Rajeev Namdeo Rana lidhorI

बुधवार, 23 नवंबर 2022

डेगची (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक) संपादक- राजीव नामदेव राना लिधौरी

   डेगची (बुंदेली दोहा संकलन) ई-बुक

संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़ (मप्र)
                 
  
                💐😊 डेगची💐
                
    संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 129वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 23-11-2022

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
              मोबाइल-9893520965
        



🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊




🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎊       
              अनुक्रमणिका-

अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)

01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
03-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़
04-अमर सिंह राय,नौगांव(मप्र) 
05-गोकुल प्रसाद यादव (नन्हींटेहरी,बुढेरा)
06-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा
07-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़
08-अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत ,निवाड़ी
09-नीरज खरे, छतरपुर
10-डॉ देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा
11-श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र.
12-वीरेन्द चंसौरिया (टीकमगढ़)
13-डां प्रीति सिंह परमार (टीकमगढ़)
14--गीता देवी (औरैया) (उप्र)
15-आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
16-एस आर सरल,टीकमगढ़
17-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
18-रामसेवक पाठक हरिकिंकर, ललितपुर
19-आर. के.प्रजापति "साथी", जतारा,टीकमगढ़
20-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.
21-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
##############################

        

                     संपादकीय


               साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
            इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे। 
          हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
  हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के  एडमिन के रुप मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) एवं संरक्षक द्वय शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और श्री सुभाष सिंघई जी है।
           हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
     आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
      एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।     
                 हमारे इस छोटे से प्रयास से आज एक नया इतिहास रचा है यह ई-बुक 'डेगची' ( 129वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
     यह पटल  के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 129 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 83 देश के लगभग 89000 से अधिक पाठक अब  तक पढ़ चुके हैं।
  आज हम ई-बुक की श्रृंखला में  हमारे पटल  जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह 129वीं ई-बुक डेगची  लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है। 
ये सभी दोहे पटल के साथियों  ने सोमवार दिनांक-21-10-2022 को बुंदेली दोहा  दिये गये बिषय डेगची    पर दिनांक- 21-11-2022 को पटल पोस्ट किये गये थे।
  अंत में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
           धन्यवाद, आभार
            ***
ई बुक-प्रकाशन- दिनांक-23-11-2022 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)

                     -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
                टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
                   मोबाइल-91+ 09893520965 

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[21/11, 9:50 AM] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: *बुन्देली दोहे* 
विषय:- डेकची
टंकड़िया अरु टंकड़ा,गुन्ड गड़‌इ गंगाम।
बेला बिलिया डेकची,बासन होत तमाम।।

तबलि तबेला डेकची, बटुआ अरु बटलोइ।
कैलो थेंतों कल्छरी, तबा कुपरिया सोइ।।

कहत कुकर सें‌ डेकची, तौय भये दिन चार।।
दांत गिरे नै दूद के, सीटी मोय न मार।।

दार डेकची में बने,जीरे हींग बगार।
भात पसा धर दौरिया,सूंटो घी खों डार।।

भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[21/11, 10:50 AM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली दोहा दिवस , विषय डेकची 
हमने डेकची को कुछ अपने अंदाज से देखा है , हो सकता है आप सहमत / असहमत हौ 🙏

नेता   हमखौं  डेकची‌,  समझत है दिन रात |
अपनौ  वोट पकाय  कै ,‌ सूदैं   करै न  बात ||

हम सब   बनकै  डेकची,  पका  देत है वोट  |
चमचा घुस कै रामधी , अलग करत है चोट ||

पारौ  चढ़तइ डेकची , मलकत खाकै भाप |
करिया हौतइ पीठ है , सहत  रहत   है ताप ||

जौ मानव मन डेकची , फदकत रातै  ख्याल |
पक कै आवत  बायरैं  , मिर्च  मसाले   डाल ||

तप- तप के करिया बनै , सुनौ डेकची खाल  |
पर साधू- सी रात है , रखतइ   नहीं  मलाल ||

