92-नहीं साथ निभाने वाला-100
93-हरे हो जायेंगे सूखे शजर-101
94-आशिकी पैदा करो-102
95-क्यों मुस्कुराता नहीं-103
96-श्रीधर का हो गया-104
97- वो खुश नसीब है- 105
81-ग़ज़ल-फिर आगे देखा जायेगा*
एक समय वो आएगा।
समझ न कोई पाएगा।।।
कुर्सी को हथियाने में।
सब कुछ दाँव लगाएगा।।
बेईमान इस दुनिया में।
नहीं शांति पाएगा।।
जितना चाहे जतन करे।
जनता को न भाएगा।।
राम भरोसे चलने दे।
फिर आगे देखा जाएगा।।
'राना' घर चलता है ऐसा।
देश को कौन चलाएगा।।
***
82-इंसा बना कर देखिए-90
हमने रुख हवाओं का भी बदलते देखा है।
मोम मानिंद भी पत्थर को पिघलते देखा है।
मना ही लेते है मां-बाप भी हँसकर उनको।
कभी-कभी तो ही बच्चों को मचलते देखा है।।
जो नहीं रख सके है अपनी नफ़स पे काबू।
जवानी आते ही लोगों को फिसलते देखा है।।
महल से आते भी देखा सड़क पर उनको।
वक़्त ऐसा भी बदलते देखा है।।
जवान बेटी को लोगों से बचाये कैसे।
आये दिन हमने तो मजनूं को टहलते देखा।।
मौत भी जब क़रीब आने लगी।
चींटी के परों भी निकलते देखा।।
यूँ तो गिरते है हज़ारों 'राना'।
बहादुरों को ही संभलते देखा है।।
****
83- मुद्दतें हो गयु मुस्कुराये-91
ग़म मिरे इतने क़रीब आये।
मुद्दते हो गयी मुस्कुराये।।
तड़प दिल की छुपाये कैसे।
अश्क़ आंखों से जब निकल आये।।
धड़कने दिल की मिरी रुक गयी।
जब वो मेरे क़रीब आये।।
ईद है आज कुछ उम्मीद भी।
मिरा चांद छत पे नज़र आये।।
दिल को कैसे समझाये 'राना'।
जब कोई बेवफ़ा हो जाये।।
***
84-- खुशियां बहार देखैगे-92
उनके क़दमों में न पड़ जाये ख़ार देखेंगे।
ख़िज़ा के साये में रंगीं बहार देखेंगे।।
शक्ल सूरत से भी तुम इतनी हसीं तो क्या हुआ।
लायक हो दोस्ती के तो व्यौवहार देखेंगे।।
यूं तो खु़दा की नयमतें मिलती हर इक इंसान को।
कैसा होता प्यार का हम भी खुमार देखेंगे।।
बुरा है वक़्त अभी इसको गुज़र जाने दो।
आयेगी दामने खुशियां बहार देखेंगे।।
'राना' तू खूब लिखता चल अपने कलाम को।
शायरी में लोग भी तुमको शुमार देखेंगे।।
***
85- मैं अपने हाथों में-93
मैं अपने हाथ में पैमाना लिये बैठा हूं।
सुर्ख गुलाब का संग नज़राना लिये बैठा हूं।।
कैसे बचोगे तुम भी अब तीरे नज़र से।
मैं नज़रों में ही मयखाना लिये बैठा हूं।।
सोचा था कि प्यार को महसूस करेंगे ऐसे।
शमा के सामने परवाना लिये बैठा हूं।।
वो कहते है कि मैं पीता नहीं हूं ज़रा भी।
लेकिन संग हुश्न का मयखाना लिये बैठा हूं।।
ख़ता क्या हुई ये 'राना' जान न पाये लेकिन।
फिर भी प्यार का हरजाना लिये बैठा हूं।।
***
86- होश में आयेगा कौन- 94
सब यहाँ बेहोश है तो होश में लाएगा कौन।
पश्चिमी हवा तेज़ है भारतीय संस्कृति बचाएगा कौन।।
पाप अपना छिपाने को उसे यूँ ही छोड़ दिया।
देर से सिसक रहा है वो उसे अब उड़ाएगा कौन।।
देश गुलामी में जकड़ा हुआ कर्ज़ बढ़ता जा रहा।
रावणों का शासन है, राम राज्य लाएगा कौन।।
ताउम्र तूने पाप किये बद्दुआ लोगों की ली।
चंद दिनों की इबादत से जन्नत तुझे पहुँचाएगा कौन।।
