Rajeev Namdeo Rana lidhorI

सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

बुंदेली में बसंत -दोहा संकलन -संपादक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़



                      बुंदेली में बसंत
                  (बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'


                         बुंदेली में बसंत
                  (बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

ई बुक प्रकाशन दिनांक 15-02-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965

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अनुक्रमणिका-

1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
2-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
3-अशोक नादान लिधौरा टीकमगढ़ 
4-राज गोस्वामी,दतिया(म.प्र.)
5-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)
6- एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
7-डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़
8-डां. रेणु श्रीवास्तव भोपाल
9- रामानन्द पाठक,नैगुवा
10-राम गोपाल रैकवार, टीकमगढ़
11-परम लाल तिवारी, खजुराहो
12-प्रेक्षा सक्सेना, भोपाल
13-संजय श्रीवास्तव,मवई 
14-रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी
15-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,
16-अभिनंदन गोइल, इंदौर
17-सियाराम अहिरवार टीकमगढ़ 
18-अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
19-गुलाब सिंह यादव 'भाऊ', लखौरा, टीकमगढ़
20- प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़
21-समीक्षा-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा

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अवसर विशेष -
*प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।।

अर्थात "ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।"
** ऐसी *मां सरस्वती* का अवतरण दिवस..........

**   *सम्राट पृथ्वीराज चौहान* और *वीर हकीकत राय* का बलिदान दिवस......

 **  कूका पंथ के संस्थापक *गुरु राम सिंह कूका* एवं हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि *सूर्यकांत त्रिपाठी निराला* का जन्म दिवस............

**   *काशी हिंदू विश्वविद्यालय*   स्थापना दिवस.......

.... आदि ऐसे अनेक संस्मृतियों को याद दिलाने वाली  *वसंत पंचमी*  हम सभी के जीवन में नवोत्साह का संचार करें।  बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।......  
🙏🌹🙏
मां सरस्वती जी के  विशेष मंत्र-

*सरस्वती अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्*

सरस्वती महाभद्रा महामाया वरप्रदा
श्रीप्रदा पद्मनिलया पद्माक्षी पद्मवक्त्रका ॥
शिवानुजा पुस्तकभृत् ज्ञानमुद्रा रमा परा
कामरूपा महाविद्या महापातकनाशिनी ॥

महाश्रया मालिनी च महाभोगा महाभुजा
महाभागा महोत्साहा दिवयाङ्गा सुरवन्दिता ॥
महाकाली महापाशा महाकारा महाङकुशा
पीता च विमला विश्र्वा विद्युन्माला च वैष्णवी ॥

चन्द्रिका चन्द्रवदना चन्द्रलेखाविभूषिता
सावित्री सुरसा देवी दिव्यालन्कारभूषिता ॥
वाग्देवी वसुधा तीव्रा महाभद्रा महाबला
भोगदा भारती भामा गोविन्दा गोमती शिवा ॥

जटिला विन्ध्यवासा च विन्ध्याचल विराजिता
चण्डिका वैष्णवी ब्राह्मी ब्रह्मज्ञानैकसाधना ॥
सौदामिनी सुधामूर्तिस्सुभ्रदा सुरपूजिता
सुवासिनी सुनासा च विनिद्रा पद्मलोचना ॥

विद्यारूपा विशालाक्षी ब्रह्मजाया महाफला
त्रयीमूर्ती त्रिकालज्ञा त्रिगुणा शास्त्ररूपिणी ॥
शुम्भासुर प्रमथिनी शुभदा च स्वरात्मिका 
रक्तबीजनिहन्त्री च चामुण्डा अम्बिका तथा ॥

मुण्डकायप्रहरणा धूम्रलोचनमर्दना
सर्वदेवस्तुता सौम्या सुरासुरनमस्कृता ॥
कालरात्रि कलाधारा रूपसौभाग्यदायिनी
वाग्देवी च वरारोहा वाराही वारिजासना ॥

चित्राम्बरा चित्रगन्धा चित्रमाल्य विभूषिता
कान्ता कामप्रदा वन्द्या विद्याधरा सुपूजिता ॥
श्र्वेतासना नीलभुजा चतुर्वर्ग फलप्रदा
चतुराननसाम्राज्या रक्तमध्या निरञ्जना ॥

