Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शुक्रवार, 8 दिसंबर 2023

बुंदेली दोहा कोश- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

Bundeli doha kosh- Rajeev namdeo rana lidhori
 बुन्देली दोहा कोश (भाग-1) 
संपादक राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’
 प्रकाशक-जय बुन्देली साहित्य समूह टीकमगढ़ एवं म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़ (म.प्र.) 
कार्यालय-नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालोनी, टीकमगढ़ (म.प्र.) 472001 मोबाइल-9893520965 म्.डंपस.तंदंसपकीवतप/हउंपसण्बवउ प्रकाशक म.प्र.लेखक संघ,जिला इकाई-टीकमगढ़,म.प्र. 
 प्रकाशन:- प्रथम संस्करण 2024 
 सहयोग राशि मात्र- 500.00 रु. 
 शब्द टंकण- आकांक्षा कम्प्यूटर प्रो.राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़ (म.प्र.) 
 मोबाइल- 09893520965 
 शब्द संयोजन-राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’ शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
 नोट- यह दोहा कोश अव्यावसायिक है इसमें प्रकाशित सभी दोहों की मौलिकता के जिम्मेदार स्वयं रचनाकार हंै, संपादक से इसकी सहमति होना अनिवार्य नहीं। रचनाओं से संबंधित किसी भी प्रकार का वाद-विवाद मान्य नहीं होगा। फिर भी यदि कोई विवाद होता है तो उसका न्याय क्षेत्र टीकमगढ़(म.प्र.) होगा। 


 संपादकीय ........ 

 हमने कोरोना महाकारी के काल में विकट परिस्थितियों में साहित्य के सृजन को निरंतर जारी रखने के उद्देष्य से हमने दिनांक-21 जून सन्-2020ई. को ‘जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़’ का नाम से एक व्हाट्स एप ग्रुप षुरू किया था। उस समय लगभग दो साल के समय (सन् 2021-2022) में कवि सम्मेलन एवं कवि गोषिठयाँ मिलना-जुलना सभी प्रतिबंधित हो गया था ऐसे में हम कवियों को तनाव दूर करने के लिए एवं साहित्य साधना करने के लिए दैनिक कार्यषाला के रूप में प्रारंभ किया जिसमें हमने प्रत्येक सोमवार को दिए गए षब्दों पर बुन्देली में दोहा लिखने के लिए कहा था एवं मंगलवार के दिन हिन्दी में लिखने को कहा था। दोहों के लिखने के क्रम अभी तक सतत् जारी हैं जिसमें लगभग 400 बुन्देली के षब्दों पर हमारे पटल के लगभग 60 साथियों द्वारा लगभग 40000 दोहों रचे गए जिनका संकलन हमारे द्वारा कर लिया गया तो लगा कि क्यों न इनका एक बुन्देली दोहा कोष निकाला जाए ताकि कभी दोहों पर एवं बुन्देली साहित्य में यदि षोध हो तो वर्तमान में समकालीन दोहाकारों एवं उनके दोहों से साहित्य जगत भी परिचित हो सके। हमारी यह योजना है कि बुन्देली दोहा कोष के कम से कम 300 पेजों के 3 भाग तो जरूर प्रकाषित हो जिनके प्रथम भाग के रूप में यह अल्प प्रयास आपके समक्ष हम रख रहे है। आषा है आपको जरूर पसंद आएगा। इस पहले भाग को हम अपने पूज्य देवी देवताओं को समिर्पित करते हुए उनके श्री चरणों में समर्पित कर रहे हंै साथ ही हमारे प्रमुख तीज-त्योहारों पर केन्द्रित दोहे भी इस भाग में षामिल कर रहे हंै। 
आगामी भागों में हम पर्यावरण, सामाजिक, विज्ञान, देषप्रेम आदि पर केेन्द्रित भी प्रकाषित करेगें। हम उन सभी बुन्देली के दोहाकारों के हृदय से बेहद आभारी हंै कि उन्होंने हमारे दिए गए षब्दों पर नए दोहे सृजित कर इस दोहा कोष को आकार देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। हम श्री सुभाष सिंघई जी, श्री रामगोपाल रैकवार जी एवं श्री गोकुल यादव जी के बहुत-बहुत आभारी हंै कि उन्होंने इस दोहाकोष को पढ़कर उनमें त्रुटियों बताया एवं हमें उचित मार्गदर्षन दिया। हम उस सभी के भी आभारी हंै जिन्होंने हमें अपना प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से हमें सहयोग प्रदान किया। हमारे दोहांे को सराहा और हमें प्रोत्साहित किया। हम आशा करते हैं कि भविष्य में आप सभी का इसी प्रकार सहयोग एवं स्नेह मिलता रहेगा। कृपया इस दोहाकोष को पढ़कर अपनी समीक्षा,प्रतिक्रिया एवं सुझाव दीजिए ताकि आगामी भागों में हम उनमें सुधार करके उसे और भी बेहतर बना सके। 
-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
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 बुन्देली दोहा कोश भाग-1

 ठनदकमसप क्वीं ावेी;टवसनउम
.1द्ध 1. सम्पादकीय -3-5 
2. अनुक्रणिका- -6-28 
1. दोहा की विषेषताएँ व नियम-29-31 
2. दोहांे का विधान -32-33 
3. कलन -33-34 
4. दग्धाक्षर -34-35 
5. ‘ए- और ‘ये’ का प्रयोग -36-39
 6.अनुनासिक या चन्द्र बिन्दु -40-48
 7.विभिन्न लोकप्रिय छंद -49-55 
8.काव्य के प्रमुख दोष -56-68
 9. विषय पर केन्द्रित दोहा -69-315 

 1-श्री गणेषाय नमः -(69-95) 

1-रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़ (म.प्र.) 
2-राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़(म.प्र.)
 3-प्रभु दयाल श्रीवास्तव ‘पीयूष‘टीकमगढ़(म.प्र.) 
4-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़ (म.प्र.) 
5-सीमा श्रीवास्तव ‘उर्मिल‘, टीकमगढ़ (म.प्र.) 
6-डॉ देवदत्त द्विवेदी‘सरस‘,बड़ामलहरा (म.प्र.) 
7-अशोक पटसारिया नादान,भोपाल(म.प्र.) 
8-अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल(म.प्र.) 
9-संजय श्रीवास्तव, मवई, टीकमगढ़(म.प्र.) 
10-राजगोस्वामी दतिया(म.प्र.) 
11- वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़(म.प्र.) 
12- सीताराम राय, टीकमगढ़(मप्र) 
13- शोभाराम दाँगी ‘इंदु‘, नदनवारा (म.प्र.)
 14- गुलाब सिंह यादव,लखौरा, टीकमगढ़(मप्र) 
15-संजय जैन,मबई, टीकमगढ़(मप्र) 
16-अभिनन्दन गोइल, इंदौर(मप्र) 
17-डी.पी.शुक्ल ‘सरस‘,टीकमगढ़ मप्र 
18-रामेश्वर राय ‘परदेशी‘, टीकमगढ़ 
19-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा,(मप्र) 
20-कल्याण दास साहू ‘पोषक‘,पृथ्वीपुर (मप्र) 
21-माता दीन यादव,गुरा, टीकमगढ़ (मप्र) 
22-के. क.े पाठक ,ललितपुर (उ.प्र.) 
23-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,गुडा,पलेरा,़(मप्र) 
24-नरेन्द्र श्रीवास्तव, गाडरवारा(म.प्र.) 
25-रघुवीर अहिरवार ‘आनंद‘ ,टीकमगढ (मप्र)
 26-एस.आर. सरल, टीकमगढ़ (मप्र) 
27-लखन लाल सोनी ‘लखन‘,छतरपुर(मप्र) 
28-आषाराम वर्मा‘नादान’,पृथ्वीपुर 
29-प्रमोद मिश्रा,बन्देवगढ़ 
30-सुभाष सिंघई,जतारा 
31-भगवान सिंह लोधी ‘अनुरागी’ दमोह 
 32-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 
33-विद्या चैहान,फरीदाबाद 
34-प्रदीप खरे ‘मंजुल’टीकमगढ़ 
35- बृजभूषण दुवे ‘बृज’,बकस्वाहा 
36-रामलाल द्विवेदी‘प्राणेश’कर्वी चित्रकूट 
37-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी 
 38-डॉ. आर. बी. पटेल ‘अनजान’,छतरपुर

 2-विषय-सरसुती’-(96-111)

