बुन्देली दोहा कोश समग्र-
संपादक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़ (मप्र)
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ द्वारा प्रत्येक सोमवार एवं शनिवार बुंदेली दोहा लेखन समग्र
[06/01, 9:14 AM] Subhash Singhai Jatara: -बुंदेली -कुकरी/कुकरे (सिकुड़ी /सिकुड़े)
खूब उरइयाँ ले रयै , अच्छी पर रइ ठंड |
कुकरी बैठी डोकरी, बक रइ अंड चबंड ||
नयी बऊँ कुकरी रयै, अधिक न बोले बोल |
जेठ ससुर के सामने , मौं ना पाबै खोल ||
अफसर ठाड़े दोर पै , कुकरे दिखें किसान |
तीन साल से नइँ दओ , कौनउँ अभी लगान ||
कुकरी बैठी डोकरी , लठिया गयी हिराय |
कौन जगाँ पै है धरी , कौई नईंं बताय ||
छाती बै अब रय फुला , जिनको हो गवँ व्याय |
कुकरै क्वारे दिख रयै , मिल नइँ रओ हिराव ||
कुकरी कतकारी रहीं , भौर करौ अस्नान |
दूनर हो गइँ ठंड में , ढूड़त रइँ भगवान ||
सुभाष सिंघई जतारा टीकमगढ़ म०प्र०
[06/01, 10:57 AM] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी,बिषय-कुकरी/कुकरे(सिकड़ीं/सिकुड़े) बुंदेली दोहा (251) (01)
पिल्लां परे रजाइ में,लगवै ऐंनइँ ठंड़ ।
"दाँगी"गुड़यानें डरे ,कुकरे संड-मुसंड ।।
(02)
हाड-मास नइँ सै सकै,कुहरा धुँधरौ होय ।
"दाँगी"ठंड चपेट में,डरे जु कुकरे सोय ।।
(03)
ढोर बछेऊ कप रये,ठंड परी बेजान ।
"दाँगी" परे रजाइ में,सो रय कुकरे मान ।।
(04) ओस कि बूदैं बरस रईं,कर्रौ बनौं किसान ।
"इन्दु"पांव कुकरें नहीं,खड़े देस के ज्वान ।।
(05)
चिरइ चैनुआं ठंड सै,नइँ कड़ पा रय दोर ।
चिपक परे इक दूसरें,"दाँगी" कुकरें भोर ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[06/01, 11:37 AM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे
विषय:-कुकरी कुकरे/सिकुड़े
जाड़े में कुकरे परे,धुॅंधरी फैली भौत।
जीव जगत के ठिठुर रय,कइयक की भइ मौत।।
भरत कपोरी आंग में, भारी नाक चुचात।
कुकरे-कुकरे सब फिरें,तजो न कोड़ो जात।।
कुकरे -कुकरे सब फिरे,जब ठिठुरन बढ़ जात।
जूड़ो -जूड़ो सब लगे, कटे न दिन उर रात।।
सुर्रक जूड़ी चल रई, जीसें कप रय हाड़।
अनुरागी कुकरे परे,गुरसी खों रय ताड़।।
पल्ली में कुकरे परे, नेता सीना तान।
होत भोर हारे चले, लेकें बैल किसान।।
भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[06/01, 11:42 AM] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहा विषय - कुकरी / कुकरै (सिकुड़ी/ सिकुड़े )*
#राना कुकरे लग रयै,माते लम्बरदार।
भड़याई में फँस गऔ,लरका अबकी वार।।
तुम अब कुकरे काय हो,#राना करे सबाल।
का लरका को व्याय भी,टर गवँ आसौं साल।।
कुकरी हौके कत धना,नइँ होना नाराज।
#राना घुन गवँ देख लो,कुठियाँ को सब नाज।।
सब गरीब कुकरे फिरैं,रत #राना लाचार।
खाबें नइयाँ नाज है,माँगत फिरें उधार।।
कुकरै आसौ ठंड में,रयै लोग सब ताप।
#राना मौं से छूट रइ,इंजन जैसी भाप।।
***दिनांक -6-1-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[06/01, 1:47 PM] Rajeev Namdeo: दि०६-०१-२०२५
कुकरे बैठे ठंड में, धूप न निरी आज।
बादर गरजे जोर से, गिर ना परवै गाज।।
मौलिक, स्वरचित
"डाॅ०हरिकिंकर"
[06/01, 1:51 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: सोमवार 06 जनवरी 2025
शब्द-कुकरी/कुकरे
1
कुकरी सी कुकरी फिरै,लगत बैठगइ ठण्ड।
सबरी सुध-बुधभूलकें,बकरइ
अण्ड चमण्ड।
2
शीतलहर सें बडगई,तकलो
बैंडी ठण्ड।
कुकरे-कुकरे फिरतहैं,
जिन खां हतो घमण्ड।
3
कुकरे डरे रजाइ में,बारें कडो न जात।
आंग निकारत बायरें,लगत ठण्ड है खात।
4
लरका बारे मांग रय,मांग अनाप शनाप।
कुकरो कुकरो फिरतहै,सुन बिटिया को बाप।
5
कुकरा की घरबाइ हां,सबरे कुकरी कात।
कुकरा ना मिलपाय तौ,
बदले कुकरी खात।
मौलिक रचना
एम एल त्यागी खरगापुर
[06/01, 3:26 PM] Dr Renu Shriwastava: दोहे विषय कुकरी कुकरे (सिकुड़ी सिकुड़े)
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
ऐसी जा सर्दी परी,
आसौं की जा साल।
कुकरे कुकरे से फिरत,
बड़ो बुरौ है हाल।।
स्कूटर की मांग में,
दद्दा परे उदास।
पैसा इतनो है नहीं,
बस खेती की आस।।
मास पूस जाड़े परे,
कुकर फसल जा जात।
अंगारे ऐसे गिरैं,
पानू सो टपकात।।
बहु कुकरी सी जा रहत,
सास लटी है मान।
उठतई गारी देत है,
खा रइ बहु की जान।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
सादर समीक्षार्थ
स्वरचित मौलिक
[06/01, 5:01 PM] Asha Richhariya Niwari: बुंदेली दोहा #कुकरी
🌹
कुकरे फिर रय ठंड सें,हाड़ कंपें दिन रात।
आसों कौ जाड़ो विकट, उन्ना लदे बिलात।।
🌹
कुकरीं कुकरीं बउ डरीं,उन्ना इने उड़ाव।
आगी को कोंड़ो धरो,पूरौ आंग तपाव।।
🌹
आशा रिछारिया निवाड़ी🙏🏿
[06/01, 6:06 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली
बिषय कुकरी
1
फटे चींथरा रय लटक, रमुआँ सोसत जात।
घरबारी कौ तन दिखत, कुकरी कुकरी रात।
2
फटौ पुरानों पोलका, डटें डुकइया रात।
कुकरी कुकरी फिर रई, कोउ न पूँछै बात।
3
धनकू परी पिंयार में, कथरी लेबै ओड।
मौडी लै कुकरी परी, जाडौ काडम कोड।
4
ऊँची औरत होय पर, बूढी कुकरी रात।
उमर ढरें ऐसइँ हुयै, कौनऊँ होबै जात।
5
तिली काट कुकरी लगी, कक्का खों भइ आस।
काल परों ठुक है तिली, लगै खरैना रास।
रामानन्द पाठक नन्द
[06/01, 6:20 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
विषय कुकरी
1-लाल टमाटर से हते,
गोरे गोरे गाल ।
अरे बुढ़ापो है लगो,
सुकरी सबरी खाल।।
2-कुकरे कुकरे से फिरत,
हाल भये बेहाल।
झूँकत तन तन काम खों,
बदली बदली चाल।
3-सुकरे से कैसे खड़े,
ठुठरे जात बताव।
कै तो कमरा ओढ़ ले,
या फिर तपो अलाव।
4-जोन दिना ले आय ते,
हो रइ ती जब झोल।
अब तो देखे सें लगत,
मुकरी भारी खोल।
5-काया कुकरी गइ सिमट,
नवन लगी करयाइ।
बृजभूषण देखो दशा,
हैरानी बड़याइ।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[06/01, 6:32 PM] Dr Raj Goswami Datiya: दोहा बुंदेली, विषय, कुकरी
1-फैशन जौ का काम कौ, कुकरी बैठी मैंम । जाड़े में थरथर कपें, देखें नाही टैम ।।
2-कामचोरनी है बहू, कुकरी रत है रोज। कहत पेट में दरद है, खातीं सठरस भोज ।।
3-काए कुकर रए हौ खड़े,बैठे ओढ़ रजाइ । चाय पियो संगें बुला, मौज करें भौजाइ ।।
4-कूकर जैसे केंक रए कुकरे कुकरे काए । काए करोंटा लएं तुम, काए परे मौ बाए ।।
5-लौरे कद के हैं डुकर, पूरे
कुकर न पात । ता पै तन मौटौ धरौ, चलतन में घबरात ।।
-डॉक्टर राज गोस्वामी, दतिया
[06/01, 6:51 PM] S R Saral Tikamgarh: *बुंदेली दोहा विषय-सिकुड़े /कुकरे*
********************************
सब सिकुड़े -सिकुड़े फिरें,
कर रइ ठंड कमाल।
*सरल* तापबे खौ कितउँ,
बरत मिलें झंडाल।।
सिकुड़े-सिकुड़े से *सरल*,
सबरौ शिथिल शरीर।
ठंड कड़ाके की परी,
तनक बधै नइँ धीर।।
कौन काम कैसै करें,
कुकरे कुकरे आज।
मौसम रव बहुरूपिया,
बदले *सरल* मिजाज।।
सिक ना पाये घाम सै,
सिकुड़े सै रय हात।
कौड़े पै तापै *सरल*,
राहत मिली बिलात।।
सबइ अंग सिकुड़े धरे ,
भौत गजब की ठंड।
आँसत जड़कारों *सरल*,
कुहरा परों मुचंड।।
*****************************
*एस आर सरल*
*टीकमगढ़*
[06/01, 7:01 PM] Jaihind Singh Singh Palera: सोमवार दिनांक 06.01.2025
बुन्देली दोहा दिवस बिषय--कुकरी
******************************
//1//
कुकरी बैठी कुकर कें,दरवाॅं अंडा देत।
कुकरी अंडा फोर कें ,कड़े चैनुवाॅं सेत।।
//2//
कुकरी बकरी ठंड सें,फिरत रोज मिमयात।
पत्ती आज न खा रही,सो बीमार दिखात।।
//3//
चूले सें रोटी सिकी,बनवैया रय ताप।
बिटिया कुकरी सी फिरै,गैस पठा दइ बाप।।
//4//
कुकरी जब अंडा धरै,कुकर- कुकर तब जात।
अंडा जब बाहर गिरै,हवा लगें सैलात।।
//5//
उखरी में मूसर चला,कूटै मुरका नार।
कुकरी जा रइ ठंड में,देह भई बेकार।।
जयहिन्द सिंह जयहिन्द
पलेरा जिला टीकमगढ़
मध्य प्रदेश
[06/01, 10:10 PM] Ramlal Duvedi Karbi, Chitrakut: *कुकरे/सिकुड़े या सिकुरे: दोहा बुन्देली*
