Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

साहित्य क्रांति (गुना) जुलाई 2015



^साहित्य क्रांति* ¼गुना½ 
जुलाई 2015 में
 श्री भारत विजय बगेरिया की पुस्तक ^आत्म मंथन* की 
मेरी(राजीव नामदेव ^राना लिधौरk*द्वारा लिखी गयी समीक्षा 
प्रकाशित हुई है।rajeev namdeo rana lidhori
पुस्तक समीक्षा-‘आत्म मंथन (आध्यात्मिक निबंध)       
लेखक- भारत विजय बगेरिया
समीक्षक:- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’(टीकमगढ़)   
प्रकाशन वर्षः- सन् 2015
प्रकाशन-मिथिला प्रकाशन,गुना (म.प्र.)
मूल्यः-100रु.        पेज-88
बच्चों के लिए उपयोगी-‘‘आत्म मंथन’‘

        टीकमगढ़ जिले के चर्चित बाल साहित्यकार श्री भारत विजय बगेरिया की यह आठवीं पुस्तक ‘आत्म मंथन’ प्रकाशित होकर आयी है। इसके पूर्व उनकी काव्य कलश,काव्य सरिता,108 चालीसा,ग़ज़ल संध्या,बाल साहित्य कहानियाँ,बाल साहित्य कविताएँ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। वैसे बगेरिया जी ने अपनी पहचान एक बालकवि के रूप बनायी है।
        इस संग्रह में भी बच्चों के प्रति उनका लगाव उभरकर सामने आया है तभी तो उन्होंने बच्चों के लिए बहुत ही छोटे-छोटे से आध्यात्मिक निबंध (जिन्हें हम यदि आलेख कहे तो उचित होगा) इस पुस्तक में लिखे है। इन निबंधों के विषय भले ही गंभीर है ,लेकिन है बहुत उपयोगी ‘गागर में सागर’ को समेटे हुए। भाषा सरल है शब्द एवं भाषा शैली भी एकदम सपाट है जो बच्चों को आसानी से समझ में आ जायेगी।
        श्री बगेरिया जी की इस पुस्तक ‘आत्म मंथन’ में कुल 88 पेज है जिसमें 48 पेजों में 48
निबंध दिये गए है जो कि बहुत ही संक्षिप्त में है तथा विभिन्न विषयों पर है। कुछ विषय बहुत गंभीर है तो कुछ आधुनिकता से ओतप्रोत है। सभी निबंधों में नीचे ‘सार संक्षेप’ दिया है जो कि बहुत अच्छा और उपदेशात्मक हैं। यही इस पुस्तक का सबसे उपयोगी भाग है जिससे पाठक कुछ प्रेरणा ले सकेगे।
        पेज 26 पर ‘मौत’ शीर्षक से अपने आलेख में लेखक लिखते है कि मौत हमेशा शानदार होनी चाहिए अर्थात यादगार होनी चाहिए जिसे लोग हमेशा याद रखे सुंदर भाव है। पेज 54 पर ‘भूख’ शीर्षक से अपने आलेख में लेखक लिखते है कि भूख दो प्रकार की होती है एक पेट की भूख और दूसरी पैसो की भूख। बिलकुल सही बात कही है आज लोग पैसो की भूख के आगे पेट की भूख को भूल गये। पेट की भूख तो शांत हो जाती है किंतु पैसों की भूख कभी शांत नहीं होती है। इसी प्रकार पेज 55 पर ‘प्यास’ आलेख में भी वे प्यास के दो प्रकार बताते हुए लिखते है कि पहली प्यास मानव शरीर के लिए आवश्यक है, तो दूसरी प्यास ईश्वर मिलन की प्यास अनंत होती है जो कि धार्मिक लोगों संत महात्माओं आदि में होती है।
        दूसरे भाग में श्री भारत विजय बगेरिया जी को मिले सम्मानों की छायाप्रति एवं उनकी उप-
लब्धियों के चित्र दिये गए है चित्र यदि रंगीन होते तो पुस्तक की सुंदरता में चार चाँद लग जाते। प्रकाशक व मुद्रक बधाई के पात्र है।
        पुस्तक का आवरण पृष्ठ बहुत ही आकर्षक है तथा पुस्तक के शीर्षक से पूरी तरह मेल खाता है। छपाई भी बहुत बढि़या है। कुछ व्याकरण संबधी त्रुटियों एवं कला पक्ष को नज़रअंदाज़ कर दिया जाये तो भावपक्ष काफी प्रबल है तथा हरा भरा है। चूंकि भाषा बहुत सरल एवं साधारण है इसलिए आसानी से सभी के समझ में आ जायेगी, इस दृष्टि से यह पुस्तक बच्चों एवं पाठकों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी ऐसा हम विश्वास से कह सकते है।  इस आठवीं कृति के प्रकाशन पर श्री बगेरिया जी को हार्दिक बधाई।
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        समीक्षक-/ राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
        संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
        अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
        शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)-472001
         मोबाइल-09893520965
            ब्लागwww.rajeevranalidhori.blogspot.com
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