Rajeev Namdeo Rana lidhorI

मंगलवार, 6 मई 2025

बुंदेलखंड की बावड़ियां - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

बुंदेलखंड की प्रसिद्ध बावड़ियां 
    आलेख- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

टीकमगढ़ जिले की प्रसिद्ध बावड़ियां:-

टीकमगढ़ जिले  में लगभग 20 ऐतिहासिक प्राचीन बावड़ियां थी जो कि उस समय वहां के निवासियों की प्यास बुझती थी। कुछ बावड़ियां इस प्रकार से बड़े आकार की सीढ़ियां वाली बनी थी जिसमें उस समय मनुष्य के अलावा घोड़े, हाथी,ऊंट आदि पानी भी सके। 
लेकिन रखरखाव के अभाव में ये प्राचीन धरोहर लुप्त होती जा रही है। कुछ कूड़ा घर बन गयी है।
 वर्तमान में कुछ ही बावड़ियां शेष है।
हमने यहां कुछ बावड़ियां का भ्रमण करके उनकी ताजी फोटो खींची है एवं उनके बारे में जानकारी प्राप्त की है जिसे हम संक्षिप्त में इस आलेख में दे रहे हैं।

गणेश मंदिर बाबड़ी :-

गणेश मंदिर बावड़ी पीजी कॉलेज टीकमगढ़ के पास मौजूद हैं जो कि बिलकुल सड़क से लगी हुई है इसलिए इसके अंदर जाने का रास्ता बंद कर दिया गया है तथा ऊपर एक मंदिर का निर्माण किया गया है
चूंकि यह तालाब के किनारे पर है अतः इसमें अभी भी पानी भरा हुआ है।
पीछे की तरफ अंदर जाने का एक खुला है जो कि बहुत संकरा है एवं इसमें पीले रंग की बर्रो ने निवास बना लिया है।

मऊं चुंगी स्थित बावड़ी:-

मऊचुंगी स्थित पशु अस्पताल के सामने एक राजशाही बावड़ी है, जिसमें 120 से ज्यादा सीढ़ियां हैं. यह नगर पालिका क्षेत्र की सबसे पुरानी बावड़ियों में से एक है, लेकिन अब इसकी हालत खराब है. चंदेरा में भी कुछ बावड़ियां थीं, लेकिन उनमें से कुछ अब जमींदोज हो गई हैं. 

गौगाबेर हनुमान मंदिर की बावड़ी:-

टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से सागर मार्ग पर 3किलोमीटर दूरी पर गौगाबेर हनुमान मंदिर के पास ही एक बेर बाबड़ी बनी है जिसमें अभी भी पानी भरा रहता है। यहां नीचे जाने के लिए सीढ़ियां अभी भी खुली है जो कि मात्र 20फीट नीचे ही पानी से भरी है। नाले के समीप एवं नीचाई में होने के कारण बरसात में पानी बावड़ी के बिल्कुल ऊपर तक भर जाता है।

ग्राम पपोरा की बावड़ी :-

टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से सागर मार्ग पर मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पपोरा में एक अति प्राचीन बावड़ी है। प्रसिद्ध जैन तीर्थ भगवान आदिनाथ के मंदिर परिसर में स्थित इस बावड़ी को लोग चमत्कारी बावड़ी मानते हैं।  कहते हैं यहां पर बर्तन निकलते थे। 
एक किंवदंती अनुसार एक बार गांव के एक गरीब परिवार में शादी थी लेकिन उनके पास बर्तन तक नहीं थे तब उस गरीब ने भगवान आदिनाथ के सामने जाकर प्रार्थना की भक्ति की पुकार सुनकर कुछ देर बाद एक आकाशवाणी हुई कि बावड़ी के पास जाकर बावड़ी से मांग ले कितने बर्तन चाहिए। कहते हैं तुरंत बावड़ी से उसे बर्तन मिल गये। दूसरे दिन उसने वे बर्तन वापिस बावड़ी में डाल दिये। तभी से गांव में जिस किसी को भी वर्तन चाहिए होते वे बावड़ी के पास जाकर एक चिठ्ठी में वर्तनो की सूची बनाकर रख देते थे  दूसरे दिन उसे वे बर्तन मिल जाया करते थे। लोग इस चमत्कार को भगवान आदिनाथ की कृपा मानते हैं।

दिगौड़ा किले की बावड़ी :-
ऊपरी संरचना -
नीचे की संरचना -
जिला मुख्यालय टीकमगढ़ से 26 किलोमीटर बड़ा लिधौरा रोड़ पर किले के अंदर एक एतिहासिक बावड़ी बनी है।  जिसकी हाल ही में जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत सफाई की गई है।