सुभाष सिंघई
[21/11, 10:53 AM] Promod Mishra Just Baldevgarh: सोमवार बुंदेली दोहा दिवस
         विषय,, डेकची,,
*****************************
एक सीत खागय टटो , अटो डेकची आन
गत प्रमोद भगवान की ,अफरें ऋषि महान
******************************
आगी भरकेँ डेकची, आँगे भइ अगवान
राम नाम सच बोलते , ठठरी लें इन्सान
******************************
खीर महेरो रदेंनो,कड़ी बरा सँग दार 
भर प्रमोद लइ डेकची, जारय अपने हार
*****************************
डेक डेकची डेउआ , घर में डरें ललात
फुसफुसात चूलें कुकर ,करत प्रमोद फ्रात
*****************************
बरतन बर गइ डेकची,पका भात उर दार
नइ के बल्दें जा बिकी ,कर प्रमोद उपकार
*****************************
गोरी नारी डेकची,कल्लू परकें रोय
विद प्रमोद जग जाल में, दीन दशा गइ खोय
********************************
       ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़,,
       ,, स्वरचित मौलिक,,
[21/11, 11:07 AM] Ram Sevak Pathak Hari Kinker Lalitpur: अप्रतियोगी दोहे -
दूद डेकची में धरौ,देखो उफन न जाय।
आगी बररइ खूबई,तें तौ रइ बतयाय।।१।।
बाॅंट डेकची में धरौ, ऊमें मौ नइं जाय।
खा नइं पा रइ भैंसिया,रइ नैंचें बगराय।।२।।
फूटी है जा डेकची,पानू रओ चुचाय।
आगी तौ सबरी बुजी, जलदी लेउ उठाय।।३।।
पुनिया ठाड़ी रो रई, मौड़ा खौं गरयाय।
पटक फोर दइ डेकची,  पइसा काॅंसें आय।।४।।
धरें डेकची मूॅंड़ पैं, पानू झलकत जाय।
भींजै धुतिया पोलका, ॲंगॲंग सबइ दिखाय।।५।।
हरिकिंकर, भारतश्री, छंदाचार्य
[21/11, 12:30 PM] Dr. Devdatt Diwedi Bramlehara: 🥀 बुंदेली दोहा 🥀
       ( विषय- डेकची)

सरस चले परदेस खों,
      बाँद कनक औ दार।
गडइ कुपरिया डेकची,
      लइ खलता में डार।।

पीतर के गन्जा हते,
        काँसे की बटलोइ।
कै सिलबिल की डेकची,
        देखी चडी रसोइ।।


तइया की भाजी भुजी,
      हडिया की रसखीर। 
दार डेकची की पकी,
        खाइ बुँदेली बीर।

डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
बड़ामलहरा छतरपुर 


      

सिलबिल की ती डेकची,
         काँसे की बटलोइ।
[21/11, 12:45 PM] Vidhaya Chohan Faridabad: बुंदेली दोहे 
~~~~~~
विषय - डेकची
~~~~~~~~~

१)
हँड़िया,  गगरी, डेकची,  रीती   धरी  परात।
फाँका  परो  गरीब   कै, धन्ना अफरत जात।।

२)
धर  चूलो  पै  डेकची, भौजी  गइ  बिसराय।
तरकारी   जर  भुँज   गई,  भैया  ख़ैबे  आय।।

३)
देख   करैया - डेकची, भौजी  मौ   बिचकाय।
उजरो कर दौ माँज कै, फिर करिया हो जाय।।

४)
कत  लुगवाँ  से   डेकची, जीवन सुफल बनाव।
सूरत  कबउ  न  देखियो, सीरत  कै  गुन  गाव।।

५)
तप रइ जब लौं  डेकची, आहैं  तब  लौं  काम।
जेइ  दसा  है मुंस की, फिर  तौ बस  बिसराम।।

~विद्या चौहान
फ़रीदाबाद, हरियाणा
[21/11, 12:50 PM] Rajeev Namdeo Rana lidhor: *बुंदेली दोहा बिषय- डेकची*
#राना कत है  डेकची , करत सबइ है काम |
चूलै पै चढ़  जात  है  , करिया  करतइ चाम ||

बनत महेरी डेकची  , #राना  बनतइ  खीर |
चाय और सब्जी चुरै , सहै   आग से  पीर  ||

छोटी बड़ी मजोल हैं  ,#राना  सबकै काम |
हर घर में है  डेकची , करत काम अविराम ||

चूले से फुरसत  मिलै , #राना    नइँ आराम |
भरी जौन  हैं डेकची , करैं   परस  में  काम ||

