Rajeev Namdeo Rana lidhorI

सोमवार, 20 जुलाई 2015

Akanksha-2015 vol-10

आकांक्षा
अंक-10     वार्षिक पत्रिका     वर्ष-10

akankshatkg.blogspot.com
(टीकमगढ़ जिले से प्रकाशित एकमात्र साहित्यिक पत्रिका)

baVjusV ij Cykx&www.akankshatkg.blogspot.com
 
संपादक
राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’

सह संपादन
रामगोपाल रैकवार ‘कँवल’
विजय कुमार मेहरा
‘‘माँ’’ पर केन्द्रित विशेषांक
परिशिष्ट-डाॅ.जे.पी. रावत
प्रकाशक:
म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़ (म.प्र.)
कार्यालय-नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालोनी,
 टीकमगढ़ (म.प्र.) 472001
मोबाइल-9893520965  



आकांक्षा 2015/पेज-1

प्रकाशक
म.प्र.लेखक संघ, जिला इकाई-टीकमगढ़ (म.प्र.)
           
प्रकाशन:- 2015

    सहयोग राशि मात्र- 60.00 रु.
       
शब्द टंकण-    आकांक्षा  कम्प्यूटर
            प्रो.राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
             शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
 मोबाइल-          09893520965
शब्द संयोजन     -     राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
                   शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
आवरण पृष्ठ        -     राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
नोट:-यह पत्रिका अव्यावसायिक है एवं इसके सभी पद मानद एवं अवैतनिक है। इस पत्रिका में प्रकाशित सभी रचनाओं की मौलिकता के  जिम्मेदार स्वयं रचनाकार हंै, संपादक से इसकी सहमति होना अनिवार्य नहीं। रचनाओं से संबधित किसी भी प्रकार का वाद-विवाद मान्य नहीं होगा। फिर भी यदि कोई विवाद होता है तो उसका न्याय क्षेत्र टीकमगढ़ (म.प्र.) होगा।
 आकांक्षा (पत्रिका) अंक-10

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आकांक्षा 2015/पेज-4

‘आकांक्षा’ पत्रिका परिवार
संपादक
राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
सहसंपादन
रामगोपाल रैकवार ‘कँवल’
विजय कुमार मेहरा
संरक्षक
सी.एल.नामदेव, हरीश अवस्थी
परामर्शदाता
सर्वश्री बटुक चतुर्वेदी/ कैलाश श्रीवास्तव ‘आदमी’(भोपाल)
हाज़ी ज़फ़रउल्ला खाँ ‘ज़फ़र’ (टीकमगढ़)
क्षेत्रीय प्रतिनिधि-
छिन्दवाड़ा(म.प्र.)-देवेन्द्र कुमार मिश्रा,   सागर (म.प्र.)-मुकेश चतुर्वेदी ‘समीर’
ईशानगर (म.प्र.)-लक्ष्मी प्रसाद गुप्त,    टीकमगढ़़ -वीरेन्द्र चंसौरिया
बिजावर (म.प्र.)-महबूब अहमद फारूकी‘ ‘महबूब’,
विशेष सहयोगी-
        



पेज-4



संपादक की कलम से ........
    मित्रो, सन्-2006 में जब हमने ‘आकांक्षा’ पत्रिका का पहला अंक प्रकाशित करने की योजना बनाई और फिर उसे प्रकाशित भी किया तो हमने ये सपने में भी नहीं सोचा था कि हम 10वें अंक तक भी कभी पहुँच जाएँगे, वो भी बिना किसी सरकारी मदद और विज्ञापन के, लेकिन आप सभी मित्रों और शुभचिंतकों के स्नेह व ईश्वर की कृपा से आज हम इस मुकाम तक पहुँच गए हैं। हम आप सभी के हृदय से बहुत-बहुत आभारी हैं।
    इस साल मेरी पूज्य दादी माँ जी श्रीमती रूपाबाई नामदेव का 92 साल की उम्र में दिनांक 8 सितम्बर 2014 को निधन हो गया तथा टीकमगढ़ शहर के दो प्रसिद्ध शायर जनाब अब्दुल सकूर राना साहब एवं जनाब गनी अहमद गनी साहब के निधन होने से हमारे नगर को बहुत साहित्यिक क्षति पहँुची है। जिसका हमे बहुत दुःख है हमारी संवेदनाएँ उनके परिजनो के साथ है। आकांक्षा’ पत्रिका का अंक हम इन तीनों दिवंगत विभूतियों को समर्पित कर रहे है।
    ‘आकांक्षा’ पत्रिका का अंक-6 (2011),बुन्देली विशेषांक,अंक-7(2012) राज भाषा हिन्दी विशेषांक के बाद इस बार हम यह ‘माँ’ पर केन्द्रित अंक-10(2015) आप तक पहुँचा रहे हंै। इस बार हम टीकमगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ.जे.पी रावत  जी पर विशिष्ट परिशिष्ट 16 पेजों में दे रहे है।
मित्रो, पिछले अंकों को भारत के साथ-साथ विदेशांे में भी बहुत सराहा गया। यह अंक भी हम  इंटरनेट के ब्लाग पर डाल रहे हैं।  अब तक ‘आकांक्षा’ को कुल 2216 पाठक पढ़ चुके हंै जिसमें भारत के 1534 अमेरिका के 230, रूस के 117,सेनेगल 73,मलेशिया के 12,जर्मनी के 14,यूक्रेन के 11, ब्राजील के 5,इंडोनेशिया के 9,कनाड़ा के 2,स्पेन के 2,द.कोरिया के 1,वियतनाम 1डेनमार्क 1, आदि देशों के पाठक शामिल है जिनकी संख्या दिनों- दिन बढ़ती जा रही है। आप भी ‘आकांक्षा’ पत्रिका को गूगल पर ूूूण्ंांदोींजाहण्इसवहेचवजण्बवउ टाइप करके पढ़ सकते हैं।
    हम विशेष रूप से मित्र अजीत श्रीवास्तव जी के बहुत आभारी है कि उन्होंने इस अंक के लिए अपने अमूल्य सुझाव व रचना सामग्री हमें उपलब्ध कराई। साथ ही हम श्री देवेन्द्र कुमार मिश्रा (छिन्दवाड़ा), श्री एम.के.एस तोमर,(टीकमगढ़), श्री शांति कुमार जैन (टीकमगढ़), श्री वीरेन्द्र चंसौरिया(टीकमगढ़), श्री भारत विजय बगेरिया (टीकमगढ़), के बहुत-बहुत आभारी हैं कि इन्हांेने ‘आकांक्षा’ के अंक-10  हेतु अपना विशेष सहयोग प्रदान किया तथा हम उन सभी साहित्यकारों के भी आभारी हंै जिन्होंने ‘आकांक्षा’ पत्रिका के लिए अपना प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हमें सहयोग प्रदान किया।
    हम आशा करते है कि भविष्य में आप सभी का इसी प्रकार सहयोग एवं स्नेह मिलता रहेगा। पत्रिका में जो भी त्रुटियाँ जाने अनजाने में रह गयी हांे, उनके लिए हम आपसे क्षमा माँगते हंै। यह पत्रिका आपको कैसी लगी आपके विचार,सुझावों एवं समीक्षाओं का हमें बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।
आपका........
राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’               
आकांक्षा 2015/पेज-5

