Rajeev Namdeo Rana lidhorI

सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

गानौ (गहना)

[27/02, 8:00 AM] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहे
प्रदत्त शब्द:-गानौ
गानौ गुरिया बिक ग‌ओ,पट्टें धरी जमीन।
फिर भी लरका नै पढ़ौ,सालैं हो ग‌इॅं तीन।।

टोड़र लच्छा पैजना,बोंटा बाजूबंद।
डोरा और खगोरिया,जौ गानौ भव बंद।।

रबादार कगना हनें कानन में कनफूल।
गरें तिदानौ नाक नथ,जौ‌ गानौ ग‌व भूल।।

गोप गुंज अरु लल्लरी, मुहरें बेंदा रूल।
फुलिया मुंदरी झूमका,जौ गानौ तौ मूल।।

गानौ बिक कें आ ग‌ओ,लोहे कौ सामान।
फिल्मी गाना याद हैं, भूल गये रामान।।

भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[27/02, 10:17 AM] Dr. Devdatt Diwedi Bramlehara: 🥀  बुंदेली दोहा 🥀
        ( विषय- गाँनों )

गाँनों- गुस्तौ पैरकें,
     हो गइँ जब तइयार।
सरस धना नें तौ दई,
     चन्दा की झकमार।।

कांनन कुन्डल मुरकियाँ,
        गरें गुन्ज औ गोप।
सेरन सोंनें सें बनों,
       गाँनों हो गव लोप।।

कितउँ मजूरी नें मिलै,
     कैसें होय निबाव।
गाँनों- गुरिया बाइ कौ,
   सब गाँनें धर खाव।।

घिसीं पनैयाँ पाँव कीं,
      गोड़े रगड़े खूब।
साव न मानें! ब्याज में,
     गाँनों गव सब डूब।।

दद्दा बाई पौर में,
    परे पिछौरा तान।
गाँनों गुरिया लै उड़ो,
    लरका बेईमान।। 

डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
बड़ामलहरा छतरपुर
[27/02, 10:26 AM] Rajeev Namdeo Rana lidhor: *बुंदेली दोहा बिषय- गानौ (गहना)*

*1*
गानौ   गुरिया धाँद  कै , धना  भौत  मुसकात |
चलत गैल #राना तकैं, लचक खात इठलात ||

*2*
गानौ जब  गानै   धरैं , धना   रुआँसी  होत | 
मजबूरी जानत  बलम , #राना मन में रोत ||

*3*
गानौ   चढ़ै   चढ़ाय  में , तकतइ    रिस्तेदार |
#राना समदी ल्याय है , चुरियाँ   कंगन हार ||

*4*
दद्दा  जू  भी   साव  है , परखइयाँ   दमदार |
#राना गानौ   है   रखत , डब्बल  देत उधार ||

*5*
#राना गानौ  जानियौ, है  तिरियन कौ प्यार  |
सबइँ   बलम के   नाम पै, करती   है शृंगार ||
                  ***
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
[27/02, 10:50 AM] R. K. Prajapati Jatara: नमन मंच
प्रदत्त शब्द-गानों
विधा-दोहा छन्द
*******************************
गानों ई संसार कौ, आपस कौ सद भाव।
जुरमिल कें रानें सबै, छोड़ें  सबइ  दुराव।।

लज्जा गानों नारि कौ, पुरुषन को गम्भीर।
मरजादा सें जो सजै,  सुबरन  लगै  शरीर।।

गानों है  साहित्य  कौ, लय गति और विधान।
इनके बिन फीको लगै, जिमि कौआ को गान।।

विद्या गानों शिष्य को,गुरु को समरस ध्यान।
सन्तन को जप तप सरस, गानों उत्तम जान।।

         एक हास्य

करिया या गोरौ रहै, या हो लाल लँगूट।
गानों  पैरें  सें  जचै,  रेगिस्तानी   ऊँट।।

                      आर. के.प्रजापति "साथी"
                  जतारा,टीकमगढ़ (मध्यप्रदेश)
[27/02, 10:54 AM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली दोहा दिवस , विषय - गानों 

लाज शरम गानौ हतौ , कभउँ  नारि को अंग |
अब मरयादें गइँ बिखर , तकत सबइ भदरंग ||

गानों  तिरियाँ गात   ती , बन्नों   बेंदी   हार |
अब गाती है ब्याय में , फिलमी चढ़ी खुमार ||

नारी कौ गानों लुटै ,    जियै  कात  है  लाज |
जगाँ- जगाँ पर भेडिया , घात लगायैं  आज ||

कवियन कौ गानों रयै , कलम भाव को मेल |
कविता दिखबें  ऊजरी, टपकत  है  रस तेल ||

गीत सदा गानौ  रऔ ,   गायक  राग  सुनात |
नोनौं  सुनकै सब जनै , तन्मय भी  हो जात ||

सुभाष सिंघई
[27/02, 1:59 PM] Promod Mishra Just Baldevgarh: सोमवार बुंदेली दोहा दिवस 
            विषय  ,, गानौ,,
*****************************
लरका की भाँवर परी , गानौ ल्याय उधार ।
ब्यौरो बड़ो "प्रमोद" जब , बिकी जमी घर द्वार ।।
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गानौ सब गानेँ घरों , बिकी भैंसिया बैल ।
हिल्लो बिलुर "प्रमोद" गव, चली उबाँड़ी गैल ।।
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गानौ लीलो साव ने , लव अड़बंगो ब्याज । 
माँगो पढ़ो "प्रमोद" ने , सस्तो बेंच अनाज ।। 
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गानौ चुलिया टारकें ,राते भगी लुगाइ ।
लगवारन ने दुरगती , करी "प्रमोद" हमाइ।।
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नगया धरों लुगान सें , गानौ उतरत चैत ।
करो कखइयाकैन सब , मार "प्रमोद" डकैत ।। 
 *********************************
गानौ तानौ बहू ने , लरका झटकी भूँम ।
अब "प्रमोद" भूंकेँ डटे , बाप मतारी लूँम ।।
***********************************
           ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़,,
           ,, स्वरचित मौलिक,,
[27/02, 2:04 PM] Asha Richhariya Niwari: प्रदत्त शब्द**गानो
🌹
गानो गुरिया पैर कैं,कर सोलउ श्रंगार।
मनमोहन घनश्याम को, ढ़ूंढ़ रहीं बृजनार।।
🌹
चुन चुन कलियां श्याम जू,गजरा खूब बनाय।
फूलन कौ गानौ पहन,राधा रईं इतराय।।
🌹
छला मुॅंदरियां पायलें, गानों नओ गड़ाव।
चॅंद्रहार पैराय कें, मोय लुआ लै जाव।।
🌹
सोने को गानो बने,हरदम आवे काम।
विपत परे पे बेंच कें,करतइ सूदे दाम।।
,🌹
लज्जा गानो नारि को,इये सॅंवारो आप।
लाज गयी सब सून है, जीवन है अभिशाप।।
,🌹
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 🙏🏻🌹
[27/02, 2:43 PM] Ram Sevak Pathak Hari Kinker Lalitpur: दि०२७-०२-२०२३ बुन्देली दोहा।
प्रदत्त शब्द-गानौं
गानौं  ऊखौं मानिये, सुन कैं  सब खुश हो जायॅं।
कत मीठी बोली ऊयै, आदर लै बैठायॅं।।१।।
गानौं पैरें ढेर भर, कउआ सी किकयात।
ऐसी औरत काउ सें, कभउॅं न आदर पात।।२।।
अब तौ गानों व्याव में पैरत दिखें लुगाई।
भर दुपरै कछु छीनतइ,करतइ खूब धुनाई।।३।।
गानौं जो पैलउॅं हतौ, पैरत नइयाॅं कोउ।
पाॅंच सेर की गूजरीं, स्वप्न बनीं  अब सोउ।।४।।
दस तोला की बिचौली, कीके इतै दिखात।
अब तौ पतरी चैन इक,हम खरीद नइं पात।।५।।
मौलिक,स्वरचित
हरिकिंकर
[27/02, 2:52 PM] Prabhudayal Shrivastava, Tikamgarh: बुंदेली दोहे  शब्द  गाँनों (गहने)

