(जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़)
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) भारत
मोबाइल- +91-9893520965
[12/08, 08:47] Rajeev Namdeo: *हिंदी दोहे- बिषय - मित्र*
मुख पोथी पर कर रहा,#राना उन्हें प्रणाम।
बुंदेली साहित्य के,मित्र यहाँ सुखधाम।।
मित्र गिराते हैं सदा, कटुता की सब छाप।
बातें करते प्रेम से,रखें न मन में ताप।।
#राना सबका मित्र है ,रखता सुंदर माप।
रखता भी सम्बंध है,आदर की दे छाप।।
हो जाता जिस मित्र को,अक्ल अजीर्ण रोग।
तब उसके उपचार का,बनता कभी न योग।।
नहीं मित्र सब एक से,है कुछ कड़वी बात।
पहले बनते खास है,फिर दे जाते घात।।
*** दिनांक -12.8.2028
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[12/08, 09:51] Dr Sharad Narayan Khare Mandla: हिंदी दोहे
मित्र
------
===================
नेहिल होती मित्रता,होती सदा पवित्र।
दुख में हाथ न छोड़ता,हो यदि सच्चा मित्र ।।
वही मित्र नित ख़ास है,कहता चोखी बात।
रहे संग बनकर सदा,सुखद एक सौगात।।
मित्र सुदामा-कृष्ण थे,पाया अति सम्मान।
रहा नहीं किंचित कपट,केवल मंगलगान।।
मित्र करे ग़ल्ती अगर,बतला देना भूल।
पर तजकर के साथ तुम,नहीं चुभाना शूल।।
रखना हित का भाव नित,रखना उर में प्रीति।
जय पाएँगे मित्र जब ,जगमग होगी रीति।।
-प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे
प्राचार्य
शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
मंडला,मप्र
(मो.9425484382)
---------------------------------------------
मौलिक व स्वरचित रचना
=======================
[12/08, 11:34] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,, हिन्दी दोहा ,, विषय,, मित्र ,,
**************************************
वानर पति रघुवर तिलक , जग में मित्र महान ।
दर्शक अनल "प्रमोद"हैं , पवन पुत्र हनुमान ।।
मित्र कृष्ण अर्जुन हुए , जिनकी कला प्रचंड ।
नृपति दिए मिट्टी मिला , जिनको चढ़ा घमंड ।।
मित्र कहाँ संसार में , सभी स्वार्थी लोग ।
करते विविध"प्रमोद"छल , फैला जग में रोग ।।
आज काल की मित्रता , रखती कपट विचार ।
बचकें रहें "प्रमोद"हम , बिगड़ रहा संसार ।।
मित्र भ्रात माता पिता , धन पत्नी सुत साथ ।
मिलें "प्रमोद"निरोग तन , हैं कृपालु रघुनाथ ।।
**************************************
,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
,, स्वरचित मौलिक ,,
[12/08, 14:27] Subhash Singhai Jatara: 12.8.25-मंगलवार-हिंदीं - मित्र
जहाँ भले सब मित्र हों , कहता सच्ची बात |
सदा निभाना जानिए , मिलकर यह सौगात ||
अच्छा मिलता मित्र जब , अच्छे हों दिन चार |
सत्संगति के पुष्प भी , खिलते हैं मनुहार ||
अच्छे रखना मित्र हैं , सोच रखो कुछ नूर |
दुर्जन का यदि साथ हो ,खट्टा मिले जरुर ||
त्रेता युग के राम जी , कहलाते भगवान |
जब भी बोले प्रेम से , कहें मित्र हनुमान ||
सही मित्र वह है नहीं , छोड़े जो सत्संग |
और वचन की आग से , झुलसा दें सब अंग ||
सुभाष सिंघई
[12/08, 14:56] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा हिन्दी विषय मित्र
1
राना जी के मित्र कवि, लिखते दोहा छन्द।
पढते बुन्देली पटल, पुलकित होते नन्द। ।
2
कृष्ण-सुदामा मित्र बन, जोडी ऐसी प्रीति।
सिखला दी संसार को, मित्र-धर्म की नीति। ।
3
दगा न देंगे मित्र को, जब तक तन में श्वास।
तन-मन -धन अर्पण उसे, नन्द मित्रता खास। ।
4
मित्र मण्डली साथ में, जाते चारों धाम।
आनंदित होते सभी, लेते हरि का नाम। ।
5
मित्र बहुत देखे मगर, मित्र वही है खास।
खाते हैं जो बाँट कर आधा-आधा ग्रास। ।
रामानन्द पाठक नन्द
[12/08, 15:16] Sr Saral Sir: *हिंदी दोहे विषय - मित्र*
*****************************
*शांत शील सज्जन सरल,*
*सच्चे संत समान।*
*जिनमें ए गुण सन्निहित ,*
*बे हैं मित्र महान ।।*
*विरले ही मिलते सरल,*
*सुंदर सच्चे मित्र।*
*अब ज्यादा बहुरूपिया ,*
*घटिया चाल चरित्र।।*
*हैं जिनके निर्मल हृदय,*
*उत्तम चाल चरित्र।*
*उपकारी सद्भाव हैं*,
*वही नेक हैं मित्र ।।*
*गुणी शील करुणा क्षमा,*
*सदभावों की खान।*
*नेक मित्र की है 'सरल' ,*
*यह सच्ची पहचान।।*
*ख़ल कामी द्वेषी कुटिल,*
*छदमी बेईमान।*
*इन्हें न मित्र बनाइए,*
*जे हैं गरल समान।।*
*पुष्प वृष्टि मुख से करें,*
*अंतर्मन से कंश।।*
*यही मित्र घातक 'सरल',*
*डुबा रहे हैं वंश।।*
************************-***
*एस आर सरल*
*टीकमगढ़*
[12/08, 16:18] Prabhudayal Shrivastava, Tikamgarh: हिन्दी दोहे विषय मित्र
भीतर बाहर एक हो, अनुकरणीय चरित्र।
मिल जाए सौभाग्य से, बना लीजिए मित्र।।
रावण का भाई सगा, बना राम का मित्र।
कैसी रही विडंबना , यह संयोग विचित्र।।
मोदी जी पछता रहे, बना ट्रंप को मित्र।
सज्जन समझा था जिसे, निकला धूर्त विचित्र।।
शुभ आचार विचार हों, सुखी रहे परिवार।
रखें मित्र वत पुत्र से, प्रेम भरा व्यवहार।।
करी सुशीला पीव से, प्रेम भरी मनुहार।
जा कर मिलिए मित्र से,वे हैं तारणहार।।
प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
[12/08, 16:33] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: हिन्दी दोहा
विषय -मित्र
1-आज समय कुछ और है,
निकल गया वह दौर।
कृष्ण सुदामा से नहीं,
मिलवे मित्र हर ठौर।।
2-बल अनुमान विचार के,
करवें सदा सहाय।
प्रगटें गुण अवगुण हरे,
सच्चा मित्र कहाय।
3-सतरिपु की करनी करे,
बृज अस मित्र न भाय।
सच कहना वह मित्र क्या,
मित्र समझ नहीं आय।।
4-बुंदेली साहित्य से ,
जुड़े जो मित्र तमाम।
सृजन करें साहित्य का,
बृज अति उत्तम काम।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[12/08, 16:45] Gokul Prasad Yadav Budera: हिन्दी दोहे,विषय शब्द-मित्र
*********************
खूनी रिश्ते से पृथक,
रिश्ता परम पवित्र।
जिसको संज्ञाएँ मिलीं,
सखा सहेली मित्र।।
****
मात-पिता गुरु मित्र-अरि,
भ्रातृ प्रजा-जन वाम।
संबंधों की सौम्यता,
सिखा गये श्रीराम।।
****
लिखने बैठा 'मित्र' पर,
कुछ विचार स्वच्छंद।
कृष्ण-सुदामा लिख हुई,
कलम बावरी बंद।।
****
कुछ सामाजिक मित्र हैं,
कुछ साहित्यिक मित्र।
जिनकी संगति से हुआ,
'गोकुल' धवल चरित्र।।
****
अवगुण भाषे कान में,
गुण गाये ले ढोल।
