Rajeev Namdeo Rana lidhorI

मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

तीसरी आँख (समीक्षा समग्र)- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

Third Eye by Rajeev Namde 'Rana Lidhori' 1- लोक देवता-राजा जगदेव’’ (महाकाव्य)                   डाॅ.एम.एल.प्रभाकर पृथ्वीपुर(निवाड़ी)

 2-‘रास्ते और मंज़िलंे’रविन्द्र यादव टीकमगढ़ 

 3- बुन्देली लोक नाटय एक अनुशीलन’’(शोध कार्य ) डाॅ.एम.एल. प्रभाकर पृथ्वीपुर जिला निवाड़ी


4--‘‘विन्ध्य लाड़ली’’ (बुन्देली के विविध निबंध)
      लेखक:- अभिनन्दन गोइल 
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 1- पुस्तक समीक्षा:-
‘लोक देवता-राजा जगदेव’ (महाकाव्य)
लेखक:- डाॅ. एम.एल. प्रभाकर
 प्रकाशन वर्षः- 2023 मूल्यः-1100रु. पेज-376
 प्रकाशक-आशा प्रकाशन कानपुर-208002 
समीक्षक:- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’(टीकमगढ़)

अदभुद् चरित महाकाव्य-‘लोक देवता-राजा जगदेव’ -
                          -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 
            लोक देवता दरदौल, लोकदेवता कारस देव,रतनगढ़ माता,माडुॅल, लोक कवि ईसुरी, हनुमानायन आदि जैसे बडे़-बडे़ महाकाव्यों का सृजन करने वाले विद्वान लेखक डाॅ. एम.एल. प्रभाकर जी बड़े-बड़े ग्रंथ लिखने में सद्धिहस्त रहे उन्होंने हाल ही में एक नया महाकाव्य ‘लोकदेवता राजा जगदेव’ की रचना की है। जो कि प्रकाशित होकर आया है। बुन्देलखण्ड में लोक देवताओं का बहुत महत्व है खासकर ग्रामीण अंचलों में विभिन्न लोक देवता रहे है लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं एवं उन्हें समय-समय पर पूजते है। इन्हीं लोक देवताओं में एक है लोक देवता-राजा जगदेव है जो कि धार मालवा क्षेत्र के परमार क्षत्रिय कुल में राजा भोज परामर बहुत प्रतापवान हुए इन्हीं राजा भोज परमार के वंश में उदयादित्य परमार के पुत्र राजा जगदेव हुए। उदयादित्य परामर की दो रानियाँ थी सेलंकिनी रानी एवं बघेली रानी। सोलंकिनी रानी के पुत्र राजा जगदेव हुए। इन्हीं राजा जगदेव पर केन्द्रित यह महाकाव्य है जिसे ‘चरित महाकाव्य’ कहा जा सकता है। इस महाकाव्य में लेखक ने 8 भागों (सोपान में विभाजित करके उसमें 41 उप शीर्षकों के अंतर्गत विस्तार से रजा जगदेव में चरितका वर्णन किया है। उन्हें जन्म से लेकर अंत तक कि सारी घटनाओं को काव्य के रूप में बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। प्रथम सोपान में जिसे लेखन ने ‘धार्मिक सर्ग’ नाम दिया है उसमें उन्होंने विनायक वंदन शारद वंदन,अंबे वंदन, सर्व-वंदन आदि में अपने इष्ट देवों का स्मरण किया है। प्रारंभ में विनायक -वंदन में उनका प्रथम दोहा उल्लेखनीय है- शिव गौरा सुत लाडले, गण नायक सिरमौर। सिद्धि विनायक गजवदन,कवि कोविद हिय ठौर।। द्वितीय सोपान में ‘पारिवारिक सर्ग’ के अंतर्गत डाॅ. प्रभाकर जी ने जगदेव के जन्म, उनकी प्रतिभा, बिहार, उनके विवाह, वीरमती से मिलन आदि का काव्यमय वर्णन किया है। द्वितीय सोपान में यह दोेहे दृष्टव्य है- भोज बाद जयसिंह सुत, गद्दी को अपनाय। दस्यु दल मिलकर लड़ै, अंत अमर पद पाय।। शांतिमय शासन चला, पुनरुद्धार कराय। राजधानी खुशीयाँरमीं कर्ण हरा सुख पाय।। तृतीय सोपान में ‘प्रवास सर्ग’ के अंतर्गत लेखक ने जगदेव के विभन्न स्थानों में प्रवासों का जैसे उनके वनवास,माता मन्तव्य,सुसुराल गमन, वीरमती वन गमन, वीरमती का पाटन पहुँचना एवं वीरमती की वीरता के समय घटी प्रमुख घटनाओं आदि का बहुत सुंदर काव्यमय चित्रण किया है। कुछ घटनाओं पर दो दोहे देखिए- नारि हित पथभ्रष्ट जन, फिर भी नाहिं सचेत। भाव रूपसी पाल मन, बीज पाप तन खेत।। जगदेव बाहर जावहिं, हो