Rajeev Namdeo Rana lidhorI

बुधवार, 25 नवंबर 2020

लघुकथा- सौ का नोट -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

*हिंदी लघुकथा--‘‘सौ का नोट’*

          *- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*

                एक बार मैं अपनी मोटर साइकिल से घर से बाजार जा रहा था कि रास्ते में अचानक मुझे एक सौ रूपए का नोट पड़ा हुआ दिखा, एक सेकेण्ड के लिए बाइक धीमी करी तो दिल बोला रहने दे, तभी मन तुरंत बोला अबे दस का नहीं सौ रूपए का नोट है तू नहीं तो कोई और उठा लेगा, दिमाग को बात सही लगी तुरंत हाथ को आदेश दिया दोनों हाथों ने अतिउत्साह में आदेश का पालन करने हुए दोनो ब्रेक एक साथ लगा दिये परिणाम स्वरूप संतुलन बिगड़ा और मैं संभलते-संभलते भी नीेचे गिर ही पड़ा, घुटने में हेंडिल की थोड़ी सी चोट लगी, थोड़ी सी एड़ी भी छिल गयी।
              मैंने उठकर सबसे पहले वह सौ का नोट उठाया देखा असली था। बाद में लौटकर जब घर आया तो चोट में थोड़ा दर्द हो रहा था दवाई की तो मन ने संतोष किया कि गनीमत रही कि हाथ-पाँव नहीं टूटे वर्ना प्लास्टर चढ़ जाता तो दो-तीन महीने की छुट्टी हो जाती है पैसा अलग से खर्च होता।           दिल ने फिर दिल्लगी की तूने क्यों लालच की। पता है न कि ‘ *लालच बुरी बला है*’। तब मन फिर हँसते हुए कहा-अबे, दस का नहीं वह सौ का नोट था। 
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*-©राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
संपादक आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
मोबाइल-9893520965

संत नामदेव महाराज -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

*संत नामदेव जी जयंती पर बिशेष-*

*कविता-संत शिरोमणि नामदेव जी*

देव उठानी ग्यारस हती,
पंढरपुर है पावन धाम।
संत नामदेव जनम ल्यो,
लय विट्ठल कौ नाम।।

काम ऐसे कर गये,
बन गयते सरताज।।
जन-जन के प्यारे हते,
करते रय दिलों में राज।

भक्ति में इतैक सक्ति हती,
घूम गऔ मंदिर कौ द्वार।
कुत्ता जब रोटी ले गयो,
दौडे नामदेव जू महाराज।
घी की चुपरी खा लेऔ ,
हे प्रभु महाराज।।

मात पिता की सेवा सें,
बड़ कै कोउ नइयां काज।
एक पांव थाडे़ रय
मिलने प्रभु महाराज।।
ऐसे संत के श्री चरनन में
राना करत परनाम।।
****
*राजीव नामदेव 'राना लिधौरी" टीकमगढ़
        संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
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गुरुवार, 19 नवंबर 2020

महारानी लक्ष्मीबाई

महारानी लक्ष्मीबाई को शत् शत् नमन 


राना दोहावली-

1
लक्ष्मीबाई सी नहीं,
दूजी कोई वीर।
क्षण भर में करवाल से,
देती दुश्मन चीर।।


2
लक्ष्मीबाई की सदा,
चली खूब तलवार।
बिजली सी चमके जहां,
बहे खून की धार‌।।


3
ऐसी थी वीरांगना,
कितना करे बखान।
होती युग उपरांत है,
उन-सी वीर महान।।


4
आज दिवस बलिदान है,
मना रहे हम आप।
लक्ष्मीबाई का अमर,
रहे सदैव प्रताप।।


5
बेटी हो तो हो सदा,
ऐसी वीर महान।
काम करे ऐसा करे,
लक्ष्मी बाई समान।।
### 

©राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
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(मेरे उपरोक्त दोहे मौलिक एवं स्वरचित है।)

मंगलवार, 17 नवंबर 2020

दोहा सागर -राजीव नामदेव राना लिधौरी

            दोहा-सागर
                (दोहा संकलन)- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
दोहा-सागर
(दोहा संकलन)
संपादक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