सम्मुख रहे विपत्ति में,
मित्र वही अनमोल।।
*********************
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[12/08, 17:27] Dr. Renu Shrivastava Bhopal: दोहे विषय मित्र
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
नाम मित्रता का सुना,
अर्जुन कृष्ण महान।
भगवद्गीता में भरा,
सच्चा ज्ञान सुजान।।
फीके रिश्ते खून के,
जब हों त्यागी मित्र।
रामायण में दिख रहे,
कई मित्रता चित्र।।
मेरी सच्ची मित्र है,
प्यारी सुषमा जैन।
कष्ट मुझे होता कभी,
उसे न पड़ता चैन।।
मित्र यदि अच्छा मिला,
जीवन है खुशहाल।
बुरे मित्र को झेलना,
बड़ा बुरा है हाल।।
सास बहू भी मित्र हैं,
बनकर देखो आप।
सुखद रहे परिवार सब,
मिटें सभी संताप।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
स्वरचित मौलिक
[12/08, 17:57] Taruna khare Jabalpur N: मित्र, शब्द पर दोहे
ऐसा मित्र बनाइए,सदा निभाए साथ।
सुख-दुख में भी थामकर,रखे आपका हाथ।।
गलत काम से आपको,लेता सदा बचाय।
सच्चा होता मित्र जो,सच की राह दिखाय।।
बसा सुदामा के हृदय,अनुपम मनहर चित्र।
जिनके थे श्रीकृष्ण जी,सबसे सच्चे मित्र।।
सज्जनता के गुण रहें,निर्मल होय चरित्र।
ऐसे ही इंसान को, रखना अपना मित्र।।
अवगुण चित में न रखे,देता तुरत बिसार।
मित्र सरल सच्चा रहे,सदा लुटाए प्यार।।
तरुणा खरे'तनु'
जबलपुर
[12/08, 18:43] Aasharam Nadan Prathvipur: हिंदी दोहे -मित्र
(१)
मित्र समझते अब नहीं, आज मित्र की पीर।
कृष्ण सुदामा सम नहीं , कोई दिखे नजीर।।
(२)
वशीभूत हैं स्वार्थ के , मित्र बंधु परिवार।
परम मित्र परमात्मा , मिथ्या है संसार।।
(३)
सुख -दुख में जो साथ दे ,निर्मल रखे चरित्र।
बदचाली निर्लज्ज को , नहीं बनाएं मित्र।।
(४)
मित्र अगर कपटी मिले , और लालची भूप।
संगति लोभी नीच की , हैं कालिख के कूप।।
(५)
परम मित्र परमात्मा , सबका रखता ध्यान।
समदर्शी सबके प्रभू , कहते कवि "नादान"।।
आशाराम वर्मा " नादान " पृथ्वीपुर
(स्वरचित) 12/08/2025
[12/08, 19:06] Aasharam Nadan Prathvipur: हो जाता जिस मित्र को अक्ल अजीर्ण रोग।
तब उसके उपचार का , बनता कभी न योग।।
शानदार दोहा राना जी हार्दिक बधाई
🙏🙏
[12/08, 21:39] Rajeev Namdeo: *नमन जय बुंदेली साहित्य समूह*
#दिनाँक ---12.8.2025/ मंगलवार
#हिन्दी दोहा दिवस
#विषय ---मित्र
1.
साथ सभी जब छोड़ दें , तब भी दे जो साथ।
मित्र वही सच्चा खरा ,ऊँचा रखता माथ ।।
2.
दुख को आधा कर सके , तब ही सच्ची प्रीत ।
दुगुना कर आनंद को , खुश होता है मीत ।।
3.
मित्र मिले ज्ञानी अगर , बढ़ता अपना ज्ञान ।
ज्ञान बढ़े तो मान भी , मित्र बने वरदान ।।
4.
बढ़ती तब ही मित्रता , जब विश्वास अधार ।
अविश्वास संदेह से , टूटें रिश्ते तार ।।
5.
बातों से होता नहीं , खरा मित्र आगाज ।
सजते अच्छे भाव से , श्रेष्ठ मित्रता साज ।।
*************स्वरचित/मौलिक *********
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी (म. प्र . )
[12/08, 21:46] shobharamdangi54Com: शोभारामदाँगी "मित्र" पर हिन्दी
दोहा (253) (01)
मित्र कृष्ण सा चाहिए,छोड़े नहि जो साथ ।
कहां रंक राजा कहां,"इन्दु"नवाए माथ ।।
(02)
गले लगाया राम नें,केवट मित्र महान ।
गंगा पार कराइये,"इन्दु"लेव वरदान ।।
(03)
होय परीक्षा
चार की,धर्म मित्र अरु नारि ।
धीरज "दाँगी" धारिए,आफत समय विचारि ।।
(04)
मित्र अधिक तर लालची,कपटी छली कुचाल ।
बड़े भाग्य सेआजभी,सच्ची रखते चाल ।।
(05)
कृष्ण-सुदामा सम वनों, समदर्शी सद्भाव ।
तब निभती है मित्रता,"इन्दु"यही स्वभाव ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[12/08, 08:47] Rajeev Namdeo: *हिंदी दोहे- बिषय - मित्र*
मुख पोथी पर कर रहा,#राना उन्हें प्रणाम।
बुंदेली साहित्य के,मित्र यहाँ सुखधाम।।
मित्र गिराते हैं सदा, कटुता की सब छाप।
बातें करते प्रेम से,रखें न मन में ताप।।
#राना सबका मित्र है ,रखता सुंदर माप।
रखता भी सम्बंध है,आदर की दे छाप।।
हो जाता जिस मित्र को,अक्ल अजीर्ण रोग।
तब उसके उपचार का,बनता कभी न योग।।
नहीं मित्र सब एक से,है कुछ कड़वी बात।
पहले बनते खास है,फिर दे जाते घात।।
*** दिनांक -12.8.2028
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[12/08, 09:51] Dr Sharad Narayan Khare Mandla: हिंदी दोहे
मित्र
------
===================
नेहिल होती मित्रता,होती सदा पवित्र।
दुख में हाथ न छोड़ता,हो यदि सच्चा मित्र ।।
वही मित्र नित ख़ास है,कहता चोखी बात।
रहे संग बनकर सदा,सुखद एक सौगात।।
मित्र सुदामा-कृष्ण थे,पाया अति सम्मान।
रहा नहीं किंचित कपट,केवल मंगलगान।।
मित्र करे ग़ल्ती अगर,बतला देना भूल।
पर तजकर के साथ तुम,नहीं चुभाना शूल।।
रखना हित का भाव नित,रखना उर में प्रीति।
जय पाएँगे मित्र जब ,जगमग होगी रीति।।
-प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे
प्राचार्य
शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
मंडला,मप्र
(मो.9425484382)
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मौलिक व स्वरचित रचना
=======================
[12/08, 11:34] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,, हिन्दी दोहा ,, विषय,, मित्र ,,
**************************************
वानर पति रघुवर तिलक , जग में मित्र महान ।
दर्शक अनल "प्रमोद"हैं , पवन पुत्र हनुमान ।।
मित्र कृष्ण अर्जुन हुए , जिनकी कला प्रचंड ।
नृपति दिए मिट्टी मिला , जिनको चढ़ा घमंड ।।
मित्र कहाँ संसार में , सभी स्वार्थी लोग ।
करते विविध"प्रमोद"छल , फैला जग में रोग ।।
आज काल की मित्रता , रखती कपट विचार ।
बचकें रहें "प्रमोद"हम , बिगड़ रहा संसार ।।
मित्र भ्रात माता पिता , धन पत्नी सुत साथ ।
मिलें "प्रमोद"निरोग तन , हैं कृपालु रघुनाथ ।।
**************************************
,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
,, स्वरचित मौलिक ,,
[12/08, 14:27] Subhash Singhai Jatara: 12.8.25-मंगलवार-हिंदीं - मित्र
जहाँ भले सब मित्र हों , कहता सच्ची बात |
सदा निभाना जानिए , मिलकर यह सौगात ||
अच्छा मिलता मित्र जब , अच्छे हों दिन चार |
सत्संगति के पुष्प भी , खिलते हैं मनुहार ||
अच्छे रखना मित्र हैं , सोच रखो कुछ नूर |