हंसासना नीलजङघा ब्रह्मविष्णुशिवात्मिका
एवं सरस्वती देव्या नाम्नामष्टोत्तरशतम् ॥
इति श्री सरस्वती अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् संपूर्णम्

🌹मां सरस्वती जी का संपूर्ण मंत्र*
ओम ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः।🌹
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1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

*बसंती दोहा*

*1*
मात सरसुती कौ करौ,
बसंत पंचमी गान।
उनकेई आसीस सें
होबै जग कल्यान।।

*2*
बिखरौ परो बसंत है,
देखौ अपने पास।
मन की आँखन देखिए,
छाऔ है मधुमास।।

*3*
रितु बसंत कौ आगमन,
धरनी कौ सिंगार।
तकत बाट आकास की,
प्रेम लेय आकार।।
15-2-2021
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.co
(मौलिक एवं स्वरचित)
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2-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
                    #1#
बगियन वन बगरो फिरै,नियरे होंय  न कंत।
साँसी में कै रै सखी,आँसत मोय बसंत।
                    #2#
मोरे बालम जा लगे,और सौत के कान।
काँटे से मौखों लगें,सो बसंत के बान।।
                    #3#
बगियन बागन वनन में,भौरन की गुंजार।
कोयल कूक सुनें लगै,आइ बसंत बहार।।
                    #4#
पीरे सरसों फूल रय,जात सखी मन फूल।
कंत न होंय बसंत में,आँसत जैसें सूल।।
                    #5#
वन बसंत बगरो फिरै,लाल लाल भै डाँग।
वनदेवी भयी सुहागन,आई भरकें माँग।।

-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
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3-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा ,टीकमगढ़ 


मन बौरा रव हवा कौ,
करै अनोखी मांग।
फागुन में तौ चाइए,
मोय घुटी भइ भांग।।

                भौंरे मंडराने लगे,
                 उड़ने लगौ पराग।
                टेशू ने तौ लगा दइ,
              जंगल भर में आग।।

पथरचटा फूलौ फिरै,
लाल लाल भव गात।
सेवंती ने कर दई,
 रंगों की बरसात।।

            सिंदूरी भइ गुलमुहर,
             बौरा गय सब आम।
              लाल हुए बोतल ब्रुश,
                बेरी भई ललाम।।

सरसों फूली खेत में,
 ओढ़े चूनर पीत।
पागल हवा नशा करें,
 अबहुं न आये मीत।।
                  * * *
               -अशोक नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़ 
###जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##

4-राज गोस्वामी,दतिया


1-सरसो फूली देख के मगन हुआ है खेत ।
   गदगद भए तब जान के दद्दा बाइ समेत ।।

2- भौरा भन्नानो फिरै ढूढत फूल पराग ।
     खोजत खोजत झाडिया, कर रौ भागम्भाग ।।

3-अधकतरे फल देख के आइ सजन की याद ।
   रोम रोम उमडनलगौ बदलौ मौ कौ स्वाद ।।

4-डंठल भी हरया गई मचलत सरसो देख ।
  भौरे इत उत हो रहे,लेखक लिखवे लेख ।।

5- थी उदास किलकन लगी भइना कछुअइ देर ।
     पिय आये परदेश से हो ना पाई सबेर ।।

-राज गोस्वामी,दतिया(म.प्र.)
######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़####

5-- -कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)


सिसिर रितू के बाद ही , दरसन देत बसंत ।
महकन उर बहकन लगत , चारउ ओर दिगंत ।।

सोभा धरती की निरख , तन पुलकित हो जात ।
चारउ तरप बसंत की , अनुपम छटा दिखात ।।

रितुअन में सिरमौर है , सुन्दर सुखद बसंत ।
धरती पै बरसन लगत , रस - आनन्द अनंत ।।

ज्यों बसंत उबरात है , सजवै त्यों-त्यों भूम ।
रस राजा श्रृंगार की , मचन लगत है धूम ।।

मनसिज और बसंत में , है घनिष्ठ सम्बन्ध ।
एक साथ ही घूमते , प्राकृतिक अनुबन्ध ।।

-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)
   ####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़###