-प्रकाशक-
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
एवं मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
की प्रस्तुति
©कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी',टीकमगढ़
मोबाइल 9893520965
प्रकाशन- प्रथम संस्करण- दिनांक 17-11-2020

अनुक्रमणिका-
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी',टीकमगढ़ (म.प्र.)
2- डी पी शुक्ला, टीकमगढ़ (मप्र)
3- एस.आर.सरल, टीकमगढ़
4-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
5--अभिनन्दन गोइल,इंदौर
6--अनीता श्रीवास्तव, टीकमगढ़
7-शील चन्द्र जैन शास्त्री ललितपुर , उ0प्र0 (भारत)
8-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस,बडा मलहरा,
9-कल्याण दास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर
10-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
11-रामेश्वर प्रसाद गुप्त इंदु.बड़ागांव झांसी उप्र.
12-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा
13-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़ (म.प्र.)
14-अशोक पटसारिया नादान, भोपाल
15- राजगोस्वामी, दतिया
16 वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
17-रामलाल द्विवेदी,करवी चित्रकूट
समीक्षक-
सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़ (म.प्र.)
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1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(म.प्र.)
*1*
सागर सी गहराइ हो,तो मोती पा जाय।
तेरे प्यार कि चाह में,दिन रैन न कट पाय।।
*2*
सागर से कभी न बनो,जो खारा है खूब।
नदिया बन बहते रहो,पावन जल है खूब।।
*@ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
      संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
##############
2-डी.पी=शुक्ला 'सरस', टीकमगढ़
जीवन  सागर  सी लहर।ह्रदय के  माँझ।। 
लहर तट फेंकत जबईं।होन लगत तब सांझ ।।
2
मानुष विपदा है भली ।जो थोड़े दिन होय।।
बन सागरइ डुबोउती।सुखद चैन सबको खोए।।
3-
मन को मैल नाँहि मिटो।अथाह सागर जान।।
जन मन सारौ करत रव।जब तक तन में प्रान।।
4-
धीरज धरें पार होत।भवसागर की राह।।
जुगत जुगत से टेर कर।लैे जीवन की थाह।। 
5
सागर सी लहरन फंसे।डूबत रय मँझधार ।।
कईयक पारै लग गए।बनकें है पतवार ।।

स्वरचित एवं मौलिक रचना -डी.पी .शुक्ल' सरस', टीकमगढ़
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3-एस आर सरल,टीकमगढ़
1
कपिलवस्तु नगरी हुए,शुद्धोधन गृह पूत।
करुणा सागर तथागत,विश्व शांति के दूत।।
2
करुणा सागर तथागतदिये धम्म उपदेश।
पंचशील धारण किया,घूमें देश विदेश।।
3
सुगुणी सज्जन संत सम,सहज शील सुखदाइ।
शीतल शील स्वभाव से,सागर सी गहराइ।।
4
सर सागर सरिता सलिल,समुद सर्व सुख सेतु।
सर्व सुलभ सुन्दर 'सरल',सकल जीव जन हेतु।।
5
करुणा सागर तथागत,पंचशील अपनाय।
बोधिसत्व हो जगत में,धम्म ध्वजा फहराय।।
**
🌹मौलिक एवं स्वरचित🌹
      🙏एस आर सरल🙏🌷टीकमगढ़🌷
###############

4-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
1
सागर से गहरे बनो,ज्ञान ज्योति की थाह
भारत माँ के हैत में,सबसे आगे आह।।
2-
 कलजुग के प्रभाव से,बढ़त जात है पाप ।
राजनीति  न्याय को,देख रहे हो आप ।।

3-
 बड़ो संसार में,अपनी आँखें मीच
सागर सी गागर भरी,जनता रई है सीच

4-मन का सागर बाध लो,नही हिलोरे खाय
एक दूजे के लिए,अपनो जीवन जाय 

          -गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
-###########

5-अभिनन्दन गोइल, इंदौर  
   
                                1
  ' मैं ' तो सागर रूप हूँ, जग है लहर समान।
   त्याग ग्रहण लय व्यर्थ है, धारूँ ऐसा ज्ञान।।
                                  2
  महा पयोनिधि एक मैं, सहनशील गंभीर।
  जगतपोत विचरें जहाँ, पाकर प्रकृत समीर।।
                                   3
    मैं ऐसा सागर महा, घटता बढ़ता नाहिं।
    जग लहरें मुझमें उठें, मुझमें ही थम जाहिं।।
                                    4
  इस अनंत सागर विसें, जगत कल्पना रूप।
  निराकार अति शांत मैं, जग का आश्रय भूप।।