दुर्जन का यदि साथ हो ,खट्टा मिले जरुर ||
त्रेता युग के राम जी , कहलाते भगवान |
जब भी बोले प्रेम से , कहें मित्र हनुमान ||
सही मित्र वह है नहीं , छोड़े जो सत्संग |
और वचन की आग से , झुलसा दें सब अंग ||
सुभाष सिंघई
[12/08, 14:56] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा हिन्दी विषय मित्र
1
राना जी के मित्र कवि, लिखते दोहा छन्द।
पढते बुन्देली पटल, पुलकित होते नन्द। ।
2
कृष्ण-सुदामा मित्र बन, जोडी ऐसी प्रीति।
सिखला दी संसार को, मित्र-धर्म की नीति। ।
3
दगा न देंगे मित्र को, जब तक तन में श्वास।
तन-मन -धन अर्पण उसे, नन्द मित्रता खास। ।
4
मित्र मण्डली साथ में, जाते चारों धाम।
आनंदित होते सभी, लेते हरि का नाम। ।
5
मित्र बहुत देखे मगर, मित्र वही है खास।
खाते हैं जो बाँट कर आधा-आधा ग्रास। ।
रामानन्द पाठक नन्द
[12/08, 15:16] Sr Saral Sir: *हिंदी दोहे विषय - मित्र*
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*शांत शील सज्जन सरल,*
*सच्चे संत समान।*
*जिनमें ए गुण सन्निहित ,*
*बे हैं मित्र महान ।।*
*विरले ही मिलते सरल,*
*सुंदर सच्चे मित्र।*
*अब ज्यादा बहुरूपिया ,*
*घटिया चाल चरित्र।।*
*हैं जिनके निर्मल हृदय,*
*उत्तम चाल चरित्र।*
*उपकारी सद्भाव हैं*,
*वही नेक हैं मित्र ।।*
*गुणी शील करुणा क्षमा,*
*सदभावों की खान।*
*नेक मित्र की है 'सरल' ,*
*यह सच्ची पहचान।।*
*ख़ल कामी द्वेषी कुटिल,*
*छदमी बेईमान।*
*इन्हें न मित्र बनाइए,*
*जे हैं गरल समान।।*
*पुष्प वृष्टि मुख से करें,*
*अंतर्मन से कंश।।*
*यही मित्र घातक 'सरल',*
*डुबा रहे हैं वंश।।*
************************-***
*एस आर सरल*
*टीकमगढ़*
[12/08, 16:18] Prabhudayal Shrivastava, Tikamgarh: हिन्दी दोहे विषय मित्र
भीतर बाहर एक हो, अनुकरणीय चरित्र।
मिल जाए सौभाग्य से, बना लीजिए मित्र।।
रावण का भाई सगा, बना राम का मित्र।
कैसी रही विडंबना , यह संयोग विचित्र।।
मोदी जी पछता रहे, बना ट्रंप को मित्र।
सज्जन समझा था जिसे, निकला धूर्त विचित्र।।
शुभ आचार विचार हों, सुखी रहे परिवार।
रखें मित्र वत पुत्र से, प्रेम भरा व्यवहार।।
करी सुशीला पीव से, प्रेम भरी मनुहार।
जा कर मिलिए मित्र से,वे हैं तारणहार।।
प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
[12/08, 16:33] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: हिन्दी दोहा
विषय -मित्र
1-आज समय कुछ और है,
निकल गया वह दौर।
कृष्ण सुदामा से नहीं,
मिलवे मित्र हर ठौर।।
2-बल अनुमान विचार के,
करवें सदा सहाय।
प्रगटें गुण अवगुण हरे,
सच्चा मित्र कहाय।
3-सतरिपु की करनी करे,
बृज अस मित्र न भाय।
सच कहना वह मित्र क्या,
मित्र समझ नहीं आय।।
4-बुंदेली साहित्य से ,
जुड़े जो मित्र तमाम।
सृजन करें साहित्य का,
बृज अति उत्तम काम।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[12/08, 16:45] Gokul Prasad Yadav Budera: हिन्दी दोहे,विषय शब्द-मित्र
*********************
खूनी रिश्ते से पृथक,
रिश्ता परम पवित्र।
जिसको संज्ञाएँ मिलीं,
सखा सहेली मित्र।।
****
मात-पिता गुरु मित्र-अरि,
भ्रातृ प्रजा-जन वाम।
संबंधों की सौम्यता,
सिखा गये श्रीराम।।
****
लिखने बैठा 'मित्र' पर,
कुछ विचार स्वच्छंद।
कृष्ण-सुदामा लिख हुई,
कलम बावरी बंद।।
****
कुछ सामाजिक मित्र हैं,
कुछ साहित्यिक मित्र।
जिनकी संगति से हुआ,
'गोकुल' धवल चरित्र।।
****
अवगुण भाषे कान में,
गुण गाये ले ढोल।
सम्मुख रहे विपत्ति में,
मित्र वही अनमोल।।
*********************
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[12/08, 17:27] Dr. Renu Shrivastava Bhopal: दोहे विषय मित्र
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
नाम मित्रता का सुना,
अर्जुन कृष्ण महान।
भगवद्गीता में भरा,
सच्चा ज्ञान सुजान।।
फीके रिश्ते खून के,
जब हों त्यागी मित्र।
रामायण में दिख रहे,
कई मित्रता चित्र।।
मेरी सच्ची मित्र है,
प्यारी सुषमा जैन।
कष्ट मुझे होता कभी,
उसे न पड़ता चैन।।
मित्र यदि अच्छा मिला,
जीवन है खुशहाल।
बुरे मित्र को झेलना,
बड़ा बुरा है हाल।।
सास बहू भी मित्र हैं,
बनकर देखो आप।
सुखद रहे परिवार सब,
मिटें सभी संताप।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
स्वरचित मौलिक
[12/08, 17:57] Taruna khare Jabalpur N: मित्र, शब्द पर दोहे
ऐसा मित्र बनाइए,सदा निभाए साथ।
सुख-दुख में भी थामकर,रखे आपका हाथ।।
गलत काम से आपको,लेता सदा बचाय।
सच्चा होता मित्र जो,सच की राह दिखाय।।
बसा सुदामा के हृदय,अनुपम मनहर चित्र।
जिनके थे श्रीकृष्ण जी,सबसे सच्चे मित्र।।
सज्जनता के गुण रहें,निर्मल होय चरित्र।
ऐसे ही इंसान को, रखना अपना मित्र।।
अवगुण चित में न रखे,देता तुरत बिसार।
मित्र सरल सच्चा रहे,सदा लुटाए प्यार।।
तरुणा खरे'तनु'
जबलपुर
[12/08, 18:43] Aasharam Nadan Prathvipur: हिंदी दोहे -मित्र
(१)
मित्र समझते अब नहीं, आज मित्र की पीर।
कृष्ण सुदामा सम नहीं , कोई दिखे नजीर।।
(२)
वशीभूत हैं स्वार्थ के , मित्र बंधु परिवार।
परम मित्र परमात्मा , मिथ्या है संसार।।
(३)
सुख -दुख में जो साथ दे ,निर्मल रखे चरित्र।
बदचाली निर्लज्ज को , नहीं बनाएं मित्र।।
(४)
मित्र अगर कपटी मिले , और लालची भूप।
संगति लोभी नीच की , हैं कालिख के कूप।।
(५)
परम मित्र परमात्मा , सबका रखता ध्यान।
समदर्शी सबके प्रभू , कहते कवि "नादान"।।
आशाराम वर्मा " नादान " पृथ्वीपुर
(स्वरचित) 12/08/2025
[12/08, 19:06] Aasharam Nadan Prathvipur: हो जाता जिस मित्र को अक्ल अजीर्ण रोग।
तब उसके उपचार का , बनता कभी न योग।।
शानदार दोहा राना जी हार्दिक बधाई
🙏🙏
[12/08, 21:39] Rajeev Namdeo: *नमन जय बुंदेली साहित्य समूह*
#दिनाँक ---12.8.2025/ मंगलवार
#हिन्दी दोहा दिवस
#विषय ---मित्र
1.
साथ सभी जब छोड़ दें , तब भी दे जो साथ।
मित्र वही सच्चा खरा ,ऊँचा रखता माथ ।।
2.
दुख को आधा कर सके , तब ही सच्ची प्रीत ।
दुगुना कर आनंद को , खुश होता है मीत ।।
3.
मित्र मिले ज्ञानी अगर , बढ़ता अपना ज्ञान ।
ज्ञान बढ़े तो मान भी , मित्र बने वरदान ।।
4.
बढ़ती तब ही मित्रता , जब विश्वास अधार ।
अविश्वास संदेह से , टूटें रिश्ते तार ।।
5.
