💐😊हाड़ 😊💐
(बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)
संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
की प्रस्तुति
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 05-01-2022
टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
मोबाइल-9893520965
🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊
अनुक्रमणिका-
अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)
01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02- प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़(म प्र)
03-अशोक पटसारिया,लिधौरा (टीकमगढ़)
04-गोकुल प्रसाद यादव,बुढेरा (म.प्र)
05- शोभाराम दाँगी , इंदु, नदनवारा
06-संजय श्रीवास्तव, मवई,टीकमगढ़(म.प्र)
07-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
08-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा, जिला छतरपुर
09-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा,दमोह
10-एस आर सरल, टीकमगढ़
11-डां देव दत्त द्विवेदी,बडा मलेहरा
12-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
13-जयहिन्द सिंह 'जयहिन्द', पलेरा
14-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी
15-रामेश्वर राय परदेशी टीकमगढ़ (मप्र)
17- रामानंद पाठक 'नंद' नैगुवां, निबाड़ी
18-गीता देवी,औरैया उत्तर प्रदेश
19--डां. आर बी पटेल "अनजान",छतरपुर
20--कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़
21-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
22- डॉ. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
23-अमर सिंह राय,नौगांव-छतरपुर
😄😄😄जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
संपादकीय-
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे।
हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के द्वय एडमिन के रुप शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) है।
हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।
हमारे इस छोटे से प्रयास से आज यह ई-बुक गुट्ट 83वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
यह पटल के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 84 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 76 देश के लगभग 60000 से अधिक पाठक अब तक पढ़ चुके हैं।
आज हम ई-बुक की श्रृंखला में हमारे पटल जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह हाड़ 84वीं बुक लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है। ये सभी रचनाएं पटल के साथियों ने दिये गये बुंदेली दोहा लेखन बिषय- हाड़ पर सोमवार दिंनांक-03-01-2022 को सुबह 8 बजे से रात्रि 8 बजे के बीच पटल पर पोस्ट की गयी हैं। कमेंट्स के रूप में आशीर्वाद दीजिए।
अतं में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
धन्यवाद, आभार।
***
दिनांक-05-01-2022 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
मोबाइल-91+ 09893520965
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01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)
**बुंदेली दोहा-"हाड़"*
*१*
हाड मांस को तन बनो,
मन चंचल हो जात।
मनमानी जो करतई,
घुरा टूट फिर जात ।।
***
*२*
जाड़ों ऐसो पर रओ
हांड मांस हिल जात।
बूढ़न खां ऐसो लगे,
रक्त जिगर जम जात।।
***
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
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02-प्रदीप खरे,मंजुल, टीकमगढ़ (मप्र)
*बिषय...हाड़*
03.01.2021
हाड़ कपत सर्दी परी,
जानें अब का होय।।
परौ उगारौ खेत पै,
करै मदद नहिं कोय।।
2-
मैगाई डायन बनी,
खाय जात बा राज।।
हाड़ माँस मौरे भयै,
सूख ठठेरौ आज।।
3-
इत्र बना बेंचत फिरे,
हाड़ घिसे हम रोज।
छापा मार सब लियौ,
मिटा दऔ है खोज।।
4-
हाड़न खौं हरदी लगी,
ब्याऔ लागी लाग।।
पथरा छाती पै धरैं,
गा रय घर कौ राग।।
5-
काय पै तैं गरब करै,
तौरौ तौ कछु नाय।।
हाड़ मांस की झोपड़ी,
जानें बर कब जाय।।
***
-प्रदीप खरे,मंजुल, टीकमगढ़ (मप्र)
🤔😂😂🤔
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3-अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा ,टीकमगढ़
😊👍(((हाड़)))👍😊
*@:!!:@:!!:@:!!:@*
गुरा गुरा चीवन लगे,
नस नस बढ़ गइ पीर।
हाड़ हींस रय ठंड में,
दया करौ रघुवीर।।
स्वांस हमाई नींव है,
जी पै खड़ो मकान।
हाड़ मांस की देह में,
बैठौ चेतन प्रान।।
हाड़न कीं ईंटे लगीं,
गारौ मज़्ज़ा मांस।
खूनइ कौ पानी लगौ,
नींव महल की सांस।।
आय हते हरि भजन खों,
भव माया सें नेह।
एक दिना जल जाउने,
हाड़ मांस की देह।।
हाड़ लकइयंन से जरे,
केश जरे ज्यों घास।
सोने सी काया जरी,
कोउ न आओ पास।।
भौत पैल हुलकी परी,
हतौ माइ कौ ताव।
जां खोदौ हाड़इ मिलत,
मरे थोक के भाव।।
*!@!@!*
😊-अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा, टीकमगढ़
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04-गोकुल यादव,नन्हीं टेहरी,बुढेरा (म.प्र.)