फाइल टेबिल पे पड़ी,धूल खाकर मोटी हो रही।
दक्षिणा के बिना 'राना' फाइल आगे सरकाएगा कौन।।
***
87- छूकर नहीं देखा-95
सोचा था कि कह देंगे जब मौका सही देखा।
पर अंदाज़ तेरा ख़फ़ा- ख़फ़ा सा वही देखा।।
डाकिये पे न भरोसा न दोस्तों से उम्मींद।
ख़त किससे पहुंचे ऐसा हमराज़ नहीं देखा।।
मैं कैसे मान लूं कि वो नाजुक ही होगा।
मैंने तो किसी फ़ूल को छूकर नहीं देखा।।
रुक गये तेरे दर पे आने से पहले 'राना'।
याद आया तेरे बाप का डंडा कहीं देखा।।
'राना' चढ़ा दे कैसे फ़ूल दिल के ख़ुदा को।
भौरों से बचा फ़ूल शायद ही कहीं देखा।।
***
88- दोस्ती पैदा करो-96
पुरअसर ही शायरी पैदा करो।
हर शेर में ज़िंदादिली पैदा करो।।
क्या पता वो काम आ जाये कहीं।
हर शख्स से तुम दोस्ती पैदा करो।।
ग़म के अंधेरे दूर तब होगे सभी।
हर दिये में रौशनी पैदा करो।।
ज़ुल्म करने वाला न बच पाएगा दरवार में।
कुछ तो शर्मिन्दगी पैदा करो।।
पा सकोगे 'राना' तब आला मक़ाम।
तुम प्रभू से आशिक़ी पैदा करो ।।
***
*ग़ज़ल- रब की रहमतों ने*
मुझे बारहा रुलाया मेरे दिल की चाहतों ने।
हर बार दिया आसरा मुझे रब की रहमतों ने।।
उसने भेजा है इस जहां में आदमी के रूप में।
कितना बदल डाला है इंसान को इन जातों ने।।
यह सोचकर के हमने उठायी है अब तो क़लम।
जुबां कह न सकी बयां कर दी वो बात इन ख़तों ने।।
हम एक मां के लाल है साथ पले और बढ़े है।
हमें मिलने नहीं दिया आपस की नफ़रतों ने।
अश्क़ अब इन आंखों, नींद क्यों आती नहीं।
फिर शिकायत की है 'राना' से तमाम रातों ने।।
***
90-साँप पलने लगे है-98
भाई से ही भाई अब लड़ने लगे है।
साँप बनकर ही वो डसने लगे है।।
आस्था में कमी कुछ आ गयी है।
नकली इंसान क्यों बनने लगे है।।
छोड़ जंगल को सारे यहाँ पे।
साँप आस्तीनों में पलने लगे है।।
महफ़ूज नहीं मेरी अब ज़िन्दगी यहाँ पर।
बाहर क़दम बढ़ाने से भी डरने लगे है।।
प्यार के फ़ूल खिलाओं हमेशा तुम 'राना'।
शज़र क्यों सूखकर मरने लगे हैं।।
***
91-दिल की दुनिया-99
हाथ उनसे मिलाके देखेंगे।
दिल की दुनिया बसा के देखेंगे।।
खूब करते रहे वो मुझपे सितम।
जख्म दिल में दबा के देखेंगे।।
हैं डूबा क़र्ज़ में, मंहगाई से परेशां है।
कैसे मुफलिस को हंसाकर देखेंगे।।
कब से बेचैन हूं दीदार को मैं।
वो कब नज़रें उठाकर देखेंगे।।
क्या पता वो कब खुश हो जाये।
सर उस दर झुका के देखेंगे।।
सुबह का भूला जो लौटे है शाम को।
शमा उम्मीदें जलाके देखेंगे।।
कह रही आज ये होली 'राना'।
गले दुश्मन को लगाके देखेंगे।।
***
92-नहीं साथ निभाने वाला-100
दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला।
याद आया तु ही बस मुझको रुलाने वाला।।
दोस्त बनकरके जो ग़म तुमने दिए है हमको।
कोई तो पल देते मुझे हंसने- हंसाने वाला।
कभी भी कम नहीं होगी तिरी इल्मी दौलत।
तू अगर चाहे उसे जितना लुटाने वाला।।
जब तक रहेगा हाथ जो उसका मिरे सर पर।
नहीं हो सकता मुझे कोई मिटाने वाला।।
दंगा फंसा देखके खामोश है 'राना'।