 1-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़’ 
2-प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ (मध्य प्रदेश) 
3-सुभाष सिंघई, जतारा,टीकमगढ़(म.प्र.) 4-शोभाराम दाँगी, नंदनवारा,टीकमगढ़ (मप्र) 5- गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी (बुड़ेरा) 6- डॉ देवदत्त द्विवेदी ‘सरस’,बड़ामलहरा 7- भगवान सिंह लोधी ‘अनुरागी’हटा,दमोह 8-प्रभु दयाल श्रीवास्तव ‘पीयूष’ टीकमगढ़ 9-डॉ. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल (मप्र) 10-कल्याण दास साहू ‘पोषक’,पृथ्वीपुर 11-जयहिन्द सिंह ‘जयहिन्द’,पलेरा, 12- रामानन्द पाठक ‘नन्द’,नैगुवां 13-ब्रजभूषण दुबे ब्रज, बकस्वाहा 14 -डॉ.आर.बी. पटेल‘अनजान’,छतरपुर,(म.प्र.) 3- झाँकी (112-120) 01-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 02-जयहिंद सिंह ‘जयहिन्द’,पलेरा,टीकमगढ़ 03- रामेश्वर गुप्त ‘इंदु’, बड़ागांँव,झांसी (उ.प्र.) 04-अशोक पटसारिया‘नादान’,लिधौरा(म.प्र.) 05-गोकुल यादव,नन्हीं टेहरी,बुढेरा (म.प्र.) 06-वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ (म.प्र.) 07-रामानंद पाठक नंद,नैगुवा,निवाडी (म.प्र.) 08- संजय श्रीवास्तव, मवई (म.प्र.) 09-डॉ.संध्या श्रीवास्तव, दतिया 10-एस. आर. ‘सरल’,टीकमगढ़ 11-डॉ. देवदत्त द्विवेदी ‘सरस’,बड़ामलहरा 12 -प्रो.शरद नारायण खरे, मंडला 13-परम लाल तिवारी,खजुराहो 15-हरिराम तिवारी, खरगापुर 16’-भजन लाल लोधी, फुटेर, टीकमगढ़ 17-सरस कुमार ,दोह, खरगापुर ’16’-भजन लाल लोधी फुटेर टीकमगढ़ ’18’- प्रमोद कुमार गुप्ता ‘मृदुल’, टीकमगढ ‘19’-प्रदीप खरे,‘मंजुल’, टीकमगढ़ (मप्र) ‘20’-डाॅ.आर.बी.पटेल ‘अनजान’,छतरपुर (मप्र) 4-दोहा विषय-लच्छमी(121-128) 1-राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’ 2-डॉ. रंजना शर्मा,भोपाल 3-सुभाष सिंघई,जतारा 4-प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ (म.प्र.) 5-शोभारामदाँगी,नदनवारा(टीकमगढ़) 6-वीरेंद्र चंसौरिया,टीकमगढ़ 7-बृजभूषण दुबे ‘बृज’, बकस्वाहा 8-रामानन्द पाठक‘नन्द’,नेंगुवाँ 9-भगवान सिंह लोधी‘अनुरागी’,हटा 10-आशा रिछारिया,निबाडी 11-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता‘इंदु’,बडागाँव,झांसी 12-श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा 13-प्रदीप खरे‘मंजुल’,टीकमगढ़ 14-एस.आर.‘सरल’,टीकमगढ़ 15-गोकुलप्रसाद यादव,नन्हींटेहरी(बुड़ेरा) 16-आशाराम वर्मा ‘नादान’पृथ्वीपुरी 17-अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी 5- श्रीराम मय दोहा- (129-139) (1) राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़ (2) रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ (म.प्र.) (3) अरविन्द्र श्रीवास्तव, भोपाल (म.प्र.) (4) रामेष्वर राय ‘परेदषी’, टीकमगढ़ (म.प्र.) (5) अभिनंदन गोइल, टीकमगढ़ (म.प्र.) (6) सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़ (म.प्र.) (7) संजय श्रीवास्तव, टीकमगढ़ (म.प्र.) (8) अषोक पटसारिया‘नादान’,लिधौरा(म.प्र.) (9) सीमा श्रीवास्तव, टीकमगढ़ (म.प्र.) (10) प्रभुदयाल श्रीवास्तव, टीकमगढ़ (म.प्र.) (11) राज गोस्वामी, दतिया (म.प्र.) (12) डाॅ.देवदत्त द्विवेदी,बड़ा मलेहरा(म.प्र.) (13) गुलाब सिंह यादव ‘भाऊ’, लखौरा (म.प्र.) (14) कल्याण दास साहू ‘पोसक’,टीकमगढ़ (15) षोभाराम दांगी ‘इदु’,नदनवारा ़ (म.प्र.) (16) एस.आर.‘सरल’, टीकमगढ़ (म.प्र.) (17) रघुवीर अहिरवार ‘आंनद’,टीकमगढ़ (18) राजेन्द्र यादव, बड़ा मलेहरा (म.प्र.) (19) के.के पाठक, ललितपुर (उ.प्र.) (20) डी.पी. षुक्ला, टीकमगढ़ (म.प्र.) (21) सीताराम राय ‘सरल’, टीकमगढ़ (म.प्र) 6-विषय-महावीर(श्री हनुमान)-140-150 1- भगवान सिंह लोधी ‘अनुरागी’,हटा, दमोह 2-’प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ 3-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी 4-अमर सिंह राय,नौगांव, जिला छतरपुर 5-शोभाराम दांगी ‘इंदु’, नदनवारा 6-आशा रिछारिया,निवाड़ी 7-प्रदीप खरे ‘मंजुल’,टीकमगढ़ 8- एस. आर. ‘सरल’, टीकमगढ़ 9-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता’इंदु’,बडागांव,झांसी,उप्र. 10-बृजभूषण दुबे ‘बृज’,बकस्वाहा 11-जयहिन्द सिंह ‘जयहिन्द’,पलेरा(टीकमगढ़) 12-राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़ 13-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हीं टेहरी 14-रामानंद पाठक,नैगुवा (निवाड़ी) 15-डॉ देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा 16-वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ 17-परम लाल तिवारी,खजुराहो 18-लखन लाल सोनी,छतरपुर 19-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ 7-कान्हा -(151-161) 1-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़ 2-रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़ 3-गुलाब सिंह यादव ‘भाऊ ’,लखौरा 4- रामेश्वर राय परदेशी,टीकमगढ़ (मप्र) 5-’राजेंद्र यादव कुँवर’,कनेरा, बडा मलहरा’ 6-संजय श्रीवास्तव, मवई, 7-अशोक पटसारिया नादान,‘लिधौरा’ 8-प्रभु दयाल श्रीवास्तव‘पीयूष’, टीकमगढ़ 9- राज गोस्वामी,दतिया 10-डॉ देवदत्त द्विवेदी ‘सरस’,बडा मलहरा 11-सीताराम राय‘सरल’, टीकमगढ 12-बृजभूषण खरे’, ’नई दिल्ली’ 13-शोभाराम दाँगी ‘इंदु’, नंदनवारा,टीकमगढ़ 14-के.के.पाठक ,ललितपुर(उ.प्र.) 15- अभिनन्दन गोइल,टीकमगढ़ 16- एस.आर. ‘सरल’, टीकमगढ़ 17- अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल 18-कल्याण दास साहू ‘पोषक’,पृथ्वीपुर 19-वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़ 20-सीमा श्रीवास्तव ‘उर्मिल’, टीकमगढ़ 21-सियाराम अहिरवार, टीकमगढ 22-रघुवीर अहिरवार ‘आनंद’,टीकमगढ 8-विषय:-भोले (162-174) 1- राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़’ 2-बृजभूषण दुबे ‘बृज’, बकस्वाहा 3-डॉ. रंजना शर्मा,भोपाल 4-जयहिन्द सिंह ‘जयहिन्द’,पलेरा 5-आशाराम वर्मा ‘नादान’, पृथ्वीपुर 6-सुभाष सिंघई,जतारा (टीकमगढ़) 7-अमर सिंह राय,नौगाँव(छतरपुर) 8-मूरत सिंह यादव,लमायचा(दतिया) 9-भगवान सिंह लोधी‘अनुरागी’,हटा 10-प्रदीप खरे‘मंजुल’,टीकमगढ़ 11-वी.एस.खरे,शिवधाम,सरसेड 12-कल्याणदास साहू‘पोषक’,पृथ्वीपुर 13-शोभाराम दाँगी,नंदनवारा(टीकमगढ़) 9- विषय:-इंदर(175-186) 1-सुभाष सिंघई, जतारा 2-प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 3-राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़ 4-गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी(बुढेरा) 5-ब्रजभूषण दुबे‘ब्रज’,बकस्वाहा(छतरपुर) 6-भगवान सिंह लोधी‘अनुरागी’,हटा,दमोह 7-आशाराम वर्मा‘नादान’,पृथ्वीपुर 8-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता‘इंदु’,झांसी 9-डॉ. रंजना शर्मा, भोपाल 10-आशा रिछारिया,निवाड़ी 11-शोभाराम दाँगी, नदनवारा 12-रामानंद पाठक‘नंद’,नैगुआं 13-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल 14-श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा 15-जयहिन्द सिंह ‘जयहिन्द’,पलेरा 16-सरस कुमार,दोह(खरगापुर) 17-संजय श्रीवास्तव’,मवई,टीकमगढ़ 18-डाॅ. देवदत्त द्विवेदी,बड़ा मलेहरा 19-अमर सिंह राय,नौगाँव 20-वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ 21-प्रदीप खरे ‘मंजुल’,टीकमगढ़ 22-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी 23-एस.आर.‘सरल’,टीकमगढ़ 24-हंसा श्रीवास्तव‘हंसा’,भोपाल 10-विषय-बिरमा(ब्रह्मा)(187-199) 1-भगवान सिंह लोधी‘अनुरागी’ 2-सुभाष सिंघई,जतारा 3-राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़ 4-आशा रिछारिया,निवाड़ी 5-डॉ. रंजना शर्मा,भोपाल 6-आशाराम वर्मा ‘नादान’,पृथ्वीपुरी 7-प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़(म.प्र.) 8-ब्रजभूषण दुबे ‘ब्रज’,बकस्वाहा 9-डॉ.रेणु श्रीवास्तव,भोपाल 10-जयहिन्द सिंह‘जयहिन्द’,पलेरा 11-शोभाराम दाँगी ‘इुंद’,नदनवारा 12-रामानन्द पाठक ‘नन्द’,नैगुवा 13-दीनदयाल तिवारी‘बेताल’,टीकमगढ़ 11- गौंड बब्बा (200-213) 1-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा(टीकमगढ़) 2-सुभाष सिंघई,जतारा (टीकमगढ़) 3-राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’टीकमगढ़ 4-प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़ 5-शोभाराम दाँगी ‘इंदु’,नदनवारा 6-एस.आर.‘सरल’,टीकमगढ़ 7-आशाराम वर्मा ‘नादान’,पृथ्वीपुर 8-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी 9-भगवान सिंह लोधी‘अनुरागी’,हटा दमोह 10-अंजनी कुमार चतुर्वेदी‘श्रीकांत’,निवाड़ी 11-अमर सिंह राय,नौगाँव 12-डॉ.देवदत्त द्विवेदी‘सरस’,बड़ामलहरा 13-रामानन्द पाठक‘नन्द’,नैगुवाँ 14-हंसा श्रीवास्तव ‘हंसा’,भोपाल 15-डाॅ.आर.बी.पटेल ‘अनजान’,छतरपुर 12-फाग (214-227) 1 आशाराम वर्मा ‘नादान’,पृथ्वीपुर 2 शोभाराम दाँगी, नदनवारा 3 श्यामराव धर्मपुरीकर गंजबासौदा,विदिशा 4 रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागाँव, झांसी 5 जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा,टीकमगढ़ 6 डां देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा 7 गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी (बुड़ेरा) 8 भगवान सिंह लोधी ‘अनुरागी’,हटा 9 सुभाष सिंघई , जतारा 10 आर.के.प्रजापति ‘साथी’ ,जतारा 11 वीरेंद्र चंसौरिया टीकमगढ़ 12-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 13 प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ 14 एल.एल.‘दरसन’,बूदौर (पलेरा) टीकमगढ़ 15 एस आर सरल, टीकमगढ़ 16 सुभाष बाळकृष्ण सप्रे, भोपाल 17 अमर सिंह राय, नौगांव 18. राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़,म.प्र. 19-प्रभुदयाल श्रीवास्तव,टीकमग्ढ़ 13 होरी:- (228-245) 1-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़ 2-कल्याणदास साहू‘पोषक’,पृथ्वीपुर,(निवाड़ी) 3- रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ 4-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल, (म.प्र.) 5-जयहिंद सिंह ‘जयहिन्द’,पलेरा 6-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़ 7-अशोक पटसारिया ‘नादान’,लिधौरा 8-रामानन्द पाठक ‘नन्द’,नैगुवा, 9-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागाँव,झाँसी(उ.प्र.) 10- प्रभु दयाल श्रीवास्तव ‘पीयूष’, टीकमगढ़ 11-प्रदीप खरे ‘मंजुल’, टीकमगढ़ (मप्र) 12 -डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवारा 13- सरस कुमार, दोह, खरगापुर 14- गुलाब सिंह यादव ‘भाऊ’, टीकमगढ़ 15- संजय श्रीवास्तव,मबई, हाल दिल्ली (म.प्र.) 16-लखन लाल सोनी, छतरपुर 17- वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़ 18- डॉ. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल 19-एस. आर. ‘सरल’,टीकमगढ़ 20-डी.पी.शुक्ल ‘सरस’, टीकमगढ़ 21-अरविन्द श्रीवास्तव’,भोपाल 14 राखी:- (246-251) 1- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ टीकमगढ़’ 2- संजय श्रीवास्तव (दिल्ली) 3-जयहिंद सिंह ‘जयहिन्द’,पलेरा,टीकमगढ़ 4-प्रदीप खरे ‘मंजुल’, टीकमगढ़ (मप्र) 5- रामेश्वर गुप्त ‘इंदु’, बड़ागांव, झांसी (उ.प्र.) 6-अशोक पटसारिया ‘नादान’,लिधौरा 7-डॉ.संध्या श्रीवास्तव, दतिया(म.प्र.) 8-कल्याणदास साहू ‘पोषक’, पृथ्वीपुर,(निवाड़ी) 9-एस. आर. सरल, टीकमगढ़ (म.प्र.) 10-गुलाब सिंह यादव‘भाऊ’,लखौरा,टीकमगढ़ 11-प्रो.(डॉ.) शरद नारायण खरे,मंडला 12-राम बिहारी सक्सेना, खरगापुर 13-प्रभुदयाल श्रीवास्तव, टीकमगढ़ (मप्र) 14-शील चंद्र शास्त्री, ललितपुर (उ.प्र.) 15-शील चंद्र शास्त्री ललितपुर (उ.प्र.) 16-गोकुल यादव,नन्हीं टेहरी,बुढेरा (म.प्र.) 17- शोभाराम दांगी ‘इंदु’, नंदनवारा(म.प्र.) 18-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ (म.प्र.) 15-बुडकी (252-262) 1- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़ 2-राजगोस्वामी,दतिया(म.प्र.) 3-अभिनन्दन गोइल, टीकमगढ़ 4- सियाराम अहिरवार ,टीकमगढ़ 5-अशोक पटसारिया ‘नादान’, लिधौरा, 6-प्रभु दयाल श्रीवास्तव ‘पीयूष’, टीकमगढ 7-कल्याणदास साहू ‘पोषक’, पृथ्वीपुर, 8-गुलाब सिंह यादव ‘भाऊ’,लखौरा, टीकमगढ़ 9- एस.आर.-‘सरल’, टीकमगढ़ 10-डी.पी.शुक्ल ‘सरस’, टीकमगढ़ 11-जयहिंद सिंह ‘जयहिन्द’,पलेरा 12-डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवाड़ा 13-डां. रेणु श्रीवास्तव भोपाल 14-वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़ (म.प्र.) 15-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ 16- समीक्षा-जयहिंद सिंह ‘जयहिन्द’,पलेरा 16-करवाचैथ (263-268) (1) राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़ (2) प्रदीप खरे ‘मंजुल’,टीकमगढ़(म.प्र.) (3 अषोक पटसारिया‘नादान’,लिधौरा(म.प्र.) (4) वीरेन्द्र चंसौरिया’,टीकमगढ़(म.प्र.) (5) गोकुल यादव’,बुढेरा,टीकमगढ़(म.प्र.) (6) रामानंद पाठक,नैगुवाँ (म.प्र.) (7) डाॅ. संध्या निगम,झाँसी (उ.प्र.) (8) एस.आर.‘सरल’, टीकमगढ़ (म.प्र.) (9) डाॅ.देवदत्त द्विवेदी,बड़ा मलेहरा(म.प्र.) (10) डाॅ. षरद नारायएा खरे, मंडला (म.प्र.) (11) गुलाब सिंह यादव‘भाऊ’,लखौरा(म.प्र.) (12) डाॅ. सुषील षर्मा,गाडरवाड़ा (म.प्र.) (13) अमर सिंह राय,नौगाँव (म.प्र.) (14) एस आर तिवारी,टीकमगढ़ (म.प्र.) (15)- ब्रजभूषण दुवे,बक्सवाहा (म.प्र.) (16) रामेष्वर प्रसाद गुप्त ‘ःइंदु’,झाँसी (उ.प्र.) (17) डाॅ.आर बी. पटेल’,छतरपुर (उ.प्र.) 17 बिषय--ग्यारस (269-281) 1 राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी, टीकमगढ़’ 2 ’प्रदीप खरे ‘मंजुल’ 3- अशोक पटसारिया ‘नादान’, लिधौरा, 4- गोकुल यादव, नन्हीं टेहरी,बुढेरा (मप्र 05-शोभाराम दांगी ‘इंदु’, नदनवारा 06-जयहिन्द सिंह ‘जयहिन्द’,पलेरा,टीकमगढ़ 07-प्रभु दयाल श्रीवास्तव ‘पीयूष’, टीकमगढ़ 08-डॉ-. आर. बी.पटेल ‘अनजान’,छतरपुर 9.डॉ- मैथिली शरण श्रीवास्तव, पृथ्वीपुर 10-संजय श्रीवास्तव, मवई 11- एस.आर.तिवारी’दद्दा’,टीकमगढ़ 12-डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल 13-रामानन्द पाठक ’नन्द’,नैगुवां 14-अमर सिंह राय, नौगांव जिला-छतरपुर 15- कल्याण दास साहू ’पोषक’,पृथ्वीपुर - 16’-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ’इंदु’,बडागांव,झांसी 17’-गणतंत्र ओजस्वी,खरगापुर 18’-आरती ’अक्षरा’,छतरपुर ’19’- -प्रो(डॉ-शरद नारायण खरे, मंडला,मप्र 20’-डॉ- संध्या श्रीवास्तव, दतिया 18- पूने (292-308) 1-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़ 2-’प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़, टीकमगढ़(मप्र) 3-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़ 4-डाॅ.आर.बी.पटेल, छतरपुर 5-अमर सिंह राय,नौगांव, जिला छतरपुर 6-गोकुल प्रसाद यादव (नन्हींटेहरी) 7-शोभाराम दांगी ‘इंदु’, नदनवारा 8 -प्रभु दयाल श्रीवास्तव ‘पीयूष’, टीकमगढ़ 9-प्रदीप खरे ‘मंजुल’, टीकमगढ़ 10-अंजनी कुमार चतुर्वेदी ‘श्रीकांत’ ,निवाड़ी 11-जयहिन्द सिंह ‘जयहिन्द’,पलेरा,टीकमगढ़ 12-अभिनंदन गोइल,टीकमगढ़ 13-ब्रजभूषण दुवे (बक्सवाहा) 14-डाॅ. रेणु श्रीवास्तव (भोपाल) 15- रामसेवक पाठक ‘हरिकिंकर’(ललितपुर) 16-डाॅ. देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा 17-आशा रिछारिया, निबाडी 19-बिषय-हरछठ(309-314) 1-राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़(मप्र) 2-जयहिंद सिंह‘जयहिन्द’,पलेरा,टीकमगढ़(मप्र) 3-प्रदीप खरे ‘मंजुल’,टीकमगढ़ (मप्र) 4-रामेश्वर गुप्त ‘इंदु’,बड़ागाँव,झाँसी (उ.प्र.) 5-अशोक पटसारिया ‘नादान’,लिधौरा,टीकमगढ़ 6-कल्याणदास साहू ‘पोषक’,पृथ्वीपुर, (निवाड़ी) 7-गुलाब सिंह यादव ‘भाऊ’,लखौरा,टीकमगढ़ 8- प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे,मंडला 9-प्रभुदयाल श्रीवास्तव, टीकमगढ़ (मप्र) 10-वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ (म.प्र.) 11-गोकुल यादव,नन्हीं टेहरी,बुढेरा (म.प्र.) 12- शोभाराम दांगी ‘इंदु’,नंदनवारा(म.प्र.) 13-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ (म.प्र.) 14-अवधेश तिवारी, छिंदवाड़ा (म.प्र.) 15-हरिराम तिवारी ‘हरि’,खरगापुर(टीकमगढ़) 16-रामानंद पाठक ‘नंद’,नैगुवा, निवाडी (म.प्र.) 20-मइया पूजैं (315-326) 1-जयहिन्द सिंह‘जयहिन्द’,पलेरा,टीकमगढ़ 2-राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़ 3-प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ (म.प्र.) 4-सुभाष सिंघई,जतारा 5-आशाराम वर्मा‘नादान’,पृथ्वीपुर 6-शोभाराम दाँगी नंदनवारा(टीकमगढ़) 7-बृजभूषण दुबे‘बृज’, बकस्वाहा 8-रामानन्द पाठक ‘नन्द’,नैगुवां 9-कल्याणदास साहू‘पोषक’,पृथ्वीपुर 10-प्रभुदयाल श्रीवास्तव‘पीयूष’,टीकमगढ़ 11-आशा रिछारिया,निवाड़ी 12-भगवान सिंह लोधी‘अनुरागी’,हटा 13-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़ 14-कमलेष सेन,टीकमगढ़ 