🙏🌹बुन्देली दोहे🌹🌹विषय-हाड़🌹🙏
**********************************
गुरिया गुरिया जोर कें, रचो मनुस कौ झाड़।
दो सौ सें ऊपर जडे़, मानव तन में हाड़।
जियत बाप खाँ देत रय,झिड़की और लताड़।
मरे बाप के डार रय, तिरबेंनी में हाड़।
पियत खात में रात में,बन गव तिल कौ ताड़।
लाठी डंडा टूट गय, संगै टूटे हाड़।
छै बिटियन पै पूत भव, पालो करकें लाड़।
कुँवर तौउ नइं पनप रव, गिनें दिखा रय हाड़।
नयी साल लगतन परो, जाडौ़ कोडा़काड़।
पतरी सुर्रक चलत सो, कपत दिनइं में हाड़।
**********************************
✍️गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी(बुडे़रा)
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05-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा
1=
हाड मांस कौ पूतरौ, है भौतइं अनमोल ।
जगमें नौनी रहन करो, रस में विष न घोल ।।
2=
हाड मांस की देहिया,जाकौ गरव न कींह ।
जरकैं मिटटी में मिलै,धरम-करम खां चींह ।।
3=
जर जानें ई हाड खों,आय कछु नै काम ।
जासें पर उपकार कर ,मरैं मिलैं न दाम ।।
4=
ढोरन के भी हाड सोउ, भर -भर ठेला जांय ।
इनकौ धंधौं करत जो , रूपया खूब कमांय ।।
5=
ठंड कररी परन लगी, सबरौ हाड कपात ।
ओड रजाई दुबक गये ,कै गुरसी पै ताप ।।
***
शोभाराम दाँगी , इंदु, नदनवारा जिला-टीकमगढ़
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06-संजय श्रीवास्तव, मवई (जिला-टीकमगढ़)
*सोमबारी बुंदेली दोहे*
विषय - *हाड़*
*१*
हाड़ माँस को आदमी,
जीते सब संसार।
हाड़ माँस को आदमी,
माने बैठो हार।।
*२*
हाड़न पे हरदी चढ़ी,
चढ़ गव तेल फुलेल।
गौर करत, मन में गुनत,
लगन लगत सब खेल।।
*३*
हाड़, पसुरियाँ टूट गइं,
ऐसी परी चपेट।
माता के दरबार सें,
लौटे कफ़न लपेट।।
*४*
हाड़ तोड़ सरदी परी,
तन-तन ढूंकत घाम।
भरी दुपरिया में लगे,
जैसें हो गइ शाम ।।
*५*
हाड़, हाड़ में हिलग रय,
बचो तनक सो माँस।
नशा करे सें तन घुनो,
जीवन सत्यानाश।।
***
संजय श्रीवास्तव, मवई
३-१-२२😊दिल्ली
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7-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ एमपी
सोमवार 3 जनवरी 2022
बुंदेली दोहा विषय, हाड़,
रुजवा खा गय खेत सब ,का रखांय तुम हाड़।
धरे सांतरि सुसा रये , प्रमोद मुड़ि तो काड़ ।।
,,
कररे हाड़ किसान के , सह रओ सबरी ठंड।
सब रातन खेतन घुसो , प्रमोद काय को दंड।।
,,
हाड़ खोखला हो चले, कां लों करवें काम।
कृषक कात पिरमोद सौं , कवे मिले आराम।।
,,
हाड़ कपा रई ठंड जा , पैड़े परे किसान।
तिरका तीन प्रमोद भय,रक्षक हैं भगवान।।
,,
ठंडी रातें पूष की , लगरई हाड़ चबायें।
बीच खेत पिरमोद जू ,पानी खड़े बरायें।।
,,
बज्जुर सी छाती करें , पेटन् पालनहार।
खुद भूंको पिरमोद रत ,पाल रहो संसार ।।
,,
हाड़न पे हरदी लगत ,सुन प्रमोद दो दार।
पैली दइयां ब्याव में,दूजे घलवे मार।।
,,
धन मजदूर किसान को, सनो पसीना खून।
अधरम सें पिरमोद लव , उये जुरै नइ चून।।
,,
,,,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
स्वरचित मौलिक
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08-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा,छतरपुर
विषय हाड़
1
हाड़ कपै ठिठुरन बढ़ी,
बढ़तइ जात अपार।
आज घटै अब तो घटै,
घटी न कौन विचार।
2-
हाड़ मांस व खून सें,
अपनो बनो शरीर।
जनम भओ नरतन मिलो,
करी कृपा भरपूर।
3-
मेघनाद लक्षमन लड़े,
नहीं जीत की आस।
हाड़ मास वर्षा करी,
पौच असुर आकाश।
4-
मरे निशाचर भालू कपि,
रन में डरे अपार,
