प्रेरक प्रसंग-
संकलन- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
लेखकीय-
हम आपके लिए कुछ कथाएं छांटकर लाये है जो आपको कुछ न कुछ शिक्षा जरुर देती है हमारा मनोबल बढ़ाने में मदद करती है।
जीवन में इन प्रेरणादायक कथाएं से यदि हम थोड़ा सा भी सीख सकते हैं तो हमारा जीवन सफल हो जायेगा। आशा आपको यह संग्रह अवश्य ही पसंद आयेगा।
संकलन- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)
1- *प्रेरक कथा- *हिसाब भगवान रखते हैं*-
*अस्पताल में एक कोरोना पेशेंट का केस आया ।मरीज बेहद सीरियस था । अस्पताल के मालिक डॉक्टर ने तत्काल खुद जाकर आईसीयू में केस की जांच की।*
*दो-तीन घंटे के ओपरेशन के बाद डॉक्टर बाहर आया और अपने स्टाफ को कहा कि इस व्यक्ति को किसी प्रकार की कमी या तकलीफ ना हो। और उससे इलाज व दवा के पैसे न लेने के लिए भी कहा ।*
*मरीज तकरीबन 15 दिन तक मरीज अस्पताल में रहा। जब बिल्कुल ठीक हो गया और उसको डिस्चार्ज करने का दिन आया तो उस मरीज का तकरीबन ढाई लाख रुपये का बिल अस्पताल के मालिक और डॉक्टर की टेबल पर आया।*
*डॉक्टर ने अपने अकाउंट मैनेजर को बुला करके कहा ..."इस व्यक्ति से एक पैसा भी नहीं लेना है। ऐसा करो तुम उस मरीज को लेकर मेरे चेंबर में आओ। "मरीज व्हीलचेयर पर चेंबर में लाया गया। डॉक्टर ने मरीज से पूछा - "भाई ! क्या आप मुझे पहचानते हो?"मरीज ने कहा "लगता तो है कि मैंने आपको कहीं देखा है।"*
*डॉक्टर ने कहा ..."याद करो, अंदाजन दो साल पहले सूर्यास्त के समय शहर से दूर उस जंगल में तुमने एक गाड़ी ठीक की थी। उस रोज मैं परिवार सहित पिकनिक मनाकर लौट रहा था कि अचानक कार में से धुआं निकलने लगा और गाड़ी बंद हो गई। कार एक तरफ खड़ी कर मैंने चालू करने की कोशिश की, परंतु कार चालू नहीं हुई। अंधेरा थोड़ा-थोड़ा घिरने लगा था। चारों और जंगल और सुनसान था। परिवार के हर सदस्य के चेहरे पर चिंता और भय की लकीरें दिखने लगी थी और सब भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि कोई मदद मिल जाए।"*
*थोड़ी ही देर में चमत्कार हुआ। बाइक के ऊपर तुम आते दिखाई पड़े ।हम सब ने दया की नजर से हाथ ऊंचा करके तुमको रुकने का इशारा किया।*
*तुमने बाईक खड़ी कर के हमारी परेशानी का कारण पूछा। तुमने कार का बोनट खोलकर चेक किया और कुछ ही क्षणों में कार चालू कर दी।*
*"हम सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। हमको ऐसा लगा कि जैसे भगवान ने आपको हमारे पास भेजा है क्योंकि उस सुनसान जंगल में रात गुजारने के ख्याल मात्र से ही हमारे रोगंटे खड़े हो रहे थे।*
*तुमने मुझे बताया था कि तुम एक गैराज चलाते हो ।*
*"मैंने आपका आभार जताते हुए कहा था कि रुपए पास होते हुए भी ऐसी मुश्किल समय में मदद नहीं मिलती।*
*तुमने ऐसे कठिन समय में हमारी मदद की, इस मदद की कोई कीमत नहीं है, यह अमूल्य है परंतु फिर भी मैं पूछना चाहता हूँ कि आपको कितने पैसे दूं ?"*
*उस समय तुमने मेरे आगे हाथ जोड़कर जो शब्द कहे थे, वह शब्द मेरे जीवन की प्रेरणा बन गये हैं "तुमने कहा था कि "मेरा नियम और सिद्धांत है कि मैं मुश्किल में पड़े व्यक्ति की मदद के बदले कभी कुछ नहीं लेता।*
*मेरी इस मजदूरी का हिसाब भगवान् रखते हैं। "उसी दिन मैंने सोचा कि जब एक सामान्य आय का व्यक्ति इस प्रकार के उच्च विचार रख सकता है, और उनका संकल्प पूर्वक पालन कर सकता है, तो मैं क्यों नहीं कर सकता। और मैंने भी अपने जीवन में यही संकल्प ले लिया है। दो साल हो गए है, मुझे कभी कोई कमी नहीं पड़ी, अपेक्षा पहले से भी अधिक मिल रहा है।"*
*"यह अस्पताल मेरा है। तुम यहां मेरे मेहमान हो और तुम्हारे ही बताए हुए नियम के अनुसार मैं तुमसे कुछ भी नहीं ले सकता।"*
*"ये तो भगवान् की कृपा है कि उसने मुझे ऐसी प्रेरणा देने वाले व्यक्ति की सेवा करने का मौका मुझे दिया। "ऊपर वाले ने तुम्हारी मजदूरी का हिसाब रखा और वो हिसाब आज उसने चुका दिया। मेरी मजदूरी का हिसाब भी ऊपर वाला रखेगा और कभी जब मुझे जरूरत होगी, वो जरूर चुका देगा।*
*"डॉक्टर ने मरीज से कहा ...."तुम आराम से घर जाओ, और कभी भी कोई तकलीफ हो तो बिना संकोच के मेरे पास आ सकते हो। "मरीज ने जाते हुए चेंबर में रखी भगवान् कृष्ण की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर कहा कि...."हे प्रभु ! आपने आज मेरे कर्म का पूरा हिसाब ब्याज समेत चुका दिया।"*
*सदैव याद रखें कि आपके द्वारा किये गए कर्म आपके पास लौट कर आते है । और वो भी ब्याज समेत*
*वर्तमान में कठिन समय चल रहा है ।जितना हो सकता है लोगों की मदद करें । आपका हिसाब ब्याज समेत वापस आएगा ।*
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*प्रस्तुति- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़*
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2-🌹हृदय में भगवान बसते है🌹
यह घटना जयपुर के एक वरिष्ठ डॉक्टर की आपबीती है, जिसने उनका जीवन बदल दिया। वह हृदय रोग विशेषज्ञ हैं। उनके द्वारा बताई प्रभु कृपा की कहानी के अनुसार:-
एक दिन मेरे पास एक दंपत्ति अपनी छः साल की बच्ची को लेकर आए। निरीक्षण के बाद पता चला कि उसके हृदय में रक्त संचार बहुत कम हो चुका है।
मैंने अपने साथी डाक्टर से विचार करने के बाद उस दंपत्ति से कहा - 30% संभावना है बचने की ! दिल को खोलकर ओपन हार्ट सर्जरी करनी पड़ेगी, नहीं तो बच्ची के पास सिर्फ तीन महीने का समय है !
