प्रेरक प्रसंग-
संकलन- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
लेखकीय-
हम आपके लिए कुछ कथाएं छांटकर लाये है जो आपको कुछ न कुछ शिक्षा जरुर देती है हमारा मनोबल बढ़ाने में मदद करती है।
जीवन में इन प्रेरणादायक कथाएं से यदि हम थोड़ा सा भी सीख सकते हैं तो हमारा जीवन सफल हो जायेगा। आशा आपको यह संग्रह अवश्य ही पसंद आयेगा।
संकलन- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)
1- *प्रेरक कथा- *हिसाब भगवान रखते हैं*-
*अस्पताल में एक कोरोना पेशेंट का केस आया ।मरीज बेहद सीरियस था । अस्पताल के मालिक डॉक्टर ने तत्काल खुद जाकर आईसीयू में केस की जांच की।*
*दो-तीन घंटे के ओपरेशन के बाद डॉक्टर बाहर आया और अपने स्टाफ को कहा कि इस व्यक्ति को किसी प्रकार की कमी या तकलीफ ना हो। और उससे इलाज व दवा के पैसे न लेने के लिए भी कहा ।*
*मरीज तकरीबन 15 दिन तक मरीज अस्पताल में रहा। जब बिल्कुल ठीक हो गया और उसको डिस्चार्ज करने का दिन आया तो उस मरीज का तकरीबन ढाई लाख रुपये का बिल अस्पताल के मालिक और डॉक्टर की टेबल पर आया।*
*डॉक्टर ने अपने अकाउंट मैनेजर को बुला करके कहा ..."इस व्यक्ति से एक पैसा भी नहीं लेना है। ऐसा करो तुम उस मरीज को लेकर मेरे चेंबर में आओ। "मरीज व्हीलचेयर पर चेंबर में लाया गया। डॉक्टर ने मरीज से पूछा - "भाई ! क्या आप मुझे पहचानते हो?"मरीज ने कहा "लगता तो है कि मैंने आपको कहीं देखा है।"*
*डॉक्टर ने कहा ..."याद करो, अंदाजन दो साल पहले सूर्यास्त के समय शहर से दूर उस जंगल में तुमने एक गाड़ी ठीक की थी। उस रोज मैं परिवार सहित पिकनिक मनाकर लौट रहा था कि अचानक कार में से धुआं निकलने लगा और गाड़ी बंद हो गई। कार एक तरफ खड़ी कर मैंने चालू करने की कोशिश की, परंतु कार चालू नहीं हुई। अंधेरा थोड़ा-थोड़ा घिरने लगा था। चारों और जंगल और सुनसान था। परिवार के हर सदस्य के चेहरे पर चिंता और भय की लकीरें दिखने लगी थी और सब भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि कोई मदद मिल जाए।"*
*थोड़ी ही देर में चमत्कार हुआ। बाइक के ऊपर तुम आते दिखाई पड़े ।हम सब ने दया की नजर से हाथ ऊंचा करके तुमको रुकने का इशारा किया।*
*तुमने बाईक खड़ी कर के हमारी परेशानी का कारण पूछा। तुमने कार का बोनट खोलकर चेक किया और कुछ ही क्षणों में कार चालू कर दी।*
*"हम सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। हमको ऐसा लगा कि जैसे भगवान ने आपको हमारे पास भेजा है क्योंकि उस सुनसान जंगल में रात गुजारने के ख्याल मात्र से ही हमारे रोगंटे खड़े हो रहे थे।*
*तुमने मुझे बताया था कि तुम एक गैराज चलाते हो ।*
*"मैंने आपका आभार जताते हुए कहा था कि रुपए पास होते हुए भी ऐसी मुश्किल समय में मदद नहीं मिलती।*
*तुमने ऐसे कठिन समय में हमारी मदद की, इस मदद की कोई कीमत नहीं है, यह अमूल्य है परंतु फिर भी मैं पूछना चाहता हूँ कि आपको कितने पैसे दूं ?"*
*उस समय तुमने मेरे आगे हाथ जोड़कर जो शब्द कहे थे, वह शब्द मेरे जीवन की प्रेरणा बन गये हैं "तुमने कहा था कि "मेरा नियम और सिद्धांत है कि मैं मुश्किल में पड़े व्यक्ति की मदद के बदले कभी कुछ नहीं लेता।*
*मेरी इस मजदूरी का हिसाब भगवान् रखते हैं। "उसी दिन मैंने सोचा कि जब एक सामान्य आय का व्यक्ति इस प्रकार के उच्च विचार रख सकता है, और उनका संकल्प पूर्वक पालन कर सकता है, तो मैं क्यों नहीं कर सकता। और मैंने भी अपने जीवन में यही संकल्प ले लिया है। दो साल हो गए है, मुझे कभी कोई कमी नहीं पड़ी, अपेक्षा पहले से भी अधिक मिल रहा है।"*
*"यह अस्पताल मेरा है। तुम यहां मेरे मेहमान हो और तुम्हारे ही बताए हुए नियम के अनुसार मैं तुमसे कुछ भी नहीं ले सकता।"*
*"ये तो भगवान् की कृपा है कि उसने मुझे ऐसी प्रेरणा देने वाले व्यक्ति की सेवा करने का मौका मुझे दिया। "ऊपर वाले ने तुम्हारी मजदूरी का हिसाब रखा और वो हिसाब आज उसने चुका दिया। मेरी मजदूरी का हिसाब भी ऊपर वाला रखेगा और कभी जब मुझे जरूरत होगी, वो जरूर चुका देगा।*
*"डॉक्टर ने मरीज से कहा ...."तुम आराम से घर जाओ, और कभी भी कोई तकलीफ हो तो बिना संकोच के मेरे पास आ सकते हो। "मरीज ने जाते हुए चेंबर में रखी भगवान् कृष्ण की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर कहा कि...."हे प्रभु ! आपने आज मेरे कर्म का पूरा हिसाब ब्याज समेत चुका दिया।"*
*सदैव याद रखें कि आपके द्वारा किये गए कर्म आपके पास लौट कर आते है । और वो भी ब्याज समेत*
*वर्तमान में कठिन समय चल रहा है ।जितना हो सकता है लोगों की मदद करें । आपका हिसाब ब्याज समेत वापस आएगा ।*
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*प्रस्तुति- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़*
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2-🌹हृदय में भगवान बसते है🌹
यह घटना जयपुर के एक वरिष्ठ डॉक्टर की आपबीती है, जिसने उनका जीवन बदल दिया। वह हृदय रोग विशेषज्ञ हैं। उनके द्वारा बताई प्रभु कृपा की कहानी के अनुसार:-
एक दिन मेरे पास एक दंपत्ति अपनी छः साल की बच्ची को लेकर आए। निरीक्षण के बाद पता चला कि उसके हृदय में रक्त संचार बहुत कम हो चुका है।
मैंने अपने साथी डाक्टर से विचार करने के बाद उस दंपत्ति से कहा - 30% संभावना है बचने की ! दिल को खोलकर ओपन हार्ट सर्जरी करनी पड़ेगी, नहीं तो बच्ची के पास सिर्फ तीन महीने का समय है !
माता पिता भावुक हो कर बोले, "डाक्टर साहब ! इकलौती बिटिया है। ऑपरेशन के अलावा और कोई चारा नहीं है,
मैंने अन्य कोई विकल्प के लिए मना कर दिया
दंपति ने कहा आप ऑपरेशन की तैयारी कीजिये।"
सर्जरी के पांच दिन पहले बच्ची को भर्ती कर लिया गया। बच्ची मुझ से बहुत घुलमिल चुकी थी, बहुत प्यारी बातें करती थी। उसकी माँ को प्रार्थना में अटूट विश्वास था। वह सुबह शाम बच्ची को यही कहती, बेटी घबराना नहीं। भगवान बच्चों के हृदय में रहते हैं। वह तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे।
सर्जरी के दिन मैंने उस बच्ची से कहा, "बेटी ! चिन्ता न करना, ऑपरेशन के बाद आप बिल्कुल ठीक हो जाओगे।" बच्ची ने कहा, "डाक्टर अंकल मैं बिलकुल नहीं डर रही क्योंकि मेरे हृदय में भगवान रहते हैं, पर आप जब मेरा हार्ट ओपन करोगे तो देखकर बताना भगवान कैसे दिखते हैं ?" मै उसकी बात पर मुस्कुरा उठा।
ऑपरेशन के दौरान पता चल गया कि कुछ नहीं हो सकता, बच्ची को बचाना असंभव है, दिल में खून का एक कतरा भी नहीं आ रहा था। निराश होकर मैंने अपनी साथी डाक्टर से वापिस दिल को स्टिच करने का आदेश दिया।
तभी मुझे बच्ची की आखिरी बात याद आई और मैं अपने रक्त भरे हाथों को जोड़ कर प्रार्थना करने लगा, "हे ईश्वर ! मेरा सारा अनुभव तो इस बच्ची को बचाने में असमर्थ है, पर यदि आप इसके हृदय में विराजमान हो तो आप ही कुछ कीजिए।"
मेरी आँखों से आँसू टपक पड़े। यह मेरी पहली अश्रु पूर्ण प्रार्थना थी। इसी बीच मेरे जूनियर डॉक्टर ने मुझे कोहनी मारी। मैं चमत्कार में विश्वास नहीं करता था पर मैं स्तब्ध हो गया यह देखकर कि दिल में रक्त संचार पुनः शुरू हो गया।
मेरे 60 साल के जीवन काल में ऐसा पहली बार हुआ था। आपरेशन सफल तो हो गया पर मेरा जीवन बदल गया। होश में आने पर मैंने बच्ची से कहा, "बेटा ! हृदय में भगवान दिखे तो नहीं पर यह अनुभव हो गया कि वे हृदय में मौजूद हर पल रहते हैं।
इस घटना के बाद मैंने अपने आपरेशन थियेटर में प्रार्थना का नियम निभाना शुरू किया। मैं यह अनुरोध करता हूँ कि सभी को अपने बच्चों में प्रार्थना का संस्कार डालना ही चाहिए।
यह कहानी एक ह्रदय रोग विशेषज्ञ की आत्म बीती
💞🙏💞
3-मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है ?
🤔प्रश्न~ मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है ? 🤔
👉 उत्तर ~परम्परा हैं कि किसी भी मंदिर में दर्शन के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ओटले पर थोड़ी देर बैठना।
🤔 क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है ?
👉 यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई है। वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर एक श्लोक बोलना चाहिए। जो इस प्रकार है
अनायासेन मरणम् , बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम् , देहि मे परमेश्वरम्॥
इस श्लोक का अर्थ है -
अनायासेन मरणम् अर्थात् बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हों चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं।
बिना देन्येन जीवनम् अर्थात् परवशता का जीवन ना हो। कभी किसी के सहारे ना रहना पड़े।
देहांते तव सानिध्यमअर्थात् जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं कृष्ण जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले।
देहि में परमेशवरम् हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना।
भगवान से प्रार्थना करते हुऐ उपरोक्त श्र्लोक का पाठ करें। गाड़ी, लाडी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन इत्यादि अर्थात् संसार नहीं मांगना है, यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं। इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। यह प्रार्थना है, याचना नहीं है। याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है। जैसे कि घर, व्यापार,नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।
'प्रार्थना' शब्द के 'प्र' का अर्थ होता है 'विशेष' अर्थात् विशिष्ट, श्रेष्ठ और 'अर्थना' अर्थात् निवेदन। प्रार्थना का अर्थ हुआ विशेष निवेदन।
मंदिर में भगवान का दर्शन सदैव खुली आंखों से करना चाहिए, निहारना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं। आंखें बंद क्यों करना, हम तो दर्शन करने आए हैं। भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, श्रृंगार का, संपूर्ण आनंद लें, आंखों में भर ले निज-स्वरूप को।
दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठें, तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किया हैं उस स्वरूप का ध्यान करें। मंदिर से बाहर आने के बाद, पैड़ी पर बैठ कर स्वयं की आत्मा का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर निज आत्मस्वरूप ध्यान में भगवान नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और पुन: दर्शन करें।
बस अच्छे कर्म करते रहे ।
साभार संकलित
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*4*
प्रेरक कथा- *फ्यूज बल्ब*
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*शहर की एक कॉलोनी में एक बड़े आईएएस अफसर रहने के लिए आए जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे।*
*ये रिटायर्ड आईएएस अफसर हैरान परेशान से रोज शाम को पास के पार्क में टहलते हुए अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे।*
*एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर लगातार उनके पास बैठने लगे लेकिन उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था-*
*मैं इतना बड़ा आईएएस अफ़सर था कि पूछो मत, यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं।*
*मुझे तो दिल्ली या जयपुर में अमीरजादो के इलाके में बसना चाहिए था । और वो बुजुर्ग प्रतिदिन शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे।*
*परेशान होकर एक दिन बुजुर्ग ने उनको समझाया-*
*आपने कभी फ्यूज बल्ब देखे हैं?*
*बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है कि बल्ब किस कम्पनी का बना हुआ था , या कितने वाट का था, या उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी?*
*बल्ब के फ्यूज़ होने के बाद इनमें से कोई भी बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती है।*
*लोग ऐसे बल्ब को कबाड़ में डाल देते हैं।*
*फिर जब उन रिटायर्ड आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति में सिर हिलाया तो बुजुर्ग फिर बोले - रिटायरमेंट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो जाती है।*
*हम कहां काम करते थे, कितने बड़े/छोटे पद पर थे, हमारा क्या रुतबा था, यह सब कुछ भी कोई मायने नहीं रखता।*
*मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं।*
*वो जो सामने वर्मा जी बैठे हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे।*
*वे सामने से आ रहे सिंह साहब सेना में ब्रिगेडियर थे।*
*वो मेहरा जी इसरो में चीफ थे।*
*ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बताई है, मुझे भी नहीं पर मैं जानता हूं सारे फ्यूज़ बल्ब करीब-करीब एक जैसे ही हो जाते हैं, चाहे जीरो वाट का हो या 50 या 100 वाट हो।*
*कोई रोशनी नहीं तो कोई उपयोगिता नहीं।*
*कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते हैं कि रिटायरमेंट के बाद भी उनसे अपने अच्छे दिन भुलाए नहीं भूलते।*
*माना कि आप बहुत बड़े आफिसर थे, बहुत काबिल भी थे, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती थी पर अब क्या?*
*अब यह बात मायने नहीं रखती है बल्कि,,,,यह बात मायने रखती है कि पद पर रहते समय आप इंसान कैसे थे...*
*आपने लोगों को कितनी तवज्जो दी...*
*समाज को क्या दिया...*
*कितने लोगों की मदद की...*
*पद पर रहते हुए कभी घमंड आये तो याद कर लीजिए कि,,,*
*एक दिन सबको फ्यूज होना है।*
*वर्तमान का आनंद लीजिये ।*
🌹✍️🌹✍️🌹✍️🌹✍️
*5* ये कहानी आपके जीने की सोच बदल देगी!*
एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया।
वह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं।
अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि बैल काफी बूढा हो चूका था अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।।
किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी।
जैसे ही बैल कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।
सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया..
अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।
जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया ।
ध्यान रखे आपके जीवन में भी बहुत तरह से मिट्टी फेंकी जायेगी बहुत तरह की गंदगी आप पर गिरेगी जैसे कि ,
आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा
कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा
कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे...
ऐसे में आपको हतोत्साहित हो कर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हर तरह की गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख ले कर उसे सीढ़ी बनाकर बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।
सकारात्मक रहे.. सकारात्मक जिए!
इस संसार में....
सबसे बड़ी सम्पत्ति *"बुद्धि "*
सबसे अच्छा हथियार *"धैर्य"*
सबसे अच्छी सुरक्षा *"विश्वास"*
सबसे बढ़िया दवा *"हँसी"* है
और आश्चर्य की बात कि *"ये सब निशुल्क हैं "*
सोच बदलो जिंदगी बदल जायेगी।
***
*6
【◆कल्पित कहानी: "गधों के साथ बहस मत करो"◆】
एक बार एक गधे ने बाघ से कहा: - "घास नीली है"।
बाघ ने उत्तर दिया: - "नहीं, घास हरी है।"
चर्चा गर्म हो गई, और दोनों ने उसे जंगल के राजा के सामने मध्यस्थता के लिए प्रस्तुत करने का फैसला किया, और इसके लिए वे शेर के सामने गए। जहाँ शेर अपने सिंहासन पर बैठा था, शेर को देखते ही गधा चिल्लाने लगा: - "महामहिम, क्या यह सच है कि घास नीली है?"।
शेर ने उत्तर दिया: - "सच है, घास नीली है।"
गधा जल्दी से आगे बढ़ा: - "बाघ मुझसे असहमत है और विरोध करता है और मुझे परेशान करता है, कृपया उसे दंडित करें।"
तब राजा ने घोषणा की: - "बाघ को 5 साल की चुप्पी की सजा दी जाएगी।"
गधा खुशी से उछल पड़ा और अपने रास्ते पर चला गया, संतुष्ट और दोहराता रहा: - "घास नीला है" ...
बाघ ने उसकी सजा स्वीकार कर ली, लेकिन इससे पहले उसने शेर से पूछा: - "महाराज, आपने मुझे क्यों दंडित किया?, आखिर घास हरी है।"
शेर ने उत्तर दिया: - "वास्तव में, घास हरी है।"
बाघ ने पूछा: - "तो तुम मुझे सजा क्यों दे रहे हो?"।
शेर ने उत्तर दिया: - "इसका इस सवाल से कोई लेना-देना नहीं है कि घास नीली है या हरी। सजा इसलिए है क्योंकि तुम जैसे बहादुर और बुद्धिमान प्राणी के लिए गधे के साथ बहस करने में समय बर्बाद करना और उसके ऊपर आकर मुझे उस सवाल से परेशान करना उचित नहीं है।"
समय की सबसे खराब बर्बादी उस मूर्ख और कट्टरपंथी के साथ बहस करना है जो सच्चाई या वास्तविकता की परवाह नहीं करता है, बल्कि केवल अपने विश्वासों और भ्रमों की जीत के लिए बहस करता है।
उन तर्कों पर समय बर्बाद न करें जिनका कोई मतलब नहीं है ... ऐसे लोग हैं जो, चाहे हम उनके सामने कितना भी सबूत और सबूत पेश करें, समझने की क्षमता में नहीं हैं, और अन्य लोग अहंकार, घृणा और आक्रोश से अंधे हैं, और वे जो चाहते हैं वह सही है, भले ही वे न हों।
जब अज्ञान चिल्लाता है तो बुद्धि मौन होती है। आपकी शांति सबसे अधिक मूल्यवान है। ❤️
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*7* अनोखा मुकदमा :-
न्यायालय में एक मुकद्दमा आया ,जिसने सभी को झकझोर दिया |अदालतों में प्रॉपर्टी विवाद व अन्य पारिवारिक विवाद के केस आते ही रहते हैं| मगर ये मामला बहुत ही अलग किस्म का था|
एक 70 साल के बूढ़े व्यक्ति ने ,अपने 80 साल के बूढ़े भाई पर मुकद्दमा किया था|
मुकद्दमे का कुछ यूं था कि "मेरा 80 साल का बड़ा भाई ,अब बूढ़ा हो चला है ,इसलिए वह खुद अपना ख्याल भी ठीक से नहीं रख सकता |मगर मेरे मना करने पर भी वह हमारी 110 साल की मां की देखभाल कर रहा है |
मैं अभी ठीक हूं, इसलिए अब मुझे मां की सेवा करने का मौका दिया जाय और मां को मुझे सौंप दिया जाय"।
न्यायाधीश महोदय का दिमाग घूम गया और मुक़दमा भी चर्चा में आ गया| न्यायाधीश महोदय ने दोनों भाइयों को समझाने की कोशिश की कि आप लोग 15-15 दिन रख लो|
मगर कोई टस से मस नहीं हुआ,बड़े भाई का कहना था कि मैं अपने स्वर्ग को खुद से दूर क्यों होने दूँ |अगर मां कह दे कि उसको मेरे पास कोई परेशानी है या मैं उसकी देखभाल ठीक से नहीं करता, तो अवश्य छोटे भाई को दे दो।
छोटा भाई कहता कि पिछले 40 साल से अकेले ये सेवा किये जा रहा है, आखिर मैं अपना कर्तव्य कब पूरा करूँगा।
परेशान न्यायाधीश महोदय ने सभी प्रयास कर लिये ,मगर कोई हल नहीं निकला|
आखिर उन्होंने मां की राय जानने के लिए उसको बुलवाया और पूंछा कि वह किसके साथ रहना चाहती है|
मां कुल 30 किलो की बेहद कमजोर सी औरत थी और बड़ी मुश्किल से व्हील चेयर पर आई थी|उसने दुखी दिल से कहा कि मेरे लिए दोनों संतान बराबर हैं| मैं किसी एक के पक्ष में फैसला सुनाकर ,दूसरे का दिल नहीं दुखा सकती|
आप न्यायाधीश हैं , निर्णय करना आपका काम है |जो आपका निर्णय होगा मैं उसको ही मान लूंगी।
आखिर न्यायाधीश महोदय ने भारी मन से निर्णय दिया कि न्यायालय छोटे भाई की भावनाओं से सहमत है कि बड़ा भाई वाकई बूढ़ा और कमजोर है| ऐसे में मां की सेवा की जिम्मेदारी छोटे भाई को दी जाती है।
फैसला सुनकर बड़ा भाई जोर जोर से रोने लगा कि इस बुढापे ने मेरे स्वर्ग को मुझसे छीन लिया |अदालत में मौजूद न्यायाधीश समेत सभी रोने लगे।
कहने का तात्पर्य यह है कि अगर भाई बहनों में वाद विवाद हो ,तो इस स्तर का हो|
ये क्या बात है कि 'माँ तेरी है' की लड़ाई हो,और पता चले कि माता पिता ओल्ड एज होम में रह रहे हैं |यह पाप है।
हमें इस मुकदमे से ये सबक लेना ही चाहिए कि माता -पिता का दिल दुखाना नही चाहिए।।
***
*8*
_समुद्र के किनारे जब एक तेज़ लहर आयी तो एक बच्चे की चप्पल ही अपने साथ बहा ले गयी_...
_बच्चा रेत पर अंगुली से लिखता है_.. "समुद्र चोर है"
_उसी समुद्र के दूसरे किनारे पर एक मछुवारा बहुत सारी मछलियाँ पकड़ लेता है_....
_वह उसी रेत पर लिखता है_.."समुद्र मेरा पालनहार है"
_एक युवक समुद्र में डूब कर मर जाता है_....
_उसकी मां रेत पर लिखती है_... "समुद्र हत्यारा है"
_एक दूसरे किनारे एक गरीब बूढ़ा टेढ़ी कमर लिए रेत पर टहल रहा था...उसे एक बड़े सीप में एक अनमोल मोती मिल गया_...
_वह रेत पर लिखता है_... "समुद्र बहुत दानी है"
_अचानक एक बड़ी लहर आती है और सब लिखा मिटा कर चली जाती है ।_..
_मतलब समंदर को कहीं कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोगों की उसके बारे में क्या राय हैं, वो हमेशा अपनी लहरों के संग मस्त रहता है_..
_अगर विशाल समुद्र बनना है तो जीवन में क़भी भी फ़िजूल की बातों पर ध्यान ना दें । अपने उफान , उत्साह , शौर्य ,पराक्रम और शांति समुंदर की भाँती अपने हिसाब से तय करें ।_
_लोगों का क्या है, उनकी राय परिस्थितियों के हिसाब से बदलती रहती है ।_
_अगर मक्खी चाय में गिरे तो चाय फेंक देते हैं और शुद्ध देशी घी मे गिरे तो मक्खी फेंक देते हैं ।_
*जो जितनी "सुविधा" में है*
*वो उतनी ही "दुविधा" में है ।*
_स्वस्थ रहें , मस्त रहें , हमेशा हँसते रहें, खिलखिलाते रहें औऱ अपना ख्याल रखें...........!!_
***
*9*
प्रतिभा प्रलाप नहीं करती,प्रयास करती है..
22 वर्षीय युवा एक माह में 28 दिन विदेश यात्रा करता हैं। फ्रांस ने उसे अपने यहां नौकरी करने के लिए आमंत्रित किया, जिसमें उसे 16,00,000(सोलह लाख) रुपए प्रतिमाह वेतन, 5 बीएचके मकान और ढाई करोड़ की कार देने का प्रस्ताव दिया गया।
परंतु उसने यह बड़ी ही विनम्रता से अस्वीकार कर दिया ,क्योंकि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (#DRDO) को उसका संविलियन करने के आदेश दे दिए गए थे ।
आइए, वह बालक कौन है इसके बारे में हम जानें-
#भाग एक-
मैसूर कर्नाटक के निकट दूरस्थ ग्रामीण अंचल में कदईकड़ी में जन्मा बालक । पिता कृषक ।पिता की आय महज 2000 रुपये मासिक।
बचपन से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के प्रति रुचि। प्राथमिक कक्षा से ही निकट के साइबरकेफे में जाता और दुनिया भर की एविएशन स्पेस वेबसाइट में डूबा रहता। टूटी फूटी भाषा में वैज्ञानिकों को ई मेल भेजता।
वह इंजीनियरिंग करना चाहता था पर आर्थिक स्थिति दयनीय होने के कारण बीएससी भौतिक करना पड़ा। छात्रावास शुल्क अदा न करने के कारण उसे वहां से निकाला गया। वह मैसूर बस स्टैंड पर सोता और सार्वजनिक टॉयलेट का उपयोग करता।
उसने अपनी मेहनत से कंप्यूटर लैंग्वेज का ज्ञान प्राप्त किया और ई वेस्ट के माध्यम से ड्रोन बनाना सिखा। अभी तक 600 से ज्यादा ड्रोन बना चुके इस बालक को पहला ड्रोन बनाने के लिए 80 बार प्रयत्न करना पड़ा।
#भाग दो -
#आईआईटी दिल्ली में ड्रोन प्रतियोगिता में भाग लेने ट्रेन के जनरल क्लास में गया और द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
जापान में आयोजित विश्व ड्रोन प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए उसे अपनी थीसिस चेन्नई के प्रोफ़ेसर से अनुमोदित कराना पड़ा, जिसे यह लिखने में दक्ष नहीं है टिप्पणी के साथ अनुमोदित कर दिया गया।
जापान जाने के लिए ₹60000 रुपयों की जरूरत थी, जिसे मैसूर के एक व्यक्ति द्वारा उसके फ्लाइट टिकट स्पॉन्सर किए गए। ऊपरी खर्च के लिए उसने अपनी मां का मंगलसूत्र बेचकर व्यवस्था की। जब वह जापान उतरा तो उसकी जेब में मात्र 14 सौ रुपए थे।
आयोजन स्थल तक जाने के लिए मंहगी बुलेट ट्रेन से टिकट ले पाना संभव नहीं था। 16 स्थानों पर लोकल ट्रेन बदलते बदलते और अंत के 8 किलोमीटर पैदल चलते हुए वह आयोजन स्थल पर पहुंचा जहां 127 देशों के प्रतियोगी भाग ले रहे थे।
जब परिणाम घोषित किया जा रहा था तो उसमें टॉप टेन के 10 वें नंबर से 2 तक उसका नाम नहीं आया तो वह निराश होकर वापस हो रहा था...
