फिरतइ जैसे गदा हिराने (बुंदेली अहाना छंद संकलन) ई-बुक
संपादक-
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
की 134वी ई-बुक प्रस्तुति
(बुंदेली अहाना छंद संकलन) ई-बुक
संपादक-
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़ (मप्र)
💐😊 फिरतइ जैसे गदा हिराने
(बुंदेली अहाना छंद संकलन) ई-बुक 💐
संपादन-
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
की 134वीं प्रस्तुति
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 14-4-2024
टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
मोबाइल-9893520965
🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊
अनुक्रमणिका-
अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)
01-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़
02-राजीव नामदेव'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)(म.प्र.)
03- आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुरी
04-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
05-वी. एस. खरे,सरसेर, नौगांव
06-एस आर सरल,टीकमगढ़
07-अमर सिंह राय ,नौगांव
08-कल्याण दास साहू 'पोषक', पृथ्वीपुर
09-अंजनी कुमार चतुर्वेदी 'श्रीकांत',निवाड़ी
10-डॉ देवदत्त द्विवेदी 'सरस,बड़ामलहरा
11-गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी,सुमेरा
12- प्रमोद मिश्रा ,बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश
13-रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां
🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
संपादकीय
साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे।
हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के एडमिन के रुप मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) एवं संरक्षक द्वय शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और छंदों के ज्ञाता छंदाचार्य श्री सुभाष सिंघई जी है।
इस बार हमने यह ई बुक अहाना छंद पर केन्द्रित ही रखी है। ताकि बुंदेली लिखने और पढ़ने वालों को भी इस नये छंद का पता चले और वे भी कुछ नया लिखने की कोशिश करें।
हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।
हमारे इस छोटे से प्रयास से आज एक नया इतिहास रचा है यह ई-बुक 'फिरतइ जैसे गदा हिराने (बुंदेली अहाना छंद संकलन) ( 134वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
यह पटल के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 134 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 87 देश के लगभग 159000 से अधिक पाठक अब तक पढ़ चुके हैं।
आज हम ई-बुक की श्रृंखला में हमारे पटल जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह 134वीं ई-बुक 'फिरतइ जैसे गदा हिराने (बुंदेली अहाना छंद संकलन) ई-बुक लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है।
आज हम एक नया छंद "अहाना छंद" लेकर आपके समक्ष है। इसका स्वागत कीजिए आप भी इस छंद पर लिखे तथा बुंदेली साहित्य को समृद्ध बनाने के सहायक बने।
अहाना छंद क्या है इसमें कितनी मात्राएं होती है इसकी जानकारी हमारे पटल के संरक्षक एवं इस अहाना छंद के जनक छंदों के ज्ञाता विद्वान आदरणीय श्री सुभाष सिंघई जी ने बताया कि-