बातों से होता नहीं , खरा मित्र आगाज ।
सजते अच्छे भाव से , श्रेष्ठ मित्रता साज ।।
*************स्वरचित/मौलिक *********
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी (म. प्र . )
[12/08, 21:46] shobharamdangi54Com: शोभारामदाँगी "मित्र" पर हिन्दी
दोहा (253) (01)
मित्र कृष्ण सा चाहिए,छोड़े नहि जो साथ ।
कहां रंक राजा कहां,"इन्दु"नवाए माथ ।।
(02)
गले लगाया राम नें,केवट मित्र महान ।
गंगा पार कराइये,"इन्दु"लेव वरदान ।।
(03)
होय परीक्षा
चार की,धर्म मित्र अरु नारि ।
धीरज "दाँगी" धारिए,आफत समय विचारि ।।
(04)
मित्र अधिक तर लालची,कपटी छली कुचाल ।
बड़े भाग्य सेआजभी,सच्ची रखते चाल ।।
(05)
कृष्ण-सुदामा सम वनों, समदर्शी सद्भाव ।
तब निभती है मित्रता,"इन्दु"यही स्वभाव ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[29/07, 08:11] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,, हिन्दी दोहा,, विषय,, मरघट ,,
*************************************
महामृत्युंजय त्र्यंबकं , महादेव शिव रुद्र ।
मरघट चले "प्रमोद" पर , मत होना प्रभु कुद्र ।।१।।
मरघट पर होकर खड़े , समझे मानुष तथ्य ।
कहने लगे "प्रमोद"सब , राम नाम है सत्य ।।२।।
विश्वनाथ नागेश का , है मरघट में वास ।
शिवम सुंदरम सत्यम , का"प्रमोद"विश्वास ।।३।।
अंतिम क्रिया शरीर की , धरती मांँ की गोद ।
मरघट में होने विलय , जग से चला "प्रमोद" ।।४।।
प्रिया प्रेम पथ गामिनी , के बिछड़न का दर्द ।
मरघट में मिट जाएगा , जब "प्रमोद" हो सर्द ।।५।।
पुष्प प्रेम का प्रियतमा , देना मरघट आन ।
हँसता जाये "प्रमोद"तन , सुनकर तेरा ब्यान ।।६।।
मरघट में मिट जाएंगे , सब"प्रमोद"संताप ।
निशि-वासर मानुष करें , जग में विविध विलाप ।।७ ।।
*************************************
,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
,, स्वरचित मौलिक ,,२९,७,२०२५
[29/07, 08:21] Rajeev Namdeo: *हिंदी दोहे बिषय- मरघट*
धधक रही ज्वाला कहे, मैं हूँ मुक्ति धाम।
मरघट मेरा गेह है,मैं हूँ अंतिम शाम।।
#राना मरघट गेह है, जहाँ मृत्यु का वास।
जहाँ जले यह तन वहाँ ,है मुकाम कुछ खास।।
जग नश्वर ही जानिए,देता मरघट ज्ञान।
मन वैरागी कुछ बने, सब समझे इंसान।।
मरघट ने देखे सदा,अच्छे-अच्छे वीर।
आए खाली हाथ है,छोड़ सभी तकदीर।।
मरघट से भय मत रखो,#राना लो संज्ञान।
शरण मिले आगे यहाँ,शिव शंकर भगवान।।
*** दिनांक -29.7.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[29/07, 09:25] Pradeep Khare Patrkar Tikamgarh: बिषय++++++मरघट
*
मरघट मुक्ति धाम है,
जहां बसत हैं राम।
भोले तन धूनी लगा,
जपत प्रभू का नाम।।
*
जीते जी मरघट लखौ,
देखौ कैसें जात।
लाखन की माया इतै,
काउ न कामें आत।।
*
जौ जग काजर कोठरी,
इतै भौत हैं दंद।
बढ़े भाग मरघट मिलो,
छूटे जग के फंद।।
*
काम, क्रोध, माया प्रबल,
बैर सबइ सैं लेत।
शिव मरघट के देव हैं,
सबखौं मुक्ति देत।।
*
मरन- मौत जीवन इतै,
ईश्वर सबखौं देत।
मरघट यैसौ धाम है,
सबइ कष्ट हर लेत।।
*प्रदीप खरे, मंजुल*
[29/07, 12:01] Subhash Singhai Jatara: 29.7.25-मंगलवार-हिंदी- मरघट
मरघट की कहती चिता , हुआ आज अवसान |
होगें अब तो राख सब ,पले हुए अरमान ||
अंतिम मरघट केन्द्र है ,आता हर इंसान |
होता खाली हाथ भी, चुप रहते अरमान ||
जलती रहती है चिता ,मरघट करता हर्ष |
कहता मैं संसार को , सदा एक प्रादर्श ||
आया खाली हाथ है , जाना खाली हाथ |
जन्म लिया था गेह में, मरघट अंतिम साथ ||
ऐसी बैसी है नहीं , यह मरघट की राख |
अच्छे-अच्छे शूरमा , यहां हुए हैं खाक ||
सुभाष सिंघई
[29/07, 13:12] Vidhaya Chohan Faridabad: हिन्दी दोहे
विषय- मरघट
१)
साँसों की पतवार ले, चलती जीवन नाव।
मिलता उसके लक्ष्य को, मरघट अंत पड़ाव।।
२)
राजा हो या रंक हो, साधु कुटिल या नेक।
मरघट जा कर देखिए, सबकी शैया एक।।
३)
रुतबा पैसा घर ज़मीं, छूटा सब सामान।
छोड़ गया अभिमान भी, मरघट में इंसान।।
४)
बँधे साँस की डोर से, जीवन के दिन चार।
मरघट मृत्यु मोक्ष का, सत्य करो स्वीकार।।
५)
दुर्योधन के कर्म ने, पाप किए थे लाख।
मरघट में आख़िर बना, मुट्ठी भर वो राख।।
६)
मरघट तक जाते सभी, अर्थी को दे हाथ।
राम नाम की गूँज ही, आगे जाती साथ।।
~विद्या चौहान
[29/07, 13:37] Taruna khare Jabalpur N: मरघट, शब्द पर दोहे
मरघट है इंसान का,अंतिम एक पड़ाव।
अकड़ वहां चलती नहीं,लकड़ी सा जल जाव।।
जीवन भर करते रहे ,छोटों का अपमान।
मरघट में जाकर हुए, छोटे बड़े समान।।
मरघट में धूनी रमा,बैठे भोलेनाथ।
भूत-प्रेत रहते सदा,शिव शंभू के साथ।।
महाकाल उज्जैन के,पूज रहा संसार।
निस दिन मरघट भस्म से,होता है श्रृंगार।।
चाहे राजा रंक हो,चाहे पीर फकीर।
मरघट में जलना लिखा,है सबकी तकदीर।।
तरुणा खरे'तनु'
जबलपुर
[29/07, 15:36] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा हिन्दी विषय मरघट
1
सब को जाना जिस जगह, छोड़ स्वजन धन धाम।
जग का अंतिम सत्य है, मरघट उस का नाम। ।
2
बडभागी मरघट भला, ऊँची वाकी साख।
चढती काशीनाथ को, ताजी ताकी राख। ।
3
मरघट का कर ले लिया, निज सुत माना अन्य।
सत्य मार्ग त्यागा नहीं, हरिश्चंद्र नृप धन्य। ।
4
घूँघट पनघट साथ हैं, मरघट इन में भिन्न।
दाह क्रिया शव की हुई, बचै न कोई चिन्न।।
5
मरघट को जन देख कर, मन में करे विचार।
सत्य यही है आखिरी वाकी सब वेकार। ।
रामानन्द पाठक नन्द
[29/07, 19:31] Sr Saral Sir: बुंदेली दोहा विषय -मरघट
नश्वर है सारा जगत, व्यर्थ परस्पर बैर।
अंतकाल में आखिरी,सबकी मरघट सैर।।
ममता माया मोह है,जब तक प्राण शरीर।
मरघट पर सब शून्य हैं,राजा रंक फकीर।।
जीवन बड़ा विचित्र है,माया का संसार।
श्वास आखिरी टूटटे, छूटे सब घर द्वार।।
प्राणहंस इस लोक से,उड़े कहीं परलोक।
मृतकाया मरघट जला,लोग मनाते शोक।।
एस आर सरल
