अनुश्रुति
(बुंदेली त्रैमासिक ई-पत्रिका)
अंक-2 -जनवरी-मार्च-2022 वर्ष-02
संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई पत्रिका प्रकाशन
दिनांक 16-01-2022
टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,
भारत-472001
मोबाइल-9893520965
😄😄😄
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
कितै को है और कितै का है-
संपादकीय
✍ राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)
बंदना
✍ गुलाब सिंह यादव 'भाऊ' (लखौरा)
चौकड़िया-
✍ अंजनीकुमार चतुर्वेदी (निबाड़ी)
✍ प्रभुदयाल स्वर्णकार (ग्वालियर)
✍️ गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी(बुडे़रा)टीकमगढ़
पंचकडिय़ां
✍ प्रदीप खरे, मंजुल', टीकमगढ़ (म.प्र.)
✍ प्रभुदयाल श्रीवास्तव'पीयूष', टीकमगढ़
दोहा
✍ राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)
✍ कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर
✍ अमर सिंह राय छतरपुर (म.प्र.)
✍️ डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
ग़ज़ल
✍ एस आर सरल,टीकमगढ़ (म.प्र.)
✍ अशोक पटसारिया'नादान',लिधौरा,टीकमगढ़(मप्र)
✍ डॉ.देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलहरा, (म.प्र.)
गीत-लोकगीत
✍ डा आर बी पटेल "अनजान",छतरपुर
✍ जयहिंद सिंह जयहिन्द, पलेरा, टीकमगढ़
कविताई
✍ सरस कुमार, ग्राम-दोह,तहसील खरगापुर
✍ गणतंत्र ओजस्वी, बल्देवगढ़
व्यंग्य
✍ राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)
आलेख/यात्रा संस्मरण
✍ संजय श्रीवास्तव, मवई (हाल-दिल्ली)
✍ - रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ (मप्र)
कवर पेज पर चित्र-
✍ यश नापित, पुरानी टेहरी, टीकमगढ़ (मप्र)
साहित्यिक समाचार-
✍ राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)
पोथी समीक्षा/ पठनीय पोथियां-
✍ लुक लुक की बीमारी (बुंदेली व्यंग्य संग्रह)
✍ नोनी लगे बुंदेली (बुंदेली हाइकु संग्रह)
✍ 'आकांक्षा' पत्रिका-2021 (प्रेम बिशेषांक)
💐 अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
संपादकीय-
✍ -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
सबई जनन खौ हात जोर कै हमाई राम- राम पौच जाय। अपुन नै बुंदेली खों विश्व पटल पै लावे के लाने और बुंदेली खों बढावा देवे के लाने "अनुश्रुति" नाव से एक त्रैमासिक ई-पोथी निकारवो पर साल से शुरु करो हतो जी को पैलो अंक अक्टूवर-दिसम्वर-2021 में अपुन ने निकारो हतो जिये ऐन बडबाई मिली सो मन कौ नौनो लगो।
सो अपन फिरके जो दूसरों अंक आप लौ पौचा रय, अबे तो हमने शुरुआत करी है। ई में हरां हरा सुदार आत जैहे।
बुंदेली के जनवन से हात जोर कै बिनती है कै ई पोथी की सकारात्मक समीचछा करे, और ई में का का सुदार हो सकत उने बताये।
ई पोथी को निकारवे को एक उद्देश्य जो सोउ है कै बुंदेली में नऔ रचो भऔ साहित्य पढ़वे वारन के अगाई लाओ जाय। नये कवियन खां एक साजो मंच दव जाये जीसें उनकी प्रतिभा को बढ़ावा मिले और वे अगाउ बढ़ सके।
ई पोथी में जी जी की कविताई अपुन कों नोनी लगी होय उनकी जरुर बढवाई करें हमें व्हाट्स ऐप पर लिख के भेजे हम आपके पत्र पोथी में छापेंगे।
हमाई जा कोशिश कैसी लगी जरूर मोबाइल पै बतावे कौ कष्ट करो जाय। अपनी जा नई नवेली ई-पत्रिका को जौ दूसरौ अंक आपको कैसी लगो कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करवे कौ कष्ट अवश्य करियो, ताकिहम दूने उत्साह से अपनौ नवसृजन कर सके।
***
दिनांक-16-1-2022
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
मोबाइल-9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
सरस्वती वंदना - तर्ज -बैरन होगई जा
1-बिनती सुनलो हमरी -तुम बीरा बारी
ज्ञान की ज्योति जगा दो मन में
ऐसी भरन भरी जा तन में
2-महिमा तुमरी भारी- तुम ,,,,,,,,,,,,
तुम गुन सागर ज्ञान की दाता
बुदि की तुम भाग विधाता
3-करदो दिल उजयारी-तुम,,,,,,,,,,
कमल कला सन तुम गुन राशन
कमल फूल की तुमरी आसन
4-हंसा की असबारी-तुम,,,,,,,,,,,,
मन मन्दिर में आन बिराजो
शुभ गुन सदा सदा खो साजो
5-भाऊ करें जै कारी-तुम बिनती सुनलो हमरी -तुम बीरा बारी।
-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
1
हमखों धाम ओरछा जानें, काऊ की ना मानें
चरनन परें राम राजा के, जी सें नैंन सिरानें।
पाताली हनुमान लला के,जाकें दरशन पानें
चरण शरण में मोय राखियौ, तुम्हें छोड़ नइँ जानें।।
****
2
जा कें बृन्दावन में रानें,मोहन के गुन गानें
दरसन करत श्याम सुंदर के, दोऊ नैंन जुड़ानें।
भोग लगै माखन मिसरी कौ, वेइ प्रसादी पानें
हम हैं कुटिल कुचाली कान्हा,तुम हौ श्याम स्यानें।
***
अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी जिला निवाड़ी (म.प्र.)
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
१-बुंदेली चौकड़िया
**************
जीवन थोरे दिन के लानें,कोउ अमर नइँ रानें।
तन माटी कौ कच्चौ घर है,बूँद परै ढै जानें।
ऊ कौ जी दिन आय बुलाबौ ,बल कछु काम न आनें।
डुरया कें लै जैहै जबरइँ, तोय न कछु कर पानें।
जा सें तें प्रभु नाम सुमिर लै,बई खाँ पार लगानें।।
२- बुंदेली चौकड़िया
*******************
जग में सबसें हिलमिल रानें,बैर-भाव बिसरानें।
तनिक दिनन कौ जीवन जामें,कछु नोंनों कर जानें।
जौलौं जियें देश हित करिबें,मरें ओइ के लानें ।
जीवन तबइँ सारथक हुइए,कैरय जेठे स्यानें।।
✍-प्रभुदयाल स्वर्णकार 'प्रभु'
ग्राम कैरुआ तहसील भितरवार (ग्वालियर)
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
बुंदेली चौकड़ियां-
दरसन होत बड़े भुंसारें,मिल जातीं हैं द्वारें ।
कभउंँ दिखात झिकीं चौखट सें,कभउँ चोंतरा झारें।
कभउँ उरैंन डारतीं ढिक दै,चंदन चौका पारें ।
कभउँ चिरइँयन के चुनबे बे, टुटीं चांउर कीं डारें।।
जाने कबै टींक बा देरी,जौ घर आंन समारें।
आ रइँ गोरे मों खों धो कें,नैनूं कैसौ मो कें
अलसानीं अखियां कै रइँ कै,अबइ उठीं हैं सोकें।
एक उँगरिया मों में दाबें,मन मन में कछु घोकें।
✍- प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
बुन्देली चौकडिया
ओ जू जो होने सो होने, कोरोनें का रोनें,
बिन इं काम नइं जानें बायरें, घर इ पकरनें कोनें।
जानें तो लें लगा मुसीका, हांत लौटतन धौनें,
दो गज दूर राव परदेशी, ई सें रैहो नौने।।
***
गोरे गोला गाल धना के,नैन कटीले बांके,
करधन कगना रुनझुन पायल,पांवन परत छनाके।
मृदु मुस्कान मधुर बोलन के,सुनतन खिचत सनाके,
परदेशी की प्रान प्यारी,दये जियरा पै डांके।।
***
✍ रामेश्वर राय परदेशी टीकमगढ़ मप्र
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
पंचकड़िया-
जय बागेश्वर धाम की
गुरुवर, हम सब बिना तुमारे,हो गयै हैं अधमारे।।
सात दिना गंगा में डुबकी,लगा रहे ते सारे।।
गढ़ा गांव सैं आप पधारे,गुरु बागेसुर बारे।।
पीर हरी तुम प्रभु भक्तन की,भूत प्रेत माँ डारे।।
माया में मन मौरौ भटको,मंजुल मन के कारे।।
***
कमल से, गुरुदेव के नैना,मनहीं धीर धरै ना।।
चरन कमल रज शीश लगाऊँ,बिन रज पाप कटै ना
मै मूरख अग्यानी ठैरो,पूजा करत बनै ना।।
छल छंदन के फेर में फसकैं,तोरौ ध्यान धरौ ना।।
किरपा करौ गुरू तुम मोपै,मंजुल धरम करो ना।।
***
✍ प्रदीप खरे, 'मंजुल',टीकमगढ़
अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
!बुन्देली दोहे-किसान- !