अहाना बुंदेली के वह शब्द है , जो अपने आप में बहुत बड़ी बात को एक संक्षिप्त टुकड़े में कह देता है , यह छंद नहीं है , पर अहाना बुंदेली भाषा बोली का एक संक्षिप्त मारक क्षमता बाला कथन है | जो किसी को संकेत कर देता है | इसको कहावत या उसका लघु रुप भी कह सकते है (पर मुहावरा अहाना नहीं हो सकता है ) हालाकिं कहावत एक दिशा संकेत करती है , कवि भड्डरी जी ने संकेतात्मक कहावतें कृषि संबंधी लिखीं है , पर अहाना बुंदेली के आम बोलचाल परिचर्चा के कथन है , विस्तृत कहानी- कथन - आचरण को एक छोटे टुकड़े में कह देता है |
बैसे पूर्व में हमने बुंदेली लोक गायन को , जिनकी कोई मापनी नहीं है , उनको हिंदी छंदों में बाँधा है , व कुछ नए छंदो को नामकरण दिया है , पर हमें सही मंच नहीं मिला था , व सबसे बड़ी कमी मेरी खुद की लापरवाही व व्यस्तता भी रही है |
बुंदेली साहित्य -भाषा- बोली के संवर्धन के लिए समर्पित व जय बुंदेली साहित्य समूह के संस्थापक आदरणीय राजीव नामदेव राना लिधौरी जी की मित्रता व सत्संगति के बाद , बुंदेली साहित्य के प्रति पुन: लगाव हुआ व मुझे सही मंच मिला है |
अहाना को मैने 16 मात्रा (,चौपाई चाल ) में बाँधा है , व लिखना प्रारंभ किया है , व सभी मित्रों से भी आग्रह करता हूँ कि , बुंदेली में कई अहानें है , उनको 16 मात्रा में बाँधकर चौपाई चाल में लिखें |
बैसे इसको किसी एक निश्चित मापनी बनाकर आप लिख सकते है ,
पर हमें चौपाई चाल उपयुक्त व लय युक्त लगी है |
चार चरण में लिखना चौपाई चाल अहाना कहलाएगा, जिसमें अहाना चौथे चरण में जुड़ेगा व चार चरण के बाद , एक पूरक चरण , व एक टेक चरण जोड़ने पर अहाना गीत कहलाएगा |
कुछ अहाने संकेत कर रहा हूं , जो निम्नवत् है
जैसे-
चना धना दो घर में नइयाँ
परे अकल पै अब तो पथरा
नँइँ हाथी बदत अकौआ से
अड़ुआ नातो, पड़ुआ गोता
अपनौ गावौ अपनौ बाजौ
अँदरा लोड़ लगी बँदरा में।।
ऐसे बहुत से अहाने है।
सादर
सुभाष सिंघई, जतारा
इस ई-बुक में प्रकाशित सभी अहाना छंद 'जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़' व्हाट्स ऐप ग्रुप के साथियों ने बुधवार दिनांक-10-4-2024-को एवं रविवार दिनांक-14-4-2024को लिखे हैं।
हम बेहद आभारी हैं कि आपने इस पटल को अपना समय दिया।
हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
धन्यवाद, आभार।
***
ई बुक-प्रकाशन- दिनांक-11-4-2024 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
मोबाइल-91+ 09893520965
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1-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़
16 मात्रिक (बुंदेली अहानो )
|| फिरतइ जैसे गदा हिराने ||
ढ़ोर धरै अक्कल से पूरे |
खाक छानबै जाबै घूरे ||
करतइ सबरै काम नसाने |
फिरतइ जैसे गदा हिराने |
दैत दौंदरा माते रातन |
गाँव भरै में कत है मातन ||
आतइ घर में भौंत उराने |
फिरतइ जैसे गदा हिराने ||
करें ऊँट की चोरी न्योरें |
तकत परोसन खपरा फोरें ||
बातै करबै खोज बहाने |
फिरतइ जैसे गदा हिराने ||
पंगत में जा लडुआ सूटे |
कभऊँ बदैं न घर के खूटे ||
चिलम तमाकू के भैराने |
फिरतइ जैसे गदा हिराने ||
सबइ चौतरा जाकै थूकै |
फिरत भभूति खौ अब सूकै |
लयै हाथ कै चना घुनाने |
फिरतइ जैसे गदा हिराने ||
चित्त न दैबै कौनउँ बातें |
सूझत रत है जिनखौ घातें ||
कौउँ न आबै तेल लगाने |
फिरतइ जैसे गदा हिराने ||
आँखें फूटी हो गय काने |
कत है हम तो भौत पुराने ||