6-एस.आर.'सरल', टीकमगढ़


बुन्देली  बसंत दोहा
🦋🦋🦋🦋🦋
भिन भिन भौरा भौरनी,
 फूल फूल मड़रात।
कीकौ कैसौ रस मधुर,
भौरा चख उड़ जात।।
 🌻🌻🌻🌻🌻
               मधुर तान भौरा भरै,
               उड़ उड़ फूकत मंत।
               फूल खिले अगुआइ मे,
               बगरो फिरै बसंत।।
               💐💐💐💐💐
गलियन खुशबू आ रई,
 बहै बसंत बहार।
तन मन मस्ती भरि हुलक,
 करै भँवर गुन्जार।।
🌹🌹🌹🌹🌹
               छेवलन छेवलन फूल हैं,
                आमन आमन मौर।
                भौरन भौरन जोश है,
                फूलन फूलन ठौर।।
                🌷🌷🌷🌷🌷
बाग बगीचा हैं सजे,
खेलत फिरत बसंत।
स्वागत में कलियाँ खिलीं,
आव भँवर प्रिय कंत।।
       ***
 मौलिक एवं स्वरचित
 -एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
#######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़#####

7- डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़



🌷🌷1🌷🌷
 चादर के दिन आ गए, नोनीं लगतइ छॉव  !!
बसंत ऋतु कौ आगमन,आलस पकरत  पांव!!
🌷🌷2🌷🌷
 कात बसंत को जानिए! चलत बयारी दौर !!
अमुआं सोंधी महक लै महकै  ऊकौ बौर !!
🌷🌷3🌷🌷
जौ बसंत बगरौ फिरै! बागन  बिच है आन!!
 कोयलिया कूकन भरै! मृदुल मिठासी तान !!
🌷🌷4🌷🌷
उपवन टेसू फूल खों! डार चुनरिया लाल !!
लगत बसंत है अा गयौ! गलियन उड़त गुलाल!!
🌷🌷5🌷🌷
 परत भॉवर फूलन पै,मँड़रात कीट पतंग !
बसंत बगरौ देखकें,गुनगुनात रतइ भृंग!!

डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़ (मप्र)
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8-डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल


दोहे- विषय 'बसंत' 
     ✍️✍️✍️✍️✍️✍️    
1 सरदी की ऋतु जात है, 
 सूरज तपै अकाश। 
 कोयलिया कूकन लगी, 
 फूले फूल पलाश ।। 

2 ऋतुअन को राजा लगै, 
 प्रजा खुशी कर जात।
 मानस मन नाचन लगै, 
 जब बसन्त आ जात।। 
              
             ✍️- डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
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9 -रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,


                    1
अब जडकारौ निकर गव, आ गइरितू बसंत।
दुनियां चेतन अब भई, मस्ती छाइ  अनंत।
         ‌             2
पीरौ सरसों खेत में, झोंकन संग लहराय।
आगव आमन मौंर अब, कोयल कूक सुनाय।
                      3
बागन में मडरात हैं,तितली भोंरन चूल।
ऋतूराज भव आगमन, मौसम है अनुकूल।
                       4
गुच्छन फूले बाग में ,बिखरी वास मकरन्द।
झोंकन धीमी हवा में, कामुक उठी सुगन्द।
                           5
ऋतु बसंत के आय सों,न्यारी छटा दिखाय। 
श्रिन्गार सोला कर लिये, जीव जगत खों भाय ।

                 -रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
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10-राम गोपाल रैकवार, टीकमगढ़
नोन, मिरच, धनियाँ हरौ,
चटनी, रोटीं चार।
इक हरदी की गाँठ सें,
भई बसंती दार।।

रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
मौलिक-स्वरचित
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11-परम लाल तिवारी, खजुराहो

