पत्रिका समीक्षा- आकांक्षा’ अंक-13 (2018)
संपादक-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
समीक्षक- अजीत श्रीवास्तव
प्रकाशक- म.प्र.लेखक संघ टीकमगढ़
सहयोग राशि- 100/रु., पेज-64
किसी साहित्यिक संस्था से निरंतर तेरह वर्षो तक एक पत्रिका प्रकाशन, वहीं भी छोटे से जिले से,संपादक की कुशलता ही प्रदर्शित करता हैं इस अवधि में कई श्रेष्ठ विशेषांकों को भी प्रकाशित किया गया जो समयानुसार चर्चित रहे। प्रस्तुत अंक जो ‘गौ-माता’ विशेषांक है, समय की मांग भी है। एक चेतना की जरूरत है।
यह कृति गाय माँ की आरती से प्रारंभ होकर ‘गाय बचेगी तो राष्ट्र बचेगा’’ तक विस्तृत, विभिन्न पहलूओं पर प्रहार करती हुई विस्तृत हुई है। पत्रिका कामधेनु के चित्र से सुसज्जित चैसठ पृष्ठ तक हैल्दी कदकाठी में है। रचनाकारों ने वेदोक्त गाय चिंतन से लेकर वर्तमान तक का कालखंड शब्दों में रचा है। उक्त पत्रिका में 44-45 रचनाकर शामिल है जिसमें प्रतिष्ठित,लब्ध प्रतिष्ठित एवं युवा शामिल हुए हैं, कविता अधिक है गद्य कम है पर है सब सार्थक।
कत्लखाने, मरती गाय,दया करो,ममता की मारी, खतरे में है जीव जहान, कवितायें गौधन के विनाश पर चिंता प्रकट करती है, वहीं तमाम कवितायें गौ की महिमा भी बयान करती हैं। रचनाकारों की तारीफ इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि इस पुस्तक में एक विषयगत होने पर भी उन्होंने कविता के विभिन्न स्वरूप पर रचनाकर्म संपादित किया है जैसे- आरती,दोहा,नई कवितायें, चालीसा,ग़जल, बुन्देली गारी, हाइकु, चैकडिया, अर्चना, कुंडलिया, मुक्तक, गीत, लघुकथा, लेख-आलेख, चिंतन जैसी विद्याओं पर साहित्य रचा गया है।
कवियों में इंदु जी,भाऊ जी, यदुकुल नंदन जी, बिंदु जी,ज़फर जी,आनंद जी,रैकवार जी,शुक्ला जी, चंसौरिया जी की रचनाएँ श्रेष्ठ हैं, हालाकि समस्त कवियों की रचनायें अपने-अपने भाव लिए हुए हैं। विभिन्न सोच बिखेरती हुई रचनाएँ पत्रिका में व्यापक उद्देश्य की पूर्ण रूप से पूर्ति करती हैं। गाय की व्यथा धेनू कविता करूणार्द्र कर देती है-
आज पराई हो गई,बसत हती टपरा में।
खेत खरया में चरन जात तह, नदिया सपरन में।
अयान जी का एक दोहा देखिए- गौ हत्या अब रोकिये,हो बूचडखाने बंद।
पानी बन जायेंगे,गर यही चला छल छंद।।
श्रीमती इन्दु सिन्हा कहतीं हैं- कहने का हमें पाला जाता है,
फिर क्यों हमें सड़कों पर छोड़ा जाता है।
हाजी ज़फरउल्ला खां का ये शेर देखे- सब जानवर में सीधी ही तो सिर्फ गाय है।
सादा है उसका खाना ही चारा जो खाय है।।
एक व्यंग्य सुमन मिश्राा झांसी को देखिए- गौमाता की आजकल,पूजा करता कौन।
कुत्ता घर की शान है ग्वाला है सब मौन।।
इसी तरह प्रेरक,प्रेरणास्प्रद रचनाएँ पाठकों को विचार बाँटती हैं, अनवर साहिल जी ग़ज़ल हमें रूलाती है तो ऋषि वर्मा तो गौ सृष्टि का आरंभ है, शुभारंभ है, गौ मानवता की पोषक है,दानवता को हानिकारक है, कहकर सब कुछ कह देते हैं। पुस्तक का गौ सेवा अंक अद्भुद है एवं शहरी लोगों को भी सोचने पर मजबूर करता है, जीव है तो हम हैं, सुबह से माँ का दूध,गाय का दूध, जीवों का आधार आहार रहा है।
पुस्तक तमाम संस्थागत जानकारियाँ देती है एवं ठोस कार्य करने को प्रमाणित करती दस्तावेज है। इसका देशव्यापी स्तर फैलाव संपादन कुशलता दर्शित करता है।
अंत में- सतयुग द्वापर त्रेता से अब तक ऋषियों ने की है।
गाय की सेवा से जग सृष्टि अनुशासित की है।।
अजीत श्रीवास्तव (एडवोकेट)
‘राजीव सदन’,नायक मोहल्ला,
टीकमगढ़(म.प्र.)
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