सूना दरवार। सकत समस्याएँ पनप, नाहीं पारावार।। चतुर्थ सोपान में ‘कर्तव्यनिष्ठा-सर्ग’ के अंतर्गत जगदेव-वीरमती का पाटन नरेश के महल पहुँचना, वीरांगना वीरमती-कमोला, फलमती सम्भाषण, शक्ति-भैरव पावन स्थल चित्रण,जगदेव-जयसिंह सम्भाष्य, जग देव भैरवः संघर्ष ,भैरव-अंतद्र्वन्द आदि घटनाओं का वर्णन किया है। ये दोहा दृष्टव्य है- जगदेव भतीजा जान, रिश्ता परम निभाय। महल रहहिं हिय भावना, फूल करहि हरियाय।। इसी सर्ग में श्रृंगारिक दोहा देखे- मैं हूँ प्रेम पूजारी, बात रूपसी भाय। और नहीं कुछ चाहता, दियो प्यास बुझाय।। पंचम सोपान में ‘परोपकारिता-सर्ग’ के अंतर्गत देवी माँ का पाटन शुभागमन, देवी द्वारा दान माँगना, जगदवे-शीशदान, जगदेव को जागीर एवं वधुएँ मिलना,जगदेव द्वारा जागीदारी प्रबंधन, एवं जगदेव-संतानोत्पत्ति आदि के विषय में काव्यमय विवरण दिया गया है। पाटन पर कलम चलाते लेखक लिखते हैं-सारी गाथा रच कहीं,पाटन अति रमणीक। मैं विचरण कर लौटता, नहीं घटा कदफ ठीक।। देवी भैरव सुन वचन, नहीं मानता बैन। पाटन हित कर त्यारी,माता मन सुख दैन।। षष्ठ सोपान में ‘शौर्य-सर्ग’ के अंतर्गत जगदेव का धार प्रत्यागमन,राजा जगदेव पिता-माता स्वर्गारोहण, साम्राज्य-विस्तार,सुता श्यामली देवी विवाह-युद्ध, जगदेव पुत्रियों का विवाह, राजा जगदेव-राज्य प्रबंधन आदि विषयों पर विस्तृत उल्लेख किया गया है। जगदेव के शौर्य का वर्णन करते हुए लेखक लिखतें हैं- पितु सम लक्षण सब अहै, रूप तेज बलधाम। धरनी पग जहँ-जहँ परहिं, पाय विजय शुभ काम।। सप्तम सोपान में ‘भक्ति-सर्ग’ के अंतर्गत जगदेव की दुर्गा भक्ति एवं राजा देव का सपत्नीक-स्वर्गारोहण आदि के विषय के बताया गया है। कि किस प्रकार से प्रतिदिन राजा जगदेवदुर्गा मंदिर जाया करते थे- आजीवन जगदेव नित,दुर्गा मंदिर जाय। पूजन अर्चन बाद ही, नीर असन अपनाय।। राजा जगदेव रानी, दुर्गाचरण पखार। तपहि रसोई हाथ नित, सेवा भाव उदार।। अष्ठम सोपान में ‘उत्तरवर्ती-सर्ग’ में राजा जगदेव के पश्चातवर्ती शासक एवं अंत में तात्विक विवेचन दिया गया है। जगदेव के बारे में एक दोहा में लेखक लिखता है कि- लोक देवता नाम से,गाँव प्रसिद्धि पाय। बुन्देलखण्ड खासकर,जन पूजहि हरषाय।। अंत में लेखक लिखता है कि यदि मुझसे लिखने में कोई भूल हो गयी हो तो मुझे क्षमा करे। अमित बड़ा भण्डार है, वर्णन वंश पँवार। अल्पबुद्धि से लिख दिया, भूल लेव संभार।। इस प्रकार से पूरे आठ सर्ग में 41 विषयों में बहुत ही विस्तार से राजा जगदेव के बारे में बहुत ही सूक्ष्म वर्णन किया गया है। उनके जीवन कि लगभग सभी प्रमुख घटनाओं को बहुत ही सुंदर ढंग से काव्य मय प्रस्तुत किया गया है जो कि पठनीय है काव्य मे दोहों का बहुत बढ़िया प्रयोग किया गया है जिससे इस महाकाव्य को गाया भी जा सकता है। लेखक डाॅ. एम.एल. प्रभाकार जी ने इसे रचते समय निसंदेह बहुत अथक श्रम किया है राजा जगदेव के विषय में इतनी अधिक जानकारी एकत्रित कर फिर उसे अपने काव्य कौशल से काव्य मय बनाने का कार्य स्तुत्य है।
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  राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 
संपादक ‘आकांक्षा’ (हिन्दी) पत्रिका संपादक ‘अनुश्रुति’ (बुन्देली) पत्रिका अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़ 
अध्यक्ष- वनमाली सृजन पीठ, टीकमगढ़ 
कोषाध्यक्ष-श्री वीरेन्द्र केशव साहित्य परिषद् शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.) पिनः472001 मोबाइल-9893520965 E Mail- ranalidhori@gmail.com
 Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com
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 2- ‘रास्ते और मंज़िलंे’ पुस्तक समीक्षा:-