फैकत फिर रय गली मखाने |
फिरतइ जैसे गदा हिराने ||
***
-सुभाष सिंघई , जतारा
*2*
बुंदेली अहाना गीत (16 मात्रिक)
|| गिरदौना सी मूड़ हिलाते ||
काम परौ जनता लौ आकैं |
वोट कितै है नेता ताकैं ||
भाषण में सब गप्पें फाँकैंं |
अपनी-अपनी ढींगैं हाँकैं ||
हाथ जौर कै सम्मुख आते |
गिरदौना सी मूड़ हिलाते ||
पाँच साल कै राजा बनने |
तब झंडा की डोरी ततने ||
बात काउ की तब नइँ सुनने |
रकम देख कै रुइ सी धुनने ||
आगे पाछे चमचा राते |
गिरदौना सी मूड़ हिलाते ||
सबइ दलन के लगने दौरा |
काने सबकै चाने कौरा ||
बातें करने है मिठबोली |
बाँट संतरा जैसी गोली ||
पुटया- पुटया वोट चुराते |
गिरदौना सी मूड़ हिलाते ||
जनता हित की बै कब सौचें |
सब नेतन में दिखबें लौचें ||
जनता चीथैं धीरें धीरें |
पोल खुले तो दाँत निपौरें ||
मूड़ धुनक दैं औसर पाते |
गिरदौना सी मूड़ हिलाते ||
सबखौ अपनी गोट मिलाने |
करयाई खौ खूब झुकाने ||
सबखौ नकुआ चना चबाने |
कात सुभाषा सुनो अहाने ||
नेता लल्लू खूब बनाते |
गिरदौना सी मूड़ हिलाते ||
***
सुभाष सिंघई , जतारा
*3*
बुंदेली अहाना (16 मात्रिक)
|| घर -घर में हैं मटया चूले ||
सबके घर की मिली कहानी |
कितउँ धूप है छाया - पानी |
कौनउँ करबै बात बिरानी |
दिखबै पूरी खेंचा तानी ||
लोग काय पै फिरतइ फूले |
घर -घर में हैं मटया चूले ||
लगौ जमड़खा चौराहे पै |
मसकत बातें अब काहे पै ||
नँई छिपत कनुआँ की टैटें |
कढ़त बा़यरै नकुआ घैटें ||
अलग दिखातइ लँगड़ें लूले |
घर - घर में है मटया चूले ||
नँईं छिपत टकला की गंजी |
लिखी रात ईसुर लो पंजी ||
चीन लेत है सब लबरा खौं |
दाग बनत है चितकबरा खौं ||
उनकी कै रय अपनी भूले |
घर - घर में है मटया चूले ||
साँसी कत है रामप्यारी |
माते के घर घुसी दुलारी ||
परत सबइ के उनसे अटका |
कौन बिदै ले आकै खटका ||
बात चिमा गय इतै कथूले |
घर - घर में है मटया चूले ||
बै सब उनकी बातें जाने |
फिर भी रत हैं खूब चिमाने ||
तरी सबइ की यहाँ टटोली |
दिखी सुभाषा सबखौं पोली ||
मौं पै कैबै सबरै कूले |
घर - घर में है मटया चूले ||
ऊकै घर की चतुर लुगाई |
बुला लई है सगी मताई ||
सास पार दइ ढ़ोरन बखरी |
कथा सुना गय कल्लू सबरी ||
सबइ जगाँ है जइ घरघूले |
घर - घर में है मटया चूले ||
-सुभाष सिंघई,जतारा
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02-राजीव नामदेव "राना लिधौरी", टीकमगढ़ (मप्र)
अहाना छंद -16 मात्रिक (चौपाई चाल)
बुंदेली अहानो :-
।।आँखन देखी साँच न माने।। -
कउवाँ लै गवँ कान तुमारे |
ढूड़त फिर रय बन बेचारे ||
कान टटौलें ना पहचाने |
आँखन देखी साँच न माने ||
बलम विदेशे करत मजूरी |
गोरी जानत भौतइ दूरी ||
दोष परोसन बलम रिझाने |
आँखन देखी साँच न माने ||
चना चबा कत दाँत हिराने |
लै गय चूहा बड़े सियाने ||
छाती कूटत है बौराने |
आँखन देखी साँच न माने ||
कनुआ कत है हम है सुंदर |
बाकी सबरै लगबै बंदर ||
ऊखौं तकता नँई पुसाने |
आँखन देखी साँच न माने ||
सपरै खोरै कात भिड़ाने |
#राना उन्ना ना पहचाने ||
लगत सबइ खौ बै उकताने |
आँखन देखी साँच न माने ||
***
*2*
16 मात्रिक अहाना गीत
(चौपाई चाल )
|| ठाडै बैठे कौ उरजट्टौ ||
खाबैं आकैं मोइ खुपड़िया |
कै दौ मौरौ लरका बढ़िया ||
मौइ बात सब होती साँसी |
लोग न करबै कौनउँ हाँसी ||
#राना आ गवँ घर में रट्टौ |
ठाडै बैठे कौ उरजट्टौ ||
रुइ - सी बातें रत हैं धुनकत |