टीकमगढ़
[29/07, 22:30] shobharamdangi54Com: शोभारामदाँगी बिषय-"मरघट" हिन्दी
दोहा(251)19/07/ 025
(01)
एकदिवस"दाँगी"सहित,राजा रंक फकीर ।
मरघट मुक्ती धाम पर,जाए अधम शरीर ।।
(02)
क्षिति जल पावक तत्व ये,"दाँगी"
गगन समीर ।
पांचों तत्वों से बना,मरघट जाए शरीर ।।
(03)
मरघट ताजी राख को,लेते शिव अवधूत ।
इन्दु"साथ में"जायगा,केवल सत्य सबूत ।।
(04)
मरघट कि जो चिता जले,कहती तेरा अंत ।
तेरह दिन ही याद हो,"दाँगी" कहते संत ।।
(05)
मरघट वह स्थान है,जहां होय अवसान ।
मुट्ठी भरउस राखमें,रहें"इन्दु"गुण गान ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[1] Jai Hind Singh Palera:
//1//
दिल्ली के दरवार में,भगदड़ मची अपार।
काॅंप रहा है आज तो, राजनीति दरवार।।
//2//
राजनीति व्यापार है,थामें जो भी डोर।
विजय द्वार से हो गई,संध्या प्यारी भोर।।
//3//
चक्कर चौरासी सभी , राजनीति के पास।
स्वर्ग-नर्क दोनों मिलें,होता है आभास।।
//4//
राजनीति में सफल जो ,होते मालामाल।
असफल सारे झेलते,पाते सजा अकाल।।
//5//
राजनीति में संत भी,अब कर रहे कमाल।
खलबल मची समाज में,ऐसा करें धमाल।।
--जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा(टीकमगढ़)
***
[2] Subhash Singhai Jatara:
सभ्य आचरण हैं कहाँ ?, सेवा भावी योग |
राजनीति करने लगे, दो कोड़ी के लोग ||
राजनीति में देख लो , क्या होता है आज |
आज साथ जो चल रहे , वह कल धोखे बाज ||
राजनीति में चल रहे , भाषण लच्छेदार |
जनता का हक मारकर , लेते नहीं डकार ||
राजनीति करने लगी , वोटों का व्यापार |
और लूटने सम्पदा , बना लिया दरबार ||
राजनीति - बगुला भगत , साडू भाई नाम |
हाथ जोड़ते लोग सब , करते इन्हें प्रणाम ||
राजनीति में छूट अब , खूब मचाओं लूट |
जनता को करके भ्रमित , डालो उनमें फूट ||
-सुभाष सिंघई, जतारा
***
[3] Rajeev Namdeo 'Rana lidhori'
राजनीति #राना करो,पर हों ऐसे काम।
युग में होवें आपका,सभी दिशा में नाम।।
अब नेता के नाम पर,दिखते खोटे काम।
इसीलिए तो हो गई,राजनीति बदनाम।।
चमचा पाते लाभ है,राजनीति मैदान।
पर गरीब पिसते रहें ,करें हिंद जय गान।।
जनता के उत्थान की,हर दिन होती बात।
राजनीति के नाम पर,मिलती उसको घात।।
राजनीति परिवार को,बहुत करे आबाद।
करें बपोती लोग हैं,जैसे हो जयजाद।।
*** दिनांक -22.7.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
***
[4] Promod Mishra Just Baldevgarh
राजनीति के वाण से , जनता हुई शिकार ।
शिक्षा का सबसे बड़ा , है "प्रमोद" व्यापार ।।
राजनीति की आड़ में , करते लोग कुकर्म ।
दलपति लगे घसीटने , सत्य सनातन धर्म ।।
राष्ट्र विरोधी राष्ट्र में , बसें विदेशी लोग ।
संरक्षण उनको मिला , राजनीति में रोग ।।
अब जनता लड़ने लगी , जाति धर्म के नाम ।
राजनीति की जंग में , करते उल्टे काम ।।
राजनीति के चक्र में , पिसता आज गरीब ।
नेता बैठें स्वर्ग में , कहते लिखा नसीब ।।
राजनीति की वजह से , लगे बदलने ढंग ।
होगी भारत में कभी , विकट आपसी जंग ।।
*****
-प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ (मध्य प्रदेश) *****
[5] Aasharam Nadan Prathvipur:
(१)
फैल गया चहुं ओर है , देखो ऐसा रोग।
बदले की करने लगे, राजनीति अब लोग।।
(२)
राजनीति सीखी नहीं , नेता बने तमाम।
विधि मंदिर में बैठकर , करते हैं आराम।।
(३)
राजनीति की ओट ले , नेता रचते स्वांग।
इक दूजे की स्वार्थ बस , खींच रहे हैं टांग।।
(४)
राजनीति उसकी सफल, गुप्त रखे जो राज।
वादा करके दे दबा , जनता की आवाज।।
(५)
राजनीति करने लगे , छुट भैया "नादान "।
जगह जगह पर हो रहा,खादी का अपमान।।
--- आशाराम वर्मा "नादान"पृथ्वीपुर
***
[6] Dr. Renu Shrivastava Bhopal:
राजनीति तो खेल है, खेलें चतुर सुजान।
घूमे पहिया समय का, सफल नीति यह जान।।
वोट मांगने में रहे, सदा सफल वे लोग ।
नेता वे कहलायेंगे, राजनीति के रोग।।
राजनीति ये वोट की, ऐसी फैली आज।
युवा वर्ग सब रो रहे, काम मिले ना काज।।
दशकंदर से पूंछते, राजनीति का ज्ञान।
राम लखन को पता था, ये है ज्ञान सुजान।।
राजनीति एक विषय है, बस सैद्धांतिक मूल।
व्यवहारिक यदि करोगे, बिछे रास्ते शूल।।
✍️ डॉ. रेणु श्रीवास्तव भोपाल
***
[7] shobharam dangi
(01)
राजनीति सबसे बुरी,दुश्मन बनते शीघ्र ।
"दाँगी"रहते दूर ही,भले आज हो तीव्र ।।
(02)
राजनीति बिन मिले नहि,कोई कठिन मुकाम ।
"दाँगी"हम पर बीत गइ,नेतन करें प्रणाम् ।।
(03)
राजनीति इतनी प्रबल,होते नहि कुछ काम ।
बैठे असली लालची,"दाँगी"देते दाम ।।
(04)
पुलिस प्रशासन भी मुड़ें,राजनीति की ओर ।
बड़े-बड़े अफसर जहां,"दाँगी" तकते कोर ।।
(05)
राजनीति में फूँकते,अपना-अपना शंख ।
"दाँगी"पीछे उड़ चलें,जहां-तहा बिन पंख ।।
(06)
राजनीति के दाव से,खेलत चौपर पंच ।
"दाँगी"बाजी मारते,बैठे हिक्का टंच ।।
***-शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा
[8] Taruna khare Jabalpur
राजनीति जंजाल है,जो इसमें फंस जाय।
लोभ मोह के फेर से,बाहर निकल न पाय।।
राजनीति में पड़ रहे,कैसे कैसे लोग।
काम धाम सब छोड़कर, करते हैं सुख भोग।।
नेता जी करने लगे,राजनीति का खेल।
अपनी ही करतूत से,जाते हैं फिर जेल।।
राजनीति की चाक में,पिसते सदा गरीब।
राजा कोई भी बने,बदले नहीं नसीब।।
राजनीति के खेल में,होते बड़े प्रपंच।
बचते नहीं कलंक से,नेता हों या पंच।।
-तरुणा खरे'तनु' जबलपुर
[9] Prabhudayal Shrivastava,
राजनीति के क्षेत्र में, जो दिखते थे दक्ष।
कभी नहीं लेते दिखे, हमें न्याय का पक्ष।।
राजनीति चाणक्य से, सीखो मेरे यार।
नन्द वंश का कर दिया,सारा बंटाढार।
कहीं नहीं अब दीखते, विदुर सरीखे लोग।
राजनीति करते रहे , दिया सदा सहयोग।।
राजनीति का पीटते , रहते थे जो ढोल।
अब उनकी खुलने लगी, धीरे धीरे पोल।।
त्याग सत्य निष्ठा नहीं , और न सेवा भाव।
