Rajeev Namdeo Rana lidhorI

रविवार, 9 जनवरी 2022

गकइया (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)- संपादक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)


                      💐😊गकइया😊💐

                   (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)
      संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की
                85वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 09-01-2022

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
         मोबाइल-9893520965



🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊



🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊


              अनुक्रमणिका-

अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)
01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-अशोक पटसारिया,लिधौरा (टीकमगढ़) 
03-गोकुल प्रसाद यादव,बुढेरा (म.प्र)
04- शोभाराम दाँगी , इंदु, नदनवारा
05-संजय श्रीवास्तव, मवई,टीकमगढ़(म.प्र)
06-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
07-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा,छतरपुर
08-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा,दमोह
09-एस आर सरल,  टीकमगढ़
10-डां देव दत्त द्विवेदी,बडा मलेहरा
11-जयहिन्द सिंह 'जयहिन्द', पलेरा
12-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी      
13-रामेश्वर राय परदेशी टीकमगढ़ (मप्र)
14-परम लाल तिवारी,खजुराहो (मप्र)
15- रामानंद पाठक 'नंद' नैगुवां, निबाड़ी
16-गीता देवी,औरैया उत्तर प्रदेश
17--कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़
18-अमर सिंह राय,नौगांव-छतरपुर
19-गणतंत्र ओजस्वी, खरगापुर
20-राम कुमार शुक्ल,चंदेरा
21-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.
22-प्रभु दयाल स्वर्णकार 'प्रभु' ग्वालियर
23- वीरेन्द चंसौरिया ,टीकमगढ़

😄😄😄जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄



                              संपादकीय-

                           -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 

               साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
            इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे। 
          हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
  हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के द्वय एडमिन के रुप शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) है।
           हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
     आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
      एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।     
                 हमारे इस छोटे से प्रयास से आज यह ई-बुक गुट्ट 83वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
     यह पटल  के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 85 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 78 देश के लगभग 60000 से अधिक पाठक अब  तक पढ़ चुके हैं।
  आज हम ई-बुक की श्रृंखला में  हमारे पटल  जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह गकइया 85वीं ई-बुक लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है। ये सभी रचनाएं पटल के साथियों  ने बुंदेली दोहा 43योगिता-दिये गये बुंदेली दोहा  बिषय- गकइया  पर शनिवार दिंनांक-08-01-2022 को सुबह 8 बजे से रात्रि 8 बजे के बीच पटल पर पोस्ट की गयी हैं।  कमेंट्स के रूप में आशीर्वाद दीजिए।
  अतं में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
           धन्यवाद, आभार
  ***
दिनांक-09-01-2022 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)

                     -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
                टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
                   मोबाइल-91+ 09893520965

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01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)



अप्रतियोगी दोहा-

*बिषय- गकइया*

भटा गकइयां खा गये, 
हनकै वे श्रीमान।
पेट पिरानो जोर से, 
आफत में है जान।।
***

*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
🥗🥙🌿☘️🍁💐🥗🥙🌿☘️🍁💐

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2-अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा ,टीकमगढ़ 



👌😊*गकइयाँ*😊👌
  -*-*-*-*!!@!!*-*-*-*-
संतन खां गक्कड़ बनत, 
बनत देव खाँ रोट।
 भटा गकइयाँ अपुन खां,
जी के जादां वोट।।

लग गव कंडी कौ बिटा,
               दगर हो गइ आग।
सिकीं गकइयाँ मौंन दै,
            भुंजे भटा कौ साग।।

मजा गकइयंन सें अधिक,
             चार जनन में आत।
मिल जुरकें भूंजें भटा,
            सबइ बैठ कें खात।।

लासुन की चटनी पिसै,
                बनें उर्द की दार।
घी में लोरत खाइये,
            भटा गकइयाँ चार।।

दाल बाफले ना खुबें,
            भटा गकइयाँ खात।
दाल बाटियाँ चूरमा,
            चटनी में मन रात।।

एक दिना हो जान दो,
              भटा गकइयाँ दार।
लासुन की चटनी पिसे,
                कैसउ बैठें चार।।

भटा गकइयाँ चूरमा,
              हो उरदन कि दार।
लासुन की चटनी पिसै,
             खाव पालथी मार।।

आज गकइयन में मिलो,
              देशी घी कौ स्वाद।
चटनी भर्ता चूरमा,
              पापर दार सलाद।।

खांइ गकइयाँ उनइ की,
              गाय उनइ के गीत।
हजम हुईं जो गकइयाँ,
               चले चैतुआ मीत।।
           
            *!@!@!*

😊-अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा, टीकमगढ़ 
                   
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03-गोकुल यादव,नन्हीं टेहरी,बुढेरा (म.प्र.)