माता पिता भावुक हो कर बोले, "डाक्टर साहब ! इकलौती बिटिया है। ऑपरेशन के अलावा और कोई चारा नहीं है,
मैंने अन्य कोई विकल्प के लिए मना कर दिया
दंपति ने कहा आप ऑपरेशन की तैयारी कीजिये।"
सर्जरी के पांच दिन पहले बच्ची को भर्ती कर लिया गया। बच्ची मुझ से बहुत घुलमिल चुकी थी, बहुत प्यारी बातें करती थी। उसकी माँ को प्रार्थना में अटूट विश्वास था। वह सुबह शाम बच्ची को यही कहती, बेटी घबराना नहीं। भगवान बच्चों के हृदय में रहते हैं। वह तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे।
सर्जरी के दिन मैंने उस बच्ची से कहा, "बेटी ! चिन्ता न करना, ऑपरेशन के बाद आप बिल्कुल ठीक हो जाओगे।" बच्ची ने कहा, "डाक्टर अंकल मैं बिलकुल नहीं डर रही क्योंकि मेरे हृदय में भगवान रहते हैं, पर आप जब मेरा हार्ट ओपन करोगे तो देखकर बताना भगवान कैसे दिखते हैं ?" मै उसकी बात पर मुस्कुरा उठा।
ऑपरेशन के दौरान पता चल गया कि कुछ नहीं हो सकता, बच्ची को बचाना असंभव है, दिल में खून का एक कतरा भी नहीं आ रहा था। निराश होकर मैंने अपनी साथी डाक्टर से वापिस दिल को स्टिच करने का आदेश दिया।
तभी मुझे बच्ची की आखिरी बात याद आई और मैं अपने रक्त भरे हाथों को जोड़ कर प्रार्थना करने लगा, "हे ईश्वर ! मेरा सारा अनुभव तो इस बच्ची को बचाने में असमर्थ है, पर यदि आप इसके हृदय में विराजमान हो तो आप ही कुछ कीजिए।"
मेरी आँखों से आँसू टपक पड़े। यह मेरी पहली अश्रु पूर्ण प्रार्थना थी। इसी बीच मेरे जूनियर डॉक्टर ने मुझे कोहनी मारी। मैं चमत्कार में विश्वास नहीं करता था पर मैं स्तब्ध हो गया यह देखकर कि दिल में रक्त संचार पुनः शुरू हो गया।
मेरे 60 साल के जीवन काल में ऐसा पहली बार हुआ था। आपरेशन सफल तो हो गया पर मेरा जीवन बदल गया। होश में आने पर मैंने बच्ची से कहा, "बेटा ! हृदय में भगवान दिखे तो नहीं पर यह अनुभव हो गया कि वे हृदय में मौजूद हर पल रहते हैं।
इस घटना के बाद मैंने अपने आपरेशन थियेटर में प्रार्थना का नियम निभाना शुरू किया। मैं यह अनुरोध करता हूँ कि सभी को अपने बच्चों में प्रार्थना का संस्कार डालना ही चाहिए।
यह कहानी एक ह्रदय रोग विशेषज्ञ की आत्म बीती
💞🙏💞
3-मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है ?
🤔प्रश्न~ मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है ? 🤔
👉 उत्तर ~परम्परा हैं कि किसी भी मंदिर में दर्शन के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ओटले पर थोड़ी देर बैठना।
🤔 क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है ?