महुआ छैला की बैं मसकत ||
मूँछैं अपनी रत हैं तानत |
थूकन सतुआ रत हैं सानत ||
#राना बिदौ गरै में पट्टौ |
ठाडै बैठे कौ उरजट्टौ ||
बात काट दइ जी की थोरी |
बोइ जलाबे छाती होरी ||
कत है हम तो पूरे गुनियाँ |
मौरे लच्छन जाने दुनियाँ ||
#राना दयैं फिरत चरपट्टौ |
ठाडै बैठे कौ उरजट्टौ ||
बिगरौ लरका नाली कीरा |
रात भरै में बन गवँ हीरा ||
माते ने भी छाप लगाई |
सबखौं जाकै भी बतलाई ||
#राना कैसें कै दै बट्टौ |
ठाडै बैठे कौ उरजट्टौ ||
मौं देखी पंचायत हौबे |
सूदा रमुआ घर में रौबे ||
महुआ सब मातिन ने छीने |
कत है हमने खुद ही बीने ||
#राना कत कौ खाबैं खट्टौ |
ठाडै बैठे कौ उरजट्टौ ||
****
✍️ राजीव नामदेव "राना लिधौरी"
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
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3-आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
बुंदेली अहानें :-मसकउॅं कुठिया में गुर फोरौ
________________________________
तातौ तेल कान में डारौ,
ठलुअन में नइॅं समय गुजारौ।
कोऊ कौ नइॅं बनों बिलोरौ,
मसकउॅं कुठिया में गुर फोरौ।।(१)
घर की बात घरइ में राबै ,
पुरा परौसी नइॅं सुन पाबै ।
द्वारैं पंच कभउॅं नइॅं जोरो ,
मसकउॅं कुठिया में गुर फोरौ।।(२)
हॅंस-हॅंस कैं सब ठोकैं तारी ,
लीटा गुर सी भिनकै पारी ।
ऊमर पकौ कभउॅं नइॅं फ़ोरौ ,
मसकउॅं कुठिया में गुर फोरौ।।(३)
साॅंप मरै लठिया बच जाबै ,
जौ चतरइ कौ काम कहाबै ।
रस में बिष कभ्भउॅं नइॅं घोरौ,
मसकउॅं कुठिया में गुर फोरौ।।(४)
जीकी जैसी होबै करनी ,
ऊकी ऊसइ पार उतरनी ।
कोऊ की नइॅं फुली निहोरौ ,
मसकउॅं कुठिया में गुर फोरौ।।(५)
सीख देत हैं हमें अहानें ,
हैं "नादान " सबइ के लानें ।
ज्ञान लेत र व थोरौ-थोरौ ,
मसकउॅं कुठिया में गुर फोरौ।।(६)
****
*2*
बुंदेली अहाना छंद 16 मात्रा
( आग लगा पानी खौं दौरें। )
धरे जनम के जे अरबसया,
मजा लेत हैं बरया-बरया।
दूरइ सैं जे दाॅंत निपोरें ,
आग लगा पानी खौं दौरें ।।(१)
ईकी सुनकैं उयै जुजाबैं ,
दिन भर भौंरा से मड़राबैं ।
भइया सैं भइया खौं फोरें ,
आग लगा पानी खौं दौरें ।।(२)
माल मुफत कौ दम सैं खाबैं,
जितै मिलीं दो, मइॅं सो जाबैं।
दान पुन्य खौं हाॅंत सकोरैं ,
आग लगा पानी खौं दौरें ।।(३)
घरबारी खौं धुतिया नइॅंयाॅं ,
जे चटकाउत फिरें पनइॅंयाॅं ।
बातें बड़ीं मसकबैं चौरें ,
आग लगा पानी खौं दौरें ।।(४)
कोउ घरै सगया आ जाबै ,
इनकौ सुनकैं पेट पिराबै ।
बनों बनाऔ काम बिलोरें ,
आग लगा पानी खौं दौरें ।।(५)
इनसैं कभउॅं न मेर लगइयौ,
कयॅं "नादान "प्रेम सैं रइयौ ।
नोंनों बनों ठनों घर फोरैं ,
आग लगा पानी खौं दौरें ।।(६)
***
*3*
बुंदेली अहाना 16 मात्रा
********************
।। जीभ उठा तरुआ सैं मारैं ।।
(१)
यैसे मिले उभाॅंड़े सइॅंयाॅं ,
कियै सुनाबों मन की गुइॅंयाॅं।
पैलाॅं सोसत समजत नइॅंयाॅं,
मैं सोसन में भई मरइॅंयाॅं ।
बात करत हैं बिना बिचारैं ,
जीभ उठा तरुआ सैं मारैं ।
(२)
व्याव बरातन बे कउॅं जाबैं ,
चार खरीं - खोटीं सुन आबैं ।
सूदैं कभ्भउॅं नइॅं बतयाबैं ,
संगै मोरी नाक कटाबैं ।
कोंनउॅं काम न जात उबारैं ,
जीभ उठा तरुआ सैं मारैं ।
(३)
सौ में सौ जे झूॅंठी बोलैं ,
पुंगा बनें गलन में डोलैं ।
लाद गये हैं बेसरमाई ,
खानदान की शान घटाई ।
सेखी चाये जितै बघारैं ,
जीभ उठा तरुआ सैं मारैं ।
(४)
सइयाॅं अपनी - अपनी धाॅंदैं ,