 युवा कवि रविन्द्र यादव एक नये उभरते हुए कवि है जो कि अच्छा लिख रहे है उनकी कविताओं में भाव पक्ष बहुत विस्तृत है उनकी सोच युवा है उनका यह पहला कविता संग्रह ‘रास्ते और मंज़िलंे’ प्रकाषित होकर आ रहा है इसमें उन्होंने ने काव्य के विविध रंगों व षटरसों का समावेष किया है। लगभग सभी प्रमुख विषय पर अपनी कलम बखूबी चलायी है। उनकी कुछ रचनाओं की कुछ पँंिक्तयाँ बानगी के तौर पर यहाँ हम प्रस्तुत कर रहे है लेकिन पूरा आनंद तो उनकी पूरी कविताएँ पढ़कर की मिलेगा। वे अपनी कविताओं के माध्यम से युवाओं को आगे बढ़ने का हौसला देते कहते है- बेसहारे नहीं तुम, बेचारे नहीं हो। युवा हो किसी के सहारे नहीं हो।। रविन्द्र जी एक रचना में कहते है कि ग़म किसे नहीं है फिर भी हमें सदा मुस्कुराते रहना चाहिए- जिन्दगी में गम किसे नहीं मिले,। रोज हँसना मुस्कुराना चाहिये ।। वे कहते है कि वतन पर षहीद होना की सच्ची इबादत है- वतन के वास्ते जीना जरूरी है मगर, वतन के वास्ते मरना इबादत हैं।। माता-पिता के लिए समर्पण और स्नेह बनाये रखने के लिए वे कहते है कि- यही सोचकर के हमने हँसती फोटो भेज दी, मम्मी को लगेगा कि बेटा खुष तो है, चलो।। रविन्द्र जी के कुछ मुक्तक भी मुझे बहुत अच्छे लगे है जैसे- जो कुछ भी मामला है सारा आपसी का है। सच पूछिये तो ये सफर इक बापसी का है।। कहने को तो दुनियाँ में, सारे एक हैं लेकिन, इस जमाने में क्या, कोई किसी का है? रविन्द्र जी के कुछ मुक्तक भे देखे- ये कैसी महक दिल की फिजाओं में घुल गई। जैसे कि जिस्मों रूह की तबीयत बदल गई। मैं सोच रहा था कि किसे सोच कर लिखूँ, फिर गैलरी में आपकी तस्वीर मिल गई।। ऐसी अनेक रचनाएँ इस पुस्तक में है जो भावनाओं को समंदर अपने भीतर समेटे हुए हैं कवि की कल्पना और भावों का विस्तार बहुत अधिक है उनकी नयी सोच कविताओं को नया रूप देती है। रविन्द्र का यह पहला कविता संग्रह है आगे और अधिक उनकी कविताओं में निखार आता जायेगा। उनका यह पहल कविता संग्रह पठनीय है जहाँ आज का युवा साहित्य से दूर भागता जा रहा है ऐसे में श्री रविन्द्र जी का यह कविता संग्रह ‘रास्ते और मंज़िलंे’सराहनीय है। आज की युवा पीढ़ी क्या सोचती है, उनके मन में क्या चला रहा हऔर दिल में क्या हैै इन सभी विचारों को कविता के रूप में बहुत खूबसूरती के साथ श्री रविन्द्र जी पेष किया है। हम निदेषक महोदय आदरणीय श्री विकास दवे जी एवं मध्यप्रदेष साहित्य अकादमी भोपाल के हृदय तल से बहुत-बहुत धन्यबाद देते है कि उन्होंने हमारे टीकमगढ़ जिले के एक उभरते हुए होनहार युवा कवि की रचनाओं का प्रकाषन हेतु आर्थिक सहयोग प्रदान कर उन्हें साहित्य जगत आगे बढ़ाने की सराहनीय पहल की है। ---0000--
- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ संपादक आकांक्षा पत्रिका संपादक ‘अनुश्रुति’ बुंदेली त्रैमासिक ई पत्रिका अध्यक्ष म.प्र.लेखक संघ टीकमगढ़ अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़ E Mail- ranalidhori@gmail.com Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com ----000000----

 3   पुस्तक समीक्षा:-
‘‘बुन्देली लोक नाटय एक अनुशीलन’’ (शोध कार्य) लेखक:- डाॅ. एम.एल. प्रभाकर प्रकाशन वर्षः- 2022 मूल्यः-1500रु. पेज-519 
प्रकाशक-आशा प्रकाशन कानपुर-208002
समीक्षक:- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’(टीकमगढ़)