👉 यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई है। वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर एक श्लोक बोलना चाहिए। जो इस प्रकार है
अनायासेन मरणम् , बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम् , देहि मे परमेश्वरम्॥
इस श्लोक का अर्थ है -
अनायासेन मरणम् अर्थात् बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हों चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं।
बिना देन्येन जीवनम् अर्थात् परवशता का जीवन ना हो। कभी किसी के सहारे ना रहना पड़े।
देहांते तव सानिध्यमअर्थात् जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं कृष्ण जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले।
देहि में परमेशवरम् हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना।
भगवान से प्रार्थना करते हुऐ उपरोक्त श्र्लोक का पाठ करें। गाड़ी, लाडी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन इत्यादि अर्थात् संसार नहीं मांगना है, यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं। इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। यह प्रार्थना है, याचना नहीं है। याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है। जैसे कि घर, व्यापार,नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।
'प्रार्थना' शब्द के 'प्र' का अर्थ होता है 'विशेष' अर्थात् विशिष्ट, श्रेष्ठ और 'अर्थना' अर्थात् निवेदन। प्रार्थना का अर्थ हुआ विशेष निवेदन।
मंदिर में भगवान का दर्शन सदैव खुली आंखों से करना चाहिए, निहारना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं। आंखें बंद क्यों करना, हम तो दर्शन करने आए हैं। भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, श्रृंगार का, संपूर्ण आनंद लें, आंखों में भर ले निज-स्वरूप को।
दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठें, तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किया हैं उस स्वरूप का ध्यान करें। मंदिर से बाहर आने के बाद, पैड़ी पर बैठ कर स्वयं की आत्मा का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर निज आत्मस्वरूप ध्यान में भगवान नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और पुन: दर्शन करें।
बस अच्छे कर्म करते रहे ।
साभार संकलित
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*4*
प्रेरक कथा- *फ्यूज बल्ब*
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*शहर की एक कॉलोनी में एक बड़े आईएएस अफसर रहने के लिए आए जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे।*
*ये रिटायर्ड आईएएस अफसर हैरान परेशान से रोज शाम को पास के पार्क में टहलते हुए अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे।*
*एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर लगातार उनके पास बैठने लगे लेकिन उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था-*
*मैं इतना बड़ा आईएएस अफ़सर था कि पूछो मत, यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं।*
*मुझे तो दिल्ली या जयपुर में अमीरजादो के इलाके में बसना चाहिए था । और वो बुजुर्ग प्रतिदिन शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे।*
*परेशान होकर एक दिन बुजुर्ग ने उनको समझाया-*
*आपने कभी फ्यूज बल्ब देखे हैं?*
*बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है कि बल्ब किस कम्पनी का बना हुआ था , या कितने वाट का था, या उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी?*
*बल्ब के फ्यूज़ होने के बाद इनमें से कोई भी बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती है।*
*लोग ऐसे बल्ब को कबाड़ में डाल देते हैं।*
*फिर जब उन रिटायर्ड आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति में सिर हिलाया तो बुजुर्ग फिर बोले - रिटायरमेंट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो जाती है।*
*हम कहां काम करते थे, कितने बड़े/छोटे पद पर थे, हमारा क्या रुतबा था, यह सब कुछ भी कोई मायने नहीं रखता।*
*मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं।*
*वो जो सामने वर्मा जी बैठे हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे।*
*वे सामने से आ रहे सिंह साहब सेना में ब्रिगेडियर थे।*
*वो मेहरा जी इसरो में चीफ थे।*
*ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बताई है, मुझे भी नहीं पर मैं जानता हूं सारे फ्यूज़ बल्ब करीब-करीब एक जैसे ही हो जाते हैं, चाहे जीरो वाट का हो या 50 या 100 वाट हो।*
*कोई रोशनी नहीं तो कोई उपयोगिता नहीं।*
*कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते हैं कि रिटायरमेंट के बाद भी उनसे अपने अच्छे दिन भुलाए नहीं भूलते।*
*माना कि आप बहुत बड़े आफिसर थे, बहुत काबिल भी थे, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती थी पर अब क्या?*
*अब यह बात मायने नहीं रखती है बल्कि,,,,यह बात मायने रखती है कि पद पर रहते समय आप इंसान कैसे थे...*
*आपने लोगों को कितनी तवज्जो दी...*
*समाज को क्या दिया...*
*कितने लोगों की मदद की...*
*पद पर रहते हुए कभी घमंड आये तो याद कर लीजिए कि,,,*
*एक दिन सबको फ्यूज होना है।*
*वर्तमान का आनंद लीजिये ।*
🌹✍️🌹✍️🌹✍️🌹✍️
*5* ये कहानी आपके जीने की सोच बदल देगी!*
एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया।
वह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं।
अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि बैल काफी बूढा हो चूका था अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।।
किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी।
जैसे ही बैल कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।
सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया..
अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।
जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया ।
ध्यान रखे आपके जीवन में भी बहुत तरह से मिट्टी फेंकी जायेगी बहुत तरह की गंदगी आप पर गिरेगी जैसे कि ,
आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा
कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा
कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे...
ऐसे में आपको हतोत्साहित हो कर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हर तरह की गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख ले कर उसे सीढ़ी बनाकर बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।
सकारात्मक रहे.. सकारात्मक जिए!
इस संसार में....