ग्राम चंदेरा की बावड़ियां :-

ग्राम चंदेरा में पहले तीन बावड़ियां थीं, जिनमें से दो अब जमींदोज हो गई हैं। वर्तमान में एक बावड़ी गंज मोहल्ला में मौजूद है।

पपावनी की बावड़ी -

जिला मुख्यालय टीकमगढ़ से बल्देवगढ़ मार्ग पर 14किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पपावनी में दो बावड़ियां  बनी हुई है जिनमें एक बड़ी बावड़ी है। जिसमें पशु भी उतर कर पानी पी सकते हैं।
बावड़ी में एक शिलालेख भी है- जिसमें अंकित है -
1-" संवत 1771 सावनवद 8 मोमेवृषभ लग्नेश परगने जतारा में चौबे कल्याण सा ने वाली बनवाई श्री राजा श्री महाराजा विराज श्री राजा उदोत सिंघ बहादुर जू के हुक्म से।"
  (संदर्भ -बुंदेलखंड के शिलालेख -पेज-59)

2- "संवत 1734 सावनवद 5 सन ऊं लग्नेश महंत भोलेनाथ ने पुन्यार्थ नामदेव।"
  (संदर्भ -बुंदेलखंड के शिलालेख -पेज-59)

जतारा की बावड़ी -
तहसील  मुख्यालय जतारा में भी अनेक सुंदर बावड़ी मौजूद है। 'लोहा लंगड़' की बावड़ी है 
जिसे फकीर की बावड़ी कहा जाता है। यहां एक शिलालेख भी है जो कि अरबी भाषा में है। दौलत ख़ां ने यह बाबड़ी हिजरी सन् -1191 में बनवाई थी। 
(संदर्भ -बुंदेलखंड के शिलालेख, पेज -42-43)

यहीं जतारा से एक मील दूर गांव दौलतपुरा के जंगल में भी एक बावड़ी है जिसमें एक पत्थर पर संस्कृत में कुछ लिखा है। एक चौकोर पत्थर पर है जिस पर दौलत ख़ां एवं ततार ख़ां का नाम लिखा है।

बाजीतपुर की बावड़ी :-

जिला मुख्यालय टीकमगढ़ के तहसील जतारा के निकट ग्राम पंचायत बाजीतपुरा में एक प्राचीन बावड़ी है जिसकी हाल ही में जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत सफाई की गई है।


स्यावनी की बावड़ी:-

टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 56किलोमीटर दूर ग्राम स्यावनी है।जो कि टीकमगढ़ जिले की ग्राम पंचायत 'स्यावनी' है यहां पर एक बावड़ी है जो कि चंदेलकालीन बताई जाती है। 
इस बावड़ी में अभी भी पानी भरा रहता है। जल गंगा  संवर्धन अभियान के तहत जल अभियान परिषद् की ग्राम विकास प्रस्फुटन समिति नवांकुर संस्था खरों के सदस्यों द्वारा बावड़ी की सफाई की गयी। (उपरोक्त चित्र सफाई करते हुए समय का है)
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ग्राम कुड़ीला की बावड़ी :-

जिला मुख्यालय टीकमगढ़ से 48 किलोमीटर दूर बल्देवगढ़ तहसील अंतर्गत ग्राम कुड़ीला में भी एक प्राचीन बावड़ी मौजूद हैं जो कि बाहर एक ऊपर से झाड़ और जंगली पौधे से ढंग सी गयी है  हाल ही में हालांकि जिला प्रशासन द्वारा जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत बावड़ी के आसपास सफाई की गयी है।

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भड़रा की बावड़ी:-

ग्राम भड़रा में भी सड़क के किनारे पर पर एक बावड़ी मौजूद हैं जिसमें अभी भी जल भरा रहता है ।





ओरछा की मुल्तानी बाबा की कुआं (बावड़ी):-

ओरछा वर्तमान निवाड़ी जिला में मुल्तानी बाबा मंदिर के समीप एक कुआं मौजूद हैं जिसमें एक शिलालेख लगा हुआ है शिलालेख के अनुसार यह प्राचीन कुआं संवत् -1728 बैशाख वर्दी 5 सौम राज्य बुंदेल वंश श्री महाराजाधिराज श्री सुजान सिंह जू देव के सेवक श्री प्रधान बल्लभदास सुत प्रधान परसुरामकुंडरहा कायस्थ धर्मार्थ कुआं बाग बनवाये गये है।