..तभी जज ने घोषित किया #प्रताप गोल्ड मेडलिस्ट भारत । वह खुशी से उछल पड़ा। उसने अपनी आंखों से यूएसए का ध्वज नीचे उतरते और भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा ऊपर जाते हुए देखा। पुरस्कार स्वरुप उसे 10,000 यूरो प्रदान किए गए।
भारतीय प्रधानमंत्री और कर्नाटक के विधायक और सांसदों ने भी उसे बधाइयां दी। आज यह प्रतिभाशाली बालक रक्षा अनुसंधान और रक्षा विकास संगठन में वैज्ञानिक के पद पर सेवारत है। यह और कोई नहीं अपने नाम के अनुरूप प्रताप दिखाने वाला प्रताप ही है। जी हां प्रताप।
प्रतिभा प्रलाप नहीं करती,प्रयास करती है और प्रतिष्ठा अर्जित करती है। पैसा जरुरी है पर Passion उससे भी ज्यादा जरुरी।
साभार
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*10*
जब टाईटेनिक जहाज समुन्द्र में डूब रहा था ,उस समय उसके आस पास तीन ऐसे जहाज़ मौजूद थे जो टाईटेनिक के मुसाफिरों को आसानी से बचा सकते थे।
सबसे करीब जो जहाज़ मौजूद था उसका नाम SAMSON था और वो हादसे के वक्त टाईटेनिक से सिर्फ सात मील की दूरी पर था।
SAMSON के कैप्टन ने न सिर्फ टाईटेनिक की ओर से फायर किए गए सफेद शोले (जो कि बेहद खतरे की हालत में हवा में फायर किये जाते हैं।) देखे थे, बल्कि टाईटेनिक के मुसाफिरों के चिल्लाने के आवाज़ को भी सुना था।
लेकिन उस वक़्त सैमसन के लोग गैर कानूनी तौर पर बेशकीमती समुन्द्री जीव का शिकार कर रहे थे और नहीं चाहते थे कि पकड़े जाएं,लिहाज़ा वे अपने जहाज़ को दूसरी तरफ़ मोड़ कर चले गए।
यह जहाज़ हम में से उन लोगों की तरह है जो अपनी गुनाहों भरी जिन्दगी में इतने मग़न हो जाते हैं कि उनके अंदर से इनसानियत खत्म हो जाती है।
दूसरा जहाज़ जो करीब मौजूद था उसका नाम CALIFORNIAN था, जो हादसे के वक्त टाईटेनिक से चौदह मील दूर था, उस जहाज़ के कैप्टन ने भी टाईटेनिक की ओर से निकल रहे सफेद शोले अपनी आखों से देखे, क्योंकि टाईटेनिक उस वक्त बर्फ़ की चट्टानों से घिरा हुआ था और उसे उन चट्टानों के चक्कर काट कर जाना पड़ता, इसलिए वो कैप्टन सुबह होने का इन्तजार करने लगा।और जब सुबह वो टाईटेनिक की लोकेशन पर पहुंचा तो टाईटेनिक को समुन्द्र की तह मे पहुचे हुए चार घंटे गुज़र चुके थे और टाईटेनिक के कैप्टन Adword_Smith समेत 1569 मुसाफिर डूब चुके थे।
यह जहाज़ हम लोगों मे से उनकी तरह है जो किसी की मदद करने के लिए अपनी सहूलियत और आसानी देखते हैं और अगर हालात सही न हों तो अपना फ़र्ज़ भूल जाते हैं।
तीसरा जहाज़ CARPHATHIYA था जो टाईटेनिक से 68 मील दूर था, उस जहाज़ के कैप्टन ने रेडियो पर टाईटेनिक के मुसाफारों की चीख पुकार सुनी, जबकि उसका जहाज़ दूसरी तरफ़ जा रहा था, उसने फौरन अपने जहाज़ का रुख मोड़ा और बर्फ़ की चट्टानों और खतरनाक़ मौसम की परवाह किए बगैर मदद के लिए रवाना हो गया। हालांकि वो दूर होने की वजह से टाईटेनिक के डूबने के दो घंटे बाद लोकेशन पर पहुच सका लेकिन यही वो जहाज़ था, जिसने लाईफ बोट्स की मदद से टाईटेनिक के बाकी 710 मुसाफिरों को जिन्दा बचाया था और उन्हें हिफाज़त के साथ न्यूयार्क पहुचा दिया था।
उस जहाज़ के कैप्टन "आर्थो रोसट्रन " को ब्रिटेन की तारीख के चंद बहादुर कैप्टनों में शुमार किया जाता है और उनको कई सामाजिक और सरकारी आवार्ड से भी नवाजा गया था।
हमारी जिन्दगी में हमेशा मुश्किलें रहती हैं, चैलेंज रहते हैं लेकिन जो इन मुश्किल और चैलेंज का सामना करते हुए भी इन्सानियत की भलाई के लिए कुछ कर जाए वही सच्चा इन्सान है।
आज के माहौल में जिस किसी ने भी अपनी सामर्थ्य अनुसार किसी की मदद की है, समझो विश्व रूपी टाइटैनिक के डूबने से पहले उसने जिंदगियां बचाने का पुण्य प्राप्त किया है। अभी संकट दूर नहीं हुआ है। अभी भी बहुत कुछ किया जा सकता है। आओ मिलजुल कर इस मुश्किल घड़ी में एक दूसरे की मदद करें।
***
*11*
एक मेजर साहब के नेतृत्व में बीस जवानों की एक टुकड़ी हिमालय के अपने रास्ते पर थी । बेतहाशा ठण्ड में मेजर ने सोचा की अगर उन्हें यहाँ एक कप चाय मिल जाती तो आगे बढ़ने की ताकत आ जाती । लेकिन रात का समय था आस पास कोई बस्ती भी नहीं थी। लगभग एक घंटे की चढ़ाई के पश्चात् उन्हें एक जर्जर चाय की दुकान दिखाई दी । लेकिन अफ़सोस उस पर ताला लगा था । भूख और थकान की तीव्रता के चलते जवानों के आग्रह पर मेजर साहब दुकान का ताला तुड़वाने को राज़ी हो गये । ताला तोडा गयाए तो अंदर उन्हें चाय बनाने का सभी सामान मिल गया । जवानों ने चाय बनाई साथ वहां रखे बिस्किट आदि खाकर खुद को राहत दी । थकान से उबरने के पश्चात् सभी आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे ए लेकिन मेजर साहब को यूँ चोरो की तरह दुकान का ताला तोड़ने के कारण आत्मग्लानि हो रही थी । उन्होंने अपने पर्स में से दो हज़ार का एक नोट निकाला और चीनी के डब्बे के नीचे दबाकर रख दिया तथा दुकान का शटर ठीक से बंद करवाकर आगे बढ़ गए । चार महीने की समाप्ति पर इस टुकड़ी के सभी बीस जवान सकुशल अपने मेजर के नेतृत्व में उसी रास्ते से वापस आ रहे थे । रास्ते में उसी चाय की दुकान को खुला देखकर वहां सभी विश्राम करने के लिए रुक गए । उस दुकान का मालिक एक बूढ़ा चाय वाला था जो एक साथ इतने ग्राहक देखकर खुश हो गया और उनके लिए चाय बनाने लगा । चाय की चुस्कियों और बिस्कुटों के बीच मेजर साहब चाय वाले से उसके जीवन के अनुभव पूछने लगे एखासतौर पर इतने बीहड़ में दूकान चलाने के बारे में । बुजुर्ग व्यक्ति उन्हें कईं कहानियां सुनाता रहा और साथ ही भगवान का आभार प्रकट करता रहा । तभी एक जवान बोला ष् बाबा आप भगवान को इतना मानते हो ए अगर भगवान सच में होता तो फिर उसने तुम्हें इतने बुरे हाल में क्यों रखा हुआ हैष् । बाबा बोला ष्नहीं साहब ऐसा नहीं कहते भगवान के बारे मेंए भगवान् तो है और सच में है ण्ण्ण्ण् मैंने देखा हैष् आखरी वाक्य सुनकर सभी जवान कोतुहल से बुजुर्ग की ओर देखने लगे । बाबा बोला ष्साहब मै बहुत मुसीबत में था ए एक दिन मेरे इकलौते बेटे को आतंकवादियों ने पकड़ लिया । उन्होंने उसे बहुत मारा पिटाए लेकिन उसके पास कोई जानकारी नहीं थीए इसलिए उन्होंने उसे मार पीट कर छोड़ दियाष्। ष्मैं दुकान बंद करके उसे हॉस्पिटल ले गया ।मै बहुत तंगी में था साहब और आतंकवादियों के डर से किसी ने उधार भी नहीं दियाष् । ष्मेरे पास दवाइयों के पैसे भी नहीं थे और मुझे कोई उम्मीद भी नज़र नहीं आती थी । उस रात मै बहुत रोया और मैंने भगवान से प्रार्थना की और मदद मांगी ष्और साहब ण्ण्ण् उस रात भगवान मेरी दुकान में खुद आएष् ष्मै सुबह अपनी दुकान पर पहुंचा ताला टूटा देखकर मुझे लगा कि मेरे पास जो कुछ भी थोड़ा बहुत था वो भी सब लुट गयाष् । ष् मै दुकान में घुसा तो देखा दो हज़ार रूपए का एक नोटए चीनी के डब्बे के नीचे भगवान ने मेरे लिए रखा हुआ हैष् । ष्साहब ण्ण्ण्ण्ण् उस दिन दो हज़ार के नोट की कीमत मेरे लिए क्या थीए शायद मै बयान न कर पाऊं ण्ण्ण् लेकिन भगवान् है साहब ण्ण्ण् भगवान् तो हैष् । बुजुर्ग फिर अपने आप में बड़बड़ाया’ ण्ण्ण्ण् भगवान् के होने का आत्मविश्वास उसकी आँखों में साफ़ चमक रहा था । यह सुनकर वहां सन्नाटा छा गया बीस जोड़ी आँखे मेजर की तरफ एकटक देख रही थी जिसकी आंख में उन्हें अपने लिए स्पष्ट आदेश था ष् खामोश रहो ष् । मेजर साहब उठेए चाय का बिल जमा किया और बूढ़े चाय वाले को गले लगाते हुए बोले ष्हाँ बाबा मै जानता हूँ भगवान् हैण्ण्ण्ण् और तुम्हारी चाय भी शानदार थीष् । और उस दिन उन बीस जोड़ी आँखों ने पहली बार मेजर की आँखों में चमकते हुए पानी के दुर्लभ दृश्य को देखा और साथ ही ये अनुभव किया कि भगवान तुम्हें कब किसकी मदद के लिए किसका भगवान बनाकर कहाँ भेज देंगेए ये खुद तुम भी नहीं जानतेण्ण्ण्ण्!!
######
#*12*
प्रेरक प्रसंग
केन्या के सुप्रसिद्ध धावक अबेल मुताई आलंपिक प्रतियोगिता के अंतिम राउंड मे दौड़ते वक्त अंतिम लाइन से एक मीटर ही दूर थे और उनके सभी प्रतिस्पर्धी पीछे थे। अबेल ने स्वर्ण पदक लगभग जीत ही लिया था, इतने में कुछ गलतफहमी के कारण वे अंतिम रेखा समझकर एक मीटर पहले ही रुक गए। उनके पीछे आने वाले स्पेन के इव्हान फर्नांडिस के ध्यान में आया कि अंतिम रेखा समझ नहीं आने की वजह से वह पहले ही रुक गए। उसने चिल्लाकर अबेल को आगे जाने के लिए कहा लेकिन स्पेनिश नहीं समझने की वजह से वह नहीं हिला। आखिर में इव्हान ने उसे धकेलकर अंतिम रेखा तक पहुंचा दिया। इस कारण अबेल का प्रथम तथा इव्हान का दूसरा स्थान आया।
पत्रकारों ने इव्हान से पूछा "तुमने ऐसा क्यों किया ? मौका मिलने के बावजूद तुमने प्रथम क्रमांक क्यों गंवाया ?"
इव्हान ने कहा "मेरा सपना है कि हम एक दिन ऐसी मानवजाति बनाएंगे जो एक दूसरे को मदद करेगी ना कि उसकी भूल से फायदा उठाएगी। और मैंने प्रथम स्था नहीं गंवाया।
पत्रकार ने फिर कहा "लेकिन तुमने केनियन प्रतिस्पर्धी को धकेलकर आगे लाया।
इसपर इव्हान ने कहा "वह प्रथम था ही। यह प्रतियोगिता उसी की थी।"
पत्रकार ने फिर कहा, "लेकिन तुम स्वर्ण पदक जीत सकते थे।"
इव्हान ने कहा, "उस जीतने का क्या अर्थ होता। मेरे पदक को सम्मान मिलता ? मेरी मां ने मुझे क्या कहा होता ?
संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आगे जाते रहते हैं। मैंने अगली पीढ़ी को क्या दिया होता ? दूसरों की दुर्बलता या अज्ञान का फायदा न उठाते हुए उनको मदद करने की सीख मेरी मां ने मुझे दी है।"
साभार : डॉ. प्रवीण कुमार सिंह की फेसबुक वाल से
*****************
*13* प्रैक्टिस
श्रीलंका का एक खिलाड़ी था, उसके
दिमाग में बस एक ही चीज चलती थी….
क्रिकेट.क्रिकेट और बस क्रिकेट…
अपनी कड़ी मेहनत और लगन के दम पर उसे
श्री लंका की टेस्ट टीम में डेब्यू करने
का मौका मिला….
पहली इन्निंग्स…… जीरो पे आउट
दूसरी इन्निंग्स……. जीरो पे आउट
.
.
.
टीम से निकाल दिया गया….
.
practice…practice….practice….
फर्स्ट क्लास मैचेज में लगातार अच्छा
प्रदर्शन किया और एक 21 महीने बाद
फिर से मौका मिला।
पहली इन्निंग्स…… जीरो पे आउट
दूसरी इन्निंग्स……. 1 रन पे आउट
…
फिर टीम से बाहर।
..
प्रैक्टिस….प्रैक्टिस….प्रैक्टिस….
फर्स्ट क्लास मैचेज में हजारों रन बना
डाले और 17 महीने बाद एक बार फिर से
मौका मिला….