                      -अभिनन्दन गोइल, इंदौर  
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6-अनीता श्रीवास्तव, टीकमगढ़
1
सागर सागर सब करें, सागर भया न कोय l
कूप सरोवर पोखरा, बना- बना खुश होय l
2
ऐसी माया  राम की, कोई न जाने मर्म, 
भवसागर में जीव है, चक्र व्यूह है कर्म l

मौलिक स्वरचित
अनीता श्रीवास्तव, टीकमगढ़ मप्र
#########

7-शील चन्द्र जैन शास्त्री ललितपुर , उ0प्र0 (भारत)
रत्नराशि उर में बसी,अरु अगाध जलकोश।
मान घटाया आपनारावण बसा पड़ौस (1)

सुत जनमा है चन्द्र सा, लक्ष्मी का आवास । 
रत्न उदधि से ही प्रकट ,रखे क्षार जल पास (2)

अनंतराशि जल की भरे , नाद धीर गंभीर ।
मृदुता से बंचित रहा , संचै है खारा नीर ।3।

याचक बनकर ही रहा ,लेकर नहीं अघाय ।
संग्रह की इस भूख को बडवानल देय जलाय।4।

बस ग्रहण ही किया है , सीख नहीं ली दीन ।
इतनी नदियाँ पी गया ,रहा दीन का दीन (5)

-शील चन्द्र जैन शास्त्री ललितपुर ,उ.प्र.(भारत)
###########

   8-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस,बडा मलहरा,
        1
सागर तट की रेत पर,लिखा राम का नाम।
लहरों ने श्री राम पद,छूकर किया प्रणाम।।
              २..
जाना हो आराम,जो भवसागर पार।
नाव बना हरि नाम की,पकड़ भाव पतवार।।
              ३..
तपसी ज्ञानी संत कवि,विद्वत वेदाचार।
सत सागर मंथन करें,निज निज मति अनुसार।।   
               ४..
शिव शंकर सेवहु सतत, सत सनेह सरसाय।
भवसागर से पार प्रभु,सहजहिं देयं लगाय।।
                ५..
यही कृपा हे राम की, यही बड़ा वरदान।
साहित्य सागर मैं सरस, करा दिये अस्नान।।
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
मौलिक एवं स्वरचित
##########

9-कल्याण दास साहू "पोषक,पृथ्वीपुर (मप्र)
बाढ़  नदी  में  आत  है , नाले भी  उफनात ।
सागर ज्यों का त्यों रहत , धीरज धरम निभात ।।

नदिया  नाले  झील  में , है घनिष्ठ सम्बन्ध ।
सागर नदियों का मिलन , प्राकृतिक अनुबन्ध ।।

मानसून औ मेघ को , सागर संबल देत ।
तृषित धरा की तृप्ति में , निभा भूमिका लेत ।।

लौकिक सृष्टि चक्र का , भवसागर है नाम ।
वृष्टि चक्र का है अजब , सिन्धु सनातन धाम ।।

सागर सी गम्भीरता , सागर सा विस्तार ।
सागर से बढ़कर नही , पृथ्वी पर दातार ।।

   -कल्याण दास साहू "पोषक,पृथ्वीपुर जिला निवाड़ी (मप्र)
###########

10-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़

वट विशाल की छांव में,विटप पनप ना पाय।
सागर से गागर भली,सबकी प्यास बुझाय।।

रूप राशि रस से भरा, सागर लेत हिलोर।
मचल उठेमन मनचला, करने कलित किलोर।।

लंका सागर बीच में,नृप रावण रंधीर।
देख वंदिनी जानकी,फूंकी बजरंग वीर।।

सागर से कब जा मिलें, नदियां बहुत अधीर।
मिलीं सखीं सब श्याम से,तरनि तनूजा तीर।।

रूप आगरी राधिका, गुणसागर घनश्याम।
नयन निहारें नव युगल,चलो चलें बृजधाम।।

    प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
         ( मौलिक एवं स्वरचित )
##########

11रामेश्वर प्रसाद गुप्त इंदु.बड़ागांव झांसी उप्र.

