Rajeev Namdeo Rana lidhorI

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2020

राना का नज़राना-(ग़ज़ल संग्रह)- राजीव नामदेव'राना लिधौरी', टीकमगढ़

                राना का नज़राना
                    (ग़ज़ल संग्रह)
         - राजीव नामदेव'राना लिधौरी', टीकमगढ़
सन्-2015  पेज-112   मूल्य-100रुपये
प्रकाशन-म.प्र.लेखक संघ टीकमगढ़ (म.प्र.)
*राना का नजराना* 

    राना का नज़राना (ग़ज़ल संग्रह)
ग़ज़लकार- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
सन्-2015 मूल्य-100 पेज-120
प्रकाशक- मप्र लेखक संघ टीकमगढ़

अनुक्रमणिका-
1- बहुत दिन गुजर गये-09
2-ज़िन्दगी साकार है-10
3- ये असर देखा-11
4- मुलाकात होगी-12
5-क्या दिया आपने-13
6- आप क्यों सर पै आसमान उठा लेते है-14
7-दिल मचलता जरुर है-15
8- दे दिया दिल उसे- 16
9- गुनगुनाना चाहता हूं-17
10- दिल जोड़ लिया है-18
11- हमसे जुदा कैसे हुआ-19
12- सरदार के आगे-20
13- मेरी जान तिरंगा- 21
14- दे गया कोई-22
15- गुलिस्तान बना देते हैं-23
16- दिल में समाई होगी-24
17- दिल के आशियाने में-25
18- दिल में उतर जाता हूँ- 26
19- जीने की कसम खायी है-27
20- नहीं अहसान लिया करते हैं-28
21- कैसे रखूं हिसाब - 29
22- ज़िन्दगी- 30
23- लिख रहा हूं ज़िन्दगी में-31
24-ग़ज़ल-महफ़िल को ढूंढ़ता है-32
25- हम ज़माने के लिए-33
26-सोच के सहरा में खड़ा है-34
27-यहां सब मेहमान होगें -35
28-बचकर कहां तक जायेगा-36
29- तन्हा हो गये-37
30- बेवफ़ा होते गये- 38
31- ग़म रहने लगे हैं-39
32- मैं क्या करूं-40
33- ज़रा मुस्कुराइये-41
34- वोटों के ख़ातिर-42
35- जो रहीम और राम हो गये-43
36- असर देख रहे हैं- 44
37-वफ़ा का  सिला दीजिए-45
38-ज़रा प्यार तो कर-46
39-याद आते नहीं-47
40-इंसा बनाकर देखिए-48
41-कोई बात बने-49
42-कुछ खोया कुछ पाया है-50
43- किनारा ढूंढता हूं-51
44- क्यों दिलासाओं में-52
45- सुनवाई नहीं है-53
46- ये नेता-54
47-खुश्बू है मेरे सीने में-55
48-भा गया कोई-56
49- दिल के अंदर मिलेगा-57
50- दुआएं दीजिए-58
51- मुस्कुराने के लिए-59
52-चर्चित हो गये-60
53- दोस्त बनकर-61
54- अब के बहार में-62
55-तेरे आने से-63
56-ग़ज़ल- ये अलग बात है-64
57-याद बहुत आते हो-65
58- होंठों पे मुस्कान होगी-66
59-जज़बात बेच-बेच के- 67
60- घायल हो गये-68
61- अब हमें क्या चाहिए-69
62-याद आने लगे हैं-70
63-*ग़ज़ल- हंसकर हजार बार-71*
64-बुढ़ापे में-72
65-साथ ज़माना होगा-73
66-इशारा देखों-74
67-तेरी यादों को-75
68-कैसे करूं यकीन-76
69-समुंदर देखता हूं-77
70-कहां खो गये-78
71-रुला देते है-79
72-सिला दीजिए-80
73-सबको हंसी मिले-81
74-ये दुनिया तो बैगानी है-82
75- दिल की किताब में-83
76-कुछ पाता नहीं-84
77- दिल जलाना-85
78-हम क्या करें-86
79-ऐसे भी होते है लोग-87
80-ग़ज़ल- राना सवाल रखता है-88
81-ग़ज़ल-फिर आगे देखा जायेगा-89
82-इंसा बनाकर देखिए-90
83- मुद्दते हो गयी मुस्कुराये-91
84- खुशियां बहार देखेगे-92
85- मैं अपने हाथों में-93
86- होश में लाएगा कौन-94
87- छूकर नहीं देखा-95
88- दोस्ती पैदा करो-96
89-रब की रहमतों ने-97
90-साँप पलने लगे है-98
91-दिल की दुनिया-99

92-नहीं साथ निभाने वाला-100

93-हरे हो जायेंगे सूखे शजर-101

94-आशिकी पैदा करो-102

95-क्यों मुस्कुराता नहीं-103

96-श्रीधर का हो गया-104

97- वो खुश नसीब है- 105

98-वहां सबके खाते हैं-106

99- कुत्ते मेरी गली के-107
100- तिरे दीवानों में -108
101- सर झुकाकर देखिए-109
102-ग़ज़ल* *कभी कभी-110
103-मुश्किलों से जब भी है-111


112- तिरे प्यार में-120

1-*ग़ज़ल- बहुत दिन गुजर गए

देखे हुए किसी को बहुत दिन गुजर गये।
अरमान थे जो दिल के वह सारे बिखर गये।।

हर इक तरफ़ तो देखो दरिंदों की भीड़ है।
इंसान नेकदिल थे जो जाने किधर गये।।

हम तुमसे दूर रहके तो बेहद उदास है।
आंखों में जो सजाये थे सपने बिखर गये।।

ऐसी भी क्या थी बेरुखी हमको बताइये।
देखा न मुडके तुमने दुबारा किधर गये।।

"राना" भी अपने प्यार की गहराई नापने।
उन झील सी आंखों में भला क्यों उतर गये।।
             ***
2- *ग़ज़ल- ज़िन्दगी साकार है*

दूसरों पर आश्रित हो ज़िन्दगी बेकार है।
खुद के दम पे चार दिन की ज़िंदगी साकार है।।

जिनकी फ़ितरत में इदाबत और धोखा।
ऐसे लोगों पर राम की दोस्तों फटकार है।।

जीतने पर अपने वादों से मुकर जाते हैं वो।
अयसे नेताओं पे तो लानत हैं उर धिक्कार है।।

अफ़सरों के कुत्ते देखो दूध बिस्कुट खा रहे।
और मुफलिस सूखी रोटी के लिए लाचार है।।

अजनबी से हो गये है हम ज़माने के लिए।
*राना* अब तो ज़िन्दगी जीना हुआ दुश्वार है।।
          ***
ग़ज़ल-3- येअसर देखा

हमने सच्चाई को होते हुए बंजर देखा।
गर्दने हक़ पे ही चलता हुआ ख़ज़र देखा।।

ख़ौफ़ से सहमा हुआ ग़मज़दा शहर देखा।
जालिमों का बड़ा, जब हर तरफ़ कहर देखा।।

जिसको नफ़रत थी जिसे अय दोस्त हमारे दिल से।
अपने ख्वाबों में उसे हमने बराबर देखा।।

मिल गया मांगने वाले को जो दिल से चाहा।
हमने नेक दुआओं में ये असर देखा।।

उड़ गयी नींद भी 'राना' की चैंन दिल का गया।।
जब किसी शोख़ ने बाज़ार में हंस कर देखा।।
***

4-ग़ज़ल- मुलाकात होगी

जहां ज़िन्दगी में मुलाकात होगी।
हसीं ख्वाहिशों की भी बरसात होगी।।

पड़ा क्यों तू मजहब के चक्कर में नादां।
अगर है तू इंसा तो इक ज़ात होगी।।

जो होगी कशिश गर हमारी वफ़ा में।
कहीं न कहीं फिर मुलाका़त होगी।।

करेगा इबादत तो दिल से अगर तू।
फिर उसके करम की भी बरसात होगी।।

सजी है जो महफ़िल यहां अपनी "राना"।
तेरी शायरी में भी कुछ बात होगी।।
****
ग़ज़ल 5-क्या दिया आपने*

दर्दे दिल के सिवा क्या दिया आपने।
काम हरदम सितम से लिया आपके।।

ग़म ही ग़म से है भर दी मिरी ज़िन्दगी।
किस जनम का ये बदला लिया आपने।।

प्यार का अपने चाहा था हमने सिला।
बेवफ़ाई का तोहफा दिया आपने।।

बद्दुआयें न देंगे कभी आपको।
भूल जायेंगे जो भी किया आपने।।

मुस्कुराये की जो मैंने की कोशिशें।
'राना' हरदम रूला ही दिया आपने।।
********
*ग़ज़ल- 6-'आप क्यों'*

आप क्यों सर पै आसमान लिया करते हैं।
हम तो हर बात यूं मान लिया करते हैं।।

हमने हर वक़्त उन्हें अपना दिलो जां समझा।
एक वो हैं कि मेरी जान लिया करते हैं।।

अपनी बोली से चुंभा देते हो नश्तर हमको।
हर सितम आपका हम जान लिया करते हैं।।

साथ उसका रहे फिर मुझको नहीं ग़म कोई।
हर किसी का नहीं अहसान लिया करते हैं।।

*'राना'* दिल तोड़ दिया उसने मिरा ये कहकर।
वो पुराना नहीं सामान लिया करते हैं।।
***
*ग़ज़ल- 7-दिल मचलता जरुर है*

