Rajeev Namdeo Rana lidhorI

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2022

इतिहास जो पढ़ाया नहीं जाता....राना लिधौरी

इतिहास जो पढ़ाया नहीं जाता....

भाग-1
 *खोयी हुई, या गायब की हुई इतिहास की एक झलक 

*622 ई से लेकर 634 ई तक मात्र 12 वर्ष में अरब के सभी मूर्तिपूजकों को मुहम्मद ने  तलवार से जबरदस्ती मुसलमान बना दिया! (मक्का में महादेव काबळेश्वर (काबा) को छोड कर!)*

*634 ईस्वी से लेकर 651 तक, यानी मात्र 16 वर्ष में सभी पारसियों को तलवार की नोंक पर जबरदस्ती मुसलमान बना दिया!*

*640 में मिस्र में पहली बार इस्लाम ने पांँव रखे, और देखते ही देखते मात्र 15 वर्ष में, 655 तक इजिप्ट के लगभग सभी लोग जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*नार्थ अफ्रीकन देश जैसे अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को आदि देशों को 640 से 711 ई तक पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म में जबरदस्ती बदल दिया गया!*

*3 देशों का सम्पूर्ण सुख चैन जबरदस्ती छीन लेने में मुसलमानो ने मात्र 71 वर्ष लगाए!*

*711 ईस्वी में स्पेन पर आक्रमण हुआ, 730 ईस्वी तक स्पेन की 70% आबादी मुसलमान थी!*

*मात्र 19 वर्ष में तुर्क थोड़े से वीर निकले, तुर्कों के विरुद्ध जिहाद 651 ईस्वी में आरंभ हुआ, और 751 ईस्वी तक सारे तुर्क जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*इण्डोनेशिया के विरुद्ध जिहाद मात्र 40 वर्ष में पूरा हुआ! सन 1260 में मुसलमानों ने इण्डोनेशिया में मारकाट मचाई, और 1300 ईस्वी तक सारे इण्डोनेशियाई जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान, जॉर्डन आदि देशों को 634 से 650 के बीच जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*सीरिया की कहानी तो और दर्दनाक है! मुसलमानों ने इसाई सैनिकों के आगे अपनी महिलाओ को कर दिया! मुसलमान महिलाये गयीं इसाइयों के पास, कि मुसलमानों से हमारी रक्षा करो! बेचारे मूर्ख इसाइयों ने इन धूर्तो की बातों में आकर उन्हें शरण दे दी! फिर क्या था, सारी "सूर्पनखा" के रूप में आकर, सबने मिलकर रातों रात सभी सैनिकों को हलाल करवा दिया!*

*अब आप भारत की स्थिति देखिये!*

*उसके बाद 700 ईस्वी में भारत के विरुद्ध जिहाद आरंभ हुआ! वह अब तक चल रहा है!*

*जिस समय आक्रमणकारी ईरान तक पहुँचकर अपना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर चुके थे, उस समय उनकी हिम्मत नहीं थी कि भारत के राजपूत साम्राज्य की ओर आंँख उठाकर भी देख सकें!*

*636 ईस्वी में खलीफा ने भारत पर पहला हमला बोला! एक भी आक्रान्ता जीवित वापस नहीं जा पाया!*

*कुछ वर्ष तक तो मुस्लिम आक्रान्ताओं की हिम्मत तक नहीं हुई भारत की ओर मुँह करके सोया भी जाए! लेकिन कुछ ही वर्षो में गिद्धों ने अपनी जात दिखा ही दी! दुबारा आक्रमण हुआ! इस समय खलीफा की गद्दी पर उस्मान आ चुका था! उसने हाकिम नाम के सेनापति के साथ विशाल इस्लामी टिड्डिदल भारत भेजा!*

*सेना का पूर्णतः सफाया हो गया, और सेनापति हाकिम बन्दी बना लिया गया! हाकिम को भारतीय राजपूतों ने मार भगाया और बड़ा बुरा हाल करके वापस अरब भेजा, जिससे उनकी सेना की दुर्गति का हाल, उस्मान तक पहुंँच जाए!*

*यह सिलसिला लगभग 700 ईस्वी तक चलता रहा! जितने भी मुसलमानों ने भारत की तरफ मुँह किया, राजपूत शासकों ने उनका सिर कन्धे से नीचे उतार दिया!*