डलिया में सब्जी  रखी  , धरी - धरी     मुस्काय |
#राना घुस के डेकची , चुर- चुर कै खिल जाय ||
***21-11-2022
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.c
[21/11, 12:53 PM] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा 
विषय --डेकची
(१)
जब सैं आ गइ डेकची, कोसैं रोज कुम्हार ।
नाशमिटी जा चाट गइ, माटी कौ रुजगार।।
(२)
मटया बासन फूट कैं , माटी में मिल जात ।
फूटी   होबै   डेकची ,  कबैं   पुरानी  धात ।।
(३)
चूले  पै  धर  डेकची ,  देतीं  कड़ी   बघार ।
चमचा सैं गोरी धना ,खको-खको रइॅं टार।।
(४)
धरी  डेकची  मांज  कैं , लइ  कुत्ता  ने चाट ।
सास मिरमिरा कैं उठी ,बउधन खौं रइ डाट।।
(५)
कुपरा चमचा डेकची ,  बहु  पीहर  सैं ल्याइ ।
न्यारे खौं  मचली  परी ,  करबै  रोज  लराइ।।

आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
( स्वरचित ) 21/11/2022
[21/11, 2:54 PM] Pradeep Khare Patrkar Tikamgarh: 21.11.2022
*प्रदीप खरे,मंजुल*
*बिषय.डेकची*
******************
1-
नैचें फूटी डेकची, 
ऊपर जल रय डार।
यसई चल रइ योजना, 
नेता धन रय झार।।
2-
साजी धर लइ सैंतकैं,
भाजी बन रइ चैंच।
बिना तरी की डेकची, 
दई कबाड़ी बैंच।
3-
नेता लगबैं डेकची, 
चमचा चमचा आँय।
लूट गरीबन खौं सभी,
भर-भर रोजउ खाँय।
4-
नेतन की महिमा बढ़ी,
फूले खूबइ गाल।
चमचा भीतर डेकची,
टारत रत है माल।
5-
साँजी होबै डेकची,
लगी गरे कौ हार।
पटका परतन डेटची,
लगन लगत बेकार।।
*प्रदीप खरे, मंजुल*
[21/11, 3:59 PM] Prabhudayal Shrivastava, Tikamgarh: बुंदेली दोहे    विषय   डेकची

आज डेकची भर बनीं, नय उरदन की दार।
चुपर मका कीं रोटियां, रुच रुच रय फटकार।।

चूले पै धर  डेकची  ,  दूद  र‌ईं  हैं  ओंट।
गुर पीपर हरदी मिला, तनक डार द‌इ सोंट।।

तबा कुपरिया  डेकची , चमचा  गड़‌इ  गिलास।
झरिया  थेंतौ  कर‌इया , जे सब बासन खास।।

आज डेकची भर उसे , सकला  मन ललचायँ।
छील छील छिलका धरे, गुर  के संगै  खायँ।।

लयँ पीतर  की  डेकची,  भैंस  लगाबे जात।
सेंटन की मनमोहनी , धुन सुन सुन मुसकात।।

              प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
[21/11, 4:58 PM] Anjani Kumar Chaturvedi Niwari: बुंदेली दोहे

विषय- डेकची

तवा   करइया  डेकची,  चौका   के सामान।
हँडिया,चपिया, तबेला,हतौ सबइ कौ मान।।

दार डेकची में बनी,डबला में कौ दूद।
जीनें पी लव ओंट कें, ऊनें बाँदी सूद।।

चूले  पै  धर  डेकची,  ऊमें   कड़ी  बनाव।
खूब बगारौ हींग सें, खावे सजन मनाव।।

आलू सकला माँवरीं, तीनउँ लेव उबाल।
जल्दी खोलौ डेकची, खा डारौ तत्काल।।

टूटी  फूटी  डेकची, टूटे  भाँड़े  देव।
बेंचौ उनें बजार में,बदले में नय लेव।।

अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकान्त निवाड़ी
[21/11, 5:56 PM] Jai Hind Singh Palera: #डेकची पर दोहे#