    आपके पत्र
आपकी पत्रिका ‘आकांक्षा’ अंक-9 मिली। धन्यवाद। चार पंक्तियाँ ‘आकंाक्षा’ के लिए-
आकांक्षा पूरी हुई,पा आकांक्षा आज। सच ही बुन्देलखण्ड में, है आकांक्षा राज।।
है आकांक्षा राज,मधुर है गीत बुन्देली,अच्छी ग़ज़ल लघुकथा पढ़ रहे सखा-सहेली।।
कहत ‘बरैया’ राय, बात बिल्कुल है सांचा,संपादन है कुशल,बहुत सुन्दर आकांक्षा।।
                      -डाॅ.रामसहाय बरैया, ग्वालियर (म.प्र.)
जय हिन्दी जय भारत! शेषामृत’पत्रिका में आपकी पत्रिका ‘आकांक्षा; के बारे में पढ़ा। गाजियाबाद में मिश्र जी के प्रोग्राम में आपसे मुलाकात हुई थी।माँ पर केन्द्रित दो रचनाएँ आपको सादर प्रेषित है। आशा है स्थान देने का कष्ट करेगे।        -सीताराम राम चैहान ‘पथिक’, प्रशिक्षित अनुवादक दिल्ली विश्वविद्यालय
आपका स्नेह भरा पत्र मिला। पत्र-लेखन शैली मन को छू गई। हिन्दी साहित्य में आपकी रचनात्मक सक्रियता श्लाघनीय है। मैं आपके इस सर्जनात्मक प्रतिभा का सम्मान करता हँू। ‘आकांक्षा’ हेतु रचना भेज रहा हूँं आशा है उचित स्थान देगें।          -सूर्य नारायण गुप्त ’सूर्य’,पथरहट,देवरिया,(उ.प्र.)
‘‘आकांक्षा’-9वाँ अंक प्राप्त हुआ। धन्यबाद ‘आकांक्षा’ के विषय में सुना तो था मगर पढ़ने का अवसर अब मिला। सीमित साधनों के साथ वर्तमान दौर में इतने रचनाकारों को साथ लेकर नौ वर्षों से सतत् एक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन आप बधाई के पात्र हंै। आपकी ‘आकांक्षा’ साहित्य जगत में सर्वोच्च शिखर तक पहुँचे यही मेरी शुभकामना है।
        -संतोष परिहार,संपादक ‘दीपमाला’ पत्रिका,बुरहानपुर,(म.प्र.)
विगत दिनों ‘‘आकांक्षा’-अंक-9 की प्रति मिली, धन्यवाद। प्रकृति सौन्दर्य बोध से युक्त झील के किनारे शबनम से नहाए सूरत की पहली किरण के इंतज़ार में खिलने के लिए बेचैन कँवल इस मनोहारी दृश्य से युक्त आवरण पृष्ठ बड़ा आकर्षक लगा। पत्रिका से जो उम्मींदें थीं। वे सब इसमें पाईं। सशक्त साहित्यिक रचनाएँ वास्तव में स्तरीय व पठनीय है। पत्रिका उत्तम है। राजीव जी इतनी सुंदर पत्रिका के सफल प्रकाशन/संपादन हेतु आपको बहुत-बहुत बधाई धन्यवाद। -महबूब अहमद फारूकी ‘महबूब’
                  पूर्व प्राचार्य शिक्षा महाविद्वालय,बिजावर(म.प्र.)
आपकी पत्रिका ‘आकांक्षा’ अंक-9 मिली। आपको धन्यवाद। साहित्य के बिना मनुष्य का जीवन ऊसर भूमि के समान है। साहित्य मनुष्य हृदय को नरम और संतुष्ट बनाता है। इस दिशा में  आपका यत्न सौ मुँह से सराहनीय है। बहुत-बहुत धन्यबाद।
                      -के.के.कोच्चुकोशी, तिरूवनन्तपुरम् (केरल)
‘इनके भी पत्र प्राप्त हुए-डाॅ. श्याम सखा ‘श्याम’ निदेशक हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकुला (पंजाब),विजय प्रकाश बेरी,वाराणसी,(उ.प्र.),अंकुरश्री ,राँची,(बिहार),श्रीमती वन्दना सक्सेना भोपाल,(म.प्र.), डाॅ.प्रकाश वी.जीवने,नागपुर,(महाराष्ट्र),हसमुख भाई रामदेवपुत्र, राजकोट,(गुजरात),नदीम हसन ‘चमन’,गया,(बिहार),सदानंद टांकेकर ‘समर्थ’,भिलाई (छ.ग.),खुर्शीद नवाब उदयपुर,(राज),सुरेन्द्र साहू सरगुजा (छ.ग.),प.मुकेश चतुर्वेदी,सागर
.    आकांक्षा 2015/पेज-5
.    आकांक्षा 2015/पेज-6
.    जिस माँ ने जन्म दिया
.    माता की गोदी से बढ़कर,
.    नहीं प्यारा कोई ठिकाना।
.    जिस माँ ने जन्म दिया है,
.    दिल उसका नहीं दुःखाना।
.    पहले तो तुझे तेरी माँ ने,
.    सीने से लगा के सुलाया,
.    फिर हाथ पकड़कर तेरे,
.    सीने पर ही चलना सिखाया।
.    बडे़ दर्द सहे हैं माँ ने,
.    तेरा फ़र्ज़ है दर्द मिटाना।
.    दिन-रात तुझे तेरी माँ ने,
.    बाहों में अरे खिलाया।
.    खुद गीले में सोई,
.    सूखे में तुझे सुलाया।
.    तू  कोई भी दुःख देकर,
.    नहीं माँ को कभी रुलाना।
.    जब-जब तूने आँसू बहाए,
.    माँ ने अपना प्यार लुटाया।
.    कभी कंधे पर बैठाया,
.    कभी प्यार सेे गीत सुनाया।
.    सारा प्यार लुटाने वाली,
.    उस माँ को न तरसाना।
.    माता की सेवा से बढ़कर,
.    कोई पुण्य नहीं है दूजा।
.    सब छोड़ के तीरथ सारे,
.    कर ले माता की पूजा।
.    जीवन भर अपनी माँ को,
.    नयनों में अपने बसाना।
.    जब-जब उदास तुझे देखा,
.    माँ ने आँचल छाँव सुलाया।
.    तेरे दुःख से दुःखी होकर के,
.    अपने कष्टों को भुलाया।
.    गोदी में खिलाने वाली,
.    प्यारी माँ को न ठुकराना।
.    भगवान नज़र आता है,
.    जब देखूँ माँ सूरत।
.    ममता के मंदिर की है,
.    वो सबसे प्यारी मूरत।
.    धन,वैभव,यश पाकर के,
.    नहीं माँ को तू बिसराना।
.    जिस माँ ने जन्म दिया है,
.    -वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़,(म.प्र.)
.    -------------------   
.    क़ता-
.    दिल जो माँ-बाप का दुःखा देगा,
.    फिर न कुछ भी तुझे खुदा देगा।
.    जिसने चलना सिखाया दुनिया में,
.     माँ का एहसान क्या चुका देगा।
.    ग़ज़ल-‘माँ की ममता’
.    वो फक़त चार दिन कहानी थी,
.    जो हमें साथ में  निभानी थी।
.    मुझे हर बात मुँह जवानी थी,
.    उसका मैं,वो मेरी दिवानी थी।
.    खुद मुझे मार कर वो रोती थी,
.    माँ की ममता की ये निशानी थी।
.    उसके जैसे नहीं जमाने में,
.    उसके जैसी न कोई सानी थीं।
.    माँ नहीं जिसकी ज़माने में,
.    उसकी दुनिया कहाँ सुहानी थी।।
-चाँद मोहम्मद आखि़र, टीकमगढ़ (म.प्र.) 
.    आकांक्षा 2015/पेज-7
.    भोपाल प्रादेशिक सम्मानों से सम्मानित साहित्यकार
.        सम्मान                 सन्        राशि     क्षेत्र      सम्मानित साहित्यकार
.    1-काशीबाई मेहता सम्मान      2004      1100 (कविता) डाॅ. छाया श्रीवास्तव
.    2-देवकी नंदन माहेश्वरी सम्मान       2005      1100 (कविता) राजीव नामदेव‘राना लिधौरी
.    3-सर्वश्रेष्ठ इकाई सम्मान             2006     इकाई जिलाध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
.    4-कस्तूरी देवी लोकभाषा सम्मान  2011  1100 (बुंदेली) डाॅ.कैलाश बिहारी द्विवेदी
.    5-देवकी नंदन माहेश्वरी सम्मान       2013      1100 (बाल साहित्य) व्ही.व्ही. बगेरिया