राजनीति के क्षेत्र में ,हुआ बहुत बदलाव।।
-प्रभुदयाल श्रीवास्तव 'पीयूष' टीकमगढ़
[10] Brijbhushan Duby,Baksewaha:
सूर्पनखा कहने लगी, सुनले रावण भ्रात।
राजनीति बिन कब चले,मानो मेरी बात।।
राजनीति के खेल में,क्या से क्या हो जाय।
बृजभूषण देखें सुनें,नहीं समझ में आय।।
राज धर्म पालन करें, राजनीति अपनाय।
बृजभूषण विश्वास की,जग में अलख जगाय।।
राजनीति कहते किसे, ये ही नही सुझात।
राजनीति करने लगे, नेता बने दिखात।।
प्रतिनिधि बनने को चले,करते नहीं न्याय।
राजनीति की आड़ में,नीती किसे सुहात।।
-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
***
[11] Dr R B Patel Chaterpur:
01
राजनीति में लोग जो ,करते उत्तम काम ।
धन वैभव यश भोगते , ऊंचा होता नाम ।
02
नीति न्याय का ध्यान कर ,काम करें जो लोग ।
राजनीति उत्तम प्रथा ,धन वैभव यश भोग ।
03
लोभी लंपट लालची , काम करें अनजान ।
राजनीति ना सोचते , नहीं किसी का ध्यान ।
04
राजनीति में जो घुसे , करें अनैतिक काम ।
सत्य निष्ठ बनते दिखें , खूब कमावे दाम ।
05
काम क्रोध मद लोभ जो , फसते आठों याम । राजनीति में पैठकर , खूब कमाते नाम ।।
06
शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में , राजनीति घुस जाय । नीति न्याय नियमन सभी ,जरा मूर से खाय ।।
-डॉ. आर. बी. पटेल 'अनजान'
**
[12] Ramsevak pathak, Lalitpur
राजनीति की दौड़ में, भाग लेहिं धनवान।
दूर भागते वे सभी, जो होते विद्वान।।
- रामसेवक पाठक हरिकिंकर"ललितपुर*
[13] Dr Rajesh Prakhar Katni:
लंपट हों दो चार सँग, बातें लच्छेदार ।
राजनीति के आप भी, बन सकते किरदार ।।
कंपलसरी न योग्यता, नहीं कोइ एक्जाम ।
राजनीति में हैं सफल , नल्ले प्रखल तमाम ।।
-डॉ राजेश प्रखर, कटनी
[14] Manoj Sahu Nidar, narmadapuram
राजनीति में नीति का, ओछापन है आज।
सेवा से मतलब नहीं, मकसद केवल राज।।
राजनीति के ठूंठ पर, क्या हंसा क्या काग।
जो जितना नीचे गिरे, उतने चमकें भाग।
-मनोज साहू 'निडर' माखन नगर,
नर्मदापुरम
[1] Rajeev Namdeo Rana lidhori
गाँव शहर के मार्ग सब,अपना करें मिलान।
#राना चौराहा बनें , निश्चित इतना जान।।
चलते जाते लोग है,कोई भी हो राह।
चौराहा स्वागत करे,देगा सदा पनाह।।
चौराहा विकसित जहाँ,सुंदर बनते मोड़।
लगे मूर्ति भी बीच में,बड़ी जगह कुछ छोड़।।
चौराहा होता जहाँ ,अपनी रखता शान।
नामकरण उसको मिले,जो होता पहचान।।
चौराहा की बात भी,बहुत फैलती दूर।
इसीलिए *राना* कहे,चौराहा है नूर।।
***
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
***
[2] Vindaban Rai Saral Sagar:
उस चौराहे पर मुझे, छोड़ गए कुछ मित्र।
जिस कारण भद रंग है, इस जीवन का चित्र।।
***
-बिंद्रावन राय 'सरल', सागर
***
(3) shobharam dangi -
(01)
चौराहे पर बैठके,करो मंत्रणा आप ।
"दाँगी"सिद्ध मंत्र करें,हरते सब संताप ।।
(02)
पहला चौराहा मिले,बँहिसे मुड़ना यार ।
दांईं तरफा रास्ता,"दाँगी"का घर द्वार ।।
(03)
चौराहा सुंदर बनौं, है रोचक मैदान।
इसीलिए"दाँगी"खड़े,चौराहे की शान ।।
(04)
नामकरण होता वहां,जँह चौराहा होय ।
वैभव शाली मूरती,"इन्दु"भव्यता सोय ।।
(05)
चौराहा नौगांव में,निर्मित हैं अति यार ।
कहते जिसको छावनी,"दाँगी" है विस्तार ।।
***
-शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा
[4] Rama Nand Ji Pathak,Negua:
1
राहें हों चारों तरफ, चौराहा कहलाय।
चौराहे से हर कदम, अपनी मंजिल जाय। ।
2
कहें चार बत्ती सभी, चौराहा विख्यात।
देखा है भोपाल में, जगर मगर हर रात। ।
3
भेड फार्म चौराह की, चर्चा होती रोज।
प्रतिमा हुई अनावरित, खिलते वहाँ सरोज। ।
4
चौराहों पर देश के, झन्डा लगे तमाम।
लहर- लहर लहरा रहे, ऊँचा भारत नाम। ।
5
चौराहों पर घूमना, करते सभी पसंद।
मनमोहक लगता वहाँ, रहता मन स्वछंद। ।
***
-रामानन्द पाठक 'नन्द'नैगुवां
[5] Gokul Prasad Yadav Budera:
गलती करता आदमी,दौड़े बिना लगाम।
दुर्घटनाओं के लिए,चौराहा बदनाम।।
****
जहाँ आज तुझ पर हुई,फूलों की बरसात। उस चौराहे को पता, तेरी हर औकात।।
****
चौराहा तू हो रहा,ज्यों-ज्यों उम्र दराज।
त्यों सज-धज दिखला रहा, मस्ती भरा मिजाज।। ****
जीवन भर सुनता रहा, चौराहों का शोर।
आज भिखारी चल दिया,शान्त जगत की ओर।।
****
जीवन में जिसने किए,जन हितकारी काम।
चौराहों को मिल गये,उनके पावन नाम।।
***
-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी
[6] Promod Mishra Just Baldevgarh:
चौराहो के नाम हैँ , नारायण लुकमान ।
टीकमगढ़ में पपौरा , करेँ "प्रमोद"बखान ।।
चौराहों पर आजकल , सजें विभिन्न बजार ।
जाम लगा वाहन खड़ें , राखी का त्यौहार ।।
चौराहों पर लुट रही , कइँ बहिनों की लाज ।
सारे भारत देश में , गइया मरती आज ।।
चौराहा जाहिर यहाँ , है कश्मीरी गेट ।
जहाँ घूंँमते नव युगल , कहते जिसको डेट ।।
चौराहे पर मेँ खड़ा , लिए हाथ मेँ फूल ।
जातिवादी भीड़ ने , घोंप दिया त्रिशूल ।।
इन चौराहोँ पर कभी , लड़ें मरेंगे लोग ।
रोजगार माँगेँ युवा , जन वृद्धि का रोग ।।
चौराहे पर छोड़ कर , चले गए महबूब ।
प्यार मुसीबत बन गया , था "प्रमोद"मंसूब ।।
***
-प्रमोद मिश्रा ,बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश
####@@@###
[1] Rajeev Namdeo Rana lidhori
बहुत लोग अब सीखकर,लिखते सही विधान।
नहीं असर कुछ पर दिखे,'राना' का अनुमान।।
बार- बार भी टोकना,उचित नहीं श्रीमान।
सरल बड़ा है सीखना,'राना' का अनुमान।।
बहुत समय भी हो गया,खुद करिए अनुमान।
दोहा क्यों होते गलत,सोचों खुद श्री मान।।
करें शीघ्रता पोस्ट को,#राना का अनुमान।
नहीं निरीक्षण खुद करें,लेखक जी श्रीमान।।
हिंदी बुंदेली दिवस,इतना रखिए ध्यान।
शब्द चयन बैसे करें,लिखें सभी श्रीमान।।
नहीं किसी पर तंज है,और नहीं अनुमान।
सदा समीक्षा मानिए,बोला यहाँ विधान।।