सिकुड़े परे लिहाफ में, तनिक न दिख रय घाम।
गहकी एक न आवतो, धंधा भयो धड़ाम।1
सबै लोग सिकुड़े फिरे, भौतय पर रय ठंड।
कौड़ा तापें घेर रय, जल रय लकरी कण्ड।2
लगी ठंड सिकुरी परी, डुकरी परी बिमार।
लए तपाय अलाव में, ठीक भई दिन चार।3
भइया टेढ़ी हुइ कमर, सिकुरी चमड़ी गाल।
सत्तर कै अब हुइ गयो, बुरो बुढ़ापो हाल।4
रामलाल द्विवेदी प्राणेश
कर्वी चित्रकूट
*************///***********197 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -197
शनिवार, दिनांक - 04/01/2025
*बिषय- ' कबा ' (अर्जुन की छाल )*
संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
लगे कबा के पेड़ हैं , नदी किनारें चार।
उतइं चार ठउ घाट हैं , सपरें लोग हजार।।
***
-वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़
*2*
छाल कवा की है दवा, काड़ौ लेव बनाय।
रोजइँ जो पीवै इयै, दिल जवान हो जाय।।
***
-अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी
*3*
चुरा लेव काड़ौ बना,कबा पेड़ की छाल ।
हो अजीण गर पेट में,रोग मिटे ततकाल ।।
***
-शोभाराम दाँगी, नदनवारा
*4*
कबा काम को पेड़ है, हवा दवा सब देत।
बदले में हमसें कभउँ, टका एक नइं लेत ।।
***
-संजय श्रीवास्तव, मवई
*5*
छाल कबा की चुरैकें,पियत राय जो रोज।
रकतचाप होबै नहीं,करै जनम भर मोंज।।
***
-एम. एल. त्यागी, खरगापुर
*6*
काढ़ा या फिर चाय हो,कबा डार कैं लेव।
पेट साफ जौ तौ रबै,जैसौ चायै जेव।।
***
-प्रदीप खरे 'मंजुल',टीकमगढ़
*7*
गठिया,हिरदै रोग हो,या चर्बी बड़ जाय।
कबा छाल काढ़ा पिएं,रोगी राहत पाय।।
***
-तरुणा खरे जबलपुर
*8*
कबा बृक्ष के रूप में,शापित तनय कुबेर ।
मन ही मन विनती करें,कान्हा करो न देर।।
***
-आशा रिछारिया, निवाड़ी
*9*
काट कूँट औँटोँ पियो , रोज कवा की छाल ।
रोग दोग फटकेँ नही , रैय ढाल में चाल ।।
***
-प्रमोद मिश्रा वल्देवगढ़
*10*
कबा सुखाकैं घोंट लो, फाँको चूरन रोज।
हिरदे खाँ ताकत मिलत, मुख पै दमकै ओज।।
***
-श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा, विदिशा
*11*
मंदाकिनि के तीर पै, भारी कबा तमाम।
लेत छाॅंयरौ उन तरैं,सिया सहित श्री राम।।
***
-भगवान सिंह लोधी ,हटा
*12*
होवै दिल कौ रोगिया, खाय कबा की छाल,
दोइ टैम काढ़ौ पिये, नौनौ होजै हाल ।
***
-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*13*
ब्याधि हृदय में होय तौ, जानौ एक उपाय।
गुणकारी है जा दवा, पियो कबा की चाय।।
***
-विद्या चौहान, फरीदाबाद
*14*
चाय कबा की लेव पी, पाचन रहत दुरुस्त।
रक्तदाब सामान्य हो, तन भी रहे न सुस्त।।
***
- अमर सिंह राय, नौगांव
*15*
काड़ौ अर्जुन छाल कौ , नासै रोग तमाम।
धबल कबा कहुआ कुकुभ,बैद बताबैं नाम।।
***
-आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
*16*
गुनकारी भारी कबा,बकला धरियौ छोल।
हिरदे बारे रोगियों, खों काड़ौ अनमोल।।
***
डॉ.देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा
*17*
वीपी हो या हो सुगर,बिगड़े जब जब हाल।
कूंट पीस काढ़ा पियो,लो अर्जुन की छाल।।
***
-मूरत सिंह यादव दतिया
*18*
बूटी है संजीवनी,कबा पेड़ की छाल।
ई कौ रस भी रोग खौं,तन से देय निकाल।।
***
-सुभाष सिंघई, जतारा
************
[04/01, 10:30 AM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे
विषय:-कबा
नदिया नरवा के लिगां, होत कबा के रूख।
बैठत इनकी छाॅंव में,मिटत राम धइ भूख।।
अर्जुन कौहा अरु कबा, सबरे इन सें कात।
बकलों सें ओखत बनत,नीचट मानौ बात।।
दिल की बीमारी जिन्हें, पियें चुरै कें छाल।
कबा कात हो नइॅं सकत, भैया बांकौ बाल।।
लफत नहीं हैं जो कबा, बाढ़ आय पट जात।
गुॅंदला पानी के घटत, फिर सें खड़ो दिखात।।
कबा सगोना नइॅं सरत, पानी में सौ साल।
जामुन कौ सबखों पतौ,कुआ निमानी हाल।।
भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[04/01, 12:37 PM] Subhash Singhai Jatara: शनिवार-4.1.25-बुंदेली दिवस
विषय - कबा (अर्जुन पेड़)
भौत भरै गुन जानियौ , पेड़ कबा की छाल |
ई कै सेवन से मिटैं , रोगन के जंजाल ||
हृदय रोग शक्कर जियै , राज रहा मैं खोल |
कबा छाल ऊ कै लियै , है सोने की तोल ||
टी बी- सूजन -दर्द हो , और पिराबे कान |
कबा छाल से वैद्य जी , करतइ खूब निदान ||
कबा प्रकृति शीतल रयै , स्वाद कसैला होय |
रक्त रोग इससें मिटैं , वात- पित्त- कफ रोय ||
मांसपेशियाँ ठीक हों , अल्सर करता दूर |
वैद्यराज सब जानते , कबा पेड़ है नूर ||
सुभाष सिंघई
[04/01, 12:42 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा विषय-कबा (अर्जुन का पेड़ )-*
#राना सबरै चीनियौं, सुनौ कबा की छाल।
औषधि में गिनियौ इयै ,तन खौं करौ निहाल।ऋ
जंगल में उगबै कबा,अर्जुन भी कत नाम।
गुनकारी #राना कहत,भौत आत है काम।।
वैदराज से पूछ कैं ,कबा करौ उपयोग।
#राना मुलकन है मिटत,भौत पुराने रोग।।
शुगर रोग में देखतइ ,करबैं कबा निदान।
#राना इतनौ कात हैं ,है यह पेड़ प्रधान।।
उपकारी टैटिन दवा,दैत कबा की छाल।
पानी में रस जै उतर,#राना करत कमाल।।
*** दिनांक - 4-1-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[04/01, 2:58 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: बुन्देली दोहा विषय ,, कवा,,अर्जुन वृक्ष ,,
**************************************
भारत के हर पेड़ में , है दवाइँ का वास ।
उसमें है उत्तम कवा , कर "प्रमोद" विश्वास ।।
चाय घाँइँ पी लो कवा , करेँ दवा को काम ।
फल हल करेँ "प्रमोद"कइँ , फैलेँ रोग तमाम ।।
हृदय रोग मैंटे शुगर , जोरेँ टूटो हाड़ ।
कइँयक रोग "प्रमोद"हैँ , जिन खोँ झौंकेँ भाड़ ।।
अडा़पच्च फल ढूँढ़केँ , घरेँ कवा को ल्याव ।
कूँच काच दाँतन घिसोँ , रोग"प्रमोद"भगाव ।।
कवा छाल फल पात की , दवा"प्रमोद"बिसाव ।
रोग दोग मुलकन इतै , इनसेँ पिंड छुड़ाव ।।
नानेँ बकला फल कुटेँ , जब चूरन हो जाँयँ ।
निन्ने पेट "प्रमोद"खा , गल्लन रोग भगाँयँ ।।
विनती पढो़ँ "प्रमोद"की , करो कवा के पेड़ ।
जे कलयुग के वैध हैँ , पालों इन खाँ बेड़ ।।
***************************************
,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
,, स्वरचित मौलिक ,,
[04/01, 3:41 PM] Taruna khare Jabalpur: 'कबा ' शब्द पर दोहे
नदिया के तीरे लगे, खूब कबा के झाड़।
गिरत सरत बिलकुल नईं,आबै कितनउ बाड़।।
कबा छाल काढ़ो बना,पियत सकारें साम।
हांत पांव के दरद मै,झट्ट लगै आराम।।
छाल कबा की लैं चुरै,निन्ने मौ नित पीव।
शुगर रोग जी खां लगै,राहत पाबै जीव।।
तरुणा खरे जबलपुर
🙏🙏
[04/01, 3:59 PM] Amar Singh Rai Nowgang: बुंदेली दोहे, विषय: कबा (अर्जुन की छाल)
कबा दबा के रूप में, करते बैद प्रयोग।
ई के छिलका सैं कई, ठीक होत हैं रोग।।
खाँसी- खुर्रा आपखों, अच्छी खासी होय।
कबा छाल काढ़ा पियो, डारो तना गिलोय।।
चमड़ी केरे रोग सब, छिलका कबा मिटायँ।
मिटैं मुहाँसे दौड़ कैं, खता ठीक हो जाँयँ।।
कब्जे में कर कब्ज को,कबा बजन घटवाय।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े, गठिया दर्द मिटाय।।
छाल कबा की कूट कैं, पी लो चाय समान।
ई सैं ताकत जाय बढ़, बूढों लगत जवान।।
नदियन के तीरे कबा, होवैं पेड़ अनेक।
छाल पेड़ पत्ती तना, पेड़ दवा हर एक।।
अमर सिंह राय
नौगांव
[04/01, 7:44 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- कवा
(१) कवा दवा के काम में,
करो जात उपयोग।
करवे भारी फायदा,
ऐसो कत है लोग।।
(२) कवा कीमती है बड़ो,
गुन कारी भरपूर।
पीयो जाय काड़ो बना,
रोग अनेकन दूर।।
(३) कवा खोज वो है सरल,
चाय जिते मिय जाय।
नरवारे में देख के,
छाल छोल ले आय।।
(४) सुका कूट चूरन बना,
धर लवो कवा कजन्त।
रक्त चाव कावू करें,
पीके तको तुरंत।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[04/01, 8:26 PM] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा (कबा) अर्जुन का पेड़ । (197)