अपजस मूॅंड़ पुटइया बाॅंदैं ।
गैलारे खौं जे भटकाबैं ,
उयै न सूदी गैल बताबैं ।
कुत्ता सौ ऊखौं झलकारैं ,
जीभ उठा तरुआ सैं मारैं ।
(५)
पुरा - परौसी इनसैं हारे ,
बैंना फूटे भाग हमारे।
कैसैं हुइयैं इतै गुजारे ,
स्यानें हो गय लरका बारे ।
उर जे सबकीं काॅंय उतारैं ,
जीभ उठा तरुआ सैं मारैं ।
(६)
कोनउॅं संत , गुरू मिल जाबै ,
कान फूॅंक इनखौं समजाबै ।
उलटी मती सती हो जाबै ,
कत "नादान" जीउ सुख पाबै ।
नइया गुरू लगा दो पारैं,
जीभ उठा तरुआ सैं मारैं ।
***
आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर,
( स्वरचित ) 10/04/2024
🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉
4--भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
अहाना :-
बादर देख पोतला फोरे।
बादर देख पोतला फोरें।
हस -हस कें डारो नें डोरे।।
नाहक मोखो गिरमा टोरे,
बादर देख पोतला फोरे।।
जीके दिन जब टेड़े आबें।
अपनी धरी बसत नें पाबें।।
मॅंजया डारे सबके दोरे।
बादर देख पोतला फोरे।।
खट्टें परीं मूड़ में भारी।
तिलक लगाबै पकरें थारी।।
बनें फिरत है बिल्कुल भोरे,
बादर देख पोतला फोरे।।
घरइ कौ कुरवा फोरै ऑंखी
ऑंखन देखत खबै न माॅंखी।।
हमने कौन बेलवा छोरें।
बादर देख पोतला फोरे।।
सैंयां हैं कुटवार हमारे,
नैयां डर अब हमें तुमारे।।
जानें हैं कोरे के कोरे
बादर देख पोतला फोरे।।
करकें बंज टटा में तारो,
बैन लिबाबै जाबै सारो।।
देख -देख कें गटा निपोरे,
बादर देख पोतला फोरे।।
अपने चाटें बन रय गोरे,
चाय जौन के कान मरोरे।
अनुरागी डारौ नें डोरे,
बादर देख पोतला फोरे।।
-भगवान सिंह लोधी अनुरागी।
रजपुरा, हटा जिला-दमोह
***"
🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉
5-वी. एस. खरे,सरसेर, नौगांव(छतरपुर)
बुंन्देली अहाना-
।।धजी को साँप बनाबें |।
बौइ धजी को साँप बनाबें |
शरम नँईं जो मन में खाबें ||
कुत्ता से खोरन में डोलें |
नाक कटा कै सबसे बोंलें ||
नाँय माँय की बातें लाबें |
बौइ धजी को साँप बनाबें |
कैंचीं- सो मौं जिनकौ चलबें |
चूहा जैसौ नाज कुतरबै ||
प्यास ओस से कितै बुझत है |
साँसी बातें कौन गुनत है ||
मसकत अपनी बातें राबें |
बौइ धजी को साँप बनाबें |
भाव गदन के चाँदी बाँटे |
पत्ता पलटै खाय कुलाटें ||
भौत बकीली सबपै छाँटें |
बातन भन्ना सबखौं बाँटें ||
अक्ल अजीरन रोग लगाबें |
बौइ धजी को साँप बनाबें |
हाड़न हरदी लगी न जिनखौं |
ग्यान व्याय कौ कैसे उनखौं ||
रडुआ भैया पढुआ खेता |
लमटेरा गाबै खौ चेता ||
अंधा पकड़ बटेरी लाबें
बौइ धजी को साँप बनाबें |
***
-वी एस खरे,सरसेर, नौगांव
🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉
06-एस आर सरल,टीकमगढ़
अहाना :
।। गट्ट बिदी सो कक्का कै रय।।
************************
गट्ट बिदी सो कक्का कै रय।
निबरी फूँद उचक्का कै रय।
भइया कैसों विकट जमानों,
उल्टे पौद फटक्का कै रय।।
।।गट्ट बिदी सो कक्का कै रय।।
पैलउँ पेलाँ मैच खेल रय.
दें रय चौका छक्का कै रय।
पी रय बिडी तमाकू ठुल्ला,
ऊखौ भाँग सड़क्का कै रय।।
।।गट्ट बिदी सो कक्का कै रय।।
रूखे सूखे गक्कड़ खा रय,
बे गक्कड़ खौ गक्का कै रय।
खा रय चना चिरोजी दानें ,
उनखौ दाख मुनक्का कै रय
।।गट्ट बिदी सो कक्का कै रय।।
नइँ नुआइँ बउँ बिटियाँ देखें,
उनसै माल फड़क्का कै रय,
रूखी सूकी खात फुलकियाँ,
ऊखौ 'सरल'फुलक्का कै रय।।
।।गट्ट बिदी सो कक्का कै रय।।