बदली में चांद छिप के निकलता जरुर है।
संगदिल भी एक रोज़ पिघलता जरुर है।।

बेकरार दिल को सकूं मिल सके कैसे।
दिल तो आखि़र दिल है मचलता जरुर है।।

तूफान भी उसको न मिटा पायेगा कभी।
जो प्यार से सींचा सजर फलता जरुर है।।

मैंने सुना है एक दिन वो आयेंगे जरुर।
दीपक दिले उम्मीद का जलता जरुर है।।

अच्छा करो, बुरा करो, तुम पर है दोस्तों।
कर्मो का अपने फल यहां मिलता जरुर है।।

दुनियां की ठोकरों से न मायूस हो *'राना'*।
गिर-गिर के आदमी भी संभलता जरुर है।।

8- दे दिया दिल उसे
दे दिया दिल उसे बात ही बात में।
वो बदल क्यों गये रात ही रात में।।

उसको समझा चुके बात ही बात में।
समझे भाषा को वो लात ही लात में।।

बचके रहना सदा आज के दौर में।
लोग रहते भी है घात ही घात में।।

बचके रहना सदा आज के दौर।
लोग रहते भी है घात ही घात।।
मज़हबों के ही इन रहनुमाओं।
बांटते आदमी जात ही जात।।

शान में उनकी 'राना' तुम लिखिए क़लाम।
बखशिशो मिले नात ही नात में।।

ये असर देखो पहली मुलाकात में।
दे दिया दिल उसे बात ही बात में।

चैन अब तो यहां मुझको मिलता नहीं।
क्या करूं मैं तो ऐसे हालात में।।

फांस लेते हैं बातों के वो जाल में।
जीत सकता नहीं वो वकालात में।।

करके ये तो घोटाले रहे शान से।
बंद होते नहीं वो हवालात में।।
देखकर उनकी भोली सी सूरत यहां।
वह गये 'राना' ये कैसे जज्बात में।।
*****
9- गुनगुनाना चाहता हूं

ग़मों को मैं छिपाना चाहता हूं।
हमेशा मुस्कुराना चाहता हूं।।

सभी के काम आना चाहता हूं।
मैं गिरतों को उठाना चाहता हूं।।

जो उनकी शान में अशआर लिख्खें।
वहीं मैं गुनगुनाना चाहता हूं।।

बने हैं लोग जो, हैवान अब तो।
उन्हें इंसां बनाना चाहता हूं।।

किया 'राना' ने महसूस अब तक।
क़लम उस पर चलाना चाहता हूं।।

*ग़ज़ल10- गरीबों से दिल जोड़ लिया है*

अब जिंदगी का रुख भी मैंने मोड़ लिया है।
उनकी गली से नाता मैंने जोड़ लिया है।।

बदकार अमीरों से रिश्ता तोड़ लिया है।
मैंने तो अब गरीबों से दिल जोड़ लिया है।।

खाई थीं जीने मरने की कसमें जो आपने।
आया जो वक्त तुमने ही मुंह मोड़ लिया है।।

देखा ही क्या था उसने अभी अपने चमन में ‌।
जिसने कली को बिन खिले ही तोड़ लिया है।।

सर को उठाये फ़क्र से चल तो रहा था मैं।
ठोकर लगी जो *'राना'* तो सर फोड़ लिया है।
***
ग़ज़ल-11- हमसे जुदा कैसे हुआ

इन्सां ना था फरिश्ता था हमसे जुदा कैसे हुआ।
कल तक तो यहां जश्न था मातमजदा कैसे हुआ।।

देखने में मुझको जो अपना लगा था दोस्तों।
ख़्वाब में देखा था उसके वो हवा कैसे हुआ।।

रास भी आई नहीं उसको मिरी सच्चाईयां।
राह क्यों बदली हैं उसने बेवफ़ा कैसे हुआ।।

कह रहे है प्यार में मुझको तो हासिल हो गया।
उसने जो दिल दे दिया है फिर नफ़ा कैसे हुआ।।

हमने तो हर ज़िद को उनकी कर दिया पूरा मगर।
बावजूद इसके भी 'राना' वो ख़फा कैसे हुआ।।
                     ***
ग़ज़ल-12- सरदार के आगे

हसीना मान जाती है वो अपने प्यार के आगे।
जवानी गिड़गिड़ाती है दिले मुरदार के आगे।।

उन्हें मुफलिस पे आता है मज़ा क्यों ज़ुल्म ढाने में।
अजी झुक जाते हैं डर के सभी सरदार के आगे।।

करें क्या मुस्कुराना तो मेरी फ़ितरत में है शामिल।
ये नाजुक फ़ूल भी झुक जाता है उस ख़ार के आगे।।

करम मुझ पर यही उनका कि लिख जाती हैं कुछ ग़ज़लें।
पिघल जाते हैं पत्थर दिल भी मेरे अशआर के आगे।।

कि 'राना' इस दवा का कितना होता है असर देखो।
कि दुश्मन दोस्त बन जाते है सच्चे प्यार के आगे।।
      ######
ग़ज़ल--13 मेरी जान तिरंगा

देश की है शान मेरी जान तिरंगा ‌।
न हिंदू, न इसाई , न मुसलमान तिरंगा।।

झुकने न देंगे हम कभी, तन भी निसार है।
कितने हुए तेरी शान पे कुरबान तिरंगा।।

बंटने न देंगे देश चाहे जान भी जाये।
दुश्मन के लिए मौत का फरमान तिरंगा।।

आपस में भाई चारा हो हिंदोस्तान में।
है अज़मते इंसान की पहचान तिरंगा।।

है नौजवान 'राना' कदम पीछे न हटे।
सीमा का हमेशा ही निगहवान तिरंगा।।
#####

14- दिल को सदा दे गया कोई

मुरझा गया था दिल का चमन सख्त धूप में।
बरसात बन के रंग हरा दे गया कोई।।

अय दोस्त तेरी याद ही जीने का सहारा।
तारीकियों में मुझको ज़िया दे गया कोई।।

हर वक़्त खुमारी सी है हर पल है बेखुदी।
मुझको ये जागने की सज़ा दे गया कोई।।

"राना" नसीब मुझ पे हुआ मिहिरवान तो।
उम्मीद से भी ज़्यादा मज़ा दे गया कोई।।
           ******
15- गुलिस्तान बना देते है

पहले तो प्यार की बातों में फंसा लेते हैं।
फिर बड़े प्यार से वो ख़ार चुंभा देते हैं।।

रंग खुशबू का करिश्मा है ये शोख गुलाब।
शाख पे रहके ही दुनिया को सदा देते हैैं।।

देश रक्षा के लिए खून बहाने की जगह।
हम लहू दंगे फ़सादों में बहा देते हैं।।

हम तो सहते है ज़माने के सितम हंस हंसकर।
हम नहीं वो जिन्हें हालात रुला देते हैं।।

अपनी फ़ितरत ही कुछ ऐसी कि 'राना' हम तो।
रेग़ज़ारों को गुलिस्तान बना देते हैं।।
         ######
16- दिल में समाई होगी

जब हंसी हौठों पै आई होगी।
अदा वो दिल में समाई होगी।।

रात भर जागता रहा हूं मैं।
नींद तुमको भी न आई होगी।।

हसीं है वो तो जवां हूं मैं भी।
कशिश मेरी खींच लाई होगी।।

उड़ी तो होगी गुलों की रंगत।
चमन में जब वो लजाई होगी।।

फ़लक ज़मीं पै झुक आया होगा।
नज़र जब उसने उठाई होगी।।

ख़बर है बज्म में 'राना' उसने।
ग़ज़ल मेरी ही सुनाई होगी।।
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17- *ग़ज़ल- दिल के आशियाने में*

फंस गये दिल को आजमाने में।
कब मिटे है ग़म शराबखाने में।।

इश्क़ की आग लगी दिल में।
ज़िंदगी खप गयी बुझाने में।।

सारी दुनिया बुरी नहीं यारों।
अच्छे इन्सां भी है ज़माने में।।

जिसको सारे जहान में ढूंढ़ा।
वो मिला दिल के आशियाने में।।

ऐसा रूठा वो अपने राना से।
ज़िन्दगी खप गयी बनाने में।।
               ***
ग़ज़ल-18- दिल में उतर जाता हूँ

बेवफ़ा तुझको मैं बेशक़ जो नज़र आता हूँ।
दुश्मनों के भी मगर दिल में है उतर जाता हूँ।।

दूर कितना भी रहूँ फ़ासले कितने हों मगर।
दिल के नज़दीक हमेशा मैं तुझे पाता हूँ।।

आँख से बहने नहीं देता हूँ आँसू बनकर।
ग़म की दौलत को मैं सीने में छिपा आता हूँ।।

याद जब आती है उस शख़्स की तन्हाई में ।
दिल को अपने उदासी से घिरा पाता हूँ।।

गै़रों के बल पै सूरज न बनूंगा *'राना'*
दीप हूँ मैं तो अन्धेरे में टिमटिमाता हूँ।।
***
19- ग़ज़ल- जीने की कमस खायी है

एक पल की भी खुशी दिल ने कहाँ पायी है।
अपने हिस्से में तो  आँखों की नमी आयी है।।

हमने चाहा था कि ग़म बाँट ले दोनों मिलकर।
बात लेकिन ये पसंद उसको नहीं आयी है।।

मुक्ति जीवन से दिलाने को मुझे आए तो मौत।
रास्ता देखते अब आँख भी पथरायी है।।

जिस तरह चाहे हमें जाँच के देखे दुनिया।
हमने हर हाल में जीने की कसम खायी है।।

दिल पे काबू भी कहाँ तक रख्खे 'राना' अपने।
चोट अपनों से यहाँ हमने बहुत खायी है।।
  ***
20-गज़ल- नहीं अहसान लिया करते हैं

आप क्यों सर पै आसमान लिया करते हैं।
हम तो हर बात यूं ही मान लिया करते हैं।।

हमने हर वक़्त उन्हें अपना दिलो जां समझा।
एक वो हैं कि मेरी जान लिया करते हैं।।

अपनी बातों से चुभा देते हो नश्तर हमको।
हर सितम आपका पहचान लिया करते हैं।।

साथ उसका रहे फिर मुझको ग़म नहीं कोई।
हर किसी का नहीं अहसान लिया करते हैं।।

'राना' दिल तोड़ दिया उसने ये कहकर।
वो पुराना नहीं सामान लिया करते हैं।।
          ***
21-कैसे रखू़ हिसाब


कितने तूने  जख्म दिये मैं कैसे रखूं हिसाब।
जीना दूभर कर दिया किससे कहूं जनाब।।

मारी गयी जो मति हमारी तुमसे किया प्रेम।
लट्टू तुम पै हो गए जैसे कोई शराब।।

धोखा हम भी खा गये जान के तेरा राज।
भोर गये जब टूट गया जैसे कोई ख्वाब।।

तन्हा हम तो रह गये और महफ़िल में है आप।
जैसे चमन में सूख गया जैसे सुर्ख गुलाब।।

'राना' तुमसे क्या कहें रहते बेहद उदास।
उम्मीदों के दीप जले थे दिल में बेहिसाब।।                                      

22-ग़ज़ल- ज़िन्दगी मोम सी गलने लगी है...