ग्राम हरपुरा(सूरजपुर) की बावड़ी:-

टीकमगढ़ से ललितपुर मार्ग पर दायें तरफ टीकमगढ़ से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर बिल्कुल मुख्य सड़क पर एक बहुत खूबसूरत बावड़ी है उसमें पानी नहीं है। सूखी है जिसमें लगभग 160 सीढ़ियां हैं। बीच में छोटी छोटी कोठी भी बनी हुई है। देखने में यह बहुत सुंदर दिखाई देती है।
हीरानगर बावड़ी :-
टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से झांसी मिर्गी पर 10 किलोमीटर की दूरी पर हीरानगर में एक पांच मंजिला बावड़ी बनी है जो कि बगीचे के बीच में बनी है दूर से देखने में यह महल जैसी दिखायी पड़ती है।
यहां पर एक शिलालेख भी लगा है। जिसमें उल्लेखित है कि रानी हीरा कुंवर देवी ने बनायी थी इन्हीं रानी के नाम से गांव का नाम हीरानगर रखा गया था।

बल्देवगढ़ की बावड़ी:-

टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर दूर बल्देवगढ़ में ग्वाल सागर बांध के नीचे  एक बावड़ी बनी है जिसे मदन बावड़ी कहा जाता है। 
इस बावड़ी को मदन वर्मन ने बनवाया था जिसे सीढ़ीदार वेरे (बावड़ियां) एवं 'मदन बेर' नामों से जाना जाता है।
(संदर्भ -बुंदेलखंड का वृहद इतिहास -पेज-41)

दतिया जिले की बावड़ियां:-

दतिया जिले में अनेक बावड़ियों का निर्माण किया गया था जिनमें रानी की बावड़ी, बिहारी निवास की बावड़ी, बाबादार की बावड़ी,गणेश बावड़ी, घुड़दौड़ बावड़ी, तिवारी की बावड़ी, किले की बावड़ी, लल्लापुरा की बावड़ी,सुरैया की बावड़ी, निमक 9 बावड़ियां प्रसिद्ध हैं।
(संदर्भ - बुंदेली विरासत, अक्टूबर -2015,पेज-66)

रानी की बावड़ी (दतिया):-

दतिया नरेश पारीछत (1801-39ई.) की रानी हीरा कुंवरि ने सन् - 1808ई= में एक बावड़ी का निर्माण दतिया में करवाया था जिसे 'रानी की बावड़ी' के नाम से जाना जाता है।
संदर्भ - बुंदेली विरासत, अक्टूबर -2015,पेज-68)


सागर जिले की बावड़ियां:-

      सागर शहर में सबसे बड़ी ऐतिहासिक बावड़ी माडल स्कूल के पास नागेश्वर मंदिर के सामने है इसका निर्माण मराठा काल में किया गया था।

       सागर में ही बड़ा बाजार में लक्ष्मी दत्त मंदिर के पास भी एक बावड़ी है जिसका निर्माण भी मराठा काल में हुआ था।
  (संदर्भ -'मध्य प्रदेश संदेश' वर्ष -105,अंक-6पेज-8)

दमोह जिले की बावड़ियां:-

बटियागढ़ की बावड़ी:-

बटियागढ़ जिला दमोह में प्राप्त शिलालेख के अनुसार संवत् 1385(1328ई.) में सुल्तान मुहम्मद के समय जीव जंतुओं के आश्रय हेतु एक गोमट,एक बावड़ी,और एक बगीचे का निर्माण किया गया था।
(संदर्भ - नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष -44,अंक-1,पेज-76)


जिला अशोकनगर, गुना,ग्वालियर बावड़ियां :-

झलारी  (चंदेरी)बावड़ी :-

एक शिलालेख में अंकित जानकारी के अनुसार झलारी बावड़ी का निर्माण चंदेरी के बुंदेला शासक दुर्ग सिंह (1663-1687ई.) ने अपने शासन काल में कराया था।
इसी प्रकार ग्राम ढंकोनी में संवत 1743(सन् -1886ई.) में एक बावड़ी का निर्माण कराया गया था।
(संदर्भ - मजीद खान पठान, पुरातत्व धरोहर चंदेरी, पेज -101)

चंदेरी (चंदाई बावड़ी) :-

इसका निर्माण मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी प्रथम के शासन काल में मेहताब ख़ां मुल्तानी के गर्वनर काल में चांद वक्काल द्वारा सन् -1437ई. (हिजरी सन् -864) में करवाया गया था। यहां पर संस्कृत एवं फारसी में दो शिलालेख लगे हैं
(संदर्भ - पुरातत्व धरोहर, चंदेरी, पेज -95)