🙏🌹बुन्देली दोहे🌹🌹विषय-गकइया🌹🙏
**********************************

कोउ खात मजबूर हो, कोउ  सोंक की  खात।
दोइ गकइंयन में हमें, सुख दुख साफ दिखात।।

मजा गकइयाँ देत जब,  पूरी हो  जा सर्त।
घी में  सपरें  डूब कें, होय  भटा कौ  भर्त।

असल  गकइयाँ  बेइआ, बनें  सेर में पाँच।
गतकौ  मारै  खबइया,  पथरा  परै  दराँच।

कंडी होबें  बिनउअल, भटी  छोड़बै  ताव।
खरीं गकइयाँ सेंक कें,चुपर भर्त सँग खाव।

धूनी  तापें  संत  जन,  सेंकें  गक्कड़  चार।
खाँय, गाँय गुन राम के, हों भव सागर पार।
****************
✍️गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी(बुडे़रा)

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04-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा



सैंक गकइया खाव जू ,
चैन चान सें राव।
आलू वैगन साक हो ,
घी चटनी सें खाव ।।
***
शोभाराम दाँगी , इंदु, नदनवारा जिला-टीकमगढ़

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05-संजय श्रीवास्तव, मवई (जिला-टीकमगढ़)
      
*1*
 जीकी खाईं गकइयाँ,
ऊके गाये गीत।
स्वारथ के संसार में,
काम परे के मीत।।        
    *2*
  
चार गकइयाँ चून की,
      चटनी मिर्चीदार।
चाचा खा रय चाव सें,
       लै लै कें चटकार।।
      ***
        संजय श्रीवास्तव, मवई
          ३-१-२२😊दिल्ली


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6-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)

बुंदेली विषय, गकइया

घी गुर संगे गकइया , जैउत ओरछा धीश।
कुपरा सजो प्रसाद को ,खा रय उठा कपीश।।
,,
सिलगा तिलगा होरि को, गककू पउत किसान।
नोन प्याज मिरचा घना, स्वीकारो भगवान ।।
,,
कललू कइरय ओइ सें , कंडन भटी जलाय।
चार गकरियां सेंक दो , ब्याई म्याई हो जाय।।
,,
बंदू कर रय वन्दना धरें गकरियाँ जोर।
सबकी भूँख मिटाइयो ,दियो न कभउ विलोर।।
,,
मावठ दे रइ दौंदरा , नक्कू भींजीं राय।
टपरा तरें किसान भइ, गक्कू रहे बनाय।।
,,
तापत कंडा बारकें , गा रय बाबा गीत।
भटा गकरिया खायकें ,चले चेतुआ मीत।।
,,
दूध गकरियां मींड़कें ,घोटा को गुर खात।
लेत उरइयाँ मेंड़ पे ,देवता लो मुस्क्यात।।
,,
गईये कुत्ते खुवाकें ,खवा राम भगवान ।
जैउत प्रमोद कलेवा ,दूध गकइया सान ।।
                      ***               
,,,,     -प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
        स्वरचित मौलिक
                                
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07-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा,छतरपुर


अप्रतियोगी दोहा
1- 
अपनी अपनी गकइया , 
    सेंक रहे सब लोग ।
    सबके काम की गकइया ,
    कौ विगरो संजोग ।
2-
भर्त गकइया बनत जब ,
    खबत लगा कर भोग ।
    जो कउ बनावे चूरमा ,
    स्वाद न कैवे जोग ।
3-
भूंक होय दो चार की ,
    सात आठ खबजायें ।
    अदकच्ची भर होय ने , 
    साजी जो सिकजाय ।
4- 
लगत गकइया गुरीरी ,
     सूकी लो खबजाय ।
     बनत गकइया देख ब्रज ,
     जी इतनो ललचाय ।
5-
लरका बिटिया नारी नर ,
    खात पियत बतयाँय ।
    सिकी भटी की गकइयाँ , 
    भारी बिकट मिठायँ ।।
***
-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा

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8-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी", दमोह
 

जय ‌बुन्देली साहित्य समूह टीकमगढ़

विषय- गक‌इया बिना -दोहा 

बिर्रा की रूखन तरें, भर्त गक‌इया खाव।
पनो मठा गुर घी‌ मिले‌,तौ‌ फिर खात‌‌इ  जाव।।

बने गक‌इयां ऊ जगा, झिन्ना जहां बहात 
अतकारीं दो चार ठो,बिन खायें खब जात।।

कंडा कंडी की भटी, चाय जहां सिलगाव।
टिक्कड़ बाटी गक्कड़े,ढबुआ में हो खाव।।

चना गेऊं कौ पीसनो,गीलो बटरा नोन।
बने गक‌इयां प्रेम सें, घी कौ देकें मोंन।।

सबरे में है कोयलो,ताप ‌बड़ेदा लेव। 
टिक्कड़ कौ ठोंगायरों,लमटेरा गा लेव।।

घी गुर भर्ता आम कौ,पनो ‌मठा मिल जाय।
 एक गक‌इये  प्रेम की ,देव रहे ललचाय।।
🙏🙏🌹🌹

स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित

भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा, दमोह
 
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*09-एस आर सरल,  टीकमगढ़


क़न्डन की भटिया लगत ,
ज़ब होरी तेहार ।
छुपर गकइया गुर धरै,
खात सबइ परिवार।।

    एस आर सरल,  टीकमगढ़

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*10*-डां देव दत्त द्विवेदी,बडा मलेहरा

