Rajeev Namdeo Rana lidhorI

मंगलवार, 16 जनवरी 2024

बुंदेली दोहा प्रतियोगिता समग्र - संपादन- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

बुन्देली दोहा प्रतियोगिता -221
[21/06, 12:33] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहा बिषय-:- भियाने/ भ्याने  (कल सुबह)*

#राना भ्याने का धरौ,अबइँ करौ सब बात।
निपटा कैं ही घर चलो,पारौ  नईं  उलात।।

भ्याने चलौ बरात में,हो जाओ तैयार।
लरका बारौ कात है,बनौ रयै व्यवहार।।

भ्यानें #राना  जा रहे,अपनी निज ससुरार।
धना लिबा के लाउनें,अपने घर के द्वार।।

#राना भ्याने आ रयै,भारी नातेदार।
भैया के हैं  वर दिखउँ,नदिया के ऊ पार।।

#राना भ्याने अब मिलें,सबखौ सीताराम।
दोहा लिखयौ सब जनै,बड़ौ सुहानो काम।।
     *** दिनांक -21.6.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
       संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[21/06, 15:15] Promod Mishra Just Baldevgarh: बुन्देली दोहा ,विषय ,, भियाने ,,
************************************
हुँयेँ भियाने राम जूँ  , सुन लो अवध नरेश ।
चलन लगेँ वनवास खाँ , उल्टो भव संदेश ।।

आँयँ भियाने पाँवने , उन सेँ हर हकवाँयँ ।
कड़ी भात रोटी बरा  , उनेँ "प्रमोद"खुआँयंँ ।।

जारय मान्स कमाँस खाँ , सुनी भियाने भोर ।
चर्चा अबइँ अथाइँ पै , कततो राज किशोर ।।

मिलों भियाने दिन चढ़ेँ , पीपर तरेँ "प्रमोद" ।
अमियाँ चौँखेँ पाल की , मउआ इमली कोद ।।

सपर खोर भ्याँने धना , शिव मंदिर में आव ।
हुइये उतइँ"प्रमोद"सेँ , प्रेमालव बतकाव ।।

जैयँ भियाने खेत पै , लयँ उरदन को बीज ।
लासो छिरकेँ पैल हम , चारो जैहै सीज ।।

भ्याने की करियो खबर , होगइंँ मनइँ बिलात ।
खावैं परेँ "प्रमोद"खोँ , बोलो को दयँ जात ।।
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    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[21/06, 15:53] Subhash Singhai Jatara: 21.6.25- शनिवार भियाने/ भ्याने  (कल सुबह )

भ्याने कभउँ न आत है , जो रत है वह आज‌ |
जो करने सो कर चलो , रखकैं निज आबाज ||

पइसा माँगे साव से , बोले   भ्याने    आवँ |
गानौ रखकै‌ खूब तुम , रुपया सब  ले जावँ ||

टर गइ भ्याने बात है ,      उचट गई पंचाट  |
जौरो फिर से जोगना , और बिछाओ खाट ||

भ्याने   नेता आवने , सड़कें  हो रइँ साफ |
कल्लू से कइ आइयो , हौजे करजा  माफ ||

करौ आज की आज सब , भ्याने पै ना टार |
साजे काम बिगार दे , जो‌   टपकी  है  लार ||

सुभाष सिंघई 

~~~~~~~
[21/06, 16:11] Prabha Vishwakarma 'Sheel' Jabalpur: तनक- मानक सी बात पै, बैठ रही पंचयात।
 भ्यानें  मोंह न  खोलियो, दबी रहन दो बात।।

भ्यानें है दिन योग को, मिलखें करियो योग।
 योगासन व्यायाम सें, कभउँ न आवे रोग।।

भ्यानें आंहै पाहुने ,करें ब्याव की बात ।
नबैं भड़रिया तक कहो, लै खें आए बारात।।

जाओ संदेसौ भेज दो, भ्यानें लगै बारात ।
आज बराती सब थके, करें रात गुजरात।।

तन मन डुबो पाप में, सब कछु हड़पें लेत ।
भ्यानें की बिसरे खबर, जब जम डंडा देत।।
🙏
प्रभा विश्वकर्मा 'शील '
जबलपुर
[21/06, 16:49] Prabha Vishwakarma 'Sheel' Jabalpur: कुंडलियां

भ्यानें है दिन योग को, 
मिल खें करियो योग। 
योगासन व्यायाम सें,
 कभउंँ न आवे रोग ।।
कभउँ न आवे रोग, 
सुनो ऋषियों की वानी।
 करें तपस्या ध्यान,
 योग सें बढ़ै जवानी।
 योग दिवस इक रोज,
 नहीं निसदिन  हैं आने।
 कह रईं प्रभा शील, 
योग को दिन है भ्यानें। 
🙏
प्रभा विश्वकर्मा 'शील '
जबलपुर
[21/06, 17:38] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय भ्यानें 
                  1
चलौ सखी भ्यानें अपुन, अवधपुरी से धाम। 
जाँ सरयू इस्नान खों, दर्शन खों श्री राम। 
                 2
खुलें भियानें मदरसा, पडवे खों पोंचाव। 
पड लिख कें काबिल बनों, दूध मलाई खाव। 
                 3
पर गव पैलौ दोंगरौ, हो गय खुसी किसान। 
भ्यानें सें जुट हैं सबइ, फल दै हें भगवान। 
                   4
मइना साउन आ रऔ, भ्यानें है त्यौहार। 
झूला झूलें तीज कौ, बैठैगे करतार। 
                     5
आव पिया परदेश सें, सूनों है घर दोर।
भ्यानें बैठौ रेल में, कर रइ फौन लिलोर। 
रामानन्द पाठक नन्द
[21/06, 18:28] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे,विषय-भ्यानें 
**********************
को जानें भ्यानें हमें, 
         सुख मिलहै कै दुक्ख।
हँसकें जी लो आज खों,
             छोड़ौ भद्रा पुक्ख।।
********
आज करौ आराम फुल,
              भ्यानें करबूँ काम।
ऐसी रख हौ सोच तौ,  
             माया मिलै न राम।।
********
जो भ्यानें की योजना,
              बना लेत हैं आज।
हरय-गरय उनके कभउँ,
         पछलत नइँयाँ काज।।
********
पंगत में ख्वा कें लटा,
           शासन  देत  दुहाइ।
कुँवर कलेबा में मिलै,
          भ्यानें गोल मिठाइ।।
**********************
गोकुल प्रसाद यादव नन्ही टेहरी
[21/06, 20:38] Taruna khare Jabalpur N: भ्याने, शब्द पर दोहे 


भ्याने मैके जाउने, सुनियो राजा बात।
सौदा लैबै आप भी,चलियो मोरे साथ।।

मौड़ी की ससरार सैं,आय पाउने चार।
भ्याने बिटिया की बिदा,धरो करेजे भार।।

भ्याने आने आप भी,मिलखैं करबी योग।
मिटैं बिकार सरीर के,तन मन होंय निरोग।।

आज बने राजा फिरैं,भ्याने होबैं रंक।
रीत जई संसार की,नइयां कौनउ संक।।

आज भांवरें पर गईं,हो गय पीरे हांत।
भ्याने बिटिया की बिदा,जायं पिया के सांत।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[21/06, 20:55] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहे 
विषय:-भ्यानें/कल 
भ्यांने की कयॅं सोच रय,करौ आज सब काम।
जीवन की जानें कहाॅं, कब जानें हैं शाम।।१।।

भ्यांने की ठेलत फिरत, पल कौ नैंयां ठौर।
दाॅंत निपोर काय खों,उठा न पा है कौर।।२।।

आज अगर नोनो करौ, तौ भ्यानें सुक पाव।
न‌इतर स्यांने कै गय,बिकौ भटों के भाव।।३।।

भ्यांने की को जान रव, छोड़ जगत जंजाल।
जौन जियत हैं आज में,बे सब मालामाल।।४।।

भ्यांने की कै गयॅं सजन, बीती पूरी साल‌।
ल‌इॅं न‌इॅं खबर अहीर नें, परसें बैठी थाल।।५।।
               भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[21/06, 21:00] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -221*
दिनांक -21.6.2028
*विषय:-भ्यानें (कल सुबह)*

*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
जो करनें सो कर अब‌इ, भ्यानें पै नें टार।
सरकत जा रव जो जगत, लगी जीत उर हार।।
             ***
                -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा
*2*
करम गती जानी नहीं, नहीं कछू अंदाज।
भ्यानें की देखी नहीं, आजइ कर लो काज।
                  ***
              -प्रदीप खरे'मंजुल' टीकमगढ़ 
*3*
आ रय सबरे पावने, भियाने पनचयात।
इक सोने की चीज पे, मांझी बिगरी बात।।
           ***
            -विशाल कड़ा,'मांझी',बडोराघाट,टीकमगढ़
*4*
भ्यानें कौ की खों पतौ,आम होय चय खास। 
राजतिलक होंनें हतौ, हो गव तौ बनवास।।
              ***
             -रामानन्द पाठक 'नन्द', नैगुवां
*5*

भौजी भ्यानैं आवनैं,बसे पावनैं चार ।
काम क्रोध मद लोभ जे, रै गय डेरा डार ।।
                ***
      -शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा
*6*
 फोन लगा के पूछ लो,भ्याने आरय  कंत।
जी के आबे सें लगे, जो घर एक बसंत ll  
           ***
         -ब्रिंदावन राय 'सरल',सागर 
*7*
भ्याने तक नहिं आय तो,भरत तजेगो प्रान।
तबइ संदेसो राम कॉ, लै आए हनुमान।।
           ***
      -के. के. पाठक, ललितपुर 
*8*
भ्यानें है दिन योग को,मिल खें करियो योग ।
योगासन व्यायाम सें ,कभउँ न आवें रोग।।
           ***
          -प्रभा विश्वकर्मा 'शील', जबलपुर 
*9*
भ्याने की पंगत बड़ी,आहें तीन हजार।
पूड़ी सबजी तौ बनै, संग में चाबल दार।।
         ***
          - वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*10*
पाप गठरिया छोड़ दे,भ्याने जाने तोय।
पिरभू को ध्यान धरले,संग न जेहे कोय।।
          ***
            - रंजना शर्मा, भोपाल 
*11*
भ्याने पै  जो टारतइ,उनसे  आज सबाल।
देखो तुमने है किते,दिन कैसौ है काल।।
            ***
            - सुभाष सिंघई जतारा 
*12*
पल में परलय आत है, भ्याने  की  को  काय।
पलक झपकतन देह से, प्राणवायु उड़ जाय।।
                 ***
               - अमर सिंह राय,नौगांव
*13*
जौ जग कर्म प्रधान है, मनुआ रहो सचेत। 
आज करम नोने करौ,भ्याने प्रतिफल देत।।
        ***
             -आशा रिछारिया, निबाड़ी
*14*
सुनत भियाने कृष्ण खोँ,मथुरा पकर बुलाव।
उनेँ लुआवे कंश को,एक आदमी आव।।
              ***
         - प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 
*15*
होय काम जो आज को,भ्याने पै नै टाल।
तनक भरोसो है नईं,का हो जाबै काल।।
              ***

              -तरुणा खरे'तनु' जबलपुर
*16*
भ्याने का होने हतो, कोउ जान ना पाव। 
चढ के चले विमान में, कोउ न वापस आव।।
            ***
           -डॉ.रेणु श्रीवास्तव,भोपाल
*17*
भ्यानें भ्यानें कैत रत, भजन करै नैं ध्यान।
माया में प्रानी धसौ, बिसरौ हरि कौ थान।।
            ***
        -मनोज साहू 'निडर', नर्मदापुरम
*18*

अथयँ भियानें की फिकर,बीते दिन की टीस।
सब  तज कें  आँगें बढ़ौ, जगत नबाहै सीस।।
          ***
         -गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी
*19*
चलें   भिंयाने  ओरछा, एक  पंथ  दो काज।
दरसन प्रभु श्रीराम के, बुला  र‌ईं  साराज।।
               ***
                     -प्रभुदयाल श्रीवास्तव'पीयूष', टीकमगढ़
*20*
आउत  आँख  तरेर  कें, धीमें   लौटत  धूप।
भ्याने  दुपरैं  साँज  धर, न्यारौ  अपनों  रूप।।
               ***
            -विद्या चौहान,फरीदाबाद
*21*
भ्यानें जावै घूमवे, दिनछित  खाना खाय।
छिकरा सौ कूँदत फिरै,रोग लिगाँ नै आय।।
        ***
           - अंजनी चतुर्वेदी निबाड़ी 
*22*
चलो भियाने कड़ चलें, भैया अब परदेस ।
सूखा  पर गव  गांव में, कैसे  कटे कलेस ।।
            ***
           -डॉ.राजेश प्रखर कटनी(म.प्र.)
*23*

भ्याने दैहें कात हो, बो भ्यानो कब आय।
ब्याज छोड़ अब मूल दो, करजा दै पछताय।।
            ***
                 -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
*24*
भजन करो नें राम कौ, खेले मन के खेल।
आज भ्याने के करत,छूटी जीवन रेल।।
              ***
            -डॉ.देवदत्त द्विवेदी,बड़ामलहरा 
***
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
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बुन्देली दोहा प्रतियोगिता -220
[14/06, 12:54] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहे - रचैया(रचनाकार)*

सबइ रचैया देख कैं #राना करत प्रणाम।
सबके अपने हैं हुनर,जय‌ बुंदेली धाम।।

बँटे दिनन के बार हैं,सुंदर लिखतइ छंद।
सबइ रचैया भाग लें,मन में भर आनंद।।

बुंदेली है जो पटल,सबइ रचैया जान।
लिखत छंद बेजोड़ है,हौत सबइ कौ  मान।।

सबइ रचैया नेह से,पढ़ो सबइ के छंद।
और करौ तारीफ भी,बिखरा मिस्री मंद।।

छपत रचैया हैं सबइ,निकरत जौन किताब।
#राना छापत रात है,जैसौ बनत हिसाब।।
           *** दिनांक -14.6.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[14/06, 17:03] Subhash Singhai Jatara: 14.6.25- शनिवार  रचैया/रचनाकार ।

बड़े रचैया गीत के , मिलतइ इतै सुजान |
बुंदेली शुभ  शान की,  राखत सब पैचान ||

एक रचैया ईसुरी ,  लिख  चौकड़िया  छंद |
अमर नाम खौ कर गये , दे सबखौ आनंद ||

एक रचैया भी सुनौ , जगनिक जिनको नाम |
लिखकें आल्हा गा गये ,   नगर महोबा धाम ||

नगर ओरछा कवि भये , केशव जू महराज |
बड़े रचैया ग्रंथ के ,   कवियन  में  सरताज ||

भौत रचैया है मिलत , जिनके सुंदर गीत |
गातइ हैं सुर ताल से , राखत सबसे प्रीत ||

बनत रचैया हैं तबइँ , जब माँ खुश हौ जात |
लिखत प्रेम सै सब जनै , तब उमदा सब कात ||

सुभाष सिंघई 
~~~~~~~~
[14/06, 17:35] Taruna khare Jabalpur N: रचैया, शब्द पर दोहे 


खूब रचैया हो गए, रचना लिख रय रोज।
कहूं करुण सिंगार रस,कहूं समानो ओज।।

सृष्टि रचैया नै रचो, कैसो जो संसार।
रकम रकम के जीव उर,बरन बरन आहार।।

सृष्टि रचैया ब्रम्ह हैं,बिसनू पालनहार।
भोले संकर जी करैं, दुनिया को संहार।।

एक रचैया रच रओ,कैंसे कैंसे खेल।
ऊके आंगू हो गए,सब बिग्यानिक फेल।।

गिरधारी मनमोहना,रास रचैया स्याम।
जसुदा तोरे लाल के,जाने कितने नाम।।


तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[14/06, 19:46] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय रचैया 
                   1
रास रचैया नें रचौ, रास गोपियन संग। 
शिब जी आकें देखबें, पुलकित होबें अंग। 
                      2
जगत रचैया नंद हैं, नटखट नंद किशोर। 
बंसी की धुन छेडते, होबें सबइ बिभोर। 
                       3
जनमें कारागार में, खेले गोकुल धाम। 
रास रचैया हैं बडे, मुरली धर घनश्याम। 
                       4
सीता नें मुदरी लखी, उठे एक छिन भाव। 
माया ढिंग माया रचन, कौन रचैया आव। 
                         5
रुच-रुच रचना रच रये, दोहा रोला छंद। 
बढ-चढ कें रचबें सबइ, संग रचैया नंद। 
रामानन्द पाठक नन्द
[14/06, 20:36] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -220*
*प्रदत्त शब्द - रचैया( रचनाकार)*
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
नाच नचैया होत है,करता फिरता नाच।
झूठ नहीं मैं बोलता, कहता बिलकुल सांच।।
     ***
               - डॉ. जगदीश रावत, छतरपुर 
*2*
जगत रचैया राम हैं, बेई पालनहार। 
ब्रह्मा हरि हर रूप धर,फेर करत संघार।।
           ***
             -रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ 
*3*
बड़े रचैया सृष्टि के, ब्रम्हा जू कैलात।
पालत बिस्नू देव हैं,शिव रक्छा हितु आत।।
                ***
           -सुभाष सिंघई, जतारा 
*4*
तुलसी सूर कबीर सो ,आज रचैया कौन।
पूछीं धरती गगन से ,रही सृष्टि लौ मौन।।
            ***
         -बिंद्रावन राय सरल सागर
*5*
नये रचैया आजकल , लिख रचनायें रोज।
बन रय रचनाकार हैं , लिख लिख रचना ओज।।
         ***
             -वीरेंद्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*6*
रूप रंग सबको अलग, भिन्न कार-व्यौहार।
ब्रह्म  रचैया  ने  रचो,जो   ऐसो   संसार।।
               ***
              -अमर सिंह राय, नौगांव 
*7*
राम रचैया विश्व के, रामइ पालनहार।
नामजाप करता हमें, भवसागर से पार।।
          ***
             -डॉ. सुनील त्रिपाठी 'निराला' भिण्ड
*8*
रास   रचैया  लेव  सुध,  संकट  में  संसार।
नाव फँसी मझधार में,  तुमइँ लगा दो पार।।
           ***
      - विद्या चौहान, फरीदाबाद 
*9*

जगत रचैया तुम बड़े, रिसा गये अब काय। 
जित देखौ तित मर रहे, निर्दोषी अब जाय।। 
             ***
          -डॉ. रेणु श्रीवास्तव (भोपाल)
*10*
रचै रचैया रोज ही,,कृती एक सैं एक।
कछू कुकर्मी होत रे, कछू होत हैं नेक।।
         ***
         -प्रदीप खरे'मंजुल' टीकमगढ़ 
*11*
लख चौरासी यौनिके,बाद मिली ये देह ।
बिम्मा जू ई खौं रचै,सुंदर है यह गेह ।।
            ***
            -शोभाराम दाँगी 'इंदु', नदनवारा 
*12*
जगत रचैया सैं बड़ौ, हो गव अब इंसान।
 माटी पथरा  के बना , बेंचत  है भगवान।।
                ***
           -आशाराम वर्मा 'नादान',पृथ्वीपुर
*13*
जगत रचैया की कहौ, लीला कही न जाय।
लिखो सबइ तगदीर में, कोउ बाँच नें पाय।।
          ***
       - डॉ. देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा 
*14*
बड़ो रचैया एक है, दुनिया में भगवान।
बन्न - बन्न  प्रानी रचे, सुघर रचो इंसान।।
             ***
       -श्यामराव धर्मपुरीकर, गंजबासौदा 
*15*
गाना जो रोजउॅं रचत, कतइ रचैया वाय।
नौनी बुन्देली लगत,समझ सबइ खौं आय।।
               ***
            - रामसेवक पाठक"हरिकिंकर", ललितपुर 
*16*
कौन रचैया विश्व कौ,को जग पालन हार।
अलग अलग मत पंथ में,उल्झों है संसार।।
              ***
         -एस.आर.सरल,टीकमगढ़
*17*
राम रचैया जगत के,जगत राम के हाथ।
जन-जन सुमिरत रात-दिन,जय-जय श्री रघुनाथ।।
             ***
          -प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 
*18*
रास रचैया नंद कौ,लल्ला माखन चोर।
चंचल चित्त चुराय कें, प्रेम प्रीत द‌इ टोर।।
            ***
            -  भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
*19*
वेद रचे हैं व्यास ने, कृष्ण रचाये रास।
रन में गीता रच दई ,मिटी मोह की त्रास।।
           ***
            -प्रभा विश्वकर्मा 'शील',जबलपुर 
*20*
रास रचैया नंद को,लाला नंदकिसोर।
घर-घर मै चोरी करी,नटखट माखन चोर।।
          ***
          -तरुणा खरे'तनु' जबलपुर
***
*21*
ग्रंथ रचैया रच गये, अदभुत ग्रन्थ महान। 
जुगन जुगन सें हो रऔ, जिन सें जन कल्यान।।
             ***
             -रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां
*22*
हृदय होय करुणा कलित, पर में निज परतीत ।
लिखै लेखनी लोक हित, रचै रचैया गीत ।।
                ***
              -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*23*
जौन रचैया रचि दियौ, सपनन कौ संसार।
बसे सभइ में प्राण है, साँचो जस औतार॥
            ***
            -सुव्रत दे,सम्बलपुर
***
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965
##############
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -219 दिनांक -7.6.2025
[07/06, 12:43] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा - भिनकती*

गई भिनकती मायके, तकुआ धना फुलायँ।
कातइ दद्दा आन कैं,हैंसा बाँट करायँ।।

नईं भिनकती बात है,गम्म ‌खौर हौं लोग।
करत रात उपचार हैं,नौनें करत प्रयोग।।

दाल भिनकती खूब है,जब माँछी गिर जाय।
यैसइ भिनकत बात है,उल्टौ अर्थ लगाय।।

बउअन से जब सास जू ,करें भिनकती बात।
साता उनखौं है परत, चलवा लें जब लात।।

बात भिनकती पाक से,#राना समरत नाँय।
करत उबाड़े काम बौ,नईं पकरतइ  छाँय‌।।
       *** दिनांक -7.6.2025

*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[07/06, 14:39] Asha Richhariya Niwari: बुंदेली दोहा दिवस दिनांक 7.6.2025
🌹
भिनकत मांछी अनगिनत,कोउ न आवे पास ।
ओंदे मो नरदा डरे,दारू घर कौ नाश। ।
🌹
भिनकत फिरतीं बउ धना,करदौनी बनवाव।
आज घरी नो तरस रइ,बातन न भरमाव।।
आशा रिछारिया 🌹🙏🏿🌹
[07/06, 14:57] Taruna khare Jabalpur N: भिनकत, शब्द पै दोहे 


भोजन राखो ढांक खैं,माछी भिनकत रात।
बैठत खाना पै अगर, बीमारी फैलात।।

तनक तनक सी बात पै, गोरी भिनकत रायँ।
मौ बनाय दिन भर फिरैं,नै बोलैं नै खायँ।।

फूफा ब्याव बरात मै,ऊंसई फूले रात।
भिनकत तनतन बात पै, बेजा सान बतात।।

भिनकत छिनकत से डुकर,परे रात दैलान।
लरका सेबा नै करैं,का हुइये भगवान।।

काय भिनकती हो धना,काहे गाल फुलाय।
तनक बताओ तौ हमें,करिए झट्ट उपाय।।

गैयां भिनकत सी फिरैं,कुत्ता मौज उडायँ।
गउ माता जूठन भखैं,कूकर बिसकुट खायँ।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[07/06, 16:54] Sr Saral Sir: *बुन्देली दोहा*
*विषय -भिनकत*

बिना बिचारे जो करत,
               भिनकत उनके काम।
तनकइ  में  उकतात बे,
               औऱ  होत  बदनाम।।

माँछी भिनकत आँग पै,
               जब निकरत हैं प्रान।
अर्थी  कन्धा  पै  धरें,
               चले जात शमशान।।

बचत फिरत जो काम सै,
                उर  चाहत आराम।
काम  चोर  होते  वही,
                भिनकत उनके काम।।

मों पै भिनकत माँछियाँ,
                घरवारे  डिड़यात।
मुठी  बाँदकैं  आय  ते,
                हात  पसारे जात।।

सगे सजन घर गाँव के,
               असुआ सबइ बहात।
भिनकत ठटरी पै *सरल*,
               फिकत मखाने जात।।

         *एस आर सरल*
            *टीकमगढ़*
[07/06, 16:58] Subhash Singhai Jatara: 7.6.25- शनिवार - भिनकत/भिनकती 

बात भिनकती है उतइँ ,   लबरयाट हो काम |
उल्टी सूदी  फाँक कैं , होय  सुबह कौ शाम ||

भौत भिनकती बउँ धना , मुलकन धमकी देत |
पिटिया धुतिया बाँद कैं ,    भगबें की वह केत ||

टेड़ी थुथरी कर धना , गयी  भिनकती खेत |
रोटी डुकरे चाँप कैं , पटक आँइ कछु केत ||

बात भिनकती पौंच गइ , ‌सुन रय लम्बरदार |
नईं सुदर हालात रय‌ , दिख रय सब लाचार ||

उतइँ भिनकती है मछौ , जितै गुरीरौ हौय |
दौरत सबखौं काटबै  , बचा न पाबै कौय ||

सुभाष सिंघई
[07/06, 20:39] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय भिनकत 
                    1
धना भौत भिनकत फिरत, करें न सूदें बात। 
दो टउका करनें परे, सोइ बता दइ जात। 
                     2
तुम से माँगे दाम सो, गुस्सा आ गव आज। 
घर भर में भिनकत फिरत, तनिक न आई लाज। 
                     3
दूला कुँअर कलेउ खों, बखरी भीतर जात। 
मों माँगौ नइँ नेग दव, बाहर भिनकत आत। 
                      4
गुर पै भिनकत माछियाँ, नौंन कोद नइँ जात। 
नौनों भाउत है सबै, खारौ कियै पुसात। 
                       5
चिट पै माछी भिनकती, मिलबै उतइँ सुआद।
बेर-बेर बे बैठबैं, बढत जात तादाद। 
रामानन्द पाठक नन्द
[07/06, 21:19] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -219*
दिनांक -7.6.2025
*प्रदत्त शब्द- भिनकती/ भिनकती*
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*

भिनकत फिरवैं सजन जू,नइ परवाउत पांव। 
दान दायजो नइ मिलो,छूंचौ करो बियाव।।
          ***
             -आशा रिछारिया ( निवाडी)
*2*
माँछी भिनकत आँग पै,तन में रये न तत्त।
प्रान  पखेरू उड़ गये, राम  नाम  है सत्त।।
              ***
            -एस. आर. 'सरल',  टीकमगढ़              
*3*
जिते भिनकती पाँत है,हौय अन्न अपमान।
लुड़कत सबरौ रायतौ,ढ़ौर खात  मिष्ठान।।
            ***
         _ सुभाष सिंघई, जतारा
*4*
दार भिनकती थार में,देखें उलटी होय।
तुरत फैंक दो बायरें,ननतर मारें तोय।।
            ***
            -वीरेंद्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*5*
उन लोगन के नाम पे,माछी भिनकत आज।
जिन ने अपनी बैंच दइ, खानदान की लाज।।
         ***
         -बिंद्रावन राय 'सरल', सागर 
*6*

घर दोरे उजरे रखौ,भिनकत से नै रायँ।
साप सपाई हो जहां, बीमारी नै आयँ।।
            ***
        -तरुणा खरे'तनु' ,जबलपुर
*7*
भिनकत तन तन बात पै ,तनक गंम्म नइॅं खाय।
यैसौ सनकी आदमी,मूरख  असल  कहाय।।
          ***
     -आशाराम वर्मा "नादान',पृथ्वीपुर
*8*
माॅंछी भिनकती देखकें,काय भगाउत नाॅंइ।
रोग फैलतइ इनइं सें, इन्हें बचवौ चाॅंइ।।
       ***
     - रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर", ललितपुर 
*9*
सतभर्रे कौ काम तौ, ऊसइ भिनकत रात।
सोंजयाइ के बाप खों, कभउँ लडैया खात।।
            ***
             - डॉ. देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा 
*10*
मांछी भिनकत ढोर पै,गीध रहे मड़रायँ ।
पर मानव के काम पै,गीध तलक नै खायँ ।।
              ***
          -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*11*
बिना ढँकौ ना खा लियौ,पर जैहौ बीमार ।
माछीं भिनकैं सब जँगा,ढाँकौ रोटी-दार ।।
              ***
          -अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
*12*
जो धन छीन गरीब कौ,करत ओइ पै  राज।
मौं पै माछीं भिनकतीं,होत  कोढ़  में खाज।।
             ***
        - अंजनीकुमार चतुर्वेदी निबाड़ी 
*13*
चूले सें हडिया गिरी,भिनकत कडी दिखाय। 
जो ना होबै भाग में,मौं में सें गिर जाय।।
          ***
         -रामानन्द पाठक 'नन्द', नैगुवां
*14*
नेतन की का कात हो,सरमत इनसैं लाज।
जनता रौवे नाव को,भिनकत सबरै काज।।
                  ***
              -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
***
*© संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
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बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -218
[31/05, 12:34] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा - भन्ना (फुटकर पैसे)*

#राना भन्ना से सबइ,करतइ हते बजार।
धेला आना चार से,थैली  थी गुलनार ।।

अब भन्ना की नइँ कदर,कछू चीज ना आत।
अब नोटन कौ है चला,#राना समझत बात।।

एक नोट भी बन गयौ,#राना अब कलदार।
भन्ना में गिनती नहीं,कातइ अब सरकार।।

अब भन्ना जीनौं धरौ,#राना सेंतत रात।
जलबे मुरदा जाय तो,ऊपर से फिकवात।।

भन्ना जौरो खूब है,गुल्लक लई बनाय।
#राना बे दिन बीत गयँ,याद भौत अब आय।।
*** दिनांक -31.5.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[31/05, 13:53] Subhash Singhai Jatara: 31.5.25- शनिवार  भन्ना (फुटकर पैसे)

चिल्लर सिक्का धात के, सब भन्ना कैलात |
मिलकै सब जै है बजत  , हम भी सब खनकात ||

भन्ना बजतइ जेब में , भारी भी हो जात |
कभउँ जेब भी फार दे, गिरकैं घूर समात ||

भन्ना के दिन बीत गय , बने सबइ इतिहास |
आज डिजीटल युग बना, लेन देन में खास ||

बूड़ी डुकरौ  जौर   कैं ,   भन्ना लाईं  पास |
गिन सुभाष कितने हुए , तौपे  है विश्वास ||

नन्ना  भन्ना बाँट रयँ , नाती पास बुलाँय |
टउका करवा चार ठौ , सबके हाथ थमाँय ||

सुभाष सिंघई
[31/05, 16:38] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय भन्ना 
                   1
फुटकर पइसा होत जो, भन्ना ऊखों कात। 
गुआ देत हैं हाट खों, बच्चा खुस हो जात। 
                    2
बिटिया की भाँवर परी, डोला दई बिठाय। 
भन्ना संग बतासनें, ऊपर हो फिकबाय। 
                    3
मंदिर में जब भक्त जन, दरशन करबे जात। 
टन्ना सबइ चडात सो, भन्ना जुरत बिलात। 
                     4
भन्ना सें पूजन हबन, करते ज्ञानी लोग। 
करें पाठ पूजन सबइ, होता है जब जोग। 
                     5
नन्ना कौ भन्ना भलौ, दाम न खरचे जाँय। 
बँदी गठरिया देखबें, सुख ओइ में पाँय। 
रामानन्द पाठक नन्द
[31/05, 20:31] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे - भन्ना 
-----------------------------
सिंदुकिया में माइ की, 
          भन्ना  नईं  बड़ात।
मेला हाट बजार खाँ,
     जब माँगें मिल जात।।
--------
भन्ना बारे दिन हते, 
          सौनें   जैसे   यार।
अब नोटन सें हो रई,
           गेरउँ   मारामार।।
--------
भन्ना तौलो साव नें,
          अरसी बटरी राइ।
कै रय इतनें में भई,
      ब्याजइ की भरपाइ।।
--------
नोटन के ई दौर में, 
     फुटकर कियै पुसात।
फिकें मखानें ऊ दिना,
          भन्ना कामें आत।।
-------------------------------
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[31/05, 20:39] Taruna khare Jabalpur N: भन्ना (फुटकर पैसे)शब्द पर दोहे 


भन्ना धर लो जोर खैं,मुतके लौकन यार।
चलहैं ब्याव बरात मै,करनै परै नेछार।

गुल्लक मै भन्ना धरे ,खूब जोर खैं यार।
चलन खतम अब हो गओ,हो गय सब बेकार।।

भन्ना बांदै छोर मै,काकी चलीं बजार।
पछियाने नाती नतर,मांगैं पैसा चार।।

आजकाल के लोग जब, मंदिर भीतर जायँ।
ढूंड़ ढूंड़ भन्ना सबै, जाखैं उतै चड़ायँ।।

आॅनलेन के दौर मै, भन्ना धरै न कोय।
काम होत मोबाइल सैं,घर बैठे सब होय।।


तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[31/05, 21:13] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,, बुंदेली दोहा,,विषय ,,भन्ना ,,
*************************************
दादी ने भन्ना धरोँ , लो"प्रमोद"गिनवाव ।
नजर बचाकेँ चट्ट सेँ , हमने एक लुकाव ।।

स्वापी मेँ भन्ना बँधोंँ , गुथना सो सन्नाय ।
इंँगड़-दिगड़ जीनेँ करी , अपनो मूँढ़ फुराय ।।

डब्बूँ मेँ भन्ना भरेँ , बब्बा रहें कुड़ेर ।
नाती की बारात मेँ , नचनारी खाँ हेर ।।

खन्ना में भन्ना गढ़ोंँ , ऊपै डारेँ खाट ।
मूँछ ऐँठ बब्बा परेँ , बउ के ऊँचेँ ठाट ।।

नन्ना भन्ना गिन रहो  , टन्ना कड़ेँ हजार ।
चन्ना मन्ना लेन गव , ढुरया भरोँ बजार ‌ ।।

लयँ भन्ना सब दिन फिरेँ , कमोँ परीँ भर खूँन ।
इनको लैवा नइँ मिलो , खावै नइयाँ चूँन  ।।

भन्ना लयँ भन्नात गइँ , मिलीँ परोसन मोय ।
मेँनेँ पूँछी काँ चली , कत का लेने तोय ।।

टन्ना भन्ना में हतेँ , चाँदी के दो चार ।
घर भर मेँ ढूँढ़त फिरेँ , बगरी डरी उसार ।।

भन्ना बिकत बजार मेँ , मंदिर में चढ़ जात ।
मँगनारेँ भी माँग केँ , इनसेँ रोटी खात ।।

माँग-मूंँग भन्ना कछूँ , खूँब दौदरा देत ।
मउआ की पुच्ची पियत , फिर मनयारी केत ।।
*************************************
      ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[31/05, 21:46] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -218*
प्रदत्त शब्द--भन्ना (फुटकर पैसे)
दिनांक -31.5.25
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*
*1*
भन्ना  में खा लेत ते, घर भर रोटी दार।
अब सौ के भी लोट  में,भूखे रेरय  यार।।
             ***
     -बिंद्रावन राय 'सरल', सागर
*2*
भन्ना भर नन्ना चले, लैबे घर खौं तेल।
फटो खलीता गैल में, देखत रै गय रेल।।
        ***
     -प्रदीप खरे'मंजुल' टीकमगढ़ 
*3*
सबजी भाजी उर धना,लैलो जितने चार।
भनना बिन बे नइं मिलें,कननें आय उधार।।
              ***
         - वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*4*
नन्ना  ने  भन्ना  भरी, गुल्लक  रखी सँभार।
दुकनदार अब लेत नइँ, भई रकम बेकार।।
        ***
अमर सिंह राय, नौगांव 
*5*
घरै भौत भन्ना धरौ,इक दो के भय बंद ।
कितउँ कितउँ तौ हैचलन,नइँयाँ कौनउ दंद ।।
        ***
      -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*6*
बब्बा बउ भन्ना धरें, गुल्लक में हर साल।
टका टका सै जोर कैं, पनी चलाबै चाल।।
       ***
          -एस. आर. 'सरल', टीकमगढ़
*7*    
भन्ना  लैकें  हाट  खों, नन्ना  गय ऊ जोर।
जेब काट लइ काउ नें, रै गय दाँत निपोर।।       
               ***
            - अंजनीकुमार चतुर्वेदी निवाड़ी 
*8*
अर्थी पै भंन्ना फिकत , कहत  सत्य है राम।
चलौ जात है आदमी, संग न जात छिदाम।।
             ***
         -आशाराम वर्मा 'नादान',पृथ्वीपुर
*9*
सौ पचास ओ पांचसौ, रूपया कौ है काम।
भन्ना आना चवन्नी, इन को काम तमाम। ।
             ***
       -आशा रिछारिया (निवाड़ी)

*10*
ए टी एम जबसैं लगो, मुसकल भव रुजगार।
भन्ना की किल्लत भई, जनता सहवै मार।।
           ***
        --श्यामराव धर्मपुरीकर,(गंजबासौदा)
*11*
आना नय पइसा गिने,दस्सू पंजू देख।
चली चबन्नी खूब है,रयँ भन्ना में लेख।।
                ***
           -सुभाष सिंघई , जतारा 
*12*
यैसे स्यानों सें चलै,कव कैसें बेभार।
बातन कौ भन्ना भरें,नगदी जायँ डकार।।
          ***
  - डॉ देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा 
*13*
अब नै सिक्का जेब में, नै बटुआ में नोट।
ऑन लैन भुगतान सें, भइ भन्ना पै चोट।।
         ***
      -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*14*
आनलेन सब होत हैं, मोबाइल सैं काम।
बिन भन्ना चुक जात हैं,इक इक पैसा दाम।।
               ***
        -तरुणा खरे'तनु' ,जबलपुर
*15*
भन्ना  सें  रैबू  करे,  रिस्ते  सबइ  अटूट।
नोटन कीं गिड्डीं बँदीं,घर-घर डारत फूट।।
           ***
         -गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी
*16*
कागज के रुपया सबइ, गिड्डी कर धर लेत। 
टन्ना भन्ना ध्यान सें, डार बगसिया देत।।
       ***
       -रामानन्द पाठक नंद, नैगुवां
##
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965
######

बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -217
दिनांक -24-5-2025
[24/05, 13:03] Subhash Singhai Jatara: 24.5.25- शनिवार   अटर (परिश्रम)

नहीं अटर के काम हौं  ,  कात आलसी लोग |
जादाँ जिद जब कर चलौ , चढ़ जै इनपै रोग ||

जिनपे होतइ नइँ अटर , करत बहाने आन |
एक जगाँ जै बैठ कैं   , पेलत सब पै  ज्ञान ||

माते मुखिया भी अटर , सबसे करवाँ लेत |
सुस्ताबे की टैम ही    , चिलम  तमाकू देत ||

दद्दा  सबके कात  हैं  , जी खौं नईं  चुराव  |
अटर करो मन से सबइ , फल भी नौनों पाव ||

अटर मटर में हौत है ,   छीलो पहले आप |
जोरू जैसी दे बना , खा लो फिर चुपचाप ||

सुभाष सिंघई
[24/05, 13:11] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा बिषय- अटर (परिश्रम)*

#राना करतइ है अटर,नईं सिकौड़त नाक।
हौतइ पूरौ काम है, जमतइ अच्छी धाक।।

भिनकत कौनउँ काम नइँ,#राना सब हो जात।
देखत जब मोरी अटर,धना खूब मुस्कात।।

सबइ अटर के काम हैं,करौ  किसानी आप।
चुँअत पसीना  माथ पै,#राना दैकें छाप।।

ठौर बछेरू जित बदैं,उतइँ अटर के काम।
#राना गौबर सार में,फैलत सुबहौ शाम।।

व्याय काज में आ फुआ,करत अटर के काम।
जौरत.#राना चीज है,भुंसारे से शाम।।
***दिनांक -24.5.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[24/05, 15:57] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 217प्रदत्त शब्द -अटर 
(१)
गइॅंयाॅं  पालै जो  घरै , करबै  अटर  उसार।
किरपा  करबैं ओइ पै , मोहन मदन मुरार।।
(२)
घरै  प्रसूता  की अटर , नारी  ही  कर पाय।
द्वारैं  बैठो  घरधनी , मिसलैं  देत  मिलाय।।
(३)
अटर होत हर काज में,करौ लगन सैं काम।
जबइॅं सफलता है मिलत ,देत सहारौ राम।।
(४)
अटर करे  बिन काॅं धरौ , जीवन में आराम।
जब तक जे  साॅंसैं चलैं  , लगौ रनें है काम।।
(५)
अटर करी"नादान"नें ,दोहा लिख कइ साॅंच।
ज्ञान सबक उर नीति कीं,बातैं लइयौ जाॅंच।।

आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
( स्वरचित ) 24/05/2025
[24/05, 16:05] Taruna khare Jabalpur N: अटर,शब्द पर दोहे 


अटर जवानी मै करौ, खूब कमा लो दाम।
बैठ बुड़ापे मै घरै,करियो खूब अराम।।

खेती मै कितनो अटर,दिनभर करत किसान।
ओरे पानी जब परैं,सांसत मैं रत जान।।

अटर करै दिन रात जे,सफल होत इंसान।
नाम जगत मै होत है,बेई बनत महान।।

अटर करै दिन भर धना,करत रैत है काम।
काम किसानी को कठिन,मिलत नईं आराम।।

अटर करत नइयां तनक, आजकाल के लोग।
बैठे बैठे बड़ रये,तन मै छत्तिस रोग।।


तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[24/05, 18:01] Sr Saral Sir: *बुंदेली दोहा  विषय-अटर*
***************************
बूढन की करिओं अटर,
                  बड़े पुन्न कौ काम ।
सेवा  सै  मेवा  मिलें,
                  मिलें सुखद परनाम।।

अटर करों माँ बाप की,
                  लिइऔ भविष सुधार।
उनकी खुशियों सै *सरल*,
                   जीवन सफल तुमार।।

अटर न बहु लरका करें,
                   दोइ भौत खुदगर्ज।
*सरल* बताबें कौन खौ,
                   अपने दिल के दर्द।।

बूढ़न की सेवा लगत,
                   जिनें अटर कौ काम।
उनकी गत हुइयें बुरइ,
                    संग न  दें हैं  राम।।

पुरखन की करिओं अटर,
                     उनें राखिओं टन्न।
दूद करूला तुम करों,
                    हो जै जीवन धन्न।।
***************************                     
         *एस आर सरल*
           *टीकमगढ़*
[24/05, 19:16] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- अटर
(1) अटर आलसी खों लगे,
      करो चहे ने काम।
      विनइ करे मिल जाय सब,
      रतो एस आराम।।
(2) सोचत औहर को करें,
      विद गइ अटर तमाम।
      झूँके तन तन काम में,
      ऐसो नमक हराम।।
(3) अटर जिदंगी भर करी,
      जानो ने आराम।
      मोरी दारे सो लुकत,
      बड़ो कठिन है काम।।
(4) अटर होतनइयाँ करी,
      फरो फरो हर काम।
      ब्रजभूषण सुन ले तको,
      तनक दवे ने चाँम।।
(5) मोरे जी खो है अटर,
      कां लो तुमें वताय।
      करत करत हम तो थके,
      अब सो ने हो पाय।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[24/05, 19:48] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहे 
विषय:-अटर/ परिश्रम 
अटर हमेशा राम की,‌करें वीर हनुमान।
सौ योजन नाकों समुद,करें राम गुन गान।।१।।

अटर करे कौ फायदा, ऊपर बारौ देत।
सकल पदारत विश्व में,बनें जौन पै लेत।।२।।

अटर मतारी बाप की,करियो छोड़ सवाल।
दुनियां में हो गयॅं अमर,बेटा सरमन लाल।।३।।

गौ माता की जो अटर, करत रहत दिन रात।
रमा संग छोड़त नहीं, दूद जलेबी खात।।४।।

मैनत करबे में अटर, जिनखों लगै बलाय।
बेइ फिसड्डी जानियो,नीचट आय सलाय।।५।।
                  भगवान सिंह लोधी"अनुरागी"
[24/05, 20:19] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय अटर 
                   1
रमुआँ ठाडौ गैल में, बिनुआँ सें कय बात। 
धनुआँ की नौनीं फसल, अटर करै दिन रात। 
                      2
अटर करें हारै नई ,ऊँची उनकी शान। 
गाँवभरे में पुज रई,जमींदार  की आन।   
                      3                    
केबै  से का होत है,अटर अलग दिख जात। 
जो जैसी करबै अटर , बौ ऊसइ फल पात। 
                        4
अलख जगा देबै अटर, घर घर होय प्रकाश। 
अटर करौ जी जाँन सें, तजौ बिरानी आस। 
                         5
ऊँगत से दिन भर फिरत, करबे अटर डरात। 
कौनन कौनन बे लुकक, उनखों जेउ पुसात। 
रामानन्द पाठक नन्द
[24/05, 20:33] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,, बुंदेली दोहा ,,बिषय,,अटर ,,
***************************************
खटर-पटर भइँ रात केँ , शटर टोर गय चोर ।
करी अटर भर लइँ मटर , जबलो हो गइँ भोर ।।

चटर-पटर धनियाँ निगेँ , अटर करें सब दैन ।
खटर-फटर कर तइँ रहेँ , पल भर नइयाँ चैन  ।।

अटर करत ते रात-दिन , गउ की बब्बा पैल ।
जब सें वे साकेत गय , घर गिर गय खपरैल ।।

अटर करेँ जब-तक मनुष , तन रैहेँ बलवान ।
रोग-दोग उपजै नही , करेँ "प्रमोद"बखान ।। 

सटर-पटर धरलो अबै , हौवै जा रइँ जंग ।
देश प्रेम की उमड़ती ,  दिखती नवल तरंग ।।
***************************************
     ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
           ,, स्वरचित मौलिक ,,
[24/05, 21:12] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -217*
दिनांक -24.5.2025
 *प्रदत्त बिषय- अटर (परिश्रम)*
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*

*1*
मैनत कर खेती करे,वो तो कभउ न रोय।
फल मीठौ पावै वहीं,गन्ने कौ रस होय।।
               ***
      ✍️ डाॅ.खन्नाप्रसाद अमीन (गुजरात)
*2*
चटर पटर घर की अटर ,कर लें खूब किसान।
खेती  भी  नौनीं करै,रख कैं मृदु   मुस्कान।।
              ***
        -सुभाष सिंघई,जतारा 

*3*(तृतीय पुरस्कार प्राप्त दोहा)

बाप मताई की अटर,जो लरका कर लेत।
खुश होकैं  रघुनाथ जी,मौं माॅंगौ वर देत।।
          ***
       -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
*4*
लगे रहत हैं अटर में,पिया सखी तज चैंन।           
 सारे सुख संसार के,हैं ईश्वर की दैंन।।
        ***
     - मूरत सिंह यादव दतिया 

*5*(द्वितीय पुरस्कार प्राप्त दोहा)

बिना अटर बेकार सब,है गीता को सार।
धरती से आकाश तक,श्रम को है अधिकार।।
        ***
       -बिंद्रावन राय 'सरल', सागर
*6*
भैया आलस छोड़ दो,करौ निरंतर काम।
अटर करे सें ही मिलै,जीवन में आराम। ।
           ***
         -आशा रिछारिया (निवाड़ी)
*7*
बज्जुर की हौवै अटर,खेती करत किसान।
पोषत सारो जो जगत,बाको करौ निदान।।
              ***
       -श्यामराव धर्मपुरीकर, गंजबासौदा, विदिशा
*8*

अटर करी बजरँगबली,खबर सिया की ल्याय।
प्रेम पगे श्री राम जू,छाती सें चिपकाय।।
          ***
           - डॉ. देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा 
*9*
जीवन भर कर खैं अटर,जोरत पूंजी दाम।
मिटा देत हैं सब कछू,जिनके पूत निकाम।।
             ***
          -तरुणा खरे 'तनु' ,जबलपुर
*10*
ऐसी बेजा दांद में ,तन-मन जब अकुलाय।।
दोहा लिखबे की अटर,की के बस की आय।।
               ***
            -रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ 
*11*
करौ अटर उर गौसली,भैंस बकरिया गाय।
दूध लगाकें बेंचियौ,खूबइं पैसा आय।।
         ***
      - वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*12*

नीत धरम से सब जनें,अटर करौ दिन रात।
राम ओइ में देत हैं,वेद पुरान बतात।।
         ***
       भगवान सिंह लोधी "अनुरागी',हटा 

*13*(प्रथम पुरस्कार प्राप्त दोहा)

करै लगन सें जो अटर,कबहुँ न निष्फल होय। 
पा कें अपनें लक्ष्य खाँ,सुख की निंदिया सोय।।
          ***
       - रामानंद पाठक नंद' ,नैगुवां
*14*
अटर करेँ हनुमान जूँ,फिकर करें श्री राम ।
खटर-पटर लछमन करेँ , सिया करें सब काम ।।
               ***
          - प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 
*15*
अटर करे में फायदा, आलस में नुकसान।
जो समझे ई बात खौ, रखै हमेशा ध्यान।।
            ***
    -संजय श्रीवास्तव,मवई, (दिल्ली)

*16* (द्वितीय पुरस्कार प्राप्त दोहा)

अटर करों माँ बाप की,जेई चारइ धाम।
उनकी सेवा में मिलें,हमें कृष्ण उर राम।।
        ***
         एस आर सरल,टीकमगढ़
##
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी*' 
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965
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बुन्देली दोहा प्रतियोगिता -216
दिनांक-17.5.2025
[17/05, 12:42] Rajeev Namdeo Rana Lidhori ❤❤: *अप्रतियोगी दोहे:-*

*बुंदेली दोहा -उजड्ड (लड़ाकू स्वभाव का)*

#राना एक उजड्ड ही,कर दे सत्यानास।
सबइ पुरा हैरान रत,कौउँ न जाबै पास।।

बात- बात में है  लरत,#राना लयँ रत लठ्ठ।
सब उजड्ड भी कात हैं,पातइ ऊसैं खट्ठ।।

जब उजड्ड खौ देखतइ,टारौ ‌‌सब दे जात।
#राना खिसकत है हराँ,कौउँ न सामै आत।।

जब उजड्ड से मेर हो,गलत समझतइ लोग।
#राना संगत कौ असर,दै जातइ है रोग।।

सत संगत #राना गली,जितै मिलत हैं राम।
हैं उजड्ड दरुआ सड़क ,हौत नाम बदनाम।।
  ***दिनांक -14.5.2025
✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[17/05, 14:09] Subhash Singhai Jatara: 17.5.25- शनिवार(उजड्ड --लड़ाकू स्वभाव का)

लबरा ढोर गँवार खौं ,  मानत   सबइ   उजड्ड |
कत यह मूसरचंद हैं , और   अकल से  खड्ड ||

हौ उजड्ड से सामनौ , बरकत हैं सब लोग |
कौन  बीद कै लाय घर ,   ठाडै  बैठें  रोग ||

जितने  हौत  उजड्ड   हैं , लरबे   ठाँड़े   रात |
तबइँ मानतइ जे सुनो , खा लें जब दो लात ||

बन उजड्ड  लरबे फिरे  , बाँड़ी    पूँछ  उठाय |
थुथरी जो भी दे   मिटा , नाक रगड़बे  आय‌ ||

जब उजड्ड बन जात है , अपने घर को पूत |
भौत उरानै आत है ,        संगै  लयै सबूत ||

सुभाष सिंघई
[17/05, 15:44] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-उजड्ड
है उजड्ड सब पाक जौ,मानत नैंयां बात।
खाबै की आदत परी,घुरवा कैसी लात।।१।।

इकड़ा सुॅंगरा की तरह, भारी पाक उजड्ड।
खल‌उ पनैयां जब घली,हो गव सब खड बड्ड।।२।

अति उजड्ड रावन कड़ो, मिटवा डारो बंश।
नीच अधम माने नहीं,मम्मा माहल कंस।।३।।

है उजड्ड पन ठीक न‌इॅं, कहते चतुर सुजान।
जरजोधन मारो ग‌ओ,करन मीत बलवान।।४।।

बम की धमकी देत है, डड़ियल पाकिस्तान।
हम उजड्ड बिल्कुल नहीं, सुनले रे शैतान।।५‌।।
                     भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[17/05, 15:59] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय उजड्ड 
                   1
नइँ उजड्ड सें उरजियौ, ऊ सें रइयौ दूर। 
जनम कडै हँस खेल कें, बनौ रहै सब नूर। 
                      2
ज्यों निबुआ की बूँद सें, सबइ दूध फट जाय। 
त्यौं उजड्ड के संग सें, सबरौ काम नसाय। 
                         3
खल उजड्ड अक्खड़ निरस, इनकी होबै नाँस। 
बनें बनाये काम में, डार देत जे फाँस। 
                         4
एकइ लट्ठ उजड्ड कौ, बुजा देत है ताव। 
खौप खात ई सें सबइ, का मुन्सी का साव। 
                         5
रा रा दइया सी मचै, मिलबै एक उजड्ड। 
गाडी पारै ना लगै, अबस गिरै बा खड्ड। 
रामानन्द पाठक नन्द
[17/05, 16:40] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा (216)
बिषय- "उजड्ड"   (01)
वानर सेना भौत है,उनमें बीर जवान ।
है उजड्ड"दाँगी"भँलां,गड्ड बड्ड करें शान ।।
                      (02)
आज काल कत कोउसैं,उज्बक और उजड्ड ।
ऐंठ बताबैं तान कैं,"दाँगी"गड्डइ बड्ड ।।
                      (03)
जिनके करम उजड्ड हौं,उनसैं रइयौ दूर ।
दाँगी"उजड्ड हौंय तौ,गड्ड-बड्ड भरपूर ।।
                  (04)
सत संगत ऐसी करौ,धरें न कोऊ नाव ।
उजड्ड पन"दाँगी"नहीं,सदां करैं सदभाव ।।
                 (05)
पड़े लिखे तौ खूब हैं,लगतइ मोय
उजड्ड ।
बात न मानें काउ की,दाँगी"सड्डइ
बड्ड ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[17/05, 16:59] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे-"उजड्ड" 
*******************
लरका तनक उजड्ड है,
        सुन कें इतनी बात।
उल्टे पाँवन वरदिखा,
      ग्योंड़े सें भग जात।।
****
कड़त किनारौ काट कें,
       सब उजड्ड खों देख।
कय कै बौ मारग चलत, 
        डरी बिदैउत मेख।।
****
लरका होय उजड्ड तौ,
        पुटया कें समजाव।
बड़है और उजड्डपन,
     जो ऊ खों थुड़याव।।
****
जी के घर में बेबजह,
     निश-दिन दाँती होत।
ऊ के घरै उजड्डपन,
     बिछा खटोली सोत।।
*******************
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[17/05, 18:26] S R Saral Tikamgarh: *बुन्देली दोहा विषय -उजड्ड*
**************************
तुम उजड्ड कर हरकतें,
                   देखौ  नईं  ख्वाब।
पाक  तुमें  धूरा  चटा ,
                   दव मुँहतोड़ जबाब।।

अब उजड्ड करिओं नईं,
                   पाक हरकतें औऱ।
हिन्दुस्तानी  शेर  दिल,
                   बनौ मिटा दें ठौर।।

घर में हूड़ गमार से,
                  लरबै भाई भाइ।
ई उजड्ड औलाद सै,
                  रोबै बाप मताइ।।

हल्की हल्की बात पै,
                  कर बैठें तकरार।
लरका भौत उजड्ड हैं,
                  कै रय लम्मरदार।।

धमकी देबै मुन्स खौ,
                  करबै रोज लराइ।
*सरल* भौत दयँ तासना,
                  जा उजड्ड घरवाइ।।
**************************
             एस आर सरल
                 टीकमगढ़
[17/05, 19:10] Taruna khare Jabalpur N: उजड्ड, शब्द पर दोहे 


सांत कबउं बैठें नईं,करत रैत उतपात।
तनक तनक मै लर परैं,बेइ उजड्ड कहात।।

कही करत नइँ बाप की,उलटे आंख दिखाय।
लरका होत उजड्ड जे, पानी खों तरसाय।।

है उजड्ड सासैं जहां,बउएं रत हैरान।
मन की कछु नै कर सकैं,धुकधुकात हैं प्रान।।

मुंह नै लगौ उजड्ड के,सूदे बनखैं राव।
पानी अपनो राखबे,दूरइ सैं कड़ जाव ।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[17/05, 21:02] Rajeev Namdeo Rana Lidhori ❤❤: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -216*

शनिवार, दिनांक - 17/05/2025

*प्रदत्त शब्द- उजड्ड (, लड़ाकू)*

*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां का क्रम :-*

*1*
है उजड्ड मानै नईं,बातैं पाकिस्तान।
हम अपनी पै आ गए,मिटहै नाम निसान।।
          ***
         -तरुणा खरे'तनु' ,जबलपुर
*2*
भौत उजड्ड ही सब कहें,पूरा पाकिस्तान।
हमने जौ सुउ देख लव,लरवे की लइ ठान।।
       ***
     -रामसेवक पाठक "हरिकिंकर",ललितपुर 
*3*
चाली मौड़ा जे पजे,सबरई गड्ड बड्ड ।
बूड़ौ डुकरा सोस में,भौतइँ भौत उजड्ड ।।
              ***
      -शोभाराम दाँगी, नदनवारा
*4*
उजड़ू गइया सी फिरें,कछू लुगाईं आज।
मौ मारें चाहें जिते, इन्हें सरम ने लाज।।
         ***
         -बिंद्रावन राय 'सरल',सागर 
*5*
हैं उजड्ड जिनके पिया, खूबइँ गारीं देत।
दारू पी  कें बेंच  दय,मोटे  के दो खेत।।
      ***
        -अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निबाड़ी 
*6*
मोड़ा खूब उजड्ड है,बाप नेक इनसान।
सवरे कैरय आज तौ,करत जेउ शैतान।।
             ***
       - वीरेंद्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*7*
बन उजड्ड भौंकत फिरत,घिटला पाकिस्तान।
चार पड़त जब पीठ में,भगत बचा कैं  प्रान।।
        ***
       -सुभाष सिंघई , जतारा 
*8*
सबसें मौंजोरी करै,चाय जितै अड़ जाय।
बात बात पै जो लरै,बौ उजड्ड कैलाय।।
          ***
           - डॉ.देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा 
*9*
बरबट उजड़ु बना दये,धर धर पानी खूब।                
 लड़े लड़ाई मिट गये,हो गय कूरा डूब ।।
            ***
          - मूरत सिंह यादव, दतिया 
*10*
पाकिस्तान उजड्ड है,जानत भयँ जा बात।
बाँटत चीन अमेरिका,बड़-चड़ कें खैरात।।
         ***
        -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी
*11*
लरका निज मन की करैं,खोदै दोरें खड्ड।
संतन खौं पैरे सुनौं,लरका बढ़ौ उजड्ड।।
             ***
-प्रदीप खरे'मंजुल' टीकमगढ़ 
*12*

आल्हा उर ऊदर सुनौ,भारी हते उजड्ड।
लड़ -लड़ बावन गढ़ो खों,करौ खड्ड कौ बड्ड।।
           ***
            -भगवान सिंह लोधी'अनुरागी', हटा
*13*
तुम उजड्ड रय जनम के, अकड़ू रहो स्वभाव। 
भलो काऊ कौ न करौ,बिरथां जनम गमाव।।
       ***
      -आशा रिछारिया, निवाड़ी 
*14*

रव उजड्ड सें दूर तुम,  नातर  परहे टूट।
तो सोऊ माने नईं, दो चिपकाओ बूट।।
           ***
     - श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
*15*

उरजत ते हर काउ सें, ऐसे हते उजड्ड।
एक बेर कर्रे बिदे, कड़ गइ सबरी अड्ड।।
         ***
             -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*16*
छोड़त नहीं उजड्ड पन, ना छोड़ें तकरार।
लेत लड़ाई मोल बे,गालीं देत उधार।।
            ***
              -नरेंद्र मित्तल सेवढ़ा(दतिया)
*17*
ना उजड्ड कर हरकतें, घटिया पाकिस्तान।
घर में घुस कैं मार दव, जौ है हिन्दुस्तान।।
     ***
          -एस आर सरल,टीकमगढ़
*18*
वाणी में मधुरस नई, बकत उभाँडे बोल। 
जानें नई उजड्ड जन, नीत प्रीत कौ मोल।।
                ***
                  -रामानन्द पाठक' नन्द',नैगुवां
*19*
उपज जाएं जा वंश में,उज्बक और उजड्ड। 
ता घर में भोरईं अथएं, होतई जड्डम जड्ड।।
           ***
         - डॉ. राजू विश्वकर्मा, सेवढ़ा( दतिया)
*20*
ग़ुस्सा जिनकें भीतरें, बनो उजड्ड सुभाव।
ऐसे निष्ठुर मान्स नें, प्रेम कबउँ नइँ पाव।।
          ***
           -विद्या चौहान फरीदाबाद 
***
*संयोजक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965
***#########@@@@@#######
[17/05, 22:27] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुंदेली दोहा ,, विषय,, उजड्ड ,,
***************************************
हैँ उजड्ड दो गांव में , चाय जियें टुनयाउत ।
जियेँ देखने सो चलो , अबइँ "प्रमोद"बताउत ।।

लरका गुटका खात तो , दारूँ पीकें रोज ।
कत उजड्ड बदमांँस है , घर को मिट गव खोज ।।

गड्ड -बड्ड करवै दते , मौड़ा पजें उजड्ड ।
टिँगरें टिँवनी थुल रहेँ , पीकेँ गिर रय अड्ड ।।

मुलकन देश उजड्ड हैं , उनमें पाकिस्तान ।
जो कनबूंँजे सेँक तइँ , उसको भारत जान ।।

अमरीका संसार में , है चिप्पा बदमाँस ।
अखरोँ जेउँ उजड्डपन , जैसेँ खेते कांँस ।।

जो उजड्ड ज्यादा हतेँ , उन्ने खा लव पैल ।
नेता कइयक देश मेँ , होगय उजरा बैल ।।
***************************************
    ,,,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[18/05, 14:04] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय= उजड्ड
(1) बल बलात हो ऊँट से,
      भारी वनत उजड्ड।
      अरे सुनो पर है पतो,
      जिदना जुर है मुड्ड।।
(2) नई खों आ रब फिर सुनो,
      बदरा वड़ो उजड्ड।
      जीके मसके कई तको,
       जोधा गये है गड्ड।।
(3) लरत भिड़त जी चाय से,
      हो तुम बड़े उजड्ड।
      अपने हाथन खोद रये,
      अपने जी खो खड्ड।।
(4) जो उजड्ड वन के रहे,
      काटे सबई कनाव।
       ब्रजभूषण कव मान जा,
       वदलो तनक सुभाव।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -215
दिनांक -10.5.2025
[10/05, 12:59] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा -मड़बा*

बिटियाँ कौ मड़वा गड़ौ, आऔ देव गनेश।
मंगल कर दो काज सब,हरियौ ‌सबइ किलेश।।

हरे बाँस थुमिया बने, ऊपर पत्ता आम।
केला की झालर बँधी,गड़बें मड़वा खाम‌।।

पूजा हौबें मैर की,कुल के  देव बुलाय।
कत जिनखौ हैं मायनों,मड़वा खूब सुहाय।।

फूफा जीजा नेग लें,दें मड़वा खौ गाड़।
मामी भी आकैं उतइँ,देय चून भी ‌माड़।।

राम सिया के व्याय‌ के,गाँय‌ औरतें गीत |
नेग सबइ मड़वा तरै, हौकें राखत प्रीत।।

#राना मड़वा जानियों,व्याय काज की शान।
त्रेतायुग से आज तक,बनी रयी  ‌ पहचान।।

मड़वा मन का सूर्य है,रहे पिता उल्लास।
माँ की शीतल चाँदनी, #राना जानों खास।।

मड़वा जिस आँगन गड़ै,वह घर पावन  मान।
सबइ देव आशीष दें,#राना इतनौ जान।।

मड़वा देवन के गड़ै,शिव शंकर श्री राम।
गँबै उनइँ के गीत भी, भुन्सारे  से  शाम।।

आए थे मड़वा तरै ,मरकर  भी  हरदौल।
भानेजन कौ भात दे , रखौ बहिन कौ कौल।।
***
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[10/05, 13:59] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय मडवा 
                      1
दोइ हाँथ पीरे करे, कर दव कन्यादान। 
भई परायी लाडली, मडवा नैचें आन।  
                        2
मडवा तरें चडाय में, घले बसेता ऐंन। 
हँस- हँस गारी गा रई, रामालइँ मातेंन। 
                        3
पंगत भइ मडवा तरें, सारीं गाँय तगाँय। 
दूला रूठौ नेंग खों, जुरमिल सबइ मनाँय। 
                          4
भौजी नें मडवा तरें, बिलख पखारे पाँव। 
कात ननद सें छूट गव, आज दोर घर गाँव। 
                            5
चम्पा बिलखै काँ छुपे, ओ मम्मा हरदौल। 
दर्शन दो मडवा तरें, तुमें हमाव कौल। 
रामानन्द पाठक नन्द
[10/05, 14:33] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली विषय - मड़वा

नेग चार मड़वा तरैं , सबइ सगुन के  रात |
मम्मा दैतइ प्रेम से , भानेजन  कौ  भात ||

मड़वा मंगल हौत है ,       व्याय काज हो गेह |
लिपत पुतत पत्ता  डरत ,  बैठ करत सब नेह || 

मड़वा गाड़त पावने  , मान दान जो होय‌ |
हरदी हाते पीठ में , घालें  महिला   सो़य ||

हरे बाँस  मड़वा  लगै  ,  पत्ता  छाबैं  आम |
गीत गाउती जुर सबइ , हौतइ जौन तमाम  ||

पूजा हौबे मेर कीं  , जब मड़वा गड़‌ जात |
मंगल करबे काज सब , सबरै देव बुलात ||

मड़वा के जब नेग हों  , फुआ  बैठ जै  पैल |
काबे  हमें बताउने ,   आगें   सबखौ  गैल ||

सुभाष सिंघई
[10/05, 14:57] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा ,बिषय ,,मड़बा,, मंडप 
**************************************
सारी ने मड़बा तरेँ , जब जीजा कइँ टेर ।
कैसेँ कयँ कैसोँ लगो , लव "प्रमोद"ने हेर ।।१।।

कुँवर कलेबा होत तो , गय दूला के संग ।
मड़बा तरेँ "प्रमोद"पै , गड़न कुड़ेँरो रंग ।।२।।

जुआँ सिलौटा खाम सेँ , पर गव काम "प्रमोद" ।
मड़बा में कुपरा धरेँ , हैरेँ लुढ़िया कोद ।।३।।

मड़बा तरें दहेज को , जोर धरौ सामान ।
हरदी चांँवर दय छिटक , कर रय कन्या दान ।।४।।

मड़बा मेँ समधी लरेँ , रकम ल्याव दो लाख ।
नाक लगा क्योँ आयतेंँ , जब बिलरीती साख ।।५।।

मड़बा मेँ समधन नचेँ , समधी गावै ख्याल ।
दोरेँ हुँन बाजेँ बजेँ , मिला-मिलाकेँ ताल ।।६।।

दौना पत्तल पै बरा , रोटी कड़ी अचार ।
दार भात मड़बा तरें ,  खारय शक्कर डार ।।७।।

जब "प्रमोद"को ब्याव भव , ऐन हतीती ठंड ।
मड़बा में बैठें कपत , सारे तीन मुचंड ।।८ ।।

**************************************
       ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[10/05, 15:05] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे,व - मड़वा 
*********************
पकरी ती मड़वा तरें,
          नव-जीवन की गैल।
पाँच दशक कौ भव सफर,
           कांँटे मिले न शैल।।
****
बैठ जात मड़वा तरें,
        सज-धज कें गबनाँइ।
पंडितजी भाँवर पड़त,
           बे  उतारतीं  काँइ।।
****
चिरइ-चरेऊ ढीट रत,
             भौतइ  रोंपतयात।
मड़वा डरै दुमंजला,
       तबइ जुनइ रख पात।।
****
मड़वा हर घर में डरत,
           उतइँ होत जिबनार।
फिर बिबाह-घर जात हैं,
               लै कें बंदनवार।।
**********************
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[10/05, 15:17] Amar Singh Rai Nowgang: *अप्रतियोगी* 
बुंदेली दोहे, विषय- मड़वा 

मड़वा  बेदी  मान  कैं,  परत  भाँवरें  सात।
वर-कन्या भाँवर परें, पति-पत्नी हो जात।।

सात  बचन  मड़वा तरें,बिटिया बर से केत।
पाँच बचन लरका रना,फिर हामी भर देत।।

भइया  पक्के  आइयो, कुंजा  ने दइ  कौल।
चीकट  मड़वा  के  तरें,  लाए  थे  हरदौल।।

थुमिया गाड़त चार ठउ,और नकइँयाँ छाय।
डार  पतोरा  छ्योल के, मड़वा लेत बनाय।।

शहरन में अब देख रय,गड़त न मड़वा भूम।
गाड़  लकइया  कंसरा,  लेत  भाँवरें  घूम।।

मड़वा  के  नेचें   गवत,  नोने - नोने   गीत।
गारी  भी  प्यारी  लगें, लेतीं  हैं मन  जीत।।

                             अमर सिंह राय 
                                   नौगांव
[10/05, 17:21] Sr Saral Sir: *बुंदेली दोहा विषय- मड़वा* 
************************
हरे बाँस मड़वा डरे,
                लखू चंद के द्वार।
गाड़ी घोड़ा सै *सरल*,
                आ जा रय निवतार।

मड़वा भीतर बायरें,
               दिख रय रिस्तेदार।
बैठी  है पंगत *सरल*,
                हो रइ है जिवनार।।
               
कत बाबुल मड़वा तरें,
               बिटिया भई पराइ।
चइयाँ मइयाँ पार दइँ,
               हो रइ आज बिदाइ।।

आज हरे मड़वा डरे,
                होनें कल्ल बिदाइ।
पाल पोष  बड्डों  करों,
                 पैटै   नईं   समाइ।।

पार  दईं  हैं  भोरियाँ,
                 कर दय पीरे हात।
अब मड़वा सूनें लगें,
                 लली सासरै जात।।
**************************
               *एस आर सरल*
                   *टीकमगढ़*
[10/05, 19:16] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- मड़वा
(1) बुलवालइ मड़दावरी,
      मड़वा लेव बनाय।
      मान दान ब्रज टेरकें,
      नेंग चार हो जाय।।
(2) होबे मड़वा मायनो,
      चड़वे हरदी तेल।
      जबतो होवे ऊबनी,
      करत काय खों झेल।।
(3) फिर चड़ाव फिर भाँवरे,
      फिर ब्रज कन्यादान।
      सोपे बेला तब विदा,
      कारज बनें महान।।
(4) बड़ी पुरानी रीति है,
      पालत है सब कोय।
      जब तो लगत वियाव सो,
      मड़वा विन नइ होय।।
(5) गर्मी में रय छाँयरो,
      घाँमों नही सताय।
      थुनियाँ मड़वा गाड़ के,
      जामुन पत्ता छाय।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा
[10/05, 19:54] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहे 
विषय:-मड़वा 
दर करकें थुनियां गढ़त, मड़वा पत्ता छांय।
खांम गड़े हरदी लगै, फिर नतेत सब खांय।।

 दरया फुलका उर कड़ी,पापर संगे भात।
"अनुरागी" मड़वा तरें,प‌ई पाॅंवने खात।।

बिन मड़वा के आज कल, होन लगें हैं ब्याव।
क‌इयक शादीं टूट र‌इॅं, बनी रहत है न्याव।।

बिटिया की मड़वा तरें,भाॅंवर दीन्हीं पार।
आज एक दो कुल भये,विधि आखर दयॅं डार।।

होत असाढी़ भेट फिर, मड़वा द‌ओ बहोर।
समदी सें समदी मिलै,बॅंधे प्रीत की डोर।।
              भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[10/05, 20:20] Rajeev Namdeo: * *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -215** *दिनांक -10.5.2025*

*प्रदत्त शब्द-मड़वा/मड़बा (मंड़प)*

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
1-

चार-चार मड़वा सजे,छलके अति अनुराग।
चतुरानन भाँवर पढ़ें, धन्य जनक के भाग।।
                     ***
                 -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी
*2*
मड़वा तर हरदौल नें, चीकट धर दइ हाथ। 
भेंट करी कुन्जावती, खूब निभाऔ साथ।
                  ***
                  - रामानंद पाठक 'नंद', नैगुवां
*3*

भानेजन के ब्याव कौ,धरो बहिन नें कौल।।
पारस मड़वा के तरें,करें लला हरदौल।।
            ***
             -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
*4*
नैंचें मड़बा बैठ कें,खाव कड़ी उर भात।
बरा मिला कें ख़ाव तौ,मजा भौत आ जात।।
             ***
             - वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*5*
मड़वा मंगल हौत है , हरे बाँस से छाँय‌।
पत्ता डारे आम कै , कदली खम्ब बनाँय‌।।
          ***
             -सुभाष सिंघई, जतारा 

*6* *(द्वितीय स्थान प्राप्त दोहा)*

मांग सजी सिन्दूर सें, चुरियन सजी कलाइ।
मडवा तर भांवर परी,बिटिया भई पराइ।।
           ***
          - डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा
*7*
मड़वा चीकट के बिना, हरदम सूनो रात।
भाई के घर हर बहन, जाकैं माँगत भात।।
              ***
                 -अमर सिंह राय, नौगांव 
*8*
मडवा की पंगत भई, बहु भांत जेवनार। 
कड़ी- भात, बूरा-बरा, फुलका, घी उर दार।।
       ***
          -रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ 

*9* *(तृतीय स्थान प्राप्त दोहा)*

हरे बाँस मड़वा तरें, बिलखत बाप मताइ।
कात करेजौ फट रऔ,बिटिया करै बिदाइ।।
                  ***
                -एस.आर. 'सरल,',टीकमगढ़
                 


*10*
मंडप गायब हो गये, भूल हैं संस्कार। 
होटल में शादी करें, गारीं ना ज्यौनार। 
             ***
          -डॉ.अवधेश कुमार चंसौलिया,ग्वालियर 
*11*
कुदरत के मड़वा तरैं,बैठे हैं जनी मान्स ।
नैंग-चारअच्छे बुरे,ल्यो जु नौनौ चान्स ।।
               ***
          -शोभाराम दाँगी 'इंदु', नदनवारा 
12-
दो अंजाने प्रेम सें,परिणय भांवर लेत।
बँधे गांठ मड़बा तरें,सात जनम के हेत।।
            ***
       -आशा रिछारिया( निवाड़ी)
*13*
फूपा मड़वा  गाड़बैं,फुआ गाड़तीं खाम।
बिनती करैं गनेश सैं,पूरन करियौ काम।।
                 ***
           -आशाराम वर्मा 'नादान',पृथ्वीपुर
*14*
मड़वा डारे आम तर, कैरी पनो पिलाँय।
स्वागत बै मनसैं करैं, मिलत हृदे हरषाँय।।
               ***
            -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा

*15* (*प्रथम स्थान प्राप्त दोहा*)

आँगन में मड़वा डरो, हो रव मंगल काज,
मंत्र गूँज रय भीतरै, बजत बायरैं साज ।
              ***
        -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल

*16*
मड़बा तरें बरात के,भय नोने सत्कार।
हरदी सेँ हाथेँ भिड़ा,दइँ लुगान ने मार।।
         ***
            - प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 
*17*
दतिया सें जा ओरछा,दऔ कुंजा नैं कौल।            
 मड़बा के नींचे भरो,मरें भात हरदौल।।
             ***
           - मूरत सिंह यादव, दतिया 
*18*
हरसाये राजा जनक, मिथिला भई निहाल।
सियाराम  मड़बा तरैं, ठाँड़े  ले वरमाल।।
              ***
              -विद्या चौहान, फरीदाबाद 
*19*
मड़वा से वे हैं हलत,तन में नइयाँ जान।
दारू  पी  रय  हूँक  कें,  कर  घर वीरान।।
          ***
       - अंजनीकुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी 
##
*©संयोजक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
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बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -214 
दिनांक -3.5.2025