.    6-प.बृजबल्लभ आचार्य सम्मान      2014      1100      (समग्र साहित्य) पं.कपिल देव तैंलंग
.    म.प्र. लेखक संघ इकाई टीकमगढ़ द्वारा सम्मानित साहित्यकार
.        सम्मान                 सन्     क्षेत्र               सम्मानित साहित्यकार
.    1-आंचलिक सम्मान         2004    (ग़ज़ल) हाजी ज़फ़रउल्ला खां‘ज़फ़र’,टीकमगढ़
.    2-आंचलिक सम्मान         2004    (व्यंग्य)     श्री रामगोपाल रैकवार कँवल’,टीकमगढ़
.    3-आंचलिक सम्मान         2004    (कविता)      डाॅ. डी.पी.खरे ‘प्रसाद’,टीकमगढ
.    4-स्व.पन्नालाल नामदेव सम्मान      2004    (बुंदेली)      श्री बटुक चतुर्वेदी,(भोपाल)
.    5-स्व.प्रेमनारायण रूसिया सम्मान 2004     (गीत)  श्री हरेन्द्र पाल सिंह/डाॅ.उषा सिंह,टीकमगढ़
.    6-गंगा साहित्य सम्मान         2004    (कविता)  श्री देवकी नंदन मिश्र ‘नंदन’टीकमगढ
.    7-डाॅ.ज़फ़रयार सिद्धीकी सम्मान      2004    (ग़ज़ल)      श्री उमाशंकर मिश्र ‘तन्हा’,टीकमगढ
.    8-ईसुरी स्मृति सम्मान         2009    (गद्य,बुंदेली) डाॅ.बहादुर सिंह परमार,छतरपुर
.    9-साहित्य श्री सम्मान         2009    (गद्य,बुंदेली) डाॅ.कैलाश बिहारी द्विवेदी,टीकमगढ
.    10-साहित्य गौरव सम्मान         2012    (कविता)       स्व.श्री अशोक सक्सेना अनुज (भोपाल)
.    11-साहित्य सौरव सम्मान         2012    (नई कविता) श्री विजय कुमार मेहरा,होशंगाबाद
.    12-साहित्य श्री सम्मान         2012    (कविता)           श्री परमेश्वरीदास तिवारी, टीकमगढ़
.    13-समाज गौरव सम्मान         2012    (सामाजिक क्षेत्र) श्री एम.महेन्द्र पोतदार, टीकमगढ
.    14-समाज शिरोमणि सम्मान     2012    (सामाजिक क्षेत्र) श्री बालचन्द्र मोदी, टीकमगढ
.    15-समाज रत्न सम्मान         2012    (सामाजिक क्षेत्र) श्री मनोज मड़वैया, टीकमगढ
.    16-मेधावी छात्रा सम्मान         2013    (शिक्षा के क्षेत्र)  कु. रितु चतुर्वेदी, टीकमगढ़
.    17-मेधावी छात्र सम्मान         2013    (शिक्षा के क्षेत्र)  कु. सौरभ चतुर्वेदी, टीकमगढ
.    18-साहित्य श्री सम्मान         2013    (कविता)      श्री बाबूलाल जैन ‘सलिल’, टीकमगढ
.    19-साहित्य श्री सम्मान         2013    (गीत)          श्री शोभाराम दांगी ‘इन्दु’,नदनवारा
.    20-साहित्य श्री सम्मान         2013    (ग़ज़ल)       हाजी ज़फ़रउल्ला खां ‘ज़फ़र’,टीकमगढ़
.    21-साहित्य श्री सम्मान         2013    (संचालन)  श्री उमाशंकर मिश्र ‘तन्हा’,टीकमगढ़
.    22-साहित्य श्री सम्मान         2013    (सर्वाधिक 169 गोष्ठियों के संयोजन)-राना लिधौरी
.    23-गीत शिरोमणि सम्मान      2014    (गीत एवं संगीत)  श्री मनमोहन पाण्डे, बिजावर
.    24-कंठ कोकिल सम्मान         2014    (गीत)          श्री वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़
.    25-बुन्देली गौरव सम्मान         2014    ((बुंदेली)       सु.श्री सीमा श्रीवास्तव ‘उर्मिल’,टीकमगढ़
.    26-बुन्देली गौरव सम्मान         2014    (बुंदेली)       श्री दीनदयाल तिवारी ‘बेताल’,टीकमगढ़
.    27-प.ं बनारसीदास सम्मान     2014    (संपादन,इतिहासकार) पं.हरि विष्णु अवस्थी’,टीकमगढ़
.    28-अपराजिता  सम्मान         2014    (सामाजिक क्षेत्र)    कु.सेफिया खान,टीकमगढ़
.   
.            म.प्र. लेखक संघ,जिला इकाई,टीकमगढ़
.    अध्यक्ष-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’    सचिव- रामगोपाल रैकवार ‘कँवल’     
.    आकांक्षा 2015/पेज-8
.    ‘‘माँ-शत् शत् नमन’’
.    माँ तुमने कष्टों में रहकर,
.    सब को सुख पहुँचाया,
.    स्वयं गीले में सो कर,
.    सबको सूखे में सुलाया,
.    माँ तुम प्यार हो ममता हो,
.    जननी हो जगत की जननी हो,
.    नवरात्रि के नौ रूपों में सुखदायिनी हो,
.    शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी और कात्यामिनी हो,
.    दुर्गा और काली के रूपों में,
.    दुष्टो और आंतकियों की संहारिनी हो,
.    नवरात्रि की भक्ति को शत्-शत् नमन।
.    गुजरात की ‘अम्बा’,जगदम्बा हो,
.    पन्ना की पद्मा,मैहर की शारदा हो,
.    उत्तर की ज्वाला पूरब की कामा हो,
.    दक्षिण की कन्या और चामुण्डा हो,
.    शक्तिपीठों की शक्ति को शत्-शत् नमन।
.    गंगा हो जमुना हो नर्मदा की धारा हो,
.    कृष्णा हो क्षिप्रा हो,कावेरी हो,
.    गोमती,गंडक गोदावरी की आभा हो,
.    सुफलाम्-सुफलाम् भारत की आशा हो,
.    भारत माता हो माता को शत्-शत् नमन।।
.    -आर.एस.शर्मा,टीकमगढ़ (म.प्र.)
.   
.    ‘‘बुन्देली-चैकडिया’’
.    माँ की ममता
.    माँ की ममता खा पहिचानो।
.    प्रेम हृदय में जानो
.    तुमें बतावै कानो।
.    पुत्र बिना माता की माया,
.    लगत हृदय में बानो।
.    पल-पल तलफत है
.    मछली सी।
.    जी में नहीं ठिकानो।
.    प्रान निछावर करत पुत्र खा,
.    एसो भाऊ बखानों ।।
.    -गुलाब सिंह ‘भाऊ’
.      लखौरा,टीकमगढ़(म.प्र.)
.    श्याम मेडिकल स्टोरएवं शारदा मेडिकल स्टोर
.    पारस होटल के सामने,सिविल लाइन,
.    टीकमगढ़ (म.प्र.) मोबाइल-9425895028
.    आकांक्षा 2015/पेज-9
.   
.   
.                        झलकियाँ
.    टीकमगढ़-म.प्र.लेखक संघ की 182वीं गोष्ठी श्री रंगम् बी.एड कालेज अनंतपुरा में दिनांक 30.3.14 को ‘नारी शक्ति’ पर केन्द्रित व पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह के रूप में आयोजित की गयी। जिसकी अध्यक्षता श्रीमती मनोरमा शर्मा ने एवं मुख्य अतिथि पं. हरिविष्णु अवस्थी रहे। संचालन वीरेन्द्र चंसौरिया ने किया तथा आभार प्रदर्शन मनोहर लाल गोस्वामी ने किया। इसमें  डाॅ. अनिता अमिताभ गोस्वामी का काव्य संग्रह ‘सीप और मोती’ का विमोचन किया गया  पुस्तक की समीक्षा राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने पढ़ी तथा कु.सेफिया खान को केंसर जैसी असाध्य बीमारी को पराजित करने पर ‘अपराजिता सम्मान से सम्मानित किया गया।


