संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशक-
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
एवं मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
की प्रस्तुति
©कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी',टीकमगढ़
मोबाइल 9893520965
प्रकाशन- प्रथम संस्करण- दिनांक 18-8-2020
श्री गणेशाय नमः 31 नाम
1-विघ्नविनाशक
2-गणपती
3-गिरिजासुवन
4-गणेश।
5-लंबोदर,
6- सिद्धिप्रिय
7-वक्रतुण्ड
8- विघ्नेश
9-योगाधिप
10-प्रथमेश,
11-मंगलमूर्ति
12-कवीश।
13-सिद्धिविनायक
14-भुवनपति
15-शूपकर्ण
16-अवनीश
17-एकदंत,
18-एकाक्षरा
19-धूम्रवर्ण
20- ढुंढिराज
21-गौरीनंदन
22-विघ्नहर
23- द्वैमातुर
24-विद्यावारिधि,
25-गजबदन
26-अंबिकेय
27-महाकाय
28-कपिल
29-सुमुख
30-क्षेमंकरी
31-उमासुत
प्रस्तुति- राजीव नामदेव राना लिधौरी, टीकमगढ़
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*श्री गणेश चतुर्थी एवं श्रीगणेश महोत्सव
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सभी सनातन धर्मावलंबी प्रति वर्ष गणपति की स्थापना तो करते है लेकिन हममे से बहुत ही कम लोग जानते है कि आखिर हम गणपति क्यों बिठाते हैं ? आइये जानते है।
हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की है।
लेकिन लिखना उनके वश का नहीं था।
अतः उन्होंने श्री गणेश जी की आराधना की और गणपति जी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की।
गणपती जी ने सहमति दी और दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी पीना भी वर्जित था। अतः गणपती जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की। मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पर्थिव गणेश भी पड़ा। महाभारत का लेखन कार्य 10 दिनों तक चला। अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य संपन्न हुआ।
वेदव्यास ने देखा कि, गणपती का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया। इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए। तभी से गणपती बैठाने की प्रथा चल पड़ी। इन दस दिनों में इसीलिए गणेश जी को पसंद विभिन्न भोजन अर्पित किए जाते हैं।
गणेश चतुर्थी को कुछ स्थानों पर डंडा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि गुरु शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता था। इस दिन बच्चे डण्डे बजाकर खेलते भी हैं। गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना जाता है। इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं।
पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्त्व
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अलग अलग कामनाओ की पूर्ति के लिए अलग अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं।
(1) श्री गणेश👉 मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!
(2) हेरम्ब👉 गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे।
(3) वाक्पति👉 भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा चित्र बनाकर। पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे।
(4) उच्चिष्ठ गणेश👉 लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री। सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता हे।
(5) कलहप्रिय👉 नमक की डली या। नमक के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस ने ही झगड़ने लगते हे।
(6) गोबरगणेश👉 गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती हे और पशुओ की बीमारिया नष्ट होती है (गोबर केवल गौ माता का ही हो)।
(7) श्वेतार्क श्री गणेश👉 सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे।
(8) शत्रुंजय👉 कडूए नीम की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे।