*उसके बाद भी भारत के वीर जवानों ने पराजय नही मानी! जब 7 वीं सदी इस्लाम की आरंभ हुई, जिस समय अरब से लेकर अफ्रीका, ईरान, यूरोप, सीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया, तुर्की यह बड़े बड़े देश जब मुसलमान बन गए, भारत में महाराणा प्रताप के पूर्वज बप्पा रावल का जन्म हो चुका था!*

*वे अद्भुत योद्धा थे, इस्लाम के पञ्जे में जकड़ कर अफगानिस्तान तक से मुसलमानों को उस वीर ने मार भगाया! केवल यही नहीं, वह लड़ते लड़ते खलीफा की गद्दी तक जा पहुंँचे! जहाँ स्वयं खलीफा को अपनी प्राणों की भिक्षा माँगनी पड़ी!*

*उसके बाद भी यह सिलसिला रुका नहीं! नागभट्ट प्रतिहार द्वितीय जैसे योद्धा भारत को मिले! जिन्होंने अपने पूरे जीवन में राजपूती धर्म का पालन करते हुए, पूरे भारत की न केवल रक्षा की, बल्कि हमारी शक्ति का डङ्का विश्व में बजाए रखा!*

*पहले बप्पा रावल ने पुरवार किया था, कि अरब अपराजित नहीं है! लेकिन 836 ई के समय भारत में वह हुआ, कि जिससे विश्वविजेता मुसलमान थर्रा गए!*

*सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने मुसलमानों को केवल 5 गुफाओं तक सीमित कर दिया! यह वही समय था, जिस समय मुसलमान किसी युद्ध में केवल विजय हासिल करते थे, और वहाँ की प्रजा को मुसलमान बना देते!*

*भारत वीर राजपूत मिहिरभोज ने इन आक्रांताओ को अरब तक थर्रा दिया!*

*पृथ्वीराज चौहान तक इस्लाम के उत्कर्ष के 400 वर्ष बाद तक राजपूतों ने इस्लाम नाम की बीमारी भारत को नहीं लगने दी! उस युद्ध काल में भी भारत की अर्थव्यवस्था अपने उत्कृष्ट स्थान पर थी! उसके बाद मुसलमान विजयी भी हुए, लेकिन राजपूतों ने सत्ता गंवाकर भी पराजय नही मानी, एक दिन भी वे चैन से नहीं बैठे!*

*अन्तिम वीर दुर्गादास जी राठौड़ ने दिल्ली को झुकाकर, जोधपुर का किला मुगलों के हाथो ने निकाल कर हिन्दू धर्म की गरिमा, को चार चाँद लगा दिए!*

*किसी भी देश को मुसलमान बनाने में मुसलमानों ने 20 वर्ष नहीं लिए, और भारत में 800 वर्ष राज करने के बाद भी मेवाड़ के शेर महाराणा राजसिंह ने अपने घोड़े पर भी इस्लाम की मुहर नहीं लगने दी!*

*महाराणा प्रताप, दुर्गादास राठौड़, मिहिरभोज, रानी दुर्गावती, अपनी मातृभूमि के लिए जान पर खेल गए!*

*एक समय ऐसा आ गया था, लड़ते लड़ते राजपूत केवल 2% पर आकर ठहर गए! एक बार पूरा विश्व देखें, और आज अपना वर्तमान देखें! जिन मुसलमानों ने 20 वर्ष में विश्व की आधी जनसंख्या को मुसलमान बना दिया, वह भारत में केवल पाकिस्तान बाङ्ग्लादेश तक सिमट कर ही क्यों रह गए?*