.    दिनांक 26.10.14 को म.प्र.लेखक संघ की 189वीं गोष्ठी ‘कहानी व लघुकथा’ पर केन्द्रित आयोजित की गयी। जिसकी अध्यक्षता डाॅ.रूखसाना सिद्दीकी ने की व मुख्य अतिथि के रूप में बीना से पधारे रहीम होशंगावादी। संचालन उमाशंकर मिश्र ने किया। इस अवसर पर हाजी ज़फ़र उल्ला खां ‘ज़फ़र’ के तीसरे ग़ज़ल संग्रह ‘इज़्हारे क़ल्ब’ का विमोचन किया गया। जिसकी समीक्षा राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी ने पढ़ी।
.    आकांक्षा 2015/पेज-10
.    मध्य प्रदेश लेखक संघ जिला इकाई टीकमगढ़,म.प्र.
.    कार्यालय-नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालोनी,कुँवरपुरा रोड,टीकमगढ़,(म.प्र.)         
.       मोबा.-9893520965   म्.डंपस.तंदंसपकीवतप/हउंपसण्बवउ
.   
.    मासिक साहित्य/काव्य गोष्ठियों एवं बैठकों का र्वािषर््ाक कार्यक्रम
.            (माह जनवरी 2015 से दिसम्बर 2015 तक)
.    क्र.  दिनांक,माह,वर्ष,   दिन                   दिवस   
.    192    25 जनवरी 2015    रविवार    देश प्रेम व वीर रस गोष्ठी   
.    193    1 फरवरी 2015    रविवार    ग़ज़ल गोष्ठी
.    194    1 मार्च   2015    रविवार    नारी शक्ति पर केन्द्रित गोष्ठी
.    195    5 अप्रैल  2015    रविवार    हास्य व्यग्ंय गद्य व पद्य गोष्ठी
.    196    3 मई    2015    रविवार    नई कविता गोष्ठी
.    197    7 जून   2015    रविवार    ‘बुन्देली’ गद्य व पद्य गोष्ठी
.    198    5 जुलाई 2015    रविवार   प्रेमचन्द्र पर विचार व काव्य गोष्ठी
.    199    2 अगस्त 2015    रविवार    गीत गोष्ठी
.    200    6 सितम्बर 2015 रविवार    राज भाषा ‘हिन्दी पर संगोष्ठी
.    201    4 अक्टूवर 2015    रविवार    लघुकथा व कहानी गोष्ठी
.    202    1 नबम्बर 2015    शनिवार    बाल साहित्य गोष्ठी
.    203    6 दिसम्बर 2015    रविवार   कुण्डलिया,दोहा व अन्य छन्द गोष्ठी    आयोजन स्थान-उपरोक्त गोष्ठियाँ राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ के निवास शिवनगर कालोनी, टीकमगढ़ में प्रत्येक माह के प्रथम रविवार को दोपहर 2 बजे आयोजित होगी।
.    माह- 5 अपै्रल, 3 मई एवं 7 जून की गोष्ठियाँ शाम 7बजे से 9 बजे तक आयोजित की जावेगी।
.    स्थान-गायत्री शक्तिपीठ,बानपुर दरवाजा,टीकमगढ़   समय-दोपहर 2-5 बजे तक
.         सचिव                      अध्यक्ष
.     रामगोपाल रैकवार ‘कँवल’        राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
.       (मोबा-8085153778)            (मोबा.9893520965)
.    आकांक्षा 2015/पेज-11
.        कविता-‘‘माँ’’ चालीसा
.    यह चालीसा भक्तियुक्त,पाठ करे जो कोय,
.    ता पर कृपा प्रसन्नता होय श्री माता जी की होय।
.    तुम स्नेह की गागर हो,प्यार छलकता सागर हो,
.    हमेशा तुम प्यार लुटाती,जीवन भर तुम साथ निभाती।
.    गीले से सूखे में सुलाती,बडे प्यार से छूला छुलाती,
.    हर समय चिंता करती हो,बच्चों को अच्छा स्वस्थ रखती हो।
.    तुम्हारी महिमा बहुत महान है जानता हमेशा यह जहान है,
.    बचपन हमेशा याद रहता है, माँ का दुलार जीवन भर रहता है।
.    माँ कभी तुम डाँट पिलाती,फिर झट से तुम हमें मनाती,
.    अच्छी शिक्षा देती रोज,बदल देती हो तुम हमारी सोच।
.    रोज घुमाने ले जाती हो,नए-नए खेल तुम सिखाती हो,
.    गंदे कपड़े करके आते, माँ से उसको साफ कराते।
.    जब कभी नुकसान हो जाता,कभी न उसको गुस्सा आता,
.    दूध पिलाकर स्वस्थ रखती है,नए-नए पौष्टिक व्यंजन खिलाती।
.    उन्नति से खुश हो जाती,खुश होकर हमें गले लगाती,
.    जब मैं उनके चरण छूता,शुभ आशीर्वाद हमें मिल जाता।
.    माँ की इज़़्जत तुम बढाओगे,तो हमेशा सुख पाओगे,
.    माँ को कभी कष्ट न देना,उनको सदा दूर नहीं रखना।
.    माँ हमारी रक्षक है ,दुनिया के लिए तक्षक है,
.    माँ का मान सदा बढ़ाओगे,जीवन में हर सुख पाओगे।
.    यह चालीसा भक्ति युक्त पाठ करे जो कोय।
.    ता पर कृपा प्रसन्नता होय श्री माता जी की होय।।
.    --भारत विजय बगेरिया,टीकमगढ़ (म.प्र.)
.   
.    राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’को इंटरनेट पर भी पढ़ें-
.    कवि राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़ (म.प्र) के

