बुंदेली बसंत (छतरपुर)-समग्र
बुंदेली बसंत (छतरपुर)-2024
स
बुंदेली बसंत (छतरपुर)-2021
बुन्देली व्यग्ंय - ‘‘लुकलुक की बीमारी’’
bundeli viyanag
हमाये इतै कछु दिनन से नये-नये कवि पैदा भये पैला से वे कविताई नई करतते पर जब सै सरकार ने उनै रिडायर्ड करदऔ तबसै वे सठिया गये और ‘सरतारौे बानिया का करे’ की कानात को अपनारये हते, सौ कोनऊ ने उनसे कै दई कि कवि बन जाओ सौ उनने कई कि कवि तो जन्मजात होत है ऐसे कैसे बन जात है? उनने कई आजकाल तौ सबई जने कवि बन जात है। वे ठलुआ तो हो गये हते सो उन्ने कोशिस करी तो कछु इताई कि कछु उताई की जोर-तोर के चार छः कवितायें बना डारी और कवि बन गये बार सफेद हते, उन्ना सोई सफेद पैर लये तना सी दाढ़ी घर लई, लो बन गये कवि। अब उने झट्टई अपनौ नाव कवियन में करवै की लुकी लुकी भई, जा एक भौत बुरई नई बीमारी पर गयी जौ उनखौ पीछो अबे लौ नई छोर रई। अब शहर में कितऊ भी कोनऊ साहित्यिक पिरोगराम या कवि सम्मेलन हुये जै साहब उतै जरूर पौच जेहे। उन्हें पैचानवे में कोनऊ परेशानी नई होत है, काइसै कै जै उतई मंच कै ऐंगरें ही लुकलुकात फिरत है। कछु नई तो तनक -तनक देर में मंच पै पौच कै मइक ठीक करन लगत है ऐसे लगत जैसे जै पिछले जनम में माइक सुधारवे के स्पेशलिष्ट भये हुये।
एक बैर का हा भओ कि शहर में एक बुन्देली पै कवि सम्मेलन हतौ अब ये लुक लुक साब तौ बुन्देली में तनकऊ नई लिख पातते, सौ उनकीे इतै कविता पढवै की दार नई गलने हती, पर का करै, मजबूरी हती सौ जै सबसे पैला की लाइन में जगां अगेज कै सबसे पैला कुर्सी पै धररये। अब साब कवि सम्मेलन चालू भओ, सो जो इनै लुकलुक की बीमारी हती ऊकौ कीरा गुलबुलान लगौ सो इनै कछु न सूजी, जै उतई से एक पैरे से पैराओ भओ गजरा ढूंढ लाये और मंच पै चढ कै ऊ समय जौन कवि पढ़ रओ हतो उखौ पैरा दओ, और तारी बजान लगे जैसे कछु जग्ग जीत लओ हो,सौ कछु लोगन ने उनके देखादेखी सोई तारी बजा दई। अब इनकी लुकलुकी तनक कम भई सो जै अपनी जागा पै आकै बैठ गयें। आदा घंटे बाद इनै फिरकै लुकलुकी उठी, सौ जै फिरकै कऊ से एक गजरा ढूंढ कै लाये और मंच पै जान लगे, सौ पछाई बैठे श्रोताओं में से कोनऊ ने जोर से कई -जौ कौ बब्बा अय। जौ भाई लुकलुकात फिररऔ, सौ बगल बारे ने कई सठिया गओ है दूसरे नै कई इतई कौ नओ-नओ कवि बनो है सौ आज ईखौ पढवे नई मिल रओ, सो फरफरात फिर रओ और गजरा डार -डार कै अपनौ मन भर रओ, एई बहाने से मंच पे जावे की लुकलुकी शांत कररओ। एकाद बेर फोटो सोई खिंच जात सौ जै ऊखौं मडवा कै अपने इतै घरे टांग लेत है और कत फिरत है कि हमने ऊके संगे कविता पडी हती वे तो हमाये मित्र है। अब फोटो देखवे वारे कौ का पतौ कि जा फोटो कैसे ख्ंिाची हती। जो बब्बा हर कवि सम्मेलन में जोई नौटंकी करत है हम तौ कई बेर देख चुके है। सबरै सुनवे वारे इन्हैं चीनन लगे है लगत है तुम नये आये हो? एई से तुमै नई मालूम।