कलन-यति जब हो सही,मात्रा भार विधान।
दोहा खुद ही बोलता,#राना का अनुमान।।
*** दिनांक -8-7-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[2] Promod Mishra Just Baldevgarh:
लंका जाने के लिए , करते बल अनुमान ।
जामवंत अंगद कहें , जाएंगे हनुमान ।।
अग्नि पवन धरती गगन , जल"प्रमोद"भगवान ।
इनसे जीवन का चलन , है मेरा अनुमान ।।
जीवन होगा चांद पर , लगा रहे अनुमान ।
वैज्ञानिक करने लगे , इसका अनुसंधान ।।
बारिश का अनुमान था , आऐगी भरपूर ।
सोचा नहीं किसान का , होगा सपना चूर ।।
जातिय जनगणना करें , जन-जन का उत्थान ।
मन में बसा "प्रमोद" के , ऐसा ही अनुमान ।।
है विवाह जीवन क्रिया , संतति सुख अनुमान ।
पर"प्रमोद"लेने लगी , नारी नर के प्रान ।।
प्यार किया अनुमान था , दिवस जियेँ सुख चार ।
पर"प्रमोद"उजड़ा चमन , लौटी नहीं बहार ।।
*************************************
- प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ (मध्य प्रदेश)
[3] Vidhaya Chohan Faridabad:
१)
जीवन पथ पर चल रहे, और सफ़र अंजान।
पहले से गंतव्य का, किसको है अनुमान।।
२)
मातु पिता के पास है, दुनिया की पहचान।
उनके अनुभव ज्ञान को, मत समझो अनुमान।।
३)
मौसम की हर चाल पर, नज़र रखे विज्ञान।
आँधी वर्षा धूप का, देता है अनुमान।।
४)
सारी लंका फूँक दी, देख अभी हैरान।
हनुमत के बल का हुआ, रावण को अनुमान।।
५)
कर्मों से मिलता पतन, कर्मों से उत्थान।
कर्मों के ही हाथ में, उन्नति का अनुमान।।
***
~विद्या चौहान, फरीदाबाद
[4] shobha ram dangi,nadanwara
(01)
सही कहा यह आपनें,भूल जात हम लोग ।
कलन-यती का ध्यान ही,है अनुमान कुरोग ।।
(02)
किसी काम केयोग का,है अनुमान महान ।
सही तौर आ जाय तो,लिखना समझो ग्यान ।।
(03)
अग्नि परीक्षा हो रही,नहि खा सिय अनुमान ।
"इन्दु"प्रभु को भजन लगीं,कैसा रचा विधान ।।
(04)
सभा लगी श्री राम की,को जै सागर पार ।
"दाँगी"काअनुमान था,बजरंग बल को धार ।।
(05)
कभी किसी को ग्यान था,नहि था ये अनुमान ।
वैज्ञानिक
पहुँचें कभी,"दाँगी" अनुसंधान ।।
(06)
धीरे-धीरे ग्यान हो,दोहा छंद विधान ।
"दाँगी"रोला सोरठा, कुण्ड़लिया अनुमान ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा,टीकमगढ़(मप्र)
(5)Singhai Jatara: 8.7.25-
पूरी सुनकर बात भी, लग जाता अनुमान।
क्या चाहे यह आदमी, कितना चतुर सुजान।।
ललना गुण पलना मिलें , गुणी करें अनुमान।
हाव भाव की भंगिमा,देती कुछ पहचान।।
लंक गए हनुमान जी, लगा लिया अनुमान।
राम भक्त कोई यहाँ ,करता प्रभु गुणगान।।
जहाँ विभीषण की कुटी,गए ध्वजा पहचान।
राम नाम आबाज सुन,लगा लिया अनुमान।।
महिलाएँ घर की सदा,सही करें अनुमान।
पकी सही अब चीज है,कर सकते अनुपान।।
***
-सुभाष सिंघई ,जतारा
[6] Dr. Renu Shrivastava, bhopal
संजीवनि बूटी कहाँ, लगा रहे अनुमान।
सारा पर्वत ले चले, महावीर हनुमान।।
अंगद की ललकार से, लगा रहे अनुमान।
वीर बहादुर दूत है, राम लखन की शान।।
बेरोजगारी बढ़ रही, कारण भ्रष्टाचार।
शासन का अनुमान जो, उसका ना आधार।।
अंतरिक्ष में जायेंगे, लगा रहे अनुमान।
वैज्ञानिक सब कर रहे, सच्चे अनुसंधान।।
वायुयान जल कर गिरा, लगा रहे अनुमान।
सच का नहीं पता चला, गई सभी की जान।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
[7] shobha ram dangi, nadanwara
सही कहा यह आपनें,दोहा छंद विधान ।
नहि रहता अनुमान ये,"दाँगी"कलन निदान।।
(02)
किसी काम के योग का, है अनुमान महान ।
सही तौर आ जाय तो,"दाँगी" समझो ग्यान ।।
(03)
अग्नि परीक्षा हो यगी,नहि था सिय अनुमान ।
"इन्दु"प्रभुको सुमर कहे,कैसा रचा विधान ।।
(04)
सभा लगी श्री राम की,को जै सागर पार ।
"दाँगी"हैअनुमान ये,हनुमत बल को धार ।।
(05)
"इन्दु" किसी को ग्यान था,नहि था ये अनुमान
वैज्ञानिकबनहैं कभी,सूरज चाँद कि शान।।
(06)
धीरे-धीरे ग्यान हो,दोहा छंद विधान ।
"दाँगी" रोला सोरठा,कुण्ड़लियाअनुमान ।।
***
-शोभाराम दाँगी "इन्दु"नंदनवारा (टीकमगढ़)
***
दिनांक -24.6.2025
(1)Rajeev Namdeo Rana lidhori', tikamgarh
*हिंदी दोहे-- 'दोष'*
दोष निकालें बैंठकर,देख दूसरे लोग।
अपने फिर क्यों ढाँकते,कैसे अंदर भोग।।
दोष निकाले लोग जब,दोषी करें करार।
वह बनते गुणवंत हैं,रहते पैर पसार।।
दोष सभी में हैं भरे,अवगुण रहते अंश।
पर होते जब काम शुभ, हट जाते तब दंश।।
#राना गया बजार में,गुण मिलते किस ओर।
मिलते नहीं खरीद में,मुफ्त मिलें हर ठोर।।
दोषी के भी दोष भी,हो जाते हैं माफ।
जिस दिन #राना वह करें,अपने मन को साफ।।
*** दिनांक -23.6.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[2] Promod Mishra Just Baldevgarh-
बढ़ी अराजकता बहुत , मुखिया बैठा मौन ।
अब "प्रमोद" निर्णय करो , आखिर दोषी कौन ।।
समय होय प्रतिकूल जब , बुद्धि हो विपरीत ।
तब "प्रमोद" निर्दोष पर , दोष लगाती नीत ।।
दोष लगाते और पर , दोषी दूषित बोल ।
सत्य समय ढलने चला , ज्ञान"प्रमोद" टटोल ।।
कृत्य घृणित करते कई , दोष अन्य पर थोप ।
मानव मुदित समाज में , झूँठ रहा क्यों रोप ।।
करते स्वयं अशिष्टता , चाहेँ शिष्टाचार ।
मति "प्रमोद"का दोष यह , झेल रहा संसार ।।
दोष रहित संसार में , मानव नहीं "प्रमोद" ।
करते कृत्य कुकृत्य कुछ ,समझेँ स्वयं विनोद ।।
***
✍️ - प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
[3] paramlal Dwiedi ,chirtskot
1-हम सच्चे साधक बनें, देखें नहिं पर दोष!
पहले अंदर झाँक लें, क्या हम हुए अदोष!!
2-दोष दृष्टि को भूलकर, गुण पर दीजे ध्यान!
सब शास्त्रों का सार यह, कहते यही महान!!
3-अपना सच्चा मित्र वह, जो बतलाये दोष!
मुंह का मीठा नहिं रहे,करे बात जो ठोस!!
4-विधि की जो यह सृस्टि है, उसमें गुण औ दोष!
समझदार को चाहिए, करे दोष से रोष!!
5-सतसंगति में बैठकर, लख लो अपने दोष!
उन्हें निकालो प्रयत्न कर, हरि पर रखो भरोस!!