ज़िन्दगी भी मोम सी गलने लगी है।
जब से ज़हरीली हवा चलने लगी है।।

क्या करूं इस दर्दे दिल का मैं इलाज।
दिल में फिर इक आग सी जलने लगी है।।

आपके बिन जी के आख़िर क्या करें।
ज़िन्दगी तन्हा हमें खलने लगी है।।

आस क्या दुनिया से रक्खूं मुझसे तो।
बच के अब छाया मिरी चलने लगी है।।

सी के लव बैठों न 'राना' जी उठो।
अब हवा तूफ़ानों में ढ़लने लगी है।।
        ***
*23- लिख रहा हूं ज़िन्दगी में.. -31*

बाजुवां लगती मुझे ख़ामोशियां सच्चाई की।
लिख रहा हूं ज़िन्दगी में तल्खियां सच्चाई की।।

भूख से बेहाल बच्चा रो रहा है सड़क पर।
कैसे खिलाती मां उसे रोटियां सच्चाई की।।

क़रीब रहते हुए भी दूर दिल से होने लगे।
नहीं देखने को मिली अब झलकियां सच्चाई की।।

झूठ के कांटे बिछे थे फ़ूल के चारों तरफ़।
पास कैसे आती अब तितलियां  सच्चाई की।।

ज़ुल्म होता देखकर भी ख़ामोश है अब तो ख़ुदा।
"राना" फसीं खूब आस तो मछलियां सच्चाई की।।
             *****

24-ग़ज़ल-- महफ़िल को ढूंढ़ता है- पेज-32

मिल जाये नेक साथी उस दिल को ढूंढता है।
भटका हुआ मुसाफिर मंज़िल को  ढूंढता है।।

कुछ साथ न लगेगा, लेकर भी कुछ न जाये‌।
तेरा और तीन में क्यों मंज़िल  को ढूंढता है।।

मौके की जुगत में रहता हर एक शायर।
सजती भी हो कहीं पर महफ़िल को  ढूंढता है।।

कुछ तो मज़ा तू ले, ले इस जामे शायरी का।
मिल जाये कोई शायर क़ाबिल को  ढूंढता है।।

दौलत की चमक से रहते गरुर में वो।
जो खो गया है *'राना'* उस दिल को ढूंढता है।।
***
25- हम ज़माने के लिए-33

दीजिए थोड़ी सी जगह अपने इस दीवाने के लिए।
अजनबी से हो गये है हम ज़माने के लिए।।

तूने आंखों से पिला दी ये कैसी मुझको शराब।
अब नहीं बढ़ते क़दम मैखा़ना जाने के लिए।।

तु अगर करदे करम तो क्या बुरा हो जायेगा।
इक नज़र काफी है तेरी ग़म मिटाने के लिए।।

मुस्कुराते हो सरे बाज़ार हमको देखकर।
है अदाये आपकी हमको लुभाने के लिए।।

मिल गई उनसे नज़र ख़ामोश 'राना' हो गए।
कुछ नहीं बाकी रहा अब आजमाने के लिए।।
  ***
26-सोच के सहरा में खड़ा है-34

खुशियों में उर ग़मों में क्यों इंसान पड़ा है।
हर शख्स यही सोच के सहरा में खड़ा है।।

मंदिर मस्ज़िद के तू फ़र्को में पड़ा है।
ईश्वर हर इक दिलों के ही अंदर जड़ा है।।

जल्दी में हरिक काम बिगड़ता जरूर है।
चखकर तो देखो सब्र का फल मीठा बड़ा है।।

ईमान की रोटी से मिले चैंनों सकूं भी।
हराम की कमाई का फल मिलता सड़ा है।।

इस दौर में लालच की इन्तहा तो देखिए।
भाई से ही भाई क्यों अक्सर लड़ा है।।

हैवान कत्ले आम ही तो रोज़ कर रहे।
इंसान उसे देख कर क्यों सहमा खड़ा है।।

सब लोग यही कहते जो देखा वही सच है।
'राना' तो अपनी बात पे दमखम से खड़ा है।।
      ***

27-यहां सब मेहमान होगें -35

कभी तो मुझ पर मिहिरवान होगें।
परेशान सुनकर परेशान होगें।।

किये काम रहकर जो दुनिया में अच्छे।
वही तो तुम्हारी ही पहचान होगें।।

उतर आया हो चांद जैसे जमीं पर।
सभी देखकर उनको हैंरान होगे।।

सबको तू हंसकर गले से लगा ले।
चंद दिनों के सब मेहमान होगें।।

जब भी तुम उनके दर पर रहोगे।
'राना' हर दिन फिर रमज़ान होगे।।
     ***
28-बचकर कहां तक जायेगा-36

तू खुदा की नज्र से, बचकर कहां तक जायेगा।
एक दिन उसकी अदालत में, खुद को खड़ा पायेगा।।

वक़्त गुज़रा लौट कर ही, फिर कभी आता नहीं।
कर ले कुछ तो नेकियां वर्ना बहुत पछतायेगा।।

याद कर ले रोज़ उसको, दर पे जाके उसके तू।
क्या पता ये दीप जीवन, किस समय बुझ जायेगा।।

ज़िन्दगी में आयेंगे, पथरीले ही कुछ रास्ते।
रखना क़दम संभल के वर्ना, ठोकरें ही खायेगा।।

जो भी मिला है 'राना' संतोष कर ले‌ उस पर।
और भी लालच अगर की, जो बचा वो जायेगा।।
           ****

29- तन्हा हो गये-37

नींद मेरी चुराकर ख़ुद कहीं पे सो गया।
और मेरे मन के अन्दर बीज़ ग़म का बो गया।।

जिसके कारण दिल में जलते थे मुहब्बत के चिराग़।
क्यों उसी के वास्ते मैं ग़ैर जाने हो गया।।

क्या ख़ता हम से हुई जो आज वो।
तोड़कर दिल दे के ग़म हम को गया।।

इस जहां में जाके अपना हाल अब किससे कहे।
उसने नज़रें फेर ली है बेवफ़ा वो हो गया।।

यूं तो "राना" भीड़ है हर शहर हर गांव में।
उसके आंखें फेरते ही मैं तो तन्हा हो गया।।
***

30- बेवफा होते गये-38

दो ज़िस्म भी एक जां होते गए।
क्या बताए क्या से क्या होते गए।।

हमसे अब क्यों दूरियां बढ़ने लगी।
की शिकायत तो ख़फा होते गए।।

दिल में हंसीं कुछ पल सजाये हमने थे।
हर ज़ख़्म की वो तो दवा होते गए।।

ख्वाब जो दिल में बसाये थे कभी।
आज वो क्यों फिर हवा होते गए।।

जां से ज़्यादा 'राना' ने चाहा जिसे।
वो यार मुझसे बेवफ़ा होते गए।।
 ****

31- ग़म रहने लगे- 39

जब से मेरे पास ग़म रहने लगे हैं।
दूर तबसे ही सनम रहने लगे हैं।।

क्या हुआ है? मुफलिसी का आगमन।
दोस्त मेरे पास कम रहने लगे हैं।।

जिनके हाथों में कभी थे गुल मगर।
उनके हाथों अब बम रहने लगे हैं।।

हंस के देखा इक पड़ौसी ने मुझे।
उनके दिल में ही वहम रहने लगे हैं।।

जब से पकड़ा दामने सच्चाई को।
ज़िन्दगी में 'राना' तम रहने लगे हैं।।
   ***

32- मैं क्या करूं-40

हसीं हम सफ़र हो तो मैं क्या करूं।
राहजन राहवर हो तो मै क्या करूं।।

मैं कब तक ही बचता रहूंगा यहां।
हादसों का शहर हो तो मै क्या करूं।।

ज़लज़ला आयेगा एक दिन जरूर।
तेज़ उठती लहर हो तो मै क्या करूं।।

साथ गुज़रे भी होते, अगर पल भी थोड़े।
याद शामोसहर हो तो मै क्या करूं।।

दिलो जां से चाहा है 'राना' ने उनको।
न उनको ख़बर हो  तो मै क्या करूं।।
***
33- ज़रा मुस्कुराइये-41

मायूस होके इतने न आंसू बहाइये‌
दुनिया के हर सितम पे ज़रा मुस्कुराइये।।

भारी तो है ज़रूर ज़माने के ग़म बोझ।
आगे मगर किसी के न सर को झुकाइये।।

रहमत का रव कीजिए थोड़ा सा इंतजार।
दीपक उम्मींद का न अभी से बुझाइये।।

करनी है आपको भी बहुत तय रहे हयात।
राहों में दूसरों की न कांटे बिछाइये।।

दुनिया के रंजो गम से बहुत कर चुके वफ़ा।
'राना' न अपने आप पे अब ज़ुल्म ढाइये।।
***
*
34-वोटों के ख़ातिर-42

