Rajeev Namdeo Rana lidhorI

सोमवार, 28 नवंबर 2022

ऊंघ (नींद) बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़

 शोभारामदाँगी नंदनवारा जिला टीकमगढ (म प्र)28/11/022 
 बिषय--ऊँग/नींद बुंदेली दोहा (१४१)मो=7610264326 
1=कछु ऊँगरय किलास में,कछु दफतर के दोर ।
आँखन देखी कात हैं,"दाँगी"करवैं सोर  ।।

2=तन मन सैं हैं आलसी,उऐ नींद झट  आत  ।
चार जनन के बीच में,"दाँगी"झट ऊँगात  ।।

3=मट्ठा बासी रोटियाँ ,दिन दुपरै जो  खाय  ।
आलस  में दिनभर रहे,"दाँगी"ऊँग सताय ।।

4=कमजोरी सैं ऊँगवैं, रोजउ बासों खाँय ।
फुरतीले "दाँगी"  रहैं,भोजन ताजौ पाँय ।।

5=जो जीवन में ऊँगवैं, ऊँगत हैं दिन रैन  ।
कछु विकास करपाय नैं,"दाँगी"देखत  एैन  ।।
मौलिक रचना 
शोभारामदाँगी
[28/11, 8:51 AM] Anjani Kumar Chaturvedi Niwari: बुंदेली दोहा
 दिनांक 27 नवंबर 2022
 विषय-"ऊँग"(नींद)
****************

 ऊँग लगी ती तान कें, उम्दा सपनों आव।
 भौत  जरूरी  काम सें, मोदी  ने बुलवाव।। 

 सपनों टूटौ बीच में,तुरतइँ आ गव होश।
 बैठे ऊँगें खाट पै, बचौ न बिल्कुल जोश।।

 बिछी खाट खों देख कें, ऊँग तुरत आ जाय। 
 कहें  वैद  जी  सवई सें, जौ सुख कहाँ समाय।।

 बिन्नू  स्यानी  हो  गई,  ऊँग  न  येंगर आय।
 भजन करै भगवान कौ उम्दा वर मिल जाय।।

 घरबारी  टें  टें  करै,  आइ  ऊँग भग जाय।
 हाथ जोड़ विनती करी, तौउ दया ना आय।।

 धन सें भौत गरीब खों, खाबे मिलै ना अन्न।
 ऊँग  ना आवै  रात कें,  सोचत रै गव टन्न।।

करजा होवै मूँड़ पै, बिल्कुल ऊँग ना आय।
 बिटिया होवै ब्याव खों, दुख दूनों हो जाय।।

अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत निवाड़ी
[28/11, 9:10 AM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली दोहा दिवस , विषय - ऊँग ( नींद ) 

जीकी आँखन में भरत , काम तकत ही ऊँग |
जानौं      ऐसौ  आदमी  , हौतइ    ठर्रा  मूँग ||

लपट - झपट आगी  जरै ,  , चुरै  न ठर्रा  मूँग |
काम नईं   कौनउँ   करै , जीखौं चढ़बै   ऊँग ||

ठलुआ ठैगन कै घरै , पसरी  रत    है  ऊँग |
जौ हौतइ है‌  आलसी, लेतइ   उनखौं  सूँग ||

ऊखौं चढ़तइ ऊँग है , जीखौं  अफरा  छाय |
कह सुभाष  ऊ टैम में  , कौनउँ नईं  पुसाय‌ ||

एक यथार्थ कटु सत्य 
नचनारी  नचबै   जितै ,   उतै न  आबै  ऊँग |
पंडित बाँचैं  जब कथा , पौचें  जल्दी ‌  सूँग ||

सुभाष सिंघई
[28/11, 11:05 AM] Jai Hind Singh Palera: #ऊंग पर दोहे#

                    #१#
फूले फूल गदूल के,ऊंग लगें  मुस्कांय।
खिल खिल जाबें रात में,दिन में बे मुरझांय।।