सबसे बड़ी सम्पत्ति *"बुद्धि "*
सबसे अच्छा हथियार *"धैर्य"*
सबसे अच्छी सुरक्षा *"विश्वास"*
सबसे बढ़िया दवा *"हँसी"* है
और आश्चर्य की बात कि *"ये सब निशुल्क हैं "*
सोच बदलो जिंदगी बदल जायेगी।
***
*6
【◆कल्पित कहानी: "गधों के साथ बहस मत करो"◆】
एक बार एक गधे ने बाघ से कहा: - "घास नीली है"।
बाघ ने उत्तर दिया: - "नहीं, घास हरी है।"
चर्चा गर्म हो गई, और दोनों ने उसे जंगल के राजा के सामने मध्यस्थता के लिए प्रस्तुत करने का फैसला किया, और इसके लिए वे शेर के सामने गए। जहाँ शेर अपने सिंहासन पर बैठा था, शेर को देखते ही गधा चिल्लाने लगा: - "महामहिम, क्या यह सच है कि घास नीली है?"।
शेर ने उत्तर दिया: - "सच है, घास नीली है।"
गधा जल्दी से आगे बढ़ा: - "बाघ मुझसे असहमत है और विरोध करता है और मुझे परेशान करता है, कृपया उसे दंडित करें।"
तब राजा ने घोषणा की: - "बाघ को 5 साल की चुप्पी की सजा दी जाएगी।"
गधा खुशी से उछल पड़ा और अपने रास्ते पर चला गया, संतुष्ट और दोहराता रहा: - "घास नीला है" ...
बाघ ने उसकी सजा स्वीकार कर ली, लेकिन इससे पहले उसने शेर से पूछा: - "महाराज, आपने मुझे क्यों दंडित किया?, आखिर घास हरी है।"
शेर ने उत्तर दिया: - "वास्तव में, घास हरी है।"
बाघ ने पूछा: - "तो तुम मुझे सजा क्यों दे रहे हो?"।
शेर ने उत्तर दिया: - "इसका इस सवाल से कोई लेना-देना नहीं है कि घास नीली है या हरी। सजा इसलिए है क्योंकि तुम जैसे बहादुर और बुद्धिमान प्राणी के लिए गधे के साथ बहस करने में समय बर्बाद करना और उसके ऊपर आकर मुझे उस सवाल से परेशान करना उचित नहीं है।"
समय की सबसे खराब बर्बादी उस मूर्ख और कट्टरपंथी के साथ बहस करना है जो सच्चाई या वास्तविकता की परवाह नहीं करता है, बल्कि केवल अपने विश्वासों और भ्रमों की जीत के लिए बहस करता है।
उन तर्कों पर समय बर्बाद न करें जिनका कोई मतलब नहीं है ... ऐसे लोग हैं जो, चाहे हम उनके सामने कितना भी सबूत और सबूत पेश करें, समझने की क्षमता में नहीं हैं, और अन्य लोग अहंकार, घृणा और आक्रोश से अंधे हैं, और वे जो चाहते हैं वह सही है, भले ही वे न हों।
जब अज्ञान चिल्लाता है तो बुद्धि मौन होती है। आपकी शांति सबसे अधिक मूल्यवान है। ❤️
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*7* अनोखा मुकदमा :-
न्यायालय में एक मुकद्दमा आया ,जिसने सभी को झकझोर दिया |अदालतों में प्रॉपर्टी विवाद व अन्य पारिवारिक विवाद के केस आते ही रहते हैं| मगर ये मामला बहुत ही अलग किस्म का था|
एक 70 साल के बूढ़े व्यक्ति ने ,अपने 80 साल के बूढ़े भाई पर मुकद्दमा किया था|
मुकद्दमे का कुछ यूं था कि "मेरा 80 साल का बड़ा भाई ,अब बूढ़ा हो चला है ,इसलिए वह खुद अपना ख्याल भी ठीक से नहीं रख सकता |मगर मेरे मना करने पर भी वह हमारी 110 साल की मां की देखभाल कर रहा है |
मैं अभी ठीक हूं, इसलिए अब मुझे मां की सेवा करने का मौका दिया जाय और मां को मुझे सौंप दिया जाय"।
न्यायाधीश महोदय का दिमाग घूम गया और मुक़दमा भी चर्चा में आ गया| न्यायाधीश महोदय ने दोनों भाइयों को समझाने की कोशिश की कि आप लोग 15-15 दिन रख लो|
मगर कोई टस से मस नहीं हुआ,बड़े भाई का कहना था कि मैं अपने स्वर्ग को खुद से दूर क्यों होने दूँ |अगर मां कह दे कि उसको मेरे पास कोई परेशानी है या मैं उसकी देखभाल ठीक से नहीं करता, तो अवश्य छोटे भाई को दे दो।
छोटा भाई कहता कि पिछले 40 साल से अकेले ये सेवा किये जा रहा है, आखिर मैं अपना कर्तव्य कब पूरा करूँगा।
परेशान न्यायाधीश महोदय ने सभी प्रयास कर लिये ,मगर कोई हल नहीं निकला|
आखिर उन्होंने मां की राय जानने के लिए उसको बुलवाया और पूंछा कि वह किसके साथ रहना चाहती है|
मां कुल 30 किलो की बेहद कमजोर सी औरत थी और बड़ी मुश्किल से व्हील चेयर पर आई थी|उसने दुखी दिल से कहा कि मेरे लिए दोनों संतान बराबर हैं| मैं किसी एक के पक्ष में फैसला सुनाकर ,दूसरे का दिल नहीं दुखा सकती|
आप न्यायाधीश हैं , निर्णय करना आपका काम है |जो आपका निर्णय होगा मैं उसको ही मान लूंगी।
आखिर न्यायाधीश महोदय ने भारी मन से निर्णय दिया कि न्यायालय छोटे भाई की भावनाओं से सहमत है कि बड़ा भाई वाकई बूढ़ा और कमजोर है| ऐसे में मां की सेवा की जिम्मेदारी छोटे भाई को दी जाती है।
फैसला सुनकर बड़ा भाई जोर जोर से रोने लगा कि इस बुढापे ने मेरे स्वर्ग को मुझसे छीन लिया |अदालत में मौजूद न्यायाधीश समेत सभी रोने लगे।
कहने का तात्पर्य यह है कि अगर भाई बहनों में वाद विवाद हो ,तो इस स्तर का हो|
ये क्या बात है कि 'माँ तेरी है' की लड़ाई हो,और पता चले कि माता पिता ओल्ड एज होम में रह रहे हैं |यह पाप है।
हमें इस मुकदमे से ये सबक लेना ही चाहिए कि माता -पिता का दिल दुखाना नही चाहिए।।
***
*8*
_समुद्र के किनारे जब एक तेज़ लहर आयी तो एक बच्चे की चप्पल ही अपने साथ बहा ले गयी_...
