Rajeev Namdeo Rana lidhorI

मंगलवार, 18 अगस्त 2020

उजियारों (बुंदेली दोहा संकलन)- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

    उजियारौं(बुंदेली दोहा संकलन)
 संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशक-
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
एवं मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
की प्रस्तुति

©कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी',टीकमगढ़
मोबाइल 9893520965
प्रकाशन- प्रथम संस्करण- दिनांक 28-7-2020

अनुक्रमणिका-
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी',टीकमगढ़ (म.प्र.)
2-रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़ (म.प्र.)
3-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़(म.प्र.)
4-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़ (म.प्र.)
5- सीमा श्रीवास्तव'उर्मिल', टीकमगढ़ (म.प्र.)
6-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस, बड़ामलहरा,छतरपुर(म.प्र.)
7-अशोक पटसारिया नादान, भोपाल(म.प्र.)
8-अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल(म.प्र.)
9-संजय श्रीवास्तव , मवई, टीकमगढ़(म.प्र.)
10-राजगोस्वामी दतिया(म.प्र.)
11- वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़(म.प्र.)
12- कृति सिंह, भोपाल(म.प्र.)
13- सीताराम राय, टीकमगढ़(मप्र)
14- गुलाब सिंह यादव,लखौरा, टीकमगढ़(मप्र)
15-संजय जैन,मबई, टीकमगढ़(मप्र)
16-अभिनन्दन गोइल, इंदौर(मप्र)
17-डी.पी.शुक्ल ,,सरस,, टीकमगढ़ मप्र
18-रामेश्वर राय 'परदेशी', टीकमगढ़
19-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा,(मप्र)
20-राजेंद्र यादव "कुँवर",कनेरा,बडा मलहरा(मप्र)
21-कल्याण दास साहू'पोषक',पृथ्वीपुर,निवाड़ी(मप्र)
22- के के पाठक ,ललितपुर (उ.प्र.)
23-नरेन्द्र श्रीवास्तव, गाडरवारा(म.प्र.)
24-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,गुडा,पलेरा,टीकमगढ़(मप्र)
25-रघुवीर अहिरवार 'आनंद' ,टीकमगढ (मप्र)
26-एस.आर. सरल, टीकमगढ़ (मप्र)
27-लखन लाल सोनी,"लखन" छतरपुर(मप्र)
28- गोकुल सोनी, भोपाल (मप्र)
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1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(म.प्र.)

एक दिया द्वारे धरौ, जग अँधियारा खोय।
भीतर दीप जलाव तौ, मन - उजियारा होय। 

नित्य प्रात अस्नान कर, करौ इष्ट कौ जाप।
संजा बेरा धर दिया, मेटौं सब संताप।।
     
संजा कें घर जात हैं, नित्य सूर्य भगवान।
भुंसारे फिर करत है,निज किरनन कौ दान।।
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-राजीव नामदेव राना लिधौरी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
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2-रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़ (मप्र)

तन-दीप ऐसे सजे,जैसें तिज-तेवार।
मिट जाबै अज्ञान-तम,फैल जाय उजियार।।

भोर-दुपरिया कड़ गई, संजा पूरन होत।
अँदयारौ अब हो गऔ,जगी न हिरदय-जोत।।

भोर बालपन जानिए, दुपरै भये जुआन।
संजा बिरधा-अबस्ता, दिन भर कौ औसान।।

निगत-निगत दिन कड़ गऔ,मिलौ न आतम-गाँव।
संजा बेरा आ गई, थकन  लगे हैं पाँव।।
                     -रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़ 
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3-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
तन मल मल भव ऊजरौ,मन में विषय विकार।
ज्ञान जोत उजयार सें, दूर हुयै अंधयार।।

कारी अंदयारी झुकी ,कछु ‌अइ न‌ईं सुजात।
चंचल चपला चमक कें, उजयारौ कर जात।।

श्रृद्धा की बाती बना ,भर कें नेह सनेह।
जगमग उजयारौ करै, दीप शिखा सी देह।।

संजा बेरा हो चली, दिया दियौ उजयार।
तुलसी देरी पै धरौ ,दमकै भीतर बार।।

पंछी लौटे घोंसुअन, उड़न लगी ग‌उ धूर।
ओत सब‌इ खों देत है, शुभ संझा भरपूर।।

अब तौ जीवन काल की,होन लगी है शाम।
काम करौ परमार्थ के, लैन लगौ हरि नाम।।
              -प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
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4-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़ (म.प्र.)
गुरू  ग्यान के दीप सें ,उजियारा हो जात ।
जीवन सुखमय होत है ,फिर संकट नइ आत ।।