कहां पे खो गया इंसान बनाने वाला।।
***
93-*ग़ज़ल- हरे हो जायेंगे सूखे शजर*
अकेले तय किया मैंने सफ़र ये।
कभी मंज़िल से न भटकी नज़र ये।।
यकीं तिनके का है मुझको सहारा।
न कश्ती को डुबा पाये लहर ये।।
प्यार की आप भी वर्षा तो करके देखों।
हरे हो जायेंगे सूखे शजर ये।।
लाख कोशिश करो टूटेंगे न हम।
ढ़ाओ मुझपे तुम कितने क़हर ये।
मिलते नहीं है आदमी यहां 'राना'।
नज़र पुतलों के ही आते शहर ये।।
***
94- आशिक़ी पैदा करो-102
पुर असर ही शायरी पैदा करो।
हर शेर में जिंदादिली पैदा करो।।
क्या पता वो काम आ जाये कभी।
हर शख्स से तुम दोस्ती पैदा करो।।
ग़म के अंधेरे दूर तब होगें सभी।
हर दिये में रोशनी पैदा करो।।
ज़ुल्मी न बच पायेगा दरवार में।
कुछ तो शर्मिन्दगी पैदा करो।।
पा सकोगे 'राना' तब आला मक़ाम।
तुम खुदा से आशिक़ी पैदा करो।।
***
95-क्यों मुस्कुराता नहीं-103
आलसी आदमी कुछ पाता नहीं।
वक्त गुजरा फिर कभी आता नहीं।।
सारी दौलत ही यही रह जायेगी।
साथ लेकर कोई भी जाता नहीं।।
कर ले तू भी चाहे जितने ही जतन।
मौत से बढ़ करके कुछ पाता नहीं।।
तू है नेक बंदा तो फिर क्यों।
मुफलिस की नज़र में आता नहीं।।
वो शख्स क्यों मुस्कुराता नहीं।
जख्मे दिल है तो क्यों दिखलाता नहीं।।
शर्म कर बंदे कुछ करले नेकिया।
क्यों एक बार हज को जाता है।।
टूटी जब नफ़रत की दीवार 'राना'।
फिर गले उसको क्यों लगाता नहीं।।
***
96-श्रीधर का हो गया-104
देखा जो इक नज़र तो श्रीधर का हो गया।
पहुंचा जो उसके दर पे उसी का हो गया।।
परदेशी था भूले से ही आया है शहर में।
इतना मिला है प्यार उस शहर का हो गया।।
हालात-ए-वफ़ा ने उसे किस हाल में छोड़ा।
जो था कभी ज़रदार वो दर-दर का हो गया।।
वो आदमी था काम का मजबूर हो गया।
महबूब से जाकर मिला बेघर का हो गया।।
इक रोज़ मिला 'राना' को वो अजनबी बनकर।
ऐसी कशिश थी प्यार की दिलवर का हो गया।।
***
© 97- वो खुश नसीब है- 105
जो उनके ही करीब है।
वो कितना खुशनसीब है।।
वो रिश्ता ही अजीब है।
जो दिल के करीब है।।
दिल से ही जो अमीर है।
दौलत से मगर गरीब है।।
सपनों में भी न मिल सके।
वो यार बदनसीब है।।
वो दिल का मरीज़ है।
कमसिन बड़ा अजीब है।।
क्यों ऐब गिनाये मेरे।
दोस्त कहूं या रकीब है।।
किसको मिलेगा क्या यहां।
अपना-अपना नसीब है।।
सर पे उनका साया है।
' राना' तो खुशनसीब है।।
***
98-वहां सबके खाते हैं-106
हाथ खाली आये थे, खाली हाथ जाते हैं।
करले तू भी नेकिया, वहां सबके खाते हैं।।
मैं तो हूं एक और सदा, एक ही रहूंगा।
मुझे फिर क्यों, हज़ारों नाम से इंसा बुलाते हैं।।
लेता हूं प्यार मैं भी करता हूं प्यार सबसे।
इंसा के अहम ही तो आपस में लड़ाते हैं।।
न तन की कोई फ़िक्र है, मन का कोई ठिकाना।
जब याद तेरी आती है तो ख़ुद को भूल जाते हैं।।
पत्थर भरी हैं राहें, चलना संभल के 'राना'।
बात न माने किसी की, ठोकरें वो खाते हैं।।
***
99- कुत्ते मेरी गली के-107
मंसूबे मेरे सारे ही तो ढ़ेर हो गये।
साधा निशाना हमने पर बटेर हो गये ।।
