[20/02, 9:41 AM] Vidhaya Chohan Faridabad: बुंदेली दोहे
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विषय- बूँट (हरा चना)
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१)
लाली छ्यौला फूल पै, चढ़ो प्रेम कौ रंग।
बाँछें खिल गईं बूँट की, राई थिरकै संग।।
२)
कोट हरीरो बूँट को, सरसों के मन भाय।
नाँचे पियरी ओढ़ कै, शोभा कही न जाय।।
३)
बित्ता भर के बूँट से, करें मकाई बात।
हम छू लें आकास को, तोरी का औक़ात।।
४)
देख मटर की एकता, बूँट होत है दंग।
भैया मिलजुल कर रहें, छिलकन में सब संग।।
५)
पुरवा घुस गई हार में, मन भर डोलै बूँट।
चढ़ो घाम जब मूड़ पै, पानी पी लौ घूँट।।
~विद्या चौहान
[20/02, 10:01 AM] Amar Singh Rai Nowgang: बुन्देली दोहे: बूँट (हरे चना)
हरे भरे बेजाँ फरे, आज लिआये बूँट।
बने निघोंना जी बखत, खाए हमने सूँट।।
फरे बूँट खेतन लगे, परे रखइया मेड़।
ढोर बछेरू आँय तौ, तुरतइँ देत खदेड़।।
कजरारे जब बूँट हों, होरा लेतइ भून।
बैठ मसल कैं खात हैं, बाँट धना सँग नून।
लए बूँट छीले तुरत, उनखाँ लए उबाल।
डार नबक निबुआ धना,खाए लगे कमाल।
तीस रुपइया के किलो,खुल्ला मिलें बजार।
बूँट बड़े साजे लगें, लै आए दो दार।।
बूँट उखारे सौंज में, डांडे रख ईमान।
बाँट-बूँट फुरसत भए,आओ तबइँ किसान।
हरे बूँट जो खात है, कम होवै अवसाद।
चाय जौन बिद खाय लो, नोनो लगवै स्वाद।
मौलिक/
अमर सिंह राय
नौगाँव
[20/02, 10:37 AM] Dr. Devdatt Diwedi Bramlehara: 🥀 बुंदेली दोहा 🥀
विषय - बूँट (हरे चना)
होरा,बालें, बूँट ओ,
खट्टे- मीठे बेर।
जे केबल रित पै मिलें,
खालो करौ न देर।।
बेरा हो गइ भूँक की,
कर दइ धना अबेर।
बूँट चुनत बैठे सरस,
रहे गैल में हेर।।
बालें टोरीं काउ की,
और पटाये बूँट।
हराँ- हराँ लपकौ लगो,
छोरन लागे ऊँट।।
रखवारी लयँ खेत की,
अब उनकी को कात।
बूँट चुनत हैँ रोज के,
हनकें होरा खात।।
(हास्य व्यंग)
औरन खों गरया रहै,
धरें हाँत पै हाँत।
बूँट चुनत में टूट गय,
जिनके नकली दाँत।।
डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
बड़ामलहरा छतरपुर
[20/02, 11:04 AM] Ram Sevak Pathak Hari Kinker Lalitpur: दि०२०-०२-२०२३ प्रदत्त विषय-बूॅंट।
बूॅंट निगोकर पीसिये, बनतइ नोंनों साग।
धीमी ऑंच चुराइये,जलै भौत नइं आग।।१।।
कोंरे होवें बूॅंट जो, कच्चे सोऊ खात।
पर पचतइ हैं वे तबइ खूबइ उनैं चबात।।२।।
बूॅंट आग में भूॅंज कें, होरा लैव बनाय।
रोज कलेवा में उनैं, महिनन खूब चबाय।।३।।
कोंरे होवें बूॅंट जो, छील सुखा लो घाम।
साग बनालो चायजब, जौ भी अच्छौ काम।।४।
मौलिक, स्वरचित
"हरिकिंकर"भारतश्री, छंदाचार्य
[20/02, 11:22 AM] Subhash Singhai Jatara: आदरणीय दादा देवदत्त द्विवेदी जी के परामर्श अनुसार पुन: संशोधित दोहे
बुंदेली दोहा दिवस , विषय बूँट
दिखैं चना के झाड़ पै , पुचकै फूले बूँट |
यैसइ जौ संसार है , हम सब जीकै खूँट ||
हरौ -हरौ दानौ रयै , अमरत जैसौ घूँट |
कात सुभाषा है इतै , सत्य करम सब बूँट ||
डाली हौवे शुभ करम , फल हौवे जब बूँट |
ईसुर की किरपा समझ, दानें खाओ सूँट ||
फरौ बूँट हौ ज्ञान कौ , कभउँ न हौवे झूँट |
बिधना से विनती करत ,सत्य रयै हर खूँट ||
संत हौत है रस सरस , हृदय रखत फल बूँट |
फल पाने झुकना पड़ै , ठिगना हौ या ऊँट ||
जबइँ काटियौ बूँट कौ, जब दानें आ जाँय |
वरना भूसा हात रै , ग्यानी यह समझाँय ||