बिन उजियारा रात को ,अंधियारा छा जात ।
एक दिया की रोशनी ,देती उसको मात ।।

लगत हमें मधुमास सी ,जा पूनम की रात ।
जब ऊंगत है चाँदनी ,उजियारा हो  जात ।।

पंछी अपने नीड में ,सांझ होत आ जात ।
 इधर-उधर उड़ते फिरें, नाज कनूका खात ।।

संजा बिरियां होत ही ,जल जाती है जोत ।
खा पीकर सब रात में ,सोकें लेतइ ओत ।।

साँझ ढलें गौ लौटती ,निशदिन अपनें धाम ।
ग्वाल बाल पाछें चलें ,संग चलत घनश्याम ।।
                  -सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़ 
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5- सीमा श्रीवास्तव'उर्मिल', टीकमगढ़ (म.प्र.)
 
मन मंदिर मैलो डरो,जाय नईं अंदियार।
लोभ-मोह, पाखंड तज, हौबे मन उजियार।।
               
जुगनू आ हमसे कए, सुन लो नीचट बात।            
मावस खों पूनैं करैं,हम छोटन की जात।।

उजियारौ जल-जल करै,कहै न हिय की पीर।              
दीप संग बाती जरै,पीबै अंसुवन नीर।।      
             
सूरज-मुख सैंदुर मलो,थकन लगो आकास।
आन बैन संजा कयै,बीरन लेव उकास।।
                 
पायल पैरैं पांव में,सांझ करै झंकार।
रोम-रोम पुलकन भरै,अजब -गजब जा नार।।
           
उखरौ सौ मन राधिका,हो रय सपने बांझ।
वंशी धुन बिन सांवरे,लगवै बैरन सांझ।।
       -   सीमा श्रीवास्तव'उर्मिल', टीकमगढ़
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6-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस, बड़ामलहरा,छतरपुर
जै गनेस मंगल करन,सुनियों नाथ पुकार।      
सुमत दिया उजयार कें,कुमत करौ सब छार।।
           
  मैया मोरी सारदा,धरों तुमारौ ध्यान।      
ग्यान जोत उजयार दो,करों सरस गुन गान।।

 कैसें कइये खोलकें,संग न देबै कोय।
 माते मतवा जात हैं,जैसइ संजा होय।।
              
 जी खों देखौ भेंस की,तेली खों मों बायँ।
 सांझ सकारें द्वार पै,केउ जनें जुर आयँ।।
            
  सूरा सूरा जब जुरें,चतुराई बगरायँ।
   संजा बेरा बैठकें, भै के भूत भगाय।।
      - डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
  
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7-अशोक पटसारिया नादान, भोपाल
स्वांस स्वांस सुमिरन करौ, अजपा कौ कर जाप।
घट उजियारा हिय धरौ,अनहद उपजै आप।।

सद्गुरु के दरबार में,आओ बारम्बार।
घट का दीप जलाय दें,सद्गुरु हैं दातार।।

सूरज चंदा अगन नहि, जहां स्वयं उजियार।
परमधाम प्रभु का वही,जीव होय भव पार।।

भुंसारे सें निकर जें,  संजा बेरा आंय।
कैसौ नौनों लगत है, गैयाँ घरै रमांय।।

संजा कें दीपक धरौ,पीपर के ढिंग जाय।
हाथ जोर विनती करौ, बाधा घर ना आय।।

संजा भोरें अर्दली, दिनभर कर रय काम।
तब जाकें दो टैम खों, भोजन दारू दाम।।
        -अशोक पटसारिया नादान,भोपाल
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8-अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
भैया देखत रै गये, दव घर खौं उजियार,
लजत सामनें आइँ जो, कर भौजी सिंगार ।