*राजा भोज, विक्रमादित्य, नागभट्ट प्रथम और नागभट्ट द्वितीय, चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, समुद्रगुप्त, स्कन्द गुप्त, छत्रसाल बुन्देला, आल्हा उदल, राजा भाटी, भूपत भाटी, चाचादेव भाटी, सिद्ध श्री देवराज भाटी, कानड़ देव चौहान, वीरमदेव चौहान, हठी हम्मीर देव चौहान, विग्रह राज चौहान, मालदेव सिंह राठौड़, विजय राव लाँझा भाटी, भोजदेव भाटी, चूहड़ विजयराव भाटी, बलराज भाटी, घड़सी, रतनसिंह, राणा हमीर सिंह और अमर सिंह, अमर सिंह राठौड़, दुर्गादास राठौड़, जसवन्त सिंह राठौड़, मिर्जा राजा जयसिंह, राजा जयचंद, भीमदेव सोलङ्की, सिद्ध श्री राजा जय सिंह सोलङ्की, पुलकेशिन द्वितीय सोलङ्की, रानी दुर्गावती, रानी कर्णावती, राजकुमारी रतनबाई, रानी रुद्रा देवी, हाड़ी रानी, रानी पद्मावती, जैसी अनेको रानियों ने लड़ते-लड़ते अपने राज्य की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए!*

*अन्य योद्धा तोगा जी वीरवर कल्लाजी जयमल जी जेता कुपा, गोरा बादल राणा रतन सिंह, पजबन राय जी कच्छावा, मोहन सिंह मँढाड़, राजा पोरस, हर्षवर्धन बेस, सुहेलदेव बेस, राव शेखाजी, राव चन्द्रसेन जी दोड़, राव चन्द्र सिंह जी राठौड़, कृष्ण कुमार सोलङ्की, ललितादित्य मुक्तापीड़, जनरल जोरावर सिंह कालुवारिया, धीर सिंह पुण्डीर, बल्लू जी चम्पावत, भीष्म रावत चुण्डा जी, रामसाह सिंह तोमर और उनका वंश, झाला राजा मान, महाराजा अनङ्गपाल सिंह तोमर, स्वतंत्रता सेनानी राव बख्तावर सिंह, अमझेरा वजीर सिंह पठानिया, राव राजा राम बक्श सिंह, व्हाट ठाकुर कुशाल सिंह, ठाकुर रोशन सिंह, ठाकुर महावीर सिंह, राव बेनी माधव सिंह, डूङ्गजी, भुरजी, बलजी, जवाहर जी, छत्रपति शिवाजी!*

*ऐसे हिन्दू योद्धाओं का संदर्भ हमें हमारे इतिहास में तत्कालीन नेहरू-गाँधी सरकार के शासन काल में कभी नहीं पढ़ाया गया! पढ़ाया ये गया, कि अकबर महान बादशाह था! फिर हुमायूँ, बाबर, औरङ्गजेब, ताजमहल, कुतुब मीनार, चारमीनार आदि के बारे में ही पढ़ाया गया!*

*अगर हिन्दू सङ्गठित नहीं रहते, तो आज ये देश भी पूरी तरह सीरिया और अन्य देशों की तरह पूर्णतया मुस्लिम देश बन चुका होता!*

*ये सुंदर विश्लेषण जानकारी हिंदू समाज तक पहुंचना अनिवार्य है! हर वर्ग और समाज में वीरों की गाथाओं को बताकर उन्हें गर्व की अनुभूति करानी चाहिए!*
  जय हिन्दी जय हिंदुस्तान

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व्हाट्स ऐप से साभार
-✍🏻✍🏻 स्वामी दीपेशानन्द सरस्वती

      