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    संपादन-साहित्यिक पत्रिका ‘आकांक्षा’-

-       *& www.akankshatkg.blogspot.com
.    हास्य व्यंग्य गद्य-  
www.vyangsansar.blogspot.com.   
 बुंदेली साहित्य-  
www. bundelkhandknowlege..    आकांक्षा 2015/पेज-12
.    दो लघुकथाएँ-    ‘माँ चल बसी’
.    काॅलबेल बजी बाहर झांककर देखा तो एक लड़की अपनी माँ के साथ खड़ी थी। मैंने पूछा क्या बात है? माँ ने लड़की की तरफ इशारा करते हुए बतलाया ससुरालवालों से तालमेल नहीं बना झगड़ा होता था अब इधर रहेगी। काम करके कमाएगी-खाएगी। मैंने सामने वाले मकान की ओर इशारा करते हुए बतलाया कि उनके यहाँ जरूरत है। मुझसे नमस्ते करके चली गई। सामने वाले मकान में खाना बनाने का काम मिल गया था।
.            एक महीना हो चुका था सामने वाली मेरे घर बैठने आई मैंने लड़की के बारे में पूछा काम ठीक कर रही है? तो उन्होंने कहा मैंने आज उसे भगा दिया। मैंने पूछा क्या बात हो गई ? वे बोली कुछ न पूछिए झूठ ही वह ऐसा, बोली 13-14 दिन काम पर नहीं आई मैंने पूछा काम पर क्यांेे नहीं आई तो बोली मेरी माँ चल बसी है। मैं भी दुःखी हो गई। जब वह काम कर रही थी तभी उसकी माँ आ गई। मैं इस झूठ को बर्दास्त नहीं कर पाई।
.                लघुकथा-‘सोच’
.            मेरे परिवार में बहुत दिन से जमीन के हिस्सा बाँट का मामला चल रहा था। वे शहर में रहते थे,गाँव की जमीन बेचकर शहर में ही जमीन लेना चाहते थे,इस हिस्से बाँट को लेकर एक रिश्तेदार ने उनकी बहुत मदद की और जमीन का कार्य पूरा हो गया।
.            कुछ समय बाद मेरे यहाँ दूर के रिश्तेदार आए हुए थे,उन्होंने मुझ से पूछा कि आपकी जमीन का काम पूरा हो गया। मैंने अफसोस जताते हुए कहा कि मेरा कार्य पूरा हो गया किंतु जिन्होंने मेरे काम में मदद की उनकी मृत्यु हो गई। यह सुनकर बिना सोचे ही बोल पडे़,चलो तुम्हारा काम तो करा गए।
.            मैं उनकी सोच के बारे में सोचती रह गई। काश किसी की मौत के बारे में वे गंभीरता से सोच पाते।
.    - पुष्पा खरे,सतना,(म.प्र.)
                             आकांक्षा 2015/पेज-13
लघुकथा-‘‘अम्मा’’
    आज अम्मा का मन बल्लियों उछल रहा था। इस दीवाली पर गृह लक्ष्मी दो बरस के पोते के साथ घर आ रही थी बेटे ने शहर में नौकरी कर,वही आफिस में काम करने वाली सहयोगी को जीवनसंगिनी चुन लिया था।विवाह के बाद दोनों अम्मा का आशीर्वाद लेने गाँव आए,फिर एक बार बेटे ने अम्मा को शहर ले जाने की औपचारिकता निभाई पर अम्मा ने दो टूक कह दिया मुझे तुमसे कोई बैर नहीं,तुम कमाने लगे और बहुरानी भी कमानेवाली है इस मंँहगाई में दोनों लोगों की कमाई से ही गृहस्थी की गाड़ी चलेगी। बस हमें अपनी माटी से अलग नही कर बेटा। इस चैखट पे हम व्याह के आए थे जब अर्थी पर जैंहें तभी यह चैखट छूटेगी।
    और हरीश निरुत्तर हो शहर चला गया था,परन्तु हर माह वह अपने वेतन में से कुछ राशि अम्मा को खर्च के लिए मनिआर्डर से भेज देता था। नित्य पूजा से निवृत्त हो ,पड़ौसियों की बहुओं से बतियाती,उनके बच्चों में मन रमा कर अम्मा अपने दिन काट रही थी। पर आज बूढे झुर्रीदार हाथों में पंख लग गए थे। पीली मिट्टी और गोबर की मिली जुली गंध से घर आँगन महक रहे थे। जितने पकवान बिटवा को पसंद थे,वे सब एक-एक कर अम्मा ने बना लिए थे।
    लम्बे अरसे बाद हरीश माँ के बने स्वादिस्ट व्यंजन चटखारे लेकर खा रहा था। अम्मा पोते को गोद में लिए ढे़रों आशीष दे रही थी। वहीं बहु घर की साफ सफाई
रंगोली,सांतिये आश्चर्य से देखे जा रही थी। जब अम्मा ने पकवान की थाली बहु के लिए सजायी तो व्यंजनों की सोधी सुगंध से बहू के नथुने फडक उठे,मुँह से सहसा निकला ’व्हाव’। बंडरफुल...वाह अम्मा.! ये इतने सारे पकवान आपने अकेले बनाए वो भी इतने स्वादिष्ट। छुट्टियाँ बिता बेटे-बहू ने शहर जानेकी तैयारी कर ली साथ में एक पोटली अम्मा के कपड़ों की बाँध ली। अम्मा आज शहर चलना है। बेटे ने सामान उठाया। पर बेटा हम अपने गाँव की चैखट नहीं छोड़ सकते है। अम्मा देहरी निहारने लगी।
नहीं अम्मा..! हमें क्षमा कर दो........ हम सोचते थे आपकी रूढि़वादी विचार धारा कहीं हमारे जीवन को तनाव ग्रस्त न कर दे,इसलिए मैंने हरीश को रोका कि वे आपको शहर न लाएँ,पर अब समझ गई हँू कि आपके उच्च संस्कारों,आदर्शो की आवश्यकता आपके पोटे को सबसे अधिक है।वहाँ झूलाघरों  में या आया के सुपुर्द पलते बच्चों का व्यवहार उनकी उद्ण्डता हमने देखी हैं। हम रुपया खर्च करके भी अच्छे संस्कार नहीं दे पाएँगे। प्लीज अम्मा हमारे साथ चलो। बहू के भींगे नेत्र और याचनापूर्ण वाणी से माँ की ममता पिघल गईं अम्मा किलकारियाँ भरते पोते को सीने से लिपटा देहरी से बाहर निकल आई।।

