Rajeev Namdeo Rana lidhorI

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

ढोंग (बुंदेली दोहा संकलन)

99 *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-99*
प्रदत्त शब्द-ढोंग(दिखावा)#शनिवार#दिनांक ०४.०२.२०२३
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़*
आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह.

*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
माते- मुखिया ढोंग में, हो गय इत्ते तेज।
गुर खाबें गुलगुलन सें,करें सदाँ पारेज।।
***
डां देव दत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा
*2*

कई  चोर  माथो  रँगें, कोरे  बने महंत। 
करैं भजन एकांत में, ढोंग करैं नइँ  संत।।
***
अमर सिंह राय, नौगांव
*3*

ढोंग रचे  जीनें  इतै, खूब  मचाई  कीच।
अपजस पाकें ही मरे,कालनेमि मारीच।।
***
            - आर.के.प्रजापति "साथी" ,जतारा,टीकमगढ़
*4*
ढोंग बनाकें आदमी,करत गुरीरी बात।
लोभ नरक की गैल है,जानकार फस जात।।
***
भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" हटा दमोह
*5*
कपटी करतइ  ढ़ोंग है ,  करतइ  ढ़ोर  उजार |
लम्पा   यैड़त  है   सदा , यही लिखी करतार ||
***
सुभाष सिंघई , जतारा
*6*
ढोंगी-ढोंगी जुर मिले,  करें ढोंग दिन-रात ।   
देखत में सूदे लगें, हैं नामी कुख्यात ।।
    ***
     -संजय श्रीवास्तव* मवई (दिल्ली)
*7*
करबैं  कछू उपास कौ ,बाबा भारी ढोंग।
ओंदा के सकला मिलें ,सेरन जाबैं पोंग।।
***
आशाराम वर्मा " नादान " पृथ्वीपुर
*8*
जन तन धन की बाड़ कौ,जिनखों होय गरूर।
करबें ढोंग ढकोसला,र‌इयौ उनसें दूर।।
***
-जयहिन्द सिंह  जयहिन्द,पलेरा जिला  टीकमगढ़
*9*
राम नाव खौं लूट लो, लूट सकौं तो लूट।
भजनहि जीवन सार है, ढोंग करौ सौ टूट।।
***
-शोभाराम दांगी, नदनवारा
*10*

ढोंगी साधु भेष धरा,सिय को हरने चला।
भिक्षा लेने द्वार खड़ा,राम के हाथ मरा।।
***
डां प्रीति सिंह परमार, टीकमगढ़
*11*
ढोंगी कैरय काउ सें , खुदइ ढोंग रच नीच।
झरो फुको द्वारो डरो , करें ससुरवा कीच।।
***
-प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़
*12*

कालनेमि साधक बनो, बैठो सरिता तीर।
देख ढोंग हनुमंत ने,मुठिया हनी शरीर।।
***
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*13*

खूब प्रतिष्ठा पा रये,कर निष्ठा ब्यौपार।
ढोंग मचा कें लूट रय, धर्मी ठेकेदार।।
***
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.
*14*
धो-धा कें तन ऊजरौ,करौ कितेकउ ढोंग।
ऊपर वारौ जानतइ, सबके मन की बोंग।।
***
✍️ गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी बुड़ेरा
*15*
एक हात सें दान दव, दूजा भनक न पाय।
काज गुप्त परमार्थ कैं, हल्ला ढोंग मचाय।।
***
-विद्या चौहान, फरीदाबाद
*16*
ढोंग काय खों है करत, साँसी कै दै आज।
वन खों जाबें राम जू, देव  भरत  खों राज।।*19****
अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत निवाड़ी
*17*
ढोंग करत नेता फिरत, जब चुनाय हों  पास। 
 पाँव परत घर-घर घुसें,  सरपंची की आस।।
***
- श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र.
*18*