(9) हरिद्रा गणेश👉 हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ठ होती हे और स्तम्भन होता हे।
(10) सन्तान गणेश👉 मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं।
(11) धान्यगणेश👉 सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हैं।
(12) महागणेश👉 लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हैं।
पूजन मुहूर्त
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गणपति स्वयं ही मुहूर्त है। सभी प्रकार के विघ्नहर्ता है इसलिए गणेशोत्सव गणपति स्थापन के दिन दिनभर कभी भी स्थापन कर सकते है। सकाम भाव से पूजा के लिए नियम की आवश्यकता पड़ती है इसमें प्रथम नियम मुहूर्त अनुसार कार्य करना है।
मुहूर्त अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की पूजा दोपहर के समय करना अधिक शुभ माना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। मध्याह्न यानी दिन का दूसरा प्रहर जो कि सूर्योदय के लगभग 3 घंटे बाद शुरू होता है और लगभग दोपहर 12 से 12:30 तक रहता है। गणेश चतुर्थी पर मध्याह्न काल में अभिजित मुहूर्त के संयोग पर गणेश भगवान की मूर्ति की स्थापना करना अत्यंतशुभ माना जाता है।
गणेश चतुर्थी पूजन
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मध्याह्न गणेश पूजा👉 दोपहर 11:01 से 01:33 तक।
चतुर्थी तिथि आरंभ👉 (30 अगस्त 2022) दिन 03:33 से।
चतुर्थी तिथि समाप्त👉 31 अगस्त दिन 03:21 पर।
चंद्रदर्शन से बचने का समय 👉 एक दिन पूर्व 30 अगस्त रात्रि 08:55 से।
वर्जित चन्द्रदर्शन का समय 👉 31 अगस्त रात्रि 09:23 से 09:05 तक।
पूजा की सामग्री
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गणेश जी की पूजा करने के लिए चौकी या पाटा, जल कलश, लाल कपड़ा, पंचामृत, रोली, मोली, लाल चन्दन, जनेऊ गंगाजल, सिन्दूर चांदी का वर्क लाल फूल या माला इत्र मोदक या लडडू धानी सुपारी लौंग, इलायची नारियल फल दूर्वा, दूब पंचमेवा घी का दीपक धूप, अगरबत्ती और कपूर की आवस्यकता होती है।
सामान्य पूजा विधि
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सकाम पूजा के लिये स्थापना से पहले संकल्प भी अत्यंत जरूरी है। यहाँ हम संक्षिप्त विधि बता रहे है गणेश पूजन की विस्तृत विधि हमारी अगली पोस्ट ने देख सकते है।
संकल्प विधि
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हाथ में पान के पत्ते पर पुष्प, चावल और सिक्का रखकर सभी भगवान को याद करें। अपना नाम, पिता का नाम, पता और गोत्र आदि बोलकर गणपति भगवान को घर पर पधारने का निवेदन करें और उनका सेवाभाव से स्वागत सत्कार करने का संकल्प लें।
भगवान गणेश की पूजा करने लिए सबसे पहले सुबह नहा धोकर शुद्ध लाल रंग के कपड़े पहने। क्योकि गणेश जी को लाल रंग प्रिय है। पूजा करते समय आपका मुंह पूर्व दिशा में या उत्तर दिशा में होना चाहिए। सबसे पहले गणेश जी को पंचामृत से स्नान कराएं। उसके बाद गंगा जल से स्नान कराएं। गणेश जी को चौकी पर लाल कपड़े पर बिठाएं। ऋद्धि-सिद्धि के रूप में दो सुपारी रखें। गणेश जी को सिन्दूर लगाकर चांदी का वर्क लगाएं। लाल चन्दन का टीका लगाएं। अक्षत (चावल) लगाएं। मौली और जनेऊ अर्पित करें। लाल रंग के पुष्प या माला आदि अर्पित करें। इत्र अर्पित करें। दूर्वा अर्पित करें। नारियल चढ़ाएं। पंचमेवा चढ़ाएं। फल अर्पित करें। मोदक और लडडू आदि का भोग लगाएं। लौंग इलायची अर्पित करें। दीपक, अगरबत्ती, धूप आदि जलाएं इससे गणेश जी प्रसन्न होते हैं। गणेश जी की प्रतिमा के सामने प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष व संकट नाशन गणेश आदि स्तोत्रों का पाठ करे।
*यह मंत्र उच्चारित करें*
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*ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभः*
*निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।*
कपूर जलाकर आरती करें
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जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।। जय गणेश जय गणेश…
एक दन्त दयावंत चार भुजाधारी। माथे सिन्दूर सोहे मूष की सवारी।। जय गणेश जय गणेश…
अंधन को आँख देत कोढ़िन को काया। बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।। जय गणेश जय गणेश…
हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लडूवन का भोग लगे संत करे सेवा।। जय गणेश जय गणेश…
दीनन की लाज राखी शम्भु सुतवारी। कामना को पूरा करो जग बलिहारी।। जय गणेश जय गणेश…
*चतुर्थी,चंद्रदर्शन और कलंक पौराणिक मान्यता*
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भाद्रपद (भादव ) मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि में चतुर्थी होने के कारण भूलकर भी चंद्र दर्शन न करें वर्ना आपके उपर बड़ा कलंक लग सकता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा का दृष्टांत है।
एक दिन गणपति चूहे की सवारी करते हुए गिर पड़े तो चंद्र ने उन्हें देख लिया और हंसने लगे। चंद्रमा को हंसी उड़ाते देख गणपति को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने चंद्र को श्राप दिया कि अब से तुम्हें कोई देखना पसंद नहीं करेगा। जो तुम्हे देखेगा वह कलंकित हो जाएगा। इस श्राप से चंद्र बहुुत दुखी हो गए। तब सभी देवताओं ने गणपति की साथ मिलकर पूजा अर्चना कर उनका आवाह्न किया तो गणपति ने प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। तब देवताओं ने विनती की कि आप गणेश को श्राप मुक्त कर दो। तब गणपति ने कहा कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता लेकिन इसमें कुछ बदलाव जरूर कर सकता हूं। भगवान गणेश ने कहा कि चंद्र का ये श्राप सिर्फ एक ही दिन मान्य रहेगा। इसलिए चतुर्थी के दिन यदि अनजाने में चंद्र के दर्शन हो भी जाएं तो इससे बचने के लिए छोटा सा कंकर या पत्थर का टुकड़ा लेकर किसी की छत पर फेंके। ऐसा करने से चंद्र दर्शन से लगने वाले कलंक से बचाव हो सकता है। इसलिए इस चतुर्थी को पत्थर चौथ भी कहते है।
भाद्रपद (भादव ) मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी के चन्द्रमा के दर्शन हो जाने से कलंक लगता है। अर्थात् अपकीर्ति होती है। भगवान् श्रीकृष्ण को सत्राजित् ने स्यमन्तक मणि की चोरी लगायी थी।
स्वयं रुक्मिणीपति ने इसे “मिथ्याभिशाप”-भागवत-१०/५६/३१, कहकर मिथ्या कलंक का ही संकेत दिया है। और देवर्षि नारद भी कहते हैं कि –
आपने भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि के चन्द्रमा का दर्शन किया था जिसके फलस्वरूप आपको व्यर्थ ही कलंक लगा –
त्वया भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्यां चन्द्रदर्शनम् ।
कृतं येनेह भगवन् वृथा शापमवाप्तवान् ।।
–भागवतकी श्रीधरी पर वंशीधरी टीका,स्कन्दपुराण का श्लोक ।
तात्पर्य यह कि भादंव मास की शुक्लचतुर्थी के चन्द्रदर्शन से लगे कलंक का सत्यता से सम्बन्ध हो ही –ऐसा कोई नियम नहीं । किन्तु इसका दर्शन त्याज्य है । तभी तो पूज्यपाद गोस्वामी जी लिखते हैं —
“तजउ चउथि के चंद नाई”-मानस. सुन्दरकाण्ड,३८/६,
स्कन्दमहापुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि भादव के शुक्लपक्ष के चन्द्र का दर्शन मैंने गोखुर के जल में किया जिसका परिणाम मुझे मणि की चोरी का कलंक लगा।
मया भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्याम् चन्द्रदर्शनम्।
गोष्पदाम्बुनि वै राजन् कृतं दिवमपश्यता ।।
यदि भादों के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का चंद्रमा दिख जाय तो कलंक से कैसे छूटें ?