पहली इन्निंग्स…… जीरो पे आउट
दूसरी इन्निंग्स……. जीरो पे आउट
.
.
.
फिर टीम से निकाल दिया गया….
.
प्रैक्टिस…
प्रैक्टिस….प्रैक्टिस….प्रैक्टिस…
प्रैक्टिस….प्रैक्टिस…
और तीन साल बाद एक बार फिर उस
खिलाड़ी को मौका दिया
गया…..जिसका नाम था मर्वन
अट्टापट्टू
इस बार अट्टापट्टू नहीं चूका उसने जम
कर खेला और ….श्रीलंका की और से 16
शतक और 6 दोहरे शतक जड़ डाले और
श्रीलंका का one of the most
successful कप्तान बना!
सोचिये जिस इंसान को अपना दूसरा
रन बनाने में 6 साल लग गए अगर वो
इतना बड़ा कारनामा कर सकता है तो
दुनिया का कोई भी आदमी कुछ भी
कर सकता है!
और कुछ कर गुजरने के लिए डंटे रहना
पड़ता है…लगे रहना पड़ता है…मैदान छोड़
देना आसान होता है…मुश्किल होता है
टिके रहना…और जो टिका रहता है वो
आज नहीं तो कल ज़रूर सफल होता है।
इसलिए आपने जो कुछ भी पाने का
निश्चय किया है उसे पाने
की अपनी
जिद मत छोडिये…
🐎🐎
मन से किये छोटे
🌸प्रयास 🌸
हमेशा बड़ा परिणाम देते है।
#क्रिकेट #स्टोरी
🙏 *आपका दिन शुभ हो* 🙏
14-
एक *चूहा* एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था।
एक दिन *चूहे* ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं। चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है।
उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक *चूहेदानी* थी।
ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर *कबूतर* को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है।
कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौनसा उस में फँसना है?
निराश चूहा ये बात *मुर्गे* को बताने गया।
मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा… जा भाई.. ये मेरी समस्या नहीं है।
हताश चूहे ने बाड़े में जा कर *बकरे* को ये बात बताई… और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा।
उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई, जिस में एक ज़हरीला *साँप* फँस गया था।
अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस कसाई की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डस लिया।
तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने हकीम को बुलवाया। हकीम ने उसे *कबूतर* का सूप पिलाने की सलाह दी।
कबूतर अब पतीले में उबल रहा था।
खबर सुनकर उस कसाई के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन उसी *मुर्गे* को काटा गया।
कुछ दिनों बाद उस कसाई की पत्नी सही हो गयी, तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो *बकरे* को काटा गया।
*चूहा* अब दूर जा चुका था, बहुत दूर ……….।
_*अगली बार कोई आपको अपनी समस्या बतायेे और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है, तो रुकिए और दुबारा सोचिये।*_
*_समाज का एक अंग, एक तबका, एक नागरिक खतरे में है तो पूरा देश खतरे में है।_*
जय हिंद🇮🇳
🙏🙏🙏🙏
*15* *क्रोध और कील :-*
🗨एक पति ने अपने गुस्सैल पत्नी से तंग आकर उसे कीलों से भरा एक थैला देते हुए कहा ,"तुम्हें जितनी बार क्रोध आए तुम थैले से एक कील निकाल कर बाड़े में ठोंक देना !"
🙂पत्नी को अगले दिन जैसे ही क्रोध आया उसने एक कील बाड़े की दीवार पर ठोंक दी। यह प्रक्रिया वह लगातार करती रही।
☺धीरे धीरे उसकी समझ में आने लगा कि कील ठोंकने की व्यर्थ मेहनत करने से अच्छा तो अपने क्रोध पर नियंत्रण करना है और क्रमशः कील ठोंकने की उसकी संख्या कम होती गई।
😊एक दिन ऐसा भी आया कि पत्नी ने दिन में एक भी कील नहीं ठोंकी।
🤷🏻♂उसने खुशी खुशी यह बात अपने पति को बताई। वे बहुत प्रसन्न हुए और कहा, "जिस दिन तुम्हें लगे कि तुम एक बार भी क्रोधित नहीं हुई, ठोंकी हुई कीलों में से एक कील निकाल लेना।"
👱♀️पत्नी ऐसा ही करने लगी। एक दिन ऐसा भी आया कि बाड़े में एक भी कील नहीं बची। उसने खुशी खुशी यह बात अपने पति को बताई।
पति उस पत्नी को बाड़े में लेकर गए और कीलों के छेद दिखाते हुए पूछा, "क्या तुम ये छेद भर सकती हो?"
😋पत्नी ने कहा,"नहीं जी"
🥲पति ने उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा,"अब समझी, क्रोध में तुम्हारे द्वारा कहे गए कठोर शब्द, दूसरे के दिल में ऐसे छेद कर देते हैं, जिनकी भरपाई भविष्य में तुम कभी नहीं कर सकते !"
👉सन्देश : जब भी आपको क्रोध आये तो सोचिएगा कि कहीं आप भी किसी के दिल में कील ठोंकने तो नहीं जा रहे 😀😀😀
########@@@@@####
*16*टीम फ्री नहीं है
**बिस्तर पर लेटी हुई 83 वर्षीय बुजुर्ग महिला ने अपने 87 वर्षीय बुजुर्ग पति से कहा:*
*सुनो*..मैंने बस खिड़की से बाहर देखा और सोचा कि गैराज की लाइट जल रही है। क्या तुम जाकर गैराज की लाइट बंद कर दोगे?"
*बूढ़ा आदमी बड़ी मुश्किल से बिस्तर से उठा, एक खिड़की खोली और देखा कि पाँच या छह चोर उसके गैराज के दरवाज़े को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे।*
बुजुर्ग ने वहां से नजदीकी पुलिस स्टेशन को फोन किया:
"देखो...मेरा पता लिखो। घर पर केवल हम दो बुजुर्ग पति-पत्नी हैं। अभी पांच-छह चोर हमारे गैराज का दरवाजा तोड़ रहे हैं। जल्दी से पुलिस टीम भेजो।"
*दूसरी ओर से प्रेषक की आवाज आई:*
"हमने आपका पता लिख लिया है। अभी हमारे पास कोई टीम free नहीं है। जैसे ही हम किसी टीम से संपर्क करेंगे, मैं उन्हें आपके घर भेज दूंगा।"
*यह सुनकर बुजुर्ग निराश हो गए लेकिन दूसरी ओर चोर अभी भी गैराज का ताला तोड़ने में लगे हुए थे।*
दो मिनट बाद बुजुर्ग ने फिर थाने में फोन किया,सुनो अब किसी को भेजने की जरूरत नहीं है। मैंने पांचों चोरों को गोली मार दी है।"
*लाइन के दूसरी तरफ अफरा-तफरी मच गई.*
पांच मिनट के भीतर, हेलीकॉप्टर,पैरामेडिक, तीन डॉक्टर और दो एम्बुलेंस के साथ एक पुलिस टीम बूढ़े व्यक्ति के घर पहुंच गई।
*पांचों चोरों पर जल्द ही काबू पा लिया गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।*
बाद में पुलिस टीम के प्रभारी बुजुर्ग के पास पहुंचे और बोले.आपने कहा था कि आपने उन पाँच चोरों को गोली मार दी,
*लेकिन हमने उन्हें जीवित पकड़ लिया?*
बूढ़े व्यक्ति ने उत्तर दिया,और आपने भी तो कहा था कि आपकी कोई भी टीम free नहीं है. अब कैसे इतने जुटा लिए.
*वरिष्ठ नागरिकों को कम न समझें!*
(यह कहानी वरिष्ठ नागरिकों को भेजने लायक है)
*एक व्हाट्सएप ग्रुप से बहुत अच्छा संदेश*
सभी वरिष्ठ नागरिकों को सलाम.
*17*
#एक_था_भिखारी.... रेल सफ़र में भीख़ माँगने के दौरान एक सूट बूट पहने सेठ जी उसे दिखे। उसने सोचा कि यह व्यक्ति बहुत अमीर लगता है, इससे भीख़ माँगने पर यह मुझे जरूर अच्छे पैसे देगा। वह उस सेठ से भीख़ माँगने लगा।*
भिख़ारी को देखकर उस सेठ ने कहा, “तुम हमेशा मांगते ही हो, क्या कभी किसी को कुछ देते भी हो?”
*भिख़ारी बोला, “साहब मैं तो भिख़ारी हूँ, हमेशा लोगों से मांगता ही रहता हूँ, मेरी इतनी औकात कहाँ कि किसी को कुछ दे सकूँ?”*
सेठ:- जब किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हें मांगने का भी कोई हक़ नहीं है। मैं एक व्यापारी हूँ और लेन-देन में ही विश्वास करता हूँ, अगर तुम्हारे पास मुझे कुछ देने को हो तभी मैं तुम्हे बदले में कुछ दे सकता हूँ।
*तभी वह स्टेशन आ गया जहाँ पर उस सेठ को उतरना था, वह ट्रेन से उतरा और चला गया।*
इधर भिख़ारी सेठ की कही गई बात के बारे में सोचने लगा। सेठ के द्वारा कही गयीं बात उस भिख़ारी के दिल में उतर गई। वह सोचने लगा कि शायद मुझे भीख में अधिक पैसा इसीलिए नहीं मिलता क्योकि मैं उसके बदले में किसी को कुछ दे नहीं पाता हूँ। लेकिन मैं तो भिखारी हूँ, किसी को कुछ देने लायक भी नहीं हूँ।लेकिन कब तक मैं लोगों को बिना कुछ दिए केवल मांगता ही रहूँगा।
*बहुत सोचने के बाद भिख़ारी ने निर्णय किया कि जो भी व्यक्ति उसे भीख देगा तो उसके बदले मे वह भी उस व्यक्ति को कुछ जरूर देगा। लेकिन अब उसके दिमाग में यह प्रश्न चल रहा था कि वह खुद भिख़ारी है तो भीख के बदले में वह दूसरों को क्या दे सकता है?*
इस बात को सोचते हुए दिनभर गुजरा लेकिन उसे अपने प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिला।
*दुसरे दिन जब वह स्टेशन के पास बैठा हुआ था तभी उसकी नजर कुछ फूलों पर पड़ी जो स्टेशन के आस-पास के पौधों पर खिल रहे थे, उसने सोचा, क्यों न मैं लोगों को भीख़ के बदले कुछ फूल दे दिया करूँ। उसको अपना यह विचार अच्छा लगा और उसने वहां से कुछ फूल तोड़ लिए।*
वह ट्रेन में भीख मांगने पहुंचा। जब भी कोई उसे भीख देता तो उसके बदले में वह भीख देने वाले को कुछ फूल दे देता। उन फूलों को लोग खुश होकर अपने पास रख लेते थे। अब भिख़ारी रोज फूल तोड़ता और भीख के बदले में उन फूलों को लोगों में बांट देता था।
*कुछ ही दिनों में उसने महसूस किया कि अब उसे बहुत अधिक लोग भीख देने लगे हैं। वह स्टेशन के पास के सभी फूलों को तोड़ लाता था। जब तक उसके पास फूल रहते थे तब तक उसे बहुत से लोग भीख देते थे। लेकिन जब फूल बांटते बांटते ख़त्म हो जाते तो उसे भीख भी नहीं मिलती थी,अब रोज ऐसा ही चलता रहा।*
एक दिन जब वह भीख मांग रहा था तो उसने देखा कि वही सेठ ट्रेन में बैठे है जिसकी वजह से उसे भीख के बदले फूल देने की प्रेरणा मिली थी।
*वह तुरंत उस व्यक्ति के पास पहुंच गया और भीख मांगते हुए बोला, आज मेरे पास आपको देने के लिए कुछ फूल हैं, आप मुझे भीख दीजिये बदले में मैं आपको कुछ फूल दूंगा।*
सेठ ने उसे भीख के रूप में कुछ पैसे दे दिए और भिख़ारी ने कुछ फूल उसे दे दिए। उस सेठ को यह बात बहुत पसंद आयी।
*सेठ:- वाह क्या बात है..? आज तुम भी मेरी तरह एक व्यापारी बन गए हो, इतना कहकर फूल लेकर वह सेठ स्टेशन पर उतर गया।*
लेकिन उस सेठ द्वारा कही गई बात एक बार फिर से उस भिख़ारी के दिल में उतर गई। वह बार-बार उस सेठ के द्वारा कही गई बात के बारे में सोचने लगा और बहुत खुश होने लगा। उसकी आँखे अब चमकने लगीं, उसे लगने लगा कि अब उसके हाथ सफलता की वह चाबी लग गई है जिसके द्वारा वह अपने जीवन को बदल सकता है।
*वह तुरंत ट्रेन से नीचे उतरा और उत्साहित होकर बहुत तेज आवाज में ऊपर आसमान की ओर देखकर बोला, “मैं भिखारी नहीं हूँ, मैं तो एक व्यापारी हूँ..*
मैं भी उस सेठ जैसा बन सकता हूँ.. मैं भी अमीर बन सकता हूँ!
लोगों ने उसे देखा तो सोचा कि शायद यह भिख़ारी पागल हो गया है, अगले दिन से वह भिख़ारी उस स्टेशन पर फिर कभी नहीं दिखा।*
एक वर्ष बाद इसी स्टेशन पर दो व्यक्ति सूट बूट पहने हुए यात्रा कर रहे थे। दोनों ने एक दूसरे को देखा तो उनमे से एक ने दूसरे को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कहा, “क्या आपने मुझे पहचाना?”
सेठ:- “नहीं तो ! शायद हम लोग पहली बार मिल रहे हैं✍️
भिखारी:- सेठ जी.. आप याद कीजिए, हम पहली बार नहीं बल्कि तीसरी बार मिल रहे हैं।*
सेठ:- मुझे याद नहीं आ रहा, वैसे हम पहले दो बार कब मिले थे?