कैसी लिखी किसान की,ईशुर नें तगदीर।
खुद खा लेबै नोंन सें, सबै खबाबै खीर।।
आसुन बसकारें सरे, खेतन उरदा धान।
ना बीमा ना माबजा,कव का करै किसान।।
खेती पै खरचा बडौ़, करत रोज सरकार।
समाचार में सुनत रत, है सरकार उदार।।
मोरी सला किसान खाँ,करौ न कौनउँ आस।
अनपड़ बच्चा ना रबें,हुइयै तबइं बिकास।।
टाँके सें पैदाँ करौ, अपनौ देसी खाद।
उरबरकन सें हो रही,सबइ जिमी बरबाद।।
सबजी खूब उगाइऔ,पेडे़ येंन लगाव।
दो दो गैंयाँ बाँद लो,पइसा पुन्न कमाव।।
निबुआ कटहल आँवरी,मौआ जामुनआम।
जे छै पेडे़ देत रत, छै पीडी़ लौ दाम।।
कछू जनें हो जात हैं, दारू सें बरबाद।
ई सें कितनें घर बुजे,करौ तनक अंदाज।।
✍ गोकुल प्रसाद यादव,नन्हीं टेहरी(बुडे़रा)
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
तीन दोहा
*1*
कारे बदरा छा गये,बरसा कौ अनुमान।
खूब झमाझम बरसियो,हो रय खुशी किसान।।
*2*
धरती में बढ़ने लगौ,ऐनई अत्याचार।
जनी मांस हैरान है,अब लो प्रभु अवतार।।
*3*
ईसुर ने भी कर दऔ,धरती में बदलाव।
करनी कौ फल भोगिए,काय आत है ताव।।
****😄😄😄
✍ -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
संपादक-'आकांक्षा' पत्रिका,टीकमगढ़(मप्र)बुंदेलखंड (भारत) मोबाइल-9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
दोहे-
माते दुके पियाँर में , को कय बैरी होय ।
खान-पियँन बैठन-उठन,को हाँतइ सें खोय ।।
को हाँतइ सें खोय , बोल कें साँसी बातें ।
अबै चैन सें दिवस , और कट रइं हैं रातें ।।
"पोषक" करें खराब , काय खों रिश्ते-नाते ।
चाये पूरौ गाँव , लूट कें खावें माते ।।
***
कथा भागवत पाठ हो , श्रोता रत दो चार ।
नाच-गान होवै कितउँ , जुरवै भीड़ अपार ।।
जुरवै भीड़ अपार , कितउँ होरव हो झगडा़ ।
कै फिर कितउँ डकैत , मरौ हो नामी तगडा़ ।।
पोषक मन की बात , लियौ ना कोउ अन्यथा ।
भीड़इ-भीड़ दिखात , होय पंगत बाइ कथा ।।
✍ कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर
अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
बुन्देली दोहे- फुरफुरी
आवै ऐसी फुरफुरी,तन-मन झटका लेत।
रौंगट इकदम हों खड़े, ठंडी जानहिं लेत।
सूरज के दरशन नईं, पारो गिरवे ऐन।
फुरफुरी तन छोड़तई, दिन होवे या रैन।
धू - धू धूनी धंधरा, बार रमे हम रायँ।
बाहर छूटत फुरफुरी, ऐसे में कहँ जायँ।
फुरफुरी और कपकपी, पूरे दिन भर रात।
अगर कान नईं बांधवें,कानन हवा सकात।
आतन-जातन फुरफुरी,जा-तन काम न देय।
ईसुर आफत कर रओ, परो दौन्दरा देय।
✍ अमर सिंह राय ,छतरपुर (म.प्र.)
अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
दोहे विषय नो नाखून
1 शहरन की जे छोकरी, बड्डे नों रखवात।
बीमारी की गैल जा,उने समझ ना आत।।
2 नोनी नो पालिस रची, गोरी के नो लाल।
ब्याब घरे वे जा रहीं,कैंया लै के लाल।।
3 पीरे नो हो जात हैं, पीरो आंग दिखाय।
गन्ना मूरा से मिटै,पांडू रोग कहाय ।।
4 नो सें चोटी तक करैं, वरनन जो कविराज ।
नखशिख ऊखों कात हैं,रस सिंगार है राज।।
5 कबऊं न नो को कटिये,दांतन से जे मान।
कोरोना के काल में,सूधी सूधी जान।।
✍️ डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
💐अनुश्रुति(अंक-1)अक्टूवर-दिसम्वर-2021💐
बुंदेली गज़ल -नौनें नइँ बतरात कका जू
नदें भौत उत्पात कका जू।
नौनें नइँ बतरात कका जू।।
कछू तनक बतकाव करों सो,
करिया से सन्नात कका जू।।
अपनों काम बनाबे खौ बे ,
सामउँ सै अड़ जात कका जू।।
मेला में दँय फिर रय ठेला
भीड़ देख गर्रात कका जू।
आन मान मर्यादा टोरें ,
अथफर हैं कतरात कका जू।।
कोनउँ पूछताछ करतइ सो,
तनकइ में खुन्नात कका जू।
काँ दारू मुर्गा की छन्नें ,
सोचत रत सबरात कका जू।।
कीकें कितें उपद्रव कन्नें ,
मन में दँय गुर्रात कका जू।
मौका परें बिदें कें मारें,
चले जात गरयात कका जू।।
दिल में लगी बिसारें कैसें .