वोटों के ख़ातिर ही तो दंगे कराये हैं।
ये वो मसीहा है जिन्होंने घर जलाये हैं।।

इनका कोई ईमान है, न कोई धर्म है।
जनता को कैसे ये तो उल्लू बनाये हैं।।

भूकों मरे ग़रीब तो परवाह नहीं इन्हें।
वो अपनी प्यास को मगर रम से  बुझाये हैं।।

नेताओं उर पुलिस की तो ज़ात एक सी।
जनता को ये तो खूब ही चूना लगाये हैं।।

मासूमियत पे इनकी न जाना कभी 'राना'।
सच में ये गुनहगार है जो सर झुकाये।।
     ****

35- जो रहीम और राम हो गये-43

2
35- जो रहीमऔर राम हो गये

जो रहीम और राम हो गये।
उनके ऊंचे नाम हो गये।।

प्यार को जिन्होंने समझा।
वो ही यहां घनश्याम हो गये।।

लक्ष्य को लेकर बढ़े जो आगे।
उनके पूरे काम हो गये।।

देखो नेता बनते ही वो।
कितने ऊंचे दाम हो गये।।

'राना' आज की दुनिया में तो।
कभी सुबह ही शाम हो गये।।
*****

*ग़ज़ल 36- असर देख रहे हैं*

हम अपनी उन्नति का असर देख रहे हैं।
अश्लीलता का फैला ज़हर देख रहे हैं।।

होने लगी है धर्म पे अब राजनीति भी।
दंगों में आज जलता शहर देख रहे हैं।।

मिलते ही नज़र देखिए शरमा गये हैं वो।
हम अपनी मोहब्बत का असर देख रहे हैं।।

*'राना'* से दूर कितने भी हो,चाहे,वो,लेकिन
मन से तो उन्हें शामों सहर देख रहे हैं।।
***

37-*ग़ज़ल-वफ़ा का  सिला दीजिए*

कुछ वफ़ा का सिला दीजिए।
फिर कोई गुल खिला दीजिए।।

यकीं भी हो थोड़ा तुझे,
हाथ अपना मिला लीजिए।

अब खुलूसो अमन का ही तुम।
दीप दिल में जला दीजिए।।

डूब जाऊं  तो कुछ ग़म नहीं।
अब नज़र से पिला दीजिए।।

तुमको देखा तो नींद उड़ गई।
फिर से हमको, सुला दीजिए।।
***

ग़ज़ल 38- ज़रा प्यार तो कर-46

नफ़रत में रखा क्या है, ज़रा प्यार तो कर।
हमारे दिल को मेरे यार बेकरार तो कर।।

ख़ामोशी नहीं अच्छी कुछ इज़हार तो कर।
हमसे नहीं है प्यार तो इंकार तो कर।।

मेहनत से बहुत कुछ तुम्हें मिल जायेगा।
हक़ छीना किसी ने तेरा इकरार तो कर।।

किसी का वक़्त हमेशा नहीं रहता यकसा।
बदली किस्मत तेरी इंतज़ार तो कर।।

कबूल लेगा 'राना' वो तेरे दिल की दुआ।
तू उसके नाम ग़ज़ल के भी कुछ आशआर तो कर।।
****

*ग़जल39- याद भी आते नहीं-47*

मुस्कुराते होंठ कह पाते नहीं ‌।
बात उनकी हम समझ पाते नहीं।।

मेहनतकशी से जो भी घबराते नहीं।
मात भी वो फिर कभी खाते नहीं।।

 हम विदेशी कोच रखकर भी यहां।
मैच फिर भी जीत क्यों पाते नहीं।।

कैसे जनता ने जिताया था तुम्हें।
अपने वादे याद क्यों आते नहीं।।

प्यार करना है तो फिर उससे करो।
'राना' तुम उसको समझा पाते नहीं।।
***

40-इंसा बनाकर देखिए-48

दोस्त दुश्मन को बनाकर देखिए।
आप थोड़ा मुस्कुराकर देखिए।।

नफ़रतों की टूटेगी दीवार भी।
खुद को बस इंसा बनाकर देखिए।।

फिर तुम्हें दिल से वो देगा दुआ।
प्यार मुफलिस पर लुटाकर देखिए।।

मत करो बदनाम यूं महबूब को।
दिल में उसको ही बसाकर देखिए।।

भूल जाओगे अजी सारा जहां।
उससे नैना तो लड़ाकर देखिए।।

हर जगह ही वो तुम्हें मिल जायेगा।
मन से उनको ही बुलाकर देखिए।।

डूब जाये रस के भी सागर में जो।
मेरी ग़ज़लें गुनगुनाकर देखिए।।

कर सकूं दीदार अपने चांद का।
"राना" अब ज़ुल्फें हटाकर देखिए।।
***

*"ग़ज़ल-41- कोई बात बने"*

आके दूरी मिटाओ तो कोई बात बने।
तुम मिरे पास जो आओ तो कोई बात बने।।

दिल के अंदर मिरे अरमान जो बाक़ी हैं अभी।
तुम उन्हें पूरा कराओं तो कोई बात बने।।

प्यार ने सीने के अंदर जो लगा रक्खी है।
वो आग दिल की बुझाओ तो कोई बात बने।।

मुस्कुराने ही से कुछ बात नहीं बनती है।
तुम अगर दिल में समाओं तो कोई बात बने।।

बिना मेहनत के मंज़िल नहीं मिलती 'राना'।
क़दम को आगे बढ़ाओ तो कोई बात बने।।
                   ###

42-कुछ खोया कुछ पाया है-50

सुख पाने को दुःख को गले लगाया।
जीवन भर कुछ खोया तो कुछ पाया है।।

इसीलिए रास आती नहीं खुशी हम को।
क़िस्मत पर अपनी ग़म का साया है।।

वाह! री क़िस्मत इस दुनिया के अंदर हम।
जिसको कहते थे अपना वो आज पराया है।।

पाकर उसको  खोया मैंने तो मालूम हुआ।
सच्चाई तो एक है बस दुनिया झूट की माया है।।

'राना' जी उन पर अब विश्वास करे वो कैसे।
हर पग फर उनसे हमने धोखा खाया है।।
      ***

ग़ज़ल 43- किनारा ढूंढ़ता हूं-51

इस अंधेरे का किनारा ढूंढता हूं।
अपनी क़िस्मत का सितारा ढूंढता हूं।।

थक गया हूं ज़िन्दगी में इतना मैं।
कोई जीने कि सहारा ढूंढता हूं।।

खोलने को दिल के दरवाज़े को मैं।
तेरे आने का इशारा ढूंढता हूं।।

राह में तेरी खड़ा इक ठूंठ सा।
अब बहारों का नज़ारा ढूंढता हूं।।

ग़म के गहरे पानियों में गिर के मैं।
आज तिनके का सहारा ढूंढता हूं।।

आंख से बहता है जो दरिया मिरी।
'राना' मैं उसका किनारा ढूंढता हूं।।
****

46- ये नेता

हिंदू औ मुसलमां को लड़ाते हैं ये नेता।
वोटों के लिए दंगे करते  हैं ये नेता।।

वो जीतने पे हमको भी पहचानते नहीं।
आते ही बस चुनाव रिझाते  हैं ये नेता।।

ऊपर से है सफेद ये अंदर से है काले।
फर्ज़ी मतों की दम पे ही आते है नेता।।

खा-खा के घास छीना है हक़ जानवरों का।
क्यों ज़ुल्म ग़रीबों पे ही ढ़ाते  हैं ये नेता।।

*राना* न इनका कोई भी ईमान धरम है।
कुर्सी के लिए क़त्ल कराते  हैं ये नेता।।
***

47-खुश्बू है मेरे सीने में-55

रहें मंदिर में या गिरजा में, के मदीने में।
आपके प्यार की खुशबू है मेरे सीने में।।

यूं तो सब लोग ही जी लेते है जहां में मगर।
काम जो औरो के आये है मज़ा जीने में।।

खूब मेहनत करें हो जायेगी रोटी की जुगाड़।
निचोड़े वो लहू अपना जब पसीने में।।

इंसां की शक्ल सूरत करती है बया़ सब कुछ।
क्यों ढूंढते हो उसको पत्थर के नगीने में।।

'राना' इन होंसले को तुम कम न होने देना।
चढ़ जाओगे तुम फिर तो सफलताओं के ज़ीने में।।
***