(01)
नदिया ऐंगर कबा मिलैं,फल पांडव का रूप ।
छाल दवा के काम में,हैऔखद अनुरूप ।।
(02)
अर्जुन के ई पेड़ सै,कैतइ कबा कौ वृक्ष
।
पीर पिरातौ हो कितउँ,करदो मालिस वक्ष
।।
(03)
कबा जंट जौ होत है,लरजत नइँ लरजायँ ।
"दाँगी"तौअजमा चुके,का तुमसैं अब कायँ ।।
(04)
अर्जुन के ई पेड़ सैं,बनबैं औखद ऐंन ।
खाँसी जीखौं आत हो,"दाँगी" गयते देंन ।।
(05)हास्य दोहा
कबा टेरबे आवतौ,चलौ सलइया दोर ।
सबइ बरातै जा रहे,आव न"दाँगी"
ओर ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
मोबाइल नंबर -9893520965
1-Pramod Mishra Baldevgarh: ,,
जंघा सेँ ऐडी़ तलक , गोड़ों फटत पिरात ।
कैरय केउ कुलंग है , अबइँ दवा खोँ जात ।।
गोबर डारन गइँ धना , कूँलेँ निगेँ लुलात ।
सोसन परेँ "प्रमोद"अब , वार कुलंग दिखात ।।
वात पित्त कफ दोष के , कारण होत कुलंग ।
गाँठ दर्द प्रेशर शुगर , है"प्रमोद"सब संग ।।
हल्दी मैंथी सौंठ को , चूरन लासुन खाव ।
पियो गडे़लू कूच रस , वात कुलंग भगाव ।।
पकरेँ धनियाँ भाँयँनो , कत "प्रमोद"सेँ रोय ।
अस्पताल अब्बै चलोँ , भइँ कुलंग सी मोय ।।
कूँलत निगेँ लुलात सी , हरसाँसेँ सीँ लेत ।
लगेँ "प्रमोद"कुलंग सी , धना कतीँ है प्रेत ।।
***
- प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ********************************
2-Subhash Singhai Jatara:
लाँकत बै सब लोग हैं , जिनखौं हौत कुलंग |
बिजली -सी तड़कन उठै , कमर पैर केअंग ||
करयाई सें पाँव तक , दै कुलंग जब दर्द |
घुटना जाँघै सब दुखत , लाँकैं औरत मर्द ||
तनिक खटाई खा गयै , आफत -सी आ जात |
आँसत भौत कुलंग है , याद मताई आत ||
झारन फूँकन सब करैं , और डमा लगवात |
पर कुलंग मिटबै नईं , रुगया रत डिड़़यात ||
खान- पान देशी दवा , धीमो असर दिखात |
है कुलंग जिनखों सुनौ , बौ परेज से रात ||
***
-सुभाष सिंघई, जतारा
**************************
3- Aasharam Nadan (Prathvipur):-
(१) गठुआ बाद कुलंग कौ , रोग होत बेकार।
अच्छे खासे डील खौं , बना देत लाचार।।
(२)
नस में होत कुलंग उर ,घूॅंटन गठुआ बाद।
जितै बताबे में सरम , उतइॅं होत है दाद।।
(३)
बैरी होत कुलंग खौं , भटा उरद की दार।
बैद बताबैं रोग पै , परहेजी आहार।।
(४)
तड़कैं नसैं कुलंग में , जब बदरौखौ होय।
होत बिकट चीबन तबइॅं , परौ रोगिया रोय।।
(५)
दागत हते कुलंग खौं , ताती करकैं टान।
अब दगबइया ना बचे,कैरय कवि "नादान"।।
***
-आशाराम वर्मा " नादान " पृथ्वीपुर
*************************
4- Rajeev namdeo Rana lidhori
#राना लखें कुलंग खौं ,जिनखों जा हो जाय।
चलतन में तकलीफ हो,रुक -रुक के चल पाय।।
वात रोग कत वैद्य यह, है कुलंग सुन भाइ।
#राना जनबा कन उठै ,लगै डमा की पाइ।।
"ना"का पत्ता हौत है ,आत डमा के काम।
कत कुलंग #राना मिटै ,कातइ लोग तमाम।।
यह कुलंग जीखौं भयी ,#राना पीड़ा पाय।
जौन दवा जो भी कहै ,बौ सब लाकै खाय।।
#राना की विनती इतै ,जब कुलंग भी होय।
किसी वैद्य की मानियौ,मिलै फायदा सोय।।
***दिनांक -30-12-2024
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
*************************
5- M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur:
१
जब एडी सें नश पटै,कूले तकलों जाय।
पीरा सैबो कठन हो,वात कुलंग कहाय।
२
बेंजा पीरा होत है, कुलग वात में बैन।
चैन परैना घरीहां,तलफतहों दिन-रैन।
३
लठिया लैकें टेकबै,जीखां होय कुलंग।
ना बिलमें जी कछू में,परत रंग में भंग।
४
दुखना दियो कुलंगको,दीनबन्द भगवान।
ना मानो तो खेचलो,तुम ई तन सें प्रान।
५
पीरा भई कुलंग की,फिररइ धना लुलात।
हार गओ मैं मना कें,कौरा तकनइं खात।
***
-एम. एल. 'त्यागी',खरगापुर
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6- Dr Raj Goswami (Datiya)
कुल की दैन कुलंग है, कुल में सबकों होत । पीढ़ी दर पीढ़ी चलत, पीढ़ी जइ में रोत ।।
भौतइ होत कुलंग कौ,दरद सहन नहिं होत । दवा खाएं कछु होत न, झारत जनवा प्रोत ।।
हो कुलंग कौ दर्द जब, हो देसी उपचार । तुरत दर्द राहत मिलत, उतरत तन कौ भार ।।
4- जी कों भऔ कुलंग यह,पीड़ा बौई जान । नस नस आंसत दर्द सें, खड़े होत हैं कान ।।
5-राज करत विनती सबै, जब भी होय कुलंग । सेवन कर देसी दवा, प्रभू कृपा हो संग ।।
-डॉ राज गोस्वामी, दतिया
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7- Taruna khare Jabalpur -
परेसान जी लग लगो,है कुलंग को रोग।
आबो जाबो बंद है,बचे न चलबे जोग।।
जे प्रानी खां लग गओ,जो कुलंग को रोग।
जोड़ जोड़ मै होत है,पीरा मरबे जोग।।
तड़कन सी तन मै उठै,कड़े जात हैं प्रान।
पीरा उठी कुलंग की,का करिए भगवान।।
सीत खटाई उर भटा,भिंडी सैं बच राव।
रोगी होंय कुलंग के,उरद दार नै खाव।।
नैचे बैठत नै बनै,घूंटे खूब पिरात।
रोगी होय कुलंग को,मुसकल सैं चल पात।।
***
-तरुणा खरे ,जबलपुर
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8-S. R. Saral (Tikamgarh)-
सूदै चल पावै नई,टिड़यानें से रात।
रत टाँकोरा सौ लगौ,जब कुलंग उबरात।।
चलतइ कुलची मार कै,जैसे चलत अपंग।
औज बदत नइँ काम की,जब उबरात कुलंग।।
जोरे गुनियाँ नावते,बैठक लई कराय।
लगत दबा दारू नईं,रई कुलंग पिराय।।
खान पियन फीकौ लगत,जिएँ कुलंग पिरात। मालस कर कर तेल कौ,कूलौ कल्ला जात।।
कर्रो कष्ट कुलंग कौ,सरल परत ना चैन। नस तरकत है पैर लौ,लौकत रत दिन रैन।।
******
-एस. आर. 'सरल' (टीकमगढ़)
**********************************
9-Ramanand Pathak Negua-
1
कुलकें रमू कुलंग सें, निगवे भय लाचार।
लेत घुटनियाँ हाँत में, थोरौ लेबैं भार।
2
जीखौं होत कुलंग है, जिउ ना धरबै धीर।
तडफें जल बिन मीन से, सयी जाय ना पीर।
3
देशी दबा कुलंग की, करबैं वैद हकीम।
कै बै मूर दबाइ है, रोगी बन जै भीम।
4
झाड फूँक उर दागबौ, है देशी उपचार।
चैंन मिलै बैचेंन खों, खुशी हुए घरबार।
5
हो कुलंग वातांस सें, जा है बात निचाट।
बचिऔ नीम हकीम सें, पकरा दैहै खाट।।
***
-रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवा
#################
10- Jaihind Singh Singh Palera:
//1//
पीड़ादाई रोग है ,लाग लगे की बात।
लेत दवाई भी कई,तलफत है दिन -रात।।
//2//
कुलंग में कुलकत फिरें,बूढ़ेऔर जवान।
जी कों होवै रोग जौ, आफत में हो जान।।
//3//
कुलंग की पीरा बड़ी, जैसें लागौ तीर।
बिमाई जी खों न फटी,वौ का जाने पीर।।
//4//
जो कुलंग ज्वानी लगै,है चिन्ता की बात।
पीरा देबै पाॅंव में,करै पैर सें घात।।
//5//
हो कुलंग जो ज्ञान की,ले समाज के प्रान।
तलफाबै जो और खों, अत्याचार खदान।।
***
-जयहिन्द सिंह जयहिन्द ,पलेरा
जिला टीकमगढ़ मध्य प्रदेश
###################
[11] Brijbhushan Duby, Baksewaha:
(1)
नग नग इतनो रव पिरा,हम तो हो गए तंग।
जान परत ऐसो लगत,बन गव रोग कुलंग।।
(2)
चैन नही बैठे परें,चीवत है करयाइ।
जाने का कारण बनो,भव कुलंग शक जाई।।
(3)
ने तो कैसउ मन लगे,ने कऊ चल फिर पाय।
ब्रजभूषण वैरी बनो,हमे कुलंग सताय।।
(4)
काम काज कर ने सकें,टूरी अब उम्मीद।
कव कुलंग कैसे मिटे,लग ने पावे नीद।।
(5)
बैठे रत मन में गुने,किते जाय दिखवाय।।
अब लो जीने है तको,बात कुलंग बताय।।
****
-बृजभूषण दुबे 'बृज', बकस्वाहा
#################
13- Shobharam Dagi, nadanwara
(01)
कुचर गड़ैलू रस पियौ,देसी दवा कराव । "इन्दु"कुलंग मिटाइयौ,जौ कैबौ अजमाव।।
(02)
झारे फूँके सैं मिटै,"इन्दु"कुलंग दगात ।
जड़ सैं ये मिट जाय जो,दवा करे उतपात ।।
(03)
धना कुलंग कि रोगिया,सुक सैं नइँ रै पात ।
"दाँगी"सांची कात हैं,नस पै करबै घात ।।
(04)
बूँड़न खों झट होत है,गठिया रोग कुलंग ।
अबतक तौ"दाँगी"बचे,फिर रय भौत दबंग ।।
(05)
नाँयँ-माँयँ कूलत फिरै,तनक नौइँ निग पात ।
"दाँगी"पांव पिरात हैं,बैध कुलंग बतात ।।
****
-शोभारामदाँगी "इन्दु" नदनवारा
जिला टीकमगढ़ (मप्र)