_बच्चा रेत पर अंगुली से लिखता है_.. "समुद्र चोर है"
_उसी समुद्र के दूसरे किनारे पर एक मछुवारा बहुत सारी मछलियाँ पकड़ लेता है_....
_वह उसी रेत पर लिखता है_.."समुद्र मेरा पालनहार है"
_एक युवक समुद्र में डूब कर मर जाता है_....
_उसकी मां रेत पर लिखती है_... "समुद्र हत्यारा है"
_एक दूसरे किनारे एक गरीब बूढ़ा टेढ़ी कमर लिए रेत पर टहल रहा था...उसे एक बड़े सीप में एक अनमोल मोती मिल गया_...
_वह रेत पर लिखता है_... "समुद्र बहुत दानी है"
_अचानक एक बड़ी लहर आती है और सब लिखा मिटा कर चली जाती है ।_..
_मतलब समंदर को कहीं कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोगों की उसके बारे में क्या राय हैं, वो हमेशा अपनी लहरों के संग मस्त रहता है_..
_अगर विशाल समुद्र बनना है तो जीवन में क़भी भी फ़िजूल की बातों पर ध्यान ना दें । अपने उफान , उत्साह , शौर्य ,पराक्रम और शांति समुंदर की भाँती अपने हिसाब से तय करें ।_
_लोगों का क्या है, उनकी राय परिस्थितियों के हिसाब से बदलती रहती है ।_
_अगर मक्खी चाय में गिरे तो चाय फेंक देते हैं और शुद्ध देशी घी मे गिरे तो मक्खी फेंक देते हैं ।_
*जो जितनी "सुविधा" में है*
*वो उतनी ही "दुविधा" में है ।*
_स्वस्थ रहें , मस्त रहें , हमेशा हँसते रहें, खिलखिलाते रहें औऱ अपना ख्याल रखें...........!!_
***
*9*
प्रतिभा प्रलाप नहीं करती,प्रयास करती है..
22 वर्षीय युवा एक माह में 28 दिन विदेश यात्रा करता हैं। फ्रांस ने उसे अपने यहां नौकरी करने के लिए आमंत्रित किया, जिसमें उसे 16,00,000(सोलह लाख) रुपए प्रतिमाह वेतन, 5 बीएचके मकान और ढाई करोड़ की कार देने का प्रस्ताव दिया गया।
परंतु उसने यह बड़ी ही विनम्रता से अस्वीकार कर दिया ,क्योंकि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (#DRDO) को उसका संविलियन करने के आदेश दे दिए गए थे ।
आइए, वह बालक कौन है इसके बारे में हम जानें-
#भाग एक-
मैसूर कर्नाटक के निकट दूरस्थ ग्रामीण अंचल में कदईकड़ी में जन्मा बालक । पिता कृषक ।पिता की आय महज 2000 रुपये मासिक।
बचपन से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के प्रति रुचि। प्राथमिक कक्षा से ही निकट के साइबरकेफे में जाता और दुनिया भर की एविएशन स्पेस वेबसाइट में डूबा रहता। टूटी फूटी भाषा में वैज्ञानिकों को ई मेल भेजता।
वह इंजीनियरिंग करना चाहता था पर आर्थिक स्थिति दयनीय होने के कारण बीएससी भौतिक करना पड़ा। छात्रावास शुल्क अदा न करने के कारण उसे वहां से निकाला गया। वह मैसूर बस स्टैंड पर सोता और सार्वजनिक टॉयलेट का उपयोग करता।
उसने अपनी मेहनत से कंप्यूटर लैंग्वेज का ज्ञान प्राप्त किया और ई वेस्ट के माध्यम से ड्रोन बनाना सिखा। अभी तक 600 से ज्यादा ड्रोन बना चुके इस बालक को पहला ड्रोन बनाने के लिए 80 बार प्रयत्न करना पड़ा।
#भाग दो -
#आईआईटी दिल्ली में ड्रोन प्रतियोगिता में भाग लेने ट्रेन के जनरल क्लास में गया और द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
जापान में आयोजित विश्व ड्रोन प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए उसे अपनी थीसिस चेन्नई के प्रोफ़ेसर से अनुमोदित कराना पड़ा, जिसे यह लिखने में दक्ष नहीं है टिप्पणी के साथ अनुमोदित कर दिया गया।
जापान जाने के लिए ₹60000 रुपयों की जरूरत थी, जिसे मैसूर के एक व्यक्ति द्वारा उसके फ्लाइट टिकट स्पॉन्सर किए गए। ऊपरी खर्च के लिए उसने अपनी मां का मंगलसूत्र बेचकर व्यवस्था की। जब वह जापान उतरा तो उसकी जेब में मात्र 14 सौ रुपए थे।
आयोजन स्थल तक जाने के लिए मंहगी बुलेट ट्रेन से टिकट ले पाना संभव नहीं था। 16 स्थानों पर लोकल ट्रेन बदलते बदलते और अंत के 8 किलोमीटर पैदल चलते हुए वह आयोजन स्थल पर पहुंचा जहां 127 देशों के प्रतियोगी भाग ले रहे थे।
जब परिणाम घोषित किया जा रहा था तो उसमें टॉप टेन के 10 वें नंबर से 2 तक उसका नाम नहीं आया तो वह निराश होकर वापस हो रहा था...