"बसंत"
मंद मंद बहती पवन,हिय में उठत उमंग।
आई ऋतु मनभावनी,छायो चहुंदिशि रंग।।

त्रिविध वायु बहती सुखद,काम कृसानु बढ़ाय।
रोमांचित जन जनहिं मन,रोम रोम पुलकाय।।

बीत गई ऋतु शिशिर की,लाग्यो सुखद बसंत।
प्रिया निहारे द्वार लग,कब आवे मम कंत।।

पीली सरसों खेत की,लहर लहर लहराय।
शीतल मंद सुगंध शुचि,पवन बहै सरसाय।।

श्याम विरहणी सखी की,दसा लखी नहि जाय।
तन पुलकित लोचन स्रवित,अविरल अश्रु बहाय।।
              स्वरचित एवं मौलिक
   -परम लाल तिवारी, खजुराहो
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12-प्रेक्षा सक्सेना, भोपाल

तरंगें हैं हृदय की ,
चेतना प्राण की है।
उमंगें श्वास में हैं,
घड़ी निर्माण की है।

रचो नव प्रेम को अब,
नए सिद्धान्त लेकर।
हो जग में प्रसारित,
भाव विक्रान्त लेकर।
घड़ो उस घड़ी को जो,
रुचिर मधुगान की हैं।

स्थापित आज तुम हो,
तुम्हीं तो हो नियत कल।
तुम्हीं व्यापक जगत हो,
तुम्हीं हो समर का बल।
लो आकर सब सम्भालो,
घड़ी आव्हान की है।

ज़रा में विकल होकर,
ना यूँ सर्वस्व हारो।
स्वयं की साधना में,
धरा सा धैर्य धारो।
यही दिग घोषणा तो,
विजित अभिमान की है।

उमंगें श्वास में हैं,
घड़ी निर्माण की है।

*प्रेक्षा सक्सेना*, भोपाल
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13-संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
१*
आ गय बसंत पाँवने,
 पलक पाँवड़े डार।
नये गीत,सुर,ताल सें,
 कर स्वागत,सत्कार।।
*२*
धरती पे पसरे परे,
 रितुअन के सरताज।
गेँहू की गम्मत जमी,
 सरसों देतइ साज।।
*३*
चौतरफा फूला खिले,
 फसल दमक रइ खेत।
प्रकृति दुल्हन बनी,
सबको मन हर लेत।।
*४*
हरी धरा है हेरती,
 नीलो है आकाश।
भंवरे-तितली मस्त हैं,
 लै कें सुमन सुवास।।
*५*
बासंती अनुपम छटा,
 वन-उपवन मुस्काय।
बैठ आम की डाल पे,
कोयल गीत सुनाय।।।
*६*
संत-महंत बसंत जू,
 मंद-मंद मुस्काँय।
हरी धरा की गोद में,
 बैठे ध्यान लगाय।।
 -संजय श्रीवास्तव,मवई स्वरचित, १/२/२१दिल्ली
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14-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी
ढोल मजीरा बज उठे,है बसंत अब द्वार/
फूल-फूल कें खिल उठे, जो मन थे बीमार//

बागन क्यारी खेत में, बौराय बसंत/
जीसें मन आनन्द में,लेय उछार अनन्त//

आज प्रदूषण दे रओ,चारउं ओर दहाड़/
जो बसंत कैसे बचें, नदियाँ पेड़ पहाड़//

रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.
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15-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,
      
आआओ बसंत झूम कै,
लै फूलन कै रंग ।
बाग बागन महकत हैं,
मनवा भरी उमंग ।

कुदरत को रंग निखरौ,
छाओ रूप अपार ।
अमलतास दहकत रयौ ,
बहकत है कचनार ।

स्वरचित 
-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,01,02,21   
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16-अभिनंदन गोइल, इंदौर