 दोहा की प्रमुख विशेषताएँ एवं नियम- 
1- दोहा पूर्ण लयबद्ध,कथ्य,तथ्य युक्त होना चाहिए। 

2- दोहा में कुल चार चरण होते हैं। दोहा के पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ एवं दूसरे और चैथे चरण में 11-11मात्राएँ होनी चाहिए। एक दोहा में कुल 24-24 मात्राएँ होती हैं। दोहे के चारों चरण परस्पर संबद्ध होना चाहिए।

 3- दोहे के पहले एवं तीसरे चरण(विसम चरण) के समापन (यति) लघुदीर्घ से होनी चाहिए। गुरु की पूर्ति दो लघु मात्रा से भी हो जाती है,लेकिन ग्यारहवीं मात्रा हर हालत में लघु ही दोहे में रखी जाती है। तब 111(नगण) ये यति कहताली है जैसे- न-मन (उच्चारण भार ( न 1) व (मन 2) दूसरे और चैथे चरण के अंत में 2-1 मात्रा होनी चाहिए। 

4-मात्रा विधान में शुरूआत 1-2-1(जगण) से नहीं होनी चाहिए। लय में अवरोध होता है। 

5- दोहे का तुकांत सही होना चाहिए। 

6- दोहा का भाव, शिल्प सुंदर होना चाहिए।

 7- दोहा के भाव व अर्थ स्पष्ट होना चाहिए। 

8- दोहा शिक्षाप्रद एवं उसमें संदेश स्पष्ट होना चाहिए। 

9- दोहा में यथा संभव हिंदी के तत्सम या तद्भव शब्दों का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए।

 10- क्षेत्रीय बोली में लिखे दोहों में हिंदी एवं अन्य भाषाओं के कुछ अपभ्रंश शब्द अति आवश्यक होने पर कभी-कभी प्रयोग जा सकते हैं। 

11- दोहा एक मात्रिक छंद है । 

12- अ इ उ ऋ स्वर लघु या ह्रस्व होते हैं । आ ई ऊ ए ऐ ओ औ स्वर गुरु या दीर्घ हैं । अं अः अयोगवाह हैं मात्रा के रूप में ये भी दीर्घ हैं । 

 13- यदि किसी लघु अक्षर के बाद संयुक्त अक्षर या व्यंजन (आधा अक्षर) आता है तो पहले का लघु अक्षर गुरु या दीर्घ गिना जाता है जैसे पत्र, कर्म, सन्न, रक्षा, कक्षा, शिक्षा भव्य अज्ञ यज्ञ आदि। दूसरा अक्षर यथावत लघु या गुरु ही रहेगा । रक्षा 2 2, कर्म 2 1 

14- अनुस्वार युक्त अक्षर गुरु या दीर्घ गिना जाता है पर अनुनासिक या चन्द्र बिन्दी युक्त अक्षर लघु है। चन्द्र बिन्दी शिरोरेखा के ऊपर इ ई ए ऐ ओ औ के मात्रा चिह्नों के साथ बिन्दी के रूप में ही लगती है । पंचम वर्ण का प्रयोग भी अनुस्वार की तरह किया जाता है। आधा पंचम वर्ण भी पूर्व अक्षर को गुरु में बदल देता है। जैसे गंगा, चंचल, डंडा, पंत कंपन आदि। 

 15- दो आधे अक्षर एक ही माने जाते हैं। वत्र्य में त् और त् दो संयुक्त व्यंजन हैं पर इनसे एक मात्रा ही बढे़गी । 

16- प्रथम क्रम ग्रह में प् क् ग् पहले वर्ण लघु नहीं हैं इससे ये गुरु नहीं होंगे। ऋ की मात्रा वाले अक्षर भी लघु गिने जाते हैं। जैसे गृह, स्पृह, नृप। 
पटल एडमिन-
1-श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’,टीकमगढ़’ पटल 
संरक्षक- 
1- श्री रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़’ 
2- श्री सुभाष सिंघई, जतारा’ 3- श्री गोकुल यादव, बुढेरा, 

2-’दोहा विधान- 
दोहा में लय, समकल-विषमकल, दग्धाक्षर जगण पर विचार,(दोहा छंद में) 
 दोहा लिखना सीखिए,शारद माँ धर ध्यान। 
 तेरह ग्यारह ही नहीं, होता पूर्ण विधान।।
 गेय छंद दोहा लिखो, लय का रखिए ख्याल । 
जहाँ कलन में मेल हो, बन जाती है ताल ।। 
 चार चरण सब जानते, तेरह ग्यारह भार । 
चूक कलन से चल उठे, दोहा पर तलवार।। 
 अष्टम नौवीं ले जहाँ, दो मात्रा का भार । 
दोहा अटता है वहाँ,गाकर देखो यार।। 
 जगण जहाँ पर कर रहा, दोहे का आरंभ । 
क्षति होना कुछ मानते, कहें टूटता दंभ ।। 
 यदि देवों के नाम हों , जैसे नाम. गणेश । 
जगण दोष सब दूर हों, ऐसे देव महेश ।। 
 पूरित चैकल पर जगण, करता लय व्यवधान।
 करके आप प्रयोग भी, ले सकते संज्ञान। 
 पचकल का प्रारंभ भी, लय को जाता लील। 
खुद गाकर ही देखिए,पता चलेगी ढील ।। 
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 3-कलन (समकल-विषमकल) को समझिए- 
तीन-तीन-दो, से करें, पूरा अठकल एक। 
जोड़ रगण दो-एक-दो,विष चरण तब नेक।।
 चार-चार का जोड़ भी, होता अठकल मान। 
विषम चरण में यति नगण, सुंदर देता तान।। 
(रगण = 212 , नगण = 111) 
विषम चरण यति जानिए, करे रगण से गान। 
अथवा करता हो नगण, दोहा का उत्थान।।
 यह लय देते है सदा,गुणी जनों का षोध। 
खुद गाकर ही देखिए, हो जाएगा बोध।। 
सम चरणों को जानिए,तीन-तीन-दो-तीन। 
चार-चार सँग तीन से, ग्यारह लगे प्रवीन।। 
विषम चरण के अंत में,रगण नगण दो लाल। 
जो चाहो स्वीकारिए, पर सम रखता ताल।। 
 षटकल का चरणांत भी,सम में करता खेद। 
दोहा लय खोता यहाँ,लिखे सुभाषा भेद।। 
सम-सम से चैकल बने,त्रिकल-त्रिकल हो साथ। 
दोहा लय में नाचता, फैला दोनों हाथ।। 
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निम्न दो दोहों में पहला चरण गलत लिखा व उसे सही करके तीसरे चरण में बतलाया गया है कि इस तरह लिखना सही होता है- 
दोहा लिखना सरल है, चरण बना यही दीन। 
दोहा लिखना है सरल, चरण नहीं अब दीन। 
दोहा लिख आप सभी, नहीं चरण तुक तान। 
आप सभी दोहा लिखे, दिखे चरण में गान। 
भरपाई मात्रा करें, माने दोहा आप। 
गलत राह पर रहे,छोड़ कलन के माप।।
 ---0000--- 

 4-‘दग्धाक्षर’ प्रयोग पर:- 
 दग्धाक्षर से मत कीजिए, छंदों का प्रारंभ । 
कहता पिंगल ग्रंथ है, सभी विखरते दंभ ।। इनको‘झ’,‘र’,‘भ’,‘ष’जानिए,यहाँ‘ह’रहे समाय।
 पाँच वर्ण यह लघु सदा,निज हानी बतलाय।। 
पाँच वर्ण यह दीर्घ हो, करिये खूब प्रयोग । कहत ‘सुभाषा’आपसे, दूर तभी सब रोग ।। 

विशेष:- दोहा में यदि कथ्य हो, तथ्य, युक्त संदेश ।
 अजर-अमर दोहा रहे, कोई हो परिवेश ।। 
तुकबंदी दोहा बना, नहीं तथ्य पर तूल । 
ऐसे दोहे जानिए, होते केवल भूल ।। 
चार चरण दो पँक्तियाँ,अक्षर अड़तालीस। 
दोहा छंद सुहावना, है स्वतंत्र जगदीष।। 
 कलन छोड़ दोहा लिखा, लय अटके हर हाल। 
अठकल यदि निर्दोष हो,कभी न बिगड़े चाल।। 
हाथ पाँव चारों चरण,भाव मानिए प्राण। 
यदि हो सामंजस्यता, दोहा है तब बाण।। 
चरण विषम में यति रगण,सम पदांत है ताल। 
विषम और समकल सही, दोहा वहाँ निहाल।। 
दोहा के गुण पर कहें, चरण बनें है चार। 
चारों में यदि मेल हो, पढ़ने मिलता सार।। 
 नगण-रगण की यति नहीं,कलन-
भार सब दूर चरण भाव जुड़ते नहीं, तब दोहा है धूर।। 
सभी सुनो अब श्रेष्ठवर, बनता दोहाकार। 
वाचिक में लेता नगण, लघु दीर्घ है भार। 
यदि छंदों में गेयता, लाना है श्रीमान। 
 मात्रा-कलन-विधान का,रखना होगा ध्यान।। 
 कुंडलिया दोहा लिखें, रहे गये पहचान। 
यही गेयता छंद की, समझो होती जान।। 
 उच्चारण से देख लो, मात्राओं का भार। 
ज्ञात सहज हो जायगा, यही एक उपचार।। 
जगण चरण में आदि हो,लय को जाता लील। 
ज्ञानी करके देखलें, लगती चुभती कील।। 

अनुस्वार(ं ं बिंदु) और अनुनासिक ( ँ चंद्रबिंदु):- 

हिंदी या देषज लिखों, रखों षब्द की आन। 
अनुनासिक अनुस्वार के,कभी न बदलो गान।। 
अनुस्वार का बिंदु जब, लघुवर्ण पर आय। 
दो मात्रा गिन लीजिए,उच्चारण बतलाय।। 
अनुस्वार यदि दीर्घ पर,बढ़े न मात्रा भार। 
बड़ा सरल है व्याकरण, निकले यह ही सार।। 
 अनुनासिक लेता नहीं, कोई मात्रा भार। 
करते इसे प्रयोग है, देखें छंदाकार।। 
षब्द लीजिए मंगलं,है,ल पर अनुस्वार।
 (मंगलमं) उच्चारण यह कह रहा, है दो मात्रा भार।। 

 उपसंहार:-
 विनय करें हम आपसे,अधिक न जानें ज्ञान।
 पर जो कुछ भी जानता,साँझा है श्रीमान।। 
दोहा में लिखकर यहाँ,बतलाया जो सार। 
माता मेरी शारदे, करती कृपा अपार।।
 नगर जतारा वास है, मेरा नाम ‘सुभाष’।
 माँ षारदा लिखवा रही,मन में किया प्रकाश।।
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लेखक-सुभाष सिंघई,(एम.ए.हिन्दी साहित्य) 
प्रस्तुति-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 
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 5-“ए” और ‘ये’ के प्रयोग:- 

 किसी शब्द के अंत में “ए” का प्रयोग ज्यादातर तब किया जाना चाहिए जब हम किसी वाक्य में अनुरोध कर रहे हों, नम्रता व सम्मान मृदुता के भाव हों जैसे-दीजिए, कीजिए, आइए, बैठिए, सोचिए, देखिए शुभकामनाएँ, भावनाएँ, कामनाएँ, इत्यादि। लेकिन जब वाक्य में आदेश भाव परिलक्षित हो तब “ये” देखने में आता है। 
जैसे- बुलायें, हँसायें, बनायें, खिलायें, सजायें, लुटायें बजायें, दिखायें, सुनायें आदि लेकिन वाक्य,विन्यास की दृष्टि से हिन्दी में कुछ शब्दों में जैसे -लिये/लिए, गये/गए, दिये/दिए) में ‘ये’ और ‘ए’ के प्रयोग के यदि नियम पर विचार करें तो..... मुझें इतना पता है कि जब दो, एक जैसे शब्द एक के बाद एक आते हैं तो पहले में -‘ये‘ और दूसरे में ‘ए’ का उपयोग होता है। 
 जैसे- वह चुन लिये गये हैं-(ये गलत है) वह चुन लिए गए हैं (ये गलत है) वह चुन लिये गए हैं √ (ये सही है) परन्तु जहाँ एक ही शब्द उपयोग में आ रहा हो जैसे- राम ने उसके लिये काम किया है या श्याम ने उसके लिए काम किया है दोनों सही थे ? और दोनो में से कोई भी उपयोग करते थे और आज भी प्रयोग कर रहे है, किंतु सन् 1959 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित राज भाषा हिंदी समिति द्वारा हिंदी में बहुत कुछ सुधार व दूसरी भाषा के कई शब्द हिंदी में अपनी शर्तो पर स्वीकार किए हैं। ‘य’ जहाँ अस्वीकृत किया गया है, वहाँ ‘ ए‘ का प्रयोग सही माना है जैसे -चाहिये चाहिए √ नये नए √ निर्णय उचित लगता है , जहां तक ‘उसके लिए’ (संप्रदान कारक हेतु) पदबंधों में ‘लिए’ का सवाल है, यह मुझे सही लगता है ‘लिये’ की तुलना में ‘लिए‘ सही है । इस प्रकार गये की जगह गए √ दिये की जगह दिए √ उचित है ‘लेना’. क्रिया पदो के लिए, लिये’ प्रचलित था किंतु आधिकारिक मानक हिंदी में ‘लिए’ की संस्तुति है । ‘जाना’ के क्रियापद से गये ‘गया’ (या गआ ) तथा ‘गयो’ (स्थानीय बोली में प्रयुक्त गओ?) स्वीकारते थे , तो नियमों की एकरूपता व मानक हिंदी के लिए ‘गयी’, ‘गये’ की जगह गए स्वीकृत किया गया है। हिंदी व्याकरण में अभिरुचि और भाषा में सम्वर्धन के पक्षधर यह परिवर्तन स्वीकार कर लिखते है , जो मुझे भी उचित लगता है । किंतु जिन शब्दों में मूल रूप से ‘य’ श्रुतिमूलक अंग है , तब वह बदला नहीं जा सकता। ( श्रुति मूलक = स्पस्ट वर्ण सुनाई देना ) जैसे - पराया - पराये √ पराए, पहिया - पहिये √ पहिए, रुपया - रुपये √ रुपए × करुणामय - करुणामयी √ ( स्थायी, अव्ययीभाव आदि) करुणामए × अब जो मानक हिंदी से हटकर पुराने ढर्रे से लिखते हैं, तब हम आप क्या कर सकते हैं, वह लोग तो आज भी होय, रोय, कोय, तोय, मोय का प्रयोग करके लिखते हैं ,कुछ कहते हैं कि यह देशज शब्द हैं मेरा कहना यहाँ यह भी है यह देशज शब्द भी नहीं हैं, क्योंकि -देशज शब्द का भी स्थानीय क्षेत्रानुसार क्रियानुसार आशय अर्थ होता है। क्रिया पदानुसार- होय से होना , रोय से रोना , कोय से कोई तोय से तेरा , अर्थ ही नहीं निकलता है द्य फिर आप यहाँ पूँछेगें कि यह रोय तोय क्या हैं ? यहाँ हम आपसे निवेदन करना चाहेगें कि यह हिंदी में ‘मुख सुख‘ शब्द कहलाते हैं , जिनका उच्चारण तो करते हैं , पर इनका स्थान साहित्य या आम लेखन में भी नहीं है 
 जैसे -मास्टर साहव को मुख सुख से मास्साब कह देते हैं, अब मास्साब को किसी छंद या आवेदन पत्र में उपयोग तो नहीं करते हैं। तहसीलदार को तासीलदार, कम्पाउन्डर को कम्पोडर , साहव को साब इत्यादि। आप कहेंगे कि प्राचीन कवियों ने उपयोग किया है, लेख लम्बा करने की अपेक्षा संक्षेप में इतना कहूँगा कि पहले सब गायकी और लोक भाषा में लोगों को समझाते थे, कोई विधानावली नहीं थी । इसी तरह व्यंजन ‘य, र, ल, व’ तथा स्वर ‘इ, ऋ, ऌ, उ’ के क्रमशः समस्थानिक हैं । ऐसी स्थिति में ‘य् ़ई’ के उच्चारण ‘यी’ तथा ‘ई’ में अंतर साफ-साफ मालूम नहीं पड़ता है । यही बात ‘वू’ एवं ‘उ’ के साथ भी है । ‘ऱ्ऋ’ के साथ भी यही है, जो कइयों को ‘रि’ सुनाई देता है।औ (दरअसल बोला ही वैसे जाता है!) लौकिक संस्कृत तथा हिंदी में ‘ऌ’ तो लुप्तप्राय है । ‘ऋ’ भी केवल संस्कृत मूल के शब्दों तक सीमित है । परंतु इस प्रकार की समानता का अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि ‘कायिक’ के स्थान पर ‘काइक’ और ‘भावुक’ के बदले ‘भाउक’ उचित मान लिया जाए। भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय ( शिक्षा मंत्रालय ) में हिंदी राजभाषा समिति है, जिसमें हिंदी भाषा से सम्बन्धित निर्णय हिंदी विद्वान लेते हैं, एक निर्णय यह भी लिया गया है कि रुउर्दू के शब्द यदि हिंदी में लिखे जाएं तो रुनुक्ता लगाने की बाध्यता नहीं है। कारण कि उर्दू में नुक्ता लगाने का आशय वर्ण को आधा करना है , जबकि हिंदी में आधा वर्ण लिखने की सुविधा है, तब नुक्ता की जरुरत ही नहीं है। 
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 लेखक-सुभाष सिंघई,(एम.ए.हिन्दी साहित्य) 
प्रस्तुति-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 
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 6-अनुस्वार( बिन्दु) और अनुनासिक (चंद्रबिन्दु) का प्रयोग -