पैरें  गाँनों  लाज  कौ , कड़ ग‌इँ  घूंघट  घाल।
पायलिया छमकाउतीं, चलें  मरोरा चाल।।

बिटिया  गाँनों  सें  लदी,  तगड़ी  है  ससुरार।
मनवारौ समदी  मिलो,  खूब‌इ  चल्तेदार।।

आ ग‌इ  गाँनों  पैर कें, न‌ई  नबेली  नार।
ककना चूरा हांत में ,  गरें  अरै लव  हार।।

आ ग‌इँ न‌इँ  न्यौतारनीं,  गाँनों  दमकत  ऐंन।
घूंघट में  सें  झांकबें  ,  बड़े  लगनियां  नैंन।।


गाँनों सब  गाँने  धरो ,  धरती  धर द‌इ  पट्ठ।
अब कौरन खों हो चले,  खूब बजतरव लट्ठ।।

           प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
[27/02, 4:14 PM] Subhash Bal Krishna Sapre Bhopal: गानौ (गहना) पर बुंदेली दोहे
1.

"गरीब गानौ लेत हैं,     गान रखो हे हार 
 सादी के बाद,सोच कें, चुकाने है उधार."

2.

"खेती गिरवी,है पडी,          कैसे मिलत उधार,
हम गानौ को, बेच कें,         कर्जा दे हैं उतार." 

3.

"बहू पेर के आ गई,       ज़ब गानौ को हार,
उजारो सो दिखन लगो,   मानो भई  सकार."

4.

"साहू के घर में लगो,      गानौ को भंडार,
सूद कबउ  नइ,छोडते,   टपकात रेत लार."

5.

"हम जा साले सोच रय, लेहें न कुछ उधार,
गानौ न बेच,हैं कबउ ,    खा कें, रोटी  चार."

सुभाष बाळकृष्ण सप्रे 
भोपाल
27.02.2023
[27/02, 5:51 PM] Jai Hind Singh Palera: #गानों पर दोहे#

                    #१#
गानों पैरें राधिका,कर सोर‌उ सिंगार।
पकरें बैंया श्याम  जू,मधुवन करें बिहार।।

                    #२#
बटवा लो गानों पिया,मानों मोरी बात ।
अब न्यारौ होनें हमें,खदन न दैहों रात।।

                    #३#,
सोंनें चांदी सें बनौ,गानों  रंगतदार।
सुगर सुनार गड़ाइयौ,बिंदिया मोय लिलार।।

                    #४#
सारी होबै रेशमी,गानों गुरियादार।
नगद होंय तौ ल्याइयौ,ज‌इयौ अब‌इ बजार।।

                    #५#
गानों जानों ओ पिया,छानों सब‌इ बजार।।
आनाकानी  जो करौ,तौ ठानौ तकरार।।

#जयहिन्द सिंह  जयहिन्द# 
#पलेरा जिला  टीकमगढ़ #
#मो०--६२६०८८६५९६
[27/02, 6:10 PM] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा
गानों है हर मांस कौ,गुन सुभाव वेवार।
परहित करत धर्म रत,जीवन के आधार।
                        2
गानों गुरिया सब गुथी,चिकनों धरवै गाड़।
काम न आवै काउ के,अंत लगत है आड।
                         3
कंत के आगें कामिनी,सजतीं गानों धार।
सिंगरती सोरउ तरां,पाय पति कौ प्यार।
                          4
गानों लदौ शरीर भर,नौनीं मुइयां पाइ।
बानी करकस कडै जब,कुल्टा जगत कहाइ।

                           5
गानों गुरिया गांठ में,जब कब आवै काम।
चंगौ मन रैवै सदा,कभउँ करा लो दाम।
रामानन्द पाठक नन्द
[27/02, 6:24 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहे
विषय-गानौ
1-बड़ी गनीमत मान रय,
घर जमीन बरकाव।
गानौ गुस्तौ पसेरन,
खेलत जुआ मिटाव।
2-सैया पर गय शराबी,
मानत नैया बात।
गानौ गुरिया बचो नही,
बनबाबो को कात।
3-मौका चौका पे मिलत,
जब कउ रिश्तेदार।
मन मानो गानौ हनो,
हम लो नइ सबयार।
4-लाज सरम नइ रतीभर,
नाओ धरत सब मोय।
बृजभूषण गानौ बिको,
अब कव कैसो होय।
5-लगत जमानो बदल गओ,
गानौ किये पुसात।
बृजभूषण बचबो कठन।
जी भारी घबरात।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[27/02, 6:54 PM] Kalyan Das Sahu Prithvipur: तन खों भूषन-बसन सें , गोरी भले सजात ।
लेकिन!गाँनौं लाज कौ,सोभा अधिक बढा़त ।।

नारी  गाँनौं  प्रेम  कौ , पैरत  उर  पैरात ।
जीवन भर हर रूप में,घर खों स्वर्ग बनात ।।

सबसें  जादाँ  कीमती , गाँनौं  है  मुस्कान ।
धारन-वितरन कर सकत,समझदार इंसान ।।

गाँनौं धीरज धरम कौ , जी नें लव है पैर ।
कटत जिन्दगी चैंन सें , बनी रहत है खैर ।।

गाँनौं गुरिया ग्यान कौ , सदाँ आत है काम ।
कोउ छुडा़ नइँ पात है , गुनियौ आठों याम ।।