सागर से बादल चले,लेकर के भर नीर।
बरसे फिर आकाश से,हरने सबकी पीर।।

सागर मंथन जब हुआ,निकले रत्न अनेक।
बिष निकला तो पी गये,केवल शिव जी एक।।

मिली सफलता है उसे,जो करता है यत्न।
सागर में गोते लगा,पा ही जाता रत्न।।

करुणा सागर राम जी, सुनिए मेरी पुकार।
जीवन नौका है फंसी,आज बीच मझधार।।

 गहरा सागर जल भरा,और बड़ा आकार।
सुमिर पवन सुत हो गये,राम नाम ले पार।।

रामेश्वर प्रसाद गुप्त इंदु.बड़ागांव झांसी उप्र.
############

12-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा
               ।।1।।
सागर क्षीर बसें प्रभु,नाभि कमल कौ दंड।
बिधना जी अवतरित भय.जिनकौ रूप प्रचंड।।
              ।।2।।
सागर में नदियां मिलीं,संगम हुआ अपार।
समुद्र मंथन से हुआ,लक्ष्मी का अवतार।।
               ।।3।।
नदियन में नौका चलें,सागर चलें जहाज।
आवागमन चलै तभी,है सागर पै नाज।।
               ।।4।।
सागर मंथन में मिले,चौदह रत्न अपार।
कमला कमलापति मिलीं,गरल लिया शिव धार।।
               ।।5।।
बड़े बड़े जब कथानक,कविजन करें बखान।
गागर में सागर भरें,कविता की पहचान।।

।।मौलिक एवम् स्वरचित।।
                   -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा
############

13--सियाराम अहिरवार,टीकमगढ 

1++++
सागर में मोती भरे ,जो डूबे वो पाय ।
बैठ किनारे जो रहे ,वह पीछे पछताय ।।
2++++
गंगा यमुना नर्मदा ,नदियाँ बहें अनेक ।
जाकर सागर में मिली ,नाम भऔ सब एक।।
3++++
सागर सा गंभीर है ,जिसका शील स्वभाव ।
वह सरिता के सम बहे ,अपना छोड़ प्रभाव ।।
4++++
करुणा का सागर भरा ,गौतम बौध्द अथाह ।
अपने ज्ञान प्रकाश से दिखा गये वे राह ।।
5++++
जितना ज्ञान प्रकाश का, दीपक जलता जाय ।
भर सागर साहित्य का ,निशदिन बढता जाय ।।
                  -सियाराम अहिरवार,टीकमगढ 
           #######

14-अशोक पटसारिया नादान,लिधौरा टीकमगढ़ (मप्र)
                   *
सागर से गहरा बहुत, सद्गुरु जी का प्यार।             
जिसको पाकर शिष्य जन,होते भव से पार।।                 
                   *
सागर से सीखें सभी,समरसता का भाव।              
जो भी आये शरण में,उसको दें सदभाव।।             
                   *
सागर बनने के लिए,ये गुण होते खास।              
जो विशाल गम्भीर हो,सब कुछ उसके पास।।          
                    *
लहरों में उलझे रहे,गये न सागर पार।
मिला न हरि का खजाना,साधन किये हजार।।           
                   *
सागर से गहरा वही,धरती सा गम्भीर।
 दुनियाँ का मालिक वही,उसे सभी की पीर।।
             
-अशोक पटसारिया नादान,लिधौरा टीकमगढ़ (मप्र)
#############

15-राज गोस्वामी दतिया
1-
 सागर से मिली, सुधबुधदेय बिसार ।
सागर ने ले बाह मे दिया, अपरिमित प्यार ।।
2-
 उमडा देखकर,नदिया का उत्साह ।
कृत कृत हुआ ,सनेह पा मिटी जनम की चाह ।।
3-
 नदी खुस हो गई,कर सागर सत्संग ।
बोली मिल ऐसौ लगौ, एक नाम दो अंग ।।
              -राजगोस्वामी दतिया
##########