हाड़ मास खों चीथबें,
गीदड़ स्वान सियार।।
***
-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
🎊 🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
9-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी", दमोह
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
हटा दमोह( मप्र )9098355406
विषय :-हाड़ पर बुंदेली दोहे
🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹
बिटिया क्वांरी जी घरे,उये कहां है चेन।
हाड़ सोस में घुन गये,भरें रांय नित नेन।।
बीच गेल में पकर कें ऐसी मारी मार।
हाड़ टोर दय पुलस ने,चोर पकर लये चार।
हाड़ बांस सम घुन गये,रकत मास गयो सूक।
जब सुद आबे कर्ज की,उठत हित में हूक।।
प्रेम रोग के रोगियां,इनको आदि ना अंत।
हाड़ मास सूकत रकत,ज्यों अनुरागी संत।।
हाड़ मास का पींजरा,ता पर करत गुमान
माटी में मिल जायेगा,रे मूरख नादान।।
हाड़ चबाबे कूतड़ा,मरम उसे न होय।
रकत चचोरे खुदइ कौ, जानत हैं सब कोय।।
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित
🙏🙏❤️❤️🌹🌹🙏🙏
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित
भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा, दमोह
🎊 🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊
*10-एस आर सरल, टीकमगढ़
बुन्देली दोहा #ठंड #
ठंड कड़ाके की परी, बाहर कड़ नइँ पाँय।
हाड़ मास ठंडे धरे, बैठे आग जलाँय।।
बब्बा बउ बातें करें, भौड़ा परों मुचंड।
आसुन की ई साल में,हाड़ फोर है ठंड।।
ठंडौरा में आग बिन,चलें न विल्कुल चाल।
हाड़ क़पत हैं ठंड सै, बिदो बुरव जंजाल।।
हाड़ मास उर रक्त पै,चमड़ी चदर समान।
चारो मिल चोला बनों, जीमे बसत पिरान।।
सूके हाड़ गरीब के, खाबे नइया अन्न।
कब अच्छे दिन आँवने,कब होने चेतन्न।।
***
एस आर सरल, टीकमगढ़
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*11*-डां देव दत्त द्विवेदी,बडा मलेहरा
🥀 बुंदेली दोहे (विषय हाड़)🥀
बिनती में मानें नहीं,
निसदिन भोग मगायँ।
सरकारी दइ- देवता,
सूके हाड़ चबायँ।।
बेदरदी आये नहीं,
फिर लग परौ असाड।
खटका में घुन से परे,
भीतर भीतर हाड़।।
देखत के जित्ते भले,
उत्तइ बडे गमार।
सूके हाड चचोरबें,
अपनें लम्मरदार।।
मों कीं माछीं ना उडें,
ठेलन जांय पहार।
बिदे हाड में हाड तउ,
रोज बिदैबें रार।।
कैसउ कल्लू काबरी,
घर भीतर तौ आय।
क्वांरे हाडन खों गुरू,
हरदी भर चड जाय।।
***
डां देव दत्त द्विवेदी,बडा मलहरा, छतरपुर
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*12-* प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
बुंदेली दोहे विषय हाड़
पल्लीं में पिल्ला परे, निठुर पिया परदेस।
हाड़ ठिठुर रय ठंड सें, मन में भारी ठेस।।
सारंगें अब कां बचीं ,उतरन लगो असाड़।
हरदी नइँ चड़ पाइ है,हींसत रै गय हाड़।।
ऐसी लत कां सें लगी,लपलपात रत डाड़।
भौत कुसर रइ जो बचे, हैं कुटतन सें हाड़।।
ऐबी तौ हैं जनम के, करें बड़न की आड़।
ई सें अब तक बे बचे, फूटे नइँयां हाड़।।
हाड़ मांस की देह सें, कितनों करत सनेह।
अब तौ उठती हाट है,करौ राम सें नेह।।
***
- प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
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13-जयहिन्द सिंह जी 'जयहिन्द', पलेरा
#हाड़ पर दोहे#
#1#
हाड़ मास का पींजरा,करतब करै बिलात।
कभौं रुकायें ना रुकै,दिल धड़कत दिन रात।।
#2#
रिषी मुनी भारी डरें,हींसत उनके हाड़।
जौंन डाँग में ताड़का,हाड़न लगे पहाड़।।
#3#
जब दधीचि के हाड़ सें,शिव कौ धनुष बनाव।