                    #२#
मंडप बैठे राम जू,सखियां मंगल गांय।
ऊंग ऊंग जाबें प्रभू,नैना जब लिड़यांय।।

                    #३#
चोर जुआरी लंपटा,रोगी और गवांर।
कलाकार सब मंच के,लेबें ऊंग समार।।

                    #४#
ऊंग सदां बगला भरी,लगें नैन लिड़यांय।
पानी मछरी देखकें,तुरत गप्प कर जांय।।

                    #५#
ठाड़ें ठाडें ऊंग लै,घुरवा ऐसौ धीर।
बैठौ कभ‌उं न देखियौ,कैसी जा तकदीर।।

#जयहिन्द सिंह जयहिन्द #
#पलेरा जिला टीकमगढ़# 
#मो०-६२६०८८६५९६#
[28/11, 11:31 AM] Dr. Devdatt Diwedi Bramlehara: 🥀बुंदेली दोहे🥀
    (विषय- ऊँग)

छूटत नइयाँ काउ कौ,
  जनम जात गुन- दोस।
 ऊँग उनें आबै तुरत,
       जो राखें सन्तोस।।

जेठे- स्याँनें के गये,
       एक अनोंखी बात।
ऊँग बिछौना नें तकै,
       भूँक न जूँठौ भात।।

ऊँग भरी रइ जनम भर,
       करौ न हरि सें हेत।
अब पछतायें होत का,
      चुनों चिरैंयन खेत।।

रोज, पपीता, सेवफल,
       गाजर, पालक खाय।
तन मन राँय निरोग औ,
    उयै ऊँग नित आय।।

जिनें भरी रत ऊँग सी,
     कउँ कौ कछू बतात।
सब दिन जाबें एक से,
        दिन होबै कै रात।।

डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
बड़ामलहरा छतरपुर
[28/11, 12:28 PM] Dr R B Patel Chaterpur: दोहा  ऊंग
         दिनांक 28 11 2022
                  01
ऊंग आई ब्यारी करत ,लई रजाई तान ।
ठंडन की रातें  कटी ,नहीं सुबह की भान। 
               02
ऊंगत उन्ना लऐ पहन ,पहुंच गए ससुरार ।
 उल्टा पेंट फसाए के ,चैन खुली मझधार ।
                   03
 रातन कि भंवरी पड़ी, लरका बहु ऊंगाय।
 फेरन में गिर गिर परत, ठंड पसीना आय।
                 04
 ऊंग नसावत मनुज को ,काम करें ना नेक।
ऊंग ऊंग दिनभर रटत, सोवत जागत एक। 
                 05
बासो भोजन नित करत,ऊंगत है दिन रैन।
नेक काम  होते नहीं, ना ही पावे चैन ।

स्वरचित 
डॉक्टर आर बी पटेल "अनजान"
 छतरपुर।
[28/11, 12:29 PM] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा विषय - ऊॅंग (नींद)
(१)
ऊॅंग न आबै रात-दिन , बिटिया कौ है व्याव ।
नइयाॅं कर दइ साव नें , कोऊ जुगत बताव।।
(२)
नोंटंकी  होबै  जितै , सबके  मन  खौं  भाय ।
रामकथा में बैठतन , ऊॅंग  अवस आ जाय ।।
(३)
ऊॅंग रगड़ कैं आय जब  ,तकै  न  टूटी खाट।
चाय जितै सो जात हैं , बिछा  पुरानों  टाट ।।
(४)
बस  में  ऊॅंगे  पावनें , करौ न तनकइ ध्यान।
जेब  कतर लइ  काउ नें ,सपा  चट्ट  मैदान ।।
(५)
बैठे -  बैठे   ऊॅंग   बैं ,  करैं   पराई  आस ।
उनके  घर  में  लक्ष्मी ,कभउॅं करै ना बास।।

 आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
( स्वरचित ) 28/11/2022
[28/11, 12:29 PM] Amar Singh Rai Nowgang: बुन्देली दोहे, विषय- ऊँग /नींद