आया है फिर से मौसम देखो चुनाव का।
कुत्ते मेरी गली के भी शेर हो गये।।
थे ग़रीब पहले वो नेता बने जब से।
अब उनके कितने ऊंचे ही मुंडेर हो गये।।
बैठे है मेरी घात में दुश्मन भी कुछ यहां।
सुनकर मिरी दहाड़ वो तो ढेर हो गये।।
जो प्यार से उसने खिलाये है मुझे अक्सर।
शबरी के मीठे फिर बेर हो गये।।
मिज़ाज देखा जो उनका बड़ा ही रूखा था।
थे मीठे बेर वो तो 'राना' केर हो गये।।
***
100- तिरे दीवानों में
गज़ब की शर्त लगी है तिरे दीवानों में।
जलेगा कौन ही पहले सभी दीवानों में।।
अदब करे न बुजुर्गों का न करे वो सलाम।
ये कैसी छाई है मस्ती भी नौजवानों में।।
मंदिरों- मस्जिद ही जाने का उनको वक़्त नहीं।
उनकी हर शाम गुज़र जाती है मयखानों में।।
भाई से भाई अक्सर क्यों लड़ा करते हैं।
फर्क क्या रह जाएगा जानवर इंसानों में।।
उसने नज़रों से पिलाई है इस कदर 'राना'।
असर भी जाता रहा है सभी पैमानों में।।
***
101-सर झुकाकर देखिए -109
मिले सब तुझे दिल में बसाकर देखिए।
उसके दर पे सर झुकाकर देखिए।।
लुट जाओगे दिल लगाकर देखिए।
हो जिन्हें शक़ आज़माकर देखिए।।
हर जगह मिल जायेगा वो भी तुम्हें।
जिस तरफ नज़रें उठाकर देखिए।।
बन जाये ना दुश्मन सारा जहां।
नफ़रतों से गिर रही दीवार देखिए।।
ज़िन्दगी में मिल सके बेहद मज़ा।
तुम यहां सबको हंसाकर देखिए।।
मैं हूं राना देता हूं दिल से दुआ।
एक मुफलिस को बनाकर देखिए।।
***
*102-ग़ज़ल* *कभी कभी-110*
हमने भी वक़्त गुज़ारा है कभी कभी।
इश्क़े बुता का लेके सहारा कभी कभी।।
जो ख़ास थे मेरे मुफलिसी के आते ही।
करते है जिक्र वो भी हमारा कभी कभी।
दुश्मन हमारा क्या हुआ वो है तो पड़ौसी।
लगता है वो भी हमको प्यारा कभी कभी।।
जो नेकदिल हो वो भी बचा लेता है ऐसे।
मिल जाये जो तिनके का सहारा कभी कभी।।
मुसीबत जो सर पे आई परेशां हुए 'राना' ।
मैंने उन्हें मदद को पुकारा कभी कभी।।
***
103- मुश्किलों से जब भी है :-111
मुश्किलों से जब भी हम दो चार हुए हैं।
जो ख़ास थे नदारत वो यार हुए हैं।।
हम भी देखों कितने लाचार हुए हैं।
हर तरफ ही मौत के बाज़ार हुए हैं।।
कशिश इतनी थी न रोक पाये ज़ज्बात।
जुनूने इश्क़ में हम हद से पार हुए हैं।।
हौंसला अभी भी है न छोड़ी उम्मीद।
नाकामियों से ज़रुर शर्मसार हुए है।।
यक़ीन था कि एक दिन वो आयेगा जरूर।
दीदार को तेरे हम बेकरार हुए हैं।
न दिन में चैंन है न रात में सुकूंन है।
जब से तिरी निगाह में गिरफ्तार हुए हैं।।
'राना' देश की हिफ़ाज़त अब करेगा कौन।
अब तो शहर में सैंकड़ों गद्दार हुए हैं।।
***
© राजीव नामदेव "राना लिधौरी",टीकमगढ़*
संपादक-"आकांक्षा" हिंदी पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' बुंदेली पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
*( *राना का नज़राना* (ग़ज़ल संग्रह-2015)- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' के ग़ज़ल-103 पेज-111 से साभार
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