#####################
ल
समग्र प्रतियोगिता बुंदेली दोहा प्रतियोगिता समग्र संपादक
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
147 *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता नंबर-147*
बिषय-नईं नँइँ (नहीं)बुंदेली दोहा
संयोजक- राजीव नामदेव राना लिधौरी'टीकमगढ़
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
चले सुदामा माँगवे, नँइँ देने जिय होय ।
बंद करत सब गेट वो ,कृष्ण भजें रत सोय ।।
*** -शोभाराम दाँगी 'इंदु', नदनवारा
*2*
बब्बा नै दव झूँड़कें , तनक सुनानो फठ्ठ ।
नँइँ नँइँ कत कुत्ता भगों , घलो पीठ पै लठ्ठ ।।
*** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़
*3*
हाँ कैकैं फिर नँइँ कयी , बदली जितै जुबान |
साँसउँ इज्जत जानियौ , ऊकी धूर समान ||
*** -सुभाष सिंघई, जतारा
*4* नाँईं नइँ करिऔ पिया,अँखियन झूलत राम।
प्रान प्रतिस्ठा देखबे, चलौ अजुध्या धाम।।
*** -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी (बुड़ेरा)
*5*
न्याय नीत छोड़ों नईं,करौ नईं अभमान।
कर्मन के आधार पै, फल भोगत इंसान।।
*** -एस आर सरल टीकमगढ़
*6*
नँईं-नँईँ बे कात रय, मान गए जा बात।
सबरे मिलकें हम रयें, करे उजास प्रभात।।
*** - श्यामराव धर्मपुरीकर गंजबासौदा,विदिशा म.प्र.
*7*
नँइँ मानत जो राम खों,उने कबे आराम।
राम नाम हिय में धरो,बन जें बिगरे काम।।
*** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*8*
परदा में नइँ ढक सकत,भैया कौनउँ काम।
पकरें हैं चोटी इतै ,सबकी राजाराम।।
*** -डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा
*9*
मन भीतर सें नइॅं करत, फिर भी करबै काम।
बज्जुर देह किसान की,सहै सीत अरु घाम।।
*** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*10*
बुरय काम खों नंइं करत , साजे खों तैयार।
ऐसौ मोरौ काम है , सुन लो लममरदार।।
*** - वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़
*11*
पार उतरबे राम नें, माँगी तट पै नाव।
केवट नइँ आनी कहत,पैलाँ चरन धुआव।।
*** -रामानंद पाठक, नैगुवा
*12*
नइँ-नइँ कै कें, सब जनें, देत ओइ खों वोट।
घर में आकें रात में, जो दै जावै नोट।।
*** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी
*13*
जब लों हाॅं में हाॅं रये,बढे़ प्यार व्यौपार।
बिगरी कौनउॅं बात पे,करत नॅंई स्वीकार।।
*** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. ***#######@@@@
146वीं बुंदेली दोहा
बिषय-गुलगुलौ(मुलायम) दिनांक-6-1-2024
संयोजक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह.
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
गुलगुलात पापा हते , जब बचपन में ऐन ।
लगत गुलगुलो आज लौ , छलक जात हैं नैन ।।
*** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़
*2*
बिटिया की ससुरार सैं,पई-पावनें आय। गद्दा पल्ली गुलगुलो, दीनों सास बिछाय।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *3* हतो गुलगुलौ जोबदन,सियाराम सुकमार । भओ वन गमनरामको,झेलत रय सब मार ।। *** -शोभाराम दाँगी , नदनवारा *4* गद्दा भारी गुलगुलो, राखें बिछा पलंग। ओढ़ रजाई गुलगुली, लडे़ं ठंड सें जंग।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *5* होत भरोसा गुलगुलो, बगर तनक में जाय। जोरैं से फिर नइँ जुरत, कित्तउ करौ उपाय।। *** -विद्या चौहान, फरीदाबाद *6* सुनकें लग रव गुलगुलौ,भव मंदर तैयार। गीद रीछ बंदर उतै,कर रय जै जै कार।। **** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *7* बिछो गदेला गुलगुलौ,तौउ नींद नइँ आत। हारो थको किसान सो,डीमन में सो जात।। *** - प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़ *8* बिछा बिछौना गुलगुलो,भइया भाभी हेत। खुद पथरा पै बैठकें,पैरौ लक्ष्मन देत।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां *9* खाव गुलगुलौ गुलगुला, भौत मजा आ जाय। जीखों नइयां है पतौ, देखौ आजइ खाय।। *** - वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *10* मन तो हौबे गुलगुलो , नीचट रबै शरीर | प्रभू भजन में मन लगे , रये न कौनउँ पीर || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *11* सुरा गुलरियां गुलगुला,कै चीला मिल पाय। पुआ गुलगुलौ होय तौ,मँगा मँगा कें खाय।। *** -डां. देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा *12* राते गव अँधियार में, लगो गुलगुलो मोय। देवा ने बचाय लये, करिया मा रव सोय।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *13* चूले येंगर बैठ कैं , राते करी ब्याइ। हतौ बिछौना गुलगुलौ, सो गय ओड़ रजाइ।। *** -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर, *14* तन हैं जिनके गुलगुले, मन देखों बेकार। गोरन ने हमपे करें, खूबई अत्याचार।। *** -विशाल कड़ा, बडोराघाट *15* धरौ गुलगुलौ साँप सौ, बिल्कुल नइँयाँ ह्याव। यैसे मूसर सें भलाँ, करौ काय खों व्याव।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाडी *16* गद्दा जैसी गुलगुली,है माता की गोद। ममता का भण्डार है,रहे मुदित मन मोद।। *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *17* बिछो बिछौना गुलगुलौ,अँखियन नइँयाँ नींद। जब सें अँखियन में बसी, हरि दर्शन उम्मींद।। *** -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी *18* मिलो बिछौना गुलगुलो,लरका खा पी सोयँ। खात कमाई बाप की, समव सुहानों खोंयँ।। *** - अमर सिंह राय, नौगांव *****
145 वीं बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-145
दिनांक 30.12.2023
प्रदत्त शब्द-खटका-(चिंता, आशंका,)
संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह.
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
परमारथ जीवन जियें,कंठ विराजें राम।
सद्गुरु कौ सत्संग हो,खटका मिटें तमाम। ।
*** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*2*
राम लखन सीता निगे , बात मातु की मान । दशरथ खों खटका लगो , पट्ट छोड़ दय प्रान ।। **** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *3* समओ भौत खराब है,जीबौ नइं आसान। जीवन बीदौ रात दिन,लॅंय खटका में प्रान।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी *4* खटका देखौं लग रओ , हमको दिन उर रात। धरौ सबइ राने इते, कछू नही ले जात।। *** *विशाल कड़ा, बडोराघाट, टीकमगढ़* *5* बुंदेली दोहा बेदरदी आये नहीं,फिर लग परौ असाड़़। खटका में घुन से परे,भीतर भीतर हाड़।। *** डां. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा *6* खटका तो श्री राम खों,लगो लखन खों वान। संकटमोचक बन गये, पवन पुत्र हनुमान।। *** -रामानन्द पाठक,नैगुवां *7* बिटिया बैठी ब्याव खौ,कछू न सूझै काम। रात दिना खटका लगौ, कैसै निपटें राम।। *** -एस आर 'सरल', टीकमगढ़ *8* नई साल जा आ रई, खटका मन मा रात। जैसी गुजरी साल जा, हुइए का बरसात।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *9* भड़या लबरा पातकी, इनखों खटका रात। ईश भगत परमारथी, जे ना कहूँ डरात ।। *** -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल *10* स्यानी बिटिया जोंन घर, रिन बैरी हों भौत। इन सबसें खटका बड़ो,जी घर हौबै सौत।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *11* टपका कौ खटका बुरवँ , रातै नींद न आत | कौन घरी का गट्ट हो , चिंता में जी रात || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *12* फक्कड़ घुरवा बैंच कैं,खोल किबारे सोय। खटका ऊखौं होत है ,जीनों संपत होय।। **** आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर *13* खटका मिट गव राम कौ, मंदिर बनौ महान। विराज थय बाईस खौं, जनम भूम पै आन।। शोभाराम दांगी, नदनवारा ####***####@@@@###@@@ 144- *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 144* विषय -अनमनें (उदास) दिनांक-23-12-2023 *संयोजक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* जनम- जनम कौ संग है ,सुनलो पिया हमाव। आज अनमनें काय हौ , मन की हमें बताव।। *** -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर *2* खाद- बीज सब खा गये,नाहीं बिजली रात। बैठे हैं सब अनमनें, मारे भूखन जात।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *3* राम लखन अति अनमने,ढूंड़त हैं वन मांह। जड़ चेतन सें पूंछते ,सीता कहुँ न दिखांय।। *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *4* दुख सें जिन हो अनमने, करत रओ तुम काज। देहें साचउँ राम जी, उमदा सुख को राज।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर,गंज बासौदा *5* लछमन खौं शक्ती लगी , भयै अनमनै राम | लाबै बूटी तब मिलौ , बजरंगी खौं काम || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *6* कय बैठे हौ अनमने, धरें हात पै हात। कुआ पियासे के लिगाॅं,सुनौ कभउॅं नइॅं जात।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *7* धन डेरा दै कें करो, बेटा खों का पाप। सोसत बैठे अनमने,भूँके माई बाप।। *** डां देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा *8* राजतिलक तो भुन्सराँ,भऔ राम वनवास। नर-नारी भय अनमने, भूले भूँख पिआस।। *** -रामानन्द पाठक, नैगुवां *9* फैलो रोग दहेज कौ, चड़ रइ जूड़ी ताप। फिरत अनमने-अनमने,बिटियन के माँ-बाप।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *10* भैया कैसे अनमने,होते काय उदास। भूल चूक सबसें बनत,कीजे मन अहसास।। *** मूरत सिंह यादव, दतिया *11* ग़ुस्सा बैठो नाक पै, मूड़े चढ़ो गुमान। भाव अनमने छोर कें, मौ पै धर मुस्कान।। *** -विद्या चौहान, फरीदाबाद *12* हुये अनमने आप हैं , जब सें सबइ उदास। खुश हुइयौ तुम पांवनें , ऐसी सबखों आश।। *** - वीरेंद्र चंसौरिया टीकमगढ़ *13* भये अनमने भौत शिव, धर कें देखत ध्यान। सती गई सिय रूप में, देखन खों भगवान।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी *14* भय दसरथ जू अनमने,दो वर मेरे पास । भरत खौं देव राज उर, राम खों बँदोवास ।। *** -शोभाराम दाँगी इंदु, नदनवारा ################## 143- 143 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-143 *संयोजक- राजीव नामदेव राना लिधौरी'* आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह. *विषय -लच्छन* दिनांक-16/12-2023. प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* जी घर में बउ लच्छमी, ऊके सब गुन गात। बउ बिटिया लच्छन बिना,कंडी सी उतरात।। *** - एस आर 'सरल',टीकमगढ़ *2* लच्छन सुन कें सीय के, भरे सुनैना नैन। सीता ब्याहे राम खों, बोले नारद बैन।। *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *3* रंग रूप पुजबैं नहीं , लच्छन पूजे जात। लच्छन साजे होंय सो,जगत मानबै बात।