ऊँग लगे जब जोर सें, दिखे न टूटी खाट।
देर भई  लेटत  नहीं, भरन  लगे  खर्राट।।

कमी न कौनऊँ चीज की, धरे खूब संपन्न।
उन्हें ऊँग आवै नहीं, दवा लेत  कइ बन्न।।

रूखी- सूखी  खाय  कैं, सोवें  पूरी  नींद।
जे ऊँगत  से रांय  नइँ, ऐसे  साजे  बीँद।।

ऊँग न देखे बिस्तरा, भले होय  निखराट।
ढेलन  में सो  जात हैं, नींद  न हेरे  बाट।।

बिटिया  की उम्मर भई, करने  पीरे  हाथ।
पैले ऊँगत बे रये, अब  सो  पटकें  माथ।।

ऊँग रहे हैं लोग कइ, अपनों  काम  भुलाय।
खुली आँख जो सो रहे,उनखाँ कौन जगाय।

मौलिक/
                           अमर सिंह राय
                                नौगांव
[28/11, 12:46 PM] Rajeev Namdeo Rana lidhor: *बुंदेली दोहा बिषय-ऊंग*
*1*
का कैदें हम ऊँग की , #राना   जब भी   आत |
जगाँ   तकै  ना कौन है , पसर  उतइँ   है जात ||
*2*
ऊँग भरै जब   गटा हौं  , नशा   चढ़ौ  सौ   रात |
#राना  परबौ  सूझतइ  , लुड़क-लुड़क है जात ||
*3*
#राना  नेता  ऊँग    रय ,   रइयत  रइ  है‌  जाग |
करिया  दफ्तर  में   डटै , फुसकारत   है   झाग ||
*4*
#राना ऊँग न कौसियौ , ऊकौ  नइयाँ   दोष |
परै चिमाने  खुद  डरेै,   गानौ   धर  कै  होश ||
*5*
ऊँग  जौन दिन  टूटतइ  , पछतातइ  तब  रात  |
#राना    से  सबरै  कहै , चूक  गयै  हम  बात ||
*6*
ई   सै #राना   कात है , करौ   समय पै  काम |
ऊँग  बाद में  आय जब   कर लइयौ  आराम ||
***दिनांक-28-11-2022
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
[28/11, 12:55 PM] Promod Mishra Just Baldevgarh: सोमवार बुंदेली दोहा दिवस
विषय ,, ऊँग ,,
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परों बिलोरा ऊँग में , खड़ बड़ात हैं ठाट
भगत चुखरवा से लगत , बिलू हेर रइ बाट
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चीला भय बनयान में , आँग प्रमोद खुजात
ऊँग आइ न निठठूअइ,वे काटत सब रात 
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खटकीरा भय खाट में ,खून चूसतइ मोर 
ऊँग आइ सो पाय ना , आइ उरइयाँ दोर
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भदगर काटें सूँघ कें , आइ ऊँग लौटाय
ससुरो गावै दादरें ,ना प्रमोद सो पाय
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ऊँग आइ ना आँख में , हेरत कड़ गइ रात
धनियाँ तोरी बाट में , सर गव मीठो भात
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उंगयाने दिन चार के , भव प्रमोद ना कूत
सोगय गैरी ऊँग में ,दव उन्नन में मूत 
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         ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़,,
                  ,, स्वरचित मौलिक,,
[28/11, 1:04 PM] Brijbhushan Duby Baxswahs: दोहे
1-नीद भरे लरका सबई,
बृज गुरु कयें सो जाव।
बातन आदि रात भई,
काल करें बतकाव।
2-बिटिया स्यानी घरै बृज,
धरी ऊंँग का नीद,
पीरे हाथ कर पांय कब,
करे जाई उम्मीद।
3-सभा बीच में ऊँग रय,
जानो बिकट अलाव।
बृजभूषण होवें दुखी ,
जिनके ऐसे हाल।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[28/11, 1:55 PM] Ram Sevak Pathak Hari Kinker Lalitpur: जगत रहत जो रात में,दिन में ऊॅंग सताय।
मन नइं लगतइ काम में, झूमत वही दिखाय।।१
कछू सराबी रात में,पीकें होतइ धुत्त।
ऐसे ही वे लोग हैं,रहत ऊॅंग में भुत्त।।२
खात नींद की गोलियाॅं, सो नइं पावें रात।
गिरधौला से ऊॅंग में, मूॅंड़ हिलाउत दिखात।।३
बैठे बैठे ऊॅंगतइ, फुरसत में तौ कैउ।
बुरौ मानतइ टोकदो, चुप  भी वे नइं रैउ।।४।।
ठेंकें ऊॅंगत  कछू तौ,कन्नै परै न काम।
कै देतइ रातै जगे, घिस न जाबै चाम।।५।।
स्वरचित।"हरिकिंकर"
[28/11, 2:44 PM] Sr Saral Sir: *बुन्देली दोहा  विषय -ऊँग* 
**********************************
उँगयानै  सब  रात  के, करकै  आय  बरात।
लगी ऊँग दिन के चढ़े, आँखन नईं दिखात।।