48-भा गया कोई-56

मेरे दिल को जो भा गया कोई।
आग ऐसी लगा गया कोई।।

चैंन दिल का वो छीनकर मुझसे।
नींद मेरी उड़ा गया कोई।।

वादे पे वादे करे रोज़ ऐसे।
बन के नेता जो आ गया कोई।।

फ़ूल में रहती है खुश्बू जैसे।
मेरे दिल में समा गया कोई।।

गर्म रेगिस्तान में ऐसा लगा है।
घटायें बनके छा गया कोई।।

ईद का चांद हो गया 'राना'।
झलक अपनी दिखा गया कोई।।
***

ग़ज़ल 49- दिल के अंदर मिलेगा-57

न गिरजा न मस्जिद न मंदिर मिलेगा।
न ढ़ूढ़ों उसे दिल के अंदर मिलेगा।।

तुम इक दरिया सा बहकर तो देखो।
तुम्हें भी किसी दिन समंदर मिलेगा।।

क्यों नेता में इंसान को ढूंड़ते हो।
वहां पर कलाबाज बंदर मिलेगा।।

करो खूब कोशिशें न पीछे हटो तुम।
परिणाम उसका फिर सुंदर मिलेगा।।

सच लिखने से 'राना' न चूके कभी।
कवि हर जगह पर कलंदर मिलेगा।।
***

50- दुआएं दीजिए-58

चांदनी रात में ये हुस्न निखर जाने दो।
आज तो जुल्फ़ को शानो पे बिखर जाने दो।।

किसी की आह का होता है असर समझो उसे।
है बेगुनाह सताना नहीं घर जाने दो।।

पास आयेंगे मसर्रत के भी लम्हात कभी।
है बुरा वक्त अभी इसको गुज़र जाने दो।।

हूं मुरीद आपका मुझपे भी करम हो जाये।
इक नज़र डाल दो झोली मेरी भर जाने दो।।

क्या करोगे यहां तुम आके भला अय 'राना'।
यही है हादसों का एक शहर जाने दो।।
***


51- मुस्कुराने के लिए-59

हो रहे वो कैसे पागल प्यार पाने के लिए।
लव तरसते है हमारे मुस्कुराने के लिए।।

घबराओं मत जीवन की भी इस राह पर।
कष्ट मिलते है तुम्हें भी आज़माने कज लिए।।

मिट जायेगी सारी परेशानी वहां पे जाइये।
लोग जाते है जहां ये ग़म भुलाने के लिए।।

प्यार की हद देखिएगा आप परवाने में भी।
खुद शमा जल जाती है उस दिवाने के लिए।।

हाले दिल उनका बना देता है चेहरा कैसे।
नक़ाब डाले है वो ऐब छिपाने के लिए।।

मिटाते पल में ही आतंकी ग़ैर के घर को।
ज़िन्दगी खप जाती है इक आशियाने के लिए।।

छोड़ दो ऐसी मधुर इक तान 'राना' तुम यहां।
सब मचल जायेगे उसको गुनगुनाने के लिए।।
***

52-चर्चित हो गये-60

नव काव्य सृजन करके थोड़ा सा चर्चित हो गये।
हम भी इस युग के नये रंगों से परिचित हो गये।।

धन्य उन वीरों, जवानों ने दी जो कुर्वानियां।
पूजा के ही कुछ पुष्प जो देश पर अर्पित हो गये।।

उनके पावन दर्शनों को पाके हम तो धन्य है।
पाप अनजाने किये थे वो भी विसर्जित हो गये।।

आते ही वो चुनाव में कैसे बिठाते पास में।
जीते चुनाव देख तो कैसे अपरिचित हो गये।।

सादगी तो इस क़दर 'राना' को उनकी भा गयी।
तन, मन, धन से आज उन पर ही समर्पित हो गये।।
***


53- दोस्त बनकर-61

दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला।
याद आया तु ही बस मुझको रुलाने वाला।।

दोस्त बनकर के जो ग़म तुमने दिए है हमको।
कोई पल देते मुझे हंसने हंसाने वाला।।

कभी भी कम नहीं होगी तिरी इल्मी दौलत।
तू अगर चाहे उसे जितना लुटाने वाला।।

जब तक रहेगा हाथ जो उसका मिरे सर पर।
नहीं हो सकता मुझे कोई मिटाने वाला।।

 दंगा फसाद देखके खामोश है 'राना'।
कहां पे देखों गया इंसान बनाने वाला।।
***

54- अब के बहार में-62

मिल जाएगा मेहबूब अब के बहार में।
क्या आ गया ख़्याल दिले बेकरार में।।

क्या मिलेगा तुमको हमसे तकरार में।
नहीं वो मिलेगा मज़ा जो है प्यार में।।

जो काम ऐसा कर गया है इस जहां में।
हर वर्ष लगेंगे मेले उसकी मज़ार में।।

अपने भी दिन फिरेंगे एक दिन जरुर।
हमको तो यकीं है परवरदिगार में।।

'राना' ढूंढते ही रह जाओगे यहां।
प्यार न मिल पायेगा तुमको बज़ार में।।
***

55-तेरे आने से-63

होंठों पर मुस्कान छायी तेरे आने से।
मुद्दत बाद खुशी हाथ आयी तेरे आने से।।

मन का मोर खुशी से नाच उट्ठा है फिर।
मधुर मिलन की बदली छायी तेरे आने से।।

पुनम की रात का चंदा सा जब तू आया।
कली कली जूही मुस्कायी तेरे आने से।।

पुनर्मिलन की भावमयी उस बेला में।
आंख मिरी भर आयी तेरे आने से।।

गया अंधेरा 'राना' के घर से अब दूर।
भोर सुहानी आयी तेरे आने से।।
***

56-ग़ज़ल- ये अलग बात है-64

वो ख़फ़ा मुझसे है ये अलग बात है।
ज़िन्दगी की ये लेकिन कडी रात है।।

जाने वाले तुझे कैसे समझाये हम।
कितनी क़ातिल अमावस की रात है।।

जाने किस बात पर आज तक जाने क्यों।
नापसंद उनको हमसे मुलाक़ात है।।

रात दिन 'राना' हम सोचते है यही।
जिसपे रूठे है वो कौन सी बात है।।
***

57-याद बहुत आते हो-65

तुम मुझे बहुत याद आते हो।
आंख से दिल में समा जाते हो।।

हो तुम्हीं मैरी मुब्बत का फूल।
ज़िन्दगी को तुम्हीं‌ महकाते हो।।

तुम तसव्बुर में मिरे आ-आकर।
किस लिए तुम मुझे तड़पाते हो।।

प्यार करते हो मुझे तुम भी,मगर।
मुंह से कुछ कहने में शरमाते हो।।

'राना' हम तुमको भुलाएं कैसे।
दिल के मंदिर में बसे जाते हो।।
***

58- होंठों पे मुस्कान होगी-66

सजी जिसके होंठों पे मुस्कान होगी।
कली सबसे पहले वो बलिदान होगी।।

भंवर है सयाना तू सीधी कली है।
मुहब्बत करेगी तो हेंरान होगी।।

ये पत्थर ही भगवान का रूप लेगा।
इवादत में तेरी अगर जान होगी।।

ये कहता है परवाना उल्फत में यारों।
अगर मर भी जाओ तो इक शान होगी।।

तवक्को जवां है मिरे दिल में "राना"।
कभी तो नज़र मिहिरवान होगी।।
***
59-जज़बात बेच-बेच के- 67

जज़्बात बेच-बेच के खाने लगे हैं लोग।
शादी के ज़रिए पैसा कमाने लगे है लोग।।

आदर्श विवाह सिर्फ दिखावा है दोस्तों।
चैक भी एडवांस में मंगाने लगे है लोग।।

कैसा ये इंक़लाब है कैसा निज़ाम है?
कमज़ोर बेबसों को सताने लगे है लोग।।

करते है जो दहेज प्रथा का विरोध उन्हें।
पिछड़ा हुआ मनुष्य बताने लगे है लोग।।

कमज़ोर की पुकार पे 'राना' जी देखिए।
ज़ालिम के साथ हँसने-हँसाने लगे है लोग।।
***

*ग़ज़ल 60- घायल हो गये-*

बचते-बचते ही तो घायल हो गये।
नज़रे क़ातिल के यूं कायल हो गये।।

रक्स पर उसके हुआ ये हाल दोस्त।
यूं लगा हम उसकी पायल हो गये।।

प्यार से देखा उन्होंने जब हमें।
आँख का हम उनकी काजल हो गये।।

दूर ही से देख उनको ऐ रफ़ीक।
जो गए नज़दीक पागल हो गए।।

छाई जब 'राना' मुहब्बत की घटा।
सब्ज़ सबके दिल के जंगल हो गए।।
***

61-अब हमें और क्या चाहिए-69

अब हमें और क्या चाहिए।
खैरियत की दुआ चाहिए।।

चमन दिल का ये मुरझा रहा।
बागवाँ आपसा चाहिए।।

सर रखूं जब तिरी गोद में।
जुल्फों की बस हवा चाहिए।।

न दौलत,न शौहरत, न रव।
प्यार को बस वफ़ा चाहिए।।

दिया है दिल यही सोच कर।
उम्रभर आसरा चाहिए।।

वो तो हर शै में मौजूद हैं।
कहते है कि पता चाहिए।।

मिल गया दिल-ए-राना तुम्हें।
फिर क्या इसके सिवा चाहिए।।
***

62- याद आने लगे है-70

मुझे वो बहुत याद आने लगे है।
वो सपनों में आकर सताने लगे है।।

मुहब्बत थी जिनको बहुत हमसे कल तक।
वो अब दूर रहकर सताने लगे है।।

निकट तो अभी वो नहीं आते मेरे।
मगर ख़त मुझे अब लिखाने लगे है।।

कभी होती वर्षा मिलन की "राना"।
उम्मीदों के बादल तो छाने लगे है।।
***

63-*ग़ज़ल- हंसकर हजार बार-71*

पड़ता है काम पडौसी के घर पर हज़ार बार।
जाना पड़ा रक़ीब के घर पर हज़ार बार।।

देखेगा जो भी आंख उठा करके वतन पर।
हस्ती मिटा दे उसकी हम लड़कर हज़ार बार।।

वो सामने मेरे कभी आता ही क्यूं नहीं।
लेकिन वो मुझको देखता छिपकर हज़ार बार।।

नज़रों का ये धोखा है या के उसकी है चाहत।
देखा है उसने मुझको हंसकर हज़ार बार।।

आऊंगा तुमसे मिलने को मै जल्द ही इस वार।
हर वार वो जाता है कहकर हज़ार बार।।

कितने गिनाये ऐब भी दूसरों के इस तरह।
इल्ज़ाम खुद ही लगते है उस पर हज़ार बार।।

जीता है "राना' इस तरह मरकर हज़ार बार।
चुभते रहे वो तीरोंग़म दिल पर हज़ार बार।।
***

