म.प्र.लेखक संघ टीकमगढ़ की बसंत फर 268वीं कविगोष्ठी दिनांक-21-2-2021
बंसत पर केन्द्रित लेखक संघ की 268वीं कवि गोष्ठी
(म.प्र.लेखक संघ एवं जय बुन्देली साहित्य समूह का संयुक्त आयोजन)
टीकमगढ़// नगर सर्वाधिक सक्रिय साहित्यिक संस्था म.प्र. लेखक संघ जिला इकाई टीकमगढ़ एवं जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के बेनर तले बंसत पर केन्द्रित आन लाइन आडियो कवि गोष्ठी आयोजित की गयी
जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री रामगोपाल जी रैकवार (टीकमगढ़) ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में श्री किशन जी तिवारी’ (भोपाल) रहे जबकि विशिष्ट अतिथि रंगकर्मी साहित्यकार श्री संजय जी श्रीवास्तव (दिल्ली) रहे।
कवि गोष्ठी का संचालन अध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने किया तथा सभी का आभार माना।
माँ सरस्वती की वंदना से गोष्ठी शुभारंभ
माँ सरस्वती की वंदना से गोष्ठी शुभारंभ
श्री वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़ ने इस प्रकार से किया-
फूल चढ़ाकर, दीप जलाकर,
ध्यान लगाकर मने में बसाकर।
करते बंदना हम तेरी माँ, हे सरस्वती माँ,
करते बंदना हम तेरी माँ, हे सरस्वती माँ,
जय वीणा वादिनी माँ।।
दिल्ली से श्री संजय श्रीवास्तव ने रचना सुनायी-
आये रितु बसंत सुहावन, सरस मधुर मनभावन,
टेसू दमकत डाली डाली, कोयल कूक रही मतवाली।
टेसू दमकत डाली डाली, कोयल कूक रही मतवाली।
भइया मन कौ कूरा झारौ,हुइयै भोत उवारौ।
घरे फुके मन के आसन पै, प्रभु मूरत बैठारौ।।
घरे फुके मन के आसन पै, प्रभु मूरत बैठारौ।।
म.प्र.लेखक संघ के जिलाध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी ने प्रैम पर दोहे सुनाये--
प्रेम करो ऐसा करो, मीरा सा हो ध्याान,
आयेंगे दौड़े चेल, मुरलीधर भगवान।
प्रेम हृदय प्रतिबिंब है, मन के भाव जगाय,
प्रेम हृदय प्रतिबिंब है, मन के भाव जगाय,
इक दूजे के साथ में, हर्षित हृदय अपार।।
आगव बसंत देखे छा गव बसंत, दडेरा डारौ बगियन में
बाग बगीचा महकन लागों, टेसू कचनार फूलन लागो।।
बाग बगीचा महकन लागों, टेसू कचनार फूलन लागो।।
छतरपुर के श्री लखनलाल सोनी ने सुनाया-
चली ऐसो बयार,चली ऐसो बयार मधुवन में बोले कोयलिया,
सब कौ मन जो रंगो संती घर होवे या आंगन।
पीत पत्र है लिखा,पतझड़ का संदेश।
सखी बंसत आ कर नया, रचना तुम परिवेश।।
सखी बंसत आ कर नया, रचना तुम परिवेश।।
चले आये बसंत आमन पे करत सवारी रे।
कितै खोय हो कंत, अगुवानी करों तैयारी रे।।
कितै खोय हो कंत, अगुवानी करों तैयारी रे।।
भौरन ने दै दई बधाई, बसंत रितु नात आई।
पीरी सरसों दुलैया सी सजी है,वृक्ष सबई पत्तन से लदे है।
पीरी सरसों दुलैया सी सजी है,वृक्ष सबई पत्तन से लदे है।
आया है मधुमास सुहाना, लेकर खुश्बू लेकर आया।।
खुश्बू लेते लेत हम सुवास हो गये।
खुश्बू लेते लेत हम सुवास हो गये।
अरे अली तू कहां चली खुशियाँ भर लाया गली गली।
रतनारे नयनों में, लाला लाल डोरे है।
पलके हैं अलसाई, साजन भी भोरे हैं।।
पलके हैं अलसाई, साजन भी भोरे हैं।।
बसंत रितु आयी है सुखदायी,सभी के मन कौ है भायी।
टीकमगढ़ से श्री भारत विजय बगेरिया ने सुनाया-
ले लव रेै मोरो जिया ऊँची अटरिया वारी ने।
याद बहुत आता है अपना प्यारा प्यारा सा गाँव,
पगडंडी टेड़ी मेड़ी सी पीपल बरगद की छांव।।
पगडंडी टेड़ी मेड़ी सी पीपल बरगद की छांव।।
अब तो घर बंसती आयी, न सुध प्रीतम की पायी।।
ज्ञान दो वरदान दो माँ सत्य का संधान दो माँ।ं
ज्ञान दो वरदान दो माँ सत्य का संधान दो माँ।ंं
दिखते तो अपने से है निभते तो भी अपने से है
सुख दुख सांझा करते है। सपने से जो दिखते है।।
सुख दुख सांझा करते है। सपने से जो दिखते है।।
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