म.प्र.लेखक संघ की ‘वंसत पर 243वीं गीत गोष्ठी हुई date 3-2-2019 Tiakamgarh (mp) india
टीकमगढ़// साहित्यिक संस्था म.प्र. लेखक संघ जिला इकाई टीकमगढ़ की 244वीं गोष्ठी ‘‘वसंत पर केन्द्रित गीत गोष्ठी ‘आकांक्षा’ पब्लिक स्कूल,टीकमगढ़ में आयोजित की गयी।
गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ गीतकार श्री सीताराम राय ‘सरल’ ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में नदनवारा से पधारे बुन्दली के गीतकार शोभाराम दांगी ‘इन्दु’रहे एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में बल्देवगढ़ से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार यदुुल नंदन खरे एवं कोमल चन्द्र बजाज रहे।
सरस्वती बंदना कर गोष्ठी का शुभांरभ करते हुए लखौरा के गुलाब सिंह यादव ‘भाऊ’ने पढ़ा-
आई वंसत कंत न आये निकरी जात समरिया रे,भौंरा फूल फूल पै उमडे भूली खबरिया रे।।
नदनवारा से पधारे बुन्देली गीतकार शोभाराम दंागी ‘इन्दु’ ने गीत पढ़ा-
पिसिया के खेतन में, सरसों के फूल ओढ के चुनरिया पीरी कर रय कबूल।
बसंती आओ पास बैठो नै जाऔ कहीं अंत,मिले इतै रंग रस ठाडे उतै शूल।
बल्देवगढ़ के साहित्यकार यदुकुल नंदन खरे ने पढ़ा- जिंदगी में बहारें आती हैं। देख केकलिया मुस्कुराती हैं।।
म.प्र.लेखक संघ के अध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी ने ‘ग़जल सुनायी-
फूल खिले है गुलशन-गुलशन,मन में लेकिन उलझन-उलझन
,‘राना’ से तुम खफा हो क्यों जब खेले कूंदे बचपनन्बचपन।।
सीताराम राय ‘सरल’ ने गीत पढ़ा-ऋतुराज की भई अवाई सजनवां,लेवे अंग अंग अंगडाई।।
उमाशंकर मिश्रा तन्हा’ ने सुनाया- मैं भी कुछ बोलूंगा लेकिन अभी नहीं,
राज़ बहुत कुछखोलूंगा लेकिन अभी नहीं।।
वीरेन्द्र चंसौरिया ने पढ़ा-रीति,नीति,प्राति गीत रोज लिखें हम,आदमी है आदमी से काम करें हम।।
बल्देवगढ़ के साहित्यकार कोमल चंद बजाज ने पढ़ा- चली लहरिया खुली किबरिया लहरा उठे बाग बागान।।
बुंदेली धरती पर छा गई ऋतु वसंत की अब मुसकान।।
दयाली विश्वकर्मा ने पढ़ा-आया बुढापा ठंड का मौसम बदला यार,प्यारी वंसत अब आ गई सुंदर सुगंध बहार।।
वी.एल जैन ने पढ़ा-सरसों के आंगन में चैक लगे पीत रंग,बसंत जहाँ नाच करे,गाये कोकिल के संग।
हाजी जफरउल्ला खां ‘जफर’ ने कलाम पढ़ा- तुम्हें जिंदगी भर न भूलेगें हम,मगर राजे़दिल भी न खोले हम।।
शायर शिवचरण उटमालिया ने ग़ज़ल पढ़ी- जिस्म को जला देती मैं को क्या समझता है।
बाद खुद को पीने के बादशा समझता है।।
अनवर खान साहिल’ ने ग़ज़ल पढी- खेत सरसो के मुस्कुराने लगे,तब मैं समझा बसंत आया है।।
प्यार के गीत भौंरे गाने लगे तब मैं समझा बसंत आया है।
सियाराम अहिरवार ने पढ़ा-आया है मधुमास सहाना,लेकर खुशबू आया,
सुमधुर खुशबू बिखर बिखरकर गली गाँव महकाया।
रामेश्वर राय ‘परदेशी’ ने पढ़ा-जवां कलियों से भंवरे ने कहा रितुराज आया है।
फूली खेत की सरसों आम बौराया है।।
एन.डी.सोनी ने पढ़ा-उल्लास जिसकी सांसों में बसता है,
ऐसा है प्राणवंत करोंदी की महक से बौराया ऋतुराज बसंत।।
हरबल सिंह लोधी ने पढ़ा-बसंत की बहार री माई मोरो देश है सुहानौ।
पूरन चन्द्र गुप्ता ने पढ़ा-ऋतुराज बंसत अतिश्रेष्ठहै सब ऋतुअन में जान,
कहत तबहूं ऋितुराज है,नूतन सृजन मान।।
प्रमोद गुप्ता ‘मदुल’ ने पढ़ा- फूले सरसों पलाश,फूले सरसों पलाश,अमुया की डार बौरायीं आस पास।।
इनके आलावा परमेश्वरी तिवारी,डी.पी. यादव एडवोकेट आदि ने भी अपने विचार एवं रचनाएँ सुनायी।
गोष्ठी का संचालन प्रमोद गुप्ता ‘मदुल’ ने किया तथा सभी का आभार अध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी ने माना।
tikamgarh kavi sammenal रपट-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
जिलाध्यक्ष- म.प्र. लेखक संघ,टीकमगढ़