1👉 यदि उसके पहले द्वितीया का चंद्र्मा आपने देख लिया है तो चतुर्थी का चन्द्र आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता।
2👉 या भागवत की स्यमन्तक मणि की कथा सुन लीजिए ।
3👉 अथवा निम्नलिखित मन्त्र का 21 बार जप करलें –
सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ।।
4👉 यदि आप इन उपायों में कोई भी नहीं कर सकते हैं तो एक सरल उपाय बता रहा हूँ उसे सब लोग कर सकते हैं । एक लड्डू किसी भी पड़ोसी के घर पर फेंक दे ।
राशि के अनुसार करें गणेश जी का पूजन
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गणेशचतुर्थी के दिन सभी लोग को अपने सामर्थ्य एवं श्रद्धा से गणेश जी की पूजा अर्चना करते है। फिर भी राशि स्वामी के अनुसार यदि विशेष पूजन किया जाए तो विशेष लाभ भी प्राप्त होगा।
👉 यदि आपकी राशि मेष एवं बृश्चिक हो तो आप अपने राशि स्वामी का ध्यान करते हुए लड्डु का विशेष भोग लगावें आपके सामथ्र्य का विकास हो सकता है।
👉 आपकी राशि बृष एवं तुला है तो आप भगवान गणेश को लड्डुओं का भोग विशेष रूप से लगावें आपको ऐश्वर्य की प्राप्ति हो सकती है।
👉 मिथुन एवं कन्या राशि वालो को गणेश जी को पान अवश्य अर्पित करना चाहिए इससे आपको विद्या एवं बुद्धि की प्राप्ति होगी।
👉 धनु एवं सिंह राशि वालों को फल का भोग अवश्य लगाना चाहिए ताकि आपको जीवन में सुख, सुविधा एवं आनन्द की प्राप्ति हो सके।
👉 यदि आपकी राशि मकर एवं कुंभ है तो आप सुखे मेवे का भोग लगाये। जिससे आप अपने कर्म के क्षेत्र में तरक्की कर सकें।
👉 सिंह राशि वालों को केले का विशेष भोग लगाना चाहिए जिससे जीवन में तीव्र गति से आगे बढ़ सकें।
👉यदि आपकी राशि कर्क है तो आप
खील एवं धान के लावा और बताशे का भोग लगाए जिससे आपका जीवन सुख-शांति से भरपूर हो
गणेश महोत्सव की तिथियां
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1👉 गणेश चतुर्थी व्रत-
2👉 ऋषि पंचमी
3👉मोरछठ-चम्पा सूर्य, बलदेव षष्ठी
4👉 संतान सप्तमी, श्री महालक्ष्मी व्रत आरम्भ।
5👉 जन्म, राधाष्टमी, स्वामी हरिदास जयन्ती।
6👉 व्रत पूर्ण, चंद्रनवमी (अदुख) नवमी।
07👉 अनन्त चतुर्दशी, सृत्यनारायण व्रत, गणपति विसर्जन।
*जय गजानन*
संकलन एवं प्रस्तुति- *राजीव नामदेव "राना लिधौरी*' संपादक आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़ (मप्र)
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अनुक्रमणिका-
1-रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़ (म.प्र.)
2- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी',टीकमगढ़ (म.प्र.)
3-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़(म.प्र.)
4-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़ (म.प्र.)
5- सीमा श्रीवास्तव'उर्मिल', टीकमगढ़ (म.प्र.)
6-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस, बड़ामलहरा,छतरपुर(म.प्र.)
7-अशोक पटसारिया नादान, भोपाल(म.प्र.)
8-अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल(म.प्र.)
9-संजय श्रीवास्तव , मवई, टीकमगढ़(म.प्र.)
10-राजगोस्वामी दतिया(म.प्र.)
11- वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़(म.प्र.)
12- शोभाराम दाँगी'इंदु', नदनवारा (म.प्र.)