ठोकर लगी बिलात कका जू।
अपनी लगी भँजाकें छोड़ें ,
परे परे बर्रात कका जू।।
कोनउँ चर्चा करों काउ की,
'सरल'जल्द उकतात कका जू।।
😄😄😄
✍ एस आर सरल,टीकमगढ़
💐अनुश्रुति(अंक-1)अक्टूवर-दिसम्वर-2021💐 😊
💐ग़ज़ल💐😊
काँ तक कक्का गम्म खांय हम।
गांव छोड़ कें कितै जांय हम।।
काँ तक झूंठ छिपाबै सबके।
काँ तक झूंठो मठा भांय हम।।
तुमें टिललकें करने सबकीं।
काँ तक सुंनबें चांय चांय हम।।
तुमने अपनी फ़िज़ा बना लई।
दौरत फिर रय नांय मांय हम।।
बड़ी जुगाड़ें करीं जनम भर।
कबसें सुन रय काँय कांय हम।।
कक्का ने काकी सें कै दई।
अब ना सुनपें टांय टांय हम।।
मैं नादान बखत कौ मारौ।
काँ तक बकबैं आंय बांय हम।।
%%%$%%%
✍-अशोक पटसारिया'नादान',लिधौरा,टीकमगढ़(मप्र)
💐अनुश्रुति(अंक-1)अक्टूवर-दिसम्वर-2021💐
🥀 बुंदेली गजलें 🥀
फाग लावनी के दंगल की का कैंनें।
बुन्देली के गीत गजल की का कैंनें।।
राइ, कहरवा, गोटें, गारीं, लमटेरा।
नचै कांडरा स्वांग सकल की का कैंनें।।
कारीटोरन द्रोनागिर जैसे परबत।
जेठे बब्बा बिंध्याचल की का कैंनें।।
लंकलाट औ फलालेंन कैसे कपड़ा।
बा सपेत देसी मलमल की का कैंनें।।
आबें पंचन में परमेसुर सुनों जितै।
ऊ अथाइ के सत्त मजल की का कैंनें।।
कुन्डेसुर की बिहीं किसुनगढ के ओंरा।
हीरापुर के छीताफल की का कैंनें।।
छत्रसाल से बीर धन्य झांसी रानी।
आला ऊदल औ परमल की का कैंनें।।
कैंन, धसान, जामनें, काठन सीं बेंनें।
'सरस' बेतवा के आँचल की का कैंनें।।
०००००००००००
२-
बात बे मन की बड़ा रय काय खों।
धार पै पानी चडा रय काय खों।।
काल जिनखों तुमइं खुद नें मानहौ।
बे नियम बिरथां बना रय काय खों।।
दिल सें दिल तौ मिलौ नइंयाँ आज लौं।
हाँत हंस हंस कें मिला रय काय खों।।
गाँव में तौ सींक सुलगत फेंक दई।
राख चूले की बुजा रय काय खों।।
अपनीं बिटिया मार दइ तब पेट में।
गाँव कीं कन्यां जिमा रय काय खों।।
भूंके माई बाप की नइंयां खबर।
भोग मन्दिर में चडा रय काय खों।।
सीक जिनकी सुनी नें मानी कभऊँ।
सीस चरनन में झुका रय काय खों।।
भीतरै तौ बासना कौ बिस भरें।
बायरें चन्दन लगा रय काय खों।।
सरस भूले खुदईं माया जाल में।
गैल औरन खों बता रय काय खों।।
✍ डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस,बड़ा मलहरा, छतरपुर
अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
"राष्ट्रीय गीत"
हम हैं भारतवासी,अपना फर्ज निभाएंगे ।
हम प्राणों की बाजी खेलें,नहीं कभी घबराएंगे ।।
दुश्मन ने जो आंख उठाई, उसे फोड़ हम डालेंगे।
चुगलखोर ने चुगली कीन्ही,मुंह तोड मिर्च लगाएंगे।।
आतंकवाद का लिया सहारा,उसे उखाड़ जलाएंगे।
बने अनजान रहें न हम सब,मां का क़र्ज़ चुकाएंगे।
हम हैं भारतवासी, अपना फर्ज निभाएंगे ।।
02
हिन्दुस्तान हमारा है,जो प्राणों से प्यारा है ।
यहां जन्म लेते हैं रघुवर,जिन रावण संहारा है ।
लक्ष्मीबाई अवंती रानी,अंग्रेजों को पछारा है।
सरदार पटेल जवाहर नेहरू,प्रजातंत्र सरकारा है।।
हम बालक हैं नन्हे मुन्ने,राष्ट्रीय धर्म हमारा है ।।
कहें अनजान बने न रहना,राष्ट्र विकास सहारा है।
हिन्दुस्तान हमारा है, जो प्राणों से प्यारा है ।।
✍ डॉ.. आर. बी. पटेल "अनजान",छतरपुर
😄
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
लोकगीत क्रमाँक-
धुन...ऐसी दुलहिन लादे ना होय जमाने में।
चटक मटक चालाक हैं चित्त चुराने में।
गुजर ना जाय गुजरिया, कोउ अनजाने में।।
चन्दा सी चकोरीं गोरीं,चैंन बे चुराँय छोरीं,
गोरी गोरी भोरीं जिनकी चाल मतवारी है।
निकरें बे बारींबारीं,उमर है वारीं वाृरीं,
कानन में पैरें बारीं,बरसानें बाृरीं हैं।।
मर मर जायें ग्वाल कमर लटकाने में। गुजर ना जाँय..........
ललाट भारी,भारी लटें कारी कारी,
छुटकारें सारीं बे बल खाँतीं भारी हैं।
मटकिया के संग,भारी मटंकाबें अंग,
अंग अंग उमंग कछू ब्याहीं कछू क्वाँरीं हैं।
मति ना मारी जाय मधुर मुस्कानें में। गुजर ना जाँय .........
नवेली,अलवेली हो अकेली,
होय संग ना सहेली,बो पहेली बन जाती हैं।
चटकीली चाल ढाल ,करतीं हैं बे निहाल
कमाल मालदार इठलातीं हैं।।
जयहिन्द लेत आनन्द इन्हें लुटवानें में। गुजर ना जाँय..........
✍ जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़
अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
कविता- देशप्रेम
एकई बात उचारों सबरे जय जय भारत माता की
देश, धरम, समाज के लाने हम सब आगे बढ़हैं
मान मर्यादा सेवा शक्ति पढ़ें लिखे को गढ़हैं
ऊंच नीच और छुआछूत को भेद मिटा के राने
मातृभूमि की रक्षा करवे दुश्मन से लड़ जाने
तीन रंग में रंगों तिरंगा जय जय भारत माता की
एकई बात उचारों सबरे जय जय भारत माता की
बन्न बन्न की चित्रकला है बन्न बन्न की मूरत
ताजमहल, मीनार, किले सी देखी नइया सूरत
न्याय नीति व्यवहार प्रेम को छोड़ कभउ न दइयों
अल्ला नानक गोड राम राम को भैया न बिसरइयों
सब को सम्मान करत जय जय भारत माता की
एकई बात उचारों सबरे जय जय भारत माता की
मुश्कल से मिली अपनखो भैया मोरे आजादी
शेखर भगत लक्ष्मी बाई ने जान की लगा दी बाजी
बनें कलाम, भीम, विवेकानंद स्वामी राणा जी
दिनकर, पंत, निराला बनके तुम धरा पे आना जी
इंकलाब को नारा गूंजें जय जय भारत माता की
एकई बात उचारों सबरे जय जय भारत माता की
सूरज चांद निहारो सबरे जय जय भारत माता की
हिन्दुस्तान हमारो हमारो जय जय भारत माता की
मिल जुल के रइयों भैया जय जय भारत माता की
गांव गांव में सबखो पढ़ाओं जय जय भारत माता की
इक दूजे की करो भलाई जय जय भारत माता की
एकई बात उचारों सबरे जय जय भारत माता की।।
***
😄😄😄
✍ सरस कुमार, ग्राम-दोह, तहसील खरगापुर
अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
*लेना-देना* (बुन्देली कविता)
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कय खों हँसने, कय खों रो,
*लेना एक न देना दो !*
आंखन सैं पानी है सूखो,
खण्ड-बुंदेला प्यासो-भूखो ।
कतकारी के ठाकुर खो गय,
जात-पांत के गुनिया रो रय।।
ई चुनाव के महायज्ञ में
कय खों आहुति दो !!
*लेना एक न देना दो!*
अलगू, रामू, बुधिया, धनिया,
कुर्मी, साहू, बामन, बनिया ।
गांव गली चौपालें चल रईं,
मंदिर मस्जिद सब में पिल रईं ।।
हाथ कछु नईं आने अपने
कय खों हाथ मलो !
*लेना एक न देना दो !!*
असली मुद्दा जानत नईंया,
ऊपर से फिर मानत नईंया ।
उजड़े बस्ती चौक चौबारे,
सड़क पहुंच गई आंगन-द्वारे।।
भव *विकास* तो गजब हवा को
अपन चैन से सो !!
*लेना एक न देना दो*
इतिहास हमईं की थाती गा रव,
उज्ज्वल सबरो यस बतला रव।
आल्हा-ऊदल वीर बड़े थे,
शत्रु डर कैं दूर भगे ते ।।
तनक इनन को कर्ज चुकावै
सच्चो मीत चुनो !