सुभाष सिंघई
[20/02, 12:06 PM] Rajeev Namdeo Rana lidhor: *बुंदेली दोहा बिषय:- बूंट*
*1*
बूँट काट लैं खेत से , #राना फिर सब खाँय |
कछू जनै आगी जला, होरा उनै बनाँय ||
*2*
लगै चना के झाँड़ में , #राना गुच्छन बूँट |
चुन -चुन कै सब खात है , हर कौने कौ खूँट ||
*3*
चना बूँट #राना भुँजैं , परतइ उतै उलात |
छील-फोर सब खात है , उमदा सबइ बतात ||
*4*
बूँट पटा कै खेत से , #राना जब भग जात |
बिन पूछें क्यों टौर लय , रखबइया चिल्लात ||
*5*
एक दोहा ",मन की मौज " से -
गोरी लयँ हैं हाथ में , हरे फरेै सब बूँट |
#राना दाना चुन रयी , हमै दिखा रइ ठूँट ||🙏😇
***
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
[20/02, 12:54 PM] Jai Hind Singh Palera: #बूंट(हरे चना) पर दोहे#
#१#
बूंट निगोकें बांट लो,दैबै साग तडंग।
खाय निगोंना पांजरौ,फरकें ऊके अंग।।
#२#
बूंट काट भड़या भगो,कर गव रीतौ खूंट।
दौर लगाई सूंटकें,पौधा कर गव ठूंट।।
#३#
बूंट पटाये और के,सबसें बोलो झूंट।
चोरी की आदत परी,छोरन लागो ऊंट।।
#४#
बूंट उखारत देखकें,भव किसान मनहीन।
चोर भगो है देखकें,पाव न हमनें चीन।।
#५#
भड़याई सें काटबें,बे औरन की मेंड़।
बूंट पटा पकरे गये,कड़ गइ सबरी ऐंड़।।
#जयहिन्द सिंह जयहिन्द#
#पलेरा जिला टीकमगढ़#
#मो०-६२६०८८६५९६#
[20/02, 12:59 PM] Promod Mishra Just Baldevgarh: सोमवार बुंदेली दोहा दिवस
विषय ,, बूँट,, हरे चना ,,
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पटें बूँट लेके भगें , पानी में गय धोंन ।
उपटा लव छूटीं जरें , हाँतें रइ पतरोन ।।
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धर लय बूँट निनोर कें , घेंटीं धरी निगोल।
बने निगोना खाय कें , बातें रहें मठोल ।।
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बूँट रखा रय भोर सें , मेंड़ें आगी बार ।
भइ "प्रमोद" इल्ली विकट , सँगे लगो तुषार ।।
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बूँट खूँट के लँजुट गय , बेजाँ हनो दिमाव ।
झकर तनक तातीं चली ,लिखो "प्रमोद" उपाव।।
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बूँट रखा गोरी डटी , गुथना लैके हाँत।
हरियन के टैना फिरै , तक "प्रमोद" उतरात।।
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बूँट चुरा होरा करो , फटको फोरो खाव।
कैंथा की चटनी बटीं , चींख "प्रमोद" बताव।।
**********************************
,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़,,
,, स्वरचित मौलिक,,
[20/02, 2:02 PM] Anjani Kumar Chaturvedi Niwari: बूँट खाय भड़याइ सें,सबसें कै दइ झूँट।
यैसइ में लपका लगौ, छोरन लागे ऊँट।।
बिटिया खों दूला मिलै,सेंगी बिकै बराइ।
खड़े बूँट जी के बिकें, वौ ना करै थराइ।।
बूँट निंगोलौ हाँत सें, रंग चुआ सौ होय।
बाँट, वगारौ हींग सें, खा ठप्पे सें सोय।।
बूँटन कौ होरा बना,गुर के संगै खाव।
अगर मँजा लैनें तुमें,कैंना कौ गुर लाव।
अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत निवाड़ी
[20/02, 2:12 PM] Pradeep Khare Patrkar Tikamgarh: बूँट पैर खेतन घुसे,
सबइ पटा लय बूँट।
भूँज घरै हरौ बनौ,
रये बैठ सब सूँट।।
2-
बूँट बाँध गोरी चली, धरै गठरिया मूँढ़।
बैंचत बीच बजार में, दैबै गाहक ढूंढ़।।
3-
मेनत कर ठाढ़े करे,
की कौ का हम लेत।