गाँनौं विनय विवेक कौ , पैरें रइओ यार ।
कृपा करें भगवान जी , होजै नैया पार ।।

   ---- कल्याण दास साहू "पोषक"
      पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़ (मप्र)

          ( मौलिक एवं स्वरचित )
[27/02, 7:16 PM] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा विषय - गानौ ( गहना)
(१)
गानौ  शील स्वभाव कौ , जो नर लेबै  धार।
उयै मिलत संसार में ,जन मानस कौ प्यार।।
(२)
गानौ  गुरिया  छोड़  कैं , छोड़े  सब  सिंगार ।
मीरा  ने घनश्याम  पै , तन मन  दीनों  बार ।।
(३)
गानौ  गुरिया  पैर  कैं  ,  गोरी   गई  बजार ।
हार भीड़  में गिर  गऔ  , रोबै असुआ डार ।।
(४)
गानौ  गुरिया  बैंच  कैं  , लरका  हतौ पड़ाव ।
हो ग ईं आंखें चार सो , हो गव आज पराव ।।
(५)
गानौ  पैरौ  लाज  कौ , चलौ  धरम  के संग ।
कहता कवि "नादान "है , सदा रहे मन चंग ।।

आशाराम वर्मा " नादान " पृथ्वीपुर
( स्वरचित ) 27/02/2023
[27/02, 7:59 PM] Sr Saral Sir: बुंदेली दोहा  विषय  गानों 

झकझकात बेला चली,कर सोलउ सिंगार।
फेसन  कौ  गानों  जड़ें , पायल रोना दार।।

चली छमक छल्लो गली,मटक नौ लखा हार।
अंग अंग गानों  जड़ें , किलक चली गइ नार।।

चंदा- सी  मुइयाँ  लगें, लगै  हिरन से  नैन।
अजब  गजब  गानों जड़ें, देखें  परें  न चैन।।


        एस आर सरल
          टीकमगढ़
[27/02, 8:25 PM] Ramlal Duvedi Karbi, Chitrakut: बुंदेली दोहे
विषय  गानों (गहना)

 गहना गुरिया लाद कै, पायलिया छनकात।

चली देखावत गैल भर, खुश हुइ मेला जात।


नथ बेसर झुमका डरे, गहनो करधन डार।

मंगल माला हार गर, जरत देख पर नार।

रामलाल द्विवेदी प्राणेश
कर्वी चित्रकूट
[27/02, 8:45 PM] Dr R B Patel Chaterpur: दोहा गानो

सोना चांदी पहिर के, कर पूरो श्रंगार ।
 गानो सबसे कीमती , मानव स व्यवहार ।
             02

गानों गुरिया पहिर के, भई धना तइयार ।
 मेला देखन जा रहीं, हो गाड़ी असवार ।
                 03

गानों तिरिया गात को , कोमल भाव विचार ।
तन मन नोनो लगत जब, गावे मंगलचार । 
               04
बिटिया केरे ब्याव में , गानों लिओ उधार ।
 गइया झिरिया बिक गई ,पटिया लगी पगार ।
               05
तिरिया गानों तीन गुन,सुत वित से घर भरै।
जब गावै मंगलचार,अपनापन सब धरै ।
स्वरचित
 डॉक्टर बी पटेल "अनजान "
छतरपुर मध्य प्रदेश।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

दरुआ बुन्देली दोहा संकलन

102वी बुन्देली दोहा प्रतियोगिता-102
दिनांक-25/02/23 " दरुआ " बुन्देली दोहा
प्राप्त प्रविष्ठियां :-
*1*                         

    दरुआ नरदा पै डरो, कुत्ता रय मौं चाट ।
    भूंकै  मौड़ा सो  गये,    हेर-हेर कैं बाट ।।
***
-स्वामी प्रसाद श्रीवास्तव, छतरपुर
*2*
दरुआ में दुरगुन भरे,दर दर ठोकर खात।
ठौर ठिकानों मिटा लव,मांगत भीख दिखात।।
***
-रामानंद पाठक, नैगुवां
*3*
सौ सज्जन पै एक ही, दरुआ भारी होय।
डरे नहीं वो काल से,जब भी आपा खोय।।
***
        -आर. के.प्रजापति "साथी"जतारा,टीकमगढ़
*4*

दारू पी औंदौ ड़रौ,कुत्ता मूतैं रोज ।
तन पै नइँया चीथरा ,इनखों चानैं डोज ।।
***
शोभाराम दाँगी, नदनवारा
*5*
दरुआ की न बिरादरी,बोतल ऊकी जात।
असली दरुआ जो मिलै,देखे बिना दिखात।।
***
#जयहिन्द सिंह  जयहिन्द,पलेरा जिला  टीकमगढ़ 
*6*
दरुआ दैरय दौंदरा , गारी दैबैं छाँट।
जीमें हिम्मत होय सो, आव पटालो राँट ।।
***
-प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
*7*

शादी बरसी जन्मदिन, मौका तकें हरेक।
दरुआ खों चाने परत, कोउ बहानो एक।।
***
             अमर सिंह राय, नौगांव
*8*
धरम छोड़ अधरम करै,पर तिरिया सँग वास।
जी  के  घर  दरुआ  पजौ,ऊ कौ  सत्यानाश।
***
अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत निवाड़ी
*9*
जरुआ,दरुआ ,कनभरा , चापलूस  कंजूस।
छोड़त नइॅंयाॅं बाप खौं ,चोर कुटिल जासूस ।।


आशाराम वर्मा " नादान " पृथ्वीपुर
*10*
तेरइँ होबै बाप की,चाय लली कौ ब्याव।
दरुआ मुड़या लेत है,हर मौका पै न्याव।।
***
✍️ गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी बुड़ेरा
*11*

नरदा में दरुआ डरो,पीतइ दारू रोज।
गानो गुरिया गउ गड़ी,मिट गव घर को खोज।।
***
-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*12*

गाँव- गाँव दरुआ बढे़, पियें और गर्रात।
नशा नाश जीवन करे, समझ न आवै बात।।
***
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.
*13*
      
देखौ दरुआ आ गऔ ,दारू पीकें आज।
पैरें बस चड्डी छिती, उयै न तनकउ लाज।।
***
रामसेवक पाठक "हरिकिंकर,  ललितपुर
*14*
   दरुआ नाली में गिरो,लेंड़ी मों ग‌इ चाट।
उठत- गिरत पोंचों घरै,कै र‌ओ मुर्गा काट।।
***
भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" हटा
*15*
दरुआ अरुआ सौ लगै , तनकइ  नईं    पुसात  |
गाँइँ बकत झूमत निगत, जितै  चाय गिर जात ||
***
सुभाष सिंघई , जतारा
*16*