 बुन्देली लोक नाट्य पर गहन और सूक्ष्म जानकारी का खजाना- -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 

            डाॅ. एम.एल प्रभाकर जी बड़े-बड़े ग्रंथ लिखने में सद्धिहस्त रहे उन्होंने लोक देवता दरदौल, लोकदेवता कारस देव,रतनगढ़ माता,माडुॅल, लोक कवि ईसुरी, लोकदेवता राजा जगदेव हनुमानायन आदि महाकाव्य की रचना की हैं ऐसे में यह बुन्देली लोक नाट्यः एक अनुशीलन’ एक सम्पूर्ण शोध प्रकाशित कर हम सभी बुन्देली प्रेमियों एवं बुन्देली साहित्य में अभूतपूर्व कार्य किया है। जो कि उनकी बुन्देली साहित्य कि अनुपम देन है। लेखक डाॅ. एम.एल. प्रभाकर जी का यह शोध के रूप में बुन्देली साहित्य के लिए एक अनुपम देन ‘बुन्देली लोक नाट्य का अनुशीलन’ के रूप में सन् 2022 में प्रकाशित होकर आया है। 519 पेज के बृहद आकार वाला यह शोध कार्य बहुत उपयोगी है पठनीय होने के साथ-साथ वह संग्रहणीय भी हैं पाठकों को रूचिकर लगेगा। वैसे तो बुन्देली लोक नाट्य रंगमंच बंधन मुक्त होते है, ये तो प्रकृति की खुली गोद में सम्पन्न होते है कहने का तात्पर्य यह है कि गाँव की चैपाल अथवा कहीं भी समतल मैदान में नाटक खेलने वाले एवं दर्शकगण उपस्थित हो जाते हैं। इन्हीं का एक रूप नुक्कड नाटक भी है। जो कि कहीं भी कम स्थान पर भी किया जा सकता है। रोशनी के लिए उस समय गैसबत्ती का उपयोग किया जाता था फिर बाद में बिजली का प्रकाश प्रयोग किया जाने लगा और वर्तमान में तो लेजर बीम और आकर्षक रंगीन लाइटों से मंच सुसजिज्त रहता है। ‘बुन्देली लोक नाट्य:एक अनुशीलन’ ग्रंथ को लेखन ने दस भागों में विभाजित किया हैं। जिनमें पहले अध्याय के पूर्व बुन्देलखण्ड के नामकरण एवं बुन्देला राजाओं की उत्पत्ति के विषय में जानकारी दी है। जो कि इतिहासिक की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। 

 पहला भाग- बुन्देलखण्ड के लोक नाट्यों की पृष्ठभूमि - इसमें राजनैकित,सामाजिक आर्थिक एवं धार्मिक परिस्थितियों का विस्तार से वर्णन किया है। राजनैतिक परिस्थितियों के अंतर्गत बुन्देलवंश में हुए सभी 40 राजाओं की सूची एवं उनके कार्य काल का उल्लेख किया है। 

दूसरा भाग- बुन्देली लोक नाट्यों का विकास- इस भाग में लोक नाट्यों उद्भव के बारे में आचार्य रवीन्द्र अमर,डाॅ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, डाॅ. श्याम परमार,डाॅ. श्रीराम शर्मा,डाॅ. महेन्द्र भाणावत आदि के विभिन्न विद्वानों के विचारों का उल्लेख किया गया है। मध्यकालीन लोक नाट्य एवं आधुनिक लोक नाट्य की जानकारी देते हुए बताया है कि गद्य के क्षेत्र में लोक कथाएँ मौखिक रूप में चली रही है लेकिन आधुनिक काल में ‘जैसी करनी बैसी भरनी’’ नामक पुस्तक में श्री चतुर्वेदी जी ने कथाओं को प्रस्तुत किया है। कुण्डेश्वर (टीकमगढ़) से प्रकाशित लोकप्रिय पत्रिका ‘मधुकर’ में भी कथाएँ उचित स्थान पाती रही हैं किन्तु लोक नाट्य आधुनिक काल में भी सर्वथा मौखिक ही रहा हैं। युग के अनुरूप इनका परिवर्तन और परिमार्जन जरूर होता है। गुलाम भारत एवं स्वतंत्र भारत दोनांे कालखडों की परिस्थितियों का दिग्दर्शन इनकी विषय वस्तु रही हैं दलितों की दुर्दशा उनका शोषण, उन पर अत्याचार उनके नाटकीय जीवन का लोक चित्रण उस समय के लोक नाट्य ‘कलुआ मेहतर’ में देखा जा सकता है। 