16 वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
1
काम भलाई के करो,तो भव सागर पार।
बार बार मिलता नहीं,मानव तन उपहार।।
2
अपने भारत देश में,सागर चारों ओर।
तट पर जाकर देखिये, लगे सुहानी भोर।।
3
नदियाँ अपने देश कीं, बहतीं सागर ओर।
टकराकर चट्टान से,खूब मचायें शोर।।
----------------स्वरचित-------------
           -वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
########

17-रामलाल द्विवेदी,करवी चित्रकूट

 सागर की लहरें कहें, तुम भी गरजो यार।
जीवन- रण में मार कम, डरवाओ फुफकार।१।

सागर सम गर्जत दिखो, बचें रत्न भण्डार।
विस्तृत, ह्रदय गंभीरता, यही नीति का सार।२।

राम सेतु अरु द्वारिका, राम कृष्ण पहचान।
रामबाण भय जल धि ने, अब तक रखे प्रमा न ।३।

सागर सा व्यक्तित्व हो, देने को बहु रत्न। 
जल थल चर आश्रित रहें, जल द भरे जल यत्न ४।

                    -रामलाल द्विवेदी,करवी चित्रकूट
#############
पटल की आज दिनांक 17.11.2020 की समीक्षा-
🌷आज की समीक्षा 🌷
जय बुन्देली साहित्य समूह टीकमगढ ।🐭🐭🐭
दिन -मंगलवार 
हिन्दी दोहा लेखन  विषय-सागर 💧💧
दिनांक-17/11/2020
सागर से तात्यपर्य विशाल जल राशि यानि महासागर से है ।धरती का 71प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका हुआ है ।इसी सागर विषय को लेकर पटल के सभी साहित्य मनीषियों ने सागर की उपमा ज्ञान ,जल राशि ,धन ,सागर सी गंभीरता ,विशालता,विस्तार ,सागर सी अथाह गहराई ,सागर से भाव ,विचारों को बिम्बित कर साहित्य सागर में गोता लगाते हुये विचारों के मोती चुन कलम के माध्यम से अभिव्यक्त किये ।जो बहुत ही श्रेष्ठ, मधुर और भावपूर्ण हैं ।
आज पटल पर सबसे पहले आदरणीय डी,पी ,शुक्ला जी ने अपने दोहे डाले जिसमें उन्होने जीवन को सागर की लहर के समान माना है ।
डाक्टर सुशील शर्माजी ने विषय से हटकर भाई दोज पर अपने दोहे लिखे जो ठीक बन पडे़ ।
श्री एस आर सरल जी के आज के सभी पाँचों दोहे श्रेष्ठ, सार्थक और भावपूर्ण रहे ।उन्होने करुणा के सागर तथागत बौद्ध को समर्पित दोहे लिखे जो बहुत ही सराहनीय हैं ।
श्री गुलाब सिंह भाऊ ने भी सुन्दर दोहों की रचना अपनी खडी़ बोली में की ।वे सागर से गहरे बनने की प्रेरणा अपने दोहों के माध्यम से दे रहे हैं ।
श्री जैन साहब ने एक पागल भिखारी शीर्षक से बहुत ही प्रेरक ,जीवन को नई दिशा प्रदान करने वाली कहानी लिखी जो बहुत ही संवेदनशील, करुणा से भरपूर है ।
मान्यवर ,गोइल जी ने सभी ज्ञान परक दोहे लिखते हुये सभी का अर्थ समझाया ।अर्थात मुझ अंतहीन महा  सागर में संसार तो कल्पना मात्र है ।मैं तो शांत निराकार हूँ और इसी अवस्था में हमेशा स्थिर रहता हूँ ।
श्री राजीव नामदेव राना लिधौरी जी ने भी सारगर्भित दोहा लिखते हुये कहा है कि -सागर सी गहराई हो,तो मोती पा जाय 
तेरे प्यार की चाह में ,दिन रैन न कट पाय ।।
श्रीमती अनीता श्रीवास्तव जी ने भी अपने दोहों के माध्यम से गागर में सागर भर दिया ।
श्री शील चन्द्र जैन शास्त्री जी ने भी अच्छे दोहे रचे ।जो प्रसंशनीय हैं ।