विरछा फूलन सें लदे,तालन खिले सरोज।
रितु आ गई बसंत हो, बान सजायँ मनोज।।

नारी-मन प्रमुदित भयौ,संजा सबहिं सुहाय।
मोहक दिवस बसंत के,मलयपवन महकाय।।

रितु कमनीय बसंत की, सुभग चाँदनी रात।
प्रमदा के सौभाग्य सें,मिली सजन-सौगात।।

आम- वृक्ष  बौरा  रहे, मस्त  बहै  मकरंद ।
काम जगाये हीय में , पवन मधुर अति मंद।।

सब कछु लगै सुहावनौ, मद भर ल्याइ बसंत।
काम-बावरे   हो  गये ,  दौरे   आये   कंत ।।

मौलिक, स्वरचित      -अभिनन्दन गोइल, इंदौर

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17-सियाराम अहिरवार टीकमगढ़ 

        दोहा
  1****     🌷बसंत🌷
सरसों फूले खेत में ,आ गई रितु बसंत ।
बिरहन मैं तड़फत रई ,घर  नइ आये कंत ।।
2****
कमल सरोवर खिल गये ,फूल गये कचनार ।
चुनरी घानी ओढ कें ,निकर चली सुकमार ।।
3****
अमुआं लदे बसंत में ,बौरानी हर डाल ।
मधुर गान कोयल करै ,चलै अनौखी चाल ।।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
-सियाराम अहिरवार टीकमगढ़ 
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18- अरविंद श्रीवास्तव, भोपाल
*बसंत*

स्याने भय औ वे मिलीं, उमड़ो नेह अनंत,
जानो पैली बेर कै, ऐसौ होत बसंत।

गोरी रै वैं गाँव में, हैं परदेशै कंत,
दोई हींड़त रै गये, रूखौ गऔ बसंत।

समा गईं गोपाल में, मीरा हो गइ संत,
काया बन गइ बाँसुरी, मनवा भऔ बसंत।

*अरविन्द श्रीवास्तव*,भोपाल
(मौलिक-स्वरचित)
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19-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
1
वसंत पचंबी जानिवो,सरस्वती पूजी जाय।
जा बुध्दि सत ज्ञान खो, लईवो सबई मनाय।।
2
ज्ञान जोत के आदरे,तुमसे ज्ञान मगाय।
भीतर के अबगुण सुनो,मईया दिवो भगाय।।
3
वीणा की झनकार दो,विनती है करजोर।
आन बिराजो कंठ में, सुमरे दोई जोर।।
4
कंठ हमारे आन के,बैठो देबी मात।
सुर शब्दों के साज की,मईया रखिवो लाज।।
5
आई सुनो वसंत है,फूलन फूली डार।
मन हमारे फूल उठे, कडगई शीतल धार।।

गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
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विशेष-बसंती गीत

20-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़
उजड़ी मांग और फूटी चुड़ियां, न जानें कितनन की।
 ऐसे में बैरी बसंत जौ आऔ, हालत है रनबन की।।