***
एस आर 'सरल', टीकमगढ़
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07-अमर सिंह राय ,नौगांव
अहाना:- का वर्षा जब कृषि सुखाने*
(१६ मात्रिक बुन्देली)
करी समय की कदर न जी ने।
निन्दा को विष परो है पीने।
समय चूकबे पै पछताने।
का वर्षा जब कृषी सुखाने।
धरे आलसी काम सटा रय।
ओस चाट कैं प्यास बुझा रय।
समय निकरबे पै पछताने।
का वर्षा जब कृषी सुखाने।
जे अपनी हुशियारी छाँटें।
अपनों ज्ञान और खों बाँटें।
समय परे बिल्कुल नइँ रानें।
का वर्षा जब कृषी सुखाने।
आँधर हैं पर नाम नयनसुख।
पतरी काया ढोउत हैं दुख।
भूख मरे पै खाना चाने।
का वर्षा जब कृषी सुखाने।
पथरा परो अकल पै जी की।
बात बड़न की लागत फीकी।
लगै बाद में अकल ठिकाने।
का वर्षा जब कृषी सुखाने।
समझा-समझा कैं थक हारे।
अमर नहीं हैं समझन बारे।
इनखों ऐसइ सोसत राने।
का वर्षा जब कृषी सुखाने।
***
*2* ।।घरन- घरन हैं मटया चूले।।
बुंदेली-अहाना-गीत* ,
(16 मात्रिक)
।।घरन- घरन हैं मटया चूले।।
चिकनी चुपरी बातें कर रय।
कै मों देखी मन खों भर रय।
ऊपरफट्टी प्रेम जता रय।
जिऐ पतो है उऐ बता रय।
कुछ बातें कोऊ नइँ भूले।
घरन- घरन हैं मटया चूले।।
आग लगाउत अपने हाँथन।
घर- घर में हो भइया बाँटन।
देखत रोज डॅंड़त घर आँगन।
देखत नइयाँ कोऊ आँखन।
अंत न जानत फिर रय फूले।
घरन- घरन हैं मटया चूले।।
भाग रहे अपने जिम्मा सें।
ममयारे की कत मम्मा सें।
जलत पतंगा खुद शम्मा सें।
मूड़ मार रय खुद गुम्मा सें।
कहें सही सो आग- बबूले।
घरन- घरन हैं मटया चूले।।
समझत सब जनता बहरी।
चलत हमेशा चालें गहरी।
पीड़ित घूमत कोट कचहरी।
लेत न सुध नेता बे-खबरी।
दे रय धोखा बन कैं लूले।
घरन- घरन हैं मटया चूले।।
धन- संपत पाकैं उमछा रय।
गंजे सर के बाल खुजा रय।
रोटी पर धर रोटी खा रय।
घर में कथरी ओढ़ बिछा रय।
लेकिन कौनउँ नहीं कबूले।।
घरन- घरन हैं मटया चूले।।
***
-अमर सिंह राय ,नौगांव
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8-कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर
अहाना:-
--- कथरी ओढे़ं पीवें घी खों --
काँ लौं चेतावें की-की खों ।
कथरी ओढे़ं पीवें घी खों ।।
यैंन लगे रव गाल बजावे ।
बारी लगी खेत खों खावे ।।
भावइ होरइ सबके जी खों ।
कथरी ओढे़ं पीवें घी खों ।।
सरकारी छिड़ियाँ चौंतइंयाँ ।
छिटकी बिना मानतीं नइंयाँ ।।
बिसरें नेकी करें वदी खों ।
कथरी ओढे़ं पीवें घी खों ।।
सत्य धर्म ईमान न सादें ।
बेसरमाई जमकें लादें ।।
शुभ मानें ओछी करनी खों ।
कथरी ओढे़ं पीवें घी खों ।।
जैसे आये ऊसइ जानें ।
जानत हैं पर! कोउ न मानें ।।
अत दैरय हैं करत अती खों ।
कथरी ओढे़ं पीवें घी खों ।।
खारय-पीरय थोंद बढा़ रय ।
बगुला भगत सरूप बना रय ।।
लजा रये करनी-भरनी खों ।
कथरी ओढे़ं पीवें घी खों ।।
---- कल्याण दास साहू "पोषक"
पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़ (मप्र)
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9-अंजनी कुमार चतुर्वेदी 'श्रीकांत',निवाड़ी
।।चना धना दो घर में नइयाँ।।
*********************
सज कें रोज बजारै जावै।
दारू पी लमटेरा गावै।।
चोरी चोरी जुआ खेल रय।
हम बुखार सौ उयै झेल रय।।
घर कौ खोज मिटारय सइयाँ।
चना धना दो घर में नइयाँ।।
नायँ मायँ नैना मटकारय।
अंडा मांस सबइ सटकारय।।
अपनों जीवन खुदइँ नसारय।
कुत्ता जैसे बलम बसारय।।
बात काउ की मानत नइयाँ।
चना धना दो घर में नइयाँ।।