*लेना एक न देना दो !!*
✍ गणतंत्र जैन ओजस्वी, खरगापुर
अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
बुंदेली कुणडलियां
पावन नगरी ओरछा,जहां विराजे राम।
कुँवरगनेशी बाई,.कंइयांलाईं धाम।।
कंइयां लाईं धाम,जगत दरसन खां जावै।
ऐसौ तीरथ धाम ओरछा,रामके दरसन पावै।।
उतै बनौ हरदौल चेटका,पावन अति मन भावन।
पूजत है संसार, जिनहें परमेशवर पावन।।
***
बुंदेली कुणडलिया
पावन भइया बैन का,सुंदर है तेहार ।
रकछा बँधन साउन का,भाइ-बहन का पियार।।
भाइ -बहन का पियार,बहिन से भाई कहता।
बाँधो रकछा सूतय,तेरा जो संकट हरता।।
जनम जनम का साथ,रहे यह रकछा बँधन।
रिशता दाँगी अमर रहे,घर आनंदित पावन।।
✍ शोभाराम दाँगी 'इंदु' ,नंदनवारा
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
बुंदेली व्यंग्य -‘‘मूरख बनावें मैं चंट’’
-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़
ऐसैं तो मूर्खन की कउँ कमी नईंयाँं,े एक ढूँड़ों तो तुमैं सैंकरन मिल जैहैं। फिर पने देश में तो एक से एक जितै तकोे उतै मिल जात। कछू हमाय इतै हैं तो कछू तुमाय इतैं सोइ हुइयें।
एैसौ लगत है कै जौ ‘मूरख दिवस’ सोइ एक अपै्रल कौ जैई संे मनाओ जात है। तुम पैलाँ सें कउ मूरख बन गये तौ कोनउ बात नइँयाँ। तुम पने से बडौं बारों मूरख खों तक लो। इतै सबसें बड़ी बात जा है कि ई दिना आप कोउ खों भी मूरख बनाकैं बड़े मजे से बता सकत। हमने सोई आज कोनउ कौ मूरख बनाइ दऔ। उये तुम घोषित भी कर सकत हो। वैसंे जा छूट केवल एक अपै्रल खौं मिलत है उर मजे की बात जा है कै मूरख बनवे वारों सोई पनी जा मूर्ख बनने की मूर्खता भी स्वीकार कर लेत।
जैसें मूरखन की भौत किस्में होती है,ठीक ओइतरां सें कछू ऐसे आदती सोई होत है जोन मूरख बनावें में भौत चंट होत हैं। आज के समय में मूरख बनावों सोइ एक कला है। वैसें आज के जुग में आप कोनउ दूसरे खौं आसानी सें मूरख नई बना सकत। फिर भी कछू बिशेष वरग है जोन जे काम आसानी से कर लेत। साँसी कइ जाय तौ एक अच्छे आदमी में जा मूरख बनावे की कला भओ चइए। कउँ तुमै नइँ आत तो जा जरूर सीखवो चाहिए। भई कोसस करवे में का नुकसान ?, अरे भइया, जा आज की जरूरत है, उर फिर जो दिन एक अप्रैल सोइ एइ के लाने आत है के कम सें कम आप साल भरे में एक दिना तो कोनउ खों मूरख बनाइ डारिए नइतर कछू विशेष लोग तो रोजउ कोउ न कोउ खों मूरख बनाउत रात है।
हम आपखों कछु बिशेष वरग खों चिना रय पैचान करा रय जोन मूरख बनावे में भौत चंट होत है जा यूँ कै लो कि भले ही जे अँगूठा छाप या अनपढ़ हो,लेकिन जे डबल एम.ए
होत हैं। अपुन नइँ समझ,े अरे बन्धु ‘मास्टर आॅफ मूर्ख’ की डिग्री जे पने अनुभव उर हुनर से प्राप्त कर लेत है।.
ईमें सबसें पैलाँ ,सबसें बड़ों एवं प्रभावशाली वरग है ‘नेता वर्ग’ जो कि भोरी-भारी गाँवन की जनता कें संगे-संगे शहर के पढे़ लिखे लोगों को सोई बड़ी आसानी से पद आदि कौ लालच देकैं पने लुभावने भाषण उर झूठे चुनावी वादों के जाल में फँसाके हर बेर चुनाव में मूरख बनात आ रय। जो बड़े वारे अर्थात पक्के मूरख होत हैं या बन जात हंै उने पनी पार्टी कौ मूर्खता सदस्यता प्रमाण-पत्र सोई देत है। हाॅ, कछू टुचपंुजियों या छोटे मोटे चमचों खौं तो जे नेता सिर्फ़ भाषण में एकाध बेर नाव लैकैं उनकी झूठी प्रशंसा करकें उनें खुश कर देत। वैसे नेतन खांे जौ ‘मूरख दिवस’ एक अपै्रल खों नइँ ,बल्कि पँचवर्षीय जोजनाओं की भांति हर पाँच साल में चुनाव के समय ही आत है। कउँ-कउँ अपवाद स्वरूप दो या तीन साल में सोउ आ जात है उर भौतइ खुश किस्मत भये तो म.प्र. के मुख्यमंत्री की तराँ एक सालइ में मौका मिल जात है। जे नेता तो एक बेर (पाँच साल) में ई तराँ साल कौ कोटा पूरा कर लेत।
दूसरौ नंबर मूरख बनावे की कला में माहिर ‘पत्नी’ कौ आत है। कउ-कउ पै अपवाद स्वरूप पत्नी कौ जो स्थान पति की अदृश्य पे्रमिका सोइ लै लेत है। पत्नी हर साल एक अपै्रल की बेराँ नइँ तकत रात वो, तो प्रत्येक मइना की एक तारीख़ खों जब ऊकै पति की तनख्वाह मिलत सोे उय हड़प कैं पति खौं मूरख बना देत। पति भी विचारौ ऊ समय जानबूँझकैं मांेगो-मोंगो रात भए हर बेर मूर्ख बन जात है। पति जा जानत है कै ऊ ने सबसें बड़ी मूर्खता तौ ओइ दिना कर दयती जी दिना उकौ व्याव भओ हतो। अब जा भीतर की बात है कै पति केवल पनी घोषित तनख्वाह ही पत्नी खों सौंपत हैं,ऊपरी कमाई तो वे भूलकै भी नईं देत, और ना ही कभउ बतात है, कि वा कितेक होत है.उल्टे उ तनख़्वाह में से पैटोªल उर चाय-पानी आदि खर्चे के पइसा माँगत । अब जा बात अलग है कै उनकी ऊपरी कमाई पनी अघोषित बीबी अर्थात पे्रमिेका खों पटावे उर उये गिफ्ट आदि देवे मेंइ हर मइने चली जात।
तीसरे नंबर पै हमाय देश के ‘कवि’ नाव कौं विचित्र महामानव आत है। हमाँई जा सोस है कै जब धरती पै एक लाख लोग मरत हुइयें तब एक कवि कौ जन्म होत हुइये। कवि खों तौ हम मूरख बनावे में विजेता तो नई लेकिन रनर जरूर कै सकत । जितै पै नई कविता कौ जन्म भऔ नइँ कै सामने वारे की मुसीबत आ गई। अब बौ बिना सुने कउँ नइँ भग सकत। उये मूर्ख बनवे से अब कौनउँ ताकत रोक नइँ सकत।
कवि की नज़र में जौ नऔ बकरा आय और फिर कवि ई मूरख बनवे वारे बकरा खौैैं। अच्छी तरां सें हलाल करवो जानत है। जी प्रकार बलि कें बकरे खों पैलाँ खूब माल ख्वा पिया कैं मोटो करो जात है ठीक उ तरां से कवि सोई पने बकरे कौ मूरख बनावे सें पैला अच्छी तरां से मींठी-मींठी बातन में या फिर चाय-नाश्ते आदि को चारौ डारके फाँस लेत उर फिर हो जात है जा कत भए शुरू कि हमने अबइ एक ताजी नइ कविता रची, एक बेर तनक सी सुन तो लो,फिर बताइयो कैसी लगी। जब वो इ मरियल सी कविता सुनकैं कछू नइँ कत या फिर बोर हो जात है तो कवि तुरतइ समझ जात है कि अबै ई खौं मज़ा नइँ आव उर फिर तो वो नान स्टाप शुरू हो जात है। 6-7 कविताएँ तो एक साँस में सुना देत। विेचारौ बकरा समझ जात है कै आज वो कितै फस गओ है। कवि एक घंटे तो सामान्य अवस्था में इ सबको मूरख बना सकत है उर यदि कउं डायरी संगे भइ तो समझो कि हो गओ काम.कभउ-कभउ तो पूरे तीन घंटे की फिल्म भी कबें पूरी हो जात है पतौ नइँ चलत।