..तभी जज ने घोषित किया #प्रताप गोल्ड मेडलिस्ट भारत । वह खुशी से उछल पड़ा। उसने अपनी आंखों से यूएसए का ध्वज नीचे उतरते और भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा ऊपर जाते हुए देखा। पुरस्कार स्वरुप उसे 10,000 यूरो प्रदान किए गए।
भारतीय प्रधानमंत्री और कर्नाटक के विधायक और सांसदों ने भी उसे बधाइयां दी। आज यह प्रतिभाशाली बालक रक्षा अनुसंधान और रक्षा विकास संगठन में वैज्ञानिक के पद पर सेवारत है। यह और कोई नहीं अपने नाम के अनुरूप प्रताप दिखाने वाला प्रताप ही है। जी हां प्रताप।
प्रतिभा प्रलाप नहीं करती,प्रयास करती है और प्रतिष्ठा अर्जित करती है। पैसा जरुरी है पर Passion उससे भी ज्यादा जरुरी।
साभार
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*10*
जब टाईटेनिक जहाज समुन्द्र में डूब रहा था ,उस समय उसके आस पास तीन ऐसे जहाज़ मौजूद थे जो टाईटेनिक के मुसाफिरों को आसानी से बचा सकते थे।
सबसे करीब जो जहाज़ मौजूद था उसका नाम SAMSON था और वो हादसे के वक्त टाईटेनिक से सिर्फ सात मील की दूरी पर था।
SAMSON के कैप्टन ने न सिर्फ टाईटेनिक की ओर से फायर किए गए सफेद शोले (जो कि बेहद खतरे की हालत में हवा में फायर किये जाते हैं।) देखे थे, बल्कि टाईटेनिक के मुसाफिरों के चिल्लाने के आवाज़ को भी सुना था।
लेकिन उस वक़्त सैमसन के लोग गैर कानूनी तौर पर बेशकीमती समुन्द्री जीव का शिकार कर रहे थे और नहीं चाहते थे कि पकड़े जाएं,लिहाज़ा वे अपने जहाज़ को दूसरी तरफ़ मोड़ कर चले गए।
यह जहाज़ हम में से उन लोगों की तरह है जो अपनी गुनाहों भरी जिन्दगी में इतने मग़न हो जाते हैं कि उनके अंदर से इनसानियत खत्म हो जाती है।
दूसरा जहाज़ जो करीब मौजूद था उसका नाम CALIFORNIAN था, जो हादसे के वक्त टाईटेनिक से चौदह मील दूर था, उस जहाज़ के कैप्टन ने भी टाईटेनिक की ओर से निकल रहे सफेद शोले अपनी आखों से देखे, क्योंकि टाईटेनिक उस वक्त बर्फ़ की चट्टानों से घिरा हुआ था और उसे उन चट्टानों के चक्कर काट कर जाना पड़ता, इसलिए वो कैप्टन सुबह होने का इन्तजार करने लगा।और जब सुबह वो टाईटेनिक की लोकेशन पर पहुंचा तो टाईटेनिक को समुन्द्र की तह मे पहुचे हुए चार घंटे गुज़र चुके थे और टाईटेनिक के कैप्टन Adword_Smith समेत 1569 मुसाफिर डूब चुके थे।
यह जहाज़ हम लोगों मे से उनकी तरह है जो किसी की मदद करने के लिए अपनी सहूलियत और आसानी देखते हैं और अगर हालात सही न हों तो अपना फ़र्ज़ भूल जाते हैं।
तीसरा जहाज़ CARPHATHIYA था जो टाईटेनिक से 68 मील दूर था, उस जहाज़ के कैप्टन ने रेडियो पर टाईटेनिक के मुसाफारों की चीख पुकार सुनी, जबकि उसका जहाज़ दूसरी तरफ़ जा रहा था, उसने फौरन अपने जहाज़ का रुख मोड़ा और बर्फ़ की चट्टानों और खतरनाक़ मौसम की परवाह किए बगैर मदद के लिए रवाना हो गया। हालांकि वो दूर होने की वजह से टाईटेनिक के डूबने के दो घंटे बाद लोकेशन पर पहुच सका लेकिन यही वो जहाज़ था, जिसने लाईफ बोट्स की मदद से टाईटेनिक के बाकी 710 मुसाफिरों को जिन्दा बचाया था और उन्हें हिफाज़त के साथ न्यूयार्क पहुचा दिया था।
उस जहाज़ के कैप्टन "आर्थो रोसट्रन " को ब्रिटेन की तारीख के चंद बहादुर कैप्टनों में शुमार किया जाता है और उनको कई सामाजिक और सरकारी आवार्ड से भी नवाजा गया था।
हमारी जिन्दगी में हमेशा मुश्किलें रहती हैं, चैलेंज रहते हैं लेकिन जो इन मुश्किल और चैलेंज का सामना करते हुए भी इन्सानियत की भलाई के लिए कुछ कर जाए वही सच्चा इन्सान है।
आज के माहौल में जिस किसी ने भी अपनी सामर्थ्य अनुसार किसी की मदद की है, समझो विश्व रूपी टाइटैनिक के डूबने से पहले उसने जिंदगियां बचाने का पुण्य प्राप्त किया है। अभी संकट दूर नहीं हुआ है। अभी भी बहुत कुछ किया जा सकता है। आओ मिलजुल कर इस मुश्किल घड़ी में एक दूसरे की मदद करें।
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*11*
