rajeeav namdeo rana lidhoriबरीघाट में हुई नगर के साहित्यकारों की पिकनिक व कवि गोष्ठी-
ग़मो को मैं छिपाना चाहता हँू,जि़न्दगी भर मुस्कुराना चाहता हँू-राना लिधौरी
टीकमगढ़//‘बरीघाट में म.प्र.लेखक संघ टीकमगढ़, बुन्देलखण्ड साहित्य व संस्कृति परिषद, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, तुलसी साहित्य अकादमी,बज्मे अदब, श्री वीरन्द्र केशव साहित्य परिषद,हिन्दी सेवा समिति, म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार समिति सहित नगर की सभी साहित्यिक संस्थाओं ने मिलकर पिकनिक मनायी व दाल वाटी केे साथ-साथ सरस कवि गोष्ठी का आनंद उठाया। कविगोष्ठी की अध्यक्षता अवधविहारी श्रीवास्तव ‘दाऊ व लालजी सहाय श्रीवास्तव ने की जबकि मुख्य अतिथि अभिनंदन गोइल व राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ रहे व विशिष्ट अतिथि के रूप में रामगोपाल रैकवार,महेन्द्र पोतदार, अनवर खान साहिल,एच.पी.सिंह सहित सभी संस्था प्रमुख रहे।
भान सिह श्रीवास्तव नेे सरस्वती वंदना पढी व यह रचना सुनायी-
त्रेता युग अवध में जन्में ब्रम्हा रूप श्री राम है।
परमेश्वरीदास तिवारी ने कविता पढ़ी- पन्नी बनी अंग का जीवन पानी बिकता पन्नी में,।
पन्नी में बिकता है बचपन याकवन बिकता पन्नी में।।
म.प्र.लेखक संघ के जिलाध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने ग़ज़ल सुनायी-
ग़मो को मैं छिपाना चाहता हँू,जि़न्दगी भर मुस्कुराना चाहता हँू।
सभी के काम आना चाहता हँू, मैं गिरतो को उठाना चाहता हँू।।
सियाराम अहिरवार’ ने रचना पढ़ी- बंसती बेरा है जा आई,छा गई पेडन पै हरयाई।।
गुलाब सिंह यादव भाऊ ने कविता पढ़ी-ईश्वर की गत अब काऊ ने न जानी,
माटी में मिला दई किसान की किसानी।
चाँद मोहम्मद आखिर ने पढा-यह फरमान तो कल का है,जो रब का है वो सबका है।
कवि गनेश पन्नालाल शुक्ला ने रचना पढी-एक नया कानून बना दो,संविधान में मोदी जी,ऊ
जो बेचे अपनी गऊ माता उसे जेल हो मोदी जी।।
रामगोपाल रैकवार ने व्यंग्य ‘दूधो नहाओ पूतो फलो’ सुनाया वही अभिनंदन गोइल ने बुन्देली लोककथा ‘नकल में अक्ल व गधा तो गधा होत है सुनाया।
दीनदयाल तिवारी ने पढा-सभी विषयों में प्रमुख गणित चैरफा बिगुल बजा रहा,
जीवन के हर पहलू को अंको से तुरत बता रहा।
सीताराम राय ने-कलि पे किलोर करत है कलिन कलिन किलकत है,मंद सुगंध पवन वह आली आगयो आज बंसत है।
अवधबिहारी श्रीवास्तव ने पढ़ा-सच को तू सच कहना सीख,सच को तू सच लिखना सीख।
पूरन चन्द्र गुप्ता’ ने पढा-भर पिचकारी घालत जब बा जाती बदल नजरिया रे।
शांति कुमार जैन ने कविता पढ़ी- अनिल जिसे जला न पाये,सूर्य का तेज जिसे न तपा पाये,ेसी पवित्र आत्मा मेरी।
मनमोहन पाण्डे ने-ऋतु वसंत में तरू पलाश ने ऐसा किया श्रृंगार,जैसी छवि वंसत की देखी दिखी न एकइ बार।
अनवर खान साहिल ने ग़जल पढ़ी-छोटा बड़ा किसी जाति धर्म का हो,हर किसी की भौजाई बीवियाँ गरीबों की।।
लालजी सहाय श्रीवास्तव ने-जब से रहजन की हिफाजत राहबर करने लगे,
तब से दुनिया में बेचारे बेगुनाह उसे लगे।
हरेन्द्रपाल सिंह ने कविता पढ़ी-मिली जुली कुश्ती लड़ी जा रही है सदनों में,अंत में तो घाटा आम आदमी उठा रहा है।
इनके अलावा उमाशंकर मिश्र तन्हा’,अजीत श्रीवास्वत एवं विजय मेहरा, भारत विजय बगेरिया,रघुवीर आनंद,एम.महेन्द्र पोतदार,अक्षांश मेहरा ने भी अपनी रचना पढ़ीे। गोष्ठी संचालन उमाशंकर मिश्र ने किया एवं सभी का आभार प्रदर्शन परमेश्वरीदास तिवारी ने किया।
रपट- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
अध्यक्ष म.प्र.लेखक संघ,टीकमगढ़,
मोबाइल-9893520965,
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