चैथौ स्थान मूरख बनावे में आज के समय के ‘माससाब’ जू कौ आत है,जो कि पने छात्रन खों मूरख बनावे में कभउ पीछे नइँ रत। एक तो माससाब जू कभउ पीरियड पढ़़ावे इस्कूलई नइँ जात, कजन कि दार कभउँ चले गये तो, कक्षा में नइँ जात, उर कउँ धोखे सें चले सोई गए तो पढावे के इस्थान पर वे उल्टे उनें ही डरा देत हैं कि का तुम इन मोटे-मोटे ग्रन्थन को साल भरे में एक बेर सोउ सबरौ बाच ले हो? ,हमाइ मानो तो परीक्षा के समय कोनउ सीरीज से पढ़ लइओ पास हो जेहो,ं नइँ तर कजन इन ग्रन्थन के भरोसे रय तोपंचवर्षीय योजना में नई निकर पैव। लरकन खों सोइ माससाब जू की बात सासी लगत है।वे सोउ अब पीरियड गोल करके क्रिकेट आदि के खेलवे में मस्त रत है सोउ पने माससाब जू खों मूरख बनावे कौ प्रयास करत रत हैं। अब जौ तो रिजल्ट के दिनइ पतौ चलत कै कीने कियेे कितैक मूरख बनाव।
पाँचवे नंबर पे हमाय देश के सबइ ‘टी.व्ही.चैनल’ आत है जो कै एक साल तक एक अपै्रल कौं इंतजा़र नहीं करत। वे तो पने देखके बारन खों हर पाँच मिनिट में मूरख बनात रत,उर काफ़ी हद तक सफल सोइ हो जात उर अब तो वे लगातार नीचे एक-दो पट्टी में बिना समय गँवाए ही दर्शकों कौ हर पल मूरख बनात रत हैं।
जे चैनल तिल कौ ताड़ बनावे के भौतइ चंट होत है। जाहिर सी बात है कि जे हर पाँच मिनिट में प्रोग्राम के ब्रेक में थोक के भाव में इतेक विज्ञापन दिखात हैं कै मैं तो अपनी पत्नी से इतेक देर में पने लाने चाय तक बड़े आराम से बनवा लेत फिर भी विज्ञापन खतम नईं होत।
कछू वरग विशेष सोउ होत है जो कै पने-पने स्तर तक लोगन खौं हर समय मूरख बनावे में लगे रात कायकै उनमें भी कछू प्रतिशत मूरख बनावे वारे वायरस मौजूद होत। भाई साँसी पूछीं जाय, तो आज अपन ने सोउ आपखों मूरख बनाइ डारो,कायसें कै हमें तो संपादक जू ने मूरख दिवस पै एक व्यंग्य लिखवे खों कई हती सो मैंने तौ आपको जो व्यंग्य पढ़ा कै मूरख बनाइ डारो। अब आप कितेक बडे़ वारे है जा तो आप पैइ निर्भर करत है कायसें कै मूरख बनवे के कीटाणु तौ सबइ जनन में तनक-मनक होत है।
अंत में पनी इन दो पंक्तियों से व्यंग्य समाप्त कर रय है कि-
मूरख हमसे वे कहंे, खुद मूरख अज्ञानी।
व्यंग्य हमाऔ जो पढ़कै, पाठक माँगे पानी।।
--- -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
यात्रा संस्करण- कश्मीर
यात्रा के मामले में तो ऐसो है भैया के हमाय पाँव में भौंरिया है १९८८-८९ में घर सें निकरे सो अजलौ घूमइ रय। देश मे तमिलनाडू और केरल बचो जिते जाबे को मौका नइं लग पाव बाकी तो सबरे हार सरकारी खर्चा पे जी भरकें घूम लओ। पचासन हवाई यात्राएं कर लइं। पर कश्मीर की हवाई यात्रा कभऊँ नइं भूल सकत, काय के जा यात्रा पैली बार अपने परिवार के संगे कर रयते। पत्नी सुइ अपने ऑफिस की तरफ सें कइयक हवाई यात्राएं पैलइं कर चुकी तीं, सो हम औरन से ज्यादा दोई बच्चन के मन में गजब को उत्साह और जोश कुलांचे भर रओ तो।
बात कश्मीर सें 370 धारा खतम होबे के पैलां की है । बड़े बेटा संस्कार की हाईस्कूल की बोर्ड की परीक्छा खत्म होतेई योजना अनुसार तय समय पे घर सें निकरवे की बेरां आ गयी। भुका-भुकें ओला टैक्सी द्वारे पे मंगा लई, हाल फूल में फटाफट सामान लादो और सब जने बैठ गय ,बैठ तनइं ओला वारे ड्राइवर ने टैक्सी हवा में दौरा दई काय के भोर को सन्नाटो और दिल्ली की चिकनी सड़कें । देखत-देखत इंदिरा गाँधी हवाई अड्डा नों पौंच गय। अब हमने कमान समारी और बच्चन पे अपने अनुभव को रुतबा जमान लगे अकेले तनक देर में हमाय अनुभव पे बच्चन की जानकारी भारी परी, पूँछो काय? काय के वे नेट पे एक एक चीज खंगार चुके ते । हमें जो आभास तक लों नइं भव के बे पैली बार हवाई यात्रा कर रय, खैर.....जा चेकिंग बा चेकिंग , लगेज ,टिकट और बोर्डिंग पास होत करत आधा पोंन घण्टा कबे बीत गओ पतोई नइं चलो। इन ज़रूरी औपचारिकतन सें निपटकेँ, बढ़िया फाइव स्टार जैसी लाउंज में आराम से बैठकें घर से बनो भव नाश्ता करन लगे, काय के हवाई अड्डा पे हर चीज़ भारई माँगी मिलत और फिर घर की चीज़ घरइ की कुआउत। फिर बच्चन के संगे हवाई अड्डा के भीतर की दुनिया घूमत रय । हवाई जहाज़ उडबें से चालीसक मिनट पैलें अलाउंसमेन्ट भओ के श्री नगर जाबे बारे यात्री १५ नम्बर दरवाज़े पे पौंचे। हम सब जाकें अपनी लाइन में खड़े हो गए , दो तीन जगा फिर कऊं चैकिंग भई, और अंत में हवाई जहाज़ के द्वारे पे पौंच गय ,द्वारे पे सुंदर सुंदर युवतियन ने हाथ जोरके अंग्रेज़ी में अभिवादन करो, और सीट की तरपन इशारों करकें सीट बतादई। हमायी चार टिकट पे एक खिड़की वारी सीट परी सो दोई बच्चन में ऊ सीट के लाबें चें-चें होंन लगी सो हमने तुरत स्थिति सँवारी नई तो अबई किचकिच मची जातती , हमनें कई के आदी-आदी दूरी तक दोई जनें बारी -बारी सें बैठलो। जा कओ बात संवर गई, नई तो दंद धरो तो।खैर..हवाई जहाज़ के टेकऑफ होबे को समय आव सो सबरन के मों पे अजीब सो रोमांच और डर को मिलो जुलो भाव तैरन लगो। तनक देर में हम सब बादरन के ऊपर और बादर नैचें ,ऐसो नोनो दृश्य देखकें दोई बच्चा भौत खुश हो रय ते और हम दोई जने उनकी खुशी देखकें खुश हो रय ते। पै घण्टा-खांड में श्री नगर आ गओ । हवाई जहाज़ सें उतरतइं साफ आसमान ने हाँत फैलाकेँ स्वागत करो और ठंडी हवा ने दौरकेँ चूमा लेन लगी । हम औरन ने आपस मे बतकाव करो के काँ दिल्ली में मई मइना की भीषण गर्मी और काँ इते को ठंडो मौसम। जा हवाई यात्रा में एक दिक़्क़त है के अपनोई सामान लेबे में पूरो आदा घण्टा निकर जात।सामान लैकें बाहर आय सो टैक्सी लगी मिली काय के हमने होटल और टैक्सी दिल्ली छोडबें से पैलेइं बुक कर दय ते। समय सें पौंच गय सो सोची के पैलो दिन श्री नगर घूमबे में बिताओ जाय , फिर का हमने ड्राइवर चाचा सें कई के सबसें पैलां *शंकराचार्य मंदिर* चलो । ड्राइवर की उम्र साठ सें ऊपर हती और उनसे मिलतइ उनने नमस्कार फिर सलाम-वालेकुम करी ती। सो पैली मुलाक़त मेंइ उनके लाबें मन मे आदर घर कर गओ फिर वे चारई दिना हमाय संगे चाचा बनके रय । चाचा चौंकके बोले "पहले होटल नही चलोगे ?" हमनें कई" न आज का दिन पूरा श्री नगर के लिए है। बेकार में दो घंटे जाएंगे, सीधा शाम को होटल चलेंगे।"