अब पहला व्यक्ति मुस्कुराया और बोला:
हम पहले भी दो बार इसी ट्रेन में मिले थे, मैं वही भिख़ारी हूँ जिसको आपने पहली मुलाकात में बताया कि मुझे जीवन में क्या करना चाहिए और दूसरी मुलाकात में बताया कि मैं वास्तव में कौन हूँ।
*नतीजा यह निकला कि आज मैं फूलों का एक बहुत बड़ा व्यापारी हूँ और इसी व्यापार के काम से दूसरे शहर जा रहा हूँ।*
आपने मुझे पहली मुलाकात में प्रकृति का नियम बताया था... जिसके अनुसार हमें तभी कुछ मिलता है, जब हम कुछ देते हैं। लेन देन का यह नियम वास्तव में काम करता है, मैंने यह बहुत अच्छी तरह महसूस किया है, लेकिन मैं खुद को हमेशा भिख़ारी ही समझता रहा, इससे ऊपर उठकर मैंने कभी सोचा ही नहीं था और जब आपसे मेरी दूसरी मुलाकात हुई तब आपने मुझे बताया कि मैं एक व्यापारी बन चुका हूँ। अब मैं समझ चुका था कि मैं वास्तव में एक भिखारी नहीं बल्कि व्यापारी बन चुका हूँ।
भारतीय मनीषियों ने संभवतः इसीलिए स्वयं को जानने पर सबसे अधिक जोर दिया और फिर कहा -*
समझ की ही तो बात है...
भिखारी ने स्वयं को जब तक भिखारी समझा, वह भिखारी रहा|
उसने स्वयं को व्यापारी मान लिया, व्यापारी बन गया |
जिस दिन हम समझ लेंगे कि मैं कौन हूँ...
अर्थात मैं भगवान का अंश हूॅ।
फिर जानने समझने को रह ही क्या जाएगा।।
*18*
*मिस्टर बीन (रोवन एटकिंसन) - उस आदमी की कहानी जिसने अपने सपनों को कभी नहीं छोड़ा।*
रोवन एटकिंसन का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था और वह बचपन में अपनी हकलाहट के कारण बहुत पीड़ित थे। उनके लुक के कारण उन्हें स्कूल में चिढ़ाया और धमकाया भी जाता था। उसके गुंडों ने सोचा कि वह एलियन जैसा दिखता है। उसके शिक्षकों में से एक ने कहा, जल्द ही उसे एक अजीब व्यक्ति के रूप में चिह्नित किया गया और वह एक बहुत ही शर्मीला, एकांतप्रिय बच्चा बन गया, जिसके ज्यादा दोस्त नहीं थे, इसलिए उसने विज्ञान की ओर कदम बढ़ाया। उसके बारे में कुछ भी उत्कृष्ट नहीं था। मैंने उनसे एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक बनने की उम्मीद नहीं की थी, लेकिन उन्होंने सभी को गलत साबित कर दिया है। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में भर्ती होने के दौरान ही उन्हें अभिनय से प्यार हो गया था, लेकिन बोलने में दिक्कत के कारण वह प्रदर्शन नहीं कर सके। डिग्री प्राप्त करने के बाद किसी भी फिल्म या टीवी शो में आने से पहले उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री प्राप्त की, उन्होंने अपने सपने को आगे बढ़ाने और अभिनेता बनने का फैसला किया, इसलिए उन्होंने एक कॉमेडी ग्रुप में दाखिला लिया लेकिन फिर से, उनका हकलाना उनके रास्ते में आ गया।
कई टीवी शो ने उन्हें अस्वीकार कर दिया, और कई अस्वीकृतियों के बावजूद उन्हें बहुत निराशा महसूस हुई। उन्होंने खुद पर विश्वास करना कभी नहीं छोड़ा। उन्हें लोगों को हंसाने का बड़ा शौक था और वह जानते थे कि वह इसमें बहुत अच्छे हैं। उन्होंने अपने मूल कॉमेडी स्केच पर अधिक से अधिक ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया और जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि जब भी वह कोई किरदार निभाते हैं तो वह धाराप्रवाह बोल सकते हैं। उन्होंने अपनी हकलाहट पर काबू पाने का एक तरीका ढूंढ लिया और उसका उपयोग उनके अभिनय के लिए प्रेरणा भी बन गया। अपने मास्टर की पढ़ाई के दौरान रोवन एटकिंसन ने मिस्टर बीन के नाम से जाने जाने वाले अजीब, अवास्तविक और अब बोलने वाले चरित्र का सह-निर्माण किया।
उन्हें अन्य शो में सफलता मिली, मिस्टर बीन ने उन्हें विश्व स्तर पर प्रसिद्ध बना दिया और उनके लुक और उनके बोलने के विकार के कारण आने वाली सभी बाधाओं के बावजूद, उन्होंने साबित कर दिया कि बिना किसी हीरोइन बॉडी या हॉलीवुड चेहरे के भी, आप उनमें से एक बन सकते हैं दुनिया में सबसे पसंदीदा और सम्मानित अभिनेता।
*रोवन एटकिंसन की प्रेरक सफलता की कहानी। यह बहुत प्रेरणादायक है क्योंकि यह सिखाता है कि जीवन में सफल होने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीजें हैं जुनून, कड़ी मेहनत, समर्पण और अपनी भावनाओं और कमजोरियों की परवाह किए बिना कभी हार न मानना।*
*कहानी की नीति:*
*कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से पैदा नहीं होता। डरो मत. लोग अपनी कमजोरियों और असफलताओं के बावजूद हर दिन आश्चर्यजनक चीजें हासिल कर सकते हैं।*
*तो जाओ और जो जीवन तुम्हें मिला है उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ करो।*
*19*
एक पुरानी कहानीं
एक राजा को राज करते काफी समय हो गया था।उसके बाल भी सफ़ेद होने लगे थे।एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया व अपने गुरुदेव को भी बुलाया। उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया।
राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दी, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे भी उसे पुरस्कृत कर सकें। सारी रात नृत्य चलता रहा। ब्रह्म मुहूर्त की बेला आई, नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है और तबले वाले को सावधान करना ज़रूरी है, वरना राजा का क्या भरोसा दंड दे दे। तो उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक *दोहा* पढ़ा -
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*"घणी गई थोड़ी रही, या में पल पल जाय।*
*एक पलक के कारणे, युं ना कलंक लगाय।"*
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अब इस *दोहे* का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अर्थ निकाला।
तबले वाला सतर्क होकर तबला बजाने लगा।
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जब यह दोहा गुरु जी ने सुना तो गुरुजी ने सारी मोहरें उस नर्तकी को अर्पण कर दी।
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दोहा सुनते ही राजकुमारी ने भी अपना नौलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया।
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दोहा सुनते ही राजा के युवराज ने भी अपना मुकुट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया ।
राजा बहुत ही अचम्भित हो गया।
सोचने लगा रात भर से नृत्य चल रहा है पर यह क्या! अचानक एक दोहे से सब अपनी मूल्यवान वस्तु बहुत ही ख़ुश हो कर नर्तकी को समर्पित कर रहें हैं ?
राजा सिंहासन से उठा और नर्तकी को बोला एक दोहे द्वारा एक सामान्य नर्तकी होकर तुमने सबको लूट लिया।
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जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरुजी कहने लगे - "राजा ! इसको नीच नर्तकी मत कह, ये अब मेरी गुरु बन गयी है क्योंकि इसके दोहे ने मेरी आँखें खोल दी हैं। दोहे से यह कह रही है कि मैं सारी उम्र जंगलों में भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ, भाई ! मैं तो चला ।" यह कहकर गुरुजी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े।
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राजा की लड़की ने कहा - "पिता जी ! मैं जवान हो गयी हूँ। आप आँखें बन्द किए बैठे हैं, मेरा विवाह नहीं कर रहे थे। आज रात मैं आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद करने वाली थी। लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने मुझे सुमति दी, कि जल्दबाज़ी न कर, हो सकता है तेरा विवाह कल हो जाए, क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है ?
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युवराज ने कहा - महाराज ! आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे। मैं आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपको मारने वाला था। लेकिन इस दोहे ने समझाया कि पगले ! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है! थोड़ा धैर्य रख।"
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जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान हो गया । राजा के मन में वैराग्य आ गया। राजा ने तुरन्त फैंसला लिया - "क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूँ।" फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा - "पुत्री ! दरबार में एक से एक राजकुमार आये हुए हैं। तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रुप में चुन सकती हो।" राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया ।
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यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा "मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूँ नहीं सुधर पायी ?" उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया । उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना नृत्य बन्द करती हूँ "हे प्रभु ! मेरे पापों से मुझे क्षमा करना। बस, आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुँगी
20
फ्रांस में एक तैराक हुए, जेवियर! फ्रांस के लिए उन्होंने ओलंपिक तक खेला। उन्हें फ्रांस के अच्छे तैराकों में गिना जाता रहा है। पर जेवियर दुर्भाग्यशाली थे, उन्हें ओलंपिक में स्वर्ण पदक नहीं मिला।
जेवियर की पत्नी भी तैराक हैं, उन्होंने भी फ्रांस के लिए ओलंपिक में भाग लिया है। पर मैडल उनके भाग्य में भी नहीं। सम्भव है कि वे दुर्भाग्यशाली हों, या उनमें गोल्ड जीतने लायक प्रतिभा न हो।
एक ओलंपिक में जेवियर उस माइकल फेलेप्स के साथ भी तैरे थे, जो ओलंपिक का बादशाह है। जिसके पास सबसे अधिक पदक हैं। फेलेप्स के आगे तो उन्हें हारना ही था, वे हार गए।
जेवियर के मन मे वह हार बैठ गयी। वह हार उसे हमेशा दर्द देती रही, तड़पाती रही। पर करते क्या? उन्हें यह बात तो समझ आ गयी थी कि उनमें उतनी प्रतिभा नहीं जो ओलंपिक में अपना राष्ट्रगान बजवा सकें। जेवियर ने अपनी उम्मीदों को अपने बेटे में ढूंढना शुरू किया।
उनके लड़के में भी प्रतिभा थी। आखिर उसके माता-पिता ओलंपियन थे। जेवियर पति पत्नी अपने बच्चे के पीछे कड़ी मेहनत करने लगे। लड़का भी ओलंपिक पहुँचा। टोक्यो ओलंपिक में वह छठवें स्थान पर रहा। पदक से दूर, बहुत दूर...
जेवियर चैन से नहीं बैठता था। ओलंपिक गोल्ड उसकी आँखों के आगे नाचता था। उसने अब अपने बेटे के लिए वह ट्रेनिंग स्कूल चुना, जिसमें माइकल फेलेप्स का कोच रहा बाउमैन हेड कोच था। जेवियर हर वह प्रयास कर लेना चाहता था, जो उसके बेटे के विजेता बनने में सहायक होता।
लड़का भी अपना सबकुछ झोंक रहा था। उसके जीवन का एकमात्र आंदोलन ओलंपिक गोल्ड पाने लायक स्पीड पाने का था। वह तैर रहा था, और केवल तैर रहा था।
उसके कोच को भी भरोसा था उसपर। उसने पहले ही दिन से समझ लिया था कि यह लड़का कमाल करेगा। वह भी उसके साथ जी जान से लगा हुआ था।
फिर आया ओलंपिक 2024। जेवियर पति-पत्नी की उम्मीदें आसमान पर थीं। बेटे का एक गोल्ड उन्हें जीवन भर का सुकून देने वाला था।
बताता चलूं, खेल छोड़ने के बाद उस पति पत्नी ने कोई और काम नहीं किया। वे अपना सारा समय और सारा धन अपने बेटे पर खर्च करते रहे। क्यों? बस इसलिए कि एक पदक आये। स्वर्ण आये।
तो सुनिये। 2024 के ओलंपिक में उनका बेटा 4 स्वर्ण के साथ कुल पांच पदक लेकर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बना है। फेस ऑफ द गेम, लियोन मर्चेंड! वह लियोन जो पदक तालिका में अकेले 186 देशों से आगे खड़ा है। वह अपने देश का पहला खिलाड़ी है जिसके पास एक ओलंपिक में एक से अधिक स्वर्ण पदक है।
कुछ कहानियां तनिक लम्बी होती हैं, देर से पूरी होती हैं। पर जब पूरी होती हैं तो कमाल होती हैं।
21-
#एक पति ने अपने गुस्सैल पत्नी से तंग आकर उसे कीलों से भरा एक थैला देते हुए कहा ,"तुम्हें जितनी बार क्रोध आए तुम थैले से एक कील निकाल कर बाड़े में ठोंक देना !"
पत्नी को अगले दिन जैसे ही क्रोध आया उसने एक कील बाड़े की दीवार पर ठोंक दी। यह प्रक्रिया वह लगातार करती रही।
धीरे धीरे उसकी समझ में आने लगा कि कील ठोंकने की व्यर्थ मेहनत करने से अच्छा तो अपने क्रोध पर नियंत्रण करना है और क्रमशः कील ठोंकने की उसकी संख्या कम होती गई।
एक दिन ऐसा भी आया कि पत्नी ने दिन में एक भी कील नहीं ठोंकी।
उसने खुशी खुशी यह बात अपने पति को बताई। वे बहुत प्रसन्न हुए और कहा, "जिस दिन तुम्हें लगे कि तुम एक बार भी क्रोधित नहीं हुई, ठोंकी हुई कीलों में से एक कील निकाल लेना।"
पत्नी ऐसा ही करने लगी। एक दिन ऐसा भी आया कि बाड़े में एक भी कील नहीं बची। उसने खुशी खुशी यह बात अपने पति को बताई।
पति उस पत्नी को बाड़े में लेकर गए और कीलों के छेद दिखाते हुए पूछा, "क्या तुम ये छेद भर सकती हो?"