[03/05, 16:01] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे,विषय -बींग
**********************
पनी बींग खों ढाँकबे,
            करें  ढोंग  पै  ढोंग।
बेइ निरखबें और की,
          पर-पर रंचक बोंग।।
****
बींग बताबै कान में,
          गुन  के  गाबै  गीत।
सुख-दुख बाँटै प्रेम सें,
         समझौ साँचौ मीत।।
****
दै कें सीख सुधारबें,
        बींग मनुज की चीन।
परम हितू सिंसार में,
      मात-पिता-गुरु तीन।।
****
बींग पराई पै हँसै,
       बौ  मूरख  है  कौन।
अपनें भीतर झाँकबौ,
      जानत नइयाँ जौन।।
*******************
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[03/05, 16:09] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा बिषम- बींग (कमी)*

#राना नजर पसार कैं,सुन रय जिनकी डींग।
उनके अंदर  एक नइँ,भरी  सैकड़ों बींग।।

#राना खौजन मैं गया,बींग भरै कछु  लोग।
अपने भीतर जब तकौ, पिडे मिले बन रोग।।

पइसा बारन के  घरै,#राना  कछु  हौ जात।
बींग औइ की  लैं बना,हल्ला  सबइ मचात।।

बे तो हल्ला द़यँ फिरत,पकरी  #राना  बींग।
मरका बेला से फिरैं,काड़ें अपने  सींग।।

तीन तिगाड़े जब जुरै,#राना  काड़ें बींग।
कात बराई गइ बसा,बसकारे में  भींग।।
    *** 3.5.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[03/05, 16:10] Subhash Singhai Jatara: शनिवार -प्रतियोगिता  विषय -बींग (कमी)

नाक चढ़ी जिनकी रयै ,    सूँगें  रख्खी  हींग |
खत गइ डिबिया में रखी , जेइ काड़ दैं बींग ||

कमल नयन-सी आँख में  , बींग ढूँढ रय मित्र |
कत फरकत  जाँदा लगत , भद्दौ  लगबै चित्र ||

बींग लगातन का लगत , तरुआ तनिक हिलाय | 
कै दइ लरका है पियत , थुतरी  सोय    बसाय ||

कनआँ अपने   टैट को , भूलौ   रयै  बखान  |
कात फुली की बींग‌ है , ऊ   लरका में  मान ||

बींग बिगारौ  है करत , बिगरे साजो काम |
लोग-बाग   पाछें परैं , कर   दैबें  बदनाम ||

सुभाष सिंघई
[03/05, 16:42] Amar Singh Rai Nowgang: अप्रतियोगी दोहे, विषय: बींग 

बींग  काड़बे  में  कई,  माहिर   रत   इंसान।
उनको इतनइँ काम है, करबो कमी बखान।।

बींग  काड़ कैं देत हैं, कइयक मुफ़त सलाह।
रास्ता भटकाउत मगर, करियो नइँ परवाह।।

करैं न अच्छे काम खुद, पर की काड़त बींग।
बड़वाई अपनी करत, हाँकत खुद की डींग।।

जो जी में जानत नहीं, बींग  काड़  कैं  जात। 
सूंघत फिरत छुछात से, बिना बुलाए आत।।

बींग कभउँ अपनी नहीं, फूटी  आँख सुहात।
सबके अंदर है कमी, लेकिन नहीं  दिखात।।

अगर बींग काड़ौ कभउँ, हल भी सही बताव।
अपनी खामी में स्वयं,खुद भी नै खिसियाव।।

                            अमर सिंह राय 
                                 नौगांव
[03/05, 16:50] Asha Richhariya Niwari: बुंदेली दोहा दिवस प्रदत्त शब्द ##बींग 
🌹
बींग तको न काउ की,अपनो करो सुधार। 
जगत सुधर जे आप ही,मानो बात हमार।।
🌹
बने फिरत नेता हितू, हित सें कोसों दूर।
बींगें काड़ें परस्पर,मन में भरें फितूर। ।
🌹
बींगें जिन काड़ो जिजी, नोने नोने राव।
रोटी खाओ प्रेम सें,श्री हरि के गुन गाव। ।
🌹
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 🌹🙏🏿🌹
[03/05, 17:11] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,, बुंदेली दोहा , विषय,,बीँग ,,
**************************************
आँखेँ नइयाँ एक सी , जेइँ बीँग लो जान ।
मेला में मिल गइँ धना , खांँयँ अगनियाँ पान ।।

बीँग ढूँढ़ रय काउ की , खुद की ढाँकेँ नाँक ।
बुरय मान्स कलिकाल के , खोरय अपनी धाँक ।।

फैली बींग समाज मेँ , द्वेष जलन भकराट ।
आगी लगत "प्रमोद"खोँ , देख काउ को ठाट ।।

बड़ी बींग आतंक की , आँखन पर रइँ झूँल ।
कैसे देश पड़ोस के , जोन कमा रय कूँल ।।

पाकिस्तानी बींग बड़ , अत्याचार बढ़ाय ।
धर्म अशिक्षा को लिए , जन मानुष दुख पाय ।।

बीँग बोँग भंँग एक है , बुंदेली के बोल ।
इनको दूर "प्रमोद"कर , अपना हृदय टटोल ।।

कजरा दयँ जारइँ धना , बाँध छोड़ मेँ हींग ।
पछयाने छैला मुलक , दतेँ ढूँढ़वै बींग ।।
***************************************
     ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[03/05, 18:18] Pradeep Khare Patrkar Tikamgarh: बिषय -बींग 
दोहा -प्रदीप खरे मंजुल 
03-05-2025
++++++++++++++++
: बींग न काढ़ौ काम में,
राखौ घर में मेल।
हिल मिल कैं नहिं रैव तौ,
घूमौं भैया जेल।।
: तेल, रेल अरु जेल में,
बींग काढ़ते लोग।
कछू करैं न काज कछू,
पालैं बैठे रोग।।
: शासन, राशन पै सभी,
खुश नहिं होते लोग।
बींग निकारैं बैठ कैं,
फैलो चहुं दिस रोग।।
: खुद खौं नहिं करने कछू,
और करन नहिं देत।
बींग काढ़बौ काज है,
करैं सबइ सैं हेत।।
: स्यानें जू ने लै लई,
अपतइ भर लौं हींग।
कड़ी बना लौटा दई,
 और काढ़ दइ बींग।
: ठूस ठूस कैं खा रहे,
नहीं देत व्यौहार।
बींग निकारत भोज में,
कैसे जे न्यौतार।
[03/05, 18:30] Sr Saral Sir: *बुंदेली दोहा  विषय- बींग*
*****************************
बींग निकारत और में,
                   खुदइ तनक से बैट।
फुली निरखबै काउ की,
                   तकै न अपनौ टैट।।

होतइ कैउ बगैलया,
                    बेइ निकारत बींग।
साँसी कयँ इठजात हैं,
                    लरबे बाँदत सींग।।

बींग काड़बौ है *सरल*,
                    कठिन नेक है काम।
स्वयं साफ सुथरा बनें,
                   करें *सरल* बदनाम।।

जिनखों लासन जीब पै,
                    नइयाँ उनें लगाम।
पनी बींग देखत नईं,
                    लरै भोर सै शाम।।
                    
पनी बींग देखत नईं,
                   कोसत पाकिस्तान।
जात पूछ मारै इतै,
                    आतंकी   इंसान।।
****†**********************
      एस आर सरल
         टीकमगढ़
[03/05, 19:13] +91 76102 64326: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा बिषय-बींग (कमी)   बुंदेली दोहा
                      (०१ )
कमी न कौनउँ काड़ियौ,है नइँयाँ कछु बींग ।
"दाँगी"सब संपन्न है, मारत नइँयाँ डींग ।। 
                        (०२ )
खुदइँ बींग लखबैनहीं,देस पड़ौसी पाक ।                                      "दाँगी"पास हो पात नइँ,सदां रहे नापाक ।।
                       (०३ )
आँख फोर दइँ राम नें,घालौ तिनका एक ।
बाइँ आँख में बींगहै,"दाँगी"कौआ लेख ।।
                       (०४ )
 ब्याव भयैं नौंनौ लगै,बब्बा बऊ प्रसन्न ।
"दाँगी"साल दुसाल में,बींगें कड़ैं अनन्य ।।
                       (०५ )
सुक सैं नइँ रै पात वो,जो काड़त हैं बींग ।
"दाँगी"सब मिलकैं चलौ,नइँ कोऊ के सींग ।।
                        (०६ )
कउअन की आदत बुरी,तुरतइँ काड़त बींग ।
"दाँगी"सोच बिचारिये,फाँक न ऊसइ डींग ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[03/05, 20:05] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली प्रतियोगी दोहा
विषय ‌‌:-बींग/कमी 
खुद में औगुन सौ भरे,तकत और की बींग।
गंध कभ‌उॅं छोड़त नहीं धरौ अतर में हींग।।

खट्टें सबरी मूड़ में,तकें और की बींग।
भीतर बारी सें कुटें,फिर भी हांकत डींग।।

बींग न काड़ो और की,खुद में करौ सुधार।
पैंलां के पन्ना भरे,मांगत और उदार।।

सास बहू की काडबै, रोज‌इॅं न‌इॅं -न‌इॅं बींग।
डार ल्याइ चाय में,जा अफगानी हींग।।
              भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[03/05, 20:56] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
विषय बींग
1-बींग निकारत और की,
   खुदकी कइयक बींग।
  गत नैया करतूत में,
  भारी हांकत ढींग।।
2-जान जात बृज दूर सें,
   काँलो ढाँको बींग।
लरवे तो चाडे़ दते,
 बांदें फिरबें सींग।।।
3-चुरकट बृज जानो नही,
   रवें जाल सें दूर।
बींग तलाशें ने मिले,
  ताड़त रय भरपूर।।
4-बींग पनप पावे नही,
   रहें राम आधीन।
सही कर्मयोगी रये,
 बनो काय मनहीन।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[03/05, 20:59] Taruna khare Jabalpur N: बींग, शब्द पर दोहे 


कितनउ दान दहेज दो,कितनउ जोरो हांत।
बिटिया के ससरार के,बींगै काड़त रात।।

सासैं बींग निकारतीं,जे बउअन की रोज।
बेई समजतीं सास खों,अपने सिर को बोज।।

अपने तन्नक काम की ,मारत खूबइ डींग।
ननदी मोरे काम मै,खूब निकारत बींग।

बड़े बड़ाई हैं करत,हांकत खूबइ डींग।
छोटों के हर काम मै,काड़त रैबैं बींग।।

जर्जर काया होय जब,शांत चित्त सैं राव।
बींग निकारौ नै कबउँ,जो मिल जाबै खाव।।

तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[04/05, 07:40] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय बींग 
                 1
बींग काड बनबें भले, मजा और कौ लेत। 
आँगन झरे झराय में, कूरा फैला देत।
                  2 
जीकी जो आदत बनीं, बैसइ चलबै चाल। 
बींग बता दैकें सला, गला लेत है दाल। 
                    3
छाती ओंटत रात दिन, करें मजूरी काम। 
बींग बता कें काटबै, मालिक आदे दाम। 
                      4
आसानी सें बींग जो, अपनी लेत समार। 
मानें जात समाज में, बे जन इज्जतदार। 
                       5
छाती पै उरदा दरें, बनन न दै रय ब्याव। 
बींग बता घर सें भगें,उपत बिदैबें न्याव। 
रामानन्द पाठक नन्द
[04/05, 08:44] Sanjay Shrivastava Mabai Pahuna: *बुन्देली दोहा*
        विषय - *बींग*
*१*
औरन की काड़ें कमी,अपनी हाँके डींग।
कोउ बताबे बींग तो, लरबे बाँदे सींग।।

*२*
बींग काड़ करबै हँसी, चुगली कर खिसियाय।
ऐसो मूसर आदमी, इते-उते लतयाय।।

*३*
अपनी अपनी बींग खौं, देखो परखो पैल।
कम करो सब ऊजरे, चलो न ऊबड़ गैल।।

*४* 
बींग बतैया हो अगर, हितकारी शुभ यार।
कभऊँ साथ न छोड़ियो, चाहो गर उद्धार।।

*५*
मीन मेख,बीँगे तकें,छिन - छिन हँसी उड़ाय।
ऐसो नर *सर नीर में, कंडी सो उतराय।।
              
           (*सर - तालाब)

     संजय श्रीवास्तव, मवई 
     दिल्ली -- ४/५/२५
[04/05, 11:20] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -214*
शनिवार, दिनांक - 03/05/2025
*बिषय - ' बींग ' (कमी)*
संयोजक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*

*1*
गैर कि बींग न देखिये,अपने भीतर झांक।
पैसों के मद में न रै, अपने औगुन ताक।।
      ***
      -परवीन बानो, टीकमगढ़ 
*2*
देख परख कें काड़वें,जो विटिया में बींग।
वे  हैं  यैसे  जानवर,  जिनके नइयाँ सींग।।
       ***
         -अंजनीकुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी

3
लगे काड़बे बींग तुम, नौनी नइं जा बात।
धुले दूध कौ को इतै, सब अपने गुण गात।।
         ***
         वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ 
4

बींग दिखावे कोउ में, केवल तबइ दो ज्ञान।
बींग दिखावे सब जगां, दो अपने पे ध्यान।।
            ***
      ✍️ श्याम मोहन नामदेव 'श्याम',पृथ्वीपर
5

मीन-मेंख,बीँगे तकें, हँसैं और बुलयाय। 
ऐसों नर सर नीर में, कंडी सो उतराय।।
              ***
              -संजय श्रीवास्तव, मवई, (दिल्ली)
6
भारत में भर्रो मचोँ , मुलक घुसेँ गद्दार ।
ऐइँ बींग सेँ देश को , होरव बंटाढार ।।
                ***
          -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 
7
 नहीं पुसाबै सास खौं, पनी बहू कौ काज।
बींग निकारत रौज तौ,नहिं आवत है बाज।।                     ***
              -प्रदीप खरे'मंजुल', टीकमगढ़ 
8

लुक लुकात ऐसै फिरै, जैसै हो सब ज्ञान।
बींग निकारत और में, बनै खुदइ विद्वान।।
                ***
          -एस.आर. सरल,टीकमगढ़
9
देबो सहज सुझाव रत, और काड़बो बींग।
बींग बुरी अपनी लगै, भाउत मनखों डींग।।
             ***
            - अमर सिंह राय, नौगांव 
10
अकल हिरानी जोंन की,बोइ निकारत बींग।
जैसें जरुआ जरन सें,धरै पेड़ में हींग।।
          ***
          -प्रताप नारायण दुवे,मगरपुर,झांसी 
*11*

बींग न पूछौं  काउँ की , सबमें हम कुछ पात |
छिपी काउँ की है रहत , कौनउँ की  उतरात ||
               ***
            -सुभाष सिंघई ,जतारा

*12* *(प्रथम स्थान प्राप्त दोहा)*

बींग काड़बो है सरल,दुस्तर स्वयं सुधार। 
खुद सुधरो सुधरे जगत,यही बड़ो उपकार। ।
             ***
             -आशा रिछारिया, निवाड़ी 

*13* *(तृतीय स्थान प्राप्त दोहा)*

गुरु चेला की बींग खौं ,छिन में लेत सुधार।
तम हरकैं भगवान सैं ,करवा  देत चिनार।।
                    ***
             -आशाराम वर्मा 'नादान',पृथ्वीपुर
14

चाय कितेकउ खोर दो, ऐन काड़ लो बींग।
हमें-तुमें निभनें इतइ,  इतइ समानें सींग ।।
             ***
            -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
15
सबकी सुध तौ लेत है, अपनी देत बिसार।
 बींग निकारत आन की, अपनी कोद निहार।।
           ***
          -~विद्या चौहान, फरीदाबाद 
16

लरका में कुछ बींग है,कैंड़ा तनक लुलात ।
पड़बै में हुशियार है,देखी परखी बात ।।
                  ***
              -शोभाराम दाँगी, नदनवारा
17

खुद में बींग निकार कें, फिर देने हैं ज्ञान।
बगला घांईं नें करौ,नदी किनारे ध्यान।।
              ***
            - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
18

बींग सबइ में होत है, साजो बस भगवान।
मरा-मरा  जपकैं  भए, डाँकू ब्रह्म समान।।
                  ***
      -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
19

जर्जर काया होय जब,शांत चित्त सैं राव।
बींग निकारौ नै कबउँ,जो मिल जाबै खाव।।
             ***
             -तरुणा खरे'तनु', जबलपुर 
20
बींग न निरखौ और की, देखौ अपनी  बींग। 
औरन की खिल्ली उड़ा, खुद ना मारौ ढींग।।
             ***
       -रामानन्द पाठक 'नन्द', नैगुवां

21. *(द्वितीय स्थान प्राप्त दोहा)*
अपने तिल भर काम की,बड़-बड़ मारें डींग।
पर-परबत से काम में,पर-पर काड़े बींग।।
            ***
        -रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
***
*संयोजक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965
##########
[26/04, 09:45] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली अप्रतियोगी दोहे 
विषय:-नीरे/पास में 
हिरदय में नींरे बसौ,मन मोहन नॅंदलाल।
दूर बसे परदेश में,जीकौ भौत मलाल।।१।

प्रेम अगर हिरदय बसै,तौ सब नींरे रात।
न‌इॅंतर भाई- भाई खों,लासन घांइॅं बसात।।२।।

नींरे के कौआ बुरय,कोयल दूर सुहात।
मधुर बीन कानौ पड़ै,सांप मगन हो जात।।३।।

नींरे मन जब दूर भयॅं,बड़े कसाले खायॅं।
छाती धर द‌इ चीर कें,त‌उॅं नें भले कहायॅंं।।४।।

जतन कछू ऐसौ करौ, नींरे -नींरे रांय।
प्रेम पैल घाईं बनें,इक टाठी में खांय।।५।।
                     भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[26/04, 12:46] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहे-नीरौं- (पास में)*

नीरौं मोरो मायकौ,#राना  सुन लो बात।
खबर दबर सब रत मिलत,मोखौ दिन्ना रात।।

नीरौं घर कौ खेत है,मौड़ी दौड़त जात।
चना मटर सब टौर कैं,#राना घर में ल्यात।।

नीरौं भी इस्कूल है,और खेल मैदान।
चरपट्टौ #राना दयैं,छोरा-छोरी आन।।

नीरौं जब सारो बसे,अपनौ डेरा डाल।
#राना जानों औइ दिन,आकें बस गवँ  काल।।

नीरौं हौबे जब कुआँ,#राना मन हरसात।
ठंडौ पानू ले  घड़ा,धना जल्द भर ल्यात।।
            *** दिनांक -26.4.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[26/04, 13:25] Asha Richhariya Niwari: दोहा दिवस दिनांक 26.4.2025
🌹
नीरो है श्री राम कौ, नगर ओरछा धाम। 
उठत भोर दर्शन करौ,भक्ति करौ निष्काम। ।
🌹
मात पिता गुरु सबइ जन,नीरे मन के रांय,
इनकी आशीषें प्रबल,
अच्छे दिन लै आंय ।।
🌹
माया के संसार में,जियरा ना भरमाव।
नीरे रघुवर के रहो,मुक्ति अवश्यम् पाव।।
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी🌹🙏🏿🌹
[26/04, 13:42] Subhash Singhai Jatara: विषय - नीरौं- पास में)

प्रभु नों मन नीरौं रयै , करत भजन दिन रात |
कछु ना सूझत और है ,  कहे साधु की जात ||

नीरौं समधी रात है , रोज शाम आ  जात |
गप्पें फाँकत बैठ कैं , मूँछन ताव बतात ||

नीरौं  दुश्मन है भलौ , रात सजग सब लोग |
गलती कौनउ हौय ना , जुरबै   नहीं कुयोग || 

नीरौं कुत्ता हौय‌  तौ , ऊखौं  रवँ पुचकार |
ऐसइ ऐबी हौय नर , करियौ  उयै जुहार ||

सबसै नीरौं सुत लगै , फिर नाती भी आत |
बिटिया के संगे धना , नीरीं लगत जमात ||

सुभाष सिंघई
[26/04, 14:09] Shobharam Dagi: अप्रितयोगी बुंदेली दोहा दिनांक 26/04/025   (01)

छाती पै दयँ दौंदरा,"दाँगी" पास न राव ।
दूरइ रव या शांत रव,नीरे मौ न बताव ।।
                     (02)
कुण्ड़ेश्वर उर ओड़छा,नीरे-नीर धाम ।।
"दाँगी"शिव कुण्ड़ेश्वर ,नगर ओड़छा राम ।।
                    (03)
नीरौ सोइ जटाशंकर,सूरदेव भगवान ।
अछरूमइया हैं लिंगाँ,बागेसुर हनुमान ।।
                  (04 )
प्रभु के नीरे रव सदां,पकरो भजन कि डोर ।
तन मन से सेवा करो,"दाँगी"जेउ निचोर ।।=निचोर=निचोड़
                   (05)
अपनैं नीरौ राखकै,करियौ तनक सुधार ।                                बिगड़ रहे मोबाल सै,"दाँगी"जे हुशियार ।।
                  (06)                      पढ लिख रय सब कोउ अब,बिना पढै सब पास ।
भेद का है पढे लिखें,"इन्दु"चरा रय घांस ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[26/04, 16:11] S R Saral Tikamgarh: *बुन्देली दोहा विषय -नीरे*

द्वेष बैर करिओं नईं, रखों नईं छल पास।
नीरे परहित में रऔ,जब तक है तन श्वास ।।

नीरे रऔ गरीब के, चलों झुका कैं शीश।
परसेवा उपकार सै,खुश रत हैं जगदीश।।

सत्य न्याय छोड़ों नईं,तज दो सभी विकार।
दीनन के  नीरे रऔ, करों  *सरल* उपकार।।

नीरे  रव  सत्संग  में, रऔ  बुरन  सै दूर।
बैर करों ना काउसै,मों रव मिलयँ जरूर।।

नीरे रव विद्वान के, चोखों  मिलत ज्ञान।
उनकी *सरल* पिरेरणा,बन जाती वरदान।।

        *एस आर सरल*
            *टीकमगढ़*
[26/04, 19:24] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा 
विषय -नीरे
1-जाकें देखो आय को,
    पतो करो बलवीर। 
    अपने नीरें आ रहे,
   मन हो रओ अधीर।।
2- नीरें- नीरें हैं अपन,
    नइया जादाँ दूर।
    आवौ- जावौ रोज को,
    राखें बनो जरूर।।
3- नीरें तो है टैवनी,
     मौं में कैसें जात।
    जबरइ करवो जो चहो,
     दिक्कत बने बिलात।।
4-तुम तो नीरे नइ गसत,
   साँची कव हजूर।
   दावत नइया छाँयरी,
   बन गव कौन कसूर।।
5-अब नीरे दिन आ गये,
   संकट में है जान।
  राम नाम सुमरन लगे,
  चूर भये अरमान।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[26/04, 19:34] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे,  विषय - नीरौ / नीरे 
--------------------------------------------------
करजा चुको न पैल कौ,रोजउँ टोकट साव।
आँख लगै नैं दीन की,नीरौ आ गव ब्याव।।
--------
नीरे  देशन  सें  मची, कइ  देशन  की  रार।
काय परौसी  जूझतइ, करनें  परै  बिचार।।
--------
चिरंजीव के ब्याव में,कितनउँ करौ उलात।
पोंचत अक्सर  देर सें,  नीरे   गाँव  बरात।।
--------
रुकत ब्याव में दूर के, भले  दिना दो चार।
नीरे  के  तुरतइँ  भगत,  नाते    रिश्तेदार।।
--------------------------------------------------
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[26/04, 19:43] Ramanand Pathak Negua: बुन्देली दोहा बिसय नीरौ 
                    1
नीरौ मृग सीता तकौ, देखत जी ललचाय। 
मृगछाला लाओ प्रभु, कुटिया लेंय सजाय। 
                     2
अछरु माँ के दर्श खों, लोग हजारन आत। 
मंदिर नीरौ देखतन, सबइ जनें हरसात। 
                      3
कुअला पै पानी भरन, जा रइँ गुइयाँ चार। 
आपस में बतया रयीं, नीरौ नइयाँ यार। 
                       4
खरी दुपरिया जेठ की, मउआ बीनन जात। 
नीरौ नइयाँ हार बौ, मुश्किल सें घर घर आत। 
                        5
घर सें हाट बजार सब,नीरौ नीरौ चाँय। 
देर अधिक लगबै नई,झट्ट लौट घर आँय। 
रामानन्द पाठक नन्द
[26/04, 21:26] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-213*
प्रदत्त शब्द (नीरौ/नीरे/पास)
दिनांक -26.4.2025 
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
अपनें खों नीरौ परत,नगर ओरछा धाम।
मन मोहक निरखें छबी,बैठे राजा राम।।
                ***
          -रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां
*2*
नीरे रैकैं बैर की, खोद दई क्यों खाइ।
काम बुरय सबरे करे,याद करा दै बाइ ॥
                **
       - संजय स्वर्णकार'सिंघाल',कोंच(जालौन)
*3*
मोटर सें नीरौं लगत,निगतन में कुछ दूर।
दोइ तरा सें देख लो,जाकें शहर जरूर।।
       ***
        - वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*4*
कुआँ-बावड़िन में कितउँ, बचो न नीरे नीर।
पानी  नहीं  बहाइयो,  सइँयाँ समझो पीर।।
         ***
              -अमर सिंह राय, नौगांव 
*5*
नीरौं रखियो धर्म खौं,नीरे रखियो मित्र।
गौ माता घर में रखो,और देवता चित्र।।
               ***
            -सुभाष सिंघई, जतारा 
*6*
नीरौ उनकौ मायकौ,लै धुतिया कड़ जाॅंय।
पिया  परत हैं हार में,बासी  कूसी खाॅंय।।
                ***
      -आशाराम वर्मा'नादान',पृथ्वीपुर

*7*
नीरे हरि के बेइ नर,जिनकी निश्छल प्रीत। 
भक्ति भाव परमार्थ सें,लेत जगत खों जीत।।
                    ***
         -भगवान सिंह लोधी 'अनुरागी',हटा
*8*
निंदक जो नीरे रहें,करहें अति उपकार। 
निशि दिन दोष निकारहें,अपनो होय सुधार। ।
               ***
       -आशा रिछारिया,निवाड़ी 
*9*
नीरौ मयकौ होय तौ,बढ़ी-चढ़ी रत नार।
आधे सें जादाँ मनत,मयके में त्योहार।।
             ***
       -गोकुल प्रसाद यादव ,नन्हींटेहरी
*10*
पहलगाम में मर गयेँ, बेगुनाह छब्बीस ।
नीरेँ सेँ गोली  लगी,पूँछेँ धरम खबीस ।।
      ***
          - प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 
*11*
नीरे रय में फायदा,दूरी में नुकसान। 
जाति धरम खौं भूलकैं, मिलकैं रय इंसान।।
           ***
            -संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
*12*
मुखिया कौ घर कां परत,नीरौ हमैं बताव ।
कौन गैल सै जाँय हम,कन्नै अबइ ब्याव ।।
              ***
         -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*13*

नीरौं होबै मायको,धना दौर खैं जायँ।
अपने घर को हाल सब, जाखैं उतै बतायँ।।
           ***
    -तरुणा खरे'तनु', जबलपुर
*14*
नीरे सबखाँ राखियो, मात-पिता गुरु मित्र।
काम सबइ इनसैं बनैं,महके जस को इत्र।।
         ***
श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
*15*
बुरय काम सै दूर रव,संग देत नइँ कोय।
नीरे रव हर की शरन,बार न बाँकौ होय।।
              ***
      -एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
*16*
नीरे आबैं दुःख जब,मन सें करियो ध्यान।
कष्ट मिटाबेंगे सबइँ,राम भक्त हनुमान।।
            ***
           -विद्या चौहान, फरीदाबाद 
***
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
मोबाइल -9893520965
######@@@###
[20/04, 10:40] Bhagwan Singh Lodhi Hata: *बुन्देली अप्रतियोगी दोहे*
विषय:-पवारौ
अंग्रेजी हमने पढ़ी,पन्द्रा सोला साल।
मांय पवारौ भेंसियां,हो ग‌इॅं जी खों काल।।

धुतल‌इया उर पोलका, पिया पवारौ मांय।
जींस पेंट लै आव जब,तौई खाना खांय।।

बरगर पिज्जा फुलकियां,पेडिस चाऊमीन।
मांय पवारौ रांदनौ, हमें ख्वाव नमकीन।।

उरदा मक्का मूॅंग में,प्रियतम दिन गय बीत।
मांय पवारौ मोह उर, करौ हरि सें प्रीत।।

माया में काया बिदी,मन तें भजत न राम।
तिषना मांय‌ पवार दे, चलौ अयोध्या धाम।।
              भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[20/04, 13:46] Subhash Singhai Jatara: पवारौ = { किसी वस्तु को बलात देना }

भारे को सुनतइ ‌इतै , करत पवारौ‌ लोग |
खाज मानतइ काज खौं , ठाड़ो बैठौ रोग ||

ब्यादें जितनी हैं  बिदीं , माँय पवारौ आप |
बाजे बजै न  खोपड़ी , बनै  राव चुपचाप ||

माँय‌ पवारौ काम  बै , घर में मचबै दाँद ‌| 
सला सूद हौबें नँईं  , चलबै  बैसइ धाँद ||

भइया हैसा माँग रवँ , सबइ पवारौ दाम  |
और कमा खा ले इतै , भुन्सारे से  शाम ||

लगे पवारौ -सौ जितै,      उतै न डारौ हाथ |
सार स्वाद भी नँइँ  मिलै , फूटै अपनौ माथ ||

काम पवारौ -सौ  नँइँ , कौनउँ करियौ आप |
बदनामी हातै लगै,      बिगरै  अपनी छाप 

सुभाष सिंघई
[20/04, 15:21] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय पबारौ 
                     1
कामी क्रोधी लालची, हियै कुटिलता होय। 
माँय पबारौ संग जौ, ऐसौ बोझ न ढोय।
                      2
माँय पबारौ बासना, करौ हरी सें हेत। 
करनी अबइँ सुधार लो, हो गय बार सुपेत। 
                      3
बानी मधु रस बोलिए, चुबें न हिय में बोल। 
माँय पबारौ कटु बचन, निसरी दो तुम घोल। 
                        4
संगत ज्ञानी की करौ, मिलै अनौखौ ज्ञान। 
माँय पबारौ सिरफिरे, अज्ञानी शैतान। 
                         5
दुनियाँ में नेकी करी, जानत न छल छंद। 
लोभ मोह मत्सर कपट, माँय पबारौ नंद। 
रामानन्द पाठक नन्द
[20/04, 16:18] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहा विषय -पवारौ {किसी वस्तु को बलात देना }*

नँई पवारौ-सौ करौ,#राना साजौ काम।
मन से करियौ सब जनै,नँइँ लइयौ विश्राम।।

हौत पवारौ है बुरवँ, घरै लाभ नँइँ  देत।
#राना यह अहसान-भी,प्रान अलग से लेत।।

चना पवारौ-सौ मिलौ,हम घुन फटकत रात।
सरकारी खैरात यह,#राना, नँई पुसात।।

कात पवारौ  माँय सब,धना हमें  समझात।
देवर जब जिद पै अड़ौ,#राना  सबरौ चात।।

मुफ्त पवारौ जब मिलै,कछू  हौत है  खोट।
ऊपर से अहसान की,,#राना मिलबें ‌ चोट।।

नँई  नदारौ  हौय जब ,माँय पवारौ  नेह।
कर लौ हिस्सा बाँट सब,#राना अपनौ गेह।।
             *** दिनांक -20-5-2025

*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[20/04, 16:33] Shobharam Dagi: बिषय-पवारौ (किसी वस्तु को बलात देना) बुंदेली दोहा 20/04/025 (01)
टाठी संग बिलियां धरीं,कड़ी चांव उर दार ।
उतै पवारौ "इन्दु"ये,चल गइँ खानेंदार ।।
                  (02)
नय-नय चल गय आइ टम,बन्न-बन्न के थार ।
उतै पवारौ थालियां,"दाँगी"खा-
नन दार ।।
                     (03)
काम पवारौ आज ही,हो जीमें नुकसान ।
चार जनन के मध्य में,दाँगी"होबै शान ।।
                       (04)
मरे जात बड़वाइ खौ,घरै न भूँजी भाँग ।
उतै पबारौ शान जा,"दाँगी"ठूँसैं साँग ।।
                      (05)
चार जनन के बीच में,हैसा होरय
सात ।
झट पबारौ मढ़ी गढ़ा,"दाँगी"नइँ इठलात ।।
                     (06)
माँय पबारौ काम तुम,जीमें होत लराइ ।
जितैसला सैं कामनइँ,"दाँगी"उतै बुराइ ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[20/04, 16:44] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय= पवारो
(1) माय पवारों देवतो,
      टारों अरी नियाव।
      जितने जल्दी हो सके,
      कर्जा सुनो चुकाव।।
(2) सुनो पवारो जान दे,
      करत काय कुनयाव।
      कौतक को मानत नही,
      जाने कौन सुभाव।।
(3) नाय पवारो हम धरें,
      बड़ो वजन है तोय।
      भार उतारो मूड़़ को,
      हैरानी ने होय।।
(4) अरे पबारो टार दे,
     बैचो करो कनाय।
   धरे कबारो जोर के,
   हउआ काय बनाय।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[20/04, 21:40] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -212*

प्रदत्त विषय:-पवारौ  दिनांक 20.4.2025
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*

*1*
चिंता आलस बैर छल, बिरथा देत बिलात।
माँय  पवारौ ऐब  जे, सुख  आहैं  मुस्कात।।
             ***
             -विद्या चौहान, फरीदाबाद 
*2*
पियत गिरत फिर फिर उठत,कोंड़ी बची न पास।
मांय पबारौ जौ नशा, तन को सत्यानाश ।।
                ***
               -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*3*
दारूखोर  नशैलची , बिना  मौत मर जात।
माॅंय पबारौ जा चिलम,पिया मानलो बात।।
             ***
              -आशाराम वर्मा 'नादान', पृथ्वीपुर
*4*
दारू गुटका तांस सें,घर बाखर बिक जात।
मांय पवारौ बालमा, बैद गुनी सब कात।।
             ***
             -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*5*
उतै पबारौ भैसियाँ,देसी राखौ गायँ ।
नग-नग में है देवता,दूध घीव हम खायँ ।।
          ***
         -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*6*
पिया पवारौ करत हो,करलो तनिक विचार।                                    
ऐसी नौंनी बात है,करते काय बिगार।।
            ***
          - मूरत सिंह यादव ,दतिया 
*7*
मौय ‌पवारौ-सौ मिलौ,पूरौ दान दहेज।
टौकौं गुंडी  में कड़ौ,समदी  निकरौ तेज।।
              ***
                 -सुभाष सिंघई , जतारा 
*8*
कबेँ पबारौ घट करम,दारू गाँजोँ भाँग।
पढ़ोँ लिखोँ अग्गम चलो,यही समय की माँग।।
      ***
      -प्रमोद मिश्रा वल्देवगढ़ 
*9*
कही पवारौ का भओ, खाओ जिन तुम कान।
जो सुख चाहो अब धना, बनी रओ नादान।।
           ***
     - श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा,विदिशा 
*10*

बड़ौ कठन है जौ विषय, कछू न सूझो आज।
मायँ पवारौ नइँ लिखत, करत दूसरौ काज।।
      ***
              -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*11*
लाव पवारौ आज तुम,खालो मोरे प्राण।
धरलो साजौ नाज तुम,हो जैहै कल्याण।।
             ***
         -वीरेन्द चंसौरिया टीकमगढ़ 
*12*
बागेश्वर सरकार  के, पावन  मंगल भाव।
इतै पबारौ दुख पनें,सुख सम्पत लै जाव।।
               ***
         -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
*13*
गुन भावैं सब खों मनें, अबगुन सबै सताँय। 
अवगुन जीके मन बसैं, उनें पबारौ माँय।।
            ***
               -रामानन्द पाठक, नैगुवा
*14*
खटिया लौ जूता नहीं,  भइया रखौ उतार।
 इन्हें पबारो दूर खों, वास्तुशास्त्र अनुसार।।
               ***
               अमर सिंह राय, नोगांव
*15*
माँय  पवारौ अवगुनन, जोरत दोई हाथ।
शरनन में माथों धरै,सुद लिइऔ रघुनाथ।।
              ***
             -  एस आर सरल,टीकमगढ़
***
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
[12/04, 13:10] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा-फुकना/फूंकना (गुब्बारे)*

फुकना से ना फूलियौ,करो न येसी भूल।
#राना टुच्चे कोउ भी,बातन नौंक बबूल।।

#राना जग  मेला दिखे,फुकना साजे चार।
प्रेम-दया-परमार्थ के,भक्ती  के‌ सुखकार।।

काम क्रोध मद लोभ के,फुकना मानौ चार।
भौत  फूलतइ हैं हृदय,#राना चटकें मार।।

#राना दुनिया घूम रइ,फुकना- सी रइ फूल।
मेला सो जीवन दिखे,उड़ रइ भारी धूल।।

#राना फुक रय फूँकना,फूँक रयै है लोग।
कछु फूलत तुचकत कछू,बनबै  ऐसे योग।।
      *** दिनांक -12.4-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[12/04, 14:01] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा 
बिषय-फुकना/फूकना (गुब्बारे)
                      (०१)
फुकनाँ घाँइ न फूलियौ,ढका लगै मिटजात ।
माछी बैठे चट उड़ै,"दाँगी" देखत रात ।।
                       (०२)
फुँकना घाँई जिन्दगी,जानै कब मुरझाय ।
"दाँगी"चलियौ तुम समर,फुकना फूट न पाय ।।
                     (०३)
मंदिर में फुँकना सजे,रंग विरंगे ऐन ।
"दाँगी"जनम दिवस मना,रहे दच्छिना दैन ।।
                     (०४)
घर दोरे ऐसे सजे,फुँकना दय लट काय ।
फुकनन से फूला बना,दाँगी"महल
सजाय ।।
                     (०५)
मौड़ा मना रहे दिवस,जनम दिवस की रैन ।
फुकना चारों ओर सै,"दाँगी"बाँदैं ऐन ।।
                    (०६)
हल्के बड्डे फूँकना,खूबइ लये फुलाय ।
"दाँगी"अटाइ ऊपरै,नइ-नइ कला सजाय ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[12/04, 14:17] Subhash Singhai Jatara: 12.4.25- शनिवार --फुकना/फूँकना (गुब्बारे)
अप्रतियोगी दोहे