बत्तीसी बावड़ी, चंदेरी:-

बत्तीसी बावड़ी चंदेरी के उत्तर -पश्चिम दिशा में है इसका निर्माण मांडू के ग्रास शाह खिलजी के राज्यकाल में हुआ है।
(संदर्भ - नागरी प्रचारिणी पत्रिका वर्ष -44,अंक-1, पेज -76)

कजरारी बावड़ी (चंदेरी) :-

इसका निर्माण मालवा के सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी द्वारा हिजरी सन् -890(1485ई.) में करवाया गया था।
( संदर्भ -पुरातत्व धरोहर, चंदेरी,पेज-98)

जनाना बावड़ी (चंदेरी) :-

इसका निर्माण मालवा के सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी के शासन काल में किशनू द्वारा करवाया गया था यह संस्कृत एवं फारसी में शिलालेख लगे हैं। संभवतः यह भी सन् -890(1485ई.) के कालखंड में बनवाई गई थी।
( संदर्भ -पुरातत्व धरोहर, चंदेरी,पेज-101)


जबलपुर जिले की बावड़ियां:-

लगभग 13वीं शताब्दी में गोंड शासक मदन सिंह ने लगभग 120 बावड़ियों का निर्माण करवाया था। जिसमें से अनेक बावड़ियों का निर्माण राजधानी गढ़ा में किया गया था।
(संदर्भ -'मध्य प्रदेश संदेश' वर्ष -105,अंक-105पेज-9)

उजारपुरवा (जबलपुर) की वीर बावड़ी:-

जबलपुर मध्य प्रदेश के निकट रानी ताल के अगोर से लगे ग्राम उजारपुरवा में सोलहवीं शताब्दी में बनी एक बावड़ी है। जिसे वीर बावड़ी भी कहते हैं 
जो कि पांच मंजिला है इसकी दीवारें चूना-गारा से बनी हुई है। इसका प्रेश द्वार 40फीट का है एवं उसपर बुर्ज बने हुए हैं उसके नीचे 30 गुणा 70 फीट में सीढ़ियां बनी है रोशनी के लिए रोशनदान एवं गवाक्ष बने हैं। वहीं पर गर्मियों में आराम करने के लिए छोटे छोटे कक्ष (कोठियां) बनी हुई है। इस बावड़ी को गोंडा राजा मधुकर शाह ने अपने चचेरे भाई वीर नारायण की स्मृति में लगभग सन् -1576-1592 के बीच बनवाया था। इस बावड़ी को वीर बावड़ी के नाम से भी जाना जाता है।
(संदर्भ -'मध्य प्रदेश संदेश' वर्ष -105,अंक-6पेज-8)



बांसी (ललितपुर) की बावड़ी:-

बांसी जनपद ललितपुर उत्तर प्रदेश में रोया मै एक बावड़ी थी जिसे रामशाह के पौत्र कृष्ण सिंह को फांसी की जागीर प्राप्त हुई थी। इन्होंने बांसी का दुर्ग एवं रोया की बावड़ी बनवाई थीं  जिसका उल्लेख बुंदेलखंड का वृहद इतिहास के पेज-97 पर किया गया है।

उत्तर प्रदेश (बुंदेलखंड)की बावड़ियां:-



कुलपहाड़ (महोबा) :-

जनपद महोबा के तहसील कुलपहाड़ में अनेक प्राचीन किले हैं जिनमें अधिकांश में बावड़ियां बनी हुई है जिनका पानी कभी नहीं सूखता है। ये किले और बावड़ियां मराठों के शासन काल में बनी हुई है।
(संदर्भ - मधुकर,बर्ष-3,अंक-23-24पृ.-569)

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✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"

           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका

संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका

जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़

अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़

नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,

टीकमगढ़ (मप्र)-472001

मोबाइल- 9893520965

Email - ranalidhori@gmail.com

साभार संदर्भ ग्रंथ:-

1- बुंदेलखंड का वृहद इतिहास के पेज-97

2 -'मध्य प्रदेश संदेश' वर्ष -105,अंक-6पेज-8)
-पुरातत्व धरोहर, चंदेरी,पेज-101)

3 - नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष -44,अंक-1,पेज-76)

4- मधुकर,बर्ष-3,अंक-23-24पृ.-569)
5- बुंदेलखंड के शिलालेख-
6-संदर्भ - बुंदेली विरासत, अक्टूबर -2015 पेज-66)

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शोध आलेख -✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"

           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका

संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका

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टीकमगढ़ (मप्र)-472001भारत

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