13- सीताराम राय, टीकमगढ़(मप्र)
14- गुलाब सिंह यादव,लखौरा, टीकमगढ़(मप्र)
15-संजय जैन,मबई, टीकमगढ़(मप्र)
16-अभिनन्दन गोइल, इंदौर(मप्र)
17-डी.पी.शुक्ल ,,सरस,, टीकमगढ़ मप्र
18-रामेश्वर राय 'परदेशी', टीकमगढ़
19-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा,(मप्र)
20-माता दीन यादव,गुरा, टीकमगढ़ (मप्र)
21-कल्याण दास साहू'पोषक',पृथ्वीपुर,निवाड़ी(मप्र)
22- के के पाठक ,ललितपुर (उ.प्र.)
23-नरेन्द्र श्रीवास्तव, गाडरवारा(म.प्र.)
24-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,गुडा,पलेरा,टीकमगढ़(मप्र)
25-रघुवीर अहिरवार 'आनंद' ,टीकमगढ (मप्र)
26-एस.आर. सरल, टीकमगढ़ (मप्र)
27-लखन लाल सोनी,"लखन" छतरपुर(मप्र)
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1-रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़ (मप्र)
गजमुख, गणपति, गजवदन,
गदाधरन, गण-ईस।
गणाध्यक्ष, गजकरन-द्वय,
गजदंता, गज-सीस।।
जनम दियो संसार में,
गणपति नै गणतंत्र।
है श्री गणेशाय नमः,
रिद्धि सिद्धि कौ मंत्र।।
श्री गनेस जू राखियो,
गण-तंत्रों की लाज।
गन-तंत्रों का जोर है,
चारउँ तरफा आज।।
-रामगोपाल रैकवार ,टीकमगढ़
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2- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(म.प्र.)
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3-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
विघन विनाशक विनायक,
गननायक गणराज।
गौरी सुत शंकर सुअन,
एक दंत महराज ।।
जननी हैं जगदंबिका ,
पितु श्री महा महेश।
सिद्धि वुद्धि संग आनकें,
कृपा करौ गनेश।।
हे शिव शंकर के सुअन,
पारबती के लाल।
मन मोदक अरपन करें,
भाव पुष्प की माल।।
-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
##############
4-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़ (म.प्र.)
चार भुजा धारी प्रभू ,
टारौ जगत कलेश ।
कोरोना खां मार दो ,
पिरथम पूज गनेश ।।
अद्भुत रचना देखकें ,
मन में उठत विचार ।
लगत झूठा विज्ञान है ,
या झूठौ करतार ।।
मोदक मन खों भा गये ,
खा गये श्री गनेश ।
थार सबइ खाली करे ,
देखत रये महेश ।।
-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़
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5- सीमा श्रीवास्तव'उर्मिल', टीकमगढ़ (म.प्र.)
काया उपटन सें बनी,
सैल-सुता के लाल।
गजबदन मंगल करन,
सोभै चंदन भाल।।
बुद्धि दीजियो गजबदन,
सुनियो बिनय हमार।
दूर दोष सब राखियो,
गणपति तारनहार।।
विघ्न हरें, मंगल करें,
पूजौ पैल गनेस।
मन सें सब सुमरन करौ,
हरें कवीस कलेस।।
- सीमा श्रीवास्तव'उर्मिल', टीकमगढ़
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6-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस, बड़ामलहरा,छतरपुर
श्री गनेस बाधा हरन,
करन सफल सब काज
होंनहार प्रभु टारियो
देवन के सरताज
जै गौरा के लाडले
गनपति सिद्ध गनेस
रिस्पत बारे रोग सें
मुक्त करौ जो देस
रिद्धि सिद्धि दाता प्रभू
मंगल करन गनेस
ऐसी किरपा कीजिये
जगत न पाबै पेस
- डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
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7-अशोक पटसारिया नादान, भोपाल