तीसरा भाग- बुन्देली लोक नाट्यों का वर्गीकरण- इस भाग में लोक नाट्यों वर्गीकरण के बारे में बताया गया है कि आधार के आधार पर बुन्देली लोक नाट्य प्रमुख रूप से बोली के आधार पर, भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर ,रंगमंच के आधार पर, लोक नाट्य के तत्वों के आधार पर,पर्व या उत्सव के आधार पर, उद्देश्यों के आधार पर,अभिनय के आधार पर, वाद्य के आधार पर एवं गायकी के आधार पर वर्गीकरण किया जा सकता है। डाॅ. श्याम परमार जी ने लोक नाट्यों को शिल्प एवं गायन के आधार पर वर्गीकरण किया है तो वहीं डाॅ. सतेन्द्र जी ने लोक नाट्यों की प्रवित्त के आधार पर पाँच भागों में वर्गीकृत किया हैं-नृत्य प्रधान, हास्य प्रधान, संगीत प्रधान, कथा प्रधान एवं वार्ता प्रधान। डाॅ. के.एल.वर्मा जी ने बुन्देली लोक नाट्य को पाँच भागों में बाँटा है- धार्मिक स्वांग, संस्कार परक स्वांग, सामाजिक स्वांग, मिश्रित स्वांग अािद है विभिन्न में नकलें, भाड़ों की नकलें ,नटों की नकलें, एवं नौटंकी आदि।

 चैथा भाग-बुन्देली लोक नाट्यों की विषय वस्तु- लेखक ने बुन्देली लोक नाट्यों की विषय वस्तु के अंतर्गत पौराणिक,पात्र व वेशभूषा,वादक होली शिव रात्रि आदि विभिन्न त्यौहार पर आदि अनेक विषय हो सकते है। होली लोक नाट्य, मोरध्वज लोक नाट्य, ध्रुव लोक नाट्य,हरितालिका व्रत (तीजा) आदि अनेक लोकनाट्य को प्रकाशित किया गया हैं।

 पाँचवाँ भाग-बुन्देली लोक नाट्यों में चरित्र चित्रण- लेखक ने इस भाग में नायक पात्रों का चरित्र-चित्रण, नारी(नायिका) पात्रों का चरित्र चित्रण,अन्य पात्रों का चरित्र चित्रण,विदूषक,चित्रण शिल्प आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी है। 

छटवाँ भाग-बुन्देली लोक नाट्यों में संवाद योजना- लेखक ने इस भाग में बुन्देली लोक नाट्यों में संवाद योजना के अंतर्गत संवाद के विविधरूप, संवादों की भाषा संवादों की नाट्कीयता,संवादों में प्रभावशीलता आदि के बारे में अच्छी जानकारी दी है। सातवाँ भाग-बुन्देली लोक नाट्यों में अंकित संस्कृति- इस अध्याय में बुंदेली लोक नाट्यों में अंकित संस्कृित में संस्कृति के आदर्श, पारिवारिक संस्कार, सामाजिक परिवेश आदि पर विस्तृत जानकरी दी गयी है। 

आठवाँ भाग-बुन्देली लोक नाट्यों की भाषा- बुन्देली लोक नाट्यों की भाषा कैसी होना चाहिए इस पर जानकारी दी गयी है जैस लोक भाषा के विभिन्न रूप,शब्द शक्तियाँ, भाषा का वैशिष्ट्य आदि विषय पर गहन विचार प्रकट किये गये है। 

नवम् भाग-बुन्देली लोक नाट्यों की शैली- बुन्देली लोक नाट्यों की शैली कैसी होना चाहिए शैली के विभिन्न रूप एवं शैली का वैशिष्ट्य शैली की प्रभाव क्षमता,संज्ञा सर्वनाम, लिंग, वचन, कारक क्रिया आदि के विषय में बताया गया है।
 दसम् भाग-बुन्देली लोक नाट्यों का मूल्यांकन- बुन्देली लोक नाट्यों का मूल्यांकन में बुन्देली के अलावा अन्य बोलियों जैसे बघेली, मालवी,छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी आदि के लोक नाट्यों का मूल्यांकन एवं महत्व निर्धारण आदि की जानकारी दी गयी है। बृज की रासलीला और उत्तरप्रदेश की नौंटकी रामलीला आदि को छोड़ दिया जाये जो समस्त जनपदां में लोक नाट्य बहुधा रंगमंच सहित ही देखे जा सकते है। अधिकांश लोक नाट्य गाँवों के बीच में या किसी सममल स्थान पर होते है। जहाँ पर उस गाँव का नाई गैसबत्ती या मसाल लेकर स्वांग भरने वालों के आगे-पीछे दौड़ता हैं या फिर जिसके हाथों में ताकत होती थी वह सिर पर रखकर यहाँ वहाँ चलता फिरता रहता था या ऊँचे स्थान पर खड़े हो जाता था जिससे सभी जगह रोशनी हो सके। बुुंदेली लोक नाट्य में संगीत, नृत्य के साथ-साथ काव्य की होता था। इसके साथ ही प्रत्येक ऐतिहासिक चरित्र के साथ-साथ महापुरूषों की पूजा भावना देखने को मिलती थी। इसमें लगभग सभी रसों का मिश्रण होता था। 