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *4* लच्छन वारी लच्छमी,जीकै घर आ जाय । दिन दूनी सम्पत बढै,सबकौ मान बढाय ।। *** - शोभाराम दाँगी, नदनवारा *5* रावन कौरव कंश के, लच्छन हते खराब। जैसें बदबू सें भरे,लासन प्याज शराब।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *6* साजे लच्छन पूत के, पलना में दिख जात। बनकें ध्रुव प्रहलाद बे,जग खाँ गैल बतात।। *** -रामानंद पाठक, नैगुवा *7* लच्छन में है को कहां खुशियन की है रैंक। भारत एक सौ छब्बीस पे, फिनलैंड पैली रैंक।। *** - रामकुमार गुप्ता, हरपालपुर *8* अच्छन-अच्छन के दिखे, लच्छन भौत खराब। लुकैं-लुकैं ताकैं जनी, छुप-छुप पियें शराब।। *** -संजय श्रीवास्तव,मवई(दिल्ली) *9* चालाकीं बेमान की, मूरख कौ बतकाव। लच्छन इनकें देख कें, दूरइ इन सें राव।। *** ~विद्या चौहान, फरीदाबाद *10* लच्छन सीखौ चार ठौ , भलै बुरय कौ ज्ञान | जगजगात जीवन जियौ, सुमरत रवँ भगवान || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *11* नोने लच्छन कै बुरय,बचपन में दिख जात। होनहार विरवान के,होत चीकने पात।। *** -आशा रिछारिया,निबाडी *12* लच्छन सुदरें तौ बने,सबरे बिगरे काम। बिन लच्छन बन पांय ना,जग में सीता राम।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा( टीकमगढ़) *13* शरम करौ लच्छन बिना , जीवन है बेकार मानव जनम सुधार लो , जीवन कौ जौ सार *** - वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *14* पातर चमड़ी चीकनी, चमकदार हों बार। लच्छन जी गउ में दिखैं,समझौ उऐ दुधार।। *** अमर सिंह राय, नौगांव ####₹₹@@@@@###### *142 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-142* #शनिवार #दिनांक ०९.१२.२०२३# #बिषय-गुनताड़ौ/गुनतारौ (उधेड़बुन, उपाय)# *संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* तर्क करे के गणित में, प्रश्न आज हैं आत। गुंतारे से ही सहज, सबरे हल हो जात।। *** - राम कुमार गुप्ता, हरपालपुर *2* गुनताड़ौ लगवाउ तौ ,हैं कौनउ औतार । वनवासी बन आय जे,तीर न करवै मार ।। *** -शोभाराम दाँगी 'इंदु',नदनवारा *3* गुनतारो कर रइ धना , तापत आगी बार । बहिन लाड़ली के मिलें , रुपया ढाइ हजार ।। *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *4* गुनताड़ौ जो ताड़ ले,कठिन काम हो खेल। ऊंचाई खों जा छुयै,जो विरवा की बेल।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा, टीकमगढ़ *5* जो गुनताडौ हैं करत , हाथ सफलता आय। नइं मानौ तौ देख लो , बढ़िया जेउ उपाय।। *** -वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ *6* गुनताड़ौ है श्याम कौ , कर मनहारिन देह | पैराबै चुरियाँ चलौ , आज राधिका गेह || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *7* कक्का गुनतारौ करें ,हैं किसान हैरान। ओदें बादर टर गये,का करनें भगवान।। *** - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *8* गुनताड़ो जेको बने, वोइ जीत है रेस। अब चुनाय भी खत्म भय,आँख गड़ायें देस।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा.म.प्र. *9* ढूंडत ढूंडत पोंच गय, लंका में हनुमान। मन में गुनतारौ करें,का करिये भगवान।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा *10* राज तिलक खों राम के,सज गय महल तमाम। दासी गुनतारौ लगा, वनों विगारौ काम।। *** -रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवां *11* मरगय गुनताडौ लगा, मिलै कौन खों ताज। धरौ ओइके मूँड़ पै, जी कौ नोंनों राज।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निबाड़ी *12* सोच-फिकर में दिन कड़त, गुनताड़े में रात। मोड़ी हो गइ ब्याव खों, ढेला नइयाँ हात। *** - संजय श्रीवास्तव,मवई( दिल्ली) *13* गुनताड़ौ अब ना करौ , जीवन के दिन चार। भजलो सीताराम खौं , जेउ जगत में सार।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर *14* देस-देस के भूप जुर, समझ रये खिलवाड़। टोरें कैसें शिव धनुष,गुनताडौ रय ताड़।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी *15* लगा लगा कैं हड़ गऔ,मैं गुनतारो खूब। गांस गुड़ी कैंसे मिटे,कांस खेत की दूब।। *** -मूरत सिंह यादव, दतिया ***####@@@@#### *141* बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-141 *प्रदत्त शब्द :- बैठका* दिनांक -2-12-2023 संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्रविष्टियां :-* *1*- तखत लगै कुरसीं डरीं, सौफा लगत दबंग | हुक्का रख्खौ बैठका , लोंग लायची संग || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *2* फटिक शिला को बैठका , बैठें लछमन राम । सब बन्दर करवै दते, जोरेँ हाँत प्रनाम ।। *** -प्रमोद मिश्रा ,बल्देवगढ़ *3* उठत भोर से आज तो , मुखिया के घर द्वार। भर गव पूरौ बैठका , कौ जीते कौ हार।। *** -रंजना शर्मा, भोपाल *4* लीप पोत लो बैठका , करलो मन की टाल । काम क्रोध छल द्वेष को ,कचरा देव निकाल।। *** -आशाराम वर्मा " नादान" पृथ्वीपुर *5* बनौं बैठका ओरछा,देव कुँवर हरदौल । भीम बैठका रायसिन,साँसी कयँ कर कौल ।। *** -शोभाराम दाँगी इंदु, नदनवारा *6* चंदन डारौं बैठका,माई शारद तौय। पाॅंव पखारों दै दियौ,चरनौं की रज मौय।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *7* बे पथरन के बैठका, हैं धामों के धाम। बैठत ते वनबास में,जिनपै सीता-राम।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *8* हनमत की चौकी लगी,सजौ राम दरबार। सुर मुनि बैठे बैठका, कर रय जै जै कार।। *** - एस आर सरल,टीकमगढ़ *9* सबइ जुरत तै ढोर लै, सबरै जात चरात। कात बैठका सब जनै, अब तो नईं दिखात।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *10* बनो राम मंदिर अजब, छाई खुशी अपार। राम सिया कौ बैठका, करहै जग उद्धार। । *** -आशा रिछारिया जिला निवाडी *11* फूल-बाग शुचि बैठका, बैठत ते हरदौल। रइयत की सुनकें ब्यथा,न्याय करत ते तौल।। *** -रामानंद पाठक, नैगुवा *12* रिस्ते-नातेदार सब,बैठे पैलउँ आँन। एक बैठका होत है, घर बखरी की साँन।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी ,बड़ामलहरा *13* सज गव उनको बैठका,घर भर भव तैयार। करवै आ रय कछु जनै, मौडा़ को बैहार।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *14* पैल हते जो बैठका, भये चेटका आज। राजा मरे घमंड में, भव कुत्तन कौ राज।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत निवाड़ी *15* जमीदार के बैठका,में माते की खाट। मुखिया आबें बैठबे,तौ फिर देखौ ठाट।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा( टीकमगढ़) *16* उतै हतो जो बैठका , पैलां मोरौ होय। रुकौ कछू दिन और तुम , फिर दै दैहें तोय।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया ,टीकमगढ ###@@####@@@#### 140+बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 140 दिनांक- 25/11/2023 *प्रदत्त शब्द - इंद्र* संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* गौतम मुनि के भेष में , करौ हतौ घट काम। छली अहिल्या इंद्र ने, भय जग में बदनाम।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर *2* चूर करौ मद इंद्र को, गिरिधारी गौ ग्वाल। गोर्वधन धारण कियौ, छिगुरी पे गोपाल।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'.,बडागांव झांसी *3* राखत परमानंद सें,सबको राखत मान । इंदर विनको नाम है,करत रहो सम्मान ।। *** -डॉ. रंजना शर्मा, भोपाल *4* इंद्रासन सौ सज रहो,जनमत कौ दरबार। ई चुनाव में इंद्र पद,किये मिलत उपहार। । *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *5* सबइ इंद्र रत मस्त हैं , जब बीदत है गट्ट | आबैं ब्रम्हा विस्नु सँग , महादेव लौ झट्ट || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *6* इंद देवता जगत में ,करें अलग पैचान । श्री किशन से युद्ध में ,हार गयेे भगवान ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *7* कर कें राजा इन्द्र नें, नारी कौ अपमान। राजन की करतूत कौ,दव तो बड़ौ प्रमान।। *** -रामानंद पाठक 'नंद', नैगुआं *8* चेला होवें इन्द्र से, गुरु जो होंय दधीच, होय धरम की थापना, मरैं असुर वृत् नीच । *** -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल *9* इंद्र रुष्ट हैंगे लगत, बरखा तो गइ रूठ। बिना पलेवा बो रये, राने खेतन ठूंठ।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *10* पानी बरसा इंद्र ने,बृज खों कर बेहाल। गोबरधन उगरी उठा,रक्षा की नदलाल।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़# *11* इंदर नई धरा करो, फिर कउ आय बहार। फिर सबरे खुशहाल हो, सरस नदी की धार।। *** -सरस कुमार,ग्राम दोह, खरगापुर (टीकमगढ़) *12* पैल घाइँ बरसा करो, इंद्र देव महाराज। धरती प्यासी ना रबै, कुठियन भर हो नाज।। *** -संजय श्रीवास्तव* मवई *13* इंद्र परी हो रइॅं धना,भोंहें मनो कमान। बूॅंदा दमकैया दिपे,मुख में खायें पान।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *14* हरि चरनन सिर नाँय कें,देबी देव निहोर। इंद्रदेव रक्षा करौ,बिनय करों करजोर।। *** डां. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा *15* देवराज सब कत मगर, इंद्र न पूजे जात। काम वासना ग्रस्त नर, एइ दशा खों पात।। *** -अमर सिंह राय,नोगांव *16* बैदिक युग के देवता , पिथम इंद्र दिवराज। कश्यप इनके हैं पिता , पतौ चलौ है आज।। *** -वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ *17* बज्र लिये जे हाथ में, करें स्वर्ग पै राज। बिकट लरे, हारत रहे, पाली कैऊ खाज।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *18* देख इंद्र - सी अप्सरा, सबकौ मन ललचाय। मन की गति नैंची सदा, चाय जितै चल जाय।