तो सबसे पैलां चले महाकाल के दरबार में माथा टेकबे। रस्ता भर चप्पे-चप्पे पे देस के वीर जवान बंदूकें लैं खड़े ते उने देखकें मन मे भाव आव के साँची नौकरी तो जै कर रय जोन अपनी जान हथेली पे रखकें हम औरों की रखवाली के लाबें रात दिन इते डटे।
प्राचीन शंकराचार्य मंदिर शंकराचार्य पहाड़ी पे बनो जो समुद्रतल सें ग्यारासौ फुट ऊपर है। कत हैं के इते आदि शंकराचार्य आके रुके ते तबई से ई मंदिर को नाव शंकराचार्य मंदिर पर गओ।
मंदिर पौचबे से पैले टैक्सी खड़ी हो गई ,जाबे सें पैले खूब चैकिंग भई सब समान नैचें छोड़ने पड़ो पर अच्छे दर्शन भय,दिन की अच्छी शुरुआत भई।
फिर गय *चश्मे शाही बाग़*
जो श्रीनगर को पैलो मुग़ल बाग़ है,जो शाहजहाँ के समय मे बनो तो। इतई पास में *डल झील* है सो उते चले गय ,जा डल झील तो दुनिया भर में प्रसिद्ध है, इये ज्वैल ऑफ कश्मीर यानी के कश्मीर को रतन सुइ कई जात। डल, लोकट और पौड तीन झीलन से मिलकें बनी जा सुंदर झील जीको नीलो साफ पानी और आस-पास बने बाग़-बगीचा देखबे बारन को बरबस मन मोह लेत। ई झील के भीतर हाउस वोट स्थाई तौर पे बनी जीमें पर्यटक रुकत, इने शिकारा भी कत ।इनकी सुंदरता देखतन बनत। दिसम्बर, जनवरी के मइंनन में तो ई झील को पानी बर्फ बन जातइ जीपे उते के मोड़ी-मोड़ा खेलत रत।
ईके बाद १७वी सदी में शाहजहाँ के बेटेदाराशिको के द्वारा बनवाये गय *परिमहल* घूमन गय।
अब दुपरिया को भोजन करो फिर *निशात बाग़*, *नागिन झील*, *हज़रतबल शरीन* घूमबे के बाद अंत में २००७ में एशिया को सबसें बड़ो *इंदिरा गांधी मेमोरियल तुलिप गार्डन देखबे गय*, ओ भैया इते ७०सें ज़्यादा बन्न-बन्न के फूल देखकें लगो के जैसे स्वर्ग में आ गय होंय। शाम हो गई सो कई के अब होटल चलो थकान भी होंन लगी ती, सो होटल पौंच गए बढ़िया नहा-धोकें जम कें भोजन करे और लंबी तानके सो गए ।
दूसरे दिना , *सोनबर्ग* गए ,सोनबर्ग सिंधु नदी के दोई तरफ फैले मैदानन में बसो पहाड़ी क्षेत्र है ,हरी हरी घास पहाड़ी की ढलानन पे ऐसें लगत जैसें हरी कालीन बिछी होय और जब सूरज चढ़त सो धूप फिसलत ई घास पे सो ऐसो लगत के सोनो बिखरो होय जेइ बजह है कि ई जगा को नाव सोनबर्ग पर गओ। *बालटाल* तक पौंचे सो ड्राइवर ने गाड़ी रोक दई बोले इते यूनियन है अगर आगें बर्फ के ग्लेशियर देखबे जाने तो इनकी टैक्सी लेने पड़े, ३० किलो मीटर के कम से कम ६००० रुपइया को खर्च है। फिर भौत खिंच-खिच भई, पै उन यूनियन बारन ने हमायी टैक्सी नई निकरन दई। फिर दूसरी टैक्सी करकें गिलेशियर देखवे गए, रस्ता मैं अमरनाथ जावे को रस्ता भी मिलो। तीस किलोमीटर की कठिन रस्ता दो घंटा में तय कर पाए, लेकिन हओ जा है के बर्फ के ग्लेशियर सो देखवे मिल गए। इते से दो चार घंटा की रास्ता पे कारगिल हतो जिते हमाये देश के नौजवानन ने पाकिस्तान खों धूरा चटाई ती। आज को आनंद लेकें हारे थके अपने होटल लौट आये।
तीसरे दिना *पहलगाँव* को नम्बर हतो। पहाड़न के बीच में बसो पहलगाँव में लिद्दर नदी बैउत है और जैई नदी ई जगह को मुख्य आकर्षण को केंद्र है। ई नदी में हम औरन ने वाटर राफ्टिंग करी, और नदी को खूब आनंद लओ। इते एक छोटो सो बजार है जिते हस्त शिल्प की कई कश्मीरी चीजे मिलती। प्राकृतिक सौंदर्य के बीचाँ जो दिन भी अच्छो बीतो। शाम तक फिर अपने श्रीनगर के होटल आगए ।
ई यात्रा को अंतिम दिना *गुलमर्ग* में बीतो ।
गुलमर्ग कश्मीर के बारामुला ज़िले में स्थित है। गुलमर्ग को अर्थ है फूलन की वादी। ई जगह की खोज अंग्रेज़न ने अपनी गर्मी बितावे के लाने करी ती। गुलमर्ग 2700 मीटर ऊंची पहाड़ी पे स्थित है, जिते केबल-कार मैं बैठ के जा सकत। पैलें ई जगह को नाम गौरीमर्ग हतो, फिर कश्मीर के अंतिम राजा यूसुफ शाह चक्र ने ई की खूबसूरती देखकर गुलमर्ग नाम रख दयो। दिसम्बर जनवरी में तो इते बर्फइ बर्फ दिखात। दुनिया को सबसे बड़ो गोल्फ कोर्स इतईं है। इतै की खूबसूरत वादियन मैं कईयक हिंदी फिल्मन कि शूटिंग भई। एक वो गाना है- जै जै शिव शंकर, कांटा लगे न कंकर, जो राजेश खन्ना और मुमताज़ पे फिल्माओ गाओ तो, वो खूबसूरत मंदिर भी अबे वैसइ को वैसो है। स्ट्राबैरी के बाग़ भी देखे। और इतईं इत्ती घुडसवारी करी के पीठ और कमर में दर्द होन लगो। काय के एक तो बे न पूरे घोड़ा हते न खच्चर ,ऊपर सें पहाड़ी रास्ता खैर.... उते की हरी-भरी वादियों में ऐसो मन रमो के समय को पतोइ नइं चलो ,शाम तक फिर अपने श्री नगर अपने ठिकाने पे आ गय।
कश्मीर आबे सें पैले नाहक में डर मन मे बसो तो इते डर भय कछू नइया, पर्यटकन सें कोऊ नइं बोलत, बल्कि बड़ी आव भगत करत। कश्मीर घाईं नोनी जगा दुनिया मे किंतऊँ न हुइए राम धई।उसई नोइ कन लगत के *धरती पे कऊं स्वर्ग है तो इतईं है, इतईं है, इतईं है।
** ✍ -संजय श्रीवास्तव, मवई, दिल्ली💐
आलेख/यात्रा संस्मरण
टीकमगढ़ की ‘हड़प्पा-मोहनजोदड़ो’: प्राचीन गौंड़ बस्ती- ‘गौंड़वानी’ (रिगौरा)