इन साब की लुकलुक की बीमारी खौ देख के शहर भर के कवियन ने इनकौ नाव ‘लुकलुक’ कवि धर दओ। अब इन मैं एक विद्या तो जन्मजात हती सौ ऊकी दम पै और नैतन की चमचयाई करकै इतै उतै की बातें बानकै नेतन के हात पाव जोर कै कैसै भी पैसा ऐठ कै एकाध कवि गोष्ठी अपने घरे करा लई और उन्हीं नेतन खौ शाल श्रीफल सै सम्मान करदओ। शहर भर कै नेतन खौ सम्मान करकै जै अफरै नइयाँ सौ अब उनखै चमचन खौ सोई सम्मान करत जा रये। अब इतै जा सोसवे बारी बात है कि साहित्यिक गोष्ठी में नेतन कौ सम्मान करवै की का तुक है वे कुन अटल बिहारी है कि कवि है। जे तो साहित्य कौ ‘हींग कौ घगा’ तो जानत नईया और सम्मानित हो रये,जै तो बोई बात हो गई कि मूरखन कै राज मैं
‘गधा पजीरी खा रये’, लेकिन का करै चमचयाई में जो सब तो करनै पडत है। अबे तक तो जा कानात सुनी ती कि ‘मुसीबत में गधे को बाप बनालओ जात है पर अब तो पैसन के लाने जी चाये खौ कछु भी बनालो।
अबे तक तो साहित्यकार इन सबसे दूर रततै। साहित्यकारन खौ जो सब नोनो नई लगत है,साहित्यकारन की तौ स्वाभिमान,इज्जत एवं प्रशंसा ही पूंजी रत है। साहित्यकार खौ मतलब होत है जो सबको हित करे वही साहित्यकार होत है जो नई कि केवल अपनौ हित साध लओ। नेतन की चमचयाई और लुकलुक करवों अपुन साहित्यकारन कौ नोनो लई लगत है पर का करै जमानौ सोई बदल रओ है। झट्टई परसिधी पावे खौ जो शोर्टकट रास्तो है। कछुन ने ईखौं अपना लओ है।
अब लुकलुक साब खौ दो तीन साल कविताई करत भये हो गये सो उनने कवियन की कविता पढवे की नकल,मंच की अदाये सीख लई वे अब कवियन में गिने जाने लगे और स्वयं खौ शहर खौ सबसे बड़ो कवि मानन लगे। वे अपने लुकलुकावे को कोनउ मौका हात से नई जान देत है। शहर में जब कभउ कौनउ भी कवि सम्मेलन होत है और ऊ में कोनउ नओ कवि शहर में आवो तो वे एक डायरी लेके ऊखै इतै पौंच कै ऊखों नाव पतौ और मोबाइल नंबर जरूर लिख लेत है और उये जब तक पेरत रत है जब तक कि वौ इने अपने इते एक वेर नई बुला लेत है। दौबारा उतै जावे की नौबत नई आत है। वे जान जात है कि जै कितै बडे वारे है।
वे अब जब भी मंच पै जात है तो एक दो नई से उनकी लुकलुकी नई जात कम से े कम छःसात कविताये तो फटकार आत है संचालक महोदय इनसे बैठवै की बिनती करत-करत थक कै गम्म खाकै बैेठ जात। यदि जै कभऊ कोनउ गोष्ठी कौ सचंालन कर रये तौ फिर उनसे भगवान भी नई बचा सकत है लुकलुक साब कि कछु कवितायें तो गोल्डन जुबली मना चुकी है फिर भी जै बडे शान से ऊ कविता खौ ऐसे सुनात जैसे पैली बेर सुना रये हो।
उनकी देखादेखी कछु कवियन खौ सोई जा लुकलुक की बीमारी लगगई है। सौ भइया इनई जैसन लुकलुकन की लुकलुकी कम करवै के लाने जौ व्युंग्य लिखौ भओ है। अब का करे जैसै कंपूटर में बाइयरस आ जात है बैसे अब साहित्य में सोई बायरस आन लगे है। यदि इनकौ इलाज नई करो गओ तो जै साहित्य खौ हेंग करके सबरौ साहित्य खौ चाट जेहे। अपुन नै तो एंटीबाइरस अपने एगर धर लओ है ताकि इनके प्रभाव से बचत रये,लेकिन फिर भी कभऊ-कभऊ इनकी चपेट में सोई आ जात है। इनकी मीठी और चापलूसी की बातन में आ जात है। सो भइयाहरौ जा लुकलक की बीमारी भौत खतरनाक है ईसै अपने खौ बचावे राखने है।
अअअ
राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
पिनः472001 मोबाइल-9893520965