ऊँग भरी दिखवै नईं , तिल विल्लीं सी आँय।
आँखन में  है धुंद सौ, बात  करत अलसाँय।।

जियै ऊँग  कर्री  लगत, माँगत नइयाँ  खाट।
बौ सुद बुद खौ भूलकें, चाय जितें सो जात।।

भऔ  बियाव  पड़ोस  में, सबरातै  भइ  राइ।
झलक बेडनी की तकै ,*सरल* ऊँग  ना आइ।।

जब तक नची न बेड़नी, आलस रऔ जरूर।
झलक  देख  कै बेड़नी, ऊँग  भगी  सब दूर।।
**********************************
           *एस आर सरल*
               *टीकमगढ़*
[28/11, 3:15 PM] Prabhudayal Shrivastava, Tikamgarh: बुंदेली दोहे    विषय  ऊंग(नींद)

जगे रात भर राइ में , सो न‌इँ  आई  ऊंग।
सो गय घुरवा बेंच कें, दिन  में  उजरी  मूंग।।

ऊंग रये  हैं  दोर  में ,  करें न  कोंन‌उँ  काम।
बिबस बिचारे बाप कौ , जीबौ  करें  हराम।।

बदरा माउठ के उठे ,  चिंता  करत  किसान।
ऊंग न आर‌इ  रात में, कृपा ‌करौ  भगवान।।

जी कें बिटिया ब्याव खों, ऊंग उयै न‌इँ आत।
इनके कैसे कें करें  ,  हम  हरदीले   हांत।।

करजा चुको न साव कौ,  ऊंग न आबै  मोय।
करदोंनी  उर लल्लरी  , की पर गइ है तोय।।

               प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
[28/11, 4:18 PM] Dr. Renu Shrivastava Bhopal: दोहे विषय *ऊँग*

1 बिन्नू स्यानी हो गई, 
   ऊँग लगत ना रात।
   कैसो दूल्हा मिलत है, 
   चिंता की जा बात।। 

2 ऊँग आ गई मातु को, 
   अर्जुन की सुन बात। 
   अभिमन्यु सुनवे सबई, 
    गरभ  हते  वे  मात।। 

3 बासो कूसो खात हैं, 
   कक्का काकी रोज। 
   आलस में फिर हैं डरे, 
   मोड़ा कर रै  मौज।। 
   
4  बारो दूल्हा ऊँग रौ, 
    दद्दा उये जगात। 
    मांय दुलइया सो रई, 
    कैसे ब्याव करात।। 

                 डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल 
                 सादर समीक्षार्थ 
                 स्वरचित मौलिक
[28/11, 5:36 PM] Sanjay Shrivastava Mabai Pahuna: *सोमबारी बुंदेली दोहे*
  विषय - *ऊँग*