जय गजबदन विनायका,
गौरी सुत गणनाथ।
मोदक प्रिय मुद मंगला,
तुमें नवाऊँ माथ ।।
गौरी सुत शिव नंदना ,
हे गणेश गणराज।
कृपा करौ ई देश पै,
बिघन मिटा दो आज।।
प्रथम निवेदन आप सें,
प्रथम पूज्य हे नाथ।
खुदई समारौ देश खों,
सबखों करौ सनाथ।।
दूबादल तुमखों चढ़े,
मोदक चढ़े बिलात।
आन समारौ काज खों,
मो खों भौत उलात।।
-अशोक पटसारिया नादान,भोपाल
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8-अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
प्रथम-पूज्य गण-देव सें,
सीखी है जा बात,
जो पूजत माँ-बाप खौं,
जगत-पूज्य हो जात
विवाह-पत्रिका पै प्रभू,
मूरत ना छपवायँ,
कै फिर जौ निशचै करें,
कचरा में ना जायँ ।
श्री गनेश पूरे करें,
सबके मंगल-काज,
जियै भरोसौ होय सो,
विनती कर लो आज ।
-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
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9-संजय श्रीवास्तव , मवई, टीकमगढ़
लडुअन भोग चढ़ायकें,
सुमिरों तुमै गनेस।
कोरोना खों नष्ट करो,
सुखी रहें सब देस।।
गनपति गोल मटोल हैं,
लंबी उनकी सूंड।
आफत में पूरो जगत,
पाउन पटकत मूँड।।
ब्यादें हरें गनेस जू,
सब मंगल कर देत।
पैलउं मन सें पूज लो,
सबई कष्ट हर लेत।।
-संजय श्रीवास्तव, मवई(दिल्ली)
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10-राजगोस्वामी दतिया(म.प्र.)
--लढुअन के है लालची,
देखत ही ललचात ।
श्री गणेश को सुमरतन,
सबइ काम बन जात ।
कौनउ भी शुभ काम में,
पैले पूजे जात ।
पुज कें सूड हिलात हैं,
दिन हो चाहे रात ।।
इनके दर्शन होत ही,
जी ठंडौ हो जात।
बरषत कृपा गणेश की,
मन चाहो सुख पात।।
-राज गोस्वामी,दतिया (म.प्र.)
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11- वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़(म.प्र.)
श्री गनेश भगवान खों,
हांत जोर पिरणाम।
जगतन पैलउँ लेत हम,
रोजइ उनकौ नाम।।
सुमरन भजन गनेश कौ,
करतइ हम दिन रात।
बिघन सबइ हट जात हैं,
सब जानत यह बात।।
कछु करबे के पैलऊँ,
लो गनेश कौ नाम।
बिगरे भी बन जांयंगे,
उसके सबरे काम।
-वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़(म.प्र.)
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12- शोभाराम दांगी इंदु,नदनवारा
भोर दुपरिया साँझ कें,
चरनन डरो तुमाय।
किरपा करौ गनेस जू,
हर कारज बन जाय।।
मैं चरनन की धूर हूँ,
मोय न तनकइ ग्यान।
बुद्धि के दाता तुमईं ,
जय गनेस भगवान।।
जौन घरै शुभ काज हों,
पैले पूजे जात।
ऊके घर संगै तुरत,
मूसक वाहन आत।।
-शोभाराम दांगी इंदु,नदनवारा
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13- सीताराम राय, टीकमगढ़
माता के तुम लाड़ले,
प्यारे पुत्र गनेस ।
विघ्न हरो मंगल करो,
मैटो कठन कलेश ।।
पैला पूजा होत है,
देवन के हो देव।
रिद्धी सिद्धी देत हो ,
पिता हैं महादेव ।।
सबसे पैला पुजत हो ,
विघ्न करत हो दूर ।
सूपा जैसे कान से,
सुनियो विनय हजूर ।।
-सीताराम राय टीकमगढ
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14- गुलाब सिंह यादव,लखौरा, टीकमगढ़
सब दैबन में बड़े है
सुनलो देब गनेश।
बिगन बिनासन जै हरे,
काटै सबई कलेश।।