सोचीती जब आबौ हुईहै, करें सत्कार तुम्हारौ। 
बसंत राज ऐसे में आये, मन न लगै हमारौ।।
अब जब आओ सरसौं रयै फूली, खिलै काया  बगियन की.....
-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़
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आज के समीक्षक- श्री जयसिंह जयहिंद, पलेरा
सोमवारी समीक्षा#दिनाँक   #
#15.02.21#दोहे बसंत#
#समीक्षाकार.. जयहिन्द सिंह#
*************************
आज के शानदार बिषय पै सबने शानदार जानदार बजनदार लिखो
आज जौ लगरव जैंसें सब एक से
बढकें एक बुन्दैली रचनाकारन ने अपनी 2कलम सें ऐसे कलाम काड़ दय जिनकी प्रशंसा करबौ सूरज खाँ दिया दिखाबौ कहाय।
पटल के सबयी विद्वानन सें पैलाँ
माँ शारदा कौ वंदन फिर सबखों 
हात जोर राम राम।अब मैं आप सबसें अनुमति लैकैं समीक्षा लिख रव बनी बिगरी आप सब जनें समारियौ।
#1#जयहिन्द सिंह जयहिन्द.....
मैनें बसंत में बिरह बरनन करो।कोयल की कूक बसंत आबे कौ इशारौ है।छेवले के फूल वन में ऐंसें दिखात जैसें वनदेवी की मांग में सिन्दूर होय।सबसें अच्छौ दोहा 
पाँचव खुद खाँ साजौ लगो।भाषा आप सब जनें जानौ।
#2#श्री अशोक कुमार पटसारिया नादान.......
आपने बसंत में घुटी भांग केआनंद,टेसू सें जंगली आग कौ बरनन,बसंत में रंगों की बरसात, गुलमोहर आम बेरी कौ बरनन,सरसों के पीरे फूल,और मन के मीत की चाहत कौ बरनन
करो।भाषा मधुर और लचभावनी है।आदरनीय खों नमन।
#3#श्री राजीव नामदेव राना जू....
आपने तीन दोहन कौ तिरंगा फहराव।बसंत पंचमी खों कल्याण कारी बताव।मधुमास बरनन,बसंत सें धरती के सिंगार कौ बरनन करो गव।तीसरौ दोहा भौत अच्छौ लगो।भाषा बिस्तारक,सरल सटीक है।आपखों बार बार बधाई।
#4#श्री एस.आर. सरल जू......
आपने दोहन मेंभौंरा कौ रसास्वादन, बसंत के बगरबे कौ,भौंरन के गुंजार की मस्ती बहार,छेवले आम भौंरा और फूल
बाग बगीचा की सजावट,कंत की अवाई की आशा,कौ बरनन करो।आपकौ चौथौ दोहा भौत अच्छौ लगो।भाषा प्रवाहमयी रपटदार है।आदरनीय खों बधाई।
#5# श्री रामगोपाल रैकवार जी.......
आपने टकसाल दोहा डारो।खाने के बसंत कौ बरनन करो।भाषा के
चमत्कार खों नमस्कार।आदरनीय खौं नमन।
#6#श्री संजय श्रीवास्तव जी...
आपने बसंत खों पावनों मानो।प्रकृति चित्रण दमदार, भँवरे तितली की मस्ती,कोयल गान,संत महंत और बसंत कौ सुन्दर चित्र खेंचो।तीसरौ दोहा सबसें मस्त।भाषा सुन्दर सरस लुभावनी,आदरनीय खों बधाई।
#7#श्री गुलाब सिंह यादव भाऊ जी........
श्री भाऊ जी ने बसंत पंचमी,ज्ञान की सरस्वती सें याचना,भारती वंदना,बसंत में फूलन की झूम,कौ शानदार बरनन भव।
आपकौ पाँचवाँ दोहा सबसें साजौ लगो।भाषा चमत्कार रसदार है।आदरनीय खों नमन।
#8#श्री संजय श्रीवास्तव जी.....
आपने पटल पै श्रीफल रूपी दोहा डारो।रितुराज की पसरन,अन्न की गम्मत,और सरसों के साज कौ मस्तीदार बरनन करो।दोहे श्रेष्ठ हैं,भाषा सरस प्रवाहित है।भाई साब कौ बेर बेर आभिनंदन।
#9#पं.श्री परम लाल जू तिवारी.....
आपके दोहन में मस्त पवन,रोंम रोंम खुशी,शिशिर के बाद रितुराज आगमन,बृज की सखी कौ बिरह,बरनन करो।अंतिम दोहा भौत शानदार लगो।भाषा की रचना श्रेष्ठ।आपका सादर नमन।
#10#श्री राजीव राना जी....
संशोधित दोहे डारे गय।और धार बना दयी।आनंद आ गव।आपका सादर वंदन।
#11#श्री रामेश्वर गुप्ता इन्दु जी........
आपने भी बासंती तिरंगा लहरादव।बसंत कौ संगीत,बागन की क्यारियाँ, प्रदूषण पै खेद,प्रगट करो। अंतिम दोहा भौतयीं नौनौ लगो।भाषा प्रवाहित रसीली अर्थालंकार सें सजी है।आदरनीय खों नमन।