🥀
काम सटो दुख बिसर गव,
जा दुनिया की रीत।
खायँ गकइया काउ की,
गायँ काउ के गीत।।
***
डां देव दत्त द्विवेदी,बडा मलहरा, छतरपुर

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11-जयहिन्द सिंह जी 'जयहिन्द', पलेरा

प्रतियोगी दोहे...
बारऊँ मइना भाउतीं,गरमी हो या शीत।
भटा गकइया खाय कें,चले चैतुवा मीत।।
                   
                    #1#
व्याव बरातें तीरथन,हौबै सबै उमंग।
चिन्ता दुख या गरीबी,देत गकइया संग।।
                    #2#
सबके जो दिल में बसे,राजा रंक फकीर।
भटा गकइया संग दै,काटै सबकी पीर।।
                    #3#
होय गरीबी अमीरी,शैर सपाटा होय।
भटा गकइया होय तौ,खाय परौ सुख सोय।।
                    #4#
कंडा की आगी सिकें,भाबै तब हर कौर।
घास गकइया खात रय, राणा से सिरमौर।।
                    #5#
भटा गकइया कौ मजा, भूलत नइयाँ यार।
सुख दुख की संगी सदा,महल होय या हार।।
                    #6#
जनम मरन तक नकइया,देती सदा उमंग।
कुटिया हो चाय हवेली,देत गकइया संग।।

#मौलिक एवम् स्वरचित#
***
-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़

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   12-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी       


चून माँड़ कें मोंन दै,
कंडी तुम सिलगाव।
देशी घी सें चुपर कें, 
भटा गकइया खाव।।
          ***
अंजनी कुमार चतुर्वेदी ,निवाड़ी
-***

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13-रामेश्वर राय परदेशी टीकमगढ़ (मप्र)

प्रतियोगी दोहा

बनत गक इयां काय सें
बिन पानी बिन चून
भींजे कंडा नक इयां
पिय बिन लगै  बिहून ।।
रामेश्वर राय परदेशी टीकमगढ़ मप्र
**
स्वरचित एवम मौलिक
रामेश्वर राय परदेशी टीकमगढ़ मप्र

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14--परम लाल तिवारी,खजुराहो


खाव गकइया भटा संग,
कैथा चटनी बांट।
ऊधम करो न खाय के,
परे न काहू डांट।।
***
परम लाल तिवारी,खजुराहो


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15-रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां

स्वामी जू की पूजा,
चैत मांस में जोग।
दूजौ सोमवार लगै,
भर्त गकइया भोग।।

***
-रामानन्द पाठक नन्द नैगुवां

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16-गीता देवी,औरैया उत्तर प्रदेश


सदा गकइया संग घ्यू,
नोनों लागे यार। 
तातो तातो भर्त सों, 
खावौ सब परिवार।। 
***
-गीता देवी,औरैया (उत्तर प्रदेश)

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17--- कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़


भटा गकइया खात रय ,
 मजबूरी में यार ।
भटा गकइया बन गये ,
 अब शाही आहार ।।
***

  --- कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़

         ( मौलिक एवं स्वरचित )

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18-अमर सिंह राय,नौगांव-छतरपुर
                         

कृषक हार डेरा डरो,
फसल उजर नहिं जाय।
ठोक गकइयाँ खा रहो, 
भाजी  संग  लगाय।।

***
मौलिक-
                        - अमर सिंह राय
                         नौगांव-छतरपुर

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   19-गणतंत्र ओजस्वी, खरगापुर
चटनी बाँटी चाव सैं, 
धरौ आग में चून!
खबैं गकइयाँ सौंक सैं, 
प्रेम बड़े दिन दून!!
****
-गणतंत्र ओजस्वी, खरगापुर   

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20-राम कुमार शुक्ल,चंदेरा

है गरीब कौ नेवतौ,
सबरी सौ मम हाल।              
भटा- 'गकइया' की हुये,
येंतवार है काल।।

                  -राम कुमार शुक्ल,चंदेरा
        ***

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*21*-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.
दादी भुंसारे उठी, 
बनीं गकइयां चार।
पोंचा दव फिर खेत पे, 
बब्बा कों भुंसार।।
***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.
***

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*22*-प्रभु दयाल स्वर्णकार 'प्रभु' ग्वालियर
सिकी गकइया दार सँग,
घी बुरमा मिल जाय।
भौत मजा आ जाउनें,  
गरम गरम  जो खाय।।
***
-प्रभु दयाल स्वर्णकार 'प्रभु' ग्वालियर
****


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*23*- वीरेन्द चंसौरिया ,टीकमगढ़
खाव गकइया ठण्ड में,
रोज सुबह उर शाम।
मजा आयगौ आपखों,
बोलौ जय श्रीराम।।

-वीरेन्द चंसौरिया ,टीकमगढ़

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🎊 🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊




 💐😊गकइया😊💐

                   (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)
      संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की
                85वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 09-01-2022

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Rajeev Namdeo Rana lidhori ने कहा…
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