64-ग़ज़ल-बूढ़ापे में-72

पड़े न गाल पे जो उंगलियाँ नहीं होती।
जो टूट जाती हैं वो पसलियाँ नहीं होती।।

इस उम्र में ये जवानी की मत उमंगे रख।
फ्यूज़ बल्व में मौजूद बिजलियाँ नहीं होती।।

न कर बुढ़ापे में कोशिश नयन लड़ाने की।
पुरानी उम्र में मजबूत पसलियाँ नहीं होती।।

झड़ा के बाल जवानी को ढ़ूंढ़ने वाले।
तुझे पता है मरुस्थल में तितलियाँ नहीं होती।।

बस उनको देखकर इक वार अपना जी भर लो।
जो पकड़ी जाये यहाँ ऐसी मछलियाँ नहीं होती।।

कटा के केश दिया उसने तर्क ये हमको।
चमकते चांद पे अब बदलियाँ नहीं होती।।

न जाओ छांव को पीपल की छोड़कर 'राना'
नगर में गाँव सी खुशहाल बस्तियाँ नहीं होती।।
***

65-साथ ज़माना होगा-73

उफ़ जनाजा मेरा इस कदर रवाना होगा।
देखकर तुमको दो आंखू बहाना होगा।।

क्यों करते दंगे फ़साद और मारकाट तुम।
मिटोगें वतन पे तो साथ ज़माना होगा।।

इमारतों पे चढ़ के क्या देखते हो नीचे।
मरोगे तो दो ग़ज़ ज़मीन ठिकाना होगा।।

कली जब फूल बन के महकेगी चमन में।
भौंरौं को फिर आकर गीत गुनगुनाना होगा।।

बदनामियों के डर से क्यों ख़मोश हो 'राना'।
हर इल्ज़ाम को अपने सर से मिटाना होगा।।
***
***
66-इशारा देखों-74

 हवायें कर रही है तुम भी इशारा देखो।
किस तरह बर्फ़ से उठती है शरारा देखो।।

हो गया छेद गर कश्ती में डूब जायेगी।
तुम अगर चाहते हो बचना तो किनारा देखो।।

इन हादसों से तुम कभी मायूस न होना।
उन के दर पे मिले कितनों को सहारा देखो।।

सब रहते है यहां मिलके धर्म कोई हो।
हसीन दिखता है कितना नज़ारा देखो।।

सजा रख्की है जहां चांद ने महफ़िल अपनी।
वहां पे 'राना' है छोटा सा सितारा देखो।।
***
67-तेरी यादों को-75

मैं लड़ता ही रहा हूं ग़मे चट्टानों से।
मौज़े दरिया के मचलते हुए तूफ़ानों से।।

हाल मेरा इस तरह क्यों कर दिया उसने।
लोग कहते है कि तुम लगते हो दीवानों से।।

दिल की कशिश रंग लायेगी तुम देखना जरूर।
तेरी यादों को सजा रख्का है अरमानों से।।

तूने आंखों से पिलाई कि मुझे होश नहीं।
'राना' पीने की जरूरत नहीं मयखानों से।।
***

68-कैसे करूं यकीन-76


69-*ग़ज़ल- समुंदर देखता हूं* -77

उसी को सबके अंदर देखता हूं।
मैं क़तरे में समुंदर देखता हूं।।

मंदिर-मस्ज़िद हो, वो एक ही तो है।
मैं उन्हें शामों सहर देखता हूं।।

हमें ये मुल्ला पंड़ित बांटते है।
आड़ में ही धर्म पर क़हर देखता हूं।।

यहां पे भी चैंनों सुकूं अब मिले ना।
गांवों को बनते शहर देखता हूं।।

जो पहले थीं वो अब शराफ़त नहीं है।
मैं काले मुंह का बंदर देखता हूं।।

"राना" ये ज़ुल्मों सितम देखकर।
दिल में ही उठती लहर देखता हूं।।
***

ग़ज़ल 70- कहां खो गये-78

तुम्हें देखकर फिदा हो गये।
तुम्हारे ख्यालों में ही खो गये।।

सरेआम छीना मेरा दिल तुम्हीं ने।
ये मिलते ही दो दिल जवां हो गये।।

अगर ग़ैर होता तो कोई ग़म नहीं।
जानकर अपने लूटे तो हम रो गये।।

थे धुंधले उजाले इशारा नहीं था।
चिराग़ां मोहब्बत के गुल हो गये।।

कैसी किस्मत थी उनको भी न पा सका।
उन्हें खो के 'राना' कहाँ खो गये।।
***
71-रुला देते हैं-79

इस तरह लोग मोहब्बत में दगा देते हैं।
दिल को तड़पाते है और रुला देते हैं।।

वोट की खातिर गधों को भी मना लेते हैं।
जीत के बाद ही जनता को भुला देते हैं।।

वो तो हैवां हैं जो इंसां की मदद करते नहीं।
लोग ज़ख्मों पे नमक कैसे लगा देते हैं।।

न जायें मंदिर-मस्ज़िद न इबादत कोई।
वक़्त पड़ने पर ही ईश्वर को सदा देते हैं।।

जो कभी खास थे वो यार ही 'राना' मेरे।
मुफ़लिसी के आते ही वो हाथ उठा देते हैं।।

***
72-सिला दीजिए-80

कुछ वफ़ा का सिला दीजिए।
फिर कोई गुल खिला दीजिए।।

यकीं भी हो थोड़ा तुझे।
हाथ अपना मिला दीजिए।।

खुलूसो अमन का ही तुम।
दीप दिल में जला दीजिए।।

डूब जाऊं जो कुछ ग़म नहीं।
चश्म मय की पिला दीजिए।।

तुमको देखा तो नींद उड़ गई।
साये जुल्फ़ों सुला दीजिए।।

मुकद्दर संवर जायेगा।
'राना' उनको बुला दीजिए।।
***

73-सबको हंसी मिले-81

ऐसा न करो काम तुम्हें दुश्मनी मिले।
जां दोस्तों दे सको के रोशनी मिले।।

गहरा जो असर दिल पे करे दिल्लगी मिले।
शायद हसी बज़्म में कुछ शायरी मिले ।।

खूब नज़रों से पिलाई झूम के उसने मगर।
प्यार में फिर क्यों मुझे भी तिश्नगी मिले।।

मत सताऔ जीव को कुछ तो करो भला।
इतनी हंसी न फिर कभी ये ज़िन्दगी मिले।।

यकींन है मुझे मंजिल पे पंहुच जाओगे।
शायद इन्हीं सितारों से कुछ रोशनी मिले।।


तुम मुश्किलों से दूर हो साया न हो ग़म का।
करता है दुआ राना सबको हंसी मिले।।
***


74-ये दुनिया तो बैगानी है-82

देख तुझे हैरानी है।
क्या चेहरा ये नूरानी है।।

मत इतराओं इस पर तुम।
कुछ दिन की तेरी जवानी है।।

यकीं भी करलो इस पर तुम।
तक़दीर बदल ही जानी है।।

नफ़रत की आग जो फैली है।
घर घर की यही कहानी है।।

न मिले सहारा मुफलिस को।
ये दुनिया तो बेगानी है।।

कर सके बयां न हाले दिल।
ये सबसे बड़ी नादानी है।।

नज़रें देख झुका ली क्यों।
ये प्यार की एक निशानी है।।

हंसकर गुज़ार दो राना तुम।
बस ज़रा सी ज़िन्दगानी है।।
***
75- दिल की किताब में-83

गुस्ताख़ी  जो बारिश ने की अपने हिसाब में।
पहली सी वो तपिश न रही आफताब में।।

भौंरे ही चुरा लेते हैं पहले से यहां आकर।
पहली सी वो खुश्बू न रही अब गुलाब में।।

इक बार पढ़के तुम उसे देख लीजिए।
सब कुछ लिखा हुआ है दिल की किताब में।।

नेता, पुलिस और चोर की तो जा़त एक है।
बनते है यही लोग तो हड्डी कबाब में।।

'राना' को दीवाना कहे या कहे पागल।
लोगों ने दे दिया है मुझे कुछ तो ख़िताब में।।
***
76-*ग़ज़ल-कुछ पाता नहीं-84

आलसी आदमी कुछ पाता नहीं।
व़क्त ग़ुजरा फिर कभी आता नहीं।।

सारी दौलत ही यही रह जायेगी।
साथ लेकर कोई जाता नहीं।।

कर तू भी चाहे जितने ही जतन।
मौत से बढ़कर कुछ पाता नहीं।।

तू है एक नेक बंदा तो फिर क्यों?
मुफ़लिस की नज़र में आता नहीं।।

वो शख्स क्यों मुस्कुराता नहीं।
जख्में दिल है तो क्यों दिखलाता नहीं।।

शर्म कर बंदे कुछ कर ले नेकिया।
क्यों एक बार दर को जाता नहीं।।

टूटी जब नफ़रत की दीवार 'राना'।
फिर गले उसको क्यों लगाता नहीं।।
***

77- दिल जलाना-85

देख गैरों को ही उसको तो मुस्कुराना था।
उसे तो सिर्फ हमारा दिल जलाना था।।

मैं तो मुफलिस था क्या दे पाता उसे।
उसका तो कोई और ही ठिकाना था।।

बाढ भी आयी और आकर चली गयी।
उसे तो सिर्फ हमारा ही घर गिराना था।।

कोई मरता है तो मर जाये कोई फिक्र नहीं।
उन्हें तो बोतलों में ज़हर मिलाना था।।

नहीं है व़क्त भी 'राना' के तुम भी देर हो।
उनसे ना मिलने का अच्छा ये बहाना है।।
***