प्रस्तुति- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

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2-
प्रस्तावना
आज़ादी के बाद हमने इस देश का नाम “भारत” रखा “हिंदुस्तान” नहीं। जबकि 1206 से 1858 तक इसे हिंदुस्तान कहा जाता था। 01 जनवरी 1859 से ब्रिटेन की रानी ने इसे इंडिया नाम दे दिया। हमारा अपना नाम भारत है। क्या “भारतीयता” और “हिंदुस्तान” अलग-अलग हैं। हाँ, भारतीयता में हिंदू सम्मिलित है परंतु सिर्फ़ हिंदू ही भारतीय नहीं हैं। भारतीयता में और भी बहुत कुछ शामिल है। यह एक बहुत लम्बी दास्तान है। “भारत” हमारे पितरों की पुण्य भूमि के निवासियों का स्वमेव उपार्जित नाम है जो यहाँ की मातृभूमि की संस्कृति और भूगोल की मिलीजुली देन है। “हिंदू” नाम हमें दूसरों ने दिया है। हिंदुत्व सेवा में रत सरसंघ चालक भागवत जी भारत के हितार्थ अखिल भारतीय इमाम प्रमुख अहमद इलियासी से मिलने 22 सितम्बर 2022 को मस्जिद में गये, और इमाम ने उन्हें राष्ट्रपिता कहा। यहाँ हिंदुत्व धीरे-धीरे हिंदुवाद की तरफ़ खिसकता नज़र आ रहा है। कट्टर मुस्लिम परस्त यहाँ भी मौक़ा देखते हैं। उन्होंने अहमद इलियासी को धमकियाँ देना शुरू कर दिया तो इमाम साहब को वायी-प्लस सरकारी सुरक्षा प्रदान की गई। यही हिंदुवादी और हिंदुत्व का भेद है। हमें कट्टर मुस्लिम और मुस्लिम में भी भेद करना सीखना होगा। भारत का हर मुस्लिम कट्टर नहीं है। हिंदुवादी गांधी जब कलकत्ता में दंगा ग्रस्त क्षेत्र में मुसलमान के घर रुके, तो सुरक्षित थे। दिल्ली के बिड़ला हाऊस में हिंदुत्व के सिपाही ने भजन संध्या को जाते गाँधी जी के सीने में पिस्तौल ख़ाली कर दिया था। विश्वास का संकट बड़ी चीज है। हिंदुत्व को गाँधी जी पर भरोसा नहीं था। भारतीय कट्टर मुसलमानों को भागवत जी पर भरोसा नहीं है। हिंदुवादी गाँधी जी को दंगाग्रस्त इलाक़े के मुसलमानों पर भरोसा था। भारतीयता का रहस्य इन्ही घटनाओं में छुपा है। हिंदू संस्कृति के बग़ैर भारतीयता समाप्त हो जाएगी। पिछले दो हज़ार सालों में जो कुछ इस ज़मीन पर घटित हुआ है, उसे समाहित करके भारत खड़ा हुआ है। यह पुस्तक भारतीयता की रक्षार्थ हिंदू प्रतिरोध की गाथा है। आज के युग में प्रतिरोध नहीं परस्पर भरोसा चाहिए। इसीलिए वर्तमान सरकार ने उपद्रवी बीन बजाने की जगह विकास की बाँसुरी पर मनभावन धुन बजाना शुरू कर दी है। पृथ्वी को अगर धर्म के आधार पर बाँटा जाए तो मस्तिष्क में मुख्यतः चार सांस्कृतिक चेतनाएँ उभरती हैं। 

• हिंदू सांस्कृतिक चेतना- भारत, नेपाल
• मुस्लिम सांस्कृतिक चेतना- मध्यपूर्व एशियाई देश, 
• मसीही सांस्कृतिक चेतना- यूरोप, उत्तरी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अफ़्रीकन देश 
• बुद्ध प्रणीत चेतना- चीन, जापान, प्रशांत महासागरीय देश। 

हिंदू चेतना का आधार प्रकृति है। जब तक प्रकृति के तत्व मौजूद है तब तक हिंदू सांस्कृतिक चेतना का अस्तित्व विद्यमान रहेगा। बुद्ध चेतना तो सनातन चेतना का ही विस्तार है। बाक़ी एकेश्वरवादी धार्मिक चेतना का सृजन संस्थागत है। संस्थागत सृजन कृत्रिम होता है। पिछले एक हज़ार सालों के इतिहास में मुस्लिम और मसीही चेतना ने कई स्वाभाविक विकसित चेतनाओं को समाप्त कर दिया है जैसे- नील नदी घाटी की मिश्र सभ्यता, दजला-फ़रात घाटियों की बेबीलोन-मेसोपोटामिया सभ्यता, अमेरिका की मय सभ्यता इत्यादि। रुस और चीन की संस्कृतियों को कम्यूनिज़्म निगल गया। इस्लाम, मसीही और कम्यूनिज़्म जैसी आक्रामक विचारधाराओं का सामना सिर्फ़ हिंदू चेतना ही कर सकी। भारत पर हुए 712 के पहले मुस्लिम आक्रमण से औरंगज़ेब की कट्टर हिंदू विरोधी नीतियों का सामना हिंदू चेतना ने किया। उसके बाद मसीही चेतना से पौने दो सौ साल टक्कर लेकर 15 अगस्त 1947 को भारतीय चेतना हिंदू चेतना सहित कई अन्य अंतर्धाराओं को समेटे एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में साकार हुई। यह पुस्तक उसी हिंदू चेतना से प्रेरित अमर सेनानियों की दास्तान है। 