वर्तमान समय में बुन्देली लोक नाट्य एवं नाटकों मिलाजुला रूप रंगमंचों के माध्यम से खास कर बुन्देलखण्ड मध्यप्रदेश एवं उत्तरप्रदेश में देखने को मिल जाता है। इस दिशा में टीकमगढ़ की बात करे तो पाहुना लोक जन समिति,टीकमगढ़ द्वारा संस्कृति विभाग के सहयोग से अनेक छोेटे-बडे़ आयोजन होते रहते हंै जिनमें बुन्देली लोक नाट्य की अनेक प्रस्तुतियाँ श्री संजय श्रीवास्तव के निर्देशन में हर साल होती रहती हैं। श्री संजय श्रीवास्तव के नाट्य लेखक एवं निर्देशन अब तक भोर तरैया,चकाचक गाँव झकाझक गलियाँ,जमुनिया तस्वीर बदलते भारत की,ओ तोरे झुन-झुन बाबा की,जो का मचो आदि बुन्देली नाट्य की देशभर में अनेक प्रस्तुतियाँ दी जा चुकी है और निरन्तर दी जा रही है। वे वर्तमान में बुन्देली नाट्य की कमान खासकर टीकमगढ़ में बड़ी मजबूती से थामें हुए है। वे एन.एस.डी. दिल्ली से प्रशिक्षित होकर भी एक छोटे से शहर टीकमगढ़ में रंगमंच का दीप जलाए हुए है।