                    #१#
मन राखन है डेकची,डुबरी द‌ई चड़ाय।
पैलां की हड़िया अबै,चलन डेकची भाय।।

                    #२#
धरी डेकची आंच पै,दूध ओंटबें खास।
जल्दी सब चीजें पकें,सदां राखियो पास।।

                    #३#
डग डग पै है डेकची,चलन चलो जौ भाय।
एलमीनियम की बनें,या कांसे की ल्याय।।

                    #४#
घर घर में है डेकची,धर धर लो सामान।
सब रसोई नीकी बनें,राखै घर कौ मान।।

                    #५#
पैलां हंडी लेतते,जियै बनाय कुमार।
अबै चलन में डेकची,चमचा डड़ुवा दार।।

#जयहिन्द सिंह जयहिन्द #
#पलेरा जिला टीकमगढ़ #
#मो०। ६२६०८८६५९६#
[21/11, 6:41 PM] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा डेकची
                     1
दार चडाई डेकची,चूलें रई चुराय।
डार डेउआ दार में,ऊखों रई घुमाय।
                      2
टगी डेकची पौर में, देख सबई अकुलात।
चीन चीन कें बांट रय,बचा लियौ कछु भात।
                       3
कलइ उतर गइ डेकची,फीके हो गय साग।
तार टूट तइ वीन कौ,बिथुल जात सब राग।
       ‌               4
कलइ करा लइ डेकची,उतर गऔ है रंग।
कितउँ घघइया कितउँ तन,उगर गऔ है अंग।
                       5
फूट गई है डेकची,बगर गऔ है भात।
मारन चावै जनी खों,लगी डेकची लात।
रामानन्द पाठक नन्द
                     2
[21/11, 6:46 PM] Brijbhushan Duby Baxswahs: 1-टाठी बिलिया कुपरिया,
डेकची गड़इ गिलास।
घर- घर ब्रज अटकी धरी,
रत्ती सब के पास।
2-हड़िया व डेउआ डेकची,
घर- घर धरी दिखाय।
दार भात डुबरी कड़ी,
बना बना सब खांय।
3-अब ओबन चल गय कुकर,
डेकची पूँछत नाय।
काम काज इनसेइ चलत,
भोजन सबइ बनाय।
ब्रजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[21/11, 6:52 PM] Amar Singh Rai Nowgang: बुन्देली दोहे  डेकची
              21/11/2022


कहैं  तबेली  डेकची, बनै  खीर  उर  दार।
चावल बनै पसाय कैं, देतइ माड़ निकार।।

भर-भर  फेंकैं  डेकची, अन्न  करैं  बरबाद।
अन्न बिना जीवन नहीं,रखना चहिए याद।।

चढ़ी  महेरी  डेकची, दद्दा  करत पसंद।
सान दूध में खात हैं, मिले खूब आनंद।।

दार डेकची में पकै, चूल्हे  की  हो  आग।
जुंडी की रोटी बनैं, उर सरसों का साग।।

कुकर करहिया डेकची,कुल्हड़ थार गिलास।
माटी के बरतन मिलें,अब कुम्हार के पास।।

मौलिक/
                          अमर सिंह राय
                        नौगांव, मध्यप्रदेश
[21/11, 6:57 PM] Sr Saral Sir: *बुंदेली दोहा विषय -डेकची* 
***************************
चड़ी डेकची दार की,
                     बार  बार उफनाय।
फूँक  फूँक  हैरान हैं,
                    बरत आग बुज जाय।।

चड़ी डेकची भात की,
                      रई  बहुरिया टार।
सास  बनावै दार खौ,
                      नन्द लगाय बगार।।

मांगी हो रइ डेकची,
                   लग गय चौखे दाम।।
सास बहू चर्चा करें,
                  बन गव उम्दा काम।।

बैचत फिर रय डेकची,
                   जा जा कै देहात।
महगाई  के  नाव पै,
                   मन के दाम पजात।।

चढ़ी कड़ी की डेकची,
                  चडौ करइयै भात।
खाबे  बारे  जुर  गये,
                   रिश्तेदार  बिलात।।
     *एस  आर  सरल*
         *टीकमगढ़*
[21/11, 7:08 PM] Sanjay Shrivastava Mabai Pahuna: *सोमबारी बुंदेली दोहे*