78- हम क्या करें-86

तक़दीर में लिखा नहीं हम क्या करें।
जाने वाली चीज़ का ग़म क्या करें।।

न हो उदास चश्म को नम न करें।
आख़िरी ही वक़्त में यम  क्या करें।।

ग़ैर पर भी हम यकीं कैसे करें।
अपने ही दगा दे रहे हम क्या करें।।

डालते ही इक नज़र मदहोश हो गया।
चश्म मय हो जिसकी तो रम क्या करें।।

क्यों आदमी ही मौत का सामान बनाते।
राना बंदूक, गोली और बम क्या करें।।
***

79-ऐसे भी होते है लोग-87

खूब मेहनतकश जो थककर चूर जब होते हैं लोग।
चिलचिलाती धूप में पत्थर पे भी सोते हैं लोग।।

इंसान है इंसानियत से भी तो रहना सीख लें।
हैवान बनके नफ़रतों के बीज क्यों होते हैं लोग।।

लौट करके वक़्त गुज़रा फिर कभी आता नहीं।
जो कद्र करते ही नहीं वो बाद में रोते हैं लोग।।

बढ़ पाए न आगे कोई करते है वो ऐसे जतन।
दूसरों की टांग खींचे ऐसे भी होते हैं लोग।।

भारत में हर इक धर्म ही मोती सा है 'राना'।
बन जायेगी माला भी इक मोती पिरोते हैं लोग।।
***


© राजीव नामदेव "राना लिधौरी",टीकमगढ़*
           संपादक-"आकांक्षा" हिंदी पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' बुंदेली पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
 *( *राना का नज़राना* (ग़ज़ल संग्रह-2015)- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' के ग़ज़ल-79 पेज-87 से साभार