बिकट ढोंग बाबा करें,रच रचकै छल छंद।
जिन जिन की पोलै खुली,बे जेलन में बंद।।
***
एस.आर.सरल, टीकमगढ़
*19*
"ढोंग नेता,करत रय,   कोऊ न समझ पात।
जीत बे खों,खात रय, नइ  पूछी फिर जात।।
***
-सुभाष बाळकृष्ण सप्रे, भोपाल
*20*
नेता, पखंडी अरु धना, लरका, चेला, साब।
ढौंग करैं नित जानकें, लगै टोर दें चाब।।
***
-षप्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़
#############

[04/02, 1:15 PM] Rameshver Prasad Gupta Jhanshi: अप्रतियोगी दोहे- ढोंग.

कोउ कये विग्यान है, कोऊ कै रव ग्यान/
ढोंग देख कें साधु के, दुनिया भइ हैरान//

भेष धरें जो साधु को,मौं पे सज्जन भाव/
ढोंग करे जो हर तरां, धन हर लेत तुमाव/

नामी ग्रामी बनन खौं,सेवक रये दिखांय/
जन सेवी को ढोंग कर,फोटू बेइ खिचांय//

मडिया पे बैठा भगत, देवन नाव उछार/
ढोंगी भूत भभूत से, ठीक करे बीमार//

बिन्तवार की सें करें, को दे इन खों दंड/
फैला रय जो देश में,ढोंग और पाखंड//

करतइ ढोंग ढकोसला, बांटत अपइ भभूत/
नामी वे बनते फिरें, ज्यों ईसुर के दूत//

रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.
बडागांव झांसी उप्र.
[04/02, 1:15 PM] R. K. Prajapati Jatara: अप्रतियोगी दोहे
प्रदत्त शब्द-ढोंग(दिखावा)

करम हीन कमजोर जो,छलिया चालू   चोर।
ढोंग  रचें  स्वारथ  परे,  लें  सूदन  खौं  टोर।।

गटा फार कें देखियो, भेजा  करो दुरस्त।
उनकी मस्ती ढोंग में, तुम हो जैहौ लस्त।।

ढोंग भूत है स्वार्थ कौ, जी खों भी लग जाय।
वो मरकें ही मानतइ,  कुल में  दाग  लगाय।।

ढोंग बुरव फल देत है, कैतइ चतुर सुजान।
तनक स्वार्थ  के  कारने, खो दे तइ ईमान।।

             आर.के.प्रजापति "साथी"
         जतारा,टीकमगढ़ (मध्यप्रदेश)
[04/02, 1:30 PM] Sanjay Shrivastava Mabai Pahuna: *अप्रतियोगी दोहे*
      विषय - *ढोंग*

*१*
ढोंग करैं का फायदा,
  रहो सरल, गम्भीर।
जैसे हो वैसे रहौ,
    जैसे संत-फकीर।।
*२*
ढोंग अमीरी कौ करें,
    कौंड़ी नइयाँ पास।
ढोंगी, लबरा, काँइयाँ,
     करौ न इनसें आस।

*३*
ढोंग करौ ना छल-कपट,
           ना चोरी ना लूट।
उर अपनन के बीच में,
      कभउँ न डारो फूट।

*४*
ढोंग भरीं बातें करें,
     ढोंग भरौ ब्यौहार।
कौआ, बगुला से लगें,
      रहो सजग हुसियार।।

*५*
जो भीतर वो बायरें,
      रखौ एक ब्यौहार।
ढोंग-धतूरे के बिना,
   है जीवे में सार।।

   *संजय श्रीवास्तव* मवई 
         ४-२-२३, (दिल्ली)
[04/02, 1:49 PM] Subhash Singhai Jatara: अप्रतियोगी दोहे , विषय ढ़ोंग 

ढ़ोंग जितै हम देखतइ , जड़ में    हौतइ स्वार्थ |
करिया मन बन  आँदरौ , भूलत रत   परमार्थ ||