जौ टौरै ऊ धनुष खों,करैं सिया कौ ब्याव।।
#4#
ठंड परत जब कड़क कें,ऐसैं हींसत हाड़।
सामें जैसें ऊँट के,अड़ गव होय पहाड़।।
#5#
ऊँची बन र इ हबेली,कारीगर सकुचाय।
नैचैं देखत हींसबें,हाड़ कपैं डर जाय।।
***
-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़
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14-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी
बुंदेली दोहे। 3 ।1। 22
विधा दोहे
प्रदत्त शब्द हाड़
तनखा में मन ना भरै, दम सें रिश्वत खायँ।
सरकारी भड़या कछू, सूके हाड़ चबायँ।।
पड़तन में जै जनन नें,जम कें घोरे हाड़।
वे महलन में रै रहे,चाँदी जड़े किवाड़।।
हाड़ माँस सें बनौ तन,भौतइँ है अनमोल।
जी में विराजे राम जी,समर समर कें बोल।।
मठा महेरी खाय सें, जुरवैं टूटे हाड़।
गूँगा बोलै हरि कृपा,लूला चड़ै पहाड़।।
छोटे में सबखां मिलौ, खूब प्यार औ लाड़।
व्याव बाद देखौ बचे,केवल सूके हाड़।।
अंजनी कुमार चतुर्वेदी ,निवाड़ी
-***
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15-रामेश्वर राय परदेशी टीकमगढ़ (मप्र)
मरे जात हैं व्याव खों
कैसें होत जुगाड़।
बिटियां मारीं पेट में
लगै न हरदी हाड़।।
स्वरचित एवम मौलिक
रामेश्वर राय परदेशी टीकमगढ़ मप्र
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16--परम लाल तिवारी,खजुराहो
1-
जिनके मोटे हाड़ हैं,करें काम दिन रैन।
काम कभऊ बढात न,परे न तनकउ चैन।।
2-
नारी लम्बी हाड़ की,ऊंची पूरी ऐंन।
छवि की होय सुहावनी,हरे छैल को चैन।।
3-
शीत लहर रोजउ चले,कांपे सबके हाड़।
जीवो जो मुश्किल करे,है हत्यारो जाड़।।
4-
हाड़ मांस की देह जा,मानुस की अनमोल।
स्वांस स्वांस से नाम जप,मनुआ बने अलोल।।
5-
सबके तन को हाड़ जो,है आगी को भोग।
संत संग को पाय के,काटो भव के रोग।।
***
परम लाल तिवारी,खजुराहो
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17-रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां
दोहा हाड
रचौ यंत्र करतार ने,होत बडौ अनमोल।
हाडन कौ आधार है,दिखवै ऊपर खोल।
2
हाड मांस की देह जा,बना दई करतार।
अंत समय माटी मिलै,नासवान संसार।
3
हिस्सा तीन हैं हाड के,चौथाई है मांस।
रयें सुरक्षित हाड़ जेइ, रघुराई सें आस।
4
आय अमानत राम की,राखौ देह समांर।
हाड अंत तक बनै रय,होवै जौ भव पार।
5
हड फूटन हो हाड सें,हींन कबहुं न दिखाय।
ऐडाई जब लेत है,जानों कछु वौ पाय।।
***
-रामानन्द पाठक नन्द नैगुवां
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18-गीता देवी,औरैया उत्तर प्रदेश
हाड़ (03/01/2022)
भौतइ जाडौ़ होत है, अकड़ गयै सब हाड़।
बूढ़न पै तो गिर पड़ौ, गरुओ शीत पहाड़।।
हाड़ देख कूकर भगैं,साँचइ कय रय बात।
लारौ टपकत जीभौ सुनै,भौतइ रय ललचात।।
हाड़ माँस सों बनौ, सबइ मनइ खौं गात।
नोनों सों इक हिय बसै। ध्यान धरौ दिन रात।।
हाड़ टूट नायै सकैं, ऐसन मरियो मार।
गुरुजी जोरै हाँत सों, कह रय बारंबार।।
पाँय उपानन है नहीं, मूड़ौ पै नहि झाड़।
चचा सदा खेतन बसैं, अकडे़ जायं हाड़।।
***
-गीता देवी,औरैया (उत्तर प्रदेश)
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19--डां. आर बी पटेल "अनजान",छतरपुर
दोहा हाड़
01
हाड़ मांस का पींजरा,
जब लौ अंदर स्वांश ।
तब लौ हंसा चलते हैं,
चलत न आवै खास ।
02
हाड़ मांस में बसत है,
हंसा सुनो प्रान ।
हंसा निकरत तन तजै,
जानत सकल जहान ।
03
घर समाज परिवार को,
हाड़ मांस से प्रेम ।
हंसा निकसत त्याग दें,
यही समाजे नेम ।
04
