*हिंदी लघुकथा--‘‘सौ का नोट’*
*- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
एक बार मैं अपनी मोटर साइकिल से घर से बाजार जा रहा था कि रास्ते में अचानक मुझे एक सौ रूपए का नोट पड़ा हुआ दिखा, एक सेकेण्ड के लिए बाइक धीमी करी तो दिल बोला रहने दे, तभी मन तुरंत बोला अबे दस का नहीं सौ रूपए का नोट है तू नहीं तो कोई और उठा लेगा, दिमाग को बात सही लगी तुरंत हाथ को आदेश दिया दोनों हाथों ने अतिउत्साह में आदेश का पालन करने हुए दोनो ब्रेक एक साथ लगा दिये परिणाम स्वरूप संतुलन बिगड़ा और मैं संभलते-संभलते भी नीेचे गिर ही पड़ा, घुटने में हेंडिल की थोड़ी सी चोट लगी, थोड़ी सी एड़ी भी छिल गयी।
मैंने उठकर सबसे पहले वह सौ का नोट उठाया देखा असली था। बाद में लौटकर जब घर आया तो चोट में थोड़ा दर्द हो रहा था दवाई की तो मन ने संतोष किया कि गनीमत रही कि हाथ-पाँव नहीं टूटे वर्ना प्लास्टर चढ़ जाता तो दो-तीन महीने की छुट्टी हो जाती है पैसा अलग से खर्च होता। दिल ने फिर दिल्लगी की तूने क्यों लालच की। पता है न कि ‘ *लालच बुरी बला है*’। तब मन फिर हँसते हुए कहा-अबे, दस का नहीं वह सौ का नोट था।
------
*-©राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
संपादक आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
मोबाइल-9893520965
1 टिप्पणी:
Very fantastic
एक टिप्पणी भेजें