 अनुस्वार या बिंदु (ं ं ं) “अनुस्वार” जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, अनुस्वार स्वर का अनुसरण करने वाला व्यंजन है यानी कि स्वर के बाद आने वाला व्यंजन वर्ण “अनुस्वार” कहलाता है, इसके उच्चारण के समय नाक का उपयोग होता है, ऐसा आभास होगा जैसे नाक से कहा हो। एक कहानी के माध्यम से मैं हिंदी वर्ण माला के अनुस्वार या बिंदु (ं ं ं) पंचमाक्षर के प्रयोग को निवेदित कर रहा हूँ । एक. प्रदर्शनी लाइन लगाकर दिखाई जा रही थी , सबसे आगे एक शरीफ युवा था , उसके पीछे एक छोटा नटखट बच्चा था, और उस बच्चे के पीछे उसी बच्चे का दादा खड़ा था । ठीक उसी के पीछे फिर एक युवा खड़ा था , युवा के पीछे दूसरा नटखट बच्चा खड़ा था पर उस बच्चे के पीछे कोई दादा या परिवार का मुखिया नहीं था। घटनाक्रम बढ़ चला, दादा जी ने अपने नटखट बच्चे को प्रोत्साहन दिया कि आगे खड़े युवा के कंधे पर चढ़कर प्रदर्शनी देख लो, नटखट बच्चा प्रोत्साहन पाकर युवा के कंधे पर चढ़ गया , और युवा कुछ कह नही पाया, क्योकि उसके पीछे मूंछे ऐठता उसका दादा खड़ा था, लेकिन दूसरे नटखट बच्चे के पीछे दादा प्रोत्साहन और रक्षा को नहीं था , सो वह बच्चा चुपचाप जमीन में नीचे ही खड़ा रहा। 
बस यही कहानी हिंदी के पंचमाक्षर की है पंचमाक्षर समझाने के लिए इतना अधिक लिखकर समझाया जाता है कि सामने वाला भाग खड़ा होगा या सिरदर्द से मस्तक रगड़ने लगेगा, पर मैं सपाट सरल शैली में एक कहानी बतौर प्रयोग ही बतला रहा हूँ । सरल सपाट ठेठ शैली में समझिए, बस यह खानदान समझ लीजिए परिवार के दादा, ताऊ,नटखट बच्चे क वर्ग - क, ख, ग, घ, ङ, च वर्ग - च, छ, ज, झ, ञ, ट वर्ग- ट, ठ, ड, ढ, ण त वर्ग- त, थ, द, ध, न, प वर्ग - प, फ, ब, भ, म, पहले आप समझिए कि ङ, ञ, ण, न म जब यह आधे रुप में आते है तब नटखट बच्चे बन जाते है जिनकी बिंदीं बनती है व अनुस्वार का रुप ले लेते है। बच्चे के पीछे यदि दादा बाबा उसी कुल वर्ग का है तो बच्चा आगे वाले के कंघे पर चढ़ जाएगा, क्योंकि पीछे उसको हौंसला देने सम्हालने देखभाल को उसका बाबा दादा है। सन्दर्भ को संदर्भ लिख सकते हैं, क्योंकि आधा न (बच्चे के पीछे ,उसके कुल त वर्ग का द वर्ण बाबा बनकर पीछे खड़ा है ,व बच्चे को प्रोत्साहित कर रहा है, कि बेटा आगे वाले के कंधे पर चढ़ जा , मैं तो हूँ तेरी रक्षा को , इसलिए स के कंधे पर आधा न चढ जाएगा और स बेचारा कुछ कह नहीं पाएगा । छन्द में छ की छाती पर आधा न चढ़ जाएगा, क्योंकि त वर्ग का द दादा गिरी करते हुए आधा न (अपने नटखट बच्चे ) को प्रोत्साहित कर रहा है , अतः ‘छंद‘ ऐसे लिख दिया जाता है। गङगा = गंगा क वर्ग का ग आगे पीछे है, अतः बेफ्रिक ङ. ग के कंधे चढ जाएगा कण्ठ = कंठ. - में आधा ण( बच्चा ) क के ऊपर चढ़ जाएगा क्योंकि सहारे को ट वर्ग का उसका दादा ठ है। सहारे को , बेचारा क कुछ कह नहीं पाएगा। गन्धारी= गंधारी- आधा न के पीछे उसका दादा ध खड़ा है , अतरू आधा न बच्चा ग के कंधे पर चढ़ गया , बेचारा ग चुप ही रहेगा लेकिन, किसी नटखट बच्चे के पीछे उसके कुल ( वर्ग) का दादा बाबा नहीं खड़ा हो तो बच्चा कुछ नहीं कर पाएगा। जैसे- सन्मति- यहाँ संमति नहीं लिख सकते। कारण आधा न (बच्चे के पीछे उसके कुल वर्ग का दादा बाबा नहीं है। अतः बच्चा अपने स्वतंत्र रुप में आएगा य. र ल व श ष स ह क्ष इनका कुल वर्ग नहीं है , यह अपने आधे रुप में यथा स्थान आएगें,किसी के ऊपर नहीं चढ़ेगें। आधा र का जरुर रेफ बनकर पीछे के वर्ण पर जाएगा इसकी एक संस्कृत सूक्ति मुझे कुछ कुछ याद है। जल तुम्विका न्यायेन रेफस्य च ऊर्द्धगमनम् जिस प्रकार जलतुम्वी हवा रहित होने से जल में ऊर्द्धगमनम् हो जाती है उसी न्याय अनुसार ‘र’ यदि बिना स्वर का हो तब पीछे की ओर ऊर्द्धगमनम् ( शिरोरेखा के ऊपर ) हो जाएगा त्र ज्ञ का आधा रुप होता नहीं है इसी तरह यह बहुत ही नया आसान तरीका है समझने का ्््््््््अनुनासिक या चंद्रबिंदु ( ँ ) अनुनासिक, स्वर होते हैं, इनके उच्चारण करते समय मुँह से अधिक और नाक से बहुत कम साँस निकलती है। इन स्वरों के लिए चंद्रबिंदु ( ँ ) का प्रयोग होता है और ये शिरोरेखा यानी शब्द के ऊपर लगने वाली रेखा के ऊपर लगती है। ऐसे कुछ शब्द हैं। 
उदाहरण- माँ, आँख, माँग, दाँव, डाँट, दाँत. चाँद आदि। यह ँ चंद्रबिंदु इसलिए शोभित है कि इसके साथ कोई और मात्रा नहीं है , अनुस्वार बिंदी ं लगाना उचित नहीं है , जैसे - मां आंख मांग दांव डांट दांत चांद , आप इन शब्दों में अनुस्वार का उच्चारण करके देख लीजिए , आपको अनुभव हो जाएगा कि आप क्या उच्चारण कर रहे हैं। कई बार अनुनासिक या चंद्रबिंदु के स्थान पर बिंदु का भी प्रयोग किया जाता है, ऐसा तब होता है जब शिरोरेखा के ऊपर कोई और मात्रा भी लगी हो। जैसे- इ, ई, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राओं वाले शब्दों में चंद्रबिंदु होने के बाद भी इन मात्राओं के साथ बिंदु के रूप में ही अनुनासिक को दर्शाया जाता है। ऐसे कुछ शब्द हैं- उदाहरण- कहीं नहीं, मैं सिंह , सिंघई आदि ,(कहीँ, नहीँ,सिँह, सिँघई लिखना सही नहीं है दृकई बार अनुनासिक की जगह अनुस्वार का प्रयोग शब्द के अर्थ को भी बदल देता है। जैसे- हंस (जल में रहने वाला एक जीव), हँस (हँसने की क्रिया) हँसना सही है, पर हंसना है स्वांग(स्व़अंग) अपना अंग, स्वाँग (नाटक) आँगन √ आंगन × है पूँछ √ (दुम) पूंछ × है 
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अनुस्वार और अनुनासिक में अंतर:- 

अनुस्वार व्यंजन है और अनुनासिक स्वर है। अनुस्वार को पंचम अक्षर में बदला जा सकता है, अनुनासिक को बदला नहीं जाता। अनुस्वार बिंदु के रूप में लगता है और अनुनासिक चंद्रबिंदु के रूप में। अगर शिरोरेखा के ऊपर मात्रा लगी हो तो अनुनासिक भी अनुस्वार या बिंदु के रूप में लिखा जाता है जबकि अनुस्वार कभी चंद्रबिंदु के रूप में नहीं बदलता। अब आजकल कुछ विचित्रताओं को मान्यताएं मिल रही है रंग (सही रुप है - रङ्ग ) पर की बोर्ड की अनुलब्धता व हिंदी राज भाषा समिति ने ङ को अनुस्वार रुप बिंदी ं में लिखना प्रारंभ किया, किंतु र पर अनुनासिक चंद्र बिंदु ँ लगाकर रँग लिखना कहाँ से प्रारंभ किया गया है, मुझे संज्ञान नहीं है , इसी तरह अंग व अँग है। छंदों में मात्रा घटाने बढ़ाने में इनका उपयोग किया जा रहा है। फेस बुक पर अब प्रलाप चल पड़ा है, बहुत से तर्क करने की जगह कुतर्क पर आ जाते हैं, हमने जो शिक्षा पाई है वह , आप सबसे साझा की है। जिनको हमारा आलेख अच्छा लगे उनका आभारी हूँ। व जिनको त्रुटियाँ महसूस होती हों,उनसे भी क्षमा प्रार्थी हूँ कि हो सकता वह सही हों, व मैं गलत। यदि आप दोहा और चैपाई लिखने में अपनी कलम परिपक्व कर लेते है या है , तब आप मात्राएं घटा बढ़ाकर अनेक मात्रिक छंद लिख सकते है । 
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 7-विभिन्न छंदों के कुछ उदाहरण मैं रोटी विषय लेकर कुछ विविध छंदो में ्रोटी लिख रहा हूँ दोहा छंद में (13 - 11) रोटी ऐसी चीज है, जिसकी गिनो न जात । 
भूख और यह पेट को, है पूरी सौगात ।।
 ्यदि दोहे के विषम चरण में दो मात्राएँ बढ़ जाए तब दोही बन जाती है दोही ( 15- 11) 
 अब रोटी ऐसी जानिए, जिसकी रहे न जात । 
भूख और यह तन पेट को, है पूरी सौगात।।

 सोरठा छंद में(11-13विषम चरण तुकांत) यदि दोहा को उल्टा लिख दिया जाए व तुकांत विषम चरण में मिला दी जाए ,तब सोरठा छंद बन जाता है इसकी गिनो न जात, 
रोटी ऐसी चीज है। है पूरी सौगात, भूख और यह पेट को ।। 

साथी छंद में- (12-11)यदि दोहे के विषम चरण में एक मात्रा कम हो जाए व यति दो दीर्घ हो जाए तब साथी छंद बन जाता है रोटी कभी न माने, जात पात का फेर । 
पेट जहाँ है भूखा, करे अधिक न देर ।। 

 मुक्तामणि छंद में -
(13 - 12) यदि दोहे के सम चरण में ग्यारह की जगह 12 मात्रा हो जाए व पदांत दो दीर्घ हो जाए , तब मुक्तामणि छंद हो जाता है -
 जात न पूंछे रोटियाँ, इसको समझो ज्ञानी। 
जिसके घर में पक उठे,चमके दाना पानी।। 

उल्लाला छंद में -
(13 - 13 ) (चारो दोहे के विषम चरण ) यदि दोहे के सम चरण में ग्यारह की जगह तेरह मात्राएँ हो जाए ,व पदांत दीर्घ हो जाए तो उल्लाला छंद हो जाता है सब रोटी को घूमते, रखे सभी यह चाह है । रोटी भरती पेट है, रोटी नहीं गुनाह है ।। 

रोला छंद ( 11-13 ) मापनी- 
दोहा का सम चरण 3244 या 3424 यदि दोहे को उल्टा करके, सम चरण को मापनी से लिखा जाए तो रोला बन जाता है रोटी का हम गान , लिखें हम रोटी खाकर । 
बल का देती दान,पेट में रोटी जाकर ।। 
करते हम सम्मान, नहीं है रोटी छोटी । 
अपनी कहें दुकान, सभी जन रोजी रोटी ।। 
 रोला में ़ उल्लाला करने पर छप्पय छंद बन जाता है रोटी तन का जानिए, अंतरमन शृंगार है। 
रोटी जिस घर फूलती, रहती सदा वहार है।।
 ्बरबै छंद में 12 - 7 रोटी तेरी महिमा , करें प्रकाश । भूखा पाकर ऊपर , भरे हुलाश ।। 