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हमाये इतै कछु दिनन से नये-नये कवि पैदा भये पैला से वे कविताई नई करतते पर जब सै सरकार ने उनै रिडायर्ड करदऔ तबसै वे सठिया गये और ‘सरतारौे बानिया का करे’ की कानात को अपनारये हते, सौ कोनऊ ने उनसे कै दई कि कवि बन जाओ सौ उनने कई कि कवि तो जन्मजात होत है ऐसे कैसे बन जात है? उनने कई आजकाल तौ सबई जने कवि बन जात है। वे ठलुआ तो हो गये हते सो उन्ने कोशिस करी तो कछु इताई कि कछु उताई की जोर-तोर के चार छः कवितायें बना डारी और कवि बन गये बार सफेद हते, उन्ना सोई सफेद पैर लये तना सी दाढ़ी घर लई, लो बन गये कवि। अब उने झट्टई अपनौ नाव कवियन में करवै की लुकी लुकी भई, जा एक भौत बुरई नई बीमारी पर गयी जौ उनखौ पीछो अबे लौ नई छोर रई। अब शहर में कितऊ भी कोनऊ साहित्यिक पिरोगराम या कवि सम्मेलन हुये जै साहब उतै जरूर पौच जेहे। उन्हें पैचानवे में कोनऊ परेशानी नई होत है, काइसै कै जै उतई मंच कै ऐंगरें ही लुकलुकात फिरत है। कछु नई तो तनक -तनक देर में मंच पै पौच कै मइक ठीक करन लगत है ऐसे लगत जैसे जै पिछले जनम में माइक सुधारवे के स्पेशलिष्ट भये हुये।
एक बैर का हा भओ कि शहर में एक बुन्देली पै कवि सम्मेलन हतौ अब ये लुक लुक साब तौ बुन्देली में तनकऊ नई लिख पातते, सौ उनकीे इतै कविता पढवै की दार नई गलने हती, पर का करै, मजबूरी हती सौ जै सबसे पैला की लाइन में जगां अगेज कै सबसे पैला कुर्सी पै धररये। अब साब कवि सम्मेलन चालू भओ, सो जो इनै लुकलुक की बीमारी हती ऊकौ कीरा गुलबुलान लगौ सो इनै कछु न सूजी, जै उतई से एक पैरे से पैराओ भओ गजरा ढूंढ लाये और मंच पै चढ कै ऊ समय जौन कवि पढ़ रओ हतो उखौ पैरा दओ, और तारी बजान लगे जैसे कछु जग्ग जीत लओ हो,सौ कछु लोगन ने उनके देखादेखी सोई तारी बजा दई। अब इनकी लुकलुकी तनक कम भई सो जै अपनी जागा पै आकै बैठ गयें। आदा घंटे बाद इनै फिरकै लुकलुकी उठी, सौ जै फिरकै कऊ से एक गजरा ढूंढ कै लाये और मंच पै जान लगे, सौ पछाई बैठे श्रोताओं में से कोनऊ ने जोर से कई -जौ कौ बब्बा अय। जौ भाई लुकलुकात फिररऔ, सौ बगल बारे ने कई सठिया गओ है दूसरे नै कई इतई कौ नओ-नओ कवि बनो है सौ आज ईखौ पढवे नई मिल रओ, सो फरफरात फिर रओ और गजरा डार -डार कै अपनौ मन भर रओ, एई बहाने से मंच पे जावे की लुकलुकी शांत कररओ। एकाद बेर फोटो सोई खिंच जात सौ जै ऊखौं मडवा कै अपने इतै घरे टांग लेत है और कत फिरत है कि हमने ऊके संगे कविता पडी हती वे तो हमाये मित्र है। अब फोटो देखवे वारे कौ का पतौ कि जा फोटो कैसे ख्ंिाची हती। जो बब्बा हर कवि सम्मेलन में जोई नौटंकी करत है हम तौ कई बेर देख चुके है। सबरै सुनवे वारे इन्हैं चीनन लगे है लगत है तुम नये आये हो? एई से तुमै नई मालूम।