ऐब करत में नहिं डरे,
फिरता लुटाए हाड़ ।
कब हूं सामू होत जो,
टोल बनादें मांड ।
05
ऐसी लत कब से लगी,
खान लगे थे खांड ।
अब शक्कर बढ़ गयी है,
कैसे बचहैं हाड़ ।।
***
-डां. आर बी पटेल "अनजान",छतरपुर
🎊 🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉
20--- कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़
भरपेटाँ आहार की , जिनखों नहीं जुगाड़ ।
बेचारन के देखलो , हिलगे रत दो हाड़ ।।
हाड़-माँस कौ पींजरा , तब लौं हीरा हंस ।
जब लौं ऊके भीतरै , है ईसुर कौ अंस ।।
जियत-जियत तक देह सें,होत मोह उर लाड़ ।
मरबे पै नदियँन सिरत , सबइ जनन के हाड़ ।।
मानव सें जादाँ रहत , पशुअन की औकात ।
मरजाबे पै खाल खुर , हाड़ सींग बिक जात ।।
मौंडी़ं घट रइं हर जगाँ , होरव भौत उजाड़ ।
कैउ अभागे हींड़ रय , लगी न हरदी हाड़ ।।
--- कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़
( मौलिक एवं स्वरचित )
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21-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
बुन्देली दोहा
बिषय- हाड़
1-
पुन्य दाहिनी नर्मदा
गंगा जेसी बाड़
मात पिता के डारिवो
जाके भईया हाड़
2
हते चिकने चादने
अब कड़ आये हाड़
जिदना से दारू पिये
रोजीना की पाड़
3-
बाप कुँवारे मर गये
हरदी लगी न हाड़
करि नार संतान है
बातन की दये बाड़
4-
गाली गुजुवा जे करें
पैला बन गये साड
टुक टुक दारू पी भये
भईया मोरी ढीले हाड़ ।।
***
-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
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22- डॉ. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
दोहे - विषय 'हाड़'
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
1 हाड़न में हरदी लगी,
ब्याब रचो है आन।
आधी उमर निकर गई,
काय बघारौ शान।।
2 हाड़ मांस की कोठरी,
जो शरीर बन जात।
करो भजन दिन रात तुम,
रोग लिगा ना आत।।
3 हाड़िया रोज भगाने,
ठंड कपत जे हाड़।
बिजूका तो टांक दओ,
ऊपर आ गौ झाड़ ।।
4 हाड़ कपत रै ठंड में,
पल्ली कबऊं न पाई।
हाड़ बने जब फूल जे,
बब्बा की सुध आई।
5 हाड़ हाड़ जा बेन भई,
दांती कर रई सास।
कुपरा हल्को सो मिलो,
बड्डे की थी आस।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
-डॉ. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
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बुन्देली दोहे दिनाँक-03/01/2022
ठंडी बेजा पड़ रही, थर-थर कप रय हाड़।
होत भोर कुहरा दबै, दिखै न नदी, पहाड़।
अबइ काम की है परी, ठंड कपा रइ हाड़।
आफ़त ढोरन खाँ विकट,खड़े रोंगटे फाड़।
काम कलंकित करत जो, ऊके फूटत हाड़।
ऐसे पटके जात वह, जैसे धोबि पछाड़।
जनीमांस जब दौन्दतइ, कहतइ तोरे हाड़।
कछू सामनू नइ लड़त, गुरगुरात दै आड़।
क्षिति जल पावक गगन अरु,पंचम तत्व समीर।
हाड़- मांस मिलकेँ बनो, बोलत जिये शरीर।
जुरत-जुरत जुर जात जब, पुन्य, मांस अरु हाड़।
मिलत मनुज तन मन खुशी,रुकतन साँस उजाड़।।
***
मौलिक/-
- अमर सिंह राय
नौगांव-छतरपुर
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💐😊हाड़😊💐
(बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)
संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
की प्रस्तुति 83वीं ई-बुक
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 05-01-2022
टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
मोबाइल-9893520965
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