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *19* सतरंगी पट्टी बिछी, धरती सै आकाश। इंद्रधनुष बरसात में, दे बर्षा की आश।। *** -एस. आर. सरल,टीकमगढ़ *20* इदंर दैव महान है,जग में फूंकैं प्रान। जल की इक इक बूंद खों ,नै तरसे इंसान ।। *** -हंसा श्रीवास्तव हंसा, भोपाल 139-बुंदेली-दोहा प्रतियोगिता - 139 शनिवार, दिनांक- 18/11/2023 संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ बिषय- ' दाँद ' *1* प्रतियोगी दोहा होबै दाॅंद चुनाव में,जाड़ो ऊॅंग हिरात। नेता कूलें खाट पै,इक -इक गुरा पिरात।। *** -भगवान सिंह लोधी,हटा *2* दाँद मची भारी इतै, काँसें आव चुनाव। को जीतै, को हारबै, साँसी मोय बताव।। *** -प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ *3* जे कोऊ करजा करे, सैबू करत दाँद। परवै ओखाँ नैं कबउँ, महाजनी जा माँद।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *4* उछबड़ कुरता धाँद कें , धर लव मनको राँद । अब चुनाव के माँद में , नेतन खाँ भइ दाँद ।। *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *5* दाँद मचा रय कछु जनै , अच्छौ भयौ चुनाव | वोट न मौरे कयँ दयै , खूब पकर रय ताव || *** सुभाष सिंघई , जतारा *6* वाह कह दाँद दे रहे, जनी उड़ात मखोल । ताली जैसे ठुकत है,बजा देत हैं ढोल।। *** डॉ. रंजना शर्मा, भोपाल *7* बंद कुठरिया में लगै,दाँद सई नइँ जात । बस में हो च टिरेन में ,गरमी सैं उकतात ।। *** शोभाराम दाँगी, नदनवारा *8* जाकें जनता के घरै, दाँद नदी है झूँट। की कौ बैठै तीन खों, कौन करोंटा ऊँट।। *** अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *9* दाँद परी है हूंक कें,पीठ कुरोरू ऐन। खुजा खुजा कें हार गय,पल भर मिलो न चैन।। *** आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *10* राज योग की रेख खौं , कोउ बाॅंच नइॅं पात। दाॅंद करे में का धरौ , है किसमत की बात।। *** आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *11* दाॅंद मचा कें धर दई, ऐसो चढौ चुनाव। दल- दल अपने पैंतरा,खूब लगाये दांव।। *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *12* बुंदेली दोहा डर गय बोट चुनाव के,बैठे हिम्मत बाँद। हार जीत की तौ लगै, भीतर सबखों दाँद।। *** डां देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा *13* सत्ता की जिनखों हती,अबलौ बेजाँ दाँद। उनें हार कें ढूँड़नें, लुकबे कौनउँ माँद।। *** रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवा *14* तपी दुफैरी गैल में,निगे ततूरी फांद। जैसइ घर भीतर घुसे,खूबइ मचकी दांद।। *** -प्रभा विश्वकर्मा 'शील', जबलपुर *15* होबै बदरा घाम चय, होबै बेजाँ दाँद। लयें कुदरिया काड़तइ,कृषक खेत के काँद।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *16* भौत दिना तक आँसती,जा चुनाव की दाँद। सालन चलती रंजसै, कैउ कुकाउत चाँद।। *** -एस आर सरल ,टीकमगढ़ ############# 138 138- बुंदेली दोहा प्रतियोगी -138 विषय-लच्छमी दिनांक-11/11/2023. आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' *********************** प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* बड़े विरद कीं लच्छमी,जानत है सब कोय। जे किरपा जी पै करें, बौ कुबेर सम होय।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द' नेंगुवाँ *2* रुकत लच्छमी ओइ कें,माता जौन बनात। पत्नी जौ समझत उनै,लात मार कें जात।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *3* हमने कइती लच्छमी , बिन जीवन बीरान। मेंनत कर लो आज सें , जैसी करत किसान।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *4* कातिक कारी रात खों, जगमग दिया जलाव। लच्छमी जून कौ आगमन,धन संसत सब पाव।। *** -आशा रिछारिया,निबाडी *5* बउँ बिटियाँ सब लच्छमी , घर की हैं कैलात || इनकौ रखतइ मान जौ , घी चुपरी बौ खात || *** - सुभाष सिंघई, जतारा *6* दिया धरे घर दूआंय में,खेतन हार जगांय। लच्छमी और गणेश कों, पूजें देव मनांय।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी *7* जौन घरै हो लच्छमी ,चलादार बन जात । ऐंठत सबपै सैंत में, सबइ ऐंड़ कैं रात ।। *** -शोभारामदाँगी 'इंदु', नदनवारा *8* जा गरीब की झोपड़ी, देखे तुमरी बाट। मातु लच्छमी हो कृपा, बन जाए सब ठाट।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *9* लक्ष्मी संग गनेश के, रखियौ घर में पाँव। यश- वैभव माँ दै दियौ,रखियौ अपनी छाँव।। *** -प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ *10* घर आँगन उजरे डरे,घर घर मनें दिबाइ। उल्लू खौ वाहन बना,फिरें लच्छमी माइ।। *** - एस आर सरल, टीकमगढ़ *11* इतनों दइऔ लच्छमी,रइऔ सदाँ सहाय। द्वारें आऔ मंगता, खाली हाँत न जाय।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी (बुड़ेरा) *12* सुर सनमति होबै जितै , उतइॅं लच्छमी राय । कपटी कामी के घरै , कभउॅं न ढूॅंकन जाय।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *13* धन की देवी लच्छमी,सब पै होव कृपाल। ई दिवाइ खों सब जनें, होवें मालामाल।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी #######@@@@######## 137 *137* बुन्देली दोहा प्रतियोगिता-137 *प्रदत्त शब्द=नब्दा(रौब गाँठना)* दिनांक-4-11-2023 संयोजक-राजीव नामदेव मराना लिधौरी' आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* निज भैया बैरी भऔ,रखौ न रिश्तौ अंश। मार-मार भानेज सब, नब्दा कसबै कंश।। *** - एस आर सरल, टीकमगढ़ *2* नब्दा गाँठें सैंत कौ, नइँयाँ बसकौ काम । मिर्ची लगवैं आँख में,जोर न पाव छिदाम ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *3* रामदूत समझा रहे,रावन के दरवार। है बिगार नब्दा कसें,शरन गए में सार।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *4* नब्दा झाडें दीन पे,करें न कौनउ काम। नेतन की ई सोच सें,है निराश आवाम।। *** -आशा रिछारिया,जिला निवाड़ी *5* मालिक और मजूर में ,अलगइ फरक दिखात। नब्दा पेलत है जबर , लचर गंम्म खा जात ।। *** -आशाराम वर्मा "नादान",पृथ्वीपुरी *6* कोरो वे नब्दा धरें, बनकें फिरें दबंग। उसईं अपई तान कें, देत चुनावी रंग।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्त इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *7* नब्दा पेलौ दाउ नें, करौ भौत आतंक। माटी में वैभव मिलौ, लगौ काल कौ डंक।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *8* सास बहू के बीच में,है पैरन की जंग। रोज सास नब्दा कसै,करै बहू खों तंग।। *** -डॉ देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा *9* नब्दा की आदत बुरी , जलदी लेव सुधार। ननतर हुइयै बेज्जती ,उर बिगरै ब्यौहार।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *10* नार दलाकें नार सी, नब्दा कसबै रोज। साजी सुनें न एक बा, धरो मिटाकें खोज।। *** --प्रदीप खरे, टीकमगढ़ *11* काम करै नब्दा सहै, भूँकन मरै गरीब। ऊ समाज कौ मानिऔ,निश्चित पतन करीब।। **** -गोकुल प्रसाद यादव ,नन्हींटेहरी *12* हलकन पै नब्दा कसें, बड़े शरम नइँ खात। देख सरी विरवाइ-सी,लातन कुचरत जात।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां *13* नब्दा कस रव रावना, कात रए हनुमान। सरनागत हो राम की, बृथाँ काय हैरान।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *14* जब-जब नब्दा पैलतइ , आकै पाकिस्तान | हरदम खातइ लात है , बनतइ बेईमान || **** -सुभाष सिंघई , जतारा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 136- 136- बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-136 जय बुंदेली साहित्य समूह, टीकमगढ़ दिनांक -28/10/2023. बिषय- न्यौरे. *प्राप्त प्रविष्टियां :-* *1* न्योरे न्योरे कड गई,उरबतियन की छांय। बैठो रो में घरी भर,उनकी आश लगांय ।। *** -मुन्ना सिंह तोमर,भोपाल *2* बज्जुर सी छाती रई, ज्वानी में गर्राय। न्यौरे- न्यौरे अब चलें,जब सें गै बुढियाय।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *3* न्योरे न्योरे ऊब गय , कैसें हुइये काम। शेष बचो बौ बाद में , पहले अब आराम।। *** -वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ *4* न्योरे-न्योरे होत नइ, दाऊ चोरी ऊँट। कैंसे काटो रूख जो, बच नें पाओ ठूँट।। *** -श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *5* न्योरे चोरी ऊँट की , कभउँ कितउँ ना होत | जीकौ पेट पिरात है , बौ डिड़या कै रोत || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *6* न्योरे -न्योरे जो करें, बड़े बड़ों सें बात। जग में वे हनुमान से,सबके दिल में रात।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *7* हनुमान श्री राम खों ,न्योरें करें प्रणाम । आन विराजो ह्रिदय में , राघव सीता राम ।। *** -शोभारामदाँगी, नदनवारा *8* न्योरे- न्योरे ढूँढ़ रय,वे जीवन कौ राज। कैसें कड़ गइ जिंदगी, आव वुढ़ापौ आज। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *9* विनत लखन खों थामबे, न्योरे जइँ सें राम। वरमाला सिय डार दइ,हौन लगे शुभ काम।। *** -रामानंद पाठक, नैगुवां *10* पैलां के दोरे हते,न्योरे ही कड़ पांय। दोरे में जो जो कड़ें,न्योरें मूंड़ नबांय।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा *11* न्यौरे घुसेँ अटाइ में , भुसा भरो गय काँप । मूँतयाव जब देख लव , फूँसत करिया साँप ।। *** -प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़ *12* बड़ी बात तौ नइँ छिपत,जांन जात सब कोय। न्योरें न्योरें ऊँट की,चोरी कैसें होय।। *** - डां. देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा *13* नेता जू न्योरे फिरें, रय चरनन में लोट। कत जनता भगवान है,माँगै वोट सपोट।। *** एस आर सरल,टीकमगढ़ *14* सीमा पै ठाॅंड़े पिया ,अपनों सीना तान । न्योरे-न्योरे खेत में , धना नींद रइॅं धान।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *15* न्योरें कुबरी फिर रई,लख शत्रुघन इठलात। गिरतन टूटे दांत सब,हुमक घली जब लात।। *** -सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *16* घूंटन लों पानी भरो,खेतन तोउ किसान। न्योरें न्योरें नींद रव, घरवारी सॅंग धान।। *** -आशा रिछारिया,निवाड़ी *17* खुशी रहत ते जे झुके, न्योरे ते ना छोट। दूब नरम नीची रहै, हरी -भरी बिन खोट।। **** -रामलाल द्विवेदी, चित्रकूट @@@@@@@@@@@@@ 135- 135 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 135 प्रदत्त शब्द -दच्च दिनांक-20-10-2023 संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* बड़े बाप के पूत हों , होंय अकल के गच्च । मान पान धन की उनें, लगत हमेशा दच्च।