फुकना से फूले फिरैं , फूफा देख बिआव | 
गटा तरेरे कत फुआ , हल्ला नईं  मचाव ||

जितने फूले फूँकना , तुचक समय पर जात |
कछू  फुट्ट भी पैल से , सबखौं  खूब दिखात ||

फुकना से ना फूलियो , ज्ञानी कत   है बात |
पइसा टिके  न हात पै , खर्चा सब हो जात ||

गुस्सा में भी आदमी,     फुकना- सो  जै फूल |
नँग-नँग फरकत से दिखें ,मचत हृदय में हूल ||

सूपनखा नकटी बनी , फुकना -सी गइ फूल |
फर्रानी ऐसी  फिरी ,    मिट गइ रावण चूल ||

सुभाष सिंघई 
~~~~~
[12/04, 15:17] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-फूॅंकना/गुब्बारे 
बालापन में फूॅंकना, लये पजी के पांच।
खुशी भ‌ई मिल गव सुरग, झूम -झूम रय नांच।। 

जीवन है इक फूॅंकना, कबै हवा कड़जाय।
अत्त करत गिर- गिर परत,समझ‌त नैयां काय।।

जी दिन कड़ जानें हवा, फूट फूॅंकना जैय।
हात लगे है कोउ नें, की खों हाल बतैय।।

हवा फूॅंकना की कढै, ऊस‌इ तन से प्रान।
जीवन क्षणभंगुर मिलौ,अनुरागी धर ध्यान।।

फुग्गा फुकना फूॅंकना, लेने ई सें  ज्ञान।
जादा जो भर द‌इ हवा,मिट जैहै पैचान।।
                   भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[12/04, 16:23] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुन्देली दोहा ,विषय,,फुकना,,फूकना,,
*************************************
जियत-जियत फूंँलेँ  फिरेँ , जग में मान्स "प्रमोद" ।
तुचक फूँकना से डरेँ , इक दिन माँ की गोद ।।

फुकना कैसी जिन्दगी , फूँलेँ फटेँ हिराय ।
जब-तक दुनियाँ मेँ रहेंँ , रंग "प्रमोद"दिखाय ।।

फुलेँ-फुलेँ केँ फूँकना , बच्चे खेलेँ खेल ।
कछूँ पुचक केँ फूँट गय , तनक लगोँ हैं झेल ।।

जन्म दिवस पै फूँकना , फुलेँ-फुलेँ चिपकाँयँ ।
केउ जनेँ "प्रमोद"सेँ , सुंदरकांँड कराँयँ ।।

फुकना सी फूँली धना , बजनउँ पायल पैर ।
हँस-हँस कांँयँ "प्रमोद"सोँ , लाला है सब खैर ।।
***************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[12/04, 19:53] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिसय फुकना 
                   1
ब्याव घरै फुकना लगे, फुकनन बनों दुआर। 
मन मोहक दोरौ लगै, देखें लोग निहार। 
                     2
दे देबै फुकना फुला, छोटी गुडिया होय। 
हँस मुस्का कें खेलबै, अँगना खूबइ सोय। 
                     3
जनम दिना गोपाल कौ, भौतइ खुसियाँ छाँइ। 
सजा दऔ फुकना फुला, घर मडवा की नाँइ। 
                       4
फुकना सें फूले फिरत, जिदना होतइ ब्याव। 
निकर जात सबरी हवा, बिदें गिरस्ती  भाव। 
                       5
बडवाई सुनबे मिली, गय फुकना से फूल। 
निंदा सें मिर्ची लगत, जग कौ जौइ उसूल। 
रामानन्द पाठक नन्द
[12/04, 21:19] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -211*
प्रदत्त विषय - फुकना/फूकना (गुब्बारे)
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
जन्म दिना हनुमान कौ, गये मनानें भोर। 
सत रंगे फुकना फुला, सजा दऔ है दोर।।
            ***
                    -रामानन्द पाठक, नैगुवां
*2*
काय गर्भ तुम करत हो,, बनते बड़े अमीर।
 फुकना जैसे फूटनें,,सबके सुनों शरीर।।
         ***
         - मूरत सिंह यादव दतिया 
*3*
हनूमान जन्मोत्सव,फुकना बाँदे द्वार ।
कलजुग में हनुमान की,हो रइ जय-जय कार ।।
             ***
              -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*4*
फूँक-फूँक कैँ फूँकना , लगेँ फुलानेँ लोग ।
जन्म -दिवस हनुमान का , है नोनो संयोग ।।
           ***
       -प्रमोद मिश्रा वल्देवगढ़ 
*5*
नरतन जैसें फूॅंकना, हवा कड़त मरजात।
जौलौ जी के जै दिना,राम आसरें रात।।
       ***
             -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*6*
जौ तन मानो फूंकना, सांसें प्रभु की दैन।
माया तज भज लो हरी, पाओगे सुख चैन।।
      ***
           -आशा रिछारिया निवाड़ी
*7*
चार दिना की जिंदगी, सबइ  जनन  की  रात।
हवा भरै अभिमान की, फुकना सी फट जात।।
         ***
       - अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी 
*8*
पैल फूॅंकना सी हती , बिटिया गोल मटोल।
सूख  छुहारौ  हो गई , सुन सासो  के बोल।।
      ***
     -आशाराम वर्मा " नादान "पृथ्वीपुर
*9*
करम करो नोने सदा, भइया जगमें आय।            
है फुकना सी जिन्दगी,कबै हवा कडजाय।
          ***
         -एम. एल. त्यागी,खरगापुर
*10*
हम सब  फुकना ना  बने, ना फुक्का रय कोय।
ना फाँकें  हम  हर गली,कहै  गपोड़ी  मोय।।
          ***
          -सुभाष सिंघई, जतारा 
*11*
फुकना सें घर-घर सजो, सज रय वंदनवार।
प्रगट भये हनुमत लला, होवै जै-जै कार।।
     ***
 -श्यामराव धर्मपुरीकर गंजबासौदा
*12*
बेंचे फुंकना चार ठउ , जाकें काल बजार।
मिले रुपैया बीस हैं , छौटौ सौ रुजगार।।
           ***
      -वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*13*
फूलौ फिरत घमंड में, फुकना सौ इंसान। 
हवा निकरतन छोड़कें, जानें सकल जहान।।
            ***
          -संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
***##@@###@@*****
[05/04, 12:56] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा बिषय- बटुआ(पर्स)* 

गुन बारौ जब आदमी , बात करत हो खास।
जानो #राना प्रेम को,बटुआ ऊके पास।।

#राना बटुआ में धरैं,दद्दा कइ कलदार।
बेर-बेर खनकात हैं,बउँ टपकाबैं लार।।

दद्दा बटुआ में धरै,खैर सुपाड़ी  लौंग।
बस दैबें के नाम पै,#राना करतइ ढौंग।।

दद्दा कौ बटुआ फटौ,झरत तमाकू  रात।
चूना रगड़त आदमी,#राना जुरकै खात।।

#राना बटुआ में धरौ,गोरी कौ श्रृंगार।
लाली पौतत औंठ पै,छैला करत निहार।।
     **दिनांक -5-4-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[05/04, 15:43] Taruna khare Jabalpur: 'बटुआ 'शब्द पर दोहे 



बटुआ मैं पैसा धरैं,अम्मा करतीं काम।
लरका खात मिठाई तब,बेइ चुकातीं दाम।।

बटुआ को फैसन चलो,मैम साब लै हांँत।
चलीं जात हैं घूमबे,साहब जू के सांँत।।

जरीदार गोटा लगे,रेसम लागी डोर।
बटुआ मै सुंदर कढ़े, तितली, तोता मोर।।

लौंग सुपारी पान उर,हते रुपैया चार।
बटुआ ढूंढे नै मिलै, कहां हिरा गओ यार।।

कम्मर मै बटुआ खुसो,लटकै लम्मी डोर।
धुतिया सैं ढांकैं बऊ,करखैं सामूं छोर।।


तरुणा खरे'तनु'
जबलपुर
[05/04, 15:50] Subhash Singhai Jatara: बटुआ = पर्स

बटुआ में पैंला सबइ , चीजें धरैं  ‌समार |
धागा की ‌रत ती लरीं ,करबें‌ बंद किनार ||

बूड़ै बब्बा ‌साव जू  , बटुआ रयैं     चपाय ‌ ‌ |
लौंग सुपाड़ी लायची , सबखौं रयै खवाय ||

बटुआ देखे  गुलगुले , हमने  गोरी  पास |
पइसा जीमें थी रखत , चीजें पत्री खास ||

बटुआ लयँ जो हाथ में , रत ती ऊकी शान |
बडौ आदमी कात तै    , दैत   हतै सम्मान ||

घरै आयँ जब  आदमी , बटुआ  देबें खोल |
और सुपाड़ी दे कतर ,  मीठे   बोले   बोल ||

सुभाष सिंघई
[05/04, 16:01] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी =बुंदेली दोहा (210) शोभारामदाँगी "बटुआ" (पर्स)
                   (01)
धना चली है हाट खौ,बटुआ खुरसैं पास ।
"दाँगी"दसइ हजार की,चोरी हो गइ खास ।।
                     (02)
बटुआ
घाँईं जिंदगी,जाने कब खुल जाय ।                             धरौ भीतरै जो कछू,"दाँगी"बचा
न पाय ।।

                    (03)
चूना कतथा लायची,पान सुपारी इत्र ।
बटुआ सैं है दोस्ती,"दाँगी"हमरे  मित्र ।।
                    (04)
बटुआ कौदें सब तकत,"दाँगी" का धर ल्याय।
बाट निहारैं रात सब,छुड़ा-छुड़ा सब खाय ।।
                  (05)
दारु खोर बटुआ धरें,चलैं गरे में डार ।
"दाँगी"पूँजी सब धरै,ई में रत हुशियार ।।
                    (06)
बटुआ को हतौ चलन,अब नइँ लै रव कोउ ।
"दाँगी"इक्का जो बचे,सबइ घाँइ न होउ ।। 
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[05/04, 16:04] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी =बुंदेली दोहा (210) शोभारामदाँगी "बटुआ" (पर्स)
                   (01)
धना चली है हाट खौ,बटुआ खुरसैं पास ।
"दाँगी"दसइ हजार की,चोरी हो गइ खास ।।
                     (02)
बटुआ
घाँईं जिंदगी,जाने कब खुल जाय ।                             धरौ भीतरै जो कछू,"दाँगी"बचा
न पाय ।।

                    (03)
चूना कतथा लायची,पान सुपारी इत्र ।
बटुआ सैं है दोस्ती,"दाँगी"हमरे  मित्र ।।
                    (04)
बटुआ कौदें सब तकत,"दाँगी" का धर ल्याय।
बाट निहारैं रात सब,छुड़ा-छुड़ा सब खाय ।।
                  (05)
दारु खोर बटुआ धरें,चलैं गरे में डार ।
"दाँगी"पूँजी सब धरै,ई में रत हुशियार ।।
                    (06)
बटुआ को हतौ चलन,अब नइँ लै रव कोउ ।
"दाँगी"इक्का जो बचे,सबइ घाँइ न होउ ।। 
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[05/04, 18:55] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- बटुआ
(1) चलगव झिल्ली को चलन,
      झोला किये पुसाय।
      बटुआ की चर्चा नही,
      जिते चाय मिलजाय।।
(2) बटुआ मे डब्बल धरे,
      चले बजारे आय।
      सौदा लेवे काय की,
      खबरइ नइ कर पाय।।
(3) पैसा धेला जुगतसे,
      बटुआ मे गथयाय।
      धरे फिरत खोसें खुटी,
      टका नही मिल पाय।।
(4) झोला बटुआ केरिया,
      अब तो कमइ दिखात।
      ब्रजभूषण माने अटर,
      को फिर रव लट कात।।
(5) रूबो चकमक बटइया,
      पैलउँ धरे सुटाय।
      ब्रजभूषण बटुआ कबउँ,
      खाली नइ रै पाय।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[05/04, 19:41] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी =बुंदेली दोहा (210) शोभारामदाँगी "बटुआ" (पर्स)
                   (01)
धना चली है हाट खौ,बटुआ खुरसैं पास ।
"दाँगी"दसइ हजार की,चोरी हो गइ खास ।।
                     (02)
बटुआ
घाँईं जिंदगी,जाने कब खुल जाय ।                             धरौ भीतरै जो कछू,"दाँगी"बचा
न पाय ।।

                    (03)
चूना कतथा लायची,पान सुपारी इत्र ।
बटुआ सैं है दोस्ती,"दाँगी"हमरे  मित्र ।।
                    (04)
बटुआ कौदें सब तकत,"दाँगी" का धर ल्याय।
बाट निहारैं रात सब,छुड़ा-छुड़ा सब खाय ।।
                  (05)
दारु खोर बटुआ धरें,चलैं गरे में डार ।
"दाँगी"पूँजी सब धरै,ई में रत हुशियार ।।
                    (06)
बटुआ को हतौ चलन,अब नइँ लै रव कोउ ।
"दाँगी"इक्का जो बचे,सबइ घाँइ न होउ ।। 
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[05/04, 21:45] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -210*
दिनांक 5.4.2025 
*प्रदत्त शब्द =बटुआ* 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
पान सुपारि सरोतिया,चूना कत्था पान।
धर बटुआ कक्को चलीं,करन कुम्भ अस्नान।।
              ***
               -आशा रिछारिया,निवाड़ी 
*2*
बटुआ चोली में धरें,छाती सें चिपकांय।             
कैउ पछारें रयंलगे,चुरा कोउना पांय।।
‌                ***    
              -एम.एल.त्यागी, खरगापुर
*3*
सबके बटुआ हौं भरे, सबकौ हो सम्मान। 
हर हाँतन में काम हो, कटै जाल-जंजाल।।
            ***
          -संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
*4*      
लौंग लायची धरलई,बटुआ में कलदार।
धरैं रुपइया पर्स में,नन्ना राम दुलार।। 
           ***
       -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 

*5-* खाली छूट गया (कोई नहीं)       

*6*
बटुआ-सी है जिंदगी,गुनियाँ  करत विचार।
खुलत बंद में नइँ पतौ,फट जे किते किनार।।
                 ***
              -सुभाष सिंघई, जतारा 
*7*
ख़ाली बटुआ जेब में,रकखे सें का सार।
मन ही मन में सोच रय,जीबौ है बेकार।।
           ***
                   -वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*8*

पइसा बाॅंधत गाॅंठ में, सब देहाती लोग।
बटुआ उन कौ जौइ है,बनत नईं दुर्योग।।
             ***
- रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर', ललितपुर 
*9*
ऊँची  एड़ी   पैर   कें,  धना   बजारै  जायँ।
आँचल  में बटुआ धरें, चलीं बार  छुटकायँ।।
***
    -अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 
*10*
बटुआ लै गोरी चली, मटक-मटक इतराय।
अरे कोउ तो पूछ लो, मन चाहे बतयाय।।
        ***
     -श्यामराव धर्मपुरीकर, गंजबासौदा 
*11*
पैलां ब्याव बरात मै,बनत हँड़ा भर भात।
बटुआ भर खैं दार तब,बैठ बराती खात।।
           ***
      -तरुणा खरे'तनु' जबलपुर
*12*
चार जने जब गाँव में, जुरें मिलें बतयायँ,
बटुआ काढ़ें जेब सें, मलैं तमाखू खायँ।।
         ***
             - अरविन्द श्रीवास्तव ,भोपाल 
*13*
कपडा कांसे के बने, नजर न बटुआ आंय।
रेगजीन के सब जनें, हर जांगा लयॅं रांय।।
              ***
                   -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
        ***
*संयोजक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* 
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़


[29/03, 1:28 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा- हुलहुलाट (हर्ष में जल्दबाजी)*

हुलहुलाट #राना मची,नहीं सुनी ‌थी बात।
घरे अटैची छोड़ गय,चले गये  बारात।।

तनिक खबर बस आइती,#राना चलियौ आप।
हुलहुलाट में निग ‌गयै,वस मोबाइल चाप।।

सारी बोली फोन पै,हुलहुलाट है काय।
जिज्जी आ रइ मायकै,रइयौ मौ खौ  बाय।।

हुलहुलाट में लोग भी,पसरा लेतइ काम।
भुंन्सारे के काम खौ,#राना करतइ शाम।।

#राना घर में व्याय हो,हुलहुलाट ही आत।
चिट्ठी पत्री  फोन से,सबखौ घरै बुलात।।

हुलहुलाट में फूल कैं,फुकना से गय फूल।
खबरी कै गवँ झूठ है,#राना गय सब भूल।।

हुलहुलाट में कै चले,नइँ चिन्ता की ‌बात।
#राना अब सब गय तुचक,दिखत सामने घात।।
      ***दिनांक -29.3.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[29/03, 1:59 PM] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा - हुलहुलाट (खुशी/जल्द बाजी)
(१)
सुनी  बाॅंसुरी  श्याम की , गोपी सुध बिसराइ।
सोउत पति खौं छोड़ कैं , हुलहुलाट  में आइ।।
(२)
हुलहुलाट  में  भूल  गइ , गोपी  सब  सिंगार।
बंशी  सुन  कैं  दै  भगी , छोड़े  खुले  किबार।।
(३)
हुलहुलाट  येंनइॅं  परी  , आ  गव  नीरौ व्याव।
हाले  -  फूले  दाउ  जू ,  दयॅं  मूॅंछन  पै  ताव।।
(४)
कभउॅं न करियौ भूल कैं , हुलहुलाट में काज।
हुलहुलयानें  होत  है  , सुनों  कोढ़  में  खाज।।
(५)
हुलहुलाट   में  दै   दऔ  ,  शंकर  नें  वरदान।
शिव  पै  अजमाबे फिरौ , भस्मासुर "नादान"।।

        आशाराम वर्मा  "नादान " पृथ्वीपुर
           ( स्वरचित ) 29/03/2025
[29/03, 2:14 PM] Subhash Singhai Jatara: 29.3.25- शनिवार - हुलहुलाट (हर्ष में जल्दबाजी )

हुलहुलाट में हाँ भरी , कीनौं  नइँ  विचार |
खट्टौ खा गय‌ पौच के , रै गय गटा पसार ||

हुलहुलाट जी में मचत , खबर खुशी की होइ  |
लेंगर   जाकैं   ‌देखनें ,  सोचत   सबरे ‌‌  सो़इ  ||

हुलहुलाट में लर गये, जब चुनाव थो गाँव |
हार गये सो रो रये ,   जमा  न   पाये पाँव ||

हुलहुलाट में ‌ देखतइ , छूटत  तनिक विवेक |
सोच नहीं   तब  पात है , कौन काम है नेक ||

हुलहुलाट सबखौं मचत , पर जो  करत विचार |
पाँव   बढ़ातइ सोच कै , ल्यात  जीत  ‌उपहार ||

सुभाष सिंघई
[29/03, 2:47 PM] Taruna khare Jabalpur: 'हुलहुलाट'शब्द पर दोहे 


हुलहुलाट मै गोपियां,भूलीं सबरे काम।
गिरत परत पौंची जहांँ, मुरलीधर घनश्याम।।

हुलहुलाट मै कर लओ,उलटो सब सिंगार।
कजरा होंठन मै लगो,लाली अँखियन डार।।

हुलहुलाट खूबई मची,कृष्ण मिलन की आस।
उल्टे सूदे काम कर, चलीं श्याम के पास।।

हुलर फुलर करतीं सखी,पौंची जमना तीर।
हुलहुलाट मै श्याम खौं, पकड़ा आईं चीर।।

देख सामने श्याम खौं,हुलहुलाट भई ऐन।
छिलका प्रभु खों दै रईं,छवी निहारत नैन।।


तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[29/03, 3:00 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा विषय ,,हुलहुलाट ,,
************************************
हुलहुलाट धनियाँ फिरेँ , बजनउँ पायल पैर ।
झमझमात हारेँ चली , सकरी पर गइँ सैर ।।

हुलहुलात तेँ ब्याव खोँ , अब होगइँ लड़धेर ।
गुटुआ लेत "प्रमोद"गय , बीनन हारेँ बेर ।।

हुलहुलाट में हार गय , कक्का बड़ो चुनाव ।
अब दोरेँ में बैठकेँ , देत मूँछ पै ताव ।।

हुलहुलाट में हूँक केँ , रातेँ डुबरी खाइँ ।
अब कौरा की भूँख भी , नइयाँ राम दुहाइँ ।।

हुलहुलाट में दै भगेँ , मौँड़ी मौँड़ा ज्वाइ ।
खाक छान रय शहर मेँ , भूँकन सूँकेँ प्रान ।।

हुलहुलात धनियाँ चली , छैलन सेँ बतयात ।
मेला में चौँखीँ बरफ , फिरेँ जलेबी खात ।।
**************************************
  ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[29/03, 7:49 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-हुलहुलाट/हुलहुलात/(हर्ष में जल्दबाजी)

हुलहुलात फिरबैं सती, विनय करें कर जोर।
यज्ञ पिता जी के घरै,मन में उठत हिलोर।।

हुलहुलात कय खों फिरत,जीवन के दिन चार।
मरघट में परिवार के,उन्ना लैंय उतार।।

हुलहुलात जीजा बिकट,गाबैं फागें राइ।
भांग हने फिरबै हसत,न‌इॅं हो र‌ई उकाइ।।

हुलहुलाट नय काम की,सांता डारौ खौय।
गट्ट बिदी सो रो रय,कात बचा लौ मौय।।

रिस्ते पैलां खून के, जग में सुनें ‌तमाम।
हुलहुलाट में भर गये,नीले ड्रम में राम।।
           भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[29/03, 11:13 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -209*
प्रदत्त शब्द- हुलहुलाट दिनांक -29-3-2025
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
हुलहुलाट मेँ दैँ नचेँ , देख मोहिनी नार ।
भस्मासुर हो गय भसम , खुश होगय त्रिपुरार ।।
           ***
                  -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 
*2*

नारद बैठे सान सें, रूप हरी कौ ल्याय।
हुलहुलाट उनखों परी,कबै ब्याव हो जाय।।
           ***
            - डॉ. देवदत्त द्विवेदी,बड़ामलहरा 

*3*
हुलहुलाट ऐंसी परी,धना दौरती जायँ।
साजन आए द्वार पै,तुरतइ मिलखैं आयँ।।
        ***
           -तरुणा खरे' तनु', जबलपुर
*4*
हुलहुलाट ऐसी मची, भूले सबरी बात।
जैंसें तैंसें दिन कटो, कटत नईंयाँ रात।।
          ***
             -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
*5*
हुलहुलात नारद मुनि,बोलत अटपट बैन।
कबै डरै माला गले, हिरदय नैयां चैन।।
        ***
              - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*6*

राम जनम कानन सुनो,परो सबइ खों चैन।
हुलहुलाट में फूंक रय,आतिशबाजी ऐन।।
         ***
       -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 
*7*
हुलहुलात हर काम में, दौरत पैल अगायँ,
मौ की खा कैं लौटबैं, सबरे काम नशायँ।।
      ***
          - अरविन्द श्रीवास्तव ,भोपाल 
*8*
माया  मायापति रची , नारद  पाय न जान।
हुलहुलाट में व्याव कौ ,माॅंग लऔ वरदान।।
         ***
      -आशाराम वर्मा "नादान"पृथ्वीपुर
*9*
हुलहुलाट में करेसें ,बिगर जात है काम।
         
होत हंसाई जगत में,करत सबइ बदनाम।।
          ***
-एम एल त्यागी खरगापुर
*10*
हुल्ल फुल्ल अरु हड़बड़ी, में नइयाँ आराम।
हुलहुलाट में जो करै, बिगर जात सब काम।।
         ***
          संजय श्रीवास्तव,मबई
*11*
हुलहुलाट में भूल कर,  छोड़े खुले किबार।
तारौ साॅंकल में बिदा,बैठ गऔ मैं कार।।
            ***
         - रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर, ललितपुर 
*12*
हुलहुलाट कायै मची,तनक गम्म तौ खाव ।
जय माला डन्नैं तुमैं,नारद खौं समजाव ।।
               ***
          -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*13*
हुलहलाट  में  कै  धरी, भौजी   सीताराम।
वे निकरीं खुद की धना, परौ राम सें काम।।
            ***
              - अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 
*14*
हुलहुलाट उठतइ हृदय,रोम-रोम खिल जात।
करत फटाफट काम हैं,आलस तनक न आत।।
               ***
               -सुभाष सिंघई, जतारा 
*15*
भरबै मेला कुम्भ कौ, हुलहुलाट भइ ऐंन। 
दर्शन संत समाज के, धन्य भये जे नैन।।
            ***
         - रामानन्द पाठक 'नन्द' नैगुवां
*16*
काहे राजा करत हो,हुलहुलाट में नांश।       
बिन खोंदें कब मिटो है,,मार खेत को कांश।।
    ***
         - मूरत सिंह यादव, दतिया 
***
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल नंबर -9893520965
#####@@@###

[22/03, 1:27 PM] Rajeev Namdeo: *बुन्देली दोहा शब्द-इतइँ /इतइ  (यहां)*

धरौ रनै  सबरौ ‌इतइँ ,#राना क्यों इठलात। ?
जौरत रत जौ रात दिन,हाय- हाय‌ भी कात।।

इतइँ  सुरग  ही जानियौ,इतइँ जानियौ नर्क।
#राना करमन में दिखें,हमें न कौनउँ फर्क।।

नगर ओरछा में सुनो,रत हैं राजाराम।
#राना जानौ हैं इतइँ,तीन‌ लोक शुभ धाम।।

नदी बेतबा ओरछा,सावन-भादौ खम्ब।
इतइँ मिलन #राना तकत,नौनों लगतइ अम्ब।।

बुंदेली को जय‌ पटल,इतइँ जुरै कवि आप।
सबके लेखन‌ भी सदा,#राना देतइ छाप।।
       *** दिनांक -22.3.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
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Email - ranalidhori@gmail.com
[22/03, 2:38 PM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली - -इतइँ //इतइ (यहां)

सबखौं  दुनिया में इतइँ , मिलत करम से न्याय‌ |
 मीठे खौं  मीठो  मिले ,    खट्टौ   खट्ट   सुँगाय‌‌ ||

बुंदेली  सीखे  इतइँ ,    सबइ   जनन  के  संग‌ |
कछू दिनन में सीख कैं , मैं  भी   भवँ तौ‌   दंग ||

पाप पुन्य सबरै इतइँ ,   लोग  कमा  कैं जात |
बिधना तौलत खूब है  , नक्की फल बतलात ||

सबकै  मन में भी इतइँ , लगतइ खूब हिसाब |
फल भी सबरै जानतइ , कैसी   बने  किताब ||

आओ बैठौ सब इतइँ , कर लो मन से बात |
हराँ -हराँ चर्चा करौ ,  करियौ  नहीं  उलात ||

सुभाष सिंघई
[22/03, 3:27 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुन्देली दोहा ,,विषय ,इतइ,, यही ,,
**************************************
सुरग-नरक सुख-दुख इतइँ , हैँ"प्रमोद"भगवान ।
घृणा-प्रेम सच-झूँठ खोँ , स्वयं चुनेँ इंसान ।।

शिक्षा -दीक्षा है इतइँ , मानवता छल -छंद ।
भलोँ -बुरोँ मन को करोँ , छोड़ विदेलो दंद ।।

भूँम भवन रानेँ इतइँ , तन मेँ लगने आग ।
नइँ "प्रमोद"रानेँ अमर , करोँ प्रेम की फाग ।।

सात मुलक के रय इतइँ , खउआ नीच कमीन ।
खो-खो खाव "प्रमोद"सब , भव भारत नमकीन ।।

इतइँ गाड़ दय बार दय , हिंदू मुस्लिम बुद्ध ।
सिख "प्रमोद"इसाइँ सब , कैगय प्रेम विशुद्ध ।।

इतइँ हिरा गय शूरमा , दव जिन्नेँ आतंक ।
नेता चमचा चुखरवा , साधु राजा रंक ।।

जात भाइँ परिवार कुल , काम कोइँ नइँ आत ।
परेँ समय की लात जब , सब "प्रमोद"घट जात ।।
**************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[22/03, 4:57 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-इत‌इ/यहीं
तुबक तमंचा सब इत‌इ, अनुरागी धय रैंय।
दो कुरवन पै एक दिन,चार जनें लै जैंय।।

पाप पुण्य कौ फल ‌इत‌इ,ऊपर बारौ देत।
बीदे फिर रय जाल में,राम नाम न‌इॅं लेत।।

तरवन में ताती लगत, जा बुन्देली लेत।
म‌ऊवा चरवा इत‌इ के, हमें छाॅंयरौ देत।।

गंगा जमुना हैं इत‌इ,और ओरछा धाम।
रज में रज खों ढूड रय,क‌इ बाबा बे नाम।।

महल अटारीं चौंतरा,चाल ढाल अरु माल।
कवच इत‌इ रानें धरे, अलख नयन से ताल।।
                भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[22/03, 6:50 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा 
बिषय - इतइ
(1) दोरे मे दद्दा डटे,
      तकत नाय के माय।
      इतइ किते जा रये,
      वता वैसइ सुछ्त राय।।
(2) माने ने टोके विना,
      कालो नूने वताय।
      कतइ जात आ रय,
      अवई इते भौत चिचयाय।।
(3) वैरी से भईया मिलो,
       इतइ विगड़ गई वात।
       चोट करारी है लगी,
       तऊ नइ अपन डरात।।
(4) करनी नीकी कर चलो,
      उते जेओ का कात।
      ब्रजभूषण नीकी वनी,
      ईखो इते दिखात।।
(5) इतइ सबइ सुबिदा हती,
      उते काय खो जात।
      ब्रजभूषण मानो कही,
      छोड़ो वा खैरात।।
(6) चार धाँम तीरथ इतइ,
      नदियाँ परम पुनीत।
      ब्रजभूषण देखत बने,
      इते नीति अर रीति।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[22/03, 7:19 PM] Ramanand Pathak Negua: बुन्देली दोहा बिषय इतइँ 
                    1
ई बुन्देली भूम कौ, जग जाहिर है नाम। 
सुभट वीर बीरांगना, उपजे इतइँ तमाम। 
                     2
खुली कलारी गाँव में, दोरें लगौ हजूम। 
दारूखोरा लर परे, फट गइ इतइँ फतूम। 
                       3
नन्द इतइँ सें निग परे, गये ओरछा धाम। 
उपनय पाँवन पोंच गय, लैकें हरि कौ  नाम। 
                         4
इतइँ -इतइँ की बात है, इतइँ  - इतइँ  उरजात। 
इतइँ मलाइ खात हैं, ठेंगा इतइँ दिखात। 
                         5
पावन तीरथ ओरछा, आय अवध सें राम। 
सरयू माँ सी वेतवा, बहती इतइँ ललाम। 
रामानन्द पाठक नन्द
[22/03, 8:21 PM] Taruna khare Jabalpur: भारत की पावन धरा,जित जनमे घनस्याम।
इतइंँ हमाये देस में,औतारे ते राम।।

बड़े दिनन मै हौ मिले,दूर दूर से रात।
आव तनक बैठो इतइँ,करौ प्रेम की बात।।

इतइँ हमाये गाँव मै,एक बरा को झाड़।
नदिया गैरी बै रई,ऊपर लगो पहाड़।।

आओ इतइंँ घूमन चलैं,कर आएं जलपान।
चाय संग भजिया छकैँ,चाबैं बीरा पान।।

भौत दिनन मै आय तुम,शबरी के घर राम।
खाओ मीठे बेर उर, इतइँ करौ बिश्राम।।


तरुणा खरे'तनु' 
जबलपुर
[22/03, 8:47 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -208*
बिषय-इतइ /इतइँ (यहीं) दिनांक -22-3-2025

*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*

*1*
स्वयं रामराजा इतइँ, हैं लाला हरदौल।
आकें देखौ ओरछा, तुमें  हमारौ कौल।।
        ***
             - अंजनी कुमार चतुर्वेदी , निवाड़ी 
*2*
जा बुन्देली है धरा,इतइॅं भयेते व्यास।
ग्रंथ धार्मिक जो लिखे, एक भागवत खास।।
                 ***
                   -"रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर", ललितपुर 
*3*
इतइंँ आयते राम जी , रैगय बारा साल ।
चित्रकूट की भूँम खोँ , कर गय मालामाल ।।
       ***
           - प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 
*4*
इतइँ रैत्ती जानकी,लव कुश सुत हर्षाय ।
माइ करीला धाम ये,जग में जानौं जाय ।।
           ***
              -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*5*
इतइँ आप हैं हम इतइँ,लिखत इतइँ मन खोल।
गुर  जैसी  गुरयाइ- से,सब बुंदेली  बोल।।
                 ***
                   - सुभाष सिंघई, जतारा 
*6*
नर -तन बरया कें मिलो,चलियो सूप सुभाव।
सुरग -नरग दोई इत‌इ, करनी के फल पाव।।
               ***
                 -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी", हटा
*7*
इतइँ सुरग अरु नरक है, इतइँ पुण्य अरु पाप। 
इतइँ करम वरदान हैं, इतइँ करम अभिशाप।।
                ***
                   -संजय श्रीवास्तव,मबई
*8*
धन दौलत सामान सब, इतइं धरौ रै जात।
ढंग सें जी लो जिन्दगी, काहे खों इतरात।।
            ***
        - वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*9*
माया जुरी अनीत की,इत‌इ धरी सब रैय।
हवन होंम उर दान की,पुँजी संग में जैय।।
               ***
           - प्रभु दयाल श्रीवास्तव'पीयूष', टीकमगढ़
*10*
कितनउ हुसयारी करै,कितनउ करै उपाय।
अपनी करनी को इतइ,फल सबखौं मिल जाय।।
              ***
            -तरुणा खरे'तनु',जबलपुर
*11*
इतइ रचे भगवान ने, सुरग नरक के धाम।
करनी जो जैसी करे,फल देेतइ श्री राम।।
             ***
                -आशा रिछारिया (निवाड़ी)
*12*
निस्फल कबउँ न मानियों, असगुन सगुन बिचार।
जे फलदाई हैं इतइँ, समय करम अनुसार।।
                ***
           - डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा 
*13*
इतइ चले गये बालमा, बिना बताएं बैंन।                      
  नैंनन निंदिया आत नइ, कटे न काटी रैंन।।
           ***
                 -मूरत सिंह यादव,दतिया 
*14*
करम करौ नीके सदां, नैकें चलियौ रोज।
इतइं सरग अरु नर्क है, मिटा लैव तुम खोज।।
            ***
                     -प्रदीप खरे 'मंजुल',टीकमगढ़ 
*15*
सुरग नरक हैं सब इतइँ, पावै निज निज कर्म। 
करनी करकें पाइयौ, इतइँ मुक्ति का मर्म। 
              *** 
                  -रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां

*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़* 
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
************
[15/03, 10:58 AM] Shyam Rao Dharampurikar Gunjbasoda: बुंदेली दोहा लेखन प्रतियोगिता - 207
शनिवार, दिनांक - 15/03/2025
बिषय -' अतर ' (इत्र )

अतर-कान फुहिया खुसी, सबइ जगा महकात।
बातन से ऊकी सबइ, जानत हैं औकात।।

-
श्यामराव धर्मपुरीकर
गंजबासौदा, विदिशा म.प्र.
[15/03, 1:01 PM] Subhash Singhai Jatara: विषय‌- अतर 

अतर महकतइ जब जितै ,खुश हो जातइ लोग |
आतइ कछु   मुस्कान है   ,जैसें  पा  लवँ  भोग |

समधी पै छिड़कौ अतर , मल दइ लाल गुलाल |
समदन   घूँघट डार  कै ,      तान गयी है गाल ||

जीजा होरी खेल रय , अतर  लयै  है  साथ |
सारी  खौ  पुटया   रयै ,  सूँगौ    मौरे  हाथ ||

अतर लगा कै घूम रइ , जीजा की  साराज |
रंग नहीं डलबा रयी ,  कै  रइ  हम  नाराज ||

अतर डली हम ल्याय है   , भैया   लाल गुलाल |
हँस गा कै अब  सब  मिलो , नौनें राखौ ख्याल ||

सुभाष सिंघई
[15/03, 1:27 PM] Asha Richhariya Niwari: दोहा दिवस प्रदत्त विषय #अतर
🌹
नौ नौ सिसियां अतर कीं, ध्वजा नारियल हाथ।
जाय मनइये माइ खों,चरनन धर दो माथ।।
🌹
अतर धरो है ऊपरै,भले न पोंचे हात।
तौऊ महके रात दिन,अपने गुन फैलात। ।
🌹
बड़ीं बड़ीं जुलफें धरें,झटकें बारम्बार। 
अतर फोआ कानन लगे,छैला फिरें बजार।।
🌹
अतर लगो कुरता डटें, तेल फुलेल लगांय। 
भांग पियें मस्ती करें,अलन गलन इठलांय। ।
🌹
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 🌹🙏🏿🌹
[15/03, 2:21 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: शनिवार 15 मार्च 2025
दोहा शब्द-अतर
   ‌            1
अतर लगाकें जा डटे,भइया हम ससरार।
हांतन पैं झेलन लगे,जुरकें नातेदार।
               2
सास कात कै पावने,आज भौत माकात।
जीजा अतर लगांयहैं,सारो समझा कात।
                   3 
अतर बैंचने हो तुमै,थैला खोल दिखाव।
पैलां गदिया पै धरो,कैसो लगत चिखाव।
                 4
लैलो साजो अतर है, नोने सें मुलयाव।
रोज मजेसे बैठकें,चुपर फुलकिया खाव।
                 5
कंउ दावतमें जांवतो,अतर लगाकें जात।
जो देखो सो आनकें,मोसें चिपको रात।
मौलिक रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[15/03, 3:01 PM] Manoj Sahu Nidar Narmadapuram: 15 मार्च 2025
विषय:-अतर
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
बास अतर की प्रेम सी, होले होले आय।
जित्ते रगड़ो मन मिले, उत्ती बास बढ़ाय।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
फुआ अतर कौ कान में, तन मन गजब गंधाय।
चंदन खस चय केवड़ा, सबकी बास सुहाय।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
खुशबू अतर फुलेल की, मन खों मगन बनाय।
जै पै सांचे प्रेम की, गंध अनूठी आय॥
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अतर बिना सब फूल यूं, मानौ रस बिन गन्न।
मन मुरझा जइहै उतै, नेह ना होवै मन्न।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अतर टिपारी में धरौ, गांव गली महकात।
सत करमों की बास सुइ, सबके मन खों भात॥
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मनोज साहू 
माखन नगर, नर्मदापुरम
[15/03, 4:50 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुन्देली दोहा ,, विषय,,अंतर ,,
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बतर अतर को काँ धरोँ , दिन डूँबो भइँ रात ।
अब "प्रमोद"होनेँ नही , कब्भउँ सुनो प्रभात ।।

अतर प्रेम को छीँन केँ , हंँस रय मान्स बिलात ।
हे ईश्वर जिन छीँनियो , रोटी सब्जी भात ।।

तेल चमेली मूँढ़ में , धनियाँ अतर लगाँयँ ।
लाली काजर पोतकेँ , जारइँ गुटका खाँयँ ।।

मेला खोँ धनियाँ सजी , डारेँ अतर फुलेल ।
बजनउंँ पायल पैर केँ , पारेँ भौत चमेल ।।

फुवा अतर को कान मेँ , खोँस लेत कइँ लोग ।
फिर"प्रमोद"माकात रत , जीको जैसो जोग ।।
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      ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
              ,, स्वरचित मौलिक ,,
[15/03, 6:07 PM] Taruna khare Jabalpur: अतर, शब्द पर दोहे 


पैलां ब्याव बरात को, स्वागत होत बिलात।
सिसिया मैं भर खैं अतर,सबरन पै छिटकात।।

सूट-बूट पैरैं पिया,टाइ गरे मै डार।
अतर लगा खैं हांत मै,सैंया चले बजार।।

दो सिसियां लै खैं अतर,मां के मंदिर जायँ।
एक सकारैँ दूसरी,संजा दई चड़ायँ।।


सिसिया होबै अतर की,खुली कहूं रै पाय।
बाहर बैठे मान्स खां,तुरत बास आ जाय।।

कपड़न मै तन्नक अतर,छिटक चलै जो यार।
गमकत आबै दूर सैं,घर हो या बाजार।।

तरुणा खरे'तनु'
जबलपुर
[15/03, 6:35 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा-अतर (इत्र)*

अतर लगा कैं कान में,गऔ धुरइँ ससुरार।
#राना सारी कात है,जीजा खुश्बूदार।।

अतर जितै भी हो रखौ,दैतइ भौत सुगंध।
हवा मस्त भी रात है,#राना ज्यौ मकरंद।।

अतर भौत इतरात है,#राना दे पैचान।
उन्नन पै जब दो लगा,खुश हौतइ मैमान।।

अतर तुमारी रीत पै,#राना है बलिहार।
गोरी का भी तू सदा,करता है शृंगार।।
       *** दिनांक -15-3-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[15/03, 7:08 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- अतर
(1) फूइया खोंसे कान में,
      मोंमे चापे पान।
      अतर डार कंगी करें
      घूमे फिरे जुवान।।
(2) झक झकात उन्ना डटे,
      ऊँची मानत शान।
      मेला मे घूमत फिरे,
      ढूडत अतर दुकान।।
(3) अतर लगावे के हते,
      पैल बड़े शौकीन।
      अब तो भोतइ कम दिखे,
      ब्रज सौ मे दो तीन।।
(4) असर कसर फिर काय की,
      अतर छिड़क दव जाय।
      ब्रजभूषण स्वागत करें,
      सवको मन भर जाय।।
(5) अतर चड़े भगवान पे,
      ऐसो सुने विधान।
      जल्दी खुश हो जात है,
      भोले नाथ महान।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[15/03, 8:46 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 207*
दिनांक -15-3-2025-बिषय- अतर (इत्र)
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

प्रविष्ठियां 
*1*
बोली रखियो जू अपुन,कहें अतर -सी लोग।
बैठें लेंगर सब जनै,समझें अच्छो योग।।
                 ***
               -सुभाष सिंघई, जतारा 
*2*
दुश्मन सौ लगबै अतर, रंग करेंचा घाॅंइॅं।
जिनके पिया विदेश में,‌हृदय दुखे ज्यों चाइॅं।।
               ***
          -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*3*
बुन्देली छैला डटें,कुरता और सराइ।
फुआ अतर कौ कान में,देबै लगो दिखाइ।।
       ***
             - डॉ. देवदत्त द्विवेदी,बड़ामलहरा 
*4*
जीनेँ शिव जी ढारकेँ,फूला अतर चढ़ाव।
पढ़- लिख बो आँगेँ बढ़ोँ,जीवन को सुख पाव।।
          ***
      - प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 

*5*
लगा अतर बौ बैठ गव,जा पनचन के बीच।
सब बोले बेकार जौ,अब मच जाने कीच।।
           ***
             - वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*6*
खुशबू अतर अबीर की,भांत भांत के रंग।    
 राधा होली खेलतीं, सांवरिया के संग।।
             ***
          - मूरत सिंह यादव,दतिया 
*7*
अतर प्रेम को होय तो, महकत रत किरदार। 
बोलचाल मीठो लगत, मधुर लगत व्यौहार।।
              ***
          संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
*8*
बजी बाँसुरी श्याम की, रीझत आये ग्वाल।
प्रेम  अतर  में  भींज  कें, राधा भईं  निहाल।।
                ***
           -विद्या चौहान, फरीदाबाद 
*9*
जीजा अबकूं कौनसो,अतर लगाकें आय।
 एंगर बैठो जायना,दूरइ सें माकाय।।
              ***             
        -एम. एल.अहिरवार 'त्यागी',खरगापुर
*10*
है सोला सिंगार में,अतर एक सिंगार।
सजना होबैं ना घरै,तौ सजना बेकार।।
           ***
-आशाराम वर्मा "नादान"पृथ्वीपुर
*11*

सत संगति है अतर सम,तन मन महका देत।
गुरू मंत्र यह जानिये,सकल पाप हर लेत।।
               ***
                -आशा रिछारिया,निवाड़ी             
*12*
अतर तेल कन्नौज का,भौतइँ खुशबू दार ।
मँहकत है ये दूरलौं,खुश होतइ नर-नार ।।
              ***
          -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*13*
लगा चमेली कौ अतर, जीजा गय ससरार।
स्वागत सारी नें  करौ, मौं  पै कीचर ड़ार।।
             ***
          - अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 
*14*
तुम हो पूरी अतर सी,मैंने ली पहचान।
आँखन में अमरत बसै,मुख है कमल समान।।
                        ***
                -परम लाल तिवारी,खजुराहो
*15*
पैलां ब्याव बरात को, स्वागत होत बिलात।
सीसिया मैं भर खैं अतर,सबरन पै छिटकात।।
                     ***
              -तरुणा खरे 'तनु', जबलपुर
*16*
रोजइ बढ़तइ जा रओ, धीरे धीरे रोग।
अतर लगा इतरारये,ओछे ओछे लोग।।
                    ***
                          -भास्कर सिंह माणिक,कोंच
*17*
छिप्रा तट उज्जैन में, महाकाल कौ वास। 
भस्मी के संगै अतर, आबै उनखों रास।।
                *** 
          -रामानन्द पाठक 'नन्द', नैगुवां
***
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़

[08/03, 10:27 AM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: शनिवार 8 मार्च 2025
दोहा शब्द -अतपइ(आदो पउआ)
                    1
सौदा कें संग पिया सें,मीठो तेल मंगाव।
अतपइ भर होने नहीं,पउआ भर लैआव।
                    2
अतपइं रोटी छोडकें,दैन चलीगइ दान।
मडो चून मों दाबकें,लैगव कुत्ता आन।
                    3
पांच किलो चांदी हती,हते रुपइया ऐंन।
अतपइ भर सोनो हतो,सबरो मिटगव‌बैन।
                    4
पैल परी से नापके,खूब बिचतरव तेल।
अतपइ पउआ देतमें,लगत हतीना झेल।
                     5
अतपइ अतपइ लै लियो,तुम आपसमें तौल।
गांस गुडी ना राखियो,कै दइ धरकें कौल।
मौलिक रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[08/03, 1:55 PM] Hariom Shriwatava Bhopal: दिनांक - 08.03.25
बुंदेली दोहा
विषय - अतपइ/ आधापाव
---------------------------------
1-
बंद चलन सै हो गए, अधपइ पौआ सेर।
किलोग्राम कुंटल चलें, नए बाँट चौघेर।।
2-
पैलें जो अदपइ हती, अब वौ आधापाव।
कैउ अबै भी पाव में, बता देत हैं भाव।।
3-
तोला माशा सेर मन, अदपइ और छटाक।
बूढ़े-आड़े  आदमी, बतला  देत  सटाक।।
4-
आज प्रणाली दाशमिक, अपना रव संसार।
अदपइ पौवा सेर मन, को जानै अब यार।।
5-
सब चीजन में होत हैं, कभउँ-कभउँ बदलाव।
अदपइ को अब जान रव, होत किलो को भाव।।

*हरिओम श्रीवास्तव*
[08/03, 4:10 PM] Subhash Singhai Jatara: विषय - अतपइ (आधा पाव)

अतपइ भर कौ जू  नहीं , करत सेर की बात |
जैसे पलना में परौ ,    लरका   घालत  लात ||

अतपइ अद्दा आजकल , चमचन कौ धर रूप |
राजनीति में घुस‌ गये  , पा  रय   उजली  धूप || 

अतपइ भर गुर चौंट ‌लो  , जितै मनन कौ ढ़ेर ||
कौउ न रौकत आदमी , लुचत जात   है ‌  सेर ||

अतपइ  भर को  बाँट भी , रत तो गोल मटोल |
पलवाँ पै चढ़ जात तौ , रखत  हतौ निज मोल ||

चल सुभाष हौरी खिले  , अतपइ भर ले भाँग |
बाँटो‌  घोटो ‌खाव जू ,   नशा  चढै  सब  आँग ||

सुभाष सिंघई
[08/03, 4:13 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुंदेली दोहा ,,विषय ,अतपइ,, आधा पाव,,
***********************************
आधा तौला भाँग में , अतपइ दूद मिलाव ।
होरी है सो गुर मिला , पियो "प्रमोद"पिलाव ।।

अतपइँ भर दे राखियो , भुज्जी गउँ को दूद ‌।
दवा खता की खावनेँ  , अबइँ मिटानेँ गूद ।।

अतपइँ भर घोरेँ धरेँ , भौजी करिया रंग ।
किन्छा दैरइँ गाल पै , हुरयारन के संग ।।

अददा पउआ असेरा , अतपइँ पौन छटाक ।
सेर सवा पनसेर सेँ , हो गइँ तौल पटाक ।।

हरदी चूना घोर केंँ , अतपइँ तेल मिलाव ।
फिर"प्रमोद"होरी खिली , तनक-तनक चुचवाव ।।

अतपइँ भर दइँ ल्याँन केँ , बासी रोटी खाइँ ।
अब "प्रमोद"साता परींँ , उतरी ताप हमाइँ  ।।
***********************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[08/03, 4:21 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा- अतपइ (आधा पाव)*

हती तखैया सींक की,पलवाँ डाड़ी काठ।
अतपइ अद्दा सब हतै,#राना हूटा पाठ।।

पउवा दारू के मिलें,# राना औगुन हाल।
अतपइ में चढ़ जात है,बहकत मन के ख्याल।।

अतपइ जानो आजकल,सुनो सबा सौ ग्राम।
सबइ पुराने बाँट‌ नें,#राना‌ लवँ विश्राम।।

मँहगी चीजें जौन है ,#राना अतपइ लेत।
पुरा परोसी माँगवे,तब चुटकी भर देत।।

अतपइ भर जब हींग हम,घर में लेकें आयँ।
#राना डिबिया में रखी,पूरौ गेह गुगायँ।।
***दिनांक -8-3-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[08/03, 7:15 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय - अपतई (अपतइ)
(1) देखे मे अपतइ भरे,
      वने फिरत है शेर।
      ब्रजभूषण ईमान से,
      जो कैसो अन्घेर।।
(2) खाव पियो खेलो अबे,
      कर ले ठीक दिमाक।
      ब्रजभूषण फिर जूजियो,
      तुम हो अपतइ याका।।
(3) उपतइ के सामू हुरत,
      घेरे फिरत सियात।
      हो तो जू अपतइ भरे,
      वात करत पउआक।।
(4) अटको है अपतइ भरो,
       हो वे एक छटाक।
       ढेर भरो चाने नही,
       खाने अवइ खुराक।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[08/03, 7:20 PM] Ramanand Pathak Negua: बुन्देली दोहा बिषय अतपई 
                       1
लाखन के ब्यापार में, जिया बिदौ दिन रैंन। 
घर में मनन गडंत है, अतपइ भर ना चैन। 
                       2
जो जन आलस छोड कें, निसदिन करत कबार। 
अतपइ पउआ जोर कें, बे कर लेत हजार। 
                        3
जाँय मजूरी खों लला, दिन भर ना आराम। 
दूध मठा अतपइ पियें, आँसै ना बौ घाम। 
                         4
मन भर कौनउँ चीज में, अतपइ पाव  मिलाँय। 
लेबा खों है का फरक, निज परलोक नसाँय। 
                           5
गडियाँ घुल्ला लेत हैं, नंद पसेरी चार। 
अतपइ पउआ होत का, भौत बडी ससरार। 
रामानन्द पाठक नन्द
[08/03, 8:19 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -206*
  विषय - *अतपइ/ अतपई*
संयोजक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*
*1*      
पद,पइसा भरपूर है, सुख सुविधाएं ऐन।  
काम क्रोध मद लोभ वश, अतपइ भर नइं चैन।।
             ***
                  -संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
*2*
कीखों कात छटाँक हैं, अतपइ  पौआ  सेर।
पीढ़ी नइ जानैं नहीं, समय-समय को फेर।।
           ***
                   -अमर सिंह राय, नौगांव 
*3*
माई की ममता बड़ी, खुद घी कबहुँ न खाय।
अतपइ अतपइ जोर कें, लरका खों पोंचाय।।
           ***
           -आशा रिछारिया,निवाड़ी 
*4*
अतपइ भर पेरा धरें, धरें नारियल एक।
माता नाती दै दियौ, कै रइँ  माथौ  टेक।।
              ***
         -  अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी 
*5*

अतपइ भर घी मिलततौ,एक टका में रोज।
आज ओइ कौ असर  है,मौं पै है जौ ओज।।
               ***
           - रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर",ललितपुर 
*6*
अतपइ भर गुर रोजको, रोटी खाकैं खाय।
लाल परै बो सेब सो,घुरवा सो हिननाय।।
             ***
          -श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा
*7*
धना रीझ गइ है पिया,महिला दिवस मनाव।
पउआ,अतपइ लान खैं, मीठा मोय खुवाव।।
          ***
                 -तरुणा खरे'तनु',जबलपुर
*8*
सेर असेरा अतपई, तोला और छटाक। 
रत्ती भर गुमची धरें, करबें तौल खटाक।।
           ***
            -रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां
*9*
घरवारो मोरो जिजी,उरठैंकें बुलयात।
 पउआ भर मांगो कछू,अतपइ भर लैआत।।
               ***
            
              -एम. एल. 'त्यागी', खरगापुर
*10*
अतपइँ भर गौ दूद मेँ , घी गुर दही मिलाव ।
तुलसी दल डारों शहद , पंचामृत कहलाव ।।
            ***
        - प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 

*11*
अतपइ भर सें होत का , दूध देव इक सेर।
जलदी जलदी नाप दो, हो ना जाये देर।।
            ***
                  -वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*12*
अतपइ भर ही चावनैं,घीव नाप कें देव ।
हौम लगानैं होलिका,नगद दाम जे लेव ।।
         ***
            -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*13*
अतपइ पउवा  सेर भर , अद्दा  देखे  बाँट।
और पसेरी मन तके, चौरी  पैला छाँट।।
            ***
                 -सुभाष सिंघई , जतारा 
      ****
*संयोजक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल -9893520965
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205 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -205
प्रदत्त विषय -"अकताँ" (पहले से)
दिनांक -1-3-2025
संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक-जय बुन्देली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
*प्रदत्त विषय:- अकता*
*1*
उपनयँ चलकें भक्त सब,धाम ओरछा जात।
दरसन  राजा राम के, सबसें अकता पात।।
              ***
       -अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 
*2*
अकता से आंके अजा, है नातिन को ब्याव ।  
अगर फसल उपजे न अच्छी , की खों कर हैं  साव ।।
            ***
         - हरवल सिंह लोधी, टीकमगढ़ 
*3*

अकता सें संस्कार की,पावन पोध लगाव।
सत्य निष्ठ बालक बनें,मैंनत कौ फल  पाव।।
             ***
            -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*4*
अकताँ सेँ सुसरार मेँ , जैसइँ पौँचेँ राम ।
निरखत ठाँड़ीँ नारियाँ , छोड़ छाड़ सब काम ।।
              ***
     -प्रमोद मिश्रा,वल्देवगढ़ 
*5*
अकता अच्छी होत है, खेती  उर संतान।
अकता मारै जाय टर, जीतत बो इंसान।।
               ***
             -अमर सिंह राय, नौगांव 
*6*
फूलबाग जब गइँ सिया,अकताँ बन गव काम ।
तकैं झाड़ की ओट सैं,हिये बिठा लय राम ।।
         ***
            -शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा
*7*
कीनें कइती आइयौ ,अकता सें तुम आज।
आनें तौ आराम सें , निपटा घर कौ काज।।
             ***
                - वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*8*
मैंने चन्दा दै दओ, अकतां अबकूं यार।            
तासे कौनउं आंयना, मांगन हर-हरदार।।
             ***
        -एम.एल.अहिरवार 'त्यागी', खरगापुर
*9*
अकता गुरु बंदन करौ,पाछू हरि को ध्यान।
गुरू कराउत हैं हमै, ईसुर की पैचान।।
             ***
            -तरुणा खरे'तनु', जबलपुर 
*10*
अकतां सेन कै दयी भले,सो अपनों आभार।
 ऐसे ही बनायें रखौ, सब कवियन कौन प्यार।।
            ***
              -श्रीराम नामदेव 'काका ललितपुरी' 
*11*
अकता सुमरों सारदा, संगें नमन गनेश।
रचकें दोहा मंच पे, करों सबन खाँ पेश।।
               ***
                -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
*12*
गुरुकुल विद्या सीखनें, जाते थे हनुमान। 
इक दिन अकता पोंच के,की तुलसी  पहचान।।
         ***
         -रामानन्द पाठक, नैगुवां
*13*
होंनहार मडराय जब,चलै न कौंनउँ दाव।
अकता सें कर लेत हैं,जनबा कछू उपाव।।
            ***
             - डॉ.देवदत्त द्विवेदी,बड़ामलहरा 
*14*
अकता कैं ना बोलियौ,पैलाँ सुनियौ बात।
बूड़े बुुजरक देखियौ,बे सब कैसो  कात।।
            ***
                -सुभाष सिंघई, जतारा 
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[01/03, 12:52 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा -अकता/ अकताँ (पहले से)*

नहीं बुलउवा आव तो,अकताँ कैं गयँ पौंच।
#राना उनको हाल अब,जैसें चिपकी गौंच।।

थुथरी अकताँ कैं चली,रहे हाल बेहाल।
लौटो बुदुआ हार कैं,#राना लँगड़ी चाल।।

अकताँ कैं सब काम कर,#राना सुदरें हाल।
बसकारे के पैल ही,ढबुआ अच्छौ डाल।।

गानौं  अकताँ कै गढ़ौ,पाछै सोचौ व्याह।
माते की  उमदा लगी,#राना मौय सलाह।।

जितै तमासो है मचत,#राना  पैलाँ   देख।
बे मतलब ना खेंचियौ,अकताँ से तब रेख।।
        *** दिनांक -1-3-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[01/03, 1:55 PM] Subhash Singhai Jatara: विषय - अकता‌ ( पहले )

अकता से कछु  आन कै , घेर जगाँ खौं लेत |
सबसे पाछे जात फिर ,   कछू  लेत ना देत || 

उकता भी उनसे गये , जो   अकता  से आत |
करत खुपड़‌ मंजन सबइ ,अन्न-बन्न  की  कात ||

घर में शादी ब्याह हो , खबर तनक   ही पात |
अकता से  आबें फुआ ‌, काम समारत जात ||

गये नहीं  ससुरार ‌है , अकता कैं लइ सोच |
करने जाकै  दोदरा , करने  खूब  निपोच‌ ||

हरि भजन साधू मिलन , जितै जुरौ मिल जाय |
अकता कै ही पौचियौ , आनद  मन  में   छाय  ||

सुभाष सिंघई
[01/03, 4:13 PM] Taruna khare Jabalpur: 'अकताँ'शब्द पर दोहे 

अकताँ पौंचे पाउने,खूब दौंदरा देत।
पेरत हैं दिन रात बे,तनक चैन ना लेत।।

अकताँ धर दइ राम की,कैकेई ने आन।
पाछे दसरथ भूप सैं, मांगे दो बरदान 

अकताँ टोरो राम नै,धनुष जनकपुर जाय।
बरमाला पैनाई तब ,सीता जू नै आय।।

अकताँ सुमरौं गनपती,फिर सारद को नाम।
तीन देव सुमरन करौ,पूरन होबैं काम।।

पौंचे अकताँ कुंभ मै,साधू संत महान।
तिरवेनी में कर लये, हैं पावन अस्नान।।


तरुणा खरे'तनु'
जबलपुर
[01/03, 4:34 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,बुन्देली दोहा ,विषय ,अकताँ ,,पहले ,पैल 
*************************************
अकताँ सेँ लव टोनुआँ , रिसियाने गणराज ।
करिया मौँ भव चंद्रमा , तक"प्रमोद"लो आज ।।

अकताँ सेँ मारीच ने , मृग को रूप बनाव ।
फिर"प्रमोद"सीता हरन , रावन पाछेँ आव ।।

राधा अकताँ सेँ खड़ीँ , हेरेँ जिनकी बाट ।
वै "प्रमोद"उन्ना उठा , बैठे यमुना घाट ।।

धनियाँ लयँ पनियाँ खड़ीँ , निमुआँ शक्कर धोर ।
अकताँ आन "प्रमोद"ने , पूरो पियोँ चचौर ।।

अकताँ सेँ बरिया तरैँ , साजन गय जूँ मेल ।
सखियाँ अकतीँ पूजवै , पारेँ अबइँ चमेल ।। 

अकताँ सेँ दैवेँ दतेँ , नेता लुक केँ नोट ।
फिर "प्रमोद"इनखोँ दियोँ , दार भात पै वोट ।।
**************************************
     ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
               ,, स्वरचित मौलिक ,,
[01/03, 5:26 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: शनिवार 01 मार्च 2025
दोहा शब्द -अकतां(पैलसें)
                  १
अकतां लैकें रामने,अरो बिगारो काम।
फिर सीताहां लैगयो,रावण अपनेधाम।
                  २
कलाकार‌ नेता नहीं,कभउं समय पै आत।  
जनता अकतां पौंच के, बैठीरत पछतात।
               ‌  ‌३
समधी आबे की सुनी,जब समधनने बात। 
अकतां खुश हो धरलए ,ऊनै बरा बिलात।
                 ४
जो अकतां से करधरें,अपनो बिदी बिचार।
कारज में नइं होत है,ऊके कभउं बिगार।
                5
अकतां सें करलेय जो,अपनी करनी ठीक।
उयै नहीं डर कालको,जियत सदा निर्भीक।
         मौलिक -रचना
   एम एल त्यागी खरगापुर
[01/03, 5:47 PM] Shobharam Dagi: बिषय- "अकताँ" बुंदेली दोहा 
  (205)            (01)

अकताँ सैं नइँ बोल नैं,सुन्नैं सबकी बात ।
माते मुखिया का कबैं,लेव"इन्दु"
औकात ।।

                 (02)
पुख्खन अकताँ पौंच कैं,"दाँगी"  उनके दोर ।
दरसन करबू राम के,हेरें अपनी ओर ।।
        
                   (03)
सावजु कक्का के इतै,अकताँ पौंचौ जाय ।
मददकरें हरकाम की,"दाँगी"काम
सुहाय ।।
                    (04)
ब्याव बरातन खौं कछू,अकताँ मिसल लगात ।
निवतौ आबै चाय नइँ, झट"दाँगी" उकतात ।।

                     (05)
करबैं अकताँ काम जो,होत जरूरी काम ।
ब्याव काज के ऊसमैं,"इन्दु" न जुरबैं दाम ।।

                  (06)
बसकारे के पैल सब,छप्पर लेत समार ।
अकताँ नौनैं होत जे,"दाँगी"सोच
विचार ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[01/03, 7:46 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय - अकता (पहले)
(1) शिव अकता जानत हते,
      होने का है हाल।
      सती कहो मानी नही,
      जी खो वनगव जाल।।
(2) हम अकता से जानते,
      धरती वीर विहीन।
      हो तो ने पाती हँसी,
      जाल वनो प्रन कीन।।
(3) अकता जो सोचे नही,
      नसा जात सब काम।
      फिर बैठे पछतात है,
      नाम होत बदनाम।।
(4) अकता तो सोचो नही,
      करी न पुकता बात।
      भितर घात मे जो फसे
      ब्रजभूषण उकतात।।
(5) उकता के खेती करो,
      धीरे राखो वन्ज।
      अकता सोच विचार ले,
      ब्रजभूषण का रन्ज।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[01/03, 8:19 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय अकताँ
                    1
हनुमत  द्रोंणागिर गये, मृत संजीवन लेंन। 
अकताँ रस्ता रोकबे,  कालनेमि बैचेंन। 
                    2
लै बरात दशरथ गये, जनक पुरी शुभ धाम। 
अकताँ पोंचे ते जितै, गुरु सँग लछमन राम। 
                     3
बेटा जातइ  काम पै, माइ मिलाबै तार। 
बना कलेऊ पर्सतीं, अकताँ  जग भुनसार। 
                     4
लरका अब स्यानें भए, बउऐं आनें चार। 
अकताँ तैयारी करौ, कर बखरी तैयार। 
                     5
दुनियाँ सें होनें बिदा, यार अथयँ भुनसार। 
अकताँ सुरजा दो सबइ, हैंसा कर दो चार। 
रामानन्द पाठक नन्द

[22/02, 1:48 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिसय तला 
                    1
तला तलइयाँ नय बँदे, बँदे सैकरन बाँद। 
भई तरक्की देश की, लगे चार ठउ चाँद। 
                      2
तला तलइयाँ  हैं जितै, उतइँ  नहर खुदबात। 
कल कल कल नहरें  बहत, धानी धरा सुहात। 
                       3
जो जन गहरे होत हैं, रहें तला की भाँत। 
कोइ थाँह पावै नई, मन मसोस रै जात। 
                         4
उमड घुमड बदरा उठे, वर्षा भइ घनघोर। 
तला कुआँ पोखर भरे, दादुर करें किलोर। 
                        5
तला गाँव की सान है, ऊ बिन गाँव न सोय। 
पानी जाँ रोटी उतइँ, दुख सुख साथी होय। 
रामानन्द पाठक नन्द
[22/02, 2:40 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:- तला/तालाब 
जा दुनियाॅं है इक तला,भ‌ई मगर आधीन।
चैन भजन और आस्था,ल‌इ दुष्टों नें छीन।।

तला तलैयां जुत गये, बना लये हैं खेत।
प्यासे प्रानी हींस रये,को‌उ खबर नहि लेत।।

सब‌इ तला रीते डरे, रय पानी खों झूॅंक।
"अनुरागी" कैसें मिटत,प्यास और जा भूॅंक।।

दुर्योधन जाकें लुको, बड़े तला के बीच।
भीमसेन ने हाॅंक द‌इ,दव उन्ना सौ फींच।।

अंधा अंधी मर गये, बड़े तला की पार।
राम लखन सीता सहित,वन में करत विचार।।
                भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[22/02, 2:44 PM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली तला  {*तालाब*}

ढ़ीमर  मछली पालतइ , खोदत  उतइँ   मुरार |
भरौ रयै    पानी  तला  , गातइ  गीत   मलार ‌||

सपरे  हम खूबइ तला  , खूब लगाई  लोर |
डोड़ा पै चढ़कै उतइँ , भयँ है  खूब  विभोर ||

कमल खिलत है जब तला  , कमलगटा भी होत |
सब खातइ हैं  छील कैं    , मजा आत  है  भोत ||

माटी भी नौनीं तला  , करत खाद को काम |
कौस कात सब लोग हैं , खर्च  होत ना दाम ||

बुड़की लैबें गय‌‌ तला   , बचपन के दिन याद |
बै दिन अब गय है बिसर , लामी   है   तादाद || 

सुभाष सिंघई