दरुआ दारु मांग कर, पीते सीना जोर ।
अगर मांगकर नहि मिली, बन जाते हैं चोर ।
 ***
 डॉक्टर आर बी पटेल "अनजान " छतरपुर।
*17*
दरुआ नाली में डरौ, बकबक करत दिखात । 
डींगें हाँके बो बड़ीं,  फिर-फिर  लोटत जात ।।
***
- श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र.
*18*

दरुआ  दै  दै  दौदरा ,  दाँदर  दै  दर्रात।
दरुआ ओछे कर्म सै,बिना मौत मर जात।।

     एस आर सरल, टीकमगढ़
*19*
दरुआ खों दारू बिना,लगै जगत रसहीन।     
छिन-छिन तलफत हींड़बै, ज्यों पानी बिन मीन।।
    ***
    - संजय श्रीवास्तव, मवई  😊दिल्ली
*20*
बुंदेली दोहा
 झूटी पै झूटी कबै,दिन में सौ सौ दार।
दरुआ की तौ जिन्दगी, हो जाबै बेकार।।
***
-डां देवदत्त द्विवेदी बड़ा मलेहरा
[25/02, 12:00 PM] R. K. Prajapati Jatara: अप्रतियोगी दोहे
प्रदत्त शब्द-दरुआ
*************************

जौंन  घरै  दरुआ  रहै,  वौ  घर   सत्यानाश।
खोज मिटै धन बल घटै,लगतइ जिन्दा लाश।।

दरुआ अपने आप को,समझे बब्बर शेर।
नकुअन में दम गॉंव की,करवे देर सबेर।।

मोड़ी-मोड़ा भूख सें, बिलबिलात दिन रात।
गाने गुरिया बेंच कें,   दरुआ  मौज  उड़ात।।

हंगामा रोजइ करें,  दरुआ बन शैतान।
थोरे दिन कौ ही रहै,दुनिया में महमान।।

जब दरुआ सें बात हो,  रखो लबुदिया पास।
या फिर सौ गज दूर रव,मन्त्र जान लो खास।।

                            आर. के.प्रजापति "साथी"
                       जतारा,टीकमगढ़ (मध्यप्रदेश)
[25/02, 12:07 PM] Dr. Devdatt Diwedi Bramlehara: ।।अप्रतियोगी दोहे।।
पानी पी पी कोस रव,ऊखों तौ घर गाँव।
ई दरुआ नें  दव डुबै,सब जेठन कौ नाँव।।

रोज उपद्रे करत है, दरुआ है तौ धूत।
बातन सें नें मानहै,जौ लातन कौ भूत।।

घर में इज्जत नें बची, गाँव सुनें नें बात।
दरुआ पीकें रोज कौ,फिरत रात छुछयात।।

दरुआ की संगत करें,लगत नसा कौ रोग।
हीरा सें पथरा बनें,देखे कित्ते लोग।।

दरुआ के औगुन सुनों,भैया जे कछु खास।
लबरा,दोंदा होत जौ, किलकिलया, बदमास।।

डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
बड़ामलहरा छतरपुर
[25/02, 12:29 PM] Promod Mishra Just Baldevgarh: शनिवार बुंदेली दोहा दिवस 
         विषय , दरुआ,,
*****************************
दरुआ धरों कड़ोरकें  , दइ "प्रमोद"इक ठोल।
केउदार समझात रय, दुष्ट बुरयँ जिन बोल ।।
*******************************
दरुआ पररव पाँयतन , लरी घरैनी ऐन ।
ठठरी सो जा नायँ खाँ , अबइ फूट गय नैन ।।
*********************************
दरुआ नरदा लौ डरों, अल्ल बल्ल बतयात। 
लिख "प्रमोद" थूतर मिटी , कुत्ता मूतत जात ।।
**********************************
दरुआ दौरें गांव कें ,वोटन बटीं शराब ।
दोरन खोरन उछर रय, बने "प्रमोद" रुआब ।।
**********************************
धुतिया फटी लुगाइ की , बच्चा भूंकें रोंयँ ।
दरुआ भौँक उरेंन हो , लार चुचाकें सोंयँ 
********************************
घरवारी ने खूँत लव , दरुआ चप्पल मार ।
कड़ों अधर्मी बेशरम , पियत बेंचकें दार ।।
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        ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़,,
        ,, स्वरचित मौलिक,,
[25/02, 12:40 PM] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुंदेली दोहा
विषय:-दरुआ
कच्ची पक्की जौ‌ मिलै,दरुआ सब पी जात।
आवर - जावर रोज कौ,पिसी बेंच कें खात।।

पैसा धैला एक लौ, नहीं खलींता रात।
दरुआ जब दारू हनें,सो कुबेर बन जात।।

घरवारी सें ऐंड़ कें,दरुआ बोलत बैन।
अब तौ मरने है हमें,जी में नैंयां चैन।।

कोउ काउ की न‌इॅं सुनत,दरुआ जब पी लेत।
तन मन धन छिन जात सब, फिरत दौंदरा देत।।

मिलै निछक्कौ जौन दिन,कुची ढ़ूड़ कें राय।
न‌इॅंतर तारो टोरकें,दरुआ झट पी आय।।

भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" हटा दमोह
[25/02, 1:03 PM] Rameshver Prasad Gupta Jhanshi: अप्रतियोगी दोहे- दरुआ.

ऊने घर परिवार की, धरी ताख में लाज/
अच्छो खासो वो भओ, जब से दरुआ बाज//1.

उठत भोर से ही खडो,अडो कलारी द्वार/
दरूआ खों दारू चढो, दिनभर रये बुखार//2.

मिटी गिरस्ती घर भओ, पूरो ही बरबाद/
लेकिन दरूआ खौ तनक, खबर न कौनउ याद//3.

नशा नाश करता सदा, जीवन घर परिवार/
पर दरुआ का तो कभी, बदले न बैहार//4.

दरूआ दारू पी बने, खुद में हरदम शेर/
आंय बांय बकता फिरे, जूता पडते ढेर//5.

रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.
बडागांव झांसी उप्र.
[25/02, 1:13 PM] Amar Singh Rai Nowgang: अप्रतियोगी दोहे विषय: दरुआ

जैसइ फैलो बेशरम, इत-उत देश-विदेश।
ऐसइ दरुआ हर तरफ, मिलैं बनाए भेष।

दरुआ दारू चौंख कैं, खूबइ  दांय  मचांयँ।
बिघन डारवैँ काम में,नाहक नाक कटांयँ।।

कछु दारू की आड़ में,दरुआ करत कुटाल।
कनबूजे में जाय घल, तुरत थथोलत गाल।।

जरुआ  से  दरुआ  भलो, गैर  होंश  बर्रात।
कोसत जरुआ रात दिन,उऐ देख नइँ जात।

रँडुआ दरुआ हो बुरौ, पी कैं करत बवाल।
नाथ न आंगे रय पगइ, नईं करैया ख्याल।।

दो दरुआ मिल एक सो, जैसे  पैग  बनात।
ऐसइ हींसा बांट हो, कभउँ न बिगरै बात।।

                        अमर सिंह राय
                           नौगाँव
[25/02, 1:37 PM] Rajeev Namdeo Rana lidhor: *बुंदेली दोहा बिषय-दरुआ* 
*1*
दरुआ से दरुआ मिलैं   , करैं    इशारैं   बात |
लगा अँगूठा औठ पै , #राना  जात    बतात  ||
*2*
खोज कलारी लेत हैं , आन  गाँव   जब जात |
दरुआ की #राना  कहैं ,  इनखौं भौत सुँगात  ||
*3*
दरुआ से ना बोलियौ, अकल  न करियौ पेश |
नाँतर  #राना   चार  ठौ , मिल  जैहैं  उपदेश ||
*4*
दरुआ कारण कात  है  ,#राना  सुनतइ सार |
पियत खुशी में सब जनैं  ,गम में जात डकार ||
*5*
दरुआ की दुनिया अलग , #राना तकतइ रात |
पीकै अपनी  फाँकतइ , घुरबा   चड़कैं   आत ||
*6*
दरुआ की पंचात में , नईं   घुसेड़ौ   हाथ |
चिपकै #राना खाज है , फूटै अपनौ माथ ||
***
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
[25/02, 2:08 PM] Subhash Singhai Jatara: अप्रतियोगी दोहे - विषय दरुआ 

दरुआ की आदत बुरइ , पइसा जइँ से पात |
बेरा  कभउँ  न  देखतइ , दौर कलारी जात ||

दरुआ -दरुआ जब जुरैं , गजब करत बतकाव |
दौनउँ  मिल कै एक सो , अपनो करत  सुभाव ||

दरुआ अपने गुनन  से , खुद  हौतइ   बरबाद |
घर  में   टंटौ  रोप कैं   , बाहर  करत  फसाद ||

दरुआ हौतइ दो तरा   , एक  चिमा  के  रात |
एक तनक सी डार कै , सबखौं  गाँइँ  सुनात ||

दरुआ की   हालत  सुनौ  , पीकैं  घर में  आत |
खटिया पै औधों डरौ , लदर  फदर   सौ जात ||

दरुआ देतइ दौदरा ,   छरकत सब  है  रात  |
मूरखता कौ  काम  है  , इनसे  करबौ बात ||

सुभाष सिंघई
[25/02, 2:39 PM] Jai Hind Singh Palera: #अप्रतियोगी  दोहे#

#बिषय--दरुआ(दारू पीने बाला)#
####################
                    #१#
दरुआ खों दारू मिलै,मिले लगै भगवान ।
दारू बिना सुहांय ना,ऊखों अपनें प्रान।।

                     #२#
 दरुआ खों दारू मिलै,देख होय सिरमौर ।
कैस‌उ उयै भगाइयौ,छोड़ै ना बौ ठौर।।

                    #३#
दारू कौ ठेका मिलै ,बौ दरुआ कौ धाम।
तीन‌उं लोक दिखात हैं,जाम देत आराम।।

                    #४#
दरुआ जांय बरात में,बिन मिलांय मिल जांय।
बेर बेर कसमें करें,सांसे दरुआ आंय।।

                    #५#
दरुआ बात न मानबै,मारौ जूता तान।
तुरत‌इ बातें मानकें,कात तुमइ भगवान।।

                    #६#
दरुआ की बातें सदां,कभ‌उं धरौ ना ध्यान।
उतरै ऊकौ जो नशा,सुनों लगा कें कान।।

#जयहिन्द सिंह जयहिन्द #
#पलेरा जिला  टीकमगढ़ #
#मो०--६२६०८८६५९६#
[25/02, 2:51 PM] Ram Sevak Pathak Hari Kinker Lalitpur: दरुआ ने तौ कर दऔ, अपनौ घर कौ नाश।
भूके मौड़ी मौड़ा फिरत, कानों करें उपास।।१
जाॅंगा पेलै बैंच दइ,अबतौ घर रव बैंच।
सीदी भौत लुगाइ है,रोजउ होतइ चेंच।।२
भग्गइती वा मायकें, कल्ल खचोरत आव।
गारीं दै रव मार रव,तब सें हो रइ न्याव।।३
नन्ना की तौ टोर दई, ऊ दरुआ नें टाॅंग।
मारे ऐसे लगोदरा, सूजौ पूरौ ऑंग।।४
ओरी खौं तौ एक दिन , छत सें दवतौ फेंक। 
ओइ दिना हैं खचुरई,मउवन सें रइ सेंक।।
मौलिक,स्वरचित
"हरिकिंकर"भारतश्री, छंदाचार्य
[25/02, 3:06 PM] Subhash Bal Krishna Sapre Bhopal: बुंदेली दोहे:-विषय दरुआ

1.

"जिस ब्याव में,होत हे, दरुआ की भरमार,
सभी यही फिर,सोचते, केसे निपटें यार."

2.

"दरुआ से नइ होत हे,  कोनउ घर को काम,
इनखो पीने,चाहिये,   मिटात घर को  नाम."

3.

"ज़ब इने नई,मिलत हे, कोनउ  दिना शराब,
गाली बकते रेत हैं,     करत सब दिन खराब."

4.

"दरुआ ज़ब पी लेत हे, भूत इने चढ जात,
अंग्रेजी नई,जानते,      कछू भी केत रात"

5

"दरुआ ज़ब पीले इने,   देइओ फिर इनाम,
लात घून्सा ज़ब पडेँ,    तबइ  छूट हे जाम."