- डाॅ.रूखसाना सिद्दीकी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
                        तुम स्वयं सिद्धा हो.............(कहानी संग्रह)
डाॅ.रुखसाना सिद्दीकी की 15 कहानियाँं 136 पृष्ठों में मूल्य मात्र 150 रू प्राप्ति स्थान-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’(अध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ), नई चर्च के पास शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)एवं डाॅ.रुखसाना सिद्दीकी, ज़फ़र मंजिल, ईदगाह के पास,टीकमगढ     - डाॅ.रूखसाना सिद्दीकी,टीकमगढ़ (म.प्र.)़
आकांक्षा 2015/पेज-14
‘माँ’’
मैं सोचता हँू,अगर माँ नहीं होती,तो कैसे ढल पाता,
सभ्यता की सीपों में मनुजता का मोती,
हम अपने ही आप से अनजाने रह जाते और हमें कभी नहीं मिल पाते
ये घर परिवार,ये दुलार,जीवन का बोध,ममता की गोद,
तुतलाते बोल,बाते अनमोल,पुलक कर मैया लेती बलैया,
मोहक खिलौने मन मृग छौने सुरीली मैना मीठे रस मैना,
चहकती चिरैया,गाती गौरैया,गुड्डा और गुडियाँ,दादी माँ
पलकों की छाँव,मन चाहा ठाँव,दूध की कटोरी,रस भीगी लोरी,
चंदा सा मामा,रिश्तों का जामा,पथ खोजी पाँव,
नानी का गाँव,नानी की बानी,अनगिनत कहानी,
जानी अनजानी,सदियों पुरानी,किस्से अनमोल,मीठे मृदु बोल,
माँ है यदि मौन...........तो बोलेगा कौन?
‘माँ’’
माँ सर्वव्यापी सत्ता की प्रतिकृति है,देश जाति की संकीर्णताएँ उसकी ममता को कभी अवरूद्ध नहीं कर पायी,उसी की भाव संजीवनी ने पौरुष को महानता प्रदान की है। इस महान महिमामयी माँ की प्रतिष्ठा ही महानता की सच्ची प्रतिष्ठा है।
    नारी  के विविध रूपों में माँ के ही संस्कार सर्वत्र बिखरे पड़े हंै। संसार में आया हर प्राणी माँ से अधिक ऋणी किसी का नहीं,हर दुःख के समय हर प्राणी के अंतर्मन में माँ नाम की ध्वनि निःसरित होती हैं। वात्सल्य मूर्ति,ममतामयी माँ को......शत्-शत् नमन।
-एम पोतदार,टीकमगढ़ (म.प्र.)
 

