व्यंग्य कविता-'झण्ड़ा ऊँचा रहे हमारा (कविता)
बिना नोट के चले काम न,बिना सोर्स के दाल गले न।
रिश्वत का खेल सारा,झण्ड़ा ऊँचा रहे हमारा।।
देश का ऊँचा नाम करेंगें,नोटों से घर बैंक भरेंगें।
भारत देश है हमको प्यारा, झण्ड़ा ऊँचा रहे हमारा।।
एम.ए.पास,कम्प्यूटर पास,न लगी नौकरी मिला न सोर्स।
लगता ये बेरोजगारी का मारा,झण्ड़ा ऊँचा रहे हमारा।।
ठाकुर,पंडि़त र्इद मिले हैं,भूल गये वो सब गिले हैं।
वोटों को है,सब भार्इ चारा,झण्ड़ा ऊँचा रहे हमारा।।
बिजली का है संकट भारी,तेल पे है रोज मारा-मारी।
पाकिस्तान है हमसे हारा,झण्ड़ा ऊँचा रहे हमारा।।
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी
संपादक 'आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र. लेखक संघ
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
पिन:472001 मोबाइल-9893520965
बिना नोट के चले काम न,बिना सोर्स के दाल गले न।
रिश्वत का खेल सारा,झण्ड़ा ऊँचा रहे हमारा।।
देश का ऊँचा नाम करेंगें,नोटों से घर बैंक भरेंगें।
भारत देश है हमको प्यारा, झण्ड़ा ऊँचा रहे हमारा।।
एम.ए.पास,कम्प्यूटर पास,न लगी नौकरी मिला न सोर्स।
लगता ये बेरोजगारी का मारा,झण्ड़ा ऊँचा रहे हमारा।।
ठाकुर,पंडि़त र्इद मिले हैं,भूल गये वो सब गिले हैं।
वोटों को है,सब भार्इ चारा,झण्ड़ा ऊँचा रहे हमारा।।
बिजली का है संकट भारी,तेल पे है रोज मारा-मारी।
पाकिस्तान है हमसे हारा,झण्ड़ा ऊँचा रहे हमारा।।
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी
संपादक 'आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र. लेखक संघ
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
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