विषय -  *डेकची*

*१*
भरी डेकची देखकें,
         जियरा ना ललचाव।
रूखी-सूखी जो मिले,
          बोइ प्रेम सें खाव।।

*२*
करिया पर गइ डेकची,
     तप-तप दिन्ना रात।
आग बुझाबै पेट की,
     खुद चूले चढ़ जात।।

*३*
दार, भात, सब्जी, कड़ी,
         चाय चुरैलो चाय।
बड़े काम की डेकची,
      जो चाहो बन जाय।।

*४*
अब नइं दिखती डेकची,
        ना चूले की आग।
ना रोटी कैले चडीं,
    ना हड़िया की साग।।

*५*
जौ तन मानोँ डेकची,
    मैंनत की दो ताप।
करम करो नौने सदा,
    महकै अपने आप।।

    संजय श्रीवास्तव, मवई
    २१-११-२२😊दिल्ली
[21/11, 8:54 PM] Shobha Ram Dandi 2: शोभारामदाँगी नंदनवारा जिला टीकमगढ(म प्र)21/11/022 
बिषय-"डेकची"बुंदेलीदोहा(१४०)
 १=भरी डेकची दूध की ,लै गव पातीराम ।
 लग गव ठेवौ  गैल में,बिगर गऔ सब काम  ।।

२= टाठी  गड़ई   कटोरा , लई डेकची  थाल  ।
मंगल कलस खरीद कैं, घरै लियाते काल  ।।

३=भड़या आये  रात मैं , भाँड़े लै गय पाँच  ।
हड़ा , कुपरिया ,डेकची ,गड़इ गिलास
पनाँत  ।।
 
४= भरी  डेकची खीर सैं , खायें शोभाराम ।
मजा मिले रस खीर में ,कर"दाँगी"
 निज काम  ।।

५=टाठी गड़ई कचुल्ला ,लुटिया डंका  पास । 
चमचा  पारौ "डेकची" "दाँगी"लै रय  खास  ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी
01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी", टीकमगढ़ (मप्र)



*बिषय- हओ (हां)

*1*

जब बै दिखै उलायते , तुमै  लगै उकतात |
हओ न #राना कै धरौ ,हुइयै काम नसात ||
***
*2*

जीकी  चाने  हओ तुमे,  हम बतलातइ बात |
नस पकरो #राना उतै , ऊकी  कितै पिरात ||
***

*3*
#राना से वें कत   हओ,  पाछै  मुड़ी हिलात |
फूटी कौड़ी   जानतइ , सब उनकी  औकात ||
***

*4*

#राना हम तुम अब कहैं , हओ कहें दिल खोल |
 बुंदेली  में  लिख  चलै    , उम्दा -उम्दा    बोल ||

*एक ठौल हास्य दोहा*
*5*
हओ-हओ बें कर रयै  , धरै न  डब्बल   नेंग |
#राना समदन चिढ़‌ कहै, रय कछुआ से रेंग ||
***दिनांक-15-10-2022
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com


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2-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)


      शनिवार बुंदेली दोहा दिवस
             विषय ,,हओ,,
             ******************************
भर गइति  हओ काल की, आज तलक नी आइ
रैगइ मयके में पसर,बड़ी विचित्र लुगाइ 
********************************
बिल्ली भर गइ ब्याव की, हओ हो गइति पैल
परों बिलोरा मांइ सें,आ गव मन में मैल
*********************************
सास ससुर राजी हते , होने हति विदाई
हओ नि भरी लुगाइ ने, बेइ संग नि आई
**********************************
 हओ कइ मामा ने तभि , रावन हुआ प्रसन्न
  मृग बन राघव से मरूं , करलूं जीवन धन्न 
********************************
सारी हओ भरकें चलि ,मेला देखन आज
जीजा बरफ चुखाइयो , नइतर हम नाराज
*******************************
हओ भरकें न मेंटियो , फटफट तुमइ चलाव
जब प्रमोद ससरार में, टीका हुऐ हमाव
*********************************            
वन की हओ बोलें नहि , सुनिये अवध भुआल।
राम बचन हित चल पड़े ,जान माइ सौं हाल।।
                         ***
       -प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
           स्वरचित मौलिक
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   3-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़

कै गइ है  राधा हओ , काल  किशन  हम  लाँय |
चुपकइँ  चपिया   चाँप   कै , सौकारे   से आँय ||
***