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *2* दच्च किसानी में लगी,पर गव सूका काल। बिटिया बैठी व्याव खों,कठन परी जा साल ।। *** -सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *3* लगने दच्च चुनाव में , फिरी डारने वोट । सरपंची में लय हते ,तीन हरीरे नोट ।। **** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *4* जीवन रूपी नाव में,लगत अनेकों दच्च। राम भजन सें पार कर,सीख बोलबौ सच्च।। *** -भगवान सिंह लोधी,हटा *5* दे रये दच्च दुआंय पे, दावत को लंय दांव। राजनीति की बात कै, जीतें चात चुनाव।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव, झांसी *6* लबरा लम्पट लालची , चमचा आबै दोर | दच्च इनइँ से है लगत, चिपकै संगै चोर || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *7* बे मौसम बरसात नें, दै दइ दच्च बिलात। बिटिया बैठी ब्याव खाँ,टेरें साव चिमात।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवा *8* जिनखाँ दै-दै कें मदद,हमनें करो सपच्च। बे चैंथी में काट कें, दै गय कर्री दच्च।। **** -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी *9* लगै दच्च पै दच्च जो ,हो भौतई नुकसान । अपनें मन में जान लो,खुश नइयां भगवान ।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा *10* मेघनाद को सुन मरन, खाकें रै गव गच्च। कर बिलाप रावन कहत, कैसें सै लउँ दच्च।। *** -श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *11* डुकरो बैठीं पौर में ,मूड़ पकर कैं रौयँ । लाखन की जा दच्च परी, कैसें सूदे हौयँ ।। *** -शोभाराम दाँगी,नदनवारा *12* दच्च कछू ऐसी लगी,उठ गओ है विश्वास। अपने अपने ना रहे,गैरन सें का आस।। *** -आशा रिछारिया (निवाड़ी) *13* हीरा सी नोंनी घरी,जब सोंनें की आइ। एक दच्च यैसी लगी,रनबन भई कमाइ।। *** - डां देवदत्त द्विवेदी ,बडामलेहरा *14* रो रय बे हैं काल सें , दूनौ भव नुकसान। ऐसी दच्च तौ कोउ खों , न लगबै भगवान।। **** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *15* पंगत खा लइ हूँक कें, भई पेट में गच्च। पइसा लगे इलाज में, कर्री लग गइ दच्च।। **** अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी ########@@@@@###### 134- 134 बुन्देली दोहा प्रतियोगी -134 संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ दिनांक-14-10.2023 प्रदत्त शब्द-टूॅंका (टुकड़ा) प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* टूंका सती शरीर के , करें सुदर्शन आन । शक्तिपीठ पुजने लगें , नवदुर्गा पैचान ।। *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *2* जिननें छप्पन भोज खों,धर दव कभउॅं कनांय। बिपत परी जी दिन गरें, सो अब टूॅंका खांय।। *** - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *3* टूॅंका से बांटत फिरत,नेता जी दो काम। लरका पावे नोकरी,होय तुमारो नाम।। *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *4* जी हैं हम कैसें भला, मोखां देव बताय। दिल को टूॅंका कर चली, गोरी जो मुस्काय।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *5* सुखिया दुखिया है जगत, चका लगै दिन-रात | टूँका तिसना लोभ कै ,सबखौं देतइ घात || *** -सुभाष सिंघई, टीकमगढ़ *6* टूँका कइये स्वर्ग कौ, पावन भारत देश। जीके कण-कण में बसे,ब्रम्मा बिस्नु महेश।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *7* हूँका में चूका परै,कूका दै दै रोय। स्वारत चटकै काँच सौ,टूँका टूँका होय।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी,बडा मलेहरा *8* टूंका टूंका टूटकें,माटी रज बन जाय। गुरु चरनन सें धन्य हों,पद रज पावन पाय।। *** #जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़ *9* कछु टूँका जे फेंक दय, भरत न इनसें पेट। जंगल को जो सिंग तो, रोज करत आखेट।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *10* टूँका हो गय देश के ,मची लराई आज । ऐक जनों गल्ती करै ,भोगत सबइ समाज ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *11* मन मौरे मुइयाँ बसी, मोह लियौ गुलनार। टूँका कर दिल के दयै, छाती चली कटार।। *** -प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ *12* जिदना फसल किसान की, ओरे परें नसात। टूॅंका -टूॅंका ओइ दिन , छाती के हो जात ।। *** आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *13* साँचौ-सूदौ आदमी, फिर रव धूरा खात। टूँका-टूँका जिंदगी, खुती-खुती हालात।। *** -संजय श्रीवास्तव* मवई/दिल्ली *14* टूँका नइयाँ भूम कौ, सगया मेले द्वार। उल्टे सूदे चोटिया, ठोकत लम्मरदार।। *** -एस आर सरल, टीकमगढ़ *15* बड़े भये ज्यों-ज्यों सभी, घटत गई त्यों प्रीत । टूँका-टूँका आँगना, अलग-अलग की रीत ।। *** -सन्तोष कुमार 'माधव',कबरई, महोबा (उ.प्र.) *16* रोटी के टूंका बिना,भरे कौंन के पेट। जीबौ दुस्तर अन्न बिन,सूखो लेत समेट।। *** -मूरत सिंह यादव,लमायचा ( दतिया) *17* टूँका खा कें राम के, बसें ओरछा धाम। चरण शरण रें राम की, दुनिया से का काम।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *18* टूंका टूंका हो गये , दिल के अपने चार। बिना बिचारे जो करे , एसइ हुईये यार।। **** -वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ #######@@@@@###### 133- 133 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता नंबर =१३३ संयोजक- राजीव नामदेव राना लिधौरी आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ बिषय--ठगिया प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* ठगिया बन्ना होय तौ ,ठगौ राम कौ नाव । और ठगे में का धरौ ,जीवन मुक्ती पाव ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *2* ठगिया बनकें का करौ , हो जैहौ बदनाम। बात मान लो सेठ जी , कैरय लोग तमाम।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *3* ठगिया बातन आयकें, भूल न करियौ कोय। मन लोभी ठगहीं सुनौ, लुटत सबहिं फिर रोय।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल'टीकमगढ़ *4* ठगिया सबरो है जगत,भरमाउत रत नित्त। राम नाम सुमिरन करो,निरमल हो जै चित्त ।। *** -आशा रिछारिया,निवाड़ी *5* माया के भोंजार सैं , कोउ न पाबै पार। ठगिया भी ठग जात जब, देत मोहनीं डार।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *6* ठगिया हैं बहुरूपिया, ठगैं बदलकैं रूप। सूरज बनकैं बैंचदैं, भरी दुपरिया धूप।। *** -संजय श्रीवास्तव* मवई😊 मुंबई *7* खून पसीना डारकें, करी कमाई जोन। ठगिया करकें लै गओ,एक लाबरौ फोन।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *** *8* ठगिया ठेंकर सें ठगें, कर- कर कैउ उपाय। सोने खों पीतर कयें,पीतर स्वर्ण बताय।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *9* नींद उड़ी हय रात की, उड़ गौ दिन को चैन। धक-धक हौत करेजवा, ठगिया थे बे नैन।। *** -गीता देवी, औरैया *10* ठगिया नेता देश में , टाँड़ी से उतरात | चूहन जैसी हरकतै , बजट कुतर कै खात || *** -सुभाष सिंघई ,जतारा *11* ठगिया इस संसार में भांति भांति के लोग । बिना ठगे ही भोगिये इस पृथ्वी के भोग।। *** -शीलचंद जैन, टीकमगढ़ *12* ठगिया की बगिया बड़ी,जी के हम हैं फूल। ठगिया मन कौ मीत हो,लूं बायन में झूल।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा (टीकमगढ़) *13* सूदे सरल किसान सब,मेंनत करकें खायँ। ठगिया बेपारी तऊ,पेटै छुरी चलायँ।। *** - डां देवदत्त द्विवेदी, बडामलेहरा *14* चुपर-चुपर बातें करें,लव छोड़ों बतकाव। चौतरफा आँखें चला,ठगिया देखत दाव।। *** एस आर सरल ,टीकमगढ़ *15* ठगिया भर दुपरै ठगै,डार मोहनी जाल। बचा न पाबै वार सें,कौनउँ बख्तर ढाल।। *** गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी *16* मन बैरी ठगिया बनों,कैंसे बांधूं धीर। गांव पुरा के लखैं सब,भजो नहीं रघुवीर।। *** -मूरत सिंह यादव,ग्राम लमायचा( दतिया) *17* ठगिया जो संसार सब, ठगत रहत दिन रैन। माया में मन भूलकैं, मिलत न ओखों चैन।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *18* माया ठगनी ठग रही,दिखा रही प्रभाव। कइयक ठगिया ठग गये,कई लगा रय दाव।। *** - सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *19* मोहन हैं ठगिया बड़े,बंसी सें ठग लेत। राधा ई कौ उरानों, मोहन खों नइँ देत।। *** अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी #### 132- 132 #बुन्देली दोहा प्रतियोगिता-१३२# #शनिवार#दिनांक३०.०९.२०२३# संयोजक- राजीव नामदेव "राना लिधौरी" आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्रदत्त बिषय-कागौर* *1* पुरखन कौ तरपन करत , भोग बनत कागौर | श्रद्धा से इस लोक की , श्राद्ध जात उस ठौर || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *2* गौर करौ कागौर पै,दो पुरखन खों ठौर। पुरखा भोग लगाय लें,फिर कौवन कौ कौर।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा *3* पितरन कौ न्यौतौ करौ, छत पर धर कागौर। ध्यान धरौ पूजौ उनें, वे अपने सिरमौर।। *** - संजय श्रीवास्तव* मवई 😊दिल्ली *4* कभउॅं मतारी बाप खों,मिलो न घर में ठौर। मरें सपर रये गॅंग में ,उर डारें कागौर।। -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी", हटा *5* जियत बाप खौं नहिं दियौ, जीनें एकउ कौर। करय दिनन में दै रहे, लगा लगा कागौर।। *** -प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ *6* पानी दै कागौर से,बता रये आराध । जियत जियत पूंछी नई,कर रय मरें सराध।। *** -सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *7* जियत मताई-बाप की, करौ खुशामद यैंन। बिन तेरइंँ कागौर के,मिलै सबइ सुख चैंन।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *8* कुवांर के पितृपक्ष में पितरों का करते तर्पण। खीर पूड़ी का कागरो काग को करते अर्पण।। *** -शील चंद जैन टीकमगढ़ *9* कौअन खों कागौर सें , पुरखन खुशी अपार। इनइं दिनन बे आत हैं , अपने ही घर द्वार।। *** -वीरेन्द चंसौरिया टीकमगढ़ *10* करय दिनन में प्रेम सें, काड़त हैं कागौर। जिंदा में नइँ देत हैं, खावे जूँठौ कौर।