सुभाष बाळकृष्ण सप्रे 
भोपाल
25.02.2023
[25/02, 4:40 PM] Shobha Ram Dandi 2: अप्रतियोगी दोहा 
बिषय--"दरुआ"(दारू पीने वाला)
१=दरुआ कौ मौ चाटवैं ,कुत्ता  कुतिया रोज ।
मान पान सब खो दओ, लै रय "दाँगी" पोज ।।

२=नाली में दरुआ डरे, पी कैं दारू एैंन ।
घरवारी खों पीट वै ,"दाँगी" परै न चैंन ।।

३=घरै लुगाई रोत है , लरका बिटिया रोत ।
दरुआ मोरे भाग में ,"दाँगी" ऐसो होत ।।

४=कूरा कचरा में डरो , रत दारू में घुत्त ।
"दाँगी" सइँयाँ जे मिले ,उठतन होवैं भुत्त ।।

५=दरुआ की कछु बात कौ,नइँयाँ कौनउ ठौर ।
कां जानें काँ पौचवैं , "दाँगी" सो रय पौर ।।

६=जुआ में हारे सो पियें ,हिय में लागी चोट ।
बन गए दरुआ गांव के ,"दाँगी" करें सपोट ।।

७=गानों गुरिया बैचकें ,कछू बचौं नइँ भुंट ।
बिटिया स्यानी हो गई ,"दाँगी" करवैं हुंट ।।
८=कइयक घर वर्बाद हैं ,कर दरुअन कौ संग ।
"दाँगी"सदा बचे रहे ,धरम करम नइँ भंग  ।।

९=दरुआ बैठौ हो जितै ,भारी आफत मोय ।
"दाँगी" बातै ना सुनैं ,बुरव लगै चय तोय ।।

१०=सुरा सुंदरी लेत हैं ,राकछसों का पेय ।
दारू ले दरुआ बनें ,"दाँगी" करैै न गेह  ।।
मौलिक रचना 
शोभारामदाँगी 
क्षमा करना एडमिन जी 
आज जितनै लिखे सब पटल पर ड़ाल दिये ।
शोभारामदाँगी
[25/02, 5:05 PM] Sanjay Shrivastava Mabai Pahuna: *अप्रतियोगी दोहे*

विषय -  *दरुआ*

*१*
दारू की लत पर गई,
      भय दरुआ विख्यात ।
तन,मन,धन सें टूट गय,
     घरी-घरी पछतात ।।

*२*
दरुआ चलबै ऐंड़कै,
   अकड़ अलग दिखलाय।
तनक जोर सें फूँक दो,
     झमा खाय गिर जाय।।

*३*
दारू फूँके तन-बदन,
       धन को करबै नास।
रिश्ते-नाते टोरबै,
     कित्तउ होबै खास।।

*४*
अल्ल-बल्ल बकबै लगो,
           नाहर सौ नर्राय।
पीकेँ,दरुआ पुरा की,
      गलन-गलन गर्राय।

*५*
दरुआ निकरै जी गली,
      झौंका छोड़त जात।
मौं पै माँछीं भिनकतीं,
    कुत्ता भौंकत जात।।

  *संजय श्रीवास्तव* मवई
   २५-२-२३ 😊 दिल्ली
[25/02, 5:18 PM] Sr Saral Sir: बुंदेली  दोहा  विषय   दरुआ 

आँगे पाँछे  की कछू, दरुआ सोचत नाइँ।
देत फिरत घर बायरै, बे  लजौनयाँ  गाइँ।।

दरुआ  देवें  दौदरा,  कर  कर अत्याचार।
बे  दारू  पी  पी  करें, घर  कौ  बंटाढार।।

दरुआ  खौ दारू चढ़त, ठानत  भारी रार।
घर बारे  डाटत  फिरै , बौ  भरवें ललकार।।

दरुअन सै बचकें रऔ,जे हैं बिन औकात।
जियै चाय जे चाय जाँ, चले जात गरयात।

दरुअन की सबनें सुनी,भौत बुरइ गत होत।
ठुकत पिटत इज्जत धुबत,उर घरवाई रोत।।

     एस आर सरल
        टीकमगढ़
[25/02, 5:21 PM] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे विषय-दरुआ🌹
**************************
दरुआ खाँ जब जो बिदत,
               बेंचत  हो  तल्लीन।
बाप  मरें  बेंचन  लगत,
                नामें आइ जमीन।।
*************************
दरुआ सें तौ जानवर,
              साजे  होत  बिलात।
खात जानवर और खों,
           जे अपनन खों खात।।
*************************
कौरौना  सें  दोइ  गज,
               दूरी  में  बच  जात।
सौ गज  दूरी  राख कें,
              दरुआ सें बच पात।।
*************************
एक दिना खाँ भी बनें,
              दरुअन की सरकार।
बन  जैहै  मदपान भी,
         नव मौलिक अधिकार।।
*************************
✍️ गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[25/02, 7:11 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: विषय-दरुआ
1-दरुआ अरुआ से तकत,
लड़खड़ात कड़ जात।
बृजभूषण जो कउ रुकत,
तो दुर्गति भइ जात।
2-अट्ट सट्ट दरुआ बकत,
चाय जिये गरयात।
जब लातें घूँसा घलत,
मौसी सी मर जात।
3-दरुआ द्वारे से कड़त,
बर्बरात कछू कात।
बृजभूषण देखत रहत,
भारी कला बतात।
4-दरुआ दय रत दोंदरा,
कोउ कछु नइ कात।
जैसी धुन बंध जात है,
बाइ बात घुरयात।
5-दरुआ दारु पियत रत,
तन मन धन बेकार।
समझाये मानत नही,
बनी जात तकरार।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा

सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

बू़ंट (हरे चना) बुंदेली दोहा संकलन

[20/02, 9:41 AM] Vidhaya Chohan Faridabad: बुंदेली दोहे
~~~~~~~
विषय- बूँट (हरा चना)
~~~~~~~~~~~~~
१)
लाली छ्यौला फूल पै, चढ़ो  प्रेम कौ रंग।
बाँछें  खिल गईं बूँट की, राई  थिरकै संग।।

२)
कोट  हरीरो  बूँट को, सरसों  के मन भाय।
नाँचे  पियरी  ओढ़ कै, शोभा कही न जाय।।

३)
बित्ता  भर  के  बूँट  से,  करें   मकाई  बात।
हम छू लें आकास  को, तोरी  का औक़ात।।

४)
देख   मटर   की  एकता,  बूँट  होत  है  दंग।
भैया मिलजुल कर रहें, छिलकन में सब संग।।

५)
पुरवा  घुस गई  हार में, मन भर  डोलै  बूँट।
चढ़ो  घाम  जब मूड़ पै, पानी  पी  लौ  घूँट।।

~विद्या चौहान
[20/02, 10:01 AM] Amar Singh Rai Nowgang: बुन्देली दोहे:  बूँट (हरे चना)

हरे  भरे  बेजाँ  फरे, आज  लिआये  बूँट।
बने निघोंना जी बखत, खाए हमने सूँट।।

फरे  बूँट  खेतन  लगे, परे  रखइया  मेड़।
ढोर बछेरू आँय तौ, तुरतइँ देत  खदेड़।।

कजरारे  जब  बूँट  हों,  होरा  लेतइ  भून।
बैठ मसल कैं खात हैं, बाँट धना सँग नून।

लए  बूँट  छीले  तुरत, उनखाँ लए उबाल।
डार नबक निबुआ धना,खाए लगे कमाल।

तीस रुपइया के किलो,खुल्ला मिलें बजार।
बूँट  बड़े  साजे  लगें,   लै  आए  दो  दार।। 