बुन्देली के श्रेष्ठ कवि आदरणीय डाक्टर देवदत्त द्विवेदी जी ने भी लिखा कि-सागर तट की रेत पर ,लिखा राम का नाम ।
लहरों ने श्रीराम पद ,छूकर किया प्रणाम,बहुत ही सुन्दर रचना 
श्री पोषक जी की बात ही निराली है ,जो मजे हुये खिलाड़ी हैं ,वे जो भी लिख रहे बहुत ही सुन्दर ,सार्थक ,भावपूर्ण लिख रहे है ।मुझे उनकी हर रचना पसंद पर कभी कभी ये आध्यात्म में ज्यादा डूब जाते हैं ,जिस पर मुझे टिप्पणी करना पड़ती है ।आज के सभी दोहे सारगर्भित हैं ।
आदरणीय पीयूष जी ,जो कि बुन्देली के श्रेष्ठ रचनाकार है ने भी बहुत सुन्दर और सार्थक दोहे लिखे ।उन्होने प्रकृति में जो भी जल के अपादान है ,सब को समाहित करते हुये दोहे लिखे 
मानसून औ मेघ को ,सागर संबल देत ।
तृषित धरा की तृप्ति में ,निभा भूमिका लेत ।।
श्री रामेश्वर प्रसाद इंदु जी ने भी बहुत बढिया दोहा रचे ।जो कि पटल के श्रेष्ठ दोहाकार हैं ।ये पटल पर रोज सामयिक विषयों पर दोहा लिखकर डालते रहते हैं । इनकी कलम को सलाम 
श्री जयहिन्द सिंह जू जयहिन्द ने अपनी भावपूर्ण चुटीली भाषा में बहुत ही सुन्दर दोहों की रचना की 
सागर में नदियां मिली ,संगम हुआ अपार ।
समुद्र मंथन से हुआ ,लक्ष्मी का अवतार ।।
मैने भी निर्धारित विषय पर पाँच दोहे लिखे जो समीक्षा हेतु सभी को प्रेषित हैं ।धन्यवाद
आदरणीय पटसारिया जी को तो कोई भी विषय मिल जाय ,सब पर अपनी कलम बखूबी चलाते हैं ।और उसी विषय को परिभाषित करते हुए लिखते हैं ।आज भी आपने सभी सार्थक दोहे लिखे ।
सागर से सीखें सभी ,समरसता का भाव ।
जो भी आये शरण में ,उसको दें सदभाव ।।
श्री राज गोस्वामी जी ने भी बढिया भावपूर्ण दोहे लिखे ।
श्री वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया जी अपने दोहों उपदेश का भाव जागृत करते हुये लिखा कि -
काम भलाई के करो ,तो भव सागर पार ।
बार बार मिलता नहीं ,मानव तन उपहार ।।
श्री रामलाल द्विवेदी जी ने भी अपने तीन नीति परक दोहे लिखे जो सार्थक और सारगर्भित भी हैं 
इस तरह से सभी रचनाकारों ने अपने श्रेष्ठ दोहे रचे जो सभी बधाई के पात्र हैं ।यदि समीक्षा के दौरान किसी का नाम छूट गया हो ,तो मैं क्षमा चाहूँगा ।
आज दूसरी खुशी इस बात की है कि हमारे पटल के सहयोगी कलाकार श्री संजय श्रीवास्तव के निर्देशन में चलने वाले पाहुना रंगमंच का उद्घाटन समारोह श्री गुणसागर सत्यार्थी ,विधायक श्री राकेश गिरी ,एवं पाहुना मंच के संयोजक श्री आलोक चतुर्वेदी जी के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ ।जिसमें हम सभी साहित्यकारों की उपस्थिति रही ।
धन्यवाद ।
समीक्षक-सियाराम अहिरवार टीकमगढ ।
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दोहा-सागर
दोहा संकलन
संपादक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
-प्रकाशक-
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
एवं मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
की प्रस्तुति
©कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी',टीकमगढ़
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प्रकाशन- प्रथम संस्करण- दिनांक 17-11-2020