सब नजरें चौंधा उठीं, पुरा भवौ उजियार,
दिया धरन द्वारै गईं, कर भौजी सिंगार ।

भूले सब बतकावरौ, गाँव करो उजियार,
पानी भरबे खौं चलीं, कर भौजी सिंगार ।

गैल ताक रव भोर सें, दुपरै भौत बुलाव,
अब तौ घर खौं लौटनें, दिन-डूबें ना आव ।

भौत दिनाँ में आय हौ, जी भर नइँ मिल पाव,
संजा खैं का जात हौ, आज इतइ रुक जाव ।

भोरैं निकरीं खेल में, दिनै खाव औ गाव,
साँझ भई जू चेत लो, अब तौ दिया जलाव ।
             -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
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9-संजय श्रीवास्तव , मवई, टीकमगढ़
 
भेदभाव सब भूलकें, रचो नेक संसार।
करो प्रीत की रौशनी, प्रेम दिया उजियार।। 

आँखन बारे आंदरे, साफ देख नइ पांय।
मन की अंखियन जो तके ज्ञान-वान बन जांय।।

मन की अँखियन से तको,अपनो मन अँधियार।
मन को दीपक जार कें, अपनो मन उजियार।।

 सावन साँझ सुहावनी, झूला कदम की डार।
 कान्हा की बंसी बजै, रिमझिम गिरत फुहार।।
      
संजा बिरियाँ हो गई, बछड़ा दियो रमाय।
नरवा, नाला फाँदकें, दौड़ी आई गाय।।
 
बेहोशी में दिन कड़ो, अब हो गई है सांझ।
मन को मैल निकारवे, अपने मन खों मांज।।
            -संजय श्रीवास्तव, मवई(दिल्ली)
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10-राजगोस्वामी दतिया(म.प्र.)
अधियारौ जी छोड़ कें, खा गव चाईमाइ ।
गिरगिर पर रौ पाँव पै, हस रए राजगुसाइ।।

हो ना पावै झुलपुटौ आ जइयो जू गाँव ।
जादा टैम न ठैरियो अइयो उल्टे पाँव ।।

लप ट न खा जइयो सजन जाओ कान लपेट ।
दिन छिन अइयो बैठ कें बस जो आत थरेट ।। 

देर न करियो आज फिर रैने परबै रात । 
संझइ बिरिया चल दियो फिर ना बिगरै बात ।।
                 -राज गोस्वामी,दतिया (म.प्र.)
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11- वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़(म.प्र.)
माटी कौ छोटो दिया,करत खूब उजियार
दीपक बाती तेल मिल,भगा देत अंधकार
                    -वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़(म.प्र.)
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12- कृति सिंह, भोपाल
जीकी जीवन संगिनी,रैत सदा मुसकात।
ऊके घर-संसार में,उजियारौ भर जात।।
                         -कृति सिंह, भोपाल
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13- सीताराम राय, टीकमगढ़
सूरज ऊंगे भोर सें , उजियारो हो जाय ।
फैले उजेरो जबई ,अंधकार मिट जाय ।।

ज्ञान जोत उर मे जले, अंतरतम मिट जाय ।
बंद द्वारे सबई थे, खुले तुरत हरसाय ।।

उजियारो नोनों लगे, सब कछु देत दिखाय ।
ढूंढा ढांडी को करे, देखत ही मिल जाय ।।

सांझ होत संजा करो, लेकें प्रभु को नाम ।
कर व्यारी माला जपो,सुमर भजो श्री राम ।।

सांझ परें घर में रहो, सब टन्टे मिट जाय ।
दारु जुआरी लालची, इनसे पिण्ड छुडांय ।।

दगा दाम दारू जहां, कबहूं न जइयो दोर ।
रिल्ल विदे बचबे नही , अजमालइयो जोर ।।
              -सीताराम राय टीकमगढ
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14- गुलाब सिंह यादव,लखौरा, टीकमगढ़
सूर्य चन्द्र तारे त्रिगुट, कौ जानौ उजियार।
जाँ जाँ जौ उजियार है,अँधियारे की हार।

दिन डूबै की जोर में,संजा शुभ गुन गान।
भंजन करो हरि नाव को,जब हौने कल्यान ।। 

रोजी-रोटी तुम करो, दो टैम हरि नाव।
भुनसारे और साज के, तो जीबन सुक पाव ।।
-गुलाबसिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
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15-संजय जैन,मबई, टीकमगढ़

