बुंदेली ग़ज़ल-
मैं तुमरौ लतरौंदा माते।
हों माटी कौं लौंदा माते।।
महल अटारी का करने है?
साजौ पनौ घरौंदा माते।।
तुम अकल की खान बडी हो।
मैं भौंदा कौ भौंदा माते।।
लाबर तौ बस लडुआ खाएं।
उनसे साजे दौंदा माते।।
जो कऊं जबर कितऊं मिल जावे।
सौ चरनन में ओंदा माते।।
तुमैं दसैरी आम चूसने।
मैं हो खट्टौं करौंदा माते।।
सूका की राहत बटवा कें।
हो गय कैसे तौंदा माते।।
होकें उतई समध्यानौ कर रय।
जितै भौत सॅंकरौंदा माते।।
न भीतर न बायरें "राना"।
ठांडे बीच दिरौंदा माते।।
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राजीव नामदेव "राना लिधौरी"
संपादक आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी, टीकमगढ़ (म.प्र.)
मोबाइल -9893520965
1 टिप्पणी:
वाह वाह भौत नौनी बुंदेली ग़ज़ल
बधाई
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