एक एहसास है ‘‘माँ’’
    विषय ऐसा है कि अच्छे कलमकारों की क़लम भी डगमगाने लगे।लिखते-लिखते कलम रुक जाए। मन दूर कहीं खुद ही के बचपन में चला जाए। माँ का सोते-सोते जागकर हमें ‘ओढ़ाना’ उढ़ाना, फिर सुबह जगाकर गोदी में उठाने का एहसास, खूब सारा प्यार कर, तैयार करना। खुद स्कूल लेकर जाना और छुट्टी के समय स्कूल के गेट खुलने से पहले ही खडे़ होकर हमारा इंतजार करना। सच कितना सच्चा परिपूर्ण एहसास है ‘माँ’।
    कुछ लिखने से पूर्व ही आँखें भर आयी है। ‘माँ’,बस इतना ही लिख सका ‘माँ’ ज्यादा कुछ लिखा तो रो पडूँगा माँ मेरा बजूद है ‘माँ’।
- कृष्ण कुमार रावत‘किस्सू’,टीकमगढ़ (म.प्र.)
आकांक्षा 2015/पेज-15
कविता-‘ममतामयी माँ’
ममता,करुणा,दया,स्नेह से,
माँ का खजाना नहीं है खाली,
माँ गोमाता सी
सीधी-सादी और भोली-भाली।
आजीवन अपने अरमानों की
जलाती है होली,
परिवार को कंचन बनाने की खा़तिर,
मिट्टी में ही मिल जो मिट्टी हो जाती,
सशक्त पुंज सी घर के कोने-कोने में,
ज्ञान-प्रकाश भर,
अज्ञान तिमिर दूर करती।
हाथ में ले तलवार युद्ध में कूद पड़ी।
हिमगिरी सी अचल-अडिग माँ,
सभी विपदाओं से घर की रक्षा है करती।
आजीवन जिसने नहीं फलांगी दहलीज,
वह माँ व्याकुल पुरूषों को
मार्गदर्शन कराती है,
चुप-चुप सब सहती है,
उफ नहीं वह करती है।
हौले-हौले माँ बालों को सहलाती हु्रई
ममत्व का गुनगुना एहसास कराती है।
स्वयं पीकर आसव का प्याला,
सभी पर सम अमृत वर्षण करती है।
ममता भरे स्नेहांचल से,
ढाँप! माँ अनेक कष्टों से रक्षा करती है।।
/ सुनीता शर्मा,गुडगांव (हरियाणा)
कविता-माँ के कदमों में
आओ माँ के कदमों को चूमें,
माँ से जि़न्दगी के गुण सीखें।
माँ के कदमों में राहत है,
माँ के कदमों मे जन्नत है।
माँ ही गीता माँ ही सीता,
माँ ही गंगा माँ की जमुना।
माँ का अब आदर तुम करलो,
इस पार से उस पार गुजरलो।
माँ से तुमको प्यार मिलेगा,
ये सारा संसार मिलेगा।
माँ से रस्मों रिवाज़ है,
माँ ही सर का ताज़ है।
माँ से बड़ा दुनिया में नहीं है,
माँ से बड़ा आसमां भी नहीं है
माँ को तुम आधार बना लो,
‘अनवर’ नईया पार लगा लो।
- हाजी अनवर, टीकमगढ़,(म.प्र.)
कमा के इतनी दौलत भी मैं अपनी माँ को ना दे सका।
कि जिनके सिक्कों से माँ मेरी नज़र उतारा करती थी।।
- अज्ञात (वाट्सएप से साभार)
आकांक्षा 2015/पेज-16
कविता- ‘‘माँ’’
सबसे प्यारा ओ न्यारा,
माँ तेरा एक नाम है।
माँ तो इस संसार में,
सचमुच ही महान है।।

माँ से घर परिवार है,
माँ से ही संसार है।
माँ की महिमा जग में,
सचमुच अपरम्पार है।।

माँ से ही मिलते हमें,
सदा शुभ संस्कार है।
माँ के हम सब पर,
बहुत ही उपकार हैं।।

ऋषि, मुनि और देवता,
करते तेरा गुणगान।
ऐसी माँ को करते हम,
कोटि-कोटि प्रणाम।।
- डाॅ.संध्या शुक्ल ‘मृदुल’,जबलपुर,(म.प्र.)
    मोबाइल-09893885679
कविता- ‘‘माँ’’
तुम्हारी उँगली पकडकर चलना।
फिर गिरना और फिर संभल जाना मुझे याद है
जब-जब भी मैं दृग-भ्रमित हुआ
तुम्हारे ही ममत्व की उँगली ने,
मुझे दिखाया है,मार्ग दर्शन
भूख-पीड़ा और व्याकुलता
तुम्हारे स्नेह के आँचल में,
कहाँ खो जाती है, पता नहीं।
तुम्हारे आशीर्वाद के हाथ,
मुझे चेतन कर जाते है,
लोरी का गुंजन
मुझे लय दे जाते हैं
तोतली बोली को भाषा का
रूप तुमने ही तो दिया है माँ
तुम्हीं सरस्वती,
शक्तिरूपा और अन्नपूर्णा
सब तुम्हीं हो,
माँ तुम्हारे व्यष्टि और
 समष्टि रूप को
शत-शत् अभिनंदन।।
/ हरेन्द्रपाल सिंह,टीकमगढ़ (म.प्र.)
 

‘नौनी लगे बुन्देली’
  (विश्व का‘बुन्देली’ में प्रकाशित पहला हाइकु संग्रह)
टीकमगढ़ (म.प्र.) के बहुचर्चित युवा कवि राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ का सन् 2010 में रचित विश्व में ‘बुन्देली’ का पहला हाइकु संग्रह’ ‘नौंनी लगे बुन्देली’ जिसमें 88 पेज में 100 ‘बुंदेली हाइकु’ एवं राना लिधौरी का सम्पूर्ण परिचय पढ़ें। मात्र 80 रु. का एम.ओ. भेजकर प्राप्त करें। संपादक के पते पर प्राप्त करे।
आकांक्षा 2015/पेज-17
कविता-‘‘प्यारी माँ’’
मेरी प्यारी-प्यारी माँ,
धूप लगे बन जाए छाँं।
जाड़ा आकर जरा सताए,
गर्म शाल ओढ़ाती माँ।।

भूख लगे पकवान बनाए,
छोटे कौर खिलाती माँ।
ममता की मूरत लगती है,
मेरी तो भगवान है माँ।।