इन साब की लुकलुक की बीमारी खौ देख के शहर भर के कवियन ने इनकौ नाव ‘लुकलुक’ कवि धर दओ। अब इन मैं एक विद्या तो जन्मजात हती सौ ऊकी दम पै और नैतन की चमचयाई करकै इतै उतै की बातें बानकै नेतन के हात पाव जोर कै कैसै भी पैसा ऐठ कै एकाध कवि गोष्ठी अपने घरे करा लई और उन्हीं नेतन खौ शाल श्रीफल सै सम्मान करदओ। शहर भर कै नेतन खौ सम्मान करकै जै अफरै नइयाँ सौ अब उनखै चमचन खौ सोई सम्मान करत जा रये। अब इतै जा सोसवे बारी बात है कि साहित्यिक गोष्ठी में नेतन कौ सम्मान करवै की का तुक है वे कुन अटल बिहारी है कि कवि है। जे तो साहित्य कौ ‘हींग कौ घगा’ तो जानत नईया और सम्मानित हो रये,जै तो बोई बात हो गई कि मूरखन कै राज मैं
‘गधा पजीरी खा रये’, लेकिन का करै चमचयाई में जो सब तो करनै पडत है। अबे तक तो जा कानात सुनी ती कि ‘मुसीबत में गधे को बाप बनालओ जात है पर अब तो पैसन के लाने जी चाये खौ कछु भी बनालो।
अबे तक तो साहित्यकार इन सबसे दूर रततै। साहित्यकारन खौ जो सब नोनो नई लगत है,साहित्यकारन की तौ स्वाभिमान,इज्जत एवं प्रशंसा ही पूंजी रत है। साहित्यकार खौ मतलब होत है जो सबको हित करे वही साहित्यकार होत है जो नई कि केवल अपनौ हित साध लओ। नेतन की चमचयाई और लुकलुक करवों अपुन साहित्यकारन कौ नोनो लई लगत है पर का करै जमानौ सोई बदल रओ है। झट्टई परसिधी पावे खौ जो शोर्टकट रास्तो है। कछुन ने ईखौं अपना लओ है।
अब लुकलुक साब खौ दो तीन साल कविताई करत भये हो गये सो उनने कवियन की कविता पढवे की नकल,मंच की अदाये सीख लई वे अब कवियन में गिने जाने लगे और स्वयं खौ शहर खौ सबसे बड़ो कवि मानन लगे। वे अपने लुकलुकावे को कोनउ मौका हात से नई जान देत है। शहर में जब कभउ कौनउ भी कवि सम्मेलन होत है और ऊ में कोनउ नओ कवि शहर में आवो तो वे एक डायरी लेके ऊखै इतै पौंच कै ऊखों नाव पतौ और मोबाइल नंबर जरूर लिख लेत है और उये जब तक पेरत रत है जब तक कि वौ इने अपने इते एक वेर नई बुला लेत है। दौबारा उतै जावे की नौबत नई आत है। वे जान जात है कि जै कितै बडे वारे है।
वे अब जब भी मंच पै जात है तो एक दो नई से उनकी लुकलुकी नई जात कम से े कम छःसात कविताये तो फटकार आत है संचालक महोदय इनसे बैठवै की बिनती करत-करत थक कै गम्म खाकै बैेठ जात। यदि जै कभऊ कोनउ गोष्ठी कौ सचंालन कर रये तौ फिर उनसे भगवान भी नई बचा सकत है लुकलुक साब कि कछु कवितायें तो गोल्डन जुबली मना चुकी है फिर भी जै बडे शान से ऊ कविता खौ ऐसे सुनात जैसे पैली बेर सुना रये हो।
उनकी देखादेखी कछु कवियन खौ सोई जा लुकलुक की बीमारी लगगई है। सौ भइया इनई जैसन लुकलुकन की लुकलुकी कम करवै के लाने जौ व्युंग्य लिखौ भओ है। अब का करे जैसै कंपूटर में बाइयरस आ जात है बैसे अब साहित्य में सोई बायरस आन लगे है। यदि इनकौ इलाज नई करो गओ तो जै साहित्य खौ हेंग करके सबरौ साहित्य खौ चाट जेहे। अपुन नै तो एंटीबाइरस अपने एगर धर लओ है ताकि इनके प्रभाव से बचत रये,लेकिन फिर भी कभऊ-कभऊ इनकी चपेट में सोई आ जात है। इनकी मीठी और चापलूसी की बातन में आ जात है। सो भइयाहरौ जा लुकलक की बीमारी भौत खतरनाक है ईसै अपने खौ बचावे राखने है।
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राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
पिनः472001 मोबाइल-9893520965
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