पत्नी ने कहा, "नहीं जी"
पति ने उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा,"अब समझी, क्रोध में तुम्हारे द्वारा कहे गए कठोर शब्द, दूसरे के दिल में ऐसे छेद कर देते हैं, जिनकी भरपाई भविष्य में तुम कभी नहीं कर सकते !"
सन्देश : जब भी आपको क्रोध आये तो सोचिएगा कि कहीं आप भी किसी के दिल में कील ठोंकने तो नहीं जा रहे 😀😀
आजकल लोग ऐसी बात बोल देते हैं दूसरों को बुरा लग जाता है अगला को पता नही चलता, इसलिए कुछ भी बोलने से पहले से सोचा करें
पता नही लोग क्या क्या बोले चले जाते हैं फिर बाद में पता चलता है उसको बुरा लगा है, तब सोचते हैं मैंने ये क्या बोल दिया है
गुस्सा कम करो, अगर गुस्सा आ भी जाये तो कोई ऐसा काम ना करें बाद में दिक्कत हो या शर्मिंदा होना पड़े
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22 धजी का सांप :-
एक बार एक दरोगा जी का मुंह लगा नाई पूछ बैठा -
"हुजूर पुलिस वाले रस्सी का साँप कैसे बना देते हैं ?"
दरोगा जी बात को टाल गए।
लेकिन नाई ने जब दो-तीन
बार यही सवाल पूछा तो दरोगा जी ने मन ही मन तय किया कि इस भूतनी वाले को बताना ही पड़ेगा कि रस्सी का साँप कैसे बनाते हैं !
लेकिन प्रत्यक्ष में नाई से बोले - "अगली बार आऊंगा तब
बताऊंगा !"
इधर दरोगा जी के जाने के दो घंटे बाद ही 4 सिपाही नाई
की दुकान पर छापा मारने आ धमके - "मुखबिर से पक्की खबर मिली है, तू हथियार सप्लाई करता है। तलाशी लेनी है दूकान की !"
तलाशी शुरू हुई ...
एक सिपाही ने नजर बचाकर हड़प्पा की खुदाई से निकला जंग लगा हुआ असलहा छुपा दिया !
दूकान का सामान उलटने-पलटने के बाद एक सिपाही चिल्लाया - "ये रहा रिवाल्वर"
छापामारी अभियान की सफलता देख के नाई के होश उड़ गए - "अरे साहब मैं इसके बारे में कुछ नहीं जानता ।
आपके बड़े साहब भी मुझे अच्छी तरह पहचानते हैं !"
एक सिपाही हड़काते हुए बोला - "दरोगा जी का नाम लेकर बचना चाहता है ? साले सब कुछ बता दे कि तेरे गैंग में कौन-कौन है ... तेरा सरदार कौन है ... तूने कहाँ-कहाँ हथियार सप्लाई किये ... कितनी जगह लूट-पाट की ...
तू अभी थाने चल !"
थाने में दरोगा साहेब को देखते ही नाई पैरों में गिर पड़ा - "साहब बचा लो ... मैंने कुछ नहीं किया !"
दरोगा ने नाई की तरफ देखा और फिर सिपाहियों से पूछा - "क्या हुआ ?"
सिपाही ने वही जंग लगा असलहा दरोगा के सामने पेश कर दिया - "सर जी मुखबिर से पता चला था .. इसका गैंग है और हथियार सप्लाई करता है.. इसकी दूकान से ही ये रिवाल्वर मिली है !"
दरोगा सिपाही से - "तुम जाओ मैं पूछ-ताछ करता हूँ !"
सिपाही के जाते ही दरोगा हमदर्दी से बोले - "ये क्या किया तूने ?"
नाई घिघियाया - "सरकार मुझे बचा लो ... !"
दरोगा गंभीरता से बोला - "देख ये जो सिपाही हैं न ...साले एक नंबर के कमीने हैं ...मैंने अगर तुझे छोड़ दिया तो ये साले मेरी शिकायत ऊपर अफसर से कर देंगे ...
इन कमीनो के मुंह में हड्डी डालनी ही पड़ेगी ...
मैं तुझे अपनी गारंटी पर दो घंटे का समय देता हूँ , जाकर किसी तरह बीस हजार का इंतजाम कर ..
पांच - पांच हजार चारों सिपाहियों को दे दूंगा तो साले मान जायेंगे !"
नाई रोता हुआ बोला - "हुजूर मैं गरीब आदमी बीस हजार कहाँ से लाऊंगा ?"
दरोगा डांटते हुए बोला - "तू मेरा अपना है इसलिए इतना सब कर रहा हूँ तेरी जगह कोई और होता तो तू अब तक जेल पहुँच गया होता ...जल्दी कर वरना बाद में मैं कोई मदद नहीं कर पाऊंगा !"
नाई रोता - कलपता घर गया ... अम्मा के कुछ चांदी के जेवर थे ...चौक में एक ज्वैलर्स के यहाँ सारे जेवर बेचकर किसी तरह बीस हजार लेकर थाने में पहुंचा और सहमते हुए बीस हजार रुपये दरोगा जी को थमा दिए !
दरोजा जी ने रुपयों को संभालते हुए पूछा - "कहाँ से लाया ये रुपया?"
नाई ने ज्वैलर्स के यहाँ जेवर बेचने की बात बतायी तो दरोगा जी ने सिपाही से कहा - "जीप निकाल और नाई को हथकड़ी लगा के जीप में बैठा ले .. दबिश पे चलना है !"
पुलिस की जीप चौक में उसी ज्वैलर्स के यहाँ रुकी !
दरोगा और दो सिपाही ज्वैलर्स की दूकान के अन्दर पहुंचे ...
दरोगा ने पहुँचते ही ज्वैलर्स को रुआब में ले लिया - "चोरी का माल खरीदने का धंधा कब से कर रहे हो ?"
ज्वैलर्स सिटपिटाया - "नहीं दरोगा जी आपको किसी ने गलत जानकारी दी है!"
दरोगा ने डपटते हुए कहा - "चुप ~~~ बाहर देख जीप में
हथकड़ी लगाए शातिर चोर बैठा है ... कई साल से पुलिस को इसकी तलाश थी ... इसने तेरे यहाँ जेवर बेचा है कि नहीं ? तू तो जेल जाएगा ही .. साथ ही दूकान का सारा माल भी जब्त होगा !"
ज्वैलर्स ने जैसे ही बाहर पुलिस जीप में हथकड़ी पहले नाई को देखा तो उसके होश उड़ गए,
तुरंत हाथ जोड़ लिए - "दरोगा जी जरा मेरी बात सुन लीजिये!
कोने में ले जाकर मामला एक लाख में सेटल हुआ !
दरोगा ने एक लाख की गड्डी जेब में डाली और नाई ने जो गहने बेचे थे वो हासिल किये फिर ज्वैलर्स को वार्निंग दी - "तुम शरीफ आदमी हो और तुम्हारे खिलाफ पहला मामला था इसलिए छोड़ रहा हूँ ... आगे कोई शिकायत न मिले !"
इतना कहकर दरोगा जी और सिपाही जीप पर बैठ के
रवाना हो गए !
थाने में दरोगा जी मुस्कुराते हुए पूछ रहे थे - "साले तेरे को समझ में आया रस्सी का सांप कैसे बनाते हैं !"
नाई सिर नवाते हुए बोला - "हाँ माई-बाप समझ गया !"
दरोगा हँसते हुए बोला - "भूतनी के ले संभाल अपनी अम्मा के गहने और एक हजार रुपया और जाते-जाते याद कर ले ...
हम रस्सी का सांप ही नहीं बल्कि नेवला .. अजगर ... मगरमच्छ सब बनाते हैं .. बस आसामी बढ़िया होना चाहिए"।।
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23-
एक अखबार वाला प्रात:काल लगभग 5 बजे जिस समय वह अख़बार देने आता था, उस समय मैं उसको अपने मकान की 'गैलरी' में टहलता हुआ मिल जाता था। अत: वह मेरे आवास के मुख्य द्वार के सामने चलती साइकिल से निकलते हुए मेरे आवास में अख़बार फेंकता और मुझको 'नमस्ते डॉक्टर साब' वाक्य से अभिवादन करता हुआ फर्राटे से आगे बढ़ जाता था।
क्रमश: समय बीतने के साथ मेरे सोकर उठने का समय बदल कर प्रात: 7:00 बजे हो गया।
जब कई दिनों तक मैं उसको प्रात: नहीं दिखा तो एक रविवार को प्रात: लगभग 9:00 बजे वह मेरा कुशल-क्षेम लेने मेरे आवास पर आ गया। जब उसको ज्ञात हुआ कि घर में सब कुशल- मंगल है, मैं बस यूँ ही देर से उठने लगा था।
वह बड़े सविनय भाव से हाथ जोड़ कर बोला,
"डॉक्टर साब! एक बात कहूँ?"
मैंने कहा... "बोलो"
वह बोला... "आप सुबह तड़के सोकर जगने की अपनी इतनी अच्छी आदत को क्यों बदल रहे हैं? आप के लिए ही मैं सुबह तड़के विधान सभा मार्ग से अख़बार उठा कर और फिर बहुत तेज़ी से साइकिल चला कर आप तक अपना पहला अख़बार देने आता हूँ...सोचता हूँ कि आप प्रतीक्षा कर रहे होंगे।"
मैने विस्मय से पूछा... "और आप! विधान सभा मार्ग से अखबार लेकर आते हैं?"
“हाँ! सबसे पहला वितरण वहीं से प्रारम्भ होता है," उसने उत्तर दिया।
“तो फिर तुम जगते कितने बजे हो?"
“ढाई बजे.... फिर साढ़े तीन तक वहाँ पहुँच जाता हूँ।"
“फिर?" मैंने पूछा।
“फिर लगभग सात बजे अख़बार बाँट कर घर वापस आकर सो जाता हूँ..... फिर दस बजे कार्यालय...... अब बच्चों को बड़ा करने के लिए ये सब तो करना ही होता है।”
मैं कुछ पलों तक उसकी ओर देखता रह गया और फिर बोला, “ठीक! तुम्हारे बहुमूल्य सुझाव को ध्यान में रखूँगा।"
घटना को लगभग पन्द्रह वर्ष बीत गये। एक दिन प्रात: नौ बजे के लगभग वह मेरे आवास पर आकर एक निमंत्रण-पत्र देते हुए बोला, “डॉक्टर साब! बिटिया का विवाह है..... आप को सपरिवार आना है।“
निमंत्रण-पत्र के आवरण में अभिलेखित सामग्री को मैंने सरसरी निगाह से जो पढ़ा तो संकेत मिला कि किसी डाक्टर लड़की का किसी डाक्टर लड़के से परिणय का निमंत्रण था। तो जाने कैसे मेरे मुँह से निकल गया, “तुम्हारी लड़की?"
उसने भी जाने मेरे इस प्रश्न का क्या अर्थ निकाल लिया कि विस्मय के साथ बोला, “कैसी बात कर रहे हैं, डॉक्टर साबजी! मेरी ही बेटी।"
मैं अपने को सम्भालते हुए और कुछ अपनी झेंप को मिटाते हुए बोला, “नहीं! मेरा तात्पर्य कि अपनी लड़की को तुम डाक्टर बना सके, इसी प्रसन्नता में वैसा कहा।“
“हाँ सरजी! लड़की ने मेकाहारा से एमबीबीएस किया है और उसका होने वाला पति भी वहीं से एमडी है ....... और सरजी! मेरा लड़का इंजीनियरिंग के अन्तिम वर्ष का छात्र है।”
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा सोच रहा था कि उससे अन्दर आकर बैठने को कहूँ कि न कहूँ कि वह स्वयम् बोला, “अच्छा सरजी! अब चलता हूँ..... अभी और कई कार्ड बाँटने हैं...... आप लोग आइयेगा अवश्य।"
मैंने भी फिर सोचा आज अचानक अन्दर बैठने को कहने का आग्रह मात्र एक छलावा ही होगा। अत: औपचारिक नमस्ते कहकर मैंने उसे विदाई दे दी।
उस घटना के दो वर्षों के बाद जब वह मेरे आवास पर आया तो ज्ञात हुआ कि उसका बेटा जर्मनी में कहीं कार्यरत था। उत्सुक्तावश मैंने उससे प्रश्न कर ही डाला कि आखिर उसने अपनी सीमित आय में रहकर अपने बच्चों को वैसी उच्च शिक्षा कैसे दे डाली?
“सर जी! इसकी बड़ी लम्बी कथा है फिर भी कुछ आप को बताये देता हूँ। अख़बार, नौकरी के अतिरिक्त भी मैं ख़ाली समय में कुछ न कुछ कमा लेता था। साथ ही अपने दैनिक व्यय पर इतना कड़ा अंकुश कि भोजन में सब्जी के नाम पर रात में बाज़ार में बची खुची कद्दू, लौकी, बैंगन जैसी मौसमी सस्ती-मद्दी सब्जी को ही खरीद कर घर पर लाकर बनायी जाती थी।
एक दिन मेरा लड़का परोसी गयी थाली की सामग्री देखकर रोने लगा और अपनी माँ से बोला, 'ये क्या रोज़ बस वही कद्दू, बैंगन, लौकी, तरोई जैसी नीरस सब्ज़ी... रूख़ा-सूख़ा ख़ाना...... ऊब गया हूँ इसे खाते-खाते। अपने मित्रों के घर जाता हूँ तो वहाँ मटर-पनीर, कोफ़्ते, दम आलू आदि....। और यहाँ कि बस क्या कहूँ!!'"