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बुन्दे़लखण्ड प्राचीन महाद्वीप ‘गौंड़वानालैण्ड’ (भूम) कौ अंग है। इककौ एक पुरानो या मूल नाव गौंड़ प्रदेश रऔ है। गाँव-गाँव में विद्यमान ‘गौंड़ बाबा’ और ‘राजगौंड़ बाबा’ के चबूतरे इ बात के पुष्ट प्रमाण हैं कै जौ क्षेत्र गौंड़ों की कर्म भूमि ही नइ जन्मभूमि भी रऔ है। टीकमगढ़ नगर में हिमांचल की गली में भी ‘राजगौंड़’ कौ देव स्थान है। आज भी बुन्देलखण्ड के मघ्य और दक्षिणी भाग में गौंड़ों की आबादी बड़ी संख्या में रत है। कालिंजर की चंदेल राजकुमारी दुर्गावती कौ व्याव गौंड़ राजा दलपतिशाह से भऔ हतो। दलपतिशाह के पिता संग्रामसिंह के कार्यकाल में निर्मित या अधीनस्थ 52 गौंड़ किलों में जादांतर बुन्देलखण्ड में ही स्थित हैं। इ क्षेत्र में चंदेलों के आधिपत्य के पूर्व गौंड़ों का राज हतो । संभव है कै चंदेलन के पैला इतै के गौंड़ राजा ‘गुप्त, परिहार या प्रतिहार शासकों के अधीन ‘करद राजा’ भये होगें। अति प्राचीन गौंड़ राजाओं के लेख और सिक्के न मिलवे कौ कारण ‘लिपि कौ ज्ञान न होवो’ और ‘वस्तु विनिमय प्रणाली’ कौ प्रचलन होना या शासक राजाओं की मुद्राओं कौ प्रचलन हो सकत है। डॉ. के.पी. जायसवाल के अनुसार धसान नदी के निकटवर्ती खटोला परगना में गौंड़ों कौ राज्य था। गढ़ कुड़ार जिला निवाड़ी (पूर्व जिला टीकमगढ़) के गौंड़ राजा या किलेदार पालनसिंह गौंड़ को पराजित कर चंदेल राजा परिमर्दिदेव या परमाल के सेनानायक आल्हा ने इये अपने भाँनजे सिया को सौंप दऔ हतो। शासक वर्ग ‘राजगौंड़’ कहातते । सामान्य गौंड़ जाति संभवत: दो वर्गों में बँटी हती, एक वा जो कृषि पै निर्भर हती, दूसरी वा (उपजाति शबर या सौंर) जो वनों में रैकै वनोपज पै निर्भर हती। विजयी जाति (संभवत: चंदेलों) के संहार से बचवे के लाने राजगौंड़ और सामान्य कृषक गौंड़ दक्षिण की ओर हट गए हुइए पै वनों में रहवेवारे गौंड़ों ने वनों में दुककर अपने आप को सुरक्षित रखौ हुइए, टीकमगढ़ जिले की प्रमुख जनजाति ‘सौंर’ अपने आप को सबरी (सौरी) की संतान मानत हैं और सौंर जनजाति के अनेक व्यक्ति अपनौ उपनाम ‘गौंड़’ लिखत हैं। आर्य-अनार्य के प्रसंग में न पड़के इ बात को मानने के पर्याप्त आधार हैं कै ‘गौंड़’ इ क्षेत्र में आदि काल से निवास करत रय हैं और उसके एक बड़े हिस्से को इ क्षेत्र से पलायन करवे को विवश होना पड़़ा था। पौणाणिक कथाओं के अनुसार ‘शम्बर’ के अधीन पत्थरों के सौ किले थे। इतेक बड़ी संख्या में पथरा के जे किले बुन्देलखण्ड जैसे पथरीले और पहाड़ी क्षेत्र में ही संभव हैं। गौंड़ों के धामौनी किले की चूने की बनी प्राचीर (परकोटे) के भीतर आज भी बिना मसाले का प्रयोग करे पथरन सें बने भये द्वार है। जो प्राचीन गौंड़ों द्वारा बनाए गए किले कौ अंश हो सकत है।
गौड़ो कौ इ क्षेत्र से पलायन संभवत: दसवीं सदी में चंदेल नरेश यशोवर्मन के टैम भओ था। खजुराहो के एक लेख में यशोवर्मन को ‘गौड़ रूपी लता के लिए तलनार’ की उपमा दी है। संभावना तो जौ भी है के बुन्देनलखण्ड में कथित रूप से चंदेलों बनाए गए ‘चंदेली तालाब’ गौंड़ों के रहे हों जो पत्थरों से किले और मकान बनाने में दक्ष हते। आखिर गौंड़ों की भी तो कृषि और दैनिक कार्यों के लाने कछु ‘जल-व्य़वस्थां‘ रई हुइए। (इ दिशा में विद्वानों द्वारा निष्पक्षता के साथ चिंतन और शोध करवे की आवश्यकता है) लगत है गौंड़ों की वास्तुकला/स्थापत्य से सीख लेके कछु बड़े तालाब चंदेल राजा मदनवर्मा (वर्मन) आदि ने बनवाए हों या उनकौ जीर्णोद्धार कर उने अपनौ नाव दे दव हो। उदाहरण के लाने बल्देवगढ़ के ग्वालसागर तालाब कौ नाव लव जा सकत है जियै मदनवर्मा ने अपनौ नाव देने कौ प्रयास करौ पै जन मानस में वो ग्वाल सागर ही बनौ रव। (इ असफलता को ढँकवे के लाने प्रचलित कथा गढ़ लिया जाना कोई बड़ी बात नइयां) बल्देदवगढ़ के इ तला के बाँध के किनारे (आल्हा मंडवा) के नैचे) ‘राजगौंड़ बाबा’ कौ चबूतरा होवौ और किले के एक बुर्ज पै राजगौंड़ की सवारी आने की परम्परा से लगत है कै बाँध (बाद में बल्देूवगढ़) में गौंड़ों का ही आधिपत्य रओ हुइए । चंदेलों की उत्पत्ति या शासन का केन्द्र बुन्देतलखण्ड ही एक भाग होवे से उके लिए स्वाभाविक था कि वे अपने विस्तार और सुविधा के लाने सैन्य बल कौ प्रयोग कर गौंड़ों को इ क्षेत्र से हटाएँ। पराजित गौंड़ों के लाने इके अतिरिक्त कौनउ दूसरौ विकल्प नइ रव हुइए के वे अपने अस्तित्व की रक्षा के लाने जौ क्षेत्र छोड़कर दूर हट जाएँ। गौंड़ों द्वारा रातों-रात अपनी बस्तियों को छोड़कर जावे कौ प्रमाण टीकमगढ़ मुख्यालय से मात्र दस-बारह किमी की दूरी पर (सुधासागर-बड़माड़ई रोड पर मुख्य सड़क से दाँयीं ओर तीन किमी अंदर ) बसे ‘रिगौरा’ गाँव की सदियों पहले उजड़ी ‘गौंड़वानी’ बसाहट है। गाँव में परम्परा से सुनती आ रही कथाओं और चर्चाओं से पतौ चलत है के भौत टैम पैला(संभवत: दसवीं सदी तक) इतै गौंड़ों कौ गाँव हतो जीके अवशेष या खण्डहर आज भी किसी हड़प्पाकालीन बस्ती की तरां बिखरे पड़े हैं। एक पहाड़ी पर स्थित यह ‘गौंड़वानी’ बस्ती (गाँव) रिगौरा से पूर्व दिशा की ओर एक पहाड़ी पर बसी थी। पहाड़ी पै कछु चढ़ने के बाद सत्तर-अस्सी मीटर की लम्बाई चौड़ाई में फैले पहाड़ी के समतल भाग पर पत्थरों की एक भग्न प्राचीर दिखाई देत है इस के बाद कछु घरों की दीवारें के अवशेष हैं। मिट्टी के घड़ों और खपरैल के टुकड़े इस पूरे प्रांगण में फैले हैं। एक-दो जगह पत्थर की चक्की के टुकड़े भी पड़े हैं। ये चक्कियाँ या ‘जतरियाँ’ ग्रेनाइट पत्थर की हैं जो किसी अन्य स्थान से लाई गईं हैं कायसें कै इते आसपास ग्रेनाइट पत्थर नइयां । आगे फिर एक प्राचीर है। प्राचीर, घरों और एक देव स्थान के भग्नावशेष देखकर यह अनुमान लगाऔ जा सकत है के इतै बस्ती के प्रमुख या ओझा और उके परिजनों के निवास रय होगें। घरों कौ निर्माण मिट्टी के गारे, पत्थरों, लकड़ी और खपरैल से करो गऔ जात हुइए। प्राचीर बनाने कौ उद्देश्य बाह्य आक्रमण और जंगली जानवरों से रक्षा करवौ रव होगौ। दूसरी प्राचीर के बाद पहाड़ी के दूसरे भाग में भी बस्ती के अवशेष स्पष्ट हैं। कैउ घरन की तीन-चार फीट ऊँची दीवारें अब भी देखी जा सकत हैं, जिनकौ गारा घुलकर बह गव है। सदियों बाद खुली पहाड़ी पर लकड़ी के अवशेष मिलना संभव नइयां है। उजड़ी बस्ती का बचा ‘माल’ उजाड़ने वालों ने छोड़ा भी कितेक होगा ? प्राचीर वाली पहाड़ी के नैचे एक घोड़े के नाल जैसे आकार की घाटी है जीकी दूसरी