बूँट  उखारे   सौंज  में,   डांडे   रख  ईमान।
बाँट-बूँट फुरसत भए,आओ तबइँ किसान।

हरे  बूँट  जो  खात  है, कम  होवै  अवसाद।
चाय जौन बिद खाय लो, नोनो लगवै स्वाद।

मौलिक/
                    अमर सिंह राय
                         नौगाँव
[20/02, 10:37 AM] Dr. Devdatt Diwedi Bramlehara: 🥀 बुंदेली दोहा 🥀
        विषय - बूँट (हरे चना)

होरा,बालें, बूँट ओ,
      खट्टे- मीठे बेर।
जे केबल रित पै मिलें,
     खालो करौ न देर।।

बेरा हो गइ भूँक की,
       कर दइ धना अबेर।
बूँट चुनत बैठे सरस,
       रहे गैल में हेर।।

बालें टोरीं काउ की,
     और पटाये बूँट।
हराँ- हराँ लपकौ लगो,
    छोरन लागे ऊँट।।

रखवारी लयँ खेत की,
    अब  उनकी को कात।
बूँट चुनत हैँ रोज के,
      हनकें होरा खात।।
          (हास्य व्यंग)
औरन खों गरया रहै,
     धरें हाँत पै हाँत।
बूँट चुनत में टूट गय,
    जिनके नकली दाँत।।

डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
बड़ामलहरा छतरपुर
[20/02, 11:04 AM] Ram Sevak Pathak Hari Kinker Lalitpur: दि०२०-०२-२०२३ प्रदत्त विषय-बूॅंट।
बूॅंट निगोकर पीसिये, बनतइ  नोंनों साग।
धीमी ऑंच चुराइये,जलै भौत नइं आग।।१।।
कोंरे होवें बूॅंट जो, कच्चे सोऊ खात।
पर पचतइ हैं वे तबइ खूबइ उनैं चबात।।२।।
बूॅंट आग में भूॅंज कें, होरा लैव बनाय।
रोज कलेवा में उनैं, महिनन खूब चबाय।।३।।
कोंरे होवें बूॅंट जो, छील सुखा लो घाम।
साग बनालो चायजब, जौ भी अच्छौ काम।।४।
मौलिक, स्वरचित
"हरिकिंकर"भारतश्री, छंदाचार्य
[20/02, 11:22 AM] Subhash Singhai Jatara: आदरणीय दादा देवदत्त द्विवेदी जी के परामर्श अनुसार पुन: संशोधित दोहे 
बुंदेली दोहा दिवस , विषय बूँट 

दिखैं  चना के  झाड़  पै , पुचकै   फूले    बूँट |
यैसइ जौ संसार है , हम   सब   जीकै    खूँट ||

हरौ -हरौ  दानौ   रयै ,   अमरत   जैसौ  घूँट |
कात सुभाषा है इतै ,  सत्य  करम  सब  बूँट ||

डाली  हौवे  शुभ  करम , फल हौवे जब बूँट |
ईसुर की  किरपा समझ, दानें   खाओ  सूँट ||

फरौ बूँट हौ ज्ञान कौ , कभउँ  न हौवे  झूँट‌  |
बिधना से विनती करत ,सत्य रयै हर  खूँट ||

संत हौत है रस सरस , हृदय रखत फल बूँट |
फल पाने  झुकना पड़ै , ठिगना   हौ या ऊँट ||

जबइँ  काटियौ  बूँट   कौ, जब दानें आ जाँय |
वरना भूसा    हात   रै , ग्यानी  यह  समझाँय‌ ||

सुभाष सिंघई
[20/02, 12:06 PM] Rajeev Namdeo Rana lidhor: *बुंदेली दोहा बिषय:- बूंट* 

           *1*
बूँट काट लैं  खेत से ,  #राना फिर सब  खाँय |
कछू   जनै   आगी जला,    होरा  उनै  बनाँय ||
                  *2*
लगै चना  के  झाँड़ में ,  #राना   गुच्छन बूँट |
चुन -चुन कै सब खात है , हर कौने कौ  खूँट ||
                   *3*
चना  बूँट   #राना  भुँजैं  , परतइ  उतै   उलात |
छील-फोर  सब खात है ,   उमदा सबइ बतात ||
                   *4*
बूँट  पटा   कै  खेत  से , #राना जब  भग जात |
बिन पूछें क्यों टौर लय ,   रखबइया  चिल्लात ||
                 *5*
एक दोहा ",मन की मौज " से - 

गोरी  लयँ हैं  हाथ  में ,   हरे  फरेै   सब   बूँट |
#राना  दाना चुन  रयी , हमै   दिखा  रइ  ठूँट  ||🙏😇
***
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
[20/02, 12:54 PM] Jai Hind Singh Palera: #बूंट(हरे चना) पर दोहे#

                    #१#
बूंट निगोकें बांट लो,दैबै साग तडंग।
खाय निगोंना पांजरौ,फरकें ऊके अंग।।

                    #२#
बूंट काट भड़या भगो,कर गव रीतौ खूंट।
दौर लगाई सूंटकें,पौधा कर गव ठूंट।।

                    #३#
बूंट पटाये और के,सबसें बोलो झूंट।
चोरी की आदत परी,छोरन लागो ऊंट।।

                    #४#
बूंट उखारत देखकें,भव किसान मनहीन।
चोर भगो है देखकें,पाव न हमनें चीन।।

                    #५#
भड़याई सें काटबें,बे औरन की मेंड़।
बूंट पटा पकरे गये,कड़ ग‌इ सबरी ऐंड़।।

#जयहिन्द सिंह  जयहिन्द# 
#पलेरा जिला  टीकमगढ़# 
#मो०-६२६०८८६५९६#
[20/02, 12:59 PM] Promod Mishra Just Baldevgarh: सोमवार बुंदेली दोहा दिवस 
        विषय ,, बूँट,, हरे चना ,,
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पटें बूँट लेके भगें , पानी में गय धोंन ।
उपटा लव छूटीं जरें , हाँतें रइ पतरोन ।।
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धर लय बूँट निनोर कें , घेंटीं धरी निगोल।
बने निगोना खाय कें , बातें रहें मठोल ।।
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बूँट रखा रय भोर सें , मेंड़ें आगी बार ।
भइ "प्रमोद" इल्ली विकट , सँगे लगो तुषार ।।
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बूँट खूँट के लँजुट गय , बेजाँ हनो दिमाव ।
झकर तनक तातीं चली ,लिखो "प्रमोद" उपाव।।
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बूँट रखा गोरी डटी , गुथना लैके हाँत।
हरियन के टैना फिरै  , तक "प्रमोद" उतरात।।
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बूँट चुरा होरा करो , फटको फोरो खाव। 
कैंथा की चटनी बटीं , चींख "प्रमोद" बताव।। 
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             ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़,,
             ,, स्वरचित मौलिक,,
[20/02, 2:02 PM] Anjani Kumar Chaturvedi Niwari: बूँट खाय भड़याइ सें,सबसें कै दइ झूँट।
यैसइ  में लपका लगौ, छोरन लागे ऊँट।।