एक मेजर साहब के नेतृत्व में बीस जवानों की एक टुकड़ी हिमालय के अपने रास्ते पर थी । बेतहाशा ठण्ड में मेजर ने सोचा की अगर उन्हें यहाँ एक कप चाय मिल जाती तो आगे बढ़ने की ताकत आ जाती । लेकिन रात का समय था आस पास कोई बस्ती भी नहीं थी। लगभग एक घंटे की चढ़ाई के पश्चात् उन्हें एक जर्जर चाय की दुकान दिखाई दी । लेकिन अफ़सोस उस पर ताला लगा था । भूख और थकान की तीव्रता के चलते जवानों के आग्रह पर मेजर साहब दुकान का ताला तुड़वाने को राज़ी हो गये । ताला तोडा गयाए तो अंदर उन्हें चाय बनाने का सभी सामान मिल गया । जवानों ने चाय बनाई साथ वहां रखे बिस्किट आदि खाकर खुद को राहत दी । थकान से उबरने के पश्चात् सभी आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे ए लेकिन मेजर साहब को यूँ चोरो की तरह दुकान का ताला तोड़ने के कारण आत्मग्लानि हो रही थी । उन्होंने अपने पर्स में से दो हज़ार का एक नोट निकाला और चीनी के डब्बे के नीचे दबाकर रख दिया तथा दुकान का शटर ठीक से बंद करवाकर आगे बढ़ गए । चार महीने की समाप्ति पर इस टुकड़ी के सभी बीस जवान सकुशल अपने मेजर के नेतृत्व में उसी रास्ते से वापस आ रहे थे । रास्ते में उसी चाय की दुकान को खुला देखकर वहां सभी विश्राम करने के लिए रुक गए । उस दुकान का मालिक एक बूढ़ा चाय वाला था जो एक साथ इतने ग्राहक देखकर खुश हो गया और उनके लिए चाय बनाने लगा । चाय की चुस्कियों और बिस्कुटों के बीच मेजर साहब चाय वाले से उसके जीवन के अनुभव पूछने लगे एखासतौर पर इतने बीहड़ में दूकान चलाने के बारे में । बुजुर्ग व्यक्ति उन्हें कईं कहानियां सुनाता रहा और साथ ही भगवान का आभार प्रकट करता रहा । तभी एक जवान बोला ष् बाबा आप भगवान को इतना मानते हो ए अगर भगवान सच में होता तो फिर उसने तुम्हें इतने बुरे हाल में क्यों रखा हुआ हैष् । बाबा बोला ष्नहीं साहब ऐसा नहीं कहते भगवान के बारे मेंए भगवान् तो है और सच में है ण्ण्ण्ण् मैंने देखा हैष् आखरी वाक्य सुनकर सभी जवान कोतुहल से बुजुर्ग की ओर देखने लगे । बाबा बोला ष्साहब मै बहुत मुसीबत में था ए एक दिन मेरे इकलौते बेटे को आतंकवादियों ने पकड़ लिया । उन्होंने उसे बहुत मारा पिटाए लेकिन उसके पास कोई जानकारी नहीं थीए इसलिए उन्होंने उसे मार पीट कर छोड़ दियाष्। ष्मैं दुकान बंद करके उसे हॉस्पिटल ले गया ।मै बहुत तंगी में था साहब और आतंकवादियों के डर से किसी ने उधार भी नहीं दियाष् । ष्मेरे पास दवाइयों के पैसे भी नहीं थे और मुझे कोई उम्मीद भी नज़र नहीं आती थी । उस रात मै बहुत रोया और मैंने भगवान से प्रार्थना की और मदद मांगी ष्और साहब ण्ण्ण् उस रात भगवान मेरी दुकान में खुद आएष् ष्मै सुबह अपनी दुकान पर पहुंचा ताला टूटा देखकर मुझे लगा कि मेरे पास जो कुछ भी थोड़ा बहुत था वो भी सब लुट गयाष् । ष् मै दुकान में घुसा तो देखा दो हज़ार रूपए का एक नोटए चीनी के डब्बे के नीचे भगवान ने मेरे लिए रखा हुआ हैष् । ष्साहब ण्ण्ण्ण्ण् उस दिन दो हज़ार के नोट की कीमत मेरे लिए क्या थीए शायद मै बयान न कर पाऊं ण्ण्ण् लेकिन भगवान् है साहब ण्ण्ण् भगवान् तो हैष् । बुजुर्ग फिर अपने आप में बड़बड़ाया’ ण्ण्ण्ण् भगवान् के होने का आत्मविश्वास उसकी आँखों में साफ़ चमक रहा था । यह सुनकर वहां सन्नाटा छा गया बीस जोड़ी आँखे मेजर की तरफ एकटक देख रही थी जिसकी आंख में उन्हें अपने लिए स्पष्ट आदेश था ष् खामोश रहो ष् । मेजर साहब उठेए चाय का बिल जमा किया और बूढ़े चाय वाले को गले लगाते हुए बोले ष्हाँ बाबा मै जानता हूँ भगवान् हैण्ण्ण्ण् और तुम्हारी चाय भी शानदार थीष् । और उस दिन उन बीस जोड़ी आँखों ने पहली बार मेजर की आँखों में चमकते हुए पानी के दुर्लभ दृश्य को देखा और साथ ही ये अनुभव किया कि भगवान तुम्हें कब किसकी मदद के लिए किसका भगवान बनाकर कहाँ भेज देंगेए ये खुद तुम भी नहीं जानतेण्ण्ण्ण्!!