कर रय वे दारू सें कुल्ला।
बैंचे टाठीं और कचुल्ला।।
दिन भर बनौ फिरै कठमुल्ला।
संगै फिरें चार छै ठुल्ला।।
कभउँ न छोरै बैला गइयाँ।
चना धना दो घर में नइयाँ।।
उठतन जितै चाय भग जावै।
रोकौ आँखें लाल दिखावै।।
बात बात पै लरबे ठाँड़ौ।
पैरें फिरै पजामा बाँड़ौ।।
हाथ जोर मैं पर रइ पइयाँ।
चना धना दो घर में नइयाँ।।
पुटया पुटया पइसा माँगै।
खुश होवै तौ कइयाँ टाँगै।।
करवै खर्चा आड़ौ ठाँड़ौ।
सँगै लयँ पुंगन कौ जाँड़ौ।।
है पक्कौ रंगा रमसइयाँ।
चना धना दो घर में नइयाँ।।
***
स्वरचित एवं मौलिक रचना
-अंजनी कुमार चतुर्वेदी 'श्रीकांत',निवाड़ी
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*10*-डॉ देवदत्त द्विवेदी 'सरस,बड़ामलहरा
बुंदेली गीत- 16 मात्रिक ( चौपाई चाल)
।।जो होंनें सो होकें राबै ।।
मूरख सें को दुखड़ा रोबै
कोदन में अपनों घी खोबै
ऊ कौ कैसें साजौ होबै
जो असाड़ में परकें सोबै।।
लिखी बदी बरदम टकराबै
जो होंनें सो होकें राबै
सूरा सूरा जो जुर पाबें
अपनों अपनों ग्याँन बताबें
चतुराई यैसी बगराबें
अँदरा खों बे दिया दिखाबें
इनसें बोलौ को टकराबै
जो होंनें सो होकें राबै
पाखंडन की का का काबें
गुर खाबें गुलगुला बचाबें
जो कउँ साँसी जाय सुनाबें
माते धरे बँदें नें राबें
तकुआ सौ टेड़ौ हो जाबै
जो होंनें सो होकें राबै
बूड़ौ खाय गांठ कौ जाबै
बारौ खाय ज्वाँन हो जाबै
ज्वाँन खाय तौ आँगें आबै
मोंका परें पहार उठाबै
जेठी सें लौरी जा काबै
जो होंनें सो होकें राबै
नेता बौ करबें जो भाबै
नाहक इनसें को टकराबै
सोंज कौ बाप लड़इया खाबै
ऊमर फोरै पखा उड़ाबै
जनता साँसौ हाल बताबै
जो होंनें सो होकें राबै ।।
***
-डॉ देवदत्त द्विवेदी 'सरस,
बड़ामलहरा छतरपुर
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*11*-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी,बुढेरा
अहानों पर आधारित गीत -
।।साँसी कयँ मौसी कौ काजर।।
**********************
गरजत बे नइँ बरसत बादर।
साँसी कयँ मौसी कौ काजर।।
****
लटा परस रय बे पंगत में।
कै रय जेंलो अबै जुगत में।।
हुयै भुन्सराँ कुँवर कलेबा।
ऊमें परसें लड़ुआ-मेबा।।
देखौ जौ बरात कौ आदर।
साँसी कयँ मौसी कौ काजर।।
****
आदत जी की होबै जैसी।
करनी भी बौ करबै बैसी।।
लबकी गाय गुलेंदौ खाबै।
मउआ तरें दौर कें जाबै।।
उलटी लटकी रत चमगादर।
साँसी कयँ मौसी कौ काजर।।
****
हिरा जाय टाठी बखरी में।
हाँत डार ढूँड़त गगरी में।।
कउआ लै गव कान गुसैंयाँ।
सुनकें कान थथोलत नैंयाँ।।
कउआ के पाछें दयँ दाँदर।
साँसी कयँ मौसी कौ काजर।।
****
सूदौ सौ मुन्सेलू पाकें।
नटवा घाँईं रोज दलाँकें।।
खाँय खसम कौ ऐंन अगाबें।
लेकिन गुन यारन के गाबें।।
खा-खा कें हो रइँ हैं गाजर।
साँसी कयँ मौसी कौ काजर।।
******
-गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
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*12*प्रमोद मिश्रा ,बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश
चौपाई चाल गीत -बुन्देली अहानें-१६मात्रा
।। साँसे खाँ फाँसे परजाँयें ।।
बिना विचार करें पछतायेँ ।
चुगली करवै जूता खायेँ ।।
सिंह बाज खों कितै पढ़ायें ।
अपने कुल की बे लयँ रायेँ ।।१।।
साँसी बात सटौले काँयेँ ।
साँसे खाँ फाँसे परजाँयें ।।
नंगे सपरें कहा निचौबै ।
पकरें मूँढ़ बाप खाँ रौवै ।।
कुत्ता पूँछ पुंगरिया डारी ।
गुर में चढ़ी नीम सी कारी ।।२।।