~~~~~~~~~~~~~~~
[22/02, 3:35 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा बिषय- तला*

#राना देखत अब तला,नईं सपरबे जात।
भरी रात है गंदगी,ऊपर तक उतरात।।

बचपन #राना याद है,सपरो है दिन रात।
कपड़ा धोयै है तला,सबसें साँसी कात।।

साफ रात ते सब तला,मछली घूमें  तैर।
 #राना अब रत मैल है,नईं सपरबौ खैर।।

बसकारें पानी बरस,भरत तला ते खूब।
करैं सिचाई खेत की,#राना थे मनसूब।।

बुंदेली देखत तला,चंदेलन  की ‌‌ शान।
सुने इतै मशहूर सब,#राना है पहचान।।
*** दिनांक -22-2-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[22/02, 5:21 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा, बिषय ,,तला,,
**********************************
तला किनारेँ लोर रय , शिव शंकर भगवान ।
सती देख चिल्ला उठेँ , आव बचा लो प्रान ।।

तला सपरवे जब गयेँ , पवन पुत्र हनुमान ।
मगरी ने पकरेँ चरन , कालनेम दय प्रान ।।

पानी डूँबोँ नै बचो , गन्धारी को लाल ।
बीच तला सेँ काड़केँ , ल्याव मारवे काल ।।

घिस-घिस गोड़ेँ धो रहेँ , भीम तला मेँ आन ।
बर्बरीक रोकन लगो , लरेँ दोइँ बलवान ।।

कब्जा कर गेँतेँ तला , पिसिया बैदइँ जोत ।
कूरा-करकट पैल रय , जात पुरानी खोत ।।

बसकारेँ भर गय तला , गाँयँ मिदरियाँ राग ।
नचेँ मछरियाँ मोद मेँ , गय"प्रमोद"खुल भाग ।।
**************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[22/02, 8:07 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा 
बिषय- तला
(1) पैल पुराने आदनी,
      कुआ तला खुदवाये।
      ब्रजभूषण कितने भलें,
      सबके कामे आये।।
(2) कुआ तला नरवा नदी,
      अगर गाँव में होय।
      काम चले निस्तार को,
      कमी कबे ने कोय।।
(3) तला तलइयाँ अर कुआ,
      बसकारे भर जात।
      पानी के बरसे विना,
      सूके ड़रे दिखात।।
(4) तला बड़ो भोपाल को,
      दूर दूर मशहूर।
      ब्रजभूषण मौका मिले,
      देखो जाय जरूर।।
(5) रजवाड़े को तो समय,
      तला खूब वनवाये।
      चार पान सो बड़ बड़े,
      टीकमगढ़ में पाये।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[22/02, 9:29 PM] Taruna khare Jabalpur: ' तला' शब्द पर दोहे 

तला तलैया पूर खैं,बना लये घर बार।
गरमी मै पानी बिना,जीव फिरैं लाचार।।

तला किनारे है बनो,मंदिर बड़ो बिसाल।
शिवरात्री में भरत है,मेला हर इक साल।।

तला बीच फूले कमल,कौन टोरबे जाय।
कै दो केवट नाव सैं,जाय टोर लै आय।।

बसकारे मै जब गिरै,पानी मूसलधार।
तला लबालब भर गये,नरवा भरे अपार।।

तला बावड़ी सब भईं,सासन के आधीन।
साप सपाई हो रई,चल रईं खूब मसीन।।

तरुणा खरे 'तनु'
जबलपुर
[22/02, 9:56 PM] Rajeev Namdeo: *जय बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -204*
दिनांक -22-2-2025

*बिषय- तला (तालाब)*

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
तीन तला तैरे तिजू , तुलसी तैरे तीस।
चार हते ते ऊ थले , गैरे ते छब्बीस।।
         ***
      - वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़ 
*2*
पर नारी धन के हरैं ,जाबै कुल की नाक।
डूब तला में बे मरैं , जिनमें  नइॅंयाॅं साक।।
         ***
          -आशाराम वर्मा "नादान", पृथ्वीपुर 
*3*
तला तलइयां भर गये,नरवा नाले ऐन ।
बरसा भई चपेट कैं,लगे कुँआ सब दैन।। 
             ***
           शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*4*
पार तला की फूट गइ,भइ ऐसी बरसात।     
पानी घर घर में भरो,मुश्किल सबै दिखात।।
          ***
        - मूरत सिंह यादव,दतिया 
*5*
सला तला सी कला नइँ, रहे तला की माहि। 
डूबत ऊखर सें बचै, जो जन जानें जाहि।।
            ***
          -रामानन्द पाठक'नन्द', नैगुवां
*6*
जीवन निर्मल हो सतत,ज्यों नदिया की धार।
तला बने न द्वेष कौ,हुइये बेड़ा पार। ।
        ***
      -आशा रिछारिया ,निवाड़ी 
*7*
नहीं तला में रै सकत, कर मॅंगरा सें बैर।
जैसें घुरवा घाॅंस सें,लड़ कें चाहत खैर।।
            ***
             -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*8*
मन चंगा जग में रओ, बने रयें सब ठाट।
आप सपरलव तला में, जान कुंभ को घाट।।
        ***
           -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु बडागांव झांसी
*9*
तला बीच पानी रुको, चलै नदी कौ नीर। 
रुकबे में नइं फायदा, चल पथरन खौं चीर।।
         ***
              -संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
10- 
भरें लबालब जब तला,पानी बरसें यैन।
तब किसान खुश रात है,छाती में रत ‌चैन।।
          ***
           -सुभाष सिंघई , जतारा 
*11*
चलौ सपरवे ताल में,नल नइं आये आज।
पानू  सबरौ बढ़ा गव,हमें धौवनें नाज।।
             *** 
        -रामसेवक पाठक "हरिकिंकर", ललितपुर 
*12*
तला-तलैयन में तके, फूले कमल गदूल।
पजे गिलारे में भले, बने उबर कें फूल ।।
        ***
             -अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
*13*
डिड़यारइ बिन्नू विकट, हो रइ आज पराइ।
रो रो कें भर दव तला, बिछड़े बाप मताइ।।
          ***
        - अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 
*14*
तला बीच गुरु द्रोण खोँ , मगर गुटकवे आव ।
धनुआँ लैकेँ पार्थ ने , तुरतइँ मार गिराव ।।
          ***
        प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़ 
*15*
नेह तला गैरे भरे,बैठे रइये पास।
रूप गगरियन पी गये,बुजी न मन की प्यास।।
          ***
          - डॉ. देव दत्त द्विवेदी,बड़ामलहरा
*16*
तला बडो भोपाल को, रानाजू को काम।               
बुन्देली साहित्य को,  ऊंचो कररय नाम।।
                 ***
       -एम. एल. त्यागी,खरगापुर
*17*
तला किरतुआ पै डटो,दल बल सँग चौहान।
खोंटें कैसें कजलियां, चंद्रावलि हैरान।।
       ***
              - प्रभुदयाल श्रीवास्तव पीयूष, टीकमगढ़
*18*
तला सपरबे जात ते,बालापन मै यार।
सखन संग पैरत हते,चले जात ते पार।।
      ***
       -तरुणा खरे 'तनु',जबलपुर
*19*
छोटे खोदो अब तला, सबखाँ मिलवै नीर।
सबके प्यासे कंठ खाँ, बँधो रये मन धीर।।

-
श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
*20*
तला तलैया पुखरियां, न्हाय न उतरैं पाप। 
संगम में डुबकी लगा, मिटैं सभी संताप।।
         ***
      - डॉ. रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
***
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
[22/02, 10:26 PM] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी "ताल"(तालाब)
              बुंदेली दोहा 
नदी बेतवा जामुनी,उतै धुबेला ताल ।
है प्रसिद्ध मउसानियाँ,रखे अस्त्र बहु ढाल ।। (०१)

महुबे जाओ जो कभउँ, है जो बेला ताल ।
"दाँगी" है इक खासियत,बड़े लड़इया लाल ।। (०२)

ताल बड़ौ भोपाल कौ,और तलइँयाँ जान ।
हरी-भरी धरती करें,"दाँगी" उपजे
धान ।। (०३)

नंदनवारा ताल सैं,होत सिचाई खूब ।
चना मटर पिसिया पजै,"दाँगी" के मनसूब ।। (०४ )
                                       नरवा नाले ताल सब,भरे रबै जी गाँव ।
"दाँगी"जितै न तालहो,नईं सपरबै ठाँव ।। (०५)

ताल बँदा हर गाँव में ,हल्के बड़े मजोल ।
"दाँगी"ये सरकार
को,खाबै कोलइ कोल ।। (०६)

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
[15/02, 11:00 AM] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा -पुतरा/पुतला
(१)
गोबर  कौ  पुतरा बना , टाठी  में  धर लेत।
मन में   मान  गनेश जू , माथें  टींका  देत।।
(२)
पंच तत्व  खौं सान कैं , पुतरा  भय तैयार।
बरन-बरन रॅंग रूप में,रच दय कैउ हजार।।
(३)
माटी कौ पुतरा बनों ,काय करत अभिमान।
कितनउॅं  भी सिंगार लो , होंनें  धूर समान।।
(४)
रावण  कौ  पुतरा बना , बारत  हैं हर साल।
तौउ न सीखत आदमी,चलत कुठंगी चाल।।
(५)
पुतरा  लयॅं  बिंन्नूं फिरें , छाती  सें चिपकाॅंय।
देख-देख नादान कवि ,मन ही मन हरसाॅंय।।

आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
(स्वरचित) 15/02/2025
[15/02, 1:41 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा - पुतरा*