अहीर छंद ( 11 ,़11 ) चरणांत जगण ही करना होता है रोटी मिले सुभाष । आता हृदय प्रकाश । रोटी बिन सब दीन। निज मुख रहे मलीन ।।
 चैपाई छंद में ( 16 - 16) 
रोटी तन का जीवन जानो ।
 रोटी की सब, महिमा मानो ।। 
रोटी बिन समझो सब सूखा । 
बिन रोटी यह तन है भूखा।।
 सरसी छंद में (16- 11) चैपाई चरण, दोहा का सम चरण रोटी को जिसने पहचाना,उसको भी भगवान। 
कभी न भूखा सोने देते, रखते उसका ध्यान।। 
ताटंक लावणी छंद में (मुक्तक)16- 14 चैपाई चरण, चैपाई चरण में दो मात्रा कम करके 14 मात्रा या (मानव छंद ) रोटी की महिमा का हमने,इतना तो बस जाना है। 
इसके बिन सब सूना सा है,पूर्ण तरह से माना है।।
 रोटी की जब चाह जगे तब,इसको देना होती है। 
 पड़े भूख पर भारी रोटी,इसका ऐसा दाना है।।
 पदावली -आधार छंद चैकड़िया छंद बात न समझो छोटी । भूख मिटाती जाती रोटी, पतली हो या मोटी।। 
रोटी पाकर जो मदमाता,करे बात को खोटी। 
कहे गुणीजन उसकी कटती,बीच बजरिया चोटी, निराकार वह परमपिता है,हम सब उसकी गोटी कहत सुभाषा उसकी रोटी,हर्षित करती बोटी।।
 ्््््इस तरह आप कई छंद लिख सकते है ,दोहा छंद में एक ही मात्रा घटने बढ़ने पर छंद का नाम बदल जाता है, मेरा मानना कि सभी मात्रिक छंदों में दोहा छंद सभी छंदो का जनक व चैपाई सभी छंदो की जननी है। 
 पटल पर पोस्ट की निर्धारित सीमा है, अन्यथा कई छंदो का उल्लेख करता, जो दोहा चैपाई में मात्रा घटाने बढ़ाने पर बनते है, अतः कुछ मनोविनोद के साथ बात का समापन है- यदि आज यह महाकवि होते तब यह लिख सकते थे शायद (मनोविनोद ) उन्हीं के दोहों में रोटी कबीर दास जी चलती चक्की देखकर, कबिरा भी हरषाय । 
कविरन रोटी सेंककर, मुझको शीघ्र बुलाय ।।
 रहीम जी रहिमन रोटी दीजिए,रोटी बिन सब सून ।
 पानी भी मीठा मिले,समझो तभी सुकून ।। 
बिहारी कवि रोटी के सब दोहरे,रोटी की है पीर। 
रोटी खाकर ही झरें,दोहे मुख के तीर।।
 कुम्भनदास जी संतो को मत सीकरी,पड़े न कोई काम।
 रोटी हो गरमागरम,कुम्भक का विश्राम।। 
महाकवि केशव जी केशव बूड़ा जानकर, बाबा मुझें बनाय। चंद्रवदन मृगलोचनी,रोटी एक थमाय।।
 हुल्लड़ मुरादाबादी जी पहले रोटी खाइए,पीछे लिखना छंद। बैगन का भुरता तले,समझो परमानंद।। 
चकाचक रोटी खायें । हमे भी वहाँ बुलायें ।। 
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आलेख-सुभाष सिंघई, जतारा 
प्रस्तुति-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 
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 8-’काव्य के प्रमुख दोष:- 

(जिनको दोहा छंद में प्रमुखता से दूर रखने का प्रयास करना चाहिए):-
 काव्य के वे तत्व जो रस के स्वाद में बाधा उत्पन्न करें अथवा रस का अपकर्ष करें उसे ‘काव्य दोष’ कहते हैं। कई आचार्यो ने काव्य दोषों की ओर संकेत किया है, और कई दोषों के भेद वर्गीकृत किए हैं। दोषों का विभाजन करना दुष्कर है , ‘काव्यप्रकाश’ में 70 दोष बताए गये हैं।
 इन्हें पाँच प्रमुख श्रेणियों में विद्वान मानते हंै- 
 १-पद दोष २- पदांश दोष ३- वाक्य दोष. ४- अर्थ दोष ५- रस दोष उनमें से कुछ प्रमुख दोष (दोहा के सृजन उपयोगी) मैं सोदाहरण प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ - 

 1- श्रुति कटुत्व दोष (शब्द दोष ) 
जब काव्य के सृजन में कठोर लगने वाले शब्द प्रयोग होते हैं। जो सुनने में अच्छे नहीं लगते हैं, उसे ‘श्रुति कटुत्व’ दोष कहते हैं। जैसे- उदाहरण- उत्तेजक हो जब सृजन,कथन सभी गूढ़ार्थ। अन्वेषण हो अनवरत,क्या ‘सुभाष’ भावार्थ।। (यह दोहा‘श्रुति कटुत्व दोष’में माना जाएगा ) यदि इसको पांडित्य प्रदर्शन की अपेक्षा सरलीकरण से लिखें तब लिखा जा सकता है जो सदैव जन साधारण में प्रचलित रहेगा। मत विचार ऐसे लिखें,समझ न आए अर्थ। कठिन शब्द करते सदा,भाव आपके व्यर्थ।। 

2 -च्युत संस्कृति दोष (शब्द दोष) 
काव्य में जहाँ व्याकरण विरोधी शब्दों का प्रयोग होता है उसे ‘च्युत् संस्कृति’ काव्य दोष कहते हैं। उदाहरण- बागों की लावण्यता, दे सुंदर परिवेश। मन मयूर भी नाचता, शीतल रहे हृदेश।। ‘बागों की लावण्यता’ के स्थान पर , ‘बागों का लावण्य भी’ होना चाहिए ‘लावण्यता’ व्याकरणिक दोष है। सही है - बागों का लावण्य भी, दे सुंदर परिवेश। 
मन मयूर भी नाचता, शीतल रहे हृदेश।। 
 ‘अरे अमरता के चमकीले पुतलो ‘तेरे’ वे जयनाद’ (जयशंकर प्रसाद जी की कामायनी की पंक्तियाँ) इस उदाहरण में ‘तेरे’ के जगह ‘तुम्हारे’ आना चाहिए था। 
यहाँ विद्वान समीक्षकों ने व्याकरणिक दोष कहा है। 

 3- ग्राम्यत्व काव्य दोष (शब्द दोष) जब खड़ी हिंदी के काव्यों में कवि अपनी काव्य भाषा में देशज या ग्रामीण शब्दों का प्रयोग करे वहाँ ‘ग्राम्यत्व काव्य दोष’ होता है। जब ‘सुभाष’ दर्शन करे, जोड़ें दोनों हाथ। मुड़ी धरे माँ के चरण, माँगें उनसे साथ।। (यहाँ -‘मुड़ी’ की जगह ‘शीष’ शब्द का प्रयोग करना चाहिए , हिंदी में रचित काव्य में ‘मुड़ी’ ‘ग्रामत्व शब्द दोष’ है

 4- अश्लीलत्व काव्य दोष (शब्द दोष) काव्य में जहाँ अश्लील, लज्जा, घृणा आदि सूचक शब्दों का प्रयोग होता है। वहाँ ‘अश्लीलत्व काव्य दोष’ होता है। 
उदाहरण- लगा चाटने थूककर, आकर वह नादान। 
 अब ‘सुभाष’ मैं क्या कहूँ, बात हुई अवसान।।
 ‘थूककर चाटना’ लज्जा जनक शब्द है। 
अतः यहाँ ‘अश्लीलत्व काव्य दोष’ है। इसको इस तरह भी लिखा जा सकता है - 
बदल गया कहकर कथन,आकर वह नादान। 
 अब‘सुभाष’ मैं क्या कहूँ, बात हुई अवसान।। 

दूसरा उदाहरण - 
 जलवा दिखा जवानियाँ,रहीं नदी में तैर। 
 अब ‘सुभाष’ तुम चुप रहो,पीछे मोड़ो पैर।। 
इस दोहे का पहला चरण ’लज्जा जनक’ है। 
अतः यहाँ ‘अश्लीलत्व काव्य दोष’ है इसको इस तरह लिखा जा सकता है -
 नहा रहीं हैं युवतियाँ, यहाँ नदी में तैर। 
 अब ‘सुभाष’ तुम चुप रहो,पीछे मोड़ो पैर।। 

5- क्लिष्टत्व काव्य दोष ( शब्द दोष ) 

जहाँ काव्य में ऐसे दुरूह शब्दों का प्रयोग किया जाए। 
जिनका अर्थ बोध होने में कठिनाई हो उसे ‘क्लिष्टत्व काव्य दोष’ कहते है।
 उदहारण- दृश्यम सब वीभत्स हैं, महाकाल का जाल। भूत मंडलम् है यहाँ,हिमगिरि उन्नत भाल ।।
 (यह ‘क्लिष्ठ काव्य दोष’ है) इसका सरलीकरण निम्न है- दृश्य यहाँ कुछ है अजब,शिखर हिमालय देख। महाकाल की मंडली,खींच रही कुछ रेख।। 

 6- न्यून पदत्व काव्य दोष (शब्द दोष) जिस काव्य रचना में किसी ‘शब्द’ या ‘पद’ की कमी रह जाए वहाँ ‘न्यून पदत्व दोष’ होता है। 
उदाहरण- दया चाहता में सदा, झोली रखता साथ। 
 होना भी मत चाहता, आकर यहाँ अनाथ।। 
 (उपरोक्त दोहे में, कुछ शब्दों की कमी है , जैसे आप ‘किसकी’ दया चाहते है ? अतः सही दोहा होगा - 
 दया आपकी चाहता, मनसा रखता साथ। 
मिले नेह की छाँव जब, होगा कौन अनाथ। 

 7- अधिक पदत्व काव्य दोष (शब्द दोष) 
जहाँ काव्य में आवश्यकता से अधिक पदों का प्रयोग किया जाता है। वहाँ ‘अधिक पदत्व काव्य दोष’ माना जाता है। उदाहरण - सदा भ्रमर ही घूमता,पीने पुष्प पराग।
 फँस जाता है लोभ में,बंद कली के भाग।। 
इस उदाहरण में ‘पुष्प’ शब्द अधिक है। क्योकि पराग पुष्प में ही होता है अतः यहाँ अधिक ‘पदत्व काव्य दोष’ है। 
 सही होगा - 
सदा भ्रमर ही घूमता, पीने मधुर पराग ।
 फँस जाता है लोभ में, बंद कली के भाग।।

 8-अक्रमत्व काव्य दोष-(शब्द दोष) 
जहाँ व्याकरण की दृष्टि से पदों का क्रम सही नहीं हो। वहाँ ‘अक्रमत्व काव्य दोष’होता है। 
उदाहरण- चल पग जब श्री राम ने,किया मार्ग तैयार। 
तब ‘सुभाष’ सीता लखन,करें उसे स्वीकार।। 
 (उपरोक्त-दोहे में ‘चल पग’क्रम सही नहीं है) सही क्रम है-
पग चल अतःसही होगा पग चल जब श्री राम ने,किया मार्ग तैयार। तब ‘सुभाष’ सीता लखन,करें उसे स्वीकार।। 

 9- दुष्क्रमत्व काव्य दोष जहाँ शास्त्र अथवा लोक मान्यता के अनुसार दो का क्रम सही नहीं हो वहाँ ‘दुष्क्रमत्व काव्य दोष’ होता है। 
उदाहरण- गोरी ने गागर भरी,सहज नदी का नीर। 
 फिर‘सुभाष’ छोटा कलश,भरा कुवाँ के तीर।।
 ( जब नदी के जल से गागर भर ली है , तब कुवाँ के तट से छोटा कलश भरना, ‘दुष्क्रमत्व काव्य दोष’ है ) 
 दूसरा उदाहरण- 
 अगर नहीं सौ नोट हैं,दीजे आप हजार।
 हो ‘सुभाष’ यदि लाख भी,वह भी हैं स्वीकार।। 
 उपरोक्त-दोहे में सभी क्रम सही नहीं है, यह ‘दुष्क्रमत्व काव्य दोष’ है सही इस प्रकार से होगा -
 लाख नोट यदि दूर हैं,दीजे आप हजार। 
 पर हजार भी जब नहीं,तब सौ का स्वीकार।। 

 10- वाक्य भंजक दोष 
 दोहा छंद का प्रत्येक चरण एक पूर्ण वाक्य होता है। अतः जहाँ एक वाक्य (चरण) के पद दूसरे वाक्य में प्रविष्ट हों अथवा वाक्यों में परस्पर सामंजस्यता न हो, ‘वाक्य भंजक दोष’ माना जाता है। 
बदल जमाना अब रहा, कुछ भी नहीं विचित्र। 
 तरह-तरह अब छद्म के,उद्गम दिखें चरित्र।। 
उपरोक्त- दोहेे में दूसरा चरण ,किसी भी चरण से तदात्म स्थापित नहीं कर रहा है , अतः ‘वाक्य भंजक दोष’ आ रहा है , क्योंकि जब जमाना बदल रहा है , व तरह - तरह के छद्म चरित्र दिख रहे है , तब सब विचित्र ही देखने मिल रहा है , जवकि उपरोक्त दोहे का दूसरा चरण कह रहा है कि ‘कुछ भी नहीं विचित्र’ अतः दोहे में वाक्य भंजक दोष होगा। 
सही इस प्रकार से होगा- 
बदल जमाना अब रहा, दिखते दृश्य विचित्र।
 तरह-तरह अब छद्म के,उद्गम दिखें चरित्र।। 

 11- वचन दोष - 
 जब काव्य के चरण , एक वचन - बहुवचन का ध्यान न रख पाएँ तब ‘वचन दोष’ माना जाता है 
 आया है जब इस जगत,कर ‘सुभाष’शुभ काम। 
 दाम गुठलियों के मिलें,जब हो मीठा आम।। 
 -उपरोक्त दोहा में ‘वचन दोष’ है, गुठलियाँ बहुवचन है और आम एक वचन है, एक आम से एक ही गुठली मिलेगी। 
 तब सही होगा- 
चर्चा करता यह जगत,यदि‘सुभाष’ शुभ काम। 
 गुठली रखती मोल है,जब हो मीठा आम।। 

 12- लिंग शब्द दोष 
 स्त्रीलिंग और पुलिंग शब्दों का प्रयोग सही न हो , तब ‘लिंग शब्द दोष’ माना जाता है 
 ऊपर वाला एक है,हम सब उसके अंश। 
फिर अवतारी ले जनम, आगे करते वंश।। 
 ‘ऊपर वाला’ पुलिंग है व ‘वंश’ भी पुलिंग है, पर ‘अवतारी’ यह स्त्रीलिंग प्रत्यय है , तब सही होगा- 
ऊपर वाला एक है, हम सब उसके अंश। 
फिर आए अवतार है,और चले है वंश।। 

 13- पुनरुक्त काव्य दोष- (अर्थ दोष) 
जहाँ अर्थ की पुनरुक्ति हो अर्थात एक ही बात को दो अलग-अलग शब्दों के माध्यम से कहा जाए वहाँ ‘पुनरुक्ति अर्थ काव्य दोष’ होता है। 
मत ‘सुभाष’ अब जाइये, जाना है बेकार। 
 अंघे -बहरे हैं वहाँ, सूरदास नर-नार।। 
 इस -उदाहरण में जाइये -जाना व अंघे- बहरे - सूरदास एक ही अर्थ के घोषक है अतः यहाँ ‘पुनरुक्ति अर्थ काव्य दोष’ है।
 सही होगा - 
मत ‘सुभाष’ अब जाइये, श्रम करना बेकार। 
 रहते बहरे जब वहाँ, कौन सुनेगा सार।। 

 14-प्रसिद्धि-विरुद्ध काव्य दोष(अर्थ दोष)
 काव्य में जहाँ लोक या शास्त्र विरुद्ध वर्णन हो, वहाँ ‘प्रसिद्धि-विरुद्ध अर्थ काव्य दोष’ होता है। 
उदाहरण- 
मदिराचल सब पूजते,देखें शिवा पिनाक। 
 नत मस्तक हैं देवता, समझें उसकी धाक।। 
 इस पंक्ति में पिनाक अर्थात शिव धनुष का संबंध मदिराचल से है। जो लोक और शास्त्र के विरुद्ध है। पिनाक का संबंध शिव व हिमालय पर्वत से है। 
अतः यहाँ ‘प्रसिद्धि-विरुद्ध अर्थ दोष’है,सही होगा 
 सभी हिमालय पूजते,देखें शिवा पिनाक। 
 नत मस्तक हैं देवता, समझें उसकी धाक।। उपरोक्त प्रमुख दोष है, जिनसे काव्य सृजन करते समय सावधानी रखनी चाहिए और भी दोष है, जिन पर आगामी दिनों में प्रकाश डालेगें, दोहा सृजन में उपरोक्त दोषों से बचाव करना चाहिए ।। ---0000---- 
आलेख- 
 सुभाष सिंघई (एम.ए.हिंदी साहित्य,दर्शन शास्त्र) जतारा (टीकमगढ़) 
 संस्तुति- श्री गोकुल प्रसाद यादव ‘कर्मयोगी’ जी (बुड़ेरा )
 संपादन व प्रस्तुति- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, टीकमगढ (म. प्र.) 