मैं सब सुन रहा था तो रहा न गया और मैं बड़े उदास मन से उसके पास जाकर बड़े प्यार से उसकी ओर देखा और फिर बोला, "पहले आँसू पोंछ फिर मैं आगे कुछ कहूँ।"
मेरे ऐसा कहने पर उसने अपने आँसू स्वयम् पोछ लिये। फिर मैं बोला, "बेटा! सिर्फ़ अपनी थाली देख। दूसरे की देखेगा तो तेरी अपनी थाली भी चली जायेगी...... और सिर्फ़ अपनी ही थाली देखेगा तो क्या पता कि तेरी थाली किस स्तर तक अच्छी होती चली जाये। इस रूख़ी-सूख़ी थाली में मैं तेरा भविष्य देख रहा हूँ। इसका अनादर मत कर। इसमें जो कुछ भी परोसा गया है उसे मुस्करा कर खा ले ....।"
उसने फिर मुस्कराते हुए मेरी ओर देखा और जो कुछ भी परोसा गया था खा लिया। उसके बाद से मेरे किसी बच्चे ने मुझसे किसी भी प्रकार की कोई भी माँग नहीं रक्खी। डॉक्टर साब! आज का दिन बच्चों के उसी त्याग का परिणाम है।
उसकी बातों को मैं तन्मयता के साथ चुपचाप सुनता रहा।
आज जब मैं यह संस्मरण लिख रहा हूँ तो यह भी सोच रहा हूँ कि आज के बच्चों की कैसी विकृत मानसिकता है कि वे अपने अभिभावकों की हैसियत पर दृष्टि डाले बिना उन पर ऊटपटाँग माँगों का दबाव डालते रहते हैं...!!
साभार
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वर्ण कथा
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भैया, फलाने आपको गाली देता है, आपके बारे में बुरा-बुरा बोलता है।
दद्दा, वो तो आपको शाप दे रहा था कि जा, तेरा बुरा हो जाये, मिट्टी पलीद हो जाये।
अरे, उसने तो तंत्र-मंत्र कर रखा है आपका बुरा करने के लिए।
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पहली बात तो यह कि या तो आप नास्तिक होंगे या आस्तिक।
अगर नास्तिक हैं, भगवान पर ही विश्वास नहीं, तो किसी मनुष्य पर इतना यकीन कैसे कर लिया कि वो गाली दे देगा तो हम उससे आहत हो जाएं।
गालियां, शाप वगैरह आस्थावानों को ही प्रभावित कर सकती हैं। आपको दूसरों की शक्तियों पर भरोसा होगा, तभी ये सब आपको प्रताड़ित कर सकता है, अन्यथा तो कोई कुछ भी बोलता रहे, हमें क्या। अब आप आस्थावान व्यक्ति हैं, और आप दूसरों के कहने पर उद्विग्न होते हैं, तो आपके लिए एक कथा है।
ब्रह्मा से मरीचि, मरीचि से कश्यप, कश्यप से सूर्य और सूर्य से मनु का जन्म हुआ। मनु की कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने यज्ञ करवाया। आज भी हम लोग संतान के लिए मनौती तो मानते ही हैं। अब मनु ने यज्ञ करवाया पुत्र के लिए, पर उनकी पत्नी श्रद्धा को चाहिए थी लड़की। तो श्रद्धा ने यज्ञ करवाने वाले 'होता' से अपने मन की बात कह दी। यज्ञ में चार ब्राह्मण होते हैं होता, उद्गाता, अध्वर्यु और ब्रह्मा। होता ने उनकी इच्छा जान वैसी ही आहुति दी। समय आने पर श्रद्धा ने पुत्री इला को जन्म दिया।
अब मनु को हुआ आश्चर्य कि यज्ञ का फल बदल कैसे गया। बाद में बात खुली। अब समस्या हुई कि यज्ञ का सारा विधान तो पुत्र के लिए किया गया, पर हुई पुत्री। और उसका होना भी कोई गलत विधि से तो हुआ नहीं था। तो उसे ही पुत्र बना दिया गया। नाम रखा गया सुद्दम्न। ये सुद्दम्न बड़े हुए तो एक बार फिर स्त्री बने और पुत्र को जन्म दिया, और बाद में पुनः पुरुष बन गए। खैर, यह अलग कथा है, इसपर फिर कभी बात करेंगे।
उधर श्रद्धा ने बाद ने दस पुत्रों को जन्म दिया। सबसे बड़े थे इक्ष्वाकु (जिनके वंश में प्रभु राम हुए)। बाकी थे नृग, शर्याति, दिष्ट, धृष्ट, करूष, नरिष्यन्त, पृषध्र, नभग और कवि।
'पृषध्र' शुद्र हुए। सबसे छोटे पुत्र 'कवि' बचपन से ही वैरागी थे, ईश्वर भक्ति करते हुए वन चले गए। 'करूष' क्षत्रिय हुए। धृष्ट से धार्ष्ट हुए जो ब्राह्मण बन गए। नृग का भी वंश चला।
नरिष्यन्त के वंश में अग्निवेश हुए। इन्हें ही बाद में महर्षि जातूकर्ण्य कहा गया। ब्राह्मणों का आग्निवेश्यायन गोत्र इन्हीं से चला।
दिष्ट के पुत्र नाभाग हुए जो वैश्य हुए।
मनु के पुत्र नभग के पुत्र का नाम भी नाभाग था। इन नाभाग के बेटे थे अम्बरीष।
अम्बरीष भगवान के बड़े भक्त थे और समस्त संसार के राजा भी। सब कुछ था उनके पास, पर वे सब कुछ भगवान का मान अपना कर्तव्य करते चले जाते। एक बार उन्होंने वर्ष भर के लिए द्वादशीप्रधान एकादशी व्रत लिया। व्रत की समाप्ति पर पूजा वगैरह करके ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करने की अनुमति मांगी। पारण मतलब व्रत के बाद स्वयं कुछ खाना, जिसे हम लोग आमभाषा में व्रत तोड़ना कहते हैं।
वे जैसे ही खाने के लिए जाने वाले थे, स्वयं ऋषि दुर्वासा आ गए। अब इतने महान ऋषि के आने पर उनका स्वागत, उनकी पूजा तो करनी ही थी। राजा अम्बरीष ने उनका समुचित सम्मान किया और निवेदन किया कि मेरा व्रत समाप्त हुआ, आप भी आ गए तो पहले आप भोजन कर लें, फिर मैं भी अपना व्रत तोड़ूं। दुर्वासा मान गए और नहाने चले गए।
दूर से थके आये होंगे, नदी में उतरे तो चित्त शांत हुआ होगा, या प्रभु का ध्यान करने लगे होंगे। कुल मिलाकर देर करने लगे। अब उधर द्वादशी समाप्त होने में थोड़ा ही समय बचा था। व्रत करने के नियम हैं तो व्रत तोड़ने के भी नियम हैं। समय पर व्रत तोड़ना जरूरी है। अम्बरीष को चिंता हुई कि ऐसे तो व्रत का कोई अर्थ ही न रह जायेगा। तो बाकी ब्राह्मणों से पूछा। ब्राह्मणों ने उपाय बताया कि आप पानी पी लीजिए। पानी पीकर पारण (व्रत टूटना) हो भी जाएगा, और पानी कोई अन्न तो है नहीं तो पारण नहीं भी होगा। जब दुर्वासा जी आ जाये तो उन्हें भोजन करा कर खुद भी भोजन कर लीजिएगा। अम्बरीष ने पानी पी लिया।
दुर्वासा अपना भरपूर समय लेकर, खूब देर तक स्नान-ध्यान करके लौटे तो देखा कि अम्बरीष भोजन की थालियां लगाकर खड़े हैं, पर वे समझ गए कि अगले ने मेरी प्रतीक्षा नहीं की। बिना मुझे भोजन कराए ही इसने व्रत तोड़ लिया। इतना अहंकार, ऐसी अमर्यादा कि अतिथि को भोजन कराए बिना ही पारण कर लिया। मुझे इतनी भूख लगी और इस दुष्ट ने मेरा ऐसा अपमान किया। क्रोध से कांपने लगे। आंखें चढ़ गई, मुँह विकृत हो गया, लगे सुनाने कि कैसा पापी है, धन और सत्ता का ऐसा मद, धर्म का ऐसा उल्लंघन, मुझे अतिथि बनाकर भोजन के लिए निमंत्रण दिया और मुझसे पहले ही खुद ठूँस लिया। रुक अभी तुझे मजा चखाता हूँ।
और झट से अपनी एक जटा उखाड़ कर भूमि पर पटक दी। उससे एक महाभयंकर कृत्या उत्पन्न हुई और वह चींखती हुई तलवार हाथ में लेकर अम्बरीष को मारने के लिए झपटी। बस एक क्षण की बात थी कि अम्बरीष मरे पड़े होते, पर एकाएक ही जाने क्या हुआ कि स्वयं वह कृत्या ही कई टुकड़ों में कटी, भूमि पर पड़ी तड़पती दिखी और अगले ही पल जल कर भस्म हो गई। अम्बरीष, वहां उपस्थित सभी लोगों ने और स्वयं दुर्वासा ने देखा कि एक चक्र बड़ी तेजी से घूम रहा है और अब वह दुर्वासा की ओर बढ़ रहा है।
दुर्वासा, जिनसे संसार कांपता था, उन्होंने अपनी धोती उठाई और दौड़ लगा दी। आगे-आगे दुर्वासा, पीछे-पीछे सुदर्शन चक्र। नदी-नाला, जंगल-पहाड़, जिधर भी भागो, सुदर्शन पीछा न छोड़े। दुर्वासा भागते-भागते पहुंचे ब्रह्मा के पास और गिड़गिड़ाने लगे कि बचा लो मुझे। ब्रह्मा बोले कि मेरी भी एक आयु है, समय आने पर भगवान अपनी सृष्टि समेटेंगे तो मेरा यह लोक भी लीन हो जाएगा। मने कुल मिलाकर इधर-उधर की बातें ही की, क्यों न करते, बचा तो सकते नहीं थे।
दुर्वासा ने फिर अपनी धोती उठाई और महादेव के पास पहुंच गए। महादेव भी ब्रह्मा जैसी ही बातें करने लगे कि भाई, हम तो उसी प्रभु के अंश भर हैं, अब वे ही तुम्हारे पीछे पड़े हैं तो हम इसमें क्या ही कर सकते हैं।
यहाँ भी कुछ न होता देख दुर्वासा लपके वैकुंठ और विष्णु जी के पैरों में लोट ही गए कि कम से कम आप तो बचा लो। अंतिम आसरा आप ही हो।
विष्णु बोले कि अगर मुझमें तुम्हें बचाने की सामर्थ्य है तो वह तो ब्रह्मा जी और शंकर जी में भी है। अगर वे दोनों नहीं बचा पाए तो मैं भी क्या ही कर सकता हूँ। मैं भी तो उन्हीं के समान हूँ, उन्हीं की भांति परमेश्वर का एक अंश।
दुर्वासा ने सिर पीट लिया कि क्या गड़बड़झाला है भाई। ब्रह्मा कह रहे कि ईश्वर का अंश हूँ, तो महादेव के पास गया, उन्होंने भी कहा कि वे नहीं बचा सकते, ईश्वर के पास जाओ, अब विष्णु भी यही कह रहे। आखिर कौन किसका भाग है, कौन किससे निकला है, कौन सकल है, और कौन अंश है। और सबसे बड़ी बात कि जब ब्रह्मा, शंकर और विष्णु नहीं हैं ईश्वर तो कौन है? किसके पास जाऊं कि प्राण बचे। उधर वह सुदर्शन बढ़ा चला आ रहा। गर्दन कटे उससे पहले एक बार और प्रयास करता हूँ। विष्णु के चरण पकड़कर बोले कि अब जो हो, बचाइए मुझे। आप तीनों ही मुझे टाल रहे हैं, आप तीनों ही ईश्वर हैं, एक-दूसरे के अंश हैं, उसी ईश्वर के तीन रूप हैं। सुदर्शन हो या त्रिशूल, वह आपकी ही आज्ञा मानते हैं। आप सर्वशक्तिमान हैं, संसार आपकी इच्छा पर चलता है। आप बस उपाय बताइए।
विष्णु हँसकर बोले कि यह तुम्हारा भ्रम है। मैं कत्तई स्वतन्त्र नहीं, अपितु भक्तों के अधीन हूँ। जो भक्त मुझमें आस्था रखता है, मैं उसमें आस्था रखता हूँ। जिनके हृदय में मैं हूँ, मेरे हृदय में वे हैं। आप इस विप्पति में किस कारण पड़े हैं, वह तो आपको ज्ञात ही है। उपाय तो बड़ा सरल सा है।
दुर्वासा को बात समझ आ गई और वे भागे-भागे अम्बरीष के पास आये और बहुत पछतावा दिखाते हुए अम्बरीष के पैर पकड़ लिए। बस, सुदर्शन गायब हो गया।
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कथा समाप्त।
इस कथा से जो सीख मिलती है, वह तो स्पष्ट ही है। एक दूसरी सीख भी मिलती है कि ये शुद्र, वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण वगैरह कोई ऊंच-नीच की बात नहीं। सब आपस में सम्बन्धी हैं। एक ही बाप के बेटे। जो लोग जन्म से जाति की बात करते हैं, श्रेष्ठता और निम्नता की बात करते हैं, उन्हें अपने शास्त्रों को पुनः पलटने की आवश्यकता है।
बाकी,
मस्त रहें, मर्यादित रहें, महादेव सबका भला करें।
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अजीत प्रताप सिंह
30 दिसम्बर 24
साभार
कोलंबिया विश्वविद्यालय में गणित के एक कोर्स के दौरान एक छात्र कक्षा में सो गया। जब उसकी नींद खुली, तो उसने देखा कि प्रोफेसर ने व्हाइटबोर्ड पर दो समस्याएँ लिखी थीं। उसने सोचा कि ये होमवर्क हैं, इसलिए वह उन्हें अपनी नोटबुक में नोट कर के घर ले गया।
जब उसने उन समस्याओं को हल करने की कोशिश की, तो वे उसे बेहद कठिन लगीं। लेकिन उसने हार नहीं मानी। घंटों लाइब्रेरी में बैठकर उसने संदर्भ पुस्तकों की मदद से अध्ययन किया और अंततः वह एक समस्या को हल करने में सफल हो गया, भले ही यह काफी चुनौतीपूर्ण था।
अगली कक्षा में प्रोफेसर ने जब होमवर्क के बारे में कुछ नहीं पूछा, तो वह चकित हुआ और खड़ा होकर पूछा, "सर, आपने पिछले लेक्चर में दिए गए असाइनमेंट के बारे में कुछ क्यों नहीं पूछा?"