चार  जनन के बीच में , ढ़ोंग   नईं   चल   पात |
असुआ गिरबै आँख से, औठ हँसी खिल जात ||

करतइ  रातइ  ढ़ोंग  जो , घटत   रात  सम्मान |
बनै बिलौटा  ढूँकतइ  , देत  न कौनउँ   ध्यान ||

छलछंदौ  भी  ढ़ोंग   है , रहियौ   उतै   सचेत |
चंदन   चूरा  नाम पै   , पकरा    दै   बै    रेत ||

ढ़ोंग न  जिनकै  पास है , बै   हौतइ   गम्भीर |
सूदै   सच्चै    आदमी ,   मन  से   रातइ  हीर ||

सुभाष सिंघई
[04/02, 2:02 PM] Asha Richhariya Niwari: प्रदत्त शब्द,***ढोंग
🌹
ढोंग करत नेता सबइ,जन सेवा कौ नाम।
जो गय जीत चुनाव में,अब कर रय आराम।।
🌹
कैऊ बाबा ढोंग कर,बने रहत हैं संत।
पोल खुली पकरे गये,जोई इनको अंत।।
🌹
कर लो कितनउ ढोंग तुम,चल नइ पेहै काम।
 जानत हैं जनता असल,कर दैहै बदनाम।।
🌹
भैया जीवन ढोंग कौ,कमइ दिना चल पात।
जौन दिना खुलवे कलइ, फिरतइ नजर चुरात।।
🌹
ढोंगी रोवे को सुने, सबइ देख मुस्कांय।
अब कोनऊ नाटक करें,आपस में बतयांय।।
,🌹
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 🌹🙏🌹
[04/02, 2:10 PM] Promod Mishra Just Baldevgarh: शनिवार बुंदेली दोहा दिवस
विषय ,,ढोंग ,,
*****************************
हींग हगा लिखकें पढ़ें ,गुर गोबर को ज्ञान
ढोंग सोंग रचकें फिरै , कइ प्रमोद विद्वान 
*****************************
करों ताड़ना लाल की ,काल करत तो ढोंग
बिलुर जैय पिरमोद तौ ,कोन समारेँ बोंग
*****************************
कालनेमि के ढोंग की , जानी बजरँग बोंग
थूतर कुचरी साँप सी , कपटी रैगव मोंग
******************************
ढोंग रचें काँ लों बचें , जचें नचेँ सब सोंग
पोल खुलें पुलगू कड़े , कभउ बाँस में पोंग 
*******************************
ढोंग धतूरें में विदे , केउ निपौरा ऐन 
गड़ा गूंथ रय गरें में , जरें बरें बैचैन
*******************************
गोड़े में बांधें फिरत , करिया डोरा खूब
चल रव ढोंग प्रमोद जो , नइ पीढ़ी रइ डूब 
******************************
       ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़,,
       ,, स्वरचित मौलिक,,
[04/02, 2:43 PM] Subhash Bal Krishna Sapre Bhopal: ढोंग पर बुंदेली दोहे 
1.

"ढोंग सभी नेता,करें ,   कोऊ नहीं समझ पात,
जीत के लिये,खात रय, नइ  पूछी फिर जात."

2,

"रस्ता साफ करबे जुटे, नेता देखो चार,
इनके ऐसे,ढोंग से,      रेने हैं हुसियार."   

3.

"दद्दा ज़ब जियत,ते कबऊ, नइ पूछत रय हाल,
ढोंग के असूआ ढरे ,         दिखत रये  बेहाल."

4.

"माला गुरिया पेंर के,   माथे चंदन लगाय,
ढोंग से पंड़त बन गये, लंबी चुटिया रखाय."

5.

"हम गरीब हैं,ब्याह में,  पइसा लेत उधार,
किसी तरह के ढोंग से, बचते ही है यार."