बूँट पटा भड़़या चले,
सूनौ कर गय खेत।।
4-
हरे भरे खेतन खड़े,
भारी मनहिं सुहात।
भावै मन होरा हमें,
बूँट देख ललचात।
5-
बूँट बाँट बूढ़े चले,
बारे लै हरषाय।
भूँज भाँज सब बैठकें,
हूँक-हूँक कै खाय।।
*प्रदीप खरे, मंजुल*
टीकमगढ़
[20/02, 2:19 PM] Asha Richhariya Niwari: दोहा दिवस दिनांक 20.2.23प्रदत्त शब्द। बूॅंट
🌹
चना ऐन हन कें फरो,बूॅंटन लद गव झाड़।
अब कें लगतइ आइ है,लक्ष्मी छप्पर फाड़।।
🌹
हरे बूॅंट खेतन भरे,देखत मन ललचाय।
मसकउ मसकउ टोरियो,कोउ न देखन पाय।।
🌹
बूॅंट निगोना जो बनत,सबरी सागें फैल।
बब्बा खों नोनो लगत,उनखों देदो पैल।।
🌹
छीलन बैठीं जो धना,बने निगोना बूॅंट।
लरका बिटिया दौर कें,सबरइ लै गय लूट।।
🌹
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 🙏🏻
[20/02, 3:42 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहे
विषय -बूँट
1-बूँट चुनन गए हार में,
चटनी लयी बनाय।
चुन -चुन खा रय सबइ जन,
कहत मजा गव आय।
2-अपन लला रहे बूँट खों,
ठलुआ मजा उड़ाय।
बृजभूषण अब नइ बचत,
कितनऊ चना रखाय।
3-बूँट हरीरे तकत सब,
पटा -पटा ले जांय।
हरां हरां सब उजर गए,
होरा भूजें खाय।
4-गली घाट को खेत बृज,
बूँट नही बच पाय।
गैलारे सब दिन कड़त,
पटा -पटा लय जाय।
5-डर नैया नुकसान को,
बूँट मुठी भर खाय।
बृज खानू जब चीज है,
काँलों हम दबकांय।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[20/02, 3:55 PM] Subhash Bal Krishna Sapre Bhopal: बुंदेली दोहा:-विषय:-बून्ट
1.
"जो गांव में नई रहत, बे का जाने बूंट
चना जब कट गओ उते, बचो रेत है खूंट"
2.
"हर साल बोत,है चना,सबरे अपने खेत,
बूंट पटा कें,लात हैं, भूंज के खात रेत."
3.
"पई पावने आ गये, खेत से बूंट लात,
सिल पर उनखों पीस कें, कचोडी बनत जात."
4.
"फूल चना में,ज़ब खिले,किसान खुस हो जात,
देख कें सबइ बूंट खों, खाबे खों जुड जात."
5.
"देख होरा बजार में, याद गांव की आत,
बूंट खाबे नई मिले, आंसु आंख मेंआत."
सुभाष बाळकृष्ण सप्रे
भोपाल
20.02.2023
[20/02, 4:22 PM] Prabhudayal Shrivastava, Tikamgarh: बुंदेली दोहे विषय बूंट (हरे चने)
चुनबे खों ललचात जी, हरे चनन के बूंट।
खबर राखियौ पेट की, जादां लियौ न सूंट।।
चलौ चनन के खेत में, मन के चुनबूं बूंट।
काय उखारत बीच सें, पकरौ कोंनउँ खूंट।।
घेंटी फेंटी सी कसें , चंचल चित्त चुरात।
कैसें खोंटें बूंट जे , कपत हमारौ हात।।
बूंट हरीरे छील कें , लये दरदरे बांट।
बने निगोंना सान सें , खा रय उँगरी चाट।।
जी भर चुन लो बूंट जे, खा लो गदरा बेर।
अबै दाब कें मेर है , फिर पर जाने फेर।।
प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
[20/02, 5:19 PM] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहा
विषय:-बूॅंट
पुठया जाबैं जब चना,उनसें काबें बूॅंट।
चोरी सें ल्याये पटा, फिर छोरत हैं ऊॅंट।।
होरा लायक बूॅंट भइ,गदरानी हैं बाल।
मिट्ठू बेरी पै लदै, बेर मिठउवा लाल।।
बूॅंट पटा होरा भुॅंजो,धुॅंऑं उड़ो चहुॅंओर।
चटनी कैंथा की बटी,तरसत जीरा मोर।।
बूॅंट चुनत रय खेत में,भये खरोरे हाॅंत।
ओंठ पटे बै रव रकत,बनें नै रोटी खात।
बिरा बनत है बूॅंट कौ,खाबे खों मन होय।
हर -हर दैरे आ रई,खबर गाॅंव की मोय।।
भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा दमोह
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