बिटिया खों दूला मिलै,सेंगी बिकै बराइ।
खड़े बूँट जी के बिकें, वौ ना  करै थराइ।।

बूँट  निंगोलौ हाँत सें, रंग  चुआ सौ होय।
बाँट, वगारौ  हींग  सें, खा  ठप्पे  सें सोय।।

बूँटन कौ होरा बना,गुर के संगै खाव।
अगर मँजा लैनें तुमें,कैंना कौ गुर लाव।

अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत निवाड़ी
[20/02, 2:12 PM] Pradeep Khare Patrkar Tikamgarh: बूँट पैर खेतन घुसे, 
सबइ पटा लय बूँट।
भूँज घरै हरौ बनौ, 
रये बैठ सब सूँट।।
2-
बूँट बाँध गोरी चली, धरै गठरिया मूँढ़।
बैंचत बीच बजार में, दैबै गाहक ढूंढ़।।
3-
मेनत कर ठाढ़े करे,
की कौ का हम लेत।
बूँट पटा भड़़या चले, 
सूनौ कर गय खेत।।
4-
हरे भरे खेतन खड़े, 
भारी मनहिं सुहात।
भावै मन होरा हमें,
बूँट देख ललचात।
5-
बूँट बाँट बूढ़े चले,
बारे लै हरषाय।
भूँज भाँज सब बैठकें,
हूँक-हूँक कै खाय।।
*प्रदीप खरे, मंजुल*
टीकमगढ़
[20/02, 2:19 PM] Asha Richhariya Niwari: दोहा दिवस दिनांक 20.2.23प्रदत्त शब्द। बूॅंट
🌹
चना ऐन हन कें फरो,बूॅंटन लद गव झाड़।
अब कें लगतइ आइ है,लक्ष्मी छप्पर फाड़।।
🌹
हरे बूॅंट खेतन भरे,देखत मन ललचाय।
मसकउ मसकउ टोरियो,कोउ न देखन पाय।।
🌹
बूॅंट निगोना जो बनत,सबरी सागें फैल।
बब्बा खों नोनो लगत,उनखों देदो पैल।।
🌹
छीलन बैठीं जो धना,बने निगोना बूॅंट।
लरका बिटिया दौर कें,सबरइ लै गय लूट।।
🌹
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 🙏🏻
[20/02, 3:42 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहे
विषय -बूँट
1-बूँट चुनन गए हार में,
चटनी लयी बनाय।
चुन -चुन खा रय सबइ जन,
कहत मजा गव आय।
2-अपन लला रहे बूँट खों,
ठलुआ मजा उड़ाय।
बृजभूषण अब नइ बचत,
कितनऊ चना रखाय।
3-बूँट हरीरे तकत सब,
पटा -पटा ले जांय।
हरां हरां सब उजर गए,
होरा भूजें खाय।
4-गली घाट को खेत बृज,
बूँट नही बच पाय।
गैलारे सब दिन कड़त,
पटा -पटा लय जाय।
5-डर नैया नुकसान को,
बूँट मुठी भर खाय।
बृज खानू जब चीज है,
काँलों हम दबकांय।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[20/02, 3:55 PM] Subhash Bal Krishna Sapre Bhopal: बुंदेली दोहा:-विषय:-बून्ट 

1.

"जो गांव में नई रहत,         बे का जाने बूंट 
चना जब कट गओ उते,      बचो रेत है खूंट"

2.

"हर साल बोत,है चना,सबरे अपने खेत,
बूंट पटा कें,लात हैं,   भूंज के खात रेत."

3.
"पई पावने आ गये,         खेत से बूंट लात,
सिल पर उनखों पीस कें,   कचोडी बनत जात."

4.

"फूल चना में,ज़ब खिले,किसान खुस हो जात,
देख कें सबइ बूंट खों,    खाबे  खों जुड जात."

5.

"देख होरा बजार में,  याद गांव की आत,
बूंट खाबे नई मिले,   आंसु आंख मेंआत."

सुभाष बाळकृष्ण सप्रे 
भोपाल
20.02.2023
[20/02, 4:22 PM] Prabhudayal Shrivastava, Tikamgarh: बुंदेली दोहे  विषय बूंट (हरे चने)

चुनबे खों ललचात जी, हरे चनन के बूंट।
खबर राखियौ पेट की, जादां लियौ न सूंट।।

चलौ चनन के खेत में, मन के चुनबूं बूंट।
काय उखारत बीच सें, पकरौ  कोंन‌उँ  खूंट।।

घेंटी फेंटी सी कसें , चंचल  चित्त  चुरात।
कैसें खोंटें बूंट जे  , कपत  हमारौ  हात।।

बूंट  हरीरे  छील   कें ,   लये  दरदरे बांट।
बने  निगोंना  सान सें , खा रय  उँगरी  चाट।।

जी भर चुन लो बूंट  जे, खा लो  गदरा  बेर।
अबै   दाब  कें  मेर  है , फिर  पर जाने फेर।।

          प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
[20/02, 5:19 PM] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहा
विषय:-बूॅंट
पुठया जाबैं जब चना,उनसें काबें बूॅंट।
चोरी सें ल्याये पटा, फिर छोरत हैं ऊॅंट।।

होरा लायक बूॅंट भ‌इ,गदरानी हैं बाल।
मिट्ठू बेरी पै लदै, बेर मिठ‌उवा लाल।।

बूॅंट पटा होरा भुॅंजो,धुॅंऑं उड़ो चहुॅंओर।
चटनी कैंथा की बटी,तरसत जीरा मोर।।

बूॅंट चुनत रय खेत में,भये खरोरे हाॅंत।
ओंठ पटे बै रव रकत,बनें नै‌ रोटी खात।

बिरा बनत है बूॅंट कौ,खाबे खों मन होय।
हर -हर दैरे आ र‌ई,खबर गाॅंव की मोय।।

भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा दमोह

शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

शुभकामनाएं- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं- 
Rajee namdeo Rana Lidhori
24 september doughters day
14 september
happy teachers day 5 september




            



राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'


महावीर जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं

श्रीराम जन्मोत्सव