Rajeev Namdeo Rana lidhorI

बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

बुंदेलखंड का सबसे बड़ा चंदेलकालीन नदनवारा तालाब जिला टीकमगढ़-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र)


 

शोध आलेख:-
‘‘बुदलेखण्ड का सबसे बड़ा चंदेलकालीन तालाब’’ 
                          -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 
               नगनवारा तालाब जिला मुख्यालय टीकमगढ़ से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिमी पाश्र्व में 25.2 उत्त्री अक्षांश एवं 78.52 पूर्वी देशान्तर मोहनगढ़ से जैरोन सड़क मार्ग पर स्थित है। टीकमगढ़-पृथ्वीपुर मार्ग के बमौरी बराना ग्राम से भी एक रास्ता नदनवारा तालाब को जाता है। नदनवारा तालाब अपनी विशेषताओं के कारण पूरे बुन्देलखण्ड में बहुत प्रसिद्ध है। इस बुन्देलखण्ड का सबसे बड़ा चंदेलकालीन तालाब भी माना जाता है।
                 इसकी  विशालता को देखते हुए इसे प्राचीन नाम ‘समुद्र सागर’ एवं ‘सिंधुसागर’ से भी जाना जाता है। प्राचीन अभिलेखों के अनुसार इस चंदेलकालीन ही माना जाता है। इस तालाब वारगी नदी के जल को दो ठोटी पहाडियों के बीच रोककर बनया गया था किन्तु वारगी नदी के तेज बहाव एवं जलाधाट को कारण एक वार यह बांध टूट गया था जिसे ओरछेस नरेश महाराज वीर सिंह जू देव(1605-27ई.) ने इसका पुनर्निमाण कराया था। महाराज ने तालाब के भराव क्षेत्र की तरफ एक ऊँची पक्की दीवाल बनवा दी थी एवं स्नानघाट का निर्माण कराके वहीं पर श्री गणेश जी कि मूर्ति स्थापित करवा दी थी। एक बैठका (चबूतरा) भी बनवाया दिया था जिसे ‘राजा का पलंग’ कहा जाता है। यहाँ से पूरे तालाब को बहुत खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। बाँध पर रेस्टहाउस भी है।

                      सरकारी रिकार्ड के अनुसार इसके नदनवारा तालाब के पक्के बांध की लंबाई लगभग 250मीटर और ऊँचाई 17.50 मीटर है एवं इसकी पांखी की चैड़ाई लगभग 107 मीटर हैं। तालाब का कुल भराव क्षेत्र लगभग 15 वर्ग किलोमीटर है। इससे लगभग 3000 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई की जाती है। इस तालाब से एक नहर बाई तरफ से निकली है जिसकी लंबाई 16 किलोमीटर है एवं एक नहर दायीं तरह से निकली है जिसकी लंबाई 5 किलोमीटर है। इस तालाब से लगभग एक दर्जन गाँवों में इससे सिंचाई की जाती है। जिनमें प्रमुख रूप से  नगदवारा, केशरीगंज, पाराखेरा, बुदर्रा, ककावनी, मजल, बजरंगगढ़, बाराबुजुर्ग, ममोरा,रौतेरा खाखरोन, बम्होरी, मडिया आदि अनेक गाँवों में सिंचाई की जाती है।
                          अभी हाल ही में तालाब से तालाब जोड़ों परियोजना के तहत इस नदनवारा के तालाब से लगभग 85 गाँवों में सिंचाई की सुविधा होगी जिसके लिए पाइपलाइन बिछाने हेतु पाइप आ चुके है एवं वाटर सप्लाइ हेतु पानी शुद्ध करने के लिए वाटर प्लांट बन गया है।
                  इस तालाब के बारे में एक किंकदंती भी सुनने हो मिलती है। कि-‘‘इस तालाब को निर्माण ओरछा नरेश महाराज वीर सिंह जू देव ‘प्रथम’ (1605-27ई.) ने कराया था यह तालाब वारगी नदी को रोककर बनवाया गया है। कहा जाता है कि दो बार इस नइी के तालाब ने बांध को तोड़ दिया था और जब तीसरी वार भी टूटने की आशंका बनी थी तब श्रावण शुक्ल की पूर्णिमा के दिन महाराज वीर सिंह जू देव ने स्वयं इस बांध पर शयन किया था तब रात में जब नदी में बाढ़ आई तब ऐसा लगा कि बाँध टूट जायेगा और राजा बह जायेंगे। तब नदी ने देवी का रूप धारण करके स्वप्न दिया ‘तुम यहाँ से हट जाओं, बाँध टूट रहा है।’ महाराजा देवी भक्त थे उन्हें सदा देवी जी के द्वारा स्वप्न होता और आगे आने वाले कार्यो का संकेत मिलता था। उसी के अनुसार वे कार्य भी करते थे। नींद खुलने पर महाराज चिंतित हुए उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। नदी का वेग देखकर ऐसा लग रहा था कि अभी कुछ ही पलों में बाँध टूटता है। उन्होंने देवी जी से निवेदन किया-‘‘ मैंने अनके बार आपकी आज्ञा का पालन किया है। जब जब आपने आदेश दिया उसे शिरोधर्य किया, लेकिन एक मेरी प्रार्थना आप भी स्वीकार कर लीजिए। मैं चाहता हूँ कि यह बाँध बना रहे टूटे नहीं। बडे़ परिश्रम से हमने इसका निर्माण कराया है। इसके रहने से असंख्य पशु-प़क्षी पानी पीयेंगे और मानव समाज का भी उपकार होगा इसलिए आप नदी को दूसरी ओर से ले जाइए। कहते है कि राजा की विनम्र प्रार्थना सुनकर देवी जी का हृदय पिघल गया और उन्होंने बाँध न तोड़कर बाँध से लगभग 50 गज की दूरी पर दोपहाड़ियों के बीच होकर नदी ने अपना मार्ग बना लिया और बहने लगी।’’2