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *11* जी दिन सें पुरखा लगे, रोज कड़त कागौर। माल छानरय हूंक कें , हतो न कोंनउँ ठौर।। *** प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष ,टीकमगढ़ *12* पुरखा न्योत बुलाइये, श्रद्धा सें कर जोर। सोलह दिन इनके नियत,काड़त रव कागोर।। *** -आशा रिछारिया, निवाड़ी *13* पंचायत कउआ करें, देख आज को दौर। पुरखन को अपमान जां, नइं खानें कागौर।। *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *14* पितर-पूजकैं नित अबे, बिनय करौं कर-जौर। पानी दैंकें पक्ष में, रोज धरौं कागौर।। - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *15* माइ बाप खों दैय जो,जिन्दा में दो कौर। पुरखा ऊ के प्रेम सें,सब खेंहैं कागौर।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा *16* मौराई छठ खौं सिरत , नदी ताल में मौर। कौआ कूकर गाय खौं , करय दिनन कागौर।। *** आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *17* श्राद्ध करौ तर्पन करौ, काड़ देव कागौर। पितरों सें हो लो उरिन,मिलै सुरग में ठौर।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द' नेंगुवाँ ###########@@@@@###### 131- 131*बुंदेली दोहा प्रतियोगिता- 131* संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ प्रदत्त विषय - ठाॅंड़े-बैठे प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* हीरा से क्वारे हते, हतो खूब आराम। ठाड़े बैठे बिद गये, परै राम सैं काम।। *** *प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *2* बनें बिजूके जो फिरें , घर-घर मूसर चंद। ठाॅंड़े-बैठे की उनें , बीद जात है दंद ।। *** -आशाराम वर्मा 'नादान',पृथ्वीपुरी *3* ठाॅड़े-बेठे का करौ ,समय बड़ौ अनमोल । बिना काम के बे बजह,इतै-उतै नइ ड़ोल ।। *** शोभाराम दाँगी 'इंदु',नदनवारा *4* कछू काम दिखतइ नईं,चाउत होय विकास। ढांडे बैठे गाँव में,दिन-दिन खेलत तास।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *5* वारे के न्यारे करै,बहू शहर की ऐन। ठाड़ें बैठें आ गई,अपनें मूड़ें ठेंन।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा( टीकमगढ़) *6* चन्दा भादों चौथ कौ,लख कें नंदकिशोर। ठाँड़े-बैठे बन गये, मणी स्यमन्तक चोर।। *** -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी *7* ठांडे़ बैठें मंथरा,भर आई ती कान। कैकइ जा जसरथ मिलीं,मांग लये वरदान।। *** - सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *8* ठाॅंड़ें -बैठें रीछ के,पकरे दोई पाॅंव। खाई गैरी नें मिलै,और दूर है गाॅंव।। *** भगवान सिंह लोधी"अनुरागी",हटा, दमोह *9* ठाॅंड़ें बैठें विद गयी,हती पराइ लराइ। चक्कर काटें कचहरी, प्रानन पे बन आइ।। -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *10* भिनकत भइ ऐजक बिदत , ठाँड़े़ बैठे आन | जब लबरा से कै धरौ , साँसी दइयौ ब्यान || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *11* बचपन बीतो गांव में ,उर वरगद की छांव। ठांडे बैठे का करों, खोज शहर में ठाव।। *** -शीलचंद जैन, टीकमगढ़ *12* नीम अथाई गइ कितै, कितै गऔ चौपाल। गाँवन में पूछत हते, ठाँड़े - बैठे हाल।। *** -विद्या चौहान, फरीदाबाद *13* निंदा चुगली औ नसा,बातन की बकवाद। ठाँड़ें बैठें तौ बनें,इनसें बड़े बिबाद।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा *14* घरवारी नै मूंढ़ में , लठ्ठ मसक दव काल । जितै घलो सो सूज गइ , ठाँड़ें बैठें खाल ।। ** -प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़ *15* ठाँढ़े-बैठें कब भओ, भैया ओरे काम। तब मिलबै रोटी हमें, घिस जाबै जब चाम।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *16* ठाड़े-बैठे बीत गे, उम्मर के पन चार । उन्नत का सोचो नहीं, सोये पाँव पसार ।। *** -सन्तोष कुमार 'माधव',कबरई,महोबा (उ.प्र.) *17* ठाँड़े- बैठे खुद्दरव, लेबो होत न ठीक। बात बड़न की मानियो, जो हों शुद्ध सटीक।। *** -अमर सिंह राय नौगांव *18* ठाँड़े-बैठें ना बनें, जग में कौनउ काम। मैनत की दम पै सदा,मिलत सुखद परिनाम।। *** -संजय श्रीवास्तव, मवई/दिल्ली *19* ठlड़े बैठे फस गये , भइया सोहन लाल। सुधर जाव मौका अबै , हमने कइती काल।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ ***#######@@@@@@@#### 130-बुंदेली दोहा प्रतियोगिता क्रमांक- 130 विषय - टिया संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* टिया न टारौ साँवरें , आऔ जमुना तीर | राधा भुँज रइ बूँट-सी , झिरत नैन से पीर || *** -सुभाष सिंघई , टीकमगढ़ *2* कतकी कौ करकें टिया , खाद बीज लै आय। किरपा करियौ राम जू , सब करजा चुक जाय।। *** -आशाराम राम वर्मा " नादान " पृथ्वीपुरी *3* टिया करौ सो आ गओ,लिपट तिरंगा गात। लाल शेरनी के तनक,ओ फौजी कर बात।। *** - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *4* टिया धरौ नवरात्र को, समय जान अनुकूल। पिया लिवाबै आयगें,रई खुशी सें फूल।। *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *5* गुरु बच्चन खों दै टिया ,सबक करो तुम याद । तब लौ कोऊ नै सुने ,का तुम्हरी फरियाद।। *** -हंसा श्रीवास्तव हंसा, भोपाल *6* विदा ब्याव सरकार को , टिया साव को होत । कातक चैत किसान खाँ , कभउँ मिली ना ओत ।। *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *7* टिया धरौ हर काम कौ,जीवन में का होय । हानि लाभ जीवन मरन, निश्चय तिथिया तोय ।। *** -शोभाराम दाँगी ,नदनवारा *8* टिरका रय बे तौ टिया,लगी हिया में आग। मन कौ खटका खात है,नसा न जाबै राग।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा(टीकमगढ़) *9* टिया दएँ भय दिन मुलक, करवैं नें बो काम । कासौं कउँ अब को सुने, पैलँइ लै लय दाम।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *10* पछताए का होत है, गए टिया सें चूक। मोय न आने लौट कें, कात समय दो टूक।। *** ~विद्या चौहान, फरीदाबाद *11* टिया पिया दे गए सखी,आवन की दिल खोल। कब आहे द्वारे तकत, आह पल अनमोल।। *** - हीरालाल विश्वकर्मा, बिजावर *12* दैकें टिया न टारियो, चाहे जाबे जान। बिना रीढ़ को आदमी, कऊँ न पाबे मान।। *** -संजय श्रीवास्तव* मवई,दिल्ली *13* चूको करजा कौ टिया, साव करत हैरान। मौसम कर रव जादती,है बदनाम किसान।। *** -गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी *14* अर्जुन ने धर दव टिया, जयद्रथ का है अंत। सूर्यास्त न हो सके,चेतन हैं भगवंत।। *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *15* देख -देख आँखै जरीं,भूक लगत ना प्यास। टिया न लछमन दै गये, लगी उर्मिलै आस।। *** -एस आर सरल, टीकमगढ़ *16* टिया सुरत कर गोपियां, रोवत होत अधीर। राह तकत नैना थके, प्रान जात बेपीर!। *** -रामलाल द्विवेदी, चित्रकूट *17* लेतन में नौने लगे, देतन में अब रोत। टिया रोजकें धरत जे, लगत एक दिन होत।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *18* टिया टिया बहु देत वे,करजा चुका न पात। सब संपत्ति खोई कुमग,अब रोबत दिन रात।। *** -परम लाल तिवारी,खजुराहो *19* टिया न कौनऊँ मौत की,कबै कौन विध आय। कोऊ कछु नइँ कै सकै,की की कब आ जाय।। *** -अमर सिंह राय, नौगांव #####@@###### 129- बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-129 दिनांक-9-9-2023 प्रदत्त विषय- कूका प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* मौत-बड़ी सुंदर जियै, टेरै कूका देत। जीवन तक तज देत वौ, कुर्रू दै भग लेत।। *** -बाबूलाल द्विवेदी, छिल्ला, ललितपुर *2* आपुस दूरी देख कें, कूका देत बुलाँय। भनक परै जो कान में,ऐंगर तुरतइँ आंँय।। *** -रामानंद पाठक, नैगुवां *3* लुक छिप कूका दे रये,सुनो नंद के लाल । राधा तुमको ढूंढती ,बाग बगीचा ताल।। *** -हंसा श्रीवास्तव हंसा, भोपाल *4* सबरो जीवन कड़ गओ,लीनो ना हरि नाम। कूका दै रव मरगटा,अबइ सुमर लो राम।। *** -आशा रिछारिया, निवाड़ी *5* कूका सूका दे रऔ, हतौ खेत चउं ओर। जन्मोत्सव घनश्याम को,बरसौ घन घनघोर।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *6* कूका दैकें कृष्ण ने, मटकी डारी फोर। सब सखियन नें घेर कें,पकरे माखन चोर ।। *** -सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *7* दुका-दुकौ हम खेलवै ,कूका देवै ऐन । दुके रात्ते कौनियां ,मस्कउँ करवै सैंन ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *8* भड़या पिड़ गय गाँव में, चकचइया है रात । कुकयाटों घेरउँ मचौ, कूका दें कुकयात।। *** -एस आर सरल, टीकमगढ़ *9* दै कें कूका कान में, साँमें ठाँड़ी आन। शकल देख घरबाइ की, गरें अटक गइ जान।। *** - अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *10* कौन कितै कैसौ करत , कौन कितै कब जात | कक्कौ कूका दै रयीं , कक्का काँख कुकात || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *11* कूका मारा कृष्ण ने l सुदामा को बुलाय ll माखन लेकर आ गये l दोनो छककर खायll *** -अंचल खरया, टीकमगढ़ 12* नेता कूका दै रये,जब अटको है काम। पैंल सुनी नै बाप की,अब कत सीताराम।। *** भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा, दमोह *13* काम करौ कल्यान के, रहौ खूब खुशहाल। सबखों जानें एक दिन, कूका दै जब काल।। *** -संजय श्रीवास्तव,मवई,😊दिल्ली *14* लुकाछिपी-कूका-छुबा,कंचा-गुली-गुलेल। आँखन में झूलत अबै,जे बचपन के खेल।। *** गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी *15* कूका दे- दे जात हैं, मोड़ा-मोड़ी आज। कुंभकरन की नींद में, सो रव सकल समाज।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *16* कूका देत उमर कढ़ी, नाहक भटके आज। करम बुरय तजियौ सभी, नौने करियौ काज।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *17* ज्वार खेतन में खडी,दाऊ खडे मचान। कूका से बातें करत,चिडियों पे है ध्यान।। *** -सुभाष बाळकृष्ण सप्रे, भोपाल (प्रवास-पुणे) *18* कूका देबें रोज के,धर गदिया पै प्रान। खेत रखायँ किसान औ,देस रखायँ जबान।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा *19* कूका दै रव मरघटा, तऊ समझ नै आय। नइँ लिहाज तनकउ उऐ, राह चलत बुलयाय।। *** - अमर सिंह राय, नौगांव ##########@@@@#######
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