80-ग़ज़ल- राना सवाल रखता है-

उसी से रिश्ता बनाते जो माल रखता है।
जहां में कौन किसी का ख्याल रखता है।।

मतदाता भी लाचार है और लालची।
चुनाव में तो वो, वादों का जाल रखता है।।

साथ चल तू व़क्त के पीछे न देख।
कौन इस दौर में कछुए सी चाल रखता है।।

कभी तो मिहिरवान होगा ख़ुदा भी।
क्यों अपने दिल में मलाल रखता है।।

इंसानियत जहान से अब खो गई कहाँ ?
सभी के सामने 'राना' सवाल रखता है।।
***

81-ग़ज़ल-फिर आगे देखा जायेगा*

एक समय वो आएगा।
समझ न कोई पाएगा।।।

कुर्सी को हथियाने में।
सब कुछ दाँव लगाएगा।।

बेईमान इस दुनिया में।
नहीं शांति पाएगा।।

जितना चाहे जतन करे।
जनता को न भाएगा।।

राम भरोसे चलने दे।
फिर आगे देखा जाएगा।।

'राना' घर चलता है ऐसा।
देश को कौन चलाएगा।।
***


82-इंसा बना कर देखिए-90


हमने रुख हवाओं का भी बदलते देखा है।

मोम मानिंद भी पत्थर को पिघलते देखा है।


मना ही लेते है मां-बाप भी हँसकर उनको।

कभी-कभी तो ही बच्चों को मचलते देखा है।।


जो नहीं रख सके है अपनी नफ़स पे काबू।

जवानी आते ही लोगों को फिसलते देखा है।।


महल से आते भी देखा सड़क पर उनको।

वक़्त ऐसा भी बदलते देखा है।।


जवान बेटी को लोगों से बचाये कैसे।

आये दिन हमने तो मजनूं को टहलते देखा।।


मौत भी जब क़रीब आने लगी।

चींटी के परों भी निकलते देखा।।


यूँ तो गिरते है हज़ारों 'राना'।

बहादुरों को ही संभलते देखा है।।

 ****

83- मुद्दतें हो गयु मुस्कुराये-91


ग़म मिरे इतने क़रीब आये।

मुद्दते हो गयी मुस्कुराये।।


तड़प दिल की छुपाये कैसे।

अश्क़ आंखों से जब निकल आये।।


धड़कने दिल की मिरी रुक गयी।

जब वो मेरे क़रीब आये।।


ईद है आज कुछ उम्मीद भी।

मिरा चांद छत पे नज़र आये।।


दिल को कैसे समझाये 'राना'।

जब कोई बेवफ़ा हो जाये।।

***

84-- खुशियां बहार देखैगे-92


उनके क़दमों में न पड़ जाये ख़ार देखेंगे।

ख़िज़ा के साये में रंगीं बहार देखेंगे।।


शक्ल सूरत से भी तुम इतनी हसीं तो क्या हुआ।

लायक हो दोस्ती के तो व्यौवहार देखेंगे।।


यूं तो खु़दा की नयमतें मिलती हर इक इंसान को।

कैसा होता प्यार का हम भी खुमार देखेंगे।।


बुरा है वक़्त अभी इसको गुज़र जाने दो।

आयेगी दामने खुशियां बहार देखेंगे।।


'राना' तू खूब लिखता चल अपने कलाम को।

शायरी में लोग भी तुमको शुमार देखेंगे।।

***


85- मैं अपने हाथों में-93


मैं अपने हाथ में पैमाना लिये बैठा हूं।

सुर्ख गुलाब का संग नज़राना लिये बैठा हूं।।


कैसे बचोगे तुम भी अब तीरे नज़र से।

मैं नज़रों में ही मयखाना लिये बैठा हूं।।


सोचा था कि प्यार को महसूस करेंगे ऐसे।

शमा के सामने परवाना लिये बैठा हूं‌।।


वो कहते है कि मैं पीता नहीं हूं ज़रा भी।

लेकिन संग हुश्न का मयखाना लिये बैठा हूं।।


ख़ता क्या हुई ये 'राना' जान न पाये लेकिन।

फिर भी प्यार का हरजाना लिये बैठा हूं।।

***

86- होश में आयेगा कौन- 94


सब यहाँ बेहोश है तो होश में लाएगा कौन।

पश्चिमी हवा तेज़ है भारतीय संस्कृति बचाएगा कौन।।


पाप अपना छिपाने को उसे यूँ ही छोड़ दिया।

देर से सिसक रहा है वो उसे अब उड़ाएगा कौन।।


देश गुलामी में जकड़ा हुआ कर्ज़ बढ़ता जा रहा।

रावणों का शासन है, राम राज्य लाएगा कौन।।


ताउम्र तूने पाप किये बद्दुआ लोगों की ली।

चंद दिनों की इबादत से जन्नत तुझे पहुँचाएगा कौन।।


फाइल टेबिल पे पड़ी,धूल खाकर मोटी हो रही।

दक्षिणा के बिना 'राना' फाइल आगे सरकाएगा कौन।।

***


87- छूकर नहीं देखा-95


सोचा था कि कह देंगे जब मौका सही देखा।

पर अंदाज़ तेरा ख़फ़ा- ख़फ़ा सा वही देखा।।


डाकिये पे न भरोसा न दोस्तों से उम्मींद।

ख़त किससे पहुंचे  ऐसा हमराज़ नहीं देखा।।


मैं कैसे मान लूं  कि वो नाजुक ही होगा।

मैंने तो किसी फ़ूल को छूकर नहीं देखा।।


रुक गये तेरे दर पे आने से पहले 'राना'।

याद आया तेरे बाप का डंडा कहीं देखा।।


'राना' चढ़ा दे कैसे फ़ूल दिल के ख़ुदा को।

भौरों से बचा फ़ूल शायद ही कहीं देखा।।

***

88- दोस्ती पैदा करो-96


पुरअसर ही शायरी पैदा करो।

हर शेर में ज़िंदादिली पैदा करो।।


क्या पता वो काम आ जाये कहीं।

हर शख्स से तुम दोस्ती पैदा करो।।


ग़म के अंधेरे दूर तब होगे सभी।

हर दिये में रौशनी पैदा करो।।


ज़ुल्म करने वाला न बच पाएगा दरवार में।

कुछ तो शर्मिन्दगी पैदा करो।।


पा सकोगे 'राना' तब आला मक़ाम।

तुम प्रभू से आशिक़ी पैदा करो ।।

***


*ग़ज़ल- रब की रहमतों ने*


मुझे बारहा रुलाया मेरे दिल की चाहतों ने।

हर बार दिया आसरा मुझे रब की रहमतों ने।।


उसने भेजा है इस जहां में आदमी के रूप में।

कितना बदल डाला है इंसान को इन जातों ने।।


यह सोचकर के हमने उठायी है अब तो क़लम।

जुबां कह न सकी बयां कर दी वो बात इन ख़तों ने।।


हम एक मां के लाल है साथ पले और बढ़े है।

हमें मिलने नहीं दिया आपस की नफ़रतों ने।


अश्क़ अब इन आंखों, नींद क्यों आती नहीं।

फिर शिकायत की है 'राना' से तमाम रातों ने।।

***

90-साँप पलने लगे है-98


भाई से ही भाई अब लड़ने लगे है।

साँप बनकर ही वो डसने लगे है।।


आस्था में कमी कुछ आ गयी है।

नकली इंसान क्यों बनने लगे है।।


छोड़ जंगल को सारे यहाँ पे।

साँप आस्तीनों में पलने लगे है।।


महफ़ूज नहीं मेरी अब ज़िन्दगी यहाँ पर।

बाहर क़दम बढ़ाने से भी डरने लगे है।।


प्यार के फ़ूल खिलाओं हमेशा तुम 'राना'।

शज़र क्यों सूखकर मरने लगे हैं।।

***

91-दिल की दुनिया-99


हाथ उनसे मिलाके देखेंगे।

दिल की दुनिया बसा के देखेंगे।।


खूब करते रहे वो मुझपे सितम।

जख्म दिल में दबा के देखेंगे।।


हैं डूबा क़र्ज़ में, मंहगाई से परेशां है।

कैसे मुफलिस को हंसाकर देखेंगे।।


कब से बेचैन हूं दीदार को मैं।

वो कब नज़रें उठाकर देखेंगे।।


क्या पता वो कब खुश हो जाये।

सर उस दर झुका के देखेंगे।।


सुबह का भूला जो लौटे है शाम को।

शमा उम्मीदें जलाके देखेंगे।।


कह रही आज ये होली 'राना'।

गले दुश्मन को लगाके देखेंगे।।

***


92-नहीं साथ निभाने वाला-100


दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला।

याद आया तु ही बस मुझको रुलाने वाला।।


दोस्त बनकरके जो ग़म तुमने दिए है हमको।

कोई तो पल देते मुझे हंसने- हंसाने वाला।


कभी भी कम नहीं होगी तिरी इल्मी दौलत।

तू अगर चाहे उसे जितना लुटाने वाला।।


जब तक रहेगा हाथ जो उसका मिरे सर पर।

नहीं हो सकता मुझे कोई मिटाने वाला।।


दंगा फंसा देखके खामोश है 'राना'।

कहां पे खो गया इंसान बनाने वाला।।

***

93-*ग़ज़ल- हरे हो जायेंगे सूखे शजर*


अकेले तय किया मैंने सफ़र ये।

कभी मंज़िल से न भटकी नज़र ये।।


यकीं तिनके का है मुझको सहारा।

न कश्ती को डुबा पाये लहर ये।।


प्यार की आप भी वर्षा तो करके देखों।

हरे हो जायेंगे सूखे शजर ये।।


लाख कोशिश करो टूटेंगे न हम।

ढ़ाओ मुझपे तुम कितने क़हर ये।


मिलते नहीं है आदमी यहां 'राना'।

नज़र पुतलों के ही आते शहर ये।।

***

94- आशिक़ी पैदा करो-102


पुर असर ही शायरी पैदा करो।

हर शेर में जिंदादिली पैदा करो।।


क्या पता वो काम आ जाये कभी।

हर शख्स से तुम दोस्ती पैदा करो।।


ग़म के अंधेरे दूर तब होगें सभी।

हर दिये में रोशनी पैदा करो।।


ज़ुल्मी न बच पायेगा दरवार में।

कुछ तो शर्मिन्दगी पैदा करो।।


पा सकोगे 'राना' तब आला मक़ाम।

तुम खुदा से आशिक़ी पैदा करो।।

***

95-क्यों मुस्कुराता नहीं-103


आलसी आदमी कुछ पाता नहीं।

वक्त गुजरा फिर कभी आता नहीं।।


सारी दौलत ही यही रह जायेगी।

साथ लेकर कोई भी जाता नहीं।।


कर ले तू भी चाहे जितने ही जतन।

मौत से बढ़ करके कुछ पाता नहीं।।


तू है नेक बंदा तो फिर क्यों।

मुफलिस की नज़र में आता नहीं।।


वो शख्स क्यों मुस्कुराता नहीं।

जख्मे दिल है तो क्यों दिखलाता नहीं।।


शर्म कर बंदे कुछ करले नेकिया।

क्यों एक बार हज को जाता है।।


टूटी जब नफ़रत की दीवार 'राना'।

फिर गले उसको क्यों लगाता नहीं।।

***


96-श्रीधर का हो गया-104


देखा जो इक नज़र तो श्रीधर का हो गया।

पहुंचा जो उसके दर पे उसी का हो गया।।


परदेशी था भूले से ही आया है शहर में।

इतना मिला है प्यार उस शहर का हो गया।।


हालात-ए-वफ़ा ने उसे किस हाल में छोड़ा।

जो था कभी ज़रदार वो दर-दर का हो गया।।


वो आदमी था काम का मजबूर हो गया।

महबूब से जाकर मिला बेघर का हो गया।।


इक रोज़ मिला 'राना' को वो अजनबी बनकर।

ऐसी कशिश थी प्यार की दिलवर का हो गया।।

***


© 97- वो खुश नसीब है- 105


जो उनके ही करीब है।

वो कितना खुशनसीब है।।


वो रिश्ता ही अजीब है।

जो दिल के करीब है।।


दिल से ही जो अमीर है।

दौलत से मगर गरीब है।।


सपनों में भी न मिल सके।

वो यार बदनसीब है।।


वो दिल का मरीज़ है।

कमसिन बड़ा अजीब है।।


क्यों ऐब गिनाये मेरे।

दोस्त कहूं या रकीब है।।


किसको मिलेगा क्या यहां।

अपना-अपना नसीब है।।


सर पे उनका साया है।

' राना' तो खुशनसीब है।।

***


98-वहां सबके खाते हैं-106


हाथ खाली आये थे, खाली हाथ जाते हैं।

करले तू भी नेकिया, वहां सबके खाते हैं।।


मैं तो हूं एक और सदा, एक ही रहूंगा।

मुझे फिर क्यों, हज़ारों नाम से इंसा बुलाते हैं।।


लेता  हूं प्यार मैं भी करता हूं प्यार सबसे।

इंसा के अहम ही तो आपस में लड़ाते हैं।।


न तन की कोई फ़िक्र है, मन का कोई ठिकाना।

जब याद तेरी आती है तो ख़ुद को भूल जाते हैं।।


पत्थर भरी हैं राहें, चलना संभल के 'राना'।

बात न माने किसी की, ठोकरें वो खाते हैं।।

***

99- कुत्ते मेरी गली के-107


मंसूबे मेरे सारे ही तो  ढ़ेर हो गये।

साधा निशाना हमने पर बटेर हो गये ।।


आया है फिर से मौसम देखो चुनाव का।

कुत्ते मेरी गली के भी शेर हो गये।।


थे ग़रीब पहले वो नेता बने जब से।

अब उनके कितने ऊंचे ही मुंडेर हो गये।।


बैठे है मेरी घात में दुश्मन भी कुछ यहां।

सुनकर मिरी दहाड़ वो तो ढेर हो गये।।


जो प्यार से उसने खिलाये है मुझे अक्सर।

शबरी के मीठे फिर बेर हो गये।।


मिज़ाज देखा जो उनका बड़ा ही रूखा था।

थे मीठे बेर वो तो 'राना' केर हो गये।।

***

100- तिरे दीवानों में 


गज़ब की शर्त लगी है तिरे दीवानों में।

जलेगा कौन ही पहले सभी दीवानों में।।


अदब करे न बुजुर्गों का न करे वो सलाम।

ये कैसी छाई है मस्ती भी नौजवानों में।।


मंदिरों- मस्जिद ही जाने का उनको वक़्त नहीं।

उनकी हर शाम गुज़र जाती है मयखानों में।।


भाई से भाई अक्सर क्यों लड़ा करते हैं।

फर्क क्या रह जाएगा जानवर इंसानों में।।


उसने नज़रों से पिलाई है इस कदर 'राना'।

असर भी जाता रहा है सभी पैमानों में।।

***

101-सर झुकाकर देखिए -109


मिले सब तुझे दिल में बसाकर देखिए।

उसके दर पे सर झुकाकर देखिए।।


लुट जाओगे दिल लगाकर देखिए।

हो जिन्हें शक़ आज़माकर देखिए।।


हर जगह मिल जायेगा वो भी तुम्हें।

जिस तरफ नज़रें उठाकर देखिए।।


बन जाये ना दुश्मन सारा जहां।

नफ़रतों से गिर रही दीवार देखिए।।


ज़िन्दगी में मिल सके बेहद मज़ा।

तुम यहां सबको हंसाकर देखिए।।


मैं हूं राना देता हूं दिल से दुआ।

एक मुफलिस को बनाकर देखिए।।

***

*102-ग़ज़ल* *कभी कभी-110*


हमने भी वक़्त गुज़ारा है कभी कभी।

इश्क़े बुता का लेके सहारा कभी कभी।।


जो ख़ास थे मेरे मुफलिसी के आते ही।

करते है जिक्र वो भी हमारा कभी कभी।


दुश्मन हमारा क्या हुआ वो है तो पड़ौसी।

लगता है वो भी हमको प्यारा कभी कभी।।


जो नेकदिल हो वो भी बचा लेता है ऐसे।

मिल जाये जो तिनके का सहारा कभी कभी।।


मुसीबत जो सर पे आई परेशां हुए 'राना' ।

मैंने उन्हें मदद को पुकारा कभी कभी।।

***


103- मुश्किलों से जब भी है :-111


मुश्किलों से जब भी हम दो चार हुए हैं।

जो ख़ास थे नदारत वो यार हुए हैं।।


हम भी देखों कितने लाचार हुए हैं।

हर तरफ ही मौत के बाज़ार हुए हैं।।


कशिश इतनी थी न रोक पाये ज़ज्बात।

जुनूने इश्क़ में हम हद से पार हुए हैं।।


हौंसला अभी भी है न छोड़ी उम्मीद।

नाकामियों से ज़रुर शर्मसार हुए है।।


यक़ीन था कि एक दिन वो आयेगा जरूर।

दीदार को तेरे हम बेकरार हुए हैं।


न दिन में चैंन है न रात में सुकूंन है।

जब से तिरी निगाह में गिरफ्तार हुए हैं।।


'राना' देश की हिफ़ाज़त अब करेगा कौन।

अब तो शहर में सैंकड़ों गद्दार हुए हैं।।

***

 

© राजीव नामदेव "राना लिधौरी",टीकमगढ़*

           संपादक-"आकांक्षा" हिंदी पत्रिका

संपादक- 'अनुश्रुति' बुंदेली पत्रिका

जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़

अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़

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 *( *राना का नज़राना* (ग़ज़ल संग्रह-2015)- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' के ग़ज़ल-103 पेज-111 से साभार

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