               गाँव वालों के कथनानुसार यहाँ पर कुछ वर्ष पूर्व चोरों द्वारा बँधान पर बने मंदिर से श्री गणेश जी की मूर्ति को चोरी करने का प्रयास किया गया था किन्तु कहते है कि वे श्री गणेश जी का एक पाँव नहीं निकाल पाये थे जब उन्होंने उस पाँव को निकालने की कोशिश की तोड़ उनके सब्बल और वहीं चिपक कर रहे गये थे जब बहुत कोशिशों के बाद भी चोर उनके पाँव को जमीन से नहीं निकाल पाये तो वे एक पाँव को आधा तोड़कर मूर्ति का ऊपर का हिस्सा ले जाने लगे थोड़ी ही दूरी पर तालाब के दूसरी तरफ से कुछ लोगों को पता चलने पर वहाँ पहुँचे तो वे चोर मूर्ति को बांध के नीेचे दूसरी तरफ में मिट्टी में दबा कर भाग गए थे कुछ पकड़ा गये थे और उन्हेें सजा भी हुई थी,लेकिन उन्होंने वहाँ से मूर्ति को ले जाते समय जहाँ- जहाँ भी थोड़ा आराम करने के लिए मूर्ति को रखा, वहाँ-वहाँ मूर्ति से सिंदूर के निशान बनते गये और चोरों के भाग जाने के बाद इस सिंदूर के चिन्हों की सहायता से ग्रामीणों ने मूर्ति को खोज निकाला था तभी से इस तालाब का नाम ‘सिंधुसागर’ भी पड़ गया था। बाद में इस खंंिडत मूर्ति को गाँव में एक नये मंदिर में स्थापित कर दिया गया जबकि बधांन में अभी भी एक टूटा हुआ आधा पाँव मंदिर में मौजूद है तथा उस पाँव के ऊपर एक नयी श्री गणेश जी की मूर्ति स्थापित कर दी गयी है। जिसे आज भी गाँव वाले पूजा करते है। वहीं पास में बरगद का एक विशाल वृक्ष भी लगा हुआ है।
                अनेक किस्सों और किंवदंतियों को अपने में समेटे हुए यह नदनवारा का तालाब अपने आप में बहुत अद्भुद है लोग उसे देखने के लिए आते रहते है चंदेलकानील यह तालाब में उचित देखभाल न होने के कारण अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है कहते है कि पहले इस का भराव क्षेत्र पच्चीस मील तक था किन्तु वर्तमान में भराव क्षेत्र दिनोंदिन कम होता जा रहा वहाँ अतिक्रमण भी हो रहा। वर्तमान में इस ऐतिहासिक तालाब को सरंक्षण और उचित देखभाल की सख्त जरूरत है। तभी यह संरक्षित हो रहेगा यह चंदेलकालीन ऐतिहासिक धरोहर है।
             नदनवारा के तालाब में कमल के फूल खिले रहते है और यहाँ के सिंघाड़े बहुत प्रसिद्ध है। लोग कमल के पत्तों पर प्रचीनकाल में विवाह के समय पंगत में इन्हीं पत्तों पर भोजन करते थे। हर साल यहाँ पर मकर संक्रति पर एक बहुत बड़ा मेला लगता है जिसमें आसपास के गाँवों के लोग यहाँ पर आते हैं। इस तालाब को दखते हुए बहुत संुकून और आराम मिलता तथा एक असीम शांति का अनुभव होता है। यहाँ की प्रकृतिक छटा देखते ही बनती है दो छोटी-छोटी पहाडियों के मध्य बना यह तालाब दर्शनीय है।
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आलेख- © राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
  अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
  जिलाध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
पिनः472001 मोबाइल-9893520965
E Mail-   ranalidhori@gmail.com
      Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com

साभार सन्दर्भ ग्रंथ-
1-‘बुन्देलखण्ड के तालाबों एवं जल प्रबंधन का इतिहास’ 
   सन्-2011 लेखक- डाॅ. काशीप्रसाद त्रिपाठी,
2-‘विन्ध्य भूमि’ प्रदेश परिचय अंक वर्ष-4 अंक-2-3,- पृ.-20-21
3-‘टीकमगढ़ जिला गजेटियर’ - डाॅ. नर्मदा प्रसाद पाण्डेय
4- ‘जल प्रबंधन’ (बुुंदेलखण्ड की पारम्परिक जल संरचनाएँ)
     लेखक- हरिविष्णु अवस्थी 2019
---0000---आलेख- © राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’

3 टिप्‍पणियां:

Hemant "hemu" ने कहा…

बहुत सुंदर वर्णन।

Unknown ने कहा…

ज्ञान से भरा हुआ बहुत ही सुंदर वर्णन ।

Unknown ने कहा…

Wow great work