पुतरा हम श्रीराम  के,#राना  मोरो नाम।
चरनन में हम लोटकैं,करवाँ ले सब काम।।

पुतरा दद्दा बाइ के,मिलो नावँ राजीव।
पाल पोस बड्डो करो,दवँ है प्यार अतीव।।

पुतरा नानी के बने, कती मूर से ब्याज।
जादाँ प्यारो होत है,#राना  समझों आज।।

दादा के़ पुतरा रयै,कत ते  मोरो अंश।
बढ़ै अँगाई  येइ से,#राना  कुल को वंश।।

पुतरा भी बोले गुरू,#राना पढ़ लिख जावँ।
बनके फिर तुम कछु अलग,सबखों खूब बतावँ।।
          ***दिनांक -15-2-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[15/02, 2:33 PM] Subhash Singhai Jatara: शनिवार-15.2.25-बुंदेली विषय - पुतरा

मोरे पुतरा मौंग जा ,    लिपटा  कैं कत माइ |
असुआ पौछे गाल कै , हित की करत दुहाइ ||

पुतरा कात मताइ है  , लिपटा   ले निज आँग |
अपने हाथन सूट दे ,   चोट  लगी  सब जाँग ||
धरे कदाँ  पै माँ  मुड़ी , पुतरा  कयँ  पुटयाय |
चिंता काहे खौ करत , लडुआ  खाबे  लाय ||

बूड़ी डुकरौ पूछती ,   कीकौ    पुतरा  आय |
गैल चलत में छेकतइ , लठिया मोइ छुड़ाय ||

नानी के जब घर गये , खूब   गइँ    हरसाय |
मोरो पुतरा कात रइँ ,   गरे   रयी  लिपटाय || 

सुभाष सिंघई
[15/02, 4:05 PM] Taruna khare Jabalpur: 'पुतरा' शब्द पर दोहे 


पुतरा पुतरी खेलते, बालापन दव खोय।
कठिन बुड़ापो देख खैं,अब काए खों रोय।।

पुतरा से मानव सबै, रच डारे भगवान।
अलग-अलग सब रूप हैं, अलग-अलग पैचान।।

अक्ती पुतरा संग मै,रचैं पुतरिया ब्याव।
पूजैं बरगद के तरैं,सबै सखी आ जाव।।

माटी को पुतरा लयें,फिरत नाय सैं मायँ।
लरका बच्चा ओई मै, दिन भर उरजे रायँ।।


तरुणा खरे 'तनु' 
जबलपुर
[15/02, 5:09 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय पुतरा 
                1
पुतरा की चाहत सबै, लगी रहत है ऐंन। 
मडियाँ सबरी पूजबें, खटका रत दिन रैंन। 
                2
पुतरा भौतइ लाडलौ, जब चँगेर में रोय। 
राई नौंन उतारबैं, लगा डिठूला दोय। 
                   3
पुतरा पुत्तू के सबइ, छूट गये हैं खेल। 
बे दिन फिर सें काँ धरे, चले बना कें रेल। 
                   4
पुतरा प्यारौ माइ खाँ, बेर बेर रइ देख। 
ढाकें आँचर छोड सें, बनाँ डिठूला रेख। 
                   5
हे ईशुर पुतरा दियौ, ललक न ललकत राय। 
मंसा पूरी कर दियौ, हिरदें नन्द समाय। 
रामानन्द पाठक नन्द
[15/02, 6:13 PM] Kamlesh Sen Kavi: दोहा पुतरा

अकती खौं तुम जान लो पुतरा पूजे जात।
बिटियन को जो खेल सबके मन खों भात।।

 सीदे सादे मांस खों सबरे पुतरा कात।
वो कैसई साजी कवै उकी सुनी न जात।

कमलेश सेन कवि टीकमगढ़
[15/02, 7:36 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा 
बिषय- पुतरा
(1) देखो पुतरा मानजा,
      घेरें फिरत सियान।
      लगत पीठ रोरा रही,
      मानत नहया बात।।
(2) पुतरा तो नोनो लगत,
      गुन तो नोने होंय।
     वेगुन नग नग में भरी,
     किल किल रोज विदोय।।
(3) पुतरा टागें हार में,
      जियै विजूकौ कात।
      फसल बचे उजरे नहीं,
      उजरा देख डरात।।
(4) विपत परें कामें परै,
      हम जा आस लगाय।
      पुतरा होरी जोग है,
      कबऊ नें कामें आय।।
(5) लैकें पुतरा पुतरियाँ,
      अक्ती पूजन जाँय।
      सखी सहेली जुर मिलें,
      भारी खुशी मनाय।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[15/02, 10:43 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -203*
विषय - *पुतरा**
संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
*प्राप्त प्रविष्ठियां:-*
*1*
हम सब पुतरा ही रये,उचकत रत  दिन रात।
चार घरी भी बैठ कें,करत न ढँग की बात।।
               ***
              -सुभाष सिंघई, जतारा 
*2*
माटी कौ पुतरा बनो, माटी में मिल जाय। 
जौलौं साँसे चल रहीं, तौलौं चलत दिखाय।।
            ***
          -  संजय श्रीवास्तव, मवई(दिल्ली)
*3*
माटी को पुतरा बदन, माटी में मिल जात।
चार दिना की जिंदगी, काहे खों गर्रात।।
           ***
       -डॉ.राजेश श्रीवास्तव प्रखर(कटनी)
*4*
पुतरा कैऊ दौगले, चारउ लंग दिखात।
मुद्दा नये उछार कें, कोरे फिरें कुकात।।
         **
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता'इंदु',बडागांव(झांसी)
*5*
पाॅंडव अपनी नार खौं, गये जुआ में हार।
चीर हरन  देखत रये , पुतरा  से लाचार।।
           ***
         -आशाराम वर्मा "नादान पृथ्वीपुरी"
*6*
पुतरा चापोँ भीम को,कर दव चकनाचूर।
दगा साद धृतराष्ट्र ने,बल्दो लव भरपूर।।
        ***
         - प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 
*7*
पुतरा से बैठार कें, गांवन में सरपंच।               
चालू पुरजा रचत हैं, अपने उतै प्रपंच।।
                ***
              -एम. एल. 'त्यागी', खरगापुर
*8*
आंग मैल पुतरा बना,उमा प्रान दय फूंक। 
बेटा रखवारी करो,तनक न होवे चूक।।
            ***
             -आशा रिछारिया,निवाड़ी
*9*
सरयू गंगा पै बसौ,नगर अजुदया धाम ।
पुतरा भौतइ लाड़लौ,कौसिल्या खाँ राम।।
         ***
          -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*10*
माटी कौ पुतरा मनुज, जी में बैठे  राम।
पावन संगम येइ में, चारउ  तीरथ धाम।।
         ***
              - अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 
*11*
बिटियां पुतरा पुतइयां,खेल खेलतीं खूब।           
 गोबर के गणपति बना,नहा चढ़ाबैं दूब।।
            ***
         - मूरत सिंह यादव,दतिया 
*12*
घरघूला के खेल में, मौड़ीं जावें सीक,
पुतरा-पुतरी की तराँ, परै निभानै लीक ।
         ***
          -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*13*
बब्बा पकरें खाट खौ,सुमर रये भगवान।
कत पुतरा नौनै रबै, करबै  अच्छौ नाम।।
           ***
             -एस. आर. 'सरल', टीकमगढ़
*14*
माटी का पुतरा बना, उस से सीखा ज्ञान। 
काट अगूँठा दान कर, जग में ऊँचौ मान।।
            ***
           -रामानन्द पाठक नंद, नैगुवां
*15*
पुतरा से पांचों पती, बैठे सीस झुकाय।
लाज द्रोपती की लुटै,कछू बोल नै पाय।।
               ***
          -तरुणा खरे 'तनु' ,जबलपुर 
🙏🙏

*संयोजक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
[16/02, 7:54 AM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा ,,विषय ,,पुतरा ,,
************************************
महाकुंभ से ल्यायते , पुतरा एक खरीद ।
मोड़ी-मोड़ा खेल रय , मिला-मिलाकेँ सीद ।।

डब्बा में बब्बा धरोँ , पुतरा पुत्तू आइँ ।
छोटा चकरी पपीरा , हमेँ सावनी भाइँ ।।

पुतरा छापैँ भींट पै , करें खूब सिंगार ।
बिटियाँ खेलेँ नोरता , बुन्देली तेवार ।।

तन-मन के मैलेँ कछूंँ  , ढोंगी चपल लबार ।
रावण का पुतरा जला , रहेँ राम उच्चार ।।

पुतरा केउ बजार में , ठाँड़ेँ उन्ना ओढ़ ।
हर दुकान के दोर मेँ , देखो धरकेंँ सोढ़ ।।

पुतरा पुतरी जी घरेँ , कर रय सकभर चाल ।
ऊके घर खुशियाँ रहेँ  , हरदम डेरा डाल ।।
***********************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[16/02, 9:20 AM] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी  बुंदेली दोहा 
बिषय--"पुतरा" (२०३)
                   
                  (01)
दो पुतरा ऐसे जिनैंं,नहीं पिता का ग्यान ।
भरी सभा में पूँछबैं,हमखौं देव प्रमान ।।

                 (02)
लव-कुश पुतरा पूँछबैं,कां हैं वे श्री राम ।
तुमैं अकेलौ छोड़कैं ,"इन्दु" कितै है धाम ।।

                    (03)
पुतरापकरैं रामकौ,लव-कुश दाँगी
ठान ।
लिखी चुनौती देखकैं,सादे तीर कमान ।।

                   (04)
जे पुतरा बलवान हैं,गम्म नहीं जे खात ।
अश्व पकर कै ले गये,"दाँगी"नईं डरात ।।

                      (05)
सब जाँचत हनुमानजू,मन में जे मुस्कात ।
पुतरा ज्यौ लरबै खड़े,"इन्दु" राम खुद आत ।।

                     (06)
हल्के में खेलत हते,पुतरा बड्डौं लायँ ।
मेला सैं हम ल्यात ते,"दाँगी"उऐ खिलायँ ।।

                 (07)
माटी के पुतरा अपन,सो रय दिन औ रैन ।
"दाँगी"कछू न पावनैं,अब कां जैहौ लैन ।।

                 (08)
दादा-दादी नेह सैं,पुतरा गरैं लगायँ ।
रबै सुखी में हे प्रभू,"दाँगी"विनती
कायँ ।।

                (09)
पुतरा बिन सूनौं लगै,अँगना सूनौं रात ।
"दाँगी" भौतइँ लाड़ले,अपनैं गरैं लगात ।।

                  (10)
पुतरा दिन भर काँख में,लय रतते
हम पैल ।
"दाँगी"अब तौ भूल गय,अब कस गई नकैल ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[08/02, 12:57 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा विषय :-नहीं (नींव)*

#राना  नीं पथरा कयै,हम दैतइ बलिदान।
पर कंगूरन से कामना ,रखें मकाँ की शान।।

सुनी कहावत है इतै,जौ नीं पथरा हौत।
#राना उनके कर्म में,है बलिदानी  जौत।।

नीं के पथरा बोल कैं,जब मिलतइ सम्मान |
#राना हरसत है जिया,व्यर्थ नहीं बलिदान।।

खौदत नीं खौं लोग है,बनै ठोस आधार।
मजबूती #राना रयै, हौ  मकान तैयार।।

नीं खौदत मजदूर तब,गिरै  पसीना आन।
#राना बनतइ जब मकाँ,नहीं मिले पहचान।।
      *** दिनांक -8-2-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
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[08/02, 1:23 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा,, बिषय ,,नीं ,,नींव
***********************************
नीं मेँ जिन्दा चुन गया , घन का मिला इनाम ।
किला जोधपुर बन गया , पढ़ोँ राजिया नाम ।।

ताज महल की नींव में , डूबेँ कुआ पचास ।
तीन रानियाँ हैं दफन , तब "प्रमोद"भव खास ।।

जी की जैसी नीं भरी , उसई रैय मकान ।
संस्कार मांँ बाप के , लियेँ रात इंसान ।।

नीँ के पथरा नइँ दिखेँ , जी पै महल सुहाय ।
लिए तिरंगा हाथ में , रहा "प्रमोद"बताय ।।

बाँदोँ ताल बहेरिया , नीं में मउआ ठूँस ।
फिर"प्रमोद"देने परीं , अभियंता खोँ घूँस ।।

नाप तौल धरती खुदी , भर दय पथरा गार ।
सोम दोम नीं भर बनी , घर खइयाँ तइँयार ।।

नीं में भर दय पैल सेँ , छरिया पथरा ऐन ।
अब "प्रमोद"आवास खोँ , खड़ेँ लगाकेँ लेन ।।
**************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[08/02, 1:34 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिषय नीं 
                        1
सुदा महूरत नीं खुदी, टका रुपइया डार। 
मन के सपनें लो सजा, खुशियाँ  मिलें अपार। 
                        2
घर की गैरी नीं खुदै, पथरन सें भर जाय। 
तौ भींटें हुइयें अमर, कउँ दरार नइँ  आय। 
                        3
बिना कूत कछु तामसी, आडी लेतइ न्याव। 
हुमस जात नीं कौ टका, केस बिदत जब ठाव। 
                         4
संस्कारों की नीं अगर, भर जैहै मजबूत। 
हुयें सुपुत्री बेटियाँ, बन है पूत सपूत। 
                          5
कच्ची नीं ना खोदिऔ, कर ना पाहौ भोग। 
घर बारिस ना सै सकै, बुरव जुरै संजोग। 
रामानन्द पाठक नन्द
[08/02, 3:20 PM] Taruna khare Jabalpur: नीं(नीव ) शब्द पर दोहे 


नीं  पैलां पक्की करौ,तबै उठाओ भीत।
नातर घर गिर जात है,सुनौ ध्यान सैं मीत।।

संसकार की नीं डरै,पैलां घर सैं यार।
संस्कारी बालक बनै,जानत सब संसार।

बढ़िया नीं भरवाइयो, लोहा पथरा डार।
घर होबै मजबूत जब, पक्को हो आधार।।

नीं पक्की कर भेजियो,लरकन खां इसकूल।
नातर पड़ पाबैं नहीं,तुरत जात हैं भूल।।

पंचतत्व की नीं डरी,हाड़-मांस की भीत।
मन को पंछी बैठ खैं,करै जगत सैं प्रीत।।


तरुणा खरे जबलपुर 
🙏🙏🙏
[08/02, 5:01 PM] Subhash Singhai Jatara: शनिवार-8.2.25-बुंदेली - *नीं* (नींव)

पथरा नीं को चुप रहत , दिखत  कँगूरा चाह  |
हर्र    लगै ना   फिटकरी , मोरी    हौबें  वाह    ||

नीं के पथरा है कुटत , दुरमट.  सें दें खूत |
कर्री   छाती राखकैं  ,बने  रात  मजबूत ||

हर कामन की नीं बनै , लगत जितै हुश्यार |
बनबै पै   चर्चा  नईं  ,  दूर   रयै   सत्कार || 

सबसें   पैला नीं खुदे ,   जीपै बनत मकान |
जितनी गैरी ठोस हौ , रयँ  उतनी बलवान || 

आजादी की  नीं बनी , दबँ गय जितै शहीद |
लाभ कँगूरा   लै  रयै ,  रखें  बड़ी    उम्मीद || 

सुभाष सिंघई
[08/02, 5:08 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-नीं नींव 
विन नीं के न‌इॅं बन सकत,भैया कभ‌उॅं मकान।
ई सें करयन खोंदनें, सुनो लगा कें कान।।

रजनी सूनी चन्द्र विन, सूनों मुख विन पान।
पूजा सूनी शंख विन, ज्यों नी विना मकान।।

काजर विन सूनें गटा, उर सेंदुर विन मांग।
बाखर सूनी नीं बिना,नशा विना ज्यों भांग।।

नर देही ज्यों प्रान विन, पानी के विन कूप।
घर बाखर नीं के विना, सिंघासन विन भूप।।

नीं अब कोऊ न‌इॅं भरत,भयौ फिलर कौ राज।
"अनुरागी" कलकाल में, बॅंधे गदन खों ताज।।
[08/02, 7:19 PM] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा 
बिषय-"नीं" (नींव) (202)
                  (01)
बनौ अजुदया राम कौ,मन्दिर अबै विशाल ।
पथरा राजस्थान कौ,"दाँगी"नीं में ड़ाल ।।
                    (02)
बच्चौं में नीं ड़ालिये,नौनैं रखैं विचार ।
"दाँगी" जेइ बिडम्बना,नइँया ये संस्कार ।।
                      (03)
बनौ मकां मजबूत जो,जीकी नीं मजबूत ।
खड़ौ तिखंडा "इन्दु"कौ,जो है इतै सबूत ।।
                    (04)
हो मजबूती नींव सै,होबै कौनउँ काम ।
ठोस काम रै नींव सै,"दाँगी"अमर
मुकाम।।
                   (05)
नीं में पथरा डारकै,"दाँगी"भरौ गिलाव ।
कारीगर नै एक सौ,कन्नी फेर मिलाव ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[08/02, 11:51 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -202* 
दिनांक 8.2.2024 प्रदत्त *विषय-नीं (नींव)*
*1*
गैरी नीं विश्वास की, राम भगति में राय।
बाल न बांको हो सके,प्रभु जी करें सहाय। ।
     ***
                 -आशा रिछारिया (निवाड़ी)
*2*
बालापन की सीख सें, जीवन बनत महान।
पक्की जी की नीं भरै,पक्कौ बनें मकान।।
           ***
            -डॉ. देवदत्त द्विवेदी,बड़ामलहरा 
*3*
गंगा जल की नीं बहेँ , पीपा पुल पै लोग ।
महा कुंभ में हो रहा , गैल घाट उपयोग ।।
          ***
          -प्रमोद मिश्रा वल्देवगढ़ 
*4*
बचपन में यदि सीख की ,गैरी नीं भर जाय।
तौ जीवन में आदमी ,धोखौ कभउॅं न खाय।।
                ***
        -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
*5*
रामलला को अवध में,नव मन्दिर बनबाव।
पैलो पथरा नींव में, हरिजन सें डरबाव।।
          ***
       -एम एल 'त्यागी',खरगापुर
*6*
पौर अटा दालान की,नीं भर दइ है ऐन ।    
जंट-फंट यदि नींव हो, कर दस मंजिल सैन ।।
      ***
         -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*7*
जी नें नी ढँग सें भरी, ऊ कौ घर मजबूत।
कंजूसी जी नें करी, परत  ओइ  खों कूत।।
     ***
     - अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी 
*8*
संस्कार की नीं बड़ी,होती है मजबूत।                  
चाल चलन में सब दिखे,देना नहीं सबूत।।
        ***
     - मूरत सिंह यादव दतिया 
*9*
बात तनक सी जा प्रखर,जीवन में लो मान।
जितनी  गेरी  नीं  हुए,उतनइ सदे मकान।।
         ***
          -डॉ राजेश प्रखर, कटनी 
*10*
गहरी नीं पै हैं बने ,जितते इतै मकान।
सबके सब मजबूत हैं , लग रय आलीशान।।
         ***
- वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*11*
पथरा नीं के  कात सब, हमरौ  हैं अरमान।
रैबे  बारे आँय  जौ,सज्जन  हो  श्रीमान।।
          ***
     -सुभाष सिंघई , जतारा 
*12*
नीं के पथरा जो बने, कौनउ नईं दिखात।
खडे़ कगूंरे देख कें, सबरे रय मुस्कात।।
      ***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु,बडागांव,झांसी
*13*
नीचट राखो नीं तरे, बैठ न सकै मकान।
नातर भैय्या भोगिओ, बोत बड़ो नुकसान।।
     ***
        -श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा(विदिशा)
*14*
सुदा महूरत नीं खुदी, मंदिर भव तैयार। 
राम लला की छबि निरख,सुख पा रव सिंसार।।
           ***
        -रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां
*15*
बूढ़न को आदर करो, नीं को पथरा मान। 
चरित सदा उम्दा रहै, जब वे दें वरदान।।
           ***
              - डॉ.रेणु श्रीवास्तव,भोपाल
*16*
नीं हो गैरी ज्ञान की,रय सदगुन की खान।
न्याय नीत करुणा रहें,सज्जन की पैचान।।
        ***
          - एस आर सरल ,टीकमगढ़
*17*
नीं होबै कमजोर तौ,,टिकबै नहीं मकान।
घर चौपट हो जात है,मूरख हो संतान।।
       ***
-प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ 
*18*
राम भजन हिरदय धरौ, चलौ न सीना तान।
तनक ढका में गिर परत,नीं के बिना मकान।।
           ***
   -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*19*
गैरी नी डरकें बने,ऊँचे भवन विशाल।
कील न खटकी आज लौं,भये हजारन साल।
      ***
       -अरविन्द श्रीवास्तव ,भोपाल
*20*
संसकार की नींव जब ,बचपन सैं डर जात।
ज्वानी मै भटकैं नईं,बे सपूत कैलात।।

                ***
        -तरुणा खरे ,जबलपुर
*संयोजक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी''*
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
201
[01/02, 1:35 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: शनिवार 1 फ़रवरी 2025
दोहा शब्द -खदरा/खड्डा
                 1
खदरा खोदो कभउंना,कोउ काउखां यार।
आपस में नित बांटियो,इक दूजे हां प्यार।
                 2
खदरा खोदै औरखां,बेउ गिरत है पैल।
कुगत होत फिर मिलतना,ढूंडे उनहां गैल।
                 3
खदरा खोदत हार में,रय नामानी हार।
विधनानें ऐसी सुनी,पानी कडो अपार।
                 4
अंदरे अपने गांवके, खदरा ऐन दिखात।
लठिया टेकत फिरतहैं,दिनहोबै या रात।
                 5
अब शासन को चलरहो,खदरा खोदें काम।
जो जनता को हितकरें,उनै करत बदनाम।
मौलिक -रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[01/02, 1:55 PM] Asha Richhariya Niwari: 🌹
खदरा खोदो काउ खों,गिरहो जाकें आप।
आंगें पीछें होय पर, होत उजागर पाप।।
🌹
डग डग पे खदरा बने,भरे खचा सें ऐन।
चलवो मुश्किल हो गओ,गिर रय भैया बैन। ।
आशा रिछारिया 🌹🙏🏿🌹
[01/02, 2:54 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा बिषय,, खदरा ,,गड्डा,
***************************************
खदरा में श्री राम ने , दव कबन्ध खोँ डार ।
फिर "प्रमोद"नक्कू धरीँ , आँखन छित दव बार ।।

खदरा में गोड़ो परोँ , कमर लचक गइँ मौँच ।
धनियाँ काँयँ "प्रमोद"सेँ , तन-तन आइँ खरौँच ।।

चरखी लो खदरा करेँ , उन्ना फटो बिछाव ।
चुरैँ-चुरैँ गुर डारकेँ , नोनो उयै जमाव ।।

गाँव गाँव में आजकल , खदरा खुदत दिखात ।
पानी खाँ पुंगा डरत , देखो थरेँ बिलात ।।

सड़कन में खदरा मुलक , फटफट दचका खात ।
जब "प्रमोद"जावै कितउँ , नग-नग खूब पिरात ।।

बनेँ गड़ूँका गाड़ में , खदरा भरेँ दिखायँ ।
अद् दक नैचेँ में निगत , पैर "प्रमोद"भिड़ायँ ।।

गोरी गोरेँ गाल पै , खदरा खुदेँ बिलात ।
ओँठन मेँ मिसिया घिसेंँ , गइँ"प्रमोद"इठलात ।।
***************************************
   ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
            ,, स्वरचित मौलिक ,,
[01/02, 5:04 PM] Subhash Singhai Jatara: -बुंदेली - *खदरा* (गड्डा)

खदरा कभउँ न खौदियो ,   दूजे  गिरे  लुलाँय  |
हँसी उड़ाबै लोग भी  ,  मौका   पर  ही  आँय || 

अँदरा भी खदरा बचा , चलत   जात है गैल |
चलतइ  राह टटोल है , नईं  रखत मन  मैल ||

खदरा   हौबें   गैल  में ,  अँदयारी   हौ  रात |
चूकत  पाँव  जमीन पै,  घायल हौत बिलात ||

खदरा खुदरय  देश में , जाति धर्म के खूब ||
नेता  भी  उसकार रय , गलत रखें मनसूब ||

बसकारे    खदरा   बनैं  , पानी    बरसत रात ||
उचट लगत कीचड़ मुलक , उन्ना सौइ  बसात ||

सुभाष सिंघई
[01/02, 5:46 PM] Ramanand Pathak Negua: बुन्देली दोहा बिषय खदरा 
*********************
                 1
अँदरा खों भी गाँव के, खदरा सबइ दिखात। 
लेकिन कइयक सूजता, ओंदे मों गिर जात। 
                  2
गोडौ खदरा में परें, मोंच जाय जब पाँव। 
सेंमर गूदौ फटकरी, फदका तुरत चडाव। 
                   3
खदरन खों झाँकें रऔ, चुगलै लगै न दाव। 
दूर दूर तक देख कें, सदा बरकते राव। 
                   4
माटी कड गइ खेत सें, खदरन भर गइ रेत। 
नौनी फसल उगावनें, समतल करियौ खेत। 
                        5
खदरा तौ खरयान में, भर ना पाऔ पैर। 
समय चूक रव दाँय कौ, चल रइ आँदी बैर। 
रामानन्द पाठक नन्द
[01/02, 7:00 PM] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा                शोभारामदाँगी बिषय= "खदरा" (गड्ढा )          (01)

खदरा खोदौं कंस नै,बैन ड़ाल दइ जेल ।
"दाँगी"रकछा में किशन,नैं दिख लाऔ खेल ।।
                  (02)
परयावरन सुदान्नै,गैरौ खदरा खोद ।
"दाँगी"बिरवा रोपिये,आम आँवला पौद ।।
                  (03)
परिवार बिखर न पाय जो,उनकौ कारन एक ।
मन मुटाव खदरानही,"दाँगी"सब है नेक ।।
                  (04)
दुर्योधन औ कृष्ण के,बीच रई है खाइ ।
"इन्दु"खदरा पुरो नहीं,रोकत रई मताइ ।।
                     (05)
खदरा बड़ रय आज कल,पूर न पारय कोउ ।
कुटुम कबीला के इतै,"दाँगी" मिल रय सोउ ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[01/02, 7:25 PM] S R Saral Tikamgarh: *बुन्देली दोहा विषय-खदरा*
*******************************
खदरा खोदों वृक्ष खौ,ईकों सब लो श्रेय।
ऐसों पेड़ लगाइओं,जीवन भर फल देय।।

खदरा  पूरौ  द्वेष कौ, करों  प्रेम इजहार।
गरें लगाओं दीन खौ,घुलमिल बाँटों प्यार।।

जो खुदेय खदरा जियें, उएँ सोउ ना चैन।
कभउँ दिना ऐसों बिदै, मिच जै दोई नैन।।

खदरा पूरत मर मिटें,और बिछा दइ लाश।
लरी लराई देश की,जब लौ रइ घट श्वास।।

खदरा भये प्रयाग में, भय लाशन के ढेर।
भगदड़ मच गइ कुम्भ में,मचों भौत अंधेर।।
********************************
      *एस आर सरल*
          *टीकमगढ़*
[01/02, 8:28 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा विषय- खदरा*

#राना खदरा देख कैं,निगयौ सबइ सुजान।
खाकैं  पातर  छेद  रय,नेता  हिंदुस्तान।।

खदरा खौदत लोग है,दूजन के  नुकसान।
#राना जाकै खुद गिरत,तब चीनैं भगवान।।

सरकारी अब  रोड़ पर,खदरा मुलक दिखात।
धचका मोटर में लगत,#राना  जी अकुलात।।

खदरा में पानी  दिखे,भैस जात है लोर।
रौथत मौं खौं मस्त रत,#राना सबरै ढ़ोर।।

#राना खदरा से बचौ,निगौ बरक के आप।
खूँसट खाँड़ें बोल की,कभउँ न लइयौ छाप।।
      ***
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[01/02, 9:00 PM] Taruna khare Jabalpur: 'खदरा' शब्द पर दोहे 


बुरौ सोस खैं गैर खौं,उल्टी सूदी कात।
खदरा खोदैं और खां, खुद ऊमैं गिर जात।।

गैलन मै खदरा खुदे,भैया घुसबे जोग।
रिपट रिपट खैं गिर रये,चल नै पाबैं लोग।।

खेतन मै खदरा खुदे,होबै खूब  भराव।
बारों मइना खेत में,चालू राय सिंचाव।।

खदरा राखौ मूंद खैं,होबै नै नुकसान।
लरका बच्चा गिर परत,चली जात है जान।।

खदरा मुतके हैं खुदे,सड़क किनारे यार।
विरछारोपन कर रई,गली-गली सरकार।।


तरुणा खरे जबलपुर 
🙏🙏
[01/02, 10:31 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-201*
दिनांक - 1-2-2025
*प्रदत्त विषय:-खदरा (गड्ढ़ा)*
संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
खदरा खोदै और खों, गिरै खुदइँ वौ आन।
यैसे  दुष्टन  खों  सजा, देत  वेइ  भगवान।।
                   ***
         - अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 
*2*
खोदौ खदरा खाद खों , खेतों में दो डाल।
गोबर कौ है खाद जौ , ईसें सुधरें हाल।।
              ***
              - वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*3*
खदरा खोदौ और खों, खुद ऊ में गिर जात।
ई सें चलियो चेत कें, सबरे स्याने कात।।
            ***
              -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
*4*
खदरा जो कौ खोदबैं,खुदइँ गिरत बौ पैल।
तकबै औरन कौ बुरव,खुद खौं मिलै न गैल।।
         ***
        -शोभाराम दाँगी 'इंदु' नदनवारा 
*5*
खदरा खौदें और खौं,पर जब खुद गिर जाँय।
करमदंड भौगें  उतइँ, फिरतइ रयैं लुलाँय।।
                 ***
                 -सुभाष सिंघई , जतारा 
*6*
जैसी करनी जो करे, तैसो ही फल पाय।
खदरा खोदें और खों, खुद खदरा में जाय।।
               ***
      -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु, बडागांव झांसी
*7*
खोदै खदरा और खों, खुद खदरा में जाय। 
राम भजन खों छोड कें, सातउ जनम नसाय।।
            ***
         - रामानंद पाठक, नैगुवां 
*8*
भगदड़ मच गइँ कुंभ में , भगे सपरवे लोग ।
खदरा में कइँयक गिरेँ , बुरव जूज गव जोग ।।
         ***
            - प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 
*9*
खदरा है छलछंद कौ,राजनीति कौ रुप।
जनता कौ शोषण करें,बने स्वयंभू भूप।।
              ***
            -आशा रिछारिया, निवाड़ी 
*10*
हाॅंतक खदरा खोद कैं , बिरछा सबइ लगाव।
बचा  लेव वन  संपदा , धरती  सुरग  बनाव।।
                   ***
               -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
*11*
जगा-जगा खदरा भए, खुद गइ सबरी गैल।
गिर-गिर पर रय लोग सब, भई नरक की जैल।।
      ***
       - श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा, विदिशा
*12*
सांसी कैबे डरत है,बनो प्रशासन मौन।             
पटके खदरा खोदकें , मरे कुम्भ में जौन।।
            ***
                 -एम एल त्यागी खरगापुर
*13*
मुंसेलू से फिर रहे, बगरा रय जे शान।
खुद खौं खदरा खोद कैं,खुशी होत इंसान।।
          ***
            - प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ 
*14*
बुरव करें जो आदमी,बे सुख सें ना रायँ।
खदरा खोदें काउ खों,और खुदइँ गिर जायँ।।
          ***
           - डॉ. देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा 
*15*
बदरा में खदरा करौ, लंबी भरौ उड़ान। 
सोच सदा ऊँची रखौ, बढ़ा ज्ञान अरु ध्यान।।
                 ***
                  -संजय श्रीवास्तव, दिल्ली (मवई)
*16*
मन में खदरा पर गये,मिटें न इनके घाव।               
 प्रीत लगाकें धना नें,हमसें खेलों दाव।।
             ***
             - मूरत सिंह यादव (दतिया)
*17*
जो खुदेय खदरा जिएँ,बे हैं बज्ज कसाइ।
सबखौ दुख में साथ दो,खुश राखें रघुराइ।।
              ***
          - एस आर 'सरल' टीकमगढ़
            
*######
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल नंबर -9893520965

200वीं बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -200
दिनांक -25/1/2025
बिषय- पुपला (बिना दांत का)
संयोजक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
   प्रस्तुति -जय बुंदेली साहित्य समूह

*1*
आव बुढापा ई तरा, बचे न एकउ दांत।
पुपला भय जो खात हैं, पचा न पा रइ आंत।।
      ***
           -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु,बडागांव झांसी 
*2*
दाॅंत हते जब नें मिलें,चना चबाबे यार।
बुखला भयॅं बोरा टिके,जब अंतस गव हार।।
           ***
          - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
*3*
बारौ मौं प्यारौ लगै, बूढ़़ौ आदर पाय।
बिन दाँतन मौं पोपलौ, दोई उमर सुहाय।।
           ***
        - अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल 
*4*
पुपलो मों कमजोर तन,पांव  चलें न हांत।
तोउ न  माया छूटवै,बड़ी अनोखी बात।।
            ***
                     -आशा रिछारिया निवाड़ी
*5*
पुपला-पुपला जुरमिले,करें इशारन बात।
समझ परतना काउके,को कीसें का कात।।
                 ***
              -एम एल 'त्यागी', खरगापुर
*6*
तुतला पुपला दतकड़ा , हकला गूंँगा रोग ।
ओँठ कटा बोँगा मुलक , गलफुल्ला हैँ लोग ।।
         ***
               - प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 
*7*
पुपला बैठौ पाँत में, पूड़ी सटक न पाय।
मींड़ रायते में लुचइ, बड़े चाव सें  खाय।।
       ***
             -अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी 
*8*
जैसैं बिना  खुराक के , दूध न देबै गाय।
बैसइ पुपला दाॅंत बिन,टूट पेट सैं जाय।।
           ***
           -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
*9*
जो होबैं दाँतन बिना,पुपला उनसैं कात ।
डुकरा नब्बै साल कौ,कछू चबा नइँ पात ।।
              ***
            -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*10*
भरी जुआनी कर लओ, भैया जो का हाल ।
पुपला   पूरे  हो  गए , तुचक  गए  हैं गाल ।
         ***
              -डॉ राजेश प्रखर,कटनी 
*11*
हवा फुस्स हौ जात है,पुपला बोले बोल | 
तनतन समझत बात सब,फूटौ बज रवँ ढ़ोल||
         ***
          -सुभाष सिंघई , जतारा 
*12*
पुपला बब्बा जानकेँ, करियो ना उपहास। 
अनुभव कौ भंडार वे, ज्ञान उनइके पास।। 
           ***
             - संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
    *13*
अब मों पुपला हो गओ, देखत नइयाँ  हीर।
बखत-बखत को खेल सब, मनवा उठवै पीर।।
          ***
            -श्यामराव धर्मपुरीकर गंजबासौदा,विदिशा 
*14*
पुपला मों-धुँदली नजर, काया है कंकाल। 
अब तौ माया त्याग दो, भजलो दीन दयाल।।
          ***
          -रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवा
*15*
संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
मोबाइल नंबर -9893520965
[25/01, 12:14 PM] Rajeev Namdeo: अप्रतियोगी *बुंदेली विषय - पुपला*

पुपला'राना' बिद गयौ,भुंसारे  से आज।
बकर-बकर सुनतइ रयै,समझ न पायै काज।।

रगड़ तमाकू खाइ ती''राना' गिर गयँ दाँत।
पुपला बौलत फुस्स अब,जैसे पसरी आँत।।

दाँत गिरै पुपला बनै,टूटो  सबइ  घमंड।
जौ कठोर #राना इतै, बैइ पैल हौ झंड।।

पुपला हींड़त  रात है,#राना  देख जमात।
कोउँ सुनत ना बात है,मौं खौ अजब बनात।।

 #राना  पुपला जब बने,आगे लम्बरदार। 
चार ठोल मसकत रयै,अपनी शान बघार।।
हास्य दोहा 
पुपला की दाड़ी पकड़,धन्नौ गयी हिलात।
पुच्च तमाकू तब हुई,#राना गाल खुजात।।
     *** दिनांक - 25-1-2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[25/01, 12:38 PM] Ramanand Pathak Negua: बुन्देली दोहा 
बिसय पुपला 
                       1
उमर भौत कर्री भई, पुपला हो गय गाल। 
रिस्तौ भव ना आज लौं, बीत गए सब साल। 
                          2
पुपला हो गय गाल अब, आय दिखइया आज। 
भली करौ जू आज प्रभु  आए जीवन साज। 
                          3
हलकौ भइया स्वस्थ्य है, बड्डौ पुपला गाल। 
मजया हलके की करौ, तौ सब बिगरै फाल। 
                           4
दाँत बचौ ना एक मों, पुपला दोऊ गाल। 
मठा मींड गुटकी कछु, कछू गला लइँ दाल। 
                            5
झुर्री पर गइँ खाल में, पुपला भय मों गाल। 
घर कौ फूटौ ताल अब, लरका भय सब बाल। 
रामानन्द पाठक नन्द
[25/01, 12:59 PM] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा प्रदत्त शब्द -पुपला/बिना दाॅंत बाला
(१)
पुपला होबे पै सुनों ,आदौ बल घट जात।
ज्वानी पन में आदमी , बूड़े घाइॅं दिखात।
(२)
दाॅंत  गिरे  पुपला भए , संगै  पुचके  गाल।
उतर चली है बैस जा,अब गुड़यानी खाल।।
(३)
सूकी सबजी  देख कैं , पुपला भौत डराय।
दूद मठा में मीड़ कैं ,चार फुलकियाॅं खाय।।
(४)
पुपला जेबै पाॅंत जब ,मिलै कड़ी सॅंग भात।
खुश हो  जाबै  देखकैं , बड़े  मजे सैं खात।।
(५)
गंजा  कंगा  लयॅं  फिरै , पुपला  खाबै पान।
नंगा  बातैं  फाॅंकबै , हॅंसबैं  कवि "नादान"।।

आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुरी
(स्वरचित) 25/01/2025
[25/01, 1:32 PM] Subhash Singhai Jatara: शनिवार-25.1.25-बुंदेली  *पुपला* (बिना दांत का)

पुपला की हम कब सुनै  ,  जौन देत आबाज  |
नईं कान भी कुछ सुनैै   ,कौन बता रवँ राज ||

थुथरी भी    पुचकी लगे  , परै नईं सर स्वाद  | 
बिना दाँत पुपला बकै , लगबै   हमें   फसाद ||