 श्री गणेशाय नमः
 (बुंदेली दोहा संकलन) 
 संपादन- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 
 श्री गणेशाय नमः 31 नाम 1-विघ्नविनाशक 2-गणपति 3-गिरिजासुवन 4-गणेश। 5-लंबोदर, 6- सिद्धिप्रिय 7-वक्रतुण्ड 8- विघ्नेश 9-योगाधिप 10-प्रथमेश, 11-मंगलमूर्ति 12-कवीश। 13-सिद्धिविनायक 14-भुवनपति 15-शूपकर्ण 16-अवनीश 17-एकदंत, 18-एकाक्षरा 19-धूम्रवर्ण 20- ढुंढिराज 21-गौरीनंदन 22-विघ्नहर 23-द्वैमातुर 24-विद्यावारिधि 25-गजबदन 26-अंबिकेय 27-महाकाय 28-कपिल 29-सुमुख 30-क्षेमंकरी 31-उमासुत
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 1-श्री गणेशाय दोहावली:- 

 1-रामगोपाल रैकवार,टीकमगढ़

 गजमुख, गणपति,गजबदन,गदाधरन,गण-ईस। 
गणाध्यक्ष, गजकरन,द्वय,गजदंता, गज-सीस।।

 जनम दियो संसार में,गणपति नै गणतंत्र।
 है श्री गणेशाय नमः,रिद्धि सिद्धि कौ मंत्र।। 

 श्री गनेस जू राखियो,गण-तंत्रों की लाज।
 गन-तंत्रों का जोर है,चारउँ तरफा आज।। 
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 2- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी‘ 

 पैला पूजा होत है, जै गनेस माराज।
 कष्ट हरत सुख देत हो, पूरन होवे काज।।

 लडुवा भाउत है तुमै,दूबा से खुस होत। 
खूब सजौ दरबार है,जगमग हो रइ जोत ।। 

 खूब जतन करकै थके,श्री गनेस सें आस। 
कोरोना पाछें परो,कर दौ ई कौ नास।।

 करैं थराई आप लो, गौरी नंदन आज। 
आन बिराजौ मोय घर,‘राना’ रख लौ लाज।। 

 गनपति बप्पा आप खौं, सब कातइ विघ्नेश । 
‘राना’ राखन चात है, अपने अबइँ हृदेश ।।

 बिनतुआइ ‘राना’ करै, बड़़ी सूड़ महराज । 
जय बुंदेली जौ पटल,रखियो ईकी लाज ।।

 मंगल मूरत हंै अपुन, काटौ ‘राना’ कष्ट ।
 संगै भारत राष्ट्र कै, विघन करौ सब नष्ट ।।

 गनपति बप्पा आपकौ, सजौ रयै दरबार।
 ‘राना’ मुड़िया खौं झुका, चाबै बेड़ा पार ।। 
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3-प्रभु दयाल श्रीवास्तव‘पीयूष’,टीकमगढ़ 

