाप की,अब कत सीताराम।। *** भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा, दमोह *13* काम करौ कल्यान के, रहौ खूब खुशहाल। सबखों जानें एक दिन, कूका दै जब काल।। *** -संजय श्रीवास्तव,मवई,😊दिल्ली *14* लुकाछिपी-कूका-छुबा,कंचा-गुली-गुलेल। आँखन में झूलत अबै,जे बचपन के खेल।। *** गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी *15* कूका दे- दे जात हैं, मोड़ा-मोड़ी आज। कुंभकरन की नींद में, सो रव सकल समाज।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *16* कूका देत उमर कढ़ी, नाहक भटके आज। करम बुरय तजियौ सभी, नौने करियौ काज।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *17* ज्वार खेतन में खडी,दाऊ खडे मचान। कूका से बातें करत,चिडियों पे है ध्यान।। *** -सुभाष बाळकृष्ण सप्रे, भोपाल (प्रवास-पुणे) *18* कूका देबें रोज के,धर गदिया पै प्रान। खेत रखायँ किसान औ,देस रखायँ जबान।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा *19* कूका दै रव मरघटा, तऊ समझ नै आय। नइँ लिहाज तनकउ उऐ, राह चलत बुलयाय।। *** - अमर सिंह राय, नौगांव ##########@@@@#######