*१*
धनी आदमी ऊँग की,
         रोजउँ गोली खाय।
मैंनतकश मजदूर की,
      परत आँख लग जाय।

*२*
ऊँगत कड़ गइ जिंदगी,
       बेजाँ हो गइ देर।
रेत सरक गइ हाँत सें,
       सपने हो गय ढेर।।

*३*
चिंता और तनाव में, 
       मन भारी बेचैन।
ऊँग टिकै न आँख में,
     कुलथत रत दिन-रैन।।

*४*
स्यानी मोड़ी देखकें,
      ऊँग आय ना चैन।
वे मैंनत सें सूक गय,
      हम सोचन में बैन।।

*५*
भड़या जगबै रात भर, 
      चुप्पा उल्लू घाँइ ।
ऊँगत देखो आदमी,
     ऊनै घात लगाइ।।

  संजय श्रीवास्तव, मवई 
  २८-११-२२😊दिल्ली
[28/11, 7:09 PM] Kalyan Das Sahu Prithvipur: कुल्थत रत हैं रातभर , आँख नईं झप पाय ।
 वीदे हैं जंजाल में , ऊँग काय खों आय ।।

ऊँग-भूँख जिनकी गयी , पकर लेत हैं खाट ।
मट्टी  होत  पलीत है , उठन लगत है हाट ।।

भाजी-रोटी प्रेम सें , खाकें भजरय राम ।
झट्ट ऊँग आ जात है , करें नीति सें काम ।।

आँख मिचै झपकी लगै , खावें खूब पचाँय ।
परे घुरक रय मेंड़ पै , ऊँग फिरै पिछयाँय ।।

कछू तरसतइ ऊँग खों , तड़पत हैं दिनरैंन ।
कछू  जनें  बर्रात  हैं , सोवें - पावें  चैंन ।।

   ---- कल्याण दास साहू "पोषक"
      पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़ (मप्र)

         ( मौलिक एवं स्वरचित )
[28/11, 7:25 PM] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा ऊँग
                       1
ऊँग जीव के स्वाव में,डटें न वे विन सोंय।
जगबै जो जबरइ सदा,बीमारी कइ मोय।
                         2
ऊँग आय सब काम में, नई तमासे ऊँग।
सोत तुरत हरि कथा में,छाती दरवै‌
मूंग।
                          3
ऊँग अवस कें लीजिए, तन खों हो आराम।
भुन्सारे झट जग उठें,डटकें करियौ काम।
                            4
जडकारौ कस कें परौ,उन्ना घर में नाहिं।
रात ऊंग न चैंन गऔ, लेत उरइयां जाहिं।
                            5
अपन परे घर ठाट सें,ऊंग गरीव न होय।
तुसार नैंचैं घर परै,चैन कभऊँ न पाय।
रामानन्द पाठक नन्द
[28/11, 7:31 PM] Vidhaya Chohan Faridabad: बुंदेली दोहे
~~~~~~
विषय- ऊँग (नींद)
~~~~~~~~~~

१)
ऊँग चुरा लइ आँख से, लुट गव  सब आराम।
कत राधा सुध लेन खौं, कब आहौ घनश्याम।।

२)
ऊँग   न  आबै  उर्मिला,  जागत  है  दिन रैन।
लछमन  जू  बनवास  में, सोचत  बरसे  नैन।।

३)
बिटिया  की  कल  भाँवरें,  आहै  घर  बारात।
जनक जाग रय ऊँग बिन, चिंता खाये जात।।

४)
कितै   गओ  है   चंद्रमा,  टेरत   है  अँदयार।
निकरो बौ तो ताल से, हो गइ जब भुनसार।।

५)
ऊँग  न  देखत  साजरो, पलका, गद्दा, खाट।
दो आँखन कौ बिस्तरा, दो पलकन की टाट।।

~विद्या चौहान
फ़रीदाबाद, हरियाणा

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