 समर्पयामि संस्था टीकमगढ़ की प्रमुख गीतिका वेदिका द्वारा भी कुछ बुन्देली नाट्यों की प्रस्तुति समय-समय पर टीकमगढ़ व अन्य शहरों में दी जाती है। जिनमें प्रमुख रूप से ‘तीसरा कंबल’, ‘बरसे सावन बैशाख में’, एवं ‘वाह रे विधाता’ आदि है जिनकी देश भर में अनेक प्रस्तुतियाँ दी जा चुकी है। सागर मध्यप्रदेश के हेमंत नामदेव,राजा नामदेव एवं जुगल नामदेव द्वारा भी बुन्देली में अनेक लोकनाटय प्रस्तुति दी जा चुकी हैं। इसी प्रकार भोपाल,सागर,दमोह,दतिया, झाँसी आदि स्थानों में भी बुन्देली लोक नाटय पर केन्द्रित आयोजन होते रहते हंै। इस प्रकार से प्रस्तुत ग्रंथ एक सम्पूर्ण शोध है जो कि ‘बुन्देली लोक नाट्य’ के लगभग हर पहलूओं पर विस्तृत जानकारी देता है जो कि महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ बुन्देली साहित्य के लिए मील का पत्थर साबित होगी। आज जहाँ लोक नाट्य में लोगों कि रूचि कम होती जा रही हैं ऐसे में यह थोड़े से बचे नाट्य प्रेमियों के लिए एक वरदान से कम नहीं है। डाॅ. प्रभाकर जी ने इसे तैयार करने में बहुत मेहनत की है जो कि इस पढ़ने के बाद महसूस किया जा सकता हैं।
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  राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 
संपादक ‘आकांक्षा’ (हिन्दी) 
पत्रिका संपादक ‘अनुश्रुति’ (बुन्देली) पत्रिका
 अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़ 
अध्यक्ष- वनमाली सृजन पीठ, टीकमगढ़ 
कोषाध्यक्ष-श्री वीरेन्द्र केशव साहित्य परिषद् 
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.) पिनः472001 मोबाइल-9893520965 E Mail- ranalidhori@gmail.com 
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पुस्तक समीक्षा:-‘‘विन्ध्य लाड़ली’’ (बुन्देली के विविध निबंध) लेखक:- अभिनन्दन गोइल प्रकाशन वर्षः-2022 मूल्यः-175रु. पेज-112 प्रकाशक-मनीष प्रकाशन भोपाल-03 समीक्षक:- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’(टीकमगढ़) बुन्देली लोक संस्कृति पर सूक्ष्मतम् चित्रण करती-विन्ध्य लाड़ली -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ श्री अभिनंदन गोइल जी बुन्देली माटी में जन्में है इसीलिए उनके जीवन में बुन्देली संस्कृति रची बसी है यही कारण है कि उन्होंने हिन्दी के साथ-साथ बुन्देली में भी कलम चलायी है। समीक्ष्य कृति ‘विन्ध्य लाड़ली’ में भी उनके बुन्देली में लिखे विविध विषयों पर बहुत बढ़िया निबंध हैं। 112 पृष्ठों में 22 निबंध है एक ‘पुस्तक समीक्षा’ एवं एक ‘यात्रा वर्णन’ दिया गया है जो कि बुन्देली में लिखे गए है। ‘मन कौ महाभारत’ में गीता का सार समझा रहे है वे लिखते हैं। कि हमारे भीतर भी एक महाभारत चलता रहता हैं। लोग अपने स्वभाव और आदतों को नहीं बदल पाते हैं- जी कौ जौन सुभाव जाय नईं जी सें। नीम न मीठे होंएँ खाओं गुर घी सें।। ‘फागुन बेईमान’ निबंध में लेखक लिखते हैं कि फागुन का महीना बहुत बेईमान होता है। इस महीने में बसंत उत्सव मनाया जाता है तब प्रेम परवान चढ़ता है ऐसे में जिसका पति दूर परदेश में हैं तो उसे बहुत कष्ट होता है उसके लिए फागुन का महीना बेईमान लगता है। वह स्त्री अपने पति के वियोग का वर्णन नहीं कर पाती, ऐसे में फागुन में सभी जगह बिखरा हुआ बसंत उसे चिढ़ाता हुआ लगता हैं वह पति वियोग में विरह की आग में जल रही होती है ऐसेे में उसे तो यह फागुन का महिना बेईमान ही लगता हैं। इसी महीने में होली आती है ब्रज की होली बरसाने की ‘लट्ठमार होली’ का वर्णन भी इस निबंध में किया गया है। बुन्देलखण्ड में होली पर ‘फाग’ गायन व राई नृत्य का बहुत महत्व है जिसके बिना होरी खेलने का मजा ही नहीं आता हैं कुछ फागे व राई के उदाहरण देकर इस निबंध को और भी रोचक बना दिया हैं यथा- 1- फगुना बेईमान................. तन-मन में अगन लगावे। 2- जी भर खेल लो फाग.......... बापस न आहे जुआनी। 3- हँस कर लो किलोल.......जाने कबै मर जाने। ‘रितुराज बंसत’ निबंध में प्रकृति के बदलाव और कामदेव के बाणों के कमाल पर सुंदर वर्णन किया गया है। श्री गोइल जी लिखते है कि ‘काम’ तक ‘कामासुर’ हो जाता है तो अच्छे भले मनुष्य को राक्षस बना के छोड़ता है। े ‘आम’ निबंध में फलों के राजा आम के बारे में जानकारी दी गई हैं। ‘सकराँत निबंध में लेखक ने सकराँत क्यों मनाई जाती है इसके बारे धार्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिया है। सकराँत से संबधित महाभारत की एक का जिक्र भी इसमें किया गया है। ‘बुन्देलखण्ड में स्वांग’ निबंध में पहले जमाने में स्वांग के दो रूप प्रचलित बताए है एक- व्याव में बाबा के स्वांग’ और दूसरा राई के संगै होने वाला स्वांग। बुन्देलखण्ड में स्वांग नृत्य जिसे लोक नाट्य कहा जाता है बहुत लोकप्रिय है। उसके बारे में विस्तार से वर्णन किया है। ‘बुन्देलखण्ड के ब्याव और गुरीरीं गारी’ निबंध में लेखक ने बुन्देलखण्ड में विवाह