सुभाष बाळकृष्ण सप्रे 
भोपाल
04.02.2023

.
[04/02, 3:02 PM] Param Lal Tiwari Khajuraho: अप्रतियोगी दोहे
1-ढोंग तुरत खुल जात है,जहां धरम पे होय।
सीधे जन तो भजन रत,सुमिरन राखें गोय।।
2-ढोंग और पाखंड सब,करते कपटी लोग।
जिनको कुछ भी लाज नहि,वितरत सब कंह शोग।।
3-जिनको धन का लोभ है, वही दिखाते ढोंग,
सांचे परधन से बचें,खाते अपर न लोंग।।
4-ढोंग कभी नहि कीजिये,जब लग घट में प्रान।
ढोंगी इस संसार में, खो देते ईमान।।
5-ढोंग दिखावा का चलन,कलियुग में बढ़ जाय।
और जुगन में ढोंग का,नहि अस्तित्व समाय।।
परम लाल तिवारी
खजुराहो
[04/02, 3:59 PM] Ram Sevak Pathak Hari Kinker Lalitpur: ढौंग मान कें भूल कौ,  हटा दऔ मो लेख।
मोरौ दोहा  गव कितै, मैं तौ रै गव देख।।१
ढोंग न मैं करतइ कभउॅं, भले मान लै कोउ।
जा कउ मैं जा उम्र में, रोजउॅं लिखता सोउ।।२
ढौंग करै में का धरौ, धिक्कारत सब कोउ।
मोसें कत पगला भऔ,  कभउॅं कभउॅं दै रोउ।।३
[04/02, 4:24 PM] Pradeep Khare Patrkar Tikamgarh: *बिषय.. ढौंग*
04-02-2023
*प्रदीप खरे,मंजुल*
$$$$$$$$$$$$$
1-
 ढौंग सबहिं ढौंगी रचैं,
 करें रोज पाखंड।
औगुन सब जा तन भरै,
 इतइ भोग रय दंड।।
2-
लरका चतुर सुजान ते,
ढौंग करत रय रोज।
पढ़न गयै नहिं जै सुनौ,
घरै मिटा रयै खोज।।
3-
अब पछताये होत का,
कर बचपन में भूल।
ढौंग दरद कौ नित रचो,
गये नहीं इसकूल।
4-
ढौंग धतूरे जे करें,
भरे धरे हैं नींच।
पूजा पाखंडी करै,
आँखें बैठे मींच।
5-
ढौंगी बाबा फिर रयै,
देखौ सबके दोर।
ढौंग रचैं लूटत फिरैं,
मन में जाके चोर।
6
 ढौंग सेवा को करैं,
 चंदा करैं बसूल।
औरन कौ धन लूट कैं
, रय लाखन में झूल।।
7
: चोला पैरें साधु कौ, फिरें रात में चोर।
सभी ढौंग पूजा रचैं, नोट दबा कैं छोर।।
[04/02, 4:58 PM] Sr Saral Sir: बुंदेली अप्रतियोगी दोहा 
 विषय  ढोंग 

ढोंगी रचके ढोंग खौ, धर्म धर्म चिल्लायँ।
फैलाकै पाखंड खौ,अपनी धाँक जमायँ।।

ढोंग रचै  बाबा बनें, करी धरम की बात।
चोंच गफे में बीदगइ,उल्टी होत दिखात।।

नटा गटा  बैठार  कै, करे  ढोंग दिन रात।
पैल  कनैया  जू  बनें, अब  गिन्नेटी खात।।

बाबा कर रय ढोंग खौ, नेता हो रय सौज।
मिलजुल कै घपला करें,दोइ उड़ाबै मौज।।

ढोंगी रच रच  ढोंग खौ, करें बेलिया छंद।
जनता खौ  उल्लू बनयँ, खुद  लूटें आनंद।।

      एस आर सरल
          टीकमगढ़
[04/02, 4:58 PM] Sanjay Shrivastava Mabai Pahuna: *१*
ढोंग करैं नेता सभी,
      समझ कोउ नइँ पात।
खात फिरत सबके घरै,
    पूँछत नइयाँ जात।।