हओ पैलउँ बुलबा लई , फिर मौं दव खौल |
वन जाबै श्रीराम कौ‌, करत  कैकयी डौल ||

भैया  हओ न बोलियों   , पैलाँ सुनियौ  बात |
लै जौरा की  फौज  से , कैसै  सजी‌   वरात ||

गुनियौ चुनियौ काम खौ , तबइँ हओ कौ मान |
नाँतर ले लै यह हओ ,  लुखरगड़े   में     प्रान ||

उनकी हओ न लीजिए , कुसगुनया जाँ रोग  |
जरत भुरत आहें भरत , तकत  दूसरे लोग ||

पबरन दो उनकी हओ , कहौ हओ तुुम आज |
नौनी   कथा   पसारने  , नौनें    करने  काज ||
***
                         *-**
        -सुभाष सिंघई,जतारा

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04-अमर सिंह राय,नौगांव, जिला छतरपुर



बिना गुने हर बात पै, कहौ न हौ हर बार।
कहबे के पैलउँ करौ, कइयक देर बिचार।।
***
                     
मौलिक/                                                    
             -अमर सिंह राय,नौगांव, जिला-छतरपुर                         
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05-गोकुल प्रसाद यादव (नन्हींटेहरी)


जो राखत है दीन खाँ,हओ भरे की लाज।
जियत देवता मानकें, पूजत उयै समाज।।
***

🌹🌹अप्रतियोगी दोहे🌹🌹
❤️💜 विषय💚हओ💜❤️
*************************
हओ कही ती ब्याव खाँ,
                लख हिरनी से नैन।
तब सें नाँईं  भूल गय, 
             हओ कहत दिन-रैन।।
*************************
हओ भरे के  बाद भी, 
              बदल  गऔ है  साव।
बिटिया बारौ सोस रव, 
               कैसें निपटत ब्याव।। 
*************************
आंसू  नहीं  बहाइऔ, 
               आज  छूट रव  संग।
हओ कही जब राधिका,
              सुन कान्हा भय दंग।।
*************************
पग धोबे की ह्ओ भरौ,
              नइँतर  तक लो  घाट।
राम हँसे सुन भक्त की,
              गैरी    बात    सपाट।।
*************************

✍️ गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी बुड़ेरा

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06-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा


  सूज  बूज सैं  हओ  कनैं ,होय  देस  कल्यान  ।
अपनों  ही  नइ सोचनें , जगत भरे  की  जान  ।।
                  ***         
१=
कभऊ झूट ना बोलिये ,झूट संग नइ देत।
सच्ची  पै जो हओ कवै ,भगवन ऊके  हेत ।।
२= 
हओ हओ तौ सब कवै ,नाइ करें न कोय ।
समजौ  विपता  देस की ,भलौ  ओइकौ  होय।।
३=
सूज बूझ सैं  हओ  कव ,जीसें  हो   कल्यान।
सबके  हित  की सोचिये , कैंकैं बनौ  महान।।
४=
जब  तुम काऊ सैं कभउ , चीज  मांगवे  जाव ।
हओ  नाइ खों  परखलो ,तौ  फिरकै  नै काव।।
५=
सांजा  करवै   दो  जनें , हिय में  जो गड जाय।
तबई  बात  पक्की  करें , मन सैं हओ  हो पाय।।
मौलिक रचना 

                 -शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा

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7-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़

हऔ सदाँ हर सैं करौ,हरि करत हैं पार।
हुकुम हुजूरहिं जो करैं,हिय में लइयौ धार।।
***
             --प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़

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  8-अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत ,निवाड़ी


बिटिया देखत हओ करी,डरी गरे में फाँस। 
अंठावन के हो गये, बा अब लौ रइ आँस।।
***
   -अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकान्त निवाड़ी

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9-नीरज खरे, छतरपुर



हओ तो कै रय सब जनें,मान रखे ना कोय।
जो हओ मर्यादा रखें, दीन काय खों रोय।।
***
-नीरज खरे, छतरपुर
-

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10-डॉ देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा




लाबर,लोला, लालची,इनकौ का ईमान।
जे भरकें पक्की हओ,बदलें पट्ट जुबान।।
***
-डॉ देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा

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11-श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र.