पलभर में मिटजजफरत कौ अंधियार,
अपने दिल में प्रेम कौ, एक दिया उजियार ।

भरा हुआ समभाव से, दिनकर प्यारौ होय, 
सारे जग खौं देत है, एक उजारौ सोय ।

असत्य भरी हो कैसई, रात जात है बीत, 
आखिर सत उजियार की, होत हमेशा जीत ।
                   -संजय जैन मबई
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16-अभिनन्दन गोइल, इंदौर
प्रेम  दिवानी  री सखी, करलै   साँचौ मेल।
ज्ञान दिया उजयार कें, खेल अनौखौ खेल।।

गुरू-व्रम्ह कौ होत है, सज्जन पै उपकार।
करै उजागर गुनन खों,ज्ञान दिया उजयार।।

उजयारौ हो हिये में, प्रभु चरनन सें प्रीत।
सुरग नसैनी पै चढ़ै, भव सागर खों जीत।।

सूनी सूनी साँझ जा , मोरे भीतर मौन।
कीनें आहट करी है, मोय पुकारै कौन।।

पंछी भूलो घोंसला, साँझ  ढले  की  बात।
अँसुअन सें धोबे लगो, अपने कोमल गात।।

साँझ ढली अब का करूँ, कितै बिताऊँ रात।
डाली  पै  कैसें  रुपूँ ,   होत  घनी  वरसात।।
                   -अभिनन्दन गोइल, इंदौर
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17-डी.पी.शुक्ल ,,सरस,, टीकमगढ़ मप्र
अँधकार है अज्ञान का,अँध कूपई विश्वास।
अंतर मनईं उजियार कें,होतई  बडौ प्रकास ।।

उजियारे की चंद्र छटा,भौतई रहै सुहात ।
अँधयारे की गैल में,लगत कोउ है खात ।।

मन उजयारे होय सें,ज्ञानन खुलत किवार।
मनैं के भाव मिलत हैं,जो है जाननहार ।।

धेनु चरावऩ भोर सें, गये कृष्ण से छैल।
सॉझ भई उर लै चले ,धूल भरी वा गैल।।

पंछी भोर के होउतन ,उड़न चले चुग लैन।
सांझ बसेरा होत जहँ, उतै रुकत है रेन।।

कड़ी उमर जा खेलतन ज्वानी उमंग सिरात।
सॉझ परे  दिन डूबते,टूटी तन की आस ।।
                   -डीपी शुक्ला, टीकमगढ़
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18-रामेश्वर राय 'परदेशी', टीकमगढ़
दिन ऊँगत  पीरी पटी,होंन लगो उजयार।
ले किसान हर धर कदन,चले जोतवे हार।।

उज्यारो फैलन लगो, पूरव ऊँगत भान।
मन्दिर में घंटा बजत,मसिजद होत अजान।।

काम दंद सब निपट गय, दिन डूबे के  पार।
बाट निहारत  कंत  की,कर  सोरा  सिंगार।।
       
दुलिया लै के हार में,दिन भर खेत बुआव।
दिन डूबें पानू  भरो,आके अदन चढ़ाव।।
       -रामेश्वर राय  परदेशी,टीकमगढ़ मप्र
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19-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा,(मप्र)
संजा बिरिया हो गई, ले लो ईसुर नाम।
जनम सुफल अपनो करो, पाहो सुरग मुकाम।

गैंयें चर के आ गईं, बैठी अपनी थान।
संजा बिरिया में बजे, जा बंशी की तान।

भौजी को चुल्हो जलो, अम्मा दिया जलाय।
चिमनी में मुन्नी पढ़े, बछिया रही रँभाय।
           -डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा,(मप्र)
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20- - राजेंद्र यादव "कुँवर",कनेरा,बडा मलहरा
भुंसारे सें तक रई, सांझ परै न आय।
विरहन बैठी गैल में, विरहा रही सताय।।

संजा की बेरा भई, छिन छिन बडबे पीर।।
दिन दिन टूटत आस है, नैनन बह रव नीर।।

भुंसारे से सांझ भइ, मोहन गउअन संग।
जा जमुना के घाट पे, होन लगी हुडदंग।।
           - राजेंद्र यादव "कुँवर",कनेरा,बडा मलहरा
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21-कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर,निवाड़ी (मप्र)
भोर निकरबें काम खों , लौटत हैं   सब  साँझ ।
चहल-पहल मचवै घरन , बजें मँजीरा झाँझ ।।