*२*
साफ सफाई खौं जुटे,
        नेता देखो चार।
इनके ऐसे ढोंग सें,
     रैनें है हुसियार।।

*३*
दद्दा जौ लों जियत रय,
       पूँछे नइयाँ हाल।
अब कर रय हैं ढोंग वे,
      अँसुअन गीले गाल।।

*४*
माला पैरें गरे में,
   चंदन तिलक लगायँ।
ढोंगी साधु बनो फिरे,
   चुटिया बड़ी रखायँ।।

*५*
दीन आदमी ब्याव में,
     पइसा लेत उधार।
पर विनती है ढोंग से,
   बचना मेरे यार।।


आदरणीय सप्रे जी आपके ही दोहों और आपके ही भाव को दुरुस्त करने का टूटा फूटा प्रयास किया ।  🙏🏻🙏🏻
[04/02, 4:59 PM] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे,विषय-ढोंग
***********************
जिनें रिझाबे हम करत,
              बन्न-बन्न  के  ढोंग।
बे  हरि  भूके  प्रेम  के,
           का प्रसाद का लोंग।।
***********************
बैसें तौ सबखाँ खलत,
            भैयाहन   के   ढोंग।
मगर  रावला-राइ  के,
             सबै सुहावत सोंग।।
***********************
मैया   मोंगाबे   लगी,
             मोंग  लाड़ले  मोंग।
हँसे कनैया  जब करे,
             मैया अनुपम ढोंग।।
***********************
बन गय धन्नासेठ जो,
            हक दीनन कौ पोंग।
सेवक बनकें दीन के,
             बगरा  रय बे  ढोंग।।
***********************
✍️ गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[04/02, 5:23 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: विषय ढोंग
1-सूपर्नखा जब ढोंग रच,
धरौ सुन्दरी रूप।
जौ सब माया जाल है,
जान रहे सुरभूप।
2-कालनेमी ने ढोंग कर,
रच दव माया जाल।
ढोंगी बाबा बन गओ,
रोकत अंजनी लाल।
3-ढोंग रचो कै सही में,
कैकई तुम नाराज।
कोप भवन में बैठ गई,
कौन बात पे आज।
4-चली पूतना ढोंग रच,
स्तन बिष लिपटाय।
छल बल से नंदलाल खों,
मारै जहर पिलाय।
5- ढोंग धतूरा मान रय,
धरम करम उपहास।
निंदा कर हरि भगत की,
जीवन कर रय नाश।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[04/02, 6:54 PM] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुंदेली अप्रतियोगी दोहा
विषय:-ढोंग
उन्ना पैरें गेरूवा,माथें दयें तिरपुंड।
ढोंग बनायें संत कौ,फिरै झुंड के झुंड।।

ढोंग भजन में न‌इॅं चलत, तुलसी कहत कवीर।
धरमी करमी संत जन,सागर से गमभीर।।

आजकाल बाबा फिरत, ढोंगी भेष बनांय।
दिन में मॅंगनारे बनें,,रातन रास रचांय।।

कालनेम मारीच नै,ढोंग करै मनचाय।
कछु कुचरे हनुमान नै,कछू राम पठवाय 

भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" हटा दमोह
[04/02, 7:02 PM] Jai Hind Singh Palera: #अप्रतियोगी  दोहे#बिषय-ढोंग#

                    #१#
नाटक नौटंकी रहै,मसकरया कौ काम।
ढोंग रचाबै मंडली,हो जोकर कौ नाम।

                    #२#
ढोंग रचाबै ढोंगिया,सफल बना सब काज।
खुस ऐसें कर देत बे,सबको साद मिजाज।

                    #३#
ढोंग रचायें नारियां,खेलें बाबा ब्याव।
बिलना मारें टोर दें,बे ज्वानन कौ ह्याव।।