ओर की एक खड़ी ढाल पर ऊपर-नीचे दो-तीन छोटी-छोटी गुफाएँ या खोह हैं जिकौ संबंध ‘जन-चर्चा’ में इस ‘गौंड़वानी’ बस्ती के उजड़ने से जोड़ा जात है। नैंचे की गुफा कछु बड़ी है। जे गुफाएँ वर्तमान में जंगली जानवरों की ‘माँद’ बन गईं हैं। रिगौरा गाँव के बड़े-बुजुर्ग बतात हैं के चोरों के आक्रमण के कारण ‘गौंड़वानी’ गाँव के सभी लोग गुफा में घुस गए थे और फिर कभउ वापस नइ आए। इ मिथक-कथा से स्पष्ट है कै आक्रमणकारियों के भय से गौंड़ यह बस्ती चुपचाप रातों-रात छोड़कर कऊं चले गए होंगे। ये गुफाएँ न तो इतैक बड़ी हैं न गहरी कै जिमें पूरौ गाँव समा जाए और फिर वापस भी नइ आए। स्थानीय लोग इतै से यदा-कदा धन मिलने की कहानियाँ भी सुनात हैं। पहाड़ी के दूसरी ओर एक छोटा तालाब है जिसे चंदेली तालाब कत हैं। तालाब के नीचे दो तालाब और भी है। जीर्णोद्धार हो जाने से मूल संरचना इ दिखत है। ये तालाब भी गौड़ों के बनाए हो सकत हैं कायसे वर्तमान बस्ती इतै से भौत दूर है और जो मात्र निस्तारी तालाब है। बस्ती से कछु दूर खेतों के बीच एक बावड़ी भी है। निम्नालिखित प्रश्नों के उत्तर बुन्देलखण्ड में गौड़ों के अस्तित्व पर नवीन प्रकाश डाल सकत हैं-
1, जा गौंड़वानी बस्ती कितैक पुरानी है ?
2. इ बस्ती के लोगों कौ रहन-सहन कैसौ हतो ?
3. इके उजड़ने के का कारण रय होंगे ? आदि
इ बस्ती के वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा ही भौत-से अज्ञात रहस्य प्रकट हो सकत हैं, कका पुरातत्व विभाग इ ओर ध्यान देगा ?
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✍ - रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ (मप्र)-
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
साहित्यिक समाचार-
म.प्र.लेखक संघ का 280वाँ आयोजन नये साल पर हुआ कविसम्मेलन-
यदुकुल नंदन खरे के उपन्यास ‘समन्दर के बीच’ का हुआ विमोचन-
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टीकमगढ़// नगर सर्वाधिक सक्रिय साहित्यिक संस्था म.प्र. लेखक संघ जिला इकाई टीकमगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में अं्रग्रेजी नये साल के शुभागमन पर आकांक्षा पब्लिक स्कूल टीकमगढ़ में 280वाँ कवि सम्मेलन अयोजित किया गया। जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ वरिष्ठ कवि श्री कोमल चन्द्र जी बजाज (बल्देवगढ़) ने की व मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. आर.पी. तिवारी (टीकमगढ़) रहें। जबकि विशिष्ट अतिथि श्री भगवान सिंह लोधी ‘अनुरागी’, (दमोह) एवं यदुकुल नंदन खरे रहे। जबकि कवि सम्मेलन का संचालन वीरेन्द्र चंसौरिया ने किया। इस अवसर पर श्री यदुकुल नंदन खरे की आठवीं कृति ‘समन्दर के बीच’ उपन्यास का विमोचन किया गया।
कवि सम्मेलन का प्रारंभ वीरेन्द्र चंसौरिया ने सरस्वती वंदना कर किया- हे सरस्वती मेरी माँ, जय हो तुम्हारी माँ।
बल्देवगढ़ से प्रमोद मिश्रा’ ने सुनाया- नोनो लगत साल के आतन, दुख ईकैस के जातन।
शुभ संदेश देत सब खइ्रयाँ, खुशी बने न कातन।।
दमोह़ से भगवान सिहं लोधी ‘अनुरागी’ ने- नोने लगत हमे शहरन से, भैया जे अपने गाँव रे,।
बरिया,पीपर ,आम,नीम की, ठंडी ठंडी छाँव रे।।
टीकमगढ़ से म.प्र.लेखक संघ के जिलाध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने ‘बुंदेली दोहे पढ़े-
नओ साल में कीजियो, नओ सृजन साकार,
एक-दो पोथी भी छपे,कविता लिखों हजार।।
नओ साल में कीजियो कछू मानव कल्याण,
पौधा रोपण भी करो, देते है जो प्राण।।
पलेरा से रविन्द्र यादव ने सुनाया- भैया कैसो जमानों आ रहो,कोऊ समज नई पा रऔ।
भीतर से तो कछु और है, बायरे कदॅ दिखा रऔ।।
बल्देवगढ़ से आये कवि यदुकुल नंदन खरे ने पढ़ा- गर चाहों तो दुनियाँ की तस्वीर बदल सकते हो।
गर चाहों तो लोगों की तकदीर बदल सकते हो।।
हाजी जफ़रउल्ला खां ‘जफ़र’ ग़ज़ल ने पढ़ी- माँगे दुआ मालिक से हम खुशहाल हो मेरा वतन।
सब कुछ हमें देती जमीं सबकी मदद करता गगन।।
टीकमगढ़ से प्रभुदयाल श्रीवास्तव ने सैरा सुनाया- झूला झूलत कुंज बिहारी, उर बृषभान दुलारी।
श्याम सलोने श्याम सखा संग, सोहत श्यामा प्यारी।।
टीकमगढ़ से सियाराम अहिरवार ने सुनाया- बउन लगी संकरात जू, सुनलो मोरी बात जू।
टीकमगढ़ से युवाकवि स्वप्निल तिवारी ने सुनाया- पीर की परायण में, अभिलाषा की किरण बाकी है।
पहाड़ों की ओट में छिपे झरने में मिठास बाकी है।।
इनके अलावा डॉ.आर,पी.तिवारी, पं.हरिविष्णु अवस्थी, राजेन्द्र अध्वर्यु, कमलेश सेन, डी.पी,शुक्ला, कोमल चन्द्र बजाज, अनवार खान साहिल, डी.पी.यादव,आदि तीस कवियों ने भी अपनी रचनाएँ सुनायी। अंत में सभी का आभार म.प्र. लेखक संघ के जिलाध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने माना।
रपट- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक-‘आकांक्षा’ पत्रिका एवं ‘अनुश्रुति’ बुंदेली ई-पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
अध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
पिनः472001 मोबाइल-9893520965
E Mail- ranalidhori@gmail.com
Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
मुख्य कवर पेज पर दोनों पेंटिंग
यश नापित, पुरानी टेहरी, टीकमगढ़ (मप्र)
पोथी समीक्षा/पठनीय पोथियां
लुक लुक की बीमारी बुंदेली गद्य व्यंग्य
व्यंग्यकार-राजीव नामदेव'राना लिधौरी',टीकमगढ़
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
✍ नोनी लगे बुंदेली (बुंदेली हाइकु संग्रह)
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
✍ 'आकांक्षा' पत्रिका-2021 (प्रेम विशेषांक)
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
अनुश्रुति(अंक-1)अक्टूवर-दिसम्वर-2021
💐अनुश्रुति(अंक-2) जनवरी-मार्च-2022💐
जय बुंदेली, जय बुन्देलखण्ड,जय भारत
1 टिप्पणी:
Wah very nice
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