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#*12*
प्रेरक प्रसंग
केन्या के सुप्रसिद्ध धावक अबेल मुताई आलंपिक प्रतियोगिता के अंतिम राउंड मे दौड़ते वक्त अंतिम लाइन से एक मीटर ही दूर थे और उनके सभी प्रतिस्पर्धी पीछे थे। अबेल ने स्वर्ण पदक लगभग जीत ही लिया था, इतने में कुछ गलतफहमी के कारण वे अंतिम रेखा समझकर एक मीटर पहले ही रुक गए। उनके पीछे आने वाले स्पेन के इव्हान फर्नांडिस के ध्यान में आया कि अंतिम रेखा समझ नहीं आने की वजह से वह पहले ही रुक गए। उसने चिल्लाकर अबेल को आगे जाने के लिए कहा लेकिन स्पेनिश नहीं समझने की वजह से वह नहीं हिला। आखिर में इव्हान ने उसे धकेलकर अंतिम रेखा तक पहुंचा दिया। इस कारण अबेल का प्रथम तथा इव्हान का दूसरा स्थान आया।
पत्रकारों ने इव्हान से पूछा "तुमने ऐसा क्यों किया ? मौका मिलने के बावजूद तुमने प्रथम क्रमांक क्यों गंवाया ?"
इव्हान ने कहा "मेरा सपना है कि हम एक दिन ऐसी मानवजाति बनाएंगे जो एक दूसरे को मदद करेगी ना कि उसकी भूल से फायदा उठाएगी। और मैंने प्रथम स्था नहीं गंवाया।
पत्रकार ने फिर कहा "लेकिन तुमने केनियन प्रतिस्पर्धी को धकेलकर आगे लाया।
इसपर इव्हान ने कहा "वह प्रथम था ही। यह प्रतियोगिता उसी की थी।"
पत्रकार ने फिर कहा, "लेकिन तुम स्वर्ण पदक जीत सकते थे।"
इव्हान ने कहा, "उस जीतने का क्या अर्थ होता। मेरे पदक को सम्मान मिलता ? मेरी मां ने मुझे क्या कहा होता ?
संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आगे जाते रहते हैं। मैंने अगली पीढ़ी को क्या दिया होता ? दूसरों की दुर्बलता या अज्ञान का फायदा न उठाते हुए उनको मदद करने की सीख मेरी मां ने मुझे दी है।"
साभार : डॉ. प्रवीण कुमार सिंह की फेसबुक वाल से
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*13* प्रैक्टिस
श्रीलंका का एक खिलाड़ी था, उसके
दिमाग में बस एक ही चीज चलती थी….
क्रिकेट.क्रिकेट और बस क्रिकेट…
अपनी कड़ी मेहनत और लगन के दम पर उसे
श्री लंका की टेस्ट टीम में डेब्यू करने
का मौका मिला….
पहली इन्निंग्स…… जीरो पे आउट
दूसरी इन्निंग्स……. जीरो पे आउट
.
.
.
टीम से निकाल दिया गया….
.
practice…practice….practice….
फर्स्ट क्लास मैचेज में लगातार अच्छा
प्रदर्शन किया और एक 21 महीने बाद
फिर से मौका मिला।
पहली इन्निंग्स…… जीरो पे आउट
दूसरी इन्निंग्स……. 1 रन पे आउट
…
फिर टीम से बाहर।
..
प्रैक्टिस….प्रैक्टिस….प्रैक्टिस….
फर्स्ट क्लास मैचेज में हजारों रन बना
डाले और 17 महीने बाद एक बार फिर से
मौका मिला….
पहली इन्निंग्स…… जीरो पे आउट
दूसरी इन्निंग्स……. जीरो पे आउट
.
.
.
फिर टीम से निकाल दिया गया….
.
प्रैक्टिस…
प्रैक्टिस….प्रैक्टिस….प्रैक्टिस…
प्रैक्टिस….प्रैक्टिस…
और तीन साल बाद एक बार फिर उस
खिलाड़ी को मौका दिया
गया…..जिसका नाम था मर्वन
अट्टापट्टू
इस बार अट्टापट्टू नहीं चूका उसने जम
कर खेला और ….श्रीलंका की और से 16
शतक और 6 दोहरे शतक जड़ डाले और
श्रीलंका का one of the most
successful कप्तान बना!
सोचिये जिस इंसान को अपना दूसरा
रन बनाने में 6 साल लग गए अगर वो
इतना बड़ा कारनामा कर सकता है तो
दुनिया का कोई भी आदमी कुछ भी
कर सकता है!
और कुछ कर गुजरने के लिए डंटे रहना
पड़ता है…लगे रहना पड़ता है…मैदान छोड़
देना आसान होता है…मुश्किल होता है
टिके रहना…और जो टिका रहता है वो
आज नहीं तो कल ज़रूर सफल होता है।
इसलिए आपने जो कुछ भी पाने का
निश्चय किया है उसे पाने
की अपनी
जिद मत छोडिये…
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मन से किये छोटे
🌸प्रयास 🌸
हमेशा बड़ा परिणाम देते है।
#क्रिकेट #स्टोरी
🙏 *आपका दिन शुभ हो* 🙏
14-
🙏🙏🙏🙏
1 टिप्पणी:
जय हो आदरणीय आपका प्रयास कवियों की रचनाओं को प्रकाशित कर रहा । बहुत ही सराहनीय उत्तम प्रयास । आपको बहुत-बहुत साधुवाद
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