                    #४#
जादूगर जादू करै,होंन न देबै बोंग।
दांत तरें उगरीं दबा,देखत सबरे ढोंग।।

                    #५#
सिसकी हिचकी लै लगै,रो रो जाबें मोंग।
असुआ डारें नैन सें,तौ सइ मानों ढोंग।।

#जयहिन्द  सिंह  जयहिन्द #
#पलेरा जिला  टीकमगढ़# 
#मो०--६२६०८८६५९६#
[04/02, 7:15 PM] Rajeev Namdeo Rana lidhor: *बिषय:- ढोंग*
*1*
जौ हौतइ बगुला भगत , करतइ  #राना   ढोंग |
बाहर से  भोरौ   बनत ,  भीतर  राखत   खोंग ||
*2*
यदि  गुड़ैल  है आदमी , "करतइ रातइ   ढोंग |
टूटौ  डठुआ  है  तिली , पर बौ  कातइ  लोंग ||
*3*
बकर-बकर   लबरा  करै , तरा- तरा   कै  ढ़ोंग |
#राना सब ऊखौं  तकत , खिसक जात हैं मोंग ||
*4*
गानौ  लेबै  खौं  धना , रौ कै     करतइ   ढोंग |
जैसइ आतइ हाथ में , जातइ   #राना    मोंग ||
*5*
#राना अब साँसी कहत , जगाँ- जगाँ हैं ढ़ोंग | 
जित्तै    बड्डे    ढोंग    हैं , उत्ती    बड्डी   खोंग ||
***
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
[04/02, 7:46 PM] Vidhaya Chohan Faridabad: बुंदेली दोहे
~~~~~~
विषय- ढोंग (दिखावा)
~~~~~~~~~~~~~
१)
घर में  प्रभु कौ नाम लें, बाहर  बे गरियात।
साँझ सकारे रूप दो, ढोंग करत दिन रात।।

२)
भीतर से करिया धरे, उन्ना फक्क सफ़ेद।
ढोंग  रचें  नेता  जनें, खुलै  न  उनके  भेद।।

३)
सूरत  सबकी  देख  कें, सीरत  बदले रंग।
ढोंग  देख इंसान के, गिरगिट भौचक दंग।।

४)
कुटिल शकुनि ने ढोंग रच, खूब करो पाखंड।
इनकी  संगत  में  मिलो,  दुर्योधन  खाँ  दंड।।

५)
इज्जत पद सत्कार हैं, सब पइसन के सोंग।
जीं  के  ख़ाली  पेट हैं, उनै  लगत  सब ढोंग।।

~विद्या चौहान
[04/02, 9:29 PM] Shobha Ram Dandi 2: अप्रतियोगी दोहा 
शोभारामदाँगी नंदनवारा 
बिषय--"ढोंग "(दिखावा)
बुंदेली दोहा 
१= फेरत माला रात दिन,परै न कोनउ पंत ।
ढौंगी बाबा ढोंग के ,"दाँगी" देखत मंत  ।।

२=नारद जू ढौंगी बनैं ,बँदरा घाँइ दिखात  ।
"दाँगी" माला नइँ डरी ,रै गय मुड़ी कुकात  ।।

३=ढोंग करे सैं होत का ,कछू दिनन लौं रात ।
ई सैं "दाँगी" कात हैं ,नौनैं करम पुसात ।।

४=ढोंग -धतूरा नइँ चलै ,बीदत इक दिन गट्ट  ।
"दाँगी" खुलवैं पोल सो ,भूल जात सब झट्ट  ।।

५=साजे करम प्रधान हैं ,"दाँगी" मानों बात ।
नकली बाबा ढोंग के ,जल्दी जेल दिखात  ।।

६=जितनैं भारत में हते ,ढोंगी संत महंत  ।
"दाँगी" सब पकरै गये ,ढोंग करत्ते संत  ।।
मौलिक रचना 
शोभारामदाँगी

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