इन्तजार सब करत हैं ,  जल्दी होवै  साँझ  ।
चैंन मिलत अपने घरै , अपनन  के  ही  माँझ ।।

प्रभु खों सुमिरौ हर बखत , सुबह-शाम उर माँझ ।
ना जानें किस मोड़ पै , हो जीवन की साँझ ।।
  -कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर,निवाड़ी (मप्र)
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22-के के पाठक ,ललितपुर (उ.प्र.)
  
राम नाम कौ जप करौ, भोर दुफर उर शाम ।
काम क्रोध इत्यादि  सें, हो कर कें उपराम ।।

राम नाम जपते रहो, का सन्जा  का भोर ।
राम नाम ले जाय गा, तुमें  राम की ओर ।।

माला माला सब कहत, माला करत न कोय ।
पाठक यदि माला करे, राम मिलेंगे तोय ।।
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            -के के पाठक ,ललितपुर (उ.प्र.)
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23-नरेन्द्र श्रीवास्तव, गाडरवारा, (म.प्र.)
1.स्यानों की जा सीख है, सांझ भए घर आव।
करो प्रभु के भजन अरु, खा-पी के सो जाव।।

2. संझा बिरिया होत ही,पंक्षी लौटे ठाँव।
दिनभर सूनो सो रहो, फुदक रहो अब गाँव।।

3.सांझ-सकारे नाम हरि, करिये जाप जरूर।
मन में जागे चेतना, कष्ट, क्लेश हों दूर।।          
           -नरेन्द्र श्रीवास्तव, गाडरवारा(म.प्र.)
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24-जयहिन्द सिंह जयहिन्द गुडा,पलेरा, टीकमगढ़
1 संजा की बेरा भयी,मन अधीर बिन श्याम ।
मनमोहन के बिन सकी,तलफत आठों याम ।।

2 संजा बेरा बन गयी,बैंरन बिन घनश्याम ।
मन मारत में मीन सी,रोज सुबह सें शाम ।।

3 रोज करूं में आरती, संजा भोग लगांव ।
मनमोहन के बिन सकी,चित कैसें बिलमांव ।।
     -जयहिन्द सिंह जयहिन्द गुडा,पलेरा, टीकमगढ़
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25-रघुवीर अहिरवार 'आनंद' ,टीकमगढ 
दिन  डुबै, खोँ साँझ  कहत ,सुरज  उगै  सबैरा।
चार  दिना को  जिवन  हैं,चार  दिना को  डेरा।।

दिन ढल  गवो  साँझ  हुई,कँत  अबै लो  न आय। 
काली  रात बन बैरन,अँखियन  नीर   बहाय।।
               -रघुवीर अहिरवार 'आनंद' ,टीकमगढ 
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26-एस.आर. सरल, टीकमगढ़ (मप्र)
दिन डूबै लौटे घरै,सांझ होत अधयाव।
करी ब्याइ आलस बढौ, डार खाट सो जाव।। 

काम दंद में फस गये,काम करत भइ सांझ।
घर मे अनबन  हो रई, लरका दै रव रांझ।।

दिन भर ड्यूटी पै रहे, सांझ भई घर आय।
 चाहत सबसै हम क्षमा, समय नहीं दै पाय।।
               -एस.आर. सरल, टीकमगढ़ (मप्र)
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27-लखन लाल सोनी,"लखन" छतरपुर
          
उठत भोर कड़जात है,करवै काम किसान।
खून पसीना चुअत है,देखत है भगवान।।
         -लखन लाल सोनी,"लखन" छतरपुर
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28- गोकुल सोनी, भोपाल (मप्र)
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          समीक्षक-राम गोपाल रैकवार टीकमगढ़ (मप्र)
    
उजियारा (बुंदेली दोहा संकलन)
   राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
टीकमगढ़ मप्र
मोबाइल 9893520965
प्रकाशक-
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
एवं मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
की प्रस्तुति
प्रकाशन- दिनांक 28-7-2020
© कापीराइट-राजीव नामदेव राना लिधौरी टीकमगढ़