 विघन विनाशक आप है,गननायक गणराज। गौरी सुत शंकर सुअन, एक दंत महराज ।। जननी हैं जगदंबिका, पितु श्री महा महेश। सिद्धि बुद्धि सँग आनकें,कृपा करौ गनेश।। हे शिव शंकर के सुअन, पारबती के लाल। मन मोदक अरपन करें, भाव पुष्प की माल।। पूरो चैक गनेस खों, मिदरा बैठो आंन। फिरत उचट्टा मार कें, कर डारो हैरान।। आँखें उनकी राइ सीं, सूपा से हैं कान। चोंरे चकरे पेट सें, लगत गनेस महान।। हरी दूब नोंनी लगै , जामूं कैंत बराइ। मोदक भोग गनेस कौ, केरा और मिठाइ।। गिरजा जू के लाड़ले, शिव शंकर के लाल। करियौ कृपा गनेस जू, होबें मालामाल।। सबसें पैल गनेस खों , पूजत सब संसार। चरन सरन मैं आव हों, लगा दियौ जू पार।। ---00000----- 4-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़ (म.प्र.) चार भुजा धारी प्रभू, टारौ जगत कलेश । कोरोना खाँ मार दो, पिरथम पूज गनेश ।। अद्भुत रचना देखकें, मन में उठत विचार । लगत झूठ विज्ञान है, या झूठौ करतार ।। मोदक मन खों भा गये, खा गये श्री गनेश । थार सबइ खाली करे, देखत रये महेश ।। ---00000----- 5- सीमा श्रीवास्तव ‘उर्मिल’,टीकमगढ़ काया उपटन सें बनी,सैल-सुता के लाल। मंगल करते गजबदन,सोभै चंदन भाल।। बुद्धि दीजियो गजबदन,सुनियो बिनय हमार। दूर दोष सब राखियो, गणपति तारनहार।। विघ्न हरें, मंगल करें, पूजौ पैल गनेस। मन सें सब सुमरन करौ,हरें कवीस कलेस।। ---00000----- 6-डॉ.देवदत्त द्विवेदी ‘सरस’,बडा मलेहरा श्री गनेस बाधा हरन,करन सफल सब काज। होंनहार प्रभु टारियो, देवन के सरताज।। जै गौरा के लाडले, गनपति सिद्ध गनेस। रिस्पत बारे रोग सें,मुक्त करौ जो देस।। रिद्धि सिद्धि दाता प्रभू,मंगल करन गनेस। ऐसी किरपा कीजिये, जगत न पाबै पेस।। जै गनेस मंगल करन,मंगल के औतार। सरस सकल मंगल करौ,बिघन बिनासन हार।। जै गनेस बाधा हरन, करियौ आंन सहाय। हर्रा लगै न फटकरी, रँग चोखौ हो जाय।। जै गनेस जै गजबदन,करौ सफल सब काज। बाधा बिपदा टारियौ, देवन के सरताज।। ---00000----- 7-अशोक पटसारिया ‘नादान’,लिधौरा जय गजबदन विनायका,गौरी सुत गणनाथ। मोदक प्रिय मुद मंगला, तुमें नवाऊँ माथ ।। गौरी सुत शिव नंदना,हे गणेश गणराज। कृपा करौ ई देश पै, बिघन मिटा दो आज।। प्रथम निवेदन आप सें,प्रथम पूज्य हे नाथ। खुदई समारौ देश खों,सबखों करौ सनाथ।। दूबादल तुमखों चढ़े, मोदक चढ़े बिलात। आन समारौ काज खों,मो खों भौत उलात।। ---00000----- 8-अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल प्रथम-पूज्य गण-देव सें, सीखी है जा बात। जो पूजत माँ-बाप खौं,जगत-पूज्य हो जात।। हो विवाह कि पत्रिका, मूरत ना छपवायँ। कै फिर जौ निशचै करें, कचरा में ना जायँ।। श्री गनेश पूरे करें, सबके मंगल-काज। जियै भरोसौ होय सो, विनती कर लो आज ।। ---00000----- 9-संजय श्रीवास्तव,मवई,टीकमगढ़ लडुअन भोग चढ़ायकें,सुमिरों तुमै गनेस। कोरोना चैपट करो,सुखी रहें सब देस।। गनपति गोल मटोल हैं,लंबी उनकी सूंड़। आफत में पूरो जगत,पाउन पटकत मूँड़।। ब्यादें हरें गनेस जू,सब मंगल कर देत। पैलउँ मन सें पूज लो,सबई कष्ट हर लेत।। ---00000----- 10-राज गोस्वामी, दतिया(म.प्र.) लढुअन के है लालची,देखत ही ललचात । श्री गणेश को है सुमर,सबइ काम बन जात।। कौनउ भी,शुभ काम में, पैले पूजे जात । पुज कें सूँड़ हिलात हैं,दिन हो चाहे रात।। इनके दर्शन होत ही,जी ठंडौ हो जात। बरसत कृपा गणेश की,मन चाहो सुख पात।। ---00000----- 11- वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़(म.प्र.) श्री गनेश भगवान खों,हाँत जोर पिरणाम। जगतन पैलउँ लेत हम,रोजइ उनकौ नाम।। सुमरन भजन गनेश कौ, करतइ हम दिन रात। बिघन सबइ हट जात हैं,सब जानत यह बात। कछु करबे के पैलऊँ,लो गनेश कौ नाम। बिगरे भी बन जायेंगे, उसके सबरे काम।। ---00000----- 12- सीताराम राय, टीकमगढ़ माता के तुम लाड़ले, प्यारे पुत्र गनेस । विघ्न हरो मंगल करो, मैटो कठन कलेश।। पैला पूजा होत है, देवन के हो देव। रिद्धी-सिद्धी देत हो,करूँ आपकी सेव ।। सबसे पैला हो पुजत, विघ्न करत हो दूर। सूपा जैसे कान से, सुनियो विनय हजूर ।। ---00000----- 13- शोभाराम दांगी इंदु,नदनवारा भोर दुपरिया साँझ कें,चरनन डरो तुमाय। किरपा करौ गनेस जू,हर कारज बन जाय।। मैं चरनन की धूर हूँ,मोय न तनकइ ग्यान। अक्कल के दाता तुमइँ,जय गनेस भगवान।। जौन घरै शुभ काज हों,पैले पूजे जात। ऊके घर संगै तुरत,मूसक वाहन आत।। चरन पखारूँ आपके,गौरी पुत्र गनेस । ‘दाँगी’ लज्जा राखियौ, विघ्नेसुर विघनेस ।। ‘दाँगी’ सरन तुमाइ है ,गनपत हे गणराज । मूसक वाहन गज बदन,गननायक सुर ताज ।। लम्बोदर गज राज को,‘दाँगी’ पूजत रोज । पिथम पूज गणराज ये ,खावै छप्पन भोज ।। जय,जय,जय गणराज की,जयहो सिद्ध म्हराज शिव के हौ तुम लाड़ले,करियौ‘दाँगी’ काज ।। ललन लाड़ले आपकी ,प्रथम देव कहलात । दाँगी गनेस आस्था ,लै अठ्वाई ख्वात ।। ---00000----- 14- गुलाब सिंह यादव,लखौरा,टीकमगढ़ सब दैबन में है बड़े, सुनलो देब गनेश। बिगन बिनासन जै हरे,काटै सबई कलेश।। रिद्धि सिद्धि के देवता, धरो गजानन भेष। सबसे पैला पूजियौ,जै जै कहो गणेश।। गौरा के छोरा सुनो,मूसक पै असबार। पैला पूजा सब करे,मिलै सबइ के द्वार।। ---00000----- 15-संजय जैन,मबई, टीकमगढ़ परहित को ना भाव है, मन में भरो कलेश। काम सिद्ध ना होत हैं,पूजौ ऐन गनेश।। अनगित देवी देवता,पूजत पूरौ देश। शुभ कारज की समइया,पैले पुजत गनेश।। लैंके नाव गनेश को,शुरू करे जो काम। गनपति जू किरपा करें,साजो रे परिनाम।। ---00000----- 16-अभिनन्दन गोइल, टीकमगढ़ प्रभु जी मोरे उर बसौ, तुम हौ कृपा निधान। हे गनेश जू आइयौ,करियौ मम कल्यान।। हे गनेश किरपा करौ, बुद्धि विनय औतार। ज्ञान दीप उजयारियौ, शिव सुख कौ आधार।। सद्भावों के देवता, तुम प्रभु सुख करतार। हे गनेश तुम खों करो,वंदन सौ-सौ बार।। ---00000----- 17-डी.पी.शुक्ल ‘सरस’,टीकमगढ़(म.प्र.) गौरा के सुत लाडले,शिव के पुत्र गणेश । प्रथम पूज्य गणराज्य हैं, दूजे श्री अवधेश।। मूषक वाहन बैठ के, मोदक प्रिय कर लेत। श्री गणेश जिन हिय बसे,उयै खूब ही देत।। बिगरे कामइँ है बनत, सुमरत जितै गणेश। जिन सुमरन मन सें करो,ऊके मिटे कलेस।। ---00000----- 18-रामेश्वर राय ‘परदेशी’, टीकमगढ़ जय गणेश गिरजा सुअन, गौरी सुत गणराज। विघ्न हरन मंगल करन, देवों के सर ताज।। शिवा नन्द शंकर सुअन, शैल सुता के लाल। पांव पकर पूजत प्रभु, प्रथम पूज सुर पाल।। ---00000----- 19-डॉ सुशील शर्मा,गाडरवाड़ा,(मप्र) जा बेरा कछु है कठन, किरपा हो महराज। लड़ुआ मोदक भोग है ,पूरन हों सब काज।। गिरजा के मोड़ा सुनो ,मोरे मन की पीर। विघन हरो शंकर सुवन ,मनवा होय अधीर।। हाथ जोर आगें खड़ो ,धरो गजानन लाज। पान सुपारी नारियल ,पूजत हों गणराज।। ---00000----- 20-कल्याण दास साहू ‘पोषक’,पृथ्वीपुर श्री गनेस भगवान जू, विनय सुनों प्रथमेस। माँग! माँगबे कौ अपुन, कर रए श्री गनेस।। हे भगवान! गनेस जू,पूरन करिओ आस। मोखों नाथ बनाइओ, श्री चरनन कौ दास।। गिरजानन्द गनेस जू ,हेरौ मोरी ओर। मैं मूरख नादान हौं ,करौ कृपा की कोर।। शंकर सुअन गनेस जू,उमा लाड़ले लाल। षटमुख के लघु भ्रात है,लोभासुर के काल।। जय गजवदन गनेस जू,रिद्धि-सिद्धि के नाथ। माँ लछमी जू सरसुती, सदा रहत हैं साथ।। शुभ मूरत मोहक परम, अद्भुत रूप-सरूप । प्रथम पुजेरू विश्व के, हैं गनेस जू भूप ।। संरक्षक हितु देव त्रय, ब्रम्हा विष्णु महेस । भोरे के भगवान बन, किरपा करत गनेस।। जय गनेस भगवान जू,रखत विरद की लाज। जहँ सुमरत तहँ आत हैं,तुरत समारत काज।। प्रभु गनेस चिन्ताहरन, विघन विनाशक नाथ । पोषक विद्या हीन पै, धरौ दयामय हाथ।। हे गनेस!भगवान जू, मिलवै दरस असीस। पोषक नैया पार हो,मिटवै मनकी टीस।। ---00000----- 21-मातादीन यादव‘अनपम’,गुना,टीकमगढ़ गोरा के गनपत सदा, सबसै पैल मनात। शंकर जी के लाड़ले,उनखा पैला गात ।। गरो मुड़ी हाथी लगो,चूहा के असवार। चार हात बारे प्रभू,तेरी जै जै कार।। ---00000----- 22-के. के. पाठक,ललितपुर (उ.प्र.) बिघन-हरें मंगल-करें, लयं हो ऐसौ कौल । हर की दौलत आप हो, हे लाला हरदौल ।। पहलों न्यौतौ आप खों, जब होबै सुभ काज । जल्दी आन पधारिओ,कल की जांगां आज ।। हरता करता हौ तुम्हीं,काटो सभी कलेस । बार बार वन्दन करूं, गौरी पुत्र गनेस ।। ---00000----- 23-जयहिन्द सिंह ‘जयहिन्द’,गुडा,पलेरा हे गिरजा के लाडले,तुमें चुखरवा भाय । मोदक प्रिय गनराज के, संगै लडुवा खाय ।। बिन गनेश के होय ना, जग में कोनौ काज । शिव गौरा के ब्याव में, पूजे गय महराज ।। हे गनेश गजराज कौ, तुमने मान बडाव । अपनौ सर कटवाय कें,हाती कौ लगवाव ।। पैलउं पैल गनेस हैं,पूजा में अगवान। एक सांस में जांच लें,पूरौ हिन्दुस्तान ।। गौरा रचे गनेष खौं ,शंकर काटे मूंड़। लगा दई कैसें प्रभू,फिर हांती की सूंड़।। गुन बांचै गुन ही लिखौ,गुन गनेस भंडार। रिद्धि सिद्धि तुम देत हौ,राखौ सबसें प्यार।। लड़ुवा खाकें लाड़ले,गनपत टूटौ दांत। भगत लियाबें आपकों,कतर चोंखरौ खात।। बात समज ना आ रई,पाय अकल ना पेस। शिव गौरा के ब्याव में,कैसें पुजे गनेस।। ---00000----- 24-नरेन्द्र श्रीवास्तव, गाडरवारा, (म.प्र.) मात-पिता को तुम सदा, रखियो ऊँचो मान। खुद करके सिखला गए, श्री गनेस भगवान।। कारज कोई कीजिए, पहले सुमर गनेस। विघ्नहरन, रक्षा करें, हरऊँ सकल कलेस।। प्रेम सबों से कीजिए, निर्मल मन के साथ। प्रभु गनेस रक्षा करें, सिर पे रक्खें हाथ।। --0000--- 25-रघुवीर अहिरवार ‘आनंद’,टीकमगढ बाल सखा सँग खेलते, गनेश जु महाराज। लडुअँन को भोग लगै,सफल होत सब काज।। बलबुधि दाता गनेश जु, शत शत तुमै प्रणाम। विघन बाधा सकल हरन,सफल बनाये काम।। गौरा के तुम लाड़ले,हे ! देवन के देव। पैलुँ पूजै गनेश जु, मँगलकारि सत दैव।। ---00000----- 26-एस.आर.‘सरल’,टीकमगढ़ (मप्र) ई कोरोना काल में,भोतई भओ क्लेश। भारत पै संकट परौ, काँ गय मोय गनेश।। सब ध्याबै गणपति तुमे,करै रात दिन हेत। भौत आदमी सीज रव,खबर काय नइ लेत।। गण के ईश गणेश हो,पारवती के लाल। विघ्न हरौ मंगल करौ, मैटौ सब भ्रम जाल।। कउँ पुज रइ हरतालका,कउँ पुज रये गनेश। भारत जानौ जात है,त्यौहारन कों देश।। मानत हिन्दू धर्म में, पिरथम पूज गनेश। पूज श्रेष्ठ सब देवता,बिरमा बिष्णु महेश।। लोग करत विश्वास हैं,श्रद्धा रखत अपार। बे कत देव गनेश जू, देत बिपत खौ टार।। हमें आज तक नइँ पतों,का साँसी का झूट। फिर भी भौत गनेस में, श्रद्धा रखत अटूट।। हे गनेस किरपा करों, मिटा देव पाखण्ड। पाखण्डी हैं मौज में ,सरल भोग रय डण्ड।। -एस.आर.‘सरल’,टीकमगढ़(मप्र) ---00000----- 27-लखन लाल सोनी,‘लखन’,छतरपुर भारत की जनता दुःखी, विनती सुनो गनेश। कोरोना जल्दी भगै, सव के मिटै कलेश।। ---00000---- 28-आशाराम वर्मा ‘नादान’,पृथ्वीपुर पूरी करियौ कामना, हे गजबदन गनेश। अरजी पै मरजी करौ, प्रथम पूज देवेश।। हे गनेश गिरजा ललन, मूषक के असवार। आकैं दरसन दीजियौ, संतन के रखवार।। मोदक तुमें गनेश जू, धरे सजा कैं थार । रिद्धि सिद्धि दातार जू,आन करौ स्वीकार।। बिघन हरन मंगल करन ,दयाबंत सरकार । करियौ हता गनेश जू,सुखी रहै संसार ।। अला- बला सब टारियौ , लंबोदर महराज । दीन-हीन ‘नादान’ की,राखैं रइयौ लाज ।। ---00000----- 29- प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़, अइयो घरें गनेस जू , कइ ‘प्रमोद’ कर जोर । पाँव परें आहा करें , देखो मोरी ओर ।। अष्व चुखरवा बैलवा, चढ़कें आव गनेस । षरभव संग‘प्रमोद अब, लइयो माइ महेश ।। सपरा खुरा जनेउ दै, चन्दन केसर फूल । दूबा लेव गनेस जू, क्षमा करो सब भूल ।। फरवा धौ आरति करें, टीका करें लिलार । लिपै चैक बैठार कें, कर गनेश जयकार ।। लडुआ भोग गनेस खों,विनती करे ‘प्रमोद’ । ज्ञान बुद्धि दइयो प्रभु, तनक है हम कोद ।। महादेव के पूत खों,पूज देवतन पैल । अब‘प्रमोद’शुभ काज कर,खुल गइ सबरी गैल। करिया मौ कर चाँद को, अहंकार दव ठूंस। रिद्धि-सिद्धि सँग ब्याह लै,प्रेम प्रभा लइ मूंस।। ---0000--- 30- सुभाष सिंघई, जतारा मोइ विनायक जू सुनौ, झुका रयै हम माथ। मिलकै चाउत सब जनै,मिलै आपको साथ।। कात गजाजन आपखौं, एकदंत माराज। पूरै हौतइ आपकी, पूजा से सब काज।। अंबिकेय शंकर सुवन, सबइँ अपुन के नाम। पाँव पखारत हम इतै, मानत तुमखौ धाम।। महाकाय भी कात है , टेड़ी राखत सूंड़। जिनके आगें देवता, पटकत अपनी मूड़ ।। मोदकदाता आपखौं , कात जगत के लोग। विघ्नेश्वर भी है अपुन,हरतइ सबइ कुयोग।। गनपत बप्पा मोरिया, तकौ देश कौ हाल। नेता बगदर बन गय,पटा खाय अब खाल।। ---0000--- 31-भगवान सिंह लोधी ‘अनुरागी’ दमोह अपने भारत देश में, पैंलां पुजत गनेश। सब देवन में हैं बड़े, ध्याबें जिनें महेश।। रिद्धि-सिद्धि शुभ लाभ अरु,सुमरों उमा महेश। तुष्टि-पुष्टि सॅंग आन कें,काटौ कठन कलेश।। लाज राखियो दास की,जय जय आदि गनेश। बिधन हरौ मंगल करौ, लम्बोदर बिधनेश।। गिरजा जू के लाड़ले,मूसा पै असवार। विनती दीनानाथ जू,कर लैयो स्वीकार।। चंदन चांवल फूल उर,मोदक भोग लगांय। जोन बची जूॅंठन प्रभू, ता पीछें हम खांय।। ---0000--- 32-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी गौरी के सुत लाड़ले,प्रथम पूज देवेश। गणपति पद आसीन हैं,जय हो देव गणेश। प्रथम निमंत्रण आपखों,देय रहे देवेश। मंगल कारज हैं रचे,पूरन करो गनेश।। शंकर संग विराजते,गौरी और गनेश। अजब गजब शोभा बनी,जय जय जय देवेश।। जय गनेश शंकर सुवन, बुद्धि प्रदाता देव। आन पधारो गेह मम,मोदक मेवा लेव।। प्रथम गनेश मनाइयो,फिर सब देव मनाव। ब्याव काज को जौ नियम,बड़ी बाइ समझाव।। ---0000--- 33- विद्या चैहान,फरीदाबाद वक्रतुंड श्री गणपती, धारें चंदा भाल। जन-जन कें हो नाथ तुम,सबखाँ करौ निहाल। पान सुपाड़ी नारियल,लड़ुआ तुमैं पसंद। दूर्वा चढ़त प्रसन्न हों,शिवगौरी कें नंद।। दाता तुम बल बुद्धि कें, प्रथम पूज्य गणराज। शुभमंगल आसीस द्यौ,सुफल करौ सब काज।। हर लो विघ्न गनेस जू, पूरी करिओ आस। आओ मोरी टेर सुन,हिरदय करो निवास।। विद्या कें तुम देवता, एकदंत भगवान। सीस नवाऊँ आपके,महिमा करूँ बखान।। मातु पिता दौनउ जनें, बालक कौ संसार। परकम्मा