पुपला  करतइ बात जब , उचटत मौं पै थूक  | 
येसौ  लगतइ रामधइ ,  आज गयै  है  चूक   || 

पुपला हौकें भी सुनौ , जौन तमाकू खात |
थूकत में उन्ना उतइँ , ऊकै   सबइ भिड़ात || 

थुथरी  नईं चलाइयौ , कइ  पुपला से  ‌ठोक | 
मानौ नइयाँ थूकबै ,   सबइ  निपुर गइ रोक ||

सुभाष सिंघई
[25/01, 2:18 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: शनिवार 25 जनवरी 2025
दोहा -शब्द-पुपला(दांतो का झरजाना)
                    १
पुपला ऊसें कात हैं,जीके नइयां दांत।
बोलतना नोनै बने,सुखसें नइं खा पात।
                    २
पुपला - पुपला जुरमिले,करें इशारन बात।
समझ परतना काउके,को कीसें का कात।
                    ३
आव बुढापौ झरगए,मों में के सब दांत।
सबरे पुपला कातहैं,कोउ सुनतना बात।
                     ४
जबसे हम पुपला भए,बब्बा लगे कहान।
बनत गुटकतन है नहीं,लगे कुचरकें खान।

                    ५
चहरा की रौनक गई,तुचके  दोई गाल।
पुपला-पुपला कनलगे,अबनइं पूंछत हाल।

           मौलिक रचना 
    एम एल त्यागी खरगापुर
[25/01, 4:48 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा,बिषंय,,पुपला,,बिना दाँत का,,
**************************************
पुपला थूँतर पौँछकेँ , बेर- बेर मुस्क्यात ।
कंडन को ठोकोँ बहुत , घनी तमाखू खात ।।

खिलखिलात पुपले चलेँ , देशी पान चबाँयँ ।
सैँटी मारी सैंटकेँ  , मौं सें पीक चुचाँयँ ।।

पुपला लडु़आ सूँट रव , फोर फारकेँ ऐन ।
बिन चबाँयँ स्वादन लगो , मटका मटका नैन ।।

पुपले बैठें रौंथ रय , पुआ पपरिया रोट ।
पानी पी गुटकन लगेँ , भूल भालकेँ खोट ।।

रमतूला तुतकारवे , भव पुपला अँगवान ।
निमुआँ कचर "प्रमोद"ने , चौखो मइँ हुन आन ।।

पुपला अमियाँ चौंख रव , डाडी़ पै रस बाय ।
पौंछ पाँछ चाटन लगो , रय "प्रमोद"मुस्काय ।।

धनियाँ अब बुढ़या परीँ , सब गुड़यानी खाल ।
पुपली होगइँ थूँतरी  , खिरबिर्रे भय बाल ।।

पुपला की ठठरी बधैंँ , फिर रव कडी़ छबायँ ।
पंगत जुरै "प्रमोद"तो , फरके जेउ अँगायँ ।।
**************************************
     ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
               ,, स्वरचित मौलिक ,,
[25/01, 5:55 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
विषय -बुखला
1-नये मुहारे हो बने,
   मोमें नइयाँ दाँत।
देखो तो बुखला भये,
 तोई पे मुन्नात।।
2-,आँखन पे चश्मा चड़ो,
   ऊँचों सोई सुनात।
लगन लगे बुखला मनो,
सबरी गिर गय दाँत।।
3-बुखला में बतकाय को,
  ज्यादा नइया काम।
कहो सुनो जल्दी चलो,
  बोलो सीताराम।।
4-हो गय कितने साल के,
   खो दय पूरे दाँत।
बुखला से तो हो जबइ,
खात बने केहि भांति।।
5-देखो जू दाँतों बिना,
  पक्को बन गव जाल।
बुखला भय चबुआ घुसे,
 चिबक गये हैं गाल।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[25/01, 7:23 PM] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा बिषय- "पुपला"          (०१) 
मौ में जीकें दाँतनइँ,पुचके दिखबैं गाल ।
"दाँगी"रोटी नइँ चबै,कालौ खाबै माल ।।
                   (०२)
गिर गय झटटइँ दाँत सब,पुपला कै रय लोग ।
"इन्दु"भले है दूबरे,दाँतन खाबै जोग ।।
                   (०३)
नन्ना बाई खेत पै,लरका बउए चार ।
पुपले"दाँगी"का करैं,गला-गला कै पार ।।
                     (०४)
गुटक न पाबै टैटुआ,मुरतइँ नइँयाँ  कौर ।
पुपला मौ कारन बनौ,"दाँगी" करबै गौर ।। 
                     (०५)
कड़ी दार पतली बनै,डुबै-डुबै कै खायँ ।
पुपला का औ कर सकैं,"दाँगी" ऐसइँ पायँ ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी ""इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326

*बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -199*
 दिनांक 18.1.2025
*प्रदत्त विषय -#कुरा (अंकुरित)*
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
लुड़िया से ओरे परे,बालें बिछीं तमाम। 
कुरा कनूकन फूट रय,कहा करइयां राम। ।
           ***
          -आशा रिछारिया, निवाड़ी 
*2*
बीज डरे चौमास मै,माटी भीतर रात।
पानी पा होबैं कुरा,बेइ पेड़ बन जात।।
         ***
          -तरुणा खरे,जबलपुर 
*3*
मीठों फल है मैंन्त को,रिश्वत समझो काँश।
जो धन खात गरीब को,होत कुरा की नाँश।।
          ***
      -  प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 
*4*
धरत गैल अन्याय की,और करत अभिमान।
मिटत कुरा परिवार कौ,नीचट लैयौ जान।।
              ***
        -भगवान सिंह लोधी 'अनुरागी',हटा 
*5*
धन दुकाय जो काउ कौ,पाय नरक वौ खास।
पर तिरिया खों जो तकै,होत कुरा सें नाश।।
          ***
 -अंजनी कुमार चतुर्वेदी 'श्रीकांत' निवाड़ी
*6*
हल बाखर से जौत ‌कैं,खेत हौत तैयार।
बीज कुरा कै बाँयरैं,देतइ खुशी अपार।।
         ***
            -सुभाष सिंघई, जतारा 
*7*
दया धरम नइॅं छोड़ियौ ,संगत करियौ नीक।
कुरा पाप कौ कूचियौ ,कभउॅं न पाबै पीक।।
              ***
          -आशाराम वर्मा 'नादान' पृथ्वीपुर
*8*
अहंकार में बड़ बड़े, हो गय हैं खल्लास।
रावन की लंका जली,भई कुरा की नास।।
         ***
             -एस आर 'सरल', टीकमगढ़
*9*
राम बिस्नु औतार हैं, करौ पिया बिस्वास। 
काय करा रय ठै पठै, बंस कुरा की नास।।
       ***
         - रामानंद पाठक,नैगुवां
       
10-
कुरा गये सब बीज हैं,पानी अब दो डाल।
ननतर बीजा सूख क़े,निश्चित मरजें काल।।
       ***
           -  वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 
*11*
जब  वे  आईं  सामने,  हती  जुंदइया  रात।
मस्कइं-मस्कइं प्रेम के,कुरा  गए जज्बात।।
     ***
        -डॉ.राजेश श्रीवास्तव 'प्रखर', कटनी
*12*
कुरा प्रेम के ऊँग रय, उपजै भकति प्रयाग।
बारा सालन मे मिलो, बडो हमाओ भाग।।
      ***
        - श्यामराव धर्मपुरीकर,(गंजबासौदा)
               ***
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
     मोबाइल - 9893520965
*************************


[11/01, 3:01 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा -कचुल्ला (कटोरा)*

लोग लराई जब करै,#राना  तब सब कात।
दैंयँ कचुल्ला तोय अब,बना भिखारी जात।।

एक कचुल्ला प्रेम को,#राना रस पी जावँ।
मन भी पूरौ जै अघा,दरसन प्रभु कै पावँ।।

एक कचुल्ला चाय भी,ला  दैतइ है  चाह।
#राना बढ़तइ प्रेम है,संगत मिलत अथाह।।

शकल कचुल्ला-सी धरी,भौत करत बतकाव।
#राना साँसी जब कहत,पकर जात बे ताव।।

कभउँ कचुल्ला भर मठा,भौत करत है काम।
मिटा पेट की  गुड़गुड़ी,#राना  दे आराम।।
      ***दिनांक -11-1-2025
   *✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[11/01, 3:20 PM] Taruna khare Jabalpur: 'कचुल्ला' शब्द पर दोहे 



लयें कचुल्ला फिर रये, जोगी घर-घर जायंँ ।
आंटो,चावल जे मिलै,सोई बनायँ खांयंँ।।

बैठे मंदर बाहरै,जिनै परै नै दीख।
लयें कचुल्ला हांत मै,मांग रये हैं भीख ।।

भरें कचुल्ला खीर को,बिष है दओ मिलाय।
पी गए लाला प्रेम सैं,भाभी नीर बहाय।।

धरैं कचुल्ला हांत मै,भोले लै रय दान।
दैबे बारी भगवती,याचक है भगवान।।

तरुणा खरे जबलपुर 
🙏🙏
[11/01, 4:34 PM] Subhash Singhai Jatara: विषय‌- कचुल्ला (कटोरा)

लयै कचुल्ला हाथ में , डीगें    रय है मार |
भरौ सेर भर घी इतै , ले लौ सबइ उधार ||

तनिक कचुल्ला भर लऔ , चले बाँटबें खीर |
ऐसे  चिकना आदमी ,    दूध    बनाबें ‌‌  नीर || 

एक कचुल्ला नाज को , लबरा  करे‌ बखान |
देत सबइ खौं  नैवतो , आऔ सब जजमान ||

मौड़ा मौड़ी  गेह में , पकर  कचुल्ला  कात |
भूख लगी है जोर से ,    खाबै दैवँ  बिलात ||

तोता पिंजरा में पिड़ौ , चितकोटी है कात |
रखौ कचुल्ला सामने , देख  उयै  हरसात ||

सुभाष सिंघई
[11/01, 5:22 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: बुन्देली दोहा ,विषय,,कचुल्ला,,कटोरा ,,
*************************************
सात कचुल्ला भीम ने , करलव अमरत पान ।
तब सेँ भयो "प्रमोद"वह , द्वापर को बलवान ।।

एक कचुल्ला दूद में , विष दव राणा घोर ।
जब "प्रमोद"मीरा पियो , देखेँ नंदकिशोर ।।

एक कचुल्ला दूध में , रोटी मीँडी़ँ चार ।
सान महेरी गुर मिला , खा गय आइँ डकार ।।

पियेँ कचुल्ला भर मठा , रहेँ "प्रमोद"जवान ।
दूद महेरो भोर सेँ , निन्ने पियत किसान ।।

धना मैंच आदो मिलोँ , रस बराइँ को भोर ।
तीन कचुल्ला सूँट केँ , गय "प्रमोद"लयँ ढोर ।।

हतो कचुल्ला काठ को , भोजन दे इक बार ।
खाय "प्रमोद"अघाय हैँ , मानुष केउ हजार ।।
***************************************
    ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
             ,, स्वरचित मौलिक ,,
[11/01, 6:25 PM] Asha Richhariya Niwari: दोहा दिवस दिनांक 11.1.2025 कचुल्ला
🌹
माखन मिश्री सें भरौ, रजत कचुल्ला हात।
इत उत ढूंढें गोपियां,श्याम नजर नहि आत।।
🌹
दूध कचुल्ला में भरें,यशुदा रहीं पुकार। 
पी लो लल्ला लाड़ले,करतीं हैं मनुहार। ।
🌹
 गड़इ कचुल्ला गिलसिया,टाठी और परांत।
जे बासन अब कां धरे,सपनन खूब दिखात। ।
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी🌹🙏🏿🌹
[11/01, 6:38 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
विषय कचुल्ला 
1-राम नाम रस कचुल्ला,
   भरो प्रेम से जाय।
बृजभूषण जीवन चले,
  दिन दिन कामें आय।
2-मन में डर मानें नहीं,
   मरवे को है डौल।
 जहर कचुल्ला हाँत ले,
   पी गय हँस हरदौल।।
3-लयें कचुल्ला वे फिरें,
    मांगत घर घर भीक।
   बृजभूषण मानें नहीं,
    बूढ़ों की जा सीक।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[11/01, 6:38 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे 
विषय:-कचुल्लां/ बेला 
भोजी नें हरदौल खों,‌जिहर कचुल्ला घोर।
ऑंखन छित पीबे द‌ओ, नेह लगा हरि ओर।।

दूद कचुल्ला में भरौ,रोटीं मीड़ो चार।
भोग लगा भगवान खों,लैव भीतरै‌ डार।।

एक कचुल्ला भुंसरा, दूद महेरौ खाव।
सबरी दिन डिड़कत फिरौ,ब्यारी करबे आव।।

गिरौ कचुल्ला फर्स पै, उदक परी है‌ बाइ।
लये डेउआ हांत में,खा ग‌इ बिलू मिठाइ।।

सींके पै चपिया टॅंगी,ढांक चुल्ला देत।
ओइ कचुल्ला में कभ‌उॅं,हींक महेरो लेत।।
    ‌‌          भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[11/01, 6:54 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली 
बिषय कचुल्ला 
                       1
नौंइ कचुल्ला ओरछा, जितै फूल है बाग। 
बीच बाग बेला बनों, बैठत कोयल काग। 
                        2
माखन मिसरी माँगबें, लयें कचुल्ला हात। 
माइ जसोदा दै रई,मन ही मन मुस्कात। 
                         3
जहर कचुल्ला भर नई, थोरौ होत बिलात। 
भोजन में जिमवात है, सच्ची है जा बात। 
                         4
होबै काँसा धात कौ, अगर कचुल्ला यार। 
खट्टी चीजें ना धरौ, नइँतर करें बिगार। 
                         5
गरय कचुल्ला पैल के, सब खों हते पसंद। 
आज काल दिखबें नईं,समय गुजर गव नन्द। 
रामानन्द पाठक नन्द
[11/01, 7:29 PM] Vidya Chouhan Faridabad: बुंदेली दोहे
 विषय- कचुल्ला (कटोरा)
१)
एक कचुल्ला विष भरो, मीरा कर गइँ पान।
प्रेम  भक्ति  में  बूड़  कें, जोगन  भईं  महान।।

२)
देख कचुल्ला गाँव में, बे दिन आ गय याद।
खाये  बिरचुन घोर कें, नौनों  जीकों स्वाद।।

३)
एक  कचुल्ला   दूद   में,  बासी  रोटी   डार।
बब्बा खा गय मींड़ कें, निँगत चले फिर हार।।

४)
अटा  खेत  दालान  में,  धरो  कचुल्ला  एक।
प्यास चिरइयन की बुझे, सोस भौत जा नेक।।

५)
एक  कचुल्ला  चून  खाँ, रावण ठाँड़ौ  द्वार।
सीता  कर  गइँ  भूल  सें, लछमन रेखा पार।।

~विद्या चौहान
[11/01, 7:54 PM] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा 
बिषय-"कचुल्ला"(कटोरा)
                 (01)
गड़इ कचुल्ला काँच के,नौनें दिये बनाय ।
टाठी कुपरा बौंकना,"दाँगी"घर ले आय ।। 
                   (02)
भरौ कचुल्ला दूध सै,बासौ मयरौ होय ।
जुनइ कि रोटी मींड़कैं,"इन्दु"मजा जो मोय ।।
                   (03)
हड़ा कसैंड़ी भौत हैं,धरे कचुल्ला ऐन ।
सूपा कुपरा डेकची,"दाँगी"गय ते लैंन ।।
                    (04)
मठा महेरौं दूध घी,भरें कचुल्ला खायँ ।
"दाँगी"व्यंजन गांव के,खातन नईं अघायँ ।।
                  (05)
कांसे पीतल की धरी,छोटी बड़ी पनात ।
सुंदर लाय डिजान के,"इन्दु" कचुल्ला सात ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा 
जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[11/01, 8:02 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur: शनिवार 11 जनवरी 2025
दोहा शब्द -कचुल्ला/कटोरा 
                 एक
मानत नइयां बडन की,जो कउं कोनउं सीख।
फिरत कचुल्ला हांथ में,लैकें मांगत भीख।
                 दो
घरन चरन में होतते,पैल कचुल्ला भाइ।
ढूडेंसें बे कितउंना,पररय आज दिखाइ।
                 तीन
पैरके उन्ना गेरुआ,बडे रखालय बाल।
लएं कचुल्ला हांतमे,मांगत आटो दाल।
                  चार
दरसन करबे राम के,अगर ओरछा जाव।
बनो कचुल्ला बागमें,देख खबर से  आव।
                   पांच
चाल कचुल्लन की गई,चलन लगी इसटील।
सबरे उनमें खात हैं,मठा महेरो खील।
 मौलिक रचना 
एम एल त्यागी खरगापुर
[11/01, 9:46 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -198*
शनिवार 11 जनवरी 2025
*विषय-कचुल्ला (कटोरा)*
संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*

*1*
मानत नइयां बडन की,जो कउं कौनउं सीख।       
फिरत कचुल्ला हांथ में, लैकैं मांगत भीख।।
                   ***
               -एम एल त्यागी खरगापुर
*2*
लाला जू हरदौल  नें,करो अनोखौ  काज।
पियो कचुल्ला भर जहर,राखी कुल की लाज।।
               ***
                     -विद्या चौहान, फरीदाबाद 
*3*
नहीं कचुल्ला अब बचे,एकऊ घर में आज।
हर घर में अब देख लो,है पिलेट कौ राज।।
              ***
                - वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़ 
*4*
एक कचुल्ला लोभ को,हरदम  खाली  रात।
कितनउँ भरबै हम उयै,रीतौ सबइ दिखात।।
                ***
          -सुभाष सिंघई , जतारा 
*5*
नालायक संतान के,मात-पिता गिगयात।
लयै कचुल्ला हात में, भूखे माँगत खात।।
            ***
          - एस.आर. 'सरल', टीकमगढ़
*6*
दूद भात खिचरी कडी़ , मठा महेरो दार ।
एक कचुल्ला घोरुआ , बिर्रा रोटी चार ।।
            ***
           - प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 
*7*
बकत कचुल्ला की बडी, घर घर राखे जात। 
दूध महेरौ उर मठा, भर भर सब घर  खात।।
             ***
          -रामानन्द पाठक 'नन्द', नैगुवां
*8*
मीरा बाई खों दिखे, जहर कचुल्ला श्याम। 
उठा गटागट पी गयीं,मन मन मोहन नाम।।
              ***
         -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*9*
पी-पी मदिरा रात दिन,मैंटो नेक शरीर।              
 लिएं कटोरा फिर रहे,घूमत बने फकीर।।
      ***
          - मूरत सिंह यादव, दतिया 
*10*
भरो कचुल्ला खीर को, नेता पी रय रोज।
मिले महेरी तक नईं, ललके जनता फोज।।
      ***
         -श्यामराव धर्मपुरीकर गंजबासौदा, विदिशा 
*11*
दूद-भात ख्वाबे फिरैं,अम्मा धरे कचुल्ला।
काय करत हैरान तैं,खाले मोरे लल्ला।।
           ***
              -तरुणा खरे,जबलपुर 
*12*
दूद-करूला सब करौ, फूलौ-फलौ अघाव,
भरें कचुल्ला भात के, भर-भर पेटाँ खाव ।
            ***
               -अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
*13*
लीलाधर लीला करें,मैया खों भरमायँ।
लयें कचुल्ला हाँत में,नेंनू रोटी खायँ।।
       ***
          - डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा 
*14*
भरें कचुल्ला गोपियाँ,माखन मिश्री रोज।
ग्वालबाल सँग बैठकें,करें कन्हैया भोज।।
     ***
   - अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी 
*15*
जिननें  बाप  मताइ  की ,मानीं नइॅंयाॅं सीख।
बेइ कचुल्ला लयॅं फिरत,माॅंगें मिलै न भीख।।
         ***
     -आशाराम वर्मा'नादान' पृथ्वीपुर
*16*
बनौ कचुल्ला ओड़छा,जितै करौ विष पान ।
सत्य कीलाज राखबै,दय लाला नें  प्रान ।। 
             ***
        -शोभाराम दाँगी, नदनवारा 
*17*
क्यांउॅं नजर न‌इॅं आ रये,रै‌ गव‌ केवल नाम।
चलौ कचुल्ला देखबे, नगर ओरछा धाम।।
             ***
    -भगवान सिंह लोधी 'अनुरागी', हटा
*18*
भरौ‌ कचुल्ला दूध सें,कैसें वाय उठाउॅंं।
भौतइ तातौ दूध है,छीतइ ही  जरूर जाउॅं।।
    ***
 -रामसेवक पाठक हरिकिंकर", ललितपुर 
---***--
         संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आयोजक - जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
 मोबाइल -9893820965
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समग्र प्रतियोगिता बुंदेली दोहा प्रतियोगिता समग्र संपादक

 -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
 147 *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता नंबर-147* 
बिषय-नईं नँइँ (नहीं)बुंदेली दोहा
 संयोजक- राजीव नामदेव राना लिधौरी'टीकमगढ़ 
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-* 
 *1* 
चले सुदामा माँगवे, नँइँ देने जिय होय । 
बंद करत सब गेट वो ,कृष्ण भजें रत सोय ।।
 *** -शोभाराम दाँगी 'इंदु', नदनवारा 

*2* 
बब्बा नै दव झूँड़कें , तनक सुनानो फठ्ठ । 
नँइँ नँइँ कत कुत्ता भगों , घलो पीठ पै लठ्ठ ।। 
 *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़

 *3* 
हाँ कैकैं फिर नँइँ कयी , बदली जितै जुबान | 
साँसउँ इज्जत जानियौ , ऊकी धूर ‌ समान ||
 *** -सुभाष सिंघई, जतारा 
*4* नाँईं नइँ करिऔ पिया,अँखियन झूलत राम।
 प्रान प्रतिस्ठा देखबे, चलौ अजुध्या धाम।।
 *** -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी (बुड़ेरा)

 *5*
 न्याय नीत छोड़ों नईं,करौ नईं अभमान। 
कर्मन के आधार पै, फल भोगत इंसान।। 
 *** -एस आर सरल टीकमगढ़

 *6* 
नँईं-नँईँ बे कात रय, मान गए जा बात। 
 सबरे मिलकें हम रयें, करे उजास प्रभात।।
 *** - श्यामराव धर्मपुरीकर गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. 

*7* 
नँइँ मानत जो राम खों,उने कबे आराम।
 राम नाम हिय में धरो,बन जें बिगरे काम।। 
 *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 

 *8* 
परदा में नइँ ढक सकत,भैया कौनउँ काम। 
पकरें हैं चोटी इतै ,सबकी राजाराम।। 
 *** -डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा 

*9*
 मन भीतर सें न‌इॅं करत, फिर भी करबै काम।
 बज्जुर देह किसान की,सहै सीत अरु घाम।। 
 *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा 

*10* 
बुरय काम खों नंइं करत , साजे खों तैयार।
 ऐसौ मोरौ काम है , सुन लो लममरदार।।
 *** - वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ 

*11* 
 पार उतरबे राम नें, माँगी तट पै नाव। 
केवट नइँ आनी कहत,पैलाँ चरन धुआव।। 
 *** -रामानंद पाठक, नैगुवा

 *12*
 नइँ-नइँ कै कें, सब जनें, देत ओइ खों वोट। 
घर में आकें रात में, जो दै जावै नोट।।
 *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी

 *13*
 जब लों हाॅं में हाॅं रये,बढे़ प्यार व्यौपार।
 बिगरी कौनउॅं बात पे,करत नॅंई स्वीकार।। 
 *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. ***#######@@@@ 

146वीं बुंदेली दोहा
 बिषय-गुलगुलौ(मुलायम) दिनांक-6-1-2024 
संयोजक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह. 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
 *1*
 गुलगुलात पापा हते , जब बचपन में ऐन । 
लगत गुलगुलो आज लौ , छलक जात हैं नैन ।। 
 *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 

*2* 
बिटिया की ससुरार सैं,पई-पावनें आय। गद्दा पल्ली गुलगुलो, दीनों सास बिछाय।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *3* हतो गुलगुलौ जोबदन,सियाराम सुकमार । भओ वन गमनरामको,झेलत रय सब मार ।। *** -शोभाराम दाँगी , नदनवारा *4* गद्दा भारी गुलगुलो, राखें बिछा पलंग। ओढ़ रजाई गुलगुली, लडे़ं ठंड सें जंग।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *5* होत भरोसा गुलगुलो, बगर तनक में जाय। जोरैं से फिर नइँ जुरत, कित्तउ करौ उपाय।। *** -विद्या चौहान, फरीदाबाद *6* सुनकें लग रव गुलगुलौ,भव मंदर तैयार। गीद रीछ बंदर उतै,कर रय जै जै कार।। **** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *7* बिछो गदेला गुलगुलौ,तौउ नींद न‌इँ आत। हारो थको किसान सो,डीमन में सो जात।। *** - प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़ *8* बिछा बिछौना गुलगुलो,भइया भाभी हेत। खुद पथरा पै बैठकें,पैरौ लक्ष्मन देत।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां *9* खाव गुलगुलौ गुलगुला, भौत मजा आ जाय। जीखों नइयां है पतौ, देखौ आजइ खाय।। *** - वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *10* मन तो हौबे गुलगुलो , नीचट रबै शरीर | प्रभू भजन में मन लगे , रये न कौनउँ पीर || *** -सुभाष ‌सिंघई , जतारा *11* सुरा गुलरियां गुलगुला,कै चीला मिल पाय। पुआ गुलगुलौ होय तौ,मँगा मँगा कें खाय।। *** -डां. देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा *12* राते गव अँधियार में, लगो गुलगुलो मोय। देवा ने बचाय लये, करिया मा रव सोय।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *13* चूले येंगर बैठ कैं , राते करी ब्याइ। हतौ बिछौना गुलगुलौ, सो गय ओड़ रजाइ।। *** -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर, *14* तन हैं जिनके गुलगुले, मन देखों बेकार। गोरन ने हमपे करें, खूबई अत्याचार।। *** -विशाल कड़ा, बडोराघाट *15* धरौ गुलगुलौ साँप सौ, बिल्कुल नइँयाँ ह्याव। यैसे मूसर सें भलाँ, करौ काय खों व्याव।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाडी *16* गद्दा जैसी गुलगुली,है माता की गोद। ममता का भण्डार है,रहे मुदित मन मोद।। *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *17* बिछो बिछौना गुलगुलौ,अँखियन नइँयाँ नींद। जब सें अँखियन में बसी, हरि दर्शन उम्मींद।। *** -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी *18* मिलो बिछौना गुलगुलो,लरका खा पी सोयँ। खात कमाई बाप की, समव सुहानों खोंयँ।। *** - अमर सिंह राय, नौगांव ***** 


145 वीं बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-145
 दिनांक 30.12.2023
 प्रदत्त शब्द-खटका-(चिंता, आशंका,)
 संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 
आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह. 

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-* 
*1* 
परमारथ जीवन जियें,कंठ विराजें राम।
 सद्गुरु कौ सत्संग हो,खटका मिटें तमाम। । 
 *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 