सामान्यतः इतिहास लेखन की सामग्री राजाओं के बीच लड़ाइयों में उनके उद्भव, जय-पराजय, शासन व्यवस्था और पराभव की कहानियाँ रही हैं। इतिहास लेखन कार्य राजा-महाराजाओं के दरबारी इतिहास लेखकों या भाट चारणों द्वारा किया जाता था। जो राजाओं की सफलताओं का अतिशयोक्तिपूर्ण विवरण प्रस्तुत करते थे। राजाओं के लिखे या लिखवाए गए इतिहास में विजेताओं का इतिहास विजित राजाओं को दरकिनार कर देता था। कालांतर में विजेता के नज़रिए से घटनाओं का वर्णन ही मुख्य इतिहास मान लिए जाने की प्रवृत्ति विकसित होने लगी और विजित की महत्ता दरकिनार होते चली गई। 

भारत में सल्तनत काल में अधिकांश विजेता मुसलमान थे। उनके दरबारी इतिहास लेखक भी मुसलमान थे। एक भी सल्तनत क़ालीन हिंदू लेखक का नाम खुर्दबीन लेकर देखने से भी नहीं मिलता। परंतु भारत की कुल आबादी में औसतन अस्सी प्रतिशत के आसपास हिंदू जनता थी। जब मुहम्मद बिन क़ासिम ने हिंदुस्तान के सिंध पर आक्रमण किया, उस समय तो शत-प्रतिशत आबादी हिंदू थी। यह बात कितनों को पता है कि  सिंध का राजा दाहिर एक कश्मीरी ब्राह्मण था, और यह कि उसका पिता चच नामक एक व्यक्ति था, जिसके नाम पर अरबों ने चचनामा ग्रंथ लिखा था, ताकि वे बता सकें कि किस तरह इस्लाम की फ़ौजों ने काफ़िरों का सफ़ाया कर पुण्य कमाया था। यही पद्धति समूचे सल्तनत काल के इतिहास के बारे में जारी रही। भारतीयों ख़ास तौर से हिंदुओं के प्रतिरोध का इतिहास ओझल होता गया। भारत में राजनीतिक मजबूरियों के चलते इतिहास चार तरह से लिखा या लिखवाया गया है। 

• विजेता नज़रिया का इतिहास
• साम्यवादी नज़रिया का इतिहास
• राष्ट्रवादी अतिरंजित इतिहास
• स्वतंत्र प्रामाणिक इतिहास 

लोगों को अपने देश के सच्चे स्वतंत्र प्रामाणिक इतिहास को अवश्य पढ़ना चाहिए ताकि उसे वर्तमान से जोड़कर एक स्वस्थ नज़रिया विकसित करने में सहूलियत हो सके। अन्यथा निहित स्वार्थों से अभिप्रेरित इतिहास उन्हें सही आकलन तक पहुँचने ही नहीं देता है। लोगों को यही नहीं पता चलता कि स्वतंत्र इतिहास क्या है? वे राजनीतिक प्रेरणा से प्रायोजित इतिहास की भूलभूलैया में भटक कर अनुचित अवधारणा विकसित कर लेते हैं। जिससे इतिहास के सबक़ भी गड़बड़ाने लगते हैं। कहावत है कि “जो राष्ट्र इतिहास से सबक़ नहीं लेते वे इतिहास की ग़लतियों को दुहराने को अभिशप्त होते हैं, जिस तरह 712 ईस्वी में मुहम्मद बिन क़ासिम के हाथों हिंदूशाही राजा दाहिर की पराजय की पुनरावृत्ति 1192 तक मुहम्मद गोरी के हाथों तक लगातार होती रही। एक तो इस्लामिक हमलावर के पीछे ख़लीफ़ा सहित पूरा इस्लामिक साम्राज्य खड़ा होता था, वहीं हिंदूशाही के पीछे किसी राष्ट्रीय ताक़त या जनता का खड़ा होना बहुत दूर की बात थी। एक बेचारा राजा अकेला लड़ता रहता था। इसके उलट पड़ौसी राजा मुस्लिम हमलावरों से मिल जाते थे। इस तरह के कई सबक़ याद ही नहीं रखे गये। इसलिए मुस्लिम शासकों का लिखा इतिहास ही भारतीय इतिहास हो गया। हम कोशिश कर रहे हैं वह तत्व सामने लाया जाए जिसके चलते 712 ईस्वी से 1947 तक भारत की बहुसंख्यक हिंदू जनता में हिंदू चेतना से ओतप्रोत राष्ट्रीय भावना का विकास किस प्रकार हुआ है। इसमें समकालीन स्वतंत्र स्रोतों के आधार पर लिखे गए इतिहास से सामग्री प्राप्त की गई है। यह राज्य/राज्यों से राष्ट्र बनने की कहानी कहने का प्रयास है कि भारतीयता का विकास किस तरह किन तत्वों से हुआ है। 