थोड़ी सा बीमार लगूँ तो,
डाॅक्टरों की बुलवाती माँ।
वैद्य-हकीमों को दिखलाती,
तंत्र-मंत्र करवाती माँ।।

माँँ से अलग कभी ना करना,
हर बच्चे को देना माँँ।
गोदी में खेले परमेश्वर,
ऐसी अद्भुद मेरी माँँ ।।
‘‘काश! कहीं ऐसा हो जाता’
माँँ,तुम्हारा स्नेहिल हाथ,
बालों को मेरे सहलाता।
ममतामयी गोद मिल जाती,
काश! कहीं ऐसा हो जाता।

तुम होती माँ खेल-खेल कर,
धूल सना जब मैं घर आता।
झाड़-पोंछ कर सजा सँवारती,
मैं राजा बेटा बन जाता।

माँ,आँचल में मैं छिप जाता,
नटखट बनकर तुझे रिझाता।
खूब खिलखिलाता तब माँ के,
हाथों श्याम डिठौना लग जाता।

माँ तुम दिख जाती दो पल को,
स्वप्न मेरा साकार हो जाता।
अपने मन के नील गगन में,
मैं उड़ान भरता और गाता।।
-सीताराम चैहान ‘पथिक’नई दिल्ली,मोबाइल-09650621606
                             

     ‘रजनीगंधा’ (हिन्दी हाइकु संग्रह)
टीकमगढ़ के साहित्यकार राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ का सन् 2008 में लिखा हुआ। सन् 2011 में 2100रू. का ‘स्व.पं.राधिका प्रसाद पाठक हाइकु सम्मान 2011’ प्राप्त, बहुचर्चित हिन्दी हाइकु संग्रह’ ‘रजनीगंधा’ 64 पेज में 250 हाइकुओं का मज़ा मात्र 35रु.का एम.ओ.संपादक के पते पर भेजकर प्राप्त करें।
आकांक्षा 2015/पेज-18
कविता-‘‘शक्ति है माँ’’
जीने का ढंग,अंदाज़ है माँ,
खनकती चूडियों का साज़ है माँ।
साधना,संस्कारों की निधि है माँ,
समग्र संवेदनाओं की परिधि है माँ।
जाड़े में बच्चों का दुशाला है माँ,
ड्योढ़ी,आँगन का उजाला है माँ।
आत्मीयता का पथ,अनुबंध है माँ,
दायित्वों की प्रहरी संबंध है माँं।

मंगलकामना,आशीष है माँ,
पूजा-नवाज़ में झुका शीश है माँ।
करुणा ममता की गीता है माँं,
सहनशील,बहती सरिता है माँ।
शिक्षा,संस्कृति की संवाहिका है माँ,
जीवन मंत्र और वेदिका है माँ।
सुखी-समृद्ध जीवन का चमन है माँ,
प्यार,कर्मठता का आचमन है माँ।

स्वर मधुर साधना बंदगी है माँ,
जीवन संजीवनी,सादगी है माँ।
कठोरता,विनम्रता,तप शक्ति है माँ,
स्वयं ईश्वरीय अभिव्यक्ति है माँ ।
करुणा का शाश्वत आदर्श है माँ,
त्याग-ममता का उच्चादर्श है माँ।
सेवा की निरंतर चाल है माँ,
बच्चों की रक्षा कवच-ढाल है माँ।
सृष्टि नियामिका और स्रोत है माँ,
नयनों का रतजगा,ज्योत है माँ।
रामायण पाठ,तिलावत है माँ,
घर की गवाही,अदालत है माँ।

आशीर्वाद का वरदान है माँ,
बच्चों की खुशियाँ,मुस्कान है माँ।
शालीनता की बहती धार है माँ।
बरसती वात्सल्य बौछार है माँ।
संवेदना की फुलवारी है माँ।
परोपकार की झलकारी है माँ।
अपनत्व की छाँव,शीतलता है माँ।
दया,उपकार की विशालता है माँ।

घर-आँगन की धुरी,अस्मिता है माँ
पालनहारी गुण ग्राहिता है माँ।
सरस,सरल अनूठा राग है माँ।
दुआओं का रोशन चिराग़ है माँ।।
-मोहम्मद आरिफ, उज्जैन (म.प्र.)
                                         ‘अर्चना’ (कविता संग्रह)
टीकमगढ़ के युवा कवि राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ के  छात्र जीवन (सन् 1997) में लिखा कविता संग्रह ‘अर्चना’ 32 पेज में 23 विविध रंगों में रचित बाल कविताएँ संपादक के नाम से मात्र 25 रु.का एम.ओ.भेजकर प्राप्त करें।
आकांक्षा 2015/पेज-19
दस हाइकु -‘‘माँ’’
मैं भी तो दिखूँ,
माँ तेरी कृपा से जो।
हाइकु लिखे।।
    दर्द को सहा,
    पुत्र से बूढी माँ ने,
    कुछ न कहा।।
माँ मेरी कहे,
तू मेरी कंधों पर।
सदैव रहे।।
    माँ का प्यार,
    कैसे भूल जाएगा।
    यह संसार।।
माँ का आँचल,
इतना निर्मल ज्यूँ।
गंगा का जल।।
बहला गई,
माँ तेरी स्पर्श मुझे।
सहला गई।।

माँ का दूध,
बड़ा होकर भूला।
उसका पूत।।

दूध का कर्ज़,
माँ रोती बेटा भूला।
अपना फज़र््ा।।

बेटों में बढ़ी,
बूढ़ी माँ की ममता।
किश्तों में फटी।।
माँ को प्रणाम,
हाइकु करे मेरा।
जग में नाम।।
- सूर्य प्रताप गुप्त ‘सूर्य’,देवरिया,़(उ.प्र.)
 

‘राना लिधौरी’ के ‘माँ’ पर 6 हाइकु
1)
प्राण पेट में,
आज बेटी खो रही।
क्यों माँ सो रही।।
  (2)
माँ के बाद में,
यह घर सँवारा।
तूने हमारा।।
(3)   
माँ के बिना,
जिन्दा रह सकँूगा।
नामुमकिन।।
 (4)
मेरी आँख से,
मोती निकल आया।
माँ याद आयी।।
 (5)
मुझे अपनी,
खबर नहीं होती।
माँ तू न होती।।
(6)
क्यो रोती हो माँ,
बेटा,बेटा न रहा।
बेटी आसरा।।
- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
 अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
टीकमगढ़(म.प्र.)मोबाइल-9893520965
आकांक्षा 2015/पेज-20

 




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