लबरा बैठें लडुआ खाँयेँ ।
साँसे खाँ फाँसे परजाँयें ।।
देखो बारइ उल्टी गंगा ।
गंजे फिरै निपोरें कंगा ।।
नंगी नाचें पूते खायेँ ।
पापी धन दस सालेँ रायेँ ।।३।।
कथरी औढ़ेँ घी पी जाँयेँ ।
साँसे खाँ फाँसे परजाँयें ।।
बनियाँ मित्र न वैश्या सत्ती ।
कउआ हंस न गदहा जत्ती ।।
आँखन को काजर भड़याँयें ।
आँखन के गुन किये बतांयें ।।४।।
मुरदन पै गीदा मड़राँयेँ ।
साँसे खाँ फाँसे परजाँयें ।।
कबरा को तो होवै चँदुआ ।
सारो रावै एसउ रडुआ ।।
फड़ी बाँधकें धनियाँ ठाँड़ी ।
लैवै अरों रोज को बाँड़ी ।।५।।
टेंटा फुली देख मुस्क्याँयेँ ।
साँसे खाँ फाँसे परजाँयें ।।
घर में लरका गाँव में टेरें ।
लाजन मर रई जाँघ उगेरें ।।
गगरी ढूँढ़त खोगइ टाठी ।
हम तो कात हमेशा ठाटी ।।६।।
जीको राज सो उसइ काँयेँ ।
साँसे खाँ फाँसे परजाँयें ।।
अटकें कात गदा पै कक्का ।
काम सटो फिर मारत धक्का ।।
रंग बदलबै भव गिरदौला ।
तरहेरा ढूँकें ज्यों नौला ।।७।।
हार की न्याँव घरेँ न आँयेँ ।
साँसे खाँ फाँसे परजाँयें ।।
अब नी चलने सैनाकानी ।
ग्यावन बात करें हैरानी ।।
विद गइ गट्ट निनुर लो रानी ।
जान परत है असली पानी ।।८।।
कबलो धनियाँ पान चबाँयेँ ।
साँसे खाँ फाँसे परजाँयें ।।
गुर को बाप कहावै कुलुवा ।
कुठिया में गुर फौरें मुलुवा ।।
खैला सो प्रमोद गररानो ।
कोउ कैय का आय उरानो ।।९।।
घाट घाट को पानी पाँयेँ ।
साँसे खाँ फाँसे परजाँयें ।।
टेढ़ें लगे काय पै तकुआ ।
बैठीं काय फुलै रइ नकुआ ।।
सात पैइ की खोदइ सबरी ।
करिया मौ करके गइ ससरी ।।१०।।
फिरैं साँड़ से डौलत माँयें ।
साँसे खाँ फाँसे परजाँयें ।।
उजरा साँड़ लेत खुरजट्टे ।
जे अंगूर लगत हैं खट्टे ।।
आवै काम दाम गाँठी को ।
कर्जा दे उतार माटी को ।।११ ।।
माइ बाप भगवान कहाँयें ।
साँसे खाँ फाँसे परजाँयें ।।
मम्मा आगेें ममयाँरे की ।
मूंछें बार देयँ सारे की ।।
ऐसी कैयँ धौंइ ना छूटें ।
लाबी कयँ तो आँखें फूटें ।।१२।।
धजि को साँप "प्रमोद"बनाँयेँ ।
साँसे खाँ फाँसे परजाँयें ।।
********
-प्रमोद मिश्रा ,बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश
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*13*-रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां (निबाड़ी)
अहाना गीत
।।अब तौ राम भरोसें रानें।।
अपनें दै दै जात दगा रे।
जीजा होंवैं चाये सारे।
तन के उजरे मन के कारे।
कोइ किसी का नहीं सगा रे।
उनके गुन रै रै कें जानें।
अब तौ राम भरोसें रानें।
2
बात बिरानीं कानें नइयाँ।
बिना बुलायें जानें नइयाँ।
तन कौ कछू ठिकानों नइयाँ।
उड़ जावें जे कबै चिरइयाँ।
कड़नें सेत पिछौरा तानें।
अब तौ राम भरोसें रानें।।
3
नईँ लौट कें बे दिन आनें।
उनखों गुजरें भये जमानें।
सबइ एक सें एक सयानें।
कोउ काउ की अब ना मानें।
अन्धन में राजा हैं कानें।
अब तौ राम भरोसें रानें।
4
जैसी करनी वैसी भरनी।
तुलसी माला चिन्ता हरनी।
गंगा कलजुग में वैतरणी।
महिमा वेद पुरानन वरणी।
लीला हरि की नन्द न जानें।
अब तौ राम भरोसें रानें।।
***
-रामानन्द पाठक 'नन्द',नैगुवां
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4 टिप्पणियां:
सुंदर संकलन किया गया है 👌👌🌹
भाँत भाँत के लिखे अहाने
सबरे अक्षर लगे सुहाने
कत "प्रमोद"राना की करनी
मान्स नही तो ईश्वर माने
धन्यवाद श्री मिश्रा जी
धन्यवाद श्री सिंघई जी
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