रिदि सिधि के दाता है,
धरो गजानन भेष ।
सबसे पैला पोजियो,
जै जै कहो गणेश।।
गोरा के छोरा सुनो,
मूसक पै असबार।
पैला पूजा सब करे,
मिले सबई के दुबार ।।
-गुलाबसिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
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15-संजय जैन,मबई, टीकमगढ़
परहित को न भाव रखो,
मन में भरो कलेश,
काम सिद्ध न होत हैं,
पूजौ ऐन गनेश।
अनगित देवी देवता,
पूजत पूरौ देश।
शुभ कारज की बेरा में,
पैले पुजत गनेश।।
लैंके नाव गनेश को,
शुरू करे जो काम।
गनपती जू किरपा करें,
साजो रे परिनाम।।
-संजय जैन,मबई, टीकमगढ़
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16-अभिनन्दन गोइल, इंदौर
प्रभु जी मोरे उर बसौ,
तुम हौ कृपा निधान।
हे गनेश जू आइयौ,
करियौ मम कल्यान।।
हे गनेश किरपा करौ,
बुद्धि विनय औतार।
ज्ञान दीप उजयारियौ,
शिव सुख कौ आधार।।
सद्भावों के प्रनेता,
तुम प्रभु सुख करतार।
हे गनेश तुम खों करों,
वंदन सौ- सौ बार।।
-अभिनन्दन गोइल, इंदौर
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17-डी.पी.शुक्ल ,,सरस,, टीकमगढ़ मप्र
गौरा के सुत लाडले
शिव के पुत्र गणेश !
प्रथम पूज्य गणराज्य हैं
दूजे श्री अवधेश!
मूषक वाहन बैठ के
मोदक प्रिय कर लेत
श्री गणेश जिन हिय बसें
उयै खूबईं है देत !
बिगऱे कामइं बनत हैं
सुमरैइ श्री गणेश !
जिन सुमरन मन सें करो
ऊके मिटे कलेस!
-डीपी शुक्ला, टीकमगढ़
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18-रामेश्वर राय 'परदेशी', टीकमगढ़
जय गणेश गिरजा सुअन,
गौरी सुत गणराज।
विघ्न हरन मंगल करन,
देवों के सर ताज।।
शिवा नन्द शंकर सुअन,
शैल सुता के लाल।
पांव पकर पूजत प्रभु,
प्रथम पूज सुर पाल।।
-रामेश्वर राय परदेशी,टीकमगढ़ मप्र
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19-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा,(मप्र)
जा बेरा कछु कठन है ,
किरपा हो महराज।
लड़ुआ मोदक भोग है ,
पूरन हों सब काज।
गिरजा के मोड़ा सुनो ,
मोरे मन की पीर।
विघन हरो शंकर सुवन ,
मनवा होय अधीर।
हाथ जोर आगें खड़ो ,
धरो गजानन लाज।
पान सुपारी नारियल ,
पूजत हों गणराज।
-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा,(मप्र)
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20-मातादीन यादव अनपम ,गुना,टीकमगढ़
गोरा के गनेश खो,
"सबसे पैला मनाउत।
शंकर जी के लाड़ले,
उनखा पैला गाउत ।।
गरो मोड़ हाथी लगो,
चूहा करे सबारी।
चार हाथ बारे गनेश,
की हो -हो- जै जै कारी।ऋ
-मातादीन यादव अनपम ,गुना तहः खरगापुर,टीकमगढ़
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21-कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर,निवाड़ी (मप्र)
श्री गनेस भगवान जू ,
विनय सुनों प्रथमेस।
माँग! माँगबे कौ अपुन ,
कर रए श्री गनेस।।
हे भगवान! गनेस जू ,
पूरन करिओ आस।
मोखों नाथ बनाइओ ,
श्री चरनन कौ दास।।
गिरजानन्द गनेस जू ,
हेरौ मोरी ओर ।
मैं मूरख नादान हौं ,
करौ कृपा की कोर।।
-कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर,निवाड़ी (मप्र)
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22-के के पाठक ,ललितपुर (उ.प्र.)