शिव शक्ति की, लेबैं मूस सवार।। --000-- ् 34-’प्रदीप खरे, मंजुल’,टीकमगढ़ ’ गुन गनेश के का कबै, देते सब खौं सीख। मातु-पिता पूजौ सदाँ, नहिं तौ माँगौ भीख।। पैलाँ पूजौ मानकें, रेहौ सुखी हमेश। छोटे खौं छाती लगा, राखत सदाँ गनेश।। दीन दुखी के आसरे, गोरा सुतहिं गनेश। पूजत जिनखौं देवता,मैटत सदाँ कलेश।। पूजा मैं जानौ नहीं,मूरख रहौ हमेश। तौइ दया प्रभु राखियौ, आऔ घरै गनेश।। ’हे, गनेश पूरी करौ,मंशा मोरी आन। कृपा मोहिं पै राखियौ,हौं औगुन की खान।। --000-- 35- बृजभूषण दुवे ‘बृज’, बकस्वाहा मन में चिन्ता मत करो,सुमरत रहो हमेश। पूजा सेवा रव करत, टारत विघन गणेश।। शुरुआत जब जब करो,कौनऊ काज विशेष। ध्यान धरो पूजन करो,लै लव नाम गणेश।। प्रथम पूज जग में विदित,गौरी पुत्र गणेश। मंगलमय मंगल करत,काटत कठिन क्लेश।। मरम कौउ जानत नहीं,सुर नर मुनी सुरेश। पूजें शंकर उमा खुद,आदि अनादि गनेश।। पान फूल मेवा चढ़त,मोदक लड्डू भाय। बृज प्रेमी विनती करत, करियो नाथ सहाय। --000-- 36-रामलाल द्विवेदी‘प्राणेश’,कर्वी(चित्रकूट) शंकर गौरी गोद में,षणमुख और गनेश। बैल बाघ मूषक शिखी,वरनै छवि प्रानेश।। गणपति बप्पा आ रये, सजि हैं हर घर द्वार। शरण पड़ा ‘प्राणेश’ है, विनय करहु स्वीकार।। धूप दीप नैवेद्य से ,पूजा करों तुम्हार। लड्डू भोग लगाइहौं, बाधा हरो हमार।। जय गज बदन गणेश जू, हे गौरा के लाल। मंगल कार्य सँवारि दय,करउ बाल प्रतिपाल।। लक्ष्मी जी के साथ ही,आओ घरहि गनेश। विघ्न हरो ‘प्राणेश’ के, ब्रह्मा विष्णु महेश।। --0000--- 37-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी आ रय आज गनेस जू,करवे,विपता दूर। इनखों प्यारे हैं लगत,लडुआ मोतीचूर।। पावरती के लाडले, तुम घर में आ जाव। संगै लै कें चैंखरौ,हाले लडुआ खाव।। अला-बला सब टारियौ, हे गौरा के लाल। सेवा करें चपेट कें, धरें भोग में माल।। --0000--- 38-डॉ. आर. बी. पटेल‘अनजान’,छतरपुर जय गनेस गिरिजा सुअन,प्रथम पूज गणराज विघ्नहरो मंगल करो,रखियो मोरी लाज।। जय गौरी के लाड़ले, लंबोदर महराज। कोऊ गणपति हैं कहत,वाहन मूषक शाज।। शरण आपकी है प्रभू, जय गणेश गणराज । सेवक की विनती सुनो,पूरण कीजो काज ।। जय गणेश सुमिरन करत,काम शुरू कर देव पूरण होते काम सब,मनवांछित फल लेव।। जय गणेश शंकर सुअन,जय गौरी के लाल। बाधाएँ हमरी हरो, सेवक करो निहाल।। -डॉ. आर.बी.पटेल‘अनजान’,छतरपुर --0000--- 2-विषय - सरसुती’ 1-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ‘राना’ कातइ सरसुती,सबकी मैया आँय। बीना लैकें हात में, ग्यान हमें सिखलाँय।। बैठ हंस बीना लयै,धुतिया फक्क सपेत। पौथी थामै सरसुती ,‘राना’ अक्कल देत ।। राना करतइ कामना, दैव सरसुती ग्यान । बुंदेली भाषा करैं, मिल जुरकैं उत्थान ।। ब्रम्हा की बिटिया बनी, ब्रम्हपुरी में वास। नाम सुरसती जानतइ,‘राना’तकत उजास।। जय बुंदेली है पटल, दैव सरसुती ध्यान । जुड़ौ नाम साहित्य है, ‘राना’ करतइ गान ।। रयी सरसुती की कृपा, जुर गय ‘राना’मित्र । बुंदेली भाषा बनै, सब भासन में इत्र।। ‘राना’ मेनत करत, देत सबइ है संग।। माइ सरसुती भी भरैं, सबखौं नयी उमंग।। 2-प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ (म.प्र.) द्वार खड़ो आहा करों, सुनले मोइ पुकार । छिड़िया पै मुड़िया धरै, नजर सरसुती डार ।। धोरैं उन्ना पैरकें, धरै बगबगो फूल । हँसा बैठीं सरसुती, बीन बजाती झूल ।। बुद्धी विदया वारदो, मूरख धरों ‘प्रमोद’ । मड़िया के मूंड़ां खड़ों, हेर सरसुती कोद ।। ल्याव खड़पुरी भेंट में, माइ सरसुती तोय । नजर दया की डारकै, अक्कल दैदें मोय ।। लटा महेरों दूद गुर, जैंव सरसुती आव । विनती ओइ ‘प्रमोद’ की,कला झला बरसाव।। लतरौंदा माँ जानकै, ममता सें लतयाव । कत प्रमोद माँ सरसुती, दैदों हक्क हमाव।। --000-- 3-सुभाष सिंघई, जतारा लय बाजौ है हात में , तकौ सरसुती मात। बैठी राती हंस पै, उन्ना धवला रात।। हर अक्छर में देखतइ, उनकौ ग्यानी रूप। माइ सुरसुती मौइ खौं , लगतीं नौनीं धूप।। वेदन ग्रंथन में लिखी, मैमा अपरमपार। करत सुरसुती साधना, करकै सब जयकार।। कृपा करौ अब सुरसुती,रख लो मौरौ ध्यान। रखियौ दास सुभाष की,छंदन में पैचान।। दुनिया भर कै कात है,लगत आँग वरदान । हात सुरसुती जित लगत,बनत बोइ विद्वान ।। कलम हमाइ चल रयी , साँसी कात सुभाष । मिलै सरसुती से सदा,हमखौं ग्यान प्रकाश ।। ---0000--- ्4-शोभाराम दाँगी ‘इंदु’,नंदनवारा कर में वीणा धारती,कमलासनी सुहात। कंठ विराजो सरसुती ,‘दाँगी’ तुमें मनात।। करें सरसुती कौ सदा,सुर नर मुनि गुणगान। भजन इंदु सोई करें, भजन शारदा मान।। शेष शारदा सरसुती ,बिरमा, बिष्णु, महेश। दाँगी नित गुन गात हैं ,नारद भजत गनेश।। विध्या देवी सरसुती ,कर वीणा झंकार। हो प्रसन्न माँ ‘इंदु’ पै, इतना कर उपकार।। पाँच सितम्बर हौम दो ,देत सबै वरदान। दाँगी पूजैं सरसुती ,कर जग का कल्यान।। गुरू पूर्णमा सरसुती,पूज सितम्बर माह। दाँगी लै वरदान ये ,सबइ पायँ ये सूज।। ---0000--- 5- गोकुल प्रसाद यादव (नन्हींटेहरी)- जिनके हिरदे सरसुती, भर देतीं सुविचार। अबढारी उनकी बड़त,इज्जत और चिनार।। मैया मोरी सरसुती, हिरदें जाव बिराज। ऐसी चलबै लेखनी, सुदरै राज समाज।। हंस वाहिनी सरसुती, भरौ ज्ञान भंडार। जीसें होबै देश कौ,सबइ तरा उद्धार।। ज्ञान सरसुती सें मिलो, लक्ष्मी सें धन-धान्य। असामान्य बे हो गये, जौन हते सामान्य।। कोउ-कोउ खों सरसुती,पलना में दै देत। हम अग्यानी आज लौ, हो गय बार सुपेत।। करी सरसुती नें कृपा, हो गय सोरा पास। लक्ष्मी रूठीं ई तरा, काटत फिर रय घास।। -गोकुल प्रसाद यादव,(बुड़ेरा) ---0000--- 6- डॉ देवदत्त द्विवेदी ‘सरस’,बड़ामलहरा जै हो मैया सरसुती, धरों तुमारों ध्यान। कण्ठ बिराजौ आयकें, करूं देव गुनगान।। मैया मोरी सरसुती, बोध दिया उजयार। औगुन जो मन में भरे,करदो उनखों छार।। दव है मैया सरसुती, तुमनें भासा ग्यान। करिया अक्छर मोय अब, नैयाँ भैंस समान।। बीना हाँत समार कें, रोंम रोंम झन्कार। सब्द सम्पदा सरसुती, दइयौ हाँत पसार।। दइयौ माता सरसुती, मोखों इत्तौ ग्यान। दुनिया के सामू करों, जन की पीर बखान।। ---000--- 7- भगवान सिंह लोधी ‘अनुरागी’(हटा) दोहा लिखने पांच ठौ, विषय सरसुती आज। कलमकार हम हैं नहीं,हांत तुम्हारे लाज।। अगर जीभ पै सरसुती हो जाबै आरूड़। जन ज्ञानी हो जात बौ,कितनउॅं होबै हूड़।। हंस वाहिनी सरसुती, वींणा रइँ झनकार। जिनपै किरपा हो गई,वे बन गय फनकार।। मैया मोरी सरसुती, तुम्हें नवाऊ शीश। कंठ बिराजौ आनकें, दैव माइ आशीश।। कुंभकरण की जीब पै, गइ सरसुती पधार इन्द्रासन मांगो हतौ,निन्द्रासन की मार।। --0000--- 8-प्रभु दयाल श्रीवास्तव ‘पीयूष’ टीकमगढ़ माता मोरी सरसुती, मैं बालक नादान । चरन सरन में आव हों, हर लइयौ अज्ञान।। आओ मैया सरसुती, हंसा पै असवार। कानन में फिर गूंजबै, वीना की झंकार।। कमलासन पै बैठ कें, छेड़ौ बीना आज। माइ हमारी सरसुती, पूरन करियौ काज।। बीना पुस्तक हांत में,गरें कमल कौ हार। माइ सरसुती आनकें, बिगरी लियौ समार।। मैया मोरी सरसुती, कंठ बिराजौ आन। कला और संगीत कौ, दिइयौ थोरौ ज्ञान।। --000-- 9-डॉ. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल वीणा लैकें. आ गईं, नोनी सरसुति मात। विद्या मूरख खों मिलै, प्रेम ना ह्रदय समात।। कोउ रहै सुख से नहीं,जब लौं बुद्धि न आत। सरसुति मैया है जिते, उते ज्ञान बढ़ जात।। गूँगन खों वाणी मिलै,लँगड़ा दौरत आत। मूरख खों दें ज्ञान बे,बेउ सरसुति कहात।। --0000--- 10-कल्याण दास साहू ‘पोषक’,पृथ्वीपुर) विधना की पाकें कृपा, देवि सरसुती माय । ज्ञान जोत उजयारतीं,जगमग जगत सुहाय ।। जय हो ! माता सरसुती, पुस्तक धारी माय । मैं बुद्धू नादान हूँ,रइओ सदा सहाय ।। कमल आसिनी सरसुती, वीना वारी माय । जीवन में रस घोरिओ, सुर संगीत सजाय ।। देतीं मैया सरसुती, विद्या विनय विवेक । पूरन करतीं भक्त की, मनोकामना टेक ।। कण्ठ बिराजें सरसुती, कौंठा करतीं शुद्ध । कर-कर कें आराधना , बनवें लोग प्रबुद्ध ।। जौंन ठौर उर कण्ठ में , करें सरसुती वास । पनपत उतै महानता,बनत आम भी खास ।। --000-- 11-जयहिन्द सिंह ‘जयहिन्द’,पलेरा निरमल मन राखो सदां,बनों सरसुती धाम। बिना नैन के सूर ने,दरसन पाये श्याम।। वेद ब्यास ने पावतो,मैया कौ वरदान। माइ सरसुती पूज कें,रच दय वेद पुरान।। वीना की झंकार में,करें सरसुती वास। मोसे मूरख पूत खों,दो चरनन में आस।। होय सरसुती की रजा,ऐसी अक्कल पाय। रंक सदा राजा बनें,मन की मौज मनाय।। सुमरों मैया सरसुती,देव दरस भर नैन। अक्कल कौ पुतरा बना,उर में डार उरैन।। --000-- 12- रामानन्द पाठक ‘नन्द’,नैगुवां माइ सरसुती कर दया,करौ ग्यान कौ भोर। भूले अक्षर दो मिला, हिरदौ भर दो मोर।। जग में तो बिन सरसुती, नहीं सहारो और। चलै लेखनी रात-दिन, आये चरनन दौर।। कृपा करौ माँ सरसुती, कंठ बिराजौ आन। मीठी बानी भर दिऔ,मिलबै जग में मान।। सरसुति मइया है विनय, राखें रइऔ याद। ‘नन्द’ करें नित वंदना, दइऔ आशीर्वाद।। --000-- 13--ब्रजभूषण दुबे‘ब्रज’, बकस्वाहा अब सहाय भइ सरसुती, हनुमत करत बिचार, आँच आइ नइ पूछ में, लंका दइ सब जार। मति फेर दइ सरसुती, सुनत धरत नइँ कान, बन्टी फिर गइ बंस की,तोइ करत अभिमान। कबउ मिलतनइँ सरसुती,कितनऊ करो उपाय, ‘ब्रजभूषण’ बिन साधना, राग तान नइँ पास। विद्या माता सरसुती, कितनऊ करौ उपाय, ब्रज प्रेमी साधक मनुष, मन से अगर मनाय। कंठ बैठ गई सरसुती, ऐसी मति पलटाइ, तनकइ माँ दो जागरन,जादाँ नींद मगाइ। --000-- 14 -डॉ.आर.बी. पटेल‘अनजान’,छतरपुर मातु सरसुती कात है, सुनो भक्त चित लाय। ज्यों-ज्यों खर्चा तुम करो,त्यों त्यों बाढत जाय। जीने सुमरी सरसुती, तन मन अर्पण कीन। निर्मल मन काया सुफल, अंत ब्रह्म में लीन।। वीणा पाणी सरसुती, उर में दे झंकार । तन पवित्र मन विमल कहो, होवे बेड़ा पार।। तुलसी, सूर, कबीर में, लीन्हो डेरा डार । किरपा करबै सरसुती, रचे शबद भंडार ।। सदा सुमर कै सरसुती ,तन मन ध्यान लगाय। बुद्धी भी बढ जात है,और स्वर्ग खौं जाय।। --000-- 3- झाँकी 1-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ माँ की झाँकी है,सजी, ‘राना’अब चहँु ओर। माता की आराधना, करत आज गइ भोर।। --000-- 2-जयहिंद सिंह ‘जयहिन्द’,पलेरा झाँकी झाँकी श्याम की, भव मन भाव बिभोर । आली जौ लौ आयकें, श्याम गयो झकझोर।। --000-- 03- रामेश्वर गुप्त ‘इंदु’,बड़ागाँव,झाँसी झाँकी सुंदर शारदे, माई का दरबार। भक्त करें नित आरती, पूजन जै जै कार।। झाँकी देखन मैं गई, रही झरोखा झाँख। मइया मूरत देख के, खुली रही फिर आँख।। --000-- 4-अशोक पटसारिया ‘नादान’,लिधौरा गोपीं सब जल में घुसीं, कपड़े दिए उतार। झाँकी बाँके ने लखी, बैठ कदम की डार।। जींस पैर चश्मा चढ़ा,बन रय सबके बाप। झाँकी सोरा पास की,धरे अंगूठा छाप।। कारे कजरारे चपल,देख नशीले नैन। झाँकी दिल में खस गई,परत न दिलखों चैंन। --000-- 05-गोकुल यादव,नन्हीं टेहरी,बुढेरा (म.प्र.) दरसन खाँ बाँकी सजी, माँ की झाँकी आज। कउँ गौरा कउँ कालका,कउँ दुरगा हिंगलाज।। माता की झाँकी सजी,दरश करें नर नार। नौं दिन मैया ब्राजकें, खूब लुटातीं प्यार।। बाँकी झाँकी श्याम की, हिरदें बीच बसांय। राधा मीरा सूर सौ, परम अमर पद पांय।। बाँकी झाँकी श्याम की, झाँकी राधा आज। काँकी सुदबुद काउकी, नाँकी सबरी लाज।। ऊ झाँकी की का कनें, सपरें चीर उतार। चीर लुका जो साँवरे,तकें कदम की डार।। झाँकी, झाँकी राधका, झाँकी, झाँकी श्याम। कान्हामय भइँ राधका,राधा मय घनश्याम।। --000-- 06-वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़ (म.प्र.) सज गइ झाँकीं है शहर,सुंदरता चहुँ ओर। देवी जी समिती बनीं, चन्दा पै है जोर।। --000-- 7-रामानंद पाठक नंद ,नैगुवा,निवाडी झाँकी झाँकत झुकत हैं,देखत ही तसवीर । नैनन सें निरखत रहों,छवी युगल रघुवीर। --000-- 8- संजय श्रीवास्तव, मवई माता की झाँकी सजी,खूब सजो दरबार नौ दिन की महिमा बड़ी,नौ नौने अवतार।। --000-- 09-डॉ.संध्या श्रीवास्तव, दतिया झाँकी से का होत है, मन में भरो विकार। मन में सत,तप,प्रेम है, तो समझो उजियार।। --000-- 10-एस. आर. ‘सरल’,टीकमगढ़ झक झकात झाँकी सजी,अजब गजब हैं नूर। नौ दुर्गन की झाँकियाँ, दुनिया में मसहूर।। --000-- 11-डॉ. देवदत्त द्विवेदी ‘सरस’ झाँकी तौ बाकी बनी, सोभा कही न जाय। बिन्दबासनी माइ कौ,झन्डा जग फैराय।। --000-- 12-प्रो.शरद नारायण खरे, मंडला तोरो मन वीरान यदि,तो सब कुछ बेकार। मन की तू झाँकी सजा,चमकेगा संसार।। --000-- 13-परम लाल तिवारी, खजुराहो पंडालों में सज रही, झाँकी विविध प्रकार, करहिं आरती मुदित मन,भक्ति सहित नर-नार। --000-- 14-कल्याण दास साहू ‘पोषक’,पृथ्वीपुर झाँकी कूँड़ादेव की, सजी कुण्ड के तीर। बुड़की पै मेला भरत,जुरत गजब की भीर।। --000-- 15-हरिराम तिवारी, खरगापुर बाँकी झाँकी मात की, जब सें झांकी आज। अँखियन में ऐसी बसी, और न कछू सुजात।। --000-- ’16’-भजन लाल लोधी फुटेर टीकमगढ़ झलकत झिलमिल झालरें,झुलनी झँूमर झूम । झाँकी झाँकत लगत कै,दिन रवौ होबै ऊँम ।। --000-- 17-सरस कुमार,दोह (खरगापुर) माता की झाँकी तनी, नौ देबै त्यौहार । सुर नर मुनि बरसा रहे, फूला खुशबूदार ।। --000-- 18-प्रमोद कुमार गुप्ता ‘मृदुल’,टीकमगढ़ मैया को दरबार है, दरस पाय नर-नार। जयकारा भी होत है, जुरती भीर अपार।। --000-- 19-प्रदीप खरे‘मंजुल’,टीकमगढ़ (मप्र) बाँकी झाँकी माइ की, देखत मन हरसाय। नौ देवी आईं सबहिं, सुमन रहे बरसाय।। --000-- 20-डाॅ. आर.बी.पटेल ‘अनजान’,छतरपुर झाँकी बाँकी देखकर, मैया के दरबार। मन ऐसा पागल हुआ,माँ को रहा पुकार।। मन की तू झाँकी सजा,मन में लेव निहार। मन ही मन सुमिरन करो,मन का ही ब्यौहार।। मन मंदिर में झाँक लो,झाँकी झलक दिखाय। झाँकी बाँकी लख सुनो,सकल विध्न मिट जाय झाँकी माँ की देखकर,ममता भरा दुलार। सारे दुख मिट जात हैं,ऐसा माँ का द्वार।। नव रस से झाँकी भरी,सकल रसों की खान। घट घट में हैं बस रहीं,हम सबकी हैं जान।। --000--

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