#12#बहिन प्रेक्षा सक्सेना जू.....
आपने दोहन की जगह कविता लिखी जो अच्छी है।बहिन अगर बसंत के दोहे लिखतीं तो और ऊंचाई पा जातीं।कोई बात नयीं,भाषा में तो अबै चार चाँद लगा दय।भाषा प्रवाह श्रेष्ठ है।बहिन को चरण बंदन।
#13#श्री प्रदीप खरे जी......
आपने संक्षिप्त कविता से बसंत बरनन करो।अच्छौ लगो।दोहा लिखते तौ और आनंद आ जातो।लेखनी खों प्रनाम।आपकौ वंदन।
#14#पं.श्री डी.पी.शुक्ल सरस जू..........
आपके बसंत मेंधूप तेज और आलस कौ बरनन करो गव।
बौर की गंध ,कोयल की कूक,बसंत बरनन,कीट पतंगन बिहार कराव गव।चौथौ दोहा सबसें साजौ लगो।भाषा प्रवाह मिठास चिकनाई शानदार।महाराज के चरण वंदन।
#15#डा. रेणु श्रीवास्तव जी......
आपने दो दोहा डारे जो शानदार गागर में सागर भरो गव।सबसें अच्छौ बसंत बरनन लिखो गव।डा. बहिन की भाषा जोरदार, मस्त प्रवाहभरी, है। बहिन जी का चरण वंदन।
#16#पं. श्री रामानन्द पाठक जू.........
आपने बसंत की अनंत मस्ती,सरसों की गंध,कोयल के राग,तितली भौंरन की मस्ती,बातावरण की कामुकता,और बसंत की न्यारी छटा कौ बरनन करो।तीसरे दोहा ने मन जीत लव।भाषा मधुर प्रवाहभरी मस्त।आपका चरण वंदन।
#17#श्री कल्याण दास साहू पोषक जू.........
आपने अपने दोहों में दिगंतौं की बहकन,बसंत की छटा ब रस आनंद,बसंत कौ उवरावौ,मनसिज और बसंत के सबंधन पै प्रकाश डारो।सबयी दोहा नौनै।भाषा सरल सरस श्रेष्ठ।आपका अभिनंदन।
#18#श्री अरविन्द श्रीवास्तव जी.........
आपने भी तिरंगा पटल पै फैरा दव।तीसरे दोहा में बौ आकर्षण भरो कै देखतन बनत।बसंत कौ कलश बनाव।शानदार जानदार लेखन,भाषा रसीली गरिमा मयी।आपखों बेर बेर नमन।
#19#श्री संजय श्रीवास्तव जी......
संशोधन में एक दोहा बढाकें धार पेंनी करी गयी।संशोधन खों धन्यवाद।
#20#श्री अभिनंदन गोईल जू............
आपने रँग बरसा दव।पैलै दोहा ने मजा बांदो।बानगी श्रैष्ठ,अच्छे शब्दन कौ प्रयोग जैसें...तालन खिले सरोज,बान सजाँय मनोज,।
बसंत के मोहक दिन,रितु कमनीय, आमन की बौर,मकरंद,बसंत की सुहावनी छटा कौ बरनन करो गव।आपकी भाषा सराहनीय,साहित्यिक एवम्
रसीली है।आपका बेर बेर वंदन आभिनंदन।
#21#बहिन हंसा श्रीवास्तव जी..
आपने दो दोहे सजाये।जिसमें बसंत की झूम,फूलन के रंग और उमंग कौ सुन्दर चित्रण करो गव।
दोई दोहा सुन्दर भावपूर्ण हैं।भाषा रसदार चुटीली है।आपके चरण बन्दन।
#22#श्री राज गोस्वामी जी......
आपने बसंत में खेत की सुन्दरता के दर्शन कराये।भौंरा की दौड़ सजन की याद,भौरन कौ बरनन,बिरह कौ चित्रण करो गव।
भाषा भावप्रधान,रसदार,लचकदार है।आपके पैलै दोहा में भौत दम है।
आपकौ वंदन।
#23#श्री सियाराम सर जी......
आपने तीन दोहे पटल की भेंट करे।पैलै दोहा मेंबसंत विरह,दूसरे में प्रकृति चित्रण,सिंगार, बसंत कौ वैभव,लिख डारो।भाषा सुन्दर सटीक सरल प्रवाहभरी है।पैलौ दोहा गजब।आपखों बेर बेर धन्यवाद।
उपसंहार.....
आज अब आठ सें जादा बज गये।पटल के नियम सें सबकी समीक्षा कर दयी,अगर धोके से कोऊ छूट जाय तौ अपनौ जान कें क्षमा कर दैयो।सबखोट फिर सें जयराम जी की।
धन्यवाद।
आपका अपना......
जयहिन्द सिंह जयहिन्द
पलेरा जिला टीकमगढ़
6260886596
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          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

ईबुक प्रकाशन दिनांक 15-02-2021
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