*
हओ हओ नेता कहत,करत कबउँ नइ  काम ।
बोट लए गायब भए, लोकतंत्र  बदनाम  ।।
                   ***
श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र.


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12-वीरेन्द चंसौरिया (टीकमगढ़)

हओ कही नौनौ लगो , नौनें लममरदार ।
हो जैहै अब काम तौ , निशिचित ही ई बार।।
                     ****

                   - वीरेंद्र चंसौरिया टीकमगढ़


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13-डां प्रीति सिंह परमार (टीकमगढ़)

सजना अपन  कछू कहो,हम तो केहे हओ।।
हस खेल  के खुशी रहो,जीवन ज सफल भओ
          ****
               
          ✍️  डां प्रीति सिंह परमार, टीकमगढ़                        
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14- गीता देवी (औरैया)

सुनै सबइ पति लोग जू, खुश रहबो कौ तंत्र।
पत्नी सों कहिओ सदा, हओ-हओ कौ मंत्र।।
              ***
हम बच्चन सौं कह रयै,का समझे हो पाठ।
हओ- हओ सब कह रयै,कोरी पट्टी काठ।।

सबरे काम बनात हय, हओ कहो हर बात।
जीव नाव बढ़ती रयै,चलै न घूँसा लात।।

हओ कही  वरपक्ष ने,मिली साँस में आस।
मुस्कावत रय लोग सब,बटत मिठाई खास।।
      ***
        -गीता देवी,औरैया (उत्तर प्रदेश)

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 15-आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर


हओ,दिलासा ना दियौ, परखौ सौ-सौ बेर।
नइॅंतर  भइया  बाद  में,  परत  मेर में  फेर।।
                   ***
  -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर

                    

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16--एस आर सरल,टीकमगढ़


असुर जुरे ऊदम करें, आगी पूँछ लगायँ।
हओ कही हनुमान नें, लंका हमइँ जलायँ।।
                        ***   
                 -एस आर सरल,टीकमगढ़

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*17*-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा

ह‌ओ भरकें सुद ना ल‌इ,छलिया जुगल किशोर।
परसों के बरसों कड़े, कब आहौ चित चोर।।

ह‌ओ कैबौ‌  कर्रो परो, बिद ग‌ई गरें ब्याद।
सोंज उनारी में फसे, मिल न‌इॅं रव है खाद।।

ना‌इॅं कभ‌उॅं करबैं नहीं,करत न ‌एक‌इ काम।
नकली नेता आज के,जिनकी मोटी चाम।।

ह‌ओ कै कें आये नहिं,छलिया जुगल किशोर।
जान पाइ ना पैल सें, "अनुरागी" चित चोर।।

जहां सांप करिया मिलत, काॅंटन बारी गैल।
आइ ना ह‌ओ कै ग‌ई,राह तकैं रय छैल।।

ह‌ओ न क‌इयो कोउ सें, आशा में बॅंद जात।
खटको लागो रात है, नहीं अफर कें खात।।


-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" हटा दमोह
                         ***           
             
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*18*-रामसेवक पाठक हरिकिंकर, ललितपुर



हम तौ वोइ करें  हओ, जो कछु तुम कै दैव।
बात तुमाइ  मानतई, देंय वोइ जो लैव।।
***
-रामसेवक पाठक हरिकिंकर, ललितपुर
                   ***
                    -
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*19*आर. के.प्रजापति "साथी", जतारा,टीकमगढ़

हओ हओ सरकाव ना,जो कयँ कामी क्रूर।
कै हो  डंडा  हात  में, कै रव कोसों दूर।।
                         ***
              -आर. के.प्रजापति "साथी", जतारा,टीकमगढ़

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*20*--रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.

नइं न उनें पुसात है, हओ कयें हर काम।
उनमें हिम्मत हौसला, खूब बनायें राम।।
**
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.

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*21*आशा रिछारिया जिला निवाड़ी


हओ मंत्र की सीख ले,चली पिया के देश।
सास ससुर आशीष दें,पिय का प्यार विशेष।।
***
-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी

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                          संपादन-
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)

               

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               💐😊 हओ (हां) 💐
                
    संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 127वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 15-10-2022

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
              मोबाइल-9893520965

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