***
✍️ परम लाल तिवारी खजुराहो
***
(4) Asha richariya, niwari
दोष ढ़ूंड़ना है सरल,दुष्कर स्वयं सुधार।
खुद सुधरो सुधरे जगत, यही बड़ा उपकार। ।
🌹
गुरु जन कमी निकाल कर, देते हैं आभास।
दोष निवारण कीजिए, संभव तभी विकास। ।
🌹
दोषी इतराते फिरें, सजा पायें निर्दोष।
चहूं ओर गर्जन करे, भृष्टाचारी घोष। ।
***
✍️ -आशा रिछारिया जिला निवाडी 🙏🏿
***
[5] Subhash Singhai Jatara:-
करता क्या है आदमी, रहे उसे कब होश |
बिगड़ें जब भी काम कुछ ,दे कर्मो को दोष ||
बिना बिचारे काम में , घुसकर करें ततोष |
कमीं निकालें हर जगह , सबको देकर दोष ||
साथ रखें गद्दार को, पर भरते है जोश |
देते है हर प्रांत में , सरकारों को दोष ||
कौन यहाँ निर्दोष है , करता कौन सवाल |
सबके अंदर है भरा , थोड़ा बहुत मलाल |
प्रभुवर के आगे सदा , सभी उगलिए दोष |
करुणाकर करुणा करें , देगें तब नव जोश ||
***
✍️ सुभाष सिंघई, जतारा
***
[6] shobharam danghi ,nadanwara
(०१)
दोष न हमको दीजिए,है कुदरत का खेल ।
थोड़े दिनों कि जिन्दगी,"दाँगी" रखना मेल ।।
(०२ )
वन जाना था राम को,अपयश माता पाय ।
"दाँगी" खुद की योजना,कैकइ दोष लगाय ।।
(०३)
कमल कुमुदिनी केतकी,पुष्प सभी निर्दोष ।
यह देवों के शिर चढ़ें,"दाँगी" कछू न दोष ।।
(०४)
दोष झांकते और के,खुद पर करें न ध्यान ।
अन्तर्मन में झांकिए,"दाँगी"वह गुणवान ।।
(०५)
निर्बल को दोषी कहें,दोष भले नहि होय ।
बड़े ढांकते गल्तियां,"दाँगी" समझो सोय ।।
(०६)
नीति न्याय अब है नहीं,दोषी हैं निर्दोष ।
"दाँगी"सत्य ही जानिए,यही जगत का रोष ।।
***
✍️शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
***
[7] Dr. Renu Shrivastava Bhopal:
बेकारी अब बढ़ रही, शासन को ना होश।
पद खाली सब पड़े हैं, नेता भर रहे कोश।।
सीता जी का दोष था, कर ली रेखा पार।
मर्यादा रखना सदा, जीवन का है सार।।
झूठा दोष लगा दिया, जीवन है अनमोल।
भाभी रोती बिलखती, निर्दोषी हरदौल।।
फेर बुद्धि कैकयी की, शारद माँ मुसकाय।
जाना था वन राम को, कैकइ दोष लगाय।।
दोषारोपण सब करें, खुद को सच्चा मान।
अपने दोष दिखें नहीं, सच्ची बात सुजान।।
**-
✍️- डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
[8] Ramlal Duvedi Karbi Chitrakut:-
जड़ -चेतन गुण -दोष मय,मिश्रित है यह सृष्टि ।
गुण गह अवगुण त्यागिए,रखिए पावन दृष्टि ।1
काम क्रोध मद लोभ सब, षड रिपु दुखप्रद दोष ।
जीवन- घट के छिद्र हैं , घटे पुण्य के कोष।2
अहम दोष को छोड़िए, हो जाते प्रभु रुष्ट।
बाली रावण मार कर ,रहे घमंडी दुष्ट ।3
अवलोकन निज दोष का, करते रहते नित्य।
परिमार्जन करते रहें, चमकें ज्यों आदित्य ।4
पर गुण को अपनाइए, दोष दीजिए त्याग।
मन कलुषित हो दोष से, करें न प्रभु अनुराग।5
अब अदोष को है सजा , दोषी जाता छूट ।
कलियुग है 'प्राणेश'*कह ,मची हुई है लूट ।
***
✍️ --आचार्य रामलाल द्विवेदी प्राणेश, कर्वी चित्रकूट
(9) Rama Nand Ji Pathak Negua: -
1
दोष किसी पर मत मढें, करने बाला और।
हानि लाभ का सिलसिला, है जीवन का दौर।
2
औरों को जो दोष दें, अपनें दोष छुपाय।
काम बनायें आपना, उनको लेंय लुभाय।
3
रेखा लिखी लिलार की, बाँच न पाये कोय।
होंन हार होके रहे, दोष लगा क्यों रोय।
4
अपनें अंदर झाँक कर, खोजें अपनें दोष।
सारे दोष निकाल कर, भरें गुणों का कोष।
5
रखें भरोसा ईश पर, लिखते वे तकदीर।
कर्म साधना कर सदा, फल देगी तदवीर।।
***
✍️ रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवां
***
संयोजक एडमिन- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़
मोबाइल -9893520965
Rajeev Namdeo Rana lidhori
*हिंदी दोहे - सिद्ध*
सिद्ध सकल परमात्मा,अंतरयामी रूप।
खुद ही जग के भूप है ,दिखते दिव्य अनूप।।
#राना बनते सिद्ध है,जो होते है संत।
करें तपोबल से सदा,अपना कर्म अनंत।।
मंत्र सिद्ध उनको हुए,जिनमें नहीं विकार।
पर उपकारी भावना,जिनमें दिखे शुमार।।
जैन धर्म में सिद्ध की,गाथा बड़ी महान।
जन्म मरण सब छूटता,कहलाते भगवान।।
सत्य परीक्षा दे सदा, करे सिद्ध वह बात।
झूठों को बहुमत मिले ,घर बैठे सौगात।।
*** दिनांक -17.6.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
2-Subhash Singhai Jatara:-
घर का योगी छोड़कर,ले आए जो गिद्ध।
अब साबित वह कर रहे,है यह पूरा सिद्ध।।
मचा है अच्छा हल्ला।।
सिद्ध वही है इस जगत,रखे आचरण शुद्ध।
चर्या में शुचिता रहे,हो वाणी से बुद्ध।।
सूर्य उजला ही रहता।।
सिद्ध महात्मा हो गए,भारत भूमि महान।
देकर शुभ संदेश ही,किया जगत प्रस्थान।।
आज भी पूजे जाते।।
मंत्र सिद्ध होते जिन्हें , करते जन कल्याण।
लाखों लोगों के सदा,रहें बचाते प्राण।।
सभी जन गुण को पूजें।।
मंत्र न बिच्छू जानते,करते साँप उतार।
ऐसे लोग बनावटी,दिखते है संसार।
ढोल सब खाली रहता।।
-सुभाष सिंघई जतारा
***
3- Sr Saral tikamgarh
सिद्ध पुरुष छल द्वेष से,करते स्वयं बचाव।
तन मन में शुचिता रखें,उर में निर्मल भाव।।
त्याग तपस्या कर्म से, होते सिद्ध महान।
वे मानव कल्याण हित,साबित है वरदान।।
नकली बाबा देश में,नजर रखें ज्यों गिद्ध।
तन मन भरे विकार हैं, बे पाखंडी सिद्ध।।
सिद्ध पुरुष एकाग्र हो, लेते दृढ़ संकल्प।
बे आँधी तूफान में, धैर्य न खोते अल्प।।
सिद्धकार्य उनके *सरल*,जो होते श्रमबीर।
करते हैं दिन रात श्रम,लिखते हैं तकदीर।।
***
एस आर सरल ,टीकमगढ़
***
[4] Promod Mishra Just Baldevgarh:-
सिद्ध पुरुष श्री राम से , करते भक्त पुकार ।
भवसागर से कीजिए , हमको स्वामी पार ।।
सिद्ध पीठ है शक्ति का , गिरा सती का हार ।
आल्हा पूजित शारदा , माँ मैहर दरबार ।।
जिनकी वाणी सिद्ध है , बोलें मीठे बोल ।
जैसे कोयल कंठ से , निकलें मधुरस घोल ।।
चलें भक्त गण पूजने , लिए आस्था जिद्ध ।
कार्तिकेय अवतार को , कहते बाबा सिद्ध ।।
सिद्ध संत संसार से , होने लगे विलुप्त ।
नागा साधु जगत में , पड़े आज भी गुप्त ।।
योगी साधक सिद्ध सुर , संत गुणी विद्वान ।
हैं "प्रमोद"संसार में , सरल सुमति भगवान ।।
***
-प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश
***
(5) शोभारामदाँगी," नदनवारा
(०१ )
मन की है इक भावना,सिद्ध करो त्रिपुरार ।
चरण पखारूँ आपके ,"दाँगी"तेरे द्वार ।।
(०२)
विघ्न हरण मंगल करन,सिद्ध करो गणराज ।
अपनें बस प्रभु राखना,"दाँगी" को धनराज ।।
(०३ )
"दाँगी"हो मम कामना,सिद्ध मंत्र हो आप ।
हे प्रभु दीनदयाल तुम,हरो दुर्गुण संताप ।।
(०४ )
पवन पुत्र हनुमान जी,करें सिया की खोज ।
सकल सिद्धश्री रामजी"दाँगी"पाए ओज ।।
(०५)
दीन बन्धु करतार से,विनय हमारी आज ।
"दाँगी"दास अनाथ हम,सिद्ध करो सरताज ।।
(०६ )
राम नाम महिमा अमिट,सिद्ध जगत आधार ।
"दाँगी"के संकट हरो,करो सुमंगल सार ।।
***
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा(टीकमगढ़)
[6] Dr. Renu Shrivastava Bhopal:
गणपति जी करते सदा, सिद्ध सभी के काम।
मंगलमय जीवन बने, भज लो सीता राम।।
सिद्ध पुरुष थे वे सदा, श्री राम आचार्य।
युगनिर्माणक करेंगे, तत्परता से कार्य।।
सिद्ध छवी हनुमान की, बागेश्वर है धाम।
काम सिद्ध होते सभी, जो लेता है नाम।।
पाखंडी बाबा बढ़ें, सिद्ध पुरुष अकुलाय।
मानो कलयुग आ गया, धर्म खड़ा पछताय।।
***
-डॉ. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
[7] Taruna khare Jabalpur :
प्रथम पूज्य गणराज हो, एकदंत महाराज।
प्रथम वंदना आपकी, सिद्ध करो सब काज।।
सच्चे मन से जो भजे, हनुमान का नाम।
संकट हरते हैं प्रभू, सिद्ध करे सब काम।।
सेवक हैं हनुमान जी,स्वामी हैं श्री राम।
राम कृपा से आपने, सिद्ध किये सब काम।।
सिद्ध पीठ हनुमान का, है बागेश्वर धाम।
अर्जी सुनते हैं प्रभू, पूरण करते काम।।
मां तेरे दरबार में, आते भक्त हजार।
सिद्ध कामना हो रही, करते जय जैकार।।
***
-तरुणा 'खरे तनु' ,जबलपुर
***
✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
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