'बिघन-हरें मंगल-करें' ,
लयं हो ऐसौ कौल ।
हर की दौलत आप हो,
हे लाला हरदौल ।।
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पहलों न्यौतौ आप खों,
जब होबै सुभ काज ।
जल्दी आन पधारिओ,
कल की जांगां आज ।।
हरता और करता तुमही,
काटो सभी कलेस ।
बार बार वन्दन करूं,
गौरी पुत्र गनेस ।।
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-के के पाठक ,ललितपुर (उ.प्र.)
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23-नरेन्द्र श्रीवास्तव, गाडरवारा, (म.प्र.)
मात-पिता को हमेशा,
रखियो ऊँचो मान।
खुद करके सिखला गए,
श्री गनेस भगवान।।
कारज कोई कीजिए,
पहले सुमर गनेस।
विघ्नहर्ता, रक्षा करें,
हरऊँ सकल कलेस।।
प्रेम सबों से कीजिए,
निर्मल मन के साथ।
प्रभु गनेस रक्षा करें,
सिर पे रक्खें हाथ।।
***
-नरेन्द्र श्रीवास्तव, गाडरवारा(म.प्र.)
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24-जयहिन्द सिंह जयहिन्द गुडा,पलेरा, टीकमगढ़
हे गिरजा के लाडले,
तुमें चुखरवा भाय ।
मोदक प्रिय गनराज के,
संगै लडुवा खाय ।।
बिन गनेश के होय ना,
जग में कोनौ काज ।
शिव गौरा के ब्याव में,
पूजे गय महराज ।।
हे गनेश गजराज कौ,
तुमने मान बडाव ।
अपनौ सर कटवाय कें,
हाती कौ लगवाव ।।
-जयहिन्द सिंह जयहिन्द गुडा,पलेरा, टीकमगढ़
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25-रघुवीर अहिरवार 'आनंद' ,टीकमगढ
बाल सखा सँगे खेलत,
गनेश जु महाराज ।
लडुअँन को भोग लगै,
सफल होत सब काज ।।
बलबुधि दाता गनेश जु
शत शत तुमै प्रणाम ।
विघन बाधा सकल हरन,
सफल बनाये काम ।।
गौरा के तुम लाड़ले,
हे !देवन के देव।
पैलुँ पूजै गनेश जु,
मँगलकारि सत दैव।।
-रघुवीर अहिरवार 'आनंद' ,टीकमगढ
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26-एस.आर. सरल, टीकमगढ़ (मप्र)
ई कोरोना काल में,
भोतई भओ क्लेश।
भारत पै संकट परौ,
काँ गय मोय गनेश।।
सब ध्याबै गणपति तुमे,
करै रात दिन हेत।
भौत आदमी सीज रव,
ऐ खबर काय नइ लेत।।
गण के ईश गणेश हो,
पारवती के लाल।
विघ्न हरौ मंगल करौ,
मैटौ सब भ्रम जाल।।
-एस.आर. सरल, टीकमगढ़ (मप्र)
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27-लखन लाल सोनी,"लखन" छतरपुर
भारत की जनता दुःखी,
विनती सुनो गनेश।
कोरोना जल्दी भगै,
सव के मिटै कलेश।।
-लखन लाल सोनी,"लखन" छतरपुर
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समीक्षक-राम गोपाल रैकवार टीकमगढ़ (मप्र)
श्री गणेशाय नमः (बुंदेली दोहा संकलन)
संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
टीकमगढ़ (मप्र)
मोबाइल 9893520965
प्रकाशक-
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
एवं मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
की प्रस्तुति
प्रकाशन- दिनांक 18-8-2020
© कापीराइट-राजीव नामदेव राना लिधौरी टीकमगढ़
2 टिप्पणियां:
Jai ganesha
जय हो विनायक
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