प्रोफेसर ने उत्तर दिया, "असाइनमेंट? वो तो मैंने केवल ऐसे उदाहरण के तौर पर लिखी थीं जिन्हें अभी तक वैज्ञानिक हल नहीं कर पाए हैं।"
छात्र चौंक गया और बोला, "लेकिन मैंने उनमें से एक को हल कर लिया है! मैंने इस पर चार पेपर भी लिखे हैं।" उसकी इस उपलब्धि को बाद में मान्यता मिली और कोलंबिया विश्वविद्यालय में उसके लिखे चारों पेपर आज भी प्रदर्शित हैं।
इस कहानी की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि छात्र ने यह नहीं सुना था कि "इन समस्याओं का कोई हल नहीं है।" उसने सिर्फ यही माना कि ये कठिन प्रश्न हैं, जिन्हें हल करना ज़रूरी है, और उसने पूरे मन से उन्हें हल करने की कोशिश की – और सफल हुआ।
यह कहानी हमें याद दिलाती है – उन लोगों की बात मत सुनो जो कहते हैं कि तुम कुछ नहीं कर सकते। आज की पीढ़ी अक्सर निराशा और नकारात्मकता से घिरी होती है। कुछ लोग जानबूझकर दूसरों के भीतर असफलता और हार का बीज बोते हैं।
लेकिन तुम्हारे पास अपनी मंज़िल पाने की ताकत है, बाधाओं को पार करने की शक्ति है, और अपने सपनों को साकार करने का साहस है। बस खुद पर और ईश्वर पर विश्वास रखो – और लगातार प्रयास करते रहो।
इस छात्र का नाम था जॉर्ज डैंटज़िग, और यह समस्या Math Stack Exchange से ली गई थी।
"डैंटज़िग ने यह सिद्ध किया कि Student’s t-test के संदर्भ में, एकमात्र तरीका जिससे हम ऐसी hypothesis testing बना सकते हैं जो standard deviation से स्वतंत्र हो, वह है एक निरर्थक परीक्षण, जो हमेशा समान संभावना से रिजेक्ट या एक्सेप्ट करता है – जो व्यावहारिक नहीं है।"
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ll प्रेरक कहानी __ मुर्ख ll
एक व्यक्ति जीवन से हर प्रकार से निराश था। लोग उसे मनहूस के नाम से बुलाते थे। एक ज्ञानी पंडित ने उसे बताया कि तेरा भाग्य फलां पर्वत पर सोया हुआ है, तू उसे जाकर जगा ले तो भाग्य तेरे साथ हो जाएगा। बस! फिर क्या था वो चल पड़ा अपना सोया भाग्य जगाने।
रास्ते में जंगल पड़ा तो एक शेर उसे खाने को लपका, वो बोला :
"भाई! मुझे मत खाओ, मैं अपना सोया भाग्य जगाने जा रहा हूँ।"
शेर ने कहा : "तुम्हारा भाग्य जाग जाये तो मेरी एक समस्या है, उसका समाधान पूछते लाना। मेरी समस्या ये है कि मैं कितना भी खाऊं … मेरा पेट भरता ही नहीं है, हर समय पेट भूख की ज्वाला से जलता रहता है। "
मनहूस ने कहा– "ठीक है। "
आगे जाने पर एक किसान के घर उसने रात बिताई। बातों बातों में पता चलने पर कि वो अपना सोया भाग्य जगाने जा रहा है, किसान ने कहा कि,
"मेरा भी एक सवाल है.. अपने भाग्य से पूछकर उसका समाधान लेते आना … मेरे खेत में, मैं कितनी भी मेहनत कर लूँ पैदावार अच्छी होती ही नहीं। मेरी शादी योग्य एक कन्या है, उसका विवाह इन परिस्थितियों में मैं कैसे कर पाऊंगा?"
मनहूस बोला — "ठीक है। "
और आगे जाने पर वो एक राजा के घर मेहमान बना। रात्री भोज के उपरान्त राजा ने ये जानने पर कि वो अपने भाग्य को जगाने जा रहा है, उससे कहा कि "मेरी परेशानी का हल भी अपने भाग्य से पूछते आना। मेरी परेशानी ये है कि कितनी भी समझदारी से राज्य चलाऊं… मेरे राज्य में अराजकता का बोलबाला ही बना रहता है।"
मनहूस ने उससे भी कहा — "ठीक है। "
अब वो पर्वत के पास पहुँच चुका था। वहां पर उसने अपने सोये भाग्य को झिंझोड़ कर जगाया—
"उठो! ... उठो! ... मैं तुम्हें जगाने आया हूँ।"
उसके भाग्य ने एक अंगडाई ली और उसके साथ चल दिया। उसका भाग्य बोला —
"अब मैं तुम्हारे साथ हरदम रहूँगा।"
अब वो मनहूस न रह गया था बल्कि भाग्यशाली व्यक्ति बन गया था और अपने भाग्य की बदौलत वो सारे सवालों के जवाब जानता था।
वापसी यात्रा में वो उसी राजा का मेहमान बना और राजा की परेशानी का हल बताते हुए वो बोला —
"चूँकि तुम एक स्त्री हो और पुरुष वेश में रहकर राज – काज संभालती हो, इसीलिए राज्य में अराजकता का बोलबाला है। तुम किसी योग्य पुरुष के साथ विवाह कर लो, दोनों मिलकर राज्य भार संभालो तो तुम्हारे राज्य में शांति स्थापित हो जाएगी।"
रानी बोली — "तुम्हीं मुझ से ब्याह कर लो और यहीं रह जाओ। "
भाग्यशाली बन चुका वो मनहूस इन्कार करते हुए बोला
"नहीं नहीं! मेरा तो भाग्य जाग चुका है। तुम किसी और से विवाह कर लो।"
तब रानी ने अपने मंत्री से विवाह किया और सुखपूर्वक राज्य चलाने लगी। कुछ दिन राजकीय मेहमान बनने के बाद उसने वहां से विदा ली।
चलते चलते वो किसान के घर पहुंचा और उसके सवाल के जवाब में बताया कि : "तुम्हारे खेत में सात कलश हीरे जवाहरात के गड़े हैं, उस खजाने को निकाल लेने पर तुम्हारी जमीन उपजाऊ हो जाएगी और उस धन से तुम अपनी बेटी का ब्याह भी धूमधाम से कर सकोगे।"
किसान ने अनुग्रहित होते हुए उससे कहा कि :
"मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ, तुम ही मेरी बेटी के साथ ब्याह कर लो। "
पर भाग्यशाली बन चुका वह व्यक्ति बोला कि :
"नहीं! .... नहीं! .... मेरा तो भाग्योदय हो चुका है, तुम कहीं और अपनी सुन्दर कन्या का विवाह करो। "
किसान ने उचित वर देखकर अपनी कन्या का विवाह किया और सुखपूर्वक रहने लगा। कुछ दिन किसान की मेहमाननवाजी भोगने के बाद वो जंगल में पहुंचा और शेर से उसकी समस्या के समाधानस्वरुप कहा कि :
"यदि तुम किसी बड़े मूर्ख को खा लोगे तो तुम्हारी ये क्षुधा शांत हो जाएगी।"
शेर ने उसकी बड़ी आवभगत की और यात्रा का पूरा हाल जाना। सारी बात पता चलने के बाद शेर ने कहा कि : "भाग्योदय होने के बाद इतने अच्छे और बड़े दो मौके गंवाने वाले ऐ इंसान! तुझसे बड़ा मूर्ख और कौन होगा? तुझे खाकर ही मेरी भूख शांत होगी !!!"
और इस तरह वो इंसान शेर का शिकार बनकर मृत्यु को प्राप्त हुआ।
सच है : यदि आपके पास सही मौका परखने का विवेक और अवसर को पकड़ लेने का ज्ञान नहीं है तो भाग्य भी आपके साथ आकर आपका कुछ भला नहीं कर सकता
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"दुनिया के सबसे धनवान व्यक्ति बिल गेट्स से किसी ने पूछा - 'क्या इस धरती पर आपसे भी अमीर कोई है ? बिल गेट्स ने जवाब दिया - हां, एक व्यक्ति इस दुनिया में मुझसे भी अमीर है।
कौन -!!!!!
बिल गेट्स ने बताया: एक समय मे जब मेरी प्रसिद्धि और अमीरी के दिन नहीं थे, मैं न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर था.. वहां सुबह सुबह अखबार देख कर, मैंने एक अखबार खरीदना चाहा,पर मेरे पास खुदरा पैसे नहीं थे.. सो, मैंने अखबार लेने का विचार त्याग कर उसे वापस रख दिया.. अखबार बेचने वाले लड़के ने मुझे देखा, तो मैंने खुदरा पैसे/सिक्के न होने की बात कही.. लड़के ने अखबार देते हुए कहा - यह मैं आपको मुफ्त में देता हूँ.. बात आई-गई हो गई.. कोई तीन माह बाद संयोगवश उसी एयरपोर्ट पर मैं फिर उतरा और अखबार के लिए फिर मेरे पास सिक्के नहीं थे।उस लड़के ने मुझे फिर से अखबार दिया, तो मैंने मना कर दिया। मैं ये नहीं ले सकता.. उस लड़के ने कहा, आप इसे ले सकते हैं, मैं इसे अपने प्रॉफिट के हिस्से से दे रहा हूँ.. मुझे नुकसान नहीं होगा।
मैंने अखबार ले लिया......
19 साल बाद अपने प्रसिद्ध हो जाने के बाद एक दिन मुझे उस लड़के की याद आयी और मैंने उसे ढूंढना शुरू किया। कोई डेढ़ महीने खोजने के बाद आखिरकार वह मिल गया। मैंने पूछा - क्या तुम मुझे पहचानते हो ? लड़का - हां, आप मि. बिल गेट्स हैं. गेट्स - तुम्हे याद है, कभी तुमने मुझे फ्री में अखबार दिए थे ? लड़का - जी हां, बिल्कुल.. ऐसा दो बार हुआ था.. गेट्स- मैं तुम्हारे उस किये हुए की कीमत अदा करना चाहता हूँ.. तुम अपनी जिंदगी में जो कुछ चाहते हो, बताओ, मैं तुम्हारी हर जरूरत पूरी करूंगा.. लड़का - सर, लेकिन क्या आप को नहीं लगता कि, ऐसा कर के आप मेरे काम की कीमत अदा नहीं कर पाएंगे.. गेट्स - क्यूं ..!!! लड़का - मैंने जब आपकी मदद की थी, मैं एक गरीब लड़का था, जो अखबार बेचता था.. आप मेरी मदद तब कर रहे हैं, जब आप इस दुनिया के सबसे अमीर और सामर्थ्य वाले व्यक्ति हैं.. फिर, आप मेरी मदद की बराबरी कैसे करेंगे...!!!
बिल गेट्स की नजर में, वह व्यक्ति दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति से भी अमीर था, क्योंकि--- "किसी की मदद करने के लिए, उसने अमीर होने का इंतजार नहीं किया था ".... अमीरी पैसे से नहीं दिल से होती है दोस्तों किसी की मदद करने के लिए अमीर दिल का होना भी बहुत जरूरी है.
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94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने पर किराए के मकान से निकाल दिया। बूढ़े के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन, एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई सामान था। बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया। पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी, और उन्होंने मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए कुछ समय देने के लिए मना लिया। मकान मालिक ने अनिच्छा से ही उसे किराया देने के लिए कुछ समय दिया।
बूढ़ा अपना सामान अंदर ले गया।
रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया, ”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।” फिर उसने किराएदार बूढ़े की और किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं।
पत्रकार ने जाकर अपने प्रेस मालिक को इस घटना के बारे में बताया। प्रेस के मालिक ने तस्वीरों को देखा और हैरान रह गए। उन्होंने पत्रकार से पूछा, कि क्या वह उस बूढ़े आदमी को जानता है? पत्रकार ने कहा, नहीं।
अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर बड़ी खबर छपी। शीर्षक था, ”भारत के पूर्व प्रधान मंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं”। खबर में आगे लिखा था कि कैसे पूर्व प्रधान मंत्री किराया नहीं दे पा रहे थे और कैसे उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया था। टिप्पणी की थी कि आजकल फ्रेशर भी खूब पैसा कमा लेते हैं। जबकि एक व्यक्ति जो दो बार पूर्व प्रधान मंत्री रह चुका है और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है, उसके पास अपना ख़ुद का घर भी नहीं??
दरअसल गुलजारीलाल नंदा को वह स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण रु. 500/- प्रति माह भत्ता मिलता था। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस पैसे को अस्वीकार किया था, कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई नहीं लड़ी। बाद में दोस्तों ने उसे यह स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया यह कहते हुए कि उनके पास जीवन यापन का अन्य कोई स्रोत नहीं है। इसी पैसों से वह अपना किराया देकर गुजारा करते थे।
अगले दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री ने मंत्रियों और अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ उनके घर भेजा। इतने वीआइपी वाहनों के बेड़े को देखकर मकान मालिक दंग रह गया। तब जाकर उसे पता चला कि उसका किराएदार, श्री गुलजारीलाल नंदा भारत के पूर्व प्रधान मंत्री थे। मकान मालिक अपने दुर्व्यवहार के लिए तुरंत गुलजारीलाल नंदा के चरणों में झुक गया।
अधिकारियों और वीआईपीयों ने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं को स्वीकार करने का अनुरोध किया। श्री गुलजारीलाल नंदा ने इस बुढ़ापे में ऐसी सुविधाओं का क्या काम, यह कह कर उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। अंतिम श्वास तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह, एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी बन कर ही रहे। 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व एच डी देवगौड़ा के मिलेजुले प्रयासो से उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
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