के समय महिलओं द्वारा गायी जाने वाली विभिन्न अवसरों पर अलग-अलग गारी गायी जाती हैं जिनका बहुत विस्तार से गारियों का रोचक वर्णन किया है। ये निबंध मुझे इस पूरी पुस्तक में सबसे अच्छा लगा जो कि गारियों पर एक लघु शोध से कम नहीं है। इसमें श्री गोइल जी ने ‘गारी’ के लगभग 25 उदाहरणों से सजाकर इस निबंध में बहुत महत्वपूर्ण बना दिया है। जिसे आधुनिक पीढ़ी खासकर युवा पीढ़ी भूलती जा रही है ऐसे में यह निबंध बहुत उपयोगी है। ‘बुन्देलखण्ड की संस्कृति’ निबंध में यहाँ की संस्कृति के बारे में बताया गया है। ‘श्री राम चरित मानस में बुन्देली कौ गरीरौपन’ इस निबंध में बहुत बारीक विश्लेषण करते हुए बताया गया है कि श्री रामचरित मानस जिसे प्रायः अवधी भाषा को माना जाता है लेकिन इसमें बुन्देली के ढे़र सारे शब्दों का प्रयोग किया गया है लेखक ने श्री राम चरित मानस में से छाँटकर अनेक बुन्देली शब्दों को बताया है। बैसे एक और उत्तर प्रदेश के विद्वान लेखक है मैं इस समय उनका नाम भूल रहा हूँ उन्होंने तो श्री राम चरित मानस में पर शोध करके उसमें से इतने अधिक शब्द खोजकर पेश कर दिये कि उनका आलेख पढ़कर लोग इसे बुन्देली में लिखा मानने लगे हैं। मनभावनी फागों के रचैया कवि‘मनभावन’ निबंध में लेखक ने छतरपुर में संवत1929वि.(सन्-1850ई.) में जन्में विस्मृत कवि मनभावन के बारे में जानकारी दी है उनकी रचनाओं से पाठकों को रुबरु कराया है। कवि मनभान ने राधिका जू की पटियन (केश सज्जा) पै ‘उपमानों से अलंकृत उनकी लिखी हुई यह फाग बहुत बढ़िया लिखी हैं - पटिया मन हरबे खाँ पारें, रुच रुच माँग समारें। चुटिया चुस्त बँधी चुटला सें, गुरिया कुच पै डारें।। ऊपर माँग भरी मोतिन की, सीस फूल कौ धारें। ‘मनभावन’ मन हरबे कारन, हर-हर बेर उघारें।। ‘अटकाऊ फागें’ में लोक कवि ईसुरी की कुछ फागों के उदाहरण दिए गए हैं। ‘कुँडादेव कौ मेला बसंत’ में टीकमगढ़ में कुण्डेश्वर में बसंत मेला का सुंदर वर्णन किया है उस समय दिया जाने वाला प्रसिद्ध ‘देव पुरस्कार’ के बारे में जानकारी दी है। ..........3 /3/ े योग साधना कौ महापर्वः नौ दुरगा’ निबंध में आदि शक्ति नौ दुर्गा के बारे में सक्षिप्त में जानकारी दी है। पवित्र पर्वतःविन्ध्याचल’ इस निबंध में लेखक ने विन्ध्याचल पर्वत के बारे में विस्तार से जानकारी दी है और उससे संबधित एक दंत कथा का उल्लेख किया है। यह निबंध आलेख पठनीय बन पड़ा है। ‘दशार्ण मैया’ निबंध बुन्देलखण्ड की एक प्रसिद्ध नदी धसान पर उपयोगी जानकारी से परिपूर्ण है। जो कि एक लघुशोध के समान है। हाइकु सें नौंने लगत बंुदेली ‘ख्याल’ निबंध में लेखक ने ख्याल को हाइकु से श्रेष्ठ बताया है जबकि वर्तमान में ‘ख्याल’ को लोग भूलते जा रहे हैं, वहीं हाइकु विधा जो कि मूल रूप से जापान से आयी है आज भारत में तेजी से लोकप्रिय हो रही है, मैंने (राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’) स्वयं बुन्देली में पहला हाइकु संग्रह ‘नौनी लगे बुन्देली’ लिखा है जो कि ‘विश्व हाइकु कोश’ में दर्ज है। इसके पूर्व में हिन्दी में भी मेरा रजनीगंधा हाइकु संग्रह सन् 1997 में प्रकाशित हो चुका है। ‘बुन्देलखण्ड में गांधी को असर’ एवं ’ओरछा राज्य में स्वतंत्रता आंदोलन-सार संक्षेप’ दोनों निबंधों में बुन्देलखण्ड के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों एवं स्वतंत्रता संग्रामों का उल्लेख किया है। यह दोनो निबंध इस पुस्तक की जान हैं। ‘बुन्देलखण्ड कौ सूका औ पुराने नए जाउ स्रोत’ एवं ‘लोक भाषा बुन्देली कौ इतिहास’ लेख पठनीय है। ‘बुन्देली और बघेली में भावात्मक संबंध’ निबंध में लेखक ने दोनो बोलियों में समानता को प्रदर्शित करते हुए उनमें भावनात्मक सबंध स्थापित किया है। पुस्तक के अंत में एक समीक्षा एवं एक यात्रा वर्णन दिया गया है जो कि रोचक है, लेकिन इन दोनों के स्थान पर दो अन्य निबंध दिये जा सकते थे तो और बेहतर होता। एक निबंध की पुस्तक में ‘समीक्षा’ एवं ‘यात्रा वृत्तांत’ कुछ खटकता हुआ सा प्रतीत होता है। पुस्तक बुन्देली प्रेमियों के लिए बहुत उपयोगी और पठनीय हैं इसमें अनेक निबंध लघु शोध से कम नहीं हैं। लेखक की बुन्देली में अच्छी पकड़ है उन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से बुन्देली गद्य साहित्य में श्री वृद्धि की है। श्री गोइल जी को इस श्रेष्ठ कृति की रचना करने पर हार्दिक बधाई। --000--- / राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ संपादक ‘आकांक्षा’ (हिन्दी) पत्रिका संपादक ‘अनुश्रुति’ (बुन्देली) पत्रिका जिलाध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़ जिलाध्यक्ष- वनमाली सृजन पीठ, टीकमगढ़ कोषाध्यक्ष-श्री वीरेन्द्र केशव साहित्य परिषद् शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.) पिनः472001 मोबाइल-9893520965 E Mail- ranalidhori@gmail.com Blog - 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