भारतीयता के मुख्य तत्व हिंदू सभ्यता से जन्मे हैं। दुनिया में भारतीयता की पहचान क्या है?  अधिकांश लोगों ने शायद सोचा ही नहीं कि यदि हिंदू सभ्यता समाप्त हो गई होती तो भारत से सहिष्णुता और स्वतंत्र विचार विमर्श पद्धति भी ख़त्म हो गयी होती, जो भारतीय सभ्यता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मूल्य रहा है। इन्ही तत्वों से  भारत में लोकतंत्र सफल है। भारतीय सभ्यता वैदिक युग, उपनिषद काल, महाकाव्य और पौराणिक शास्त्रों में निहित सिद्धांतों से अस्तित्व में आई  है। वे सिद्धांत हैं- 

• सहिष्णुता (Tolerance), 
• अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Liberty of Expression), 
• बहुसंख्यक वाद (Pluralism) और 
• स्वतंत्र विधि सम्मत न्याय व्यवस्था (Independent Judiciary) 

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ये चारों सिद्धांत आधुनिक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के आधारभूत स्तम्भ हैं। भारतीय मेधा ने सदियों पूर्व जान लिया था कि मानव समाज द्वारा इन चारों सिद्धांतों पर चलने से “विश्व-बंधुत्व” का एक और परम सिद्धांत लक्षित होगा। यही “विश्व-बंधुत्व” भावना पृथ्वी पर एकमात्र आशा है। इसका अर्थ यह हुआ कि भारतीय तात्त्विक चिंतन लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुकूल है। इसीलिए भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था सफल हो रही है। कभी पाकिस्तान और बंगला देश भी भारतीय दार्शनिक परम्परा के हिस्से थे। उन्होंने भारतीय चिंतन को अलविदा कहा तो वहाँ लोकतंत्र लड़खड़ाता दिखता है। भारतीय चिंतन में हिंदू सनातन बहुसंख्यक आबादी दर्शन है। जो भारतीय परम्परा निर्धारित करता है। जिसे बदलने की कोशिश एक हज़ार साल तक होती रही। वही संघर्ष भारतीय राष्ट्रीयता को बचाने का प्रयास रहा है। भारतीय प्रभुसत्ता और अस्मिता को बचाने की कोशिश रही है। वह विस्मृत इतिहास इस पुस्तक की विषय वस्तु है। 

          इस पुस्तक में हिंदूशाही राजा दाहिर के बलिदान की दास्तान है, न कि मुहम्मद बिन क़ासिम की अतिरंजित खूनी होली, राजा जयपाल की बहादुरी का क़िस्सा है न कि मुहम्मद गजनवी की लूट और मूर्तियों की तोड़ने के कारनामे और पृथ्वीराज चौहान की वीरता के क़िस्से हैं न कि मुहम्मद गोरी की कुटिल नीति के हिस्से। यह भारतीयता का इतिहास है। केवल राजनीतिक जीत-हार का विवरण नहीं है। पुस्तक क़िस्सा गोई अन्दाज़ में क्रमवार लिखी गई है, जिससे रोचकता बनी रहे  और इतिहास का बोझिलपन पाठक को उबाऊ न लगे। यह किताब सनातन दर्शन से उपजे कालजयी जीवन मूल्यों की इतिहास गाथा है।
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