टीकमगढ़ (म.प्र.)मोबाइल-9893520965
E-Mail- ranalidhori@gmail.com
टीकमगढ़// साहित्यिक संस्था म.प्र. लेखक संघ जिला इकाई टीकमगढ़ की 244वीं गोष्ठी ‘‘वसंत पर केन्द्रित गीत गोष्ठी ‘आकांक्षा’ पब्लिक स्कूल,टीकमगढ़ में आयोजित की गयी।
गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ गीतकार श्री सीताराम राय ‘सरल’ ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में नदनवारा से पधारे बुन्दली के गीतकार शोभाराम दांगी ‘इन्दु’रहे एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में बल्देवगढ़ से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार यदुुल नंदन खरे एवं कोमल चन्द्र बजाज रहे।
सरस्वती बंदना कर गोष्ठी का शुभांरभ करते हुए लखौरा के गुलाब सिंह यादव ‘भाऊ’ने पढ़ा-
आई वंसत कंत न आये निकरी जात समरिया रे,भौंरा फूल फूल पै उमडे भूली खबरिया रे।।
नदनवारा से पधारे बुन्देली गीतकार शोभाराम दंागी ‘इन्दु’ ने गीत पढ़ा-
पिसिया के खेतन में, सरसों के फूल ओढ के चुनरिया पीरी कर रय कबूल।
बसंती आओ पास बैठो नै जाऔ कहीं अंत,मिले इतै रंग रस ठाडे उतै शूल।
बल्देवगढ़ के साहित्यकार यदुकुल नंदन खरे ने पढ़ा- जिंदगी में बहारें आती हैं। देख केकलिया मुस्कुराती हैं।।
म.प्र.लेखक संघ के अध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी ने ‘ग़जल सुनायी-
फूल खिले है गुलशन-गुलशन,मन में लेकिन उलझन-उलझन
,‘राना’ से तुम खफा हो क्यों जब खेले कूंदे बचपनन्बचपन।।
सीताराम राय ‘सरल’ ने गीत पढ़ा-ऋतुराज की भई अवाई सजनवां,लेवे अंग अंग अंगडाई।।
उमाशंकर मिश्रा तन्हा’ ने सुनाया- मैं भी कुछ बोलूंगा लेकिन अभी नहीं,
राज़ बहुत कुछखोलूंगा लेकिन अभी नहीं।।
वीरेन्द्र चंसौरिया ने पढ़ा-रीति,नीति,प्राति गीत रोज लिखें हम,आदमी है आदमी से काम करें हम।।
बल्देवगढ़ के साहित्यकार कोमल चंद बजाज ने पढ़ा- चली लहरिया खुली किबरिया लहरा उठे बाग बागान।।
बुंदेली धरती पर छा गई ऋतु वसंत की अब मुसकान।।
दयाली विश्वकर्मा ने पढ़ा-आया बुढापा ठंड का मौसम बदला यार,प्यारी वंसत अब आ गई सुंदर सुगंध बहार।।
वी.एल जैन ने पढ़ा-सरसों के आंगन में चैक लगे पीत रंग,बसंत जहाँ नाच करे,गाये कोकिल के संग।
हाजी जफरउल्ला खां ‘जफर’ ने कलाम पढ़ा- तुम्हें जिंदगी भर न भूलेगें हम,मगर राजे़दिल भी न खोले हम।।
शायर शिवचरण उटमालिया ने ग़ज़ल पढ़ी- जिस्म को जला देती मैं को क्या समझता है।
बाद खुद को पीने के बादशा समझता है।।
अनवर खान साहिल’ ने ग़ज़ल पढी- खेत सरसो के मुस्कुराने लगे,तब मैं समझा बसंत आया है।।
प्यार के गीत भौंरे गाने लगे तब मैं समझा बसंत आया है।
सियाराम अहिरवार ने पढ़ा-आया है मधुमास सहाना,लेकर खुशबू आया,
सुमधुर खुशबू बिखर बिखरकर गली गाँव महकाया।
रामेश्वर राय ‘परदेशी’ ने पढ़ा-जवां कलियों से भंवरे ने कहा रितुराज आया है।
फूली खेत की सरसों आम बौराया है।।
एन.डी.सोनी ने पढ़ा-उल्लास जिसकी सांसों में बसता है,
ऐसा है प्राणवंत करोंदी की महक से बौराया ऋतुराज बसंत।।
हरबल सिंह लोधी ने पढ़ा-बसंत की बहार री माई मोरो देश है सुहानौ।
पूरन चन्द्र गुप्ता ने पढ़ा-ऋतुराज बंसत अतिश्रेष्ठहै सब ऋतुअन में जान,
कहत तबहूं ऋितुराज है,नूतन सृजन मान।।
प्रमोद गुप्ता ‘मदुल’ ने पढ़ा- फूले सरसों पलाश,फूले सरसों पलाश,अमुया की डार बौरायीं आस पास।।
इनके आलावा परमेश्वरी तिवारी,डी.पी. यादव एडवोकेट आदि ने भी अपने विचार एवं रचनाएँ सुनायी।
गोष्ठी का संचालन प्रमोद गुप्ता ‘मदुल’ ने किया तथा सभी का आभार अध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी ने माना।
tikamgarh kavi sammenal रपट-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
जिलाध्यक्ष- म.प्र. लेखक संघ,टीकमगढ़
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