*2*
 राम लखन सीता निगे , बात मातु की मान । दशरथ खों खटका लगो , पट्ट छोड़ दय प्रान ।। **** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *3* समओ भौत खराब है,जीबौ नइं आसान। जीवन बीदौ रात दिन,लॅंय खटका में प्रान।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी *4* खटका देखौं लग रओ , हमको दिन उर रात। धरौ सबइ राने इते, कछू नही ले जात।। *** *विशाल कड़ा, बडोराघाट, टीकमगढ़* *5* बुंदेली दोहा बेदरदी आये नहीं,फिर लग परौ असाड़़। खटका में घुन से परे,भीतर भीतर हाड़।। *** डां. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा *6* खटका तो श्री राम खों,लगो लखन खों वान। संकटमोचक बन गये, पवन पुत्र हनुमान।। *** -रामानन्द पाठक,नैगुवां *7* बिटिया बैठी ब्याव खौ,कछू न सूझै काम। रात दिना खटका लगौ, कैसै निपटें राम।। *** -एस आर 'सरल', टीकमगढ़ *8* नई साल जा आ रई, खटका मन मा रात। जैसी गुजरी साल जा, हुइए का बरसात।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *9* भड़या लबरा पातकी, इनखों खटका रात। ईश भगत परमारथी, जे ना कहूँ डरात ।। *** -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल *10* स्यानी बिटिया जोंन घर, रिन बैरी हों भौत। इन सबसें खटका बड़ो,जी घर हौबै सौत।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *11* टपका कौ खटका बुरवँ , रातै नींद न आत | कौन घरी का गट्ट हो , चिंता में जी रात || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *12* फक्कड़ घुरवा बैंच कैं,खोल किबारे सोय। खटका ऊखौं होत है ,जीनों संपत होय।। **** आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर *13* खटका मिट गव राम कौ, मंदिर बनौ महान। विराज थय बाईस खौं, जनम भूम पै आन।। शोभाराम दांगी, नदनवारा ####***####@@@@###@@@ 144- *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 144* विषय -अनमनें (उदास) दिनांक-23-12-2023 *संयोजक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* जनम- जनम कौ संग है ,सुनलो पिया हमाव। आज अनमनें काय हौ , मन की हमें बताव।। *** -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर *2* खाद- बीज सब खा गये,नाहीं बिजली रात। बैठे हैं सब अनमनें, मारे भूखन जात।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *3* राम लखन अति अनमने,ढूंड़त हैं वन मांह। जड़ चेतन सें पूंछते ,सीता कहुँ न दिखांय।। *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *4* दुख सें जिन हो अनमने, करत रओ तुम काज। देहें साचउँ राम जी, उमदा सुख को राज।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर,गंज बासौदा *5* लछमन खौं शक्ती लगी , भयै अनमनै राम | लाबै बूटी तब मिलौ , बजरंगी खौं काम || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *6* क‌य बैठे हौ अनमने, धरें हात पै हात। कुआ पियासे के लिगाॅं,सुनौ कभ‌उॅं न‌इॅं जात।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *7* धन डेरा दै कें करो, बेटा खों का पाप। सोसत बैठे अनमने,भूँके माई बाप।। *** डां देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा *8* राजतिलक तो भुन्सराँ,भऔ राम वनवास। नर-नारी भय अनमने, भूले भूँख पिआस।। *** -रामानन्द पाठक, नैगुवां *9* फैलो रोग दहेज कौ, चड़ रइ जूड़ी ताप। फिरत अनमने-अनमने,बिटियन के माँ-बाप।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *10* भैया कैसे अनमने,होते काय उदास। भूल चूक सबसें बनत,कीजे मन अहसास।। *** मूरत सिंह यादव, दतिया *11* ग़ुस्सा बैठो नाक पै, मूड़े चढ़ो गुमान। भाव अनमने छोर कें, मौ पै धर मुस्कान।। *** -विद्या चौहान, फरीदाबाद *12* हुये अनमने आप हैं , जब सें सबइ उदास। खुश हुइयौ तुम पांवनें , ऐसी सबखों आश।। *** - वीरेंद्र चंसौरिया टीकमगढ़ *13* भये अनमने भौत शिव, धर कें देखत ध्यान। सती गई सिय रूप में, देखन खों भगवान।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी *14* भय दसरथ जू अनमने,दो वर मेरे पास । भरत खौं देव राज उर, राम खों बँदोवास ।। *** -शोभाराम दाँगी इंदु, नदनवारा ################## 143- 143 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-143 *संयोजक- राजीव नामदेव राना लिधौरी'* आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह. *विषय -लच्छन* दिनांक-16/12-2023. प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* जी घर में बउ लच्छमी, ऊके सब गुन गात। बउ बिटिया लच्छन बिना,कंडी सी उतरात।। *** - एस आर 'सरल',टीकमगढ़ *2* लच्छन सुन कें सीय के, भरे सुनैना नैन। सीता ब्याहे राम खों, बोले नारद बैन।। *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *3* रंग रूप पुजबैं नहीं , लच्छन पूजे जात। लच्छन साजे होंय सो,जगत मानबै बात।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *4* लच्छन वारी लच्छमी,जीकै घर आ जाय । दिन दूनी सम्पत बढै,सबकौ मान बढाय ।। *** - शोभाराम दाँगी, नदनवारा *5* रावन कौरव कंश के, लच्छन हते खराब। जैसें बदबू सें भरे,लासन प्याज शराब।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *6* साजे लच्छन पूत के, पलना में दिख जात। बनकें ध्रुव प्रहलाद बे,जग खाँ गैल बतात।। *** -रामानंद पाठक, नैगुवा *7* लच्छन में है को कहां खुशियन की है रैंक। भारत एक सौ छब्बीस पे, फिनलैंड पैली रैंक।। *** - रामकुमार गुप्ता, हरपालपुर *8* अच्छन-अच्छन के दिखे, लच्छन भौत खराब। लुकैं-लुकैं ताकैं जनी, छुप-छुप पियें शराब।। *** -संजय श्रीवास्तव,मवई(दिल्ली) *9* चालाकीं बेमान की, मूरख कौ बतकाव। लच्छन इनकें देख कें, दूरइ इन सें राव।। *** ~विद्या चौहान, फरीदाबाद *10* लच्छन सीखौ चार ठौ , भलै बुरय कौ ज्ञान | जगजगात जीवन जियौ, सुमरत रवँ भगवान || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *11* नोने लच्छन कै बुरय,बचपन में दिख जात। होनहार विरवान के,होत चीकने पात।। *** -आशा रिछारिया,निबाडी *12* लच्छन सुदरें तौ बने,सबरे बिगरे काम। बिन लच्छन बन पांय ना,जग में सीता राम।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा( टीकमगढ़) *13* शरम करौ लच्छन बिना , जीवन है बेकार मानव जनम सुधार लो , जीवन कौ जौ सार *** - वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *14* पातर चमड़ी चीकनी, चमकदार हों बार। लच्छन जी गउ में दिखैं,समझौ उऐ दुधार।। *** अमर सिंह राय, नौगांव ####₹₹@@@@@###### *142 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-142* #शनिवार #दिनांक ०९.१२.२०२३# #बिषय-गुनताड़ौ/गुनतारौ (उधेड़बुन, उपाय)# *संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'* आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* तर्क करे के गणित में, प्रश्न आज हैं आत। गुंतारे से ही सहज, सबरे हल हो जात।। *** - राम कुमार गुप्ता, हरपालपुर *2* गुनताड़ौ लगवाउ तौ ,हैं कौनउ औतार । वनवासी बन आय जे,तीर न करवै मार ।। *** -शोभाराम दाँगी 'इंदु',नदनवारा *3* गुनतारो कर रइ धना , तापत आगी बार । बहिन लाड़ली के मिलें , रुपया ढाइ हजार ।। *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *4* गुनताड़ौ जो ताड़ ले,कठिन काम हो खेल। ऊंचाई खों जा छुयै,जो विरवा की बेल।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा, टीकमगढ़ *5* जो गुनताडौ हैं करत , हाथ सफलता आय। नइं मानौ तौ देख लो , बढ़िया जेउ उपाय।। *** -वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ *6* गुनताड़ौ है श्याम कौ , कर मनहारिन देह | पैराबै चुरियाँ चलौ , आज राधिका गेह || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *7* कक्का गुनतारौ करें ,है‌ं किसान हैरान। ओदें बादर टर गये,का करनें भगवान।। *** - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *8* गुनताड़ो जेको बने, वोइ जीत है रेस। अब चुनाय भी खत्म भय,आँख गड़ायें देस।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा.म.प्र. *9* ढूंडत ढूंडत पोंच गय, लंका में हनुमान। मन में गुनतारौ करें,का करिये भगवान।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा *10* राज तिलक खों राम के,सज गय‌ महल तमाम। दासी गुनतारौ लगा, वनों विगारौ काम।। *** -रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवां *11* मरगय गुनताडौ लगा, मिलै कौन खों ताज। धरौ ओइके मूँड़ पै, जी कौ नोंनों राज।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निबाड़ी *12* सोच-फिकर में दिन कड़त, गुनताड़े में रात। मोड़ी हो गइ ब्याव खों, ढेला नइयाँ हात। *** - संजय श्रीवास्तव,मवई( दिल्ली) *13* गुनताड़ौ अब ना करौ , जीवन के दिन चार। भजलो सीताराम खौं , जेउ जगत में सार।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर *14* देस-देस के भूप जुर, समझ रये खिलवाड़। टोरें कैसें शिव धनुष,गुनताडौ रय ताड़।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी *15* लगा लगा कैं हड़ गऔ,मैं गुनतारो खूब। गांस गुड़ी कैंसे मिटे,कांस खेत की दूब।। *** -मूरत सिंह यादव, दतिया ***####@@@@#### *141* बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-141 *प्रदत्त शब्द :- बैठका* दिनांक -2-12-2023 संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्रविष्टियां :-* *1*- तखत लगै कुरसीं डरीं, सौफा लगत दबंग | हुक्का रख्खौ बैठका , लोंग लायची संग || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *2* फटिक शिला को बैठका , बैठें लछमन राम । सब बन्दर करवै दते, जोरेँ हाँत प्रनाम ।। *** -प्रमोद मिश्रा ,बल्देवगढ़ *3* उठत भोर से आज तो , मुखिया के घर द्वार। भर गव पूरौ बैठका , कौ जीते कौ हार।। *** -रंजना शर्मा, भोपाल *4* लीप पोत लो बैठका , करलो मन की टाल । काम क्रोध छल द्वेष को ,कचरा देव निकाल।। *** -आशाराम वर्मा " नादान" पृथ्वीपुर *5* बनौं बैठका ओरछा,देव कुँवर हरदौल । भीम बैठका रायसिन,साँसी कयँ कर कौल ।। *** -शोभाराम दाँगी इंदु, नदनवारा *6* चंदन डारौं बैठका,माई शारद तौय। पाॅंव पखारों दै दियौ,चरनौं की रज मौय।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *7* बे पथरन के बैठका, हैं धामों के धाम। बैठत ते वनबास में,जिनपै सीता-राम।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *8* हनमत की चौकी लगी,सजौ राम दरबार। सुर मुनि बैठे बैठका, कर रय जै जै कार।। *** - एस आर सरल,टीकमगढ़ *9* सबइ जुरत तै ढोर लै, सबरै जात चरात। कात बैठका सब जनै, अब तो नईं दिखात।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *10* बनो राम मंदिर अजब, छाई खुशी अपार। राम सिया कौ बैठका, करहै जग उद्धार। । *** -आशा रिछारिया जिला निवाडी *11* फूल-बाग शुचि बैठका, बैठत ते हरदौल। रइयत की सुनकें ब्यथा,न्याय करत ते तौल।। *** -रामानंद पाठक, नैगुवा *12* रिस्ते-नातेदार सब,बैठे पैलउँ आँन। एक बैठका होत है, घर बखरी की साँन।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी ,बड़ामलहरा *13* सज गव उनको बैठका,घर भर भव तैयार। करवै आ रय कछु जनै, मौडा़ को बैहार।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *14* पैल हते जो बैठका, भये चेटका आज। राजा मरे घमंड में, भव कुत्तन कौ राज।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत निवाड़ी *15* जमीदार के बैठका,में माते की खाट। मुखिया आबें बैठबे,तौ फिर देखौ ठाट।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा( टीकमगढ़) *16* उतै हतो जो बैठका , पैलां मोरौ होय‌। रुकौ कछू दिन और तुम , फिर दै दैहें तोय।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया ,टीकमगढ ###@@####@@@#### 140+बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 140 दिनांक- 25/11/2023 *प्रदत्त शब्द - इंद्र* संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* गौतम मुनि के भेष में , करौ हतौ घट काम। छली अहिल्या इंद्र ने, भय जग में बदनाम।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर *2* चूर करौ मद इंद्र को, गिरिधारी गौ ग्वाल। गोर्वधन धारण कियौ, छिगुरी पे गोपाल।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'.,बडागांव झांसी *3* राखत परमानंद सें,सबको राखत मान । इंदर विनको नाम है,करत रहो सम्मान ।। *** -डॉ. रंजना शर्मा, भोपाल *4* इंद्रासन सौ सज रहो,जनमत कौ दरबार। ई चुनाव में इंद्र पद,किये मिलत उपहार। । *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *5* सबइ इंद्र रत मस्त हैं , जब बीदत है गट्ट | आबैं ब्रम्हा विस्नु सँग , महादेव लौ झट्ट || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *6* इंद देवता जगत में ,करें अलग पैचान । श्री किशन से युद्ध में ,हार गयेे भगवान ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *7* कर कें राजा इन्द्र नें, नारी कौ अपमान। राजन की करतूत कौ,दव तो बड़ौ प्रमान।। *** -रामानंद पाठक 'नंद', नैगुआं *8* चेला होवें इन्द्र से, गुरु जो होंय दधीच, होय धरम की थापना, मरैं असुर वृत् नीच । *** -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल *9* इंद्र रुष्ट हैंगे लगत, बरखा तो गइ रूठ। बिना पलेवा बो रये, राने खेतन ठूंठ।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *10* पानी बरसा इंद्र ने,बृज खों कर बेहाल। गोबरधन उगरी उठा,रक्षा की नदलाल।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़# *11* इंदर न‌ई धरा करो, फिर क‌उ आय बहार। फिर सबरे खुशहाल हो, सरस नदी की धार।। *** -सरस कुमार,ग्राम दोह, खरगापुर (टीकमगढ़) *12* पैल घाइँ बरसा करो, इंद्र देव महाराज। धरती प्यासी ना रबै, कुठियन भर हो नाज।। *** -संजय श्रीवास्तव* मवई *13* इंद्र परी हो र‌इॅं धना,भोंहें मनो कमान। बूॅंदा दमकैया दिपे,मुख में खायें पान।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *14* हरि चरनन सिर नाँय कें,देबी देव निहोर। इंद्रदेव रक्षा करौ,बिनय करों करजोर।। *** डां. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा *15* देवराज सब कत मगर, इंद्र न पूजे जात। काम वासना ग्रस्त नर, एइ दशा खों पात।। *** -अमर सिंह राय,नोगांव *16* बैदिक युग के देवता , पिथम इंद्र दिवराज। कश्यप इनके हैं पिता , पतौ चलौ है आज।। *** -वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ *17* बज्र लिये जे हाथ में, करें स्वर्ग पै राज। बिकट लरे, हारत रहे, पाली कैऊ खाज।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *18* देख इंद्र - सी अप्सरा, सबकौ मन ललचाय। मन की गति नैंची सदा, चाय जितै चल जाय।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *19* सतरंगी पट्टी बिछी, धरती सै आकाश। इंद्रधनुष बरसात में, दे बर्षा की आश।। *** -एस. आर. सरल,टीकमगढ़ *20* इदंर दैव महान है,जग में फूंकैं प्रान। जल की इक इक बूंद खों ,नै तरसे इंसान ।। *** -हंसा श्रीवास्तव हंसा, भोपाल 139-बुंदेली-दोहा प्रतियोगिता - 139 शनिवार, दिनांक- 18/11/2023 संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ बिषय- ' दाँद ' *1* प्रतियोगी दोहा होबै दाॅंद चुनाव में,जाड़ो ऊॅंग हिरात। नेता कूलें खाट पै,इक -इक गुरा पिरात।। *** -भगवान सिंह लोधी,हटा *2* दाँद मची भारी इतै, काँसें आव चुनाव। को जीतै, को हारबै, साँसी मोय बताव।। *** -प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ *3* जे कोऊ करजा करे, सैबू करत दाँद। परवै ओखाँ नैं कबउँ, महाजनी जा माँद।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *4* उछबड़ कुरता धाँद कें , धर लव मनको राँद । अब चुनाव के माँद में , नेतन खाँ भइ दाँद ।। *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *5* दाँद मचा रय कछु जनै , अच्छौ भयौ चुनाव | वोट न मौरे कयँ दयै , खूब पकर रय ताव || *** सुभाष सिंघई , जतारा *6* वाह कह दाँद दे रहे, जनी उड़ात मखोल । ताली जैसे ठुकत है,बजा देत हैं ढोल।। *** डॉ. रंजना शर्मा, भोपाल *7* बंद कुठरिया में लगै,दाँद सई नइँ जात । बस में हो च टिरेन में ,गरमी सैं उकतात ।। *** शोभाराम दाँगी, नदनवारा *8* जाकें जनता के घरै, दाँद नदी है झूँट। की कौ बैठै तीन खों, कौन करोंटा ऊँट।। *** अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *9* दाँद परी है हूंक कें,पीठ कुरोरू ऐन। खुजा खुजा कें हार गय,पल भर मिलो न चैन।। *** आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *10* राज योग की रेख खौं , कोउ बाॅंच नइॅं पात। दाॅंद करे में का धरौ , है किसमत की बात।। *** आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *11* दाॅंद मचा कें धर दई, ऐसो चढौ चुनाव। दल- दल अपने पैंतरा,खूब लगाये दांव।। *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *12* बुंदेली दोहा डर गय बोट चुनाव के,बैठे हिम्मत बाँद। हार जीत की तौ लगै, भीतर सबखों दाँद।। *** डां देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा *13* सत्ता की जिनखों हती,अबलौ बेजाँ दाँद। उनें हार कें ढूँड़नें, लुकबे कौनउँ माँद।। *** रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवा *14* तपी दुफैरी गैल में,निगे ततूरी फांद। जैसइ घर भीतर घुसे,खूबइ मचकी दांद।। *** -प्रभा विश्वकर्मा 'शील', जबलपुर *15* होबै बदरा घाम चय, होबै बेजाँ दाँद। लयें कुदरिया काड़तइ,कृषक खेत के काँद।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *16* भौत दिना तक आँसती,जा चुनाव की दाँद। सालन चलती रंजसै, कैउ कुकाउत चाँद।। *** -एस आर सरल ,टीकमगढ़ ############# 138 138- बुंदेली दोहा प्रतियोगी -138 विषय-लच्छमी दिनांक-11/11/2023. आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' *********************** प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* बड़े विरद कीं लच्छमी,जानत है सब कोय। जे किरपा जी पै करें, बौ कुबेर सम होय।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द' नेंगुवाँ *2* रुकत लच्छमी ओइ कें,माता जौन बनात। पत्नी जौ समझत उनै,लात मार कें जात।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *3* हमने कइती लच्छमी , बिन जीवन बीरान। मेंनत कर लो आज सें , जैसी करत किसान।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *4* कातिक कारी रात खों, जगमग दिया जलाव। लच्छमी जून कौ आगमन,धन संसत सब पाव।। *** -आशा रिछारिया,निबाडी *5* बउँ बिटियाँ सब लच्छमी , घर की हैं कैलात || इनकौ रखतइ मान जौ , घी चुपरी बौ खात || *** - सुभाष सिंघई, जतारा *6* दिया धरे घर दूआंय में,खेतन हार जगांय। लच्छमी और गणेश कों, पूजें देव मनांय।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी *7* जौन घरै हो लच्छमी ,चलादार बन जात । ऐंठत सबपै सैंत में, सबइ ऐंड़ कैं रात ।। *** -शोभारामदाँगी 'इंदु', नदनवारा *8* जा गरीब की झोपड़ी, देखे तुमरी बाट। मातु लच्छमी हो कृपा, बन जाए सब ठाट।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *9* लक्ष्मी संग गनेश के, रखियौ घर में पाँव। यश- वैभव माँ दै दियौ,रखियौ अपनी छाँव।। *** -प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ *10* घर आँगन उजरे डरे,घर घर मनें दिबाइ। उल्लू खौ वाहन बना,फिरें लच्छमी माइ।। *** - एस आर सरल, टीकमगढ़ *11* इतनों दइऔ लच्छमी,रइऔ सदाँ सहाय। द्वारें आऔ मंगता, खाली हाँत न जाय।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी (बुड़ेरा) *12* सुर सनमति होबै जितै , उतइॅं लच्छमी राय । कपटी कामी के घरै , कभउॅं न ढूॅंकन जाय।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *13* धन की देवी लच्छमी,सब पै होव कृपाल। ई दिवाइ खों सब जनें, होवें मालामाल।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी #######@@@@######## 137 *137* बुन्देली दोहा प्रतियोगिता-137 *प्रदत्त शब्द=नब्दा(रौब गाँठना)* दिनांक-4-11-2023 संयोजक-राजीव नामदेव मराना लिधौरी' आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* निज भैया बैरी भऔ,रखौ न रिश्तौ अंश। मार-मार भानेज सब, नब्दा कसबै कंश।। *** - एस आर सरल, टीकमगढ़ *2* नब्दा गाँठें सैंत कौ, नइँयाँ बसकौ काम । मिर्ची लगवैं आँख में,जोर न पाव छिदाम ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *3* रामदूत समझा रहे,रावन के दरवार। है बिगार नब्दा कसें,शरन गए में सार।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *4* नब्दा झाडें दीन पे,करें न कौनउ काम। नेतन की ई सोच सें,है निराश आवाम।। *** -आशा रिछारिया,जिला निवाड़ी *5* मालिक और मजूर में ,अलगइ फरक दिखात। नब्दा पेलत है जबर , लचर गंम्म खा जात ।। *** -आशाराम वर्मा "नादान",पृथ्वीपुरी *6* कोरो वे नब्दा धरें, बनकें फिरें दबंग। उसईं अपई तान कें, देत चुनावी रंग।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्त इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *7* नब्दा पेलौ दाउ नें, करौ भौत आतंक। माटी में वैभव मिलौ, लगौ काल कौ डंक।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *8* सास बहू के बीच में,है पैरन की जंग। रोज सास नब्दा कसै,करै बहू खों तंग।। *** -डॉ देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा *9* नब्दा की आदत बुरी , जलदी लेव सुधार। ननतर हुइयै बेज्जती ,उर बिगरै ब्यौहार।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *10* नार दलाकें नार सी, नब्दा कसबै रोज। साजी सुनें न एक बा, धरो मिटाकें खोज।। *** --प्रदीप खरे, टीकमगढ़ *11* काम करै नब्दा सहै, भूँकन मरै गरीब। ऊ समाज कौ मानिऔ,निश्चित पतन करीब।। **** -गोकुल प्रसाद यादव ,नन्हींटेहरी *12* हलकन पै नब्दा कसें, बड़े शरम नइँ खात। देख सरी विरवाइ-सी,लातन कुचरत जात।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां *13* नब्दा कस रव रावना, कात रए हनुमान। सरनागत हो राम की, बृथाँ काय हैरान।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *14* जब-जब नब्दा पैलतइ , आकै पाकिस्तान | हरदम खातइ लात है , बनतइ बेईमान || **** -सुभाष सिंघई , जतारा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 136- 136- बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-136 जय बुंदेली साहित्य समूह, टीकमगढ़ दिनांक -28/10/2023. बिषय- न्यौरे. *प्राप्त प्रविष्टियां :-* *1* न्योरे न्योरे कड गई,उरबतियन की छांय। बैठो रो में घरी भर,उनकी आश लगांय ।। *** -मुन्ना सिंह तोमर,भोपाल *2* बज्जुर सी छाती रई, ज्वानी में गर्राय। न्यौरे- न्यौरे अब चलें,जब सें गै बुढियाय।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *3* न्योरे न्योरे ऊब गय , कैसें हुइये काम। शेष बचो बौ बाद में , पहले अब आराम।। *** -वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ *4* न्योरे-न्योरे होत नइ, दाऊ चोरी ऊँट। कैंसे काटो रूख जो, बच नें पाओ ठूँट।। *** -श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *5* न्योरे चोरी ऊँट की , कभउँ कितउँ ना होत | जीकौ पेट पिरात है , बौ डिड़या कै रोत || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *6* न्योरे -न्योरे जो करें, बड़े बड़ों सें बात। जग में वे हनुमान से,सबके दिल में रात।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा *7* हनुमान श्री राम खों ,न्योरें करें प्रणाम । आन विराजो ह्रिदय में , राघव सीता राम ।। *** -शोभारामदाँगी, नदनवारा *8* न्योरे- न्योरे ढूँढ़ रय,वे जीवन कौ राज। कैसें कड़ गइ जिंदगी, आव वुढ़ापौ आज। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *9* विनत लखन खों थामबे, न्योरे जइँ सें राम। वरमाला सिय डार दइ,हौन लगे शुभ काम।। *** -रामानंद पाठक, नैगुवां *10* पैलां के दोरे हते,न्योरे ही कड़ पांय। दोरे में जो जो कड़ें,न्योरें मूंड़ नबांय।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा *11* न्यौरे घुसेँ अटाइ में , भुसा भरो गय काँप । मूँतयाव जब देख लव , फूँसत करिया साँप ।। *** -प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़ *12* बड़ी बात तौ नइँ छिपत,जांन जात सब कोय। न्योरें न्योरें ऊँट की,चोरी कैसें होय।। *** - डां. देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा *13* नेता जू न्योरे फिरें, रय चरनन में लोट। कत जनता भगवान है,माँगै वोट सपोट।। *** एस आर सरल,टीकमगढ़ *14* सीमा पै ठाॅंड़े पिया ,अपनों सीना तान । न्योरे-न्योरे खेत में , धना नींद रइॅं धान।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *15* न्योरें कुबरी फिर रई,लख शत्रुघन इठलात। गिरतन टूटे दांत सब,हुमक घली जब लात।। *** -सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *16* घूंटन लों पानी भरो,खेतन तोउ किसान। न्योरें न्योरें नींद रव, घरवारी सॅंग धान।। *** -आशा रिछारिया,निवाड़ी *17* खुशी रहत ते जे झुके, न्योरे ते ना छोट। दूब नरम नीची रहै, हरी -भरी बिन खोट।। **** -रामलाल द्विवेदी, चित्रकूट @@@@@@@@@@@@@ 135- 135 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता 135 प्रदत्त शब्द -दच्च दिनांक-20-10-2023 संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* बड़े बाप के पूत हों , होंय अकल के गच्च । मान पान धन की उनें, लगत हमेशा दच्च।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *2* दच्च किसानी में लगी,पर गव सूका काल। बिटिया बैठी व्याव खों,कठन परी जा साल ।। *** -सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *3* लगने दच्च चुनाव में , फिरी डारने वोट । सरपंची में लय हते ,तीन हरीरे नोट ।। **** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *4* जीवन रूपी नाव में,लगत अनेकों दच्च। राम भजन सें पार कर,सीख बोलबौ सच्च।। *** -भगवान सिंह लोधी,हटा *5* दे रये दच्च दुआंय पे, दावत को लंय दांव। राजनीति की बात कै, जीतें चात चुनाव।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव, झांसी *6* लबरा लम्पट लालची , चमचा आबै दोर | दच्च इनइँ से है लगत, चिपकै संगै चोर || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *7* बे मौसम बरसात नें, दै दइ दच्च बिलात। बिटिया बैठी ब्याव खाँ,टेरें साव चिमात।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवा *8* जिनखाँ दै-दै कें मदद,हमनें करो सपच्च। बे चैंथी में काट कें, दै गय कर्री दच्च।। **** -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी *9* लगै दच्च पै दच्च जो ,हो भौत‌ई नुकसान । अपनें मन में जान लो,खुश न‌इयां भगवान ।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा *10* मेघनाद को सुन मरन, खाकें रै गव गच्च। कर बिलाप रावन कहत, कैसें सै लउँ दच्च।। *** -श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *11* डुकरो बैठीं पौर में ,मूड़ पकर कैं रौयँ । लाखन की जा दच्च परी, कैसें सूदे हौयँ ।। *** -शोभाराम दाँगी,नदनवारा *12* दच्च कछू ऐसी लगी,उठ गओ है विश्वास। अपने अपने ना रहे,गैरन सें का आस।। *** -आशा रिछारिया (निवाड़ी) *13* हीरा सी नोंनी घरी,जब सोंनें की आइ। एक दच्च यैसी लगी,रनबन भई कमाइ।। *** - डां देवदत्त द्विवेदी ,बडामलेहरा *14* रो रय बे हैं काल सें , दूनौ भव नुकसान। ऐसी दच्च तौ कोउ खों , न लगबै भगवान।। **** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *15* पंगत खा लइ हूँक कें, भई पेट में गच्च। पइसा लगे इलाज में, कर्री लग गइ दच्च।। **** अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी ########@@@@@###### 134- 134 बुन्देली दोहा प्रतियोगी -134 संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ दिनांक-14-10.2023 प्रदत्त शब्द-टूॅंका (टुकड़ा) प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* टूंका सती शरीर के , करें सुदर्शन आन । शक्तिपीठ पुजने लगें , नवदुर्गा पैचान ।। *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *2* जिननें छप्पन भोज खों,धर दव कभ‌उॅं कनांय। बिपत परी जी दिन गरें, सो अब टूॅंका खांय।। *** - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *3* टूॅंका से बांटत फिरत,नेता जी दो काम। लरका पावे नोकरी,होय तुमारो नाम।। *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *4* जी हैं हम कैसें भला, मोखां देव बताय। दिल को टूॅंका कर चली, गोरी जो मुस्काय।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *5* सुखिया दुखिया है जगत, चका लगै दिन-रात | टूँका तिसना लोभ कै ,सबखौं देतइ घात || *** -सुभाष सिंघई, टीकमगढ़ *6* टूँका कइये स्वर्ग कौ, पावन भारत देश। जीके कण-कण में बसे,ब्रम्मा बिस्नु महेश।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *7* हूँका में चूका परै,कूका दै दै रोय। स्वारत चटकै काँच सौ,टूँका टूँका होय।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी,बडा मलेहरा *8* टूंका टूंका टूटकें,माटी रज बन जाय। गुरु चरनन सें धन्य हों,पद रज पावन पाय।। *** #जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़ *9* कछु टूँका जे फेंक दय, भरत न इनसें पेट। जंगल को जो सिंग तो, रोज करत आखेट।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *10* टूँका हो गय देश के ,मची लराई आज । ऐक जनों गल्ती करै ,भोगत सबइ समाज ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *11* मन मौरे मुइयाँ बसी, मोह लियौ गुलनार। टूँका कर दिल के दयै, छाती चली कटार।। *** -प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ *12* जिदना फसल किसान की, ओरे परें नसात। टूॅंका -टूॅंका ओइ दिन , छाती के हो जात ।। *** आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *13* साँचौ-सूदौ आदमी, फिर रव धूरा खात। टूँका-टूँका जिंदगी, खुती-खुती हालात।। *** -संजय श्रीवास्तव* मवई/दिल्ली *14* टूँका नइयाँ भूम कौ, सगया मेले द्वार। उल्टे सूदे चोटिया, ठोकत लम्मरदार।। *** -एस आर सरल, टीकमगढ़ *15* बड़े भये ज्यों-ज्यों सभी, घटत गई त्यों प्रीत । टूँका-टूँका आँगना, अलग-अलग की रीत ।। *** -सन्तोष कुमार 'माधव',कबरई, महोबा (उ.प्र.) *16* रोटी के टूंका बिना,भरे कौंन के पेट। जीबौ दुस्तर अन्न बिन,सूखो लेत समेट।। *** -मूरत सिंह यादव,लमायचा ( दतिया) *17* टूँका खा कें राम के, बसें ओरछा धाम। चरण शरण रें राम की, दुनिया से का काम।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *18* टूंका टूंका हो गये , दिल के अपने चार। बिना बिचारे जो करे , एसइ हुईये यार।। **** -वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ #######@@@@@###### 133- 133 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता नंबर =१३३ संयोजक- राजीव नामदेव राना लिधौरी आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ बिषय--ठगिया प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* ठगिया बन्ना होय तौ ,ठगौ राम कौ नाव । और ठगे में का धरौ ,जीवन मुक्ती पाव ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *2* ठगिया बनकें का करौ , हो जैहौ बदनाम। बात मान लो सेठ जी , कैरय लोग तमाम।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ *3* ठगिया बातन आयकें, भूल न करियौ कोय। मन लोभी ठगहीं सुनौ, लुटत सबहिं फिर रोय।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल'टीकमगढ़ *4* ठगिया सबरो है जगत,भरमाउत रत नित्त। राम नाम सुमिरन करो,निरमल हो जै चित्त ।। *** -आशा रिछारिया,निवाड़ी *5* माया के भोंजार सैं , कोउ न पाबै पार। ठगिया भी ठग जात जब, देत मोहनीं डार।। *** -आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *6* ठगिया हैं बहुरूपिया, ठगैं बदलकैं रूप। सूरज बनकैं बैंचदैं, भरी दुपरिया धूप।। *** -संजय श्रीवास्तव* मवई😊 मुंबई *7* खून पसीना डारकें, करी कमाई जोन। ठगिया करकें लै ग‌ओ,एक लाबरौ फोन।। *** -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *** *8* ठगिया ठेंकर सें ठगें, कर- कर कैउ उपाय। सोने खों पीतर कयें,पीतर स्वर्ण बताय।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *9* नींद उड़ी हय रात की, उड़ गौ दिन को चैन। धक-धक हौत करेजवा, ठगिया थे बे नैन।। *** -गीता देवी, औरैया *10* ठगिया नेता देश में , टाँड़ी से उतरात | चूहन जैसी हरकतै , बजट कुतर कै खात || *** -सुभाष सिंघई ,जतारा *11* ठगिया इस संसार में भांति भांति के लोग । बिना ठगे ही भोगिये इस पृथ्वी के भोग।। *** -शीलचंद जैन, टीकमगढ़ *12* ठगिया की बगिया बड़ी,जी के हम हैं फूल। ठगिया मन कौ मीत हो,लूं बायन में झूल।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा (टीकमगढ़) *13* सूदे सरल किसान सब,मेंनत करकें खायँ। ठगिया बेपारी तऊ,पेटै छुरी चलायँ।। *** - डां देवदत्त द्विवेदी, बडामलेहरा *14* चुपर-चुपर बातें करें,लव छोड़ों बतकाव। चौतरफा आँखें चला,ठगिया देखत दाव।। *** एस आर सरल ,टीकमगढ़ *15* ठगिया भर दुपरै ठगै,डार मोहनी जाल। बचा न पाबै वार सें,कौनउँ बख्तर ढाल।। *** गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी *16* मन बैरी ठगिया बनों,कैंसे बांधूं धीर। गांव पुरा के लखैं सब,भजो नहीं रघुवीर।। *** -मूरत सिंह यादव,ग्राम लमायचा( दतिया) *17* ठगिया जो संसार सब, ठगत रहत दिन रैन। माया में मन भूलकैं, मिलत न ओखों चैन।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *18* माया ठगनी ठग रही,दिखा रही प्रभाव। कइयक ठगिया ठग गये,कई लगा रय दाव।। *** - सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *19* मोहन हैं ठगिया बड़े,बंसी सें ठग लेत। राधा ई कौ उरानों, मोहन खों नइँ देत।। *** अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी #### 132- 132 #बुन्देली दोहा प्रतियोगिता-१३२# #शनिवार#दिनांक३०.०९.२०२३# संयोजक- राजीव नामदेव "राना लिधौरी" आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्रदत्त बिषय-कागौर* *1* पुरखन कौ तरपन करत , भोग बनत कागौर | श्रद्धा से इस लोक की , श्राद्ध जात उस ठौर || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *2* गौर करौ कागौर पै,दो पुरखन खों ठौर। पुरखा भोग लगाय लें,फिर कौवन कौ कौर।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा *3* पितरन कौ न्यौतौ करौ, छत पर धर कागौर। ध्यान धरौ पूजौ उनें, वे अपने सिरमौर।। *** - संजय श्रीवास्तव* मवई 😊दिल्ली *4* कभ‌उॅं मतारी बाप खों,मिलो न घर में ठौर। मरें सपर रये गॅंग में ,उर डारें कागौर।। -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी", हटा *5* जियत बाप खौं नहिं दियौ, जीनें एकउ कौर। करय दिनन में दै रहे, लगा लगा कागौर।। *** -प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़ *6* पानी दै कागौर से,बता रये आराध । जियत जियत पूंछी नई,कर रय मरें सराध।। *** -सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *7* जियत मताई-बाप की, करौ खुशामद यैंन। बिन तेरइंँ कागौर के,मिलै सबइ सुख चैंन।। *** -गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी *8* कुवांर के पितृपक्ष में पितरों का करते तर्पण। खीर पूड़ी का कागरो काग को करते अर्पण।। *** -शील चंद जैन टीकमगढ़ *9* कौअन खों कागौर सें , पुरखन खुशी अपार। इनइं दिनन बे आत हैं , अपने ही घर द्वार।। *** -वीरेन्द चंसौरिया टीकमगढ़ *10* करय दिनन में प्रेम सें, काड़त हैं कागौर। जिंदा में नइँ देत हैं, खावे जूँठौ कौर।। *** -अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *11* जी दिन सें पुरखा लगे, रोज कड़त कागौर। माल छानरय हूंक कें , हतो न कोंन‌उँ ठौर।। *** प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष ,टीकमगढ़ *12* पुरखा न्योत बुलाइये, श्रद्धा सें कर जोर। सोलह दिन इनके नियत,काड़त रव कागोर।। *** -आशा रिछारिया, निवाड़ी *13* पंचायत कउआ करें, देख आज को दौर। पुरखन को अपमान जां, नइं खानें कागौर।। *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *14* पितर-पूजकैं नित अबे, बिनय करौं कर-जौर। पानी दैंकें पक्ष में, रोज धरौं कागौर।। - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *15* माइ बाप खों दैय जो,जिन्दा में दो कौर। पुरखा ऊ के प्रेम सें,सब खेंहैं कागौर।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा *16* मौराई छठ खौं सिरत , नदी ताल में मौर। कौआ कूकर गाय खौं , करय दिनन कागौर।। *** आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुरी *17* श्राद्ध करौ तर्पन करौ, काड़ देव कागौर। पितरों सें हो लो उरिन,मिलै सुरग में ठौर।। *** -रामानन्द पाठक 'नन्द' नेंगुवाँ ###########@@@@@###### 131- 131*बुंदेली दोहा प्रतियोगिता- 131* संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ प्रदत्त विषय - ठाॅंड़े-बैठे प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* हीरा से क्वारे हते, हतो खूब आराम। ठाड़े बैठे बिद गये, परै राम सैं काम।। *** *प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *2* बनें बिजूके जो फिरें , घर-घर मूसर चंद। ठाॅंड़े-बैठे की उनें , बीद जात है दंद ।। *** -आशाराम वर्मा 'नादान',पृथ्वीपुरी *3* ठाॅड़े-बेठे का करौ ,समय बड़ौ अनमोल । बिना काम के बे बजह,इतै-उतै नइ ड़ोल ।। *** शोभाराम दाँगी 'इंदु',नदनवारा *4* कछू काम दिखतइ नईं,चाउत होय विकास। ढांडे बैठे गाँव में,दिन-दिन खेलत तास।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *5* वारे के न्यारे करै,बहू शहर की ऐन। ठाड़ें बैठें आ ग‌ई,अपनें मूड़ें ठेंन।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा( टीकमगढ़) *6* चन्दा भादों चौथ कौ,लख कें नंदकिशोर। ठाँड़े-बैठे बन गये, मणी स्यमन्तक चोर।। *** -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी *7* ठांडे़ बैठें मंथरा,भर आई ती कान। कैकइ जा जसरथ मिलीं,मांग लये वरदान।। *** - सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *8* ठाॅंड़ें -बैठें रीछ के,पकरे दोई पाॅंव। खाई गैरी नें मिलै,और दूर है गाॅंव।। *** भगवान सिंह लोधी"अनुरागी",हटा, दमोह *9* ठाॅंड़ें बैठें विद गयी,हती पराइ लराइ। चक्कर काटें कचहरी, प्रानन पे बन आइ।। -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *10* भिनकत भइ ऐजक बिदत , ठाँड़े़ बैठे आन | जब लबरा से कै धरौ , साँसी दइयौ ब्यान || *** -सुभाष सिंघई, जतारा *11* बचपन बीतो गांव में ,उर वरगद की छांव। ठांडे बैठे का करों, खोज शहर में ठाव।। *** -शीलचंद जैन, टीकमगढ़ *12* नीम अथाई गइ कितै, कितै गऔ चौपाल। गाँवन में पूछत हते, ठाँड़े - बैठे हाल।। *** -विद्या चौहान, फरीदाबाद *13* निंदा चुगली औ नसा,बातन की बकवाद। ठाँड़ें बैठें तौ बनें,इनसें बड़े बिबाद।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा *14* घरवारी नै मूंढ़ में , लठ्ठ मसक दव काल । जितै घलो सो सूज गइ , ठाँड़ें बैठें खाल ।। ** -प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़ *15* ठाँढ़े-बैठें कब भओ, भैया ओरे काम। तब मिलबै रोटी हमें, घिस जाबै जब चाम।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *16* ठाड़े-बैठे बीत गे, उम्मर के पन चार । उन्नत का सोचो नहीं, सोये पाँव पसार ।। *** -सन्तोष कुमार 'माधव',कबरई,महोबा (उ.प्र.) *17* ठाँड़े- बैठे खुद्दरव, लेबो होत न ठीक। बात बड़न की मानियो, जो हों शुद्ध सटीक।। *** -अमर सिंह राय नौगांव *18* ठाँड़े-बैठें ना बनें, जग में कौनउ काम। मैनत की दम पै सदा,मिलत सुखद परिनाम।। *** -संजय श्रीवास्तव, मवई/दिल्ली *19* ठlड़े बैठे फस गये , भइया सोहन लाल। सुधर जाव मौका अबै , हमने कइती काल।। *** -वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ ***#######@@@@@@@#### 130-बुंदेली दोहा प्रतियोगिता क्रमांक- 130 विषय - टिया संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ *प्राप्त प्रविष्ठियां :-* *1* टिया न टारौ साँवरें , आऔ जमुना तीर | राधा भुँज रइ बूँट-सी , झिरत नैन से पीर || *** -सुभाष सिंघई , टीकमगढ़ *2* कतकी कौ करकें टिया , खाद बीज लै आय। किरपा करियौ राम जू , सब करजा चुक जाय।। *** -आशाराम राम वर्मा " नादान " पृथ्वीपुरी *3* टिया करौ सो आ ग‌ओ,लिपट तिरंगा गात। लाल शेरनी के तनक,ओ फौजी कर बात।। *** - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" *4* टिया धरौ नवरात्र को, समय जान अनुकूल। पिया लिवाबै आयगें,रई खुशी सें फूल।। *** रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र. *5* गुरु बच्चन खों दै टिया ,सबक करो तुम याद । तब लौ कोऊ नै सुने ,का तुम्हरी फरियाद।। *** -हंसा श्रीवास्तव हंसा, भोपाल *6* विदा ब्याव सरकार को , टिया साव को होत । कातक चैत किसान खाँ , कभउँ मिली ना ओत ।। *** -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ *7* टिया धरौ हर काम कौ,जीवन में का होय । हानि लाभ जीवन मरन, निश्चय तिथिया तोय ।। *** -शोभाराम दाँगी ,नदनवारा *8* टिरका रय बे तौ टिया,लगी हिया में आग। मन कौ खटका खात है,नसा न जाबै राग।। *** -जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा(टीकमगढ़) *9* टिया दएँ भय दिन मुलक, करवैं नें बो काम । कासौं कउँ अब को सुने, पैलँइ लै लय दाम।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा *10* पछताए का होत है, गए टिया सें चूक। मोय न आने लौट कें, कात समय दो टूक।। *** ~विद्या चौहान, फरीदाबाद *11* टिया पिया दे गए सखी,आवन की दिल खोल। कब आहे द्वारे तकत, आह पल अनमोल।। *** - हीरालाल विश्वकर्मा, बिजावर *12* दैकें टिया न टारियो, चाहे जाबे जान। बिना रीढ़ को आदमी, कऊँ न पाबे मान।। *** -संजय श्रीवास्तव* मवई,दिल्ली *13* चूको करजा कौ टिया, साव करत हैरान। मौसम कर रव जादती,है बदनाम किसान।। *** -गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी *14* अर्जुन ने धर दव टिया, जयद्रथ का है अंत। सूर्यास्त न हो सके,चेतन हैं भगवंत।। *** -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी *15* देख -देख आँखै जरीं,भूक लगत ना प्यास। टिया न लछमन दै गये, लगी उर्मिलै आस।। *** -एस आर सरल, टीकमगढ़ *16* टिया सुरत कर गोपियां, रोवत होत अधीर। राह तकत नैना थके, प्रान जात बेपीर!। *** -रामलाल द्विवेदी, चित्रकूट *17* लेतन में नौने लगे, देतन में अब रोत। टिया रोजकें धरत जे, लगत एक दिन होत।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *18* टिया टिया बहु देत वे,करजा चुका न पात। सब संपत्ति खोई कुमग,अब रोबत दिन रात।। *** -परम लाल तिवारी,खजुराहो *19* टिया न कौनऊँ मौत की,कबै कौन विध आय। कोऊ कछु नइँ कै सकै,की की कब आ जाय।। *** -अमर सिंह राय, नौगांव #####@@###### 129- बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-129 दिनांक-9-9-2023 प्रदत्त विषय- कूका प्राप्त प्रविष्ठियां :- *1* मौत-बड़ी सुंदर जियै, टेरै कूका देत। जीवन तक तज देत वौ, कुर्रू दै भग लेत।। *** -बाबूलाल द्विवेदी, छिल्ला, ललितपुर *2* आपुस दूरी देख कें, कूका देत बुलाँय। भनक परै जो कान में,ऐंगर तुरतइँ आंँय।। *** -रामानंद पाठक, नैगुवां *3* लुक छिप कूका दे रये,सुनो नंद के लाल । राधा तुमको ढूंढती ,बाग बगीचा ताल।। *** -हंसा श्रीवास्तव हंसा, भोपाल *4* सबरो जीवन कड़ गओ,लीनो ना हरि नाम। कूका दै रव मरगटा,अबइ सुमर लो राम।। *** -आशा रिछारिया, निवाड़ी *5* कूका सूका दे रऔ, हतौ खेत चउं ओर। जन्मोत्सव घनश्याम को,बरसौ घन घनघोर।। *** -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र. *6* कूका दैकें कृष्ण ने, मटकी डारी फोर। सब सखियन नें घेर कें,पकरे माखन चोर ।। *** -सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ *7* दुका-दुकौ हम खेलवै ,कूका देवै ऐन । दुके रात्ते कौनियां ,मस्कउँ करवै सैंन ।। *** -शोभाराम दाँगी, नदनवारा *8* भड़या पिड़ गय गाँव में, चकचइया है रात । कुकयाटों घेरउँ मचौ, कूका दें कुकयात।। *** -एस आर सरल, टीकमगढ़ *9* दै कें कूका कान में, साँमें ठाँड़ी आन। शकल देख घरबाइ की, गरें अटक गइ जान।। *** - अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी *10* कौन कितै कैसौ करत , कौन कितै कब जात | कक्कौ कूका दै रयीं , कक्का काँख कुकात || *** -सुभाष सिंघई , जतारा *11* कूका मारा कृष्ण ने l सुदामा को बुलाय ll माखन लेकर आ गये l दोनो छककर खायll *** -अंचल खरया, टीकमगढ़ 12* नेता कूका दै रये,जब अटको है काम। पैंल सुनी नै बाप की,अब कत सीताराम।। *** भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा, दमोह *13* काम करौ कल्यान के, रहौ खूब खुशहाल। सबखों जानें एक दिन, कूका दै जब काल।। *** -संजय श्रीवास्तव,मवई,😊दिल्ली *14* लुकाछिपी-कूका-छुबा,कंचा-गुली-गुलेल। आँखन में झूलत अबै,जे बचपन के खेल।। *** गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी *15* कूका दे- दे जात हैं, मोड़ा-मोड़ी आज। कुंभकरन की नींद में, सो रव सकल समाज।। *** - श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र. *16* कूका देत उमर कढ़ी, नाहक भटके आज। करम बुरय तजियौ सभी, नौने करियौ काज।। *** -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ *17* ज्वार खेतन में खडी,दाऊ खडे मचान। कूका से बातें करत,चिडियों पे है ध्यान।। *** -सुभाष बाळकृष्ण सप्रे, भोपाल (प्रवास-पुणे) *18* कूका देबें रोज के,धर गदिया पै प्रान। खेत रखायँ किसान औ,देस रखायँ जबान।। *** -डां देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा *19* कूका दै रव मरघटा, तऊ समझ नै आय। नइँ लिहाज तनकउ उऐ, राह चलत बुलयाय।। *** - अमर सिंह राय, नौगांव ##########@@@@#######

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